अध्याय 8 वैद्युतचुंबकीय तरंगें
8.1 भूमिका
अध्याय 4 में हमने सीखा है कि विद्युत धारा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है तथा दो धारावाही तार परस्पर एक-दूसरे पर चुंबकीय बल आरोपित करते हैं। इसके अतिरिक्त, अध्याय 6 में हम यह देख चुके हैं कि समय के साथ परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है। परंतु, क्या इसका विलोम भी सत्य है? क्या समय के साथ परिवर्तित होता हुआ विद्युत क्षेत्र चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करता है? जेम्स क्लार्क मैक्सवेल (1831-1879) ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि वास्तव में ऐसा ही होता है। न केवल विद्युत धारा वरन समय के साथ परिवर्तनशील विद्युत क्षेत्र भी चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। समय के साथ परिवर्तनशील धारा से जुड़े संधारित्र के बाहर किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात करने के लिए ऐम्पियर का नियम लगाते समय, मैक्सवेल का ध्यान इस नियम संबंधी एक असंगति की ओर गया। इस असंगति को दूर करने के लिए उन्होंने एक अतिरिक्त धारा के अस्तित्व का सुझाव दिया जिसको उन्होंने विस्थापन धारा नाम दिया।
उन्होंने विद्युत व चुंबकीय क्षेत्रों तथा उनके स्रोतों-आवेश एवं धारा-घनत्व को सम्मिलित कर, समीकरणों का एक समुच्चय सूत्रबद्ध किया। इन समीकरणों को मैक्सवेल समीकरण कहते हैं। लोरेंज का बल सूत्र (अध्याय 4) और मिला लें तो ये समीकरण विद्युत-चुंबकत्व के सभी आधारभूत नियमों को गणितीय रूप में व्यक्त करते हैं।
मैक्सवेल के समीकरणों से उभरने वाली सबसे महत्वपूर्ण प्रागुक्ति वैद्युतचुंबकीय तरंगों का अस्तित्व होना है जो अंतरिक्ष में संचरित समय के साथ बदलते (युग्मित) विद्युतीय एवं चुंबकीय क्षेत्र हैं। मैक्सवेल के समीकरणों के अनुसार, इन तरंगों की चाल, प्रकाशीय मापन द्वारा प्राप्त प्रकाश
की चाल
इस अध्याय में, पहले हम विस्थापन धारा की आवश्यकता एवं उसके परिणामों के विषय में चर्चा करेंगे। फिर हम वैद्युतचुंबकीय तरंगों का एक विवरणात्मक चित्र प्रस्तुत करेंगे। वैद्युतचुंबकीय तरंगों का संपूर्ण वर्णक्रम, जो गामा किरणों (तरंगदैर्घ्य
8.2 विस्थापन धारा
अध्याय 4 में हम देख चुके हैं कि विद्युत धारा अपने चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। मैक्सवेल ने दर्शाया कि तार्किक संगति के लिए यह आवश्यक है कि परिवर्तनशील विद्युत क्षेत्र भी चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करे। यह प्रभाव बहुत ही महत्त्व का है, क्योंकि यह रेडियो तरंगों, गामा किरणों, एवं दृश्य प्रकाश के अतिरिक्त भी अन्य सभी वैद्युतचुंबकीय तरंगों के अस्तित्व की व्याख्या करता है।
यह देखने के लिए कि परिवर्तनशील विद्युत क्षेत्र किस प्रकार चुंबकीय क्षेत्र के उद्भव का कारण बनता है। आइए हम किसी संधारित्र के आवेशन की प्रक्रिया पर विचार करें और संधारित्र के बाहर किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात करने के लिए ऐम्पियर के परिपथीय नियम (अध्याय 4)
का उपयोग करें।
[चित्र 8.1(a)] में एक समांतर प्लेट संधारित्र
अब इसी परिसीमा वाली एक अन्य सतह पर विचार कीजिए। यह घड़े के आकार की एक सतह है जो धारा को कहीं भी नहीं छूती है [चित्र 8.1(b)] पर
जेम्स क्लार्क मैक्सवेल (1831 - 1879) स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग में जन्मे, उन्नीसवीं शती के महानतम भौतिकविदों में से एक। उन्होंने गैस के अणुओं की तापीय गतियों के वितरण के लिए व्यंजक व्युत्पन्न किया और वे उन पहले लोगों में से एक थे जिन्होंने श्यानता आदि मापन योग्य राशियों का उपयोग कर आण्विक प्राचलों के विश्वसनीय आकलन प्राप्त किए। मैक्सवेल की सबसे बड़ी उपलब्धि, विद्युत एवं चुंबकत्व के (कूलॉम, ऑर्स्टेड, ऐम्पियर एवं फैराडे द्वारा खोजे गए) नियमों के एकीकरण द्वारा संगत समीकरणों का एक समुच्चय प्रस्तुत करना था, जिन्हें आज हम मैक्सवेल के समीकरणों के नाम से जानते हैं। इनके आधार पर वे इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण निष्कर्ष पर पहुँचे कि प्रकाश, वैद्युतचुंबकीय तरंग ही है। मजे की बात यह है कि मैक्सवेल, फैराडे के वैद्युत अपघटन के नियमों से उत्पन्न इस विचार से सहमत नहीं थे कि विद्युत की प्रकृति कण रूप में है।
(a)
C
(b)
(c)
चित्र 8.1 एक समांतर प्लेट संधारित्र
(a) में दर्शाया गया लूप इसका रिम है; (c) में (टिफिन की आकृति की) एक अन्य सतह दर्शायी गई है, वृत्ताकार लूप जिसका रिम है एवं समतल वृत्ताकार तली
यदि हम चित्र 8.1(c) को ध्यानपूर्वक देखें तो छूटे हुए पद का अनुमान लगाया जा सकता है। क्या संधारित्र की प्लेटों के बीच की सतह
अब यदि संधारित्र की प्लेटों पर आवेश
यह निर्दिष्ट करता है कि ऐम्पियर के नियम में संगति के लिए,
यही ऐम्पियर के परिपथीय नियम का छूटा हुआ पद है। यदि हम किसी भी सतह से होकर चालकों द्वारा वाहित कुल धारा में,
मैक्सवेल द्वारा किया गया व्यापकीकरण निम्न है। चुंबकीय क्षेत्र का स्रोत केवल प्रवाहमान आवेशों से निर्मित चालन विद्युत धारा ही नहीं होती, अपितु समय के सापेक्ष विद्युत क्षेत्र में परिवर्तन
की दर भी इसका कारण बन सकती है। अधिक स्पष्टता से इस बात को कहें तो कुल धारा
सुस्पष्ट शब्दों में इसका अर्थ है कि संधारित्र की प्लेटों के बाहर केवल चालन धारा
C
(a)
(b)
चित्र 8.2 (a) संधारित्र की प्लेटों के बीच स्थित बिंदु
विस्थापन धारा के (शब्दशः) दूरगामी परिणाम हैं। एक तथ्य जिसकी ओर हमारा ध्यान एकदम आकर्षित होता है, वह यह है कि विद्युत एवं चुंबकत्व अब और अधिक सममितीय* हो गए हैं। फैराडे का प्रेरण संबंधी नियम यह बताता है कि प्रेरित विद्युत वाहक बल चुंबकीय फ्लक्स परिवर्तन की दर के बराबर होता है। अब, चूँकि दो बिंदुओं 1 एवं 2 के बीच विद्युत वाहक बल, बिंदु 1 से बिंदु 2 तक इकाई आवेश को ले जाने में किया गया कार्य है। विद्युत वाहक बल की उपस्थिति एक विद्युत क्षेत्र की उपस्थिति को इंगित करती है। फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण संबंधी नियम को हम दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कह सकते हैं कि समय के साथ परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र, विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है। यह तथ्य कि समय के साथ परिवर्तनशील विद्युत क्षेत्र, चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है, फैराडे के नियम का सममितीय प्रतिरूप है और विस्थापन धारा के चुंबकीय क्षेत्र का स्रोत होने का परिणाम है। अतः समय पर निर्भर वैद्युत एवं चुंबकीय क्षेत्र एक-दूसरे की उत्पत्ति के कारण हैं।[^4]
फैराडे का विद्युत चुंबकीय प्रेरण का नियम एवं मैक्सवेल-ऐम्पियर का परिपथीय नियम इस कथन की परिमाणात्मक अभिव्यक्ति है। जहाँ धारा, कुल धारा है जैसा कि समीकरण (8.5) से स्पष्ट है। इस सममिति की एक अत्यंत महत्वपूर्ण निष्पत्ति विद्युत चुंबकीय तरंगों का अस्तित्व है जिसके विषय में हम अगले अनुभाग में चर्चा करेंगे।
निर्वात में मैक्सवेल के समीकरण
1.
2.
3.
4.
8.3 वैद्युतचुंबकीय तरंगें
8.3.1 तरंगों के स्रोत
वैद्युतचुंबकीय (electromagnetic, संक्षेप में em) तरंगें उत्पन्न कैसे होती हैं? न तो स्थिर आवेश, न ही एकसमान गति से चलते हुए आवेश (स्थिर धारा), वैद्युतचुंबकीय तरंगों के स्रोत हो सकते हैं। क्योंकि, स्थिर आवेश तो केवल स्थिरवैद्युत क्षेत्र उत्पन्न करते हैं जबकि गतिमान आवेश चुंबकीय क्षेत्र भी उत्पन्न करते हैं पर वह समय के साथ परिवर्तित नहीं होता। मैक्सवेल के सिद्धांत की यह एक महत्वपूर्ण निष्पत्ति है कि त्वरित आवेश वैद्युतचुंबकीय तरंगें विकिरित करते हैं। इस मौलिक निष्पत्ति का प्रमाण प्रस्तुत पुस्तक के विस्तार क्षेत्र से परे है, परंतु हम इसको एक अपरिष्कृत, गुणात्मक विवेचन के आधार पर स्वीकार कर सकते हैं। मान लीजिए कि एक आवेश है जो किसी निश्चित आवृत्ति से दोलन कर रहा है (कोई दोलन करता हुआ आवेश भी एक त्वरित आवेश का उदाहरण है)। यह उस क्षेत्र में एक दोलित विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है जो पुनः एक दोलित चुंबकीय क्षेत्र को जन्म देता है जो पुनः एक दोलित विद्युत क्षेत्र की उत्पत्ति का कारण बनता है और यह प्रक्रिया चलती रहती है। अतः दोलित विद्युत एवं चुंबकीय क्षेत्र एक-दूसरे को संपोषित करते हैं या कहें कि तरंग गमन करती है। स्वाभाविक रूप से वैद्युतचुंबकीय तरंगों की आवृत्ति, आवेश के दोलनों की आवृत्ति के बराबर होती है। गमनकारी तरंगों से जुड़ी ऊर्जा, स्रोत अर्थात त्वरित आवेश की ऊर्जा से ही प्राप्त होती है।
पूर्वोक्त चर्चा के आधार पर हो सकता है कि इस प्रागुक्ति का परीक्षण कि प्रकाश विद्युत चुंबकीय तरंग है, सहज हो सकता है। हम विचार कर सकते हैं कि दृश्य प्रकाश (माना कि पीला) उत्पन्न करने के लिए हमें बस एक आवेश को उस प्रकाश की आवृत्ति से दोलन कराने के लिए एक
मैक्सवेल के सिद्धांत के परीक्षण के लिए किए गए हर्ट्ज़ के सफल प्रयोग ने सनसनी फैला दी तथा ये प्रयोग इस क्षेत्र में अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए प्रेरणा का आधार बने। इस संबंध में दो महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ उल्लेख किए जाने योग्य हैं। हर्ट्ज़ के प्रयोग के सात साल बाद, जगदीश चंद्र बसु ने कलकत्ता में कार्य करते हुए काफी कम तरंगदैर्घ्य
लगभग उसी समय इटली में गुगलीओ मार्कोनी ने हर्ट्ज़ के कार्य का अनुसरण करते हुए कई किलोमीटर तक की दूरियों तक वैद्युतचुंबकीय तरंगें संप्रेषित करने में सफलता प्राप्त की। मार्कोनी के प्रयोग से संचार के क्षेत्र में वैद्युतचुंबकीय तरंगों के उपयोग का प्रारंभ हुआ।
8.3.2 वैद्युतचुंबकीय तरंगों की प्रकृति
मैक्सवेल के समीकरणों के आधार पर यह दर्शाया जा सकता है कि किसी वैद्युतचुंबकीय तरंग में विद्युतीय एवं चुंबकीय क्षेत्र एक-दूसरे के लंबवत होते हैं और इसके गमन की दिशा के भी। विस्थापन धारा पर दिए गए विवेचन के आधार पर भी यह तर्कसंगत प्रतीत होता है। चित्र 8.2 पर विचार कीजिए। संध रित्र में प्लेटों के बीच विद्युत क्षेत्र प्लेटों के लंबवत है। विस्थापन धारा के द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र संधारित्र की प्लेटों के समांतर वृत्त के अनुदिश है। अतः इस स्थिति में
चित्र (8.3) में हमने
हेनरिच रूडोल्फ हर्ट्ज़
(1857 - 1894) जर्मन भौतिकविद, जिन्होंने पहली बार रेडियो तरंगों को प्रसारित किया और ग्रहण किया। उन्होंने वैद्युतचुंबकीय तरंगें पैदा कीं, उन्हें आकाश में भेजा और उनका तरंगदैर्घ्य तथा चाल ज्ञात किया। उन्होंने दर्शाया कि वैद्युतचुंबकीय तरंगों के कंपनों की प्रकृति, परावर्तन एवं अपवर्तन ठीक वैसे ही थे जैसे प्रकाश एवं ऊष्मा तरंगों में, और इस प्रकार पहली बार इनकी अभिन्नता सिद्ध की। उन्होंने गैसों में विद्युत विसर्जन संबंधी शोध की अगुवाई की और प्रकाश-विद्युत प्रभाव की खोज की।
यहाँ
तथा यहाँ
चित्र 8.3 एक रेखीय ध्रुवित वैद्युतचुंबकीय तरंग जो
समीकरण
मैक्सवेल के समीकरणों के आधार पर इस निष्कर्ष पर भी पहुँचा जा सकता है कि किसी वैद्युतचुंबकीय तरंग में विद्युत एवं चुंबकीय क्षेत्र परस्पर निम्नलिखित समीकरण द्वारा संबंधित है -
अब हम वैद्युतचुंबकीय तरंगों के कुछ अभिलक्षणों पर टिप्पणियाँ करते हैं। वे मुक्त स्थान या निर्वात में, विद्युत एवं चुंबकीय क्षेत्रों के स्वःसंपोषित दोलन हैं। वे इस अर्थ में अभी तक हमारे द्वारा अध्ययन की गई अन्य तरंगों से भिन्न हैं कि इनमें विद्युत एवं चुंबकीय क्षेत्रों के दोलनों के लिए किसी भौतिक माध्यम की आवश्यकता नहीं होती।
लेकिन, अगर एक भौतिक माध्यम वास्तव में विद्यमान हो तो उदाहरण के लिए हम जानते हैं कि प्रकाश जो वैद्युतचुंबकीय तरंगें ही हैं; काँच में से गमन करता है। यह हम पहले ही देख चुके हैं कि किसी माध्यम में कुल विद्युत एवं चुंबकीय क्षेत्रों को उस माध्यम की आपेक्षिक विद्युतशीलता
अतः किसी माध्यम में प्रकाश का वेग उस माध्यम के वैद्युत एवं चुंबकीय गुणों पर निर्भर करता है। अगले अध्याय में हम देखेंगे कि एक माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक इन दो माध्यमों में प्रकाश के वेग के अनुपात में होता है।
मुक्त आकाश अथवा निर्वात में वैद्युतचुंबकीय तरंगों का वेग एक महत्वपूर्ण, मौलिक नियतांक है। विभिन्न तरंगदैर्घ्य की वैद्युतचुंबकीय तरंगों पर किए गए प्रयोगों ने यह दर्शाया है कि यह वेग (जो तरंगदैर्घ्य पर निर्भर नहीं है) सभी के लिए समान होता है और इसका मान
वैद्युतचुंबकीय तरंगों का बड़ा प्रौद्योगिकीय महत्त्व, इनके द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक ऊर्जा वहन करने की क्षमता से ही प्रस्फुटित होता है। रेडियो एवं टीवी सिग्नलों के रूप में प्रसारण स्टेशनों से यही ऊर्जा अभिग्राहकों तक पहुँच कर उन्हें क्रियाशील बनाती है। प्रकाश के रूप में सूर्य से ऊर्जा पृथ्वी तक पहुँचती है जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन संभव हुआ है।
8.4 वैद्युतचुंबकीय स्पेक्ट्रम
जिस समय मैक्सवेल ने वैद्युतचुंबकीय तरंगों संबंधी अपना सिद्धांत प्रस्तुत किया था तो दृश्य प्रकाश तरंगें ही एक मात्र सुपरिचित वैद्युतचुंबकीय
अब हम वैद्युतचुंबकीय तरंगों के इन विभिन्न प्रकारों का उनकी घटती हुई तरंगदैर्घ्यों के क्रम में वर्णन करेंगे।
चित्र 8.4 वैद्युतचुंबकीय स्पेक्ट्रम जिसके विभिन्न भागों के सामान्य नाम दर्शाए गए हैं। विभिन्न भागों के बीच कोई स्पष्ट विभाजन रेखा नहीं है।
हम इन विभिन्न प्रकार की वैद्युतचुंबकीय तरंगों का अवरोही तरंगदैर्घ्य के क्रम में, संक्षेप में वर्णन कर रहे हैं।
8.4. 1 रेडियो तरंगें
रेडियो तरंगें चालक तारों में आवेशों की त्वरित गति से उत्पन्न होती हैं। इनका उपयोग रेडियो एवं दूरदर्शन की संचार प्रणालियों में किया जाता है। इनका आवृत्ति परास सामान्यतः
8.4.2 सूक्ष्म तरंगें
सूक्ष्म तरंगों (लघु तरंगदैर्घ्य की रेडियो तरंगें) की आवृत्तियाँ गिगा हर्ट्ज़ (GHz) के परास में होती हैं ये विशेष प्रकार की निर्वात नलिकाओं (vacuum tubes) जिन्हें क्लाइस्ट्रॉन, मेगनेट्रॉन अथवा गन डायोड कहते हैं, द्वारा उत्पन्न होती हैं। अपने लघु तरंगदैर्घ्य के कारण विमान संचालन में रडार प्रणाली के लिए उपयुक्त हैं। रडार, तेज गेदों जैसे कि टेनिस में सर्व की गई गेंदों या वाहनों की गति
प्रणाली का भी आधार हैं। माइक्रोवेव ऑवन इन तरंगों का एक रोचक घरेलू अनुप्रयोग है। इन ऑवनों में सूक्ष्म तरंगों की आवृत्ति इस प्रकार चुनी जाती है कि वे जल के अणुओं की अनुनाद आवृत्ति से मेल खा सकें, ताकि तरंगों की ऊर्जा प्रभावी रूप से अणुओं की गतिज ऊर्जा बढ़ाने के लिए स्थानांतरित की जा सके। इससे किसी भी जलयुक्त खाद्य पदार्थ का ताप बढ़ जाता है।
8.4.3 अवरक्त तरंगें
अवरक्त तरंगें (Infrared Waves) गर्म पिंडों एवं अणुओं से उत्पन्न होती हैं। यह बैंड दृश्य स्पेक्ट्रम के निम्न आवृत्ति या दीर्घ तरंगदैर्घ्य सिरे से संलग्नित होता है। अवरक्त तरंगों को कभी-कभी ऊष्मा तरंगें भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकांश पदार्थों में विद्यमान जल के अणु अवरक्त तरंगों को तुरंत अवशोषित कर लेते हैं (कई अन्य अणु, जैसे,
8.4.4 दृश्य प्रकाश तरंगें
यह वैद्युतचुंबकीय तरंगों का सर्वाधिक सुपरिचित रूप है। यह उस स्पेक्ट्रम का भाग है जिसके लिए मानवीय नेत्र संवेदनशील होते हैं। इसका आवृत्ति परास लगभग
8.4.5 पराबैंगनी तरंगें
इसमें लगभग
वेल्डिग करने वाले लोग, वेल्डिग चिनगारियों से निकलने वाली UV किरणों से अपनी आँखों की सुरक्षा के लिए विशिष्ट काँच युक्त धूप के चश्मे पहनते हैं या काँच की खिड़कियों से युक्त मुखौटे अपने चेहरे पर लगाते हैं। अपनी छोटी तरंगदैर्घ्यों के कारण, पराबैंगनी किरणों को अति परिशुद्ध अनुप्रयोगों, जैसे लासिक (LASIK - Laser-assisted in situ keratomileusis) नेत्र शल्यता में उपयोग हेतु अत्यंत संकीर्ण किरण-पुंजों में फ़ोकसित किया जा सकता है। जल शोधक में पराबैंगनी (UV) लैंपों का उपयोग जीवाणुओं को मारने में होता है।
चूँकि ओजोन परत एक संरक्षक की भूमिका अदा करती है इसलिए क्लोरोफ्लोरो-कार्बन (CFCs) गैसों (जैसे फ्रीऑन) द्वारा इसका ह्रास अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिंता का विषय है।
8.4.6 X-किरणें
वैद्युतचुंबकीय स्पेक्ट्रम के UV भाग के पश्चात
8.4.7 गामा किरणें
ये वैद्युतचुंबकीय स्पेक्ट्रम के ऊपरी आवृत्ति के क्षेत्र में होती हैं तथा इनकी तरंगदैर्घ्य लगभग
सारणी 8.1 में विभिन्न प्रकार की वैद्युतचुंबकीय तरंगों, उनके उत्पादन एवं संसूचन को सार रूप में प्रस्तुत किया गया है। जैसा कि पहले बताया गया है, विभिन्न किरणों के क्षेत्रों के मध्य कोई तीक्ष्ण सीमाएँ नहीं हैं तथा ये दूसरे क्षेत्रों में भी व्यापित होते हैं।
सारणी 8.1 विभिन्न वैद्युतचुंबकीय तरंगों के अभिलक्षण
प्रकार | तरंगदैर्घ्य का परास | उत्पादन | संसूचन |
---|---|---|---|
रेडियो तरंगें | एरियल (aerial) में इलेक्ट्रॉनों का द्रत त्वरण या मंदन |
अभिग्राहक के एरियल | |
सूक्ष्म तरंगें | क्लेस्ट्रॉन या मेग्नाट्रॉन वाल्व | बिंदु संपर्क डायोड | |
अवरक्त तरंगें | परमाणुओं एवं अणुओं के कंपन | थर्मोपाइल, बोलोमीटर, अवरक्त फोटोग्राफिक फिल्म |
|
प्रकाश तरंगें | परमाणु में इलेक्ट्रॉन, जब उच्चतर ऊर्जा स्तर से निम्नतर ऊर्जा स्तर पर संक्रमण करते हैं |
मानवीय नेत्र, फोटो सेल, फोटोग्राफिक फिल्म |
|
पराबैंगनी प्रकाश तरंगें | परमाणु के आंतरिक शैलों में इलेक्ट्रॉनों का एक ऊर्जा स्तर से दूसरे ऊर्जा स्तर पर संक्रमण |
फोटो सेल फोटोग्राफिक फिल्म |
|
X-किरण नलिका अथवा आंतरिक शैलों के इलेक्ट्रॉन |
फोटोग्राफिक फिल्म, गीगर ट्यूब, आयनीकरण प्रकोष्ठ |
||
गामा किरणें | नाभिकों का रेडियोऐक्टिव क्षय | फोटोग्राफिक फिल्म, गीगर ट्यूब, आयनीकरण प्रकोष्ठ |
सारांश
1. मैक्सवेल ने ऐम्पियर के नियम में एक विसंगति पाई तथा इस विसंगति को दूर करने के लिए एक अतिरिक्त धारा के अस्तित्व का सुझाव दिया जिसे विस्थापन धारा कहते हैं। विस्थापन धारा समय के साथ परिवर्तित होने वाले विद्युत क्षेत्र के कारण उत्पन्न होती है और इसको इस प्रकार लिख सकते हैं
यह ठीक उसी प्रकार चुंबकीय क्षेत्र के स्रोत का कार्य करती है जैसे कि चालन धारा।
2. एक त्वरित आवेश वैद्युतचुंबकीय तरंगें उत्पन्न करता है। आवर्तीय रूप से,
3. कुछ मीटर कोटि तरंगदैर्घ्य वाली वैद्युतचुंबकीय तरंगें प्रयोगशाला में सबसे पहले 1887 में हर्ट्ज़ द्वारा उत्पन्न व संसूचित की गईं। इस प्रकार उन्होंने मैक्सवेल की मौलिक भविष्यवाणी की पुष्टि की।
4. किसी वैद्युतचुंबकीय तरंग में विद्युत तथा चुंबकीय क्षेत्र, दिक्काल में ज्यावक्रीय ढंग से दोलन करते हैं। दोलनशील विद्युत व चुंबकीय क्षेत्र
ये परस्पर निम्नलिखित सूत्र द्वारा संबंधित हैं :
5. निर्वात में वैद्युतचुंबकीय तरंग की चाल
प्रकाश एक वैद्युतचुंबकीय तरंग है इसलिए
प्रकाश या वैद्युतचुंबकीय तरंगों की किसी भौतिक माध्यम में चाल
6. वैद्युतचुंबकीय तरंगों का स्पेक्ट्रम सिद्धांततः तरंगों के अनंत परिसर में विस्तृत होता है।
ये द्रव्य से विद्युत तथा चुंबकीय क्षेत्रों के द्वारा पारस्परिक क्रिया करती हैं जिससे सभी द्रव्यों में विद्यमान आवेश दोलन प्रारंभ कर देते हैं। विस्तृत पारस्परिक क्रिया तथा इस प्रकार अवशोषण, प्रकीर्णन आदि की क्रिया विधि em तरंग की तरंगदैर्घ्य तथा माध्यम के परमाणु एवं अणुओं की प्रकृति पर निर्भर करती है।
विचारणीय विषय
1. विभिन्न प्रकार की वैद्युतचुंबकीय तरंगों का मौलिक अंतर उनकी तरंगदैर्घ्यों अथवा आवृत्तियों में निहित है क्योंकि ये सभी निर्वात में एक ही चाल से गुजरती हैं। परिणामस्वरूप, तरंगें पदार्थ से अपनी पारस्परिक क्रिया करने की विधि में बहुत भिन्न हैं।
2. त्वरित आवेशित कण वैद्युतचुंबकीय ऊर्जा विकिरित करते हैं। वैद्युतचुंबकीय तरंग की तरंगदैर्घ्य प्रायः तरंग विकीर्णक निकाय के आमाप (साइज़) पर निर्भर करती है। इस प्रकार से
3. अवरक्त तरंगें जिनकी आवृत्ति दृश्य प्रकाश से कम होती है, न केवल इलेक्ट्रॉनों को कंपित करती हैं वरन् पदार्थ के सभी परमाणुओं अथवा अणुओं को भी कंपित करती हैं। यह कंपन आंतरिक ऊर्जा को बढ़ाता है तथा परिणामस्वरूप ताप को भी। यही कारण है कि अवरक्त तरंगों को प्रायः ऊष्णता तरंगें कहते हैं।
4. हमारी आँख की संवेदनशीलता का केंद्र सूर्य के तरंगदैर्घ्य वितरण के केंद्र पर पड़ता है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि मानव इस प्रकार विकसित हुआ है कि उसकी दृष्टि उन तरंगदैर्घ्यों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील है जो सूर्य के विकिरणों में सर्वाधिक प्रबल हैं।