अध्याय 07 गुरुत्वाकर्षण
7.1 भूमिका
हम अपने आरंभिक जीवन में ही, सभी पदार्थों के पृथ्वी की ओर आकर्षित होने की प्रकृति को जान लेते हैं। जो भी वस्तु ऊपर फेंकी जाती है वह पृथ्वी की ओर गिरती है, पहाड़ से नीचे उतरने की तुलना में पहाड़ पर ऊपर जाने में कहीं अधिक थकान होती है, ऊपर बादलों से वर्षा की बूँदें पृथ्वी की ओर गिरती हैं, तथा अन्य ऐसी ही बहुत सी परिघटनाएँ हैं। इतिहास के अनुसार इटली के भौतिक विज्ञानी गैलीलियो (1564-1642) ने इस तथ्य को मान्यता प्रदान की कि सभी पिण्ड, चाहे उनके द्रव्यमान कुछ भी हों, एकसमान त्वरण से पृथ्वी की ओर त्वरित होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने इस तथ्य का सार्वजनिक निदर्शन किया था। यह कहना, चाहे सत्य भी न हो, परंतु यह निश्चित है कि उन्होंने आनत समतल पर लोटनी पिण्डों के साथ कुछ प्रयोग करके गुरुत्वीय त्वरण का एक मान प्राप्त किया था, जो बाद में किए गए प्रयोगों द्वारा प्राप्त अधिक यथार्थ मानों के काफी निकट था।
आद्य काल से ही बहुत से देशों में तारों, ग्रहों तथा उनकी गतियों के प्रेक्षण जैसी असंबद्ध प्रतीत होने वाली परिघटनाएँ ध्यानाकर्षण का विषय रही हैं। आद्य काल के प्रेक्षणों द्वारा आकाश में दिखाई देने वाले तारों की पहचान की गई, जिनकी स्थिति में सालोंसाल कोई परिवर्तन नहीं होता है। प्राचीन काल से देखे जाने वाले पिण्डों में कुछ अधिक रोचक पिण्ड भी देखे गए, जिन्हें ग्रह कहते हैं, और जो तारों की पृष्ठभूमि में नियमित गति करते प्रतीत होते हैं। ग्रहीय गतियों के सबसे प्राचीन प्रमाणित मॉडल को अब से लगभग 2000 वर्ष पूर्व टॉलमी ने प्रस्तावित किया था। यह ‘भूकेन्द्री’ मॉडल था, जिसके अनुसार सभी आकाशीय पिण्ड तारे, सूर्य तथा ग्रह पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। इस मॉडल की धारणा के अनुसार आकाशीय पिण्डों की संभावित गति केवल वृत्तीय गति ही हो सकती थी। ग्रहों की प्रेक्षित गतियों का वर्णन करने के लिए टॉलमी ने गतियों के जिस विन्यास को प्रतिपादित किया वह बहुत जटिल था। इसके अनुसार ग्रहों को वृत्तों में परिक्रमा करने वाला तथा इन वृत्तों के केन्द्रों को स्वयं एक बड़े वृत्त में गतिशील बताया गया था। लगभग 400 वर्ष के पश्चात भारतीय खगोलज्ञों ने भी इसी प्रकार के सिद्धांत प्रतिपादित किए। तथापि, आर्यभट्ट ( 5 वीं शताब्दी में) ने पहले से ही अपने शोध प्रबन्ध में एक अधिक परिष्कृत मॉडल का वर्णन किया था, जिसे सूर्य केन्द्री मॉडल कहते हैं जिसके अनुसार सूर्य को सभी
ग्रहों की गतियों का केन्द्र माना गया है। एक हजार वर्ष के पश्चात पोलैण्ड के एक ईसाई भिक्षु, जिनका नाम निकोलस कोपरनिकस (1473-1543) था, ने एक पूर्ण विकसित मॉडल प्रस्तावित किया जिसके अनुसार सभी ग्रह, केन्द्रीय स्थान पर स्थित स्थिर सूर्य, के परितः वृत्तों में परिक्रमा करते हैं। गिरजाघर ने इस सिद्धांत पर संदेह प्रकट किया। परन्तु इस सिद्धांत के लब्ध प्रतिष्ठित समर्थकों में एक गैलीलियो थे, जिनपर शासन के द्वारा, आस्था के विरुद्ध होने के कारण, मुकदमा चलाया गया।
लगभग गैलीलियो के ही काल में डेनमार्क के एक कुलीन पुरुष टायको ब्रेह (1546-1601) ने अपना समस्त जीवन काल अपनी नंगी आंखों से सीधे ही ग्रहों के प्रेक्षणों का अभिलेखन करने में लगा दिया। उनके द्वारा संकलित आँकड़ों का बाद में उसके सहायक जोहान्नेस केप्लर (1571-1640) द्वारा विश्लेषण किया गया। उन्होंने इन आँकड़ों को सार के रूप में तीन परिष्कृत नियमों द्वारा प्रतिपादित किया, जिन्हें अब केप्लर के नियमों के नाम से जाना जाता है। ये नियम न्यूटन को ज्ञात थे। इन उत्कृष्ट नियमों ने न्यूटन को अपना गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम प्रस्तावित करके असाधारण वैज्ञानिकों की पंक्ति में शामिल होने योग्य बनाया।
7.2 केप्लर के नियम
केप्लर के तीन नियमों का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है:
1. कक्षाओं का नियम : सभी ग्रह दीर्घवृत्तीय कक्षाओं में गति करते हैं तथा सूर्य इसकी, एक नाभि पर स्थित होता है (चित्र 7.1a)।
चित्र 7.1 (a) सूर्य के परितः किसी ग्रह द्वारा अनुरेखित दीर्घवृत्त। सूर्य का निकटतम बिन्दु
चित्र 7.1 (b) एक दीर्घवृत खींचना। एक डोरी के दो सिरे
दो बिन्दुओं
2. क्षेत्रफलों का नियम : सूर्य से किसी ग्रह को मिलाने वाली रेखा समान समय अंतरालों में समान क्षेत्रफल प्रसर्प करती है (चित्र 7.2)। यह नियम इस प्रेक्षण से प्रकट होता है कि ग्रह उस समय धीमी गति करते प्रतीत होते हैं जब वे सूर्य से अधिक दूरी पर होते हैं। सूर्य के निकट होने पर ग्रहों की गति अपेक्षाकृत तीव्र होती है।
चित्र 7.2 ग्रह
3. आवर्त कालों का नियम
किसी ग्रह के परिक्रमण काल का वर्ग उस ग्रह द्वारा अनुरेखित दीर्घवृत्त के अर्ध-दीर्घ अक्ष के घन के अनुक्रमानुपाती होता है।
नीचे दी गयी सारणी (7.1) में सूर्य के परितः आठ ग्रहों के सन्निकट परिक्रमण-काल उनके अर्ध-दीर्घ अक्षों के मानों सहित दर्शाए गए हैं
सारणी 7.1
नीचे दिए गए ग्रहीय गतियों की माप के आँकड़े केप्लर के आवर्तकालों के नियम की पुष्टि करते हैं।
ग्रह | |||
---|---|---|---|
बुध | 5.79 | 0.24 | 2.95 |
शुक्र | 10.8 | 0.615 | 3.00 |
पृथ्वी | 15.0 | 1 | 2.96 |
मंगल | 22.8 | 1.88 | 2.98 |
बृहस्पति | 77.8 | 11.9 | 3.01 |
शनि | 143 | 29.5 | 2.98 |
यूरेनस | 287 | 84 | 2.98 |
नेप्ट्यून | 450 | 165 | 2.99 |
प्लूटं | 590 | 248 | 2.99 |
क्षेत्रफलों के नियम को कोणीय संवेग संरक्षण का निष्कर्ष माना जा सकता है जो सभी केन्द्रीय बलों के लिए मान्य है। किसी ग्रह पर लगने वाला केन्द्रीय बल, केन्द्रीय सूर्य तथा ग्रह
को मिलाने वाले सदिश के अनुदिश कार्य करता है। मान लीजिए सूर्य मूल बिन्दु पर है और यह भी मानिए कि ग्रह की स्थिति तथा संवेग को क्रमशः
अत:
यहाँ
7.3 गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम
एक दंत कथा में लिखा है पेड़ से गिरते हुए सेब का प्रेक्षण करते हुए न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम तक पहुँचने की प्रेरणा मिली जिससे केप्लर के नियमों तथा पार्थिव गुरुत्वाकर्षण के स्पष्टीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। न्यूटन ने अपने विवेक के आधार पर यह स्पष्ट अनुभव किया कि
यहाँ
जो
“इस विश्व में प्रत्येक पिण्ड हर दूसरे पिण्ड को एक बल द्वारा आकर्षित करता है जिसका परिमाण दोनों पिण्डों के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।”
यह उद्धरण तत्वतः न्यूटन के प्रसिद्ध शोध प्रबन्ध “प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांत” (Mathematical Principles of Natural Philosophy) जिसे संक्षेप में प्रिंसिपिया (Principia) कहते हैं, से प्राप्त होता है।
गणितीय रूप में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम को इस प्रकार कहा जा सकता है : किसी बिंदु द्रव्यमान
सदिश रूप में समीकरण (7.5) को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है
यहाँ
चित्र
गुरुत्वीय बल आकर्षी बल है, अर्थात्
समीकरण (7.5) का अनुप्रयोग, अपने पास उपलब्ध पिण्डों पर कर सकने से पूर्व हमें सावधान रहना होगा, क्योंकि यह नियम बिन्दु द्रव्यमानों से संबंधित है, जबकि हमें विस्तारित पिण्डों, जिनका परिमित आमाप होता है, पर विचार करना है। यदि हमारे पास बिन्दु द्रव्यमानों का कोई संचयन है, तो उनमें से किसी एक पर बल अन्य बिन्दु द्रव्यमानों के कारण गुरुत्वाकर्षण बलों के सदिश योग के बराबर होता है जैसा कि चित्र 7.4 में दर्शाया गया है।
चित्र 7.4 बिन्दु द्रव्यमान
किसी विस्तारित पिण्ड (जैसे पृथ्वी) तथा बिन्दु द्रव्यमान के बीच गुरुत्वाकर्षण बल के लिए समीकरण (7.5) का सीधे ही अनुप्रयोग नहीं किया जा सकता। विस्तारित पिण्ड का प्रत्येक बिन्दु द्रव्यमान दिए गए बिन्दु द्रव्यमान पर बल आरोपित करता है तथा इन सभी बलों की दिशा समान नहीं होती। हमें इन बलों का सदिश रीति द्वारा योग करना होता है ताकि विस्तारित पिण्ड के प्रत्येक बिन्दु द्रव्यमान के कारण आरोपित कुल बल प्राप्त हो जाए। ऐसा हम आसानी से कलन (कैलकुलस) के उपयोग द्वारा कर सकते हैं। जब हम ऐसा करते हैं तो हमे दो विशिष्ट प्रकरणों में सरल परिणाम प्राप्त होते हैं
किसी एकसमान घनत्व के खोखले गोलीय खोल तथा खोल के बाहर स्थित किसी बिन्दु द्रव्यमान के बीच आकर्षण बल ठीक-ठाक उतना ही होता है जैसा कि खोल के समस्त द्रव्यमान को उसके केन्द्र पर संकेन्द्रित मान कर ज्ञात किया जाता है।
गुणात्मक रूप से इसे इस प्रकार समझा जा सकता है। खोल के विभिन्न क्षेत्रों के कारण गुरुत्वीय बलों के, खोल के केन्द्र को बिन्दु द्रव्यमान से मिलाने वाली रेखा के अनुदिश तथा इसके लंबवत्, दोनों दिशाओं में घटक होते हैं। खोल के सभी क्षेत्रों के बलों के घटकों का योग करते समय इस रेखा के लंबवत् दिशा के घटक निरस्त हो जाते हैं तथा केवल खोल के केन्द्र से बिन्दु द्रव्यमान को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश परिणामी बल बचा रहता है। इस परिणामी बल का परिमाण भी ऊपर वर्णन की गई विधि द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
(2) एकसमान घनत्व के किसी खोखले गोले के कारण उसके भीतर स्थित किसी बिन्दु द्रव्यमान पर आकर्षण बल शून्य होता है।
गुणात्मक रूप में, हम फिर से इस परिणाम को समझ सकते हैं। गोलीय खोल के विभिन्न क्षेत्र खोल के भीतर स्थित बिन्दु द्रव्यमान को विभिन्न दिशाओं में आकर्षित करते हैं। ये बल परस्पर एक दूसरे को पूर्णतः निरस्त कर देते हैं।
7.4 गुरुत्वीय नियतांक
गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम में प्रयुक्त गुरुत्वीय स्थिरांक
चित्र 7.6 कैवेन्डिश प्रयोग का योजनावत आरेखन।
छड़
यदि छड़
इस प्रकार
कैवेन्डिश प्रयोग के बाद
7.5 पृथ्वी का गुरुत्वीय त्वरण
पृथ्वी को गोल होने के कारण बहुत से संकेन्द्री गोलीय खोलों का मिलकर बना माना जा सकता है जिनमें सबसे छोटा खोल केन्द्र पर तथा सबसे बड़ा खोल इसके पृष्ठ पर है। पृथ्वी के बाहर का कोई भी बिन्दु स्पष्ट रूप से इन सभी खोलों के बाहर हुआ। इस प्रकार सभी खोल पृथ्वी के बाहर किसी बिन्दु पर इस
प्रकार गुरुत्वाकर्षण बल आरोपित करेंगे जैसे कि इन सभी खोलों के द्रव्यमान पिछले अनुभाग में वर्णित परिणाम के अनुसार उनके उभयनिष्ठ केन्द्र पर संकेन्द्रित हैं। सभी खोलों के संयोजन का कुल द्रव्यमान पृथ्वी का ही द्रव्यमान हुआ। अतः, पृथ्वी के बाहर किसी बिन्दु पर, गुरुत्वाकर्षण बल को यही मानकर ज्ञात किया जाता है कि पृथ्वी का समस्त द्रव्यमान उसके केन्द्र पर संकेन्द्रित है।
पृथ्वी के भीतर स्थित बिन्दुओं के लिए स्थिति भिन्न होती है। इसे चित्र 7.7 में स्पष्ट किया गया है।
चित्र
पहले की ही भांति अब फिर पृथ्वी को संकेन्द्री खोलों से मिलकर बनी मानिए और यह विचार कीजिए कि पृथ्वी के केन्द्र से
हम यह मानते हैं कि समस्त पृथ्वी का घनत्व एकसमान है अतः इसका द्रव्यमान
यदि द्रव्यमान
यहाँ
7.6 पृथ्वी के पृष्ठ के नीचे तथा ऊपर गुरुत्वीय त्वरण
चित्र में दर्शाए अनुसार पृथ्वी के पृष्ठ से ऊँचाई
(a)
चित्र 7.8(a) पृथ्वी के पृष्ठ से किसी ऊँचाई
पृथ्वी की त्रिज्या को
बिन्दु द्रव्यमान द्वारा अनुभव किया जाने वाला त्वरण
स्पष्ट रूप से यह मान पृथ्वी के पृष्ठ पर
इस प्रकार समीकरण (7.15) से हमें प्राप्त होता है कि कम ऊँचाई
अब हम पृथ्वी के पृष्ठ के नीचे गहराई
क्योंकि, किसी गोले का द्रव्यमान उसकी त्रिज्या के घन के अनुक्रमानुपाती होता है।
(b)
चित्र 7.8 (b) किसी गहराई
अतः बिन्दु द्रव्यमान पर आरोपित बल
ऊपर से
और इस प्रकार गहराई
अर्थात्
इस प्रकार जैसे-जैसे हम पृथ्वी से नीचे अधिक गहराई तक जाते हैं, गुरुत्वीय त्वरण का मान गुणक
7.7 गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा
पहले हमने स्थितिज ऊर्जा की धारणा की चर्चा किसी वस्तु की दी हुई स्थिति पर उसमें संचित ऊर्जा के रूप में दी थी। यदि किसी कण की स्थिति उस पर कार्यरत बल के कारण परिवर्तित हो जाती है तो उस कण की स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन आरोपित बल द्वारा उस कण पर किए गए कार्य के परिमाण के ठीक-ठीक बराबर होगा। जैसा कि हम पहले चर्चा कर चुके हैं जिन बलों द्वारा किया गया कार्य चले गए पथों पर निर्भर नहीं करता, वे बल संरक्षी बल होते हैं तथा केवल ऐसे बलों के लिए ही किसी पिण्ड की स्थितिज ऊर्जा की कोई सार्थकता होती है।
गुरुत्व बल एक संरक्षी बल है तथा हम किसी पिण्ड में इस बल के कारण उत्पन्न स्थितिज ऊर्जा, जिसे गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं, का परिकलन कर सकते हैं। पहले पृथ्वी के पृष्ठ के निकट के उन बिन्दुओं पर विचार कीजिए जिनकी पृष्ठ से दूरियाँ पृथ्वी की त्रिज्या की तुलना में बहुत कम हैं। जैसा कि हम देख चुके हैं ऐसे प्रकरणों में गुरुत्वीय बल व्यावहारिक दृष्टि से नियत रहता है तथा यह
यदि हम पृथ्वी के पृष्ठ से
(यहाँ
तब यह स्पष्ट है कि
कण को स्थानांतरित करने में किया गया कार्य ठीक इस कण की अंतिम तथा आरंभिक स्थितियों की स्थितिज ऊर्जाओं के अंतर के बराबर है। ध्यान दीजिए कि समीकरण (7.22) में
यहाँ
इस प्रकार समीकरण (7.21) के बजाय, हम किसी दूरी
जो कि
अतः एक बार फिर
हमने, किसी बिन्दु पर किसी कण की स्थितिज ऊर्जा का परिकलन उस कण पर लगे पृथ्वी के गुरुत्वीय बलों के कारण, जो कि कण के द्रव्यमान के अनुक्रमानुपाती होता है, किया है। पृथ्वी के गुरुत्वीय बल के कारण किसी बिन्दु पर गुरुत्वीय विभव की परिभाषा “उस बिन्दु पर किसी कण के एकांक द्रव्यमान की स्थितिज ऊर्जा” के रूप में की जाती है।
पूर्व विवेचन के आधार पर, हम जानते हैं कि
यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि कणों के किसी सभी वियुक्त निकाय की कुल स्थितिज ऊर्जा, अवयवोंकणों के सभी संभावित युग्मों की ऊर्जाओं (उपरोक्त समीकरण द्वारा परिकलित) के योग के बराबर होती है। यह अध्यारोपण सिद्धांत के एक अनुप्रयोग का उदाहरण है।
7.8 पलायन चाल
यदि हम अपने हाथों से किसी पत्थर को फेंकते हैं, तो हम यह पाते हैं कि वह फिर वापस पृथ्वी पर गिर जाता है। निस्संदेह मशीनों का उपयोग करके हम किसी पिण्ड को अधिकाधिक तीव्रता तथा प्रारंभिक वेगों से शूट कर सकते हैं जिसके कारण पिण्ड अधिकाधिक ऊँचाइयों तक पहुँच जाते हैं। तब स्वाभाविक रूप से हमारे मस्तिष्क में यह विचार उत्पन्न होता है “क्या हम किसी पिण्ड को इतने अधिक आरंभिक चाल से ऊपर फेंक सकते हैं कि वह फिर पृथ्वी पर वापस न गिरे?"
इस प्रश्न का उत्तर देने में ऊर्जा संरक्षण नियम हमारी सहायता करता है। मान लीजिए फेंका गया पिण्ड अनन्त तक पहुंचता है और वहाँ उसकी चाल
यदि पिण्ड को पृथ्वी (
ऊर्जा संरक्षण नियम के अनुसार समीकरण (7.26) तथा (7.27) बराबर होने चाहिए। अतः
समीकरण (7.28) का दक्षिण पक्ष एक धनात्मक राशि है जिसका न्यूनतम मान शून्य है, अतः वाम पक्ष भी ऐसा ही होना चाहिए। अतः कोई पिण्ड अनन्त तक पहुंच सकता है जब
यदि पिण्ड को पृथ्वी के पृष्ठ से छोड़ा जाता है, तो
संबंध
समीकरण (7.32) में
समीकरण (7.32) का उपयोग भली भांति समान रूप से चन्द्रमा से फेंके जाने वाले पिण्डों के लिए भी किया जा सकता है, ऐसा करते समय हम
7.9 भू उपग्रह
भू उपग्रह वह पिण्ड है जो पृथ्वी के परितः परिक्रमण करते हैं। इनकी गतियां, ग्रहों की सूर्य के परितः गतियों के बहुत समान
होती हैं, अतः केप्लर के ग्रहीय गति नियम इन पर भी समान रूप से लागू होते हैं। विशेष बात यह है कि इन उपग्रहों की पृथ्वी के परितः कक्षाएं वृत्ताकार अथवा दीर्घवृत्ताकार है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चन्द्रमा है जिसकी लगभग वृत्ताकार कक्षा है और लगभग 27.3 दिन का परिक्रमण काल है जो चन्द्रमा के अपनी अक्ष के परितः घूर्णन काल के लगभग समान है। वर्ष 1957 के पश्चात् विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में उन्नति के फलस्वरूप भारत सहित कई देश दूर संचार, भू भौतिकी, मौसम विज्ञान के क्षेत्र में व्यावहारिक उपयोगों के लिए मानव-निर्मित भू उपग्रहों को कक्षाओं में प्रमोचित करने योग्य बन गए हैं।
अब हम पृथ्वी के केन्द्र से
तथा यह बल कक्षा के केन्द्र की ओर निदेशित है। अभिकेन्द्र बल गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा प्रदान किया जाता है, जिसका मान
यहाँ
समीकरणों (7.33) तथा (7.34) के दक्षिण पक्षों को समीकृत तथा
इस प्रकार
यहाँ हमने संबंध
यहाँ हमने समीकरण (7.35) से
और यही केप्लर का आवर्तकालों का नियम है जिसका अनुप्रयोग पृथ्वी के परितः उपग्रहों की गतियों के लिए किया जाता है।
उन भू उपग्रहों के लिए, जो पृथ्वी के पृष्ठ के अति निकट होते हैं,
यदि हम समीकरण (7.39) में
जो लगभग 85 मिनट के बराबर हैं।
उत्तर 7.5 मंगल ग्रह के फोबोस तथा डेल्मोस नामक दो चन्द्रमा हैं। (i) यदि फोबोस का आवर्तकाल 7 घंटे 39 मिनट तथा कक्षीय त्रिज्या
हल (i) यहाँ पर समीकरण (7.38) का उपयोग पृथ्वी के द्रव्यमान
(ii) केप्लर के आवर्तकालों के नियम का उपयोग करने पर
यहाँ
ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि बुध, मंगल तथा प्लूटो के अतिरिक्त सभी ग्रहों की कक्षाएं लगभग वृत्ताकार हैं। उदाहरण के लिए, हमारी पृथ्वी के अर्ध लघु अक्ष तथा अर्ध दीर्घ अक्ष का अनुपात
उत्तर 7.6 पृथ्वी को तोलना : आपको निम्नलिखित आंकड़े दिए गए हैं:
हल (i) पहली विधि : समीकरण (7.12) से
(ii) दूसरी विधि : चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। केप्लर के आवर्तकालों के नियम की व्युत्पत्ति में (समीकरण (7.38) देखिए)]
दोनों विधियों द्वारा लगभग समान उत्तर प्राप्त होते हैं, जिनमें
ध्यान दीजिए, यदि हम
अक्ष (a) द्वारा प्रतिस्थापित करें तो समीकरण (7.38) को दीर्घवृत्तीय कक्षाओं पर भी लागू किया जा सकता है, तब पृथ्वी इस दीर्घवृत्त की एक नाभि पर होगी।
7.10 कक्षा में गतिशील उपग्रह की ऊर्जा
समीकरण (7.35) का उपयोग करने पर वृत्ताकार कक्षा में चाल
ऐसा मानें कि अनन्त पर गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा शून्य है तब पृथ्वी के केन्द्र से
K.E धनात्मक है जबकि P.E ॠणात्मक होती है। तथापि परिमाण में
इस प्रकार वृत्ताकार कक्षा में गतिशील किसी उपग्रह की कुल ऊर्जा ऋणात्मक होती है, स्थितिज ऊर्जा का ऋणात्मक तथा परिमाण में धनात्मक गतिज ऊर्जा का दो गुना होता है।
जब किसी उपग्रह की कक्षा दीर्घवृत्तीय होती है तो उसकी K.E तथा P.E दोनों ही पथ के हर बिन्दु पर भिन्न होती हैं। वृत्तीय कक्षा के प्रकरण की भांति ही उपग्रह की कुल ऊर्जा नियत रहती है तथा यह ऋणात्मक होती है और यही हम अपेक्षा
भी करते हैं क्योंकि जैसा हम पहले चर्चा कर चुके हैं कि यदि कुल ऊर्जा धनात्मक अथवा शून्य हो तो पिण्ड अनन्त की ओर पलायन कर जाता है। उपग्रह सदैव पृथ्वी से परिमित दूरियों पर परिक्रमण करते हैं, अतः उनकी ऊर्जाएँ धनात्मक अथवा शून्य नहीं हो सकतीं।
सारांश
1. न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम यह उल्लेख करता है कि दूरी
यहाँ
2. यदि हमें
यहाँ प्रतीक ’
3. केप्लर के ग्रहगति नियम यह स्पष्ट करते हैं कि
(a) सभी ग्रह दीर्घवृत्तीय कक्षाओं में गति करते हैं तथा सूर्य इस कक्षा की किसी एक नाभि पर स्थित होता है।
(b) सूर्य से किसी ग्रह तक खींचा गया त्रिज्य सदिश समान समय अन्तरालों में समान क्षेत्रफल प्रसर्प करता है। यह इस तथ्य का पालन करता है कि ग्रहों पर लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल केन्द्रीय हैं। अतः कोणीय संवेग अपरिवर्तित रहता है।
(c) किसी ग्रह के कक्षीय आवर्तकाल का वर्ग उसकी दीर्घवृत्तीय कक्षा के अर्ध दीर्घ अक्ष के घन के अनुक्रमानुपाती होता है। सूर्य के परितः
यहाँ
4. गुरुत्वीय त्वरण
(a) पृथ्वी के पृष्ठ से
(b) पृथ्वी के पृष्ठ के नीचे
5. गुरुत्वाकर्षण बल संरक्षी बल है। इसलिए किसी स्थितिज ऊर्जा फलन को परिभाषित किया जा सकता है।
यहाँ
6. यदि किसी वियुक्त निकाय में
अर्थात् कुल यांत्रिक ऊर्जा गतिज तथा स्थितिज ऊर्जाओं का योग है। कुल ऊर्जा गति का स्थिरांक होती है।
7. यदि
यह उपरोक्त बिन्दु 5 में दी गयी स्थितिज ऊर्जा में यादृच्छिक स्थिरांक के चयन के अनुसार है। किसी भी परिबद्ध निकाय, अर्थात्, ऐसा निकाय जिसमें कक्षा बन्द हो जैसे दीर्घवृत्तीय कक्षा, की कुल ऊर्जा ऋणात्मक होती है। गतिज तथा स्थितिज ऊर्जाएँ हैं
8. पृथ्वी के पृष्ठ से पलायन चाल
इसका मान
9. यदि कोई कण किसी एकसमान गोलीय खोल अथवा गोलीय सममित भीतरी द्रव्यमान वितरण के ठोस गोले के बाहर है, तो गोला कण को इस प्रकार आकर्षित करता है जैसे कि उस गोले अथवा खोल का समस्त द्रव्यमान उसके केन्द्र पर संकेन्द्रित हो।
10. यदि कोई कण किसी एकसमान गोलीय खोल के भीतर है, तो उस कण पर लगा गुरुत्वीय बल शून्य है। यदि कोई कण किसी संभागी ठोस गोले के भीतर है, तो कण पर लगा बल गोले के केन्द्र की ओर होता है। यह बल कण के अंतस्थ गोलीय द्रव्यमान द्वारा आरोपित किया जाता है।
भौतिक राशि | प्रतीक | विमाएँ | मात्रक | टिप्पणी |
---|---|---|---|---|
गरुत्वीय स्थिरांक | ||||
गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा | (अदिश) |
|||
गुरुत्वीय विभव | ||||
गुरुत्वीय तीव्रता | अथवा |
(सदिश) |
विचारणीय विषय
1. किसी पिण्ड की किसी अन्य पिण्ड के गुरुत्वीय प्रभाव के अन्तर्गत गति का अध्ययन करते समय निम्नलिखित राशियाँ संरक्षित रहती हैं :
(a) कोणीय संवेग,
(b) कुल यांत्रिक ऊर्जा
रैखिक संवेग का संरक्षण नहीं होता।
2. कोणीय संवेग संरक्षण केप्लर के द्वितीय नियम की ओर उन्मुख कराता है। तथापि यह गुरुत्वाकर्षण के व्युत्क्रम वर्ग नियम के लिए विशिष्ट नहीं है। यह किसी भी केन्द्रीय बल पर लागू होता है।
3. केप्लर के तीसरे नियम,
4. अन्तरिक्ष उपग्रहों में अन्तरिक्ष यात्री भारहीनता अनुभव करते हैं। इसका कारण यह नहीं है कि अंतरिक्ष की उस अवस्थिति में गुरुत्वाकर्षण बल कम है। वरन इसका कारण यह है कि अन्तरिक्ष यात्री तथा उपग्रह दोनों ही पृथ्वी की ओर स्वंतत्रतापूर्वक गिरते हैं।
5. दूरी
यहाँ स्थिरांक को कुछ भी मान दिया जा सकता है। इसे शून्य मानना सरलतम चयन है। इस चयन के अनुसार
इस चयन से यह अंतर्निहित है कि जब
6. किसी पिण्ड की कुल यांत्रिक ऊर्जा इसकी गतिज ऊर्जा (जो सदैव धनात्मक होती है) तथा स्थितिज ऊर्जा का योग होती है। अनन्त के सापेक्ष (अर्थात्, यदि हम मान लें कि पिण्ड की अनन्त पर स्थितिज ऊर्जा शून्य है), किसी पिण्ड की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा ॠणात्मक होती है। किसी उपग्रह की कुल ऊर्जा ऋणात्मक होती है।
7. स्थितिज ऊर्जा के लिए सामान्यतः दिखाई देने वाला व्यंजक
8. यद्यपि दो बिन्दुओं के बीच गुरुत्वाकर्षण बल केन्द्रीय है, तथापि दो परिमित दृढ़ पिण्डों के बीच लगने वाले बल का इन दोनों द्रव्यमानों के केन्द्रों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश होना आवश्यक नहीं है। किसी गोलीय सममित पिण्ड के लिए उस पिण्ड से बाहर स्थित किसी कण पर लगा बल इस प्रकार लगता है जैसे कि पिण्ड का समस्त द्रव्यमान उसके केन्द्र पर संकेन्द्रित हो और इसीलिए यह बल केन्द्रीय होता है।
9. गोलीय खोल के भीतर किसी कण बिन्दु पर गुरुत्वीय बल शून्य होता है। तथापि (किसी धात्विक खोल के विपरीत, जो वैद्युत बलों से परिरक्षण करता है) यह खोल अपने से बाहर स्थित दूसरे पिण्डों को गुरुत्वीय बलों के आरोपित होने से अपने भीतर स्थित कणों का परिरक्षण नहीं करता। गुरुत्वीय परिरक्षण संभव नहीं है।