अध्याय 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र
9.1 भूमिका
प्रकृति ने मानव नेत्र (दृष्टि पटल) को वैद्युतचुंबकीय स्पेक्ट्रम के एक छोटे परिसर में वैद्युत चुंबकीय तरंगों को सुग्राहिता सहित संसूचित कर सकने योग्य बनाया है। इस वैद्युतचुंबकीय स्पेक्ट्रम से संबंधित विकिरणों (तरंगदैर्घ्य लगभग
अपने सामान्य अनुभव से हम प्रकाश के विषय में अपनी अंतदृष्टि द्वारा दो बातों का उल्लेख कर सकते हैं। पहली, यह अत्यधिक तीव्र चाल से गमन करता है तथा, दूसरी, यह सरल रेखा में गमन करता है। इस तथ्य को पूर्ण रूप से समझने में लोगों को कुछ समय लगा कि प्रकाश की चाल (c) परिमित है तथा इसे मापा जा सकता है। वर्तमान में, इसका निर्वात में मान्य मान
हमारी अंतर्दर्शी धारणा कि प्रकाश सरल रेखा में गमन करता है, (जो कुछ हमने अध्याय 8 में सीखा था) का खंडन करती प्रतीत होती है क्योंकि वहाँ हमने प्रकाश को वैद्युतचुंबकीय तरंग माना था जिसकी तरंगदैर्घ्य स्पेक्ट्रम के दृश्य भाग में होती है। इन दोनों तथ्यों में सामंजस्य कैसे स्थापित किया जाए? इसका उत्तर यह है कि दैनिक जीवन की सामान्य वस्तुओं के साइज़ (व्यापक रूप में कुछ सेंटीमीटर की कोटि अथवा इससे अधिक) की तुलना में प्रकाश की तरंगदैर्घ्य काफ़ी कम होती है। जैसा कि आप अध्याय 10 में सीखेंगे, इस स्थिति में, प्रकाश तरंग को एक बिंदु से दूसरे
बिंदु तक किसी सरल रेखा के अनुदिश गमन करते हुए माना जा सकता है। इस पथ को प्रकाश किरण कहते हैं तथा इसी प्रकार की किरणों के समूह से प्रकाश-पुंज बनता है।
इस अध्याय में, हम प्रकाश के किरण रूप का उपयोग करते हुए, प्रकाश के परावर्तन, अपवर्तन तथा विक्षेपण की परिघटनाओं के बारे में विचार करेंगे। परावर्तन तथा अपवर्तन के मूल नियमों का उपयोग करते हुए हम समतल तथा गोलीय परावर्ती एवं अपवर्ती पृष्ठों द्वारा प्रतिबिंबों की रचना का अध्ययन करेंगे। तत्पश्चात हम मानव नेत्र सहित कुछ महत्वपूर्ण प्रकाशिक यंत्रों की रचना एवं कार्य विधि का वर्णन करेंगे।
9.2 गोलीय दर्पणों द्वारा प्रकाश का परावर्तन
हम परावर्तन के नियमों से परिचित हैं। परावर्तन कोण (अर्थात, परावर्तित किरण तथा परावर्तक पृष्ठ अथवा दर्पण के आपतन बिंदु पर अभिलंब के बीच का कोण),
अभिलंब
आपतित किरण
चित्र 9.1 आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा परावर्तक पृष्ठ के आपतन बिंदु पर अभिलंब एक ही तल में होते हैं।
आपतन कोण (आपतित किरण तथा दर्पण के आपतन बिंदु अभिलंब के बीच का कोण) के बराबर होता है। इसके अतिरिक्त, आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा परावर्तक पृष्ठ के आपतन बिंदु पर अभिलंब एक ही समतल में होते हैं (चित्र 9.1)। ये नियम किसी भी परावर्तक पृष्ठ, चाहे वह समतल हो या वक्रित हो, के प्रत्येक बिंदु के लिए वैध हैं। तथापि, हम अपने विवेचन को वक्रित पृष्ठों की विशेष स्थिति, अर्थात गोलीय पृष्ठों तक ही सीमित रखेंगे। इस स्थिति में अभिलंब खींचने का तात्पर्य, पृष्ठ के आपतन बिंदु पर खींचे गए स्पर्शी पर लंब खींचना है। इसका अर्थ यह हुआ कि अभिलंब वक्रता त्रिज्या के अनुदिश अर्थात आपतन बिंदु को दर्पण के वक्रता केंद्र से मिलाने वाली रेखा पर है।
हम पहले ही अध्ययन कर चुके हैं कि गोलीय दर्पण का ज्यामितीय केंद्र इसका ध्रुव कहलाता है, जबकि गोलीय लेंस के ज्यामितीय केंद्र को प्रकाशिक केंद्र कहते हैं। गोलीय दर्पण के ध्रुव तथा वक्रता केंद्र को मिलाने वाली सरल रेखा मुख्य अक्ष कहलाती है। गोलीय लेंसों में जैसा कि आप बाद में देखेंगे, प्रकाशिक केंद्र को मुख्य फोकस से मिलाने वाली रेखा मुख्य अक्ष कहलाती है।
9.2.1 चिह्न परिपाटी
गोलीय दर्पणों द्वारा परावर्तन तथा गोलीय लेंसों द्वारा अपवर्तन के लिए प्रासंगिक सूत्र व्युत्पन्न करने के लिए, सर्वप्रथम हमें दूरियाँ मापने के लिए कोई चि्न परिपाटी अपनानी होगी। इस पुस्तक में हम कार्तीय चिह्न परिपाटी (cartesian sign convention) का पालन करेंगे। इस परिपाटी के अनुसार वस्तु को दर्पण/लेंस के बायीं ओर रखते हैं तथा सभी दूरियाँ दर्पण के ध्रुव अथवा लेंस के प्रकाशिक केंद्र से मापी जाती हैं। आपतित प्रकाश की दिशा में मापी गई दूरियाँ धनात्मक मानी जाती हैं तथा जो दूरियाँ आपतित प्रकाश की दिशा के विपरीत दिशा में मापी जाती हैं वे ऋणात्मक मानी जाती हैं (चित्र 9.2)। धनात्मक मानी जाती हैं (चित्र 9.2)। अधोमुखी मापित ऊँचाइयों को ऋणात्मक लिया जाता है।
किरण प्रकाशिकी एवं
प्रकाशिक यंत्र
सामान्य मान्य परिपाटी के साथ हमें गोलीय दर्पणों के लिए एकल सूत्र तथा गोलीय लेंसों के लिए एकल सूत्र मिल जाते हैं तथा इन सूत्रों द्वारा हम विभिन्न स्थितियों का निपटान कर सकते हैं।
9.2.2 गोलीय दर्पणों की फोकस दूरी
चित्र 9.3 में दर्शाया गया है कि जब कोई समांतर प्रकाश-पुंज किसी (a) अवतल दर्पण तथा (b) उत्तल दर्पण, पर आपतित होता है तो क्या होता है। हम यहाँ यह मानते हैं कि किरणें उपाक्षीय (paraxial) हैं, अर्थात वे दर्पण के ध्रुव
(a)
(b)
(c)
चित्र 9.3 अवतल तथा उत्तल दर्पण के फोकस।
दर्पण के फ़ोकस
मान लीजिए
अब,
(a)
(b)
चित्र 9.4 (a) अवतल गोलीय दर्पण, तथा (b) उत्तल गोलीय दर्पण, पर किसी आपतित किरण के परावर्तन की ज्यामिति।
इसलिए समीकरण (9.1) से प्राप्त होता है
अथवा,
अथवा,
9.2.3 दर्पण समीकरण
यदि किसी बिंदु से आरंभ होकर प्रकाश किरणें परावर्तन तथा/अथवा अपवर्तन के पश्चात किसी अन्य बिंदु पर मिलती हैं तो वह बिंदु पहले बिंदु का प्रतिबिंब कहलाता है। यदि किरणें वास्तव में इस बिंदु पर अभिसरित होती हैं तो प्रतिबिंब वास्तविक होता है। इसके विपरीत, यदि किरणें वास्तव में नहीं मिलतीं, परंतु पीछे की ओर बढ़ाए जाने पर उस बिंदु से अपसरित होती प्रतीत होती हैं तो वह प्रतिबिंब आभासी होता है। इस प्रकार किसी वस्तु का परावर्तन तथा/अथवा अपवर्तन द्वारा स्थापित प्रतिबिंब उस वस्तु का बिंदु-दर-बिंदु तदनुरूप होता है।
सिद्धांत रूप में, हम वस्तु के किसी बिंदु से निकलने वाली कोई दो किरणें ले सकते हैं, उनके पथ अनुरेखित करते हैं, उनका प्रतिच्छेद बिंदु ज्ञात करते हैं और इस प्रकार, किसी गोलीय दर्पण द्वारा परावर्तन के कारण बना किसी बिंदु का प्रतिबिंब प्राप्त करते हैं। तथापि, व्यवहार में निम्नलिखित किरणों में से कोई सी दो किरणें लेना सुविधाजनक होता है:
(i) किसी बिंदु से आने वाली वह किरण जो मुख्य अक्ष के समांतर है। परावर्तित किरण दर्पण के फ़ोकस से गुज़रती है।
(ii) वह किरण जो किसी अवतल दर्पण के वक्रता केंद्र से गुज़रती है अथवा उत्तल दर्पण के वक्रता केंद्र से जाती प्रतीत होती है। परावर्तित किरण केवल अपना पथ पुनः अनुरेखित करती है।
(iii) वह किरण जो किसी अवतल दर्पण के मुख्य फ़ोकस से गुज़रती है अथवा उत्तल दर्पण के मुख्य फ़ोकस से गुज़रती (की ओर दिष्ट) प्रतीत होती है। परावर्तित किरण मुख्य अक्ष के समांतर गमन करती है।
चित्र 9.5 किसी अवतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब रचना का किरण आरेख
(iv) कोई किरण जो ध्रुव पर किसी भी कोण पर आपतित होती है। परावर्तित किरण, परावर्तन के नियमों का पालन करती है।
चित्र 9.5 बिंब के बिंदु
अब हम दर्पण समीकरण अथवा बिंब दूरी
चित्र 9.5 से, दोनों समकोण त्रिभुज
अथवा
क्योंकि
समीकरण (9.4) तथा (9.5) की तुलना करने पर हमें प्राप्त होगा
समीकरण (9.6) में दूरियों के परिमाण सम्मिलित हैं। अब हम चिह्न परिपाटी को लागू करते हैं। हम नोट करते हैं कि प्रकाश बिंब से दर्पण MPN की ओर गमन करता है। इस प्रकार इस दिशा को धनात्मक लिया जाता है। ध्रुव
समीकरण (9.6) में इनका उपयोग करने पर प्राप्त होता है
अथवा
इसे
यह संबंध दर्पण समीकरण कहलाता है।
वस्तु के साइज़ के सापेक्ष प्रतिबिंब का साइज़ भी एक महत्वपर्ण विचारणीय राशि है। हम किसी दर्पण के रैखिक आवर्धन
चिह्न परिपाटी लगाने पर, यह हो जाएगा
इस प्रकार
यहाँ पर हमने दर्पण समीकरण [समीकरण (9.7)] तथा आवर्धन सूत्र [समीकरण (9.9)] अवतल दर्पण द्वारा बने वास्तविक तथा उलटे प्रतिबिंब के लिए व्युत्पन्न किए हैं। परंतु वास्तव में उचित चिह्न परिपाटी का उपयोग करने पर, ये संबंध गोलीय दर्पणों (अवतल तथा उत्तल) द्वारा परावर्तन के सभी उदाहरणों (चाहे प्रतिबिंब वास्तविक बने या आभासी) पर लागू होते हैं। चित्र 9.6 में अवतल तथा उत्तल दर्पण द्वारा आभासी प्रतिबिबों की रचना के किरण-आरेख दर्शाए गए हैं। आप स्वयं यह सत्यापित कर सकते हैं कि समीकरण (9.7) तथा (9.9) इन उदाहरणों के लिए भी मान्य हैं।
(a)
(b)
चित्र 9.6 (a) अवतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब की रचना जबकि बिंब बिंदु
(b) उत्तल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब की रचना।
9.3 अपवर्तन
जब किसी पारदर्शी माध्यम में गमन करता कोई प्रकाश किरण-पुंज किसी दूसरे पारदर्शी माध्यम से टकराता है, तो प्रकाश का एक भाग पहले माध्यम में वापस परावर्तित हो जाता है। जबकि शेष भाग दूसरे माध्यम में प्रवेश करता है। हम प्रायः किसी किरण-पुंज को
(1) अभिलंब
आपतित किरण
चित्र 9.8 प्रकाश का अपवर्तन तथा परावर्तन। प्रकाश की किरण द्वारा निरूपित करते हैं। जब कोई प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में तिर्यक आपतित
(i) आपतित किरण, अपवर्तित किरण तथा अंतरापृष्ठ के आपतन बिंदु पर अभिलंब, एक ही समतल में होते हैं।
(ii) किन्हीं दो माध्यमों के युगल के लिए, आपतन कोण की ज्या (sine) तथा अपवर्तन कोण की ज्या का अनुपात एक स्थिरांक होता है।
याद रखिए, आपतन कोण
यहाँ
समीकरण (9.10) से यदि
नोट : प्रकाशिक घनत्व तथा द्रव्यमान घनत्व के बीच भ्रम उत्पन्न नहीं होना चाहिए। द्रव्यमान घनत्व एकांक आयतन का द्रव्यमान है। यह संभव है कि किसी प्रकाशिक सघन माध्यम का द्रव्यमान घनत्व प्रकाशिक विरल माध्यम के द्रव्यमान घनत्व से कम हो (प्रकाशिक घनत्व दो माध्यमों में प्रकाश की चाल का अनुपात है)। उदाहरण के लिए, तारपीन का तेल तथा जल। तारपीन के तेल का द्रव्यमान घनत्व जल के द्रव्यमान घनत्व से कम होता है। लेकिन इसका प्रकाशिक घनत्व अधिक होता है।
यदि
यदि
अपवर्तन के नियमों पर आधारित कुछ प्रारंभिक परिणाम तुरंत प्राप्त किए जा सकते हैं। किसी आयताकार स्लैब में, अपवर्तन दो अंतरापृष्ठों पर होता है (वायु-काँच तथा काँच-वायु)। चित्र 9.9 द्वारा यह आसानी से देखा जा सकता है कि
9.4 पूर्ण आंतरिक परावर्तन
जब प्रकाश किसी प्रकाशतः सघन माध्यम से प्रकाशतः विरल माध्यम में गमन करता है, तब अंतरापृष्ठ पर वह अंशतः वापस उसी माध्यम में परावर्तित हो जाता है तथा अंशतः दूसरे माध्यम में अपवर्तित हो जाता है। इस परावर्तन को आंतरिक परावर्तन कहते हैं।
जब कोई प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश
(a) (b)
चित्र 9.10 (a) अभिलंबवत, तथा (b) तिर्यक दर्शन के लिए आभासी गहराई।
करती है तो यह अभिलंब से दूर मुड़ जाती है, उदाहरणार्थ, चित्र 9.11 में किरण
अपवर्तन कोण
चित्र 9.11 सघन माध्यम (जल) तथा विरल माध्यम (वायु) के अंतरापृष्ठ पर बिंदु
वह आपतन कोण जिसका तदनुरूपी अपवर्तन कोण
सघन माध्यम 1 का विरल माध्यम 2 के सापेक्ष अपवर्तनांक होगा
सारणी 9.1 कुछ पारदर्शी माध्यमों का वायु के सापेक्ष क्रांतिक कोण
पदार्थ माध्यम | अपवर्तनांक | क्रांतिक कोण |
---|---|---|
जल | 1.33 | |
क्राउन काँच | 1.52 | |
सघन फ्लिंट काँच | 1.62 | |
हीरा | 2.42 |
पूर्ण आंतरिक परावर्तन के लिए एक प्रदर्शन
सभी प्रकाशिक परिघटनाओं को आजकल आसानी से उपलब्ध लेसर टॉर्च या संकेतक का प्रयोग करके बड़ी सरलता से प्रदर्शित किया जा सकता है। एक काँच का बीकर लीजिए जिसमें स्वच्छ जल भरा हो। जल में दूध या किसी अन्य निलंबन की कुछ बूँदें मिलाकर हिलाइए जिससे जल थोड़ा आविल हो जाए। एक लेसर संकेतक लीजिए और इसके किरण-पुंज को आविल जल से गुज़ारिए। आप देखेंगे कि जल के अंदर किरण-पुंज का पथ चमकीला दिखाई देता है।
किरण-पुंज को बीकर के नीचे से इस प्रकार डालिए कि यह दूसरे सिरे पर जल के ऊपरी पृष्ठ पर टकराए। क्या आप देख पाते हैं कि इसमें आंशिक परावर्तन (जो मेज़ के नीचे एक बिंदु के रूप में दिखाई देगा) तथा आंशिक अपवर्तन (जो वायु में निकलकर छत पर एक बिंदु के रूप
(a)
(b)
(c)
चित्र 9.12 लेसर किरण-पुंज से जल में पूर्ण आंतरिक परावर्तन का प्रेक्षण करना (काँच का बीकर अत्यंत पतला होने के कारण इसमें होने वाले अपवर्तन को नगण्य माना गया है)।
में दिखाई देगा) तथा आंशिक अपवर्तन (जो वायु में निकलकर छत पर एक बिंदु के रूप में दिखाई देता है ) होता है [चित्र 9.12 (a)] ? अब लेसर किरण-पुंज को बीकर के एक ओर से इस प्रकार डालिए कि यह जल के ऊपरी पृष्ठ पर तिर्यक टकराए [चित्र 9.12 (b)]। लेसर किरण-पुंज की दिशा को इस प्रकार समायोजित कीजिए कि आपको ऐसा कोण प्राप्त हो जाए जिससे जल के पृष्ठ के ऊपर अपवर्तन पूर्ण रूप से समाप्त हो जाए तथा किरण-पुंज पूर्ण रूप से जल में वापस परावर्तित हो जाए। यह सरलतम रूप में पूर्ण आंतरिक परावर्तन है।
इस जल को एक लंबी परखनली में उलटिए तथा लेसर प्रकाश को इसके ऊपर से डालिए जैसा कि चित्र 9.12 (c) में दर्शाया गया है। लेसर किरण-पुंज की दिशा को इस प्रकार समायोजित कीजिए कि प्रत्येक बार जब यह परखनली की दीवारों से टकराए तो इसका पूर्ण आंतरिक परावर्तन हो। यह दृश्य ऐसा ही है जैसा कि प्रकाशिक तंतुओं में होता है।
ध्यान रखिए कि लेसर किरण-पुंज में कभी भी सीधा न देखें और न ही इसे किसी के चेहरे पर डालें।
9.4.1 प्रकृति में पूर्ण आंतरिक परावर्तन तथा इसके प्रौद्योगिकीय अनुप्रयोग
(i) प्रिज़्म : प्रकाश को
(ii) प्रकाशिक तंतु : आजकल प्रकाशिक तंतुओं का, श्रव्य तथा दृश्य संकेतों को लंबी दूरी तक संचरित करने के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। प्रकाशिक तंतुओं में भी पूर्ण आंतरिक परावर्तन की परिघटना का उपयोग किया जाता है। प्रकाशिक तंतु उच्च गुणता के संयुक्त काँच/क्वार्ट्ज़ तंतुओं से रचित किया जाता है। प्रत्येक तंतु में एक क्रोड
(a)
(b)
(c)
चित्र 9.13 किरणों को
चित्र 9.14 जब प्रकाश किसी प्रकाशिक तंतु में चलता है तो इसका क्रमिक पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है। जब प्रकाश के रूप में कोई संकेत उचित कोण पर तंतु के एक सिरे पर दिष्ट होता है तब यह उसकी लंबाई के अनुदिश बार-बार पूर्ण आंतरिक परावर्तित होता है तथा अंततः दूसरे सिरे से बाहर निकल आता है (चित्र 9.14)। क्योंकि प्रत्येक चरण में प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है इसलिए प्रकाश संकेत की तीव्रता में कोई विशेष हानि नहीं होती। प्रकाश तंतु इस प्रकार बनाए जाते हैं कि एक ओर के आंतरिक पृष्ठ पर परावर्तित होने के पश्चात दूसरे पृष्ठ पर प्रकाश क्रांतिक कोण से अधिक कोण पर आपतित होता है। यहाँ तक कि तंतु में मुड़ाव होने पर भी प्रकाश
तंतु के भीतर उसकी लंबाई के अनुदिश सरलतापूर्वक गमन कर सकता है। इस प्रकार एक प्रकाश तंतु प्रकाशित पाइप (लाइट पाइप) के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
प्रकाशिक तंतुओं के बंडल (गुच्छ) का कई प्रकार से उपयोग किया जा सकता है। प्रकाशिक तंतुओं का बड़े पैमाने पर वैद्युत संकेतों, जिन्हें उचित ट्रांसड्यूरों द्वारा प्रकाश में परिवर्तित कर लेते हैं, के प्रेषण तथा अभिग्रहण में उपयोग किया जाता है। स्पष्ट है कि प्रकाशिक तंतुओं का उपयोग प्रकाशिक संकेत प्रेषण के लिए भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, इन्हें आंतरिक अंगों; जैसे- ग्रसिका, आमाशय तथा आंत्रों के दृश्य अवलोकन के लिए ‘लाइट पाइप’ के रूप में प्रयोग किया जाता है। आपने सामान्य रूप से उपलब्ध महीन प्लास्टिक तंतुओं से बने सजावटी लैंप देखे होंगे। इन प्लास्टिक के तंतुओं के स्वतंत्र सिरे एक फव्वारे जैसी संरचना बनाते हैं। इन तंतुओं का दूसरा सिरा एक विद्युत लैंप के ऊपर जुड़ा होता है। जब लैंप के स्विच को ‘ऑन’ करते हैं, तो प्रकाश प्रत्येक तंतु के नीचे से चलता हुआ इसके स्वतंत्र सिरे की नोक पर एक प्रकाश बिंदु के रूप में दिखाई देता है। इस प्रकार के सजावटी लैंपों के तंतु प्रकाशिक तंतु हैं।
प्रकाशिक तंतुओं के निर्माण में प्रमुख आवश्यकता यह है कि इनके भीतर लंबी दूरियाँ तय करते समय प्रकाश का अवशोषण बहुत कम होना चाहिए। इसे क्वार्ट्ज़ जैसे पदार्थों के शोधन तथा विशिष्ट विरचन द्वारा बनाया जाता है। सिलिका काँच तंतुओं में
9.5 गोलीय पृष्ठों तथा लेंसों द्वारा अपवर्तन
अब तक हमने समतल अंतरापृष्ठों पर अपवर्तन के विषय में विचार किया है। अब हम दो पारदर्शी माध्यमों के गोलीय अंतरापृष्ठों पर अपवर्तन के विषय में विचार करेंगे। किसी गोलीय पृष्ठ के अत्यंत सूक्ष्म भाग को समतलीय माना जा सकता है तथा उसके पृष्ठ के प्रत्येक बिंदु पर समान अपवर्तन के नियमों का अनुप्रयोग किया जा सकता है। गोलीय दर्पण द्वारा परावर्तन की ही भाँति आपतन बिंदु पर अभिलंब पृष्ठ के उस बिंदु पर स्पर्शी तल के लंबवत होता है, तथा वह इसीलिए पृष्ठ के वक्रता केंद्र से गुज़रता है। हम पहले एकल गोलीय पृष्ठ द्वारा अपवर्तन पर विचार करेंगे तथा इसके पश्चात पतले लेंसों की चर्चा करेंगे। कोई पतला लेंस दो गोलीय पृष्ठों से घिरा पारदर्शी माध्यम होता है; जिसका कम से कम एक पृष्ठ अवश्य गोलीय होना चाहिए। एक गोलीय पृष्ठ द्वारा निर्मित प्रतिबिंब के लिए सूत्र का अनुप्रयोग, किसी लेंस के दो पृष्ठों पर, क्रमिक रूप में करके हम पतले लेंसों के लिए लेंस मेकर सूत्र तथा उसके पश्चात लेंस सूत्र प्राप्त करेंगे।
9.5.1 किसी गोलीय पृष्ठ पर अपवर्तन
चित्र 9.15 में वक्रता त्रिज्या
अब
चित्र 9.15 दो माध्यमों को पृथक करने वाले किसी गोलीय पृष्ठ पर अपवर्तन।
इसी प्रकार
अब स्नेल के नियम के अनुसार
अथवा कोणों के छोटे मानों के लिए
समीकरणों (9.13) तथा (9.14) से
यहाँ
इनका मान समीकरण (9.15) में रखने पर हमें प्राप्त होता है,
समीकरण (9.16) से हमें बिंब तथा प्रतिबिंब के बीच में माध्यम के अपवर्तनांक तथा गोलीय वक्रित पृष्ठ की वक्रता त्रिज्या के पदों के रूप में संबंध प्राप्त होता है। समीकरण (9.16) किसी भी प्रकार के वक्रित गोलीय पृष्ठ के लिए मान्य है।
9.5.2 किसी लेंस द्वारा अपवर्तन
चित्र 9.16 (a) में किसी उभयोत्तल लेंस द्वारा प्रतिबिंब-रचना की ज्यामिति दर्शायी गई है। इस प्रतिबिंब की रचना को दो चरणों में देखा जा सकता है : (i) पहला अपवर्ती पृष्ठ बिंब
(a)
(b)
(c)
चित्र 9.16 (a) बिंब की स्थिति तथा उभयोत्तल लेंस द्वारा निर्मित प्रतिबिंब (b) पहले गोलीय पृष्ठ पर अपवर्तन (c) दूसरे गोलीय पृष्ठ पर अपवर्तन। भाँति कार्य करता है [चित्र 9.16 (c)]। समीकरण (9.15) का उपयोग पहले अंतरापृष्ठ
दूसरे अंतरापृष्ठ*
किसी पतले लेंस के लिए
मान लीजिए बिंब अनंत पर है तो,
वह बिंदु जहाँ अनंत पर रखे बिंब का प्रतिबिंब बनता है, लेंस का फ़ोकस
इसलिए समीकरण (9.20) को लिखा जा सकता है :
- नोट कीजिए अब
के दायीं ओर के माध्यम का अपवर्तनांक है जबकि इसके बायीं ओर यह है। इसके अतिरिक्त ॠणात्मक है क्योंकि दूरी आपतित प्रकाश की दिशा के विपरीत दिशा में मापी गई है।
समीकरण (9.21) को लेंस-मेकर सूत्र के रूप में जाना जाता है। स्पष्ट रूप से यह सूत्र उचित वक्रता त्रिज्याओं के पृष्ठों के उपयोग द्वारा वांछित फोकस दूरी के लेंसों की अभिकल्पना (डिज़ाइन) करने में उपयोगी है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि यही सूत्र अवतल लेंसों पर भी समान रूप से लागू होता है। उस स्थिति में
पुनः पतले लेंस-सन्निकटन में बिंदु
समीकरण (9.23) लेंसों के लिए परिचित पतले लेंस सूत्र है। यद्यपि यहाँ हमने इसे उत्तल लेंस द्वारा निर्मित वास्तविक प्रतिबिंब के लिए व्युत्पन्न किया है, तथापि यह सूत्र दोनों ही लेंसों अर्थात, उत्तल तथा अवतल तथा दोनों ही प्रकार के प्रतिबिंबों, वास्तविक तथा आभासी के लिए मान्य है। यह बताना आवश्यक है कि किसी उभयोत्तल अथवा उभयावतल लेंस के दो फ़ोकस
लेंसों द्वारा बने किसी बिंब के प्रतिबिंब की स्थिति ज्ञात करने के लिए सिद्धांत रूप में हम बिंब के किसी बिंदु से आने वाली कोई भी दो किरणें लेकर तथा अपवर्तन के नियमों द्वारा उनके पथ अनुरेखित करके उस बिंदु की स्थिति ज्ञात करते हैं, जहाँ अपवर्तित किरणें वास्तव में मिलती हैं (अथवा मिलती प्रतीत होती हैं)। तथापि, व्यवहार में निम्नलिखित में से कोई सी दो किरणों का चयन करना कार्य को सहज बना देता है।
(i) बिंब से निकलने वाली वह किरण जो लेंस के मुख्य अक्ष के समांतर होती है, अपवर्तन के पश्चात (उत्तल लेंस में) लेंस के दूसरे मुख्य फ़ोकस
(ii) लेंस के प्रकाशिक केंद्र से गुज़रने वाली प्रकाश किरण अपवर्तन के पश्चात् बिना किसी विचलन के निर्गत होती है।
(iii) (a) किसी उत्तल लेंस के प्रथम मुख्य फ़ोकस से होकर गुज़रने वाली कोई प्रकाश की किरण अपवर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के समांतर गमन करती है। [चित्र 9.17(a)]
(a)
(b)
चित्र 9.17 (a) उत्तल लेंस, (b) अवतल लेंस से गुज़रने वाली प्रकाश किरणों का अनुरेखण। बिंदु से अनंत किरणें उत्सर्जित होती हैं। ये सभी किरणें लेंस से अपवर्तन के पश्चात एक ही प्रतिबिंब बिंदु से गुज़रती हैं।
दर्पण की भाँति लेंसों के लिए भी, किसी लेंस द्वारा उत्पन्न आवर्धन
चिह्न परिपाटी का पालन करने पर हम यह पाते हैं कि उत्तल अथवा अवतल लेंस द्वारा बने सीधे (तथा आभासी) प्रतिबिंब के लिए
9.5.3 लेंस की क्षमता
किसी लेंस की क्षमता उस पर पड़ने वाले प्रकाश को अभिसरित अथवा अपसरित करने की कोटि की माप होती है। स्पष्टतः कम फ़ोकस दूरी का कोई लेंस आपतित प्रकाश को अधिक मोड़ता है, उत्तल लेंस में अपवर्तित किरण अभिसरित होती है तथा अवतल लेंस में अपवर्तित किरण अपसरित होती है। किसी लेंस की क्षमता
अथवा
अत:
चित्र 9.18 किसी लेंस की क्षमता।
लेंस की क्षमता का SI मात्रक डाइऑप्टर (D) :
9.5.4 संपर्क में रखे पतले लेंसों का संयोजन
एक-दूसरे के संपर्क में रखे
चित्र 9.19 संपर्क में रखे दो पतले लेंसों द्वारा लेंस से टकराने वाले कोण के अनुसार परिवर्तित हो जाती है। क्योंकि प्रतिबिंब बनना। लेंस पतले हैं, हम दोनों लेंसों के प्रकाशिक केंद्रों को संपाती मान सकते हैं। मान लीजिए यह केंद्रीय बिंदु
पहले लेंस
दूसरे लेंस
समीकरण (9.27) तथा (9.28) को जोड़ने पर,
इन दो लेंसों के तंत्र को
अर्थात
यह व्युत्पत्ति संपर्क में रखे कई पतले लेंसों के निकाय के लिए भी मान्य है। यदि
क्षमता के पदों में समीकरण (9.31) को इस प्रकार भी लिखा जा सकता है
यहाँ
इस प्रकार के लेंसों के संयोजन सामान्यतः कैमरों, सूक्ष्मदर्शियों, दूरबीनों तथा अन्य प्रकाशिक यंत्रों के लेंसों के डिज़ाइन में उपयोग किए जाते हैं।
9.6 प्रिज़्म में अपवर्तन
चित्र 9.21 में किसी प्रिज़्म
चित्र 9.21 काँच के त्रिभुजाकार प्रिज़्म से किसी प्रकाश किरण का गुज़रना।
चतुर्भुज AQNR में दो कोण (
त्रिभुज QNR से
इन दोनों समीकरणों की तुलना करने पर, हमें प्राप्त होगा
कुल विचलन
अर्थात,
चित्र 9.22 किसी त्रिभुजाकार प्रिज़्म के लिए आपतन कोण
(i) तथा विचलन कोण
इस प्रकार विचलन कोण आपतन कोण पर निर्भर करता है। चित्र 9.22 में आपतन कोण तथा विचलन कोण के बीच ग्राफ़ दर्शाया गया है। आप यह देख सकते हैं कि व्यापक रूप से, केवल
समीकरण (9.34) से हमें प्राप्त होता है
इसी प्रकार समीकरण (9.35) से हमें प्राप्त होता है
यदि प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक
कोण
छोटे कोण के प्रिज़्म अर्थात पहले प्रिज्ञम के लिए
इसका तात्पर्य है कि पतले प्रिज़्म में प्रकाश का विचलन काफ़ी कम होता है।
9.7 प्रकाशिक यंत्र
दर्पणों, लेंसों तथा प्रिज़्मों के परावर्ती तथा अपवर्ती गुणों का उपयोग करके अनेक प्रकाशिक युक्तियाँ एवं यंत्र डिज़ाइन किए गए हैं। परिदर्शी, बहुमूर्तिदर्शी, द्विनेत्री, दूरदर्शक, सूक्ष्मदर्शी कुछ ऐसी प्रकाशिक युक्तियों तथा यंत्रों के उदाहरण हैं जिन्हें हम सामान्य रूप से उपयोग में लाते हैं। वास्तव में हमारे नेत्र सबसे महत्वपूर्ण प्रकाशिक युक्तियों में से एक हैं जिनसे प्रकृति ने हमें संपन्न किया है। कक्षा
9.7.1 सूक्ष्मदर्शी
सरल आवर्धक अथवा सरल सूक्ष्मदर्शी कम फ़ोकस दूरी का एक अभिसारी लेंस होता है (चित्र 9.23)। इस प्रकार के लेंस को सूक्ष्मदर्शी के रूप में प्रयोग करने के लिए, लेंस को बिंब के निकट उससे एक फ़ोकस दूरी अथवा उससे कम दूरी पर रखा जाता है तथा लेंस के दूसरी ओर नेत्र को लेंस से सटाकर रखा जाता है। ऐसा करने का लक्ष्य है कि बिंब का सीधा, आवर्धित तथा आभासी प्रतिबिंब किसी ऐसी दूरी पर बने कि नेत्र उसे सरलतापूर्वक देख सकें, अर्थात प्रतिबिंब
सरल सूक्ष्मदर्शी द्वारा निकट बिंदु
(a)
(b)
(c) संकेंद्रित नेत्र
चित्र 9.23 सरल सूक्ष्मदर्शी (a) आवर्धक लेंस इस प्रकार स्थित है कि प्रतिबिंब निकट बिंदु पर बनता है, (b) बिंब द्वारा अंतरित कोण, निकट बिंदु पर अंतरित कोण के समान है तथा (c) बिंब लेंस के फ़ोकस बिंदु पर, प्रतिबिंब बहुत दूर है लेकिन अनंत से पास है।
अब हमारी चिह्न परिपाटी के अनुसार
क्योंकि
ध्यान दीजिए,
अब जब प्रतिबिंब अनंत पर बनता है तो हम आवर्धन ज्ञात करेंगे। इस स्थिति में हमें कोणीय आवर्धन का परिकलन करना होगा। मान लीजिए बिंब की ऊँचाई
अब हम प्रतिबिंब द्वारा नेत्र पर अंतरित कोण, जबकि बिंब
संबंध
जैसा कि चित्र 9.23 (c) से स्पष्ट है। अतः कोणीय आवर्धन (आवर्धन क्षमता) है
यह उस स्थिति के आवर्धन की तुलना में एक कम है, जिसमें प्रतिबिंब निकट बिंदु पर बनता है, समीकरण (9.39), परंतु प्रतिबिंब देखना अपेक्षाकृत अधिक आरामदायक होता है तथा आवर्धन में अंतर भी अपेक्षाकृत कम है। प्रकाशिक यंत्रों (सूक्ष्मदर्शी तथा दूरबीन) से संबंधित आगामी चर्चाओं में हम यह मानेंगे कि प्रतिबिंब अनंत पर बने हैं।
वास्तविक फ़ोकस दूरियों के लेंसों के लिए किसी सरल सूक्ष्मदर्शी का अधिकतम आवर्धन
चित्र 9.24 संयुक्त सूक्ष्मदर्शी द्वारा प्रतिबिंब बनने का
किरण आरेख।
दूसरे लेंस के लिए बिंब का कार्य करता है। इस दूसरे लेंस को नेत्रिका (eye-piece) कहते हैं, जो वास्तविक रूप से सरल सूक्ष्मदर्शी अथवा आवर्धक के रूप में कार्य करके अंतिम आवर्धित आभासी प्रतिबिंब बनाता है। इस प्रकार पहला उलटा प्रतिबिंब नेत्रिका के फोकस बिंदु के निकट (फ़ोकस पर या इसके अंदर) होता है, यह नेत्रिका से इतनी दूरी पर होता है जो अंतिम प्रतिबिंब को अनंत पर बनाने के लिए उपयुक्त होती है तथा उस स्थिति के भी काफ़ी निकट होती है जिस पर यदि प्रतिबिंब स्थित हो तो अंतिम निकट बिंदु पर बने। स्पष्टतः, अंतिम प्रतिबिंब मूल बिंब के सापेक्ष उलटा बनता है।
अब हम संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के कारण आवर्धन प्राप्त करेंगे। चित्र 9.24 का किरण आरेख यह दर्शाता है कि अभिदृश्यक के कारण (रैखिक) आवर्धन, अर्थात
यहाँ हमने इस परिमाण का उपयोग किया है
यहाँ
क्योंकि पहला उलटा प्रतिबिंब नेत्रिका के फ़ोकस बिंदु के निकट बनता है, उपरोक्त चर्चा से प्राप्त परिणाम का उपयोग हम सरल सूक्ष्मदर्शी के लिए करके इसके कारण (कोणीय) आवर्धन
जब प्रतिबिंब अनंत पर बनता है तो नेत्रिका के कारण कोणीय आवर्धन [समीकरण (9.42)] है
अतः कुल आवर्धन [समीकरण (9.33) के अनुसार], जबकि प्रतिबिंब अनंत पर बनता है, है
स्पष्ट है कि किसी छोटी वस्तु का बड़ा आवर्धन प्राप्त करने के लिए (इसीलिए सूक्ष्मदर्शी नाम रखा गया है) अभिदृश्यक तथा नेत्रिका की फ़ोकस दूरी कम होनी चाहिए। व्यवहार में,
उदाहरण के लिए, किसी
अन्य विभिन्न कारक जैसे वस्तु की प्रदीप्ति भी प्रतिबिंब की दृश्यता एवं गुणता में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। आधुनिक सूक्ष्मदर्शियों में, अभिदृश्यक तथा नेत्रिका बहुअवयवी लेंसों द्वारा बनाए जाते हैं, जिनके कारण लेंसों के प्रकाशिक विपथनों (दोष) को कम करके प्रतिबिंबों की गुणता में सुधार किया जाता है।
9.7.2 दूरदर्शक
दूरदर्शक अथवा दूरबीन (चित्र 9.25) का उपयोग दूर की वस्तुओं को कोणीय आवर्धन प्रदान करने के लिए किया जाता है। इसमें भी एक अभिदृश्यक तथा एक नेत्रिका होती है। परंतु यहाँ पर, नेत्रिका की अपेक्षा अभिदृश्यक की फ़ोकस दूरी अधिक तथा इसका द्वारक भी काफ़ी अधिक होता है। किसी दूरस्थ बिंब से चलकर प्रकाश अभिदृश्यक में प्रवेश करता है तथा ट्यूब के अंदर इसके द्वितीय फ़ोकस पर वास्तविक प्रतिबिंब बनता है। नेत्रिका इस प्रतिबिंब को आवर्धित करके अंतिम उलटा प्रतिबिंब बनाती है। आवर्धन क्षमता
इस स्थिति में, दूरदर्शक की ट्यूब की लंबाई है
पार्थिव दूरदर्शकों में, इन लेंसों के अतिरिक्त, प्रतिलोमी लेंसों का एक युगल होता है जो अंतिम प्रतिबिंब को सीधा बना देता है। अपवर्ती दूरदर्शक का उपयोग पार्थिव एवं खगोलीय दोनों प्रकार के प्रेक्षणों के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, किसी ऐसे दूरदर्शक पर विचार कीजिए जिसके अभिदृश्यक की फ़ोकस दूरी
चित्र 9.25 परावर्ती दूरदर्शक (कैसेग्रेन) का व्यवस्था आरेख
अब किन्हीं दो तारों के युगल पर विचार कीजिए जिनका वास्तविक पृथकन
किसी खगोलीय दूरदर्शक के बारे में ध्यान देने योग्य मुख्य बातें उसकी प्रकाश संग्रहण क्षमता तथा इसकी विभेदन क्षमता अथवा विभेदन है। प्रकाश संग्रहण क्षमता स्पष्ट रूप से दूरदर्शक के अभिदृश्यक के क्षेत्रफल पर निर्भर करती है। यदि अभिदृश्यक का व्यास बड़ा है तो धुँधले पिंडों का भी प्रेक्षण किया जा सकता है। विभेदन क्षमता अथवा एक ही दिशा में दो अत्यधिक निकट की वस्तुओं को सुस्पष्टतः भिन्न प्रेक्षित करने की योग्यता भी अभिदृश्यक के व्यास पर निर्भर करती है। अतः प्रकाशिक दूरदर्शक में वांछित उद्देश्य यह होता है। कि अभिदृश्यक का व्यास अधिकतम हो। आजकल उपयोग होने वाले अभिदृश्यक लेंस का अधिकतम व्यास 40 इंच
चित्र 9.26 परावर्ती दूरदर्शक (कैसेग्रेन) का व्यवस्था आरेख।
यही कारण है कि आधुनिक दूरदर्शकों में अभिदृश्यक के रूप में लेंस के स्थान पर अवतल दर्पण का उपयोग किया जाता है। ऐसे दूरदर्शकों को जिनमें अभिदृश्यक दर्पण होता है, परावर्ती दूरदर्शक (दूरबीन) कहते हैं। दर्पण में कोई वर्ण विपथन नहीं होता। यांत्रिक सहारा देने की समस्या भी काफ़ी कम होती है क्योंकि लेंस की तुलना में, तुल्य प्रकाशिक गुणता का दर्पण अपेक्षाकृत कम भारी होता है तथा दर्पण को केवल रिम पर ही सहारा देने की बजाय उसके समस्त पीछे के पृष्ठ को सहारा प्रदान किया जा सकता है। परावर्ती दूरबीन की एक सुस्पष्ट समस्या यह होती है कि अभिदृश्यक दर्पण दूरदर्शक की नली के भीतर प्रकाश को फ़ोकसित करता है। अतः नेत्रिका तथा प्रेक्षक को उसी स्थान पर होना चाहिए जिससे प्रकाश के मार्ग में अवरोध के कारण कुछ प्रकाश कम हो जाता है (यह अवरोध प्रेक्षक के बैठने के लिए बनाए गए पिंजरेनुमा कमरे के साइज़ पर निर्भर करता है)। ऐसा ही प्रयोग अति विशाल 200 इंच
सारांश
1. परावर्तन समीकरण
2. सघन माध्यम से विरल माध्यम में आपतित किरण के लिए क्रांतिक आपतन कोण
3. कार्तीय चिह्न परिपाटी- आपतित प्रकाश की दिशा में मापी गई दूरियाँ धनात्मक तथा इसके विपरीत दिशा में मापी गई दूरियाँ ऋणात्मक ली जाती हैं। सभी दूरियाँ मुख्य अक्ष पर दर्पण के ध्रुव/लेंस के प्रकाशिक केंद्र से मापी जाती हैं।
मुख्य अक्ष के अभिलंबवत मापी गई ऊँचाइयाँ धनात्मक ली जाती हैं। अधोमुखी दिशा में मापी गई ऊँचाइयाँ ऋणात्मक ली जाती हैं।
4. दर्पण समीकरण
यहाँ
5. प्रिज़्म कोण
यहाँ
6. किसी गोलीय अंतरापृष्ठ से अपवर्तन [माध्यम 1 (अपवर्तनांक
पतले लेंस के लिए सूत्र
लेंस-मेकर सूत्र
लेंस की क्षमता का SI मात्रक डाइऑप्टर (D) है;
यदि
अनेक लेंसों के संयोजन की कुल क्षमता
7. प्रकाश का परिक्षेपण, प्रकाश का अपने संघटक वर्णों में विपाटन (विघटन) होता है।
8. किसी सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता के परिमाण
यहाँ
9. किसी दूरबीन की आवर्धन क्षमता, प्रतिबिंब द्वारा नेत्र पर अंतरित कोण
यहाँ
विचारणीय विषय
1. आपतन बिंदु पर परावर्तन तथा अपवर्तन के नियम सभी पृष्ठों तथा माध्यमों के युगलों के लिए मान्य हैं।
2. किसी उत्तल लेंस से
3. प्रतिबिंब बनने के लिए नियमित परावर्तन/अपवर्तन की आवश्यकता होती है। सिद्धांत रूप में, किसी बिंदु से निर्गत सभी किरणें एक ही प्रतिबिंब बिंदु पर पहुँचनी चाहिए। यही कारण है कि आप किसी अनियमित परावर्ती पृष्ठ, जैसे किसी पुस्तक के पृष्ठ में अपना प्रतिबिंब नहीं देखते।
4. मोटे लेंस परिक्षेपण के कारण रंगीन प्रतिबिंब बनाते हैं। हमारे चारों ओर की वस्तुओं के रंगों में विविधता उन पर आपतित प्रकाश के रंगों के संघटकों के कारण होती है। किसी वस्तु को एकवर्णी प्रकाश में देखने पर तथा श्वेत प्रकाश में देखने पर उस वस्तु के विषय में बिलकुल ही अलग बोध होता है।
5. किसी सरल सूक्ष्मदर्शी के लिए बिंब का कोणीय साइज़, प्रतिबिंब के कोणीय साइज़ के बराबर होता है। फिर भी वह आवर्धन प्रदान करता है क्योंकि आप सूक्ष्मदर्शी का उपयोग करते समय किसी छोटी वस्तु को अपने नेत्रों के बहुत निकट