जैव प्रौद्योगिकी (बायोटेक्नॉलजी) में उन तकनीकों का वर्णन मिलता है जिसमें जीवधारियों या उनसे प्राप्त एंजाइमों का उपयोग करते हुए मनुष्य के लिए उपयोगी उत्पाद या प्रक्रमों (प्रोसेस) का विकास किया जाता है। डबल रोटी, शराब इत्यादि सभी, सूक्ष्म जीवों द्वारा संपन्न प्रक्रमों से बनते हैं। यह भी एक प्रकार से जैव प्रौद्योगिकी का परिणाम है। वर्तमान समय में, सीमित अर्थ में जैव प्रौद्योगिकी को देखा जाए तो इनमें वे प्रक्रम आते हैं; जिनमें आनुवंशिकतः रूपांतरित (जेनेटिकली मोडीफाइड) जीवों का उपयोग उपर्युक्त पदार्थों को अधिक मात्रा में उत्पादन के लिए किया जाता है। आगे चलकर अनेक प्रक्रमों / तकनीकों का समावेश जैव प्रौद्योगिकी में किया गया। उदाहरणार्थ- पात्रे (इन वीट्रो) निषेचन द्वारा परखनली शिशु का निर्माण, जीन का संश्लेषण एवं उपयोग, डीएनए टीका का निर्माण या दोषयुक्त जीन का सुधार, ये सभी जैव प्रौद्योगिकी के ही भाग हैं।

यूरोपीय जैव प्रौद्योगिकी संघ ( इ एफ बी) द्वारा जो जैव प्रौद्योगिकी की परिभाषा दी गयी है, उसमें दोनों परंपरागत विचार व आधुनिक आणविक जैव प्रौद्योगिकी का समावेश है। इ एफ बी द्वारा दी गयी परिभाषा निम्नवत् है- ‘नए उत्पादों तथा सेवाओं के लिए। प्राकृतिक विज्ञान व जीवों कोशिकाओं व इसके अंग तथा आणविक अनुरूपों का समायोजन।

9.1 जैव प्रौद्योगिकी के सिद्धांत

आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के विकास में निम्न दो प्रमुख तकनीकों का योगदान है। ये हैं;

(क) आनुवंशिक इंजीनियरिंग- इस तकनीक द्वारा आनुवंशिक पदार्थो (डीएनए या आरएनए) के रसायन में कर इसे परपोषी जीवों (होस्ट आर्गेनिज्म) में प्रवेश कराकर इसके समलक्षणी (फीनोटाइप) में परिवर्तन करते हैं।

(ख) जैव प्रक्रम रासायनिक इंजीनियरिंग प्रक्रमों में रोगाणुरहित (सूक्ष्म जीव संदूषण रहित) वातावरण बनाकर केवल वांछित सूक्ष्मजीवों / सुकेंद्रकी कोशिकाओं में वृद्धिकर अधिक मात्रा में जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों जैसे- प्रतिजैविकों (एंटीबॉयोटिक), टीके, एंजाइमों आदि का निर्माण किया जाता है।

अब आनुवंशिक इंजीनियरिंग के सिद्धांतों के संकल्पनात्मक विकास के बारे में अध्ययन करेंगे। संभवतः आप अलैंगिक जनन (रिप्रोडेक्शन) की अपेक्षा लैंगिक जनन के फायदों के बारे में जानते हैं। अलैंगिक जनन आनुवंशिकी सूचनाओं को परिरक्षित रखता है जबकि लैंगिक जनन द्वारा विभिन्नता व विशिष्ट आनुवंशिक व्यवस्था के संयोजन के प्रतिपादन का अवसर मिलता है जो जीव या आबादी हेतु लाभकारी हो सकता है। लैंगिक जनन से विभिन्नता उत्पन्न होती है। परंपरागत संकरण की विधियाँ जो पौधों एवं जंतुओं के जनन में उपयोगी है, इनके द्वारा वांछित जीन के साथ-साथ अवांछित जीन का समावेश व गुणन भी हो जाता है। उपर्युक्त कमियों को दूर करने हेतु आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकों में जीन क्लोनिंग एवं जीन स्थानांतरण का उपयोग कर पुनर्योगज डीएनए (रीकॉम्बीनेंट डीएनए) का निर्माण किया जाता है जिससे, बिना अवांछित जीनों के केवल एक या एक से अधिक वांछित जीन को चुने हुए जीवों में स्थानांतरित करते हैं।

क्या आप जानते हैं कि विजातीय (एलियन) जीवों में किसी प्रकार से स्थानांतरित किए हुए डीएनए खंड का क्या भविष्य है? संभवतः यह डीएनए जीव की संतति कोशिकाओं में स्वयं गुणित नहीं हो पाएगा। किंतु, जब यह डीएनए आदाता (ग्राही) के जीनोम में जुड़ जाता है तब यह गुणित होकर परपोषी डीएनए के साथ वंशागत हो जाता है। यह विजातीय डीएनए खंड, गुणसूत्र का अंग हो जाता है जिसमें प्रतिकृति करने की क्षमता होती है। एक गुणसूत्र में एक विशिष्ट डीएनए अनुक्रम होता है जिसे प्रतिकृतीयन (रेप्लिकेशन ) का उत्पत्ति कहते हैं और जो प्रतिकृतियन के लिए उत्तरदायी हैं। किसी भी जीव में किसी विजातीय डीएनए खंड के गुणन हेतु इसे गुणसूत्र का अंग होना आवश्यक है जिसमें एक विशिष्ट अनुक्रम मिलता है जिसे ‘प्रतिकृति का मूल (औरिजिन ऑफ रेप्लीकेशन)’ कहते हैं। इस प्रकार एक विजातीय डीएनए प्रतिकृति के मूल से जुड़ा रहता है, ताकि डीएनए का विजातीय खंड परपोषी जीव में स्वयं प्रतिकृति व गुणित हो सके। इसे क्लोनिंग भी कह सकते हैं या किसी टेम्पलेट डीएनए की समान गुणित संरचना का निर्माण कह सकते हैं।

अब एक कृत्रिम पुनर्योगज डीएनए अणु के निर्माण के बारे में अध्ययन करेंगे। प्रथम पुनर्योगज डीएनए का निर्माण सालमोनेला टाइफीमूरियम के सहज प्लाज्मिड (यह गोलाकार गुणसूत्र बाह्य डीएनए है जो स्वतः प्रतिकृति करता है।) में प्रतिजैविक प्रतिरोधी कूटलेखन जीन के जुड़ने से हो सका था। स्टेनले कोहेन व हरबर्ट बोयर ने 1972 में उपर्युक्त कार्य प्लाज्मिड से डीएनए का टुकड़ा काटकर संपन्न किया जिनमें प्रतिजैविक प्रतिरोध प्रदान करने के लिए जिम्मेदार जीन था। आणविक कैंची कहे जाने वाले ‘प्रतिबंधन एंजाइम्स’ (रिस्ट्रिक्सन एंजाइम) की खोज से डीएनए को विशिष्ट जगहों पर काटना संभव हो सका। कटे हुए डीएनए का भाग प्लाज्मिड डीएनए से जोड़ा जाता है। यह प्लाज्मिड डीएनए संवाहक (वेक्टर) की तरह कार्य करता है जो इससे जुड़े डीएनए को स्थानांतरित करता है। संभवतः आप जानते हो कि मच्छर, कीट संवाहक के रूप में मलेरिया परजीवी को मनुष्य शरीर में स्थानांतरित करता है। ठीक उसी तरह से प्लाज्मिड को संवाहक के रूप में प्रयोगकर विजातीय डीएनए के खंड को परपोषी जीवों में पहुँचाया जाता है। प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन को संवाहक के साथ जोड़ने का काम एंजाइम डीएनए लाइगेज के द्वारा होता है जो डीएनए अणु के कटे हुए भाग पर कार्य कर उसके किनारों को जोड़ने का काम करता है। इस संयोजन से पात्रे (इन विट्रो) नये गोलाकार स्वतः प्रतिकृति बनाने वाले डीएनए का निर्माण होता है जिसे पुर्नयोगज डीएनए कहते हैं। जब यह डीएनए एशरिकिआ कोलाई (ई.कोलाई) (एक जीवाणु जो सालमोनेल से काफी मिलता-जुलता है) में स्थानांतरित किया जाता है तो यह नए परपोषी के डीएनए पॉलिमरेज एंजाइम का उपयोग कर अनेक प्रतिकृतियाँ बना लेता है। प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन की प्रति का ई.कोलाई का गुणन, ई.कोलाई में प्रति जैविक प्रतिरोधी जीन की क्लोनिंग कहलाता है।

आप अनुमान लगा सकते हैं कि जीव के आनुवंशिक रूपांतर में मूलभूत तीन चरण हैं-

(क) वांछित जीन युक्त डीएनए की पहचान

(ख) चिह्नित डीएनए का परपोषी में स्थानांतरण

(ग) स्थानांतरित डीएनए को परपोषी में सुरक्षित रखना तथा उसकी संतति में स्थानांतरित करना।

9.2 पुनर्योगज डीएनए तकनीक के साधन

अब हम पूर्ववर्णित चर्चा से जान चुके हैं कि आनुवंशिक इंजीनियरिंग या पुनर्योगज डीएनए तकनीक तभी संपादित हो सकती जब हमारे पास तकनीकी साधन जैसे प्रतिबंधन एंजाइम, पॉलिमरेज एंजाइम, लाइगेज, संवाहक व परपोषी जीव हों। अब इनमें से कुछ के बारे में विस्तृत अध्ययन करेंगे।

9.2.1 प्रतिबंधन एंजाइम

वर्ष 1963 में दो एंजाइम पृथक किए गए जो ई.कोलाई में जीवाणु भोजी (बैक्टीरियोफाज) की वृद्धि को रोक देते है। इनमें एक डीएनए से मिथिल समूह को जोड़ता है, जबकि दूसरा डीएनए को काटता है। बाद वाले एंजाइम को प्रतिबंधन एंडोन्युक्लिएज कहा गया।

प्रथम प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लियेज- हिंड II, जिसका कार्य डीएनए न्यूक्लियोटाइड विशिष्ट क्रम पर निर्भर है। यह पाँच वर्ष बाद पृथक किया और पहचाना गया। ऐसा पाया गया कि हिंड II, डीएनए अणु को उस विशेष बिंदु पर काटते हैं जहाँ पर छह क्षारक युग्मों (बेस पेयर) का एक विशेष अनुक्रम होता है। इस विशिष्ट क्षारक अनुक्रम को हिंड II, को पहचान अनुक्रम कहते हैं। हिंड II, के अलावा आज 900 से अधिक प्रतिबंधन एंजाइमों के बारे में जानकारी है जो जीवाणुओं के 230 से अधिक प्रभेदों (स्ट्रिंस) से पृथक किए गए हैं; जिनमें से प्रत्येक विभिन्न पहचान अनुक्रमों को पहचानते हैं।

इन एंजाइमों के नामकरण में परंपरानुसार नाम का पहला शब्द वंश व दूसरा एवं तीसरा शब्द प्राकेंद्रकी कोशिकाओं की जाति से लिया गया है, जिनसे ये पृथक किए गए थे। जैसे-ईको आर I (EcoRI) एशरिशिया कोलाई आर वाई 13, ईको आर I में वर्ण ‘आर $(\mathrm{R})$ ’ प्रभेद के नाम से लिया गया है। नाम के बाद रोमन अंक उस क्रम को दर्शाते हैं जिसको जीवाणु के प्रभेद से एंजाइम पृथक किए गए थे।

प्रतिबंधन एंजाइम, न्यूक्लिएजेज कहलाने वाले एंजाइमों के बड़े वर्ग में आते हैं। एक्सोन्यूक्लिएज दो प्रकार के होते हैं- एवं एंडोन्यूक्लिएज एक्सोन्यूक्लिएज डीएनए के सिरे से न्यूक्लियोटाइड को अलग करते हैं, जबकि एंडोन्यूक्लिएज डीएनए को भीतर विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं।

प्रत्येक प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज डीएनए अनुक्रम की लंबाई के ‘निरीक्षण’ के बाद कार्य करता है। जब यह अपना विशिष्ट पहचान अनुक्रम पा जाता है तब यह डीएनए से जुड़ता है तथा द्विकुंडलिनी की दोनों लड़ियों को शर्करा-फॉस्फेट आधारस्तंभों में विशिष्ट केंद्रों पर काटता है (चित्र 9.1) प्रत्येक प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज डीएनए में विशिष्ट पैलीन्डोमिक न्यूक्लियोटाइड अनुक्रमों को पहचानता है।

चित्र 9.1 प्रतिबंधन एंजाइम - इको आर वन (EcoR1) की क्रिया द्वारा पुनर्योगज डीएनए के निर्माण के चरण

क्या आप जानते हो कि पैलिंड्रोम क्या हैं? ये वर्णों के समूह हैं जिन्हें आगे व पीछे दोनों तरफ से पढ़ने पर एक ही शब्द बनता है जैसे ‘मलयालम’। शब्द पैलिंड्रोम और डीएनए पैलिंड्रोम में अंतर है। डीएनए में पैलिंड्रोम क्षारक युग्मों का एक ऐसा अनुक्रम होता है जो पढ़ने के अभिविन्यास को समान रखने पर दोनों लड़ियों में एक जैसे पढ़ा जाता है। उदाहरणार्थ- निम्न अनुक्रमों को ’ $5 \rightarrow 3$ ’ दिशा में पढ़ने पर दोनों लड़ियों में एक जैसा पढ़ा जाएगा। अगर इसे $3^{\prime} \rightarrow 5^{\prime}$ दिशा में पढ़ा जाए तब भी यह बात सही बैठती है-

$ \begin{aligned} 5^{\prime}—– \text { GAATTC }—– 3^{\prime} \\ 3^{\prime}—–\text { CTTAAG }—–5^{\prime} \end{aligned} $

प्रतिबंधन एंजाइम डीएनए लड़ी को पैलिंड्रोम स्थल के केंद्र से थोड़ी दूरी पर लेकिन विपरीत लड़ियों में दो समान क्षारकों के बीच काटते हैं। जिसके फलस्वरूप सिरों पर एक लड़ीय भाग रह जाता है। प्रत्येक लड़ी में प्रलंबी फैलाव मिलते हैं जिन्हें चिपचिपा (स्टिकी) सिरा कहते हैं (चित्र 9.1)। इसे यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि यह अपने पूरक कटे प्रतिरूप के साथ हाइड्रोजन आबंध (बॉन्ड) बनाते हैं। सिरों का यह चिपचिपापन एंजाइम डीएनए लाइगेज के कार्य में सहायता प्रदान करता है।

प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज का उपयोग आनुवंशिक इंजीनियरिंग में डीएनए के पुनर्योगज अणु बनाने में किया जाता है जो विभिन्न स्रोतों या जीनोमों से प्राप्त डीएनए से मिलकर बना होता है।

एक ही प्रतिबंधन एंजाइम द्वारा काटने पर प्राप्त होने वाले डीएनए खंडों में समान प्रकार को ‘चिपचिपे सिरे’ होते हैं, जो डीएनए लाइगेज की सहायता से आपस में (किनारे से किनारा) जुड़ जाते हैं (चित्र 9.2)

चित्र 9.2 पुनर्योगज डीएनए तकनीक का आरेखीय प्रदर्शन

आप पूर्ण रूप से समझ चुके होंगे कि सामान्यतः जब तक संवाहक व स्रोत डीएनए एक ही प्रतिबंधन एंजाइम द्वारा नहीं काटे जाते हैं तब तक पुनर्योगज संवाहक अणु का निर्माण नहीं हो सकता है।

डीएनए खंड का पृथक्करण एवं विलगन- प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज द्वारा डीएनए को काटने के परिणामस्वरूप डीएनए का खंडन हो जाता है। इन खंडों को एक तकनीक द्वारा अलग कर सकते हैं जिसे जेल वैद्युत का संचलन ( इलेक्ट्रोफोरेसिस ) कहते हैं। चूँकि डीएनए खंड ऋणात्मक आवेशित (चार्जड) अणु होते हैं, इसलिए इन्हें विद्युत क्षेत्र में माध्यम / आधात्री द्वारा ऐनोड की तरफ बलपूर्वक भेजकर अलग कर सकते हैं। आजकल बहुत ही सामान्य रूप से उपयोग किया जाने वाला माध्यम, ऐगारोज है जो समुद्रीय घास (सी वीडस) से निकाला गया एक प्राकृतिक बहुलक (पॉलिमर) है। डीएनए खंडों को ऐगारोज जेल के छलनी प्रभाव द्वारा उनके आकार के अनुसार अलग करते हैं। इस कारण खंड जितने छोटे आकार के होंगे, वे अधिक दूर तक जायेंगे। चित्र 9.3 देखिए और अनुमान लगाइए कि जेल के किस सिरे पर प्रतिदर्श (सेंपल) लादा गया था।

चित्र 9.3 एक प्रारूपी एगरोज जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस जो असार संग्रही ( पथ 1) व सार संग्रही डीएनए खंडों के समूह का स्थानांतरण प्रदर्शित करता है (पथ 2 से 4 )

पृथक्कृत डीएनए खंडों को तभी देख सकते हैं जब इस डीएनए को इथीडियम ब्रोमाइड नामक यौगिक से अभिरंजित कर पराबैंगनी विकिरणों से अनावृत्त करते हैं। (आप शुद्ध डीएनए खंडों को दृश्य प्रकाश में बिना अभिरंजित किए नहीं देख सकते।) इथीडियम ब्रोमाइड अभिरंजित (स्टेन्ड) जेल को पराबैंगनी प्रकाश से अनावृत्त करने पर डीएनए की चमकीली नारंगी रंग की पट्टी दिखाई पड़ती है (चित्र 9.3)। डीएनए की पृथक्कृत पट्टियों को ऐगारोज जेल से काट कर निकालते हैं और जेल के टुकड़ों से निष्कर्षित (एक्सट्रेक्ट) कर लेते हैं। इस प्रक्रिया को क्षालन (इलूसन) के कहते हैं। इस तरह से शुद्ध किए गए डीएनए को क्लोनिंग संवाहक से जोड़कर, पुनर्योगज डीएनए निर्माण में उपयोग किया जाता है।

9.2.2 क्लोनिंग संवाहक

आप जानते ही हैं कि प्लाज्मिड व जीवाणुभोजी, जीवाणु कोशिकाओं में, बिना गुणसूत्रीय डीएनए नियंत्रण के स्वतंत्र रूप से प्रतिकृति करने की क्षमता रखते हैं। जीवाणुभोजियों की प्रत्येक कोशिका में काफी अधिक संख्या होने से जीवाणु कोशिका में इनके जीनोम की कई प्रतिकृति मिलती है। कुछ प्लाज्मिड की, प्रतिकोशिका केवल एक या दो जबकि दूसरों की 15 से 100 प्रतिकृति मिलती है। इनकी संख्या इससे भी ज्यादा हो सकती है। यदि हम विजातीय डीएनए खंड को जीवाणुभोजी या प्लाज्मिड डीएनए के साथ जोड़ सकें तो इनकी संख्या को भी जीवाणुभोजी या प्लाज्मिड की प्रतिकृति संख्या के समान गुणित कर सकते हैं। वर्तमान समय में उपयोग किये जा रहे संवाहक इस प्रकार से तैयार किए जाते हैं कि इन्हें बाहरी डीएनए से जोड़ने व अपुनर्योगिजों से पुनर्योगजों के चयन में सहायता मिलती है।

संवाहक में क्लोनिंग करने हेतु निम्न विशेषताओं की आवश्यकता होती है-

(क) प्रतिकृतियन का उत्पत्ति (ori का प्रारंभ) - यह वह अनुक्रम है जहाँ से प्रतिकृतीयन की शुरुआत होती है और जब कोई डीएनए का कोई खंड इस अनुक्रम से जुड़ जाता है तब परपोषी कोशिकाओं के अंदर प्रतिकृति कर सकता है। यह अनुक्रम जोड़े गए डीएनए के प्रतिरूपों की संख्या के नियंत्रण के लिए भी उत्तरदायी है। इसलिए यदि कोई लक्ष्य डीएनए की काफी संख्या प्राप्त करना चाहता है तो इसे ऐसे संवाहक में क्लोन करना चाहिए जिसका मूल (ori) अत्यधिक प्रतिरूप बनाने में सहयोग करता है।

(ख) वरण योग्य चिह्नक — ‘ori’ के साथ संवाहक को वरणयोग्य चिह्नक की आवश्यकता भी होती है, जो अरूपांतरजों (नॉन-ट्रॉन्स्फॉर्मिन्ट्स) की पहचान व उन्हें समाप्त करने में सहायक हो और रूपांतरजों की चयनात्मक वृद्धि को होने दे रूपांतरण (ट्रॉन्स्फार्मेशन) एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा डीएनए के एक खंड को परपोषी जीवाणु में प्रवेश कराते हैं। (आप आगे के खंडों में इस प्रक्रिया का अध्ययन करेंगे)। सामान्यतया एंपिसिलिन, क्लोरैम्फेनिकॉल, टेट्रोसाइक्लीन या केनामाइसीन जैसे प्रतिजैविक (एंटीबॉयोटिक) के प्रति प्रतिरोध कोडित करने (एन्कोडिंग) चि्नक माने जाते हैं। सामान्य ई.कोलाई कोशिकाओं में इनमें से किसी प्रतिजैविक के प्रति, प्रतिरोध नहीं होता।

चित्र 9.4 इ. कोलाई क्लोनिंग संवाहक $\mathrm{pBR} 322$ में प्रतिबंधन स्थल (Hind III, EcoR I, BamH I, Sal I, Pvu II, Pst I, Cla I), ori व प्रतिजैविक वाले जीन ई.कोलाई के लिए उपयोगी वरणयोग्य प्रतिरोधी जीन $\left(\mathbf{a m p}^{\mathrm{R}}\right.$ व $\left.\mathrm{tet}^{\mathrm{R}}\right)$ rop प्लाज्मिड के प्रतिकृति में भाग लेने वाले प्रोटीन का कूट लेखन करता है।

(ग) क्लोनिंग स्थल - विजातीय डीएनए को जोड़ने हेतु सामान्यतः काम में लिए जा रहे प्रतिबंधित एंजाइम के लिए संवाहक में कुछ या एक ही पहचान स्थल होना चाहिए। संवाहक के अंदर एक से अधिक पहचान स्थल होने पर इसके कई खंड बन जाते हैं जो जीन क्लोनिंग को जटिल बना देते हैं। (चित्र 9.4) विजातीय डीएनए का बंधन (लीगेशन) उन दोनों प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीनों में से एक में स्थित प्रतिबंध स्थल पर किया जाता है। उदाहरणार्थ आप विजातीय डीएनए को संवाहक पी बी आर 322 (PBR322) में स्थित टेट्रासाइक्लीन प्रतिरोधी जीन के स्थल से जोड़ सकते हैं। पुनर्योगज प्लाज्मिड का टेट्रासाइक्लीन प्रतिरोध बाहरी डीएनए के निवेशन (इन्सर्शन) से समाप्त हो जाता है लेकिन रूपांतरज को टेट्रासाइक्लीन युक्त माध्यम पर फैलाकर इसका अपुनर्योगज से अभी भी चयन कर सकते हैं। एंपिसिलिन युक्त माध्यम पर वृद्धि करने वाले रूपांतरजों को तब टेट्रासाइक्लीन युक्त माध्यम पर स्थानांतरित कर देते हैं। पुनर्योगज एंपिसिलिन युक्त माध्यम पर तो वर्धन करेगा, लेकिन टेट्रासाइक्लीन युक्त माध्यम पर वर्धन नहीं करेगा। लेकिन अपुनर्योगज दोनों ही प्रतिजैविक युक्त माध्यम पर वर्धन करेगा। इस मामले में एक प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन रूपांतरजों के चुनाव में सहायता करता है जबकि दूसरा प्रतिजैविक प्रतिरोध जीन विजातीय डीएनए के ‘निवेशन’ से निष्क्रिय’ हो जाता है और पुर्योगजों के चुनाव में सहायता करता है। प्रतिजैविकों के निष्क्रियण के कारण पुर्नयोगज का चयन एक जटिल विधि है क्योंकि इसमें दो प्लेटों, जिसमें भिन्न-भिन्न प्रतिजैविक होता है, पर साथ- साथ प्लेटिंग की जरूरत होती है। इस कारण से वैकल्पिक वरणयोग्य चिह्नकों का विकास हुआ जो पुर्नयोगजों को अपुर्नयोगजों से इस आधार पर विभेद करता है वे वर्णोकोत्पादकी (क्रोमोजेनिक) पदार्थ की उपस्थिति में रंग पैदा करने में सक्षम होते हैं। इसमें एक पुर्योगज डीएनए को बीटा गैलक्टोसाइडेज एंजाइम के कोडिंग अनुक्रम में अन्तर्स्थापित करते हैं, जिससे एन्जाइम संश्लेषित करने वाला जीन निष्क्रिय हो जाता है जिसे निवेशी निष्क्रियता (इनसर्शनल इनएक्टीवेशन) कहते हैं। यदि जीवाणु में प्लाज्मिड में संसर्गिका (इंसर्ट) नहीं होता है तब वर्णोकात्पादकी पदार्थ की उपस्थिति में नीले रंग को निवह (कालोनी) का निर्माण होता है। संसर्गिका की उपस्थिति के परिणामस्वरूप बीटा-गलैक्टोसाइडेस का निवेशी निष्क्रियण हो जाता है जिससे बिना रंग वाली कालोनी बनती है जिसे पुर्नयोगज कालोनी के रूप में पहचानते हैं।

(घ) पौधों व जंतुओं में जीन क्लोनिंग हेतु संवाहक — आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जीनों को पादप और जंतुओं में स्थानांतरित करना हमने जीवाणुओं और विषाणुओं से सीखा जिन्हें यह बात चिरकाल से पता थी — वे जानते थे कि सुकेंद्रकी (यूकैरियोटिक) कोशिकाओं के रूपांतरित करने के लिए जीनों का कैसे उपयोग किया जाए और वे (जीवाणु तथा विषाणु) जो चाहते हैं वैसा करने के लिए जीनो को बाध्य करते हैं। उदाहरणार्थएग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेशिएंस कई द्विबीज पत्री पौधों का रोगजनक पैथोजन है। वह डीएनए के एक खंड जिसे ‘टी.-डीएनए’ कहते हैं, को स्थानांतरित कर सामान्य पौधों की कोशिकाओं को अर्बुद (ट्यूमर) में रूपांतरित करता है और ये अर्बुद कोशिकाएँ रोगजनक के लिए जरूरी रसायनों का उत्पादन करते हैं। ठीक इसी तरह से जंतु कोशिकाओं में पश्चविषाणु (रीट्रोवायरस) सामान्य कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं में रूपांतरित कर देते हैं। रोगजनकों द्वारा अपने सुकेंद्रकी परपोषी में जीन स्थानांतरण की कला को अच्छी तरह से समझ कर रोग जनकों की इस विधि का उपयोग कर, अच्छे संवाहक के रूप में प्रयोग कर, मानव के लिए उपयोगी जीन का स्थानांतरण कर सकते हैं। एग्रोवैक्टीरीयम टयूमीफेशियंस का टी आई ( $\mathrm{Ti})$ प्लाज्मिड क्लोनिंग संवाहक के रूप में अब रूपांतरित कर दिया गया है जो पौधों के लिए रोग जनक नहीं है, लेकिन इसका उपयोग अपनी अभिरूचि के जीन को अनेक पौधों में स्थनांतरित करने में किया जाता है। ठीक इसी तरह से पश्चविषाणु को अहानिकारक बनाकर जंतु कोशिकाओं में वांछित जीन को रूपांतरित करने में उपयोग किया जाता है। इस तरह से जब एक जीन या डीएनए के खंड को उचित संवाहक से जोड़ दिया जाता है तब इसे जीवाणु, पौधों व जंतु परपोषी में स्थानांतरित किया जाता है (जहाँ यह गुणित होता रहता है)।

9.2.3 सक्षम परपोषी आतिथेय ( पुनर्योगज डीएनए के साथ रूपांतरण हेतु )

चूँकि डीएनए जलरागी (हाइड्रोफिलिक) अणु है, इसलिए यह कोशिका झिल्ली से होकर नहीं गुजर सकता है। क्यों? जीवाणु को प्लाज्मिड लेने के लिए बाध्य करने से पूर्व यह आवश्यक है कि जीवाणु कोशिका को डीएनए लेते हेतु ‘सक्षम’ बनाया जाए। ऐसा करने के लिए पहले द्विसंयोजन धनायन (डाइबैलेंट कैटायन) जैसे कि कैल्सियम की विशिष्ट सांद्रता के साथ संसाधित किया जाता है। इससे डीएनए को जीवाणु की कोशिका भित्ति में स्थित छिद्रों से प्रवेश करने में काफी सहायता मिलती है। ऐसी कोशिकाओं को पुनर्योगज डीएनए के साथ पहले बर्फ पर रखा जाता है तब पुनर्योगज डीएनए को उन कोशिकाओं में बलपूर्वक प्रवेश कराया जाता है। इसके बाद उन्हें थोड़े समय के लिए 42 डिग्री. सेल्सीयस (तापप्रघात) पर रखा जाता है और पुनः इसे वापस बर्फ पर रखा जाता है। ऐसा करने से पुर्रयोगज डीएनए जीवाणु में प्रवेश कर जाता है।

परपोषी कोशिकाओं में विजातीय डीएनए को प्रवेश कराने हेतु केवल यही विधि नहीं है। सूक्ष्म अंतःक्षेपण (माइक्रोइंजेक्सन) विधि में पुनर्योगज डीएनए को सीधे जंतु कोशिका के केंद्रक के भीतर अंतःक्षेपित किया जाता है। दूसरी विधि जो पौधों के लिए उपयोगी है, कोशिकाओं पर डीएनए से विलेपित, स्वर्ण या टंगस्टन के उच्च वेग सूक्ष्म कणों से बमबारी करते हैं जिसे बायोलिस्टीक या जीन गन कहते हैं। अंतिम विधि जिसमें “ अहानिकारक रोगजनक’ संवाहक का उपयोग किया जाता है। इन सवांहकों को जब कोशिकाओं को संक्रमित करने दिया जाता है तब ये पुनर्योगज डीएनए को परपोषी में स्थानांतरित कर देते हैं।

आप पुनर्योगज डीएनए निर्माण के तरीकों के बारे में सीख चुके होंगे। अब उन प्रक्रमों का वर्णन करेंगे जो पुनर्योगज डीएनए प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने में सुगम बनाते हैं।

9.3 पुनर्योगज डीएनए प्रौद्योगिकी के प्रक्रम

पुनर्योगज डीएनए प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) चरण विशिष्ट अनुक्रम में सम्मिलित हैं जैसे डीएनए का विलगन (पृथक्करण), डीएनए का खंडन, डीएनए खंड का संवाहक से बंधन, पुनर्योगज डीएनए का परपोषी में स्थानांतरण, परपोषी कोशिकाओं का माध्यम में व्यापक स्तर पर संवर्धन व वंछित उत्पाद का निष्कर्षण। अब इन सभी चरणों की थोड़ा विस्तृत रूप में अध्ययन करेंगे।

9.3.1 आनुवंशिक पदार्थ ( डीएनए) का पृथक्करण

याद रखें कि बिना अपवाद के सभी जीव का आनुवंशिक पदार्थ न्यूक्लिक अम्ल है। अधिकांश जीवों में यह डिऑक्सीराबोन्यूक्लिक अम्ल या डीएनए है। डीएनए को प्रतिबंधन एंजाइम द्वारा काटने के लिए यह आवश्यक है कि यह दूसरे वृहद्-अणुओं से मुक्त, शुद्ध रूप में होना चाहिए। डीएनए झिल्लियों से घिरा रहता है इसलिए कोशिका को तोड़कर खोलना पड़ेगा ताकि डीएनए दूसरे वृहद अणुओं जैसे आरएनए, प्रोटीन, बहुशर्करा, लिपिड के साथ मोचित (रिलीज) हो सके। यह तभी संभव है जब जीवाणु कोशिका/पादप या जंतु ऊतक, लाइसोजाइम (जीवाणु), सेलुलेज (पादपकोशिका), काइटिनेज (कवक) जैसे एंजाइम द्वारा संसाधित किए जाते हैं। आप जानते हो जीन डीएनए के लंबे अणुओं पर स्थित होते हैं व हिस्टोन जैसे प्रोटीनों के साथ गुँथे रहते हैं। आरएनए को राइबोन्यूक्लियेज से उपचारित कर अलग कर सकते हैं जबकि प्रोटीन को प्रोटीएज से उपचारित कराने के बाद अलग कर सकते हैं। दूसरे अणुओं को उचित उपचार द्वारा अलग कर सकते हैं। अंततोगत्वा द्रुतशीतित (चिल्ड) एथेनॉल मिलाने से शोधित डीएनए अवक्षेपित (प्रेसिपिटेट) हो जाता है। इसे निलंबन में महीन धागों के समूह के रूप में देख सकते हैं (चित्र 9.5)।

चित्र 9.5 पृथक किए गए डीएनए को स्पूलिंग द्वारा अलग करना

9.3.2 डीएनए को विशिष्ट स्थलों पर काटना

शोधित डीएनए अणुओं को प्रतिबंधन एंजाइम के साथ उनकी इष्टतम (ऑप्टिमम) परिस्थितियों में रखने पर प्रतिबंधन एंजाइम द्वारा पाचन संपन्न होता है। ऐगारोज जेल वैद्युत का संचलन प्रतिबंधन एंजाइम पाचन को नियंत्रित करने के काम में आता है। डीएनए एक ऋणात्मक आवेशित अणु है। इस कारण से यह धनात्मक इलेक्ट्रोड (एनोड) की ओर गति करता है (चित्र 9.3)। यह प्रक्रम संवाहक डीएनए के साथ भी दोहराया जाता है।

डीएनए के जुड़ने में कई प्रक्रम शामिल हैं। स्रोत डीएनए व संवाहक डीएनए को भी विशिष्ट प्रतिबंधन एंजाइम द्वारा काटे जाने के बाद, स्रेत डीएनए से कटा हुआ ‘उपयोगी जीन’ तथा उसकी खाली जगह के साथ संवाहक आपस में लाइगेज द्वारा जोड़ दिए जाते हैं। परिणामस्वरूप एक पुनर्योगज डीएनए का निर्माण होता है।

9.3.3 पीसीआर का उपयोग करते हुए लाभकारी जीन का प्रवर्धन

पीसीआर का अर्थ पोलीमरेजचेन रिऐक्शन ( पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया) है। इस अभिक्रिया में उपक्रमकों (प्राइमर्स- छोटे रासायनिक संश्लेषित अल्पन्यूक्लियोटाइड जो डीएनए क्षेत्र के पूरक होते हैं) के दो समुच्चयों (सेट्स) व डीएनए पॉलिमरेज एंजाइम का उपयोग करते हुए पात्रे (इनविट्रो) विधि द्वारा उपयोगी जीन के कई प्रतिकृतियों का संश्लेषण होता है। यह एंजाइम जिनोमिक डीएनए को टेंपलेट के रूप में काम में लेकर; अभिक्रिया से मिलने वाले न्यूक्लियोटाइडों का उपयोग करते हुए उपक्रामकों को विस्तृत कर देता है। यदि डीएनए प्रतिकृतयेन प्रक्रम कई बार दोहराया जाता है तब डीएनए खंड को लगभग एक अरब गुना (एक बिलियन) प्रवर्धित किया जा सकता है अर्थात् एक अरब प्रतिरूपों का निर्माण होता है। यह सतत् प्रवर्धन तापस्थायी (थर्मोस्टेबल) डीएनए पॉलिमरेज (जीवाणु, थर्मस एक्वेटिकस से पृथक किया गया है) द्वारा किया जाता है। उच्च तापमान द्वारा प्रेरित द्विलड़ीय डीएनए के विकृतीकरण के समय भी यह हमेशा सक्रिय बना रहता है। यदि आवश्यकता पड़े, तो अब प्रवर्धित खंड को संवाहक के साथ बांध कर आगे क्लोनिंग में प्रयोग कर सकते हैं। (चित्र 9.6)

चित्र 9.6 पालिमरेज शृंखला अभिक्रिया (पीसीआर) का प्रदर्शन — प्रत्येक चक्र में तीन चरण हैं — (अ) निष्क्रियकरण (ब) उपक्रामक तापानुशीलन व (स) उपक्रामकों का विस्तार

9.3.4 पुनर्योगज डीएनए का परपोषी कोशिका/जीव में निवेशन

बँधे हुए डीएनए को आदाता कोशिका में प्रवेश कराने की अनेक विधियाँ हैं। यह कार्य जब आदाता कोशिका अपने चारों तरफ स्थित डीएनए को धारण करने में सक्षम हो जाए तब किया जा सकता है। यदि पुनर्योगज डीएनए को जिसमें प्रतिजैविक (उदाहरण-एंपिसिलिन) के प्रति प्रतिरोधी जीन स्थित होता है, ई कोलाई कोशिकाओं में स्थानांतरित किया जाए तो परपोषी कोशिकाएँ प्रतिरोधी कोशिकाओं में रूपांतरित हो जाती है। यदि रूपांतरित कोशिकाओं को युक्त ऐगार प्लेट पर फैलाया जाता है तो केवल कोशिकाएँ ही विकसित हो पाती हैं जबकि अरूपांतरित आदाता कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है। प्रतिरोधी जीन के कारण कोई भी एंपिसिलिन की उपस्थिति में रूपांतरित कोशिका का चयन कर सकता है। इस मामलें में प्रतिरोधी जीन को वरणयोग्य चिह्नक कहते हैं।

9.3.5 बाहरी जीन उत्पाद को प्राप्त करना

जब आप विजातीय डीएनए खंड का क्लोनिंग संवाहक में निवेश कराकर किसी भी जीवाणु, पौधा या जंतु कोशिका में स्थानांतरित करते हैं तो विजातीय डीएनए इनमें गुणित होने लगता है। लगभग सभी पुनर्योगज प्रौद्योगिकियों का अंतिम उद्देश्य वांछित प्रोटीन का उत्पादन करना ही होता है। इसके लिए पुनर्योगज डीएनए के अभिव्यक्त होने की आवश्यकता होती है। बाहरी जीन उपयुक्त परिस्थितियों में अभिव्यक्त होते हैं। बाहरी जीन की परपोषी कोशिकाओं में अभिव्यक्ति को समझने के लिए कई तकनीकी बातों को विस्तारपूर्वक जानना जरूरी है।

वांछित जीन को क्लोन करने, लक्ष्य प्रोटीन की अभिव्यक्ति को प्रेरित करने वाली परिस्थितियों को अनुकूलतम बनाने के बाद कोई भी इनका व्यापक स्तर पर उत्पादन करने के बारे में सोच सकता है। क्या आप कोई कारण बता सकते हैं कि बड़े पैमाने पर उत्पादन क्यों आवश्यक है? यदि कोई प्रोटीन कूटलेखन (इनकोडिंग) जीन किसी विषमजात (हेटेरोलोगस) परपोषी में अभिव्यक्त होता है तो इसे ‘पुनर्योगज प्रोटीन’ कहते है। लाभकारी क्लोनित जीनों को आश्रय देने वाली कोशिकाओं का छोटे पैमाने पर प्रयोगशाला में वर्धन किया जा सकता है। संवर्धन को वांछित प्रोटीन के निष्कर्षण में प्रयोग कर सकते हैं व पृथक्करण की विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करते हुए इस प्रोटीन का शोधन करते हैं।

कोशिकाओं को सतत् संवर्धन तंत्र में गुणित कर सकते हैं, जिसमें उपयोग किए गए माध्यम को एक तरफ से निकालकर दूसरी तरफ से ताजा माध्यम को भरते हैं ताकि कोशिकाएँ अपने क्रियात्मक रूप से सर्वाधिक सक्रिय लॉग (एक्स्पोनोन्शियल) प्रावस्था में बनी रहें। यह संर्वधन विधि अधिक जैवमात्रा के उत्पादन से वांछित प्रोटीन के अधिक उत्पादन हेतु उपयोगी है।

कम आयतन संवर्धन से उत्पाद की पर्याप्त मात्रा का उत्पादन नहीं हो सकता। इन उत्पादों के अधिक मात्रा में उत्पादन हेतु बायोरिटर के विकास की आवश्यकता थी, जहाँ सवर्धन का अधिक आयतन (100-1000 लीटर) संशोधित किया जा सके। इस प्रकार बायोरिएक्टर एक बर्तन के समान है, जिसमें सूक्ष्मजीवों, पौधों, जंतुओं व मानव कोशिकाओं का उपयोग करते हुए कच्चे माल को जैव रूप से विशिष्ट उत्पादों व्यष्टि एंजाइम आदि, में परिवर्तित किया जाता है। बायोरिएक्टर, वांछित उत्पाद पाने के लिए, अनुकूलतम परिस्थितियाँ उपलब्ध करता है। वृद्धि के लिए ये अनुकूलतम परिस्थितियाँ हैतापमान, पीएच, क्रियाधार, लवण, विटामिन, ऑक्सीजन।

जो बायोरिएक्टर सामान्यतया सर्वाधिक उपयोग में लाया जाता है वह विलोडन (स्टिरिंग) प्रकार का है जिसे चित्र 9.7 में दर्शाया गया है।

चित्र 9.7 (अ) साधारण बिलोडन हौज बायोरिएक्टर (ब) दंड विलोडक हौज बायोरिएक्टर जिसके द्वारा जीवाणु विहीन हवा के बुलबुलों का प्रवेश

विलोडित हौज रिएक्टर सामान्यतया बेलनाकार होते हैं या जिनके आधार घुमावदार होने से रिएक्टर के अंदर अंर्तवस्तु के मिश्रण में सहायता मिलती है। विलोडक बायोरिएक्टर में ऑक्सीजन उपलब्धता व उसके मिश्रण का काम करते हैं। विकल्पतः हवा बुलबले के रूप में बायोरिएक्टर में भेजी जा सकती है। यदि आप चित्र को ध्यान से देखें तो पायेंगे कि रिएक्टर में एक प्रक्षोभक तंत्र (एजिटेटर सिस्टम), ऑक्सीजन प्रदाय तंत्र, झाग नियंत्रण तंत्र, तापक्रम नियंत्रण तंत्र, पीएच नियंत्रण तंत्र व प्रतिचयन प्रद्वार लगा होता है जिससे संवर्धन की थोड़ी मात्रा समय-समय पर निकाली जा सकती है।

9.3.6 अनुप्रवाह संसाधन

जैव संश्लेषित अवस्था के पूर्ण होने के बाद परिष्कृत तैयार होने व विपणन के लिए भेजे जाने से पहले कई प्रक्रमों से होकर गुजरता है। इन प्रक्रमों में पृथक्करण व शोधन सम्मिलित है और इसे सामूहिक रूप से अनुप्रवाह संसाधन कहते हैं। उत्पाद को उचित परिरक्षक के साथ संरूपित करते हैं। औषधि के मामले में ऐसे संरूपण (फार्मुलेशन) को चिकित्सीय परीक्षण से गुजारते हैं। प्रत्येक उत्पाद के लिए सुनिश्चित गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण की भी आवश्यकता होती है। अनुप्रवाह संसाधन व गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण प्रत्येक उत्पाद के लिए भिन्न-भिन्न होता है।

सारांश

जैव प्रौद्योगिकी जीवधारियों, कोशिकाओं व एंजाइमों का प्रयोग करते हुए उत्पादों व प्रक्रमों का व्यापक स्तर पर उत्पादन व विपणन करने से संबंधित है। आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी में आनुवंशिकतः रूपांतरित जीवों का उपयोग तभी संभव हो पाया जब मनुष्य ने डीएनए के रसायन को परिवर्तित व पुनर्योगज डीएनए का निर्माण करना सीख लिया। इस प्रमुख प्रक्रम को पुनर्योगज डीएनए प्रौद्योगिकी या आनुवंशिक इंजीनियरिंग कहते हैं। इस प्रक्रम में प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज, डीएनए लाइगेज, समुचित प्लाज़्मिड या विषाणु संवाहक को डीएनए के पृथक करने व परपोषी जीवों में विजातीय डीएनए का स्थानांतरण, बाहरी जीन की अभिव्यक्ति, जीन उत्पाद अर्थात् सक्रिय प्रोटीन का शोधन और अंत में विपणन के लिए उपयुक्त संरूपण बनाना शामिल है। व्यापक स्तर पर उत्पादन में बायोरिएक्टर का उपयोग होता है।

अभ्यास

1. क्या आप दस पुनर्योगज प्रोटीन के बारे में बता सकते हैं जो चिकित्सीय व्यवहार के काम में लाए जाते हैं? पता लगाइये कि वे चिकित्सीय औषधि के रूप में कहाँ प्रयोग किए जाते हैं। (इंटरनेट की सहायता लें)।

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2. एक सचित्र (चार्ट) (आरेखित निरूपण के साथ) बनाइए जो प्रतिबंधन एंजाइम को, (जिस क्रियाधार डीएनए पर यह कार्य करता है उसे), उन स्थलों को जहाँ यह डीएनए को काटता है व इनसे उत्पन्न उत्पाद को दर्शाता है।

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3. कक्षा ग्यारहवीं में जो आप पढ़ चुके हैं उसके आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि आणविक आकार के आधार पर एंजाइम बड़े हैं या डीएनए। आप इसके बारे में कैसे पता लगायेंगे?

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4. मानव की एक कोशिका में डीएनए की मोलर सांद्रता क्या होगी? अपने अध्यापक से परामर्श लीजिए।

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5. क्या सुकेंद्रकी कोशिकाओं में प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज मिलते हैं? अपने उत्तर सही सिद्ध कीजिए।

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6. अच्छी हवा व मिश्रण विशेषता के अतिरिक्त की तुलना में कौन सी अन्य कंपन्न फ्लास्क सुविधाएँ हैं?

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7. शिक्षक से परामर्श कर पाँच पैलिंड्रोमिक अनुप्रयास करना होगा कि क्षारक-युग्म नियमों का पालन करते हुए पैलिंड्रोमिक अनुक्रम बनाने के उदाहरण का पता लगाइए।

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8. अर्धसूत्री विभाजन को ध्यान में रखते हुए क्या बता सकते हैं कि पुनर्योगज डीएनए किस अवस्था में बनते हैं?

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9. क्या आप बता सकते हैं कि प्रतिवेदक (रिपोर्टर) एंजाइम को वरणयोग्य चिह्न की उपस्थिति में बाहरी डीएनए को परपोषी कोशिकाओं में स्थानांतरण के लिए मॉनिटर करने के लिए किस प्रकार उपयोग में लाया जा सकता है?

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10. निम्नलिखितों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए-

(क) प्रतिकृतीयन का उद्भव

(ख) बायोरिएक्टर

(ग) अनुप्रवाह संसाधन

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11. संक्षेप में बताइए

(क) पीसीआर

(ख) प्रतिबंधन एंजाइम और डीएनए

(ग) काइटिनेज

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12. अपने अध्यापक से चर्चा करके पता लगाइए कि निम्नलिखित के बीच कैसे भेद करेंगे-

(क) प्लाज्मिड डीएनए और गुणसूत्रीय डीएनए

(ख) आरएनए और डीएनए

(ग) एक्सोन्यूक्लिएज और एंडोन्यूक्लिएज

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