अध्याय 02 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा
एवरेस्ट अभियान दल 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से चल दिया। एक मज़बूत अग्रिम दल बहुत पहले ही चला गया था जिससे कि वह हमारे ‘बेस कैंप’ पहुँचने से पहले दुर्गम हिमपात के रास्ते को साफ़ कर सके।
नमचे बाज़ार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्तूपर्ण नगरीय क्षेत्र है। अधिकांश शेरपा इसी स्थान तथा यहीं के आसपास के गाँवों के होते हैं। यह नमचे बाज़ार ही था, जहाँ से मैंने सर्वप्रथम एवरेस्ट को निहारा, जो नेपालियों में ‘सागरमाथा’ के नाम से प्रसिद्ध है। मुझे यह नाम अच्छा लगा।
एवरेस्ट की तरफ़ गौर से देखते हुए, मैंने एक भारी बर्फ़ का बड़ा फूल (प्लूम) देखा, जो पर्वत-शिखर पर लहराता एक ध्वज-सा लग रहा था। मुझे बताया गया कि यह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक की गति से हवा चलने के कारण बनता था, क्योंकि तेज़ हवा से सूखा बर्फ़ पर्वत पर उड़ता रहता था। बर्फ़ का यह ध्वज 10 किलोमीटर या इससे भी लंबा हो सकता था। शिखर पर जानेवाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर इन तूफानों को झेलना पड़ता था, विशेषकर खराब मौसम में। यह मुझे डराने के लिए काफ़ी था, फिर भी मैं एवरेस्ट के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित थी और इसकी कठिनतम चुनौतियों का सामना करना चाहती थी।
जब हम 26 मार्च को पैरिच पदुँचे, हमें हिम-सललन के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का दुःखद समाचार मिला। खुंभु हिमपात पर जानेवाले अभियान-दल के रास्ते के बाई तरफ़ सीधी पहाड़ी के धसकने से, ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी बर्फ़ की चट्टान
नीचे खिसक आई थी। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे।
इस समाचार के कारण अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाए अवसाद को देखकर हमारे नेता कर्नल खुल्लर ने स्पष्ट किया कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।
उपनेता प्रेमचंद, जो अग्रिम दल का नेतृत्व कर रहे थे, 26 मार्च को पैरिच लौट आए। उन्होंने हमारी पहली बड़ी बाधा खुंभु हिमपात की स्थिति से हमें अवगत कराया। उन्होंने कहा कि उनके दल ने कैंप-एक ( 6000 मी.), जो हिमपात के ठीक ऊपर है, वहाँ तक का रास्ता साफ़ कर दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ता चिह्नित कर, सभी बड़ी कठिनाइयों का जायज़ा ले लिया गया है। उन्होंने इस पर भी ध्यान दिलाया कि ग्लेशियर बर्फ़ की नदी है और बर्फ़ का गिरना अभी जारी है। हिमपात में अनियमित और अनिश्चित बदलाव के कारण अभी तक के किए गए सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं और हमें रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है।
‘बेस कैंप’ में पहुँचने से पहले हमें एक और मृत्यु की खबर मिली। जलवायु अनुकूल न होने के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। निश्चित रूप से हम आशाजनक स्थिति में नहों चल रहे थे।
एवरेस्ट शिखर को मैंने पहले दो बार देखा था, लेकिन एक दूरी से। बेस कैंप पहुँचने पर दूसरे दिन मैंने एवरेस्ट पर्वत तथा इसकी अन्य श्रेणियों को देखा। मैं भौंचक्की होकर खड़ी रह गई और एवरेस्ट, ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरी, बर्फ़ीली टेढ़ी-मेढ़ी नदी को निहारती रही।
हिमपात अपने आपमें एक तरह से बर्फ़ के खंडों का अव्यवस्थित ढंग से गिरना ही था। हमें बताया गया कि ग्लेशियर के बहने से अकसर बर्फ़ में हलचल हो जाती थी, जिससे बड़ी-बड़ी बर्फ़ की चट्टानें तत्काल गिर जाया करती थीं और अन्य कारणों से भी अचानक प्राय: खतरनाक स्थिति धारण कर लेती थीं। सीधे धरातल पर$ \qquad $ दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र खयाल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज़्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रवास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।
दूसरे दिन नए आनेवाले अपने अधिकांश सामान को हम हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए। डॉ. मीनू मेहता ने हमें अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का बनाना, लट्ोों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना और हमारे अग्रिम दल के अभियांत्रिकी कार्यों के बारे में हमें विस्तृत जानकारी दी।
तीसरा दिन हिमपात से कैंप-एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए निश्चित था। रीता गोंबू तथा मैं साथ-साथ चढ़ रहे थे। हमारे पास एक वॉकी-टॉकी था, जिससे हम अपने हर कदम की जानकारी बेस कैंप पर दे रहे थे। कर्नल खुल्लर उस समय खुश हुए, जब हमने उन्हें अपने पहुँचने की सूचना दी क्योंकि कैंप-एक पर पहुँचनेवाली केवल हम दो ही महिलाएँ थीं।
अंगदोरजी, लोपसांग और गगन बिस्सा अंततः साउथ कोल पहुँच गए और 29 अप्रैल को 7900 मीटर पर उन्होंने कैंप-चार लगाया। यह संतोषजनक प्रगति थी।
जब अप्रैल में मैं बेस कैंप में थी, तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी के साथ हमारे पास आए थे। उन्होंने इस बात पर विशेष महत्त्व दिया कि दल के प्रत्येक सदस्य और प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। जब मेरी बारी आई, मैंने अपना परिचय यह कहकर दिया कि मैं बिलकुल ही नौसिखिया हूँ और एवरेस्ट मेरा पहला अभियान है। तेनजिंग हँसे और मुझसे कहा कि एवरेस्ट उनके लिए भी पहला अभियान है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि शिखर पर पहुँचने से पहले उन्हें सात बार एवरेस्ट पर जाना पड़ा था। फिर अपना हाथ मेरे कंधे पर रखते हुए उन्होंने कहा, “तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।”
15-16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन मैं ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप-तीन में थी। कैंप में 10 और व्यक्ति थे। लोपसांग, तशारिंग मेरे तंबू में थे, एन.डी. शेरपा तथा और
आठ अन्य शरीर से मज़बूत और ऊँचाइयों में रहनेवाले शेरपा दूसरे तंबुओं में थे। मैं गहरी नींद में सोई हुई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग मेरे सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज़ के टकराने से मेरी नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। तभी मुझे महसूस हुआ कि एक ठंडी, बहुत भारी कोई चीज़ मेरे शरीर पर से मुझे कुचलती हुई चल रही है। मुझे साँस लेने में भी कठिनाई हो रही थी।
यह क्या हो गया था? एक लंबा बर्फ़ का पिंड हमारे कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका विशाल हिमपुंज बना गया था। हिमखंडों, बर्फ़ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ़ के इस विशालकाय पुंज ने, एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण गर्जना के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए हमारे कैंप को तहस-नहस कर दिया। वास्तव में हर व्यक्ति को चोट लगी थी। यह एक आश्यर्च था कि किसी की मृत्यु नहीं हुई थी।
लोपसांग अपनी स्विस छुरी की मदद से हमारे तंबू का रास्ता साफ़ करने में सफल हो गए थे और तुरंत ही अत्यंत तेज़ी से मुझे बचाने की कोशिश में लग गए। थोड़ी-सी भी देर का सीधा अर्थ था मृत्यु। बड़े-बड़े हिमपिंडों को मुश्किल से हटाते हुए उन्होंने मेंरे चारों तरफ़ की कड़े जमे बर्फ़ की खुदाई की और मुझे उस बर्फ़ की कब्र से निकाल बाहर खींच लाने में सफल हो गए।
सुबह तक सारे सुरक्षा दल आ गए थे और 16 मई को प्रातः 8 बजे तक हम प्राय: सभी कैंप-दो पर पहुँच गए थे। जिस शेरपा की टाँग की हड्डी टूट गई थी, उसे एक खुद के बनाए स्ट्रेचर पर लिटाकर नीचे लाए। हमारे नेता कर्नल खुल्लर के शब्दों में, “यह इतनी ऊँचाई पर सुरक्षा-कार्य का एक ज़बरदस्त साहसिक कार्य था।"
सभी नौ पुरुष सदस्यों को चोटों अथवा टूटी हड्डियों आदि के कारण बेस कैंप में भेजना पड़ा। तभी कर्नल खुल्लर मेरी तरफ़ मुड़कर कहने लगे, “क्या तुम भयभीत थीं?”
“जी हाँ।”
“क्या तुम वापिस जाना चाहोगी?”
“नहीं”, मैंने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया।
जैसे ही मैं साउथ कोल कैंप पहुँची, मैंने अगले दिन की अपनी महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। मैंने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्टे किए। जब दोपहर डेढ़ बजे बिस्सा आया, उसने मुझे चाय के लिए पानी गरम करते देखा। की, जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। मैं चिंतित थी क्योंकि मुझे अगले दिन उनके साथ ही चढ़ाई करनी थी। वे धीरे-धीरे आ रहे थे क्योंकि वे भारी बोझ लेकर और बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे।
दोपहर बाद मैंने अपने दल के दूसरे सदस्यों की मदद करने और अपने एक थरमस को जूस से और दूसरे को गरम चाय से भरने के लिए नीचे जाने का निश्चय किया। मैंने बऱ्रीली हवा में ही तंबू से बाहर कदम रखा। जैसे ही मैं कैंप क्षेत्र से बाहर आ रही थी मेरी मुलाकात मीनू से हुई। की और जय अभी कुछ पीछे थे। मुझे जय जेनेवा स्पर की चोटी के ठीक नीचे मिला। उसने कृतज्ञापूर्वक चाय वगैरह पी लेकिन मुझे और आगे जाने से रोकने की कोशिश की। मगर मुझे की से भी मिलना था। थोड़ा-सा और आगे नीचे उतरने पर मैंने की को देखा। वह मुझे देखकर हक्का-बक्का रह गया।
“तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री?”
मैंने उसे दृढ़तापूर्वक कहा, “मैं भी औरों की तरह एक पर्वतारोही हूँ, इसीलिए इस दल में आई हूँ। शारीरिक रूप से मैं ठीक हूँ। इसलिए मुझे अपने दल के सदस्यों की मदद क्यों नहीं करनी चाहिए।” की हँसा और उसने पेय पदार्थ से प्यास बुझाई, लेकिन उसने मुझे अपना किट ले जाने नहीं दिया।
थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा हमें मिलने नीचे उतर आए। और हम सब साउथ कोल पर जैसी भी सुरक्षा और आराम की जगह उपलब्ध थी, उस पर लौट आए। साउथ कोल ‘पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है।
अगले दिन मैं सुबह चार बजे उठ गई। बर्फ़ पिघलाया और चाय बनाई, कुछ बिस्कुट और आधी चॉकलेट का हलका नाश्ता करने के बाद मैं लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। अंगदोरजी बाहर खड़ा था और कोई आसपास नहीं था।
अंगदोरजी बिना ऑक्सीजन के ही चढ़ाई करनेवाला था। लेकिन इसके कारण उसके पैर ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए वह ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात्रि में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहता था। इसलिए उसे या तो उसी दिन चोटी तक चढ़कर साउथ कोल पर वापस आ जाना था अथवा अपने प्रयास को छोड़ देना था।
वह तुरंत ही चढ़ाई शुरू करना चाहता था… और उसने मुझसे पूछा, क्या मैं उसके साथ जाना चाहूँगी? एक ही दिन में साउथ कोल से चोटी तक जाना और वापस आना बहुत कठिन और श्रमसाध्य होगा! इसके अलावा यदि अंगदोरजी के पैर ठंडे पड़ गए तो उसके लौटकर आने का भी जोखिम था। मुझे फिर भी अंगदोरजी पर विश्वास था और साथ-साथ मैं आरोहण की क्षमता और कर्मठता के बारे में भी आश्वस्त थी। अन्य कोई भी व्यक्ति इस समय साथ चलने के लिए तैयार नहीं था।
सुबह 6.20 पर जब अंगदोरजी और मैं साउथ कोल से बाहर आ निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हलकी-हलकी हवा चल रही थी, लेकिन ठंड भी बहुत अधिक थी। मैं अपने आरोही उपस्कर में काफ़ी सुरक्षित और गरम थी। हमने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। अंगदोरजी एक निश्चित गति से ऊपर चढ़ते गए और मुझे भी उनके साथ चलने में कोई कठिनाई नहीं हुई।
जमे हुए बर्फ़ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें इतनी सख्त और भुरभुरी थीं, मानो शीशे की चादरें बिछी हों। हमें बर्फ़ काटने के फावड़े का इस्तेमाल करना ही पड़ा और मुझे इतनी सख्ती से फावड़ा चलाना पड़ा जिससे कि उस जमे हुए बर्फ़ की धरती को फावड़े के दाँते काट सकें। मैंने उन खतरनाक स्थलों पर हर कदम अच्छी तरह सोच-समझकर उठाया।
दो घंटे से कम समय में ही हम शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे मुड़कर देखा और मुझसे कहा कि क्या मैं थक गई हूँ। मैंने जवाब दिया, “नहीं।” जिसे सुनकर वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित और आनंदित हुए। उन्होंने कहा कि पहलेवाले दल ने शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि हम इसी गति से चलते रहे तो हम शिखर पर दोपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे।
ल्हाटू हमारे पीछे-पीछे आ रहा था और जब हम दक्षिणी शिखर के नीचे आराम कर रहे थे, वह हमारे पास पहुँच गया। थोड़ी-थोड़ी चाय पीने के बाद हमने फिर चढ़ाई शुरू की। ल्हाटू एक नायलॉन की रस्सी लाया था। इसलिए अंगदोरजी और मैं रस्सी के सहारे चढ़े, जबकि ल्हाटू एक हाथ से रस्सी पकड़े हुए बीच में चला। उसने रस्सी अपनी सुरक्षा की बजाय हमारे संतुलन के लिए पकड़ी हुई थी। ल्हाटू ने ध्यान दिया कि मैं इन ऊँचाइयों के लिए सामान्यतः आवश्यक, चार लीटर ऑक्सीजन की अपेक्षा, लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी। मेरे रेगुलेटर पर जैसे ही उसने ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई, मुझे महसूस हुआ कि सपाट और कठिन चढ़ाई भी अब आसान लग रही थी।
दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी। उस ऊँचाई पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ़ के कणों को चारों तरफ़ उड़ा रहे थे, जिससे दृश्यता शून्य तक आ गई थी। अनेक बार देखा कि केवल थोड़ी दूर के बाद कोई ऊँची चढ़ाई नहीं है। ढलान एकदम सीधा नीचे चला गया है।
मेरी साँस मानो रुक गई थी। मुझे विचार कौंधा कि सफलता बहुत नज़दीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर मैं एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचनेवाली मैं प्रथम भारतीय महिला थी।$ \qquad $ एवरेस्ट शंकु की चोटी पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े हो सकें। चारों तरफ़ हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए हमारे सामने प्रश्न सुरक्षा का था। हमने पहले बऱ् के फावडे़े से बऱ़् की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया। इसके बाद, मैं अपने घुटनों के बल बैठी, बर्फ़ पर अपने माथे को लगाकर मैंने ‘सागरमाथे’ के ताज का चुंबन लिया। बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ़ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।
जैसे मैं उठी, मैंने अपने हाथ जोड़े और मैं अपने रज्जु-नेता अंगदोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। अंगदोरजी जिन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और मुझे लक्ष्य तक पहुँचाया। मैंने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढ़ाई चढ़ने पर बधाई भी दी। उन्होंने मुझे गले से लगाया और मेरे कानों में फुसफुसाया, “दीदी, तुमने अच्छी चढ़ाई की। मैं बहुत प्रसन्न हूँ!”
कुछ देर बाद सोनम पुलजर पहुँचे और उन्होंने फोटो लेने शुरू कर दिए।
इस समय तक ल्हाटू ने हमारे नेता को एवरेस्ट पर हम चारों के होने की सूचना दे दी थी। तब मेरे हाथ में वॉकी-टॉकी दिया गया। कर्नल खुल्लर हमारी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। मुझे बधाई देते हुए उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारी इस अनूठी उपलब्धि के लिए तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा!” वे बोले कि देश को तुम पर गर्व है और अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो तुम्हारे अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम भिन्न होगा!
प्रश्न-अभ्यास
#मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
1. अग्रिम दल का नेतृत्व कौन कर रहा था?
2. लेखिका को सागरमाथा नाम क्यों अच्छा लगा?
3. लेखिका को ध्वज जैसा क्या लगा?
4. हिमस्खलन से कितने लोगों की मृत्यु हुई और कितने घायल हुए?
5. मृत्यु के अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने क्या कहा?
6. रसोई सहायक की मृत्यु कैसे हुई?
7. कैंप-चार कहाँ और कब लगाया गया?
8. लेखिका ने शेरपा कुली को अपना परिचय किस तरह दिया?
9. लेखिका की सफलता पर कर्नल खुल्लर ने उसे किन शब्दों में बधाई दी?
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में ) लिखिए-
1. नज़दीक से एवरेस्ट को देखकर लेखिका को कैसा लगा?
2. डॉ. मीनू मेहता ने क्या जानकारियाँ दीं?
3. तेनजिंग ने लेखिका की तारीफ़ में क्या कहा?
4. लेखिका को किनके साथ चढ़ाई करनी थी?
5. लोपसांग ने तंबू का रास्ता कैसे साफ़ किया?
6. साउथ कोल कैंप पहुँचकर लेखिका ने अगले दिन की महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी कैसे शुरू की?
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ( 50-60 शब्दों में) लिखिए-
1. उपनेता प्रेमचंद ने किन स्थितियों से अवगत कराया?
2. हिमपात किस तरह होता है और उससे क्या-क्या परिवर्तन आते हैं?
3. लेखिका के तंबू में गिरे बर्फ़ पिंड का वर्णन किस तरह किया गया है?
4. लेखिका को देखकर ‘की’ हक्का-बक्का क्यों रह गया?
5. एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए कुल कितने कैंप बनाए गए? उनका वर्णन कीजिए।
6. चढ़ाई के समय एवरेस्ट की चोटी की स्थिति कैसी थी?
7. सम्मिलित अभियान में सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय बचेंद्री के किस कार्य से मिलता है?
( ग ) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए
1. एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।
2. सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र खयाल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज़्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रयास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।
3. बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ़ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।
भाषा-अध्ययन
1. इस पाठ में प्रयुक्त निम्नलिखित शब्दों की व्याख्या पाठ का संदर्भ देकर कीजिएनिहारा है, धसकना, खिसकना, सागरमाथा, जायज़ा लेना, नौसिखिया
2. निम्नलिखित पंक्तियों में उचित विराम चिह्नों का प्रयोग कीजिए-
(क) उन्होंने कहा तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए
(ख) क्या तुम भयभीत थीं
(ग) तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री
3. नीचे दिए उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-
उदाहरण : हमारे पास एक वॉकी-टॉकी था।
$ \begin{array}{ll} \text { टेढ़ी-मेढ़ी } & \text { हक्का-बक्का } \\ \text { गहरे-चौड़े } & \text { इधर-उधर } \\ \text { आस-पास } & \text { लंबे-चौड़े } \end{array} $
4. उदाहरण के अनुसार विलोम शब्द बनाइए-
उदाहरण : अनुकूल - प्रतिकूल
नियमित - …………. विख्यात -
आरोही - ………….. निश्चित - ……………
सुंदर
5. निम्नलिखित शब्दों में उपयुक्त उपसर्ग लगाइए-
जैसे: पुत्र - सुपुत्र
वास व्यवस्थित कूल गति रोहण रक्षित
6. निम्नलिखित क्रिया विशेषणों का उचित प्रयोग करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
अगले दिन, कम समय में, कुछ देर बाद, सुबह तक
(क) मैं ……………………. यह कार्य कर लूँगा।
(ख) बादल घिरने के ……………………. ही वर्षा हो गई।
(ग) उसने बहुत ……………………. इतनी तरक्की कर ली।
(घ) नाङक्केसा को ……………………. गाँव जाना था।
योग्यता-विस्तार
1. इस पाठ में आए दस अंग्रेज़ी शब्दों का चयन कर उनके अर्थ लिखिए।
2. पर्वतारोहण से संबंधित दस चीज़ों के नाम लिखिए।
3. तेनजिंग शेरपा की पहली चढ़ाई के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
4. इस पर्वत का नाम ‘एवरेस्ट’ क्यों पड़ा? जानकारी प्राप्त कीजिए।
परियोजना कार्य
1. आगे बढ़ती भारतीय महिलाओं की पुस्तक पढ़कर उनसे संबंधित चित्रों का संग्रह कीजिए एवं संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करके लिखिए-
(क) पी.टी. उषा
(ख) आरती साहा
(ग) किरण बेदी
2. रामधारी सिंह दिनकर का लेख- ‘हिम्मत और ज़िंदगी’ पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
3. ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’- इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
शब्दार्थ और टिप्पण0याँ टिप्पणियाँ
शब्द | अर्थ |
---|---|
अभियान | चढ़ाई (आगे बढ़ना), किसी काम के लिए प्रतिबद्धता |
दुर्गम | जहाँ पहुँचना कठिन हो, कठिन मार्ग |
हिमपात | बर्फ़ का गिरना |
आकर्षित | मुग्ध होना, आकृष्ट होना |
अवसाद | उदासी |
ग्लेशियर | बर्फ़ की नदी |
अनियमित | नियम विरुद्ध, जिसका कोई नियम न हो |
आशाजनक | आशा उत्पन्न करनेवाला |
भौंचक्की | हैरान |
अव्यवस्थित | व्यवस्थाहीन, जिसमें कोई व्यवस्था न हो |
प्रवास | यात्रा में रहना |
हिम-विदर | दरार, तरेड |
आरोही | ऊपर चढ़नेवाला |
विख्यात | मशहूर, प्रसिद्ध |
अभियांत्रिकी | तकनीकी |
नौसिखिया | नया सीखनेवाला |
विशालकाय पुंज | बड़े आकार के बर्फ़ के टुकड़े (ढेर) |
पर्वतारोही | पर्वत पर चढ़नेवाला |
आरोहण | चढ़ना, ऊपर की ओर जाना |
कर्मठता | काम में कुशलता, कर्म के प्रति निष्ठा |
उपस्कर | आरोही को आवश्यक सामग्री |
शंकु | नोक |
उपलब्धि | प्राप्ति |
जोखिम | खतरा |