अध्याय 03 किरमिच की गेंद
गर्मी की छुट्टियाँ थीं। दोपहर के समय दिनेश घर में बैठा कोई कहानी पढ़ रहा था। तभी पेड़ के पत्तों को हिलाती हुई कोई वस्तु धम से घर के पीछे वाले बगीचे में गिरी। दिनेश आवाज़ से पहचान गया कि वह वस्तु क्या हो सकती है। वह एकदम से उठकर बरामदे की चिक सरका कर बगीचे की ओर भागा।
“अरे अरे, बेटा कहाँ जा रहा है? बाहर लू चल रही है।” दिनेश की माँ मशीन चलाते-चलाते एकदम ज़ोर से बोलीं। परंतु दिनेश रुका नहीं। उसने पैरों में चप्पल भी नहीं पहनी। जून का महीना था। धरती तवे की तरह तप रही थी। पर दिनेश को पैरों के जलने की भी चिंता नहीं थी। वह जहाँ से आवाज़ आई थी, उसी ओर भाग चला।
सामने की क्यारी में भिंडियों के ऊँचे-ऊँचे पौधे थे। एक ओर सीताफल की घनी बेल फैली-हुई थी। क्यारियों के चारों ओर हरे-हरे केले के वृक्ष लहरा रहे थे। दिनेश ने जल्दी-जल्दी भिडियों के पौधों को उलटना-पलटना आरंभ किया। जब वहाँ कुछ नहीं मिला तो उसने सारी सीताफल की बेल छान मारी।
बराबर में ही घूँस ने गड्ढे बना रखे थे। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते जब उसकी निगाह उधर गई तो उसने देखा कि गड्ढे के ऊपर ही एक बिल्कुल नई चमचमाती किरमिच की गेंद पड़ी है।
दिनेश ने हाथ बढ़ाकर गेंद उठा ली। लगता था जैसे किसी ने उसे आज ही बाज़ार से खरीदा है। उसने उसे उलट-पलटकर देखा परंतु कुछ भी समझ में नहीं आया। नज़र उठाकर उसने पास की तिमंजिली इमारत की ओर देखा कि हो सकता है किसी बच्चे ने इसे ऊपर से फेंका हो परंतु उस इमारत के इस ओर खुलने वाले सभी दरवाजे़ और खिड़कियाँ बंद थे। छत की मुँडेर से लेकर नीचे तक तेज़ धूप चिलचिला रही थी।
फिर कौन खरीद सकता है नई गेंद? दिनेश ने सुधीर, अनिल, अरविंद, आनंद, दीपक-सभी के नाम मन में दोहराए। यदि गेंद खरीदी भी है तो इस दोपहरी में इसे नीचे कौन फेंकेगा !
हो न हो, यह गेंद बाहर से ही आई है। उसने सड़क पर बने गोल चक्कर के बगीचे की ओर देखा परंतु वहाँ पर केवल दो-चार गायें ही दिखाई पड़ीं जो पेड़ों के नीचे सुस्ता रही थीं। उसे ध्यान आया कि जाने कितनी बार अपने मोहल्ले के बच्चों की गेंदें किक्रेट खेलते हुए दूर चली गईं और फिर कभी नहीं मिलीं। एक बार तो एक गेंद एक चलते हुए ट्रक में भी जा पड़ी थी। तभी भीतर से माँ की आवाज़ आई, “अरे दिनेश, तू सुनेगा नहीं? सब अपने-अपने घरों में सो रहे हैं और तू धूप में घूम रहा है।”
दिनेश गेंद को हाथ में लिए हुए भीतर आ गया। ठंडे फर्श पर बिछी चटाई पर वह लेट गया और सोचने लगा-भले ही यह गेंद मोहल्ले में से किसी की न हो, परंतु ईमानदारी इसी में है कि एक बार सबसे पूछ लिया जाए।
गर्मी की छुट्टियाँ थीं। बच्चों ने खेलने की सुविधा को ध्यान में रखते हुए एक क्लब बनाया हुआ था। उस क्लब में सभी बच्चों के लिए बल्ले थे और गेंद खरीदने के लिए वे आपस में क्लब का चंदा देकर पैसे इकट्ठा कर लेते थे।
शाम को सारे बच्चे इकट्ठा हुए। दिनेश ने सभी से पूछा, “मुझे एक गेंद मिली है। अगर तुममें से किसी की गेंद खो गई हो, तो वह गेंद की पहचान बताकर गेंद मुझसे ले सकता है।”
तभी अनिल बोला, “गेंद तो मेरी खो गई है।”
“कब खोई थी तेरी गेंद?”
“यही कोई चार महीने पहले।”
“तो वह गेंद तेरी नहीं है”, दिनेश ने कहा।
“फिर वह मेरी होगी”, सुधीर ने तुरंत उस पर अपना अधिकार जताते हुए कहा।
“वह कैसे”, दिनेश ने पूछा।
“तू मुझे गेंद दिखा दे, मैं अपनी निशानी बता दूँगा।”
“वाह! यह कैसे हो सकता है ?” दिनेश बोला, “गेंद देखकर निशानी बताना कौन-सा कठिन है! बिना देखे बता, तब जानूँ।”
तभी ऊपर से दीपक उतर आया। दीपक अपना मतलब सिद्ध करने तथा अवसर पड़ने पर सभी को मित्र बना लेने में चतुर था। गेंद की बात सुनकर दीपक बोला, “गेंद मेरी है।”
“कैसे तेरी है?” सभी ने एक साथ पूछा, “कल ही तो तू कह रहा था कि इस बार तेरे पापा तुझे गेंद लाने के लिए पैसे नहीं दे रहे हैं।”
“मेरी गेंद तो पाँच महीने पहले खोई थी”, दीपक ने कहा, “जब बड़े भैया की शादी हुई थी न, तभी सुनील ने मेरी गेंद छत पर से नीचे फेंक दी थी।” दिनेश अच्छी तरह जानता था कि यह गेंद दीपक की नहीं है। दीपक की गेंद पाँच महीने पहले खोई थी। और यह कभी हो ही नहीं सकता कि गेंद पाँच-छह महीने पड़ी रहे और उस पर मिट्टी का एक भी दाग न लगे।
दीपक ने कहा, “मैं कुछ नहीं जानता। गेंद मेरी है। वह मेरी है और सिर्फ़ मेरी है।”
“अरे, जा जा, बड़ा आया गेंदवाला! क्या सबूत है कि यही गेंद नीचे फेंकी थी”, अनिल ने पूछा।
दीपक ने कहा, “हाँ, सबूत है। मुझे गेंद दिखा दो, मैं फ़ौरन बता दूँगा।” दिनेश ने देखा कि झगड़ा बढ़ रहा है। गेंद हथियाने के लिए दीपक सुधीर और सुनील का सहारा ले रहा है।
वह जानता था कि यदि गेंद दीपक के पास चली गई तो ये तीनों मिलकर खेलेंगे।
“अच्छा मैं गेंद ला रहा हूँ।
परंतु जब तक पक्का सबूत नहीं मिलेगा, मैं किसी को दूँगा नहीं”, दिनेश ने कहा।
गेंद आ गई। दीपक उसे देखते ही बोला, “यह मेरी है, यही है मेरी गेंद। यह लाल रंग का निशान मेरी ही गेंद पर था।”
“वाह! सभी गेंदों पर ऐसे ही निशान होते हैं”, अनिल ने दिनेश का साथ देते हुए कहा।
दीपक ने फिर ज़ोर लगाया, “मैं अपने पापा से कहलवा सकता हूँ कि गेंद मेरी है।”
“अरे जा, ऐसे तो मैं अपने बड़े भाई से कहलवा सकता हूँ कि गेंद दिनेश की है!” अनिल ने कहा।
“कुछ भी हो गेंद मेरी है”, दीपक ने उसे धरती पर मारते हुए कहा “धरती पर टप्पा पड़ते हुए मेरी गेंद में से ऐसी ही आवाज़ आती थी।”
“मेरे साथ बाज़ार चल। दुकानों पर जितनी गेंदें हैं, सभी के टप्पे की आवाज़ ऐसी ही होगी”, अनिल ने फिर उसकी बात काट दी।
“अच्छी बात है, तो मैं इसे सड़क पर फेंक दूँगा। देखूँ कैसे कोई खेलेगा!” दीपक ने जैसे ही गेंद को सड़क पर फेंकने के लिए हाथ उठाया कि अनिल और दिनेश ने उसे पकड़ लिया। अब दीपक ने रुआँसे होते हुए अपना अंतिम हथियार आज़माया। बोला, “या तो गेंद मुझे दे दो, नहीं तो मैं इसके पैसे सुनील से लूँगा।”
अब तो सुनील, दीपक और सुधीर का गुट मज़बूत होने लगा था। तीनों का ही कहना था कि गेंद दीपक की है और उसे ही मिलनी चाहिए।
दिनेश तब तक चुप था। वास्तव में दिनेश का मन उस समय सबके साथ मिलकर उस गेंद से खेलने को कर रहा था। बोला, “अब चुप भी रहो झगड़ा बाद में कर लेंगे। अपने-अपने बल्ले ले आओ, पहले खेल लें।”
पाँच मिनट के भीतर ही खेल आरंभ हो गया। दिनेश बल्लेबाजी कर रहा था। अभी दो-चार बार ही खेला था कि वह चमकदार नई गेंद एकदम ज़ोर से उछली और दरवाज़ा पार कर सड़क पर जाते हुए एक स्कूटर में बनी सामान रखने की जालीदार टोकरी में जा गिरी। स्कूटर वाले को शायद पता भी नहीं चला। तेज़ी से चलते हुए स्कूटर के साथ गेंद भी चली गई।
बच्चे पहले तो चिल्लाते हुए स्कूटर के पीछे भागे, परंतु जल्दी ही सब रुक गए। वे समझ गए थे कि स्कूटर के पीछे भागना बेकार है। एक पल के लिए सभी ने एक-दूसरे की ओर देखा और फिर सभी ठहाका मार कर हँस पडे।
शांताकुमारी जैन
कहानी की बात
(क) दिनेश की माँ मशीन चलाते-चलाते बोलीं, “बेटा, कहाँ जा रहे हो?”
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दिनेश की माँ कौन-सी मशीन चला रही होंगी?
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तुमने इस मशीन को कहाँ-कहाँ देखा है?
(ख) दिनेश ने सारी सीताफल की बेल छान मारी।
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दिनेश क्या खोज रहा था?
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दिनेश को कैसे पता चला होगा कि क्यारी में वही चीज़ गिरी है?
(ग) दिनेश अच्छी तरह जानता था कि गेंद दीपक की नहीं है।
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दिनेश को यह बात कैसे पता चली कि गेंद दीपक की हो ही नहीं सकती?
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दीपक बार-बार गेंद को अपनी क्यों बता रहा होगा?
गेंद किसकी
(क) दीपक ने गेंद को अपना बताने के लिए उसके बारे में कौन-कौन सी बातें बताईं?
(ख) अगर दीपक और दिनेश गेंद के बारे में फ़ैसला करवाने तुम्हारे पास आते, तो तुम गेंद किसे देतीं? यह भी बताओ कि तुम यह फ़ैसला किन बातों को ध्यान में रखकर करतीं?
गेंद की कहानी
गेंद स्कूटर के साथ कहीं चली गई।
उसके बाद गेंद के साथ क्या-क्या हुआ होगा? सोचकर बताओ।
पहचान
मान लो तुम्हारा कोई खिलौना घर में ही कहीं खो गया है। तुमने अपने साथियों को घर पर बुलाया है ताकि सब मिलकर उसे खोज लें। तुम अपने खिलौने की पहचान के लिए अपने साथियों को कौन-कौन सी बातें बताओगी? लिखो।
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कहाँ
सामने की क्यारी में भिंडियों के ऊँचे-ऊँचे $\underline{पौधे}$ थे।
एक ओर सीताफल की घनी $\underline{बेल}$ फैली हुई थी।
सीताफल की बेल होती है और भिंडी का पौधा। बताओ और कौन-कौन सी सब्जियाँ बेल और पौधे पर लगती हैं?
बेल | पौधा |
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तरह-तरह की गेंदें
गेंदों के अनेक रंग-रूप होते हैं। अलग-अलग खेलों में अलग-अलग प्रकार की गेंदों का इस्तेमाल किया जाता है। नीचे दी गई जगह में खेलों के अनुसार गेंदों की सूची बनाओ।
………..क्रिकेट……. $\quad$ …… किरमिच……..
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…………………….. $\qquad$ ……………………..
…………………….. $\qquad$ ……………………..
…………………….. $\qquad$ ……………………..
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खोजो आस-पास
दिनेश चिक सरकाकर बरामदे की ओर भागा।
(क) चिक पर्दे का काम करती है पर चिक और पर्दे में फ़र्क होता है। इन दोनों में क्या अंतर है? समूह में चर्चा करो। इसी तरह पता लगाओ कि इन शब्दों में क्या अंतर है?
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टहनी-तना
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पेड़-पौधा
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घूँस-चूहा
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मुँडेर-चारदीवारी
(ख) चिक सरकंडे से भी बनती है और तीलियों से भी। सरकंडे से और क्या-क्या बनता है? अपने आसपास पता करो और लिखो।
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…………………….. $\qquad$ ……………………..
क्लब बनाएँ
मान लो तुम्हें अपने स्कूल में एक क्लब बनाना है जो स्कूल में खेल-कूद के कार्यक्रमों की तैयारी करेगा।
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इस क्लब में शामिल होने और इसको चलाने आदि के बारे में नियम सोचकर लिखो।
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तुम्हारे विचार से इस क्लब को अच्छी तरह चलाने के लिए नियमों की ज़रूरत है या नहीं? अपने जवाब का कारण भी बताओ।
एक, दो, तीन
दिनेश ने $\underline{\text{तिमंज़िली इमारत}}$ की ओर देखा।
जिस इमारत में तीन मंज़िलें हों, उसे तिमंज़िली इमारत कहते हैं।
बताओ, इन्हें क्या कहेंगे?
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जिस मकान में दो मंज़िलें हों $\quad$…………………………….
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जिस स्कूटर में दो पहिए हों $\quad$…………………………….
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जिस झंडे में तीन रंग हों $\quad$…………………………….
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जिस जगह पर चार राहें मिलती हों $\quad$ …………………………….
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जिस स्कूटर में तीन पहिए हों $\quad$ …………………………….
सब्ज़ी एक नाम अनेक
एक ही सब्ज़ी या फल के नाम अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग होते हैं। नीचे ऐसे कुछ नाम दिए गए हैं।
सीताफल | कांदा | बटाटा | अमरूद | तोरी | शरीफ़ा |
काशीफल | बैंगन | नेनुआ | तरबूज | कुम्हड़ा | घीया |
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बताओ कि तुम्हारे घर, शहर या कस्बे में इनमें से कौन-कौन से शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं?
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बाकी नामों का इस्तेमाल किन-किन स्थानों पर होता है? पता करो।