अध्याय 10 तताँरा-वामीरो कथा

लीलाधर मंडलोई
सन् 1954

1954 को जन्माष्टमी के दिन छिंदवाड़ा ज़िले के एक छोटे से गाँव गुढ़ी में जन्मे लीलाधर मंडलोई की शिक्षा-दीक्षा भोपाल और रायपुर में हुई। प्रसारण की उच्च शिक्षा के लिए 1987 में कॉमनवेल्थ रिलेशंस ट्रस्ट, लंदन की ओर से आमंत्रित किए गए। इन दिनों प्रसार भारती दूरदर्शन के महानिदेशक का कार्यभार सँभाल रहे हैं।

लीलाधर मंडलोई मूलतः कवि हैं। उनकी कविताओं में छत्तीसगढ़ अंचल की बोली की मिठास और वहाँ के जनजीवन का सजीव चित्रण है। अंदमान निकोबार द्वीपसमूह की जनजातियों पर लिखा इनका गद्य अपने आप में एक समाज शास्त्रीय अध्ययन भी है। उनका कवि मन ही वह स्रोत है जो उन्हें लोककथा, लोकगीत, यात्रा-वृत्तांत, डायरी, मीडिया, रिपोर्ताज़ और आलोचना लेखन की ओर प्रवृत्त करता है।

अपने रचनाकर्म के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित मंडलोई की प्रमुख कृतियाँ हैं-घर-घर घूमा, रात-बिरात, मगर एक आवाज़, देखा-अनदेखा और काला पानी।

पाठ प्रवेश

जो सभ्यता जितनी पुरानी है, उसके बारे में उतने ही ज़्यादा किस्से-कहानियाँ भी सुनने को मिलती हैं। किस्से ज़रूरी नहों कि सचमुच उस रूप में घटित हुए हों जिस रूप में हमें सुनने या पढ़ने को मिलते हैं। इतना ज़रूर है कि इन किस्सों में कोई न कोई संदेश या सीख निहित होती है। अंदमान निकोबार द्वीपसमूह में भी तमाम तरह के किस्से मशहूर हैं। इनमें से कुछ को लीलाधर मंडलोई ने फिर से लिखा है।

प्रस्तुत पाठ तताँरा-वामीरो कथा इसी द्वीपसमूह के एक छोटे से द्वीप पर केंद्रित है। उक्त द्वीप में विद्वेष गहरी जड़ें जमा चुका था। उस विद्वेष को जड़ मूल से उखाड़ने के लिए एक युगल को आत्मबलिदान देना पड़ा था। उसी युगल के बलिदान की कथा यहाँ बयान की गई है।

प्रेम सबको जोड़ता है और घृणा दूरी बढ़ाती है, इससे भला कौन इनकार कर सकता है। इसीलिए जो समाज के लिए अपने प्रेम का, अपने जीवन तक का बलिदान करता है, समाज उसे न केवल याद रखता है बल्कि उसके बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देता। यही वजह है कि तत्कालीन समाज के सामने एक मिसाल कायम करने वाले इस युगल को आज भी उस द्वीप के निवासी गर्व और श्रद्धा के साथ याद करते हैं।

तताँरा-वामीरो कथा

अंदमान द्वीपसमूह का अंतिम दक्षिणी द्वीप है लिटिल अंदमान। यह पोर्ट ब्लेयर से लगभग सौ किलोमीटर दूर स्थित है। इसके बाद निकोबार द्वीपसमूह की शृंखला आरंभ होती है जो निकोबारी जनजाति की आदिम संस्कृति के केंद्र हैं। निकोबार द्वीपसमूह का पहला प्रमुख द्वीप है कार-निकोबार जो लिटिल अंदमान से 96 कि.मी. दूर है। निकोबारियों का विश्वास है कि प्राचीन काल में ये दोनों द्वीप एक ही थे। इनके विभक्त होने की एक लोककथा है जो आज भी दोहराई जाती है।

सदियों पूर्व, जब लिटिल अंदमान और कार-निकोबार आपस में जुड़े हुए थे तब वहाँ एक सुंदर सा गाँव था। पास में एक सुंदर और शक्तिशाली युवक रहा करता था। उसका नाम था तताँरा। निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। तताँरा एक नेक और मददगार व्यक्ति था। सदैव दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहता। अपने गाँववालों को ही नहीं, अपितु समूचे द्वीपवासियों की सेवा करना अपना परम कर्तव्य समझता था। उसके इस त्याग की वजह से वह चर्चित था। सभी उसका आदर करते। वक्त मुसीबत में उसे स्मरण करते और वह भागा-भागा वहाँ पहुँच जाता। दूसरे गाँवों में भी पर्व-त्योहारों के समय उसे विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता। उसका व्यक्तित्व तो आकर्षक था ही, साथ ही आत्मीय स्वभाव की वजह से लोग उसके करीब रहना चाहते। पारंपरिक पोशाक के साथ वह अपनी कमर में सदैव एक लकड़ी की तलवार बाँधे रहता। लोगों का मत था, बावजूद लकड़ी की होने पर, उस तलवार में अद्भुत दैवीय शक्ति थी। तताँरा अपनी तलवार को कभी अलग न होने देता। उसका दूसरों के सामने उपयोग भी न करता। किंतु उसके चर्चित साहसिक कारनामों के कारण लोग-बाग तलवार में अद्भुत शक्ति का होना मानते थे। तताँरा की तलवार एक विलक्षण रहस्य थी।

एक शाम तााँरा दिनभर के अथक परिश्रम के बाद समुद्र किनारे टहलने निकल पड़ा। सूरज समुद्र से लगे क्षितिज तले डूबने को था। समुद्र से ठंडी बयारें आ रही थीं। पक्षियों की सायंकालीन चहचहाहटें शनैः शनै: क्षीण होने को थीं। उसका मन शांत था। विचारमग्न तताँरा समुद्री बालू पर बैठकर सूरज की अंतिम रंग-बिरंगी किरणों को समुद्र पर निहारने लगा। तभी कहीं पास से उसे मधुर गीत गूँजता सुनाई दिया। गीत मानो बहता हुआ उसकी तरफ़ आ रहा हो। बीच-बीच में लहरों का संगीत सुनाई देता। गायन इतना प्रभावी था कि वह अपनी सुध-बुध खोने लगा। लहरों के एक प्रबल वेग ने उसकी तंद्रा भंग की। चैतन्य होते ही वह उधर बढ़ने को विवश हो उठा जिधर से अब भी

गीत के स्वर बह रहे थे। वह विकल सा उस तरफ़ बढ़ता गया। अंततः उसकी नज़र एक युवती पर पड़ी जो ढलती हुई शाम के सौंदर्य में बेसुध, एकटक समुद्र की देह पर डूबते आकर्षक रंगों को निहारते हुए गा रही थी। यह एक शृंगार गीत था।

उसे ज्ञात ही न हो सका कि कोई अजनबी युवक उसे नि:शब्द ताके जा रहा है। एकाएक एक ऊँची लहर उठी और उसे भिगो गई। वह हड़बड़ाहट में गाना भूल गई। इसके पहले कि वह सामान्य हो पाती, उसने अपने कानों में गूँजती गंभीर आकर्षक आवाज़ सुनी।

“तुमने एकाएक इतना मधुर गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया?” तताँरा ने विनम्रतापूर्वक कहा।

अपने सामने एक सुंदर युवक को देखकर वह विस्मित हुई। उसके भीतर किसी कोमल भावना का संचार हुआ। किंतु अपने को संयतकर उसने बेरुखी के साथ जवाब दिया।

“पहले बताओ! तुम कौन हो, इस तरह मुझे घूरने और इस असंगत प्रश्न का कारण? अपने गाँव के अलावा किसी और गाँव के युवक के प्रश्नों का उत्तर देने को मैं बाध्य नहीं। यह तुम भी जानते हो।”

तताँरा मानो सुध-बुध खोए हुए था। जवाब देने के स्थान पर उसने पुनः अपना प्रश्न दोहराया। “तुमने गाना क्यों रोक दिया? गाओ, गीत पूरा करो। सचमुच तुमने बहुत सुरीला कंठ पाया है।”

“यह तो मेरे प्रश्न का उत्तर न हुआ?” युवती ने कहा।

“सच बताओ तुम कौन हो? लपाती गाँव में तुम्हें कभी देखा नहीं।”

तताँरा मानो सम्मोहित था। उसके कानों में युवती की आवाज़ ठीक से पहुँच न सकी। उसने पुन: विनय की, “तुमने गाना क्यों रोक दिया? गाओ न?”

युवती झुँझला उठी। वह कुछ और सोचने लगी। अंततः उसने निश्चयपूर्वक एक बार पुनः लगभग विरोध करते हुए कड़े स्वर में कहा।

“ढीठता की हद है। मैं जब से परिचय पूछ रही हूँ और तुम बस एक ही राग अलाप रहे हो। गीत गाओ-गीत गाओ, आखिर क्यों? क्या तुम्हें गाँव का नियम नहीं मालूम?” इतना बोलकर वह जाने के लिए तेज़ी से मुड़ी। तताँरा को मानो कुछ होश आया। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। वह उसके सामने रास्ता रोककर, मानो गिड़गिड़ाने लगा।

“मुझे माफ़ कर दो। जीवन में पहली बार मैं इस तरह विचलित हुआ हूँ। तुम्हें देखकर मेरी चेतना लुप्त हो गई थी। मैं तुम्हारा रास्ता छोड़ दूँगा। बस अपना नाम बता दो।” तताँरा ने विवशता में आग्रह किया। उसकी आँखें युवती के चेहरे पर केंद्रित थीं। उसके चेहरे पर सच्ची विनय थी।

“वा… मी… रो… " एक रस घोलती आवाज़ उसके कानों में पहुँची।

“वामीरो… वा… मी… रो… वाह कितना सुंदर नाम है। कल भी आओगी न यहाँ?” तताँरा ने याचना भरे स्वर में कहा।

“नहीं… शायद… कभी नहीं।” वामीरो ने अन्यमनस्कतापूर्वक कहा और झटके से लपाती की तरफ़ बेसुध सी दौड़ पड़ी। पीछे तताँरा के वाक्य गूँज रहे थे।

“वामीरो… मेरा नाम तताँरा है। कल मैं इसी चट्टान पर प्रतीक्षा करूँगा… तुम्हारी बाट जोहूँगा… ज़रूर आना…”

वामीरो रुकी नहीं, भागती ही गई। तताँरा उसे जाते हुए निहारता रहा।

वामीरो घर पहुँचकर भीतर ही भीतर कुछ बेचैनी महसूस करने लगी। उसके भीतर तताँरा से मुक्त होने की एक झूठी छटपटाहट थी। एक झल्लाहट में उसने दरवाज़ा बंद किया और मन को किसी और दिशा में ले जाने का प्रयास किया। बार-बार तताँरा का याचना भरा चेहरा उसकी आँखों में तैर जाता। उसने तताँरा के बारे में कई कहानियाँ सुन रखी थीं। उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था। किंतु वही तताँरा उसके सम्मुख एक अलग रूप में आया। सुंदर, बलिष्ठ किंतु बेहद शांत, सभ्य और भोला। उसका व्यक्तित्व कदाचित वैसा ही था जैसा वह अपने जीवन-साथी के बारे में सोचती रही थी। किंतु एक दूसरे गाँव के युवक के साथ यह संबंध परंपरा के विरुद्ध था। अतएव उसने उसे भूल जाना ही श्रेयस्कर समझा। किंतु यह असंभव जान पड़ा। तताँरा बार-बार उसकी आँखों के सामने था। निर्निमेष याचक की तरह प्रतीक्षा में डूबा हुआ।

किसी तरह रात बीती। दोनों के हृदय व्यथित थे। किसी तरह आँचरहित एक ठंडा और ऊबाऊ दिन गुज़रने लगा। शाम की प्रतीक्षा थी। तताँरा के लिए मानो पूरे जीवन की अकेली प्रतीक्षा थी। उसके गंभीर और शांत जीवन में ऐसा पहली बार हुआ था। वह अचंभित था, साथ ही रोमांचित भी। दिन ढलने के काफ़ी पहले वह लपाती की उस समुद्री चट्टान पर पहुँच गया। वामीरो की प्रतीक्षा में एक-एक पल पहाड़ की तरह भारी था। उसके भीतर एक आशंका भी दौड़ रही थी। अगर वामीरो न आई तो? वह कुछ निर्णय नहीं कर पा रहा था। सिर्फ़ प्रतीक्षारत था। बस आस की एक किरण थी जो समुद्र की देह पर डूबती किरणों की तरह कभी भी डूब सकती थी। वह बार-बार लपाती के रास्ते पर नज़ोरें दौड़ाता। सहसा नारियल के झुरमुटों में उसे एक आकृति कुछ साफ़ हुई… कुछ और… कुछ और। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। सचमुच वह वामीरो थी। लगा जैसे वह घबराहट में थी। वह अपने को छुपाते हुए बढ़ रही थी। बीच-बीच में इधर-उधर दृष्टि दौड़ाना न भूलती। फिर तेज़ कदमों से चलती हुई तताँरा के सामने आकर ठिठक गई। दोनों शब्दहीन थे। कुछ था जो दोनों के भीतर बह रहा था। एकटक निहारते हुए वे जाने कब तक खड़े रहे। सूरज समुद्र की लहरों में कहीं खो गया था। अँधेरा बढ़ रहा था। अचानक वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ़ दौड़ पड़ी। तताँरा अब भी वहीं खड़ा था… निश्चल… शब्दहीन…।

दोनों रोज़ उसी जगह पहुँचते और मूर्तिवत एक-दूसरे को निर्निमेष ताकते रहते। बस भीतर समर्पण था जो अनवरत गहरा रहा था। लपाती के कुछ युवकों ने इस मूक प्रेम को भाँप लिया और खबर हवा की तरह बह उठी। वामीरो लपाती ग्राम की थी और तताँरा पासा का। दोनों का संबंध संभव न

था। रीति अनुसार दोनों को एक ही गाँव का होना आवश्यक था। वामीरो और तताँरा को समझाने-बुझाने के कई प्रयास हुए किंतु दोनों अडिग रहे। वे नियमतः लपाती के उसी समुद्री किनारे पर मिलते रहे। अफ़वाहें फैलती रहीं।

कुछ समय बाद पासा गाँव में ‘पशु-पर्व’ का आयोजन हुआ। पशु-पर्व में हृष्ट-पुष्ट पशुओं के प्रदर्शन के अतिरिक्त पशुओं से युवकों की शक्ति परीक्षा प्रतियोगिता भी होती है। वर्ष में एक बार सभी गाँव के लोग हिस्सा लेते हैं। बाद में नृत्य-संगीत और भोजन का भी आयोजन होता है। शाम से सभी लोग पासा में एकत्रित होने लगे। धीरे-धीरे विभिन्न कार्यक्रम शुरू हुए। तताँरा का मन इन कार्यक्रमों में तनिक न था। उसकी व्याकुल आँखें वामीरो को ढूँढ़ने में व्यस्त थीं। नारियल के झुंड के एक पेड़ के पीछे से उसे जैसे कोई झाँकता दिखा। उसने थोड़ा और करीब जाकर पहचानने की चेष्टा की। वह वामीरो थी जो भयवश सामने आने में झिझक रही थी। उसकी आँखें तरल थीं। होंठ काँप रहे थे। तताँरा को देखते ही वह फूटकर रोने लगी। तताँरा विद्वल हुआ। उससे कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था। रोने की आवाज़ लगातार ऊँची होती जा रही थी। तताँरा किंकर्तव्यविमूढ़ था। वामीरो के रुदन स्वरों को सुनकर उसकी माँ वहाँ पहुँची और दोनों को देखकर आग बबूला हो उठी। सारे गाँववालों की उपस्थिति में यह दृश्य उसे अपमानजनक लगा। इस बीच गाँव के कुछ लोग भी वहाँ पहुँच गए। वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। उसने तताँरा को तरह-तरह से अपमानित किया। गाँव के लोग भी तताँरा के विरोध में आवाज़ें उठाने लगे। यह तताँरा के लिए असहनीय था। वामीरो अब भी रोए जा रही थी। तताँरा भी गुस्से से भर उठा। उसे जहाँ विवाह की निषेध परंपरा पर क्षोभ था वहीं अपनी असहायता पर खीझ। वामीरो का दुख उसे और गहरा कर रहा था। उसे मालूम न था कि क्या कदम उठाना चाहिए? अनायास उसका हाथ तलवार की मूठ पर जा टिका। क्रोध में उसने तलवार निकाली और कुछ विचार करता रहा। क्रोध लगातार अग्नि की तरह बढ़ रहा था। लोग सहम उठे। एक सन्नाटा-सा खिंच गया। जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसमें शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताकत से उसे खींचने लगा। वह पसीने से नहा उठा। सब घबराए हुए थे। वह तलवार को अपनी तरफ़ खींचते-खींचते दूर तक पहुँच गया। वह हाँफ रहा था। अचानक जहाँ तक लकीर खिंच गई थी, वहाँ एक दरार होने लगी। मानो धरती दो टुकड़ों में बँटने लगी हो। एक गड़गड़ाहट-सी गूँजने लगी और लकीर की सीध में धरती फटती ही जा रही थी। द्वीप के अंतिम सिरे तक तताँरा धरती को मानो क्रोध में काटता जा रहा था। सभी भयाकुल हो उठे। लोगों ने ऐसे दृश्य की कल्पना न की थी, वे सिहर उठे। उधर वामीरो फटती हुई धरती के किनारे चीखती हुई दौड़ रही थी-तताँरा… तताँरा… तताँरा उसकी करुण चीख मानो गड़गड़ाहट में डूब गई। तताँरा दुर्भाग्यवश दूसरी तरफ़ था। द्वीप के अंतिम सिरे तक धरती को चाकता वह जैसे ही अंतिम छोर पर पहुँचा, द्वीप दो टुकड़ों में विभक्त हो चुका था। एक तरफ़ तताँरा था दूसरी तरफ़ वामीरो। तताँरा को

जैसे ही होश आया, उसने देखा उसकी तरफ़ का द्वीप समुद्र में धँसने लगा है। वह छटपटाने लगा उसने छलाँग लगाकर दूसरा सिरा थामना चाहा किंतु पकड़ ढीली पड़ गई। वह नीचे की तरफ़ फिसलने लगा। वह लगातार समुद्र की सतह की तरफ़ फिसल रहा था। उसके मुँह से सिर्फ़ एक ही चीख उभरकर डूब रही थी, “वामीरो… वामीरो… वामीरो… वामीरो…” उधर वामीरो भी “तताँरा… तताँरा… ता… ताँ… रा” पुकार रही थी।

तताँरा लहूलुहान हो चुका था… वह अचेत होने लगा और कुछ देर बाद उसे कोई होश नहीं रहा। वह कटे हुए द्वीप के अंतिम भूखंड पर पड़ा हुआ था जो कि दूसरे हिस्से से संयोगवश जुड़ा था। बहता हुआ तताँरा कहाँ पहुँचा, बाद में उसका क्या हुआ कोई नहीं जानता। इधर वामीरो पागल हो उठी। वह हर समय तताँरा को खोजती हुई उसी जगह पहुँचती और घंटों बैठी रहती। उसने खाना-पीना छोड़ दिया। परिवार से वह एक तरह विलग हो गई। लोगों ने उसे ढूँढ़ने की बहुत कोशिश की किंतु कोई सुराग न मिल सका।

आज न तताँरा है न वामीरो किंतु उनकी यह प्रेमकथा घर-घर में सुनाई जाती है। निकोबारियों का मत है कि तताँरा की तलवार से कार-निकोबार के जो टुकड़े हुए, उसमें दूसरा लिटिल अंदमान है जो कार-निकोबार से आज 96 कि.मी. दूर स्थित है। निकोबारी इस घटना के बाद दूसरे गाँवों में भी आपसी वैवाहिक संबंध करने लगे। तताँरा-वामीरो की त्यागमयी मृत्यु शायद इसी सुखद परिवर्तन के लिए थी।

प्रश्न-अभ्यस

मौखिक

निमनलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

1. तताँरा-वामीरो कहाँ की कथा है?

2. वामीरो अपना गाना क्यों भूल गई?

3. तताँरा ने वामीरो से क्या याचना की?

4. तताँरा और वामीरो के गाँव की क्या रीति थी?

5. क्रोध में तताँरा ने क्या किया?

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ( 25-30 शब्दों में ) लिखिए-

1. तताँरा की तलवार के बारे में लोगों का क्या मत था?

2. वामीरो ने तताँरा को बेरुखी से क्या जवाब दिया।$ \qquad $

3. तताँरा-वामीरो की त्यागमयी मृत्यु से निकोबार में क्या परिवर्तन आया?

4. निकोबार के लोग तताँरा को क्यों पसंद करते थे?

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ( 50-60 शब्दों में ) लिखिए-

1. निकोबार द्वीपसमूह के विभक्त होने के बारे में निकोबारियों का क्या विश्वास है?

2. तताँरा खूब परिश्रम करने के बाद कहाँ गया? वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

3. वामीरो से मिलने के बाद तताँरा के जीवन में क्या परिवर्तन आया?

4. प्राचीन काल में मनोरंजन और शक्ति-प्रदर्शन के लिए किस प्रकार के आयोजन किए जाते थे?

5. रूढ़ियाँ जब बंधन बन बोझ बनने लगें तब उनका टूट जाना ही अच्छा है। क्यों? स्पष्ट कीजिए।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

1. जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसमें शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताकत से उसे खींचने लगा।

2. बस आस की एक किरण थी जो समुद्र की देह पर डूबती किरणों की तरह कभी भी डूब सकती थी।

भाषा अध्यय

1. निम्नलिखित वाक्यों के सामने दिए कोष्ठक में $(\checkmark)$ का चिह्न लगाकर बताएँ कि वह वाक्य किस प्रकार का है-

(क) निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

(ख) तुमने एकाएक इतना मधुर गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया? (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

(ग) वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

(घ) क्या तुम्हें गाँव का नियम नहीं मालूम? (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

(ङ) वाह! कितना सुंदर नाम है। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

(च) मैं तुम्हारा रास्ता छोड़ दूँगा। (प्रश्नवाचक, विधानवाचक, निषेधात्मक, विस्मयादिबोधक)

2. निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-

(क) सुध-बुध खोना

(ख) बाट जोहना

(ग) खुशी का ठिकाना न रहना

(घ) आग बबूला होना

(ङ) आवाज़ उठाना

3. नीचे दिए गए शब्दों में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए-

शब्द $\quad \quad \quad \quad $ मूल $\quad \quad \quad \quad $ शब्द प्रत्यय

चर्चित $\quad \quad \quad $ _________ $\quad \quad \quad $ _________

साहसिक $\quad \quad $ _________ $\quad \quad \quad $ _________

छटपटाहट $\quad \quad $ _________ $\quad \quad \quad $ _________

शब्दहीन $\quad \quad \quad $ _________ $\quad \quad \quad $ _________

4. नीचे दिए गए शब्दों में उचित उपसर्ग लगाकर शब्द बनाइए-

____________ $+$ आकर्षक $=$ ______________

____________ $+$ ज्ञात $=$ ______________

____________ $+$ कोमल $=$ ______________

____________ $+$ होश $=$ ______________

____________ $+$ घटना $=$ ______________

5. निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए-

(क) जीवन में पहली बार मैं इस तरह विचलित हुआ हूँ। (मिश्र वाक्य)

(ख) फिर तेज़ कदमों से चलती हुई तताँरा के सामने आकर ठिठक गई। (संयुक्त वाक्य)

(ग) वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ़ दौड़ी। (सरल वाक्य)

(घ) तताँरा को देखकर वह फूटकर रोने लगी। (संयुक्त वाक्य)

(ङ) रीति के अनुसार दोनों को एक ही गाँव का होना आवश्यक था। (मिश्र वाक्य)

6. नीचे दिए गए वाक्य पढ़िए तथा ‘और’ शब्द के विभिन्न प्रयोगों पर ध्यान दीजिए-

(क) पास में सुंदर और शक्तिशाली युवक रहा करता था। (दो पदों को जोड़ना)

(ख) वह कुछ और सोचने लगी। (‘अन्य’ के अर्थ में)

(ग) एक आकृति कुछ साफ़ हुई… कुछ और … कुछ और … (क्रमशः धीरे-धीरे के अर्थ में)

(घ) अचानक वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ़ दौड़ गई। (दो उपवाक्यों को जोड़ने के अर्थ में)

(ङ) वामीरो का दुख उसे और गहरा कर रहा था। (‘अधिकता’ के अर्थ में)

(च) उसने थोड़ा और करीब जाकर पहचानने की चेष्टा की। (‘निकटता’ के अर्थ में)

7. नीचे दिए गए शब्दों के विलोम शब्द लिखिए-

भय, मधुर, सभ्य, मूक, तरल, उपस्थिति, सुखद।

8. नीचे दिए गए शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए -

समुद्र, आँख, दिन, अँधेरा, मुक्त।

9. नीचे दिए गए शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-

किंकर्तव्यविमूढ़, विह्लल, भयाकुल, याचक, आकंठ।

10. ‘किसी तरह आँचरहित एक ठंडा और ऊबाऊ दिन गुज़रने लगा’ वाक्य में दिन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? आप दिन के लिए कोई तीन विशेषण और सुझाइए।

11. इस पाठ में ‘देखना’ क्रिया के कई रूप आए हैं-‘देखना’ के इन विभिन्न शब्द-प्रयोगों में क्या अंतर है? वाक्य-प्रयोग द्वारा स्पष्ट कीजिए।


इसी प्रकार ‘बोलना’ क्रिया के विभिन्न शब्द-प्रयोग बताइए



12. नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए-

(क) श्याम का बड़ा भाई रमेश कल आया था। (संज्ञा पदबंध)

(ख) सुनीता परिश्रमी और होशियार लड़की है। (विशेषण पदबंध)

(ग) अरुणिमा धीरे-धीरे चलते हुए वहाँ जा पहुँची। (क्रिया विशेषण पदबंध)

(घ) आयुष सुरभि का चुटकुला सुनकर हँसता रहा। (क्रिया पदबंध)

ऊपर दिए गए वाक्य (क) में रेखांकित अंश में कई पद हैं जो एक पद संज्ञा का काम कर रहे हैं। वाक्य

(ख) में तीन पद मिलकर विशेषण पद का काम कर रहे हैं। वाक्य (ग) और (घ) में कई पद मिलकर

क्रमशः क्रिया विशेषण और क्रिया का काम कर रहे हैं।

ध्वनियों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं और वाक्य में प्रयुक्त शब्द ‘पद’ कहलाता है; जैसे-

‘पेड़ों पर पक्षी चहचहा रहे थे।’ वाक्य में ‘पेड़ो’ शब्द पद है क्योंकि इसमें अनेक व्याकरणिक बिंदु जुड़ जाते हैं। कई पदों के योग से बने वाक्यांश को जो एक ही पद का काम करता है, पदबंध कहते हैं। पदबंध वाक्य का एक अंश होता है।

पदबंध मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं-

  • संज्ञा पदबंध

  • क्रिया पदबंध

  • विशेषण पदबंध

  • क्रियाविशेषण पदबंध

वाक्यों के रेखांकित पदबंधों का प्रकार बताइए-

(क) उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था।

(ख) तताँरा को मानो कुछ होश आया।

(ग) वह भागा-भागा वहाँ पहुँच जाता।

(घ) तताँरा की तलवार एक विलक्षण रहस्य थी।

(ङ) उसकी व्याकुल आँखें वामीरो को ढूँढ़ने में व्यस्त थीं।

योग्यता-विस्तर

1. पुस्तकालय में उपलन्ध विभिन्न प्रदेशों की लोककथाओं का अध्ययन कीजिए।

2. भारत के नक्शे में अंदमान निकोबार द्वीपसमूह की पहचान कीजिए और उसकी भौगोलिक स्थिति के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

3. अंदमान निकोबार द्वीपसमूह की प्रमुख जनजातियों की विशेषताओं का अध्ययन पुस्तकालय की सहायता से कीजिए।

4. दिसंबर 2004 में आए सुनामी का इस द्वीपसमूह पर क्या प्रभाव पड़ा? जानकारी एकत्रित कीजिए।

परियोजना कारय

1. अपने घर-परिवार के बुज़ुर्ग सदस्यों से कुछ लोककथाओं को सुनिए। उन कथाओं को अपने शब्दों में कक्षा में सुनाइए।

शब्दार्थ औ टिप्पणियाँ

शृंखला - क्रम / कड़ी
आदिम - प्रारंभिक
विभक्त - बँटा हुआ
लोककथा - जन-समाज में प्रचलित कथा
आत्मीय _ अपना
साहसिक कारनामा - साहसपूर्ण कार्य
विलक्षण - असाधारण
बयार - शीतल-मंद वायु
तंद्रा - एकाग्रता
चैतन्य - चेतना / सजग
विकल - बेचैन / व्याकुल
संचार - उत्पन्न होना (भावना का)
असंगत - अनुचित
सम्मोहित - मुग्ध
झुँझलाना - चिढ़ना
अन्यमनस्कता - जिसका चित्त कहीं और हो
निर्निमेष - जिसमें पलक न झपकी जाए / बिना पलक झपकाए
अचंभित - चकित
रोमांचित - पुलकित
निश्चल - स्थिर
अफ़वाह - उड़ती खबर
उफनना - उबलना
निषेध परंपरा - वह परंपरा जिस
शमन - शांत करना
घोंपना - भोंकना
दरार - रेखा की तरह का लंबा छिद्र जो फटने के कारण पड़ जाता है


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