अध्याय 26 बढ़े चलो

वीर, तुम बढ़े चलो ।
धीर तुम बढ़े चलो ।।

हाथ में ध्वजा रहे,
बाल-दल सजा रहे,
ध्वज कभी झुके नहीं,
दल कभी रुके नहीं।

वीर, तुम बढ़े चलो ।
धीर तुम बढ़े चलो ।।

सामने पहाड़ हो,
सिंह की दहाड़ हो,
तुम निडर, हटो नहीं,
तुम निडर, डटो वहीं ।

वीर, तुम बढ़े चलो ।
धीर तुम बढ़े चलो ।।

मेघ गरजते रहें
मेघ बरसते रहें
बिजलियाँ कड़क उठें
बिजलियाँ तड़क उठें

वीर, तुम बढ़े चलो ।
धीर तुम बढ़े चलो ।।

प्रात हो कि रात हो
संग हो न साथ हो
सूर्य से बढे. चलो
चंद्र से बढ़े चलो ।

वीर, तुम बढ़े चलो ।
धीर तुम बढ़े चलो ।।

द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी

अभ्यास

शब्दार्थ

वीर - वीर पुरुष, साहसी धीर - धैर्यवान
ध्वजा - झंडा निडर - जो किसी से नहीं डरता
डटो - पीछे मत हटो कड़क-कड़क - बिजलियों के कड़कने की आवाज़
प्रात - सुबह

भावार्थ
यह एक ‘प्रयाण’ गीत है। कवि कहता है कि हे वीर, धीर! तुम आगे बढ़ो। हाथ में राष्ट्रीय ध्वज लेकर बिना रुके बढ़ते रहो। चाहे सामने पहाड़ हो या सिंह गरज रहा हो, बिलकुल डरो नहीं, डटकर सामना करो और आगे बढ़ो। चाहे बादल गरज रहे हों, बिजलियाँ कड़क रही हों, सुबह हो या रात, कोई साथ में हो या न हो, सूर्य और चंद्रमा के समान आगे बढ़ते रहो। इसमें कवि ने पक्के इरादे के साथ आगे बढ़ने की बात की है। लगातार चलने से मुश्किलें भी आसान हो जाती हैं।

1. कविता की पंक्तियाँ पूरी करो

(क) वीर तुम बढ़े चलो $………………..$
(ख) ध्वज कभी झुके नहीं $………………..$
(ग) तुम निडर, हटो नहीं $………………..$
(घ) सूर्य से बढ़े चलो $………………..$

2. समान अर्थवाले शब्दों को रेखा खींचकर मिलाओ

ध्वजा सूरज
निडर बादल
मेघ चाँद
सूर्य झंडा
चंद्र निर्भय

3. पाठ के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो

  1. वीरों के हाथ में क्या रहना चाहिए?

  2. वीरों को निडर होकर क्या करना चाहिए?

  3. मेघ और बिजलियाँ क्या-क्या करती हैं?

  4. वीरों को किस-किस की तरह बढ़ना चाहिए?



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