अध्याय 03 मीडिया

मीडिया से रु-ब-रू

मीडिया लेखन के विभिन्न रूपों से एक

अनौपचारिक परिचय

समूह कार्य

1. मीडिया को जानें

D सभी विद्यार्थी एक गोल चक्कर में खड़े होंगे।

D अपने दाएँ-बाएँ के विद्यार्थी से बातचीत करेंगे। एक-दूसरे के बारे में दो नयी बातें जानेंगे।

D सब के साथ अपनी जानकारी बाँटेंगे।

2. चर्चा के बिंदु

D आपने एक-दूसरे के बारे में कैसे जाना?

D खबर या सूचना दूसरों तक कैसे पहुँचेगी?

D मिलकर चर्चा करेंगे कि विद्यालय/अपने आस-पास की कोई खबर सब तक कैसे पहुँचाएँग?

D नगर, राज्य, देश, विदेश की जानकारी कैसे पहुँचेगी?

D किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति, घटना, नयी पुस्तक / पत्र / पत्रिका या फ़िल्म आदि से ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को कैसे परिचित कराएँगें।

3. अपना अखबार बनाएँ

D एक सप्ताह के समाचार पत्रों में से कुछ समाचार, कुछ . फ़ीचर, कुछ साक्षात्कार, कुछ समीक्षा के उदाहरण ढूँढ़कर अपना अखबार बनाएँ।

कलम रुकती नहीं …

सुंदरतम सागर है वह जिसे देखा नहीं अभी हमने सुंदरतम बच्चा बड़ा हुआ नहीं अभी तक सुंदरतम दिन अपने वे हैं जिन्हें जिया नहीं हमने अभी और वे बेपनाह उम्दा बातें, जो सुनाना चाहता हूँ तुम्हें मैं अभी कही जानी हैं

  • नाज़िम हिकमत

(अपने कठोरतम समय में उपर्युक्त आशावादी पंक्तियाँ लिखने वाले नाज़िम हिकमत (1901-1963) का जन्म तुर्की के सेलोनिका शहर में हुआ। अपनी माँ की राष्ट्रवादी भावनाओं से प्रेरित होकर वे तुर्की के स्वतंत्रता-संग्राम से जुड़े। तत्कालीन सत्ता के पीछे पड़ने पर अन्य कई बुद्धिजीवियों की तरह ही वे भी अनातोलिया पहुँचे। वहाँ वे किसानों और मज़दूरों के संपर्क में आए। इन आत्मीय संबंधों ने उनकी कविताओं के विद्रोही तेवर को रोका नहीं बल्कि धार दी।)

खबर लिखना बहुत ही रचनात्मक काम हो सकता है। उतना ही रचनात्मक, जितना कविता लिखना; दोनों का उद्देश्य मनुष्य को और समाज को ताकत पहुँचाना है। खबर में लेखक तथ्यों को बदल नहीं सकता, पर दो या दो से अधिक तथ्यों के मेल से असलियत खोल सकता है।

-रघुवीर सहाय

I. मीडिया लेखन का संक्षिप्त परिचय**

अभिजीत की तरह अखबार या अन्य समाचार माध्यमों के ज़रिये अपने आस-पास की समस्याओं और सार्वजनिक मसलों को उठाने वालों की कमी नहीं है। अखबार या किसी अन्य समाचार माध्यम जैसे टी.वी. चैनल आदि पर जन-समस्याओं और सार्वजनिक मसलों के उठने पर सरकार, प्रशासन और नीति-निर्माताओं का ध्यान उस ओर जाता है। दरअसल, समाचार माध्यमों का एक प्रमुख काम लोगों की समस्याओं को उठाना और सरकार / प्रशासन का ध्यान उस ओर खींचना है। इसके साथ ही वे लोगों को सूचनाएँ और समाचार देने, उन्हें जागरूक बनाने और उनका मनोरंजन करने का कार्य करते हैं। एक लोकतांत्रिक समाज में समाचार माध्यम लोगों को सार्वजनिक महत्त्व के मुद्दों और प्रश्नों से अवगत कराने के अलावा उस पर विभिन्न विचारों और विश्लेषणों की प्रस्तुति के ज़रिये अपनी राय बनाने में मदद करते हैं।

यही कारण है कि समाचार मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और मुक्त समाचार मीडिया के बिना गतिशील और स्वस्थ लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती है। समाचार मीडिया के ज़ारिये नागरिकों को सरकार और अपने जन-प्रतिनिधियों के कामकाज के बारे में जानकारी और उनके प्रदर्शन का आकलन करने का अवसर मिलता है। इस जानकारी और आकलन के आधार पर ही नागरिक अपने जन-प्रतिनिधियों और सरकार का चुनाव करते हैं। इस तरह समाचार मीडिया अभिजीत और उसके जैसे लाखों-करोड़ों लोगों को नागरिक बनने और नागरिक की भूमिका निभाने में सक्रिय मदद करता है। एक अर्थ में मीडिया न सिर्फ़ लोगों को एक-दूसरे से जुड़ने और अपने सरोकारों को साझा करने में मदद करता है बल्कि वह हमारे लिए दुनिया की खिड़की भी खोलता है।

स्पष्ट है कि मीडिया के लिए लेखन का मुख्य उद्देश्य लोगों तक जानकारियाँ और सूचनाएँ पहुँचाना, उन्हें जागरूक और शिक्षित करना और उनका मनोरंजन करना है। यह निश्चय ही एक सर्जनात्मक कार्य है लेकिन साहित्यिक

गतिविधि 14/Activity 14

किन्हीं तीन अखबारों के पहले पृष्ठ और संपादकीय पढ़ें।

D तीनों अखबारों में दिए समाचारों की प्राथमिकता और महत्त्व पर कक्षा में चर्चा करें।

D तीनों अखबारों में से खबरों को काटकर चिपकाते हुए अपना नया अखबार तैयार करें।

Read the first page and the editorial page of any three newspapers.

  • Which news items have been given prominence in all the three? Discuss in class.
  • Make your own newspaper with cuttings from the three newspapers.

लेखन की सृजनात्मकता से अलग यह एक ऐसी सृजनात्मकता है जिसमें कल्पनाशीलता के बजाय यथार्थ और तथ्यों की सीधी और सच्ची प्रस्तुति पर अधिक ज़ोर दिया जाता है। इसके अलावा मीडिया लेखन के भी कई रूप हैं। उनकी संरचना, शैली, भाषा और प्रस्तुति में भी अंतर होता है। ऐसे लेखन के कई रूप साहित्यिक सृजनात्मकता के बिलकुल नज़दीक बैठते हैं जबकि कई अन्य रूपों में सृजनात्मकता भिन्न प्रकार की होती है।

मीडिया के लिए लेखन की शुरुआत करने से पहले मीडिया लेखन के विभिन्न रूपों (जैसे संपादक के नाम पत्र), उनकी विशेषताओं, उनकी ज़रूरतों और शर्तों तथा अपेक्षाओं से परिचित होना ज़रूरी है। इसके लिए सबसे पहले मीडिया के विभिन्न रूपों को समझना ज़रूरी है क्योंकि हर मीडिया की अलग माँग और विशेषता होती है। मीडिया कई प्रकार का होता है। उसके प्रमुख प्रकार हैं -

  • प्रिंट मीडिया - इसमें समाचारपत्र, पत्रिकाएँ और पुस्तकें शामिल हैं। इसे पढ़ने के लिए अक्षर और भाषा का ज्ञान ज़रूरी है। जनसंचार के माध्यमों में यह सबसे पुराना माध्यम है। प्रकाशित शब्दों की अपनी विशेष साख होती है। प्रिंट माध्यमों के लिए लेखन में गहराई, विश्लेषण क्षमता के साथ बेहतर भाषा और शैली ज़रूरी है।

  • दृश्य-श्रव्य माध्यम - इसमें रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा, टेप रिकार्डर / म्यूज़िक प्लेयर आदि आते हैं। इनके दर्शकों / श्रोताओं के लिए पढ़ा-लिखा होना या साक्षर होना ज़रूरी नहीं है। इनमें ध्वान और दृश्यों को प्रमुखता दी जाती है। इन माध्यमों की लोकप्रियता और प्रभाव बहुत अधिक है। इनके लिए लेखन करते हुए माध्यम विशेष की प्रकृति का ध्यान रखना ज़रूरी है।

  • नए माध्यम (न्यू मीडडया) - नए माध्यमीं में इटरनट और माबाइल आदि प्रमुख हैं। इनकी लोकप्रियता बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। इनकी खूबी यह है कि ये जनसंचार माध्यम होते हुए भी अपने ऑडियंस के बीच अंतरक्रिया (इंटरएक्टीविटी) का अवसर उपलब्ध कराते हैं। इन माध्यमों के लिए लेखन करते हुए इस तथ्य को हमेशा ध्यान में रखना पडता है।

मीडिया के इन सभी प्रकारों के बीच के फ़र्क और उनकी ताकत और सीमाओं को समझकर ही मीडिया लेखन किया जा सकता है। लेकिन यह समझदारी ही पर्याप्त नहीं है। मीडिया के विभिन्न रूपों के बीच एक और अंतर उनके विषय-वस्तु (कंटेंट) के आधार पर भी किया जाता है। इस अंतर का प्रमुख आधार समाचार है। इस आधार पर मीडिया को दो हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है।

  • समाचार मीडिया — समाचार मीडिया का दायरा समाचार और विचार के प्रकाशन और प्रसारण तक सीमित होता है। समाचार मीडिया में देश-दुनिया में घटने वाली घटनाओं, समस्याओं और विचारों की तथ्यपूर्ण रिपोर्ट के साथ उनका तार्किक विश्लेषण, उन पर विचारपरक आलेखों और टिप्पणियों का प्रकाशन और प्रसारण होता है। समाचार मीडिया के लिए किए जाने वाले लेखन को ही पत्रकारिता कहा जाता है। इसी तरह समाचार मीडिया में काम करने वाले पत्रकार कहे जाते हैं। समाचार मीडिया में तथ्यों के वस्तुनिष्ठ, निष्पक्ष और सही (एक्यूरेट) प्रस्तुति पर ज़ोर दिया जाता है। तथ्यों और विचारों के बीच एक स्पष्ट विभाजन रेखा रखी जाती है और दोनों के घालमेल से परहेज किया जाता है। इसमें कल्पनाशीलता की गुंजाइश नहीं होती है बल्कि यहाँ स्पष्ट अभिव्यक्ति ही सृजनात्मकता होगी।
  • गैर समाचार मीडिया गैर समाचार मीडिया के तहत बाकी सभी मीडिया आता है जिसमें समसामयिक विषयों और समाचारों से इतर मनोरंजन और सामान्य तथा विशेष रुचि के विषयों पर सामग्री का प्रकाशन और प्रसारण किया जाता है। गैर समाचार मीडिया में मनोरंजन को प्रमुखता दी जाती है। इस मीडिया में सृजनात्मक साहित्य से लेकर हल्की-फुल्की कथा-कहानियों, विवरणात्मक फ़ीचरों गीत-संगीत और मनोरंजन कार्यक्रमों तक सभी कुछ के लिए जगह होती है। इसमें कल्पनाशीलता और प्रयोग पर जोर दिया जाता है। इस मीडिया के लिए लेखन में सृजनात्मकता का होना बहुत जरूरी है। अगर आप में कहानी, गीत या कविता, नाटक आदि लिखने की रुचि और प्रतिभा है तो गैर समाचार मीडिया आपके लिए उपयुक्त जगह है, जहाँ आप अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर सकते हैं।

लेकिन हम यहाँ स्वयं को समाचार मीडिया के लिए लेखन और अनुवाद तक सीमित रखेंगे क्योंकि गैर समाचार माध्यमों के लिए लेखन के वास्ते जिस सृजनात्मक लेखन की आवश्यकता होती है, उसकी विस्तृत चर्चा अन्य अध्यायों में की गई है। समाचार मीडिया के लिए लेखन के कई रूप हैं। इनमें सबसे प्रमुख समाचार लेखन है। इसके अलावा फ़ीचर, साक्षात्कार, लेख / टिप्पणी, समीक्षा, संपादक के नाम पत्र, स्तंभ लेखन आदि को भी समाचार माध्यमों में काफ़ी जगह मिलती है। समाचार माध्यमों के लिए लेखन को पत्रकारीय लेखन भी कहते हैं जिसकी अपनी कुछ खास विशेषताएँ हैं। लेकिन इसकी विशेषताओं की चर्चा करने से पहले पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूपों के बीच के अंतर को समझना ज़रूरी है। पत्रकारीय लेखन को मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है -

1. समाचार लेखन - समाचार ताज़ा घटनाओं, समस्याओं, मुद्दों और उन पर लोगों या महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के विचारों/प्रतिक्रियाओं की तथ्यपूर्ण रिपोर्ट है। इसका एक निश्चित ढाँचा और शैली होती है। इसमें किसी घटना, समस्या, मुद्दे या महत्त्वपूर्ण

व्यक्तियों के कथन या बयान को बिना किसी जोड़-तोड़ या उलटफेर के तथ्यपूर्ण, वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष तरीके से ज्यों का त्यों पेश करने की कोशिश की जाती है। आमतौर पर समाचारपत्रों में समाचार के पृष्ठों पर प्रकाशित होने वाले राजनीतिक, आर्थिक, खेल, स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय समाचारों का लेखन करते हुए इन बातों का ध्यान रखा जाता है। समाचारपत्रों में समाचार लेखन का जिम्मा उन पत्रकारों पर होता है जिन्हें संवाददाता (रिपोर्टर / करसपोंडेंट) कहा जाता है। इनमें कुछ संवाददाता उस समाचारपत्र के पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी होते हैं जबकि कुछ अंशकालिक संवाददाता होते हैं जिन्हें स्ट्रिंगर भी कहा जाता है। वे निश्चित मानदेय पर समाचारपत्र या चैनल से जुड़े होते हैं। चूँकि समाचार लेखन में तात्कालिकता (समय-सीमा) और तथ्यों की शुद्धता (एक्यूरेसी) पर बहुत ज़ोर दिया जाता है, इसलिए समाचारपत्र/समाचार चैनल आमतौर पर अपने संवाददाताओं के अलावा किसी स्वतंत्र पत्रकार या लेखक (फ्रीलांसर) से समाचार नहीं लेते हैं।

2. विचारपरक लेखन - समाचारपत्रों में संपादकीय या संपादकीय के सामने के पृष्ठ (ऑप एड) पर विभिन्न समसामयिक घटनाओं, समस्याओं, मुद्दों और वक्तव्यों पर विचारपरक लेखों, टिप्पणियों और स्तंभ लेखों का प्रकाशन किया जाता है। इसके

तहत अखबार / पत्रिका संपादकीय का प्रकाशन करते हैं जो किसी घटना, समस्या, मुद्दे या विषय पर उस अखबार की अपनी राय होती है। इसे उस अखबार के संपादक और उनके सहयोगियों की टीम लिखती है। लेकिन किसी का नाम नहीं दिया जाता है। इसके अलावा विभिन्न विषयों / मुद्दों पर अखबार से जुड़े वरिष्ठ पत्रकारों के साथ-साथ स्वतंत्र लेखकों, टिप्पणीकारों, विशेषज्ञों और स्तंभकारों के लेख प्रकाशित किए जाते हैं। ज़ाहिर है कि इन लेखों, टिप्पणियों और स्तंभों में उनके लेखकों के अपने विचार होते हैं जो उनके नाम से छपते हैं। इसके अलावा संपादकीय पृष्ठ पर ही पाठकों के ‘संपादक के नाम पत्रों का प्रकाशन भी किया जाता है।

3. फ़ीचर लेखन - फ़ीचर एक ऐसी पत्रकारीय रचना है जिसमें उसके लेखक को समाचारों के विपरीत आत्मनिष्ठ (सब्जेक्टिव) लेखन यानी अपनी राय और अपने अवलोकन को प्रकट करने की छूट होती है। फ़ीचर का मुख्य उद्देश्य अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं का मनोरंजन होता है। इसे समाचार लेखन की शैली में नहीं लिखा जाता और इसमें सृजनात्मकता की पर्याप्त गुंजाइश होती है। यह मूलतः रूपात्मक लेखन है

15 अगस्त 1947 के हिंदुस्तान का संपादकीय मरदाने साज की साधिका

जनसत्ता, 20 अप्रैल 2008 में प्रकाशित एक .फीचर

जिसमें संबंधित विषय के अनछुए, मानवीय और विवरणात्मक पहलू को चित्रात्मक लेखन के ज़रिये पेश करने की कोशिश की जाती है। फ़ीचर भी कई प्रकार के होते हैं। समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में फ़ीचर के लिए अलग पृष्ठ या पूरा परिशिष्ट होता है। इसके अलावा आजकल कुछ हल्के-फुल्के विषयों या ताज़ा घटनाओं / समस्याओं / मुद्दों के मानवीय पहलू को केंद्रित कर समाचार फ़ीचर लेखन का चलन भी बढ़ा है।

किसी एक दिन शाम को टी.वी. और रेडियो पर समाचार सुनिए और अगले दिन समाचारपत्र पढ़िए। इन तीनों में कौन से समाचार ऐसे थे जो सभी में थे? तीनों में समाचारों को भाषा, शैली, प्रस्तुति और चयन में क्या फ़र्क नज़र आया? तीनों माध्यमों की खूबियों और कमियों को लिखिए।

Listen to and view the news on radio and T.V. one evening. Next day read the same news in the newspaper. Which news items were common in all the three? What difference did you notice in their language, style, presentation and selection? Write the strengths and weaknesses of all the three mediums.

II. मीडिया लेखन

मीडिया लेखन की सृजनात्मकता कई मायनों में साहित्यिक सृजनात्मकता से भिन्न होती है। मीडिया लेखन एक निश्चित अनुशासन के तहत पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं को सूचना देने, उन्हें जागरूक बनाने और उनका मनोरंजन करने के उद्देश्य से किया जाता है। एक अर्थ में यह पाठकों की ज़रूरत, उनकी अपेक्षा और रुचियों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है। इसमें लेखक और पत्रकार को न सिर्फ़ समय-सीमा का ध्यान रखना पड़ता है बल्कि लेखन की शैली और भाषा के प्रयोग में एक निश्चित सीमा के भीतर रहकर काम करना पड़ता है।

मीडिया लेखन की कुछ प्रमुख विशेषताएँ या ध्यान में रखने योग्य बातें निम्नलिखित हैं -

  • सरल और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग समाचार मीडिया के पाठकों / दर्शकों / श्रोताओं में निरक्षर और कम पढ़े-लिखे से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों तक सभी शामिल होते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए ऐसी सरल और आम बोलचाल की भाषा के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जाता है जिसे सभी आसानी से समझ सकें। मीडिया लेखन की शैली छोटे और सरल वाक्यों के साथ सीधे और स्पष्ट शब्दों में सूचना और विचार प्रस्तुत करने की होती है। यहाँ क्लिष्ट, पारिभाषिक और तकनीकी शब्दों, सामासिक पदों से बचना चाहिए।

  • माध्यम की प्रकृति के अनुसार लेखन - मीडिया के लिए लेखन करते हुए माध्यम विशेष जैसे अखबार/पत्रिका, टी.वी. चैनल, रेडियो या इंटरनेट की प्रकृति का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। प्रिंट माध्यमों के लिए लेखन टी.वी. या रेडियो के लिए लेखन से अलग होता है। इसी तरह इंटरनेट के लिए लेखन इन सबसे अलग होता है। हर माध्यम की अपनी शक्ति और सीमा है। सभी की माँग अलग है और उनके लिए लेखन करते हुए उसका ध्यान रखना ज़रूरी है। प्रिंट माध्यमों में अखबार का प्रकाशन 24 घंटे में और पत्रिकाओं का प्रकाशन एक सप्ताह से लेकर एक महीने के अंतराल पर होता है। इस कारण अखबार या पत्रिका के पत्रकार के पास किसी टी.वी. / रेडियो / इंटरनेट साइट की तुलना में काफ़ी समय होता है क्योंकि टी.वी. या रेडियो पर हर आधे या एक घंटे में समाचारों का प्रसारण होता है जबकि इंटरनेट पर हर समय खबरें अपडेट होती रहती हैं।

इसलिए प्रिंट माध्यमों के लिए लेखन अपेक्षाकृत पर्याप्त शोध के बाद अधिक विस्तार और गहरे विश्लेषण के साथ किया जाता है। लेकिन टी.वी. और रेडियो के लिए लेखन में अधिक विस्तार और गहरे विश्लेषण के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं होती है। टी.वी. के लिए लेखन करते हुए दृश्यों का अधिक ध्यान रखना पड़ता है। इसमें दृश्यों के अनुसार और उनसे जुड़े तथ्यों और सूचनाओं को रखते हुए लेखन करना पड़ता है जबकि रेडियो के लिए लेखन बातचीत की शैली में शब्दों के ज़रिये चित्र खींचते हुए करना चाहिए।

  • पत्रकारिता के सिद्धांतों का पालन ज़रूरी - समाचार मीडिया के लिए लेखन करते हुए पत्रकारिता के उन सिद्धांतों का पालन अवश्य किया जाना चाहिए जो मीडिया और उनके ऑडियंस के बीच विश्वास बनाए रखने के लिए ज़रूरी हैं। पत्रकारिता के इन सिद्धांतों में से सबसे प्रमुख है तथ्यों की शुद्धता (एक्यूरेसी) की गारंटी के लिए उनकी भलीभाँति छानबीन और कई स्रोतों से जाँच-पड़ताल और पुष्टि करना। तथ्यों के साथ तोड़-मरोड़ नहीं की जानी चाहिए। इसी तरह तथ्यों को वस्तुनिष्ठ तरीके से यानी बिना किसी पूर्वाग्रह, झुकाव, निजी सोच या विचारों से प्रभावित हुए प्रस्तुत करना चाहिए। इसके साथ ही मीडिया के लिए लेखन में निष्पक्षता का होना भी बहुत ज़रूरी है। किसी घटना, समस्या, मुद्दे या विषय के सभी पक्षों को उनके महत्त्व के अनुसार जगह देनी चाहिए। किसी विवादास्पद तथ्य या स्वयं न देखी घटना के संबंधित स्रोत को उद्धत करते हुए लिखना चाहिए।

मीडिया लेखन के प्रमुख रूप

मीडिया लेखन के विभिन्न रूपों की हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं। इस खंड में उसके कुछ प्रमुख रूपों की विस्तार से चर्चा करेंगे। हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि मीडिया लेखन के इन प्रमुख रूपों के लिए लिखने से पहले कैसी तैयारी की जानी चाहिए और लेखन के दौरान किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए?

समाचार रिपोर्ट

मीडिया लेखन का एक प्रमुख और महत्त्वपूर्ण रूप समाचार लेखन है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि समाचार मीडिया का सबसे प्रमुख कार्य समाचार देना है। इन समाचारों के ज़ारिये ही हम देश-दुनिया, अपने समाज और आस-पास के घटनाक्रमों और परिवर्तनों से अवगत हो पाते हैं। इससे हमें न सिर्फ़ अपना जीवन जीने में मदद मिलती है बल्कि हम अपनी सामाजिक भूमिका और नागरिक जीवन में भागीदारी भी बेहतर तरीके से निभा पाते हैं। सच यह है कि समाचार मीडिया और समाचारों के बिना आधुनिक समाज और नागरिक जीवन की कल्पना ही नहों की जा सकती है। यही कारण है कि आज दुनियाभर में समाचार मीडिया का तेज़ी से विस्तार हो रहा है। समाचारों को जल्दी से जल्दी (कई बार कुछ मिनटों और सेकेंडों में) पहुँचाने के लिए नए-नए समाचार माध्यम और तकनीक सामने आ रही हैं।

लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि हर घटना समाचार माध्यमों में समाचार नहीं बन पाती है? इसी तरह से कुछ समाचार अन्य समाचारों की तुलना में ज़्यादा महत्त्वपूर्ण क्यों होते हैं? ऐसा क्यों होता है कि समाचार माध्यमों में समाचारों के चयन और उन्हें महत्त्व देने के मामले में काफ़ी विभिन्नता दिखाई पड़ती है? आखिर हर समाचारपत्र दूसरे समाचारपत्र से, हर टी.वी. चैनल दूसरे टी.वी. चैनल से और रेडियो स्टेशन-वेबसाइट, दूसरे रेडियो स्टेशन और वेबसाइट से अलग क्यों दिखता है? क्या समाचारों के चयन और प्रस्तुति का कोई निश्चित आधार या पैमाना नहों है? आखिर कुछ घटनाएँ, समस्याएँ या विचार समाचार क्यों बन जाते हैं जबकि कुछ अन्य घटनाएँ, समस्याएँ और विचार समाचार क्यों नहीं बन पाते?

निश्चय ही, समाचार माध्यमों में समाचारों के चयन के कुछ निश्चित आधार और पैमाने होते हैं जिन पर खरा उतरकर ही कोई घटना, समस्या या विचार समाचार बन पाता है। इस आधार या पैमाने को समाचार मूल्य (News Value) कहा जाता है। समाचार माध्यमों में काम करने वाले संवाददाता और पत्रकार किसी घटना, समस्या और विचार में इसी समाचार मूल्य को खोज करते हैं और जिस घटना, समस्या या विचार में अन्य घटनाओं, समस्याओं और विचारों की तुलना में अधिक समाचार मूल्य होता है, उसके समाचार के रूप में चुने जाने की संभावना बढ़ जाती है।

किसी घटना, समस्या या विचार में निहित समाचार मूल्य का निर्धारण कई कारकों द्वारा होता है। इनमें से कुछ प्रमुख कारकों की संक्षेप में चर्चा ज़रूरी है ताकि समाचार मूल्य के बारे में बेहतर समझदारी बनाई जा सके।

  • नवीनता / परिवर्तन - किसी घटना, समस्या या विचार के समाचार बनने के लिए ज़रूरी है कि वह नया या ताज़ा हो। कहा भी जाता है कि समाचार वह है, जो नया और ताज़ा है। किसी समाचारपत्र के लिए पिछले चौबीस घंटों में घटी घटनाएँ समाचार हैं तो चौबीस घंटे के टी.वी. समाचार चैनल, रेडियो स्टेशन या समाचार वेबसाइट के लिए पिछले घंटों में घटी घटनाएँ देखें गतिविधि/Activity 20 पृष्ठ 138 समाचार हैं। नया और ताज़ा का आशय यह भी है कि राजनीति, समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति में होने वाले बदलाव या परिवर्तन भी समाचार बन सकते हैं। हालाँकि इन क्षेत्रों में होने वाले बदलाव की गति धीमी होती है। इसी तरह, किसी पुरानी घटना, समस्या या मुद्दे के बारे में अगर कोई नयी जानकारी या तथ्य सामने आता है तो वह भी समाचार है। उदाहरण के लिए, आज अगर द्वितीय विश्वयुद्ध या ऐसी ही किसी महत्त्वपूर्ण घटना, गांधी जी या उन जैसे ही किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व और रंगभेद या उस जैसी किसी महत्त्वपूर्ण समस्या या मुदे के बारे में शोध या गोपनीय दस्तावेज़ों के सामने आने से कोई नयी जानकारी मिलती है, तो वह समाचार है।

  • प्रभाव - किसी घटना, समस्या या विचार के समाचार बनने के लिए उसका नया या ताज़ा होना ही पर्याप्त नहीं है। समाचार बनने के लिए ज़रूरी है कि उसका प्रभाव अधिक से अधिक लोगों पर पड़ रहा हो। जिस घटना, समस्या या विचार का प्रभाव जितने बड़े जनसमूह पर पड़ता है, वह उतनी ही बड़ी खबर बनती है। जैसे एक प्राइवेट स्कूल अपनी फ़ीस 10 प्रतिशत बढ़ाने की घोषणा करता है, वहीं राज्य सरकार अपने स्कूलों में फ़ीस 5 प्रतिशत बढ़ाने का फ़ैसला करती है। इन दोनों समाचारों में राज्य सरकार का फ़ैसला ज्यादा महत्त्वपूर्ण और बड़ा समाचार है क्योंकि एक प्राइवेट स्कूल की तुलना में राज्य सरकार के निर्णय का असर बड़े जनसमुदाय पर पड़ेगा।

  • निकटता - किसी घटना, समस्या या विचार के समाचार बनने के लिए एक और महत्त्वपूर्ण कारक उसका लक्षित पाठक या दर्शक/श्रोता समुदाय से निकट होना है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि लोगों की अधिक दिलचस्पी अपने आसपास की घटनाओं या समस्याओं के बारे में जानने की होती है। लोग जहाँ रहते हैं, उस शहर, कस्बे या गाँव के बाद उनकी दिलचस्पी अन्य करीबी शहरों, कस्बों या गाँवों के बारे में जानने की होती है। यही कारण है कि समाचार माध्यम अपने लक्षित पाठक/ श्रोता/दर्शक समूह को ध्यान में रखकर उन घटनाओं/समस्याओं/विचारों को समाचार के रूप में महत्त्व देते हैं जो भौगोलिक रूप से उनके निकट हों। समाचारपत्रों में स्थानीय समाचारों को प्रमुखता देने के पीछे यही वजह होती है। लेकिन निकटता केवल भौगोलिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक भी होती है। स्वाभाविक तौर पर पाठकों / श्रोताओं / दर्शकों की दिलचस्पी उन भारतीयों के बारे में भी जानने की होती है जो विदेशों में बसे हैं। इसीलिए अमेरिका, ब्रिटेन, मध्यपूर्व के देशों की वे खबरें भारतीय समाचार माध्यमों में प्रमुखता से स्थान हासिल करती हैं जिनका संबंध भारतीयों या भारतीयों पर पड़ने वाले प्रभाव से होता है। भारतीय अमेरिकी बॉबी

जिंदल का अमेरिकी राज्य लुइसियाना का गवर्नर बनना भारतीय समाचार माध्यमों के लिए बड़ी खबर बना था जबकि अन्य अमेरिकी राज्यों के गवर्नर का चुनाव खबर नहीं बन पाया।

नवीनता + प्रभाव + निकटता $=$ समाचार

हालाँकि किसी घटना, समस्या या विचार के समाचार बनने में कई और कारक सक्रिय भूमिका निभाते हैं लेकिन अधिकांश समाचार इन तीन प्रमुख कारकों - नवीनता, प्रभाव और निकटताके जोड़ और आपसी अंतर्क्रिया से ही बनते हैं। कोई घटना, समस्या या विचार समाचार बनने लायक है या नहीं, यह जानने के लिए उसे इन तीन कसौटियों पर कसकर देखना चाहिए -

(i) वह घटना, समस्या या विचार कितना नया या ताज़ा है? उसके कारण यथास्थिति में कितना बदलाव या परिवर्तन हुआ है?

(ii) उसका कितने बड़े जनसमुदाय पर और कितना अधिक प्रभाव पड़ा है या पड़ेगा?

(iii) यह हमारे पाठक/दर्शक/ श्रोता वर्ग के कितने निकट है?

अगर तीनों प्रश्नों का उत्तर सकारात्मक है यानी वह घटना, समस्या या विचार न सिर्फ़ ताज़ा है बल्कि उसका प्रभाव एक बड़े समुदाय पर पड़ रहा है और वह हमारे लक्षित पाठक/ श्रोता / दर्शक समूह के भी नज़दीक है तो उसका समाचार के रूप में चुना जाना तय है। इसी तरह अगर कोई घटना ताज़ा है लेकिन उसका प्रभाव बहुत कम लोगों पर पड़ रहा है और वह लक्षित पाठक वर्ग से भी दूर की है तो उसके समाचार के रूप में चयन की संभावना कम हो जाती है।

शिलांग के एक गाँव के बच्चे स्कूल जाते हुए

गतिविधि 16/Activity 16

अपने स्कूल या मुहल्ले की उन घटनाओं या समस्याओं की सूची बनाइए जो समाचार बन सकते हों। इनमें से किस घटना या समस्या में नवीनता / परिवर्तन, प्रभाव और निकटता का तत्त्व सर्वाधिक है? वे कौन सी दो घटनाएँ या समस्याएँ हैं जो समाचार बनने के सर्वाधिक उपयुक्त हैं और क्यों? अपने पोर्टफ़ोलियो के लिए लिखिए।

Make a list of events / issues related to your locality / school which have news value. Which of these has most of the following features - newness, impact, proximity, change? Which two from your list can be made into a news report, and why? Write for your portfolio.

स्पष्ट है कि समाचार बनने के लिए किसी घटना, समस्या या विचार में इन तीनों तत्त्वों का होना आवश्यक है। समाचार माध्यम समाचारों के चयन और उन्हें प्राथमिकता देते हुए इन्हीं तीन कारकों का ध्यान रखते हैं। इसी आधार पर प्रमुख समाचारों या सुर्खियों (Headlines) का चयन होता है। सैकड़ों समाचारों के बीच वही समाचार प्रथम पृष्ठ पर पहली बड़ी खबर के रूप में जगह हासिल कर पाता है जिसमें ये तीनों कारक अन्य समाचारों की तुलना में सबसे अधिक होते हैं।

इसके अलावा भी अन्य कारक हैं जो किसी घटना, समस्या या विचार को समाचार बना सकते हैं

  • असामान्यता (Unusualness) कुछ असामान्य या विचित्र घटनाएँ, समस्याएँ और विचार भी समाचार बन जाते हैं। कहा भी जाता है कि कुत्ता आदमी को काटे तो यह समाचार नहीं है लेकिन अगर आदमी कुत्ते को काट ले तो यह समाचार है क्योंकि यह असामान्य घटना है। ऐसा अक्सर नहीं होता है। यही कारण है कि जब जुडवाँ सिर वाले बच्चे पैदा होते हैं या एक साथ चार या पाँच बच्चे पैदा होते हैं तो वह समाचार बन जाता है।

  • जाने-माने लोग या हस्तियाँ (Important people / Celebrities) महत्त्वपूर्ण लोगों और जानी-मानी हस्तियों के बारे में जानने की इच्छा सभी में होती है। इसलिए महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठे व्यक्तियों और विभिन्न क्षेत्रों में अपने उल्लेखनीय प्रदर्शन से कामयाबी हासिल करने वाले खिलाड़ियों, सिने कलाकारों, लेखकों, उद्योगपतियों आदि की सार्वजनिक गतिविधियों, उनसे जुड़ी घटनाओं या वक्तव्यों और सफलताओं-असफलताओं पर आधारित समाचार भी समाचार माध्यमों में स्थान हासिल करते हैं।

  • टकराव / संघर्ष / हिंसा वे घटनाएँ, समस्याएँ और विचार भी समाचार बन सकते हैं जिनसे टकराव, संघर्ष और हिंसा जुड़ी हो या उसकी आशंका जुड़ी हो। टकराव और संघर्ष लोगों में भी हो सकता है, समुदायों और सम्प्रदायों के स्तर पर भी हो सकता है और राष्ट्रों के बीच भी हो सकता है। इसी तरह हिंसा किसी भी रूप में सामने आ सकती है। वह व्यक्तिगत, सामूहिक, साम्प्रदायिक और युद्ध के रूप में प्रकट हो सकती है। ये समाचार इसलिए है क्योंकि इनकी जानकारी से पाठक / दर्शक / श्रोता न सिर्फ़ सचेत और सतर्क हो सकता है बल्कि वह अपने बचाव के उपाय भी कर सकता है।

समाचार लेखन की प्रक्रिया

यह जान लेने के बाद कि समाचार क्या है, अगला सवाल यह उठता है कि समाचार लिखा कैसे जाए? यहाँ यह जानना बहुत ज़रूरी है कि समाचार लेखन की एक खास शैली है। समाचार लेखन की सबसे लोकप्रिय और प्रचलित शैली उल्टा पिरामिड शैली है। उल्टा पिरामिड शैली में समाचारों को लिखते हुए यह ध्यान रखा जाता है कि सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य सबसे पहले आए और उसके बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में अन्य तथ्य/सूचनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं। स्पष्ट है कि इस शैली में किसी घटना/समस्या/विचार का ब्यौरा कालानुक्रम के अनुसार लिखने के बजाय सबसे नवीनतम और सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना से लिखना शुरू किया जाता है।

इसे उल्टा पिरामिड शैली इसलिए कहा जाता है कि यह शैली पारंपरिक कहानी लेखन की शैली के ठीक उलट है। कहानी लेखन में घटनाओं को कालानुक्रम में लिखा जाता है यानी एक राजा था। उसका एक बेटा था। फिर कहानी में नायिका आती है जो पड़ोसी देश की राजकुमारी है। राजकुमार और राजकुमारी में प्रेम हो जाता है। लेकिन एक अन्य पड़ोसी देश का राजा राजकुमारी से विवाह करने की इच्छा रखता है और वह राजकुमारी के देश पर आक्रमण कर देता है। लेकिन राजकुमारी की रक्षा के लिए उसका प्रेमी राजकुमार भी सेना लेकर बचाव में सामने आ जाता है। फिर दोनों में युद्ध होता है और प्रेमी राजकुमार विजयी होता है। इसके बाद राजकुमार और राजकुमारी का विवाह होता है और उसके पिता उसे सिंहासन सौंप देते हैं। फिर दोनों सुखपूर्वक राज करने लगते हैं। यह कहानी एक पिरामिड की तरह है जिसमें कहानी का धीरे-धीरे विकास होता है और आखिर में क्लाइमेक्स आता है।

लेकिन समाचार लेखन में इस पिरामिड को उलट दिया जाता है और कहानी सीधे क्लाइमेक्स या नतीजे से शुरू होती है। इसके बाद घटते हुए महत्त्व के अनुसार कहानी के अन्य तथ्यों को प्रस्तुत किया जाता है। सबसे कम महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचनाएँ उल्टे पिरामिड के सबसे निचले हिस्से में होती हैं।

उल्टा पिरामिड शैली क्यों?

  • यह शैली पाठकों / श्रोताओं / दर्शकों की उत्सुकता और उनके जानने की इच्छा के अनुकूल है। कोई भी व्यक्ति किसी घटना/समस्या/विचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य/सूचना को सबसे पहले जानना चाहता है।
  • इस शैली की दूसरी खूबी यह है कि अगर पाठकों के पास समय का अभाव है और वे जल्दी में समाचार जानना चाहते हैं तो समाचार के शुरुआती पैराग्राफ को पढ़कर वे जान सकते हैं कि पूरा मामला क्या है?
  • इस शैली की तीसरी खूबी यह है कि यह समाचार माध्यमों के संपादकों को उपलब्ध स्थान और समय के अनुसार समाचार के संपादन की सुविधा प्रदान करता है।

उल्टा पिरामिड का ढाँचा

उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का एक खास ढाँचा होता है। इसमें समाचार को तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है -

( क ) मुखड़ा या इंट्रो/लीड (Intro/Lead)
( ख ) खबर विस्तार (Body)
( ग ) समापन (End)

इस विभाजन से स्पष्ट है कि समाचार के प्रारंभिक हिस्से को मुखड़ा (Intro), मध्य हिस्से को समाचार विस्तार (Body) और आखिरी हिस्से को समापन (End) कहते हैं। मुखड़ा समाचार का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि

इसमें समाचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है। मुखड़े से ही समाचार का मिज़ाज और उसके प्रवाह की दिशा तय होती है। अगर मुखड़ा आकर्षक, दिलचस्प और उत्सुकता पैदा करने वाला होगा तो पाठक उस पूरे समाचार को पढ़ना चाहेगा।

एक आदर्श मुखड़ा कैसा होना चाहिए, इसे लेकर कोई एक राय नहीं है और न ही इसका कोई फार्मूला है। आमतौर पर यह माना जाता है कि एक आदर्श मुखड़े में समाचार की सबसे महत्त्वपूर्ण सूचना / जानकारी आ जानी चाहिए और उसे 35 से 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिए। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है और कभी-कभी किसी बड़ी खबर में मुखड़ा दो पैराग्राफ का भी होता है। लेकिन मुखड़े के पहले पैराग्राफ में दो या तीन से अधिक वाक्य नहीं होने चाहिए।

उदाहरण के लिए एक समाचार के इस मुखड़े को देखिए -

नयी दिल्ली, 10 मार्च (वार्ता)। देशभर में आज से केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सी.बी.एस.ई.) की दसवीं और बारहवों की बोर्ड परीक्षाएँ शुरू हो गईं। राजधानी के विभिन्न स्कूलों में दो लाख से अधिक छात्र-छात्राओं ने परीक्षा दी। सी.बी. एस.ई. के अध्यक्ष ने परीक्षा शांति से संपन्न होने पर संतोष जाहिर किया है।

मुखड़े के बाद समाचार की बॉडी में मुखड़े में कही गई बातों को विस्तार से और उसके अन्य पहलुओं/ तथ्यों को प्रस्तुत किया जाता है। समाचार की बॉडी को भी ऐसे लिखा जाना चाहिए जिससे उस समाचार के सभी महत्त्वपूर्ण पहलू / तथ्य अपने महत्त्व के क्रम में और स्पष्ट रूप में सामने आ जाएँ। समाचार के मुखड़े और उसकी बॉडी के बीच तारतम्यता होनी चाहिए। बॉडी में उस घटना / समस्या/विचार की पृष्ठभूमि भी दी जानी चाहिए जिससे उसका अर्थ स्पष्ट हो सके। जैसे किसी सड़क दुर्घटना का समाचार लिखते हुए उसकी यह पृष्ठभूमि बॉडी में दी जाए तो उसे बिलकुल नया अर्थ मिल जाएगा कि उस चौक पर रेड लाइट खराब होने के कारण पिछले दो महीनों में यह पाँचवीं दुर्घटना है।

उल्टा पिरामिड शैली में समाचार का समापन कहीं भी किया जा सकता है। समाचार के सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू या तथ्य को मुखड़े में प्रस्तुत करने के बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में तथ्यों / सूचनाओं को देते हुए उसे तार्किक रूप से कहीं भी समाप्त किया जा सकता है। समापन के लिए अलग से घोषणा करने की ज़रूरत नहीं होती। दरअसल, समाचार लिखते हुए छह प्रश्नों के उत्तर देने की कोशिश की जाती है - क्या हुआ है? किसके साथ हुआ है या कौन शामिल है? कब हुआ? कहाँ हुआ है? कैसे हुआ है और क्यों हुआ है? इसे छह ककार-क्या, कौन, कब, कहाँ, कैसे और क्यों - भी कहा जाता है। छह ककारों के उत्तर से ही कोई समाचार पूर्ण होता है।

आई.जी.आई. हवाई अड्डे पर अगले महीने से कम दिखेगी भीड़-भाड़

क्या - हवाई अड्डे पर भीड़ कम होने की उम्मीद

कब - अगले महीने के अंत तक यानी जून 2008 तक

कहाँ - दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट की बैठक में

कौन - मोंटेक सिंह आहलुवालिया

क्यों - 1.2 करोड़ यात्रियों की क्षमता में 2.4 करोड़ को भीड़

कैसे - तीसरे रनवे की शुरुआत जल्द करके नयी दिल्ली, 12 मई (भाषा)। आई.जी.आई. हवाई अड्डे पर भीड़-भाड़ अगले महीने से कम होने की उम्मीद है। देश के इस प्रमुख हवाई अड्डे पर नया बुनियादी ढाँचा, टर्मिनल और नयी पार्किंग अगले महीने के अंत तक शुरू हो जाएगी। दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (डायल) ने एक बैठक में यह जानकारी दी। यह बैठक योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलुवालिया ने बुलाई थी।

एक घंटे की बैठक में डायल के अधिकारियों ने किए जा रहे काम के बारे में जानकारी दी। आहलुवालिया ने कहा कि सरकार को आव्रजन की सुरक्षा की स्टाफिंग के दो मुद्दों पर देखना है और हम सरकार को रिपोर्ट देंगे। उन्होंने कहा- जून के अंत तक महत्त्वपूर्ण सुधार होना चाहिए और अगले छह माह में और कदम उठाए जाएँगे। इसलिए इस साल सर्दियों से पहले भीड़ - भड़ाके की समस्या के हल होने की उम्मीद है।

इसके साथ ही समाचार माध्यमों और उनमें काम करने वाले पत्रकारों को अपने कामकाज में पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता बरतनी चाहिए। उन्हें किसी भी व्यक्ति, संगठन या संस्था, कंपनी या विभाग से कोई अनुचित लाभ, मदद या धन नहीं लेना चाहिए। समाचार माध्यमों को समाचार या रिपोर्ट प्रकाशित / प्रसारित करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वे समाज में साम्प्रदायिक, जातिगत, स्थानिक और क्षेत्रीय विद्वेष न फैलाएँ और न ही ऐसी घटनाओं की सनसनीखेज, भड़काऊ और एकपक्षीय रिपोर्टिंग करें। उन्हें किसी समाचार या जानकारी के प्रकाशन / प्रसारण से पहले उसे कम से कम दो स्रोतों से ज़रूर पुष्ट कर लेना चाहिए। अफवाहों और सुनी-सुनाई बातों को समाचार नहीं बनाना चाहिए। किसी भी व्यक्ति, संगठन, संस्था या कंपनी के खिलाफ़ रिपोर्ट लिखने से पहले उससे उसका पक्ष ज़रूर लेना चाहिए। पत्रकारों को प्रेस से संबंधित विभिन्न कानूनों जैसे मानहानि, न्यायालय की अवमानना, संसदीय विशेषाधिकारों, सरकारी गोपनीयता कानून और कॉपीराइट कानूनों का ध्यान रखना चाहिए।

यहाँ यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि पत्रकारीय आचार संहिता (Code of Conduct) वास्तव में समाचार माध्यमों की ओर से खुद को नियंत्रित (Self-regulation) करने का प्रयास है। समाचार माध्यम खुद ही इसे विकसित करते हैं और उसका पालन करते हैं। समाचार माध्यमों के अलावा पत्रकारों की प्रोफेशनल संस्थाएँ, प्रेस परिषद् जैसे स्वायत्त संगठन और संस्थाओं ने भी आचार संहिताएँ तैयार की हैं। इन आचार संहिताओं में अधिकांश बातें समान होती हैं। लेकिन समाचार माध्यमों पर इनका पालन करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं होती है। इसके बावजूद समाचार माध्यमों और उनके पत्रकारों से उनका पालन करने की अपेक्षा की जाती है। आचार संहिता का पालन करके ही समाचार माध्यम और उनके पत्रकार लोगों का विश्वास हासिल कर सकते हैं।

1. 15 अगस्त 1947 का हिंदुस्तान, 2. 1780 में प्रकाशित होने वाला भारत का पहला अखबार बंगाल गजट, 3. कोलकाता से प्रकाशित बनारसीदास चतुर्वेदी द्वारा संपादित जुलाई 1947 का विशाल भारत

साक्षात्कार

साक्षात्कार (Interview) को ‘समाचार की फैक्टरी का कच्चा माल’ माना जाता है। यहाँ हम नौकरी या दाखिले के लिए होने वाले साक्षात्कार की नहीं बल्कि पत्रकारीय साक्षात्कार की बात कर रहे हैं। एक पत्रकार समाचार से जुड़े तथ्यों को जुटाने की प्रक्रिया में प्रत्यक्षदर्शियों से लेकर अधिकारियों तक विभिन्न लोगों से साक्षात्कार करता है। इन साक्षात्कारों से प्राप्त तथ्यों के आधार पर ही वह समाचार लिखता है। इसीलिए साक्षात्कार को ‘समाचार की फैक्टरी का कच्चा माल’ कहा जाता है।

पत्रकार किसी व्यक्ति से सीधे या टेलीफ़ोन पर तथ्य, विचार या उसकी भावनाएँ जानने के लिए प्रश्न पूछता है। यह आम बातचीत या मुलाकात से इस मायने में अलग है कि इसका एक निश्चित उद्देश्य (Clear Purpose) और ढाँचा (Structure) होता है। पत्रकारीय साक्षात्कार एक तरह की कला है और निरंतर अभ्यास और अनुभव से ही इसमें दक्षता हासिल की जा सकती है। एक सफल साक्षात्कार के लिए न सिर्फ़ काफ़ी तैयारी करनी पड़ती है बल्कि उसके लिए पर्याप्त ज्ञान, कूटनीति, संवेदनशीलता, धैर्य और अकसर साहस की भी ज़रूरत पड़ती है।

साक्षात्कार के प्रकार

साक्षात्कार के कई प्रकार हैं। इनमें से साक्षात्कार के कुछ प्रमुख प्रकारों के बारे में जानना ज़रूरी है। इससे साक्षात्कारकर्ता को न सिर्फ़ तैयारी करने में सहूलियत होती है बल्कि वह साक्षात्कार की प्रकृति के अनुसार प्रश्न पूछता है। साक्षात्कार के कुछ प्रमुख प्रकार इस तरह हैं -

(i) सूचनात्मक साक्षात्कार (Informational Interview)

सूचनात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य तथ्यों की जानकारी लेना या पुष्टि करना होता है। यह साक्षात्कार का सबसे प्रारंभिक और बुनियादी रूप है। इसमें संबंधित व्यक्ति से बहुत बुनियादी किस्म के प्रश्न पूछे जाते हैं जिससे किसी घटना / समस्या के बारे में बुनियादी तथ्यों की जानकारी मिल सके। इस तरह के साक्षात्कार में आमतौर पर छह ककारों क्या, कौन, कब, - कहाँ, कैसे और क्यों से संबंधित प्रश्न पूछे - जाते हैं। इस तरह का साक्षात्कार सामान्य तौर पर भुक्तभोगी, प्रत्यक्षदर्शी, पुलिस अधिकारी, अग्निशमन अधिकारी, जनसंपर्क अधिकारी, चिकित्सा अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी आदि से लिया जाता है। सूचनात्मक साक्षात्कार से प्राप्त जानकारी का इस्तेमाल समाचार के कच्चे माल की तरह किया जाता है।

(ii) विचारपरक साक्षात्कार (Opinion Interview) विचारपरक साक्षात्कार का उद्देश्य साक्षात्कारदाता (Interviewee) के विचार जानना होता है। इसके ज़रिये पत्रकार यह जानना चाहता है कि वे किसी खास मुद्दे / विषय पर क्या सोचते हैं? इस तरह के साक्षात्कार से प्राप्त विचारों को समाचार में साक्षात्कारदाता के नाम के साथ उद्धृत करते हैं। विचारपरक साक्षात्कार उस मामले, घटना या समस्या से जुड़े किसी व्यक्ति, राजनेता, विशेषज्ञ और आम आदमी से भी किया जा सकता है। इस साक्षात्कार में आमतौर पर सवाल कुछ इस तरह पूछे जाते हैं - इस घटना / फ़ैसले / मुद्दे पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है? इसे आप कैसे देखते हैं? आप इससे सहमत या असहमत क्यों हैं? आपकी राय में इसका विकल्प क्या है? आप क्या करने जा रहे हैं? नीचे पर्यावरणविद् माइक पांडेय का साक्षात्कार दिया जा रहा है। प्रश्नों पर ध्यान दीजिए और सोचिए कि आप प्रश्नकर्त्ता होते तो आपके सवाल क्या होते?

(iii) भावनात्मक साक्षात्कार (Emotional Interview)

भावनात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य लोगों की भावनाएँ जानना है। भावनात्मक साक्षात्कार का विचारपरक साक्षात्कार से घनिष्ठ संबंध है। पाठक रूखे तर्कों और तथ्यों के बजाय आक्रोश, दुख या खुशी की जुबान से कहीं ज़्यादा नज़दीकी महसूस करते हैं। आमतौर पर यह देखा गया है कि लोग अपनी भावनाओं को पाठकों/ दर्शकों / श्रोताओं से बाँटने के लिए सहजता से तैयार हो जाते हैं। ऐसे साक्षात्कार के दौरान साक्षात्कारकर्ता को बार-बार टोका-टाकी करने से बचना चाहिए। उसे खुद को पृष्ठभूमि में रखना चाहिए और इशारों से साक्षात्कारदाता को अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। ऐसे साक्षात्कार के दौरान साक्षात्कारकर्ता को न सिर्फ़ मौके की नज़ाकत का ध्यान रखना चाहिए बल्कि पूरी संवेदनशीलता के साथ प्रश्न पूछने चाहिए। ‘आप कैसा महसूस कर रहे हैं’ जैसे सवाल पूछने के बजाय तथ्यपरक प्रश्न पूछने चाहिए। रघुवीर सहाय ने अपनी एक कविता में इस सवाल को उठाया है

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे

हम समर्थ शक्तिवान

हम एक दुर्बल को लाएँगे

एक बंद कमरे में

उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं?

सोचिए

बताइए

आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है।

-कैमरे में बंद अपाहिज, रघुवीर सहाय

(iv) विश्लेषणपरक साक्षात्कार (Analytical Interview)

जब किसी मुद्दे या विषय को लेकर परस्पर विरोधी विचार और व्याख्याएँ हों तो उस विषय / मुद्दे के किसी जानकार या विशेषज्ञ से साक्षात्कार के ज़रिये (विश्लेषण / व्याख्या) प्रस्तुत करके उसका अर्थ स्पष्ट किया जा सकता है या उस मुद्दे / विषय का समाहार (Overview) पेश किया जा सकता है। ऐसे साक्षात्कार का उद्देश्य विभिन्न विचारों का सार संक्षेपण और व्याख्या करना और उन्हें अधिक व्यापक, ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भों में प्रस्तुत करना है। विश्लेषणपरक साक्षात्कार के लिए साक्षात्कारदाता का चुनाव

सोच-समझकर करना चाहिए। इसके साथ ही साक्षात्कारकर्ता को उस विषय / मुद्दे की अच्छी जानकारी होनी चाहिए, तभी वह उपयुक्त प्रश्न पूछ पाएगा। इस साक्षात्कार में साक्षात्कारदाता विशेषज्ञ को अपनी बात रखने का पूरा मौका देना चाहिए।

गतिविधि 17/Activity 17

अगर आपको चर्चित खिलाड़ी/ संगीतज्ञ । लेखक का साक्षात्कार लेने का अवसर मिले तो आप उस साक्षात्कार के लिए जानकारियाँ जुटाने की योजना बनाइए। आप पुस्तकालय और इंटरनेट से उनके बारे में जानकारी इकट्ठा कीजिए और साथ ही अपने मित्रों से उनकी उपलब्धियों, खूबियों और कमियों के बारे में पूछिए। इन सभी तथ्यों और जानकारियों के आधार पर पूछे जाने वाले कुछ प्रश्न तैयार कीजिए।

If you are given a chance to interview a well-known sportsperson / musician / writer, make a plan of how you will collect information related to the interviewee. You may use the local library / internet. Talk to your friends also about the accomplishments, strengths and weaknesses of the said celebrity. Based on all the information collected, write some questions for the interview.

आपने पर्यावरण और के लिए भी खतरनाक है और पशु-पक्षी और वनस्पतियों प्रकृति का साथ ही क्यों इसकी चिंता पूरी मानवता को का लगातार घटना किस चुना? इन्हें लेकर आपकी करनी चाहिए। क्या चिंताएँ हैं? खतरे का संकेत है? इसके हमारे अस्तित्व के लिए कैसा लिए कसूरवार कौन है? बचपन से ही मैं कुदरत का खतरा? दीवाना रहा हूँ। बाद में लगा कि कोई अदृश्य शक्ति मुझे यह राह चुनने को प्रेरित कर रही है। अब लगता है इसी काम के लिए बना हूँ। जहाँ तक चिंताओं की बात है, प्रकृति का अंधाधुंध दोहन, जंगलों को उजाड़ा जाना और पर्यावरण के प्रति इंसानी लापरवाही मुझे चिंतित करती है। आदमी की करतूतों से बीते बीस सालों में प्रकृति को भयंकर नुकसान हुआ है। इससे धरती का संतुलन गड़बड़ा गया है। यह हमारे अस्तित्व के बारे में सोचना चाहिए। इस्तेमाल से कई जीवों के लिए पर्यावरण और प्रकृति की हालत खराब होने से ही धरती का पारा चढ़ रहा है। हवा में प्रदूषण के कारण नयी-नयी बीमारियाँ फैल रही हैं। बच्चों को दमा इसकी कीमत हमें आज नहीं तो हो रहा है। बाढ़ से लेकर सूखे कल चुकानी पड़ेगी। दुनिया में बिगड़ने के कारण ही हैं। मनुष्य हैं, जिन पर शोध नहीं हुआ का इस्तेमाल पर्यावरण बचाने के उपयोगी हैं, इस बाबत जानकारी हरियाली या प्राकृतिक संसाधनों कि ये इंसान के हाथ से निकल के साथ जानवरों के अस्तित्व जाएँ। कीटनाशकों के अंधाधुंध के कारण पशु-पक्षियों और वनस्पतियों की तीन सौ प्रजातियाँ रोज़ाना धरती से लुप्त हो रही हैं। यह बेहद गंभीर समस्या है। जैसी समस्या प्राकृतिक संतुलन नब्बे फीसदी वनस्पतियाँ ऐसी अकेला ऐसा जीव है जो दिमाग है। ये आदमी के लिए कितनी लिए कर सकता है। आदमी को जुटानी चाहिए। कहीं ऐसा न हो गया है। यह हमारे अस्तित्व के बारे में सोचना चाहिए। इस्तेमाल से कई जीवों के लिए आदमी के लाभ और स्वार्थ

प्रश्नों के बारे में

प्रश्न कई तरह के होते हैं। एक अच्छे और सफल साक्षात्कार में हर तरह के प्रश्न होने चाहिए।

तथ्यात्मक प्रश्न - वे प्रश्न जिनसे किसी तथ्य की जानकारी या पुष्टि की जाती है। इन प्रश्नों में क्या, कब, कहाँ और कौन शामिल होते हैं। इनके आधार पर बंद प्रश्न (Close-ended Question) भी पूछे जाते हैं जिनका उत्तर ‘हाँ या ना’ में या कुछ शब्दों / वाक्यों में सीमित होता है।

व्याख्यात्मक प्रश्न - वे प्रश्न जिनसे किसी घटना, समस्या या मुदे को स्पष्ट करने या उसकी व्याख्या करने में मदद मिलती है। इन प्रश्नों में कैसे और क्यों शामिल होते हैं। इनके आधार पर तैयार प्रश्नों को खुले प्रश्न (Open-ended Question) भी कहा जाता है। इनका उद्देश्य साक्षात्कारदाता को अपनी बात कहने या विचार प्रकट करने का अवसर देना होता है।

फॉलोअप प्रश्न - वे प्रश्न जो किसी प्रश्न के उत्तर से पैदा हो जाते हैं। इनकी पहले से तैयारी नहीं की जा सकती है लेकिन साक्षात्कार के दौरान सतर्क और सचेत रहने पर आप ऐसे प्रश्न पूछ सकते हैं। इससे साक्षात्कार में स्वाभाविकता आती है और उसका प्रवाह सहज हो जाता है।

निश्चित प्रश्न - हर साक्षात्कार में कुछ आम प्रश्न होते हैं और कुछ खास प्रश्न। आम प्रश्न लगभग सभी साक्षात्कारों में होते हैं लेकिन निश्चित या खास प्रश्न वे हैं जो साक्षात्कारदाता विशेष को ध्यान में रखकर तैयार किए जाते हैं। वे प्रश्न साक्षात्कार को खास बना देते हैं। इन प्रश्नों को तैयार करने में शोध की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

(v) व्यक्तिपरक साक्षात्कार (Profile Interview)

इस साक्षात्कार का उद्देश्य साक्षात्कारदाता के निजी जीवन, उसके कामकाज, उसकी उपलब्धियों और पसंद-नापसंद आदि को सामने लाना होता है। यह एक अलग तरह का साक्षात्कार है जिसमें पूरा फोकस साक्षात्कारदाता पर होता है। आमतौर पर यह साक्षात्कार किसी भी क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के साथ किया जाता है। लेकिन आम आदमी जैसे सब्जीवाला, पोस्टमैन, लोक कलाकार आदि के साथ भी साक्षात्कार हो सकता है। इस साक्षात्कार के लिए पर्याप्त तैयारी और शोध ज़रूरी है अन्यथा बातचीत नीरस और अधूरी हो जाएगी। इस साक्षात्कार की सफलता बहुत हद तक आपकी तैयारी, शोध और प्रश्नों के साथ साक्षात्कारदाता के साथ आपके सहज संबंध पर निर्भर करती है। आपका प्रश्न जितना दिलचस्प होगा, अलग होगा, आपको उतना ही दिलचस्प उत्तर मिलेगा। साक्षात्कार के दौरान उत्तरों को ध्यान से सुनिए क्योंकि हमेशा ऐसी संभावना रहती है कि साक्षात्कारदाता कोई ऐसी बात कह देगा जिसे पकड़कर आप आगे बढ़ सकेंगे।

भावनात्मक साक्षात्कार का मुझे इंडिया गेट पर ले जाने नहीं,थोड़ा-थोड़ा करता हूँ।

एक उदाहरण आई है।

नीना : आपने खाना क्यों छोड़ दिया? कितने कमज़ोर हो गए? खान साहेब : खाने का मन नहीं करता। तुम तो घर पर सभी बच्चों को बोलकर गई थीं। सभी बहुत खयाल करते थे। तुम दोनों से सभी डरते हैं। इज़्ज़त भी बहुत करते हैं। आखिर तुम्हीं ने हमारे सपने को पूरा करने का कदम उठाया।

इंडिया गेट की बात है, हिंदुस्तान की बात है

नीना : खान साहेब कैसे हैं? खान साहेब : (लंबी साँस, थोड़ी सी आँख खोली, फिर पूछा) कौन?

नीना : मैं नीना झा दिल्ली से आई हूँ। आप क्यों बीमार हो गए? कैसे चलेंगे दिल्ली?

खान साहेब : थोड़ा कमज़ोर हो गया हूँ। (लंबी साँस, फिर बोले) ठीक हो जाऊँगा। थोड़ा जूस पीता हूँ फिर तुम्हारे साथ चलूँगा।

नीना : आपने तैयारी कर ली है?

खान साहेब : अरे! क्या बोलती हो। मैंने बड़ी मेहनत की है। मेहताब, नैयर, ज़ामिन, काज़िम, नाज़िम सभी रियाज़ कर रहे हैं। सबों को कह दिया है ठीक से

नीना : नहीं खान साहेब, हम तो सिर्फ़ एक ज़रिया हैं? खान साहेब : नहीं बेटा, (आँख बंद कर ली कुछ देर बाद फिर आँखें खोलीं और मेहताब से बोले) इन्हें जानते हो न? नीना : इंडिया गेट के अलावा आपकी क्या ख्वाहिश है? खान साहेब : कुछ नहीं, यह सपना तुम पूरा कर रही हो।

नीना : बीमारी में रियाज़ तो छोड़ दिया होगा? खान साहेब : नहीं, नीना : आपकी बेगम कहाँ है?

(शहनाई को बेगम कहते हैं)

खान साहेब : बेगम घर पर हैं। मैं यहाँ आ गया वे घर पर अकेली हैं।

नीना : उन्हें ले आऊँ?

खान साहेब : नहीं, नहीं, उन्हें आराम करने दो।

नीना : आपको पता है लता जी, उषा जी सभी ने आपके लिए संदेश दिया है, आप ठीक हो जाएँ।

खान साहेब : अरे लता, वह बहुत अच्छी है। मिलने को दिल करता है।

नीना : सभी आएँगे।

खान साहेब : ज़रूर आएँगे। (और रोने लगे। उनके गाल $\frac{\text { मीडिया }}{\text { Media }}$

पर आँसू गिरने लगे) खाने में नीना : आप विश्वनाथ मंदिर बोले : मैं ठीक होता हूँ फिर दिक्कत होने की वजह से डॉक्टर जाएँगे। तुम्हारे साथ चलूँगा। तुम मेरे उन्हें पाइप से खाना खिला रहे थे। फिर नाक पर लगी पट्टी को हटाने की कोशिश करते हुए बेटे मेहताब से बोले : ज़रा पैर दबाओ। ताकत नहीं लगाना।

खान साहेब : ज़रा ठीक होने दो। मंदिर की दीवार ज़रूर छूकर आऊँगा। (आँख बंद कर ली) जब हमने विदा माँगी, तो पहले आँख बंद रखी फिर बगल में बैठना…

(उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की नीना झा से की गई यह बातचीत आखिरी बातचीत है, हिंदुस्तान से साभार)

साक्षात्कार की तैयारी और शोध

साक्षात्कार की सफलता आपकी तैयारी और शोध पर निर्भर करती है। साक्षात्कारदाता से संपर्क करने से पहले आपको उस विषय पर पर्याप्त जानकारी इकट्ठा कर लेनी चाहिए। उनसे जुड़े तथ्यों और जानकारियों को इकट्ठा करने के लिए आप उनके परिवार के सदस्यों, मित्रों, सहकर्मियों और उनके कार्यों से परिचित लोगों से मिलकर बातचीत कर सकते हैं। आप उन लिखित दस्तावेज़ों-लेखों, पुराने साक्षात्कारों, पुस्तकों और पत्रों को भी खंगाल सकते हैं जिनसे साक्षात्कारदाता के कार्यों और उनके बारे में दूसरे लोगों के विचारों का पता चल सकता है। तथ्यों और जानकारियों को जुटाने के इस क्रम में आप अपने पुस्तकालय के अलावा इंटरनेट का भी सहारा ले सकते हैं। पुस्तकालय और इंटरनेट सूचनाओं के बहुत महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं और साक्षात्कार की तैयारी के दौरान उनका इस्तेमाल ज़रूर करना चाहिए।

साक्षात्कार के बारे में जानकारियाँ जुटाने के क्रम में विभिन्न जानकारियों और तथ्यों को एक-दूसरे से मिलाकर जाँचते रहना चाहिए। साक्षात्कार के लिए निकलने से पहले विभिन्न तथ्यों और जानकारियों की जाँच-परख और पुष्टि कर लेने से गलतियों की संभावना कम हो जाती है। दूसरी ओर, अगर साक्षात्कारदाता कोई मशहूर और चर्चित व्यक्ति न होकर सामान्य व्यक्ति है तो भी हमें साक्षात्कार से पहले उनके बारे में जानकारियाँ ज़रूर इकट्डी करनी चाहिए। इसमें परिवार के सदस्य, उनके अंतरंग मित्र और सहकर्मी आपकी काफ़ी मदद कर सकते हैं।

प्रश्न कैसे तैयार करें?

साक्षात्कार की तैयारी करते हुए किसी भी साक्षात्कारकर्ता के लिए सबसे बड़ी चुनौती उन प्रश्नों की सूची तैयार करना है, जो साक्षात्कारदाता से पूछे जाएँगे। हालाँकि शुरुआत में किसी भी नए साक्षात्कारकर्ता के लिए प्रश्न तैयार करने में थोड़ी कठिनाई होती है लेकिन अनुभव के साथ यह कठिनाई दूर होती चली जाती है। इसके साथ ही अगर आपने साक्षात्कारदाता के

बारे में पर्याप्त शोध किया है, जानकारियाँ और तथ्य इकट्टे किए हैं तो प्रश्नों की सूची तैयार करना बहुत आसान हो जाता है। प्रश्नों की सूची तैयार करते हुए कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है -

  • साक्षात्कार का उद्देश्य क्या है? यानी आप इस साक्षात्कार से क्या निकालना चाहते हैं? इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ते ही आपको वे प्रश्न तैयार करने में कोई कठिनाई नहीं होगी, जो साक्षात्कारदाता से पूछे जाने चाहिए।

  • कल्पना कीजिए कि अगर आप साक्षात्कारकर्ता न होकर उस साक्षात्कार के पाठक, दर्शक या श्रोता होते तो आप साक्षात्कारदाता से क्या जानना चाहते? याद रखिए कि हर साक्षात्कार के निश्चित पाठक हैं (जैसे अपने स्कूल की पत्रिका के लिए लिए जाने वाले साक्षात्कार के पाठक स्कूल के छात्र, शिक्षक और कर्मचारी हैं)। हर साक्षात्कारकर्ता अपने पाठकों का प्रतिनिधि होता है और उसे साक्षात्कारदाता से वही प्रश्न पूछने चाहिए जो अवसर मिलने पर पाठक पूछना चाहते।

  • प्रश्न तैयार करते हुए यह ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि साक्षात्कार के लिए कुल कितना समय मिला है और उस समय में कितने प्रश्न पूछे जा सकते हैं? प्रश्नों में विविधता होनी चाहिए लेकिन उनके बीच सहज संबंध और बहाव भी ज़रूरी है। ऐसा न हो कि एक प्रश्न किसी एक मुद्दे पर और अगला प्रश्न बिलकुल दूसरे विषय पर। इससे साक्षात्कार में स्वाभाविकता खत्म हो जाती है।

  • एक समय में एक ही प्रश्न पूछना चाहिए। एक साथ दो या तीन प्रश्न पूछने से बचना चाहिए। इससे साक्षात्कारदाता के साथ-साथ पाठक भी भ्रम में पड़ जाता है।

  • प्रश्नों की सूची तैयार करते हुए प्रारंभिक प्रश्न ऐसे होने चाहिए जो साक्षात्कार को सामान्य बनाए। कठिन प्रश्नों को अंत के लिए रखना चाहिए। प्रश्नों के बीच तारतम्यता होनी चाहिए।

दोहराने की ज़रूरत नहीं है कि आपके साक्षात्कार की सफलता आपके प्रश्नों पर टिकी है। प्रश्न तैयार करते हुए उन पर खूब सोचना और विचारना चाहिए।

साक्षात्कार के दौरान क्या करें?

साक्षात्कार के दौरान भी कई सावधानियाँ रखना ज़रूरी है। इनका ध्यान रखकर साक्षात्कार की प्रक्रिया को सरल, सहज और सफल बनाया जा सकता है।

  • संभव हो तो साक्षात्कार को टेप रिकार्डर पर ज़रूर रिकार्ड करें। इससे साक्षात्कारदाता की कही गई बातों को तथ्यपूर्ण तरीके से पेश करने में आसानी होती है। आपके पास बातचीत का रिकार्ड भी रहता है। अगर टेप रिकार्डर न हो तो साक्षात्कार के दौरान नोट्स लेते रहना चाहिए।

  • साक्षात्कारदाता से मिलने पर उनका अभिवादन करें और उन्हें साक्षात्कार के उद्देश्य के बारे में बताएँ। बातचीत की शुरुआत कुछ हल्के-फुल्के प्रश्नों से करें ताकि साक्षात्कारदाता सहज महसूस कर सकें। साक्षात्कार के अंत में उन्हें समय देने के लिए धन्यवाद ज़रूर दें। आपके पास कैमरा हो तो उनका फोटो लीजिए अन्यथा फोटो माँगिए।

  • साक्षात्कार की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप साक्षात्कारदाता की बातों को कितने ध्यान से सुनते हैं। आप ध्यान से सुनेंगे तो साक्षात्कारदाता भी उत्साहित होगा और आप भी उनके उत्तरों में से उपयुक्त प्रश्न पूछ पाएँगे। साक्षात्कार के बीच में बार-बार टोका-टाकी से बचना चाहिए। इससे साक्षात्कारदाता हतोत्साहित होता है।

  • साक्षात्कार के दौरान साक्षात्कारदाता के प्रति आपका व्यवहार आदरपूर्ण और बगैर किसी पूर्वाग्रह के सद्भावपूर्ण होना चाहिए। प्रश्न पूछते हुए उत्तेजित न हों और न ही ऊँची आवाज़ में प्रश्न पूछें। साक्षात्कार के दौरान सहजता और स्वाभाविकता बहुत ज़रूरी है। प्रश्न पूरे विश्वास से पूछें।

साक्षात्कार के बाद

साक्षात्कार के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य नोट्स या टेप के आधार पर उसे लिखना या प्रस्तुत करना होता है। अगर आपने नोट्स सावधानी से लिए हैं तो उसे लिखने में मुश्किल नहों होगी। साक्षात्कार के बाद उसे जितनी जल्दी हो सके लिख लिया जाए, उस समय सभी बातें याद होती हैं, इसलिए उसे लिखने में कोई कठिनाई नहीं होती है।

साक्षात्कार को लिखने के बाद उसे दो बार पढ़िए। उसमें भाषा, शैली और व्याकरण संबंधी गलतियों को ठीक कीजिए। यह भी देखिए कि क्या साक्षात्कारदाता ने अपने उत्तरों में किसी बात को दोहराया है या कोई तथ्य कई बार आया है या कोई बात अस्पष्ट है? यहाँ स्पष्ट रूप से संपादन की आवश्यकता होती है। दोहराव और अस्पष्टता को हटा देना बेहतर है।

1. साक्षात्कार का लेखन मुख्यतः दो प्रकार से किया जा सकता है। सबसे लोकप्रिय तरीका यह है कि साक्षात्कार की शुरुआत में साक्षात्कारदाता की शख्सियत का संक्षेप में परिचय देते हुए पाठक को बताएँ कि साक्षात्कार की वजह क्या है? जैसे उनकी कोई ताज़ा उपलब्धि। इसके बाद बताएँ कि यह साक्षात्कार कहाँ और किसने लिया? फिर पूरा साक्षात्कार ‘प्रश्न और उत्तर’ शैली में लिखें।

2. दूसरा तरीका साक्षात्कार को फ़ीचर शैली में लिखने का है। इसमें प्रश्न और उत्तर के बजाय साक्षात्कार को बातचीत की शैली में पूरी आत्मीयता के साथ लिखा जाता है। इसमें उत्तरों के साथ उनके मनोभावों और शारीरिक भाषा (Body Language) का भी उल्लेख होता है। इसमें प्रश्न और उत्तर अलग-अलग होने के बजाय एक-दूसरे में घुले-मिले होते हैं। ज़रूरी न हो तो प्रश्नों का उल्लेख नहीं होता है।

**3.**साक्षात्कार आप चाहे जिस शैली में लिखें लेकिन यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि वह चुस्त लेकिन सहज रूप से प्रवाहित हो। पाठक को पढ़ते हुए कठिनाई न हो। एक सफल साक्षात्कार में सूचना, विचार, शिक्षा और मनोरंजन का उचित मिश्रण बहुत ज़रूरी है।

समीक्षा

समीक्षा से हमारा आशय किसी पुस्तक, फ़िल्म, संगीत-नृत्य कार्यक्रम, पेंटिंग प्रदर्शनी और नाट्य मंचन के बारे में पाठकों, श्रोताओं या दर्शकों को यह बताने से है कि उसकी क्या खूबियाँ हैं, उसमें नया और महत्त्वपूर्ण क्या है और उसे क्यों पढ़ा, देखा या सुना जाना चाहिए? लेकिन इसके साथ ही समीक्षा में उन कमियों और चूकों का उल्लेख भी किया जाता है जो समीक्षक की राय में किसी रचना या कृति को कमज़ोर कर देती है। एक अच्छी, संतुलित और प्रभावशाली समीक्षा वह है जो पाठक को न सिर्फ़ उस रचना के उल्लेखनीय पहलुओं से परिचित करा दे बल्कि उसमें रचना को पढ़ने, देखने या सुनने की समझ पैदा कर दे। इस मायने में समीक्षक उस जौहरी की तरह है जो पुस्तकों, फ़िल्मों, नाटकों, पेंटिंग प्रदर्शनियों आदि की भीड़ में से पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं के लिए हीरा खोज निकालता है और उसे चुनने में उनकी मदद करता है।

समाचार माध्यमों विशेषकर समाचारपत्र और पत्रिकाओं में समीक्षा को काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। विशेषकर अधिकांश समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में फ़िल्मों और पुस्तकों की समीक्षा के साप्ताहिक स्तंभ प्रकाशित होते हैं। कुछ समाचारपत्रों में रविवारीय परिशिष्टों में या कुछ में शुक्रवार को पुस्तकों, फ़िल्मों, नाटकों के अलावा नृत्य-संगीत कार्यक्रमों या कैसेट्स / सीडी, पेंटिंग प्रदर्शनी आदि को नियमित समीक्षा प्रकाशित होती है।

उदाहरण के लिए पुस्तक समीक्षा को पढ़िए -

हिंदुस्तानी कलम पाकिस्तानी दास्तान

आँखों देखा पाकिस्तान

लेखक। कमलेश्वर

कीमत / 175 रु.

साहित्य और पत्रकारिता दोनों ही क्षेत्रों में समान रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते कमलेश्वर के लिए ‘कितने पाकिस्तान’ ने जहाँ साहित्य के क्षेत्र में नए मुकाम हासिल किए हैं वहों हाल ही में प्रकाशित ‘आँखों देखा पाकिस्तान’ किताब उनके साहित्य व पत्रकारिता में समान रूप से जुड़ाव को रेखांकित करती है।

‘आँखों देखा पाकिस्तान’ में कुल तीस लेख हैं, जिनमें न केवल पाकिस्तानी

समाज और कल्चर में पिछले $4-5$ दशकों में आए परिवर्तनों को देखा जा सकता है बल्कि भारत संबंधी उनके विचारों के साथ-साथ आज के पाकिस्तान के कुछ चौंकाने वाले सूत्र भी यहाँ मिल जाएँगे। अपने पहले लेख ‘वाघा बार्डर के उस पार’ में एक ओर कहीं लेखन की भावुकता झलकती है तो कहीं-कहीं वह ऐसे प्रश्नों से भी जूझता है जिनसे बचने के लिए कुछ सत्ताखोर और अतीतजीवी लोगों ने अपने आँख-कान बंद कर रखे हैं। ऐसा ही एक प्रश्न लेखक के मन में उठता है जब वह वाघा बार्डर में भारत व पाकिस्तान के मज़दूरों को देखता

है-‘कहाँ है बँटवारे की वह रैडक्लिफ लाइन जो हम दोनों को अलग करती है? मज़दूरों के दिलों पर तो कोई लाइन नहीं है। वे चाहे इधर हों या उधर हों, वे अपनी गरीबी और बड़े-बूढ़ों को पहचानते हैं। लेखक चेताता है कि फ़ौजें ज़मीन जीत सकती हैं या राजनीतिक हार-जीत को तय कर सकती हैं लेकिन वह न तो बुल्लेशाह, वारिसशाह, नानक को स्मृतियों को जीत सकती हैं और न ही तुलसीदास, कबीर, रसखान, अमीर खुसरो और गालिब को।

‘जिये पाकिस्तान’ में लेखक ने साठ-सत्तर के दशक की पाकिस्तानी सोच को समझने का प्रयास किया है जिसमें कोई समाज अपनी पहचान बनाने की जल्दी में ऐसे रास्ते की ओर बढ़ जाता है जहाँ मात्र धर्म या जाति से उसकी पहचान हों पाती है। अपने इतिहास और स्मृति से आज़ाद होने की इस छटपटाहट ने पाकिस्तान को उस दौर का मज़हबी पैरोकार बना दिया था। इसमें आम पाकिस्तानी नागरिकों के हित गायब हो चुके थे।

‘आँखों देखा पाकिस्तान’ का सबसे महत्त्वपूर्ण लेख ‘भारत और पाकिस्तान : स्मृति और संस्कृति की परंपरा’ में लेखक ने ‘स्मृति’ के आधार पर ‘संस्कृति’ के निर्माण और धार्मिक दिखावेपन को अलग-अलग नज़ारिए से देखा है। वास्तव में स्मृति की परंपरा व्यक्ति की सामाजिक व व्यक्तिगत चेतना का निर्माण करती है। लेखक हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच उसी स्मृति की परंपरा को रखकर देखने का प्रयास करता है जिसे भारत-विभाजन की त्रासदी ने न केवल दोनों के साझे इतिहास को चोट पहुँचाई थी बल्कि 14 अगस्त 1947 से पहले की स्मृतियों को धुँधला भी कर दिया था। यह एक ऐसी सचाई है जिस पर ‘स्मृति’ का मरहम जल्दी असर नहीं कर सका। अब स्थितियाँ बदली हैं और साझी स्मृति और इतिहास को पहचानने की दोबारा कोशिश की जा रही है।

‘खुली खिड़की : पाकिस्तान’ में चार लेख हैं जो स्मृति की परंपरा के सहारे एक-दूसरे के मन में झाँकने की कोशिश करते हैं।

‘कुछ सांस्कृतिक सवाल’ में कुल पाँच लेख हैं जिनमें साप्रदायिक ताकतों के खिलाफ़ खड़ी होती ‘पागलों की जमातो’ का ज़िक्र है। ‘पाकिस्तानी कैदियों का मसला’ के पाँच लेख राजनीति से ज़्यादा मानव अधिकारों पर प्रश्न उठाते हैं। कुल मिलाकर पाकिस्तान के बारे में जानने के लिए इस किताब में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है।

-समीक्षक : श्रवण कुमार, हिंदुस्तान से साभार

फ़िल्मों की समीक्षाएँ तो लगभग सभी अखबारों और पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। इनसे हर सप्ताह रिलीज़ होने वाली नयी फ़िल्मों के बारे में न सिर्फ़ समग्र जानकारी मिलती है बल्कि यह पता चलता है कि उसमें अलग और खास क्या है। उसे देखा जाना चाहिए या नहीं? उदाहरण के लिए इस समीक्षा को पढ़िए -

मीडिया

Media

बचपन की पाठशगला का सबक

‘तारे ज़मीन पर’ को नए सार्थक सिनेमा में लीक से हटकर दिल से लिखी गई एक इबारत कहा जाए, तो गलत न होगा। फ़िल्म हर घर के एक अनछुए, मासूम मसले को छूते हुए कई हल निकालती है और भटके हुए माता-पिता को सार्थक संदेश दे देती है। बज़ाहिर, उसका पहला मकसद रूठे हुए बचपन की मुस्कान लौटाना है।

बचपन की पाठशाला के दुरूह पाठ को सरल बनाने की यह कवायद आमिर और उनकी टीम की जुगलबंदी से ही संभव हो पाई है। कुंठित और तनावग्रस्त प्रतिभाओं के मन पर जमी धूल हटाकर उनकी चमक और सहज गुणों की खोज ही मानो इस फ़िल्म का ध्येय रहा है। बाल-सिनेमा की रूढ़ियों और साँचों को भी तोड़ती यह फ़िल्म हर कसौटी पर खरी साबित हो रही है।

इसकी केंद्रीय शक्ति दो प्रमुख पात्र हैं निकुंभ सर और उनका विशेष छात्र ईशान। यह जोड़ी कुछ-कुछ ‘टू सर विद लव’ फ़िल्म के सिडनी पोटर के क्रिया-कलापों की भी याद दिलाती है। लेकिन आमिर खान और दर्शील सफारी की यह जुगलबंदी भारतीय सिनेमा के इतिहास में कुछ नए सफे भी जोड़ती है। दरअसल, यह प्रयोग ‘विशेष छात्रों’ के ‘टूलिप स्कूल’ में छह साल पहले शुरू होता है। पटकथाकार अमोल गुप्ते और उनकी पत्नी दीया भाटिया की मेहनत छह साल के अंतराल में इसे परदे पर उतारने के काबिल बनाती है। आमिर, उनकी सूझ-बूझ, सधा हुआ निर्देशन, सर्वश्रेष्ठ पटकथा, सहज अभिनय-शैली और बाकी टीम की मेहनत फ़लक छूने का अवसर इस फ़िल्म को दे ही देते हैं।

अपने तजुर्बे और बदलते परिवेश की गहरी समझ के दम पर आमिर बाल सिनेमा की परिपाटी तोड़कर यथार्थपूर्ण शैली का नया सिनेमा रचते हैजो प्रतिस्पर्धा से बौराए बड़ों की दुनिया के अहम् और उपेक्षा के शिकार बच्चों पर मंडराते खतरे से आगाह करता है। नयी चाल का यह सिनेमा स्कूली छात्रों की नाजुक ज़िदगी की कशमकश को उपेक्षित माहौल में आठ साल के ईशान अवस्थी के माध्यम से उजागर करता है। दर्शील सफारी ने यह नाजुक और कठिन भूमिका बड़ी तन्मयता से निभाई है।

साथ हा इस फ़लल्म न पिछली बाल फ़िल्मों की सजावट, करुणा, चंचलता और उपेक्षा के नाटकीय प्रदर्शन और र्भेगिमाओं के आवरण को भी पूरी तरह हटाकर जटिलताओं की आंतरिकता में झाँकने की हिम्मत की है।

दरअसल जागृति, दोस्ती, एक फूल दो माली, नन्हा फरिश्ता, छोटा चेतन, मासूम या परिचय जैसी फ़िल्में इस नए परिदृश्य में नयी धारा के सिनेमा की दहलीज़ से काफ़ी पीछे छूट गई हैं। ‘मिस्टर इंडिया’ या ‘आखिरी खत’ में बाल कलाकारों की मुस्कान निर्मल उदासी की तरह वह भी स्मृति-बिंबों में अंकित भर है। दूसरे इन फ़िल्मों के मास्टर जी और माता-पिता शिक्षा जगत के नए दबावों और प्रतिस्पर्धा के प्रभावों से मुक्त रहे। स्कूल में अध्यापकों की तानाशाही और घर में पिता की उपेक्षा झेल रहे विशेष छात्र (ईशान) के आंतरिक जगत में एक संवेदनशील शिक्षक के ‘ट्रीटमेंट’ द्वारा लाए जा रहे परिवर्तन एक द्वंद्वात्मक स्थिति से इस फ़िल्म को गुज़ारते हैं जो इसे बाकी (पिछले) सिनेमा से अलग करती है। डिस्लेक्सिया नामक मर्ज के कारण आँकड़ों और अक्षरों को सही न समझ सकने वाला ईशान विशेष होते हुए भी उपेक्षा भोग रहा है।

उसका विस्मय और सम्मोहन मुद्राएँ कुछ देर की हैं। उसका आत्म-संघर्ष, विषाद और प्रतिस्पर्धा के संकट से जूझने या बचने के तौर-तरीके ही ‘तारे ज़मीन पर’ की केंद्रीय भूमि है जिसे एक नए मिज़ाज की पटकथा, मार्मिक संवाद-शैली और कलात्मक सधे हुए निर्देशन तथा चुस्त संपादन ने सचमुच नायाब सिने-कृति में बदल दिया है। आमिर की सूझ-बूझ और निराले व्यक्तित्व के साथ इस फ़िल्म की पृष्ठभूमि में असली मेहनत इसके क्रिएटिव डायरेक्टर अमोल गुप्ते की है जिन्होंने निर्देशन का जिम्मा खुद तेज़-तर्रार आमिर को सौंपकर सही निर्णय किया। फिल्म का मूल आधार, रिसर्च और संपादन अमोल की पत्नी दीपा भाटिया का रहा है। ये प्रतिभाएँ अपने साझे प्रयास से ईशान के मटमैले पक्ष की धूल हटाकर उसकी प्रतिभा की मौलिक चमक से सिनेमा के परदे को जगमगाते हैं।

आमिर ने जटिलताओं में गुँथी इस थीम के बीज-गुणों को अपनी नयी निर्देशन दृष्टि से खूब परखा है। अपनी प्रसिद्धि के व्यावसायिक प्रतिमान गढ़ने के बावजूद लगान, मंगल पांडे या रंग दे बसंती के सम्मोहन तथा कॉस्ट्यूम ड्रामा वाले सिनेमा की लक्ष्मण रेखा को भी उन्होंने लांघा है। एक संवेदनशील सहयोगी शिक्षक रामशंकर निकुंभ की कड़ी भूमिका भी उन्होंने निभाई है जो आज की पढ़ाई-लिखाई के निषेध और तौर-तरीके के आघात-प्रतिघातों से बचाने के (पूरे शिक्षा-जगत के पाठ्यक्रम की खामियों और दबावों को समझाते हुए) संकेत दे रहा है। शायद ए.सी.पी. राठौर (सरफरोश) के बाद किसी मौलिक पात्र को जीवंतता से जीने की उमंग-भरी यह उनकी दूसरी भूमिका है।

वैसे यह कोई ‘बाल फ़िल्म’ नहीं है। शोले, साउंड ऑफ म्यूजिक या स्पाई किड्स जैसी फिल्मों की जादुई सफलता से भिन्न स्तर पर यह अपनी अपार सफलता के झंडे गाड़ रही है। इसने समस्या को फ़िल्मी न बनाकर उसके मौलिक कारणों की पहली बार सही दिशा में

चीर-फाड़ की है। आमिर का बच्चों से मुठभेड़ का यह पहला अनुभव नहीं है। किशोर वय से भी नाजुक उम्र के बच्चों की तिकड़ी के साथ दर्शक उन्हें ‘हम हैं राही प्यार के’ में देख चुके हैं। लेकिन ‘तारे ज़मीन पर" इन फिल्मों के ‘हँसोड़पन’ और ‘मासूमियत’ वाले फार्मूले से अलग स्तर पर मानसिक-उद्वेलन और उसके समाधान की दिशाएँ तलाश करती है। साथ ही, परदे पर सिनेमाई थ्री-डी तकनीकों, चित्रों के लिए जगह बनाते हुए केंद्रीय पात्र और वयस्क शिक्षित समाज की टकराहट के सार्थक नतीजों को भी रचती है। निकुंभ सर और ईशान अवस्थी की संगत से ही यह संभव हुआ है।

इस फ़िल्म के सभी पक्षों की कारीगरी ने इसे फिल्म वार्ड की सूची में भी शिखर पर ला खड़ा किया। बहुआयामी कलाओं के शिखर छूने वाली इस फ़िल्म के निर्देशन, अभिनय, पटकथा, स्क्रीन प्ले, गीत-संगीत और संवादों में एक गजब की लयकारी है। इस लयकारी के जादुई मिलन में आमिर, अमोल गुप्ते, दीपा भाटिया ही नहीं, प्रसून जोशी (गीत), शंकर महादेवन (गायिकी), शंकर-एहसान-लॉय (संगीत) के अलावा मुंबई के जाने-माने चित्रकार समीर मंडल का सत्संग भी कारगर साबित हुआ है। समीर ने पंचगनी में आमिर के घर में इस फ़िल्म के नायक (ईशान) की कल्पनाओं को साकार करते तीन खास चित्र बनाए।

आमिर, दर्शील सफारी, प्रसून जोशी, शंकर-एहसान-लॉय इस फिल्म की शहतीर साबित हुए हैं। मुन्ना भाई, रंग दे बसंती की तरह ही नयी पीढ़ी के युवतम वर्ग की चेतना को यह फ़िल्म निरंतर आंदोलित करती है। रंगों की दुनिया से यह फ़िल्म कोमल ज़िंदगी के रूठ गए सपनों को फिर से सजाती है।

घर-आँगन और पाठशाला (बोर्डिंग स्कूल) के दायरों से जुड़े तमाम तनावग्रस्त चेहरों की हँसी उन्हें लौटाना ही इसका एकमात्र उद्देश्य है। यह रुग्ण कर दिए गए मटमैले हो गए, बाल-मन के आँगन को उम्मीद की नयी किरणों से बुहारती है। इस फ़िल्म का मिशन और प्रेरणा अब नए समाज के परिवारों और पाठ्यक्रम को दुरूह बना चुके बड़े स्कूलों की देहरी को छूने लगे हैं।

इसकी ताज़ा मिसाल दिल्ली सरकार के शिक्षा महकमे की पहल से सामने आई है। शिक्षा विभाग की राज्य सचिव

गुपचुप रचता रहता है। यहाँ तक कि बोर्डिंग स्कूल जाने की यातना का पूर्वाभास तक निकुंभ सर को उसकी एक चित्रात्मक कॉपी में खोजने पर मिलता है जहाँ माता-पिता से दूर होते जाने के रेखांकित ‘फ़ुटेज’ सरकते पन्नों के अंत में व्यक्त हो ही जाते हैं। उसके ड्राइंग शिक्षक निकुंभ इस स्थिति से परिवार को अवगत कराते हैं।

मायावी बाल चरित्रों वाली फ़िल्मों के लिए भी यह फ़िल्म एक नया पाठ तैयार करती है जिनमें मासूमियत और हुड़दंग या जन्मदिन की पार्टियों में रूठा हुआ बचपन चाकलेटी हीरो की नकल करता आया है। वहाँ किसी बच्चे की समझ, निर्मल हँसी, करुणामय स्थितियों में झलकते आत्मबोध की खोज होती ही नहीं। इसी कारण मन की सुंदरता को पकड़ पाना भी उनके बस का नहीं होता। ईशान अवस्थी की भूमिका इन मायावी बाल चरित्रों से अलग है जो उसकी आत्मा की निथरी छवियाँ प्रस्तुत करती है।

  • समीक्षक : प्रताप सिंह, जनसत्ता से साभार

यह समीक्षा केवल फ़िल्म से परिचय नहीं कराती बल्कि आमंत्रित करती है फ़िल्मों की दुनिया में एक ऐसी सकारात्मक पहल की, जो बच्चों को नयी दृष्टि से देखने में मददगार हो। इस तरह की समीक्षा लिखने के लिए पर्याप्त तैयारी की ज़रूरत होती है। आइए जानते हैं -

समीक्षा लेखन की तैयारी

हालाँकि एक तरह का समीक्षक हम सब में होता है लेकिन एक अच्छा समीक्षक बनने के लिए उस क्षेत्र विशेष जैसे फ़िल्म, नाटक, नृत्य, संगीत या पेंटिंग आदि की गहरी समझ का होना बहुत ज़रूरी है। जैसे अगर आप एक अच्छा फ़िल्म समीक्षक बनना चाहते / चाहती हैं तो आपको भारतीय सिनेमा के साथ विश्व सिनेमा का इतिहास, उसकी प्रमुख प्रवृत्तियों, उसके प्रमुख निर्देशकों, अभिनेताओं, खलनायकों, हास्य कलाकारों, संगी निर्देशकों, पटकथा और संवाद लेखकों, नृत्य निर्देशकों और कला निर्देशकों के बारे में जितना अधिक संभव हो, जानकारी होनी चाहिए। उसे फ़िल्म कला और उसके विभिन्न पहलुओं की गहरी जानकारी होनी चाहिए। बिना फ़िल्म निर्माण की प्रक्रिया और उसके व्याकरण को समझे आप एक अच्छे फ़िल्म समीक्षक नहीं बन सकते। लेकिन जैसा कि मशहूर फ्रेंच फ़िल्मकार फांसुआ तुफो ने अपनी किताब ‘द फ़िल्म्स इन माई लाइफ’ में ठीक ही लिखा है कि, “कोई भी फ़िल्म समीक्षक बन सकता है।” अगर आप थोड़ी तैयारी करें और आप में फ़िल्मों से गहरा लगाव हो तो आप एक अच्छे समीक्षक बन सकते हैं। याद रहे कि एक बेहतर फ़िल्म समीक्षक एक दिन में नहीं बनता, उसके लिए अनुभव, परिश्रम और लगन ज़रूरी है।

कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह बात हर तरह की समीक्षा और समीक्षक के लिए लागू होती है। अगर आप खूब किताबें नहीं पढ़ते या जिन विषयों की पुस्तकों की समीक्षा लिखना चाहते हैं, उस विषय के बारे में गहरी जानकारी नहीं है तो आपकी समीक्षा में वह गहराई नहीं आ पाएगी।

तैयारी की शुरुआत

पुस्तक कैसे पढ़ें या फ़िल्म कैसे देखें? किसी भी पुस्तक या फ़िल्म की समीक्षा की शुरुआत उसे ध्यान से पढ़ने या देखने से होती है। पढ़ना और देखना भी एक कला या साधना है। पुस्तक या फ़िल्म में डूबकर उसका रस लेना और उसकी बारीकियों को समझना ज़रूरी है। पुस्तक को पढ़ने के दौरान कुछ खास बातों का ध्यान रखना आवश्यक है -

  • इस पुस्तक को लिखने के पीछे लेखक का उद्देश्य क्या है? इसका अनुमान पुस्तक की भूमिका या प्राक्कथन को पढ़ने से मिल जाता है। इसमें पुस्तक के बारे में भी कुछ सामान्य जानकारियाँ होती हैं।
  • पुस्तक में लेखक ने किन मुद्दों को उठाया है? उनके तर्क क्या हैं? पुस्तक के प्रमुख बिंदुओं को चिह्नित करें और पुस्तक पढ़ते हुए ही उन्हें रेखांकित करें अथवा नोट्स लेते चलें।
  • लेखक द्वारा प्रस्तुत तर्क, विश्लेषण, तथ्य, प्रमाण आदि कितने प्रभावशाली हैं? उनमें नया और अलग क्या है जो उसे अन्य पुस्तकों से भिन्न बनाता है? भाषा शैली और प्रस्तुति कैसी है?
  • क्या आपको यह लगता है कि यह एक उपयोगी पुस्तक है जिसे पाठकों को भी पढ़ना चाहिए? इसमें वह क्या है जिसके लिए पाठकों को इसे पढ़ना चाहिए?

फ़िल्मों पर भी कमोबेश कुछ ऐसी ही बातें लागू होती हैं। जैसे इस फ़िल्म के ज़रिये निर्देशक क्या कहना चाहता है? इस फ़िल्म की थीम, कहानी और प्रस्तुति पिछली फ़िल्मों से किस तरह अलग है या उन्हीं की तरह है? फ़िल्म में नयापन है या नहीं? कलाकारों का अभिनय और निर्देशन कैसा है? क्या यह फ़िल्म दर्शकों को कोई संदेश देती है? क्या आपको लगता है कि अन्य दर्शकों को भी यह फ़िल्म देखनी चाहिए? उसकी खूबियों और कमियों पर फ़िल्म देखकर लौटते ही नोट्स लीजिए। अपने मित्रों से भी उनकी राय पूछिए।

गतिविधि 18/Activity 18

किन्हीं दो या तीन अखबारों में एक ही फ़िल्म की समीक्षा पढ़िए। इन समीक्षाओं में क्या समान है और क्या अलग? तुलना कीजिए।

Read the reviews of the same film in two-three newspapers. Compare the reviews and make a list of the similarities and dissimilarities between them.

समीक्षा लेखन : कुछ सुझाव

  • समीक्षा लिखने की शुरुआत करने से पहले अपने नोट्स देखिए और विचार कीजिए कि इस पुस्तक या फ़िल्म के बारे में सबसे महत्त्वपूर्ण बात क्या लगी? समीक्षा में उसी महत्त्वपूर्ण बात के इर्दगिर्द आपको अन्य तथ्य, जानकारियाँ और विश्लेषण प्रस्तुत करना है।
  • लिखते समय हमेशा अपने पाठक/दर्शक/श्रोता को याद रखिए। उनकी ज़रूरतों का ध्यान रखिए। उसे पूरी स्पष्टता से पुस्तक या फ़िल्म की खूबियों और कमियों के बारे में बताइए। लेकिन याद रखिए कि समीक्षक निर्णायक (जज) नहीं है और उसे फ़ैसला देने से बचना चाहिए।
  • समीक्षा की शुरुआत में पुस्तक के बारे में या फ़िल्म से जुड़ी तथ्यपूर्ण जानकारियाँ अवश्य दें। जैसे पुस्तक का नाम, लेखक, प्रकाशक, प्रकाशक का पता, प्रकाशन वर्ष, पृष्ठ संख्या और मूल्य। इसी तरह फ़िल्म के बारे में प्रमुख जानकारियाँ - फ़िल्म का नाम, निर्देशक और निर्माता का नाम, प्रमुख कलाकारों के नाम, संगीत निर्देशक और पटकथा लेखक का नाम आदि शुरू में दे दी जाएँ तो पाठक के लिए समीक्षा पढ़ना आसान हो जाता है।
  • समीक्षा के पहले पैरग्राफ में पुस्तक या फ़िल्म के बारे में कुछ ज़रूरी जानकारियाँ, उसकी पृष्ठभूमि आदि का उल्लेख करते हुए उसका परिचय देना चाहिए। यह बहुत हद तक समीक्षा की भूमिका या प्रस्तावना है। लेकिन उसके बाद अगले पैरग्राफ से पुस्तक या फ़िल्म के उन पहलुओं को उठाना शुरू करना चाहिए जिन्हें आप महत्त्वपूर्ण मानते हैं। आप उन्हें महत्त्वपूर्ण क्यों मानते हैं, यह स्पष्ट करना ज़रूरी है।
  • पुस्तक में अगर कोई बहुत खास बात कही गई है तो उसे आप उद्धत भी कर सकते हैं। उदाहरण बहुत ज़्यादा और लंबे नहीं होने चाहिए। इसी तरह फ़िल्म के किसी खास दृश्य या संवाद का उल्लेख किया जा सकता है।
  • पुस्तक या फ़िल्म में जो कमियाँ या कमज़ोरियाँ दिखाई पड़ीं, उनका उल्लेख करना भी न भूलें। इससे समीक्षा पूर्ण होती है। लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि आप पुस्तक या फ़िल्म में ज़बरदस्ती कमियाँ या गलतियाँ खोजें।
  • समीक्षा में आप अपने विचार प्रकट कर सकते हैं। लेकिन एक समीक्षक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके लेखन में कोई पूर्वाग्रह या पक्षपात नहीं होना चाहिए। उसे अपनी बात पूरी निष्पक्षता से तर्कों सहित प्रस्तुत करनी चाहिए।

मीडिया लेखन में अनुवाद

दख गात्तावाध/Activity 23 पृष्ठ 158 मीडिया लेखन में अनुवाद् का बहुत अधिक महत्त्व है। एक बहुभाषी विश्व और देश में सूचनाओं और समाचारों का आदान - प्रदान अनुवाद के ज़रिये ही संभव है। दुनिया भर से हमारे देश में पहुँचने वाले अधिकांश समाचार उन विदेशी समाचार एजेंसियों के ज़रिये आते हैं जो मूलतः अंग्रेज़ी में समाचारों का आदान-प्रदान करती हैं। यहाँ तक कि देश के अंदर भी राष्ट्रीय समाचार एजेंसियों-पी.टी.आई. (भाषा) और यू.एन.आई. (यूनीवार्ता) का अधिकांश कामकाज अंग्रेज़ी में होता है जिसे बाद में हिंदी सहित विभिन्न भाषाओं में अनुवाद करके प्रकाशित या प्रसारित किया जाता है। यही नहीं, किसी शहर या राज्य में काम कर रहे रिपोर्टर के लिए सूचनाएँ जुटा पाना संभव नहीं है, अगर वह वहाँ की भाषा और जिस अखबार / चैनल के लिए काम कर रहा है उसकी भाषा अच्छी तरह से न जानता हो और अनुवाद में सहज न हो।

समाचार माध्यमों में काम करने के लिए अनुवाद में दक्षता एक आवश्यक योग्यता है। विशेषकर हिंदी और दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं के समाचारपत्रों /समाचार चैनलों में काम करने वाले पत्रकारों में अंग्रेज़ी से हिंदी या अन्य भाषाओं में अनुवाद करने में दक्षता का होना अनिवार्य है। समाचार माध्यमों के लिए अनुवाद की कई चुनौतियाँ हैं। यह अनुवाद सृजनात्मक होने के साथ-साथ तथ्यों और सूचनाओं की प्रस्तुति में किसी तोड़मरोड़ या छेड़छाड़ की इजाज़त नहीं देता है। इस तरह के अनुवाद में सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं को मिलने वाले समाचार को अनुवाद के बावजूद किस तरह से सरल, सहज और आसानी से समझ में आ सकने लायक बनाया जाए।

दस लाख संगीनें मेरे भीतर वह खौफ पैदा नहीं करतीं, जो तीन छोटे अखबार।

  • नेपोलियन

Good newspapermen have given good literature also.

Daniel Defoe, Joseph Addison

Richard Steele, Jonathan Swift

Rudyard Kipling, Charles Dickens

John Galsworthy, G.K. Chesterton

H.G. Wells, Walt Whitman

George Bernard Shaw

Mark Twain, Ernest Hemingway…

भारतेंदु, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद माखन लाल चतुर्वेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ सुमित्रानंदन पंत, भवानीप्रसाद मिश्र, गिरिजाकुमार माथुर कुँवर नारायण, रघुवीर सहाय, गजानन माधव मुक्तिबोध शमशेर बहादुर सिंह, धर्मवीर भारती, हरिशंकर परसाई, कमलेश्वर,

खबरों की दुनिया में बच्चों को सयाना कौन मानगा! पर छत्तीसगढ़ के कुछ जागरूक बच्चों ने दिखा दिया है कि बड़ों के इस क्षेत्र में वे किसी से पीछे नहीं हैं। ये नन्हे-मुन्ने अपने सीमित साधनों से अखबार निकाल रहे है औग पीडित बचपन की आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।

‘सरस्वती’ पत्रिका ने अपने प्रकाशन से लगभग अद्द्ध-शताब्दी तक हिंदी जगत का बौद्धिक अनुशासन बनाए रखा। भाषा परिष्कार आंदोलन द्वारा इसने परिनिष्ठित खड़ी बोली का भवन खड़ा किया। छियी प्रतिभाओं की खोज, अनेक विधाओं को जन्म देने के साथ-साथ नए लेखकों को प्रोत्साहन भी दिया। यह सन् 1899 में इंडियन प्रेस, इलाहाबाद से प्रारंभ की गईई। प्रारंभिक संपादक मंडल में बाबू राधाकृष्ण दास, बाबू कार्तिक प्रसाद, बालू जगन्नाथ दास, पं. किशोरी लाल गोस्बामी एवं डॉ. श्याम सुंदरदास थे। ‘सरस्वती’ का प्रथम अंक जनवरी 1900 में प्रकाशित हुआ। मांगनी पड़ती है भीख then गुuem को zस्र चा होने श० राल थे मु० पre teniven wiest खबरों की दुनिया में बच्चों को सयाना कौन मानेगा! पर छत्तीसगढ़ के कुछ जागरूक बच्चों ने दिखा दिया है कि बड़ों के इस क्षेत्र में वे किसी से पीछे नहीं हैं। ये नन्हे-मुन्ने अपने सीमित साधनों से अखबार निकाल रहे हैं और पीड़ित बचपन की आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।

समाचार पत्रों में बड़ी शक्ति है, ठीक वैसी ही जैसी कि पानी के ज़ाररदस्त प्रवाह में होती है। इसे खुला छोड़ देंगे तो गाँव के गाँव बहा देगा। उसी तरह निरंकुश कलम समाज के विनाश का कारण बन सकती है। लोकिन अंकुश भीतर का होना चाहिए, बाहर का अंकुश तो और भी ज़ाहरीला होगा।

  • महात्मा गांधी

Understanding Media

An introduction to different forms of media writing.

1. Group Activity

D All the students should stand in a circle.

  • Talk to the person standing on your left as well as your right. Find out two new things about each.
  • Students should share their information with the rest of the group.

2. Points to Ponder

  • How did you get to know about each other?
  • How would news/information reach others?
  • Discuss how news from their locality/ school can be shared with others.
  • How do you think news from your city, state, country and foreign countries travels?
  • How will information related to some important person, event, new books/ newsletters / magazines / films etc. reach other people?

3. Collect a few news items, features, interviews and reviews from one week’s newspapers and make your own newspaper from them.

And the pen writes on…

Ninety-five-year-old Homai Vyarawalla, India’s first woman photojournalist, was born in Navsari, a mofussil town in Gujarat. She worked in Delhi from 1942 to 1970 and has taken photographs of people like Helen Keller, Gandhiji, Pandit Nehru, Mountbatten, Edmund Hillary and Tenzing Norgay. Her vast portfolio also has pictures of Mumbai in the 1930s.

Homai’s father was an actor from the Urdu-Parsi theatre and according to her, “I normally accompanied my father to theatres… I was overjoyed to see colours, paints and brushes there and they soon became my toys. I believe it was my first step to what I wanted to do in my life… I was a patient listener to my father when he had sessions with the co-artists and actors. It gave wings to my imagination.”

An Honours student from Bombay University, Homai also obtained a Diploma in Art from J. J. School of Art. Her first pictures were of a college picnic. Taken with a friend’s camera, they were published on the front page of the Bombay Chronicle. She recalls, “The newspaper gave me one rupee a picture in those days. That was a big thing. Photography was something completely new, not being done by any other woman.”

The author expresses his own thoughts and experiences; the journalist expresses those of the community. Literature can be timeless; journalism must be timely.

  • F. Fraser Bond

The term ‘Fourth Estate’ is a traditional term used for the public press and dates as far back as the early nineteenth century when Edmund Burke called the media the fourth estate. In the middle ages, the estates of the realm referred to the three broad divisions of society as nobility, clergy and commoners.

Cleric, Knight, and Workman - an image from a medieval manuscript

Thomas Carlyle in his On Hero and Hero Worship also wrote, “… in the Reporter’s Gallery yonder, there sat a Fourth Estate more important far than they all.” In modern times, the media is popularly known as the fourth pillar of democracy.

I. Media Writing - an Introduction

Edmund Burke described media as ’the story of the world for a day’. The objective of media is communication with mass audiences and to disseminate information for education, news and views, business, entertainment and societal awareness. Media has always acted as a guardian of democracy, and kept people informed about the latest happenings and trends. Today, the demands placed on media professionals are greater than ever before. They need to be conscious of their responsibility and should always remind themselves of the larger question: How will this affect the lives of my readers?

The media also informs us about people from different backgrounds/countries working together for the benefit of mankind. The following is an example of such a media coverage.

Jaipur Foot for Angola landmine victims

SANDEEP Joshi

Luanda (Angola): After providing mobility to thousands of people in India and abroad, Jaipur Foot will soon come to the aid of Angolans who have lost their limbs during the 27 -year civil war.

The south African nation, which saw a large number of its citizens falling victim to landmines laid across the country, approached India which, on humanitarian grounds, has agreed to set up and run an artificial limb factory and centre in this capital city free of cost for two years… Angola would also depute its staff at the factory and centre so that they could be given training.

…Jaipur Foot had revolutionised life for millions of landmine amputees, …apart from being cost effective, the artificial limb was light and made mobility easy. The users would be able to run, climb trees and ride bicycles.

Jaipur Foot was invented by Pramod Karan Sethi, an orthopaedic surgeon, who was a Fellow of Britain’s Royal College of Surgeons, along with artisan Ram Chandra

  • Source: The Hindu, 6 April 2008

Creative writers are free to write from the depths of their imagination, whereas media writing requires a pool of information which is checked again and again through a series of valid sources in the real world. Without authentic information, media writers have nothing to communicate. To build that bank of information, they read all types of materials like literary works as well as general reading materials such as magazines, newspapers etc. They observe people, events and situations with a keen eye and an open mind. They listen carefully to comments, statements, lectures, speeches etc. made by other people. A keen observation and good reading habits which are assets for creative writing are also essential for media writing. When writing for the media, one has to be imaginative and creative in the use of vocabulary. Creativity in media writing seeks to blend good and simple language with aesthetically pleasing symbols and images that are familiar. Writing for the media can be a pleasure in itself: finding the right word, using it appropriately with other words in a sentence, constructing a paragraph that conveys the right meaning give satisfaction. There is a sense of pride in a well written piece. To achieve this one needs some talent, a lot of determination and readiness to work hard. Different forms of media require different kinds of writing and presentation skills. Before we familiarise ourselves with these skills, we need to know about the media and its broad divisions.

Types of Media

Today, sitting at home, you can get the latest news — which is known as ‘breaking news’— on your TV set or the radio or the internet. Extensive coverage of news and other information can also be obtained from newspapers. The Press — both print and electronic — have become indispensable today and advancement in technology has a vital role to play in it. Satellites stationed in space provide us with weather forecasts for our city as well as for the entire globe, and human interest stories such as the rescue of the little child who had fallen into a deep pit, the live telecast of sports events, election updates etc. reach us in no time and keep us informed. It has now become possible to transmit instant news and messages from different parts of the globe.

The different types of media are discussed below

1. Print Media: This includes books (of all types), newspapers, magazines, journals, catalogues, brochures, leaflets, handouts and other printed documents. Letters, which are meant to be circulated among a large number of people, can also be included in this category. For print media, strong and clear writing, analytical skills, choice of right words and the ability to select appropriate details are essential.

2. Audio-Visual Media: This includes radio, television, cinema, tape recorders, music systems etc. This medium is accessible to and is enjoyed by wide-ranging audiences even if they are not literate. Audio-visual medium can also be considered an electronic medium. Writing for this medium of communication requires a certain amount of specialised knowledge and this will be taken up in detail in Class XII.

3. New Media: This refers to a relatively new field that includes computer enhanced communication. It is fast becoming very popular with the masses. It is a form of media that includes some aspects of interactivity for its audience and is usually in digital form e.g. the Internet and the mobile phone etc. We shall study about new media in detail in Class XII.

You must have noticed that the news that appears in your newspaper and on TV is presented in different ways and styles. The difference lies in how they are written and their graphic treatment on the page and on the screen.

Print Media

Print media and written communication follow the progress of civilisation

which, in turn, develops in response to changing cultural technologies. The transfer of complex information, ideas and concepts from one individual to another, or to a group, has undergone extreme evolution since prehistoric times.

For centuries, civilisations have used print media to spread news and information to the masses. To begin with, humans painted descriptive pictures on cave walls. The narrative compositions on the walls were their own way of communication with the world. This was followed by the use of stone and clay tablets to express thoughts. With the passage of time, other means of writing surfaced. Invention of paper revolutionised the face of print as the written word became more accessible. The printing press, invented by Johann Gutenberg in 1447, ushered in the era of the modern newspaper. It enabled the free exchange of ideas and spread of languages. Gradually, newspaper content began to shift towards more local issues. Thereafter, the invention of the telegraph in 1844 transformed the print media. Now information could be transferred in no time, allowing for timely and relevant reporting. By the middle of the nineteenth century, newspapers were becoming the primary means of disseminating and receiving information.

During the early nineteenth century Paul Julius Reuter used pigeons to deliver news first of all. Each day Reuter put on the Brussels mail-coach a cage containing a pair of pigeons, addressed to his friend. When the birds were delivered to him, the friend set them free after fastening to their legs silk bags containing the stock prices. The pigeons arrived home three hours before the mail coach, and immediately Reuter and his wife made many copies of the messages and delivered them to the businessmen who paid for the service.

Today the range of topics and kinds of writing within a newspaper are vast and varied. It caters to the needs of different kinds of readership and contexts. It includes news stories, features, reviews, analyses, editorials, letters to the editor, advertorials, commercial information etc. The two broad divisions can be news media and other information.

Printing press (1811), Deutsches Museum, Munich, Germany

News Media: The purpose of a newspaper is to inform, interpret, serve and entertain. Newspapers serve the community by keeping a critical eye on the government and public services, and keeping the reader informed. Newspapers, generally, carry both hard news as well as soft news. Soft news are human interest stories. These can be accounts of triumph over personal adversity, a profile of a person, changes in lifestyle or the day-today existence of any individual. On the other hand, some diary events such as council meetings, tribunals and community events comprise hard news. Hard news also includes news about crimes, emergencies and accidents. Timeliness and gravity are the primary characteristics of hard news.

News is about people and the human angle is often the best way to introduce a story. The following news item shows how creativity has no boundaries and helps bring people together. This is an example of soft news.

Colours of Kutch with an Australian Touch Madhur TankHa

New Delhi: For the past 18 years, Australian artist Maggie Baxter has been working diligently with the indigenous craftspersons of Gujarat. She will now showcase her works at a week-long exhibition in Visual Arts Gallery, India Habitat Centre here beginning this Monday.

Maggie was introduced to traditional weaving, block printing and embroidery in Kutch by an Indian designer friend. Kutch specialises in traditional textile craft.

Stating that the textile works at the exhibition would be an amalgamation of the visual expansiveness of the Western Australian landscape and the apparent emptiness of Kutch, Maggie says, “There is no attempt to represent nature within the works, but rather the unrestricted horizon, the lack of perspective and emotions that those places draw out. The two places have much in common.”

Source: The Hindu, 26 April 2008

Others: Apart from news, newspapers give us information on health, education, entertainment, science, fiction, and biographical columns. They also bring the seller and the buyer together through their advertising columns, both classified ads and displays. This leaves scope for creative expression in the form of feature writing, stories, poems, plays etc.

In this unit our focus is on writing for the news media. News media comprises various forms of writing out of which news writing is the most important. Apart from this, features, interviews, letters to the editor, sidebars, advertorials etc. find adequate place in its ambit. Writing for news media is also known as journalistic writing which has its own specialised style. It can be classified under three broad divisions: news writing, editorial writing and feature writing. Therefore, writing for the media offers ample opportunities to write in the various forms that the mass-media requires.

1. News Writing: Writing a basic news story teaches you how to collect accurate and complete information and make sound judgements about the information, collate it in an appropriate form, and then write the content. In this form of writing a lead paragraph has the most important information that the writer has to tell the reader. Here is an example.

देश की तरक्की में दूरस्थ शिक्षा की अहम भूमिका

नयी दिल्ली, 16 फरवरी 2008 (जनसत्ता)। उप-राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा है कि देश के सुनहरे भविष्य में दूर शिक्षा का अहम योगदान है। मुक्त और दूर शिक्षा की महत्ता पर जोर डालते हुए उन्होंने कहा कि युवाओं को बेहतर उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए दूर शिक्षा को सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से लोगों तक पहुँचाना चाहिए ताकि ज्यादातर लोग इसका फायदा उठा सकें। उन्होंने कहा इसमें चुनौती यह है कि किस तरह ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को कम खर्च पर बेहतरीन शिक्षा मुहैया कराई जा सके।

Who gathers news for the media? The men and women who do so may be called reporters/journalists/editors/correspondents/special writers/rewrite-person or even public relations person.

News media presents news, views, reviews, and issues that happen at the local, the national and the international level. They also present critical analyses of issues, editorials and articles etc. News writing is different from editorial and opinion writing and there is a clear-cut distinction between facts and opinions. While reporting or collecting information for news, journalists make sure that they write a fair and balanced piece in order to avoid biases, prejudices, exaggeration or misrepresentation of any kind.

2. Editorial Writing: In most newspapers, the editorial and the op-ed page (op-ed page is given this name because it is placed opposite the editorial page) consist usually of the paper’s own opinion on topical issues, events, incidents and statements expressed through opinion pieces, editorial columns and sidebars. These may be expressed verbally or graphically through cartoons.

किसी हिंदी और अंग्रेज़ी के एक ही तिथि के एक ही विषय पर केंद्रित समाचारों का चुनाव करें। उनकी भाषा, शीर्षक प्रस्तुति, तथ्यों की तुलना करें और इस समाचार के आधार पर अपनी ओर से एक समाचार लिखिए और शीर्षक भी लिखिए।

Take Hindi and English newspapers of the same day and select news items on the same topic. Compare these news items in terms of their language, title, presentation and facts. On the basis of this analysis, write the same news in your own words and also give it a title. The Editorial is a crisp paragraph of

topical interest value which informs and leads public opinion. The heading often has real editorial value in itself and expresses opinion or sets the tone for the whole editorial. The average length of editorials is about 300 words. The writer condenses facts and arguments to a few short paragraphs. Any topic of human interest can become the subject matter for editorial comment which may be written in a humorous or serious tone. Opinion pieces are given on the op-ed page and these are usually written by guest or staff columnists. Most often they reinforce the ideas of the editorial writers.

The editorial page also consists of the opinions of others. These opinions are mostly of the paper’s readers (the public). These ‘Letters to the Editor’ are an integral part of all the newspapers.

The following is an example of a letter to the editor.

Necessary dialogues

‘A Fruitful Dialogue’ by Ziya Us Salam (Literary Review, May 4) is a beautiful write-up on the increasing importance of translations in the field of Indian literature. Translations of regional literature into other Indian languages and finally into the global language serve a two-fold purpose. Firstly, translated regional writings open windows of understanding among people of different regions through their wide reach. They serve to inculcate a feeling of oneness despite regional disparities. Secondly, when translated into English, these works of regional writers project an authentic image of India internationally which otherwise seems to be a little exaggerated in English writings.

  • DR S.A. KhADER, Kurnool

  • Source: The Hindu, 11 May 2008

Advertorials

Advertorials are a combination of editorial and feature writing. They are written with the purpose of advertising a product, a place or an event and highlight the positive points to attract the reader’s attention. All the relevant information such as venue, dates, timings, prices, availability are given. Advertorials can also have pictures or illustrations of the product, place or event. An advertorial should clearly mention that it is an ‘Advertisement Feature’ or just ‘Advertisement’. For example, a new school is opening shortly and the management wants to inform the public of this. An advertorial on the school can be taken out in a newspaper covering all its salient features.

3. Feature Writing: Feature writing can be a creative experience for reporters. Features can be written on profiles, personalities, lifestyles, travel, food, sports, automobiles and entertainment. They entertain readers as they are built around human interest. They can be plain fun to read or may nudge the reader to reflect on life. Before you start writing a feature you need to collect all the information related to the topic that you have chosen to write about. The characteristics of a feature in terms of its lead and style should be maintained throughout the article. Feature writing is not fiction writing and facts remain an integral part of any feature. They can be amusing, anecdotal or interrogatory. Features touch people’s emotions and provide food for thought.

II. Media Writing

Let us now move to the second part of this unit : Media Writing. In this section our focus will be on three different forms of media writing : News Report, Interview, Review.

News is a drama best understood in its setting.

News Report

News is often the truth about what is going on. It is the report of current ideas, events, and conflicts, which interest people. In modern democracies, news is a necessity. Men and women, individually and collectively, make vital decisions on the basis of what they know, and a lot that they know depends upon the news they read and hear. Newsreporters perform a vital service to mankind. Their social role establishes them as members of one of the most important professions.

They not only present facts, but also explain their meaning. A newsreporter is, in fact, a fact finder - a finder of newsworthy facts. Her/his task is also that of a resourceful researcher. Lucidity, comprehensibility, and appeal are the three major characteristics of any news report and a newswriter has to be skilled in expository reporting.

News is the account of a current idea, event, or conflict which interests news consumers and benefits those who present it. Here is an example.

बच्चों को समाज का स्टेम सेल बनाने वाली शिक्षा मिले लखनऊ, 18 जनवरी 2008 (सहारा न्यूज़ ब्यूरो)। प्रख्यात शिक्षाविद प्रोफ़ेसर यशपाल ने आज समूची शिक्षा व्यवस्था को बदल डालने पर ज़ोर देते हुए कहा कि शिक्षक बच्चों को समाज का स्टेम सेल बनाने के लिए स्कूल में उन्हें पढ़ाने के तौर-तरीकों में बदलाव लाएँ। उन्होंने कहा विद्यार्थी और शिक्षक को जब तक पढ़ने-पढ़ाने को आज़ादी देकर समाज व शिक्षा की खाई नहीं पाटी जाती तब तक शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

Important Features of News Writing

The first and most important feature of news writing is accuracy. A news story can be creative and convincing, but if it has errors, it is of no use. Next is brevity. Each word in your news story should be chosen carefully and presented lucidly and with clarity. To become news there must be something factual, new and interesting. The news must be new and the facts presented should interest the readers. To be able to capture the interest of the readers is called having a news sense.

Why is a news report called a story? This is to emphasise that it is a construct, something developed on the basis of certain facts, to capture the interest of the readers. But remember, factual accuracy is vital for good news writing.

News ValUE

This concept is used in making judgements about which event is news and which event is not. To make that judgement, certain factors are taken into consideration that help determine the news story’s news value. Time is one of them. An event is simply not news unless it has occurred fairly recently - the element of time is an inherent part of any news story. Another factor is that news sources should be authentic. These sources can be personal where the reporter is making a first person account of the incident, and has witnessed the incident or event herself or himself, or based on recorded information. If all the requirements are met then the news story’s news value is rated as very high. Thus, all efforts must be made to obtain accurate information; attention should be paid to each and every detail of the information. Also make sure that you understand the significance and the meaning of the information. Along with this, consistency of style is to be practised as it helps to make the writer more efficient.

The reporter’s job is to find out the truth and convey it. She/he must learn to keep her or his own biases under check. The reporter is also encouraged to look for the other view points in a news story. It is the duty of the reporter to get in touch with the persons concerned to gather various perspectives.

News usually has the following elements.

  • Impact: Impact is essential to capture the attention of the readers. Any news is considered big or small according to the size of the current idea, event or conflict. The size of the news may be measured in terms of figures : for example - Thousands killed in Tsunami; Earthquake takes the lives of more than 500 people; Hundreds of people took part in a Marathon; or Sensex rises by 400 points in a single day. In all these examples impact is determined by numbers.
  • Proximity: Proximity to the targeted readers plays a major role in maximising impact. That is why newspapers always keep in mind their target audience and its interests. The readers may find more interest in a minor event close at hand than in a more important one miles away. Hence local news usually comes first followed by national and international news. For example, power failure in any part of India will have greater news value than a similar power failure in Europe or any other country.
  • Timeliness: The reader wants news to be new. ‘New’ is the most important factor of news. ‘New’ news reports on latest/current happenings/changes that take place as they are relevant to and affect the daily lives of people.
  • Prominence: Any news related to prominent personalities e.g. president, prime minister, actors. becomes major news. The news that holds the interest of the reader becomes significant and important.
  • Novelty: If an event is unusual, bizarre, or the first of its kind, it has more news value than if it is something that happens routinely.
  • Conflict: News about war, terrorism, conflicts and crime are widely covered.
  • Relevance: The news story must have relevance and usefulness to its readers. For example, news about business, leisure, exhibitions etc. have a lot of human interest.

गतिविधि 20/Activity 20

एक सप्ताह के समाचारपत्र से ऐसे समाचारों को काटकर अलग-अलग इकट्ठा कीजिए जो असमान्यता, चर्चित लोगों और टकराव/संघर्ष या हिंसा के कारण समाचार बन गए। इन समाचारों को ध्यान से पढ़िए और बताइए कि क्या इनमें नवीनता, प्रभाव और निकटता के तत्त्व हैं? कक्षा में चर्चा कीजिए कि ये समाचार बनने चाहिए या नहीं?

Take one week’s newspapers. Look for news related to unusual events, important people, and conflict/crime. Read these news reports carefully and explain if they adhere to newness, impact and proximity. Discuss in class if these news are worthy of being reported or not.

The Process of News Writing

Good writing is essential for media. Without it important news, intriguing stories, insights and analyses, statements and opinions cannot reach their potential audience.

The next important point is its presentation. After gathering information and collating it, you have to work out the order in which it has to be presented. You have to sift through the collected matter to separate the chaff from the grain. It is then that you decide what should come first and what should follow in order of priority. While writing a news report keep the following aspects in mind.

News Structure

The two most commonly quoted formulae for newswritingareRudyardKipling’ssixquestions also known as ‘Five Ws and How’, and ’the News Pyramid’ also known as ’the Inverted Pyramid’.

The Six Questions

I keep six honest serving-men (They taught me all I knew); Their names are What and Why and When And How and Where and Who.

  • Rudyard Kipling

These six questions - who, what, how, where, when, why - are a useful checklist for news stories. In general, these six questions should be answered somewhere in the story only sometimes there can be exceptions. For example, in the case of weekly newspapers talking about something that happened ’last week’ becomes redundant; the same is the case with a daily newspaper talking about ‘yesterday’. The questions who, what, where and when provide enough information to encourage further reading of the story. Out of these six questions - who and what are the most essential.

Try to locate the answers to Kipling’s six questions in the following news report.

PSLV Puts 10 Satellites in Orbit Very few countries have done it : ISRO chief *** T.S. Subramanian***

Sriharikota: India set a record here on Monday when its Polar Satellite Launch Vehicle (PLSV-C9) fired 10 satellites into orbit in a precisely timed sequence.

As each satellite winged out of the vehicle, it had to be re-oriented to prevent collision. The feat proved the versatility, reliability and flexibility of the PSLV. This was the 13th PSLV flight and the 12th successful one in a row.

A jubilant G. Madhavan Nair, Chairman, Indian Space Research Organisation (ISRO), told a press conference : “This is a memorable occasion for ISRO and India. We have set a record for launching 10 satellites into orbit [using a single vehicle]. Very few countries have done it. Russia launched 13 satellites at a time. We do not know the result. We have shown the world that we can do multiple launches in a precise manner. We are thrilled at the performance.”

Source: The Hindu, 29 April 2008

The News Pyramid

The purpose of the news pyramid, also known as the inverted pyramid, is to show that the news has been presented in descending order of importance. There are two important aspects to this: one is that the reader can stop reading halfway also without loosing the meaning of the full news, and secondly, sub-editors have the scope to cut stories from bottom-up if space is less - again without loosing something important.

The inverted pyramid is a specific style of news writing. It is divided into three parts:

  • the lead
  • the body
  • the end.

Everyone knows the old saying : “If you can’t get their attention in the first sentence (or the first eight seconds) they won’t bother with the rest.”
- Nicholas Bagnall

The lead or intro is a useful starting point for news writing and should be able to stand on its own. Usually it is one sentence which conveys the essence of the story so it should be clear, crisp and concise. It generally ranges between 20 and 30 words. It should be able to catch your readers’ attention instantly so that they read the rest of the story. The best way of writing the intro is to put the human drama first. While writing an intro ask yourself whether your story is essentially who or what - is the focus on the person or on what they have done? This exercise will help you decide whether the person’s name should go in the intro or not. As far as possible, an intro should be about one point not two. The lead in the following news is crisp. Look for the main point.

Women’s Own: Ujjas Radio Based in Bhuj; covers Saurashtra and Kutch Hiral Dave

When Kutch Mahila Vikas Sangathan, an NGO working among Kutchi women since 1989, wanted to reach out to rural hamlets in the largest district of Gujarat, it chose radio as its medium.

Since 1998, programmes of Ujjas Radio have been broadcast from Rajkot Akashwani Kendra. The station has become the voice of Kutchis, especially women. Ujjas Radio, which now has its own recording studio, relays two programmes through Rajkot AIR every Monday and Thursday.

Its 53-episode inaugural programme, Kunjal Panje Kutchji, built around the role of women in panchayati raj institutions, ran for a year in 1998-1999. Kutch Lokjivani has three segments: folk music, history of the region, and Pardafass, an expose of various scandals in the region, especially after the January 2001 earthquake.

From field work, reporting to recording, it’s all done by KMVS volunteers. A team of 10 reporters of Ujjas Radio prepares exclusive stories of rural Kutch, for rural Kutch.

“We’ve been publishing a monthly magazine called Ujjas Patrika since 1992. However, we realised radio would be more effective in reaching women in the villages,” says Preety Soni, vice-coordinator of KMVS. “It’s easily accessible and more popular in rural areas than print.”

The next step is to explain, extend or retell the main point - this is essentially the body of the pyramid. Often, readers need more information and thus the news story should provide a detailed elaboration. It may extend

Clarity, tightness, information - and the news point that is going to start people talking. These are the qualities to seek.

  • LesLie Sellers

up to two to three paragraphs but the focus must remain consistent with the story. Quotes from the people and organisation, who are part of the news story, are an essential part of news story development. While quoting, use said/says to introduce the quote. The variation could be told/tell according to the context. Each paragraph in your news story should flow naturally from the one before it as appropriate transitions make the news readable. Make sure there is coherence of ideas and these are presented in a logical and chronological manner. Repeated use of the word ’then’ is to be avoided. Using verbs such as claim, admit, state etc. is to be avoided unless their usage conveys the precise meaning.

The news story should end neatly. The news can be concluded in a nutshell in the concluding paragraph but it should have unity and relevance.

When you prepare news reports for your school newspaper (daily, weekly, fortnightly or monthly), you collect information from different locales within the school and present them in a readable form. Hence, collecting information is the first step for news reporting. You may get information about an event from two or more sources. This means that you have to collect and arrange all information in correct order.

The language for reporting news has to be simple and straightforward. Avoid complex sentences and difficult words. Call a spade a spade. Remember that simple language has its own elegance which comes from clarity of expression. If a sentence is long-winded, the reader loses the thread of continuity. Just as a camera provides images that are clear and unvarnished, the news report also must have photographic accuracy without any blurring of facts and data. The verbal camera of the news reporter provides for accuracy in reporting.

If you want to succeed as a writer, you must read a lot, think imaginatively, practise writing and always revise what you have written. The following steps can help you while collating information and reporting it.

  • Make a plan before you start writing and revise your plan before you start your research.

  • Write notes before you start writing and then develop the news/ feature/review.

  • Always revise what you have written.

  • Make sure that there are no errors of facts, names, spellings, grammar, or confusion caused by bad punctuation.

  • Last of all, read your story from the reader’s point of view and reflect on the following:

  • Is it making sense?

  • Is it clear?

  • Does it hit the target?

To develop a journalistic style you will need to learn how to use quotes, to handle reported speech, to choose the right word to convey the right message. You will also need to remember what your language teacher would have told you about precis or summary, in which a long passage is reduced to a prescribed length. When reporting is direct and objective, it gains in veracity and authenticity.

  • ‘After’ is a useful way of linking two stages of a story.
  • ‘As’ is often used in intros to link two events that occur at the same time.
  • Use the ‘active voice’ - instead of saying something happened, say who did what to whom. Use the action word.

News reporting for a school magazine or newsletter should make for enjoyable reading. The language should be plain and simple but elegant and to the point. The news report should only be long enough to sustain the reader’s interest and the reporter should work out the order of presentation.

Here is an example of news reporting on a news museum.

As it happened…

K.V.E. Prasad

A news museum in Washington D.C. showcases the evolution of information media and the technologies and the courage that make news possible.

The sight is arresting. The facade of this seven-storey structure is a blend of glass and cement with an imposing 74 -foot-high marble tablet etched with the First Amendment of the United States Constitution bestowing on its citizens freedom of religion, speech, press and liberty…

As one steps into the atrium, a vertical and horizontal expanse greets the visitors. And yet, the seemingly vacuous space almost at once integrates and absorbs everyone there. Welcome to Newseum, a unique interactive museum dedicated to the world of news…

For the tourists

“This (museum) is not for journalists but for the 20 million visitors (who come to Washington DC each year)… to see democracy in action… A free press is the cornerstone in a democracy,” Chief Executive Officer Charles Overby said, summing up the spirit behind creating the Newseum. And the journey begins in right earnest. Just as in newspapers, where the front page showcases what the daily contains, a similar çoncept drives the designers who offer the visitors a glimpse of what they can expect. The 90 -foot-high atrium enables visitors to see at a glance the exhibits from top to bottom. And for those keen to have a finger on the throbbing pulse, a giant, high-definition media screen features historical and current events.

Source: The Hindu, 27 April 2008

Note down the points that have made it good news reporting.

News Reporting: a Glance at the Past

The Post och Inrikes Tidningar (PolT) or Post and Domestic Newspapers, a Swedish newspaper, began in 1645. Regarded as the world’s oldest newspaper, it is now available only on the Internet.

Navjivan, a weekly newspaper edited by Gandhiji was the Gujarati edition of the paper Young India which was also edited by him.

Indian Opinion was a bilingual weekly newspaper published in English and Gujarati by Gandhiji in South Africa during 1903 to 1915. It also had Hindi and Tamil sections for some time.

The Bombay Chronicle was an English newspaper started in 1910. It was a nationalist newspaper and chronicled the political events of pre-independent India.

Coverage of the first Asian Games at Delhi on 4 March 1951 by The Times of India.

Chronicles of a Nation

Checklist for News Reporting

  • As a reporter of a news story you should remain detached; you are not part of the action you describe unless you are an eyewitness. Avoid the use of the word ’ $T$ ‘.
  • Remember, there is no substitute for accuracy.
  • Avoid redundant information. Make it crisp and to the point.
  • Avoid repetitions. Always read and re-read your news story.
  • Make sure that the flow is logical and coherent and it answers the five Ws and one $\mathrm{H}$.

Whether it is a news release, a speech or a brochure, accuracy, brevity and clarity are essential. This is all the more important when the material has to be made available in more than one language. Jargon and flowery phrases do not impress the readers and attempts to translate these satisfactorily from one language to another most often end up giving the opposite impression of what is to be conveyed. Therefore, presentation in simple language is important.

Interview

Almost all news stories have an element of interview inherent in them. The interview has emerged as a journalistic art form through the years. The modern interview, as we understand it, consists of a personal contact between two people: the interviewer (reporter) and the interviewee, and its presentation is a blend of the reporter’s impressions and the interviewee’s ideas and comments. Interviews are regarded as a journalistic staple because of their popularity with the readers who are interested in knowing more about the works and opinions of other people.

An interview can be a pre-arranged informal talk with a dignitary, an artist, a scientist or an informal conversation with a shopkeeper, a vendor, or a follow-up telephone call with someone you have had an interview session or a talk with. The main purpose of an interview is to elicit information on facts, and opinions about issues, situations, or about a person. Some interviews are investigative in nature wherein the interviewer tries to make sure that the information being given is accurate and truthful and the interviewee is not withholding important facts. To achieve this, one must be thorough with the background information of the topic or the person’s work and life. A reporter has to prepare the questions according to the focus of the interview to elicit relevant and maximum information in a specified time duration. Research and detailed peparation are therefore essential elements of interviewing.

Telephone interviews have become very popular these days because they are a quick way of getting information, but face-to-face interviews are more rewarding. The body language of the interviewee and eye contact bring in the element of personal touch which enables the interviewer to make insightful observations and make her/his write-up more engaging.

TYpes OF INTERVIEWS

Interviewing for information goes on all day long in a reporter’s life, whether he is working for a newspaper, a magazine that prints news or features, a radio station that presents news, or a television channel. To a lesser or greater degree, every story involves the use of the interview for information.

Interviews can be classified into three groups: for information or facts, for opinions, and for feature writing. These groups have subdivisions. For example, opinion interviews can elicit emotional responses as well. Informational interviews can lead to an analytical presentation of views if the issue so demands. Other subdivisions can be profile interviews and group interviews.

Informational Interview

These interviews seek information based on facts. Their spectrum is as wide as human endeavour - education, sports, politics, science, finance etc. For example, a scientist has done some breakthrough research. The reporter seeks information on how it was done and its results by interviewing him. Generally the five W’s and H questions are asked for this type of interview.

Opinion Interview

The opinion interview seeks the opinion of the person/persons concerned with an event or organisation, or it can seek public opinion through factual and open-ended questions. Opinion interviews are linked with a person connected with an incident or event. She/he may be a common man, a politician, a well known personality or an expert. The most commonly asked questions are: What is your opinion about this judgement/or this event/incident? What is your assessment of the whole issue? Do you agree or disagree with this? What options do you suggest? What steps are you going to take now?

It is important for the reporter to remember that opinion interviewsmay, at times, result in emotional responses. In such situations she/he should be prepared to be sensitive, and ask appropriate questions without hurting the feelings of the respondent or escalating the situation. Some examples of such situations are covering an accident site, or an agitation which threatens to turn violent.

Personality / Profile Interview

The personality or profile interview also comes under the category of feature interview. In such interviews the emphasis tends to be not only on what the person says, as how and where and why she/he says it. The profile of the subject is developed in totality. The characteristics, the nuances of speech, dress, appearance, personal traits etc. are also taken into account. This makes the reader feel that she/he has almost met the person interviewed.

Group Interview

The group interview seeks the responses and opinions of different people connected with one story. Facts and opinions are obtained through a series of interviews with a number of people. For example, when the Central Government announces the annual budget, newspapers assign reporters to secure the comments of the concerned authorities and the public. Here the reporter summarises her/his findings in a general lead and then quotes the important observations which the experts have given her/him.

Press Conference

A press conference resembles a group interview but its method is in reverse order. It is generally called by important individuals to give out an important piece of news to the public through journalists/reporters. Interviews begin after announcements are over and reporters are free to ask questions for further enlightenment. Press conferences are held in order to save time and also with the purpose of giving all the journalistic media an even break.

The following interview with the Nobel Prize winner, Padma Bhushan Dr R.K. Pachauri gives us an insight into the causes of and remedies for global warming. Read the interview carefully and discuss which type of interview it is.

It is early February and Delhi is hit by a cold wave, so it’s an irony that I’m here to interview Rajendra Kumar Pachauri about global warming. Dr Pachauri’s fifth-floor office in the India Habitat Centre is cluttered with books and files, but is remarkably small for someone who’d just picked up a Nobel Prize on behalf of IPCC, the Inter-government Panel on Climate Change, a UN body that looks at existing research on climate change and makes assessments. Pachauri has been IPCC’s Chairman since 2002. From 1981, he has also headed The Energy and Resources Institute (TERI — the T originally stood for Tata), a think tank that’s become India’s foremost institution on energy, environment and climate change research and policy. With his trimmed salt-and-pepper beard and solemn air, Pachauri, 67, seems to me the quintessential scientist-technocrat.

Environmental experts like Pachauri claim that Planet Earth is steadily warming up because of human activities. Gases, primarily carbon dioxide, emitted while burning fossil fuels like coal, gas and oil, lead to heat being trapped by the atmosphere. That heat causes glaciers to melt, floods, droughts, extinction of species… It’s a long, scary list. Pachauri started talking about all these two decades ago, before ‘global warming’ had really become a common phrase.

In his spare time Pachauri writes poetry in English and opens the bowling in cricket tournaments. He is also the author of several books. Last year, Pachauri’s IPCC shared the Nobel Prize for peace with Al Gore for their efforts in getting the world to focus attention on global warming…

READER’s DIGEST : How did you get introduced to global warming?

R. K. PachaurI : In 1988, I was President of the International Association for Energy Economists. I read a lot of material on climate change then and got very convinced that this is going to be a major problem for the whole globe. But people then thought I was talking nonsense.

RD: Why is global warming so alarming? The earth’s temperature rose by just 0.75 degrees $C$ in 100 years. It’s predicted to rise by 6 degrees in the next 100. There’s more daily temperature variation between day and night.

RKP : Because it’s not a smooth, steady increase that you can say, okay, one summer instead of 45 degrees it’s 47 and we can withstand that. A whole lot of other changes are taking place in the climate. There will be more heat waves, droughts, floods, glaciers melting very rapidly, leading to serious water stresses in several parts. About 20 to 30 per cent species will be threatened with extinction with temperature increases of over

1.5 to 2.5 degrees. Global warming is visible, is measurable and, we project, will really get worse.

RD : But Earth has had drastic climate changes before. So how can we be sure global warming is man-made this time?

RKP : The evidence is strong. Atmospheric carbon dioxide used to be 280 parts per million (ppm) before industrialisation, it’s now over $380 \mathrm{ppm}$. There is more or less a perfect fit between our scientific models that predicted temperature changes and actual observations. If you look at projections for the future, even if we were to stabilise the concentration of atmospheric gases today, climate change will continue for several decades. So, we will have to adapt to its impacts anyway.

RD : It’s said that the developed world is primarily responsible for this.

RKP : Yes, because you are not dealing with today’s emissions. It’s the cumulative effect of emissions over time, for which developed countries are increasing their emissions but our contribution to their concentration is still very small.

RD : How will India be affected?

RKP : Our low-lying coastal areas could get submerged. Sea-level rise is a threat to the Sunderbans. The kinds of events, like the record rainfall you saw in Mumbai in 2005, will happen frequently, with much more intensity. Our glaciers are melting; the flow in our river systems in at least the northern parts will be affected.

It’s already happening and will worsen unless we arrest this change.

RD : Doesn’t taking measures against climate change come at the cost of development?

RKP: That’s a myth. We have to bring about a transition in our development. Take transportation. Should we follow the North Americans, where one person drives 100 kilometres everyday to get to work? We don’t need that. We need better public transport. Technology can make a difference. TERI has a major training complex which uses no power from the grid. We have to come up with solutions where we can become leaders because the rest of the world is also going in the same direction. And if we do it first, we also have a commercial advantage.

RD : How do you reverse global warming? Is that possible?

RKP : Theoretically, yes. You will have to really bring down your emissions to below zero and find ways by which you can absorb existing carbon dioxide. Technologically, that’s entirely possible. It may happen in 30,40 , or 50 years into the future.

$\mathrm{RD}:$ But it requires political will.

RKP : That’s where it’s so essential to create awareness among the public. Because at least in the democracies of the world, people will put pressure on leaders to do what is expected of them.

RD : How can we ordinary citizens help prevent global warming?

RKP: Use energy sensibly. Use compact fluorescent lamps. Avoid incandescent bulbs. Make sure your air-conditioner is set at a level where you are not freezing. In most five star hotels, you need a quilt at night, even at the peak of summer. It’s ridiculous!

RD : How do you yourself lead an environment-friendly life?

RKP : I don’t do a very good job because I’m on an airplane all the time. So, in that sense I am not a very good model. But I only buy the things I really need. I try to minimise on the use of a car. Even if I step out of my office for two minutes, I switch off the lights. In little ways, I try not be a burden on Mother Earth.

  • an excerpt from an interview by MadhavankutTy PILLAI
  • in the Reader’s Digest

PREPARATION FOR INTERVIEW

Before the interview, it is essential to do some research on the subject and the person concerned. The research can be done on the person’s work, his areas of interest, background, motivational factors - information can be obtained by talking to the people who are associated with that person. You may also go through written records such as articles, previous interviews, books etc. written on or by the person. For these you can go to the library or use the Internet. Always make sure that the information is authentic as it facilitates asking relevant and appropriate questions to elicit information during the interview. Another important preliminary requirement is to set a time and arrange for a venue for the interview.

One must understand that the person has to be interviewed well to elicit the best reponses. Some people are outspoken, some are shy, some others, even though they may have done outstanding, interesting or unusual work, become very formal when it comes to an interview. Your preparation requires understanding the personality type and preparing questions accordingly.

PReparing Questions for the InterViEW

What is the purpose of the interview? What information do you want from the interviewee? With this focus you will be able to prepare the most relevant questions. Keep the readership/ audience in mind as well and, accordingly, prepare the questions. A successful interview depends on the kind of questions you ask. If the questions are interesting, the answers are bound to be interesting too. Always keep the focus of your story in mind while preparing and also while asking your questions.

Unfocussed interviews lead to long talks that usually do not serve any purpose. By writing down questions you want to ask, you will be able to stay on track during the interview. However, remain flexible as you might have to change the questions or their order during the course of the interview.

The first question of the interview sets the tone, so spend some time beforehand thinking about what you want to say. Avoid close-ended questions, or questions where the subject can respond with a ‘yes’ or ’no’. Instead, ask neutral and open-ended questions that will help you to understand what happened, how it happened and why. Guestions that judgements and facts are verifiable. The entire ambience of the place is part of your interviewing. This is where your creativity will help you set the tone or background of the interview.

Develop critical thinking skills - it will help you to understand the statements, assumptions, any kind of bias or ambiguity and gain a clear perspective.

गतिविधि 21/Activity 21

अपने स्कूल के लाइब्रेरियन या शारीरिक प्रशिक्षक या प्रयोगशाला सहायक से स्कूल पत्रिका के लिए एक साक्षात्कार लीजिए। इसमें उपलब्ध सुविधाओं, उनके लाभ, विद्यार्थियों की रुचि, तैयारी आदि मुद्दों पर बातचीत करके उसे लिखिए।

Interview the librarian/physical instructor/laboratory assistant of your school for the school magazine. Your interview may focus on the available facilities, their benefits, the interest of students and their preparation. Transcribe the interview.

The Process of Interview

  • If possible, record the entire interview in a tape recorder. If that is not possible, note down every detail.
  • Your interview should begin with greetings and end with a note of thanks. Remain polite and courteous throughout the interview and conduct it confidently.
  • You may request the interviewee to give her/his photograph to be published along with the interview. Start your interview with a simple and straightforward question.
  • Prepare your questions before you set out for the interview because if you begin the interview by asking questions from your notebook, the interview might be affected and may lack spontaniety. The questions that you have prepared/researched should serve you as a working format and help you to cover every aspect but not restrict or impede your spontaniety.
  • Let the interview flow with ease. Do not interrupt when the interviewee is speaking. This will break the speaker’s line of thought. Wait for the person to conclude before starting a new question.
  • Be a good and attentive listener. You have to make the interview more of a dialogue than a question-answer session. Ask questions that arise out of the interviewee’s statements so that the flow and continuity are maintained. Note down all the quotes and sources carefully.
  • While doing features and profiles, your observations, ability to appreciate colour and other details will illuminate your story.

‘This is off the record’ - means that the information being given is not to be published. ‘On-background’ means you may publish the comments of the subject but don’t mention her/his name. You attribute them to a ‘source’.

WRITING THE INTERVIEW

Once the interview is over, read all the facts that you had gathered about the person before the interview to give an appropriate introduction. Your language must be simple and you should not allow your admiration for the person to break into a hyperbole about her/him.

Write the interview on the basis of what you have recorded or written in your notes. Try to write it as soon as the interview is over so that you remember all the points clearly.

Always re-read the interview. Make sure there are no errors factual or grammatical. Your language and style should be appropriate and consistent.

An interview can be presented in two ways. One way is to introduce the interviewee, specify the reasons for the interview, highlight the main focus of the interview, then give the whole interview.

Another style is to write it as a feature. In feature writing you include the body language and also the whole ambience of the place. The questions and their answers may not be presented in a conventional style but can be written in a narrative style.

The factual interview, and often the group interview, can be presented in the inverted pyramid style. You write the lead, which summarises the chief news obtained and answers all the Ws. The succeeding paragraphs deal with important questions. In this, avoid giving your own questions and write the interview in such a manner that the answer implies the question that has been asked. Giving direct quotes is also a good idea as it gives authenticity to the matter being reported.

While reporting opinion interviews, put forward facts with opinions and give them prominence as readers want to know what the interviewed person thinks. After transcribing the interview, show the draft to the interviewee for approval. This ensures authenticity and also makes sure that nothing of importance has been left out.

Review

Reviews are an integral part of any newspaper, news magazine or newsletter. A review provides basic information about a new book, a film, or an artistic activity (theatre performance, art exhibition etc.) to keep the readers up-to-date with current events and views on them even if they have not read the book, or seen the film, or were unable to attend the event in person. People read reviews to seek the opinion of somebody who is well informed. A well-balanced review not only informs the reader about the significant features but also motivates them to read the book, or watch the film or theatre performance, or listen to the reviewed music album. Reviews guide the reader by giving relevant inputs so that it becomes easy to make a choice according to one’s interest and requirement.

Reviewing is critical appreciation and analysis of printed and audiovisual materials which are meant to be used by the masses from all walks of life. A newspaper or a magazine will include reviews that its readers have interest in. This, in turn, ensures a dedicated readership for any reviews the readers may write letters to the editor offering a different perspective.

अपने शहर में होने वाली किसी प्रदर्शनी / क्राफ्ट मेला / पुस्तक मेला घूमने जाएँ। वहाँ लगाई गई किताबों। वस्तुओं/कलाकृतियों के बारे में जानकारी हासिल कीजिए और लिखिए। वहाँ जाने वाले दर्शकों के विचार, पुस्तकें/ वस्तुएँ आदि की विविधता और प्रदर्शनी की अवधि, सुविधाएँ, शिल्पकारों/ प्रकाशकों के विचार और आपके स्वयं के विचार नोट करें। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मेले पर एक समीक्षा लिखिए।

Visit an exhibition/a fair/a book fair/a craft fair organised in your city. Collect information about the displayed books/ items/crafts in the exhibition. Note down details such as the viewer’s response, kinds of items covered, duration of the exhibition, views of the craftsmen/publishers, other arrangements, and also your own analysis of the exhibition in totality. Write a review keeping in view all the aspects of the exhibition.newspaper or magazine. In response to some

In any newspaper, specially the Sunday edition, you will find reviews of books, music, dance, theatre, films, art and other exhibitions. The moot point for any aspiring writer of reviews is that she/he must be well acquainted with the subject that she/he is about to review. You must be a good and versatile reader before you can undertake reviewing books. Similarly, without a knowledge of drama, music and dance, it will not be wise to review the performing arts. One should be familiar with art forms to write about painting or sculpture. So the essence of writing reviews is closely linked to one’s interest and knowledge in that particular field. To review a particular branch of the arts selected one must have a definite liking and adequate knowledge in the given field as well as a well-defined point of view. The value of the opinion expressed in a review depends on the extent of the reviewer’s knowledge of the subject.

Where reviews of local events (theatrical or musical), or the artistic life of a community are concerned, newspapers and magazines play a very significant role in strengthening the ties between newspapers and their readers.

Reviews are written for readers, not for the writer or the artist or the film-maker whose work is being reviewed. This does not mean that the reviewer should twist and turn information to make the readers happy, but her/his task remains serving the readers.

While reviewing, you should approach the subject under review with an open mind; you should be honest, unifluenced, unbiased in your review. It is a good practice to review your own review to make sure that your assessment is clear, crisp and engaging.

In some cases, you may get only one chance to watch the play or attend the musical concert that you have been assigned to review. Make sure that you take down adequate notes. Record each and every detail: stage setting, ambience, costumes, decor, colours, lighting, dialogues etc. and keep all your senses alert.

Film Review

Writing a film review for a ‘specialist’ magazine, or for the entertainment page of a local newspaper, differs in terms of its analysis. A special report looks for the salient features of the film, the genre to which it belongs, the production techniques etc; whereas for the entertainment page, a brief synopsis of the film in terms of plot, narrative, characters, special effects and entertainment value is given. Along with this information, it is important to give basic information such as the venues and dates of the film’s shows. Classification of the film is of prime importance to the reader - whether it is a family drama, a musical, an adventure story, science-fiction or a mixture of these genres. The review should definitely mention this.

After watching the film that is to be reviewed, it is important to take down notes immediately. This will be of great importance when you actually sit down to write the review. These notes should be detailed enough to bring back to memory the images that you found most appealing.

While writing a film review include all the important aspects of the film. Give a brief outline story of the film. Follow this with details about what you thought of the film. Was the film thought provoking? Did it have lasting images and ideas that caught your attention? What is its theme? Is the script convincing? Is it original or based on any novel or real event? How has the story been treated? Are there any loose ends? Does it make an impact? Besides this the performance of the actors, the music, photography, sound, special effects, dialogues, direction etc. need to be critically evaluated as well. Finally, you must state if you would recommend it for viewing or not.

If you enjoyed a particular scene, say so. Justify your statements with illustrations, explanations or arguments. If you say ‘such-and-such’ was a funny movie, you need to quote lines or describe a scene illustrating the humour in it. An example is more clearly understood than a simple statement. Whatever you say cannot be absolute. By quoting an example of what you found funny, you allow room for readers to conclude that your sense of humour and theirs may be different. This holds true for a book review also.

Never say that you liked/disliked a certain movie without giving your reasons. Conclude the review by summing up your views briefly.

The National Award winning film Iqbal was a thought provoking film and could capture the interest of all kinds of audiences. A review of the film is given below as an example.

Cast: Shreyas Talpade, Naseeruddin Shah, Shweta Prasad, Girish Karnad

Director: Nagesh Kukunoor

Genre: Feel-good drama

Storyline: It is about the grit of an 18-year-old boy, with a disability, to find a place in the Indian cricket team.

It bowls you over. You can’t help but admire Nagesh Kukunoor. There’s a certain honesty about Kukunoor’s films that makes them instantly likeable. Iqbal has to be Kukunoor’s best work till date and one of the best films of all times. Every frame oozes inspiration, every scene comes alive with candid ingenuity.

Iqbal is the story of an 18-year old boy who dreams of making it to the Indian cricket team. The fact that he cannot speak or hear is just a matter of academic interest. It’s the attitude with which Kukunoor handles disability without ever making you feel sorry for Iqbal, that takes him beyond all set boundaries of film-making.

Right from the very first frame, Iqbal is an authentic film about the true-blue son of the soil who never says die.

Shreyas Talpade as lqbal is the find of the year. The young man epitomises innocence, his face speaks volumes, even when he’s not talking at all - from enthusiasm to learn the game to the grit to not give up, Shreyas portrays it all with conviction and credibility, with the ease of a veteran.

Shweta Prasad as his bespectacled sister Khadija is endearing, as she holds her own against first-rate performers such as Shreyas and Naseeruddin Shah. Naseer comes up with yet another brilliant portrayal as Mohit, a disillusioned alcoholic, who transforms into a spirited coach, albeit hesitantly.

Even the supporting cast of Iqbal’s endearing mother (Prateeksha Lonkar) and disapproving, struggling farmer fatherAnwar (Yatin Karyekar) come up with wonderful performances. Only Girish Karnad as Guruji seems a little rigid and the character too remains a little ambiguous as you are left wondering if he is Mohit’s coach or team-mate or both (given that Mohit and Kapil Dev too call him Guruji but Iqbal finds both of them in a team photograph).

The lingering moments in the film are several. The way the mother, son and daughter

hide their passion for the game from the cricket-hating father is delightful just like the bond between Khadija and Mohit after she initially disapproves of his ways. Technically too, Iqbal is well-framed with a pretty neat background score. The Kay Kay number “Aashayien” tugs at the heart-strings.

  • SUDHISH KAMATH

Book Review

In order to write a book review, one must have adequate knowledge of that genre of writing: be it fiction, non-fiction, biography, children’s literature or general literature. Always keep in mind that no book stands in isolation. It is a good idea to be well-versed about the author and her/his previous works before you start reviewing her/his new work. Also, one has to be fairly acquainted with the subject of the book to be reviewed. If it is a science fiction, one should have some knowledge of the fundamentals of science before attempting an interpretation of the book. If you want to review a book of art for children, you have to read the history of children’s art and place the book under review in the right context. Clearly, background knowledge is indispensable for a reviewer.

You should also not be critical and judgemental of the piece you are reviewing. A good book review is more like explaining and interpreting a work rather than criticising it. In other words, you have to be objective and not be biased either in favour of or against a particular writer. It is said that the reviewer should steer clear of all biases - personal, cultural, religious and gender. The reviewer should assess the book on its merits and should not bring in extraneous factors to praise or criticise it.

A book review is not a summary of a book. Read the book thoroughly. While reading the book note down its main points. Then reflect on such questions: What is the book about? What is the objective of this book? What are the issues that have been dealt with and how have they been dealt with? What is new and original in the book? Analyse how effective the author’s arguments, analysis, discourse and presentation are. Comment on the style and the language of the book, how useful it is and for which kind of readership. This means that you have read the book attentively.

It is helpful to include a little background about the author and any general details about the book that might be useful to the reader in your review. For example - Is this the first book that the author has written? Was it written at a particular time? Does the book or the author fit into a particular literary movement? If this is not the first book of the author mention how it compares with other books by her/him.

For a non-fiction book you can tell what special knowledge the author has in relation to the subject of the book. If it is a biography, did the writer ever meet the subject, were they friends or was he assigned the work as a research project?

A brief introduction about the author should be included in a review and this can be a good starting point. The next step is giving your opinion. What do you think about the book? Do you find it entertaining, useful, boring? In this section you can talk about any unusual theme that you might have noticed. Is the author trying to make a specific point? Does she/he succeed? You can talk about the style of writing. Is it a traditional novel or something different? Specific points about the characters or plot can also be made. Are these characters close to real life? Is the story realistic? What impact has it made on you? While mentioning all these aspects keep your comments brief. There is no need to give an in-depth analysis of the text. Do not forget to quote the relevant portions from the book to illustrate your points.

Fiction

Give brief descriptions of the setting, the point of view (who tells the story), the protagonist, and other major characters. If there is a distinct mood or tone, discuss that as well. Give a brief summary of the plot along with the sequence of major events - you may or may not disclose the book’s climax or ending.

Non-fiction

For most non-fiction books also the above mentioned points have to be kept in mind, but it requires a more indepth description of what subject area the book covers. Give a general overview of the topic, main points, and arguments. What is the thesis? What are the important conclusions? Don’t try to summarise each chapter or analyse every angle. Choose the ones that are most significant and interesting to you. You can write your own opinions, but make sure that you explain and support them with examples.

For reference books it becomes essential to give details about what aspect of the subject is being covered so that a potential reader can be sure that this is the book she/he wants.

Also point out whether the writing is effective, powerful, difficult or easy. What are the strengths and weaknesses of the book? Give your overall

गतिविधि 23/Activity 23

पोर्टफोलियो के लिए हाथ से लिखकर एक छोटी सी पत्रिका तैयार कीजिए।

Prepare a small hand-made magazine for your portfolio. impression of the book and a final comment on why people should read it.

The language has to be simple and lucid so that your interpretation and explanation become comprehensible to all readers. Make sure that you have read the proofs carefully before you send your review for publishing.

A good reviewer has to present a balanced and objective analysis of all the interpretations. The review should be left open-ended, rousing the intellectual curiosity of the reader to go deep into the book and come to her/his own conclusions.

Given below is an example of a book review.

Birds of India - A Literary Anthology, edited by Abdul Jamil Urfi, Oxford University Press, New Delhi, 2008, pp 416, Rs 650

Joanna Van GRUISEN

I’m not really an anthology person, but reading Abdul Jamil Urfi’s anthology has changed my mind. The book is a fascinating collection that includes most of the known authors of the bird world and a few surprises. It contains description, whimsy, revelation, mystery, history, humour, fact, fiction, beauty and more; yet manages to be a homogenous whole.

You do not need to be a dyed-in-the-wool bird lover to appreciate this volume. There is something for everyone, including even those with no interest in watching

birds, such as the delightful piece by Zai Whitaker on "survival among birdwatchers".

There are wonderful historical pieces ranging from the Babarnama and Jahangirnama through the nineteenth and twentieth centuries - largely British — writers, such as Jerdon, Hume, EHA and Bates, to our incomparable Salim Ali, even present day ‘history’ such as the shockingly opulent falcon hunting of houbara described by Mary Anne Weaver. Connecting threads run through these and crisscross with many others.

In addition to Urfi’s helpful short biographies on each author, there are absorbing and amusing insights of the writers from their contemporaries. The reader of course gains even more insights into the characters of birds; the wide range of perspective adds understanding to their ecology and conservation. The details and the sheer enjoyment that seeps through the prose spurs the reader on.

I only wish there were an index.

  • Source: Outlook, 3 March 2008

While reviewing, remember

  • Before writing a review refer to your notes and focus on the most important issue of the book, film, play, exhibition etc. Also mention other issues and factors.
  • Always keep in mind the kind of readership/audience you have. Do not be judgemental in your review. Leave it open-ended for the readers to draw their own conclusions.
  • At the head of the review give the title of the book, the author’s name, the publisher’s name, place of publication, the number of pages and the price - known as four p’s.
  • Similarly, for a film review, give important information right in the beginning such as the name of the film, director’s and producer’s names, names of actors, music director and scriptwriter, to capture and retain the reader’s attention.
  • If you are reviewing a book, in the opening paragraph describe - its genre, the type of story the author has written and the time in history in which it takes place. Do not tell the whole story but describe the main characters and the way the author involves them in his/her plot.
  • You may point out any weakness that you might have come across in the book/ film/play. However, remember that it is not imperative to criticise.
  • Keep in mind the specified word limit according to the requirement of the newspaper, magazine or newsletter.
  • Always re-read the review. This will help you bring in clarity, eliminate errors or redundancy, and keep it crisp and to the point.

संवाद / Exercises

1. आप कौन सा अखबार पढ़ते हैं और उसमें आपको क्या अच्छा लगता है? Which newspaper do you read? What do you like about it?

2. कल्पना कीजिए अगर समाचार मीडिया न होता तो दुनिया कैसी होती? Imagine what the world would be like if there were no news media.

3. ‘सचिन का क्रेडिट कार्ड गुम हो गया’ - यह समाचार बनने योग्य है या नहीं? क्यों / क्यों नहीं?

‘Sachin lost his credit card’ - should such an incident be reported? Why/Why not?

4. मौसम हमारी ज़िदगी को प्रभावित करता है, लेकिन इससे जुड़ी खबरें सिर्फ़ आँकड़ों तक सीमित होकर रह जाती हैं। आप कुछ मौसम बुलेटिन देखिए और सुनिए। अब आप एक रोचक मौसम बुलेटिन तैयार कीजिए।

Weather affects our lifestyle but news related to weather is dull and only statistical. Listen to some weather news, and re-write it in order to make it more lively and interesting.

5. ‘राजधानी का सबसे ठंडा दिन’ - यह एक समाचार है, इसका

गतिविधि 24/Activity 24

आपके आस-पास खुले मेनहोल / दूषित पानी /बिजली की समस्याएँ आए दिन देखने को मिलती हैं। किसी एक समस्या को ध्यान में रखकर अखबार के संपादक के नाम पत्र लिखिए। एक प्रति अपने पोर्टफोलियो में भी चिपकाइए।

height=“300px"You come across open man-holes/stagnant water/ electricity problems in dayto-day life. Keeping in mind any one issue, write a letter to the editor of a newspaper and put one copy in your portfolio. शीर्षक बदलकर आकर्षक ढंग से लिखिए।

6. वार्तालाप और साक्षात्कार में क्या अंतर है?

What is the difference between conversation and journalistic interview?

7. हाल में पढ़ी हुई किसी पुस्तक या देखी हुई किसी एक फिल्म की समीक्षा लिखिए।

Write a review of any book or film that you have recently read or seen.

8. किसी पढ़ी हुई कहानी के कथानक, भाषा, प्रस्तुति, संवाद, शैली औरं पात्रों के आधार पर उसकी समीक्षा कीजिए। उसकी खूबियों और कमियों को स्पष्ट कीजिए।

Review a short story that you have read on the basis of plot, language, presentation, dialogue, style and characters. Bring out its positive and negative aspects.

9. एक साहित्यकार / कलाकार के साक्षात्कार से पहले आप क्या तैयारी करेंगे? उनसे पूछे जाने वाले कुछ सवालों की एक सूची बनाइए?

How will you prepare yourself before interviewing a literary writer or an artist? Make a list of questions that you would like to ask.



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