अध्याय 06 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति
6.1 भूमिका
पिछले अध्यायों में हमने मुख्य रूप से आदर्श बिन्दु कण (एक कण जिसे द्रव्यमान युक्त बिन्दु के रूप में व्यक्त किया जाए तथा इसका कोई आकार नहीं हो) की गति का अध्ययन किया था। फिर, यह मानते हुए कि परिमित आकार के पिण्डों की गति को बिन्दु कण की गति के पदों में व्यक्त किया जा सकता है, हमने उस अध्ययन के परिणामों को परिमित आकार के पिण्डों पर भी लागू कर दिया था।
दैनिक जीवन में जितने पिण्ड हमारे संपर्क में आते हैं वे सभी परिमित आकार के होते हैं। एक विस्तृत पिण्ड (परिमित आकार के पिण्ड) की गति को पूरे तौर पर समझने के लिए आमतौर पर उसका बिन्दुवत् आदर्श अपर्याप्त रहता है। इस अध्याय में हम इस प्रतिबंध के परे जाने की चेष्टा करेंगे और विस्तृत, पर परिमित पिण्डों की गति को समझने का प्रयास करेंगे। एक विस्तृत पिण्ड प्रथमतया कणों का एक निकाय है। अतः हम अपना विवेचन एक निकाय की गति से ही शुरू करना चाहेंगे। यहाँ कणों के निकाय का द्रव्यमान केन्द्र एक मुख्य अवध रणणा होगी। हम कणों के निकाय के द्रव्यमान केन्द्र की गति का वर्णन करेंगे और फिर, परिमित आकार के पिण्डों की गति को समझने में इस अवधारणा की उपयोगिता बतायेंगे।
बड़े पिण्डों से जुड़ी बहुत सी समस्याएं उनको दृढ़ पिण्ड मानकर हल की जा सकती हैं। आदर्श दृढ़ पिण्ड एक ऐसा पिण्ड है जिसकी एक सुनिश्चित और अपरिवर्तनीय आकृति होती है। इस प्रकार के ठोस के सभी कण युग्मों के बीच की दूरियाँ परिवर्तित नहीं होती। दृढ़ पिण्ड की इस परिभाषा से यह स्पष्ट है कि कोई भी वास्तविक पिण्ड पूरी तरह दृढ़ नहीं होता, क्योंकि सभी व्यावहारिक पिण्ड बलों के प्रभाव से विकृत हो जाते हैं। परन्तु ऐसी बहुत सी स्थितियाँ होती हैं जिनमें विकृतियाँ नगण्य होती हैं। अतः कई प्रकार की स्थितियों में यथा पहिये, लट्टू, स्टील के शहतीर और यहाँ तक कि अणु, ग्रह जैसे पिण्डों की गति का अध्ययन करते समय, हम ध्यान न देंगे कि उनमें विकृति आती है, वे मुड़ते हैं या कम्पन करते हैं। हम उन्हें दृढ़ पिण्ड मान कर उनकी गति का अध्ययन करेंगे।
Fig 6.1 नत-तल पर एक ब्लॉक की अधोमुखी स्थानांतरण (फिसलन) गति (ब्लॉक का प्रत्येक बिंदु यथा
6.1.1 एक दृढ़ पिण्ड में किस प्रकार की गतियाँ हो सकती हैं?
आइये, दृढ़ पिण्डों की गति के कुछ उदाहरणों से इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने की कोशिश करें। प्रथम एक आयताकार ब्लॉक पर विचार करें जो एक नत तल पर सीधा (बिना इधर-उधर हटे) नीचे की ओर फिसल रहा है। ब्लॉक एक दृढ़ पिण्ड लिया है। नत तल पर नीचे की ओर इसकी गति ऐसी है कि इसके सभी कण साथ-साथ चल रहे हैं, अर्थात् किसी क्षण सभी कण समान वेग से चलते हैं (चित्र 6.1)। यहाँ यह दृढ़ पिंड शुद्ध स्थानांतरण गति में है।
शुद्ध स्थानांतरण गति में किसी क्षण विशेष पर पिण्ड का प्रत्येक कण समान वेग से चलता है।
चित्र 6.2 नत तल पर नीचे की ओर लुढ़कता सिलिंडर (बेलन)। यह शुद्ध स्थानांतरण गति नहीं है। किसी क्षण पर बिन्दु
आइये, अब उसी नत तल पर नीचे की ओर लुढ़कते हुए एक धातु या लकड़ी के बेलन की गति पर विचार करते हैं (चित्र 6.2)। यह दृढ़ पिण्ड (बेलन) नत तल के शीर्ष से उसकी तली तक स्थानांतरित होता है, अतः इसमें स्थानांतरण गति प्रतीत होती है। लेकिन चित्र 6.2 यह भी दर्शाता है कि इसके सभी कण क्षण विशेष पर एक ही वेग से नहीं चल रहे हैं। अतः पिण्ड शुद्ध स्थानांतरण गति में नहीं है। अतः इसकी गति स्थानांतरीय होने के साथ-साथ ‘कुछ और अलग’ भी है। यह ‘कुछ और अलग’ भी क्या है? यह समझने के लिए, आइये, हम एक ऐसा दृढ़ पिंड लें जिसको इस प्रकार व्यवरुद्ध कर दिया गया है कि यह स्थानांतरण गति न कर सके। किसी दृढ़ पिण्ड की स्थानांतरण गति को निरुद्ध करने की सर्व सामान्य विधि यह है कि उसे एक सरल रेखा के अनुदिश स्थिर कर दिया जाए। तब इस दृढ़ पिण्ड की एकमात्र संभावित गति घूर्णी गति होगी। वह सरल रेखा जिसके अनुदिश इस दृढ़ पिण्ड को स्थिर बनाया गया है इसकी घूर्णन-अक्ष कहलाती है। यदि आप अपने चारों ओर देखें तो आपको छत का पंखा, कुम्हार का चाक (चित्र 6.3(a) एवं (b)), विशाल चक्री-झूला (जॉयन्ट व्हील), मेरी-गो-राउण्ड जैसे अनेक ऐसे उदाहरण मिल जायेंगे जहाँ किसी अक्ष के परितः घूर्णन हो रहा हो।
(a)
(b)
चित्र 6.3 एक स्थिर अक्ष के परितः घूर्णन
(a) छत का पंखा
(b) कुम्हार का चाक
आइये, अब हम यह समझने की चेष्टा करें कि घूर्णन क्या है, और इसके क्या अभिलक्षण हैं? आप देख सकते हैं कि एक दृढ़ पिण्ड के एक स्थिर अक्ष के परितः घूर्णन में, पिण्ड का हर कण एक वृत्त में घूमता है। यह वृत्त अक्ष के लम्बवत् तल में है और इनका केन्द्र अक्ष पर अवस्थित है। चित्र 6.4 में एक
चित्र
स्थिर अक्ष (निर्देश फ्रेम की
तथापि, घूर्णन के कुछ उदाहरणों में, अक्ष स्थिर नहीं भी रहती। इस प्रकार के घूर्णन के मुख्य उदाहरणों में एक है, एक ही स्थान पर घूमता लट्टू (चित्र 6.5(a))। (लट्टू की गति के संबंध में हमने यह मान लिया है कि यह एक स्थान से दूसरे
स्थान पर स्थानांतरित नहीं होता और इसलिए इसमें स्थानांतरण गति नहीं है।) अपने अनुभव के आधार पर हम यह जानते हैं कि इस प्रकार घूमते लट्टू की अक्ष, भूमि पर इसके सम्पर्क-बिन्दु से गुजरते अभिलम्ब के परितः एक शंकु बनाती है जैसा कि चित्र 6.5(a) में दर्शाया गया है। (ऊध्र्वाधर के परितः लट्टू की अक्ष का इस प्रकार घूमना पुरस्सरण कहलाता है)। ध्यान दें कि लट्टू का वह बिन्दु जहाँ यह धरातल को छूता है, स्थिर है। किसी भी क्षण, लट्टू की घूर्णन-अक्ष, इसके सम्पर्क बिन्दु से गुजरती है। इस प्रकार की घूर्णन गति का दूसरा सरल उदाहरण घूमने वाला मेज का पंखा या पीठिका-पंखा है। आपने देखा होगा कि इस प्रकार के पंखे की अक्ष, क्षैतिज तल में, दोलन गति (इधर से उध र घूमने की) करती है और यह गति ऊर्ध्वाधर रेखा के परितः होती है जो उस बिन्दु से गुजरती है जिस पर अक्ष की धुरी टिकी होती है (चित्र 6.5(b) में बिन्दु
चित्र 6.5 (a) घूमता हुआ लट्टू (इसकी टिप
चित्र 6.5 (b) दोलन करता हुआ मेज का पंखा जिसकी पंखुड़ियाँ घूर्णन गति में हैं। (पंखे की धुरी, बिन्दु
जब पंखा घमता है और इसकी अक्ष इधर से उधर दोलन करती है तब भी यह बिन्दु स्थिर रहता है। घूर्णन गति के अधिक सार्विक मामलों में, जैसे कि लट्टू या पीठिका-पंखे के घूमने में, दृढ़ पिण्ड का एक बिन्दु स्थिर रहता है, न कि एक रेखा। इस मामले में अक्ष तो स्थिर नहीं है पर यह हमेशा एक स्थिर बिन्दु से गुजरती है। तथापि, अपने अध्ययन में, अधिकांशतः, हम ऐसी सरल एवं विशिष्ट घूर्णन गतियों तक सीमित रहेंगे जिनमें एक रेखा (यानि अक्ष) स्थिर रहती है। अतः जब तक अन्यथा न कहा जाय, हमारे लिए घूर्णी गति एक स्थिर अक्ष के परितः ही होगी।
चित्र 6.6(a) एक दृढ़ पिण्ड की गति जो शुद्ध स्थानांतरीय है
चित्र
चित्र
आइये अब हम प्रस्तुत खण्ड में वर्णित महत्वपूर्ण तथ्यों का सार फिर से आपको बतायें। एक ऐसा दृढ़ पिण्ड जो न तो किसी चूल पर टिका हो और न ही किसी रूप में स्थिर हो, दो प्रकार की गति कर सकता है - या तो शुद्ध स्थानांतरण या स्थानांतरण एवं घूर्णन गति का संयोजन। एक ऐसे दृढ़ पिण्ड की गति जो या तो चूल पर टिका हो या किसी न किसी रूप में स्थिर हो, घूर्णी गति होती है। घूर्णन किसी ऐसी अक्ष के परितः हो सकता है जो स्थिर हो (जैसे छत के पंखे में) या फिर एक ऐसी अक्ष के परितः जो स्वयं घूमती हो (जैसे इधर से उधर घूमते मेज के पंखे में)। इस अध्याय में हम एक स्थिर अक्ष के परितः होने वाली घूर्णी गति का ही अध्ययन करेंगे।
6.2 द्रव्यमान केन्द्र
पहले हम यह देखेंगे कि द्रव्यमान केन्द्र क्या है और फिर इसके महत्व पर प्रकाश डालेंगे। सरलता की दृष्टि से हम दो कणों के निकाय से शुरुआत करेंगे। दोनों कणों की स्थितियों को मिलाने वाली रेखा को हम
चित्र 6.7 दो कणों और उनके द्रव्यमान केन्द्र की स्थिति
माना कि दो कणों की, किसी मूल बिन्दु
समीकरण (6.1) में
इस प्रकार समान द्रव्यमान के दो कणों का द्रव्यमान केन्द्र ठीक उनके बीचोंबीच है।
अगर हमारे पास
जहाँ
निकाय का कुल द्रव्यमान है।
माना हमारे पास तीन कण हैं जो एक सरल रेखा में तो नहीं, पर एक समतल में रखे गए हैं। तब हम उस तल में जिसमें ये तीन कण रखे गए हैं
समान द्रव्यमान वाले कणों के लिए
अर्थात् समान द्रव्यमान वाले कणों के लिए तीन कणों का द्रव्यमान केन्द्र उनकी स्थिति बिन्दुओं को मिलाने से बने त्रिभुज के केन्द्रक पर होगा।
समीकरण (6.3a,b) के परिणामों को, सरलतापूर्वक, ऐसे
और
यहाँ
एवं
तब
समीकरण के दाहिनी ओर लिखा गया योग सदिश-योग है। सदिशों के इस्तेमाल से समीकरणों की संक्षिप्तता पर ध्यान दीजिए। यदि संदर्भ-फ्रेम (निर्देशांक निकाय) के मूल बिन्दु को, दिए गए कण-निकाय के द्रव्यमान केन्द्र में लिया जाए तो
एक दृढ़ पिण्ड, जैसे कि मीटर-छड़ या फ्लाइ व्हील, बहुत पास-पास रखे गए कणों का निकाय है; अतः समीकरण (6.4a,
अधिक होती है, कि इन समीकरणों में, सभी पथक-पथक कणों को लेकर संयुक्त प्रभाव ज्ञात करना असंभव कार्य है। पर, क्योंकि कणों के बीच की दूरी बहुत कम है, हम पिण्ड में द्रव्यमान का सतत वितरण मान सकते हैं। यदि पिण्ड को
यदि हम
और
यहाँ
इन तीन अदिश व्यंजकों के तुल्य सदिश व्यंजक इस प्रकार लिख सकते हैं-
यदि हम द्रव्यमान केन्द्र को अपने निर्देशांक निकाय का मूल-बिन्दु चुनें तो
अर्थात्,
या
प्रायः हमें नियमित आकार के समांग पिण्डों; जैसे - वलयों, गोल-चकतियों, गोलों, छड़ों इत्यादि के द्रव्यमान केन्द्रों की गणना करनी पड़ती है। (समांग पिण्ड से हमारा तात्पर्य एक ऐसी वस्तु से है जिसमें द्रव्यमान का समान रूप से वितरण हो)। सममिति का विचार करके हम सरलता से यह दर्शा सकते हैं कि इन पिण्डों के द्रव्यमान केन्द्र उनके ज्यामितीय केन्द्र ही होते हैं।
आइये, एक पतली छड़ पर विचार करें, जिसकी चौड़ाई और मोटाई (यदि इसकी अनुप्रस्थ काट आयताकार है) अथवा त्रिज्या (यदि छड़ बेलनाकार है), इसकी लम्बाई की तुलना में बहुत छोटी है। छड़ की लम्बाई
चित्र 6.8 एक पतली छड़ का द्रव्यमान केन्द्र ज्ञात करना
समाकल में हर जोड़े का योगदान शून्य है और इस कारण स्वयं
सममिति का यही तर्क, समांग वलयों, चकतियों, गोलों और यहाँ तक कि वृत्ताकार या आयताकार अनुप्रस्थ काट वाली मोटी छड़ों के लिए भी लागू होगा। ऐसे सभी पिण्डों के लिए आप पायेंगे कि बिन्दु
6.3 द्रव्यमान केन्द्र की गति
द्रव्यमान केन्द्र की परिभाषा जानने के बाद, अब हम इस स्थिति में हैं कि
समीकरण के दोनों पक्षों को समय के सापेक्ष अवकलित करने पर-
या
जहाँ,
समीकरण (6.8) को समय के सापेक्ष अवकलित करने पर-
या
जहाँ
अब, न्यूटन के द्वितीय नियमानुसार, पहले कण पर लगने वाला बल है
अतः कणों के निकाय के कुल द्रव्यमान को द्रव्यमान केन्द्र के त्वरण से गुणा करने पर हमें उस कण-निकाय पर लगने वाले सभी बलों का सदिश योग प्राप्त होता है।
ध्यान दें कि जब हम पहले कण पर लगने वाले बल
जहाँ
समीकरण (6.11) बताती है कि कणों के किसी निकाय का द्रव्यमान केन्द्र इस प्रकार गति करता है मानो निकाय का संपूर्ण द्रव्यमान उसमें संकेन्द्रित हो और सभी बाह्य बल उसी पर आरोपित हों।
ध्यान दें कि द्रव्यमान केन्द्र की गति के विषय में जानने के लिए, कणों के निकाय के आंतरिक बलों के विषय में कोई जानकारी नहीं चाहिए, इस उद्देश्य के लिए हमें केवल बाहय बलों को ही जानने की आवश्यकता है।
समीकरण (6.11) व्युत्पन्न करने के लिए हमें कणों के निकाय की प्रकृति सुनिश्चित नहीं करनी पड़ी। निकाय कणों का ऐसा संग्रह भी हो सकता है जिसमें तरह-तरह की आंतरिक गतियाँ हों, और शुद्ध स्थानांतरण गति करता हुआ, अथवा, स्थानांतरण एवं घूर्णी गति के संयोजन युक्त एक दृढ़ पिण्ड भी हो सकता है। निकाय कैसा भी हो और इसके अवयवी कणों में किसी भी प्रकार की गतियाँ हों, इसका द्रव्यमान केन्द्र समीकरण (6.11) के अनुसार ही गति करेगा।
परिमित आकार के पिण्डों को एकल कणों की तरह व्यवहार में लाने के बजाय अब हम उनको कणों के निकाय की तरह व्यवहार में ला सकते हैं। हम उनकी गति का शुद्ध स्थानांतरीय अवयव यानि निकाय के द्रव्यमान केन्द्र की गति ज्ञात कर सकते हैं। इसके लिए, बस, पूरे निकाय का कुल द्रव्यमान और निकाय पर लगे सभी बाहय बलों को निकाय के द्रव्यमान केन्द्र पर प्रभावी मानना होगा।
यही कार्यविधि हमने पिण्डों पर लगे बलों के विश्लेषण और उनसे जुड़ी समस्या के हल के लिए अपनाई थी। हालांकि, इसके लिए कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया था। अब हम यह समझ सकते हैं, कि पूर्व के अध्ययनों में, हमने बिन कहे ही यह मान लिया था कि निकाय में घूर्णी गति, एवं
कणों में आंतरिक गति या तो थी ही नहीं और यदि थी तो नगण्य थी। आगे से हमें यह मानने की आवश्यकता नहीं रहेगी। न केवल हमें अपनी पहले अपनाई गई पद्धति का औचित्य समझ में आ गया है, वरन्, हमने वह विधि भी ज्ञात कर ली है जिसके द्वारा (i) ऐसे दृढ़ पिण्ड की जिसमें घूर्णी गति भी हो, (ii) एक ऐसे निकाय की जिसके कणों में तरह-तरह की आंतरिक गतियाँ हों, स्थानांतरण गति को अलग करके समझा समझाया जा सकता है।
चित्र 6.12 किसी प्रक्षेप्य के खण्डों का द्रव्यमान केन्द्र विस्फोट के बाद भी उसी परवलयाकार पथ पर चलता हुआ पाया जायेगा जिस पर यह विस्फोट न होने पर चलता।
चित्र 6.12 समीकरण (6.11) को स्पष्ट करने वाला एक अच्छा उदाहरण है। अपने निर्धारित परवलयाकार पथ पर चलता हुआ एक प्रक्षेप्य हवा में फट कर टुकड़ों में बिखर जाता है। विस्फोट कारक बल आंतरिक बल है इसलिए उनका द्रव्यमान केन्द्र की गति पर कोई प्रभाव नहीं होता। प्रक्षेप्य और उसके खण्डों पर लगने वाला कुल बाह्य बल विस्फोट के बाद भी वही है जो विस्फोट से पहले था, यानि पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल। अतः, बाहय बल के अंतर्गत प्रक्षेप्य के द्रव्यमान केन्द्र का परवलयाकार पथ विस्फोट के बाद भी वही बना रहता जो विस्फोट न होने की स्थिति में होता।
6.4 कणों के निकाय का रेखीय संवेग
आपको याद होगा कि रेखीय संवेग की परिभाषा करने वाला व्यंजक है
और, एकल कण के लिए न्यूटन के द्वितीय नियम को हम सांकेतिक भाषा में लिख सकते हैं
जहाँ
इस समीकरण की समीकरण (6.8) से तुलना करने पर,
अतः कणों के एक निकाय का कुल रेखीय संवेग, निकाय
के कुल द्रव्यमान तथा इसके द्रव्यमान केन्द्र के वेग के गुणनफल के बराबर होता है। समीकरण (6.15) का समय के सापेक्ष अवकलन करने पर,
समीकरण (6.16) एवं समीकरण (6.11) की तुलना करने
पर
यह गति के न्यूटन के द्वितीय नियम का कथन है जो कणों के निकाय के लिए लागू किया गया है।
यदि कणों के किसी निकाय पर लगे बाहय बलों का योग शून्य हो, तो समीकरण (6.17) के आधार पर,
अतः जब कणों के किसी निकाय पर लगे बाहय बलों का योग शून्य होता है तो उस निकाय का कुल रेखीय संवेग अचर रहता है। यह कणों के एक निकाय के लिए लागू होने वाला रेखीय संवेग के संरक्षण का नियम है। समीकरण (6.15) के कारण, इसका अर्थ यह भी होता है कि जब निकाय पर लगने वाला कुल बाह्य बल शून्य होता है तो इसके द्रव्यमान केन्द्र का वेग परिवर्तित नहीं होता। (इस अध्याय में कणों के निकाय का अध्ययन करते समय हम हमेशा यह मान कर चलेंगे कि निकाय का कुल द्रव्यमान अचर रहता है।)
ध्यान दें, कि आंतरिक बलों के कारण, यानि उन बलों के कारण जो कण एक दूसरे पर आरोपित करते हैं, किसी विशिष्ट
कण का गमन-पथ काफी जटिल हो सकता है। फिर भी, यदि निकाय पर लगने वाला कुल बाह्य बल शून्य हो तो द्रव्यमान केन्द्र अचर-वेग से ही चलता है, अर्थात्, मुक्त कण की तरह समगति से सरल रेखीय पथ पर चलता है।
सदिश समीकरण (6.18a) जिन अदिश समीकरणों के तुल्य है, वे हैं-
यहाँ
(a)
(b)
चित्र 6.13 (a) एक भारी नाभिक रेडियम (Ra) एक अपेक्षाकृत हलके नाभिक रेडॉन
(b) द्रव्यमान केन्द्र की स्थिर अवस्था में उसी भारी कण रेडियम (Ra) का विखंडन। दोनों उत्पन्न हुए कण एक दूसरे की विपरीत दिशा में गतिमान होते हैं।
एक उदाहरण के रूप में, आइये, रेडियम के नाभिक जैसे किसी गतिमान अस्थायी नाभिक के रेडियोएक्टिव क्षय पर विचार करें। रेडियम का नाभिक एक रेडन के नाभिक और एक अल्फा कण में विखंडित होता है। क्षय-कारक बल निकाय के आंतरिक बल हैं और उस पर प्रभावी बाहय बल नगण्य हैं। अतः निकाय का कुल रेखीय संवेग, क्षय से पहले और क्षय के बाद समान रहता है। विखंडन में उत्पन्न हुए दोनों कण, रेडन का नाभिक एवं अल्फा-कण, विभिन्न दिशाओं में इस प्रकार चलते हैं कि उनके द्रव्यमान केन्द्र का गमन-पथ वही बना रहता है जिस पर क्षयित होने से पहले मूल रेडियम नाभिक गतिमान था (चित्र 6.13(a))।
यदि हम एक ऐसे संदर्भ फ्रेम से इस क्षय प्रक्रिया को देखें जिसमें द्रव्यमान केन्द्र स्थिर हो, तो इसमें शामिल कणों की गति विशेषकर सरल दिखाई पड़ती है; उत्पन्न हुए दोनों कण एक दूसरे की विपरीत दिशा में इस प्रकार गतिमान होते हैं कि उनका द्रव्यमान केन्द्र स्थिर रहे, जैसा चित्र 6.13 (b) में दर्शाया गया है।
(a)
(b)
चित्र 6.14 (a) बायनरी निकाय बनाते दो नक्षत्रों
(b) उसी बायनरी निकाय की गति जब द्रव्यमान केन्द्र
कणों की निकाय संबंधी बहुत सी समस्याओं में जैसा ऊपर बताई गई रेडियोएक्टिव क्षय संबंधी समस्या में दर्शाया है, प्रयोगशाला के संदर्भ-फ्रेम की अपेक्षा, द्रव्यमान-केन्द्र के फ्रेम में कार्य करना आसान होता है।
खगोलिकी में युग्मित (बायनरी) नक्षत्रों का पाया जाना एक आम बात है। यदि कोई बाह्य बल न लगा हो तो किसी युग्मित नक्षत्र का द्रव्यमान केन्द्र एक मुक्त-कण की तरह चलता है जैसा चित्र 6.14 (a) में दर्शाया गया है। चित्र में समान द्रव्यमान वाले दोनों नक्षत्रों के गमन पथ भी दर्शाये गए हैं; वे काफी जटिल दिखाई पड़ते हैं। यदि हम द्रव्यमान केन्द्र के फ्रेम से देखें तो हम पाते हैं कि ये दोनों नक्षत्र द्रव्यमान केन्द्र के परितः एक वृत्ताकार पथ पर गतिमान हैं जबकि द्रव्यमान केन्द्र स्थिर है। ध्यान दें, कि दोनों नक्षत्रों को वृत्ताकार पथ के व्यास के विपरीत सिरों पर बने रहना है (चित्र 6.14(b))। इस प्रकार इन नक्षत्रों का गमन पथ दो गतियों के संयोजन से निर्मित होता है (i) द्रव्यमान केन्द्र की सरल रेखा में समांग गति (ii) द्रव्यमान केन्द्र के परितः नक्षत्रों की वृत्ताकार कक्षाएँ।
उपरोक्त दो उदाहरणों से दृष्टव्य है, कि निकाय के एकल कणों की गति को द्रव्यमान केन्द्र की गति और द्रव्यमान केन्द्र के परितः गति में अलग करके देखना एक अत्यंत उपयोगी तकनीक है जिससे निकाय की गति को समझने में सहायता मिलती है।
6.5 दो सदिशों का सदिश गुणनफल
हम सदिशों एवं भौतिकी में उनके उपयोग के विषय में पहले से ही जानते हैं। अध्याय 5 (कार्य, ऊर्जा, शक्ति) में हमने दो
सदिशों के अदिश गुणन की परिभाषा की थी। एक महत्वपूर्ण भौतिक राशि, कार्य, दो सदिश राशियों, बल एवं विस्थापन के अदिश गुणनफल द्वारा परिभाषित की जाती है।
अब हम दो सदिशों का एक अन्य प्रकार का गुणन परिभाषित करेंगे। यह सदिश गुणन है। घूर्णी गति से संबंधित दो महत्वपूर्ण राशियाँ, बल आघूर्ण एवं कोणीय संवेग, सदिश गुणन के रूप में परिभाषित की जाती हैं।
सदिश गुणन की परिभाषा
दो सदिशों
(i) जिसका परिमाण
(ii)
(iii) यदि हम एक दक्षिणावर्त्त पेंच लें और इसको इस प्रकार रखें कि इसका शीर्ष
(a)
(b) चित्र 6.15(a) दो सदिशों के सदिश गुणनफल की दिशा निर्धारित करने के लिए दक्षिणावर्त पेंच का नियम
(b) सदिश गुणनफल की दिशा बताने के लिए दाहिने हाथ का नियम
दाहिने हाथ के नियम को सरल रूप में इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं : अपने दाहिने हाथ की हथेली को
यह याद रखना चाहिए कि
क्योंकि सदिश गुणन में, गुणा व्यक्त करने के लिए क्रॉस
(
- ध्यान दें कि दो सदिशों का अदिश गुणन क्रमविनियम नियम का पालन करता है जैसा पहले बताया गया है
परन्तु, सदिश गुणन क्रमविनिमय नियम का पालन नहीं करता, अर्थात्
- सदिश गुणन का दूसरा रोचक गुण है इसका परावर्तन-गत व्यवहार। परावर्तन के अंतर्गत (यानि दर्पण में प्रतिबिम्ब लेने पर) हमें
और मिलते हैं। परिणामस्वरूप सभी सदिशों के अवयवों के चिह्न बदल जाते हैं और इस प्रकार । देखें कि परावर्तन में का क्या होता है?
अतः परावर्तन से
- अदिश एवं सदिश दोनों ही गुणन सदिश-योग पर वितरणशील होते हैं। अत:
- हम
को अवयवों के रूप में भी लिख सकते हैं। इसके लिए हमें कुछ सदिश गुणनफलों की जानकारी आवश्यक होगी :
(i)
स्पष्टतः ऐसा इसलिए है क्योंकि
इससे हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि
(i)
(ii)
ध्यान दें, कि
सदिश गुणन के क्रम विनिमेयता गुण के आधार पर हम कह सकते हैं-
ध्यान दें कि उपरोक्त सदिश गुणन व्यंजकों में यदि
अब,
उपरोक्त व्यंजक प्राप्त करने में हमने सरल सदिश गुणनफलों का उपयोग किया है।
6.6 कोणीय वेग और इसका रेखीय वेग से संबंध
इस अनुभाग में हम अध्ययन करेंगे कि कोणीय वेग क्या है, और घूर्णी गति में इसकी क्या भूमिका है? हम यह समझ चुके हैं कि घूर्णी गति में पिण्ड का प्रत्येक कण एक वृत्ताकार पथ पर चलता है। किसी कण का रेखीय वेग उसके कोणीय वेग से संबंधित
चित्र 6.16 एक स्थिर अक्ष के परितः घूर्णन। स्थिर
होता है। इन दो राशियों के बीच का संबंध एक सदिश गुणन से व्यक्त होता है। सदिश गुणन के विषय में आपने पिछले अनुभाग में पढ़ा है।
आइये चित्र 6.4 पुन: देंखे। जैसा ऊपर बताया गया है, किसी दृढ़ पिण्ड की एक स्थिर अक्ष के परितः घूर्णी गति में, पिण्ड का प्रत्येक कण एक वृत्त में गति करता है। ये वृत्त अक्ष के लम्बवत् समतल में होते हैं जिनके केन्द्र अक्ष के ऊपर अवस्थित होते हैं। चित्र 6.16 में हमने चित्र 6.4 को फिर से बनाया है और इसमें स्थिर
माना कि
हमने देखा कि किसी दिए गए क्षण पर समीकरण
यहाँ भी सूचकांक
अक्ष पर स्थित कणों के लिए
ध्यान दें कि हमने सभी कणों का समान कोणीय वेग लिया है। इसलिए हम
किसी पिण्ड की शुद्ध स्थानांतरण गति का अभिलक्षण हमने यह बताया कि इसके सभी कण, किसी दिए गए क्षण पर समान वेग से चलते हैं। इसी प्रकार, शुद्ध घूर्णी गति के लिए हम कह सकते हैं कि किसी दिए गए क्षण पर पिण्ड के सभी कण समान कोणीय वेग से घूमते हैं। ध्यान दें कि स्थिर अक्ष के परितः घूमते दृढ़ पिण्ड की घूर्णी गति का यह अभिलक्षण, दूसरे शब्दों में (जैसा अनुभाग 6.1 में बताया गया है) पिण्ड का हर कण एक वृत्त में गति करता है और यह वृत्त अक्ष के अभिलम्बवत् तल में स्थित होता है जिसका केन्द्र अक्ष पर होता है।
हमारे अभी तक के विवेचन से ऐसा लगता है कि कोणीय वेग एक अदिश राशि है। किंतु तथ्य यह है, कि यह एक सदिश राशि है। हम इस तथ्य के समर्थन या पुष्टि के लिए कोई तर्क नहीं देंगे, बस यह मान कर चलेंगे। एक स्थिर अक्ष के परितः घूर्णन में, कोणीय वेग सदिश, घूर्णन अक्ष के अनुदिश होता है, और उस दिशा में संकेत करता है जिसमें एक दक्षिणावर्त पेंच आगे बढ़ेगा जब उसके शीर्ष को पिण्ड के घूर्णन की दिशा में घुमाया जाएगा। देखिए चित्र 6.17(a)। इस सदिश का परिमाण,
चित्र 6.17(a) यदि दक्षिणावर्त्त पेंच के शीर्ष को पिण्ड के घूर्णन की दिशा में घुमाया जाए तो पेंच कोणीय वेग
चित्र 6.17 (b) कोणीय वेग सदिश
आइये, अब हम सदिश गुणनफल
अब
लेकिन
अत
सदिश
अत:
वास्तव में, समीकरण (6.20) उन दृढ़ पिण्डों की घूर्णन गति पर भी लागू होती है जो एक बिन्दु के परितः घूमते हैं, जैसे लट्टू का घूमना (चित्र 6.6(a))। इस तरह के मामलों में,
ध्यान दें, कि जब कोई वस्तु एक स्थिर अक्ष के परितः घूर्णन करती है तो समय के साथ सदिश
6.6.1 कोणीय त्वरण
आपने ध्यान दिया होगा कि हम घूर्णी गति संबंधी अध्ययन को भी उसी तरह आगे बढ़ा रहे हैं जिस तरह हमने अपने स्थानांतरण गति संबंधी अध्ययन को आगे बढ़ाया था और जिसके बारे में
अब हम भली-भाँति परिचित हैं। स्थानांतरण गति की गतिज चर राशियों यथा रेखीय विस्थापन
यदि घूर्णन अक्ष स्थिर है तो
6.7 बल आघूर्ण एवं कोणीय संवेग
इस अनुभाग में, हम आपको ऐसी दो राशियों से अवगत करायेंगे जिनको दो सदिशों के सदिश गुणन के रूप में परिभाषित किया जाता है। ये राशियाँ, जैसा हम देखेंगे, कणों के निकायों, विशेषकर दृढ़ पिण्डों की गति का विवेचन करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।
6.7.1 एक कण पर आरोपित बल का आघूर्ण
हमने सीखा है, कि किसी दृढ़ पिण्ड की गति, व्यापक रूप में, घूर्णन एवं स्थानांतरण का संयोजन होती है। यदि पिण्ड किसी बिन्दु या किसी रेखा के अनुदिश स्थिर है तो इसमें केवल घूर्णी गति होती है। हम जानते हैं कि किसी वस्तु की स्थानांतरीय गत्यावस्था में परिवर्तन लाने के लिए (यानि इसमें रेखीय त्वरण पैदा करने के लिए) बल की आवश्यकता होती है। तब स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है कि घूर्णी गति में बल के तुल्य रूप कौन सी राशि है? एक समग्र स्थिति द्वारा इस प्रश्न का उत्तर तलाशने के लिए आइये किसी द्वार को खोलने या बंद करने का उदाहरण लें। द्वार एक दृढ़ पिण्ड है जो कब्ज़ों से होकर गुजरने वाली ऊर्ध्वाधर अक्ष के परितः घूम सकता है। द्वार को कौन घुमाता है? यह तो स्पष्ट ही है कि जब तक दरवाजे पर बल नहीं लगाया जायेगा यह नहीं घूम सकता। किन्तु, किसी भी बल द्वारा यह कार्य किया जा सकता हो, ऐसा नहीं है। कब्जों से गुजरने वाली ऊर्ध्वाधर रेखा पर लगने वाला बल, द्वार में कोई भी घूर्णन गति उत्पन्न नहीं कर सकता किंतु किसी दिए गए परिमाण काद्वार को घुमाने में सबसे अधिक प्रभावी होता है। घर्णी गति में बल का परिमाण ही नहीं, बल्कि, यह कहाँ और कैसे लगाया जाता है यह भी महत्वपूर्ण होता है।
घूर्णी गति में बल के समतुल्य राशि बल आघूर्ण है। इसको ऐंठन (टॉर्क) अथवा बल युग्म भी कहा जाता है। (हम बल आघूर्ण और टॉर्क शब्दों का इस्तेमाल एकार्थी मानकर करेंगे। पहले हम एकल कण के विशिष्ट मामले में बल आघूर्ण की परिभाषा देंगे। बाद में इस अवधारणा को आगे बढ़ाकर कणों के निकाय और दृढ़ पिण्डों के लिए लागू करेंगे। हम, घूर्णन गति में इसके कारण होने वाले परिवर्तन यानि दृढ़ पिण्ड के कोणीय त्वरण से इसका संबंध भी जानेंगे।
चित्र
यदि,
बल आघूर्ण एक सदिश राशि है। इसका संकेत चिह्न ग्रीक वर्णमाला का एक अक्षर
जहाँ
बल आघूर्ण का विमीय सूत्र
जहाँ
आपका ध्यान इस बात की ओर जाना चाहिए कि
6.7.2 किसी कण का कोणीय संवेग
जैसे बल आघूर्ण, रेखीय गति में बल का घूर्णी समतुल्य है, ठीक वैसे ही कोणीय संवेग, रेखीय संवेग का घूर्णी समतुल्य है। पहले हम एकल कण के विशिष्ट मामले में कोणीय संवेग को परिभाषित करेंगे और एकल कण की गति के संदर्भ में इसकी उपयोगिता देखेंगे। तब, कोणीय संवेग की परिभाषा को दृढ़ पिण्डों सहित कणों के निकायों के लिए लागू करेंगे।
बल आघूर्ण की तरह ही कोणीय संवेग भी एक सदिश गुणन है। इसको हम (रेखीय) संवेग का आघूर्ण कह सकते हैं। इस नाम से कोणीय संवेग की परिभाषा का अनुमान लगाया जा सकता है।
कोणीय संवेग सदिश की परिमाण है
जहाँ
जहाँ
भौतिक राशियों, बल आघूर्ण एवं कोणीय संवेग में एक महत्वपूर्ण पारस्परिक संबंध है। यह संबंध भी बल एवं रेखीय संवेग के बीच के संबंध का घूर्णी समतुल्य है। एकल कण के संदर्भ में यह संबंध व्युत्पन्न करने के लिए हम
दाईं ओर के व्यंजक पर गुणन के अवकलन का नियम लागू करें, तो
अब, कण का वेग
क्योंकि दो समान्तर सदिशों का सदिश गुणनफल शून्य होता है। तथा, चूंकि
अतएव, किसी कण के कोणीय संवेग में समय के साथ होने वाले परिवर्तन की दर इस पर प्रभावी बल आघर्ण के बराबर होती है। यह समीकरण
कणों के निकाय का बल आघूर्ण एवं कोणीय संवेग
कणों के किसी निकाय का, किसी दिए गए बिन्दु के परितः कुल कोणीय संवेग ज्ञात करने के लिए हमें एकल कणों के कोणीय संवेगों के सदिश योग की गणना करनी होगी। अतः
जहाँ,
यह समीकरण (6.25a) में दी गई एकाकी कण के संवेग की परिभाषा का कणों के निकाय के लिए किया गया व्यापकीकरण है।
समीकरणों
जहाँ
हम, न सिर्फ न्यूटन के गति का तृतीय नियम यानि यह तथ्य कि निकाय के किन्हीं दो कणों के बीच लगने वाले बल बराबर होते हैं और विपरीत दिशा में लगते हैं, बल्कि यह भी मानकर चलेंगे कि ये बल दोनों कणों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश लगते हैं। इस स्थिति में आंतरिक बलों का, निकाय के कुल बल आघूर्ण में योगदान शून्य होगा। क्योंकि, प्रत्येक क्रिया-प्रतिक्रिया
युग्म का परिणामी बल आघूर्ण शून्य है। अतः
चूंकि
अतः, कणों के किसी निकाय के कुल कोणीय संवेग में समय के अनुसार होने वाले परिवर्तन की दर उस पर आरोपित बाह्य बल आघूर्णों (यानि बाह्य बलो के आघूर्णों) के सदिश योग के बराबर होती है। ध्यान रहे कि जिस बिन्दु (यहाँ हमारे संदर्भ-फ्रेम का मूल बिन्दु) के परितः कुल कोणीय संवेग लिया जाता है उसी के परितः बाह्य बल आघूर्णों की गणना की जाती है। समीकरण
ध्यान दें कि समीकरण (6.17) की तरह ही, समीकरण (6.28b) भी कणों के सभी निकायों के लिए लागू होती है चाहे वह पिण्ड दृढ़ हो या विभिन्न प्रकार की गतियों से युक्त पृथक पृथक कणों का निकाय।
कोणीय संवेग का संरक्षण
यदि
अतः, कणों के किसी निकाय पर आरोपित कुल बाह्य बल आघूर्ण यदि शून्य हो तो उस निकाय का कुल कोणीय संवेग संरक्षित होता है अर्थात् अचर रहता है। समीकरण (6.29a) तीन अदिश समीकरणों के समतुल्य है।
यहाँ
6.8 दृढ़ पिण्डों का संतुलन
अब हम व्यापक कण-निकायों के बजाय दृढ़ पिण्डों की गति पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे।
आइये, स्मरण करें कि दृढ़ पिण्डों पर बाह्य बलों के क्या प्रभाव होते हैं? (आगे से हम विशेषण ‘बाह्य’ का प्रयोग नहीं करेंगे। जब तक अन्यथा न कहा जाय, हम केवल बाह्य बलों और बल आघूर्णों से ही व्यवहार करेंगे)। बल, किसी दृढ़ पिण्ड की स्थानांतरीय गत्यावस्था में परिवर्तन लाते हैं, अर्थात् वे समीकरण (6.17) के अनुसार, इसके कुल रेखीय संवेग को परिवर्तित करते हैं। लेकिन, बलों का यह एकमात्र प्रभाव नहीं है। यदि पिण्ड पर लगने वाला कुल बल आघूर्ण शून्य न हो तो इसके कारण, दृढ़ पिण्ड की घूर्णी गति में परिवर्तन होगा अर्थात् पिण्ड का कुल कोणीय संवेग समीकरण (6.28b) के अनुसार बदलेगा।
किसी दृढ़ पिण्ड को यांत्रिक संतुलन की अवस्था में तब कहा जाएगा जब इसके रेखीय संवेग और कोणीय संवेग दोनों का ही मान समय के साथ न बदलता हो यानि उस पिण्ड में न रेखीय त्वरण हो न कोणीय त्वरण। इसका अर्थ होगा कि
(1) पिण्ड पर लगने वाला कुल बल यानि बलों का सदिश योग शून्य हो :
यदि पिण्ड पर लगने वाला कुल बल शून्य होगा तो उस पिण्ड के रेखीय संवेग में समय के साथ कोई परिवर्तन नहीं होगा। समीकरण (6.30a) पिण्ड के स्थानांतरीय संतुलन की शर्त है।
(2) कुल बल आघूर्ण, यानि दृढ़-पिण्ड पर लगने वाले बल-आघूर्णों का सदिश योग शून्य होगा :
यदि दृढ़ पिण्ड पर आरोपित कुल बल आघूर्ण शून्य हो तो इसका कुल कोणीय संवेग समय के साथ नहीं बदलेगा। समीकरण (6.30b) पिण्ड के घूर्णी संतुलन की शर्त है।
अब यह प्रश्न उठ सकता है, कि यदि वह मूल बिन्दु जिसके परितः आघूर्णों की गणना की गई है बदल जाए, तो क्या घूर्णी संतुलन की शर्त बदलेगी? यह दिखाया जा सकता है कि यदि किसी दृढ़ पिण्ड के लिए स्थानांतरीय संतुलन की शर्त समीकरण (6.30b) लागू होती है तो इस पर मूल बिन्दु के स्थानांतरण का कोई प्रभाव नहीं होगा अर्थात् घूर्णी संतुलन की शर्त उस मूल बिन्दु की स्थिति के ऊपर निर्भर नहीं करती जिसके परितः आघूर्ण लिए गए हैं। उदाहरण 6.7, में बलयुग्म (यानि स्थानांतरीय संतुलन में, किसी पिण्ड के ऊपर लगने वाले बलों का एक जोड़ा) के विशिष्ट मामले में इस तथ्य की पुष्टि की जाएगी।
समीकरण (6.30a) एवं समीकरण (6.30b) दोनों ही सदिश समीकरणें हैं। इनमें से प्रत्येक तीन अदिश समीकरणों के समतुल्य हैं। समीकरण (6.30a) के संगत ये समीकरणें हैं
जहाँ
जहाँ
समीकरण (6.31a) एवं (6.31b), हमें किसी दृढ़ पिण्ड के यांत्रिक संतुलन के लिए आवश्यक छः ऐसी शर्ते बताते हैं जो एक दूसरे के ऊपर निर्भर नहीं करतीं। बहुत सी समस्याओं में किसी पिण्ड पर लगने वाले सभी बल एक ही तल में होते हैं। इस स्थिति में यांत्रिक संतुलन के लिए केवल तीन शर्तों को पूरी किए जाने की आवश्यकता होगी। इनमें से दो शर्तें स्थानांतरीय संतुलन के संगत होंगी, जिनके अनुसार, सभी बलों के, इस तल में स्वेच्छ चुनी गई दो परस्पर लम्बवत् अक्षों के अनुदिश, अवयवों का सदिश योग अलग-अलग शून्य होगा। तीसरी शर्त घूर्णी-संतुलन के संगत है। बलों के तल के अभिलम्बवत् अक्ष के अनुदिश बल आघूर्ण के अवयवों का योग शून्य होना चाहिए।
एक दृढ़ पिण्ड के संतुलन की शर्तों की तुलना, एकल कण के संतुलन की शर्तों से की जा सकती है। इस विषय में हमने पहले के अध्यायों में बात की है। कण पर घूर्णी गति का कोई विचार आवश्यक नहीं होता। इसके संतुलन के लिए केवल स्थानांतरीय संतुलन की शर्तें
(समीकरण
ज्ञातव्य है कि एक पिण्ड आंशिक संतुलन में हो सकता है यानि यह हो सकता है कि यह स्थानांतरीय संतुलन में हो परन्तु घूर्णी संतुलन में न हो या फिर घूर्णी संतुलन में तो हो पर स्थानांतरीय संतुलन में ना हो।
एक हलकी (यानि नगण्य द्रव्यमान वाली) स्वतंत्र छड़
चित्र 6.20(a)
माना कि छड़
चित्र 6.20(b)
चित्र 6.20(b) में, चित्र (6.20a) में
दो बराबर परिमाण के, विपरीत दिशाओं में लगे बलों का जोड़ा जिनकी क्रिया रेखाएँ एक न हों बलयुग्म अथवा ऐंठन (टॉर्क) कहलाता है। बलयुग्म बिना स्थानांतरण के घूर्णन पैदा करता है।
जब हम घुमाकर किसी बोतल का ढक्कन खोलते हैं तो हमारी उंगलियाँ ढक्कन पर एक बलयुग्म आरोपित करती हैं। [चित्र 6.21(a)]। इसका दूसरा उदाहरण पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में रखी चुम्बकीय सुई है [चित्र
चित्र 6.21(a) ढक्कन को घुमाने के लिए हमारी उंगलियाँ उस पर एक बलयुग्म लगाती हैं
चित्र 6.21(b) पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र, सुई के ध्रुवों पर, बराबर परिमाण वाले दो बल विपरीत दिशाओं में लगाता है। ये दो बल एक बलयुग्म बनाते हैं।
6.8.1 आघूर्णों का सिद्धांत
एक आदर्श उत्तोलक, अनिवार्य रूप से, एक ऐसी हलकी (यानि नगण्य द्रव्यमान वाली) छड़ है जो अपनी लम्बाई के अनुदिश लिए गए किसी बिन्दु के परितः घूम सकती हो। यह बिन्दु आलम्ब कहलाता है। बच्चों के खेल के मैदान में लगा सी-सा, उत्तोलक का एक प्रतिनिधिक उदाहरण है। दो बल
चित्र 6.23
यह उत्तोलक यांत्रिक रूप से एक संतुलित निकाय है। माना कि आलम्ब पर बलों का प्रतिक्रिया बल
और घूर्णी संतुलन में, आलम्ब के परितः आघूर्ण लेने पर, इन आघूर्णों का योग शून्य होगा। अतः
सामान्यतः वामावर्त आघूर्णों को धनात्मक एवं दक्षिणावर्त आघूर्णों को ऋणात्मक लिया जाता है। ध्यान दें कि
उत्तोलक के मामले में,
समीकरण (ii) को हम इस प्रकार भी लिख सकते हैं
या, भार
उपरोक्त समीकरण, किसी उत्तोलक के लिए आघर्णों का नियम व्यक्त करती है। अनुपात
अत:
यदि प्रयास भुजा
आप यह सरलता से दर्शा सकते हैं कि यदि समांतर बल
6.8.2 गुरुत्व केन्द्र
आपमें से कई लोगों ने अपनी नोट बुक को अपनी उंगली की नोक पर संतुलित किया होगा। चित्र 6.24 उसी तरह का एक क्रियाकलाप है जो आप आसानी से कर सकते हैं। एक अनियमित आकार का
चित्र 6.24 गत्ते के टुकड़े को पेंसिल की नोक पर संतुलित करना। पेंसिल की नोक गत्ते के टुकड़े का गुरुत्व केन्द्र निर्धारित करती है।
गत्ते के टुकड़े का गुरुत्व केन्द्र इस प्रकार निर्धारित किया गया है कि
यदि
इसलिए, किसी पिण्ड के गुरुत्व-केन्द्र को हम एक ऐसे बिन्दु के रूप में परिभाषित कर सकते हैं जिसके परितः पिण्ड का कुल गुरुत्वीय बल आघूर्ण शून्य हो।
हम देखते हैं कि समीरकण (6.33) में
केन्द सम्पाती नहीं होंगे। मूल रूप में, ये दो अलग-अलग अवध रणाएँ हैं। द्रव्यमान केन्द्र का गुरुत्व से कुछ लेना देना नहीं है। यह केवल पिण्ड में द्रव्यमान के वितरण पर निर्भर करता है।
चित्र 6.25 अनियमित आकार के फलक का गुरुत्व केन्द्र ज्ञात करना। फलक का गुरुत्व केन्द्र
अनुभाग 6.2 में हमने कई नियमित, समांग, पिण्डों के द्रव्यमान केन्द्र की स्थिति ज्ञात की थी। स्पष्टतः, यदि पिण्ड विशालकाय नहीं है, तो उसी विधि से हम उनके गुरुत्व केन्द्र ज्ञात कर सकते हैं।
चित्र 6.25 , गत्ते के टुकड़े जैसे किसी अनियमित आकार के फलक का गुरुत्व केन्द्र ज्ञात करने की एक अन्य विधि दर्शाता है। यदि आप इस फलक को किसी बिन्दु जैसे
6.9 जड़त्व आघूर्ण
हम पहले ही यह उल्लेख कर चुके हैं कि घूर्णी गति का अध्ययन हम स्थानांतरण गति के समांतर ही चलायेंगे। इस विषय में आप पहले से ही सुपरिचित हैं। इस संबंध में एक मुख्य प्रश्न का उत्तर देना अभी शेष है कि घूर्णी गति में द्रव्यमान के समतुल्य राशि क्या है? इस प्रश्न का उत्तर हम प्रस्तुत अनुभाग में देंगे। विवेचना को सरल बनाए रखने के लिए हम केवल स्थिर अक्ष के परितः घूर्णन पर ही विचार करेंगे। आइये, घूर्णन करते पिण्ड की गतिज ऊर्जा के लिए व्यंजक प्राप्त करें। हम जानते हैं कि स्थिर अक्ष के परितः घूर्णन करते पिण्ड का प्रत्येक कण, एक वृत्ताकार पथ पर चलता है (देखें चित्र 6.16)। और अक्ष से
जहाँ
यहाँ
हम दृढ़ पिण्ड को अभिलक्षित करने वाला एक नया प्राचल परिभाषित करते हैं जिसका नाम जड़त्त्व आघूर्ण है और जिसका व्यक्तिकरण है
इस परिभाषा के साथ
ध्यान दें कि प्राचल
समीकरण (6.35) द्वारा व्यक्त घूर्णन करते पिण्ड की गतिज ऊर्जा की रेखीय (स्थानांतरीय) गति करते पिण्ड की गतिज ऊर्जा
अब हम समीकरण (6.34) में दी गई परिभाषा का उपयोग दो सरल स्थितियों में जड़त्व आघूर्ण ज्ञात करने के लिए करेंगे।
a) त्रिज्या
समीकरण (6.35) से तुलना करने पर हम पाते हैं कि वलय के लिए
चित्र 6.28 द्रव्यमान के एक जोड़े से युक्त, 1 लंबाई की छड़, जो निकाय के द्रव्यमान केन्द्र से गुजरने वाली इसकी लंबाई के लम्बवत् अक्ष के परितः घूम रही है। निकाय का कुल द्रव्यमान
b) अब, हम
अतः, द्रव्यमानों के इस जोड़े का, द्रव्यमान केन्द्र से गुजरती
छड़ के लम्बवत् अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण
सारणी 6.1 में कुछ सुपरिचित नियमित आकार के पिंडों के विशिष्ट अक्षों के परितः जड़त्व आघूर्ण केवल दिए गए हैं। (इन सूत्रों के व्युत्पन्न इस पाठ्यपुस्तक के क्षेत्र से बाहर हैं। आगे आप इनके विषय में उच्च कक्षाओं में पढ़ेंगे।)
क्योंकि, किसी पिण्ड का द्रव्यमान, उसकी रेखीय गत्यावस्था में परिवर्तन का प्रतिरोध करता है, वह उसकी रेखीय गति के जड़त्व का माप है। उसी प्रकार, दी गई अक्ष के परितः जड़त्त्व आघूर्ण, घूर्णी गति में परिवर्तन का प्रतिरोध करता है, अतः इसको पिण्ड के घूर्णी जड़त्व का माप माना जा सकता है। इस माप से यह बोध होता है कि किसी पिण्ड में पिण्ड के विभिन्न कण घूर्णन अक्ष के आपेक्ष किस प्रकार अवस्थित हैं। द्रव्यमान की तरह जड़त्व आघूर्ण एक नियत राशि नहीं होती, बल्कि, इसका मान पिण्ड के सापेक्ष इसकी अक्ष की स्थिति और दिग्विन्यास के ऊपर निर्भर करता है। किसी घूर्णन अक्ष के सापेक्ष घूर्णन करते दृढ़ पिण्ड का द्रव्यमान किस प्रकार वितरित है इसके एक माप के रूप में हम एक नया प्राचल परिभाषित करते हैं, जिसे परिभ्रमण त्रिज्या कहते हैं। यह पिण्ड के जड़त्व आघूर्ण और कुल द्रव्यमान से संबंधित है।
सारणी 6.1 विशिष्ट अक्षों के परितः कुछ नियमित आकार के पिण्डों के जड़त्त्व आघूर्ण
पिण्ड | अक्ष | आरेख | I | |
---|---|---|---|---|
1. | वृत्ताकार वलय |
वलय तल के लम्बवत् केन्द्र से गुजरती |
||
2. | वृत्ताकार वलय |
व्यास | ||
3. | पतली छड़ |
मध्य बिन्दु से गुजरती लंबाई के लम्बवत् |
||
4. | वृत्ताकार चकती |
केन्द्र से गुजरती तल के लम्बवत् |
||
5. | वृत्ताकार चकती |
व्यास | ||
6. | खोखला बेलन |
बेलन की अक्ष | ||
7. | ठोस बेलन |
बेलन की अक्ष | ||
8. | ठोस गोला |
व्यास |
सारणी 6.1 से हम देख सकते हैं कि सभी पिण्डों के लिए,
अतः, किसी दृढ़ पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण, उसके द्रव्यमान, उसके आकार एवं आकृति, घूर्णन-अक्ष के परितः इसके द्रव्यमान के वितरण और इस अक्ष की स्थिति एवं दिग्विन्यास पर निर्भर करता है। समीकरण (6.34), में दी गई परिभाषा के आधार पर हम तुरन्त इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि जड़त्व आघूर्ण का विमीय सूत्र
किसी पिण्ड के घूर्णन के जड़त्व के माप के रूप में इस अत्यंत महत्वपूर्ण राशि
6.10 अचल अक्ष के परितः शुद्ध घूर्णी गतिकी
हमने पहले भी स्थानांतरण गति और घूर्णी गति के बीच समतुल्यता के संकेत दिए हैं। उदारहण के लिए यह कि कोणीय वेग
शुद्ध घूर्णी गतिकी में प्रयुक्त होने वाली राशियाँ, कोणीय विस्थापन
जहाँ
इनके संगत, अचर त्वरण से घूर्णी गति करती हुई वस्तु के लिए शुद्ध घूर्णी गतिकी के समीकरण होंगे :
जहाँ
चित्र 6.29 किसी दृढ़ पिण्ड की कोणीय स्थिति बताना
6.11 अचल अक्ष के परितः घूर्णी गतिकी
सारणी 6.2 में रेखीय गति से संबंधी राशियों और उनके संगत घूर्णी गति की समतुल्य राशियों की सूची दी गई है। पिछले अनुभाग में हमने इन दोनों प्रकार की गतियों की शुद्ध गतिकी से तुलना की है। हमें यह भी पता है कि घूर्णी गति में जड़त्व आघूर्ण एवं बल आघूर्ण, रेखीय गति के क्रमशः द्रव्यमान एवं बलों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह सब जानने के बाद सारणी में दिए गए अन्य समतुल्यों के विषय में अनुमान लगा लेना अधिक कठिन नहीं है। उदाहरण के लिए, रेखीय गति में कार्य
इससे पहले कि हम अपनी बात शुरू करें, एक अचल अक्ष के परितः घूर्णी गति में एक सरलीकरण की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है। क्योंकि अक्ष स्थिर है, हमें अपने विवेचन में बल आघूर्णों एवं कोणीय संवेगों के इसके अनुदिश अवयवों पर ही विचार करने की आवश्यकता होगी। केवल यही घटक पिण्ड को घूर्णन कराते हैं। बल आघूर्ण का अक्ष से अभिलंबवत घटक अक्ष को उसकी स्थिति से घुमाने का प्रयास करता है। हालांकि हम मानकर चलेंगे कि बल आघूर्ण के इस घटक को संतुलित करने हेतु आवश्यक बल आघूर्ण उत्पन्न होंगे जो अक्ष की स्थिति बनाए रखने के लिए उत्तरदायी होंगे। अतः इन अभिलंबवत् बल आघूर्ण के घटकों पर विचार में करने की आवश्यकता नहीं है। पर्याय में हमें निम्न विचार में लाने की आवश्यकता है:
(1) पिण्ड पर कार्य करने वाले वे बल जो घूर्णन अक्ष के लम्बवत् तल में हैं।
(2) पिण्ड के कणों की स्थिति-सदिशों के केवल वे अवयव जो घर्णन अक्ष के लम्बवत् हैं।
या यूँ कहें कि बलों और स्थिति सदिशों के अक्ष के अनुदिश लिए गए अवयवों को हमें गणना में लाने की आवश्यकता नहीं है।
बल आघूर्ण द्वारा किया गया कार्य
चित्र 6.30 एक अचल अक्ष के परितः घूमते पिण्ड के किसी कण पर लगे बल
चित्र 6.30 में एक अचल अक्ष के परितः घूर्णन करता एक दृढ़ पिण्ड दर्शाया गया है। घूर्णन अक्ष,
मूल बिन्दु के परितः
यदि पिण्ड पर एक से अधिक बल कार्य कर रहे हों, तो उन सबके द्वारा किए गए कार्यों को जोड़ने से पिण्ड पर किया गया कुल कार्य प्राप्त होगा। विभिन्न बलों के कारण लगे बल आघूर्णों के परिमाणों को
सारणी 6.2 स्थानांतरीय एवं घूर्णी गति की तुलना
रेखीय गति | अचल अक्ष के परितः घूर्णी गति | |
---|---|---|
1 | विस्थापन |
कोणीय विस्थापन |
2 | वेग |
कोणीय वेग |
3 | त्वरण |
कोणीय त्वरण, |
4 | द्रव्यमान |
जड़त्त्व आघूर्ण |
5 | बल |
बल आघूर्ण |
6 | कार्य |
कार्य |
7 | गतिज ऊर्जा |
गतिज ऊर्जा |
8 | शक्ति |
शक्ति |
9 रेखीय संवेग |
कोणीय संवेग |
याद रहे, कि बल आघर्णों को जन्म देने वाले बल तो अलग-अलग कणों पर लग रहे हैं, मगर कोणीय विस्थापन
यह समीकरण एक अचल अक्ष के परितः घूमते पिण्ड पर लगे कुल बाह्य बल आघूर्ण
से इसकी तुल्यता स्पष्ट ही है। समीकरण (6.39) के दोनों पक्षों को
या
यह तात्क्षणिक शक्ति के लिए समीकरण है। अचल अक्ष के परितः घूर्णी गति में शक्ति के इस समीकरण की तुलना रेखीय गति में शक्ति की समीकरण
एक पूर्णतः दृढ़ पिण्ड में विभिन्न कणों की कोई आंतरिक गति नहीं होती। अतः, बाह्य बल आघूर्णों द्वारा किया गया कार्य विसरित नहीं होता। परिणामस्वरूप पिण्ड की गतिज ऊर्जा बढ़ती चली जाती है। पिण्ड पर किए गए कार्य की दर, समीकरण (6.40) द्वारा प्राप्त होती है। इसी दर से पिण्ड की गतिज ऊर्जा बढ़ती है। गतिज ऊर्जा की वृद्धि की दर
हम मानते हैं कि समय के साथ पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण नहीं बदलता। यानि कि पिण्ड का द्रव्यमान स्थिर रहता है तथा पिण्ड दृढ़ बना रहता है और इसके सापेक्ष घूर्णन अक्ष की स्थिति नहीं बदलती।
तब, चूंकि
कार्य करने की दर को गतिज ऊर्जा में वृद्धि की दर के बराबर रखने पर
समीकरण (6.41) सरल रेखीय गति के लिए न्यूटन के द्वितीय नियम
ठीक वैसे ही जैसे बल पिण्ड में रेखीय त्वरण उत्पन्न करता है, बल आघूर्ण इसमें कोणीय त्वरण पैदा करता है। कोणीय त्वरण, आरोपित बल आघूर्ण के समानुपाती और पिण्ड के जड़त्व आघूर्ण के व्युत्क्रमानुपाती होता है। इस संदर्भ में समीकरण (6.41) को, एक अचल अक्ष के परितः घूर्णन के लिए लागू होने वाला न्यूटन का द्वितीय नियम, कह सकते हैं।
6.12 अचल अक्ष के परितः घूर्णी गति का कोणीय संवेग
अनुभाग 6.7 में, हमने कणों के निकाय के कोणीय संवेग के विषय में पढ़ा था। उससे हम यह जानते हैं, कि किसी बिन्दु के परितः, कणों के निकाय के कुल कोणीय संवेग में समय के साथ होने वाले परिवर्तन की दर, उस निकाय पर उसी बिन्दु के परितः लिए गए कुल बाहय बल आघूर्ण के बराबर होती है। जब कुल बाह्य बल आघूर्ण शून्य हो, तो निकाय का कुल कोणीय संवेग संरक्षित रहता है।
अब हम कोणीय संवेग का अध्ययन, एक अचल अक्ष के परितः घूर्णन के विशिष्ट मामलों में करना चाहते हैं।
अब हम पहले, एक अचल अक्ष के परितः किसी दृढ़ पिण्ड के कोणीय संवेग पर विचार करेंगे। प्राप्त समीकरण को सरलतम पदों में लाकर फिर पिण्ड के सभी कणों के लिए इसका जोड़ निकालेंगे तथा पूरे पिण्ड के लिए
चित्र (6.17b) देखिए। घूर्णन करती वस्तु के किसी विशिष्ट कण का स्थिति सदिश
इसी प्रकार हम जाँच सकते हैं कि
तथा
ध्यान दें कि
पूरे पिण्ड का कोणीय संवेग ज्ञात करने के लिए, हम इसके सभी कणों के लिए
जहाँ
या
समीकरण (6.42b) स्वाभाविक रूप से अनुसरित है, क्योंकि
दृढ़ पिण्ड, जिन पर हमने इस अध्याय में मुख्यतः विचार किया है, घूर्णन अक्ष के परितः सममित हैं अर्थात्, घूर्णन अक्ष उनकी सममिति अक्षों में से एक है। इस प्रकार के पिण्डों के लिए, दिए गए
उन पिण्डों के लिए जो घूर्णन अक्ष के परितः सममित नहीं है,
आइये, समीकरण (6.42a) को समय के आधार पर अवकलित करें क्योंकि
समीकरण (6.26b) के अनुसार
जैसा कि आपने पिछले भाग में देखा है एक अचर अक्ष के परितः घूर्णी पिण्ड के लिए बाहय बल आघूर्णी के केवल उन्हीं घटकों पर विचार करने की आवश्यकता है जो घूर्णी अक्ष के अनुदिश हैं। अत:
तथा
अतः अचल अक्ष के परितः घूर्णी पिण्ड का अचल अक्ष के लम्बवत् कोणीय संवेग का घटक अचर है। चूँकि
यदि जड़त्व आघूर्ण
और समीकरण
कार्य-गतिज ऊर्जा संबंध से यह समीकरण हम पहले ही व्युत्पन्न कर चुके हैं।
6.12.1 कोणीय संवेग का संरक्षण
अब हम इस स्थिति में हैं कि कोणीय संवेग के संरक्षण के सिद्धांत का पुनरावलोकन कर सकें। हम अपने विवेचन को एक अचल अक्ष के परितः घूर्णन तक सीमित रखेंगे। समीकरण (6.43c) से, यदि बाह्य बल आघूर्ण शून्य है तो
सममित पिण्डों के लिए, समीकरण (6.42d) से,
यह अचल अक्ष घूर्णन के लिए समीकरण (6.29a) का अन्य रूप है जो कोणीय संवेग के संरक्षण का व्यापक नियम व्यक्त करता है। समीकरण (6.44) हमारे दैनिक जीवन की बहुत सी स्थितियों पर उपयोगी है। अपने मित्र के साथ मिल कर आप यह प्रयोग कर सकते हैं। एक घुमाव कुर्सी पर बैठिए अपनी भुजाएँ मोड़े रखिए और पैरों को जमीन से ऊपर उठाकर रखिए। अपने मित्र से कहिए कि वह कुर्सी को तेजी से घुमाए। जबकि कुर्सी पर्याप्त कोणीय चाल से घूम रही हो अपनी भुजाओं को क्षैतिज दिशा में फैलाइये। क्या परिणाम होता है? आपकी कोणीय चाल घट जाती है। यदि आप अपनी भुजाओं को फिर शरीर के पास ले आयें तो कोणीय चाल फिर से बढ़ जाती है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें कोणीय संवेग का संरक्षण स्पष्ट है। यदि घूर्णन यंत्र व्यवस्था में घर्षण नगण्य हो, तो कुर्सी की घूर्णन अक्ष के परितः कोई बाह्य बल आघूर्ण प्रभावी नहीं रहेगा अतः
चित्र 6.32 (a) कोणीय संवेग के संरक्षण का प्रदर्शन। घुमाऊ कुर्सी पर बैठी लड़की अपनी भुजाओं को शरीर के पास लाती है/ दूर ले जाती है।
एक सरकस का कलाबाज और एक गोताखोर इस सिद्धांत का बखूबी लाभ उठाते हैं। इसके अलावा स्केटर्स और भारतीय या
चित्र 6.32 (b) कलाबाज अपने कला प्रदर्शन में कोणीय संवेग के नियम का लाभ लेते हुए।
पश्चिमी शास्त्रीय नृतक जब एक पैर के पंजे पर घूर्णन करते हैं तो वे उस सिद्धांत संबंधी अपने असाधारण प्रावीण्य का प्रदर्शन करते है।
सारांश
1. एक आदर्श दृढ़ पिंड एक ऐसा पिंड है जिसके कणों पर बल लगाने पर भी उनके बीच की दूरी नहीं बदलती।
2. एक ऐसा दृढ़ पिंड जो किसी बिन्दु पर, या किसी रेखा के अनुदिश स्थिर हो केवल घूर्णी गति ही कर सकता है। जो पिंड किसी प्रकार भी स्थिर न हो वह या तो स्थानान्तरण गति करेगा या घूर्णी और स्थानान्तरण दोनों प्रकार की संयोजित गति।
3. एक नियत अक्ष के परितः घूर्णन में, दृढ़ पिण्ड का प्रत्येक कण अक्ष के लम्बवत् तल में एक वृत्ताकार पथ पर चलता है जिसका केन्द्र अक्ष पर स्थित होता है। अर्थात् घूर्णन करते दृढ़ पिंड की अक्ष के लम्बवत् प्रत्येक रेखा का कोणीय वेग किसी क्षण विशेष पर समान रहता है।
4. शुद्ध स्थानान्तरण में, पिंड का प्रत्येक कण किसी क्षण पर समान वेग से चलता है।
5. कोणीय वेग एक सदिश है। इसका परिमाण
6. दो सदिशों
7. नियत अक्ष के परितः घूर्णन करते दृढ़ पिंड के किसी कण का रेखीय वेग
8. कणों के एक निकाय का द्रव्यमान केन्द्र एक ऐसा बिन्दु है जिसकी स्थिति सदिश हम निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त कर सकते हैं :
9. कणों के निकाय के द्रव्यमान केन्द्र के वेग को हम
10.
11. एक दृढ़ पिण्ड के यांत्रिक संतुलन में होने के लिए,
(i) यह स्थानान्तरीय संतुलन में हो, अर्थात, इस पर लगने वाला कुल बाह्य बल शून्य हो,
(ii) यह घूर्णी संतुलन में हो, अर्थात्, इस पर लगने वाला कुल बाह्य बल आघूर्ण शून्य हो, :
12. किसी विस्तारित आकार के पिंड का गुरुत्व केन्द्र वह बिन्दु है जिसके परितः पिंड का कुल गुरुत्वीय बल आघूर्ण शून्य होता है।
13. किसी अक्ष के परितः एक दृढ़ पिंड का जड़त्व आघूर्ण
राशि | संकेत | विमा | मात्रक | टिप्पणी |
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कोणीय वेग | ||||
कोणीय संवेग | ||||
बल आघूर्ण | ||||
जड़त्व आघूर्ण |
विचारणीय विषय
1. किसी निकाय के द्रव्यमान केन्द्र की गति ज्ञात करने के लिए निकाय के आन्तरिक बलों का ज्ञान आवश्यक नहीं है। इसके लिए हमें केवल पिण्ड पर लगने वाले बाहय बलों का ज्ञान होना चाहिए।
2. कणों के किसी निकाय की गति को, इसके द्रव्यमान केन्द्र की स्थानान्तरीय गति और द्रव्यमान केन्द्र के परितः इसकी घूर्णी गति में अलग-अलग करके विचार करना कणों के निकाय के गति विज्ञान की एक उपयोगी तकनीक है। इस तकनीक का एक उदाहरण, कणों के निकाय की गतिज ऊर्जा
3. परिमित आकार के पिंडों (अथवा कणों के निकायों) के लिए लाग होने वाला न्यूटन का द्वितीय नियम कणों के लिए लागू होने वाले न्यूटन के द्वितीय एवं तृतीय नियमों के ऊपर आधारित है।
4. यह स्थापित करने के लिए कि कणों के निकाय के कुल कोणीय संवेग परिवर्तन की दर, निकाय पर आरोपित कुल बल आघूर्ण है, हमें न केवल कणों के लिए लागू होने वाले न्यूटन के द्वितीय नियम की आवश्यकता होगी वरन् तृतीय नियम भी इस शर्त के साथ लागू करना होगा कि किन्ही दो कणों के बीच बल उनको मिलाने वाली रेखा के अनुदिश ही कार्य करते हैं।
5. कुल बाहय बल का शून्य होना और कुल बाहय बल आघूर्ण का शून्य होना दो स्वतंत्र शर्तें हैं। यह हो सकता है कि एक शर्त पूरी होती हो पर दूसरी पूरी न होती हो। बलयुग्म में कुल बाह्य बल शून्य है पर बल आघूर्ण शून्य नहीं है।
6. यदि कुल बाहय बल शून्य हो तो निकाय पर लगने वाला कुल बल आघूर्ण मूल बिन्दु के ऊपर निर्भर नहीं करता।
7. किसी पिंड का गुरुत्व केन्द्र उसके द्रव्यमान केन्द्र से तभी संपाती होता है जब गुरुत्व क्षेत्र पिंड के विभिन्न भागों पर समान होता है।
8. यदि दृढ़ पिंड एक नियत अक्ष के परितः घूर्णन कर रहा हो तब भी यह आवश्यक नहीं है कि इसका कोणीय संवेग