अध्याय 01 सृजनात्मकता और लेखन
कलम रुकती नहीं …
क्या यह संभव है कि भला कोई जंगल में हो घंटाभर घूमे और फिर भी कोई विशेष चीज़ न देखे? मुझे - जिसे कुछ भी दिखाई नहीं देता - सैकड़ों रोचक चीज़ों मिलती हैं, जिन्हें मैं छूकर पहचान लेती हूँ। मैं भोज-पत्र के पेड़ की चिकनी छाल और चीड़ की खुरदरी छाल को स्पर्श से पहचान लेती हूँ। वसंत के दौरान मैं टहनियों में नयी कलियाँ खोजती हूँ। मुझे फूलों की पंखुड़ियों की मखमली सतह छूने और उनकी घुमावदार बनावट महसूस करने में अपार आनंद मिलता है। इस दौरान मुझे प्रकृति के जादू का कुछ अहसास होता है। कभी, जब मैं खुशनसीब होती हूँ, तो टहनी पर हाथ रखते ही किसी चिड़िया के मधुर स्वर कानों में गूँजने लगते हैं। अपनी अँगुलियों के बीच झरने के पानी को बहते हुए महसूस कर मैं आनंदित हो उठती हूँ। मुझे चीड़ की फैली पत्तियाँ या घास का मैदान किसी भी महँगी कालीन से अधिक प्रिय है। बदलते हुए मौसम का समाँ मोरे जीवन में नया रंग और खुशियाँ भर जाता है।
-हेलेन केलर
(हेलेन केलर (1880-1968, अमेरिका) एक ऐसा नाम है जो घोर अंधकार के बीच भी रोशनी देता रहा। कल्पना कीजिए कि जो न सुन सकता हो, न देख सकता हो फिर भी वह लिखना-पढ़ना और बोलना सीख ले, भरपूर आशा-आकांक्षा के साथ जीवन जीने लगे और उसके योगदान दुनिया के लिए यादगार बन जाएँ! ऐसी थीं हेलेन केलर।)
I. सॄजनात्मकता क्या है?
अगर हम अपने आस-पास नज़र डालें तो पाएँगे कि हर जगह, हर वस्तु में जो जीवित है, कुछ न कुछ हो रहा है। सामने का पीपल का पेड़, जो सारे पत्ते झाड़ चुका था, नए लाल पत्तों से भर रहा है! क्यारी में लगा भिंडी का पौधा अपने फूल गिरा अब बहुत छोटी-सी भिंडी बाहर ला रहा है। अमरूद के रूखे पेड़ का हरा फल धीरे-धीरे पक रहा है। आम की मंजरियाँ पहले छोटे टिकोलों में, फिर पूरे हरे फल में, फिर हरा फल पीले पके फल में, और फिर उस फल की गुठली से कत्थई पत्तों वाला नन्हा पौधा - यह क्रम चलता रहता है। यही तो प्रकृति की सृजनात्मकता है। प्रकृति सबसे बड़ी सर्जक है।
मनुष्य ने भी प्रकृति से यह गुण सीखा। आरंभ से ही वह भी प्रकृति के साथ-साथ और समानांतर सृजन करता आ रहा है। जब वह गुफाओं में रहता था तब भी उसने गुफाओं की दीवारों पर तरह-तरह के चित्र बनाए। भोपाल के पास भीम बैठका में बहुत प्राचीन गुफाएँ हैं। वहाँ ऐसे चित्र हैं।
अपारे काव्यसंसारे
कविरेकः प्रजापतिः।
यथास्मै रोचते
विश्वं तथैव परिवर्तते॥
- ध्वन्यालांक आचार्य आनंद्वर्धन
भीमबेटका की गुफा के चित्र
पहले मनुष्य फल इकट्ठा करता था और जानवरों का शिकार करता था। आगे चलकर मनुष्य ने अन्न उपजाना (खेती करना) शुरू किया। खेती बहुत बड़ा सृजन है। धान के बिरवे से लेकर चावल के दानों का हमारी रसोई में पहुँचने तक लगातार सृजन होता रहता है। इसी सृजन और श्रम के दौरान मनुष्य ने गान और नृत्य भी रचे। नृत्य सबसे आदिम कला है। यहाँ शरीर ही माध्यम है। मनुष्य ने जीवन जीते हुए सौंदर्य की सृष्टि की। हर चीज़ में, हर काम में सौंदर्य है। खेतों की सुघड़ क्यारियाँ, पेड़ों की पाँतें, नदियों के घाट, रहने
के घर, पहनने के कपड़े - सब में मनुष्य ने सुंदरता की रचना की। जब हम माँ को रोटी पकाते देखते हैं तो लगता है ‘दुनिया की सबसे आश्चर्यजनक चीज़’ बन रही है। रोटी का गोल-गोल बनना और तवे पर फूलना - यही तो सृजन है। सोचने पर लगता है कि इस एक गोल, पकी हुई, भाप भरी रोटी के पीछे कितना श्रम, समय और मन लगा होगा। गेहूँ की बुवाई से लेकर रोटी के फूलने तक - सृजनात्मकता की सबसे बड़ी गाथा है।
सॄजनात्मकता के विविध रूप
इसी तरह मिट्टी का एक लोंदा आकार लेता है। देखते ही देखते गीली मिट्टी का एक गोला घूमते चाक पर कारीगर की हथेलियों के बीच सँवरते-सँभलते सुघड़ सुराही में बदल जाता है। कभी-कभी यह देखकर आश्चर्य होता है कि मनुष्य का हाथ कैसे मिट्टी को सुडौल आकार दे देता है। इसी तरह मूर्ति भी बनती है। शुरू में कुछ भी नहीं होता। बस पुआल, बाँस की खपच्चियाँ और मिट्टी। देखते ही देखते मनुष्य की देह जितनी बड़ी आकृति बन जाती है। पत्थर को तराशकर, पहाड़ को काटकर ऐलोरा की महान मूर्तियाँ बनीं। कई बार एक ही रचनाकार अपने आप को कई कला रूपों में अभिव्यक्त करता है। रवींद्रनाथ ठाकुर, महादेवी वर्मा, शमशेर आदि ऐसे ही रचनाकार हैं।
मिट्टी को आकार देते हाथ
रोज़मर्रा के जीवन में सृजनात्मकता
सृजनात्मकता के विषय में जब हम सोचते हैं तो आमतौर पर साहित्यकारों, चित्रकारों, फिल्मकारों आदि जैसे कुछ खास व्यक्तियों की उपलब्धियों की बात ही दिमाग में पहले कौंधती है। निस्संदेह अपने क्षेत्र में ये सृजनशील हैं, पर सृजनशीलता का पटल इन जाने-माने व्यक्तियों की कृतियों से कहीं अधिक विस्तृत है। पहली बात जो सृजनशीलता के विषय में समझने की है, वह यह कि इसे जनसाधारण की रोज़मर्रा की ज़िदगी की गतिविधियों में भी
महादेवी वर्मा का एक रेखांकन
गतिविधि 1
आपको कहाँ-कहाँ किस-किस रूप में सृजनात्मकता का अहसास हुआ -
अपने आस-पास घटने/होने वाली ऐसी गतिविधियों की सूची बनाइए।
उनमें से किसी एक का वर्णन कीजिए।
How and in which forms have you experienced creativity?
Make a list of creative activities that you see happening around you.
Describe any one in your own words.
देखा, अनुभव किया जा सकता है। जैसे कि, कैसे एक प्राइमरी स्कूल का शिक्षक बच्चों को बेहतरीन कहानियों के ज़रिये इतिहास के पाठ यूँ पढ़ाता है कि बच्चों में कल्पनाशीलता और विषय के प्रति विशेष रुचि जग उठती है; कहीं एक स्त्री अपने शिशु की देखभाल करती है और बहुत कम आय में ही अपनी गृहस्थी को सुघड़, सुव्यवस्थित ढंग से चलाकर उसके घिसे-पिटे ढर्रे में एक नवीनता, एक सौंदर्य लाती है या कहीं एक माली पौधों की पहचान, चुनाव तथा देखभाल इतनी निपुणता से करता है, जैसे कि उसे वनस्पति शास्त्र की पूरी जानकारी हो। कहने का मतलब कि सृजनशीलता हम क्या करते हैं इसमें नहीं, वरन् खासतौर पर इसमें है कि हम उसे किस प्रकार करते हैं। हमारे लिए उस छोटे से काम का या बात का क्या अर्थ है। इसी अर्थ में सृजनात्मकता उपयोगिता से परे है।
कल्पना सृजनात्मकता का उत्म है
सुबह उठकर जैसे घर साफ़-सुथरा करते हैं, चीज़ों करीने से रखते हैं, चादर बिछाते हैं, मन को भी खँगालने-सँवारने, सिलवटों से उबारने की ज़रूरत पड़ती है। हार्दिक संवाद इसमें हमारी मदद करते हैं। माँ रोटी गोल बेलती है; ठेकुए पर साँचे से फूल बनते हैं; आखिर क्यों? कल्पनाएँ क्यों बनती हैं?
बँधॆ-बँधाए, एक ढरे पर होने वाले स्टिरियोटाइप रूटीन, मशीनी काम-काज और रंग-ढंग किसी भी व्यक्ति को मानवीय गरिमा से गिराते हैं। सच्चा मनुष्य हर क्षण, हर कदम पर एक अज्ञात पेड़ लगाता चलता है, सबके जीवन में नया रस-रंग भरता चलता है। यही उसकी सृजनात्मकता का आग्रह है। पढ़ना-लिखना, चित्र बनाना, नाचना-गाना, मूर्ति बनाना ही सृजनात्मक काम हों, ऐसा नहीं है। जीवन के पेंच सुलझाने वाला, प्रकृति और मानव मन-मस्तिष्क के रहस्य समझाने वाला, अपने घर और समाज की सुख-सुविधा और मानसिक सुख-शांति में इज़ाफ़ा करने
वाला छोटे-से-छोटा काम सृजनात्मक है। हर वह काम सृजनात्मक है जो बृहत्तर हित के लिए एक खास तरह की टीस और प्रेरणा के साथ सौ कष्ट उठाकर भी मनोयोगपूर्वक किया गया हो - कोई उदास बैठा हो तो उसे हँसा देना, बहुत बड़ा बोझ लेकर चलने वाले का बोझ उठा देना, दृष्टिहीन व्यक्ति को सड़क पार ले जाना, किसी की नैतिक कुहेलिका सुलझाने में मदद करना, किसी का आर्थिक-मानसिक अवलंब बनना - सब नेक काम सूजनात्मक आवेगों के तहत ही होते हैं।
(संवेदनशीलता का उत्कर्ष ही सृजनशीलता है)
इस बार कोलकाता गया तो कई नए अनुभव हुए। पहला, किंचित आश्चर्य-भरा अनुभव तो यही हुआ कि कविता के श्रोता अब भी हैं और बड़ी संख्या में मौजूद हैं। सि.र्फ वे रास्ते हम भूल गए हैं जिनसे होकर उन तक पहुँचा जा सकता था। इस मुद्रण के युग में यह थोड़ा विचित्र लग सकता है, पर सच यही है कि मुद्रित पाठ को जड़ता को अपेक्षा जीवंत वाचिक संप्रेषण आज भी ग्रहीता तक पहुँचने का सबसे विश्वसनीय माध्यम है। … एक अनुमान के अनुसार, तीन दिन तक चलने वाले उस समारोह में कोई पाँच हज़ार श्रोता प्रतिदिन आते हैं जिनमें से अधिकांश युवा होते थे। इस ‘पाप कल्चर’ से आक्रांत समय में युवा पीढ़ी का इतनी बड़ी संख्या में कविता के साथ जुड़ाव गहरी आश्वस्ति का कारण था। यह सिर्फ़ कोलकाता में संभव था - जहाँ एक चिड़िया के बच्चे के बिजली के तार से चोट खाकर सड़क पर गिर जाने के कारण, आज भी, कुछ देर के लिए यातायात अवरुद्ध हो सकता है। सर जगदीश चंद्र बोस रोड पर घटित होने वाली यह छोटी-सी घटना कोलकाता की स्मृति का हिस्सा बन चुकी है जहाँ भीड़-भरी दोपहरी में एक गौरैया का बच्चा सड़क के बीचोंबीच गिर पड़ा था और दोनों ओर से कुछ समय के लिए आवागमन अवरुद्ध हो गया था। इस मामूली-सी घटना और कविता के प्रति किसी शहर के रुझान के बीच कोई सीधा-संबंध नहीं है। पर, मुझे लगता है कि यह मामूली-सी घटना इतनी मामूली नहीं है कि इसे बंगीय मानस की कोरी भावुकता कहकर टाल दिया जाए। कविता के लिए पाँच हज़ार की भीड़ का इकट्ठा होना और एक घायल चिड़िया के लिए भागती हुई भीड़ का सड़क पर ठहर जाना, इन दो अलग-अलग घटनाओं के बीच कोई न कोई रिश्ता ज़रूर होना चाहिए।
- कव्रिस्तान में पंचायत, केदारनाथ सिंह
भाषा में सृजनात्मकता
इसी रचनात्मक आवेग के तहत धीरे-धीरे मनुष्य ने भाषा बनाई। भाषा में गीत बनाए। हमारे लोकगीत ऐसे ही बने। सिर्फ़ बोलकर, गाकर ये गीत शताब्दियों से चले आ रहे हैं, जैसे यह आदिवासी गीत-
हे सालू!
चलो हे सुग्गा! चलो!
ऊपर टोले में पीपल का फल खाने चलें!
हे सालू! चलो, हे सुग्गा! चलो!
नीचे टोले में बड़ का फल चखने चलें!
या
रास्ते में साखू का फूल लहरा रहा है!
रास्ते में वो युवती मुसकुरा रही है!
बाद में मनुष्य ने लिखना सीखा। तब उसने गीतों को लिखना शुरू किया। बोलते तो सब हैं। अलग-अलग भाषाओं में हर मनुष्य बोलता है। बहुत से लोग लिखते भी हैं। चिट्दियाँ लिखते हैं; रोज़ के खर्च का हिसाब लिखते हैं; फोन नंबर लिखते हैं; लेकिन हर आदमी कहानी नहीं लिखता; हर आदमी कविता नहीं लिखता। कविता-कहानी लिखना बाकी रोज़मर्रा के लेखन से अलग है। यहाँ तक कि डायरी लिखना, आत्मकथा या संस्मरण लिखना भी बाकी लिखने से अलग है। इसके लिए भाषा जानना ही काफ़ी नहीं है। इसके लिए भाषा को बढ़िया से जानना, भाषा का निपुणता से व्यवहार करना और भाषा में कुछ नया करना ज़रूरी है। सृजनात्मकता का अर्थ है कुछ नया करना और नए तरीके से करना। जब हम भाषा में यह करते हैं तो उसे भाषिक सृजन कहते हैं। यहाँ नयी बात को सबसे अच्छे शब्दों में, सबसे अच्छे क्रम से रखा जाता है। जैसे, शुरू में हमने पेड़ों में नए पत्ते आने की बात की। हिंदी के बड़े कवि निराला इसी बात को इस तरह से कहते हैं-
‘रूखी री यह डाल वसन वासंती लेगी’
बसंत की इसी घटना को, निराला अनेक कविताओं में रखते हैं-
फूटे हैं आमों में बौर
भौंर वन वन टूटे हैं
या फिर
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल
अथवा
उग आए अंकुर जीवन,
धान ज्वार अरहर औ सन
बही पुन: गंध से पवन
पके आम की
देखिए कि कैसे जिसे हम सब रोज़ देखते हैं उसे निराला ने कविता में बदल दिया है - डाल पत्तों से लदी है। यह डाल कहीं हरी है, कहीं लाल है। यानी पत्ते बिलकुल नए हैं, लाल हैं। फिर उन्होंने आमों में बौर फूटने की बात की है। आम के गंध की बात की है। यह सब उन्होंने देखा, सूँघा और कहा। शब्द भी अधिकतर रोज़-ब-रोज़ के हैं। लेकिन जिस तरह उन्होंने लिखा है हम ठीक वैसे ही नहीं बोलते। उन्होंने शब्दों को खास तरह से जोड़ा है। जैसे ‘आमों में बौर फूटे हैं’ को उन्होंने कर दिया ‘फूटे हैं आमों में बौर’, इस तरह पंक्ति में नया संगीत आ गया। फिर अगली पंक्ति में उन्होंने ‘भौंरे’ को ‘भौंर’ कर दिया और ‘वन वन टूटे हैं’ में ‘टूटे’ जोड़कर उसकी तुक फूटे से मिला दी तथा ‘वन’ को दो बार लिखकर वन की अनेकता को दिखलाया। यह सारा कुछ जो निराला ने किया वही तो भाषा में सृजनात्मकता है। यह काम हर कविता, हर रचना में अलग-अलग तरह से होता है। कई बार कुछ अलग से नहीं होता, बस सीधी सी पंक्ति होती है, जैसे नज़ीर अकबराबादी की कविता है-[^0]
गतिविधि 2/Activity 2
रेल से यात्रा करते हुए आपने फेरीवालों को फुटकर सामान बेचते हुए देखा होगा। जिस फेरीवाले के बेचने के तरीके ने आपका ध्यान आकृष्ट किया, उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
While travelling by train you must have observed many hawkers selling diverse items/wares. Write about a hawker whose style caught your attention.
हमने भी गुड़ मँगा के बँधवाए तिल के लड्ड़
या
प्रभात फेरी का यह गीत
उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई अब रैन कहाँ जो सोवत है
रघुवीर सहाय की कविता-
पानी पानी बच्चा बच्चा हिंदुस्तानी माँग रहा है पानी पानी
पर यहाँ भी शब्दों का चुनाव और उनका क्रम महत्त्वपूर्ण है। जैसे मूर्तिकार मिट्टी या पत्थर में काम करता है, चित्रकार रंगों और रेखाओं का व्यवहार करता है, संगीतकार ध्वनियों का संयोजन करता है, वैसे ही भाषा का सर्जक भाषा में काम करता है। यह भाषा उसने नहीं रची है। भाषा पहले से थी। भाषा सबकी है। लेकिन इस भाषा में वह नया अर्थ उत्पन्न करता है जिसका प्रभाव दूसरों पर पड़ता है। नया अर्थ भरने के लिए वह शब्दों से खेलता भी है, जैसे यह कविता-अंश देखें -
चीज़ों को उनके नाम से याद करना सूजनात्मकता है क्या लाल? क्या लाल?
अड़हुल के फूल लाल!
आरती के पात लाल!
सुग्गे की चोंच लाल!
यह लाल! वह लाल!
मेरी रोशनाई लाल!
आपकी कलम लाल!
इनकी किताब लाल!
उनकी जिल्द लाल!
किसी के गाल लाल!
किसी की आँख लाल!
यह लाल! वह लाल!
-नागार्जुन
देखिए कि किस तरह खेल-खेल में नागार्जुन ने इतनी प्यारी कविता बना डाली। हम जो पहेलियाँ, चुटकुले, नारे, बाल-गीत सुनते-सुनाते हैं उनमें भी यह खेल चलता है। शब्द बहुत मज़े की चीज़ है। ‘एलिस इन वंडरलैंड’ में शब्दों का खेल बहुत मज़ेदार है (डकाई चार में देखें)। बांग्ला में ‘आबोल-ताबोल’ भी बहत मजेदार किताब है। कविता, कहानी, आत्मकथा, डायरी सबमें भाषा का यह गुण रहता है, लेकिन कविता में सबसे ज़्यादा। कोई भी व्यक्ति रचना कर सकता है अगर उसके पास कहने को कुछ
है और वह उस भाषा को बोलता है। प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘ईदगाह’ के इस अंश को पढ़कर देखें तो लगता है कि प्रेमचंद ने कितनी सरलता से अपनी बात कह दी। यही सृजनात्मकता है -
मिठाइयों के बाद कुछ दुकानें लोहे की चीज़ों की हैं। कुछ गिलट और कुछ नकली गहनों की। लड़कों के लिए यहाँ कोई आकर्षण न था। वह सब आगे बढ़ जाते हैं। हामिद लोहे की दुकान पर रुक जाता है। कई चिमटे रखे हुए थे। उसे खयाल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है; अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे, तो वह कितनी प्रसन्न होंगी? फिर उनकी उँगलियाँ कभी न जलेंगी।
-ईदगाह, मानसरोवर भाग-1
यहाँ प्रेमचंद ने सीधे-सादे शब्दों में जो कहना था वो कह दिया है, कोई बनावट नहीं है। यहाँ यही सृजनात्मकता है। सच को ज्यों का त्यों कह देना बहुत आसान है और बहुत कठिन भी। भाषा का व्यवहार अलग-अलग विधाओं, जगहों और ज़रूरतों के अनुसार बदलता रहता है। मान लीजिए, कि कहीं कोई दुर्घटना हुई है तो उसका वर्णन साफ़-साफ़ भाषा में करना ही सृजनात्मक होना है। लेकिन कई बार मन के गूढ़ भावों और प्रकृति की जादूगरी को शब्दों में बाँधने के लिए जटिल या संश्लिष्ट बिंबों की ज़रूरत पड़ सकती है। उदाहरण के लिए -
है और वह उस भाषा को बोलता है। प्रेमचंद् की प्रसिद्ध कहानी ‘ईद्गाह’ के इस अंश को पढ़कर देखें तो लगता है कि प्रेमचंद् ने कितनी सरलता से अपनी बात कह दी। यही सृजनात्मकता है -
मिठाइयों के बाद कुछ दुकानें लोहे की चीज़ों की हैं। कुछ गिलट और कुछ नकली गहनों की। लड़कों के लिए यहाँ कोई आकर्षण न था। वह सब आगे बढ़ जाते हैं। हामिद लोहे की दुकान पर रुक जाता है। कई चिमटे रखे हुए थे। उसे खयाल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है; अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे, तो वह कितनी प्रसन्न होंगी? फिर उनकी उँगलियाँ कभी न जलेंगी।
- ईदगाह, मानसरोवर भाग-1
यहाँ प्रेमचंद् ने सीधे-सादे शब्दों में जो कहना था वो कह दिया है, कोई बनावट नहीं है। यहाँ यही सृजनात्मकता है। सच को ज्यों का त्यों कह देना बहुत आसान है और बहुत कठिन भी। भाषा का व्यवहार अलग-अलग विधाओं, जगहों और ज़रूरतों के अनुसार बदलता रहता है। मान लीजिए, कि कहीं कोई दुर्घटना हुई है तो उसका वर्णन साफ़-साफ़ भाषा में करना ही सृजनात्मक होना है। लेकिन कई बार मन के गूढ़ भावों और प्रकृति की जादूगरी को शब्दों में बाँधने के लिए जटिल या संश्लिष्ट बिंबों की ज़रूरत पड़ सकती है। उदाहरण के लिए -
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है) बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो
गतिविधि 3/Activity 3
गुलमर्ग की यह तसवीर क्या कहती है? देखिए और लिखिए।
आपकी कल्पना लेखन की कौन सी विधा बन पाई है, यह भी बताइए।
Write what this picture of Gulmarg communicates.
Also, state in which form of writing your imagination takes shape on looking at the picture.
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और …
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।
- शमशेर बहादुर सिंह
II. लेखन में सॄजनात्मक अभिव्यक्ति
भाषा में यह सृजनात्मकता आज हमारे सामने कई रूपों में मौजूद है। मोटे तौर पर इसके तीन रूप हैं - साहित्य, मीडिया और अनुवाद। ऊपर साहित्य संबंधी कुछ उदाहरणों के माध्यम से हमने सृजनात्मक बिंदुओं को जानने का प्रयास किया। आगे मीडिया और अनुवाद पर चर्चा करेंगे।
मीडिया - अपने आस-पास की चीज़ों, घटनाओं और लोगों के बारे में ताज़ा जानकारी रखना मनुष्य का सहज स्वभाव है। जिज्ञासा का भाव उसमें प्रबल होता है। यही जिज्ञासा समाचार और व्यापक अर्थों में मीडिया का मूल तत्त्व है। मीडिया लेखन का विकास भी मनुष्य की सहज जिज्ञासा को शांत करने के प्रयास के रूप में ही हुआ। वह आज भी इसी मूल सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए काम करता है। समाचारों का दायरा जनरुचि और जनहित के आधार पर बदलता रहता है। मीडिया का बुनियादी तत्त्व है - नयापन। समाचार अगले दिन मुरझा जाने वाले फूल की तरह होता है। पुराना अखबार कोई नहीं पढ़ना चाहता। मीडिया के क्षेत्र में जोसेफ़ पुलित्ज़र का नाम प्रसिद्ध है, उनका कहना है, “समाचार वह है जो मौलिक, सबसे अलग, नाटकीय, रोचक,
देखें गतिविधि/Activity 6 पृष्ठ 27
विचित्र, भावनात्मक और किसी हद तक रोमांचकारी हो, जिस पर लोग चर्चा करें।”
मीडिया लेखन आपको न केवल पूरी दुनिया से जोड़ता है बल्कि दुनिया को रचने में मीडिया की भूमिका सबसे बड़ी होती है। तुरंत प्रभाव वाले आपके हर शब्द समाज की दिशा तय कर सकते हैं। लेकिन जनसंचार माध्यमों का लोगों पर सकारात्मक के साथ-साथ नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। इन नकारात्मक प्रभावों के प्रति लोगों का सचेत होना बहुत ज़रूरी है। इसीलिए मीडिया लेखन का दायित्व और बढ़ जाता है। यहाँ तथ्यों को सीधे-सीधे
बिना किसी घुमाव के प्रस्तुत करना ही सृजनात्मकता होगी। उदाहरण के लिए -
‘स्त्री शक्ति के कवच में पेश हुआ आरक्षण बिल’
‘महिला आरक्षण बिल पर बीस निकला यूपीए’
‘महिला आरक्षण बिल हंगामे में पेश’
‘राज्य सभा में पेश हुआ महिला आरक्षण बिल’
‘महिलाओं के आरक्षण का एक चरण पूरा’
इन पाँचों समाचार शीर्षकों में तथ्य की स्पष्टता तीसरे वाले शीर्षक में अधिक ठीक से हो पाई है। यद्यपि काफ़ी हद तक सभी सीधे-सीधे समाचार ही लिखे गए हैं। अनुवाद - हर भाषा में रचना होती है और उसका तरीका लगभग एक जैसा ही होता है। ज़रूरी है उस भाषा से प्रेम, लगाव, गहरी पहचान और दोस्ती। रवींद्रनाथ ठाकुर ने बांग्ला भाषा में रचना की। देखिए उनकी एक प्रसिद्ध कविता का यह अंश -
यदि तोर डाक शुने केऊ न आशे, तबे एकला चलो रे। एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे। (बांग्ला)
तेरी आवाज़ पे कोई ना आए, तो फिर चल अकेला रे चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला रे (हिंदी)
यहाँ कवि ने अपनी बात सीधे-सीधे रख दी है। जैसे हम बोलते हैं वैसे ही। सरल वाक्य में, जिसका गहरा प्रभाव हमारे हृदय पर पड़ता है। फिर एकला चलो को तीन बार लिखकर कवि ने जो संगीत रचा, वह समवेत स्वर जैसा प्रभाव उत्पन्न करता है। यही सृजनात्मकता है। भाषा का ऐसा व्यवहार जो अधिक से अधिक लोगों को अधिक से अधिक समय तक प्रभावित करता रहता है। हिंदी अनुवाद करते हुए अनुवादक कविता के इस मूलभूत प्रभाव को पकड़ने की कोशिश करता है - जैसे हिंदी में भी चल-अकेला के माध्यम से समवेत ध्वनि को बरकरार रखने और साथ ही बांग्ला भाषा के बांग्लापन को बनाए रखने की कोशिश हुई है। साहित्यिक लेखन और अनुवाद एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हैं। एक के बिना दूसरे का काम नहीं चलता, खासकर भारत-जैसे बहुभाषिक देश में। हमारी चेतना अनुवाद-चेतना है। हर कोई अनुवादक है क्योंकि वह एक साथ कम से कम दो भाषाओं का व्यवहार करता है। इस भाषा से उस भाषा में बात को ले जाता है। हो सकता है आप चाची से जो भाषा बोलते हों, मौसी से नहीं; नानी से जो भाषा बोलते हों, दादी से नहीं; दोस्तों से जो भाषा बोलते हों, शिक्षक से नहीं … इस क्रम में एक कामचलाऊ अनुवाद तो लगातार करना पड़ता है। ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के ही जितने संस्करण हर भाषा में उपलब्ध हैं, अनुवाद का ही एक रूप माने जाएँगे।
सृजनात्मकता हमें उम्मीद करना सिखाती है और बचाती है अतिरेकों से। शुद्ध बौद्धिकता या कोरी भावुकता का अतिरेक न अच्छा जीवन बरदाश्त करता है, न अच्छा सर्जनात्मक लेखन। इसका आदर्श है हददय-बुद्धि संवाद। कलम उठानी हो या तलवार, कुदाल या कंप्यूटर का माउस, यह बात हमेशा-हमेशा याद रहे कि जीवन और लेखन दोनों में अतिरेकों का निषेध है।
विष्णु चिंचालकर की मोना लिसा,
जो एक हवाई चप्पल पर बनी है
जीवन बस वही नहीं है जो दिखाई देता है। प्रकट के पार भी बहुत-कुछ है। सर्जनात्मक लोग बहुत कल्पनाशील होते हैं। पाँच इंद्रियों के अलावा इनकी छठी इंद्रिय भी काफ़ी सजग होती है, जो बृहत्तर प्रकृति और मानव-मन के सूक्ष्म संकेत जानने में उनकी मदद करती है। लेकिन छठी इंद्रिय भी पाँचों इंद्रियों की सक्रियता से ही सक्रिय होती है, शक्ति पाती है। इसीलिए एक रचनाकार अपनी सभी इंद्रियों को अनवरत सक्रिय तथा जागृत रखता है। कहा भी गया है कि ‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि’ यानी कवि या रचनाकार के लिए कुछ भी गोपन नहीं है। रचनाकार निरंतर देखने, सुनने और सूँघने आदि का अभ्यास भी करते हैं। मामूली चीज़ों में भी सौंदर्य ढूँढ़ लेते हैं।
इसी अर्थ में साहित्य साधना है और साहित्यकार दृष्टा जिसकी छहों इंद्रियाँ सजग हो सकती हैं, वह रोम-रोम से देख सकता है, सबकी तरफ़ से सोच सकता है, परकाया प्रवेश का मज़ेदार खेल खेल सकता है।
क्या अंधेरे वक्त में भी
गीत गाए जाएँगे?
हाँ, अंधेरे के बारे में भी
गीत गाए जाएँगे।
- बेर्टोल्ट ब्रेष्ट
Understanding Creativity
The ability to appreciate and understand beauty in the world around us can be a creative experience.
1. Group Activity
Let us learn what creativity is.
- Divide yourselves in groups and create an object using four - five items (such as flower, leaf, pin, waste paper, old cards, cardboard box, straw, twigs etc.).
- Give a suitable title to your work.
- Each group will present its work to the class.
2. Group Discussion
- Creativity is inherent in all of us.
- It encompasses beauty.
- It involves imagination.
- Observation plays a role in creativity.
- Knowledge /experience enhances creativity.
Think of other such points relevant to creativity.
And the pen writes on…
Creativity is the act of turning new and imaginative ideas into reality.
- Rollo Mar
And as imagination bodies forth The forms of things unknown, The poet’s pen turns them to shapes And gives to airy nothing A local habitation and a name.
- William Shakespeare
You cannot use up creativity. The more you use, the more you have.
- Maya Angelou
There is no doubt that
creativity is the most important
human resource of all. Without
creativity, there would be no
progress; and we would be
forever repeating the same
patterns.
– Edward de Bono
Born with a severe eye
problem, Benode Behari
continued to paint and
do murals even after he
completely lost his vision.
I. What is Creativity?
The world around us pulsates with the energy of shaping and creating anew. Life is a continuous process of creation. Human beings too have this inherent ability to create, and as we become conscious of our creative powers, we start experiencing life around us more keenly and meaningfully. The ability to appreciate beauty in the world around us can be a very creative experience. You must have seen leaves change colour with the seasons - sometimes rich green, sometimes vibrant yellow, earthy brown, glowing orange or even rich red, looking splendid against a deep blue sky. Nature, through its cyclic formations, revitalises our creativity. Each colour, shape and size manifested in nature inspires us to say something in words or present it in some other form. As Henry David Thoreau said, “The world is but a canvas to the imagination.”
If we look around we will find that nature renews itself every moment. It’s life cycles are artful and beautiful. Humans have always taken inspiration from nature and have given expression to creativity in various ways and in different forms. Watching a flowing river, observing clouds sailing with the wind, looking at snow-covered mountain peaks, admiring undulating sand dunes, seeing waves gently crashing over sand and the abundance of human activities around us can lead to a creative expression in any form.
If we look back at our cultural heritage we find enormous and magnificent examples of human creativity through the centuries.
The Carpenter, a painting by Nand Lal Bose
Sculptors at work
Let us take the example of a potter. A lump of clay takes a beautiful shape in her/his hands. Similarly, a stone takes the shape of a mesmerising sculpture in the hands of a sculptor.
See गतिविधि/Activity 1 on Page 6
Forms of Creativity
Creativity is an umbrella term that encompasses various domains. There is creativity in art, literature and in all forms of human activity. A painter paints, a sculptor sculpts, a dancer depicts moments of life and a writer portrays her/his vision in words.
Sometimes artists express their creativity through different media which compliment each other. For example, the interrelationship between painting and poetry can be seen in the works of the famous litterateur Mahadevi Verma. There is a commonality in her chosen art forms: one conveys through words and the other through strokes.
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल!
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
गतिविधि 4 Activity 4
महादेवी वर्मा एक रचनाकार
और चित्रकार भी थीं। ऐसे अन्य
कलाकारों के बारे में जानकारी
हासिल कीजिए जिन्होंने एक से
अधिक कलारूपों में अभिव्यक्ति
की हो। कक्षा में इस पर चर्चा
कीजिए। इसे समन्वित कर प्रदर्शित
कीजिए।
Mahadevi Verma was a
painter and creative writer.
Find out about other creative
artists who have expressed
themselves through various
media. Share your information
with the class. Also collate
and display it.
Did you know that William Blake is known for his poetry, painting, print-making and engravings? Of all the famous litterateurs of the English language, he is remembered for combining different art forms. His works are now considered seminal in the history of poetry and visual arts.
Given below is an extract from his poem ‘The Tyger’ along with a picture of the original plate by Blake for the poem.
Tyger! Tyger! burning bright
In the forests of the night,
What immortal hand or eye
Could frame thy fearful symmetry? …
When the stars threw down their spears,
And watered heaven with their tears,
Did he smile his work to see?
Did he who made the Lamb make thee?
Many art forms flourish in the company of each other. Creative people often set new trends in the arts and in literature. G.D. Rossetti, who was an artist, first painted the picture depicting ‘The Blessed Damozel’ and later transformed it into poetry as well.
The blessed damozel leaned out
From the gold bar of heaven;
Her eyes were deeper than the depth
Of waters stilled at even;
She had three lilies in her hand,
And the stars in her hair were seven.
Creativity in Everyday Life
Creativity is manifest in our daily lives. The simple things in life that bring us joy - picking up stones of different shapes and sizes and colouring them, arranging flowers, doing needle work, laying the table for dinner, decorating one’s room, and also the way one dresses are all examples of creativity in everyday life.
Creativity is usually associated with ’newness’ and ‘originality’. There is, however, another aspect to it that is equally important ‘appropriateness’. The creative work, besides being new and original, should also be appropriate to its context. To achieve this, a familiarity with the chosen form is needed. For example, the artist paints new and original paintings with complete awareness of her/his art. Just as she/he needs to know her/his materials and medium, so does a writer. A natural flair for creative expression needs to be enhanced by ’training’ and ’nurturing
Creativity in needle workSee गतिविधि/Activity 2 on Page 9
Creativity and Imagination
Imagination is the unique ability to create mental images or pictures. This includes the ability to think of new and interesting ideas and ways of expression. A rich imagination is an essential element for creativity. Creative artists look at things and perceive aspects that are not visible from the outside or the surface. This is not the same as ’to see’. ‘To perceive’ means to look deeply into something.
Keen observation and imagination make it possible for us to appreciate and have an uncommon perspective of common objects as well as ourselves. For example, neem trees are commonly found and all of us are aware of their medicinal properties, but Kunwar Narain perceived neem flowers in a way that others did not. Read and enjoy the following extract from his poem, ‘The Neem Flowers’.
When in bloom
The big Neem tree in our courtyard
Used to fill the house
With a bitter-sweet
Medicinal smell.
Tiny white flowers
Like soap-bubbles
Floated in the wind,
One or two would get caught
In Mother’s long hair
When she returned from the patio
After watering the Tulsi plant.
So if you have the desire to express yourself, and are endowed with a keen observation and a fertile imagination, you too can express yourself through the medium of words or any other medium of your choice.
Creativity requires synthesis and integration. The transformative process of creativity comprises various stages of which analysis and reflection are important features. Let us take a simple example that all of us are familiar with. All of us enjoy watching a movie or a play. Next time you watch a film or play, spend a little time reflecting on what you have seen and experienced. For instance, there are plays which are ‘openended’. The playwright does not provide you with a solution to the problem presented in her/his play; you have to find your own solution. This kind of thinking leads to new ideas.
Wide-ranging and diverse experiences also stimulate creativity. These experiences may be purely sensual such as the visual delights provided by the bounteous beauty of nature, the soothing auditory sensation of listening to a musical concert or the song of a cuckoo, or even the intellectual or spiritual joy of hearing a discourse by a scholarly or wise person. Such experiences not only thrill us, but give us a distinct feeling of harmony and ecstasy that exalt us to a higher plane of living. There are also times when we experience deep sadness and despair which are equally unforgettable. It is these powerful experiences which form part of that ‘something’ which urges us to express. The poet, in the following poem, has given expression to her experience of beauty through the medium of words; someone else perhaps would have expressed the same in some other form.
Beauty
Beauty is seen
In the sunlight,
The trees, the birds,
Corn growing and people working
Or dancing for their harvest.
Beauty is heard
In the night,
Wind sighing, rain falling,
Or a singer chanting
Anything in earnest.
Beauty is in yourself.
Good deeds, happy thoughts
That repeat themselves
In your dreams,
In your work,
And even in your rest.
- E-Yeh-Shure
Experiences are transient - they remain for a short time and once they are over, the impact is lost and we only remember them as fading moments. But if the mind is trained to focus and absorb experiences in their entirety, the mind retains them and provides rich content for expression.
Have you ever reflected on what creative writing is all about? It is an art like painting, music, dance, sculpture - a form of selfexpression. It is an activity that combines
- a basic desire to create something
- a keen awareness of the world around (that includes nature, people, society etc.)
- a rich imagination
- an ability to use words meaningfully and skilfully
- a fairly good amount of knowledge and information
- a keen sense of observation
- an urge to react to or to represent various stimuli.
The human mind is a master computer. It is amazing how many gigabytes of information it can store and release instantly, as and when required. Have you ever wondered how in a flash while sitting in the classroom, you can travel far back in time and recall all that happened in your childhood? It takes less than one-hundredth of a second to retrieve the stored information. What a marvellous computer the
गतिविधि $5 $ Activity 5
सृजनात्मकता हमारे चारों तरफ़ बिखरी हुई है लेकिन हम इसे अक्सर महसूस नहीं कर पाते। क्या आपने कभी इस पर विचार किया? कक्षा में चर्चा कीजिए।
There is creativity all around us but most of the time we don’t notice it. Have you ever reflected on this? Discuss in class.
human brain is - the random access memory (RAM) that it provides is better than any man-made computer! As a creative writer, you need to absorb, reflect, store and recall all that you experience in your daily life.
Though we may read many books, newspapers, magazines, short stories, poems, only a few of them make an impact on us. Similarly, we witness many things happening around us, but only a few of them affect us so deeply that we respond intensely. It does not matter whether our response is positive or negative as long as we are not indifferent to the experience. This response could very well become the subject of any form of creativity.
As a creative writer, you articulate your intense experience and response in the appropriate form - a story or a poem or an article. Images take hold of you and, when you recollect them, and allow the free flow of emotions and experiences, they often choose their own form. Creativity cannot be artificially propelled; it is a flow that cannot be reined in. Nelson Mandela, South Africa’s first Black President, in his autobiography, Long Walk to Freedom, has given expression to the intense experiences of his life. An extract is given below.
It was only when I began to learn that my boyhood freedom was an illusion, when I discovered as a young man that my freedom had already been taken from me, that I began to hunger for it. At first, as a student, I wanted freedom only for myself, the transitory freedoms of being able to stay out at night, read what I pleased and go where I chose. Later, as a young man in Johannesburg, I yearned for the basic and honourable freedoms of achieving my potential, of earning my keep, of marrying and having a family - the freedom not to be obstructed in a lawful life.
When we speak of the forms of creativity it is important to remember that creative individuals exist in each and every field of human activity from the most humble to the most exalted. The form their creativity takes depends on the field of activity they are pursuing. The flowering of their creativity into greatness, however, depends on what kind of training they acquire and how developed their field of activity is at that particular time.
Creativity through Language
Language is one of the basic tools for creativity. It gives people numerous ways and means to express themselves. Language skills are, therefore, essential for communication and self-expression. Just as a sculptor works on a stone, or a painter works with colours and a magician manipulates the bits of sound, a writer works in a language - the language she/he is born into or is intimate with. She/he creates in the language by bringing about absolutely new or unknown combinations and permutations of
words, giving, as Shakespeare said, “… to airy nothing a local habitation and a name". Language is both the medium and the material for the writer. Exploiting language for its maximum effect brings out creativity. This involves a fusion of words, gestures, tones, sounds and shapes. Creative language also includes figures of speech such as metaphors, similes, homonyms and alliterations. In the following stanza the poet, Robert Burns, has used two similes to describe his love: ‘red, red rose’ and ‘a melody’.
0, my love is like a red, red rose, that’s newly sprung in June.
0 , my love is like a melody,
that’s sweetly play’d in tune.
We all know that love can neither be seen nor heard; it is an emotion that is ‘felt’. In these lines the repetition of the word ‘red’ is extremely unusual and effective. By associating a rich colour and a sweet sound with love, the poet, Robert Burns, is not only being original and expanding the meaning of love but also bringing the emotion much closer to the reader.
A good writer is one who has clarity of thought and expression. Let us suppose you want to write about a place that you may have visited. Visual specifics help us in writing about the grandeur of the place. We get these visual specifics by training our eyes - not just to see, but to look into the core of every object in the place. When we describe the place through specifics, we present verbal photography. In the following passage from ‘And Thus Flows the Narmada’, Royina Grewal makes the visual image of Amarkantak come alive.
At Amarkantak I find a pastoral world of superlative beauty, the colours as unreal as tinted postcards. Wide golden meadows parted by the narrow blue stream of the holy river are framed by deep-shadowed sal forests. The red laterite soil of the road contrasts with many shades of green. A small bridge, little more than a culvert, spans the Narmada. She is here a little stream barely six feet wide, sparkling blue and tumbling gently westwards. A river in her infancy. It seems impossible that the water she will discharge into the sea equals the combined volume of three great northern rivers - the Ravi, the Beas and the Sutlej.
Similarly, when we write about a song or a musical concert, we must not just hear the music but listen to it, feel it, and express in words its rich and soothing impact on us. For example, in Wordsworth’s poem, ‘The Solitary Reaper’, the poet listens to a song that is sad and plaintive, and wonders whether the girl was singing about unhappy, far-off things, like
battles fought long ago; or if it was a song about some natural sorrow, loss, or pain. This is a good example of auditory specifics. Though sight and sound are the two basic senses that give us specifics, other senses like smell, touch and taste too can assist us in embellishing our description.
Behold her, single in the field,
Yon solitary Highland Lass!
Reaping and singing by herself;
Stop here, or gently pass!
Alone she cuts and binds the grain,
And sings a melancholy strain;
O listen! for the Vale profound
Is overflowing with the sound
To be a creative writer, one has to be sensitive to people, the environment, society and its issues. To achieve this one also has to be a good reader. A good reader reflects on and analyses the work of others, and this is where one’s journey as a creative writer begins. A creative writer is one who also observes, reflects, imagines and develops the skill of using the right word at the right place.
II. Creative Expression in Writing
Literary Writing
Literary writing is an expression of life through the medium of language which is aesthetically pleasing. It is a vital record of what writers have seen, experienced, thought and felt. In literary writing imagination plays the most important and defining role, accompanied with deep realisation of life’s experiences and embellished with creative and artistic features. Literary writing is carefully structured and words are used for their flow, sound, as well as emotive and descriptive qualities. Literary writers also use rhyme, rhythm, alliteration, irony, dialogue and a number of other devices while writing a particular piece of prose, poem or play. A literary writer may express her/his ideas, thoughts, reminiscences and themes in any form.
Read the following dialogue from Moliere’s play, The Bourgeois Gentleman (Act II, Scene 4), and find out what he says about prose.
Philosophy Master : To make the point most
terse. What isn’t verse is prose, and what’s
not prose is verse.
Monsieur Jourdain : And this, the way I speak.
What name would be applied to the —
Philosophy Master : The way you speak?
Monsieur Jourdain : Yes.
Philosophy Master : Prose.
Monsieur Jourdain : It’s prose?
Philosophy Master : Decidedly.
Monsieur Jourdain : Oh, really? So when
I say: “Nicole bring me my slippers and
fetch my nightcap,” is that prose?
Philosophy Master : Most clearly.
Monsieur Jourdain : Well, what do you know
about that! These forty years now, I’ve
been speaking in prose without knowing
it! How grateful am I to you for teaching me that! So,
what I wish to tell the gentle lady is: “Fair Marquise, your lovely
eyes make me die of love,” but in a way that’s elegant, and nicely turned
Prose is everyday thoughts or speech put on paper and contextualised in a formal structure. Literary prose is seen as a combination of formal writing and imagination. It includes essays, novels, short stories, plays and some other literary genres such as biography, autobiography, memoirs, anecdotes and literary journalism.
While prose may lend itself to logical and analytical discourses, poetry may lend itself to experiences of strong emotion, expressed in a lyrical poem or in free verse. When one seeks to celebrate an event or a person, one may resort to the ode.
As a creative writer, you may express yourself in any way depending on your theme and your special talent for poetry, prose or drama. The following extract is from the poem ‘Song of Myself’ by Walt Whitman which is very close to prose.
A child said What is the grass? fetching it to me with full hands;
How could I answer the child? I do not know what it is any more than he. I guess it must be the flag of my disposition, out of hopeful green stuff woven.
Verse, on the other hand, is a metrical arrangement of words. Today it is largely used in poetry writing, jingles and slogans.
The following nursery rhyme is written in verse.
Twinkle, twinkle, little star, How I wonder what you are! Up above the world so high, Like a diamond in the sky!
When the blazing sun is gone, When he nothing shines upon, Then you show your little light, Twinkle, twinkle, all the night.
Then the traveller in the dark, Thanks you for your tiny spark, He could not see which way to go, If you did not twinkle so.
The author, Vikram Seth, has written a full length novel The Golden Gate in verse. Here is an extract from it.
John’s looks are good. His dress is formal. His voice is low. His mind is sound.
His appetite for work’s abnormal.
A plastic name tag hangs around
His collar like a votive necklace.
Though well-paid, he is far from reckless, …
Literary writing embodies certain distinguishing characteristics. It is a contemplative, imaginative mode of writing which uses words not just to convey information, but as an art form. Ultimately it is a response to life.
There is a well-known Tamil proverb which says that you can ladle the soup out of a pot only if the soup is in it’. The primary requisite for writing is to have ‘something’ to write about. What is this ‘something’ and how can it be obtained? This ‘something’ can be an idea, a thought or an experience, a feeling of joy and excitement, an unforgettable person or incident. If you have ‘something’ within you, you may seek an outlet to express it either in the form of an essay or a novel or a short story or a poem. However, do not compel yourself to do something for which you do not feel inspired. You can choose the form appropriate to the experience that you want to express.
Media Writing
Today, mass media plays an important and prominent role in our daily lives and its influence is increasing day by day. The media boom has led to a demand for a wide range of communication systems. Information regarding current events, trends, issues and society is collected, analysed, verified and then presented. Its presentation can be through print or electronic
Going back to the ancient world, drama in different cultures was probably the first mass-media as it was performed for a large audience and communicated a message as well.
media since media is specifically envisioned and designed to reach a very large audience. It does require creativity to capture the attention of the readers/listeners/viewers. New forms of communication like radio, television, the Internet, mobile phone etc. require an entirely new kind of writing. Earlier cinema had created new modes of writing like screenplays and scripts to meet the demands of the new form. Advertising too requires creative and innovative expressions to capture the interest of the target audience.
The growth of media is driven by technology that has made it possible to reproduce material in large numbers for the public. Contributions are made from the liberal arts, humanities, science and other fields. Thus, media is very closely connected with society and culture.
The focus, however, should not only be on disseminating information by reproducing it in large volumes. The presentation of information should meet certain standards. Media writing has to be objective, straightforward and just. Media plays a crucial role in highlighting the good as well as the wrong in society.
गतिविधि 6/Activity 6
दिनोदिन बाघों की घटती संख्या को ध्यान में रखकर अखबार के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
Prepare an advertisement for a newspaper to spread awareness about the depleting number of tigers.
The following news item is an example of how media brings us closer to incidents and happenings in our country as well as the world.
New Delhi: Twenty-two children - eighteen boys and four girls - have been selected for the National Bravery Awards 2007. Four will be given posthumously.
The coveted Bharat Award has been bagged by Babita (17) and Amarjeet (15) from Haryana. They saved several of their schoolmates from drowning when their bus fell into the Western Yamuna Canal.
Introducing the children to the media on Friday, Indian Council for Child Welfare president Gita Siddhartha said, “The awards are aimed at giving due recognition to children who distinguish themselves by performing outstanding deeds of bravery and meritorious service and inspire other children to emulate their example. The awardees will receive a medal, a certificate and cash.”
The Sanjay Chopra Award has gone to six-year-old Yuktarth Shrivastava of Chhattisgarh. He saved his sister from stray dogs. The Geeta Chopra Award has been conferred posthumously on 14-year-old Lalrempuii of Mizoram.
Source: The Hindu, 19 January 2008
Media writing is not restricted to journalists or publishing houses. Common citizens can also make contributions to the media as citizen journalists. This allows all of us to contribute towards larger causes such as : a world that is green and serene.
Translation
In knowing and understanding the world around us, translation plays a major role. Since its inception, translation has played the indispensable role of transferring messages across languages and cultural barriers. By doing so it continuously weakens the fences between languages, brings out their similarities and finds points of convergence amongst differences.
We would not have been able to read the works of great writers and thinkers such as Plato, Aristotle, Darwin, Einstein, Varahmir, Kalidasa, Anton Chekhov, Guy de Maupassant, Premchand, Rabindranath Tagore, Subramania Bharti, Qurratulain Haider, Saadat Hasan Manto etc. if their works had not been translated. The aesthetic sensibility of world literature can only be enjoyed through translations. For example, Rabindranath Tagore’s Geetanjali, for which he won the Nobel Prize, was originally written in Bangla. His work received worldwide recognition because it was translated into English and most languages of the world.
India is a multilingual and multicultural country. Its diversity can be celebrated in the real sense of the word by understanding and appreciating its diverse literatures and this is being done through translation.
In the fields of education, science and technology, mass communication, commerce, tourism etc. the need for translation has increased greatly. Translation allows us to tap the rich knowledge base that exists in different languages and cultures of the world.
In this unit we have discussed some of the features of creative writing. Let us conclude by observing what a classical writer has to say about creative writing in the following shloka from Kavyaprakash by Acharya Mammat.
शक्तिर्निपुणता लोकशास्त्रकाव्याद्यवेक्षणात्। >काव्यज्ञशिक्षयाभ्यास इति हेतुस्तदुद्भवे।।
काव्यप्रकाश, प्रथम उल्लास, आचार्य मम्मट
It is explained in Hindi and English below.
आचार्य मम्मट ने काव्यप्रकाश में काव्य-लेखन (सृजनात्मक लेखन) की तीन विशेषताओं का उल्लेख किया है- शक्ति अर्थात् प्रतिभा; निपुणता - जो सांसारिक व्यवहार, शास्त्र तथा काव्य (साहित्य) के सूक्ष्म निरीक्षण से प्राप्त होती है; काव्यज्ञ या साहित्यकारों की शिक्षा और साहित्य का निरंतर अभ्यास। इन तीनों गुणों का समन्वित रूप सृजनात्मक रचना के लिए आवश्यक है।
Acharya Mammat in his Kavyaprakash has specified three important characteristics of poetry writing (creative writing). These are - poetic genius; a minute study of people, objects, events and of the works of great poets; continuous practice of the teachings (creative writing) of eminent scholars. The above three, conjointly, constitute the source of creative writing.
Do you think the shloka summarises this chapter? Discuss.
संवाद / Exercises
1. दुनिया की छोटी से छोटी चीज़ को अहमियत पहचानना रचनात्मक अनुभव हो सकता है। - अपने अनुभव से कोई दो उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
- यह भी बताइए कि वह रचनात्मक क्यों है।
To understand and appreciate the significance of even the smallest thing in the world can be a creative experience.
- Explain with two examples from your experience.
- Also state why you think these are creative.
2. कला और साहित्य को सृजनात्मक कहा जाता है, क्यों? दो उदाहरण देकर समझाइए। Art and literature are called creative. Why? Elaborate with two examples.
3. अभ्यास सृजनात्मकता को निखारता है, कैसे?
Practice enriches creativity. How?
4. इस चित्र को देखकर आपके मन में जो भी शीर्षक सूझते हैं, उन्हें लिखिए। (कम से कम पाँच)
Look at the picture and give it (at least five) different titles.
5. अपने परिवार के व्यक्तियों को आप रोज़ काम करते देखते हैं। >उनके कामों में आपको कहाँ-कहाँ सृजनात्मकता नज़र आती है? लिखिए।
You observe your family members following a routine everyday. >Do you perceive creativity in their work? Describe the same.
6. आपके मोहल्ले में सृजनात्मकता कहाँ नज़र नहीं आती? लिखिए। >Where do you not find creativity in your locality? Explain.
7. सृजनात्मकता आस-पास के वातावरण को सुंदर तो बनाती ही है, उसके साथ ही यह लोगों के जीवन को भी छू जाती है। अपने विचार लिखिए। Creativity makes the surroundings beautiful and touches the lives of people. Express your views.
8. परीक्षा का आज अंतिम दिन है। Today is the last day of the >exams.
आज विद्यालय लंबी छुट्टी के बाद फिर खुला है।
The school has reopened after a long vacation today.
इस बीच क्या हुआ - अपने संस्मरण लिखिए। What happened during the intermediate period - write down your reminiscences.
9. ‘परिवर्तन सृष्टि का नियम है’ - साहित्य और कला इससे अछूते नहीं हैं। इसीलिए समय के साथ-साथ विधाएँ भी नया रूप लेती हैं। उदाहरण देकर समझाइए।
‘Change is the law of nature’-art and literature are also part of this. That is why with the passage of time forms of writing also change. Discuss in class.