अध्याय 12 सुनीता की पहिया कुर्सी

सुनीता सुबह सात बजे सोकर उठी। कुछ देर तो वह अपने बिस्तर पर ही बैठी रही। वह सोच रही थी कि आज उसे क्या-क्या काम करने हैं। उसे याद आया कि आज तो बाज़ार जाना है। सोचते ही उसकी आँखों में चमक आ गई। सुनीता आज पहली बार अकेले बाज़ार जाने वाली थी।

उसने अपनी टाँगों को हाथ से पकड़ कर खींचा और उन्हें पलंग से नीचे की ओर लटकाया। फिर पलंग का सहारा लेती हुई अपनी पहिया कुर्सी तक बढ़ी। सुनीता चलने-फिरने के लिए पहिया कुर्सी की मदद लेती है। आज वह सभी काम फुर्ती से निपटाना चाहती थी। हालाँकि कपड़े बदलना, जूते पहनना आदि उसके लिए कठिन काम हैं। पर अपने रोज़ाना के काम करने के लिए उसने स्वयं ही कई तरीके दूँढ़ निकाले हैं।

आठ बजे तक सुनीता नहा-धोकर तैयार हो गई।

माँ ने मेज़ पर नाश्ता लगा दिया था।

“माँ, अचार की बोतल पकड़ाना”, सुनीता ने कहा।

“अलमारी में रखी है। ले लो”, माँ ने रसोईघर से जवाब दिया।

सुनीता खुद जाकर अचार ले आई। नाश्ता करते-करते उसने पूछा, “माँँ. बाजार से क्या-क्या लाना है?”

“एक किलो चीनी लानी है। पर क्या तुम अकेले सँभाल लोगी?”

“पक्का”, सुनीता ने मुस्कुरते हुए कहा।

सुनीता ने माँ से झोला और रुपए लिए। अपनी पहिया कुर्री पर बैठकर वह बाज़ार की ओर चल दी।

सुनीता को सड़क की ज़िदरीी देखने में मज़ा आता है। चूँकि आज छुटी है इसलिए हर जगह बच्चे खेलते हुए दिखाई दे रहे हैं। सुनीता थोड़ी देर रुक कर उन्हें रस्सी कूदते, गेंद खेलते देखती रही। वह थोड़ी उदास हो गई। वह भी उन बच्चों के साथ खेलना चाहती थी। खेल के मैदान में उसे एक लड़की दिखी, जिसकी माँ उसे वापिस लेने के लिए आई थी। दोनों एक-दूसरे को टुकुर-टुकुर देखने लगे।

फिर सुनीता को एक लड़का दिखा। उस बच्चे को बहुत सारे बच्चे “छोटू-छोटू” बुलाकर चिढ़ा रहे थे। उस लड़के का कद बाकी बच्चों से बहुत छोटा था। सुनीता को यह सब बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।

रास्ते में कई लोग सुनीता को देखकर मुस्कुराए, जबकि वह उन्हें जानती तक नहीं थी। पहले तो वह मन ही मन खुश हुई परंतु फिर सोचने लगी, “ये सब लोग मेरी तरफ़ भला इस तरह क्यों देख रहे हैं?” खेल के मैदान वाली छोटी लड़की सुनीता को दोबारा कपड़ों की दुकान के सामने खड़ी मिली। उसकी माँ कुछ कपड़े देख रही थी।

“तुम्हारे पास यह अजीब सी चीज़ क्या है?” उस लड़की ने सुनीता से पूछा।

“यह तो बस एक…,” सुनीता जवाब देने लगी परंतु उस लड़की की माँ ने गुस्से में आकर लड़की को सुनीता से दूर हटा दिया।

“इस तरह का सवाल नहीं पूछना चाहिए फ़रीदा! अच्छा नहीं लगता!” माँ ने कहा।

“मैं दूसरे बच्चों से अलग नहीं हूँ” सुनीता ने दुखी होकर कहा। उसे फ़रीदा की माँ का व्यवहार समझ में नहीं आया।

अंत में सुनीता बाज़ार पहुँच गई। दुकान में घुसने के लिए उसे सीढ़ियों पर चढ़ना था। उसके लिए यह कर पाना बहुत मुश्किल था। आसपास के सब लोग जल्दी में थे। किसी ने उसकी तरफ़ ध्यान नहीं दिया।

अचानक जिस लड़के को “छोटू” कहकर चिढ़ाया जा रहा था वह उसके सामने आकर खड़ा हो गया।

“मैं अमित हूँ,” उसने अपना परिचय दिया, “क्या मैं तुम्हारी कुछ मदद करूँ?” “मेरा नाम सुनीता है,” सुनीता ने राहत की साँस ली और मुस्कुराकर बोली, “पीछे के पैडिल को पैर से ज़रा दबाओगे?”

“हाँ, हाँ, ज़रूर” कहते हुए अमित ने पहिया-कुर्सी को टेढ़ा करके उसके अगले पहियों को पहली सीढ़ी पर रखा। फिर उसने पिछले पहियों को भी ऊपर चढ़ाया। सुनीता ने अमित को धन्यवाद दिया और कहा, “अब मैं दुकान तक खुद पहुँच सकती हूँ।”

दुकान में पहुँचकर सुनीता ने एक किलो चीनी माँगी। दुकानदार उसे देखकर मुस्कुराया। चीनी की थैली पकड़ने के लिए उसने हाथ आगे बढ़ाया ही था कि दुकानदार ने थैली उसकी गोदी में रख दी। सुनीता ने गुस्से से कहा, “मैं भी दूसरों की तरह खुद अपने आप सामान ले सकती हूँ।”

उसे दुकानदार का व्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। चीनी लेकर सुनीता और अमित बाहर निकले।

“लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि मैं कोई अजीबोगरीब लड़की हूँ।” सुनीता ने कहा।

“शायद तुम्हारी पहिया कुर्सी के कारण ही वे ऐसा व्यवहार करते हैं।” अमित ने कहा।

“पर इस कुर्सी में भला ऐसी क्या खास बात है, मैं तो बचपन से ही इस पर बैठकर इसे चलाती हूँ”, सुनीता ने कहा।

अमित ने पूछा, “पर तुम इस पर क्यों बैठती हो?”

“मैं पैरों से चल ही नहीं सकती। इस पहिया कुर्सी के पहियों को घुमाकर ही मैं चल-फिर पाती हूँ लेकिन फिर भी मैं दूसरे बच्चों से अलग नहीं हूँ। मैं वे सारे काम कर सकती हूँ जो दूसरे बच्चे कर सकते हैं” सुनीता ने कहा। अमित ने अपना सिर ना में हिलाया और कहा, “मैं भी वे सारे काम कर सकता हूँ जो दूसरे बच्चे कर सकते हैं। पर मैं भी दूसरे बच्चों से अलग हूँ। इसी तरह तुम भी अलग हो।”

सुनीता ने कहा, “नहीं! हम दोनों दूसरे बच्चों जैसे ही हैं।”

अमित ने दोबारा अपना सिर ना में हिलाया और कहा, “देखो तुम पहिया कुर्सी पर बैठकर चलती हो। मेरा कद बहुत छोटा है। हम दोनों ही बाकी लोगों से कुछ अलग हैं।”

सुनीता कुछ सोचने लगी। उसने अपनी पहिया कुर्सी आगे की ओर खिसकाई। अमित भी उसके साथ-साथ चलने लगा।

सड़क पार करते समय सुनीता को फ़रीदा फिर नज़र आई। इस बार फ़रीदा ने कोई सवाल नहीं पूछा। अमित झट से सुनीता की पहिया कुर्सी के पीछे चढ़ गया। फिर दोनों पहिया-कुर्सी पर सवार होकर तेज़ी से सड़क पर आगे बढ़े। फ़रीदा भी उनके साथ-साथ दौड़ी। इस बार भी लोगों ने उन्हें घूरा परंतु अब सुनीता को उनकी परवाह नहीं थी।

कहानी से

  • सुनीता को सब लोग गौर से क्यों देख रहे थे?

  • सुनीता को दुकानदार का व्यवहार क्यों बुरा लगा?

मज़ेदार

सुनीता को सड़क की ज़िदगी देखने में मज़ा आता है।

(क) तुम्हारे विचार से सुनीता को सड़क देखना अच्छा क्यों लगता होगा?

(ख) अपने घर के आसपास की सड़क को ध्यान से देखो और बताओ-

  • तुम्हें क्या-क्या चीज़ें नज़र आती हैं?

  • लोग क्या-क्या करते हुए नज़र आते हैं?

मनाही

फ़रीदा की माँ ने कहा, “इस तरह के सवाल नहीं पूछने चाहिए।”

फ़रीदा पहिया कुर्सी के बारे में जानना चाहती थी पर उसकी माँ ने उसे रोक दिया।

  • माँ ने फ़रीदा को क्यों रोक दिया होगा?

  • क्या फ़रीदा को पहिया कुर्सी के बारे में नहीं पूछना चाहिए था? तुम्हें क्या लगता है?

  • क्या तुम्हें भी कोई काम करने या कोई बात कहने से मना किया जाता है? कौन मना करता है? कब मना करता है?

मैं भी कुछ कर सकती हूँ …

(क) यदि सुनीता तुम्हारी पाठशाला में आए तो उसे किन-किन कामों में परेशानी आएगी?

(ख) उसे यह परेशानी न हो इसके लिए अपनी पाठशाला में क्या तुम कुछ बदलाव सुझा सकती हो?

प्यारी सुनीता

सुनीता के बारे में पढ़कर तुम्हारे मन में कई सवाल और बातें आ रही होंगी। वे बातें सुनीता को चिट्ठी लिखकर बताओ।

कहानी से आगे

सुनीता ने कहा, “मैं पैरों से चल ही नहीं सकती।”

(क) सुनीता अपने पैरों से चल-फिर नहीं सकती। तुमने पिछले साल पर्यावरण अध्ययन की किताब आस-पास में रवि भैया के बारे में पढ़ा होगा। रवि भैया देख नहीं सकते फिर भी वे किताबें पढ़ लेते हैं।

  • वे किस तरह की किताबें पढ़ सकते हैं?

  • उस तरह की किताबों के बारे में सबसे पहले किसने सोचा?

(क) आस-पास में कुछ ऐसे लोगों के बारे में भी बात की गई है जो सुन-बोल नहों सकते हैं।

  • क्या तुम ऐसे किसी बच्चे को जानते हो जो सुन-बोल नहीं सकता?

  • तुम उसे किस तरह से अपनी बात समझाते हो?

मेरा आविष्कार

सुनीता जैसे कई बच्चे हैं। इनमें से कुछ देख नहीं सकते तो कुछ बोल या सुन नहीं सकते। कुछ बच्चों के हाथों में परेशानी है, तो कुछ चल नहीं सकते।

तुम ऐसे ही किसी एक बच्चे के बारे में सोचो। यदि तुम्हें कोई शारीरिक परेशानी है, तो अपनी चुौौतियों के बारे में भी सोचो। उस चुनौती का सामना करने के लिए तुम क्या आविष्कार करना चाहोगे? उसके बारे में सोचकर बताओ कि

  • तुम वह कैसे बनाओगे?

  • उसे बनाने के लिए किन चीज़ों की ज़रूरत होगी?

  • वह चीज़ क्या-क्या काम कर सकेगी?

  • उस चीज़ का चित्र भी बनाओ।



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