अध्याय 05 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

5.1 भूमिका

दैनिक बोल चाल की भाषा में हम प्राय: ‘कार्य’, ‘ऊर्जा’, और ‘शक्ति’ शब्दों का प्रयोग करते हैं। यदि कोई किसान खेत जोतता है, कोई मिस्त्री ईंट ढोता है, कोई छात्र परीक्षा के लिए पढ़ता है या कोई चित्रकार सुन्दर दृश्यभूमि का चित्र बनाता है तो हम कहते हैं कि सभी कार्य कर रहे हैं परन्तु भौतिकी में कार्य शब्द को परिशुद्ध रूप से परिभाषित करते हैं। जिस व्यक्ति में प्रतिदिन चौदह से सोलह घण्टें कार्य करने की क्षमता होती है, उसे अधिक शक्ति या ऊर्जा वाला कहते हैं। हम लंबी दूरी वाले घातक को उसकी शक्ति या ऊर्जा के लिए प्रशंसा करते हैं। इस प्रकार ऊर्जा कार्य करने की क्षमता है। भौतिकी में भी ऊर्जा कार्य से इसी प्रकार सम्बन्धित है परन्तु जैसा ऊपर बताया गया है शब्द कार्य को और अधिक परिशुद्ध रूप से परिभाषित करते हैं। शक्ति शब्द का दैनिक जीवन में प्रयोग विभिन्न अर्थों में होता है। कराटे या बॉक्सिंग में शक्तिशाली मुक्का वही माना जाता है जो तेज गति से मारा जाता है। शब्द ‘शक्ति’ का यह अर्थ भौतिकी में इस शब्द के अर्थ के निकट है। हम यह देखेंगे कि इन पदों की भौतिक परिभाषाओं तथा इनके द्वारा मस्तिष्क में बने कार्यकीय चित्रणों के बीच अधिक से अधिक यह सम्बन्ध अल्प ही होता है। इस पाठ का लक्ष्य इन तीन भौतिक राशियों की धारणाओं का विकास करना है लेकिन इसके पहले हमें आवश्यक गणितीय भाषा मुख्यतः दो सदिशों के अदिश गुणनफल को समझना होगा।

5.1.1 अदिश गुणनफल

अध्याय 4 में हम लोगों ने सदिश राशियों और उनके प्रयोगों के बारे में पढ़ा है। कई भौतिक राशियाँ; जैसे-विस्थापन, वेग, त्वरण, बल आदि सदिश हैं। हम लोगों ने सदिशों को जोड़ना और घटाना भी सीखा है। अब हम लोग सदिशों के गुणन के बारे में अध्ययन करेंगे। सदिशों को गुणा करने की दो विधियाँ हैं। प्रथम विधि से दो सदिशों के गुणनफल से अदिश गुणनफल प्राप्त होता है और इसे अदिश गुणनफल कहते हैं। दूसरी विधि में दो सदिशों के गुणनफल से एक सदिश प्राप्त होता है और इसे सदिश गुणनफल कहते हैं। सदिश गुणनफल के बारे में हम लोग अध्याय 6 में पढ़ेंगे। इस अध्याय में हम लोग अदिश गुणनफल की विवेचना करेंगे।

किन्हीं दो सदिशों $\mathbf{A}$ तथा $\mathbf{B}$ के अदिश या बिंदु-गुणनफल (डॉट गुणनफल) को हम [A.B (A डॉट B)] के रूप में लिखते हैं और निम्न प्रकार से परिभाषित करते हैं :

$$ \begin{equation*} \text { A. } \mathbf{B}=A B \cos \theta \tag{5.1a} \end{equation*} $$

यहाँ $\theta$ दो सदिशों $\mathbf{A}$ तथा $\mathbf{B}$ के बीच का कोण है। इसे चित्र $5.1 \mathrm{a}$ में दिखाया गया है। क्योंकि, $B$ तथा $\cos \theta$ सभी अदिश हैं इसलिए $A$ तथा $B$ का बिंदु गुणनफल भी अदिश राशि है। $\mathbf{A}$ व B में से प्रत्येक की अपनी-अपनी दिशा है किन्तु उनके अदिश गुणनफल की कोई दिशा नहीं है।

समीकरण (5.1a) से हमें निम्नलिखित परिणाम मिलता है :

$$ \begin{aligned} \mathbf{A} \cdot \mathbf{B} & =A(B \cos \theta) \\ & =B(A \cos \theta) \end{aligned} $$

ज्यामिति के अनुसार $B \cos \theta$ सदिश $\mathbf{B}$ का सदिश $\mathbf{A}$ पर प्रक्षेप है (चित्र 5.1b)। इसी प्रकार $A \cos \theta$ सदिश $\mathbf{A}$ का सदिश $\mathbf{B}$ पर प्रक्षेप है (देखिए चित्र 5.1c)। इस प्रकार $\mathbf{A} \cdot \mathbf{B}$ सदिश $\mathbf{A}$ के परिमाण तथा $\mathbf{B}$ के अनुदिश $\mathbf{A}$ के घटक के गुणनफल के बराबर होता है। दूसरे तरीके से यह $\mathbf{B}$ के परिमाण तथा $\mathbf{A}$ का सदिश $\mathbf{B}$ के अनुदिश घटक के गुणनफल के बराबर है।

समीकरण (5.1a) से यह संकेत भी मिलता है कि अदिश गुण्नफल क्रम विनिमेय नियम का पालन करता है-

$\mathbf{A} \cdot \mathbf{B}=\mathbf{B} \cdot \mathbf{A}$

अदिश गुणनफल वितरण-नियम का भी पालन करते हैं :

$$ \mathbf{A} \cdot(\mathbf{B}+\mathbf{C})=\mathbf{A} \cdot \mathbf{B}+\mathbf{A} \cdot \mathbf{C} $$

तथा,

$$ \mathbf{A} \cdot(\lambda \mathbf{B})=\lambda(\mathbf{A} \cdot \mathbf{B}) $$

यहाँ $\lambda$ एक वास्तविक संख्या है।

उपरोक्त समीकरणों की व्युत्पत्ति आपके लिए अभ्यास हेतु छोड़ी जा रही है।

अब हम एकांक सदिशों $\hat{\mathbf{i}}, \hat{\mathbf{j}}, \hat{\mathbf{k}}$ का अदिश गुणनफल निकालेंगे। क्योंकि वे एक दूसरे के लंबवत् हैं, इसलिए

$$ \begin{aligned} & \hat{\mathbf{i}} \cdot \hat{\mathbf{i}}=\hat{\mathbf{j}} \cdot \hat{\mathbf{j}}=\hat{\mathbf{k}} \cdot \hat{\mathbf{k}}=1 \\ & \hat{\mathbf{i}} \cdot \hat{\mathbf{j}}=\hat{\mathbf{j}} \cdot \hat{\mathbf{k}}=\hat{\mathbf{k}} \cdot \hat{\mathbf{i}}=0 \end{aligned} $$

चित्र 5.1 (a) दो सदिशों $\mathbf{A}$ व $\mathbf{B}$ का अदिश गुणनफल एक अदिश होता है अर्थात् $\mathbf{A} \cdot \mathbf{B}=A B \cos \theta,(b) B \cos \theta$ सदिश $\mathbf{B}$ का सदिश $\mathbf{A}$ पर प्रक्षेप है, (c) $A \cos \theta$ सदिश $\mathbf{A}$ का $\mathbf{B}$ पर प्रक्षेप है।

दो सदिशों

$$ \begin{aligned} & \mathbf{A}=A _{x} \hat{\mathbf{i}}+A _{y} \hat{\mathbf{j}}+A _{z} \hat{\mathbf{k}} \\ & \mathbf{B}=B _{x} \hat{\mathbf{i}}+B _{y} \hat{\mathbf{j}}+B _{z} \hat{\mathbf{k}} \end{aligned} $$

का अदिश गुणनफल होगा :

$$ \begin{align*} \mathbf{A} \cdot \mathbf{B} & =\left(A _{x} \hat{\mathbf{i}}+A _{y} \hat{\mathbf{j}}+A _{z} \hat{\mathbf{k}}\right) \cdot\left(B _{x} \hat{\mathbf{i}}+B _{y} \hat{\mathbf{j}}+B _{z} \hat{\mathbf{k}}\right) \\ & =\mathrm{A} _{x} B _{x}+\mathrm{A} _{y} B _{y}+\mathrm{A} _{z} B _{z} \tag{5.1b} \end{align*} $$

अदिश गुणनफल परिभाषा तथा समीकरण (5.1b) से हमें निम्न प्राप्त होता है :

(i) $\quad \mathbf{A} \cdot \mathbf{A}=A _{x} A _{x}+A _{y} A _{y}+A _{z} A _{z}$

अथवा $A^{2}=A^{2}{ } _{x}+A^{2}{ } _{y}+A^{2}{ } _{z}$

क्योंकि $\mathbf{A} \cdot \mathbf{A}=\mathbf{A} \mathbf{A} \cos 0=A^{2}$

(ii) $\mathbf{A} \cdot \mathbf{B}=0$ यदि। $\mathbf{A}$ व $\mathbf{B}$ एक दूसरे के लंबवत् हैं।

5.2 कार्य और गतिज ऊर्जा की धारणा : कार्य-ऊर्जा प्रमेय

अध्याय 2 में, नियत त्वरण $a$ के अंतर्गत सरल रेखीय गति के लिए आप निम्न भौतिक संबंध पढ़ चुके हैं;

$$ \begin{equation*} v^{2}-u^{2}=2 a s \tag{5.2} \end{equation*} $$

जहाँ $u$ तथा $v$ क्रमशः आरंभिक व अंतिम चाल और $s$ वस्तु द्वारा चली गई दूरी है। दोनों पक्षों को $m / 2$ से गुणा करने पर

$$ \begin{equation*} \frac{1}{2} m v^{2}-\frac{1}{2} m u^{2}=m a s=F s \tag{5.2a} \end{equation*} $$

जहाँ आखिरी चरण न्यूटन के द्वितीय नियमानुसार है। इस प्रकार सदिशों के प्रयोग द्वारा सहज ही समीकरण (5.2) का त्रिविमीय व्यापकीकरण कर सकते हैं

$$ v^{2}-u^{2}=2 \mathbf{a} \cdot \mathbf{d} $$

यहाँ $a$ और $b$ पिंड के क्रमशः त्वरण और विस्थापन सदिश हैं। एक बार फिर दोनों पक्षों को $m / 2$ से गुणा करने पर हम प्राप्त करते हैं

$$ \begin{equation*} \frac{1}{2} m v^{2}-\frac{1}{2} m u^{2}=m \mathbf{a} \cdot \mathbf{d}=\mathbf{F} \cdot \mathbf{d} \tag{5.2b} \end{equation*} $$

उपरोक्त समीकरण कार्य एवं गतिज ऊर्जा को परिभाषित करने के लिए प्रेरित करता है। समीकरण ( 5.2 b) में बायाँ पक्ष वस्तु के द्रव्यमान के आधे और उसकी चाल के वर्ग के गुणनफल के अंतिम और आरंभिक मान का अंतर है। हम इनमें से प्रत्येक राशि को ‘गतिज ऊर्जा’ कहते हैं और संकेत $K$ से निर्दिष्ट करते हैं। समीकरण का दायाँ पक्ष वस्तु पर आरोपित बल का विस्थापन के अनुदिश घटक और वस्तु के विस्थापन का गुणनफल है। इस राशि को ‘कार्य’ कहते हैं और इसे संकेत $W$ से निर्दिष्ट करते हैं। अतः समीकरण $(5.2 \mathrm{~b})$ को निम्न प्रकार लिख सकते हैं :

$$ \begin{equation*} K _{f}-K _{i}=W \tag{5.3} \end{equation*} $$

जहाँ $\mathrm{K} _{\mathrm{i}}$ तथा $\mathrm{K} _{\mathrm{f}}$ वस्तु की आरंभिक एवं अंतिम गतिज ऊर्जा हैं। कार्य किसी वस्तु पर लगने वाले बल और इसके विस्थापन के संबंध को बताता है। अतः किसी निश्चित विस्थापन के दौरान वस्तु पर लगाया गया बल कार्य करता है।

समीकरण (5.3) कार्य-ऊर्जा प्रमेय की एक विशेष स्थिति है जो यह प्रदर्शित करती है कि किसी वस्तु पर लगाए गए कुल बल द्वारा किया गया कार्य उस वस्तु की गतिज ऊर्जा में परिवर्तन के बराबर होता है। परिवर्ती बल के लिए उपरोक्त व्युत्पत्ति का व्यापकीकरण हम अनुभाग 5.6 में करेंगे ।

5.3 कार्य

उपरोक्त अनुभाग में आपने देखा कि कार्य, बल और उसके द्वारा वस्तु के विस्थापन से संबंधित होता है। माना कि एक अचर बल $\mathbf{F}$, किसी $m$ द्रव्यमान के पिंड पर लग रहा है जिसके कारण पिंड का धनात्मक $x$-दिशा में होने वाला विस्थापन $\mathbf{d}$ है जैसा कि चित्र 5.2 में दर्शाया गया है।

चित्र 5.2 किसी पिंड का आरोपित बल $\mathbf{F}$ के कारण विस्थापन $\mathbf{d}$ ।

अतः किसी बल द्वारा किया गया कार्य “बल के विस्थापन की दिशा के अनुदिश घटक और विस्थापन के परिमाण के गुणनफल” के रूप में परिभाषित किया जाता है। अतः

$W=(F \cos \theta) d=\mathbf{F} \cdot \mathbf{d}$

हम देखते हैं कि यदि वस्तु का विस्थापन शून्य है तो बल का परिमाण कितना ही अधिक क्यों न हो, वस्तु द्वारा किया गया कार्य शून्य होता है। जब कभी आप किसी ईंटों की दृढ़ दीवार को धक्का देते हैं तो कोई कार्य नहीं होता है। इस प्रक्रिया में आपकी मांसपेशियों का बारी-बारी से संकुचन और शिथिलीकरण हो रहा है और आंतरिक ऊर्जा लगातार व्यय हो रही है और आप थक जाते हैं। भौतिक विज्ञान में कार्य का अर्थ इसके दैनिक भाषा में प्रयोग के अर्थ से भिन्न है।

कोई भी कार्य संपन्न हुआ नहीं माना जाता है यदि :

(i) वस्तु का विस्थापन शून्य है, जैसा कि पूर्ववर्ती उदाहरण में आपने देखा। कोई भारोत्तोलक $150 \mathrm{~kg}$ द्रव्यमान के भार को $30 \mathrm{~s}$ तक अपने कंधे पर लगातार उठाए हुए खड़ा है तो वह कोई कार्य नहीं कर रहा है।

(ii) बल शून्य है। किसी चिकनी क्षैतिज मेज पर गतिमान पिंड पर कोई क्षैतिज बल कार्य नहीं करता है, (क्योंकि घर्षण नहीं है) परंतु पिंड का विस्थापन काफी अधिक हो सकता है।

(iii) बल और विस्थापन परस्पर लंबवत् हैं क्योंकि $\theta=\pi / 2$ $\operatorname{rad}\left(=90^{\circ}\right), \cos (\pi / 2)=0$ । किसी चिकनी क्षैतिज मेज पर गतिमान पिंड के लिए गुरुत्वाकर्षण बल $m g$ कोई कार्य नहीं करता है क्योंकि यह विस्थापन के लंबवत् कार्य कर रहा है। पृथ्वी के परितः चंद्रमा की कक्षा लगभग वृत्ताकार है। यदि हम चंद्रमा की कक्षा को पूर्ण रूप से वृत्ताकार मान लें, तो पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल कोई कार्य नहीं करता है क्योंकि चंद्रमा का तात्कालिक विस्थापन स्पर्शरेखीय है जबकि पृथ्वी का बल त्रिज्यीय (केंद्र की ओर) है, अर्थात् $\theta=\pi / 2$ ।

कार्य धनात्मक व ॠणात्मक दोनों प्रकार का हो सकता है। यदि $\theta, 0^{\circ}$ और $90^{\circ}$ के मध्य है तो समीकरण (5.4) में $\cos \theta$ का मान धनात्मक होगा। यदि $\theta, 90^{\circ}$ और $180^{\circ}$ के मध्य है तो $\cos \theta$ का मान ऋणात्मक होगा। अनेक उदाहरणों में घर्षण बल, विस्थापन का विरोध करता है और $\theta=180^{\circ}$ होता है। ऐसी दशा में घर्षण बल द्वारा किया गया कार्य ऋणात्मक होता है $\left(\cos 180^{\circ}=-1\right)$ ।

समीकरण (5.4) से स्पष्ट है कि कार्य और ऊर्जा की विमाएँ समान $\left[\mathrm{M} \mathrm{L}^{2} \mathrm{~T}^{-2}\right]$ हैं । ब्रिटिश भौतिकविद जेम्स प्रेसकॉट जूल (1818-1869) के सम्मान में इनका SI मात्रक ‘जूल’ कहलाता है। चूंकि कार्य एवं ऊर्जा व्यापक रूप से भौतिक धारणाओं के रूप में प्रयोग किए जाते हैं, अतः ये वैकल्पिक मात्रकों से भरपूर हैं और उनमें से कुछ सारणी 5.1 में सूचीबद्ध हैं। सारणी 5.1 : कार्य/ऊर्जा के वैकल्पिक मात्रक (जल में)

अर्ग $10^{-7} \mathrm{~J}$
इलेक्ट्रॉन वोल्ट $(\mathrm{eV})$ $1.6 \times 10^{-19} \mathrm{~J}$
कैलोरी (cal) $4.186 \mathrm{~J}$
किलोवाट-घंटा $(\mathrm{kWh})$ $3.6 \times 10^{6} \mathrm{~J}$

इस उदाहरण से हमें यह पता चलता है कि यद्यपि पिंड $B$ द्वारा $A$ पर लगाया गया बल, पिंड $A$ द्वारा पिंड $B$ पर लगाए गए बल के बराबर तथा विपरीत दिशा में है (न्यूटन का गति का तीसरा नियम) तथापि यह आवश्यक नहीं है कि पिंड $B$ द्वारा $A$ पर किया गया कार्य, पिंड $A$ द्वारा $B$ पर किए गए कार्य के बराबर तथा विपरीत दिशा में हो।

5.4 गतिज ऊर्जा

जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, यदि किसी पिंड का द्रव्यमान $m$ और वेग $\mathbf{v}$ है तो इसकी गतिज ऊर्जा,

$$ \begin{equation*} K=\frac{1}{2} m \mathbf{v} \cdot \mathbf{v}=\frac{1}{2} m v^{2} \tag{5.5} \end{equation*} $$

गतिज ऊर्जा एक अदिश राशि है।

सारणी 5.2 विशिष्ट गतिज ऊर्जाएँ ( $K$ )

पिंड द्रव्यमान (kg) चाल $\left(\mathrm{m} \mathrm{s}^{-1}\right)$ $K(\mathrm{~J})$
कार 2000 25 $6.3 \quad 10^{5}$
धावक (ऐथलीट) 70 10 $3.510^{3}$
गोली $5 \quad 10^{-2}$ 200 $10^{3}$
$10 \mathrm{~m}$ की ऊँचाई से गिरता पत्थर 1 14 $10^{2}$
अंतिम वेग से गिरती वर्षा की बूँद $3.510^{-5}$ 9 $1.4 \quad 10^{-3}$
वायु का अणु $\simeq 10^{-26}$ 500 $\simeq 10^{-21}$

किसी पिंड की गतिज ऊर्जा, उस पिंड द्वारा किए गए कार्य की माप होती है जो वह अपनी गति के कारण कर सकता है। इस धारणा का अंतर्जान काफी समय से है। तीव्र गति से बहने वाली जल की धारा की गतिज ऊर्जा का उपयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता है। पाल जलयान पवन की गतिज ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। सारणी 5.2 में विभिन्न पिंडों की गतिज ऊर्जाएँ सूचीबद्ध हैं।

5.5 परिवर्ती बल द्वारा किया गया कार्य

अचर बल दुष्प्राप्य है। अधिकतर परिवर्ती बल के उदाहरण ही देखने को मिलते हैं। चित्र 5.3 एकविमीय परिवर्ती बल का आलेख है।

यदि विस्थापन $\Delta x$ सूक्ष्म है तब हम बल $F(x)$ को भी लगभग नियत ले सकते हैं और तब किया गया कार्य

$$ \Delta W=F(x) \Delta x $$

इसे चित्र 5.3(a) में समझाया गया है। चित्र 5.3(a) में क्रमिक आयताकार क्षेत्रफलों का योग करने पर हमें कुल किया गया कार्य प्राप्त होता है जिसे इस प्रकार लिखा जाता है :

$$ \begin{equation*} W \cong \sum _{x _{i}}^{x _{f}} F(x) \Delta x \tag{5.6} \end{equation*} $$

जहाँ संकेत ’ $\Sigma$ ’ का अर्थ है संकलन-फल (योगफल), जबकि ’ $x _{i}^{\prime}$ ’ वस्तु की आरंभिक स्थिति और ’ $x _{f}^{\prime}$ वस्तु की अंतिम स्थिति को निरूपित करता है।

यदि विस्थापनों को अतिसूक्ष्म मान लिया जाए तब योगफल में पदों की संख्या असीमित रूप से बढ़ जाती है लेकिन योगफल एक निश्चित मान के समीप पहुंच जाता है जो चित्र 5.3(b) में वक्र के नीचे के क्षेत्रफल के समान होता है ।

(a)

(b)

चित्र 5.3 (a) परिवर्ती बल $F(x)$ द्वारा सूक्ष्म विस्थापन $\Delta x$ में किया गया कार्य $\Delta W=F(x) \Delta x$ छायांकित आयत से निरूपित है। (b) $\Delta x \rightarrow 0$ के लिए सभी आयतों के क्षेत्रफलों को जोड़ने पर, वक्र द्वारा आच्छादित क्षेत्रफल, बल $F(x)$ द्वारा किए गए कार्य के ठीक बराबर है ।

अतः किया गया कार्य

$$ \begin{align*} W & =\Delta x \rightarrow O \sum _{x i}^{x f} F(x) \Delta x \\ & =\int _{x i}^{x f} F(x) d x \tag{5.7} \end{align*} $$

जहाँ ’lim’ का अर्थ है ‘योगफल की सीमा’ जबकि $\Delta x$ नगण्य रूप से सूक्ष्म मानों की ओर अग्रसर है। इस प्रकार परिवर्ती बल के लिए किए गए कार्य को बल का विस्थापन पर सीमांकित समाकलन, के रूप में व्यक्त कर सकते हैं ।

5.6 परिवर्ती बल के लिए कार्य-ऊर्जा प्रमेय

हम परिवर्ती बल के लिए कार्य-ऊर्जा प्रमेय को सिद्ध करने के लिए कार्य और गतिज ऊर्जा की धारणाओं से भलीभांति परिचित हैं। यहाँ हम कार्य-ऊर्जा प्रमेय के एकविमीय पक्ष तक ही विचार को सीमित करेंगे। गतिज ऊर्जा परिवर्तन की दर है :

$$ \begin{aligned} \frac{\mathrm{d} K}{\mathrm{~d} t} & =\frac{\mathrm{d}}{\mathrm{d} t} \frac{1}{2} m v^{2} \\ & =m \frac{\mathrm{d} v}{\mathrm{~d} t} v \\ & =F v\left(\text { न्यूटन के दूसरे नियमानुसार }=\mathrm{m} \frac{\mathrm{d} v}{\mathrm{~d} t}=F\right) \\ & =F \frac{\mathrm{d} x}{\mathrm{~d} t} \end{aligned} $$

अत: $\mathrm{d} K=F \mathrm{~d} x$

प्रारंभिक स्थिति $x _{i}$ से अंतिम स्थिति $x _{f}$ तक समाकलन करने पर,

$$ \int _{K _{t}}^{K _{f}} d K=\int _{x _{i}}^{x _{f}} F d x $$

जहाँ $x _{i}$ और $x _{f}$ के संगत $K _{i}$ और $K _{f}$ क्रमशः प्रारंभिक एवं अंतिम गतिज ऊर्जाएँ हैं।

$$ \begin{equation*} \text { या } K _{f}-K _{i}=\int _{x _{i}}^{x _{f}} F \mathrm{~d} x \tag{5.8a} \end{equation*} $$

समीकरण (5.7) से प्राप्त होता है

$$ \begin{equation*} K _{f}-K _{i}=W \tag{5.8b} \end{equation*} $$

इस प्रकार परिवर्ती बल के लिए कार्य-ऊर्जा प्रमेय सिद्ध होती है।

हालांकि कार्य-ऊर्जा प्रमेय अनेक प्रकार के प्रश्नों को हल करने में उपयोगी है परंतु यह न्यूटन के द्वितीय नियम की पूर्णरूपेण गतिकीय सूचना का समावेश नहीं करती है। वास्तव में यह न्यूटन के द्वितीय नियम का समाकल रूप है। न्यूटन का द्वितीय नियम किसी क्षण, त्वरण तथा बल के बीच संबंध दर्शाता है। कार्य-ऊर्जा प्रमेय में एक काल के लिए समाकल निहित है। इस दृष्टि से न्यूटन के द्वितीय नियम में निहित कालिक सूचना कार्य ऊर्जा प्रमेय में स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं होता। बल्कि एक निश्चित काल के लिए समाकलन के रूप में होता है। दूसरी ध्यान देने की बात यह है कि दो या तीन विमाओं में न्यूटन का द्वितीय नियम सदिश रूप में होता है जबकि कार्य-ऊर्जा प्रमेय अदिश रूप में होता है।

न्यूटन के द्वितीय नियम में दिशा संबंधित निहित ज्ञान भी कार्य ऊर्जा प्रमेय जैसे- अदिश संबंध में निहित नहीं है।

5.7 स्थितिज ऊर्जा की अभिधारणा

यहाँ ‘स्थितिज ’ शब्द किसी कार्य को करने की संभावना या क्षमता को व्यक्त करता है। स्थितिज ऊर्जा की धारणा ‘संग्रहित’ ऊर्जा से संबंधित है। किसी खिंचे हुए तीर-कमान के तार (डोरी) की ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा होती है। जब इसे ढीला छोड़ा जाता है तो तीर तीव्र चाल से दूर चला जाता है। पृथ्वी के भूपृष्ठ पर भ्रंश रेखाएँ संपीडित कमानियों के सदृश होती हैं। उनकी स्थितिज ऊर्जा बहुत अधिक होती है। जब ये भ्रंश रेखाएँ फिर से समायोजित हो जाती हैं तो भूकंप आता है। किसी भी पिंड की स्थितिज ऊर्जा (संचित ऊर्जा) उसकी स्थिति या अभिविन्यास के कारण होती है। पिंड को मुक्त रूप से छोड़ने पर इसमें संचित ऊर्जा, गतिज ऊर्जा के रूप में निर्मुक्त होती है। आइए, अब हम स्थितिज ऊर्जा की धारणा को एक निश्चित रूप देते हैं।

पृथ्वी की सतह के समीप $m$ द्रव्यमान की एक गेंद पर आरोपित गुरुत्वाकर्षण बल $m g$ है। $g$ को पृथ्वी की सतह के समीप अचर माना जा सकता है । यहाँ समीपता से तात्पर्य यह है कि गेंद की पृथ्वी की सतह से ऊँचाई $h$, पृथ्वी की त्रिज्या $R _{\mathrm{E}}$ की तुलना में अति सूक्ष्म है $\left(h«R _{\mathrm{E}}\right)$, अतः हम पृथ्वी के पृष्ठ पर $g$ के मान में परिवर्तन की उपेक्षा कर सकते हैं।* माना कि गेंद को बिना कोई गति प्रदान किए $h$ ऊँचाई तक ऊपर उठाया जाता है। अतः बाह्य कारक द्वारा गुरुत्वाकर्षण बल के विरुद्ध किया गया कार्य $m g h$ होगा। यह कार्य, स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। किसी पिण्ड की $h$ ऊँचाई पर गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा उसी पिण्ड को उसी ऊँचाई तक उठाने में गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा किए गए कार्य के ऋणात्मक मान के बराबर होता है।

$$ V(h)=m g h $$

यदि $h$ को परिवर्ती लिया जाता है तो यह सरलता से देखा जा सकता है कि गुरुत्वाकर्षण बल $F, h$ के सापेक्ष $V(h)$ के ॠणात्मक अवकलज के समान है

$$ F=-\frac{\mathrm{d}}{\mathrm{d} h} V(h)=-m g $$

यहाँ ऋणात्मक चिहन प्रदर्शित करता है कि गुरुत्वाकर्षण बल नीचे की ओर है। जब गेंद को छोड़ा जाता है तो यह बढ़ती हुई चाल से नीचे आती है। पृथ्वी की सतह से संघट्ट से पूर्व इसकी चाल शुद्धगतिकी संबंध द्वारा निम्न प्रकार दी जाती है

$$ v^{2}=2 g h $$

इसी समीकरण को निम्न प्रकार से भी लिखा जा सकता है :

$\frac{1}{2} m v^{2}=m g h$

जो यह प्रदर्शित करता है कि जब पिण्ड को मुक्त रूप से छोड़ा जाता है तो पिंड की $h$ ऊँचाई पर गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा पृथ्वी पर पहुंचने तक स्वतः ही गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है ।

प्राकृतिक नियमानुसार, स्थितिज ऊर्जा की धारणा केवल उन्हीं बलों की श्रेणी में लागू होती है जहाँ बल के विरुद्ध किया गया कार्य, ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है और जो बाह्य कारक के हट जाने पर स्वतः गतिज ऊर्जा के रूप में दिखाई पड़ती है। गणितानुसार स्थितिज ऊर्जा $V(x)$ को (सरलता के लिए एक-विमा में)[^4]

परिभाषित किया जाता है यदि $F(x)$ बल को निम्न रूप में लिखा जाता है :

$$ F(x)=-\frac{\mathrm{d} V}{\mathrm{~d} x} $$

यह निरूपित करता है कि

$$ \int _{x _{i}}^{x _{f}} F(x) \mathrm{d} x=-\int _{V _{i}}^{V _{f}} d V=V _{i}-V _{f} $$

किसी संरक्षी बल जैसे गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा किया गया कार्य पिण्ड की केवल आरंभिक तथा अंतिम स्थिति पर निर्भर करता है। पिछले अध्याय में हमने आनत समतल से संबंधित उदाहरणों का अध्ययन किया। यदि $m$ द्रव्यमान का कोई पिण्ड $h$ ऊंचाई के चिकने (घर्षणरहित) आनत तल के शीर्ष से विरामावस्था से छोड़ा जाता है तो आनत समतल के अधस्तल (तली) पर इसकी चाल, आनति (झुकाव) कोण का ध्यान रखे बिना $\sqrt{2 g h}$ होती है। इस प्रकार यहां पर पिण्ड $m g h$ गतिज ऊर्जा प्राप्त कर लेता है। यदि किया गया कार्य या गतिज ऊर्जा दूसरे कारकों, जैसे पिण्ड के वेग या उसके द्वारा चले गए विशेष पथ की लंबाई पर निर्भर करता है तब यह बल असंरक्षी होता है।

कार्य या गतिज ऊर्जा के सदृश स्थितिज ऊर्जा की विमा $\left[\mathrm{ML}^{2} \mathrm{~T}^{-2}\right]$ और SI मात्रक जूल $(\mathrm{J})$ है। याद रखिए कि संरक्षी बल के लिए, स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन $\Delta V$ बल द्वारा किए गए ॠणात्मक कार्य के बराबर होता है।

$$ \begin{equation*} \Delta V=-F(x) \Delta x \tag{5.9} \end{equation*} $$

इस अनुभाग में गिरती हुई गेंद के उदाहरण में हमने देखा कि किस प्रकार गेंद की स्थितिज ऊर्जा उसकी गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो गई थी। यह यांत्रिकी में संरक्षण के महत्त्वपूर्ण सिद्धांत की ओर संकेत करता है जिसे हम अब परखेंगे।

5.8 यांत्रिक ऊर्जा का संरक्षण

सरलता के लिए, हम इस महत्त्वपूर्ण सिद्धांत का एकविमीय गति के लिए निदर्शन कर रहे हैं। मान लीजिए कि किसी पिण्ड का संरक्षी बल $F$ के कारण विस्थापन $\Delta x$ होता है। कार्य-ऊर्जा प्रमेय से, किसी बल $F$ के लिए

$$ \Delta K=F(x) \Delta x $$

संरक्षी बल के लिए स्थितिज ऊर्जा फलन $V(x)$ को निम्न रूप से परिभाषित किया जा सकता है :

$$ -\Delta V=F(x) \Delta x $$

उपरोक्त समीकरण निरूपित करती है कि

$$ \begin{align*} & \Delta K+\Delta V=0 \\ & \Delta(K+V)=0 \tag{5.10} \end{align*} $$

इसका अर्थ है कि किसी पिण्ड की गतिज और स्थितिज ऊर्जाओं का योगफल, $K+V$ अचर होता है। इससे तात्पर्य है कि संपूर्ण पथ $x _{i}$ से $x _{f}$ के लिए

$$ \begin{equation*} K _{i}+V\left(x _{i}\right)=K _{f}+V\left(x _{f}\right) \tag{5.11} \end{equation*} $$

यहाँ राशि $K+V(x)$, निकाय की कुल यांत्रिक ऊर्जा कहलाती है। पृथक रूप से, गतिज ऊर्जा $K$ और स्थितिज ऊर्जा $V(x)$ एक स्थिति से दूसरी स्थिति तक परिवर्तित हो सकती है परंतु इनका योगफल अचर रहता है। उपरोक्त विवेचन से शब्द ‘संरक्षी बल’ की उपयुक्तता स्पष्ट होती है।

आइए, अब हम संक्षेप में संरक्षी बल की विभिन्न परिभाषाओं पर विचार करते हैं।

  • कोई बल $F(x)$ संरक्षी है यदि इसे समीकरण (5.9) के प्रयोग द्वारा अदिश राशि $V(x)$ से प्राप्त कर सकते हैं। त्रिविमीय व्यापकीकरण के लिए सदिश अवकलज विधि का प्रयोग करना पड़ता है जो इस पुस्तक के विवेचना क्षेत्र से बाहर है।
  • संरक्षी बल द्वारा किया गया कार्य केवल सिरे के बिंदुओं पर निर्भर करता है जो निम्न संबंध से स्पष्ट है :

$W=K _{f}-K _{i}=V\left(x _{i}\right)-V\left(x _{f}\right)$

  • तीसरी परिभाषा के अनुसार, इस बल द्वारा बंद पथ में किया गया कार्य शून्य होता है।

यह एक बार फिर समीकरण (5.11) से स्पष्ट है, क्योंकि $x _{i}=x _{f}$ है।

अतः यांत्रिक ऊर्जा-संरक्षण नियम के अनुसार किसी भी निकाय की कुल यान्त्रिक ऊर्जा अचर रहती है यदि उस पर कार्य करने वाले बल संरक्षी हैं।

उपरोक्त विवेचना को अधिक मूर्त बनाने के लिए, एक बार फिर गुरुत्वाकर्षण बल के उदाहरण पर विचार करते हैं और स्प्रिंग बल के उदाहरण पर अगले अनुभाग में विचार करेंगे। चित्र $5.5 \mathrm{H}$ ऊँचाई की किसी चट्टान से गिराई, $m$ द्रव्यमान की गेंद का चित्रण करता है।

चित्र $5.5 \mathrm{H}$ ऊँचाई की किसी चट्टान से गिराई गई, $m$ द्रव्यमान की गेंद की स्थितिज ऊर्जा का गतिज ऊर्जा में रूपांतरण।

गेंद की निदर्शित ऊँचाई, शून्य ( भूमितल), $h$ और $H$ के संगत कुल यांत्रिक ऊर्जाएँ क्रमशः $E _{o}, E _{h}$ और $E _{H}$ हैं

$$ \begin{align*} & E _{H}=m g H \tag{5.11a} \\ & E _{h}=m g h+\frac{1}{2} m v _{h}^{2} \tag{5.11b} \\ & E _{o}=(1 / 2) m v _{f}^{2} \tag{5.11c} \end{align*} $$

अचर बल, त्रिविम-निर्भर बल $F(x)$ का एक विशेष उदाहरण है । अतः यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित है। इस प्रकार

$$ E _{\mathrm{H}}=E _{0} $$

अथवा, $m g H=\frac{1}{2} m v _{f}^{2}$

$$ v _{f}=\sqrt{2 g H} $$

उपरोक्त परिणाम अनुभाग 5.7 में मुक्त रूप से गिरते हुए पिण्ड के वेग के लिए प्राप्त किया गया था। इसके अतिरिक्त

$$ E _{\mathrm{H}}=E _{\mathrm{h}} $$

जो इंगित करता है कि

$$ \begin{equation*} v _{\mathrm{h}}^{2}=2 g(H-h) \tag{5.11d} \end{equation*} $$

उपरोक्त परिणाम, शुद्धगतिकी का एक सुविदित परिणाम है।

$H$ ऊँचाई पर, पिण्ड की ऊर्जा केवल स्थितिज ऊर्जा है। यह $h$ ऊँचाई पर आंशिक रूप से गतिज ऊर्जा में रूपांतरित हो जाती है तथा भूमि तल पर पूर्णरूपेण गतिज ऊर्जा में रूपांतरित हो जाती है। इस प्रकार उपरोक्त उदाहरण, यांत्रिक ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धांत को स्पष्ट करता है।

5.9 किसी स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा

कोई स्प्रिंग-बल एक परिवर्ती-बल का उदाहरण है जो संरक्षी होता है । चित्र 5.7 स्प्रिंग से संलग्न किसी गुटके को दर्शाता है जो किसी चिकने क्षैतिज पृष्ठ पर विरामावस्था में है। स्प्रिंग का दूसरा सिरा किसी दृढ़ दीवार से जुड़ा है। स्प्रिंग हलका है और द्रव्यमान-रहित माना जा सकता है। किसी आदर्श स्प्रिंग में, स्प्रिंग-बल $F _{\mathrm{s}}$, गुटके का अपनी साम्यावस्था स्थिति से विस्थापन $x$ के समानुपाती होता है। गुटके का साम्यावस्था से विस्थापन धनात्मक (चित्र 5.7b) या ऋणात्मक (चित्र 5.7c) हो सकता है। स्प्रिंग के लिए बल का नियम, हुक का नियम कहलाता है और गणितीय रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है : (a)

๒ $F _{s}$ ॠणात्मक है

(b)

(d)

चित्र 5.7 किसी स्प्रिंग के मुक्त सिरे से जुड़े हुए गुटके पर स्प्रिंग-बल का निदर्शन

(a) जब माध्य स्थिति से विस्थापन $x$ शून्य है तो स्प्रिंग बल $F _{s}$ भी शून्य है ।

(b) खिंचे हुए स्प्रिंग के लिए $x>0$ और $F _{s}<0$

(c) संपीडित स्प्रिंग के लिए $x<0$ और $F _{s}>0$

(d) $F _{\mathrm{s}}$ तथा $x$ के बीच खींचा गया आलेख । छायांकित त्रिभुज का क्षेत्रफल स्प्रिंग-बल द्वारा किए गए कार्य को निरूपित करता है। $F _{s}$ और $x$ के विपरीत चिह्नों के कारण, किया गया कार्य ॠणात्मक है,

$$ W _{s}=-k x _{m}^{2} / 2 $$

$$ F _{s}=-k x $$

जहाँ नियतांक $k$ एक स्प्रिंग नियतांक है जिसका मात्रक $\mathrm{N} \mathrm{m}^{-1}$ है। यदि $k$ का मान बहुत अधिक है, तब स्प्रिंग को दृढ़ कहा जाता है। यदि $k$ का मान कम है, तब इसे नर्म (मृदु) कहा जाता है।

मान लीजिए कि हम गुटके को बाहर की तरफ, जैसा कि चित्र 5.7(b) में दिखाया गया है, धीमी अचर चाल से खींचते हैं । यदि स्प्रिंग का खिंचाव $x _{m}$ है तो स्प्रिंग-बल द्वारा किया कार्य

$$ \begin{align*} W & =\int _{0}^{x _{m}} F _{s} \mathrm{~d} x=-\int _{0}^{x _{m}} k x \mathrm{~d} x \\ & =-\frac{k x _{m}^{2}}{2} \tag{5.15} \end{align*} $$

इस व्यंजक को हम चित्र 5.7(d) में दिखाए गए त्रिभुज के क्षेत्रफल से भी प्राप्त कर सकते हैं। ध्यान दीजिए कि बाह्य खिंचाव बल द्वारा किया गया कार्य धनात्मक है।

$$ \begin{equation*} W=+\frac{k x _{m}^{2}}{2} \tag{5.16} \end{equation*} $$

यदि स्प्रिंग का विस्थापन $x _{c}(<0)$ से संपीडित किया जाता है तब भी उपरोक्त व्यंजक सत्य है। स्प्रिंग-बल $W _{s}=-k x _{c}^{2} / 2$ कार्य करता है जबकि बाह्य बल $W=-k x _{c}^{2} / 2$ कार्य करता है।

यदि गुटके को इसके आरंभिक विस्थापन $x _{i}$ से अंतिम विस्थापन $x _{f}$ तक विस्थापित किया जाता है तो स्प्रिंग-बल द्वारा किया गया कार्य

$$ \begin{equation*} W _{s}=-\int _{x _{i}}^{x _{f}} k x \mathrm{~d} x=\frac{k x _{i}^{2}}{2}-\frac{k x _{f}^{2}}{2} \tag{5.17} \end{equation*} $$

अतः स्प्रिंग-बल द्वारा किया गया कार्य केवल सिरे के बिंदुओं पर निर्भर करता है। विशेष रूप से जब गुटके को स्थिति $x _{i}$ से खीचा गया हो और वापस $x _{i}$ स्थिति तक आने दिया गया हो तो

$$ \begin{equation*} W _{s}=-\int _{x _{i}}^{x _{f}} k x \mathrm{~d} x=\frac{k x _{i}^{2}}{2}-\frac{k x _{f}^{2}}{2}=0 \tag{5.18} \end{equation*} $$

अतः स्प्रिंग बल द्वारा किसी चक्रीय प्रक्रम में किया गया कार्य शून्य होता है। हमने यहां स्पष्ट कर दिया है कि (i) स्प्रिंग बल केवल स्थिति पर निर्भर करता है जैसा कि हुक द्वारा पहले कहा गया है $\left(F _{s}=-k x\right)$; (ii) यह बल कार्य करता है जो किसी पिण्ड की आरंभिक एवं अंतिम स्थितियों पर निर्भर करता है; उदाहरणार्थ, समीकरण (5.17)। अतः स्प्रिंग बल एक संरक्षी बल है।

जब गुटका साम्यावस्था में है अर्थात् माध्य स्थिति से उसका विस्थापन शून्य है तब स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा $V(x)$ को हम शून्य मानते हैं। किसी खिंचाव (या संपीडन) $x$ के लिए उपरोक्त विश्लेषण सुझाता है कि

$$ \begin{equation*} V(x)=\frac{1}{2} k x^{2} \tag{5.19} \end{equation*} $$

इसे सुविधापूर्वक सत्यापित किया जा सकता है कि $-\mathrm{d} V / \mathrm{d} x=-k x$ जो कि स्प्रिंग बल है। जब $m$ द्रव्यमान के गुटके को चित्र 5.7 के अनुसार $x _{\mathrm{m}}$ तक खींचा जाता है और फिर विरामावस्था से छोड़ा जाता है, तब इसकी समूची यांत्रिक ऊर्जा स्वेच्छा से चुनी गई किसी भी स्थिति $x$ पर निम्नलिखित रूप में दी जाएगी, जहाँ $x$ का मान $-x _{\mathrm{m}}$ से $+x _{\mathrm{m}}$ के बीच है:

$$ \frac{1}{2} k x _{m}^{2}=\frac{1}{2} k x^{2}+\frac{1}{2} m v^{2} $$

जहाँ हमने यांत्रिक ऊर्जा के संरक्षण नियम का उपयोग किया है । इसके अनुसार गुटके की चाल $v _{m}$ और गतिज ऊर्जा साम्यावस्था $x=0$ पर अधिकतम होगी, अर्थात्

$$ \frac{1}{2} m v _{m}^{2}=\frac{1}{2} k x _{m}^{2} $$

या, $\quad v _{m}=\sqrt{\frac{k}{m}} x _{m}$

ध्यान दीजिए कि $k / m$ की विमा $\left[\mathrm{T}^{-2}\right]$ है और यह समीकरण विमीय रूप से सही है। यहाँ निकाय की गतिज ऊर्जा, स्थितिज ऊर्जा में, और स्थितिज ऊर्जा, गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है, तथापि कुल यांत्रिक ऊर्जा नियत रहती है । चित्र 5.8 में इसका ग्राफीय निरूपण किया गया है।

चित्र 5.8 किसी स्प्रिंग से जुड़े हुए गुटके की स्थितिज ऊर्जा $V$ और गतिज ऊर्जा $K$ के परवलयिक आलेख जो हुक के नियम का पालन करते हैं। ये एक-दूसरे के पूरक हैं अर्थात् इनमें जब एक घटता है तो दूसरा बढ़ता है, परंतु कुल यांत्रिक ऊर्जा $E=K+V$ हमेशा अचर रहती है।

यदि मान लें कि पिंड पर लगने वाले दोनों बलों में एक संरक्षी बल $F _{c}$ और दूसरा असंरक्षी बल $F _{n c}$ है तो यांत्रिक

ऊर्जा-संरक्षण के सूत्र में किंचित् परिवर्तन करना पड़ेगा। कार्य-ऊर्जा प्रमेय से :

$$ \left(F _{c}+F _{n c}\right) \Delta x=\Delta K $$

परंतु $F _{c} \Delta x=-\Delta V$

अत: $\Delta(K+V)=F _{n c} \Delta x$

$$ \Delta E=F _{n c} \Delta x $$

जहाँ $E$ कुल यांत्रिक ऊर्जा है। समस्त पथ पर यह निम्न रूप ले लेती है

$$ E _{f}-E _{i}=W _{n c} $$

जहाँ $W _{n c}$ असंरक्षी बल द्वारा किसी पथ पर किया गया कुल कार्य है। ध्यान दीजिए कि $W _{n c} i$ से $f$ तक एक विशेष पथ पर निर्भर करता है जैसा कि संरक्षी बल में नहीं है।

5.10 शक्ति

बहुधा केवल यह जानना ही पर्याप्त नहीं है कि किसी पिंड पर कितना कार्य किया गया अपितु यह जानना भी आवश्यक है कि यह कार्य किस दर से किया गया है। हम कहते हैं कि व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ है यदि वह केवल किसी भवन के चार तल तक चढ़ ही नहीं जाता है अपितु वह इन पर तेजी से चढ़ जाता है। अतः शक्ति को उस समय-दर से परिभाषित करते हैं जिससे कार्य किया गया या ऊर्जा स्थानांतरित हुई। किसी बल की औसत शक्ति उस बल द्वारा किए गए कार्य $W$ और उसमें लगे समय $t$ के अनुपात से परिभाषित करते हैं। अतः

$$ P _{a v}=\frac{W}{t} $$

तात्क्षणिक शक्ति को औसत शक्ति के सीमान्त मान के रूप में परिभाषित करते हैं जबकि समय शून्य की ओर अग्रसर हो रहा होता है, अर्थात्

$$ \begin{equation*} P=\frac{\mathrm{d} W}{\mathrm{~d} t} \tag{5.20} \end{equation*} $$

जहाँ विस्थापन $\mathrm{d} \mathbf{r}$ में बल $\mathbf{F}$ द्वारा किया गया कार्य $\mathrm{d} W=\mathbf{F} \cdot \mathrm{d} \mathbf{r}$ होता है। अतः तात्क्षणिक शक्ति को निम्नलिखित प्रकार से भी व्यक्त कर सकते हैं :

$$ \begin{align*} P & =\mathbf{F} \cdot \frac{\mathrm{d} \boldsymbol{r}}{\mathrm{d} t} \\ & =\mathbf{F} \cdot \mathbf{v} \tag{5.21} \end{align*} $$

जहाँ $\mathbf{v}$ तात्क्षणिक वेग है जबकि बल $\mathbf{F}$ है।

कार्य और ऊर्जा की भांति शक्ति भी एक अदिश राशि है। इसका SI मात्रक वाट $(\mathrm{W})$ और विमा $\left[\mathrm{ML}^{2} \mathrm{~T}^{-3}\right]$ है। $1 \mathrm{~W}$ का मान $1 \mathrm{~J} \mathrm{~s}^{-1}$ के बराबर होता है। अठारहवीं शताब्दी में भाप इंजन के प्रवर्तकों में से एक प्रवर्तक जेम्स वॉट के नाम पर शक्ति का मात्रक वाट (W) रखा गया है।

शक्ति का बहुत पुराना मात्रक अश्व शक्ति है।

$$ 1 \text { अश्व शक्ति }(\mathrm{hp})=746 \mathrm{~W} $$

यह मात्रक आज भी कार, मोटरबाईक इत्यादि की निर्गत क्षमता को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होता है।

जब हम विद्युत उपकरण; जैसे-विद्युत बल्ब, हीटर और प्रशीतक आदि खरीदते हैं तो हमें मात्रक वाट से व्यवहार करना होता है । एक 100 वाट का बल्ब 10 घंटे में एक किलोवाट-घंटा विद्युत ऊर्जा की खपत करता है।

अर्थात्

$$ \begin{aligned} & 100(\text { वाट }) \times 10(\text { घंटा }) \\ & =1000 \text { वाट-घंटा } \\ & =1 \text { किलोवाट घंटा }(\mathrm{kWh}) \\ & =10^{3}(\mathrm{~W}) \times 3600(\mathrm{~s}) \\ & =3.6 \times 10^{6} \mathrm{~J} \end{aligned} $$

विद्युत-ऊर्जा की खपत के लिए मूल्य, मात्रक $\mathrm{kWh}$ में चुकाया जाता है जिसे साधारणतया ‘यूनिट’ के नाम से पुकारते हैं। ध्यान दें कि $\mathrm{kWh}$ ऊर्जा का मात्रक है, न कि शक्ति का।

5.11 संघट्ट

भौतिकी में हम गति (स्थान में परिवर्तन) का अध्ययन करते हैं। साथ ही साथ हम ऐसी भौतिक राशियों की खोज करते हैं जो किसी भौतिक प्रक्रम में परिवर्तित नहीं होती हैं। ऊर्जा-संरक्षण एवं संवेग-संरक्षण के नियम इसके अच्छे उदाहरण हैं। इस अनुभाग में, हम इन नियमों का बहुधा सामने आने वाली परिघटनाओं, जिन्हें संघट्ट कहते हैं, में प्रयोग करेंगे। विभिन्न खेलों; जैसे-बिलियर्ड, मारबल या कैरम आदि में संघट्ट एक अनिवार्य घटक है। अब हम किन्हीं दो द्रव्यमानों का आदर्श रूप में प्रस्तुत संघट्ट का अध्ययन करेंगे।

मान लीजिए कि दो द्रव्यमान $m _{1}$ व $m _{2}$ हैं जिसमें कण $m _{1}$ चाल $v _{l i}$ से गतिमान है जहाँ अधोलिखित ’ $i$ ’ आरंभिक चाल को निरूपित करता है। दूसरा द्रव्यमान $m _{2}$ स्थिर है। इस निर्देश

फ्रेम का चयन करने में व्यापकता में कोई कमी नहीं आती। इस फ्रेम में द्रव्यमान $m _{1}$, दूसरे द्रव्यमान $m _{2}$ से जो विरामावस्था में है, संघट्ट करता है जो चित्र 5.10 में चित्रित किया गया है । संघट्ट के पश्चात् द्रव्यमान $m _{1}$ व $m _{2}$ विभिन्न दिशाओं में गति करते हैं। हम देखेंगे कि द्रव्यमानों, उनके वेगों और कोणों में निश्चित संबंध है।

चित्र 5.10 किसी द्रव्यमान $m _{1}$ का अन्य स्थिर द्रव्यमान $m _{2}$ से संघट्ट।

5.11.1 प्रत्यास्थ एवं अप्रत्यास्थ संघट्ट

सभी संघट्टों में निकाय का कुल रेखीय संवेग नियत रहता है अर्थात् निकाय का आरंभिक संवेग उसके अंतिम संवेग के बराबर होता है। इसे निम्न प्रकार से सिद्ध किया जा सकता है । जब दो पिंड संघट्ट करते हैं तो संघट्ट समय $\Delta t$ में कार्यरत परस्पर आवेगी बल, उनके परस्पर संवेगों में परिवर्तन लाने का कारण होते हैं। अर्थात्

$$ \begin{aligned} & \Delta \mathbf{p} _{1}=\mathbf{F} _{12} \Delta t \\ & \Delta \mathbf{p} _{2}=\mathbf{F} _{21} \Delta t \end{aligned} $$

जहाँ $\mathrm{F} _{12}$ दूसरे पिंड द्वारा पहले पिंड पर आरोपित बल है। इसी तरह $\mathbf{F} _{21}$ पहले पिंड द्वारा दूसरे पिंड पर आरोपित बल है। न्यूटन के गति के तृतीय नियमानुसार $\mathbf{F} _{12}=-\mathbf{F} _{21}$ होता है । यह दर्शाता है कि

$$ \Delta \mathbf{p} _{1}+\Delta \mathbf{p} _{2}=0 $$

यदि बल संघट्ट समय $\Delta t$ के दौरान जटिल रूप से परिवर्तित हो रहे हों तो भी उपरोक्त परिणाम सत्य हैं। चूंकि न्यूटन का तृतीय नियम प्रत्येक क्षण पर सत्य है अतः पहले पिंड पर आरोपित कुल आवेग, दूसरे पिंड पर आरोपित आवेग के बराबर परंतु विपरीत दिशा में होगा।

दूसरी ओर निकाय की कुल गतिज ऊर्जा आवश्यक रूप से संरक्षित नहीं रहती है। संघट्ट के दौरान टक्कर और विकृति, ऊष्मा और ध्वनि उत्पन्न करते हैं। आरंभिक गतिज ऊर्जा का कुछ अंश ऊर्जा के दूसरे रूपों में रूपान्तरित हो जाता है। यदि उपरोक्त दोनों द्रव्यमानों को जोड़ने वाली ‘स्प्रिंग’ बिना किसी ऊर्जा-क्षति के अपनी मूल आकृति प्राप्त कर लेती है, जो पिंडों की आरंभिक गतिज ऊर्जा उनकी अंतिम गतिज ऊर्जा के बराबर होगी परंतु संघट्ट काल $\Delta t$ के दौरान अचर नहीं रहती। इस प्रकार के संघट्ट को प्रत्यास्थ संघट्ट कहते हैं। दूसरी ओर यदि विकृति दूर नहीं होती है और दोनों पिंड संघट्ट के पश्चात् आपस में सटे रहकर गति करें तो इस प्रकार के संघट्ट को पूर्णतः अप्रत्यास्थ संघट्ट कहते हैं। इसके अतिरिक्त मध्यवर्ती स्थिति आमतौर पर देखने को मिलती है जब विकृति आंशिक रूप से कम हो जाती है और प्रारंभिक गतिज ऊर्जा की आंशिक रूप से क्षति हो जाती है। इसे समुचित रूप से अप्रत्यास्थ संघट्ट कहते हैं।

5.11.2 एकविमीय संघट्ट

सर्वप्रथम हम किसी पूर्णतः अप्रत्यास्थ संघट्ट की स्थिति का अध्ययन करते हैं। चित्र 5.10 में

$$ \begin{align*} & \theta _{1}=\theta _{2}=0 \\ & m _{1} V _{l i}=\left(m _{1}+m _{2}\right) v _{f} \quad \text { (संवेग संरक्षण के नियम से) } \\ & v _{f}=\frac{m _{1}}{m _{1}+m _{2}} v _{1 i} \tag{5.22} \end{align*} $$

संघट्ट में गतिज ऊर्जा की क्षतिः

$$ \begin{aligned} & \Delta K=\frac{1}{2} m _{1} v _{1 i}^{2}-\frac{1}{2}\left(m _{1}+m _{2}\right) v _{f}^{2} \\ & =\frac{1}{2} m _{1} v _{1 i}^{2}-\frac{1}{2} \frac{m _{1}^{2}}{m _{1}+m _{2}} v _{1 i}^{2} \quad \text { [समीकरण (5.22) द्वारा] } \\ & \quad=\frac{1}{2} m _{1} v _{1 i}^{2}\left[1-\frac{m _{1}}{m _{1}+m _{2}}\right] \\ & =\frac{1}{2} \frac{m _{1} m _{2}}{m _{1}+m _{2}} v _{1 i}^{2} \end{aligned} $$

जो कि अपेक्षानुसार एक धनात्मक राशि है।

आइए, अब प्रत्यास्थ संघट्ट की स्थिति का अध्ययन करते हैं। उपरोक्त नामावली के प्रयोग के साथ $\theta _{1}=\theta _{2}=0$ लेने पर, रेखीय संवेग एवं गतिज ऊर्जा के संरक्षण की समीकरण निम्न है:

$$ \begin{align*} & m _{1} v _{1 i}=m _{1} v _{1 f}+m _{2} v _{2 f} \tag{5.23} \\ & m _{1} v _{1 i}^{2}=m _{1} v _{1 f}^{2}+m _{2} v _{2 f}^{2} \tag{5.24} \end{align*} $$

समीकरण (5.23) और समीकरण (5.24) से हम प्राप्त करते हैं

$$ m _{1} v _{1 i}\left(v _{2 f}-v _{1 i}\right)=m _{1} v _{1 f}\left(v _{2 f}-v _{1 f}\right) $$

अथवा,

$$ \begin{align*} v _{2 f}\left(v _{1 i}-v _{1 f}\right) & =v _{1 i}^{2}-v _{1 f}^{2} \\ & =\left(v _{1 i}-v _{1 f}\right)\left(v _{1 i}+v _{1 f}\right) \tag{5.25} \end{align*} $$

अतः $\quad v _{2 f}=v _{1 i}+v _{1 f}$

इसे समीकरण (5.23) में प्रतिस्थापित करने पर हम प्राप्त करते हैं

$$ \begin{equation*} v _{1 f}=\frac{\left(m _{1}-m _{2}\right)}{m _{1}+m _{2}} v _{1 i} \tag{5.26} \end{equation*} $$

तथा $v _{2 f}=\frac{2 m _{1} v _{1 i}}{m _{1}+m _{2}}$

इस प्रकार ‘अज्ञात राशियाँ’ $\left\{v _{1 f}, v _{2 f}\right\}$ ज्ञात राशियों $\left\{m _{1}, m _{2}, v _{1 i}\right\}$ के पदों में प्राप्त हो गई हैं। आइए, अब उपरोक्त विश्लेषण से विशेष दशाओं में रुचिकर निष्कर्ष प्राप्त करते हैं।

दशा I : यदि दोनों द्रव्यमान समान हैं, अर्थात् $m _{1}=m _{2}$, तब

$$ V _{1 f}=0, \quad V _{2 f}=V _{1 i} $$

अर्थात् प्रथम द्रव्यमान विरामावस्था में आ जाता है और संघट्ट के पश्चात् दूसरा द्रव्यमान, प्रथम द्रव्यमान का आरंभिक वेग प्राप्त कर लेता है। दशा II : यदि एक पिंड का द्रव्यमान दूसरे पिंड के द्रव्यमान से बहुत अधिक है, अर्थात् $m _{2}>m _{1}$, तब

$$ V _{1 f} \simeq-V _{1 i} \quad V _{2 f} \simeq 0 $$

भारी द्रव्यमान स्थिर रहता है जबकि हलके द्रव्यमान का वेग उत्क्रमित हो जाता है।

यदि दोनों पिंडों के आरंभिक तथा अंतिम वेग एक ही सरल रेखा के अनुदिश कार्य करते हैं तो ऐसे संघट्ट को एकविमीय संघट्ट अथवा सीधा संघट्ट कहते हैं। छोटे गोलीय पिंडों के लिए यह संभव है कि पिंड 1 की गति की दिशा विरामावस्था में रखे पिंड 2 के केन्द्र से होकर गुजरे। सामान्यतः, यदि आरंभिक वेग तथा अंतिम वेग एक ही तल में हों तो संघट्ट द्विविमीय कहलाता है।

5.11.3 द्विविमीय संघट्ट

चित्र 5.10 स्थिर द्रव्यमान $m _{2}$ से गतिमान द्रव्यमान $m _{1}$ का संघट्ट का चित्रण करता है। इस प्रकार के संघट्ट में रेखीय संवेग संरक्षित रहता है। चूंकि संवेग एक सदिश राशि है, अतः यह तीन दिशाओं ${x, y, z}$ के लिए तीन समीकरण प्रदर्शित करता है। संघट्ट के पश्चात् $m _{1}$ तथा $m _{2}$ के अंतिम वेग की दिशाओं के आधार पर समतल का निर्धारण कीजिए और मान लीजिए कि यह $x-y$ समतल है। रेखीय संवेग के $z$ - घटक का संरक्षण यह दर्शाता है कि संपूर्ण संघट्ट $x$ - $y$ समतल में है। $x$-घटक और $y$-घटक के समीकरण निम्न हैं :

$$ \begin{gather*} m _{1} v _{1 \mathrm{i}}=m _{1} v _{1 \mathrm{f}} \cos \theta _{1}+m _{2} v _{2 \mathrm{f}} \cos \theta _{2} \tag{5.28} \\ 0=m _{1} v _{1 \mathrm{f}} \sin \theta _{1}-m _{2} V _{2 \mathrm{f}} \sin \theta _{2} \tag{5.29} \end{gather*} $$

अधिकतर स्थितियों में यह माना जाता है कि $\left\{m _{1}, m _{2}, v _{1 i}\right\}$ ज्ञात है। अतः संघट्ट के पश्चात्, हमें चार अज्ञात राशियाँ $\left\{V _{1 f}, V _{2 f}, \theta _{1}\right.$ और $\left.\theta _{2}\right\}$ प्राप्त होती हैं जबकि हमारे पास मात्र दो समीकरण हैं। यदि $\theta _{1}=\theta _{2}=0$, हम पुन: एकविमीय संघट्ट के लिए समीकरण (5.24) प्राप्त कर लेते हैं।

अब यदि संघट्ट प्रत्यास्थ है तो,

$$ \begin{equation*} \frac{1}{2} m _{1} v _{1 i}^{2}=\frac{1}{2} m _{1} v _{1 f}^{2}+\frac{1}{2} m _{2} v _{2 f}^{2} \tag{5.30} \end{equation*} $$

यह हमें समीकरण (5.28) व (5.29) के अलावा एक और समीकरण देता है लेकिन अभी भी हमारे पास सभी अज्ञात राशियों

का पता लगाने के लिए एक समीकरण कम है। अतः प्रश्न को हल करने के लिए, चार अज्ञात राशियों में से कम से कम एक और राशि, मान लीजिए $\theta _{1}$, ज्ञात होनी चाहिए। उदाहरणार्थ, कोण $\theta _{1}$ का निर्धारण संसूचक को कोणीय रीति में $x$-अक्ष से $y$-अक्ष तक घुमा कर किया जा सकता है। राशियों $\left\{m _{1}, m _{2}, v _{1 i}, \theta _{1}\right\}$ के ज्ञात मान से हम समीकरण (5.28)-(5.30) का प्रयोग करके $\left\{v _{1 f}, v _{2 f}, \theta _{2}\right\}$ का निर्धारण कर सकते हैं।

यदि हम चिकने पृष्ठ वाले गोलीय द्रव्यमानों पर विचार करें और मान लें कि संघट्ट तभी होता है जब पिंड एक दूसरे को स्पर्श करे तो विषय अत्यंत सरल हो जाता है। मारबल, कैरम तथा बिलियार्ड के खेल में ठीक ऐसा ही होता है।

हमारे दैनिक जीवन में संघट्ट तभी होता है जब दो वस्तुएँ एक दूसरे को स्पर्श करें। लेकिन विचार कीजिए कि कोई धूमकेतु दूरस्थ स्थान से सूर्य की ओर आ रहा है अथवा अल्फा कण किसी नाभिक की ओर आता हुआ किसी दिशा में चला जाता है। यहाँ पर हमारी दूरी पर कार्यरत बलों से सामना होता है। इस प्रकार की घटना को प्रकीर्णन कहते हैं। जिस वेग तथा दिशाओं में दोनों कण गतिमान होंगे वह उनके आरंभिक वेग, उनके द्रव्यमान, आकार तथा आमाप तथा उनके बीच होने वाली अन्योन्य क्रिया के प्रकार पर निर्भर है।

सारांश

1. कार्य-ऊर्जा प्रमेय के अनुसार, किसी पिंड की गतिज ऊर्जा में परिवर्तन उस पर आरोपित कुल बल द्वारा किया गया कार्य है।

$$ K _{f}-K _{i}=W _{n e t} $$

2. कोई बल संरक्षी कहलाता है यदि (i) उसके द्वारा किसी पिंड पर किया गया कार्य पथ पर निर्भर न करके केवल सिरे के बिंदुओं $\left\{x _{1}, x _{\mathrm{j}}\right\}$ पर निर्भर करता है, अथवा (ii) बल द्वारा किया गया कार्य शून्य होता है, जब पिंड के लिए जो स्वेच्छा से किसी ऐसे बंद पथ में स्वतः अपनी प्रारंभिक स्थिति पर वापस आ जाता है।

3. एकविमीय संरक्षी बल के लिए हम स्थितिज ऊर्जा फलन $V(x)$ को इस प्रकार परिभाषित सकते हैं

$$ F(x)=-\frac{\mathrm{d} V(x)}{\mathrm{d} x} $$

अथवा, $\quad V _{i}-V _{s}=\int _{x _{i}}^{x _{f}} F(x) \mathrm{d} x$

4. यांत्रिक ऊर्जा-संरक्षण के सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी पिंड पर कार्यरत बल संरक्षी हैं तो पिंड की कुल यांत्रिक ऊर्जा अचर रहती हैं।

5. $m$ द्रव्यमान के किसी कण की पृथ्वी की सतह से $x$ ऊँचाई पर गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा $V(x)=m g x$ होती है, जहाँ ऊँचाई के साथ $g$ के मान में परिवर्तन उपेक्षणीय है।

6. $k$ बल-नियतांक वाले स्प्रिंग, जिसमें खिंचाव $x$ है, की प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा होती है :

$$ V(x)=\frac{1}{2} k x^{2} $$

7. दो सदिशों के अदिश अथवा बिंदु गुणनफल को हम $\mathbf{A} \cdot \mathbf{B}$ लिखते हैं (इसे $\mathbf{A}$ डॉट $\mathbf{B}$ के रूप में पढ़ते हैं) $\mathbf{A} \cdot \mathbf{B}$ एक अदिश राशि है जिसका मान $A B \cos \theta$ होता है। $\theta$ सदिशों $\mathbf{A}$ व $\mathbf{B}$ के बीच का कोण है। $\mathbf{A} \cdot \mathbf{B}$ का मान चूंकि $\theta$ पर निर्भर करता है इसलिए यह धनात्मक, त्रृणात्मक अथवा शुन्य हो सकता है। दो सदिशों के अदिश गुणनफल की व्याख्या एक सदिश के परिमाण तथा दूसरे सदिश के पहले घटक के अनुदिश घटक के गुणनफल के रूप में भी कर सकते हैं। एकांक सदिशों

$\hat{\mathbf{i}}, \hat{\mathbf{j}}$ व $\hat{\mathbf{k}}$ के लिए हमें निम्नलिखित तथ्य याद रखने चाहिए :

$\hat{\mathbf{i}} \cdot \hat{\mathbf{i}}=\hat{\mathbf{j}} \cdot \hat{\mathbf{j}}=\hat{\mathbf{k}} \cdot \hat{\mathbf{k}}=\mathbf{1}$

तथा

$\hat{\mathbf{i}} \cdot \hat{\mathbf{j}}=\hat{\mathbf{j}} \cdot \hat{\mathbf{k}}=\hat{\mathbf{k}} \cdot \hat{\mathbf{i}}=\mathbf{0}$

अदिश गुणनफल क्रम-विनिमेय तथा वितरण नियमों का पालन करते हैं।

भौतिक राशि प्रतीक विमा मात्रक टिप्पणी
कार्य $W$ $\left[\mathrm{M} \mathrm{L}^{2} \mathrm{~T}^{-2}\right]$ $\mathrm{J}$ $\mathrm{W}=\mathbf{F} \cdot \mathbf{d}$
गतिज ऊर्जा $K$ $\left[\mathrm{M} \mathrm{L}^{2} \mathrm{~T}^{-2}\right]$ $\mathrm{J}$ $K=\frac{1}{2} m v^{2}$
स्थितिज ऊर्जा $V(x)$ $\left[\mathrm{M} \mathrm{L}^{2} \mathrm{~T}^{-2}\right]$ $\mathrm{J}$ $F(x)=-\frac{\mathrm{d} V(x)}{\mathrm{d} x}$
यांत्रिक ऊर्जा $E$ $\left[\mathrm{M} \mathrm{L}^{2} \mathrm{~T}^{-2}\right]$ $\mathrm{J}$ $E=K+V$
स्प्रिंग नियतांक $k$ $\left[\mathrm{M} \mathrm{T}^{-2}\right]$ $\mathrm{N} \mathrm{m}$ $F=-k x$
शक्ति $P$ $\left[\mathrm{M} \mathrm{L}^{2} \mathrm{~T}^{-3}\right]$ $\mathrm{W}$ $V(x)=\frac{1}{2} k x^{2}$

विचारणीय विषय

1. वाक्यांश “किए गए कार्य का परिकलन कीजिए” अधूरा है। हमें विशेष बल या बलों के समूह द्वारा किसी पिंड का निश्चित विस्थापन करने में किए गए कार्य का स्पष्ट उल्लेख करना चाहिए (अथवा संदर्भ देते हुए स्पष्टतया इंगित करना चाहिए)।

2. किया गया कार्य एक अदिश राशि है। यह भौतिक राशि धनात्मक या ऋणात्मक हो सकती है, जबकि द्रव्यमान और गतिज ऊर्जा धनात्मक अदिश राशियाँ हैं। किसी पिंड पर घर्षण या श्यान बल द्वारा किया गया कार्य ऋणात्मक होता है।

3. न्यूटन के तृतीय नियमानुसार, किन्हीं दो पिंडों के मध्य परस्पर एक-दूसरे पर आरोपित बलों का योग शून्य होता है।

$$ \mathbf{F} _{12}+\mathbf{F} _{21}=0 $$

परंतु दो बलों द्वारा किए गए कार्य का योग सदैव शून्य नहीं होता है, अर्थात्

$$ W _{12}+W _{21} \neq 0 $$

तथापि, कभी-कभी यह सत्य भी हो सकता है।

4. कभी-कभी किसी बल द्वारा किए गए कार्य की गणना तब भी की जा सकती है जबकि बल की ठीक-ठीक प्रकृति का ज्ञान न भी हो। उदाहरण 5.2 से यह स्पष्ट है, जहाँ कार्य-ऊर्जा प्रमेय का ऐसी स्थिति में प्रयोग किया गया है ।

5. कार्य-ऊर्जा प्रमेय न्यूटन के द्वितीय नियम से स्वतन्त्र नहीं है। कार्य-ऊर्जा प्रमेय को न्यूटन के द्वितीय नियम के अदिश रूप में देखा जा सकता है। यांत्रिक ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धांत को, संरक्षी बलों के लिए कार्य-ऊर्जा प्रमेय के एक महत्त्वपूर्ण परिणाम के रूप में समझा जा सकता है।

6. कार्य-ऊर्जा प्रमेय सभी जड़त्वीय फ्रेमों में लागू होती है। इसे अजड़त्वीय फ्रेमों में भी लागू किया जा सकता है यदि विचारणीय पिंड पर आरोपित कुल बलों के परिकलन में छद्म बल के प्रभाव को भी सम्मिलित कर लिया जाए।

7. संरक्षी बलों के अधीन किसी पिंड की स्थितिज ऊर्जा हमेशा किसी नियतांक तक अनिश्चित रहती है। उदाहरणार्थ, किसी पिंड की स्थितिज ऊर्जा किस बिंदु पर शून्य लेनी है, यह केवल स्वेच्छा से चयन किए गए बिंदु पर निर्भर करता है। जैसे गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा $m g h$ की स्थिति में स्थितिज ऊर्जा के लिए शून्य बिंदु पृथ्वी के पृष्ठ पर लिया गया है। स्प्रिंग के लिए जिसकी ऊर्जा $\frac{1}{2} k x^{2}$ है, स्थितिज ऊर्जा के लिए शून्य बिंदु, दोलायमान द्रव्यमान की माध्य स्थिति पर लिया गया है ।

8. यांत्रिकी में प्रत्येक बल स्थितिज ऊर्जा से संबद्ध नहीं होता है। उदाहरणार्थ, घर्षण बल द्वारा किसी बंद पथ में किया गया कार्य शून्य नहीं है और न ही घर्षण से स्थितिज ऊर्जा को संबद्ध किया जा सकता है।

9. किसी संघट्ट के दौरान (a) संघट्ट के प्रत्येक क्षण में पिंड का कुल रेखीय संवेग संरक्षित रहता है, (b) गतिज ऊर्जा संरक्षण ( चाहे संघट्ट प्रत्यास्थ ही हो) संघट्ट की समाप्ति के पश्चात् ही लागू होता है और संघट्ट के प्रत्येक क्षण के लिए लागू नहीं होता है। वास्तव में, संघट्ट करने वाले दोनों पिंड विकृत हो जाते हैं और क्षण भर के लिए एक दूसरे के सापेक्ष विरामावस्था में आ जाते हैं।



विषयसूची