अध्याय 04 अनुवाद

अनुवाद से रू-ब-रू

अनुवाद करना एक सूजनात्मक प्रक्रिया है।

1. भाषा को जानें

  • कक्षा के तीन-चार बच्चे अपनी मातृभाषा, बोली (हिंदी/अंग्रेज़ी के अतिरिक्त) में कुछ कहेंगे।

  • कक्षा के अन्य बच्चे अनुमान से बताएँगे कि वे क्या कह रहे हैं।

2. बातचीत कर जानें

  • अनुमान कैसे लगाया? (किसी शब्द से/ हाव-भाव से)

  • अनुवाद की क्या आवश्यकता थी?

  • कहाँ-कहाँ अनुवाद अनिवार्य हो जाता है?

3. चर्चा कीजिए

  • ‘बहुभाषिकता एक संसाधन है’।

कलम रुकती नहीं …

मनुष्य नश्वर है। विचार भी क्षणणिक हैं। जिस तरह विकास के लिए पौधे सिंचाई माँगते हैं, विचार भी फैलाव माँगते हैं। इसके अभाव में दोनों ही मुरझाकर खत्म हो जाएँगे।

  • बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर

(संघर्ष जीवन और व्यक्तित्व की कसौटी है। उस कसौटी पर खरा उतरने वाला जीवन और व्यक्तित्व यदि नैतिकता से आबद्ध हो तो उसकी पराजय असंभव है। यदि पराजय होगी भी तो क्षणिक ही। ऐसे में डा. आंबेडकर (1891-1956) का जीवन और व्यक्तित्व हर कसौटी के कर्कश पत्थरों से होकर गुज़रा है और वह खरा उतरकर और भी निखरा। संघर्ष ही इनके जीवन का पर्याय बना। जीवन भर अन्याय तथा अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष करते रहे। वे उन सभी की आवाज़ बने जो कमज़ोर, अनपढ़, शोषित, उत्पीड़ित तथा उपेक्षित थे। उनका मुख्य लक्ष्य था कि सभी स्त्री-पुरुषों को मौलिक और मानवीय अधिकार मिलें, क्योंकि सभी समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के हकदार हैं। वे वास्तव में अद्भुत क्रांतिकारी, सच्चे देशभक्त और उत्कृष्ट मानवतावादी थे।)

मेरा सारा लेखन बांग्ला में है पर उनके हिंदी अनुवाद छपने के बाद ही मैं भारतीय लेखिका बन पाई। हिंदी में किताबों के छपते ही मैं भारत के कोने-कोने में जानी गई।

  • महाश्वेता देवो

प्रत्येक नयी भाषा तुम में नयी आत्मा जोड़ती है।

  • चेक कहावत

I. अनुवाद - एक संक्षिप्त परिचय

शाश्वत उत्सुकता, जिज्ञासा मानवता की सबसे बड़ी विशेषता है। दूसरों के बारे में जानना, उन्हें समझना और इस तरह दूसरों के ‘दूसरेपन’ को दूर कर देना। मानव इतिहास लोगों द्वारा ौगोलिक, सांस्कृतिक सीमाओं को लाँघने की कहानियों से भरा है। व्यापारी, यात्री, तीर्थयात्री, मिशनरी, सैलानी हमेशा एक जगह से दूसरी जगह जाते रहे और लोगों से संपर्क, संवाद करते रहे। औरों को जानने और संवाद करने का अर्थ है - उनकी भाषा को जानना, उस माध्यम को जानना जिसमें वे बोलते, लिखते और अपनी दुनिया की व्याख्या करते हैं। और यहीं अनुवाद के सौंदर्य और हमारे जीवन में उसके महत्त्व का अंदाज़ लग जाता है। जैसे ही हम दूसरी भाषा सीखते हैं, दूसरों के साथ विचारों - भावनाओं का आदान-प्रदान करते हैं और इन सारे अनुभवों को अपनी भाषा में लिखते हैं, व्यक्त करते हैं तभी एक सृजनशील/सकारात्मक प्रक्रिया की शुरुआत हो जाती है। एक तरफ़ हमारी दूरियाँ कम होने लगती हैं, दूसरी तरफ़ हमारा दायरा विस्तृत होने लगता है। अनुवाद की प्रक्रिया वास्तव में हमारे दायरे को बढ़ाती है, मानवता को संपन्न करती है और विभिन्न संस्कृतियों के बीच संवाद कायम करती है। अनुवाद को ही इस बात का श्रेय जाता है कि आज राजस्थान में बैठा व्यक्ति सुब्रहमण्य भारती को राजस्थानी में, बिहार के एक गाँव का विद्यार्थी शेक्सपियर को हिंदी में पढ़ता है, एक फ्रांसीसी या जर्मन धर्मशास्त्र का विद्वान/दार्शानिक भारतीय धर्म ग्रंथों का अध्ययन करता है या दोस्तोक्की, फ्रांज काफ्का, कार्ल मार्क्स हमारे घरेलू

ज़िदगी का हिस्सा बन जाते हैं। क्या होता? कल्पना करिए कि अगर टॉलस्टॉय सिर्फ़ रूस तक सीमित रह जाते या खवंद्रनाथ ठाकुर सिर्फ़ बंगाल तक! कहने का मतलब है कि अनुवाद की सुंदर मानवीय प्रक्रिया के ज़रिये हम और भी संपन्न, संवेदनशील और सृजनात्मक बनने की दिशा में आगे बढ़ते हैं। अनुवाद के ज़ारिये हम एक भाषा की बात को दूसरी भाषा में उतार देते हैं या ले जाते हैं। बात तो कमोबेश वही रहती है, भाषा बदल जाती है। इस तरह अनुवाद दो भाषाओं का खेल है। अनुवाद करते समय हम दो भाषाओं का प्रयोग एक साथ करते हैं।

अनुवाद वास्तव में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना को चरितार्थ करता है। यह हमारी भाषा का विस्तार करता है, भाषा की भंगिमा को बदलता है। आरंभिक काल से अनुवाद के माध्यम से ही भूमंडलीकरण की प्रक्रिया आरंभ हुई। छोटी से छोटी भाषा यानी जो भाषा बहुत कम लोगों द्वारा बोली जाती है, उस भाषा की किसी कृति का अनुवाद जब दुनिया की अनेक बड़ी भाषाओं में होता है यानी उन भाषाओं में जो बड़ी संख्या में लोग बोलते हैं तो स्वाभाविक रूप से मानव समाज का जनतांत्रीकरण होता है। जैसे बहुत कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली अबार भाषा की कृति मेरा दागिस्तान, (रसूल हमज़ातोव) जिसके पाठक दुनिया भर के लोग हैं। इसी तरह भारत में संथाली भाषा की कोई कृति जब पूरे देश में अनूदित होती है तो इससे बड़े स्तर पर जनतांत्रीकरण होता है।

संथाली से हिंदी में रूपांतरित कृति

अनुवाद क्या है

अनुवाद का अर्थ एक भाषा के कथ्य को (किसी भाषा में कथित या लिखित को) किसी दूसरी भाषा में कहना या लिखना होता है। पहली भाषा को मूल भाषा और दूसरी को लक्ष्य भाषा कहते हैं। ये दोनों शब्द अंग्रेजी के Source Language और Target Language के अनुवाद ही हैं। अनुवाद के लिए तर्जुमा, रूपांतर और भाषांतर शब्द भी प्रचलित हैं। किसी एक भाषा की मूल रचना को केवल अन्य लिपि में प्रस्तुत कर देने को लिप्यांतरण कहते हैं। कन्नड के संत कवि वसवेश्वर की पंक्तियों का लिप्यांतरण और उसके तीन भाषाई अनुवाद को देखिए -

उळ्वरू शिवालयव माडुवरु

नानेनु माडुवे? बनवनय्या

ऐन्नाकालेकस्भ, देहवे देगुल

सिर होन्न कळसवय्या

कुडल संगमदेव, केळय्या:

स्थावर क्कळिवुंडु

जंगम क्कळिविल्ला

  • (लिप्यांतरण)

अपनी मातृभाषा में पढ़ी और सुनी अलग-अलग अनूदित रचनाओं (4 - 5) की सूची बनाकर पोर्टफ़ोलियो में लगाइए और साथ ही कक्षा में एक-दूसरे की रचनाओं को मिलाकर एक बड़ी सूची भी बनाइए।

Make a list of 4-5 translated texts from your mother tongue that you have read or are familiar with. Compile these for your portfolio. Now share it with the class to make a comprehensive list.

धनिको बांधशे शिवालयों,

हु शुं बंधावु? गरीब माणस

पग मारा स्तंभो छे,

देह मारूँ देवळ छे,

माथुं मंदिर नो क्ठश छे

कुडल संगमदेव सांभळो;

स्थावरनो नाश थशे, जंगम तो अक्षय रहेशे

(गुजराती अनुवाद)

(धनवान बनवाएँगे शिवाले

मैं क्या बनवाऊँ? मैं ठहरा गरीब!

पैर मेरे स्तंभ हैं,

और देह है, मेरी देवल

सिर मांदिर का कलश है

कुडल संगमदेव सुनो

होगा स्थावर का क्षय

और जंगम रहेगा अक्षय।)

  • (हिंदी अनुवाद)

The Rich

Will make temples of Shiva

What shall I

A poor man

do?

My legs are pillars,

The body the shrine,

The head a cupola

of Gold.

Listen,

O Lord of the meeting rivers,

things standing shall fall,

but the moving

ever shall stay.

  • (अंग्रेज़ी अनुवाद)

  • साभार : देवों की घाटी, भोलाभाई पटेल

अनुवाद की भूमिका और प्रासंगिकता

आज की दुनिया में अनुवाद की माँग और ज़रूरत दोनों बढ़ गई हैं। यह माँग बढ़ी है तो इसीलिए कि दुनिया के विभिन्न देश-प्रदेश उद्योग-व्यापार और पर्यटन के मामले में बहुत करीब आ गए हैं और एक भाषा से दूसरी भाषा में देखें गतिविधि/Activity 28 पृष्ठ 193 अपनी बात पहुँचाने का ज़रिया ‘अनुवाद कार्य’ ही तो है। जब चीनी-जापानी चीज़ों की बिक्री विश्व-बाज़ार में होती है तो उन चीज़ों के रैपर्स और पैकेट्स पर अंग्रेज़ी और दुनिया की अन्य भाषाओं में उसी चीज़ का नाम, मूल्य और उसके पैक करने की तिथि आदि लिखी होती है। इसी तरह जब कोई चीनी - जापानी - इतालवी जर्मन-फ्रांसीसी पर्यटक दुनिया के किसी देश के भ्रमण के लिए निकलता है तो बस अपने साथ एक गाइडबुक रखता है जो उसकी अपनी भाषा में होती है। वह गाइडबुक पहले किसी एक भाषा में लिखी होती है। मान लीजिए अंग्रेज़ी में, फिर उसी गाइडबुक का अनुवाद जर्मन, फ्रांसीसी, स्पेनिश, चीनी, जापानी आदि में कर लिया जाता है। एक और उदाहरण लें, जब कोई बड़ी कंपनी आज अपने ब्रांड का विज्ञापन करती है, तो वह विज्ञापन भी पहले तो एक ही भाषा में तैयार किया जाता है, फिर दूसरी भाषाओं में उसी के आधार पर विज्ञापन तैयार किया जाता है, यह भी एक प्रकार का अनुवाद ही है। टी. वी. के परदे पर या अखबार के पन्नों पर हम एक ही विज्ञापन को हिंदी से बांग्ला या हिंदी से तमिल में अनुवाद किया हुआ पाते हैं। और यह तो आपको पता ही है कि कोई विशिष्ट लेखक या पत्रकार आज अपना कॉलम (स्तंभ) किसी एक भाषा में लिखता है, मान लीजिए अंग्रेज़ी में ही, तो वही कॉलम भारत की कई भाषाओं में अनुवाद के ज़रिये छपता है। इसे सिंडीकेटेड कॉलम (स्तंभ) कहते हैं। इस प्रकार, अनुवाद की ज़रूरत कई रूपों में कई प्रकार से है।

दिल्ली की एक सड़क पर चार भाषाओं में लगा मार्ग-संकेत

अनुवाद और अनुवादक

अनुवाद करने के लिए एक से अधिक भाषाओं में समान ज्ञान ज़रूरी है। कम से कम दो भाषाएँ तो अच्छी तरह से अनुवाद करने वाले को आनी ही चाहिए। मसलन, अगर कोई अनुवादक अंग्रेज़ी, बांग्ला और हिंदी ये तीन भाषाएँ अच्छी तरह जानता है, तो वह ज़रूरत पड़ने पर तीनों भाषाओं से अनुवाद कर सकेगा-अंग्रेज़ी से बांग्ला में और अंग्रेज़ी से हिंदी में। इसी तरह वह बांग्ला से अंग्रेज़ी या हिंदी में और हिंदी से बांग्ला और अंग्रेज़ी में अनुवाद कर सकेगा। लेकिन कम से कम दो भाषाएँ तो आनी ही चाहिए, तभी अनुवाद कार्य हो सकेगा। अगर किसी को हिंदी और अंग्रेज़ी आती है तो वह हिंदी से अंग्रेज़ी में और अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद का कार्य कर सकेगा। यहीं यह जान लेना ज़रूरी है कि स्रोत भाषा के साथ ही लक्ष्य भाषा का अच्छा ज्ञान अनुवाद के लिए ज़रूरी होगा। साथ ही भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी की जानकारी भी मददगार होगी क्योंकि विश्व-भर के बाज़ारों में

एक पदार्थ के विषय में आठ भाषाओं में जानकारी पर्ची

विभिन्न ब्रांड वाली चीज़ों के नाम आज अंग्रेज़ी में यानी जिसे रोमन लिपि कहते हैं उसमें अनिवार्य रूप से लिखे रहते हैं। उस ब्रांड से संबंधित ज़रूरी जानकारी भी अंग्रेज़ी में होती है।

यहाँ इस बात को समझ लेना बेहतर रहेगा कि अनुवाद एक बहुत ही आसान सी प्रक्रिया भी नहीं है। यह सिर्फ़ एक यांत्रिक या तकनीकी प्रक्रिया भी नहीं। यह एक ऐसी भाषाई दक्षता मात्र भी नहीं जिसमें शब्द-कोशों की मदद से एक भाषा के शब्दों को दूसरी भाषा में परिणत कर देना ही काफ़ी हो। दूसरे शब्दों में, अनुवाद के लिए अधिक से अधिक संवेदनशीलता और समानुभूति की आवश्यकता होती है। एक अच्छा अनुवाद वास्तव में एक अच्छी अभिव्यक्ति है। अतिशयोक्ति नहीं होगी अगर हम कहें कि जिस व्यक्ति की रचना का अनुवाद किया जा रहा है, वास्तव में अनुवादक का उसके साथ एक आंतरिक संबंध बन जाता है। आज दिनोदिन इस समस्या के प्रति हम संवेदनशील होते जा रहे हैं कि अनुवाद करने के दरम्यान क्या हम वास्तव में आंतरिक संबंध/संवाद कर सकते हैं या नहीं अर्थात् दूसरों के जीवन के सूक्ष्म अनुभवों या सांस्कृतिक रुचियों पर प्रकाश कर पाते हैं या नहीं। यहाँ कहने का उद्देश्य यह है कि हमें इस चुनौती के प्रति सजग रहना चाहिए। मज़े की बात यह है कि जब हम शुद्ध रूप से विज्ञान / तकनीकी विषयों / व्यापार संबंधी दस्तावेज़ों का अनुवाद कर रहे होते हैं तो इसकी अपेक्षाएँ दूसरी होती हैं यानी सावधानी के साथ तथ्यों को लक्ष्य भाषा में पहुँचाना। पर साहित्य, महाकाव्य या दर्शन आदि का अनुवाद करते हुए उससे बहुत कुछ अलग अपेक्षाएँ होंगी।

दुभाषिया और अनुवाद

अनुवाद कार्य का एक और पहलू है - इंटरप्रेट करने का। आपने देखा होगा कि किसी सभा में कोई वक्ता किसी एक भाषा में बोल रहा होता है और साथ ही साथ कोई दूसरा व्यक्ति उसकी बातों का ‘अनुवाद’ करता चलता है। जो यह अनुवाद कर रहा होता है उसे दुभाषिया (इंटर्रेटर) कहते हैं। दुभाषिया अनुवाद का वह काम भी कर सकता है जो लिखित रूप से अनुवाद का हो यानी वह बोलकर अनुवाद करने के साथ, चाहने पर और वैसी योग्यता होने पर, किसी भाषा से दूसरी भाषा में किसी किताब, टिप्पणी, लेख, भाषण, खबर आदि का भी अनुवाद कर सकता है। पर, ऐसे दुभाषिए भी होते हैं जो केवल बोलकर ही अनुवाद कर पाते हैं और किसी किताब या लेख के अनुवाद का काम हाथ में नहीं लेते हैं। क्योंकि जो अनुवाद छपता है या ई-मेल के ज़रिये अन्यत्र भी भेजा जाता है या फोटोकॉपी कराके वितरित किया जाता है, उसका लिखित रूप तैयार कर पाना दोनों भाषाओं के अच्छे ज्ञान के बिना संभव नहीं होता है। इसीलिए अच्छा अनुवादक उसे ही माना जाता है जो दोनों भाषाओं के समाज में और साहित्य में जाने का भी ज्ञान रखता हो।

एक मामूली सा हिंदी वाक्य ही लें- मुझे वहाँ जाने की ज़रूरत नहीं है। हम अंग्रेज़ी में कहेंगे - आई नीड नॉट गो देअर। पर, चाहे हिंदी से अंग्रेज़ी में अनुवाद कर रहे हों या अंग्रेज़ी से हिंदी में, संदर्भ के हिसाब से यानी इस हिसाब से कि किस मौके पर यह बात कही जा रही है, वाक्य का शब्द-क्रम बदला जा सकता है। मान लीजिए, यह वाक्य अंग्रेज़ी में लिखे हुए नाटक का एक पात्र संवाद के रूप में कह रहा है और जिससे कह रहा है उससे कुछ झुँझलाहट या गुस्से में यह बात कह रहा है, तो यही वाक्य कुछ इस प्रकार का भी हो सकता है - ज़रूरत नहीं है मुझे वहाँ जाने की। अनुवाद में संदर्भ जानने की, अवसर जानने की बड़ी ज़रूरत होती है और यह जानने की भी कि अनुवाद में कौन-से शब्द अधिक स्वाभाविक लगेंगे। मान लीजिए, कोई आई नीड नॉट गो देअर (I need not go there) का अनुवाद इस प्रकार करता है - मुझे वहाँ जाने की आवश्यकता नहीं है या यह आवश्यक नहीं है कि मैं वहाँ जाऊँ, तो यह गलत नहीं होगा, बल्कि हो सकता है किसी संदर्भ में यह अधिक ठीक लगे। मसलन, अगर एक संस्कृत शिक्षक यह संवाद किसी नाटक में या अन्यत्र कर रहा हो, तो वहाँ यही अधिक स्वाभाविक लगेगा कि वह कहे कि मुझे वहाँ जाने की आवश्यकता नहीं है। पर कहीं पर दो व्यक्ति आपस में रोज़मर्रा की बातें कर रहे हों, तो यही लिखना ज़्यादा ठीक रहेगा कि मुझे वहाँ जाने की ज़रूरत नहीं है। ऐसे ही ढेरों उदाहरण हम स्वयं खोज सकते हैं। मसलन ‘पुष्प’ शब्द को लें। हम जानते हैं कि ‘पुष्प’ फूल का पर्यायवाची है या पुष्प का पर्यायवाची है फूल। कुछ अन्य पर्यायवाची भी हैं इसके, जैसे ‘कुसुम’। यदि हमें अंग्रेज़ी का एक वाक्य किसी नाटक, कहानी, व्याख्यान या भाषण से अनुवाद करने के लिए दिया गया है और वह वाक्य यह है-ही वाज़ गिवेन

Speak, for your lips are free; Speak, your tongue is still yours, Your upright body is yoursSpeak, your life is still yours.

बोल के लब आज़ाद हैं तेरे; बोल, ज़बाँ अब तक तेरी है, तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा

  • फ़ैज अहमद फैैज़

अ वार्म वेल्कम एंड वाज़ प्रेजेंटेड विद अ बुके ऑफ फ्लावर्स (He was given a warm welcome and was presented with a bouquet of flowers), तो यह देखना होगा कि किसका स्वागत किया गया है और कब। तथा मौके के अनुसार, आज के समाज में ‘बुके ऑफ फ्लावर्स’ के लिए क्या लिखना ठीक रहेगा? मान लीजिए कोई लिखे उनका ज़ोरदार स्वागत किया गया और उन्हें पुष्प-गुच्छ या कुसुम-गुच्छ भेंट किया गया तो यह अस्वाभाविक लगेगा क्योंकि यहाँ बात सिर्फ़ ‘फ्लावर’ के अनुवाद की नहीं है ‘बुके ऑफ फ्लावर्स’ की है और यहाँ ‘फ्लावर्स’ का अनुवाद ‘पुष्प’ या ‘कुसुम’ न करके, हम यही लिखना चाहेंगे - उनका ज़ोरदार स्वागत किया गया और उन्हें फूलों का एक गुलदस्ता भेंट किया गया या सिर्फ़ यही कि उन्हें फूल भेंट किए गए। इसका मतलब यह नहीं कि ‘पुष्प’ और ‘कुसुम’ का उपयोग हम कहीं करेंगे ही नहीं, वह हम ज़रूरत के अनुसार करेंगे। मसलन ‘फ्लावर कम्पीटीशन’ को ‘पुष्प-प्रतियोगिता’ लिखना ठीक रहेगा, ‘फूल-प्रतियोगिता’ नहीं। यही बात हम ‘चिड़िया’, ‘पखेरू’, ‘पंछी’, ‘पक्षी’ आदि शब्दों के साथ भी पाएँगे। अगर ‘चिड़िया’ के पानी में तैरने का संदर्भ हो तो ‘पंछी’ या ‘पक्षी’ लिखना ठीक रहेगा, ‘पखेरू’ नहीं। संदर्भ यदि आसमान का हो तो हम पखेरू भी लिख सकते हैं - दो पखेरू आसमान में उड़ रहे थे। अनुवाद करते समय ही हम अपनी भाषा में गहरे उतरते हैं और मौके के अनुसार कई शब्दों में से किसी एक शब्द को चुनते हैं। इसलिए अनुवाद एक ज़रूरी ही नहीं, दिलचस्प काम भी है।

हर रोज़ अनुवाद

यह काम तब और दिलचस्प हो उठता है जब हम पाते हैं कि हम हर रोज़ जाने-अनजाने कई तरह के अनुवाद करते हैं। अगर हम ध्यान दें तो पाएँगे कि रोज़-रोज़ के इन अनुवादों में हम कई दिलचस्प प्रयोग करते हैं। अनुवाद के

ज़रिये किसी बात को दूसरे तक अच्छी तरह पहुँचाना चाहते हैं। मान लीजिए, आपने अखबार में पढ़ा है या टी.वी. स्क्रीन पर देखा-सुना है कि मास्टर ब्लास्टर हिट्स अ सेंचुरी और जिसने शायद न तो अखबार पढ़ा है, न टी.वी. देखा है, वह आपसे पूछता है कि भाई, मैच में किसने कितने रन बनाए हैं? सबसे पहले आप कहते हैं-सचिन ने सेंचुरी बनाई। यहाँ आपको पता है कि ‘मास्टर ब्लास्टर’ तो सचिन को ही कहते हैं या फिर उसे ‘लिटिल मास्टर’ कहते

हैं। तो जहाँ क्रिकेट के संदर्भ में 'मास्टर ब्लास्टर' या 'लिटिल मास्टर' शब्द आते हैं, उनकी जगह आप स्वयं 'सचिन तेंदुलकर' का नाम रख देते हैं।

एक और उदाहरण लें, जब हम किसी प्लेटफॉर्म पर ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं और यह एनाउंसमेंट सुनते हैं कि मुंबई राजधानी इज़ रनिंग लेट बाई टू आवर्स। तभी कोई ऐसा व्यक्ति जिसने या तो एनाउंसमेंट को ठीक से सुना नहीं है या उसे उतनी अंग्रेज़ी नहीं आती है कि वह एनाउंसमेंट का आशय ठीक से समझ सके, आपसे पूछ बैठता है कि मुंबई राजधानी कब आएगी, तो आप कह उठते हैं-मुंबई राजधानी दो घंटा लेट है या दो घंटे बाद आएगी। यह भी देखिए कि आजकल हम कितनी तरह से अनुवाद देखते-सुनते भी रहते हैं। हिंदी में यह सूचना प्रसारित हो रही होगी कि मुंबई राजधानी दो घंटे की देरी से चल रही है। फिर आप इसी का अनुवाद सुनते हैं। मुंबई राजधानी इज़ रनिंग लेट बाई टू आवर्स। कई स्टेशनों पर तो एनाउंसमेंट तीन भाषाओं में सुनाई पड़ता है; जैसेहावड़ा में हिंदी, बांग्ला, अंग्रेज़ी में।

कभी जब आप चैनल बदल रहे होते हैं, तो किसी न्यूज़ चैनल पर आप अंग्रेज़ी में हेडलाइंस देखते-सुनते हैं, फिर उसी चैनल के हिंदी न्यूज़ बुलेटिन में हेडलाइंस का अनुवाद देखते-सुनते हैं। दो भाषाओं के बीच यह आवाजाही अब आम बात है। अगर कोई आपसे कहे कि द रोड इज़ क्लोज्ड्ड फॉर रिपेयर का अनुवाद कर दीजिए, तो आप तत्काल कर देंगे कि सड़क मरम्मत के लिए बंद है, क्योंकि आप दोनों भाषाओं में यह सूचना कई बार, कई जगह पढ़ चुके होते हैं। आज हम घर-बाज़ार में भी कई बार, कई तरह से अनुवाद कर रहे होते हैं। मान लीजिए, आप किसी सुबह अपने घर की पास वाली मार्केट में एक बैनर देखते हैं मिठास - अ स्वीट शॉप इज़ शॉर्टली ओपनिंग इन युअर एरिया। तो घर आकर आप हिंदी में बताते हैं - अरे, जल्दी ही हमारे इलाके में ‘मिठास’ नाम की एक मिठाई की दुकान खुलने वाली है। यह अनुवाद आप हिंदी में इसीलिए करते हैं क्योंकि आप घर पर हिंदी में ही बोलते हैं। अगर उस मार्केट में मिठाई की दुकान पहले से मौजूद हो तो आप यह कहते हैं - अरे, जल्दी ही हमारे इलाके में ‘मिठास’ नाम से मिठाई की एक और दुकान खुल रही है। यहाँ ‘और’ शब्द आपने इसीलिए जोड़ा है कि आपको और घरवालों को पहले से ही यह पता है कि मिठाई की दुकान तो बाज़ार में पहले से ही है, अब एक ‘और’ खुलने जा रही है। आप जिस कक्षा में होंगे उसमें संभव है बांग्ला, कन्नड या मलयालम भाषी छात्र भी हों और उनसे कभी-कभार मज़े-मज़े में आप कुछ पूछते हों कि-भई, अमुक बात को कन्नड में कैसे कहेंगे? मान लीजिए इसी बात को कि आपने भोजन कर लिया है, तो वह कहेगा ऊटा माडिदिए। अब आप जब चाहेंगे किसी कन्नड भाषी से यह पूछ सकेंगे ‘ऊटा माड्डिदिए’ और अगर किसी कन्नड़ भाषी से यह पूछना हो कि आपका नाम क्या है तो आप कहेंगे निम्मा हेसरू ऐन। इस तरह अनुवाद से भी हम किसी दूसरी भाषा के दरवाज़े अपने लिए खोल पाते हैं। पहले धीरे-धीरे और फिर तेज़ गति से, जब वह भाषा

II. अनुवाद के विविध रूप

अब तक आप समझ ही गए होंगे कि अनुवाद कई तरह का होता है या कहें कई तरह से किया जाता है। हर तरह का अनुवाद तैयारी की माँग करता है।

साहित्य

मसलन अगर किसी भाषा के साहित्य से आप अनुवाद कर रहे हैं, जैसे किसी कविता, कहानी, लेख, उपन्यास, नाटक आदि का, तो सिर्फ़ वह भाषा जानना पर्याप्त नहीं है। आपको उस भाषा के साहित्य की भी कुछ जानकारी होनी चाहिए, नहीं तो अनुवाद अच्छा नहीं होगा। बांग्ला के दो बड़े कवियों रवींद्रनाथ ठाकुर और जीवनानंद दास को ही लीजिए। दोनों ने बांग्ला में भी लिखा है। पर बांग्ला में दोनों का शब्द-चयन, वाक्य-विन्यास आदि भिन्न हैं। दोनों के काव्य-विषय भी कई बार बहुत अलग तरह के हैं। दोनों की कविता का संगीत और ध्वनियाँ भी भिन्न हैं। हमको अगर इन दोनों की कविता का अनुवाद करना हो या किसी एक का भी, तो बांग्ला भाषा के साहित्य और भाषा के विभिन्न रूपों का ज्ञान होना ज़रूरी है।

Where the mind is without fear and the head is held high; Where knowledge is free;

Where the world has not been broken up into fragments by narrow domestic walls;

Where words come out from the depth of truth;

Where tireless striving stretches its arms towards perfection;

Where the clear stream of reason has not lost its way into the dreary desert sand of dead habit;

Where the mind is led forward by thee into ever widening thought and action -

Into that heaven of freedom, my Father,

let my country awake.

  • Gitanjali, RabindRANATH Tagore

हो चित्त जहाँ भयशून्य, माथ हो उन्नत, हो ज्ञान जहाँ पर मुक्त, खुला यह जग हो -

घर की दीवारें बनें न कोई कारा,

हो जहाँ सत्य ही स्रोत सभी शब्दों का,

हो लगन ठीक से ही सबकुछ करने की,

हों नहीं रूढ़ियाँ रचतों कोई मरस्थल -

पाए न सूखने इस विवेक को धारा।

हो सदा विचारों-कर्मों की गति फलती,

बातें हों सारी सोची और विचारी,

हे पिता! मुक्त वह स्वर्ग रचाओ हममें,

बस, उसी स्वर्ग में जागे देश हमारा।

  • (अनुवादक : प्रयाग शुक्ल)

जहाँ हृदय भयरहित हो और मस्तक गौरव से ऊँचा उठा हुआ हो। जहाँ ज्ञान का मार्ग निर्बाध हो। जहाँ गृहों की संकीर्ण दीवारों द्वारा संसार टुकड़ों में विभाजित न हो। जहाँ शब्द सत्य ही गहराई से नि:सृत होते हों।

जहाँ अथक प्रयास पूर्णता की ओर ले जाता हो।

जहाँ विवेक की स्वच्छ जलधारा कुसंस्कार से शुष्क मरुस्थल में जाकर न सूख गई हो।

जहाँ मन तेरे मार्गदर्शन में सतत विकासोन्मुख के शुष्क मरुस्थल की ओर अग्रसर हो।

मेरे प्रभु! ऐसे दिव्य स्वाधीन से परिपूर्ण वातावरण में मेरा देश जाग्रत हो!

(अनुवादक : रमा तिवारी)

जहाँ चित्त भय शून्य, जहाँ सिर उन्नत

ज्ञान मुक्त; प्राचीर गृहों के, अक्षत वसुधा का जहाँ न करके खंड-विभाजन

दिन-रात बनाते छोटे-छोटे आँगन;

प्रति हृदय-उत्स से वाक्य उच्छ्वासित होते

हों जहाँ, जहाँ कि अजस्र कर्म के सोते

अव्याहत दिशा-दिशा, देश-देश बहते

चरितार्थ सहस्रों-विध होते रहते;

धारापथ को न विचारों के, ग्रस लेती हो-

जहाँ तुच्छ आचारों की मरु-रेती;

शतधा न जहाँ पुरुषार्थ; जहाँ पर सतत्

सब कर्म-भाव आनंद, तुम्हारे अनुगत;

हे पिता, उसी स्वर्लोक* में करो जाग्रत,

निज-कर निर्दय ठोकर देकर, यह भारत!

(अनुवादक : युगजीत नवलपुरी)

तीनों अनुवादों को ध्यान से पढ़िए। हो सके तो बांग्ला को भी देखिए और अपने बंगाली मित्रों से पूछकर उसका देवनागरी में लिप्यांतरण कीजिए। यह भी देखिए कि हिंदी और अंग्रेज़ी में कहाँ तक ठीक ढंग से ध्वनि, भाषा और कथ्य की रक्षा करते हुए अनुवाद हो पाया है। पाँच-पाँच के समूह में कक्षा में चर्चा करें कि कौन-सा अनुवाद अधिक समझ में आता है और क्यों?

नीचे एक उपन्यास-अंश दिया जा रहा है जहाँ बारिश के मौसम में गाँव की बदली हुई हरकत करती तसवीर को लेखक ने बारीकी से देखा है-

It was raining when Rahel came back to Ayemenem. Slanting silver ropes slammed into loose earth, ploughing it up like gunfire. The old house on the hill wore its steep, gabled roof pulled over its ears like a low hat. The walls, streaked with moss, had grown soft, and bulged a little with dampness that seeped up from the ground. The wild, overgrown garden was full of the whisper and scurry of small lives. In the undergrowth, a rat snake rubbed itself against a glistening stone. Hopeful yellow bullfrogs cruised the scummy pond for mates. A drenched mongoose flashed across the leaf-strewn driveway.

  • God of Small Things, ARUNDHATI ROY

वर्षा हो रही थी जब राहेल आयमनम लौटी। तिरछी, रुपहली रस्सियाँ कच्ची मिट्टी को गोलियों की बौछार की तरह खूँदती हुईं उस पर बरस रही थीं। पहाड़ी पर बने पुराने घर ने अपनी ढलवाँ, तिकोनी छत किसी नीची टोपी की तरह कानों को ढँकते हुए पहन रखी थी। दीवारें, जिन पर काई की धारियाँ थीं, नरम हो गई थीं और ज़मीन से ऊपर को चढ़ने वाली सीलन से कुछ-कुछ फूल आई थीं। जंगल बनी बेतरतीब बगिया नन्हे-नन्हे जीवों की खुसफुस और दौड़-भाग से भरी हुई थी। झाड़ियों में दुबका एक धामन अपनी देह. एक चमकते हुए पत्थर से रगड़ रहा था। पीले, प्रणयाकांक्षी मेंढक काई-भरे पोखर में संगियों की तलाश करते, तैरते फिर रहे थे। एक भीगा नेवला मकान को जाने वाले, पत्तों से अटे, रास्ते पर कौंधता हुआ निकल गया।

  • मामूली चीज़ों का देवता, अनुवादक : नीलाभ

(क्या आप बता सकते हैं कि हिंदी अंश में मूल भाषा की रवानगी कहाँ तक व्यक्त हो पाई है?)

बहुचर्चित किताब ‘एलिस इन वंडरलैंड’ की जादुई दुनिया को रचने में भाषा की जादूगरी की बड़ी भूमिका रही है। उदाहरण के लिए-

Once more she found herself in a long hall, and close to the little glass table. “Now l’ll manage better this time,” she said to herself, and began by taking the little golden key, and unlocking the door that led into the garden. Then she set to work nibbling at the mushroom (she had kept a piece of it in her pocket) till she was about a foot high: then she walked down the little passage - then she found herself at last in a beautiful garden, among the bright flower-beds and the cool fountains.

एक बार फिर उसने अपने आपको एक लंबे-से हॉल में शीशे की एक छोटी-सी मेज़ के पास खड़े पाया। “अबकी बार मैं कोई गलती नहीं करूँगी,” उसने

अपने आप से कहा। उसने सोने की चाबी उठाकर वह दरवाज़ा खोल दिया जिसमें से गुज़रकर बाग तक पहुँचा जा सकता था। तब उसने कुकुरमुत्ते को कुतरना शुरू कर दिया (उसने एक टुकड़ा अपनी जेब में बचा रखा था) और जब उसका कद एक फुट हो गया तो वह उस छोटे-से रास्ते पर चलती हुई उस सुंदर बाग में पहुँच गई रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियों और ठंडे फव्वारों वाले बाग में।

  • एलिस अजूबों की दुनिया में, अनुवादक - कृष्ण बलदेव वैद

वहाँ उसने अपने आपको उसी हाल के अंदर पाया जहाँ शीशे वाली मेज़ थी। वह उसने फ़ौरन पहचान ली। वह छोटा-सा दरवाज़ा भी उसने देखा, जिसके पार वही लुभावना बाग था, जिसको देखने के लिए एलिस इतनी लालायित थी। इसके लिए कद को छोटा करना सबसे पहली ज़रूरत थी। जेब से कुकुरमुत्ते के टुकड़े उसने निकाले, उन्हें खाकर वह फिर नन्ही-मुन्ही-सी हो गई।

अब वह बाग में थी। वहाँ उसने देखा, तरह-तरह के फूल खिले हुए हैं, रंगों की जैसे नुमाइश हो। और उनके बीच में वह फौवारा! एलिस मारे खुशी के नाच उठी।

-आश्चर्य लोक में एलिस, अनुवादक : शमशेर बहादुर सिंह

(दोनों अनुवादों में कौन-सा अनुवाद ज़्यादा अच्छा लग रहा है और क्यों? अपने साथी के साथ बैठकर पहचान कीजिए और समूह में बैठकर अपना अनुवाद करने का प्रयास कीजिए।)

वैज्ञानिक और तकनीकी अनुवाद

इसी तरह तकनीकी अनुवाद में भी हमें तकनीकी शब्दावली की जानकारी होनी चाहिए। मसलन हम किसी संस्था के ‘प्रेसिडेंट’ के लिए तो ‘अध्यक्ष’ शब्द का प्रयोग कर सकते हैं और ‘वाइस प्रेसिडेंट’ के लिए ‘उपाध्यक्ष’ शब्द का, पर जब भारत के ‘प्रेसिडेंट’ या ‘वाइस प्रेसिडेंट’ का जि़्र हो तो हमें ‘राष्ट्रपति’ और ‘उपराष्ट्रपति’ ही लिखना होगा। आर्थिक मामलों या प्रशासनिक मामलों में भी तकनीकी शब्दावली का ज्ञान होना ज़रूरी है। इसलिए हमें अनुवाद करते वक्त यह ध्यान भी रखना होता है कि हम जिस चीज़ का अनुवाद कर रहे हैं, वह किस क्षेत्र की है। साहित्य का अनुवाद करने वाला, हो सकता है किसी मेडिकल बुक का अनुवाद न कर पाए। और अगर वह करता है तो फिर उसे कुछ तैयारी करनी

पड़ेगी। डॉक्टरों से लेकर उस क्षेत्र के अन्य विशेषज्ञों से उसे बात करनी पड़ सकती है और जो शब्दावली मान्य या प्रचलित है, उसी का सहारा उसे लेना होगा। विज्ञान के विषयों के लिए तो एक वैज्ञानिक शब्दावली ही तैयार की गई है जो उपलब्ध हो सकती है।

अकादमिक अनुवाद

अकादमिक अनुवाद को करने के लिए आपको उन विषयों की जानकारी रखनी पड़ेगी। अन्य विषयों की तरह सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में अनुवाद पूरी दुनिया के इतिहास और समाज को जानने का बहुत बड़ा जरिया है। अमेरिका में बैठा व्यक्ति भारतीय इतिहास की या फिर हज़ारों साल पहले हड़प्पा और मोहनजोदड़ों के अवशेषों की धड़कन सुन सकता है। उदाहरण के लिए नीचे लिए

गतिविधि 26/Activity 26

नीचे दिए गए दोनों अंशों (‘How artefacts are identified’ और ‘पुरावस्तुओं की पहचान कैसे की जाती है) को ध्यान से पढ़िए। तथ्यों और सूचनाओं को ध्यान में रखते हुए आप इसे अपनी भाषा में रूपांतरित कीजिए।

Read both the extracts given below (‘How artefacts are identified’ and ‘पुरावस्तुओं की पहचान कैसे की जाती है।) carefully. Based on the given facts and information, rewrite them in your own language. गए अंश को देखिए-

How artefacts are identified

Processing of food required grinding, equipment as well as vessels for mixing, blending and cooking. These were made of stone, metal and terracotta. This is an excerpt from one of the earliest reports on excavations at Mohenjodaro, the best-known Harappan site:Saddle querns… are found in considerable numbers… and

they seem to have been the only means in use for grinding cereals. As a rule, they were roughly made of hard, gritty, igneous rock or sandstone and mostly show signs of hard usage. As their bases are usually convex, they must have been set in the earth or in mud to prevent their rocking. Two main types have been found: those on which another smaller stone was pushed or rolled to and fro, and others with which a second stone was used as a pounder, eventually making a large cavity in the nether stone. Querns of the former type were probably used solely for grain; the second type possibly only for pounding herbs and spices for making curries. In fact, stones of this latter type are dubbed 'curry stones' by our workmen and our cook asked for one from the museum for use in the kitchen.
  • (From ERNEST MACKAY, Further Excavations at Mohenjodaro, 1937)

पुरावस्तुओं की पहचान कैसे की जाती है

भोजन तैयार करने की प्रक्रिया में अनाज पीसने के यंत्र तथा उन्हें आपस में मिलाने, मिश्रण करने तथा पकाने के लिए बरतनों की आवश्यकता थी। इन सभी को पत्थर, धातु तथा मिट्टी से बनाया जाता था। यहाँ एक महत्त्वपूर्ण हड़प्पा स्थल मोहनजोदड़ो में हुए उत्बननों पर सबसे आरंभिक रिपोर्टों में से एक रिपोर्ट से कुछ उद्धरण दिए जा रहे हैं-

अवतल चक्कियाँ… बड़ी संख्या में मिली हैं… और ऐसा प्रतीत होता है कि अनाज पीसने के लिए प्रयुक्त ये एकमात्र साधन थीं। साधारणतः ये चक्कियाँ स्थूलतः कठोर, कंकरीले, अग्निज अथवा बलुआ पत्थर से निर्मित थीं और आमतौर पर इनसे अत्यधिक प्रयोग के संकेत मिलते हैं। चूँकि इन चक्कियों के तल सामान्यतया उत्तल हैं, निश्चित रूप से इन्हें ज़मीन में अथवा मिट्टी में जमा कर रखा जाता होगा जिससे इन्हें हिलने से रोका जा सके। दो मुख्य प्रकार की चक्कियाँ मिली हैं। एक वे हैं जिन पर एक दूसरा छोटा पत्थर आगे-पीछे चलाया जाता था जिससे निचला पत्थर खोखला हो गया था, तथा दूसरो वे हैं जिनका प्रयोग संभवत: केवल सालन या तरी बनाने के लिए जड़ी-बूटियों तथा मसालों को कूटने के लिए किया जाता था। इन दूसरे प्रकार के पत्थरों को हमारे श्रमिकों द्वारा ‘सालन पत्थर’ का नाम दिया गया है तथा हमारे बावर्ची ने एक यही पत्थर रसोई में प्रयोग के लिए संग्रहालय से उधार माँगा है।

  • अर्नेस्ट मैके, फर्दर एक्सकेवेशंस एट मोहनजोदड़ो, 1937 से उद्धत

ऐसा अनुवाद कई मायनों में अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। इसीलिए यहाँ अनुवादक की सृजनात्मकता इनकी रक्षा करने में है। तथ्यों की ठीक-ठीक जानकारी का होना ज़रूरी है और यह कोशिश भी होनी चाहिए कि अनूदित भाषा में उस भाषा की प्रकृति के अनुसार इसका अनुवाद किया जा सके। इसी तरह एक अन्य अंश को देखिए। अगर कोई शिक्षा की दुनिया से अपरिचित होगा तो वह इसकी ठीक प्रस्तुति नहीं कर पाएगा।

Educational theory has ample evidence to the contrary. It is in Class I that the child’s basic attitude towards school as a social institution is formed. Indeed, the first few months spent at school have a decisive role in shaping the child’s will to take the school seriously as a place, which means well. Systemic inability to distinguish little children from older ones, in terms of nature and requirements, is a major obstacle to Class I reforms. Trained teachers are usually able to regurgitate the common psychological characteristics of adolescents but very few have working knowledge of how a 5-year-old thinks and imagines. The syllabus of teacher training for the primary stage is usually so generalised that trainees end up getting no clear idea about this crucial stage of the school-going child’s mind. They operate on the basis of a vague notion of stages of development.

लेकिन शिक्षाशास्त्र के सिद्धांत इसके ठीक विपरीत बात करते हैं। उनके अनुसार पहली कक्षा ही एक सामाजिक संस्था के रूप में विद्यालय के प्रति बच्चे के बुनियादी रवैये को आकार देती है। स्कूल में बीतने वाले आरंभिक महीने बच्चों के इस संकल्प को पक्का बनाने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं कि वे विद्यालय को एक संजीदगी के साथ, एक अच्छी जगह के रूप में स्वीकार करेंगे। स्वभाव और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की दृष्टि से छोटे बच्चों और बड़े छात्रों में फ़र्क न कर पाना एक बड़ी व्यवस्थागत कमज़ोरी है जो पहली कक्षा के सुधार के रास्ते में एक बड़ी बाधा को पेश करती है। कई शिक्षित अध्यापक किशोरछात्रों की सामान्य मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को ज़बानी सुना सकते हैं, लेकिन इस बात का व्यावहारिक ज्ञान बहुत कम अध्यापकों में मिलता है कि पाँच साल का बच्चा किस तरह सोचता और कल्पना करता है। प्राथमिक स्तर के लिए अध्यापक प्रशिक्षण की पाठ्यचर्या प्राय: इतनी सपाट होती है कि प्रशिक्षण पूरा कर लेने पर भी अध्यापक को स्कूल में प्रवेश लेने वाले बच्चों की कोमल मानसिक दशा का अंदाज़ नहीं होता।

  • एन.सी.ई.आर.टी. न्यूज़ लेटर, कृष्ण कुमार

(मित्रों से बातचीत कर पहचान करें कि कौन सा अंश अनुवाद है।)

मीडिया के लिए अनुवाद

मीडिया के लिए अनुवाद में करेंट अफेयर्स की जानकारी होना बहुत लाभदायक होता है। देश-दुनिया की सभी तरह की खबरों को लेकर सजग रहना होता है, तभी अच्छा अनुवाद बन पड़ता है। अगर यह जानकारी न हो कि किस देश-प्रदेश में चुनाव हो रहे हैं या कहाँ किस तरह की सैन्य गतिविधि है, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में किस तरह की हलचल है, तो अचानक किसी खबर, लेख या वृत्तांत का अनुवाद करना कुछ कठिन ही होगा। वैसे तो एक अनुवादक को जितने क्षेत्रों की जानकारी हो उतना ही अच्छा रहता है, तभी उसका शब्द भंडार भी बढ़ता है और वह अपनी भाषा को रचनात्मक बना पाता है। नए प्रयोग कर पाता है। ज़रूरत के मुताबिक कुछ शब्द भी गढ़ पाता है। इसमें सबसे ज़रूरी है तथ्यों तथा वस्तुओं का हू-ब-हू रूपांतरण। कुछ भी न तो छूटे, न जोड़ा जाए।

समाचारों का अनुवाद करते हुए अक्सर सबसे बड़ी गड़बड़ी यह होती है कि अनूदित समाचार को अंग्रेज़ी के वाक्य-विन्यास और शैली में लिखने की कोशिश की जाती है। इससे वाक्य संरचना और शैली बहुत अटपटी और कठिन हो जाती है। वाक्यों का ओर-छोर उलट-पुलट जाता है। इससे हर हालत में बचने की कोशिश करनी चाहिए।

अनुवाद का सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र यह है कि आप जिस समाचार का अनुवाद करने जा रहे हैं, उसे ध्यान से पढ़िए। यह समझने की कोशिश कीजिए कि इस समाचार में क्या

कहा गया है? कल्पना कीजिए कि अगर उस समाचार को अपने घर के किसी सदस्य या स्कूल के किसी साथी को बताना हो तो आप कैसे बताएँगे? अनुवाद का सबसे अच्छा तरीका यही है कि अनुवाद के बाद वह अनूदित भाषा का मूल समाचार लगे न कि अनूदित समाचार। ज़ाहिर है कि इसके लिए अनुवाद करते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि अनूदित समाचार उस भाषा के मिज़ाज, शैली, वाक्य-विन्यास और मुहावरों में हो।

समाचारों का अनुवाद करते हुए शब्दशः या मक्खी पर मक्खी बैठाने से हर सूरत में बचना चाहिए। अनुवाद के बाद उस समाचार को उसी भाषा में लिखा हुआ समाचार लगना चाहिए। उस भाषा की स्वाभाविकता और प्रवाह को बनाए रखा जाना चाहिए। शब्द-कोश की मदद लीजिए, लेकिन इस बात का ध्यान ज़रूर रखिए कि उसके लिए सबसे उपयुक्त और अनूदित भाषा में प्रचलित शब्द कौन सा है। अन्यथा अक्सर ऐसा होता है कि शब्द-कोश की मदद से ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो न सिर्फ़ वहाँ उपयुक्त नहीं होते हैं बल्कि जिन्हें समझना अंग्रेज़ी जितना ही कठिन होता है।

कई बार कुछ तकनीकी और पारिभाषिक शब्दों के लिए उपयुक्त शब्द नहीं मिलते या संस्कृतनिष्ठ होने के कारण उतने ही कठिन होते हैं, उस स्थिति में अनुवादक की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है। उसे न सिर्फ़ उपयुक्त और प्रचलित तकनीकी और पारिभाषिक शब्द खोजने की कोशिश करनी चाहिए बल्कि ज़रूरत हो तो कोष्ठक में मूल अंग्रेज़ी शब्द के साथ-साथ अलग से एक वाक्य में उसका अर्थ स्पष्ट करने की कोशिश करनी चाहिए।

कुछ उदाहरण

अंग्रेज़ी और हिंदी की वाक्य संरचनाओं में फ़र्क होता है। अनुवाद करते हुए इसका ध्यान न रखने पर वाक्य कुछ इस तरह का बन सकता है - मुख्यमंत्री जो वित्त मंत्री भी हैं, ने वर्ष 2005-06 का वार्षिक बजट पेश किया। वे आजकल वित्त मंत्री का कामकाज भी सँभाल रहे हैं। इसी तरह हिंदी की वाक्य संरचना का ध्यान न रखकर अनुवाद करने पर कितनी मुश्किल हो सकती है, इसका एक उदाहरण प्रस्तुत है।

Japanese sailor Kenichi Horie, who has sailed non-stop around the world and crossed the Pacifi c in a solar-powered boat made of recycled aluminum, is off on his next solo adventure at sea.

कमज़ोर अनुवाद - जापानी नाविक केनेची होरी, जिन्होंने बिना रुके दुनिया का चक्कर लगाया है और बेकार अल्युमीनियम को फिर से ढालकर बनी नौका से प्रशांत महासागर को पार किया है, आज अपनी अगली समुद्री यात्रा पर निकल पड़े।

इसकी तुलना में बेहतर अनुवाद का उदाहरण - जापानी नाविक केनेची होरी आज अपने अगले साहसिक समुद्री अभियान पर निकल पड़े। उन्होंने इससे पहले बिना रुके समुद्री रास्ते से दुनिया का चक्कर लगाया है। उनकी नौका बेकार अल्युमीनियम को फिर से ढालकर बनाई गई है। वें इससे पहले प्रशांत महासागर को पार कर चुके हैं।

अनुवाद में अर्थ का अनर्थ होने के कुछ उदाहरण

  • ‘पुलिस रात भर रेलवे स्टेशन के अंदर और बाहर पेट्रोल छिड़कती रही’। (Police patrolling was intensified in and around the railway station during the night) जब कि इसका सही अनुवाद होना चाहिए - ‘रेलवे स्टेशन के अंदर और आसपास रात में पुलिस गश्त बढ़ा दी गई है’।
  • ‘देश का सबसे बड़ा इस्पात का पौधा (Steel Plant) आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम में लगाया जा रहा है।’ ज़ाहिर है कि यह ‘इस्पात का पौधा’ न होकर ‘इस्पात संयंत्र’ या ‘कारखाना’ होना चाहिए। इसी तरह एक और अनूदित समाचार देखिए -
  • ‘नौवों योजना में देश में 9000 गोबर गैस के पौधे (Gobar gas plant) लगाए जाएँगे’। यहाँ एक बार फिर ‘गोबर गैस संयंत्र’ होना चाहिए न कि ‘गोबर गैस के पौध’।
  • ‘अमरीका ने पश्चिम एशिया में शांति स्थापना के लिए सड़क का नक्शा (Road map to peace ) बनाया है’। इस वाक्य में यह ‘सड़क का नक्शा’ न होकर ‘शांति स्थापना की राह के लिए योजना’ तैयार कर ली है।

अनुवाद में भाषा की सरलता के साथ-साथ उसकी गरिमा को भी बनाए रखना ज़रूरी है। याद रखिए अच्छे अनुवाद की सबसे बड़ी कसौटी यह है कि उसे पढ़ने के बाद पाठक को यह बिलकुल न लगे कि वह अनुवाद है।

अनुवाद के बाद आप मूल कॉपी के साथ-साथ अनूदित कॉपी को दोबारा ज़रूर पढ़ें। कहीं कोई ज़रूरी तथ्य तो नहीं छूट गया है। कहीं अर्थ का अनर्थ तो नहीं हो रहा है। अनुवाद से भ्रम तो नहीं हो रहा है। वाक्य-विन्यास दुरूह तो नहीं है। इसे दोबारा लिखें ताकि गलतियों को दूर किया जा सके। एक अन्य उदाहरण देखिए -

अंग्रेज़ी का वाक्य

Ten killed in a road accident.

हिंदी अनुवाद

सड़क दुर्घटना में दस मरे/सड़क दुर्घटना में दस मारे गए/सड़क दुर्घटना में दस स्वर्ग सिधारे / सड़क दुर्घटना में दस भगवान को प्यारे।

गतिविधि 27/Activity 27

यहाँ अन्य की तुलना में ‘सड़क दुर्घटना में दस मारे गए’ अंग्रेज़ी वाली खबर के सबसे निकट अर्थ देता है। ऐसे दस अन्य उदाहरण चुनकर लिखें और यह भी बताएँ कि कौन सा अर्थ सबसे उपयुक्त है।

Notice that ‘सड़क दुर्घटना में दस मारे गए’ is the most appropriate translation of the English sentence. Write ten similar examples and identify which translation is the closest.

बौन्द्ध धर्म और भारतीय गणित दशमलव पद्धति के प्रचार-प्रसार में अनुवाद की बड़ी भूमिका रही है। भगवत गीता के अनुवाद ने भी भक्ति आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई। संत ज्ञानेश्वर ने ज्ञानेश्वरी नाम से इसका अनुबाद किया था।

Understanding Translation

Translation is a creative process.

Group Activity

  • Three or four students from the class should speak a few lines in their mother tongue (other than Hindi/English).
  • The rest of the class should try to guess what was said.

Group Discussion

  • How did you guess what was said? (Was it through words or expressions?)

Das there a need for translation? If so, why?

  • In which situations, do you think, does translation become essential?

Debate

Multilingualism is a resource.

And the pen writes on…

Translation is not a matter of words only: it is a matter of making intelligible a whole culture.

  • Anthon Burgess

You will recollect my having carried on correspondence with you whilst I was temporarily in London. As a humble follower of yours, I send you herewith a booklet which I have written. It is my own translation of a Gujarati writing… I am most anxious not to worry you, but, if your health permits it and if you can find the time to go through the booklet, needless to day I shall value very highly your criticism of the writing. I am also sending a few copies of your letter … which you authorised me to publish. It has been translated in one of the Indian languages also.

  • excerpts from a letter from Gandhiji to Leo Tosltoy in 1910

A great age of literature is perhaps always a great age of translations.

  • EZRA POUND

I. Introducing Translation

India, as one of the oldest knowledge bases, has a cherished tradition of translation. In a sense the people of our country are natural translators since most people here are at least bilingual. If we speak, for instance, Marathi or Punjabi at home as our mother tongue, we inevitably pick up another language, Gujarati or Tamil or any other language, spoken generally in the region we live in. And then at school, we learn at least three languages. By the time we are adults, we are often familiar with more than two languages, and we develop the skill to shift from one language to another naturally. You can see how newsreaders of some of the popular television channels in India use this faculty so effectively. In order to translate we need to become aware of other languages and then consciously hone and develop our skills in translation.

The following extract from Rabindranath Tagore’s Kabuliwala has been translated from the Bangla into Hindi and English.

Read the following Hindi and English translations of the extract from Kabuliwala

Lines in Bangla and their English translation, both by Rabindranath Tagore

Ask any of your friends who can read Bangla to read the passage aloud.

Read the following Hindi and English translations of the extract from Kabuliwala.

मेरो पाँच बरस को छोटी बेटी मिनी बिना बोले पल-भर भी नहीं रह सकती। संसार में जन्म लेने के बाद भाषा सीखने में उसने केवल एक वर्ष का समय खर्च किया था। उसके बाद से जब तक वह जागती रहती है, एक पल भी मौन रहकर नष्ट नहीं करती। उसकी माँ बहुत बार डाँटकर उसका मुँह बंद कर देती है, किंतु मैं ऐसा नहीं कर पाता। चुपचाप बैठी मिनी देखने में इतनी अजीब लगती है कि मुझे बहुत देर तक सहन नहीं होता। इसलिए मेरे साथ उसकी बातचीत कुछ उत्साह के साथ चलती है।

सुबह मैंने अपने उपन्यास के सत्रहवें परिच्छेद में हाथ लगाया ही था कि मिनी ने आते ही बात छेड़ दी, “पिताजी, रामदयाल दरबान काक को कौआ कहता था। वह कुछ नहीं जानता। है न?”

संसार की भाषाओं की विभिन्नता के बारे में कुछ बताने से पहले ही वह दूसरे प्रसंग पर चली गई, “देखो पिताजी, भोला कह रहा था कि आकाश में हाथी सूँड से पानी डालता है, उसी से वर्षा होती है। मैया री! भोला कैसी बेकार की बातें करता रहता है! खाली बक-बक करता रहता है, दिन-रात बक-बक लगाए रहता है।

My five-year-old daughter, Mini, can’t stop talking for even a minute. It only took her a year after coming into the world to learn to speak, and ever since she has not wasted a minute of her waking hours by keeping silent. Her mother often scolds her and makes her shut up, but I am unable to do that. When Mini is quiet, it is so unnatural that I cannot bear it. So her chattering gets quite a lot of encouragement from me.

One morning, as I was starting the seventeenth chapter of my novel, Mini came up to me and said, “Father, Ramdoyal the gatekeeper calls a crow a kauva instead of kak. He doesn’t know anything, does he?”

Before I had a chance to enlighten her about the multiplicity of languages in the world, she brought up another subject, “Guess what, Father, Bhola says it rains when an elephant in the sky squirts water through its trunk. What nonsense he talks! He teases me, he teases me all day long.”

A pooling and sharing of knowledge is indeed possible only when special efforts are made to cross language boundaries. The best tool employed for this purpose is translation which deserves special attention in our multilingual context.

In many Indian languages, we have a great legacy of translations from various classical languages such as Persian, Arabic, Sanskrit on the one hand and from foreign modern languages such as Russian, German, French, on the other. Also, translations amongst Indian languages themselves have made the significant works of one language available in other languages as well. Thanks to translations we have been able to access and read such great writers as Rabindranath Tagore, Prem Chand and Subramaniam Bharati in our own languages. Sometimes these translations have happened through link languages such as English and Hindi. For example, Kalidasa’s Abhigyanashakuntalam is read the world over. This has been made possible because of its translation into many languages. Given below is an excerpt from Abhigyanashakuntalam (Act IV) and its translations in Hindi and English.

शकुन्तला-(गतिभङ्न रूपयित्वा) को णु क्खु एसो णिवसणे मे मज्जइ। (को नु खल्वेष निवसने मे सज्जते।) (इति परावर्तते।)

कण्व:-वत्से!

यस्य त्वया व्रणविरोपणमिड्गुदीनां

तैलं न्यषिच्यत मुखे कुशसूचिविद्धे।

श्यामाकमुष्टिपरिवर्घितको जहाति

सोऽयं न पुत्रकृतक: पदव्वीं मृगस्ते॥14॥

शकुन्तला- (चलने में रुकावट का अनुभव करती हुई-सी) अरे! यह कौन मेरा अंचल पकड़कर खींचे जा रहा है? (पीछे घूमकर देखती है) कण्व-वत्से! कुशा के काँटे से छिदे हुए जिसके मुँह को अच्छा करने के लिए तू उस पर हिंगोट का तेल लगाया करती थी वही तरे हाथ के दिए हुए मुट्ठी भर साँवे के दानों से पला हुआ तेरा पुत्र के समान प्यारा हरिण मार्ग रोके खड़ा है। III III SHAKUNTALA (stumbling): Oh, oh! Who is it that keeps pulling at my dress, as if hinder me? (she turns around to see). KANVA: It is the fawn whose lip, when torn by kusha-grass, you soothed with oil; the fawn who gladly nibbled corn held in your hand; with loving toil you have adopted him, and he would never leave you willingly.

  • (Translated by ARTHUR W. RYDER)

It may be pointed out here how Kalidasa’s well-known play, Abhigyanashakuntalam, demonstrates the coexistence of many language groups in the same geographical area. This play was written in Sanskrit and also uses Saurasheni, Maharastri and Magadhi, clearly showing how multilinguality was a given fact portrayed realistically in a literary text.

Here is an extract from Premchand’s Shatranj ke Khiladi (The Chess Players) from a collection of his short stories which have been translated from the Hindi to English. Read the extract and its translation carefully and identify the sentences/words that convey the meaning but are not literal translations. Discuss in class.

प्रातःकाल दोनों मित्र नाश्ता करके बिसात बिछाकर बैठ जाते, मुहरे सज जाते, और लड़ाई के दाँवपेंच होने लगते। फिर खबर न होती थी कि कब दोपहर हुई, कब तीसरा पहर, कब शाम! घर के भीतर से बार-बार बुलावा आता कि खाना तैयार है। यहाँ से जवाब मिलता-चलो, आते हैं, दस्तरखान बिछाओ। यहाँ तक कि बावरची विवश होकर कमरे ही में खाना रख जाता था, और दोनों मित्र दोनों काम साथ-साथ करते थे।

Early morning it begins. The two cronies finish breakfast, spread open the chessboard, arrange the chessmen, and the war manoeuvres start. And that’s it - time stops - no noon, no afternoon, no evening. Summons after summons from inside the house - “Your meal’s ready.” To which they reply, “All right, coming, spread the tablecloth.”. And, of course, it always ends up with the cook depositing the food in the room, and the two friends simultaneously messing and chessing.

(Translated by NANDINI NoPANr and P LAL)

Translation is a faculty that brings us closer to alien cultures and societies not only through their literatures but also their films and other electronic media - through subtitling and dubbing. A lot of news that we get through newspapers, radio and television, too, is translated from various languages for it to be comprehensive.

Translation also opens a window to the world as we get to know the works of great writers, critics, scientists and other intellectuals from various regions and countries. The following extracts are examples of translations of writings from different parts of the world.

It once occurred to a certain king, that if he always knew the right time to begin everything; if he knew who were the right people to listen to, and whom to avoid, and, above all, if he always knew what was the most important thing to do, he would never fail in anything he might undertake. And this thought having occurred to him, he had it proclaimed throughout his kingdom that he would give a great reward to any one who would teach him what was the right time for every action, and who were the most necessary people, and how he might know what was the most important thing to do.

– an extract from ‘Three Questions’ by LEO TOLSTOY

(Translated from the Russian)

The following is a Hindi translation of the preceding passage.

तीन प्रश्न’ से… एक समय एक राजा को विचार आया कि अगर उसे यह मालूम हो जाए कि किसी काम को शुरू करने का ठीक समय कौन सा हैं यदि उसे मालूम हो कि किन लोगों की बात सुननी चाहिए और किनकी नहीं;

और सबसे महत्वपूर्ण यदि उसे हमेशा मालूम हो जाए कि सबसे ज़रूरी कार्य कौन सा है, वह किसी भी कार्य में असफल नहीं होगा। और इस विचार के आते ही उसने अपने राज्य में ऐलान करवा दिया कि जो कोई उसे काम करने का सही समय, और सबसे ज़रूरी लोग कौन हैं, और कौन सा कार्य सबसे महत्त्वपूर्ण है बताएगा, उसे बहुत इनाम दिया जाएगा।

Haiku

An old pond! A frog jumps in — The sound of water. – MATSUO BASHO

एक पुराना तालाब! एक मेंढक उसमें कूदा पानी की आवाज़।

Right at my feet— and when did you get here, Snail? – ISSA मेरे पैरों के एकदम पासऔर कब तुम यहाँ पहुँचे, घोंघा?

(Translated from the Japanese)

Here is a passage from Alice in Wonderland by Lewis Carroll followed by the Hindi translation.

“Take some more tea,” the March Hare said to Alice, very earnestly.

“I’ve had nothing yet,” Alice replied in an offended tone, “so I can’t take more.”

“You mean, you can’t take less,” said the Hatter: “it’s very easy to take more than nothing.”

“Nobody asked your opinion,” said Alice.

“Who’s making personal remarks now?” the Hatter asked triumphantly.

Alice did not quite know what to say to this; so she helped herself to some tea and bread-and-butter, and then turned to the Dormouse, and repeated her question. “Why did they live at the bottom of a well?”

The Dormouse again took a minute or two to think about it, and then said, “It was a treacle-well.”

“There’s no such thing!” Alice was beginning very angrily, but the Hatter and the March Hare went “sh!sh!” and the Dormouse sulkily remarked, “If you can’t be civil, you’d better finish the story for yourself.”

“और चाय लोगी?” मार्च खरगोश ने तपाक से ऐलिस से पूछा।

“जब मैंने अभी तक पी ही नहीं,” ऐलिस नाराज़ होकर बोली, “तो और कैसे ले सकती हूँ।”

“तुम्हारा मतलब है कि तुम कम नहों ले सकतों,” टोपवाले ने उसे समझाया, “और लेना तो आसान है, खासतौर पर जब तुमने कुछ भी नहीं लिया हो तो।”

“आपकी राय मुझे नहीं चाहिए।” ऐलिस ने कहा।

“तुम तो जाती हमलों के खिलाफ़ थीं।” टोपवाला विजयी आवाज़ में बोला।

ऐलिस को कोई जवाब नहीं सूझा तो उसने कुछ चाय और मक्खन टोस्ट ले लिया और चूहे की तरफ़ रुख करके उसने फिर पूछा, “वे कुएँ में क्यों रहती थीं?”

चूहे ने एक-दो मिनिट की सोच के बाद कहा, “वह गुड़ का कुआँ था।”

“मैं नहीं मानती।” ऐलिस ने गुस्से में कहना शुरू किया ही था कि टोपवाले और मार्च खरगोश ने ‘शश-शश’ से उसे चुप करवा दिया, और चूहे ने कहा, “अगर तुम टोकने से बाज नहीं आ सकतों तो खुद ही खत्म कर लो इस कहानी को।”

(अनुवाद - कृष्णबलदेव वैद)

With the explosion of information and the ever-expanding information technology in contemporary times, the big question that looms over us is how to access diverse knowledge and how to convey in the target language the human sensitivities of the original. Indeed, in a country such as India where there are multiple languages, each language is a rich storehouse of knowledge and literary traditions.

What is Translation?

Translation essentially implies transference of material from one language to another. Since each language carries within itself its own culture and temper, the process of translation demands that the translator be adequately equipped with (i) knowledge of what is called the source language as well as the target language, and (ii) knowledge of the culture of each of the languages to be able to comprehend the source language and then find appropriate equivalent words/phrases in the target language. A literal translation, word for word, can be ‘faithful’ but not beautiful; in fact, at times, a literal translation may even distort the meaning. For example,while a person can be as wise as an ‘owl’ in English, in Hindi, an owl (ullu) is considered to be stupid!

What I like best is when I do my own poems into English. I find the task gripping to the point of intoxication. In the act of translating into an alien language, I seem to find a new flavour in what I had written originally in Bengali. It is almost like a bride’s reception at her husband’s home after the wedding is over…The bride must meet and must make friends with the community to which she must belong henceforth.

  • RABINDRANATH TAGORE

The translator has to understand the context and the culture within which certain words are used and then work out a way to translate them in a suitable manner. This may require not just lexical meanings from dictionaries but also research into the cultures of the source and the target languages. Metaphors, proverbs, symbols, idioms, on the one hand, and, on the other, abuses, kinship terms etc. are all markers of culture. They pose a big challenge to the translator since their meaning is embedded in specific cultures.

Here are some examples of metaphors and phrasal verbs in Hindi and English.

काला बाजार - black market
कौडियों के मोल - as cheap as dirt
रँगे हाथों पकडेे जाना - to get caught red-handed
थककर चूर होना - dead tired
शीत युद्ध - cold war
भाग जाना - to abscond
संक्षेप में - in short
लालन-पालन - to bring up
की हैसियत से - by virtue of
Choose any two phrases from this list and find their equivalents in
your mother tongue. Share them with your class.

Humour and even colours can be culture specific. What is celebratory

in one culture can be mournful in another. An English bride, for example, dresses in white, while white may be perceived as the colour of mourning in some cultures. It is the translator’s job to know such cultural differences and render the translation accordingly.

One thing common amongst different kinds of translation is its main function, that is, to build bridges and create a dialogue between different languages, different cultures. In Arabic, the word for translation is tarjuman - the process of mediation between languages. Translation, then, expands the knowledge sphere for humanity and makes room for diversity of cultures through understanding, caring and accommodation of diversity of cultures. Here is an extract from a text originally written in Urdu. (Ask any of your friends who can read Urdu to read the passage aloud.) The writer, Ismat Chugtai, is widely read in many languages today.

चौथी का जोड़ा से … आज कितनी आस-भरी निगाहें कुबरा की माँ के मुतफक्किर चेहरे को तक रही थीं। छोटे अर्ज़ की टूल के दो पाट तो जोड़ लिए गए, मगर अभी सफ़ेद गज़ी का निशान ब्योंतने की किसी को हिम्मत न पड़ती थी। काट-छाँट के मामले में कुबरा की माँ का मरतबा बहुत ऊँचा था। उनके सूखे-सूखे हाथों ने न जाने कितने दहेज़ सँघारे थे, कितने छठी-छूछक तैयार किए थे और कितने ही कफ़न ब्योंते थे।…

  • इस्मत चुगताई

That day many expectant eyes were riveted on the thoughful face of Kubra’s mother. The two short pieces of cloth had been strung together, but no one would dare to apply the scissors at this point. As far as cutting and measuring cloth was concerned, Kubra’s mother’s skill was usdisputed. No one knew how many dowries she had prepared with her shrunken hands, how many suits she had stitched for new mothers and their babies, and how many shrouds she had measured and ripped.

  • an extract from ‘The Wedding Suit’ by Ismat Chugtai (Translated from the Urdu by M. ASADUDDIN)

Translation - Its Role and Relevance

Thanks to the vibrant linguistic plurality around us, most of us are at least bilingual. As a result we are actually natural translators, shifting easily from one language to another. We may dream in one language, converse in another and write in yet another language. But, indeed, with globalisation and the world shrinking, one or two languages may just become too dominating to allow others to survive. If we make concerted efforts to understand the different cultures/language groups, there may be hope for their survival through the respect accorded to each for its rich literary and cultural traditions that have evolved over centuries. One of the most effective ways of building such cross-cultural bridges has been translation, i.e. making the rich storehouse of knowledge of one language accessible to the other.

Jawaharlal Nehru in his book Discovery of India (Hindustan ki Kahani) has written about the importance of languages. An extract from the text with its translation in Hindi is given below.

A language is something infinitely greater than grammar and philology. It is the poetic testament of the genius of a race and a culture, and the living embodiment of the thoughts and fancies that have moulded them. Words change their meanings from age to age and old ideas transform themselves into new, often keeping their old attire. It is difficult to capture the meaning, much less the spirit, of an old word or phrase. Some kind of a romantic and poetical approach is necessary if we are to have a glimpse into that old meaning and into the minds of those who used the language in former days.

व्याकरण और भाषा-शास्त्र के मुकाबले में भाषा खुद कहीं बड़ी चीज़ है। यह एक जाति और संस्कृति की प्रतिभा की कवित्वमय विरासत है और जिन विचारों और कल्पनाओं ने उन्हें ढाला है, उनका जीता-जागता रूप है। शब्द युग-युग में अपने अर्थ बदलते रहते हैं और पुराने विचार नए विचारों में तबदील हो जाते हैं, अगरचे अकसर वे अपना पुराना भेस कायम रखते हैं, किसी पुराने लफ्ज़ या मुहावरे के मानी पकड़ना मुश्किल हो जाता है और उस भाव के बारे में तो कहा ही क्या जाए! अगर हम उस पुराने मानी की झलक लेना चाहते हैं और उन लोगों के दिमाग में पैठना चाहते हैं, जिन्होंने उस भाषा को गुज़रे दिनों में इस्तेमाल किया था, तो हमें भावुक और कवित्वमय निगाह रखना ज़रूरी है।

  • स्रोत-सस्ता साहित्य मंडल

For a meaningful exchange of ideas and an effective sustenance of cross-cultural dialoguing, honing translation skills is the most natural device. An example of the ‘dialoguing’ between Sanskrit and Persian is demonstrated in Dara Shikoh’s masterpiece translation of the Upanishads from Sanskrit into Persian, Sirr-eAkbar (The Great Secret), completed in 1657 with the help of several pundits from Varanasi. Not only is this translation an evidence of the ‘interaction’ between two classical languages, it also shows how two cultures were engaged in understanding each other through the translation of seminal texts into each other’s languages. Translations of this kind contributed significantly towards building a composite culture in the Indian subcontinent.

While it is important for the translator to have adequate language competence to be able to translate effectively, it is important to note that the process of translation in itself leads to language learning.

The process of translation brings one into a very intimate relationship with at least two languages. The role of translation in language learning is immense. Language conservation and then linguistic proficiency, as we discussed earlier, are surely the crux of all translation activities.

As linguists tell us, thanks to extensive translation in some languages, linguistic changes result from the influence of one language on the other. Sometimes this influence is so pronounced that even the structure of these languages may change due to constant translations from one into the other. Also, if some terms are so culture specific that translation is not possible, the scope of the target language expands through the introduction of new words transferred from the source language as new words and phrases may also get created within the target language to translate such terms. For example, words such as pucca, sahib etc. have become part of the English language.

गतिविधि 28/Activity 28

रास्ते में लगे कुछ मार्गदर्शन बोर्ड, सूचना बोर्ड, विज्ञापन बोर्ड आदि का हिंदी से अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद कीजिए और अपने साथी के साथ बैठकर एक-दूसरे के अनुवाद को मिलकर ठीक कीजिए।

Translate the text from a few signboards, road maps or hoardings that you come across, from Hindi to English and from English to Hindi. In pairs discuss your translations and improve upon them.

In business transactions too, cross-cultural dialoguing plays a vital role. Unless one has mastered the art of communication with the help of interpretation and translation, it may not be possible to build business relationships with other cultures. Whether for entertainment or even advertising or commerce, it is through translation and cultural understanding that the process of reaching out can be achieved. To be competent in this field, one has to equip oneself with linguistic and translation skills.

Understanding Translation

At the outset, let us understand the literal meaning of the word ’translation’ as it is used in some languages. Different cultures, no doubt, may conceptualise translation differently at different times. For instance, the word ’translation’ in English comes from the Latin word ’transferee’ which means ‘carrying something across’. This is indicative of the linguistic and cultural borders which need to be crossed for something to be taken from one side to the other.

In Sanskrit a translator is a bhasantarakari, meaning “other language maker’. Clearly this recognises, in the process of translation, the ‘difference’ of language (which is the carrier of culture), along with the idea of making something anew by the translator. But there are other words for translation in Sanskrit. Chayanuharanam suggests that translation is ‘reflection’, thus emphasising similarity between the two texts; and then there is also the word, anuvadah meaning ‘saying after’. Derived from Sanskrit, the word used for translation in Hindi too is anuvad, suggesting both, the primacy of the source text and also the recreation of another.

In Hungarian, Finnish and some other languages the word for translation points towards the ‘difference’ between the source and the target text. The Finnish word kaannos, used for translation, literally means ‘a turn or a turning’ which shows how the translated text is thought to be taking a turn from the basic text. It is very interesting that the slang connotation of the Finnish verb kaantaa is ’to steal’. Does this imply that translation is to be seen as a theft of some substance from some source? To add to this perspective, let us remember that the classical god of translators was Hermes who was also the god of thieves!

This brings us to a very significant juncture in our study of what is translation. When someone said that translation can be seen as stealing something from the ‘original’, a very important question throws itself up: Is the process of translation creative or just a replication or a copy?

Creativity and Translation

To translate, inevitably means a reconstruction of the text. Translation, therefore, calls for a lot of creativity to first decode an existent text for its comprehension and internalisation, and then recode it into a new text in another language. The new text is a re-creation that has to stand in total autonomy, free of the ‘original’ text and complete in itself. Walter Benjamin has said that translation is “afterlife”.

Linguistic transformation, we must remember, implies to a large extent a cultural transformation too. This is similar to saying that a lot can be lost in translation and a lot can also be gained in translation. Each language bears within itself its own cultural baggage. That is why when the source text is translated into another language, it is necessary that the culture of the target language be negotiated. With adequate sensitivity and knowledge of the cultures of both the languages, the translator becomes a mediator who creates the scope and means to transfer the meaning and experience of the ‘original’ text into another language. Translation, said someone, is a cross-cultural transmission skill, a creative endeavour to build another linguistic structure to accommodate and contain what is otherwise quite foreign to it.

Since translation is filtered through the consciousness of the translator, it does indeed acquire the translator’s vision as well and gets transformed into something new, broadening the scope of the original and offering at times another view of the same thing. Literary translation is not merely a technical skill, but also an art form, not subservient to the original. The translator, thus, has to be equipped with adequate preparation and creativity along with the linguistic skills to be able to transcreate a text.

Read the following excerpt and its translation from Themes in Indian History - Part III for Class XII. Do you think the translator has been able to translate the nuances of the researcher’s record? Underline the words/phrases that you feel would have been difficult to translate.

गतिविधि 29/Activity 29

अपनी पसंद की किसी कहानी को अपने ढंग से किसी अन्य भाषा में लिखें।

Choose a story that you like. Now translate it into another language.

“I am simply returning my father’s karz, his debt”

During my visits to the History Department Library of Punjab University, Lahore, in the winter of 1992, the librarian, Abdul Latif, a pious middleaged man, would help me a lot. He would go out of his way, well beyond the call of duty, to provide me with relevant material, meticulously keeping photocopies requested by me ready before my arrival the following morning. I found his attitude to my work so extraordinary that one day I could not help asking him, “Latif Sahib, why do you go out of your way to help me so much?” Latif Sahib glanced at his watch, grabbed his namazi topi and said, “I must go for namaz right now but I will answer your question on my return.” Stepping into his office half an hour later, he continued…

“मैं तो सिर्फ़ अपने अब्बा पर चढ़ा हुआ कर्ज़ चुका रहा हूँ”

मैं 1992 की सर्दियों में पंजाब यूनिवर्सिटी, लाहौर के इतिहांस विभाग के पुस्तकालय में जाया करता था। वहाँ अब्दुल लतीफ़ नामक एक धर्मनिष्ठ अधेड़ सज्जन मेरी बहुत मदद किया करते थे। जितना उनके लिए करना ज़रूरी था, उससे भी आगे जाकर वे मुझे आवश्यक सामग्री मुहय्या करा देते थे और मेरी अनुरोध की हुई फ़ोटोकॉपियाँ अगली सुबह मेरे पहुँचने के पहले ही बड़े कायदे से तैयार रखते थे। मेरे काम के प्रति उनका यह रवैया मुझे इतना अनोखा लगता था कि एक दिन मैं अपने को रोक नहीं पाया और पूछ ही बैठा, “लतीफ़ साहब, आप ज़रूरत से ज़्यादा आगे बढ़-बढ़कर मेरी इतनी मदद क्यों करते हैं?” अपनी घड़ी पर नज़र डालकर उन्होंने लपककर अपनी नमाज़ी टोपी उठाई और कहा, “अभी तो मुझे तुरंत नमाज़ के लिए जाना है। पर लौटकर मैं आपके सवाल का जवाब ज़रूर दूँगा।” आधे घंटे बाद अपने दप़्तर में लौटते ही उन्होंने बात आगे बढ़ाई…

Creativity and the Question of Faithfulness in Translation

Translation should seek maximum readability. The translated text should remain within the confines of faithful rendering. What has to be ideally achieved in the translated text is the perfect compromise between accuracy and a ‘creative’ reproduction of the same. When a classical text gets translated into a modern language, this can be considered to be its renewal, in that it becomes comprehensible to contemporary readers by getting charged with idioms and metaphors that are accessible. Though the reference point for such texts is the original old text, there is no doubt that without a severance from the original, the new text does not yield adequate joy of reading. The new translated texts come out of the aesthetics of translation and offer pleasure and a sense of beauty.

Does the passion for creativity make the translator a traitor who refuses to be ‘faithful’ to the original? Does such a translator run away with her/ his own creativity? This translator may re-create a text that bears no resemblance with the source text. The interpretations, interpolations and assumptions used by the translator in the reconstructed text can lead it to a completely altered state, thus fitting in with the Italian saying, traduttori traditori meaning that the translator is a traitor!

When the translator is engaged in the process of a creative translation, there is indeed a possibility of her/him using a huge range of imaginative and cultural resources available for the reconstitution of the text. But a thorough research into the original resources for a full understanding of the source text should indeed be a priori. Some liberties, however, may be taken by the translator to make the translation more readable. For the target text to become a rich experience for the reader, the translator’s own linguistic skills and imaginative power are of great use. This kind of a translation is truly an experience in tight-rope walking!

Read the poem in English given below and compare its two translations in Hindustani and Hindi given after the poem.

Voyaging at Ten

Between awesome

expanses

of deep blue oceans

and the greying sky

I stood

a speck in God’s creation

leaning on the rails

of the deck

sailing from Mombasa

to Bombay…

a journey with a

beginning and an end

and no middle

A storm

a swarm of sharks

or whales

failure of

the engines of Amra

or a mere giving way

of the railing

Blue death;

Anything,

a trivial something

or a grave lapse

I cannot swim

The shores are not

in sight…

— SUKRITA

एक आबी कब्र

बेकारण नीला समुंदर कनपटी से सफ़ेद होते

आसमान के दरम्यान मैं खड़ी थी

एक नुक्ते की तरह बेपनाह इस कायनात में कोहनियाँ टेके हुए रेलिंग पे मैं बहती मोम्बासा से बोम्बे की तरफ़

इक सफ़र पर

जिसका एक आयाज़ था और आखिर भी

लेकिन दरम्यान कुछ भी नहीं

एक तुफान

झुंड कोई शार्कस का

या क्हेल्स का

फेल हो जाए जो

इंजन आमरा का

या ये रेलिंग ही

चटक जाए अगर

एक आबी कब्र-बस

कुछ तो हो

कुछ भी सही

कोई मामूली या

कोई गैर-मामूली सा कुछ

तैर भी सकती नहीं मैं

और साहिल

वो नज़र आता नहीं

(अनुवाद - गुलज़ार)

दस वर्ष की यात्रा

गहरे नीले समुंदर के विश्मयकारी विस्तार और भूरे आसमान के बीच मैं खड़ी थी

ईश्वर की सृष्टि में एक कण डेक की रेलिंग पर झुकी हुई जो मोम्बासा से बोम्बे के लिए खुली थी

एक यात्रा जिसका आरंभ और अंत तो था मगर कोई मध्या नहीं

एक तुफान

शार्क और क्हेल मछलियों का एक झुंड

आमरा की इंजन का फेल होना

या सिर्फ़ रेलिंग का टूटना

नीली मृत्यु

कुछ भी

मामूली-सा कुछ

या फिर एक गंभीर चूक

मैं तैर नहीं सकती

और किनारे कहीं दिखते नहीं

(अनुवाद - सविता सिंह)

Compare the language of both the translations and discuss the question of ‘correctness’, ‘faithfulness’ and ‘creativity’ in relation to the above two versions. Give examples to substantiate your points. Try to translate this poem in your own way.

The Question of ‘Originality’

While we discuss the creativity and autonomy of the ‘recreated’ texts, we must also remind ourselves why Indian literary history does not lay undue stress on ‘originality’. This gets illustrated by the fact that we see multiple creative translations/adaptations over time and space of the same texts in new avatars over and over again in Indian culture. The best examples lie in what is evidenced as different renderings of the two great epics from India, the Mahabharata and the Ramayana: Tulsidas in Hindi, Ezhuthacchan in Malayalam, Krittivas in Bengali, Kambar in Tamil, and Pampa in Kannada have rendered the Ramayana in their own way, and their versions have been accepted by the reading public in their respective language areas, in spite of variations, omissions, additions, interpolations etc. Either in totality or in portions and episodes, these texts are transmitted and recreated in different Indian languages, orally as well as in the written form, through interpretative, adaptive and transformative translations. This has been done in different literary genres and styles at different times. Some of the renderings become more original than what may be called the ‘original’ i.e. the source text! And, in one of the oral traditions of storytelling, called the Pandavani tradition of Chhattisgarh, the well-known tribal artist Teejan Bai musically narrates and enacts through dance the story of the Pandavas from the Mahabharata, constantly innovating and interpreting in accordance with the need of her audience.

A linguistic transformation can lead, at times, to a total cultural conversion. For example, when Godavarish Mishra translated Charles Dicken’s A Tale of Two Cities (1859) into Oriya, he took a lot of liberty with the original text and created an adaptation called Athara sa Satara (1817). Instead of the French Revolution of 1789, the context of the novel was converted into that of the uprising organised in Orissa against the British in 1817.

The borders between ’translation’ and ‘creative writing’ blur easily! For example, Agha Hashr Kashmiri adapted the text of King Lear and wrote Safed Khoon. This eminent Urdu playwright of the Parsi theatre was given the title of ‘Shakespeare of India.’ He wrote several original plays and translated many from the English. Extracts of Safed Khoon (adapted version of King Lear) and its transliteration are given below. You have already read the original extract from King Lear in Unit II and can refer to it once again.

खाकान : मरहबा, ऐ मेरी नूरदीदा! तू मेरी उम्मीदों से भी बढ़कर सआदतमंद और फ़रमाबरदार है। (ज़ारा की तरफ़ इशारा करके) हाँ, बोल ऐ गुंचा-ए-आरजू। अब तेरी गुल अफुशानी का इंतेज़ार है बोल के लब आज़ाद हैं तेरे।

ज़ारा : अब्बा जान! मैं क्या अर्ज़ करूँ।

अताअत मुझ से कहती है के तू चुप रह नहीं सकती। मगर मेरा ये कहना है के मैं कुछ कह नहीं सकती। खाकान : क्यों बात करने में क्या बुराई है। आखिर खुदा ने ज़बान किस लिए अता फ़रमाई है?

ज्ञारा : उसकी खुदाई और यकताई का इकरार करने के लिए और ज़रूरत के वक्त अपनी ज़रूरियात का इज़हार करने के लिए। ज़माने की राहत अगर चाहिए। तो बातें करनी सोचकर चाहिए। कहे एक सुन ले जब इंसान दो। के हक ने ज़बान एक दी कान दो।

  • (लिप्यंतरण - अनीस आज़मी)

Khaqan : Marhaba ae meri noordeeda! Tu meri ummeedon se bhi badhkar saadatmand aur farmabardar hai. (Zara ki taraf ishara kar ke) Han, bol ae ghuncha-e-arzoo. Ab teri gulafshani ka intizar hai bol ke lab aazad hain tere.

Zara : Abbajan, Main kya arz karoon. ata-at mujh se kehti hai ki tu chup rah nahin sakti. Magar mera yeh kahna hai ki main kuchh kah nahin sakti.

Khaqan : Kyon baat karne mein kya buraee hai. Akhir khuda ne zuban kis liye ata farmai hai?

Zara : Uski khudaee aur yaktai ka iqrar karne ke liye aur zarurat ke wqat apni zaroriat ka izhaar karne ke liye. Zamane ki rahat agar chahiye. To batein karni soch kar chahiye. Kahe ek sun le jab insaan do. Ki haq ne zuban ek di kaan do.

In which language do you think it has been adapted from the English text? Discuss in class. What makes you think so?

Translation and Transliteration

Translation produces a written or spoken text in a different language while retaining the original meaning. Transliteration transcribes something into another alphabet to represent letters and words written in one alphabet using the corresponding letters of another.

Following is the poem, Achchamillai, by Subramania Bharati in Tamil along with its translation and transliteration.

Translation

No Fears

No fears, no fears, no fears! Even if the whole world stands against us.

No fears, no fears, no fears! Even if we are scorned and reviled,

No fears, no fears, no fears!

Transliteration

Achchamillai

Achchamillai achchamillai achchamenbadillaiye. IchchagathulMõrelam edirttu ninra pothinum, Achchamillai achchamillai Achchamillai achchamillai achchamenbadillaiye. Tuchchamaga enni nammai turu seyida pothinum, Achchamillai achchamillai achchamenbadillaiye.

Creative Writing in English and Translation

“Oh! Is it a translation? I thought it was an original!”

The above exclamation can perhaps be reversed in the case of the following passage: “Oh! Is it an original? I thought it was a translation!”

“But Moorthy will not come tonight. Vasudev has finished his meal, and has washed his hands, and as he comes out Gangadhar is there with his son and his brother-in-law, and they all look towards the valley, where there is nothing but a well-like silence and the scattered whiffs of fireflies. From behind the Bebbur jungle comes the mournful cry of jackals, and from somewhere beyond the Puppur mountains comes the grunt of a cheetah or tiger, and the carts are already seen to pull up the Mena Ghats. Everybody goes from this side to that, and Rachanna swears he has seen the light and Madanna says he has seen it, too, and they all rise up…”

Read the above passage carefully. Do you think it is a translation? Or is it an original piece of writing in English? Notice that it sounds like a translation because the use of English language here clearly demonstrates how the idiom, the rhythm, the style as well as the mode of this writing belongs to a culture somewhat alien to the ‘English sensibility’ that is usually seen in original writing in English. This is because the English language here has ‘accommodated’ Kannada language and its culture and tone. This passage is from Raja Rao’s novel Kanthapura written originally in English in 1937 when the author said in the Preface to his novel: “We cannot write like the English. We should not. We can write only as Indians. We have grown to look at the large world as part of us… The tempo of Indian life must be infused into our English expression…” In such an act of writing, inevitably, translation gets infused into the process of creative writing in English in India. Clearly, there is a blurring of lines between ‘creative writing’ and ’translation’ in such cases.

This writing, then, may be perceived as yet another type of translation! The process of translation combines with the act of writing in the very ‘original’ making of a novel, a short story, a poem etc.

II. Types of Translation

There are different registers of language and vocabulary for translation in different areas such as law, science, technology, medicine etc. One needs to be conversant with the nuances and the culture of the target language for literary translation. For legal, technical, medical translation one needs to know the terms and vocabulary specific to the field. Also, translation of news is a constant feature, both in the print as well as in the electronic media. Translation is an important faculty used by interpreters who mediate between two individuals who do not know each other’s language.

Translation in Print and Electronic Media

For the translation of news from different regions/states and countries, a large number of translators are employed by newspapers, radio, television etc. This kind of translation is generally a very ‘free’ translation, since the purpose is to communicate the news rather than look at the aesthetics of expression. Here, faithfulness to the content is considered more important. The authenticity of the news is verified and then transferred in another language for another community or society.

It is not easy to get authentic reports or facts unless one is able to use the locally specific information which is found usually in indigenous tongues and, many a time, one discovers howlers in newspapers in reports of news picked up from the local language. Due to bad translation, the story may get distorted and misrepresented. A news reporter, therefore, has to first of all select news from as wide a range of languages as possible and then a proper translation of the same must be done to convey the same appropriately to the readers.

For the overall development of the modern society, mass communication plays a vital role - through quick dissemination of information pertaining to different aspects of life to a wider public. In this respect, the different media such as newspapers, magazines, radio and television aim at collecting information and news from as many countries/states/regions and societies as possible, to attempt to inform, educate and persuade people towards certain action or change.

For dubbing, sub-titling as well as for voice-overs in films and television, sensitive and good translation faculties are essential. For effective dubbing, the translated dialogue is synchronised with the lip movements and gestures of the actor in the film. The aim is to make the audience feel as if they are listening to actors actually speaking in the target language. Recent technology, interestingly, has developed a method of digital alteration of lip movement as well. As for sub-titling, translation of the source language dialogue into the target language is supplied in the form of synchronised captions, usually at the bottom of the screen. This has to be done carefully so that there is minimum disturbance to the source text. This kind of translation remains as close to the original as possible. Have you watched any film/song sequence dubbed in a different language? How was the experience? Was there any line that you would have translated differently?

For lack of competent and good quality translation skills, messages can get completely distorted and, at times, clumsy. It has been seen how a highly serious, even tragic, content can sometimes turn comic due to a bad representation of the same in translation! Thus, for the electronic media, it is crucial that more and more competent translators become available.

Translators as Interpreters

In our country, in some institutions, members from different language groups work together. To facilitate communication and useful discussions, a large number of interpreters and translators are employed there. On-the-spot, spontaneous translation is imperative for them.

An interpreter has to be necessarily a strong bilingual/multilingual person who has the skill to instantly translate for conversations to proceed. Political, cultural and any other kind of exchange between ambassadors, leaders and representatives of different countries in different departments thus depends on interpreters to be able to negotiate, converse and understand each other. See गतिविधि/Activity 27 on Page 182

गतिविधि 30/Activity 30

कुछ फ़िल्मों के अपनी पसंद के किन्हीं पाँच डॉयलॉग का अनुवाद करें। फिर पाँच-पाँच के समूह में अपने अनुवाद पर बातचीत कीजिए यह देखते हुए कि संवादों की संप्रेषणीयता कहाँ तक अनूदित भाषा में आ पाई है।

Translate any five dialogues from films of your choice. In groups of five share your translations and discuss how far the translations have been able to communicate the original meaning.

Advertising and Translation

For the world of commerce and marketing, advertising is an essential component as a form of mass communication. It is a powerful tool for the flow of information from the seller to the buyer as it influences and persuades people to act or believe. There are many special and specific reasons for using advertising in its several forms. Announcing a new product or service, expanding the market to include new buyers, announcing a modification or a price change, educating customers, challenging competition, recruitment of staff and attracting investors are a few such reasons. In the process of creating advertisements for all these reasons, choice of expression and language are of crucial importance. An advertisement created in one language for a particular region may not be effective in another region due to both, a difference of language as well as culture. It would have to be translated accordingly, for the purpose of communication to be served.

Parts of advertisements in Hindi and English to spread awareness

Governments too, at times, have to issue the same announcements in different languages to promote tourism or serve public interests and create awareness amongst people on various issues. Advertising gives the public the right to choose between many options, many brands. Again, for these options to become real options, people need to understand the message of the advertisement effectively. For this the right language and cultural communication has to be established by the advertiser. The language, to be properly understood, may have to be a dialect. Television, radio, the Internet etc. have evolved as very popular means of advertising and have an impact on both the literate as well as the illiterate population of the country.

Scientific and Technical Translation

With the rapid advancement of science and technology, new words for new concepts, inventions and techniques have come into existence. Even dictionaries are not able to keep pace with the growth of vocabulary. There are serious problems of translating scientific and technical literature due to the lack of appropriate equivalents in different languages. Coining, borrowing and transliteration of words and terms is being adhered to in translation of such work. To remain up-to-date with knowledge production in these fields, and to carry on with scientific research more meaningfully, a lot of translation activity is encouraged. Scientific and technical translation is also a prerequisite for acquisition of technology as well as for the knowledge of its operation.

In science and technical translation, the language of translation has to be direct, precise and clear. Also, there has to be a standardisation of terms and concepts. The style must be impersonal and simple. The register used should be scientific with neither any rhyme scheme or deviation of meaning as in literary translation. The translator must have good command of both the subject matter and the language to be able to translate well.

Medical Translation

If you take a bottle of one of your prescribed medicines, you will see various types of information on it - the dosage, frequency of use, storage instructions, side effects, warnings etc. - often in more than one language. Translation is required for distribution of medicines and medical devices in different regions and countries. In many countries, where the medicines have to be sold, translation of all information listed above is mandatory. The translators of such materials must be highly aware of the source and target languages and cultures as well as the subject they will translate. Such translations have to meet all local as well as international regulatory guidelines.

Pharmaceutical and medical translation requires complete attention to detail and indepth subject-matter expertise because poor translation can lead to misinterpretation and great risk to peoples’ health.

Academic Translation

For academic translation you have to be well-versed in the subject. Keen observation and attention to detail is a must. Following is an example from Themes in Indian History, Part II, for Class XII. The information recorded by Ibn Battuta in Arabic has become widely available for readers from different disciplines and cultures because of translation. This is true of academic exercises in general.

On Horse and on Foot

This is how Ibn Battuta describes the postal system:

In India the postal system is of two kinds. The horse post, called uluq, is run by royal horses stationed at a distance of every four miles. The foot-post has three stations per mile; it is called dawa, that is one-third of a mile… Now, at every third of a mile there is a well-populated village, outside which are three pavilions in which sit men with girded loins ready to start. Each of them carries a rod, two cubits in length, with copper bells at the top. When the courier starts from the city he holds the letter in one hand and the rod with its bells on the other; and he runs as fast as he can. When the men in the pavilion hear the ringing of the bell they get ready. As soon as the courier reaches them, one of them takes the letter from his hand and runs at top speed shaking the rod all the while until he reaches the next dawa. And the same process continues till the letter reaches its destination. This foot-post is quicker than the horse-post; and often it is used to transport the fruits of Khurasan which are much desired in India.

घोड़े पर और पैदल

डाक व्यवस्था का वर्णन इल्न बतूता इस प्रकार करता है -

भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था है। अश्व डाक व्यवस्था जिसे उलुक कहा जाता है, हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती है। पैदल डाक व्यवस्था के प्रति मील तीन अवस्थान होते हैं; इसे दावा कहा जाता है, और यह एक मील का एक-तिहाई होता है… अब, हर तीन मील पर घनी आबादी वाला एक गाँव होता है जिसके बाहर तीन मंडप होते हैं जिनमें लोग कार्य आरंभ के लिए तैयार बैठे रहते हैं। उनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लंबी एक छड़ होती है जिसके ऊपर ताँबे की घंटियाँ लगी होती हैं। जब संदेशवाहक शहर से यात्रा आरंभ करता है तो एक हाथ में पत्र तथा दूसरे में घंटियों सहित छड़ लिए वह क्षमतानुसार तेज़ भागता है। जब मंडप में बैठे लोग घंटियों की आवाज़ सुनते हैं तो वे तैरार हो जाते हैं। जैसे ही संदेशवाहक उनके पास पहुँचता है, उनमें से एक उससे पत्र लेता है और वह छड़ हिलाते हुए पूरी ताकत से दौड़ता है, जब तक वह अगले दावा तक नहीं पहुँच जाता। पत्र के अपने गंत्य स्थान तक पहुँचने तक यही प्रक्रिया चलती रहती है। यह पैदल डाक व्यवस्था अश्व डाक व्यवस्था से अधिक-तीव्र होती है; और इसका प्रयोग अकसर खुरासान के फलों के परिवहन के लिए होता है, जिन्हें भारत में बहुत पसंद किया जाता है।

Legal Translation

For legal translation, the translator has to have a thorough knowledge of legal terms and be aware of the specificity of legal language because certain terms have specific connotations. For example, in a classroom an assignment means a task allotted to the students whereas in legal terms it refers to transfer of ownership. The assignment of copyright by an author or composer to a third party would mean that this party now has control and ownership over the copyright i.e. sale or reproduction of the artist’s work. Find two terms that you use commonly that have different meanings in different contexts.

Prohibition of employment of children in factories, etc. — No child below the age of fourteen years shall be employed to work in any factory or mine or engaged in any other hazardous employment.

कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध - चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।

Article 24 of the Constitution of India. It is an example of an exact translation from the English to Hindi.

Machine Translation

In today’s context, at the global level too, machine translation has become a flourshing industry. There is a great demand for a large number of expert translators, and technology is required to assist in translating enormous volumes of documents, though, of course, machine translation cannot be a substitute for human input.

Rapid and large volumes of translation are now becoming possible with the advent of new technologies. With adequate human resources and technological development, machine translation can facilitate massive translations. Once equipped with such necessary digital tools as bilingual dictionaries, thesaurus, software for ’translation memory’ etc., machine translation will offer easy opportunities for exchange and transmission of knowledge. The machine can take on the intra-lingual translation of large bodies of knowledge available in many languages for a much faster overall progress and development of humanity.

Literary Translation

Literary translation presents its own challenges, some of which we have discussed earlier in this chapter. The translator translates a poem, a short story or any other form of literature because she/he is ‘moved’ and ’touched’ by it in the original language and wishes to carry it to another language, to recreate that experience for others alien to the original language of the text. To do this, a mere transference of ‘content’,

I do not hesitate to read … all good books in translation. What is really best in any book is translatable—any real insight or broad human sentiment.

  • RALPH WALDO EMERSON

theme or ‘meaning’ of the original will not suffice. An effective translation attempts carrying across to the other language the very flavour, the tone, mood, emotional content and the thought pattern of the source text. This process demands a sensitive and very close reading of the original text, comprehension of the use of metaphor, idiom and its cultural content and then the transference of that material through a creative use of the target language and its resources.

Kamleshwar’s Partitions is a novel that fictionalises mythologies and histories. All along, it underscores the unnatural division of people and land.

In his author’s note, Kamleshwar writes “this novel was born out of a constant ferment within my mind…” Here is an excerpt from the novel Kitne Pakistan originally written in Hindi.

उसका पूरा कस्बा, उसके कस्बे का अपना मोहल्ला, मोहल्ले की कई खिड़कियाँ भी उसे मौन हसरत से देखती दिखाई दी थीं। कभी-कभी बरसात के दिनों में लौटते हुए पाँवों के निशान दिखाई पड़ जाते थे। ज़्यादा बारिश हुई तो निशान पहले तो भरी आँख की तरह डबडबाते थे, फिर देखते-देखते मिट जाते थे। वापस गए पैर फिर नज़र नहीं आते थे। कुछ आँखें थीं, जो कहना तो बहुत कुछ चाहती थीं, पर उन्होंने कभी कुछ कहा नहीं था। कहीं कोई काजल लगी आँख उलझी थी। किसी खिड़की में हल्की-सी कोई परछाईं। किसी में इशारा करती कोई उँगली। कहीं शरमा के लौटते हुए अधूरे अरमान और कहीं किसी मजबूरी की कोई दास्तान… अजीब दिन थे।

नीम के झरते हुए फूलों के दिन। कनेर में आती पीली कलियों के दिन। न बीतनेवाली दोपहरियों के दिन। और फिर एक के बाद एक, लगातार बीतते हुए दिशाहीन दिन…

It seemed almost as if his entire kasbah with its many windows gazed at him in silent supplication. Sometimes, the impressions of retraced steps could be made out in the dust after a light shower; heavy rains fi lled up these little depressions with water as though they were tear-laden eyes that would dry up with time and disappear forever. Some eyes longed to say so much; but not a word did they utter. Here, a kajal-rimmed eye beckoned; there, a silhouette stood framed by a window; a gesturing fi nger or shamefaced yearnings, homeward-bound, driven by a tale born of despair…

Those were strange times.

Days passed like neem fl owers drifting to the ground.

Days that resembled yellow kaner blossoms.

Days that seemed like endless afternoons.

And then came days bereft of any direction…

– an extract from Partitions

(Translated by AMEENA KAZI ANSARI)

No translation is a mundane task but literary translation is particularly creative. It is a creative and challenging endeavour that yields nearly the same pleasure of creation as that of creative writing. That is why many creative writers have also been great translators.

In the re-creation of the original, in fact, another ‘original’ is born because the new text has to stand on its own with its own appeal. Only then will it acquire a special attraction. To strike a blend of beauty, readability and ‘fidelity’ is what the translator has to strive for. Sometimes the translator only focuses on the shell and not the kernel of the original and, what is achieved then is a literal and word-for-word translation but not literary translation that tries to capture varied nuances present in the language of the original text. A translation may end up being an adaptation due to the difficulty of the task. Ayappa Panikkar, the great Malayalam poet, rightly emphasised on total ‘interiorisation’ of the original text before attempting its translation.

Each type of translation has its own register to follow. While literary translation may use figurative language and words with unbridled connotations of meaning, scientific translation attempts to use words which are precise and free from alternative meanings. There is no emotion in scientific translation. Medical and legal translation too demand simple and accurate transmission of information and not a play of language and meaning. While all kinds of translations are challenging, it is literary translation that accords the translator the maximum range of creativity to totally transform the ‘original’ into becoming a powerful experience in yet another language.

संबाद / Exercises

1. अनुवाद हमारी भाषा का विस्तार करता है, कैसे?

How does translation enrich our language?

2. किसी अंग्रेज़ी समाचार को हिंदी में अपने शब्दों में लिखिए।

Rewrite in English any news story given in Hindi.

3. आपको कब और क्यों अनुवाद की आवश्यकता महसूस होती है?

When and why do you feel the need for translation?

4. बहुभाषी होना आपके जीवन में किस प्रकार सुविधा प्रदान करता है?

How does being multilingual prove useful to you?

5. निम्नलिखित वाक्यों को ध्यान से पढ़िए -

  • रोशनाई फीकी है।
  • चेहरा फीका है।
  • चाय फीकी है।
  • मौसम फीका है।

चारों वाक्यों में ‘फीका’ अलग-अलग अर्थों में आया है। इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद करें। Read the following sentences.

  • This train runs from Delhi to Guwahati.
  • Water runs from tap to tub.
  • He runs in the field.
  • She runs a dance school in the evening.

The word ‘runs’ has been used in different contexts. Translate these sentences into Hindi.

6. ‘Flying planes can be dangerous’ - इस वाक्य के कितने अर्थ निकल सकते हैं?

7. खेलों से जुड़े बीस शब्द चुनिए और लिखिए। अपनी मातृभाषा या अंग्रेज़ी में अनुवाद कीजिए। Write twenty words from the field of sports - now translate these into your mother tongue or Hindi.

8. आप सामान खरीदते हैं, कइयों की पैकिंग में कुछ सूचनाएँ दी हुई होती हैं, वे कई भाषाओं में होती हैं, ऐसा करने के क्या फायदे हैं?

On most of the items that we purchase the instructions are given in many languages. How does this help us?

9. अनुवाद दुनिया को समझने की एक खिड़की है। अपने विचार लिखिए। Translation has opened a window to the world. Give your views.

10. अनुमान से बताएँ कि इस चित्र में आदमी क्या कह रहा है?

What is your interpretation of the following picture? What is the man saying? Write in Hindi or in English.

The Knowledge Commission of the Government of India has recommended the setting up of a National Translation Mission. This is in recognition of the value of translation towards building bridges amongst the multiple communities flourishing within their own language and cultural worlds. This is also to facilitate exchange of literature and knowledge between them and the world outside.



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