अध्याय 01 वैद्युत आवेश तथा क्षेत्र
1.1 भूमिका
हम सभी को, विशेषकर शुष्क मौसम में, स्वेटर अथवा संश्लिष्ट वस्त्रों को शरीर से उतारते समय चट-चट की ध्वनि सुनने अथवा चिनगारियाँ देखने का अनुभव होगा। क्या आपने कभी इस परिघटना का स्पष्टीकरण खोजने का प्रयास किया है? विद्युत विसर्जन का एक अन्य सामान्य उदाहरण आकाश में गर्जन के समय तड़ित दिखाई देना है। विद्युत झटके के संवेदन का अनुभव हमें उस समय भी होता है जब हम किसी कार का दरवाज़ा खोलते हैं अथवा जब हम अपनी बस की सीट पर खिसकने के पश्चात उसमें लगी लोहे की छड़ को पकड़ते हैं। इन अनुभवों के होने के कारण हमारे शरीर में से होकर उन वैद्युत आवेशों का विसर्जित होना है जो विद्युतरोधी पृष्ठों पर रगड़ के कारण एकत्र हो जाते हैं। आपने यह भी सुना होगा कि यह वैद्युत आवेश (स्थिरवैद्युत) के उत्पन्न होने के कारण है। इस अध्याय तथा अगले अध्याय में भी हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे। स्थिर से तात्पर्य है वह सब कुछ जो समय के साथ परिवर्तित अथवा गतिमय नहीं होता। स्थिरवैद्युतिकी के अंतर्गत हम स्थिर आवेशों द्वारा उत्पन्न बलों, क्षेत्रों तथा विभवों के विषय में अध्ययन करते हैं।
1.2 वैद्युत आवेश
इतिहास के अनुसार लगभग 600 ई. पूर्व हुई इस तथ्य की खोज का श्रेय, कि ऊन अथवा रेशमी-वस्त्र से रगड़ा गया ऐम्बर हलकी वस्तुओं को आकर्षित करता है, ग्रीस देश के मिलेटस के निवासी थेल्स को जाता है। ‘इलेक्ट्रिसिटी’ शब्द भी ग्रीस की भाषा के शब्द इलेक्ट्रॉन से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ ऐम्बर है। उस समय पदार्थों के ऐसे बहुत से युगल ज्ञात थे जो परस्पर रगड़े
(a)
(b)
(c)
चित्र 1.1 छड़ें: सजातीय आवेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित तथा विजातीय आवेश एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।
जाने पर भूसे के तिनकों, सरकंडे की गोलियों, कागज़ के छोटे टुकड़ों आदि हलकी वस्तुओं को आकर्षित कर लेते थे।
यह भी प्रेक्षित किया गया कि यदि ऊन अथवा रेशम के कपड़े से रगड़ी हुई दो काँच की छड़ों को एक-दूसरे के निकट लाएँ तो वे एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करती हैं [चित्र 1.1(a)]। ऊन की वे लड़ियाँ अथवा रेशम के कपड़े के वे टुकड़े जिनसे इन छड़ों को रगड़ा गया था, वे भी परस्पर एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं परंतु काँच की छड़ तथा ऊन एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। इसी प्रकार, बिल्ली की समूर से रगड़ी हुई दो
प्लास्टिक की छड़ें एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करती हैं [चित्र 1.1(b)] परंतु समूर को आकर्षित करती हैं। इसके विपरीत, प्लास्टिक की छड़ें काँच की छड़ों को आकर्षित करती हैं [चित्र 1.1(c)] तथा सिल्क अथवा ऊन जिससे काँच की छड़ों को रगड़ा गया था, को प्रतिकर्षित करती हैं। काँच की छड़ समूर को प्रतिकर्षित करती है।
वर्षों के प्रयास तथा सावधानीपूर्वक किए गए प्रयोगों एवं उनके विश्लेषणों द्वारा सरल प्रतीत होने वाले ये तथ्य स्थापित हो पाए हैं। विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा किए गए बहुत से सावधानीपूर्ण अध्ययनों के पश्चात यह निष्कर्ष निकाला गया है कि एक राशि होती है, जिसे वैद्युत आवेश कहते हैं और यह केवल दो प्रकार के ही हो सकते हैं। वैद्युत आवेश कहलाने वाली राशि के केवल दो प्रकार ही होते हैं। हम कहते हैं कि प्लास्टिक एवं काँच की छड़, रेशम, समूर, सरकंडे की गोलियाँ आदि पिंड विद्युन्मय हो गए हैं। रगड़ने पर ये वैद्युत आवेश अर्जित कर लेते हैं। आवेश दो प्रकार के होते हैं तथा हम यह पाते हैं कि (i) सजातीय आवेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित तथा (ii) विजातीय आवेश एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। वह गुण जो दो प्रकार के आवेशों में भेद करता है, आवेश की ध्रुवता कहलाता है।
जब काँच की छड़ को रेशम से रगड़ते हैं तो छड़ एक प्रकार का आवेश अर्जित करती है तथा रेशम दूसरे प्रकार का आवेश अर्जित करता है। यह उन सभी वस्तुओं के युगल के लिए सत्य है जो विद्युन्मय होने के लिए परस्पर रगड़े जाते हैं। अब यदि विद्युन्मय काँच की छड़ को उस रेशम के संपर्क में लाते हैं जिससे उसे रगड़ा गया था, तो वे अब एक-दूसरे को आकर्षित नहीं करते। ये अब अन्य हलकी वस्तुओं को भी आकर्षित अथवा प्रतिकर्षित नहीं करते जैसा कि ये विद्युन्मय होने पर कर रहे थे।
इस प्रकार, रगड़ने के पश्चात वस्तुओं द्वारा अर्जित आवेश आवेशित वस्तुओं को एक-दूसरे के संपर्क में लाने पर लुप्त हो जाता है। इन प्रेक्षणों से आप क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं? यह तो केवल इतना बताता है कि वस्तुओं द्वारा अर्जित विजातीय आवेश एक-दूसरे के प्रभाव को निष्फल कर देते हैं। इसीलिए अमेरिकी वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रेंकलिन ने आवेशों को धनात्मक तथा ॠणात्मक कहा। परिपाटी के अनुसार काँच की छड़ अथवा बिल्ली के समूर पर आवेश धनात्मक कहलाता है तथा प्लास्टिक-छड़ अथवा रेशम पर आवेश ऋणात्मक कहलाता है। जब किसी वस्तु पर कोई आवेश होता है तो वह वस्तु विद्युन्मय अथवा आवेशित (आविष्ट) कही जाती है। जब उस पर कोई आवेश नहीं होता तब उसे अनावेशित कहते हैं।
आवेशों की उपस्थिति के संसूचन के लिए एक सरल उपकरण स्वर्ण पत्र विद्युतदर्शी है [चित्र 1.2 (a)]। इसमें एक बॉक्स में धातु की एक छड़ ऊर्ध्वाधरतः लगी होती है जिसके निचले सिरे पर सोने के वर्क की दो पट्टियाँ बँधी होती हैं। जब कोई आवेशित वस्तु छड़ के ऊपरी सिरे को छूती है तो छड़ में होता हुआ आवेश सोने के वर्कों पर आ जाता है और वे एक-दूसरे से दूर हट जाते हैं। आवेश जितना अधिक होता है, वर्कों के निचले सिरों के बीच उतनी ही अधिक दूरी हो जाती है।
आइए, अब यह समझें कि द्रव्य से बनी वस्तुएँ क्यों आवेश को अर्जित करती हैं।
सभी पदार्थ परमाणुओं और/अथवा अणुओं से बने हैं। यद्यपि वस्तुएँ सामान्यतः वैद्युत उदासीन होती हैं, उनमें आवेश तो होते हैं परंतु उनके ये आवेश ठीक-ठीक संतुलित होते हैं। अणुओं को सँभालने वाला रासायनिक बल, ठोसों में परमाणुओं को एकसाथ थामे रखने वाले बल, गोंद का आसंजक बल, पृष्ठ तनाव से संबद्ध बल-इन सभी बलों की मूल प्रकृति वैद्युतीय है, और ये आवेशित कणों के बीच लगने वाले विद्युत बलों से उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार, वैद्युतचुंबकीय बल सर्वव्यापी
है और यह हमारे जीवन से संबद्ध प्रत्येक क्षेत्र में सम्मिलित है। अत: यह आवश्यक है कि हम इस प्रकार के बल के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करें।
किसी उदासीन वस्तु को आवेशित करने के लिए हमें उससे एक प्रकार के आवेश को जोड़ने अथवा हटाने की आवश्यकता होती है। जब हम यह कहते हैं कि कोई वस्तु आवेशित है तो हम सदैव ही इस आवेश के आधिक्य अथवा अभाव का उल्लेख करते हैं। ठोसों में कुछ इलेक्ट्रॉन परमाणु में कम कसकर आबद्ध होने के कारण, वे आवेश होते हैं जो एक वस्तु से दूसरी वस्तु में स्थानांतरित हो जाते हैं। इस प्रकार कोई वस्तु अपने कुछ इलेक्ट्रॉन खोकर धनावेशित हो सकती है। इसी प्रकार किसी वस्तु को इलेक्ट्रॉन देकर ॠणावेशित भी बनाया जा सकता है। जब हम काँच की छड़ को रेशम से रगड़ते हैं तो छड़ के कुछ
काँच की स्वर्ण पत्र खिड़की (a)
(b)
चित्र 1.2 विद्युतदर्शी (a) स्वर्ण पत्र विद्युतदर्शी
(b) सरल विद्युतदर्शी की रूपरेखा। इलेक्ट्रॉन रेशम के कपड़े में स्थानांतरित हो जाते हैं। इस प्रकार छड़ धनावेशित तथा रेशम ऋणावेशित हो जाता है। रगड़ने की प्रक्रिया में कोई नया आवेश उत्पन्न नहीं होता। साथ ही स्थानांतरित होने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या वस्तु में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या की तुलना में एक बहुत छोटा अंश होती है।
1.3 चालक तथा विद्युतरोधी
कुछ पदार्थ तुरंत ही अपने में से होकर विद्युत को प्रवाहित होने देते हैं जबकि कुछ अन्य ऐसा नहीं करते। जो पदार्थ आसानी से अपने में से होकर विद्युत को प्रवाहित होने देते हैं उन्हें चालक कहते हैं। उनमें ऐसे वैद्युत आवेश (इलेक्ट्रॉन) होते हैं जो पदार्थ के भीतर गति के लिए अपेक्षाकृत स्वतंत्र होते हैं। धातुएँ, मानव तथा जंतु शरीर और पृथ्वी चालक हैं। काँच, पॉर्सेलेन, प्लास्टिक, नॉयलोन, लकड़ी जैसी अधिकांश अधातुएँ अपने से होकर प्रवाहित होने वाली विद्युत पर उच्च प्रतिरोध लगाती हैं। इन्हें विद्युतरोधी कहते हैं। अधिकांश पदार्थ ऊपर वर्णित इन दो वर्गों में से किसी एक में आते हैं।*
जब कुछ आवेश किसी चालक पर स्थानांतरित होता है तो वह तुरंत ही उस चालक के समस्त पृष्ठ पर फैल जाता है। इसके विपरीत यदि कुछ आवेश किसी विद्युतरोधी को दें तो वह वहीं पर रहता है। ऐसा क्यों होता है, यह आप अगले अध्याय में सीखेंगे।[^0]
पदार्थों का यह गुण हमें बताता है कि सूखे बालों में कंघी करने अथवा रगड़ने पर नॉयलोन या प्लास्टिक की कंघी क्यों आवेशित हो जाती है, परंतु धातु की वस्तुएँ जैसे चम्मच आवेशित क्यों नहीं होती? धातुओं से आवेश का क्षरण हमारे शरीर से होकर धरती में हो जाता है, ऐसा होने का कारण यह है कि धातु तथा हमारा शरीर दोनों ही विद्युत के अच्छे चालक हैं। परंतु यदि धातु की छड़ पर लकड़ी अथवा प्लास्टिक का हैंडिल लगा है और उसके धातु के भाग को स्पर्श नहीं किया गया है, तो वह आवेशित होने का संकेत दे देती है।
1.4 वैद्युत आवेश के मूल गुण
हमने यह देखा है कि दो प्रकार के आवेश होते हैं- धनावेश तथा ऋणावेश तथा इनमें एक-दूसरे के प्रभाव को निरस्त करने की प्रवृत्ति होती है। अब, हम यहाँ वैद्युत आवेश के अन्य गुणों का वर्णन करेंगे।
यदि आवेशित वस्तुओं का साइज़ उनके बीच की दूरी की तुलना में बहुत कम होता है तो हम उन्हें बिंदु आवेश मानते हैं। यह मान लिया जाता है कि वस्तु का संपूर्ण आवेश आकाश में एक बिंदु पर संकेंद्रित है।
1.4.1 आवेशों की योज्यता
अब तक हमने आवेश की परिमाणात्मक परिभाषा नहीं दी है; इसे हम अगले अनुभाग में समझेंगे। अंतरिम रूप में हम यह मानेंगे कि ऐसा किया जा सकता है और फिर आगे बढ़ेंगे। यदि किसी निकाय में दो बिंदु आवेश
1.4.2 वैद्युत आवेश संरक्षित है
हम इस तथ्य की ओर पहले ही संकेत दे चुके हैं कि जब वस्तुएँ रगड़ने पर आवेशित होती हैं तो एक वस्तु से दूसरी वस्तु में इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण होता है, कोई नया आवेश उत्पन्न नहीं होता है, और न ही आवेश नष्ट होता है। वैद्युत आवेशयुक्त कणों को दृष्टि में लाएँ तो हमें आवेश के संरक्षण की धारणा समझ में आएगी। जब हम दो वस्तुओं को परस्पर रगड़ते हैं तो एक वस्तु जितना आवेश प्राप्त करती है, दूसरी वस्तु उतना आवेश खोती है। बहुत सी आवेशित वस्तुओं के किसी वियुक्त निकाय के भीतर, वस्तुओं में अन्योन्य क्रिया के कारण, आवेश पुनः वितरित हो सकते हैं, परंतु यह पाया गया है कि वियुक्त निकाय का कुल आवेश सदैव संरक्षित रहता है। आवेश-संरक्षण को प्रायोगिक रूप से स्थापित किया जा चुका है।
यद्यपि किसी प्रक्रिया में आवेशवाही कण उत्पन्न अथवा नष्ट किए जा सकते हैं, परंतु किसी वियुक्त निकाय के नेट आवेश को उत्पन्न करना अथवा नष्ट करना संभव नहीं है। कभी-कभी प्रकृति
है। इस प्रकार उत्पन्न प्रोटॉन तथा इलेक्ट्रॉन पर, परिमाण में समान एवं विजातीय (विपरीत) आवेश उत्पन्न होते हैं तथा इस रचना से पूर्व और रचना के पश्चात का कुल आवेश शून्य रहता है।
1.4.3 वैद्युत आवेश का क्वांटमीकरण
प्रायोगिक रूप से यह स्थापित किया गया है कि सभी मुक्त आवेश परिमाण में आवेश की मूल इकाई, जिसे
यहाँ
वैद्युत आवेश सदैव
मात्रकों की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली (SI) में आवेश का मात्रक कूलॉम है, जिसका प्रतीक
इस प्रकार,
यदि केवल इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन ही विश्व में आवेश के मूल मात्रक हैं तो सभी प्रेक्षित आवेशों को
किंतु, मूल मात्रक
इस स्थिति की तुलना बिंदु तथा रेखा की ज्यामितीय परिकल्पनाओं से की जा सकती है। दूर से देखने पर कोई बिंदुकित रेखा हमें सतत प्रतीत होती है परंतु वह वास्तव में सतत नहीं होती। जिस प्रकार एक-दूसरे के अत्यधिक निकट के बहुत से बिंदु हमें सतत रेखा का आभास देते हैं, उसी प्रकार एक साथ लेने पर बहुत से छोटे आवेशों का संकलन भी सतत आवेश वितरण जैसा दिखाई देता है।
स्थूल स्तर पर हम ऐसे आवेशों से व्यवहार करते हैं जो इलेक्ट्रॉन
1.5 कूलॉम नियम
कूलॉम नियम दो बिंदु आवेशों के बीच लगे बल के विषय में एक मात्रात्मक प्रकथन है। जब आवेशित वस्तुओं के साइज़ उनको पृथक करने वाली दूरी की तुलना में बहुत कम होते हैं तो ऐसी आवेशित वस्तुओं के साइज़ों की उपेक्षा की जा सकती है और उन्हें बिंदु आवेश माना जा सकता है। कूलॉम ने दो बिंदु आवेशों के बीच लगे बल की माप की और यह पाया कि यह बल दोनों आवेशों के परिमाणों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती है तथा यह दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश कार्य करता है। इस प्रकार यदि दो बिंदु आवेशों
अपने प्रयोगों से किस प्रकार कूलॉम इस नियम तक पहुँचे? कूलॉम ने धातु के दो आवेशित गोलों के बीच लगे बल की माप के लिए ऐंठन तुला* का उपयोग किया। जब दो गोलों के बीच पृथकन प्रत्येक गोले की त्रिज्या की तुलना में बहुत अधिक होता है तो प्रत्येक आवेशित गोले को बिंदु आवेश मान सकते हैं। तथापि आरंभ करते समय गोलों पर आवेश अज्ञात थे। तब वह किस प्रकार समीकरण (1.1) जैसे संबंध को खोज पाए? कूलॉम ने निम्नलिखित सरल उपाय सोचा-मान लीजिए धातु के गोले पर आवेश
कूलॉम नियम जो कि एक सरल गणितीय कथन है, उस तक आरंभ में, ऊपर वर्णित प्रयोगों के आधार पर पहुँचा गया। यद्यपि इन मूल प्रयोगों ने इसे स्थूल स्तर पर स्थापित किया, अवपरमाणुक स्तर
कूलॉम ने अपने नियम की खोज बिना आवेशों के परिमाणों के सही संज्ञान के, की थी। वास्तव में, इसे विपरीत अनुप्रयोग के लिए उपयोग में लाया जा सकता है-कूलॉम के नियम का उपयोग अब हम आवेश के मात्रक को परिभाषित करने के लिए कर सकते हैं। समीकरण (1.1) के संबंध में अब तक
चार्ल्स ऑगस्टिन डे कूलॉम (1736 1806) फ्रांसीसी भौतिकविद कूलॉम ने वेस्टइंडीज में एक फौजी इंजीनियर के रूप में अपना कैरियर आरंभ किया। सन् 1776 में वे पेरिस लौट आए तथा एक छोटी सी संपत्ति बनाकर एकांत में अपना शोध कार्य करने लगे। बल के परिमाण को मापने के लिए इन्होंने एक ऐंठन तुला का आविष्कार किया और इसका उपयोग इन्होंने छोटे आवेशित गोलों के बीच लगने वाले आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बलों को ज्ञात करने में किया। इस प्रकार, सन् 1785 में ये व्युत्क्रम वर्ग नियम को खोज पाए जिसे आज कूलॉम का नियम कहते हैं। इस नियम का पूर्व अनुमान प्रिस्टले तथा कैवेंडिश ने लगा लिया था परंतु कैवेंडिश ने अपने परिणाम कभी प्रकाशित नहीं किए। कूलॉम ने सजातीय तथा विजातीय चुंबकीय ध्रुवों के बीच लगने वाले व्युत्क्रम वर्ग नियम का भी पता लगाया।
अर्थात
(a)
(b)
चित्र 1.3 (a) ज्यामिति तथा
(b) आवेशों के बीच आरोपित बल।
बाद की सुविधा के लिए समीकरण (1.1) के नियतांक
बल एक सदिश है, अतः कूलॉम नियम को सदिश संकेतन में लिखा उत्तम होता है। मान लीजिए
इसी प्रकार 2 से 1 की ओर जाते सदिश को
सदिशों
क्रमशः
समीकरण (1.3) के संबंध में कुछ टिप्पणियाँ प्रासंगिक हैं :
- समीकरण (1.3)
तथा के किसी भी चिह्न, धनात्मक अथवा ॠणात्मक के लिए मान्य है। यदि तथा समान चिह्न के हैं (या तो दोनों ही धनात्मक अथवा दोनों ही ऋणात्मक हैं) तब के अनुदिश है, जो प्रतिकर्षण को प्रदर्शित करता है जैसा सजातीय आवेशों के लिए होना ही चाहिए। यदि तथा के विपरीत चिह्न हैं तब के अनुदिश है, जो आकर्षण को प्रदर्शित करता है तथा विजातीय आवेशों के लिए हम इसी की आशा करते हैं। इस प्रकार हमें सजातीय तथा विजातीय आवेशों के प्रकरणों के लिए पृथक-पृथक समीकरण लिखने की आवश्यकता नहीं है। समीकरण (1.3) दोनों ही प्रकरणों को सही-सही प्रकट कर देती है [चित्र 1.3(b) देखिए]। के कारण पर आरोपित बल को समीकरण (1.3) में 1 तथा 2 में सरल अंतर्परिवर्तन करके प्राप्त किया जा सकता है, अर्थात
इस प्रकार, कूलॉम नियम न्यूटन के गति के तृतीय नियम के अनुरूप ही है।
- कूलॉम नियम (समीकरण 1.3) से निर्वात में स्थित दो आवेशों
तथा के बीच आरोपित बल प्राप्त होता है। यदि आवेश किसी द्रव्य में स्थित हैं अथवा दोनों आवेशों के बीच के रिक्त स्थान में कोई द्रव्य भरा है, तब इस द्रव्य के आवेशित अवयवों के कारण स्थिति जटिल बन जाती है। अगले अध्याय में हम द्रव्य में स्थिरवैद्युतिकी पर विचार करेंगे।
1.6 बहुल आवेशों के बीच बल
दो आवेशों के बीच पारस्परिक वैद्युत बल कूलॉम नियम द्वारा प्राप्त होता है। उस स्थिति में किसी आवेश पर आरोपित बल का परिकलन कैसे करें, जहाँ उसके निकट एक आवेश न होकर उसे बहुत से आवेश चारों ओर से घेरे हों? निर्वात में स्थित
प्रयोगों द्वारा यह सत्यापित हो चुका है कि किसी आवेश पर कई अन्य आवेशों के कारण बल उस आवेश पर लगे उन सभी बलों के सदिश योग के बराबर होता है जो इन आवेशों द्वारा इस आवेश पर एक-एक कर लगाया जाता है। किसी एक आवेश द्वारा लगाया गया विशिष्ट बल अन्य आवेशों की उपस्थिति के कारण प्रभावित नहीं होता। इसे अध्यारोपण का सिद्धांत कहते हैं।
इस अवधारणा को भलीभाँति समझने के लिए तीन आवेशों
(a)
(b)
चित्र 1.5 (a) तीन आवेशों (b) बहुल आवेशों के निकाय।
निर्दिष्ट किया जाता है, तो
इसी प्रकार
यह भी
इस प्रकार
चित्र 1.5(b) में दर्शाए अनुसार तीन से अधिक आवेशों के निकाय के लिए उपरोक्त परिकलन का व्यापकीकरण किया जा सकता है।
अध्यारोपण के सिद्धांत के अनुसार आवेशों
सदिशों के संयोजन की सामान्य विधि, समांतर चतुर्भुज के नियम द्वारा सदिश योग प्राप्त किया जाता है। वास्तव में मूल रूप से समस्त स्थिरवैद्युतिकी कूलॉम नियम तथा अध्यारोपण के सिद्धांत का एक परिणाम है।
1.7 विद्युत क्षेत्र
माना निर्वात में एक बिंदु आवेश
किसी बिंदु
यहाँ
ध्यान दीजिए आवेश
समीकरण (1.8) विद्युत क्षेत्र के SI मात्रक को N/C* के रूप में परिभाषित करती है।
यहाँ कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की जा सकती हैं:
(i) समीकरण (1.8) से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यदि
दिक्स्थान में किसी बिंदु पर आवेश
इस समस्या (आवेश
(ii) ध्यान दीजिए, आवेश
(iii) धनावेश के कारण विद्युत क्षेत्र आवेश से बाहर की ओर उन्मुख त्रिज्यीय होता है। इसके विपरीत, यदि स्रोत आवेश ऋणात्मक है तो विद्युत क्षेत्र सदिश, हर बिंदु पर त्रिज्यीय, किंतु अंदर की ओर उन्मुख होता है।
(iv) चूँकि आवेश
1.7.1 आवेशों के निकाय के कारण विद्युत क्षेत्र
आइए,
चित्र 1.9 आवेशों के निकाय के कारण किसी बिंदु पर वैद्युत क्षेत्र पृथक-पृथक आवेशों के कारण उस बिंदु पर वैद्युत क्षेत्रों के सदिश योग के बराबर होता है। है, पर विद्युत क्षेत्र को निर्धारित करने के लिए हम कूलॉम नियम तथा अध्यारोपण के सिद्धांत का उपयोग करते हैं।
यहाँ
यहाँ
इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
1.7.2 विद्युत क्षेत्र का भौतिक अभिप्राय
आपको आश्चर्य हो सकता है कि हमें यहाँ विद्युत क्षेत्र की धारणा से परिचित क्यों कराया जा रहा है। वैसे भी, आवेशों के किसी भी निकाय के लिए मापने योग्य राशि किसी आवेश पर लगा बल है जिसे सीधे ही कूलॉम नियम तथा अध्यारोपण सिद्धांत द्वारा (समीकरण 1.5) निर्धारित किया जा सकता है। फिर विद्युत क्षेत्र नामक इस मध्यवर्ती राशि को प्रस्तावित क्यों किया जा रहा है?
स्थिरवैद्युतिकी के लिए विद्युत क्षेत्र की अभिधारणा सुगम तो है पर वास्तव में आवश्यक नहीं है। विद्युत क्षेत्र आवेशों के किसी निकाय के वैद्युत पर्यावरण को अभिलक्षित करने का सुरुचि संपन्न उपाय है। आवेशों के निकाय के चारों ओर के दिक्स्थान में किसी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र आपको यह बताता है कि निकाय को विक्षुब्ध किए बिना यदि इस बिंदु पर कोई एकांक धनात्मक परीक्षण आवेश रखे तो वह कितना बल अनुभव करेगा। विद्युत क्षेत्र आवेशों के निकाय का एक अभिलक्षण है तथा विद्युत क्षेत्र के निर्धारण के लिए आपके द्वारा उस बिंदु पर रखे जाने वाले परीक्षण आवेश पर निर्भर नहीं करता। भौतिकी में क्षेत्र शब्द का उपयोग व्यापक रूप से उस राशि को निर्दिष्ट करने के लिए किया जाता है, जो दिक्स्थान के प्रत्येक बिंदु पर पारिभाषित की जा सके तथा एक बिंदु से दूसरे बिंदु पर परिवर्तित होती हो। चूँकि बल सदिश राशि है, अतः विद्युत क्षेत्र एक सदिश राशि है।
तथापि विद्युत क्षेत्र की अभिधारणा की वास्तविक भौतिक सार्थकता तभी प्रकट होती है जब
मान लीजिए हम त्वरित गति से गतिमान दो दूरस्थ आवेशों
1.8 विद्युत क्षेत्र रेखाएँ
पिछले अनुभाग में हमने विद्युत क्षेत्र का अध्ययन किया। यह एक सदिश राशि है तथा इसे हम सदिशों की भाँति ही निरूपित कर सकते हैं। आइए किसी बिंदु आवेश के कारण
चित्र 1.12 बिंदु आवेश का क्षेत्र।
कोई व्यक्ति अधिक रेखाएँ खींच सकता है। परंतु रेखाओं की संख्या महत्वपूर्ण नहीं है। वास्तव में किसी क्षेत्र में असंख्य रेखाएँ खींची जा सकती हैं। अतः महत्वपूर्ण यह है कि विभिन्न क्षेत्रों में रेखाओं का आपेक्षिक घनत्व क्या है?
चित्र 1.13 विद्युत क्षेत्र प्रबलता की दूरी पर निर्भरता तथा इसका क्षेत्र रेखाओं की संख्या से संबंध। हम कागज़ के पृष्ठ पर चित्र खींचते हैं अर्थात हम द्विविमीय चित्र खींचते हैं, परंतु हम तीन विमाओं में रहते हैं। अतः यदि हमें क्षेत्र रेखाओं के घनत्व का आकलन करना है तो हमें इन रेखाओं के लंबवत अनुप्रस्थ काट के प्रति एकांक क्षेत्रफल में क्षेत्र रेखाओं की संख्या पर विचार करना होता है। चूँकि किसी बिंदु आवेश से दूरी के वर्ग के अनुसार विद्युत क्षेत्र कम होता जाता है तथा आवेश को परिबद्ध करने वाला क्षेत्र दूरी के वर्ग के अनुसार बढ़ता जाता है, परिबद्ध क्षेत्र से गुजरने वाली क्षेत्र रेखाओं की संख्या सदैव नियत रहती है, चाहे आवेश से उस क्षेत्र की दूरी कुछ भी हो।
हमने आरंभ में यह कहा था कि क्षेत्र रेखाएँ दिक्स्थान के विभिन्न बिंदुओं पर विद्युत क्षेत्र की दिशा के विषय में सूचनाएँ पहुँचाती हैं। कुछ क्षेत्र रेखाओं का समुच्चय खींचने पर विभिन्न बिंदुओं पर क्षेत्र रेखाओं का आपेक्षिक संख्या घनत्व (अर्थात अत्यधिक निकटता) उन बिंदुओं पर विद्युत क्षेत्र की आपेक्षिक प्रबलता इंगित करता है। जहाँ क्षेत्र रेखाएँ सघन होती हैं वहाँ क्षेत्र प्रबल होता है तथा जहाँ दूर-दूर होती हैं वहाँ दुर्बल होता है। चित्र 1.13 में क्षेत्र रेखाओं का समुच्चय दर्शाया गया है। हम बिंदुओं
क्षेत्रफल पर अथवा क्षेत्र अवयव द्वारा अंतरित घन कोण* पर, क्षेत्र रेखाओं की निर्भरता को समझने के लिए आइए हम क्षेत्रफल और घन कोण (जो कोण का तीन विमाओं में व्यापकीकरण है) के बीच संबंध स्थापित करने का प्रयास करते हैं। याद कीजिए दो विमाओं में किसी (समतल) कोण की परिभाषा किस प्रकार की जाती है। मान लीजिए कोई छोटा अनुप्रस्थ रेखा अवयव
क्षेत्र रेखाओं के चित्रण की खोज फैराडे ने आवेशित विन्यासों के चारों ओर विद्युत क्षेत्र का मानस प्रत्यक्षीकरण करने के एक अंतर्दर्शी अगणितीय उपाय को विकसित करने के लिए की थी। फैराडे ने इन्हें बल रेखाएँ कहा था। यह पद विशेषकर चुंबकीय क्षेत्रों के प्रकरण के लिए कुछ भ्रामक है। इनके लिए अधिक उचित पद क्षेत्र रेखाएँ (वैद्युत अथवा चुंबकीय) है जिसे हमने इस पुस्तक में अपनाया है।
इस प्रकार विद्युत क्षेत्र रेखाएँ आवेशों के अभिविन्यास के चारों ओर विद्युत क्षेत्र के चित्रात्मक निरूपण का एक उपाय है। व्यापक रूप में, विद्युत क्षेत्र रेखा एक ऐसा वक्र होती है जिसके किसी भी बिंदु पर खींचा गया स्पर्शी उस बिंदु पर लगे नेट बल की दिशा को निरूपित करता है। इस वक्र के किसी बिंदु पर, स्पष्ट रूप से, स्पर्शी द्वारा विद्युत क्षेत्र की दो संभावित दिशाओं में से कोई एक
- घन कोण शंकु की एक माप है।
त्रिज्या के गोले वाले दिए गए शंकु के परिच्छेद पर विचार कीजिए। शंकु के घन कोण की परिभाषा इसे के बराबर मानकर करते हैं, यहाँ शंकु द्वारा गोले पर काटा गया क्षेत्रफल है।
दिशा दर्शाने के लिए वक्र पर तीर का चिह्न अंकित करना आवश्यक है। क्षेत्र रेखा एक दिक्स्थान वक्र अर्थात तीन दिशाओं में वक्र होती है।
चित्र 1.14 में कुछ सरल आवेश विन्यासों के चारों ओर क्षेत्र रेखाएँ दर्शायी गई हैं। जैसा कि पहले वर्णन किया जा चुका है, ये क्षेत्र रेखाएँ तीन विमीय दिक्स्थान में हैं यद्यपि चित्र में इन्हें केवल एक तल में दर्शाया गया है। एकल धनावेश के कारण क्षेत्र रेखाएँ त्रिज्यतः (अरीय) बहिर्मुखी होती हैं जबकि एकल ॠणावेश के कारण क्षेत्र रेखाएँ त्रिज्यतः अंतर्मुखी होती हैं। दो धनावेशों
(i) क्षेत्र रेखाएँ धनावेश से आरंभ होकर ऋणावेश पर समाप्त होती हैं। यदि आवेश एकल है तो ये अनंत से आरंभ अथवा अनंत पर समाप्त हो सकती हैं।
(ii) किसी आवेश मुक्त क्षेत्र में, क्षेत्र रेखाओं को ऐसे संतत वक्र माना जा सकता है जो कहीं नहीं टूटते।
(iii) दो क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को कदापि नहीं काटतीं। (यदि वे ऐसा करें तो प्रतिच्छेदन बिंदु पर क्षेत्र की केवल एक दिशा नहीं होगी, जो निरर्थक है।
(iv) स्थिरवैद्युत क्षेत्र रेखाएँ बंद लूप नहीं बनातीं। यह विद्युत क्षेत्र की संरक्षणात्मक प्रकृति से अनुशासित है (अध्याय 2 देखिए)।
1.9 वैद्युत फ्लक्स
किसी
उपरोक्त वर्णित विद्युत क्षेत्र रेखाओं के चित्रण में हमने देखा कि किसी बिंदु पर क्षेत्र के अभिलंबवत रखे एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली क्षेत्र रेखाओं की संख्या उस बिंदु पर विद्युत क्षेत्र प्रबलता की माप होती है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि हम किसी बिंदु पर
- यह कहना उचित नहीं है कि क्षेत्र रेखाओं की संख्या
के बराबर है। वास्तव में क्षेत्र रेखाओं की संख्या ऐसा विषय है जो हम कितनी क्षेत्र रेखाएँ खींचने का चयन करते हैं, पर निर्भर है। अतः विभिन्न बिंदुओं पर दिए गए क्षेत्रफल से गुजरने वाली क्षेत्र रेखाओं की आपेक्षिक संख्या के ज्ञात होने में ही इनकी भौतिक सार्थकता है।
(a)
(b)
(c)
(d)
चित्र 1.14 विभिन्न आवेश वितरणों के कारण क्षेत्र रेखाएँ।
कोण
चित्र
बहुत से संदर्भों में क्षेत्रफल अवयव के परिमाण के साथ-साथ उसका दिक्विन्यास भी महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण के लिए, किसी जल-प्रवाह में किसी रिंग से गुजरने वाले जल का परिमाण स्वाभाविक रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि आप जल धारा में इसे किस प्रकार पकड़े हुए हैं। यदि आप इसे जल-प्रवाह के अभिलंबवत रखते हैं तो अन्य सभी दिक्विन्यासों की तुलना में इस विन्यास में रिंग से अधिकतम जल गुजरेगा। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि क्षेत्रफल-अवयव को सदिश के समान मानना चाहिए। इसमें परिमाण के साथ दिशा भी होती है। समतलीय क्षेत्र की दिशा कैसे निर्दिष्ट की जाए? स्पष्ट रूप से तल पर अभिलंब तल का दिक्विन्यास निर्दिष्ट करता है। इस प्रकार समतलीय क्षेत्र सदिश की दिशा इसके अभिलंब के
चित्र 1.16 अभिलंब
किसी वक्रित पृष्ठ के क्षेत्रफल को किसी सदिश से कैसे संबद्ध किया जाता है? हम यह कल्पना करते हैं कि वक्रित पृष्ठ बहुत से छोटे-छोटे क्षेत्रफल अवयवों में विभाजित है। इनमें से प्रत्येक छोटा क्षेत्रफल अवयव समतलीय माना जा सकता है और पहले स्पष्टीकरण के अनुसार इससे सदिश संबद्ध किया जा सकता है।
यहाँ एक संदिगता पर ध्यान दीजिए। किसी क्षेत्रफल अवयव की दिशा उसके अभिलंब के अनुदिश होती है। परंतु अभिलंब दो दिशाएँ संकेत कर सकता है। किसी क्षेत्रफल अवयव से संबद्ध सदिश की दिशा का चयन किस प्रकार किया जाता है? इस समस्या का समाधान इस संदर्भ में उचित कुछ परिपाटियों के निर्धारण द्वारा किया गया है। बंद पृष्ठों के प्रकरणों के लिए यह परिपाटी अति सरल है। किसी बंद पृष्ठ के प्रत्येक क्षेत्रफल अवयव से संबद्ध सदिश की दिशा बहिर्मुखी अभिलंब की दिशा मानी जाती है। इसी परिपाटी का उपयोग चित्र 1.16 में किया गया है। इस प्रकार, किसी बंद पृष्ठ के किसी बिंदु पर क्षेत्रफल अवयव सदिश
अब हम वैद्युत फ्लक्स की परिभाषा पर आते हैं। किसी क्षेत्रफल अवयव
जो पहले की भाँति इस क्षेत्रफल अवयव को काटने वाली क्षेत्र रेखाओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती है। यहाँ
समीकरण (1.11) से प्राप्त वैद्युत फ्लक्स की मूल परिभाषा को सैद्धांतिक रूप में, किसी दिए गए पृष्ठ से गुजरने वाले कुल फ्लक्स को परिकलित करने में उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए हमें यह करना होता है कि हम पहले पृष्ठ को छोटे-छोटे क्षेत्रफल अवयवों में विभाजित करते हैं और फिर प्रत्येक अवयव के लिए फ्लक्स परिकलित करके उन्हें जोड़कर कुल फ्लक्स प्राप्त कर लेते हैं। अतः पृष्ठ
यहाँ सन्निकटन चिह्न लगाने का कारण यह है कि हमने छोटे क्षेत्रफल अवयव पर विद्युत क्षेत्र
1.10 वैद्युत द्विध्रुव
परिमाण में समान एवं विजातीय बिंदु आवेशों
प्रत्यक्ष रूप से वैद्युत द्विध्रुव का कुल आवेश शून्य होता है। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि द्विध्रुव का विद्युत क्षेत्र शून्य है। चूँकि आवेश
1.10.1 वैद्युत द्विध्रुव के कारण क्षेत्र
आवेशों के युगल
(i) जब बिंदु द्विध्रुव के अक्ष पर है, (ii) जब बिंदु द्विध्रुव के विषुवतीय तल, अर्थात द्विध्रुव अक्ष के केंद्र से गुजरने वाले द्विध्रुव अक्ष के लंबवत तल में है। किसी व्यापक बिंदु
(i) अक्ष पर स्थित बिंदुओं के लिए
मान लीजिए बिंदु
यहाँ
(a)
(b)
चित्र 1.17 (a) अक्ष पर स्थित किसी बिंदु, (b) द्विध्रुव के विषुवतीय तल पर स्थित किसी बिंदु पर द्विध्रुव का विद्युत क्षेत्र। द्विध्रुव आघूर्ण
(ii) विषुवतीय तल पर स्थित बिंदुओं के लिए
दो आवेशों
समान हैं।
अधिक दूरियों
समीकरणों (1.15) तथा (1.18) से स्पष्ट है कि अधिक दूरियों पर द्विध्रुव क्षेत्र में
अर्थात यह एक सदिश है जिसका परिमाण आवेश
द्विध्रुव अक्ष के किसी बिंदु पर
विषुवतीय तल के किसी बिंदु पर
इस महत्वपूर्ण तथ्य पर ध्यान दीजिए कि द्विध्रुव क्षेत्र अधिक दूरियों पर
हम उसके बारे में सोच सकते हैं- जब द्विध्रुव आमाप
1.10.2 द्विध्रुवों की भौतिक सार्थकता
अधिकांश अणुओं में धनावेशों तथा ऋणावेशों के केंद्र एक ही स्थान पर होते हैं। इसीलिए इनके द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होते हैं।
उदाहरण
(a)
(b)
चित्र 1.18
हल : (a) बिंदु
धनात्मक बिंदु आवेशों के संग्रह को केंद्र की परिभाषा संहति केंद्र की ही भाँति की जाती है जिसके अनुसार
बिंदु
इस उदाहरण में अनुपात
यहाँ
द्विध्रुव अक्ष पर विद्युत क्षेत्र की दिशा सदैव द्विध्रुव आघूर्ण सदिश के अनुदिश (अर्थात
अतः
द्विध्रुव आघूर्ण की दिशा
बिंदु
स्पष्ट है कि इन दो समान परिमाण के बलों के
(a) की ही भाँति द्विध्रुव के अक्ष के अभिलंबवत किसी बिंदु पर द्विध्रुव विद्युत क्षेत्र के लिए सीधे ही सूत्र के उपयोग द्वारा हम इसी परिणाम की अपेक्षा कर सकते हैं-
इस प्रकरण में विद्युत क्षेत्र की दिशा आघूर्ण सदिश की दिशा के विपरीत है। तथापि प्राप्त परिणाम पहले प्राप्त हुए परिणाम के अनुरूप हैं।
1.11 एकसमान बाह्य क्षेत्र में द्विध्रुव
चित्र 1.19 में दर्शाए अनुसार एकसमान विद्युत क्षेत्र
यहाँ आवेश
चित्र 1.19 एकसमान विद्युत क्षेत्र में द्विध्रुव। तथा बलयुग्म की भुजा (दो प्रतिसमांतर बलों के बीच लंबवत दूरी) के गुणनफल के बराबर होता है।
बल आघूर्ण का परिमाण
इसकी दिशा कागज़ के तल के अभिलंबवत इससे बाहर की ओर है।
यह बल आघूर्ण द्विध्रुव को क्षेत्र
जब क्षेत्र एकसमान नहीं होता तब क्या होता है? स्पष्ट है, उस प्रकरण में नेट बल शून्येतर हो सकता है। इसके अतिरिक्त, व्यापक रूप से निकाय पर पहले की ही भाँति एक बल आघूर्ण कार्य करेगा। यहाँ व्यापक प्रकरण अंतर्ग्रस्त है, अतः आइए ऐसी सरल स्थिति पर विचार करते हैं जिसमें
चित्र 1.20 स्वतः स्पष्टीकरण करता है। इसे आसानी से देखा जा सकता है कि
इससे हमारा ध्यान घर्षण विद्युत के सामान्य प्रेक्षणों पर जाता है। शुष्क बालों में फेरी गई कंघी कागज़ के छोटे टुकड़ों को आकर्षित करती है। जैसाकि हम जानते हैं कि कंघी घर्षण द्वारा आवेश अर्जित करती है। परंतु कागज़ आवेशित नहीं है तो फिर इस आकर्षक बल का स्पष्टीकरण कैसे करें? पिछली चर्चा से संकेत
(a)
नेट बल की दिशा
बढ़ते क्षेत्र की दिशा
(b)
चित्र 1.20 द्विध्रुव पर वैद्युत बल (a)
रैखिक आवेश
पृष्ठीय आवेश
आयतनी आवेश
चित्र 1.21 रैखिक, पृष्ठीय, आयतनी घनत्वों की परिभाषा। प्रत्येक प्रकरण में चुने गए
अवयव
1.12 संतत आवेश वितरण
अब तक हमने विविक्त आवेशों
ऐसा हम चालक के पृष्ठ के विभिन्न बिंदुओं पर कर सकते हैं और इस प्रकार एक संतत फलन
इसी प्रकार के दृष्टिकोण रैखिक आवेश वितरणों तथा आयतनी आवेश वितरणों पर भी लागू होते हैं। किसी तार का रैखिक आवेश घनत्व
द्वारा की जाती है। यहाँ
द्वारा की जाती है। यहाँ
यहाँ संतत आवेश वितरण की हमारी धारणा यांत्रिकी में हमारे द्वारा अपनाई गई संतत संहति वितरण की धारणा के ही समान है। जब हम किसी द्रव के घनत्व का उल्लेख करते हैं तो उस
- सूक्ष्मदर्शीय स्तर पर, आवेश वितरण असंतत होता है। पृथक आवेश एक आवेशरहित मध्यवर्ती स्थान से पृथकृत होते हैं।
समय वास्तव में हम उसके स्थूल घनत्व का ही उल्लेख कर रहे होते हैं। हम द्रव को एक संतत तरल मान लेते हैं तथा उसकी विविक्त आणविक रचना की उपेक्षा कर देते हैं।
विविक्त आवेशों के निकाय के कारण विद्युत क्षेत्र प्राप्त करने [समीकरण (1.10)] की ही भाँति लगभग इसी ढंग से संतत आवेश वितरण के कारण विद्युत क्षेत्र प्राप्त किया जा सकता है। मान लीजिए किसी दिक्स्थान में संतत आवेश वितरण का आवेश घनत्व
अब स्थिति सदिश
यहाँ
ध्यान दीजिए
1.13 गाउस नियम
वैद्युत फ्लक्स की अवधारणा के सरल अनुप्रयोग के रूप में आइए किसी
क्षेत्रफल अवयव
यहाँ हमने एकल आवेश
चूँकि एकांक सदिश
गोले से गुजरने वाला कुल फ्लस्क सभी क्षेत्र-अवयवों से गुजरने वाले फ्लक्सों का योग करने पर प्राप्त होता है
चित्र 1.22 उस गोले से
गुजरने वाला फ्लक्स जिसके
केंद्र पर बिंदु आवेश
परिबद्ध है।
चूँकि गोले का प्रत्येक क्षेत्र अवयव आवेश से समान दूरी
चित्र 1.23 सिलिंडर के पृष्ठ से गुजरने वाले
समीकरण (1.30) स्थिरवैद्युतिकी के व्यापक परिणाम, जिसे गाउस नियम कहते हैं, का एक सरल दृष्टांत है। हम बिना उपपत्ति के गाउस नियम का इस प्रकार उल्लेख करते हैं-
किसी बंद पृष्ठ
यहाँ
इस नियम से यह उपलक्षित होता है कि यदि किसी बंद पृष्ठ द्वारा कोई आवेश परिबद्ध नहीं किया गया है तो उस पृष्ठ से गुजरने वाला कुल फ्लक्स शून्य होता है। इसे हम चित्र 1.23 की सरल अवस्थिति में सुस्पष्ट देख सकते हैं।
यहाँ विद्युत क्षेत्र एकसमान है तथा हम एक ऐसे बंद बेलनाकार पृष्ठ के विषय में विचार कर रहे हैं जिसमें बेलन का अक्ष एकसमान क्षेत्र
यहाँ
गाउस नियम समीकरण (1.31) का अत्यधिक महत्व इस कारण से भी है कि यह व्यापक रूप से सत्य है, तथा केवल उन्हीं सरल प्रकरणों जिन पर हमने ऊपर विचार किया था, लागू नहीं होता है, वरन् सभी प्रकरणों में इसका प्रयोग किया जा सकता है। इस नियम के बारे में, आइए कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर ध्यान दें-
(i) गाउस नियम प्रत्येक बंद पृष्ठ, चाहे उसकी आकृति तथा आमाप कुछ भी हो, के लिए सत्य है।
(ii) गाउस नियम समीकरण (1.31) के दक्षिण पक्ष के पद
(iii) उन परिस्थितियों जिनमें ऐसे पृष्ठ का चयन किया जाता है कि कुछ आवेश पृष्ठ के भीतर तथा कुछ पृष्ठ के बाहर होते हैं, विद्युत क्षेत्र [जिसका फ्लक्स समीकरण (1.31) के वाम पक्ष में दृष्टिगोचर होता है]
नियम के समीकरण के दक्षिण पक्ष में पद
(iv) गाउस नियम के अनुप्रयोग के लिए चयन किए जाने वाले पृष्ठ को गाउसीय पृष्ठ कहते हैं। आप किसी भी गाउसीय पृष्ठ का चयन करके गाउस नियम लाग कर सकते हैं। तथापि, सावधान रहिए गाउसीय पृष्ठ को किसी भी विविक्त आवेश से नहीं गुजरना चाहिए। इसका कारण यह है कि विविक्त आवेशों के निकाय के कारण विद्युत क्षेत्र को किसी भी आवेश की अवस्थिति पर भलीभाँति परिभाषित नहीं किया गया है। (जैसे ही आप किसी आवेश के निकट जाते हैं, विद्युत क्षेत्र सभी मर्यादाओं से बाहर विकसित होता जाता है) परंतु गाउसीय पृष्ठ संतत आवेश वितरण से गुजर सकता है।
(v) जब निकाय में कुछ सममिति होती है तो विद्युत क्षेत्र के परिकलन को अधिक आसान बनाने के लिए गाउस नियम प्रायः उपयोगी होता है। उचित गाउसीय पृष्ठ का चयन इसे सुविधाजनक बना देता है।
(vi) अंत में, गाउस नियम कूलॉम नियम में अंतर्निहित दूरी पर व्युत्क्रम वर्ग निर्भरता पर आधारित है। गाउस नियम का कोई उल्लंघन व्युत्क्रम वर्ग नियम से विचलन को संकेत करेगा।
1.14 गाउस नियम के अनुप्रयोग
जैसी कि हम ऊपर चर्चा कर चुके हैं कि किसी व्यापक आवेश वितरण के कारण विद्युत क्षेत्र समीकरण (1.27) द्वारा व्यक्त किया जाता है। कुछ विशिष्ट प्रकरणों को छोड़कर, व्यवहार में, इस समीकरण में सम्मिलित संकलन (अथवा समाकलन) की प्रक्रिया दिक्स्थान के सभी बिंदुओं पर विद्युत क्षेत्र प्राप्त करने के लिए कार्यान्वित नहीं की जा सकती। तथापि, कुछ सममित आवेश विन्यासों के लिए गाउस नियम का उपयोग करके विद्युत क्षेत्र को सरल ढंग से प्राप्त करना संभव है। कुछ उदाहरणों से इसे आसानी से समझा जा सकता है।
1.14.1 अनंत लंबाई के एकसमान आवेशित सीधे तार के कारण विद्युत क्षेत्र
किसी अनंत लंबाई के एकसमान रैखिक आवेश घनत्व
दर्शाए अनुसार तार के रैखिक अवयवों
विद्युत क्षेत्र परिकलित करने के लिए चित्र 1.26(b) में दर्शाए अनुसार किसी बेलनाकार गाउसीय पृष्ठ की कल्पना कीजिए। चूँकि विद्युत क्षेत्र हर स्थान पर अरीय है, बेलनाकार गाउसीय पृष्ठ के दो सिरों से गुजरने वाला फ्लक्स शून्य है। पृष्ठ के बेलनाकार भाग पर विद्युत क्षेत्र
(a)
(b)
चित्र 1.26 (a) अनंत लंबाई के एकसमान आवेशित पतले सीधे तार के कारण विद्युत क्षेत्र अरीय (त्रिज्यीय) होता है।
(b) एकसमान रैखिक आवेश घनत्व के लंबे पतले तार के लिए गाउसीय पृष्ठ।
गाउसीय पृष्ठ से गुज़रने वाला फ्लक्स
पृष्ठ में
अर्थात
सदिश रूप में किसी भी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र
यहाँ
ध्यान दीजिए, जब हम सदिश
यह भी ध्यान दीजिए कि उपरोक्त चर्चा में यद्यपि पृष्ठ
1.14 .2 एकसमान आवेशित अनंत समतल चादर के कारण विद्युत क्षेत्र
मान लीजिए किसी अनंत समतल चादर (चित्र 1.27) का एकसमान पृष्ठीय आवेश घनत्व
चित्र 1.27 एकसमान आवेशित अनंत आवेश चादर के 34 लिए गाउसीय पृष्ठ।
हम गाउसीय पृष्ठ को चित्र में दर्शाए अनुसार
पृष्ठ 1 के अभिलंबवत एकांक सदिश
अथवा
सदिश रूप में
यहाँ
यदि
किसी परिमित बड़ी समतलीय चादर के लिए समीकरण (1.33), सिरों से दूर समतलीय चादर के मध्यवर्ती क्षेत्रों में सन्निकटतः सत्य है।
1.14.3 एकसमान आवेशित पतले गोलीय खोल के कारण विद्युत क्षेत्र
मान लीजिए
(i) खोल के बाहर विद्युत क्षेत्र-खोल के बाहर ध्रुवांतर
(a)
(b)
चित्र 1.28 किसी बिंदु के लिए जो
(a)
पृष्ठ।
यदि
अथवा
यहाँ
सदिश रूप में,
क्षेत्र है। अतः खोल के बाहर स्थित बिंदुओं पर एकसमान आवेशित गोलीय खोल के कारण विद्युत क्षेत्र इस प्रकार का होता है, जैसे कि खोल का समस्त आवेश उसके केंद्र पर स्थित है।
(ii) खोल के भीतर विद्युत क्षेत्र-चित्र
परिकलनों की ही भाँति गाउसीय पृष्ठ से गुजरने वाला फ्लक्स
अर्थात
अर्थात एकसमान आवेशित पतले गोलीय खोल* के कारण उसके भीतर स्थित सभी बिंदुओं पर विद्युत क्षेत्र शून्य है। यह महत्वपूर्ण परिणाम गाउस नियम का प्रत्यक्ष निष्कर्ष है जो कूलॉम नियम से प्राप्त हुआ है। इस नियम का प्रायोगिक सत्यापन कूलॉम नियम में
सारांश
1. विद्युत तथा चुंबकीय बल परमाणुओं, अणुओं तथा स्थूल द्रव्य के गुणधर्मों का निर्धारण करते हैं।
2. घर्षण विद्युत के सरल प्रयोगों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्रकृति में दो प्रकार के आवेश होते हैं। सजातीय आवेशों में प्रतिकर्षण तथा विजातीय आवेशों में आकर्षण होता है। परिपाटी के अनुसार, रेशम से रगड़ने पर काँच की छड़ पर धनावेश होता है; तथा फर से रगड़ने पर प्लास्टिक की छड़ पर ऋणावेश होता है।
3. चालक अपने में से होकर सरलता से वैद्युत आवेश की गति होने देते हैं जबकि विद्युतरोधी ऐसा नहीं करते। धातुओं में गतिशील आवेश इलेक्ट्रॉन होते हैं; वैद्युत अपघट्यों में धनायन तथा ऋणायन दोनों ही गति करते हैं।
4. वैद्युत आवेशों के तीन गुणधर्म होते हैं : क्वांटमीकरण, योज्यता तथा संरक्षण।
वैद्युत आवेश के क्वांटमीकरण से तात्पर्य है कि किसी वस्तु का कुल आवेश
वैद्युत आवेशों की योज्यता से हमारा तात्पर्य यह है कि किसी निकाय का कुल आवेश उस निकाय के सभी एकाकी आवेशों का बीजगणितीय योग (अर्थात योग करते समय उनके चिह्नों को ध्यान में रखकर) होता है।
वैद्युत आवेशों के संरक्षण से हमारा तात्पर्य यह है कि किसी वियुक्त निकाय (isolated system) का कुल आवेश समय के साथ अपरिवर्तित रहता है। इसका अर्थ यह है कि जब घर्षण द्वारा वस्तुएँ आवेशित की जाती हैं तो आवेशों का एक वस्तु से दूसरी वस्तु में स्थानांतरण होता है, परंतु इस प्रक्रिया में न तो कोई आवेश उत्पन्न होता है और न ही नष्ट होता है।
5. कूलॉम नियम : दो बिंदु आवेशों
यहाँ
6. किसी प्रोटॉन तथा किसी इलेक्ट्रॉन के बीच वैद्युत बल तथा गुरुत्वाकर्षण बल का अनुपात है,
7. अध्यारोपण सिद्धांत : यह सिद्धांत इस गुणधर्म पर आधारित है कि दो आवेशों के बीच लगने वाले आकर्षी अथवा प्रतिकर्षी बल किसी तीसरे (अथवा अधिक) अतिरिक्त आवेश की उपस्थिति से प्रभावित नहीं होते। आवेशों
8. किसी आवेश विन्यास के कारण किसी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र
9. विद्युत क्षेत्र रेखा ऐसा वक्र है जिसके किसी भी बिंदु पर खींचा गया स्पर्शी, वक्र के उस बिंदु पर विद्युत क्षेत्र की दिशा बताता है। क्षेत्र रेखाओं की सापेक्षिक संकुलता विभिन्न बिंदुओं पर विद्युत क्षेत्र की सापेक्षिक तीव्रता को इंगित करती है। प्रबल विद्युत क्षेत्र में रेखाएँ पास-पास तथा दुर्बल क्षेत्र में ये एक-दूसरे से काफी दूर होती हैं। एकसमान (अथवा नियत) विद्युत क्षेत्र में क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे से एकसमान दूरी पर समांतर सरल रेखाएँ होती हैं।
10. क्षेत्र रेखाओं की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ इस प्रकार हैं- (a) आवेशमुक्त दिक्स्थान में क्षेत्र रेखाएँ संतत वक्र होती हैं जो कहीं नहीं टूटतीं। (b) दो क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को कदापि नहीं काट सकतीं। (c) स्थिरवैद्युत क्षेत्र रेखाएँ धनावेश से आरंभ होकर ऋणावेश पर समाप्त हो जाती हैं- ये संवृत पाश (बंद लूप) नहीं बना सकतीं।
11. वैद्युत द्विध्रुव परिमाण में समान विजातीय दो आवेशों
12. किसी वैद्युत द्विध्रुव का इसके निरक्षीय/विषुवतीय समतल (अर्थात इसके अक्ष के लंबवत तथा इसके केंद्र से गुजरने वाले समतल) पर इसके केंद्र से
द्विध्रुव अक्ष पर केंद्र से
इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए कि किसी द्विध्रुव का विद्युत क्षेत्र
13. किसी एकसमान विद्युत क्षेत्र
परंतु किसी नेट बल का अनुभव नहीं करता।
14. विद्युत क्षेत्र
यहाँ
15. गाउस नियम : किसी बंद पृष्ठ
(i) एकसमान रैखिक आवेश घनत्व
यहाँ
(ii) एकसमान पृष्ठीय आवेश घनत्व
यहाँ
(iii) एकसमान पृष्ठीय आवेश घनत्व
यहाँ
खोल के बाहर किसी बिंदु पर आवेशित खोल के कारण विद्युत क्षेत्र इस प्रकार होता है जैसे कि समस्त आवेश खोल के केंद्र पर ही केंद्रित है। यही परिणाम किसी एकसमान आयतन आवेश घनत्व के ठोस गोले के लिए भी सत्य होता है। खोल के अंदर सभी बिंदुओं पर विद्युत क्षेत्र शून्य होता है।
भौतिक राशि | प्रतीक | विमाएँ | मात्रक | टिण्पणी |
---|---|---|---|---|
सदिश क्षेत्रफल-अवयव विद्युत क्षेत्र |
||||
वैद्युत फ्लक्स | ||||
द्विध्रुव आघूर्ण |
विचारणीय विषय
1. आपको यह आश्चर्य हो सकता है कि नाभिक में प्रोटॉन जिन पर धनावेश है, सभी एक साथ कसे रहकर कैसे समाए हुए हैं। वे एक-दूसरे से दूर क्यों नहीं उड़ जाते? आप यह सीखेंगे कि एक तीसरे प्रकार का मूल बल भी है जिसे प्रबल बल कहते हैं और यही बल प्रोटॉनों को एक साथ बाँधे रखता है। परंतु दूरी का वह परिसर जिसमें यह बल प्रभावी होता है, बहुत छोटा
2. कूलॉम बल तथा गुरुत्वाकर्षण बल समान व्युत्क्रम वर्ग नियम का पालन करते हैं। परंतु गुरुत्वाकर्षण बल का केवल एक ही चिह्न (सदैव आकर्षी) होता है, जबकि कूलॉम बल के दोनों चिह्न (आकर्षी तथा प्रतिकर्षी) हो सकते हैं, जिससे विद्युत बलों का निरसन हो सकता है। यही कारण है कि अत्यंत दुर्बल बल होने पर भी गुरुत्व बल प्रकृति में एक प्रबल तथा अधिक व्यापक बल हो सकता है।
3. यदि आवेश के मात्रक को कूलॉम के नियम द्वारा परिभाषित करना है तो कूलॉम के नियम में आनुपातिकता स्थिरांक
4. स्थिरांक
5. आवेश का योज्यता गुणधर्म कोई सुस्पष्ट गुणधर्म नहीं है। यह इस तथ्य से संबंधित है कि वैद्युत आवेश से कोई दिशा संबद्ध नहीं होती, आवेश एक अदिश राशि है।
6. आवेश केवल घूर्णन के अंतर्गत ही अदिश (अथवा अचर/अपरिवर्तनीय) नहीं है; यह आपेक्षिक गति में भी निर्देश फ्रेमों के लिए अचर है। यह कथन प्रत्येक अदिश के लिए सदैव सत्य नहीं है। उदाहरणार्थ, गतिज ऊर्जा घूर्णन के अंतर्गत अदिश है, परंतु यह आपेक्षिक गतियों में निर्देश फ्रेमों के लिए अचर नहीं है, अथवा इस दृष्टि से तो द्रव्यमान भी अचर नहीं है।
7. किसी वियुक्त निकाय के कुल आवेश का संरक्षण एक ऐसा गुणधर्म है जो बिंदु 6 के अंतर्गत आवेश की अदिश प्रकृति पर निर्भर नहीं करता। संरक्षण किसी दिए गए निर्देश फ्रेम में समय की अपरिवर्तनीयता की ओर संकेत करता है। कोई राशि अदिश होते हुए भी संरक्षित नहीं हो सकती ( किसी अप्रत्यास्थ संघट्ट में गतिज ऊर्जा की भाँति)। इसके विपरीत, सदिश राशि का संरक्षण भी हो सकता है (उदाहरण के लिए किसी वियुक्त निकाय का कोणीय संवेग संरक्षण)।
8. वैद्युत आवेश का क्वांटमीकरण प्रकृति का मूल नियम है जिसकी अभी तक व्याख्या नहीं की जा सकी है। रोचक तथ्य यह है कि संहति के क्वांटमीकरण का कोई सदृश (अनुरूप) नियम नहीं है।
9. अध्यारोपण सिद्धांत को सुस्पष्ट नहीं मानना चाहिए अथवा इसे सदिशों के योग के नियम के समान नहीं मानना चाहिए। यह सिद्धांत दो बातें बताता है: किसी आवेश पर दूसरे आवेश के कारण बल किन्हीं अन्य आवेशों की उपस्थिति के कारण प्रभावित नहीं होता तथा यहाँ कोई अतिरिक्त त्रि-पिंड, चतु:-पिंड आदि बल नहीं होते जो केवल तभी उत्पन्न होते हैं जब दो से अधिक आवेश हों।
10. किसी विविक्त आवेश विन्यास के कारण विविक्त आवेशों की अवस्थिति पर विद्युत क्षेत्र परिभाषित नहीं है। संतत आयतन आवेश वितरण के लिए यह वितरण में किसी भी बिंदु पर परिभाषित होता है। किसी पृष्ठीय आवेश वितरण के लिए विद्युत क्षेत्र पृष्ठ के आर-पार विच्छिन्न होता है।
11. किसी आवेश विन्यास जिसमें कुल आवेश शून्य है, के कारण सभी बिंदुओं पर विद्युत क्षेत्र शून्य नहीं होता; उन दूरियों के लिए जो आवेश विन्यास के आकार की तुलना में बड़ी हैं, इसके क्षेत्र में कमी