अध्याय 12 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव
विद्युत के पिछ्ल अध्याय में हमने विद्युत धारा के तापीय प्रभावों के बारे में अध्ययन किया था। विद्यत धारा के अन्य प्रभाव क्या हो सकते हैं? हम जानते हैं कि विद्यु धारावाही तार चुंबक की भाँति व्यवहार करता है। इस तथ्य का पुनः अवलोकन करने के लिए आइए, एक क्रियाकलाप करते हैं।
चित्र 12.1
धातु के चालक से विद्युत धारा प्रवाहित कराने पर दिक्सूचक सुई विक्षेपित होती है।
क्रियाकलाप 12.1
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ताँबे का एक सीधा मोटा तार लीजिए तथा इसे चित्र 12.1 में दर्शाए अनुसार विद्युत परिपथ के दो बिंदुओं $X$ तथा $Y$ के बीच रखिए। (तार $\mathrm{XY}$ कागज की सतह के लंबवत रखा है।)
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इस ताँबे के तार के निकट क्षैतिज रूप में एक छोटी दिक्सूचक रखिए। इसकी सुई की स्थिति नोट कीजिए।
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प्लग में कुंजी लगाकर विद्युत परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित कराइए।
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दिक्सूचक सुई की स्थिति में परिवर्तन का प्रेक्षण कीजिए।
हम देखते हैं कि सुई विक्षेपित हो जाती है। इसका क्या तात्पर्य है? इसका यह अर्थ है कि ताँबे के तार से प्रवाहित विद्युत धारा ने एक चुंबकीय प्रभाव उत्पन्न किया है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि विद्युत और चुंबकत्व एक-दूसरे से संबंधित हैं। तब गतिमान चुंबकों के विद्युतीय प्रभाव
हैंस क्रिश्चियन ऑर्स्टेड (1777-1851)
19 वीं शताब्दी के अग्रणी वैज्ञानिकों में से एक, हैंस क्रिश्चियन ऑर्स्टेड ने वैद्युतचुंबकत्व को समझने में एक निर्णायक भूमिका निभाई। सन् 1820 ई. में उन्होंने अकस्मात यह खोजा कि किसी धातु के तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर पास में रखी दिक्सूची में विक्षेप उत्पन्न हुआ। अपने प्रेक्षणों के आधार पर ऑर्स्टेड ने यह प्रमाणित किया कि विद्युत तथा चुंबकत्व परस्पर संबंधित परिघटनाएँ हैं। उनके अनुसंधान ने आगे जाकर नई-नई प्रौद्योगिकियों; जैसे- रेडियो, टेलीविजन, तंतु प्रकाशिकी आदि का सृजन किया। उन्हीं के सम्मान में चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक ऑर्स्टेड रखा गया है।
की उत्क्रमित संभावना के विषय में आप क्या कह सकते हैं? इस अध्याय में हम चुंबकीय क्षेत्रों तथा इसी प्रकार के विद्युत-चुंबकीय प्रभावों का अध्ययन करेंगे। हम विद्युत-चुंबकों तथा विद्युत मोटरों के विषय में भी अध्ययन करेंगे, जो विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव पर आधारित होता है। इसके साथ ही हम विद्युत जनित्र के विषय में भी जानकारी प्राप्त करेंगे, जो गतिमान चुंबकों के विद्युतीय प्रभाव पर आधारित है।
12.1 चुंबकीय क्षेत्र और क्षेत्र रेखाएँ
हम इस तथ्य से भली-भाँति परिचित हैं कि किसी छड़-चुंबक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित हो जाती है। वास्तव में दिक्सूचक की सुई एक छोटा छड़ चुंबक ही होती है। किसी दिक्सूचक की सुई के दोनों सिरे लगभग उत्तर और दक्षिण दिशाओं की ओर संकेत करते हैं। उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाले सिरे को उत्तरोमुखी ध्रुव अथवा उत्तर ध्रुव कहते हैं। दूसरा सिरा, जो दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता है, उसे दक्षिणोमुखी ध्रुव अथवा दक्षिण ध्रुव कहते हैं। विविध क्रियाकलापों के द्वारा हमने यह प्रेक्षण किया है कि चुंबकों के सजातीय ध्रुवों में परस्पर प्रतिकर्षण तथा विजातीय ध्रुवों में परस्पर आकर्षण होता है।
क्रियाकलाप 12.2
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किसी चिपचिपे पदार्थ का उपयोग करके ड्राइंग बोर्ड पर एक सफ़ेद कागज़ लगाइए।
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इसके बीचोंबीच एक छड़-चुंबक रखिए।
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छड़-चुंबक के चारों ओर एकसमान रूप से कुछ लौहचूर्ण छितराइए (चित्र 12.2)। इस कार्य के लिए नमक-छितरावक का उपयोग किया जा सकता है।
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अब बोर्ड को धीरे से थपथपाइए।
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आप क्या प्रेक्षण करते हैं?
चित्र 12.2 छड़ चुंबक के निकट का लौहचूर्ण स्वयं ही चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के अनुदिश संरेखित हो जाता है
लौहचूर्ण स्वयं को चित्र 12.2 में दर्शाए गए पैटर्न में व्यवस्थित कर लेता है? लौहचूर्ण इस प्रकार के पैटर्न में क्यों व्यवस्थित होता है? यह पैटर्न क्या निदर्शित करता है? चुंबक अपने चारों ओर के क्षेत्र में अपना प्रभाव आरोपित करता है। अतः लौहचूर्ण एक बल का अनुभव करता है। इसी बल के कारण लौह-चूर्ण इस प्रकार के पैटर्न में व्यवस्थित हो जाता है। किसी चुंबक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें उसके बल का संसूचन किया जा सकता है, उस चुंबक का
चुंबकीय क्षेत्र कहलाता है। बह रेखाएँ जिनके अनुदिश लौहचूर्ण स्वयं सरेखित होता है, चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का निरूपण करती हैं।
क्या किसी छड़-चुंबक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ प्राप्त करने के अन्य कोई उपाय भी हैं? वास्तव में आप स्वयं किसी छड़-चुंबक की चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ खींच सकते हैं।
क्रियाकलाप 12.3
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एक छड़-चुंबक तथा एक छोटी दिक्सूची लीजिए।
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किसी चिपचिपे पदार्थ से ड्राइंग बोर्ड पर चिपकाए गए सफ़ेद कागज़ के बीचोंबीच इस चुंबक को रखिए।
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चुंबक की सीमा रेखा अंकित कीजिए।
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दिक्सूची को चुंबक के उत्तर ध्रुव के निकट ले जाइए। यह कैसे व्यवहार करता है? दिक्सूची का दक्षिण ध्रुव चुंबक के उत्तर ध्रुव की ओर संकेत करता है। दिक्सूची का उत्तर ध्रुव चुंबक के उत्तर ध्रुव से दूर की ओर संकेत करता है।
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दिक्सूची के दोनों सिरों की स्थितियाँ नुकीली पेंसिल से अंकित कीजिए।
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अब दिक्सूची को इस प्रकार रखिए कि इसका दक्षिण ध्रुव उस स्थिति पर आ जाए, जहाँ पहले उत्तर ध्रुव की स्थिति को अंकित किया था। उत्तर ध्रुव की इस नई स्थिति को अंकित कीजिए।
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चित्र 12.3 में दर्शाए अनुसार चुंबक के दक्षिण ध्रुव पर पहुँचने तक इस क्रिया को दोहराते जाइए।
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अब कागज़ पर अंकित बिंदुओं को इस प्रकार मिलाइए कि एक निष्कोण वक्र प्राप्त हो जाए। यह वक्र एक चुंबकीय क्षेत्र रेखा को निरूपित करता है। उपरोक्त प्रक्रिया को दोहराकर जितनी संभव हो सकें क्षेत्र रेखाएँ खींचिए। आपको चित्र 12.4 में दर्शाए जैसा पैटर्न प्राप्त होगा। ये रेखाएँ चुंबक के चारों ओर के चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित करती हैं। इन्हें चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ कहते हैं।
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किसी चुंबकीय क्षेत्र रेखा के अनुदिश गमन करते समय दिक्सूची के विक्षेप का प्रेक्षण कीजिए। चुंबक के ध्रुवों के निकट जाने पर सुई के विक्षेप में वृद्धि होती जाती है।
चित्र 12.3
दिक्सूचक की सहायता से चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ आरेखित करना
चित्र 12.4
किसी छड़-चुंबक के चारों ओर क्षेत्र रेखाएँ
चुंबकीय क्षेत्र एक ऐसी राशि है, जिसमें परिमाण तथा दिशा दोनों होते हैं। किसी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा वह मानी जाती है, जिसके अनुदिश दिक्सूची का उत्तर ध्रुव उस क्षेत्र के भीतर गमन करता है। इसीलिए परिपाटी के अनुसार चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ चुंबक के उत्तर ध्रुव से प्रकट होती हैं तथा दक्षिण ध्रुव पर विलीन हो जाती हैं। (चित्र 12.4 में चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं पर अंकित तीर के निशानों पर ध्यान दीजिए) चुंबक के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा उसके दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव की ओर होती है। अतः चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक बंद वक्र होती हैं।
चुंबकीय क्षेत्र की आपेक्षिक प्रबलता को क्षेत्र रेखाओं की निकटता की कोटि द्वारा दर्शाया जाता है, जहाँ पर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ अपेक्षाकृत अधिक निकट होती हैं वहाँ चुंबकीय क्षेत्र अधिक प्रबल होता है, अर्थात वहाँ पर विद्यमान किसी अन्य चुंबक के ध्रुव पर चुंबकीय क्षेत्र के कारण अधिक बल कार्य करेगा। (चित्र 12.4 देखिए)
दो क्षेत्र रेखाएँ कहीं भी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करतीं। यदि वे ऐसा करें तो इसका यह अर्थ होगा कि प्रतिच्छेद बिंदु पर दिक्सूची को रखने पर उसकी सुई दो दिशाओं की ओर संकेत करेगी, जो संभव नहीं हो सकता।
12.2 किसी विद्युत धारावाही चालक के कारण चुंबकीय क्षेत्र
क्रियाकलाप 12.1 में हमने यह देखा कि किसी धातु के चालक में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उसके चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को ज्ञात करने के लिए आइए, हम इसी क्रियाकलाप को नीचे दिए गए ढंग से करते हैं।
क्रियाकलाप 12.4
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एक लंबा सीधा ताँबे का तार, $1.5 \mathrm{~V}$ के दो या तीन सेल तथा एक प्लग कुंजी लीजिए। इन सबको चित्र 12.5 (a) में दर्शाए अनुसार श्रेणीक्रम में संयोजित कीजिए।
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सीधे तार को दिक्सूची के ऊपर उसकी सुई के समांतर रखिए। अब प्लग में कुंजी लगाकर परिपथ को पूरा कीजिए। सुई के उत्तर ध्रुव के विक्षेप की दिशा नोट कीजिए। यदि विद्युत धारा चित्र 12.5 (a) में दर्शाए अनुसार उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित हो रही है तो दिक्सूची का उत्तर ध्रुव पूर्व की ओर विक्षेपित होगा।
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चित्र 12.5 (b) में दर्शाए अनुसार परिपथ में जुड़े सेलों के संयोजनों को प्रतिस्थापित कीजिए। इसके परिणामस्वरूप ताँबे के तार में विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा में परिवर्तन होगा अर्थात विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर हो जाएगी। दिक्सूची के विक्षेप की दिशा में परिवर्तन का प्रेक्षण कीजिए। आप यह देखेंगे कि अब सुई विपरीत दिशा में अर्थात पश्चिम की ओर विक्षेपित होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि विद्युत धारा द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की दिशा भी उत्क्रमित हो गई है।
(a)
(b)
चित्र 12.5 एक सरल विद्युत परिपथ, जिसमें किसी लंबे ताँबे के तार को किसी दिक्सूची के ऊपर तथा उसकी सुई के समांतर रखा गया है। जब तार में विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा उत्क्रमित होती है तो दिक्सूची का विक्षेप विपरीत दिशा में होता है।
12.2.1 सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुंबकीय क्षेत्र
किसी चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र का पैटर्न कैसे निर्धारित होता है? क्या यह पैटर्न चालक की आकृति पर निर्भर करता है? इसकी जाँच हम एक क्रियाकलाप द्वारा करेंगे।
पहले हम किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर के चुंबकीय क्षेत्र पैटर्न पर विचार करेंगे।
क्रियाकलाप 12.5
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एक $12 \mathrm{~V}$ की बैटरी, एक परिवर्ती प्रतिरोध (धारा नियंत्रक), 0-5 A परिसर का ऐमीटर, एक प्लग कुंजी तथा एक लंबा मोटा सीधा ताँबे का तार लीजिए।
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एक आयताकार कार्डबोर्ड का टुकड़ा लेकर उसके बीचोंबीच कार्डबोर्ड के तल के अभिलंबवत इस मोटे तार को प्रविष्ट कराइए। यह सावधानी रखिए कि कार्डबोर्ड तार में स्थिर रहे, ऊपर-नीचे हिले-डुले नहीं।
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चित्र 12.6 (a) में दर्शाए अनुसार ताँबे के तार को ऊर्ध्वाधरतः बिंदुओं $X$ तथा $Y$ के बीच श्रेणीक्रम में बैटरी, ऐमीटर, धारा नियंत्रक तथा प्लग कुंजी से संयोजित कीजिए।
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तार के चारों ओर कार्डबोर्ड पर कुछ लौहचूर्ण एकसमान रूप से छितराइए। (इसके लिए आप नमक छितरावक का उपयोग भी कर सकते हैं।)
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धारा-नियंत्रक के परिवर्तक को किसी एक नियत स्थिति पर रखिए तथा ऐमीटर में विद्युत धारा का पाठ्यांक नोट कीजिए।
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कुंजी लगाकर परिपथ बंद कीजिए ताकि ताँबे के तार से विद्युत धारा प्रवाहित हो। यह सुनिश्चित कीजिए कि बिंदुओं $X$ तथा $Y$ के बीच में लगा ताँबे का तार ऊर्ध्वाधरतः सीधा रहे।
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कार्डबोर्ड को हल्के से कुछ बार थपथपाइए। लौहचूर्ण के पैटर्न का प्रेक्षण कीजिए। आप यह देखेंगे कि लौहचूर्ण संरेखित होकर तार के चारों ओर संकेंद्री वृत्तों के रूप में व्यवस्थित होकर एक वृत्ताकार पैटर्न (चित्र 12.6) बनाता है।
य ये संकेंद्री वृत्त क्या निरूपित करते हैं? ये चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं को निरूपित करते हैं।
- इस प्रकार उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की दिशा कैसे ज्ञात करें? वृत्त के किसी बिंदु (जैसे P) पर दिक्सूची रखिए। सुई की दिशा का प्रेक्षण कीजिए। दिक्सूची का उत्तर ध्रुव बिंदु विद्युत धारा द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखा की दिशा बताता है। इस दिशा को तीर द्वारा दर्शाइए।
- यदि सीधे तार में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा को उत्क्रमित कर दिया जाए, तो क्या चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा भी उत्क्रमित हो जाएगी? इसका परीक्षण कीजिए।
चित्र 12.6 (a) किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक तार के चारों ओर के चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाओं को निरूपित करता संकेंद्री वृत्तों का पैटर्न। वृत्तों पर अंकित तीर क्षेत्र रेखाओं की दिशाओं को दर्शाते हैं। (b) प्राप्त पैटर्न का समीप दृश्य
(a)
(b)
यदि ताँबे के तार में प्रवाहित विद्युत धारा के परिमाण को परिवर्तित कर दें, तो किसी दिए गए बिंदु पर रखे दिक्सूची के विक्षेप पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसे देखने के लिए तार में विद्युत धारा को परिवर्तित कीजिए। हम यह पाते हैं कि सुई के विक्षेप में भी परिवर्तन होता है। वास्तव में, जब विद्युत धारा के परिमाण में वृद्धि होती है तो विक्षेप में भी वृद्धि होती है। इससे यह निर्दिष्ट होता है कि जैसे-जैसे तार में प्रवाहित विद्युत धारा के परिमाण में वृद्धि होती है तो किसी दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के परिमाण में भी वृद्धि हो जाती है।
यदि ताँबे के तार में प्रवाहित विद्युत धारा तो वही रहती हैं, परंतु दिक्सूची ताँबे के तार से दूर चला जाता है, तब दिक्सूची के विक्षेप पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसे देखने के लिए हम दिक्सूची को चालक तार से दूर स्थित किसी बिंदु (जैसे Q) पर रख देते हैं। आप क्या परिवर्तन देखते हैं? हम यह देखते हैं कि दिक्सूची का विक्षेप घट जाता है। इस प्रकार किसी चालक से प्रवाहित की गई विद्युत धारा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र चालक से दूर जाने पर घटता है। चित्र 12.6 से यह देखा जा सकता है कि जैसे-जैसे विद्युत धारावाही सीधे चालक तार से दूर हटते जाते हैं, उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेंद्री वृत्तों का साइज़ बड़ा हो जाता है।
12.2.2 दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम
किसी विद्युत धारावाही चालक से संबद्ध चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने का एक सुगम उपाय नीचे दिया गया है।
कल्पना कीजिए कि आप अपने दाहिने हाथ में विद्युत धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हैं कि आपका अँगूठा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करता है, तो आपकी अँगुलियाँ चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपटी होंगी जैसा कि चित्र 12.7 में दर्शाया गया है। इसे दक्षिण-हस्त (दायाँ हाथ) अंगुष्ठ* नियम कहते हैं।
उदाहरण 12.1
किसी क्षैतिज शक्ति संचरण लाइन (पावर लाइन) में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। इसके ठीक नीचे के किसी बिंदु पर तथा इसके ठीक ऊपर के किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
हल
विद्युत धारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित हो रही है। दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करने पर पूर्वी सिरे से अवलोकन करने पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा (तार के ऊपर या नीचे किसी भी बिंदु पर) तार के लंबवत् तल में दक्षिणावर्त होगी। इसी प्रकार से तार के पश्चिमी सिरे से अवलोकन करने पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा वामावर्त होगी
- इसे मैक्सवेल का कॉर्कस्क्र नियम भी कहते हैं। यदि हम यह विचार करें कि हम किसी कॉर्कस्क्रू को विद्युत धारा की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं, तो कॉर्कस्कू के घूर्णन की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा होती है।
12.2.3 विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुंबकीय क्षेत्र
अब तक हमने किसी सीधे विद्युत धारावाही चालक के कारण उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का पैटर्न देखा है। मान लीजिए, इस तार को मोड़कर एक वृत्ताकार पाश (लूप) बनाया जाता है और फिर उसमें विद्युत धारा प्रवाहित कराते हैं। तब इसके द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र कैसा प्रतीत होगा? हम जानते हैं कि किसी विद्युत धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र उससे दूरी के व्युत्क्रम पर निर्भर करता है। इसी प्रकार किसी विद्युत धारावाही पाश के प्रत्येक बिंदु पर उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेंद्री वृत्तों का साइज़ तार से दूर जाने पर निरंतर बड़ा (चित्र 12.8) होता जाता है। जैसे ही हम वृत्ताकार पाश के केंद्र पर पहुँचते हैं, इन बृहत् वृत्तों के चाप सरल रेखाओं जैसे प्रतीत होने लगते हैं। विद्युत धारावाही तार के प्रत्येक बिंदु से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ पाश के केंद्र पर सरल रेखा जैसी प्रतीत होने लगती हैं। दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करके इस बात की आसानी से जाँच की जा सकती है कि तार का प्रत्येक भाग चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं में योगदान देता है तथा पाश के भीतर सभी चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक ही दिशा में होती हैं।
क्रियाकलाप 12.6
चित्र 12.9
धारावाही वृत्ताकार कुंडली द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र एक ऐसा आयताकर कार्डबोर्ड लीजिए, जिसमें दो छिद्र हों। एक ऐसी वृत्ताकार कुंडली लीजिए, जिसमें फेरों की संख्या काफ़ी अधिक हो और उसे कार्डबोर्ड के तल के अभिलंबवत लगाया गया हो।
- चित्र 12.9 में दर्शाए अनुसार कुंडली के सिरों को श्रेणीक्रम में बैटरी, एक कुंजी तथा एक धारा नियंत्रक से संयोजित कीजिए।
- कार्डबोर्ड पर लौहचूर्ण एकसमान रूप से छितराइए।
- कुंजी लगाकर परिपथ पूरा कीजिए।
- कार्डबोर्ड को हल्के से कुछ बार थपथपाइए। कार्डबोर्ड पर जो पैटर्न बनता दिखाई दे, उसका प्रेक्षण कीजिए।
हम जानते हैं कि किसी विद्युत धारावाही तार के कारण किसी दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र प्रवाहित विद्युत धारा पर अनुलोमतः निर्भर करता है। अतः यदि हमारे पास $n$ फेरों की कोई कुंडली हो तो उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र परिमाण में एकल फेरे द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की तुलना में $n$ गुना अधिक प्रबल होगा। इसका कारण यह है कि प्रत्येक फेरे में विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा समान है। अतः व्यष्टिगत फेरों के चुंबकीय क्षेत्र संयोजित हो जाते हैं।
12.2.4 परिनालिका में प्रवाहित विद्युत धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र
पास-पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं। किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के कारण उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का पैटर्न चित्र 12.10 में दर्शाया गया है। इस चुंबकीय क्षेत्र के पैटर्न की तुलना चित्र 12.4 में दर्शाए गए छड़-चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के पैटर्न से कीजिए। क्या ये एक जैसे प्रतीत होते हैं? वास्तव में परिनालिका का एक सिरा उत्तर ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिण ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है। परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं। यह निर्दिष्ट करता है कि किसी परिनालिका के भीतर सभी बिंदुओं पर चुंबकीय क्षेत्र समान होता है। अर्थात परिनालिका के भीतर एकसमान चुंबकीय क्षेत्र होता है।
परिनालिका के भीतर उत्पन्न प्रबल चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किसी चुंबकीय पदार्थ, जैसे नर्म लोहे, को परिनालिका के भीतर रखकर चुंबक बनाने (चित्र 12.11) में किया जा सकता है। इस प्रकार बने चुंबक को विद्युत चुंबक कहते हैं।
चित्र 12.10
किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के भीतर और उसके चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ
चित्र 12.11
किसी विद्युत धारावाही परिनालिका का उपयोग उसके भीतर रखी स्टील की छड़ को चुंबकित करने में किया जाता है- एक विद्युत चुबंक
प्रशन
1. मेज़ के तल में पड़े तार के वृत्ताकार पाश पर विचार कीजिए। मान लीजिए इस पाश में दक्षिणावर्त विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करके पाश के भीतर तथा बाहर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिए।
2. किसी दिए गए क्षेत्र में चुंबकीय क्षेत्र एकसमान है। इसे निरूपित करने के लिए आरेख खींचिए।
3. सही विकल्प चुनिए-
किसी विद्युत धारावाही सीधी लंबी परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र-
(a) शून्य होता है।
(b) इसके सिरे की ओर जाने पर घटता है।
(c) इसके सिरे की ओर जाने पर बढ़ता है।
(d) सभी बिंदुओं पर समान होता है।
12.3 चुंबकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर बल
हमने यह सीखा है कि किसी चालक में प्रवाहित विद्युत धारा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। इस प्रकार उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र इस चालक के निकट रखे किसी चुंबक पर कोई बल आरोपित करता है। फ्रांसीसी वैज्ञानिक आंत्रे मैरी ऐम्पियर (1775-1836) ने यह विचार प्रस्तुत किया कि चुंबक को भी विद्युत धारावाही चालक पर परिमाण में समान, परंतु दिशा में विपरीत बल आरोपित करना चाहिए। किसी विद्युत धारावाही चालक पर चुंबकीय क्षेत्र के कारण लगने वाले बल को निम्नलिखित क्रियाकलाप द्वारा निदर्शित किया जा सकता है।
चित्र 12.12
विद्युत धारावाही छड़ $A B$ अपनी लंबाई तथा चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत एक बल का अनुभव करती है। सरलता के लिए, चुंबक की टेक नहीं दर्शाई गई है।
क्रियाकलाप 12.7
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एल्युमिनियम की एक छोटी छड़ (लगभग $5 \mathrm{~cm}$ लंबी) लीजिए। चित्र 12.12 में दर्शाए अनुसार इस छड़ को दो संयोजक तारों द्वारा किसी स्टेंड से क्षैतिजतः लटकाइए।
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प्रबल नाल चुंबक इस प्रकार से व्यवस्थित कीजिए कि छड़ नाल चुंबक के दो ध्रुवों के बीच में हो तथा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा उपरिमुखी हो। ऐसा करने के लिए नाल चुंबक का उत्तर ध्रुव एल्युमिनियम की छड़ के ऊर्ध्वाधरतः नीचे एवं दक्षिण ध्रुव ऊर्ध्वाधरतः ऊपर रखिए। (चित्र 12.12)
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एल्युमिनियम की छड़ को एक बैटरी, एक कुंजी तथा एक धारा नियंत्रक के साथ श्रेणीक्रम में संयोजित कीजिए। एल्युमिनियम छड़ में सिरे $\mathrm{B}$ से $\mathrm{A}$ की ओर विद्युत धारा प्रवाहित कराइए।
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आप क्या देखते हैं? हम यह देखते हैं कि विद्युत धारा प्रवाहित होते ही छड़ बाईं दिशा में विस्थापित होती है।
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अब छड़ में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा की दिशा उत्क्रमित कीजिए और छड़ के विस्थापन की दिशा नोट कीजिए। अब यह दाईं ओर विस्थापित होती है। छड़ क्यों विस्थापित होती है?
उपरोक्त क्रियाकलाप में छड़ के विस्थापन से हमें यह संकेत मिलता है कि चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर एल्युमिनियम की विद्युत धारावाही छड़ पर एक बल आरोपित होता है। और यह भी संकेत मिलता है कि चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा उत्क्रमित करने पर बल की दिशा भी उत्क्रमित हो जाती है। अब चुंबक के ध्रुवों को परस्पर बदल कर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ऊर्ध्वाधरतः अधोमुखी कीजिए। एक बार पुनः यह दिखाई देता है कि विद्युत धारावाही छड़ पर आरोपित बल की दिशा उत्क्रमित हो जाती है। इससे यह प्रदर्शित होता है कि चालक पर आरोपित बल की दिशा विद्युत धारा की दिशा और चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दोनों पर निर्भर करती है। प्रयोगों द्वारा यह देखा गया है कि छड़ में विस्थापन उस समय अधिकतम (अथवा छड़ पर आरोपित बल का परिणाम उच्चतम) होता है, जब विद्युत धारा की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत होती है। ऐसी स्थिति में चालक पर आरोपित बल की दिशा का पता हम एक सरल नियम द्वारा लगा सकते हैं।
क्रियाकलाप 12.7 में, हमने विद्युत धारा की दिशा और चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को परस्पर लंबवत रखकर विचार किया था और यह पाया कि चालक पर आरोपित बल की दिशा इन दोनों के लंबवत है। इन तीनों दिशाओं की व्याख्या एक सरल नियम जिसे फ्लेमिंग का वामहस्त (बायाँ हाथ) नियम कहते हैं, द्वारा की जा सकती है। इस नियम के अनुसार, अपने बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर (चित्र 12.13) लंबवत हों। यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती है तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर
चित्र 12.13 फ्लेमिंग का वामहस्त नियम आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा।
विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र, ध्वनि विस्तारक यंत्र, माइक्रोफ़ोन तथा विद्युत मापक यंत्र कुछ ऐसी युक्तियाँ हैं, जिनमें विद्युत धारावाही चालक तथा चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग होता है।
उदाहरण 12.2
चित्र 12.14 में दर्शाए अनुसार कोई इलेक्ट्रॉन किसी चुंबकीय क्षेत्र में क्षेत्र के लंबवत प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन पर आरोपित बल की दिशा क्या है?
(a) दाईं ओर
(b) बाईं ओर
(c) कागज़ से बाहर की ओर आते हुए
(d) कागज़ में भीतर की ओर जाते हुए
हल
उत्तर विकल्प (d) है।
चित्र 12.14
फ्लेमिंग के वामहस्त नियम के अनुसार आरोपित बल की दिशा चुंबकीय क्षेत्र तथा विद्युत धारा दोनों की दिशाओं के लंबवत होती है। याद कीजिए विद्युत धारा की दिशा इलेक्ट्रॉनों की गति की दिशा के विपरीत होती है। अतः आरोपित बल की दिशा कागज़ में भीतर की ओर जाते हुए है।
यह भी जानिया!
औषध में चुंबकत्व
विद्युत धारा सदैव चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। यहाँ तक कि हमारे शरीर की तंत्रिका कोशिकाओं के अनुदिश गमन करने वाली दुर्बल आयन धाराएँ भी चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती हैं। जब हम किसी वस्तु को स्पर्श करते हैं तो हमारी तंत्रिकाएँ एक विद्युत आवेग का उस पेशी तक वहन करती हैं, जिसका हमें उपयोग करना है। यह आवेग एक अस्थायी चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। ये क्षेत्र अति दुर्बल होते हैं और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की तुलना में उसके एक अरबवें भाग के बराबर होते हैं। मानव शरीर के दो मुख्य भाग, जिनमें चुंबकीय क्षेत्र का उत्पन्न होना महत्वपूर्ण है, वे हृदय तथा मस्तिष्क हैं। शरीर के भीतर चुंबकीय क्षेत्र शरीर के विभिन्न भागों के प्रतिबिंब प्राप्त करने का आधार बनता है। ऐसा एक विशेष तकनीक जिसे चुंबकीय अनुनाद प्रतिबिंबन [Magnetic Resonance Imaging (MRI)] कहते हैं, के उपयोग द्वारा किया जाता है। चिकित्सा निदान में इन प्रतिबिंबों का विश्लेषण सहायक होता है। इस प्रकार चिकित्सा विज्ञान में चुंबकत्व के महत्वपूर्ण उपयोग हैं।
12.4 घरेलू विद्युत परिपथ
हम अपने घरों में विद्युत शक्ति की आपूर्ति मुख्य तारों (जिसे मेंस भी कहते हैं।) से प्राप्त करते हैं। ये मुख्य तार या तो धरती पर लगे विद्युत खंभों के सहारे अथवा भूमिगत केबलों से हमारे घरों तक आते हैं। इस आपूर्ति के तारों में से एक तार को जिस पर प्रायः लाल विद्युतरोधी आवरण होता है, विद्युन्मय तार (अथवा धनात्मक तार) कहते हैं। अन्य तार को जिस पर काला आवरण होता है, उदासीन तार (अथवा ऋणात्मक तार) कहते हैं। हमारे देश में इन दोनों तारों के बीच $220 \mathrm{~V}$ का विभवांतर होता है।
घर में लगे मीटर बोर्ड में ये तार मुख्य फ्यूज़ से होते हुए एक विद्युत मीटर में प्रवेश करते हैं। इन्हें मुख्य स्विच से होते हुए घर के लाइन तारों से संयोजित किया जाता है। ये तार घर के पृथक्पृथक् परिपथों में विद्युत आपूर्ति करते हैं। प्रायः घरों में दो पृथक् परिपथ होते हैं, एक $15 \mathrm{~A}$ विद्युत
भूसंपर्क तार
उदासीन तार
चित्र 12.15 सामान्य घरेलू विद्युत परिपथों में से एक परिपथ का व्यवस्था आरेख
धारा अनुमतांक के लिए जिसका उपयोग उच्च शक्ति वाले विद्युत साधित्रों, जैसे — गीज़र, वायु शीतित्र/कूलर (air cooler) आदि के लिए किया जाता है। दूसरा विद्युत परिपथ $5 \mathrm{~A}$ विद्युत धारा अनुमतांक के लिए होता है, जिससे बल्ब पंखे आदि चलाए जाते हैं। भूसंपर्क तार जिस पर प्रायः हरा विद्युतरोधी आवरण होता है, घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित धातु की प्लेट से संयोजित होता है। इस तार का उपयोग विशेषकर विद्युत इस्त्री, टोस्टर, मेज़ का पंखा, रेफ्रिजरेटर, आदि धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों में सुरक्षा के उपाय के रूप में किया जाता है। धातु के आवरणों से संयोजित भूसंपर्क तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत करता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि साधित्र के धात्विक आवरण में विद्युत धारा का कोई क्षरण होने पर उस साधित्र का विभव भूमि के विभव के बराबर हो जाएगा। फलस्वरूप इस साधित्र को उपयोग करने वाला व्यक्ति तीव्र विद्युत आघात से सुरक्षित बचा रहता है।
चित्र 12.15 में सामान्य घरेलू विद्युत परिपथों में से किसी एक परिपथ का व्यवस्था आरेख दर्शाया गया है। प्रत्येक पृथक् विद्युत परिपथ में विद्युन्मय तथा उदासीन तारों के बीच विभिन्न विद्युत साधित्रों को संयोजित किया जा सकता है। प्रत्येक साधित्र का अपना पृथक् ‘ऑन/ऑफ़’ स्विच होता है, ताकि इच्छानुसार उनमें विद्युत धारा प्रवाहित कराई जा सके। सभी साधित्रों को समान वोल्टता मिल सके, इसके लिए उन्हें परस्पर पार्श्वक्रम में संयोजित किया जाता है।
विद्युत फ्यूज सभी घरेलू परिपथों का एक महत्वपूर्ण अवयव होता है। पिछले अध्याय (अनुभाग 11.4 देखिए) में हम विद्युत फ़्यूज के सिद्धांत एवं कार्यविधि के विषय में अध्ययन कर चुके हैं। विद्युत परिपथ में लगा फ़्यूज़ परिपथ तथा साधित्र को अतिभारण के कारण होने वाली क्षति से बचाता है। जब विद्युन्मय तार तथा उदासीन तार दोनों सीधे संपर्क में आते हैं तो अतिभारण हो सकता है। (यह तब होता है, जब तारों का विद्युतरोधन क्षतिग्रस्त हो जाता है अथवा साधित्र में कोई दोष होता है।) ऐसी परिस्थितियों में, किसी परिपथ में विद्युत धारा अकस्मात बहुत अधिक हो जाती है। इसे लघुपथन कहते हैं। विद्युत फ़्यूज का उपयोग विद्युत परिपथ तथा विद्युत साधित्र को अवांछनीय उच्च विद्युत धारा के प्रवाह को समाप्त करके, संभावित क्षति से बचाना है। फ़्यूजों में होने वाला जूल तापन फ़्यूज़ को पिघला देता है, जिससे विद्युत परिपथ टूट जाता है। आपूर्ति वोल्टता में दुर्घटनावश होने वाली वृद्धि से भी कभी-कभी अतिभारण हो सकता है। कभी-कभी एक ही सॉकेट से बहुत से विद्युत साधित्रों को संयोजित करने से भी अतिभारण हो जाता है।
आपने क्या सीखा
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दिक्सूची एक छोटा चुंबक होता है। इसका एक सिरा जो उत्तर की ओर संकेत करता है उत्तर ध्रुव कहलाता है, तथा दूसरा सिरा जो दक्षिण की ओर संकेत करता है दक्षिण ध्रुव कहलाता है।
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किसी चुंबक के चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र होता है, जिसमें उस चुंबक के बल का संसूचन किया जा सकता है।
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किसी चुंबकीय क्षेत्र के निरूपण के लिए चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का उपयोग किया जाता है। चुंबकीय क्षेत्र रेखा वह पथ है, जिसके अनुदिश कोई परिकल्पित स्वतंत्र उत्तर ध्रुव गमन करने की प्रवृत्ति रखता है। चुंबकीय क्षेत्र के किसी बिंदु पर क्षेत्र की दिशा उस बिंदु पर रखे उत्तर ध्रुव की गति की दिशा द्वारा दर्शाई जाती है। जहाँ चुंबकीय क्षेत्र प्रबल होता है, वहाँ क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे के निकट दिखाई जाती हैं।
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किसी विद्युत धारावाही धातु के तार से एक चुंबकीय क्षेत्र संबद्ध होता है। तार के चारों ओर क्षेत्र रेखाएँ अनेक संकेंद्री वृत्तों के रूप में होती हैं, जिनकी दिशा दक्षिण-हस्त अँगुष्ठ नियम द्वारा ज्ञात की जाती है।
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विद्युत चुंबक में नर्म लौह-क्रोड होता है, जिसके चारों ओर विद्युतरोधी ताँबे के तार की कुंडली लिपटी रहती है।
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कोई विद्युत धारावाही चालक चुंबकीय क्षेत्र में रखे जाने पर बल का अनुभव करता है। यदि चुंबकीय क्षेत्र तथा विद्युत धारा की दिशाएँ परस्पर एक-दूसरे के लंबवत हैं तब चालक पर आरोपित बल की दिशा इन दोनों दिशाओं के लंबवत होती है, जिसे फ्लेमिंग के वामहस्त नियम द्वारा प्राप्त किया जाता है।
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हम अपने घरों में प्रत्यावर्ती विद्युत शक्ति $220 \mathrm{~V}$ पर प्राप्त करते हैं, जिसकी आवृत्ति $50 \mathrm{~Hz}$ है। आपूर्ति का एक तार लाल विद्युतरोधन युक्त होता है, जिसे विद्युन्मय तार कहते हैं। दूसरे पर काला विद्युतरोधन होता है, जिसे उदासीन तार कहते हैं। इन दोनों तारों के बीच $220 \mathrm{~V}$ का विभवांतर होता है। तीसरा तार भूसंपर्क तार होता है, जिस पर हरा विद्युतरोधन होता है। यह तार भूमि में गहराई पर दबी धातु की प्लेट से संयोजित होता है। भूसंपर्कण एक सुरक्षा उपाय है, जो यह सुनिश्चित करता है कि साधित्र के धात्विक आवरण में यदि विद्युत धारा का कोई भी क्षरण होता है तो उस साधित्र का उपयोग करने वाले व्यक्ति को गंभीर झटका न लगे।
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विद्युत परिपथों की लघुपथन अथवा अतिभारण के कारण होने वाली हानि से सुरक्षा की सबसे महत्वपूर्ण युक्ति फ़्यूज़ है।