अध्याय 08 प्रमुख तालों के ठेके एवं लयकारी

तालों का उनके ठेकों सहित विवरण

संगीत में समय नापने के साधन को ताल कहते हैं। यह संगीत में व्यतीत हो रहे समय को मापने का एक महत्वपूर्ण साधन है जो भिन्न-भिन्न मात्राओं, विभागों, ताली और खाली के योग से बनता है। ताल संगीत को अनुशासित करता है। संगीत को एक निश्चित स्वरूप देने में ताल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इन तालों को उनके ठेकों द्वारा पहचाना जाता है। उत्तर भारतीय संगीत में प्रयुक्त तालों के ठेके होते हैं जो इसकी निजी विशेषता है। किसी भी ताल का वह मूल बोल जिसके द्वारा उस ताल की पहचान होती है, उस ताल का ठेका कहलाती है। किसी ताल के ठेके की रचना उस ताल की प्रकृति, यतिगति, ताली, खाली, विभाग आदि को ध्यान में रखकर की जाती है। यद्यपि उत्तर भारतीय तालों के ठेकों में कहीं-कहीं विरोधाभास भी दृष्ट्टित होता है। कुछ प्रचलित तालों को छोड़ दिया जाए तो कई तालों के अलग-अलग ठेके भी प्रचार में देखने को मिलते हैं।

उत्तर भारतीय संगीत में तबले पर बजाई जाने वाली प्रचलित प्रमुख तालों के ठेकों का विवरण निम्न प्रकार है-

चित्र 8.1 - डागर ब्रदर्स

त्रिताल (तीनताल)

त्रिताल अथवा तीनताल तबले का सर्वाधिक महत्वपूर्ण, लोकप्रिय एवं प्रचलित ताल है। शास्त्रीय संगीत, उपशास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत और फिल्म संगीत तक में इसका प्रयोग होता है। यह उन गिने-चुने तालों में से है, जिसका प्रयोग विलंबित से द्रुत लय तक में होता है। तिलवाड़ा, पंजाबी अद्धा एवं जत (16 मात्रा) आदि ताल भी त्रिताल के ही प्रकार हैं। दक्षिण भारत का आदिताल और उत्तर भारत का त्रिताल कई दृष्टि से समान हैं। दोनों ही अत्यंत प्राचीन ताल हैं। त्रिताल में 16 मात्राएँ होती हैं जो 4/4/4/4 मात्राओं में विभाजित होती हैं। अत: यह सम पदीताल है। इसमें पहली, पाँचवीं और तेरहवीं मात्रा पर ताली तथा नौवीं मात्रा पर खाली होती है। यह चतस्त्र जाति की ताल है।

मात्रा 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16
बोल धा धिं धिं धा धा धिं धिं धा धा तिं तिं ता ता धिं धिं धा
चिह्न x 2 0 3

दुगुन

तिगुन

चौगुन

झपताल

झपताल एक अत्यंत लोकप्रिय और प्रचलित ताल है। यह खंड जाति का ताल है। इसका प्रयोग विलंबित और मध्य लय के ख्याल एवं गतों की संगत के लिए किया जाता है। सादरा गायन शैली की संगति भी झपताल द्वारा ही होती है। तबले का एकल वादन भी इसमें होता है, इसके विभाग $2 / 3 / 2 / 3$ के होने के कारण यह विषमपदी ताल है। इसमें 10 मात्राएँ, चार विभाग, तीन तालियाँ क्रमश: पहली, तीसरी, आठवीं मात्राओं पर होती हैं तथा एक खाली छठी मात्रा पर है।

मात्र 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
बोल धी ना धी धी ना ती ना धी धी ना
चिह्न $\times$ 2 0 3

दुगुन

तिगुन

चौगुन

रूपक

रूपक ताल तबले का लोकप्रिय और प्रचलित ताल है। इसका प्रयोग शास्त्रीय, उपशास्त्रीय तथा सुगम संगीत में किया जाता है। मध्य लय और विलंबित लय का ख्याल गायन भी इसमें प्रचलित है। गीत, भजन, गज़ल एवं तंत्री तथा सुषिर वाद्यों की संगत के लिए भी इसका प्रयोग होता है। तबले का स्वतंत्र वादन भी इसमें प्रचलित है। यह विलंबित और मध्य लय का ताल है। द्रुत लय में इसका वादन उचित नहीं माना जाता है। पखावज का तीव्रा ताल और कर्णाटक संगीत का तिस्त्र जाति त्रिपुट ताल इसके सदृश हैं। इसमें विभाग $3 / 2 / 2$ के होने के कारण यह मिश्र जाति का विषम पदीताल हुआ। यह एकमात्र ऐसा ताल है जिसके सम पर खाली है। इसलिए इसे इस प्रकार लिखना उचित होगा-

मात्रा 1 2 3 4 5 6 7
बोल ती तीं ना धी ना धी ना
चिह्न $\otimes$ 1 2

इसकी प्रथम मात्रा पर खाली और चौथी तथा छठी मात्रा पर ताली है।

दुगुन

तिगुन

चौगुन

सूलताल

यह पखावज का लोकत्रिय और प्रचलित ताल है। इसका वादन मध्य और द्रुत लय में होता है। ध्रुपद अंग के गायन और वादन के साथ इसका वादन होता है। पखावज पर स्वतंत्र वादन के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके बोल खुले और ज़ोरदार होते हैं। यह चतस्त्र जाति का सम पदीताल है। इस ताल में 10 मात्राएँ और पाँच विभाग होते हैं। तीन तालियाँ क्रमश: पहली, पाँचवीं और सातवीं मात्राओं पर होती हैं। तीसरी और नौवीं मात्राओं पर दो खाली भी हैं।

मात्रा 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
बोल धा धा दि ता किट धा तिट कत गदि गन धा
चिह्न $\times$ 0 2 3 4 $\times$

दुगुन

तिगुन

चौगुन

इस ताल का एक और ठेका भी प्रचलित है-

मात्रा 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
बोल धा घिड़ नग दीं घिड़ नग गद् दी घिड़ नग धा
चिद्न $\times$ 0 2 3 0 $\times$

तीव्रा या तेवरा

यह पखावज का प्राचीन, महत्वपूर्ण और प्रचलित ताल है जो तबला वादकों में भी लोकप्रिय है। तेज गति में बजने के कारण ही इसका नाम तीत्रा पड़ा। ध्रुपद अंग के गायन और वादन की संगति के साथ-साथ एकल वादन के लिए भी इस ताल का चयन किया जाता है। इसके विभाग $3 / 2 / 2$ मात्राओं के हैं। अत: यह मिश्र जाति का विषम पदीताल है। यह खुले और ज़ोरदार वर्णों से निर्मित ताल है। इसमें सात मात्राएँ, तीन विभाग और तीन तालियाँ क्रमश: पहली, चौथी और छठी मात्राओं पर हैं। इस ताल में खाली नहीं है।

मात्रा 1 2 3 4 5 6 7
बोल धा दिं ता तिट कत गदि गन धा
चिह्न $\times$ 2 3 $\times$

दुगुन

तिगुन

चौगुन

धमार ताल

पखावज का यह अत्यंत लोकप्रिय और प्रचलित ताल तबला वादकों और कथक नर्तकों में बहुत लोकप्रिय है। 14 मात्राओं में निबद्ध होरी गायन की संगति धमार ताल द्वारा ही की जाती है। इसलिए उस गायन शैली को भी धमार कहा जाता है। विषम पदी यह ताल बोलों की दृष्टि से मिश्र जाति का है जबकि ताल विभाग की दृष्टि से संकीर्ण जाति का है। इस पर स्वतंत्र वादन भी खूब होता है। वीणा, सुरबहार, सरोद, सितार और संतूर आदि पर भी धमार अंग की गतें बजती हैं। यह एकमात्र ताल है जिसका सम बाएं पर बजता है। इसमें 14 मात्राएँ, चार विभाग, तीन ताली और एक खाली होती है। पहली, छठी और ग्यारहवीं मात्राओं पर ताली तथा आठवीं मात्रा पर खाली है।

मात्रा 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14
बोल धि धि धा ति ति ता
चिह्न $\times$ 2 0 3 $\times$

दुगुन

तिगुन

चौगुन

भातखंडे और पलुस्कर ताल पद्धति का तुलनात्मक अध्ययन

ताल लिपि— जब भिन्न-भिन्न तालों के ठेके एवं उन तालों में निबद्ध भिन्न-भिन्न रचनाओं को मात्रा, विभाग, ताली एवं खाली आदि के माध्यम से स्पष्ट रूप में लिखा जाता है तो उसे ताल लिपि कहते हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में मुख्य रूप से तीन ताल लिपियाँ प्रचलित हैं। इनमें दो उत्तर भारत की हैं- जिन्हें हिंदुस्तानी ताल पद्धति भी कहते हैं और एक दक्षिण भारत की है जिसे दक्षिण भारतीय या कर्णाटक ताल पद्धति कहा जाता है। उत्तर भारत में प्रचलित दोनों ताल लिपियों का विवरण अग्रलिखित है-

भातरंडे ताल लिपि पद्धति

पंडित विष्णु नारायण भातखंडे जी द्वारा रचित ताल लिपि को उन्हीं के नाम से जाना जाता है। उनके द्वारा आविष्कृत ताल पद्धति सुगम होने के कारण सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय है। इस ताल लिपि में एक मात्रा काल के अंदर जितने बोलों का प्रयोग होता है, उन्हें एक मात्रा के चिह्न अर्ध चंद्र के अंदर घेर दिया जाता है, जैसे— दींदों-धगिन-नगतेटे-आदि।

किंतु जब 1 मात्रा में 1 वर्ण होता है तो उसके नीचे कोई चिह्न नहीं होता है, सिर्फ़ उन्हें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लिखा जाता है, जैसे—धाधी ना धा ती ना।

भातखंडे ताल लिपि पद्धति

**इस ताल लिपि पद्धति में प्रयुक्त प्रमुख चिह्न **

क्रम संख्या नाम चिह्न
1. सम $x$
2. ताली ताली की संख्या - $2,3,4,5 \ldots \ldots \ldots .$.
3. खाली $\mathrm{O}$
4 . विभाग | (खड़ी पाई)
5. मात्रा इस चिह्न के अंतर्गत जितने भी बोल/स्वर होंगे उन्हें एक
मात्रा में बोलना/कहना होगा।
6. अवग्रह ऽ विश्राम हेतु

इस आधार पर एकताल का ठेका इस प्रकार लिखा जाता है-

ताली के कितने भी विभाग एक साथ हो सकते हैं, किंतु खाली के दो विभाग एक साथ नहीं हो सकते हैं।

पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर ताल लिपि पद्धति

विष्णु दिगंबर ताल पद्धति या पलुस्कर ताल पद्धति की रचना पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर ने की थी। अधिक सूक्ष्म एवं जटिल होने के कारण यह पद्धति कम प्रचलित है। इस पद्धति में मात्रा और विभागों के लिए भिन्न चिह्नों का प्रयोग होता है। इस ताल पद्धति में प्रयुक्त चिह्नों का विवरण अग्रलिखित है-

पलुस्कर ताल लिपि पद्धति

इस ताल लिपि पद्धति में प्रयुक्त प्रमुख चिह्न

क्रम संख्या नाम चिह्न
1. सम 1
2. ताली ताली की संख्या $-2, 3, 4, \ldots$
3. खाली +
4. विभाग कोई चिह्न नहीं
5. मात्रा के चिह्न $1 / 4$ मात्रा
अर्द्धमात्रा $\mathrm{O}$
एक मात्रा
दो मात्रा
चार मात्रा
6. आवर्तन की पूर्णता हेतु |

इस ताल पद्धति में प्रत्येक बोल के नीचे उसका मात्रा काल $(1,1 / 2,1 / 4)$ आदि का संकेत चिह्न लिखा जाता है। इस ताल लिपि में सम अर्थात पहली मात्रा के लिए ( 1 ) लिखा जाता है, खाली के लिए $(+)$, आवर्तन की पूर्णता हेतु $(।)$ एवं अन्य तालियों के लिए जिन मात्राओं पर तालियाँ होती हैं उनकी मात्रा संख्या लिखी जाती है, जैसे — 5,13 आदि। विभाग का चिह्न लगाया भी जा सकता है और नहीं भी। इस ताल लिपि में एकताल को इस प्रकार लिखा जाएगा।-

दोनों ही ताल पद्धतियाँ अपनी-अपनी जगह श्रेष्ठ हैं। भातखंडे ताल पद्धति अगर अधिक सरल एवं सुविधाजनक होने के कारण अधिक प्रचलित और लोकप्रिय है तो पलुस्कर ताल पद्धति अधिक सूक्ष्म और वैज्ञानिक होने के कारण कम प्रचलित है। उदाहरण के लिए, धगिन और धातेटे जैसे 2 बोल लेते हैं, जिन्हें भातखंडे लिपि में धगिन धातेटे लिख दिया जाएगा। किंतु इसमें प्रत्येक अक्षर या वर्ण का वज़न स्पष्ट नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि धातेटे वस्तुत: धातेटे ही है या धाऽतेटे है। जबकि पलुस्कर ताल पद्धति में यह स्पष्ट हो जाता है, क्योंकि उसमें इस प्रकार लिखेंगे— ध…गि…न… अर्थात प्रत्येक वर्ण $1 / 3$ मात्रा काल का है-

जबकि धा तेटे में धा $1 / 2$ मात्रा का है और ते तथा टे $1 / 3$ मात्रा काल का है। अत: सुविधा की दृष्टि से भातखंडे ताल पद्धति उपयोगी है तो सूक्ष्मता की दृष्टि से पलुस्कर ताल लिपि उपयोगी है।

अभ्यास

बहुलिकल्पीय प्रश्न-

1. झपताल में पाँचवीं मात्रा पर कौन-सा बोल है?

(क) ती

(ख) ना

(ग) धी

(घ) धीना

2. रूपक ताल का सम कहाँ दिखाया जाता है?

(क) पहली मात्रा

(ख) चौथी मात्रा

(ग) तीसरी मात्रा

(घ) छठी मात्रा

3. तीनताल कितनी मात्राओं का होता है?

(क) 12

(ख) 8

(ग) 16

(घ) 18

4. सूलताल में ‘किट’ बोल कौन-सी मात्रा पर है?

(क) पाँचवीं

(ख) सातवीं

(ग) दसवीं

(घ) दूसरी

5. धमार ताल में दूसरी ताली किस मात्रा पर है?

(क) तीसरी

(ख) पहली

(ग) छठी

(घ) आठवीं

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. ताल का नाम _____________ ।

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14
$\ldots$ $\ldots$ धि $\ldots$ $\ldots$ $\ldots$ ति $\ldots$ $\ldots$
$\times$ $\ldots$ 3

2. ताल का नाम ______________ ।

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16
धा धिं …. …. धा $\ldots$ $\ldots $ $\ldots $ $\ldots $ $\ldots $ तिं ता $\ldots$ $\ldots$ धा
$\ldots$ 2 $\ldots$ 3

3. ताल का नाम _________________ ।

1 2 $\ldots$ $\ldots$ $\ldots$ 6 7 $\ldots$ $\ldots$ $\ldots$
धी ना धी धी $\ldots$ ती $\ldots$ धी $\ldots$ ना
$\ldots$ 2 $\ldots$ 3

4. ताल का नाम ________________ ।

$\ldots$ $\ldots$ $\ldots$ 4 5 6 7
तीं तीं ना $\ldots$ $\ldots$ धी $\ldots$
$\ldots$ $\ldots$ $\ldots$ 2

5. ताल का नाम ________________ ।

1 2 $\ldots .$. 5 6 $\ldots$ 10
धा दिं $\quad . . .$. धा तिट …. गन
$\times$ $\ldots$ 2 $\ldots$ 4

6. ताल का नाम ________________ ।

1 2 $\ldots$ $\ldots$ $\ldots$ 6 7 8 $\ldots$ $\ldots$ $\ldots$ $\ldots$ 13 14
धि $\ldots$ $\ldots$ धा $\ldots$ $\ldots$ $\ldots$ ति ता $\ldots$
$\times$ $\ldots$ 0 3

7. ताल का नाम ________________ ।

1 2 3 $\ldots$ $\ldots$ $\ldots$ $\ldots$ 7
धा $\ldots$ ता $\ldots$ कत गदि $\ldots$ $\ldots$
$\times$ 2 $\ldots$

सुमेलित कीजिए-

1. धमार (क) सात मात्रा
2. तीव्रा (ख) दस मात्रा
3. रूपक (ग) सोलह मात्रा
4. तीनताल (घ) चौदह मात्रा
5. सूलताल (ङ) $\otimes$

नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1. तीनताल का तिगुन लिखिए।

2. धमार ताल के बोल लिखकर उसकी दुगुन लिखिए।

3. ध्रुपद में किन-किन तालों का प्रयोग होता है? उन तालों का तिगुन और चौगुन लिखिए।

4. पंडित विष्णु दिगंबर ताल पद्धति के अनुसार पाठ्यक्रम की किसी ताल को लिपिबद्ध कीजिए।

5. पखावज पर बजने वाला सूलताल कितनी मात्राओं का होता है? एक गुन लिखकर बताइए।

6. विलंबित ख्याल गाने के लिए किन-किन तालों का प्रयोग किया जाता है। उन तालों को ताल पद्धति के अनुसार लिखकर बताइए।

7. विष्णु नारायण भातखंडे द्वारा बनाई गई ताल पद्धति के चिह्नों का वर्णन कीजिए।

8. रूपक ताल को ठाह एवं दुगुन लयकारी में लिखिए।

विद्यार्थियों हेतु गतिविधि-

1. कोई भी लोकगीत जो बच्चों को पसंद हो, उसे ताल पद्धति में लिखिए।

2. सभी बच्चों को फिल्मी गीत पसंद होते हैं, एक फिल्मी गीत जो त्रिताल में गाया गया है, उसकी चार पंक्तियों को ताल पद्धति में लिखिए।

3. आपके राज्य में प्रचलित किन्हीं पाँच लोकगीतों को लिखिए। उस पर विचार करते हुए बताइए कि उसमें किन-किन तालों का प्रयोग किया गया है।

4. कक्षा में पढ़ने वाले संगीत गायन के सहपाठियों से बंदिशों में मौसम के विवरण पर बातचीत कीजिए, उनका चयन कीजिए एवं बताइए कि किस तरह शब्दों को स्वरलिपि एवं ताल पद्धति में सुनिश्चित किया गया है। इस पर विचार-विमर्श कीजिए।

5. धमार ताल में किसी भी एक बंदिश को अपने सहपाठियों की सहायता से लिखिए। इस ताल में रची गई उस बंदिश की दुगुन, तिगुन व चौगुन भी लिखिए।

6. क्या आप लयकारी में गणित देख पाते हैं? इस पर एक परियोजना बनाइए।



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