अध्याय 03 समतल में गति

3.1 भूमिका

पिछले अध्याय में हमने स्थिति, विस्थापन, वेग एवं त्वरण की धारणाओं को विकसित किया था, जिनकी किसी वस्तु की सरल रेखीय गति का वर्णन करने के लिए आवश्यकता पड़ती है । क्योंकि एकविमीय गति में मात्र दो ही दिशाएँ संभव हैं, इसलिए इन राशियों के दिशात्मक पक्ष को + और - चिह्नों से व्यक्त कर सकते हैं । परंतु जब हम वस्तुओं की गति का द्विविमीय (एक समतल) या त्रिविमीय (दिक्स्थान) वर्णन करना चाहते हैं, तब हमें उपर्युक्त भौतिक राशियों का अध्ययन करने के लिए सदिशों की आवश्यकता पड़ती है । अतएव सर्वप्रथम हम सदिशों की भाषा (अर्थात सदिशों के गुणों एवं उन्हें उपयोग में लाने की विधियाँ) सीखेंगे । सदिश क्या है ? सदिशों को कैसे जोड़ा, घटाया या गुणा किया जाता है ? सदिशों को किसी वास्तविक संख्या से गुणा करें तो हमें क्या परिणाम मिलेगा ? यह सब हम इसलिए सीखेंगे जिससे किसी समतल में वस्तु के वेग एवं त्वरण को परिभाषित करने के लिए हम सदिशों का उपयोग कर सकें। इसके बाद हम किसी समतल में वस्तु की गति पर परिचर्चा करेंगे। किसी समतल में गति के सरल उदाहरण के रूप में हम एकसमान त्वरित गति का अध्ययन करेंगे तथा एक प्रक्षेप्य की गति के विषय में विस्तार से पढ़ेंगे । वृत्तीय गति से हम भलीभाँति परिचित हैं जिसका हमारे दैनिक जीवन में विशेष महत्त्व है । हम एकसमान वृत्तीय गति की कुछ विस्तार से चर्चा करेंगे ।

हम इस अध्याय में जिन समीकरणों को प्राप्त करेंगे उन्हें आसानी से त्रिविमीय गति के लिए विस्तारित किया जा सकता है ।

3.2 अदिश एवं सदिश

हम भौतिक राशियों को अदिशों एवं सदिशों में वर्गीकृत करते हैं । दोनों में मूल अंतर यह है कि सदिश के साथ दिशा को संबद्ध करते हैं वहीं अदिश के साथ ऐसा नहीं करते । एक अदिश राशि वह राशि है जिसमें मात्र परिमाण होता है । इसे केवल एक संख्या एवं उचित मात्रक द्वारा पूर्ण रूप से व्यक्त किया जा सकता है । इसके उदाहरण हैं : दो बिंदुओं के बीच की दूरी, किसी वस्तु की संहति (द्रव्यमान), किसी वस्तु का तापक्रम, तथा वह समय जिस पर कोई घटना घटती है । अदिशों के जोड़ में वही नियम लागू होते हैं जो सामान्यतया बीजगणित में। अदिशों को हम ठीक वैसे ही जोड़ सकते हैं, घटा सकते हैं, गुणा या भाग कर सकते हैं जैसा कि हम सामान्य संख्याओं के साथ

करते हैं* । उदाहरण के लिए, यदि किसी आयत की लंबाई और चौड़ाई क्रमशः 1.0 m तथा 0.5 m है तो उसकी परिमाप चारों भुजाओं के योग, 1.0 m+0.5 m+1.0 m+0.5 m= 3.0 m होगा। हर भुजा की लंबाई एक अदिश है तथा परिमाप भी एक अदिश है । हम एक दूसरे उदाहरण पर विचार करेंगे : यदि किसी एक दिन का अधिकतम एवं न्यूनतम ताप क्रमशः 35.6C तथा 24.2C है तो इन दोनों का अंतर 11.4C होगा। इसी प्रकार यदि एल्युमिनियम के किसी एकसमान ठोस घन की भुजा 10 cm है और उसका द्रव्यमान 2.7 kg है तो उसका आयतन 103 m3 (एक अदिश) होगा तथा घनत्व 2.7×103 kg/m3 भी एक अदिश है ।

एक सदिश राशि वह राशि है जिसमें परिमाण तथा दिशा दोनों होते हैं तथा वह योग संबंधी त्रिभुज के नियम अथवा समानान्तर चतुर्भुज के योग संबंधी नियम का पालन करती है । इस प्रकार, एक सदिश को उसके परिमाण की संख्या तथा दिशा द्वारा व्यक्त करते हैं । कुछ भौतिक राशियाँ जिन्हें सदिशों द्वारा व्यक्त करते हैं, वे हैं विस्थापन, वेग, त्वरण तथा बल ।

सदिश को व्यक्त करने के लिए इस पुस्तक में हम मोटे अक्षरों का प्रयोग करेंगे। जैसे कि वेग सदिश को व्यक्त करने के लिए v चिह्न का प्रयोग करेंगे। परंतु हाथ से लिखते समय क्योंकि मोटे अक्षरों का लिखना थोड़ा मुश्किल होता है, इसलिए एक सदिश को अक्षर के ऊपर तीर लगाकर व्यक्त करते हैं, जैसे v । इस प्रकार v तथा v दोनों ही वेग सदिश को व्यक्त करते हैं । किसी सदिश के परिमाण को प्रायः हम उसका ‘परम मान’ कहते हैं और उसे |v|=v द्वारा व्यक्त करते हैं । इस प्रकार एक सदिश को हम मोटे अक्षर यथा A या a,p,q,r,.x, y से व्यक्त करते हैं जबकि इनके परिमाणों को क्रमशः हम A या a,p,q,r,x,y द्वारा व्यक्त करते हैं ।

3.2.1 स्थिति एवं विस्थापन सदिश

किसी समतल में गतिमान वस्तु की स्थिति व्यक्त करने के लिए हम सुविधानुसार किसी बिंदु O को मूल बिंदु के रूप में चुनते हैं । कल्पना कीजिए कि दो भिन्न-भिन्न समयों t और t पर वस्तु की स्थिति क्रमशः P और P है (चित्र 3.1a) । हम P को O से एक सरल रेखा से जोड़ देते हैं। इस प्रकार OP समय t पर वस्तु की स्थिति सदिश होगी । इस रेखा के सिरे पर एक तीर का निशान लगा देते हैं । इसे किसी चिह्न (मान लीजिए) r से निरूपित करते हैं, अर्थात् OP=r । इसी प्रकार बिंदु P को एक दूसरे स्थिति सदिश OP यानी r से निरूपित करते हैं। सदिश r की लंबाई उसके परिमाण को निरूपित करती है तथा सदिश की दिशा वह होगी जिसके अनुदिश P (बिंदु O से देखने पर) स्थित होगा । यदि वस्तु P से चलकर P पर पहुंच जाती है तो सदिश PP ( जिसकी पुच्छ P पर तथा शीर्ष P पर है) बिंदु P( समय t) से P (समय t) तक गति के संगत विस्थापन सदिश कहलाता है ।

(a)

(b) चित्र 3.1 (a) स्थिति तथा विस्थापन सदिश, (b) विस्थापन सदिश PQ तथा गति के भिन्न-भिन्न मार्ग ।

यहाँ यह बात महत्वपूर्ण है कि ‘विस्थापन सदिश’ को एक सरल रेखा से व्यक्त करते हैं जो वस्तु की अंतिम स्थिति को उसकी प्रारम्भिक स्थिति से जोड़ती है तथा यह उस वास्तविक पथ पर निर्भर नहीं करता जो वस्तु द्वारा बिंदुओं के मध्य चला जाता है । उदाहरणस्वरूप, जैसा कि चित्र 3.1 b में दिखाया गया है, प्रारम्भिक स्थिति P तथा अंतिम स्थिति Q के मध्य विस्थापन सदिश PQ यद्यपि वही है परंतु दोनों स्थितियों के बीच चली गई दूरियां जैसे PABCQ, PDQ तथा PBEFQ अलग-अलग हैं। इसी प्रकार, किन्हीं दो बिंदुओं के मध्य विस्थापन सदिश का परिमाण या तो गतिमान वस्तु की पथ-लंबाई से कम होता है या उसके बराबर होता है। पिछले अध्याय में भी एक सरल रेखा के अनुदिश गतिमान वस्तु के लिए इस तथ्य को भलीभांति समझाया गया था ।

3.2.2 सदिशों की समता

दो सदिशों A तथा B को केवल तभी बराबर कहा जा सकता है जब उनके परिमाण बराबर हों तथा उनकी दिशा समान हो**।

चित्र 3.2(a) में दो समान सदिशों A तथा B को दर्शाया गया है। हम इनकी समानता की परख आसानी से कर सकते हैं । B को स्वयं के समांतर खिसकाइये ताकि उसकी पुच्छ Q सदिश A की पुच्छ O के संपाती हो जाए। फिर क्योंकि उनके शीर्ष S एवं P भी संपाती हैं अतः दोनों सदिश बराबर कहलाएंगे। सामान्यतया इस समानता को A=B के रूप में लिखते हैं । इस[^0]

(a)

(b)

चित्र 3.2 (a) दो समान सदिश A तथा B,(b) दो सदिश AB असमान हैं यद्यपि उनकी लंबाइयाँ वही हैं।

बात की ओर ध्यान दीजिए कि चित्र 3.2(b) में यद्यपि सदिशों A तथा B के परिमाण समान हैं फिर भी दोनों सदिश समान नहीं हैं क्योंकि उनकी दिशायें अलग-अलग हैं । यदि हम B को उसके ही समांतर खिसकाएं जिससे उसकी पुच्छ Q,A की पुच्छ O से संपाती हो जाए तो भी B का शीर्ष S,A के शीर्ष P का संपाती नहीं होगा ।

3.3 सदिशों की वास्तविक संख्या से गुणा

यदि एक सदिश A को किसी धनात्मक संख्या λ से गुणा करें तो हमें एक सदिश ही मिलता है जिसका परिमाण सदिश A के परिमाण का λ गुना हो जाता है तथा जिसकी दिशा वही है जो A की है । इस गुणनफल को हम λA से लिखते हैं ।

|λA|=λ|A| यदि λ=0

उदाहरणस्वरूप, यदि A को 2 से गुणा किया जाए, तो परिणामी सदिश 2A होगा (चित्र 3.3a) जिसकी दिशा A की दिशा होगी तथा परिमाण |A| का दोगुना होगा । सदिश A को यदि एक ॠणात्मक संख्या λ से गुणा करें तो एक अन्य सदिश प्राप्त होता है जिसकी दिशा A की दिशा के विपरीत है और जिसका परिमाण |A| का λ गुना होता है ।

यदि किसी सदिश A को ऋणात्मक संख्याओं -1 व-1.5 से गुणा करें तो परिणामी सदिश चित्र 3.3(b) जैसे होंगे ।

(a)

(b)

(a)

(b)

चित्र 3.3 (a) सदिश A तथा उसे धनात्मक संख्या दो से गुणा करने पर प्राप्त परिणामी सदिश, (b) सदिश A तथा उसे ॠणात्मक संख्याओं -1 तथा -1.5 से गुणा करने पर प्राप्त परिणामी सदिश।

भौतिकी में जिस घटक λ द्वारा सदिश A को गुणा किया जाता है वह कोई अदिश हो सकता है जिसकी स्वयं की विमाएँ होती हैं । अतएव λA की विमाएँ λA की विमाओं के गुणनफल के बराबर होंगी । उदाहरणस्वरूप, यदि हम किसी अचर वेग सदिश को किसी (समय) अंतराल से गुणा करें तो हमें एक विस्थापन सदिश प्राप्त होगा ।

3.4 सदिशों का संकलन व व्यवकलन : ग्राफी विधि

जैसा कि खण्ड 3.2 में बतलाया जा चुका है कि सदिश योग के त्रिभुज नियम या समान्तर चतुर्भुज के योग के नियम का पालन करते हैं। अब हम ग्राफी विधि द्वारा योग के इस नियम को समझाएंगे । हम चित्र 3.4 (a) में दर्शाए अनुसार किसी समतल में स्थित दो सदिशों A तथा B पर विचार करते हैं । इन सदिशों को व्यक्त करने वाली रेखा-खण्डों की लंबाइयाँ सदिशों के परिमाण के समानुपाती हैं । योग A+B प्राप्त करने के लिए चित्र 3.4(b) के अनुसार हम सदिश B इस प्रकार रखते हैं कि उसकी पुच्छ सदिश A के शीर्ष पर हो । फिर हम A की पुच्छ

(c)

(d)

चित्र 3.4 (a) सदिश A तथा B,(b) सदिशों AB का ग्राफी विधि द्वारा जोड़ना, (c) सदिशों BA का ग्राफी विधि द्वारा जोड़ना,

(d) सदिशों के जोड़ से संबंधित साहचर्य नियम का प्रदर्शन ।

को B के सिरे से जोड़ देते हैं । यह रेखा OQ परिणामी सदिश R को व्यक्त करती है जो सदिशों A तथा B का योग है। क्योंकि सदिशों के जोड़ने की इस विधि में सदिशों में से किसी एक के शीर्ष को दूसरे की पुच्छ से जोड़ते हैं, इसलिए इस ग्राफी विधि को शीर्ष व पुच्छ विधि के नाम से जाना जाता है । दोनों सदिश तथा उनका परिणामी सदिश किसी त्रिभुज की तीन भुजाएं बनाते हैं। इसलिए इस विधि को सदिश योग के त्रिभुज नियम भी कहते हैं । यदि हम B+A का परिणामी सदिश प्राप्त करें तो भी हमें वही सदिश R प्राप्त होता है (चित्र 3.4c )। इस प्रकार सदिशों का योग ‘क्रम विनिमेय’ (सदिशों के जोड़ने में यदि उनका क्रम बदल दें तो भी परिणामी सदिश नहीं बदलता) है।

(3.1)A+B=B+A

सदिशों का योग साहचर्य नियम का भी पालन करता है जैसा कि चित्र 3.4 (d) में दर्शाया गया है । सदिशों AB को पहले जोड़कर और फिर सदिश C को जोड़ने पर जो परिणाम प्राप्त होता है वह वही है जो सदिशों B और C को पहले जोड़कर फिर A को जोड़ने पर मिलता है, अर्थात्

(3.2)(A+B)+C=A+(B+C)

दो समान और विपरीत सदिशों को जोड़ने पर क्या परिणाम मिलता है ? हम दो सदिशों A और A जिन्हें चित्र 3.3(b) में दिखलाया है, पर विचार करते हैं । इनका योग A+(A) है। क्योंकि दो सदिशों का परिमाण वही है किन्तु दिशा विपरीत है, इसलिए परिणामी सदिश का परिमाण शून्य होगा और इसे O से व्यक्त करते हैं। AA=0 |0|=0

0 को हम शून्य सदिश कहते हैं । क्योंकि शून्य सदिश का परिमाण शून्य होता है, इसलिए इसकी दिशा का निर्धारण नहीं किया जा सकता है । दरअसल जब हम एक सदिश A को संख्या शून्य से गुणा करते हैं तो भी परिणामस्वरूप हमें एक सदिश ही मिलेगा किन्तु उसका परिमाण शून्य होगा। O सदिश के मुख्य गुण निम्न हैं:

A+0=Aλ0=0(3.4)0A=0

शून्य सदिश का भौतिक अर्थ क्या है ? जैसाकि चित्र 3.1(a) में दिखाया गया है हम किसी समतल में स्थिति एवं विस्थापन सदिशों पर विचार करते हैं । मान लीजिए कि किसी क्षण t पर कोई वस्तु P पर है । वह P तक जाकर पुन: P पर वापस आ जाती है । इस स्थिति में वस्तु का विस्थापन क्या होगा ? चूंकि प्रारंभिक एवं अंतिम स्थितियां संपाती हो जाती हैं, इसलिए विस्थापन “शून्य सदिश” होगा ।

सदिशों का व्यवकलन सदिशों के योग के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है । दो सदिशों AB के अंतर को हम दो सदिशों A व -B के योग के रूप में निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं :

(3.5)AB=A+(B)

इसे चित्र 3.5 में दर्शाया गया है । सदिश B को सदिश A में जोड़कर R2=(AB) प्राप्त होता है । तुलना के लिए इसी चित्र में सदिश R1=A+B को भी दिखाया गया है । समान्तर चतुर्भुज विधि को प्रयुक्त करके भी हम दो सदिशों का योग ज्ञात कर सकते हैं । मान लीजिए हमारे पास दो सदिश AB हैं। इन सदिशों को जोड़ने के लिए उनकी पुच्छ को एक उभयनिष्ठ मूल बिंदु O पर लाते हैं जैसा चित्र 3.6(a) में दिखाया गया है। फिर हम A के शीर्ष से B के समांतर एक रेखा खींचते हैं और B के शीर्ष से A के समांतर एक दूसरी रेखा खींचकर समांतर चतुर्भुज OQSP पूरा करते हैं । जिस बिंदु पर यह दोनों रेखाएं एक दूसरे को काटती हैं, उसे मूल बिंदु O से जोड़ देते हैं। परिणामी सदिश R की दिशा समान्तर चतुर्भुज के मूल बिंदु O से कटान बिंदु S की ओर खींचे गए विकर्ण OS के अनुदिश होगी [चित्र 3.6 (b)]। चित्र 3.6 (c) में सदिशों AB का परिणामी निकालने के लिए त्रिभुज नियम का उपयोग दिखाया गया है । दोनों चित्रों से स्पष्ट है कि दोनों विधियों से एक ही परिणाम निकलता है । इस प्रकार दोनों विधियाँ समतुल्य हैं।

(a)

(b)

चित्र 3.5 (a) दो सदिश AB,B को भी दिखाया गया है । (b) सदिश A से सदिश B का घटाना-परिणाम R2 है । तुलना के लिए सदिशों AB का योग R1 भी दिखलाया गया है ।

(a)

(c)

चित्र 3.6 (a) एक ही उभयनिष्ठ बिंदु वाले दो सदिश AB पर, (b) समान्तर चतुर्भुज विधि द्वारा A+B योग प्राप्त करना, (c) दो सदिशों को जोड़ने की समान्तर चतुर्भुज विधि त्रिभुज विधि के समतुल्य है ।

3.5 सदिशों का वियोजन

मान लीजिए कि ab किसी समतल में भिन्न दिशाओं वाले दो शून्येतर (शून्य नहीं) सदिश हैं तथा A इसी समतल में कोई अन्य सदिश है । (चित्र 3.8) तब A को दो सदिशों के योग के रूप में वियोजित किया जा सकता है । एक सदिश a के किसी वास्तविक संख्या के गुणनफल के रूप में और इसी प्रकार दूसरा सदिश b के गुणनफल के रूप में है । ऐसा करने के लिए पहले A खींचिए जिसका पुच्छ O तथा शीर्ष P है । फिर O से a के समांतर एक सरल रेखा खींचिए तथा P से एक सरल रेखा b के समांतर खींचिए । मान लीजिए वे एक दूसरे को Q पर काटती हैं । तब,

(3.6)A=OP=OQ+QP

परंतु क्योंकि OQ,a के समांतर है तथा QP,b के समांतर है इसलिए

(3.7)OQ=λa तथा QP=μb

जहां λ तथा μ कोई वास्तविक संख्याएँ हैं ।

(a)

(b) चित्र 3.8 (a) दो अरैखिक सदिश ab, (b) सदिश A का ab के पदों में वियोजन ।

अत: A=λa+μb

हम कह सकते हैं कि A को ab के अनुदिश दो

सदिश-घटकों क्रमशः λa तथा μb में वियोजित कर दिया गया है । इस विधि का उपयोग करके हम किसी सदिश को उसी समतल के दो सदिश-घटकों में वियोजित कर सकते हैं । एकांक परिमाण के सदिशों की सहायता से समकोणिक निर्देशांक निकाय के अनुदिश किसी सदिश का वियोजन सुविधाजनक होता है । ऐसे सदिशों को एकांक सदिश कहते हैं जिस पर अब हम परिचर्चा करेंगे ।

एकांक सदिश : एकांक सदिश वह सदिश होता है जिसका परिमाण एक हो तथा जो किसी विशेष दिशा के अनुदिश हो। न तो इसकी कोई विमा होती है और न ही कोई मात्रक । मात्र दिशा व्यक्त करने के लिए इसका उपयोग होता है । चित्र 3.9a में प्रदर्शित एक ‘आयतीय निर्देशांक निकाय’ की x,y तथा z अक्षों के अनुदिश एकांक सदिशों को हम क्रमशः i^,j^ तथा k^ द्वारा व्यक्त करते हैं । क्योंकि ये सभी एकांक सदिश हैं, इसलिए

(3.9)|i^|=j^|=k^|=1

ये एकांक सदिश एक दूसरे के लंबवत् हैं । दूसरे सदिशों से इनकी अलग पहचान के लिए हमने इस पुस्तक में मोटे टाइप i,j,k के ऊपर एक कैप (^) लगा दिया है । क्योंकि इस अध्याय में हम केवल द्विविमीय गति का ही अध्ययन कर रहे हैं अतः हमें केवल दो एकांक सदिशों की आवश्यकता होगी। यदि किसी एकांक सदिश n^ को एक अदिश λ से गुणा करें तो परिणामी एक सदिश λn^ होगा । सामान्यतया किसी सदिश A को निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं :

(3.10)A=|A|n^

यहाँ A के अनुदिश n^ एकांक सदिश है ।

हम किसी सदिश A को एकांक सदिशों i^ तथा j^ के पदों में वियोजित कर सकते हैं । मान लीजिए कि चित्र (3.9b) के अनुसार सदिश A समतल xy में स्थित है । चित्र 3.9( b) के अनुसार A के शीर्ष से हम निर्देशांक अक्षों पर लंब खींचते हैं। इससे हमें दो सदिश A1A2 इस प्रकार प्राप्त हैं कि A1+A2=A । क्योंकि A1 एकांक सदिश i^ के समान्तर है तथा A2 एकांक सदिश j^ के समान्तर है, अतः

(b)

(3.11)A1=Axi^,A2=Ayj^

यहाँ Ax तथा Ay वास्तविक संख्याएँ हैं ।

इस प्रकार A=Axi^+Ayj^

इसे चित्र (3.9c) में दर्शाया गया है । राशियों AxAy को हम सदिश A के x - व y - घटक कहते हैं । यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि Ax सदिश नहीं है, वरन् Axi^ एक सदिश है । इसी प्रकार Ayj^ एक सदिश है ।

त्रिकोणमिति का उपयोग करके AxAy को A के परिमाण तथा उसके द्वारा x-अक्ष के साथ बनने वाले कोण θ के पदों में व्यक्त कर सकते हैं :

Ax=Acosθ(3.13)Ay=Asinθ

समीकरण (3.13) से स्पष्ट है कि किसी सदिश का घटक कोण θ पर निर्भर करता है तथा वह धनात्मक, ॠणात्मक या शून्य हो सकता है ।

किसी समतल में एक सदिश A को व्यक्त करने के लिए अब हमारे पास दो विधियाँ हैं :

(i) उसके परिमाण A तथा उसके द्वारा x-अक्ष के साथ बनाए गए कोण θ द्वारा, अथवा

(ii) उसके घटकों Ax तथा Ay द्वारा ।

यदि A तथा θ हमें ज्ञात हैं तो Ax और Ay का मान समीकरण (3.13) से ज्ञात किया जा सकता है । यदि Ax एवं Ay ज्ञात हों तो A तथा θ का मान निम्न प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है :

(3.14)Ax2+Ay2=A2cos2θ+A2sin2θ=A2

अथवा A=Ax2+Ay2

एवं tanθ=AyAx,θ=tan1AyAx

अभी तक इस विधि में हमने एक (xy) समतल में किसी सदिश को उसके घटकों में वियोजित किया है किन्तु इसी

चित्र 3.9 (a) एकांक सदिश i^,j^,k^ अक्षों x,y,z के अनुदिश है, (b) किसी सदिश A को x एवं y अक्षों के अनुदिश घटकों A1 तथा A2 में वियोजित किया है, (c) A1 तथा A2 को i^ तथा j^ के पदों में व्यक्त किया है ।

(c)

विधि द्वारा किसी सदिश A को तीन विमाओं में x,y तथा z अक्षों के अनुदिश तीन घटकों में वियोजित किया जा सकता है । यदि Ax-, y-, व z - अक्षों के मध्य कोण क्रमशः α,β तथा γ हो* [चित्र 3.9 (d)] तो

(a)Ax=Acosα,Ay=Acosβ,Az=Acosγ

(d)

चित्र 3.9(d) सदिश A का x,y एवं z - अक्षों के अनुदिश घटकों में वियोजन ।

सामान्य रूप से,

(3.16b)A=Axi^+Ayj^+Azk^

सदिश A का परिमाण

(3.16c)A=Ax2+Ay2+Az2

होगा ।

एक स्थिति सदिश r को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है :

(3.17)r=xi^+yj^+zk^

यहां x,y तथा z सदिश r के अक्षों x-, y-, z - के अनुदिश घटक हैं ।

3.6 सदिशों का योग : विश्लेषणात्मक विधि

यद्यपि सदिशों को जोड़ने की ग्राफी विधि हमें सदिशों तथा उनके परिणामी सदिश को स्पष्ट रूप से समझने में सहायक होती है, परन्तु कभी-कभी यह विधि जटिल होती है और इसकी शुद्धता भी सीमित होती है । भिन्न-भिन्न सदिशों को उनके संगत घटकों को मिलाकर जोड़ना अधिक आसान होता है। मान लीजिए कि किसी समतल में दो सदिश A तथा B हैं जिनके घटक क्रमशः Ax,Ay तथा Bx,By हैं तो

A=Axi^+Ayj^

(3.18)B=Bxi^+Byj^

मान लीजिए कि R इनका योग है, तो

R=A+B(3.19)=(Axi^+Ayj^)+(Bxi^+Byj^)

क्योंकि सदिश क्रमविनिमेय तथा साहचर्य नियमों का पालन करते हैं, इसलिए समीकरण (3.19) में व्यक्त किए गए सदिशों को निम्न प्रकार से पुनः व्यवस्थित कर सकते हैं :

(3.19a)R=(Ax+Bx)i^+(Ay+By)j^

क्योंकि R=Rxi^+Ryj^

इसलिए Rx=Ax+Bx,Ry=Ay+By

इस प्रकार परिणामी सदिश R का प्रत्येक घटक सदिशों A और B के संगत घटकों के योग के बराबर होता है ।

तीन विमाओं के लिए सदिशों A और B को हम निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं :

A=Axi^+Ayj^+Azk^B=Bxi^+Byj^+Bzk^R=A+B=Rxi^+Ryj^+Rzk^

जहाँ घटकों Rx,Ry तथा Rz के मान निम्न प्रकार से हैं:

Rx=Ax+BxRy=Ay+By(3.22)Rz=Az+Bz

इस विधि को अनेक सदिशों को जोड़ने व घटाने के लिए उपयोग में ला सकते हैं । उदाहरणार्थ, यदि a,b तथा c तीनों सदिश निम्न प्रकार से दिए गए हों :

a=axi^+ayj^+azk^b=bxi^+byj^+bzk^(3.23a)c=cxi^+cyj^+czk^

तो सदिश T=a+bc के घटक निम्नलिखित होंगे:

Tx=ax+bxcxTy=ay+bycy(3.23b)Tz=az+bzcz

3.7 किसी समतल में गति

इस खण्ड में हम सदिशों का उपयोग कर दो या तीन विमाओं में गति का वर्णन करेंगे ।

3.7.1 स्थिति सदिश तथा विस्थापन

किसी समतल में स्थित कण P का xy निर्देशतंत्र के मूल बिंदु के सापेक्ष स्थिति सदिश r [चित्र (3.12)] को निम्नलिखित समीकरण से व्यक्त करते हैं :

r=xi^+yj^

यहाँ x तथा y अक्षों x-तथा y - के अनुदिश r के घटक हैं । इन्हें हम कण के निर्देशांक भी कह सकते हैं ।

मान लीजिए कि चित्र (3.12b) के अनुसार कोई कण मोटी रेखा से व्यक्त वक्र के अनुदिश चलता है । किसी क्षण t पर इसकी स्थिति P है तथा दूसरे अन्य क्षण t पर इसकी स्थिति P है । कण के विस्थापन को हम निम्नलिखित प्रकार से लिखेंगे,

(3.25)Δr=rr

इसकी दिशा P से P की ओर है ।

(a)

(b)

चित्र 3.12 (a) स्थिति सदिश r, (b) विस्थापन Δr तथा कण का औसत वेग v

समीकरण (3.25) को हम सदिशों के घटक के रूप में निम्नांकित प्रकार से व्यक्त करेंगे,

Δr=(xi^+yj^)(xi^+yj^)

(3.26)=i^Δx+j^Δy

यहाँ Δx=xx,Δy=yy

वेग

वस्तु के विस्थापन और संगत समय अंतराल के अनुपात को हम औसत वेग (v) कहते हैं, अतः

(3.27)v=ΔrΔt=Δxi^+Δyj^Δt=i^ΔxΔt+j^ΔyΔt

अथवा, v=v¯xi^+v¯yj^

क्योंकि v=ΔrΔt, इसलिए चित्र (3.12) के अनुसार औसत वेग की दिशा वही होगी, जो Δr की है ।

गतिमान वस्तु का वेग (तात्क्षणिक वेग) अति सूक्ष्म समयान्तराल ( Δt0 की सीमा में) विस्थापन Δr का समय अन्तराल Δt से अनुपात है । इसे हम v से व्यक्त करेंगे, अतः

(3.28)v=limΔt0ΔrΔt=drdt

चित्रों 3.13(a) से लेकर 3.13(d) की सहायता से इस सीमान्त प्रक्रम को आसानी से समझा जा सकता है । इन चित्रों में मोटी रेखा उस पथ को दर्शाती है जिस पर कोई वस्तु क्षण t पर बिंदु P से चलना प्रारम्भ करती है । वस्तु की स्थिति Δt1,Δt2,Δt3, समयों के उपरांत क्रमशः P1,P2,P3, से व्यक्त होती है । इन समयों में कण का विस्थापन क्रमशः Δr1,Δr2,Δr3, है । चित्रों (a), (b) तथा (c) में क्रमशः घटते हुए Δt के मानों अर्थात् Δt1, Δt2,Δt3,(Δt1>Δt2>Δt3) के लिए कण के औसत वेग v की दिशा को दिखाया गया है । जैसे ही Δt0 तो Δr0 एवं Δr पथ की स्पर्श रेखा के अनुदिश हो जाता है (चित्र 3.13d)। इस प्रकार पथ के किसी बिंदु पर वेग उस बिंदु पर खींची गई स्पर्श रेखा द्वारा व्यक्त होता है जिसकी दिशा वस्तु की गति के अनुदिश होती है।

सुविधा के लिए v को हम प्राय: घटक के रूप में निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त करते हैं :

v=drdt(3.29)=limΔt0ΔxΔti^+ΔyΔtj^=i^limΔt0ΔxΔt+j^limΔt0ΔyΔt

(a)

(c)

(b)

(d)

चित्र 3.13 जैसे ही समय अंतराल Δt शून्य की सीमा को स्पर्श कर लेता है, औसत वेग v वस्तु के वेग v के बराबर हो जाता है / v की दिशा किसी क्षण पथ पर स्पर्श रेखा के समांतर है।

या, v=i^dx dt+j^dy dt=vxi^+vyj^.

यहाँ vx=dx dt,vy=dy dt

अतः यदि समय के फलन के रूप में हमें निर्देशांक x और y ज्ञात हैं तो हम उपरोक्त समीकरणों का उपयोग vx और vy निकालने में कर सकते हैं ।

सदिश v का परिमाण निम्नलिखित होगा,

(3.30b)v=vx2+vy2

तथा इसकी दिशा कोण θ द्वारा निम्न प्रकार से व्यक्त होगी :

(3.30c)tanθ=vyvx,θ=tan1vyvx

चित्र 3.14 में बिन्दु P पर किसी वेग सदिश v के लिए vx, vy तथा कोण θ को दर्शाया गया है ।

चित्र 3.14 वेग v के घटक vx,vy तथा कोण θ जो x-अक्ष से बनाता है । चित्र में vx=vcosθ,vy=vsinθ त्वरण

xy समतल में गतिमान वस्तु का औसत त्वरण (a) उसके वेग 

में परिवर्तन तथा संगत समय अंतराल Δt के अनुपात के बराबर होता है :

(3.31a)a=ΔvΔt=Δ(vxi^+vyj^)Δt=ΔvxΔti^+ΔvyΔtj^

अथवा a=axi^+ayj^.

त्वरण ( तात्क्षणिक त्वरण) औसत त्वरण के सीमान्त मान के बराबर होता है जब समय अंतराल शून्य हो जाता है :

(3.30a)a=limΔt0ΔvΔt

क्योंकि Δv=i^Δvx+j^Δvy, इसलिए

a=i^limΔt0ΔvxΔt+j^limΔt0ΔvyΔt

अथवा

(3.32b)a=i^ax+j^ay

जहाँ ax=dvx dt,ay=dvy dt

वेग की भाँति यहाँ भी वस्तु के पथ को प्रदर्शित करने वाले किसी आलेख में त्वरण की परिभाषा के लिए हम ग्राफी विधि से सीमान्त प्रक्रम को समझ सकते हैं । इसे चित्रों (3.15a) से (3.15d) तक में समझाया गया है । किसी क्षण t पर कण की स्थिति बिंदु P द्वारा दर्शाई गई है । Δt1,Δt2,Δt3,(Δt1>Δt2>Δt3) समय के बाद कण की स्थिति क्रमशः बिंदुओं P1,P2,P3 द्वारा व्यक्त की

  • xy के पदों में ax तथा ay को हम निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं :

ax=ddtdx dt=d2x dt2,ay=ddtdy dt=d2y dt2

(a)

(b)

(c)

(d)

चित्र 3.15 तीन समय अंतरालों (a) Δt1, (b) Δt2, (c) Δt3,(Δt1>Δt2>Δt3) के लिए औसत त्वरण a (d) Δt0 सीमा के अंतर्गत औसत त्वरण वस्तु के त्वरण के बराबर होता है ।

गई है । चित्रों (3.15) a,b और c में इन सभी बिंदुओं P, P1,P2,P3 पर वेग सदिशों को भी दिखाया गया है । प्रत्येक Δt के लिए सदिश योग के त्रिभुज नियम का उपयोग करके Δv का मान निकालते हैं । परिभाषा के अनुसार औसत त्वरण की दिशा वही है जो Δv की होती है । हम देखते हैं कि जैसे-जैसे Δt का मान घटता जाता है वैसे-वैसे Δv की दिशा भी बदलती जाती है और इसके परिणामस्वरूप त्वरण की भी दिशा बदलती है । अंततः Δt0 सीमा में [चित्र 3.15 (d)] औसत त्वरण, तात्क्षणिक त्वरण के बराबर हो जाता है और इसकी दिशा चित्र में दर्शाए अनुसार होती है।

ध्यान दें कि एक विमा में वस्तु का वेग एवं त्वरण सदैव एक सरल रेखा में होते हैं ( वे या तो एक ही दिशा में होते हैं अथवा विपरीत दिशा में) । परंतु दो या तीन विमाओं में गति के लिए वेग एवं त्वरण सदिशों के बीच 0 से 180 के बीच कोई भी कोण हो सकता है।

3.8 किसी समतल में एकसमान त्वरण से गति

मान लीजिए कि कोई वस्तु एक समतल xy में एक समान त्वरण a से गति कर रही है अर्थात् a का मान नियत है । किसी समय अंतराल में औसत त्वरण इस स्थिर त्वरण के मान a के बराबर होगा a=a । अब मान लीजिए किसी क्षण t=0 पर वस्तु का वेग v0 तथा दूसरे अन्य क्षण t पर उसका वेग v है ।

तब परिभाषा के अनुसार

a=vv0t0=vv0t

(3.33a) अथवा v=v0+at

उपर्युक्त समीकरण को सदिशों के घटक के रूप में निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त करते हैं-

vx=vOx+axt(3.33b)vy=vOy+ayt

अब हम देखेंगे कि समय के साथ स्थिति सदिश r किस प्रकार बदलता है । यहाँ एकविमीय गति के लिए बताई गई विधि का उपयोग करेंगे । मान लीजिए कि t=0 तथा t=t क्षणों पर कण के स्थिति के सदिश क्रमशः r0 तथा r हैं तथा इन क्षणों पर कण के वेग v0 तथा v हैं । तब समय अंतराल t0=t में कण का औसत वेग (vo+v)/2 तथा विस्थापन rr0 होगा। क्योंकि विस्थापन औसत तथा समय अंतराल का गुणनफल होता है,

अर्थात्

rr0=(v+v02)t=((v0+at)+v02)t=v0+12at2

अतएव,

(3.34a)r=r0+v0t+12at2

यह बात आसानी से सत्यापित की जा सकती है कि समीकरण (3.34a)का अवकलन drdt समीकरण (3.33a) है तथा साथ ही t=0 क्षण पर r=r0 की शर्त को भी पूरी करता है । समीकरण (3.34a) को घटकों के रूप में निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं :

x=x0+voxt+12axt2(3.34b)y=y0+voyt+12ayt2

समीकरण (3.34b) की सीधी व्याख्या यह है कि xy दिशाओं में गतियाँ एक दूसरे पर निर्भर नहीं करती हैं । अर्थात्, किसी समतल (दो विमा) में गति को दो अलग-अलग समकालिक एकविमीय एकसमान त्वरित गतियों के रूप में समझ सकते हैं जो परस्पर लंबवत् दिशाओं के अनुदिश हों। यह महत्वपूर्ण परिणाम है जो दो विमाओं में वस्तु की गति के विश्लेषण में उपयोगी होता है । यहाँ परिणाम त्रिविमीय गति के लिए भी है। बहुत-सी भौतिक स्थितियों में दो लंबवत् दिशाओं का चुनाव सुविधाजनक होता है जैसा कि हम प्रक्षेप्य गति के लिए खण्ड (3.10) में देखेंगे ।

3.9 प्रक्षेप्य गति

इससे पहले खण्ड में हमने जो विचार विकसित किए हैं, उदाहरणस्वरूप उनका उपयोग हम प्रक्षेप्य की गति के अध्ययन के लिए करेंगे । जब कोई वस्तु उछालने के बाद उड़ान में हो या प्रक्षेपित की गई हो तो उसे प्रक्षेप्य कहते हैं । ऐसा प्रक्षेप्य फुटबॉल, क्रिकेट की बॉल, बेस-बॉल या अन्य कोई भी वस्तु हो सकती है । किसी प्रक्षेप्य की गति को दो अलग-अलग समकालिक गतियों के घटक के परिणाम के रूप में लिया जा सकता है । इनमें से एक घटक बिना किसी त्वरण के क्षैतिज दिशा में होता है तथा दूसरा गुरुत्वीय बल के कारण एकसमान त्वरण से ऊर्ध्वाधर दिशा में होता है ।

सर्वप्रथम गैलीलियो ने अपने लेख डायलॉग आन दि ग्रेट वर्ल्ड सिस्टम्स (1632) में प्रक्षेप्य गति के क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर घटकों की स्वतंत्र प्रकृति का उल्लेख किया था ।

इस अध्ययन में हम यह मानेंगे कि प्रक्षेप्य की गति पर वायु का प्रतिरोध नगण्य प्रभाव डालता है । माना कि प्रक्षेप्य को ऐसी दिशा की ओर v0 वेग से फेंका गया है जो x-अक्ष से (चित्र 3.16 के अनुसार) θ0 कोण बनाता है ।

फेंकी गई वस्तु को प्रक्षेपित करने के बाद उस पर गुरुत्व के कारण लगने वाले त्वरण की दिशा नीचे की ओर होती है :

a=gj^

अर्थात्

(3.35)ax=0, तथा ay=g

चित्र 3.16v0 वेग से θ0 कोण पर प्रक्षेपित किसी वस्तु की गति । प्रारंम्भिक वेग v0 के घटक निम्न प्रकार होंगे :

vox=v0cosθo(3.36)voy=v0sinθ0

यदि चित्र 3.16 के अनुसार वस्तु की प्रारंभिक स्थिति निर्देश तंत्र के मूल बिंदु पर हो, तो

x0=0,y0=0

इस प्रकार समीकरण (3.34b) को निम्न प्रकार से लिखेंगे :

तथा,

x=voxt=(v0cosθ0)t(3.37)y=(v0sinθ0)t12gt2

समीकरण (3.33b) का उपयोग करके किसी समय t के लिए वेग के घटकों को नीचे लिखे गए समीकरणों से व्यक्त करेंगे :

vx=vox=v0cosθ0(3.38)vy=v0sinθ0gt

समीकरण (3.37) से हमें किसी क्षण t पर प्रारंभिक वेग v0 तथा प्रक्षेप्य कोण θ0 के पदों में प्रक्षेप्य के निर्देशांक x-और y - प्राप्त हो जाएँगे। इस बात पर ध्यान दीजिए कि xy दिशाओं के परस्पर लंबवत् होने के चुनाव से प्रक्षेप्य गति के विश्लेषण में पर्याप्त सरलता हो गई है। वेग के दो घटकों में से एक x - घटक गति की पूरी अवधि में स्थिर रहता है जबकि दूसरा y - घटक इस प्रकार परिवर्तित होता है मानो प्रक्षेप्य स्वतंत्रतापूर्वक नीचे गिर रहा हो । चित्र 3.17 में विभिन्न क्षणों के लिए इसे आलेखी विधि से दर्शाया गया है । ध्यान दीजिए कि अधिकतम ऊँचाई वाले बिंदु के लिए vy=0 तथा

θ=tan1vyvx=0

प्रक्षेपक के पथ का समीकरण

प्रक्षेप्य द्वारा चले गए पथ की आकृति क्या होती है ? इसके लिए हमें पथ का समीकरण निकालना होगा। समीकरण (3.37) में दिए गए xy व्यंजकों से t को विलुप्त करने से निम्नलिखित समीकरण प्राप्त होता है :

(3.39)y=(tanθo)xg2(vocosθo)2x2

यह प्रक्षेप्य के पथ का समीकरण है और इसे चित्र 3.17 में दिखाया गया है । क्योंकि g,θ0 तथा v0 अचर हैं, समीकरण (3.39) को निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं :

y=ax+bx2

इसमें a तथा b नियतांक हैं । यह एक परवलय का समीकरण है, अर्थात् प्रक्षेप्य का पथ परवलयिक होता है ।

चित्र 3.17 प्रक्षेप्य का पथ परवलयाकार होता है ।

अधिकतम ऊँचाई का समय

प्रक्षेप्य अधिकतम ऊँचाई तक पहुँचने के लिए कितना समय लेता है? मान लीजिए कि यह समय tm है । क्योंकि इस बिंदु पर vy =0 इसलिए समीकरण (3.38) से हम tm का मान निकाल सकते हैं :

अथवा

vy=v0sinθ0gtm=0(3.40a)tm=vosinθo/g

प्रक्षेप्य की उड़ान की अवधि में लगा कुल समय Tf हम समीकरण (3.38) में y=0 रखकर निकाल लेते हैं । इसलिए,

(3.40b)Tf=2(vosinθo)/g

Tf को प्रक्षेप्य का उड्डयन काल कहते हैं । यह ध्यान देने की बात है कि Tf=2tm । पथ की सममिति से हम ऐसे ही परिणाम की आशा करते हैं ।

प्रक्षेप्य की अधिकतम ऊँचाई

समीकरण (3.37) में t=tm रखकर प्रक्षेप्य द्वारा प्राप्त अधिकतम ऊँचाई hm की गणना की जा सकती है ।

y=hm=(v0sinθ0)vOsinθ0gg2v0sinθ0g

या hm=(v0sinθ0)22g

प्रक्षेप्य का क्षैतिज परास

प्रारंभिक स्थिति (x=y=0) से चलकर उस स्थिति तक जब y=0 हो प्रक्षेप्य द्वारा चली गई दूरी को क्षैतिज परास, R, कहते हैं। क्षैतिज परास उड्डयन काल Tf में चली गई दूरी है । इसलिए, परास R होगा :

R=(v0cosθ0)(T)=(vocosθ0)(2vosinθ0)/g

(3.42) अथवा R=vO2sin2θ0g

समीकरण (3.42) से स्पष्ट है कि किसी प्रक्षेप्य के वेग v0 लिए R अधिकतम तब होगा जब θ0=45 क्योंकि sin90=1 (जो sin2θ0 का अधिकतम मान है) । इस प्रकार अधिकतम क्षैतिज परास होगा

(3.42a)Rm=vO2g

3.10 एकसमान वृत्तीय गति

जब कोई वस्तु एकसमान चाल से एक वृत्ताकार पथ पर चलती है, तो वस्तु की गति को एकसमान वृत्तीय गति कहते हैं । शब्द “एकसमान” उस चाल के संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है जो वस्तु की गति की अवधि में एकसमान (नियत) रहती है । माना कि चित्र 3.18 के अनुसार कोई वस्तु एकसमान चाल v से R त्रिज्या वाले वृत्त के अनुदिश गतिमान है । क्योंकि वस्तु के वेग की दिशा में निरन्तर परिवर्तन हो रहा है, अतः उसमें त्वरण उत्पन्न हो रहा है। हमें त्वरण का परिमाण तथा उसकी दिशा ज्ञात करनी है।

माना rr तथा vv कण की स्थिति तथा गति सदिश हैं जब वह गति के दौरान क्रमशः बिंदुओं PP पर है (चित्र 3.18a)। परिभाषा के अनुसार, किसी बिंदु पर कण का वेग उस बिंदु पर स्पर्श रेखा के अनुदिश गति की दिशा में होता है । चित्र 3.18(a1) में वेग सदिशों vv को दिखाया गया है। चित्र 3.18(a2) में सदिश योग के त्रिभुज नियम का उपयोग करके Δv निकाल लेते हैं । क्योंकि पथ वृत्तीय है, इसलिए चित्र में, ज्यामिति से स्पष्ट है कि v,r के तथा v,r के लंबवत् हैं । इसलिए, Δv,Δr के लंबवत् होगा । पुनः क्योंकि औसत त्वरण Δva=ΔvΔt के अनुदिश है, इसलिए a भी Δr के लंबवत् होगा। अब यदि हम Δv को उस रेखा पर रखें जो rr के बीच के कोण को द्विभाजित करती है तो हम देखेंगे कि इसकी दिशा वृत्त के केंद्र की ओर होगी। इन्ही राशियों को चित्र 3.18(b) में छोटे समय अंतराल के लिए दिखाया गया है । Δv, अत: a की दिशा पुन: केंद्र की ओर होगी । चित्र (3.18c) में Δt0 है, इसलिए औसत त्वरण, तात्क्षणिक त्वरण के बराबर हो जाता है । इसकी दिशा केंद्र की ओर होती है*। इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकलता है कि एकसमान वृत्तीय गति के लिए वस्तु के त्वरण की दिशा वृत्त के केंद्र की ओर होती है । अब हम इस त्वरण का परिमाण निकालेंगे।

परिभाषा के अनुसार, a का परिमाण निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त होता है,

|a|=limΔt0|Δv|Δt

मान लीजिए rr के बीच का कोण Δθ है । क्योंकि वेग सदिश vv ‘सदैव स्थिति सदिशों के लंबवत् होते हैं, इसलिए उनके बीच का कोण भी Δθ होगा । अतएव स्थिति सदिशों द्वारा निर्मित त्रिभुज (CPP) तथा वेग सदिशों v,vΔv द्वारा निर्मित त्रिभुज ( GHI ) समरूप हैं (चित्र 3.18a) । इस प्रकार एक त्रिभुज के आधार की लंबाई व किनारे की भुजा की लंबाई का अनुपात दूसरे त्रिभुज की तदनुरूप लंबाइयों के अनुपात के बराबर होगा, अर्थात्

(a1)

(b1)

(a)

(b)

(c)

चित्र 3.18 किसी वस्तु की एकसमान वृत्तीय गति के लिए वेग तथा त्वरण । चित्र (a) से (c) तक Δt घटता जाता है (चित्र c में शून्य हो जाता है) । वृत्ताकार पथ के प्रत्येक बिंदु पर त्वरण वृत्त के केंद्र की ओर होता है ।

Δt0 सीमा में Δr,r के लंबवत् हो जाता है । इस सीमा में क्योंकि Δv0 होता है, फलस्वरूप यह भी v के लंबवत् होगा । अतः वृत्तीय पथ के प्रत्येक बिंदु पर त्वरण की दिशा केंद्र की ओर होती है।

|Δv|v=|Δr|R या |Δv|=v|Δr|R

इसलिए,

|a|=Δt0|Δv|Δt=Δt0v|Δr|RΔt=vRΔt0|Δr|Δt

यदि Δt छोटा है, तो Δθ भी छोटा होगा । ऐसी स्थिति में चाप PP को लगभग |Δr| के बराबर ले सकते हैं ।

अर्थात्, |Δr|vΔt

 या |Δr|Δtv अथवा Δt0|Δr|Δt=v

इस प्रकार, अभिकेंद्र त्वरण ac का मान निम्नलिखित होगा,

(3.43)ac=vRv=v2/R

इस प्रकार किसी R त्रिज्या वाले वृत्तीय पथ के अनुदिश v चाल से गतिमान वस्तु के त्वरण का परिमाण v2/R होता है जिसकी दिशा सदैव वृत्त के वेंद्र की ओर होती है । इसी कारण इस प्रकार के त्वरण को अभिवेंंद्र त्वरण कहते हैं (यह पद न्यूटन ने सुझाया था)। अभिकेंद्र त्वरण से संबंधित संपूर्ण विश्लेषणात्मक लेख सर्वप्रथम 1673 में एक डच वैज्ञानिक क्रिस्चियान हाइगेन्स (1629-1695) ने प्रकाशित करवाया था, किन्तु संभवतया न्यूटन को भी कुछ वर्षों पूर्व ही इसका ज्ञान हो चुका था। अभिकेंद्र को अंग्रेजी में सेंट्रीपीटल कहते हैं जो एक ग्रीक शब्द है जिसका अभिप्राय केंद्र-अभिमुख (केंद्र की ओर) है। क्योंकि v तथा R दोनों अचर हैं इसलिए अभिकेंद्र त्वरण का परिमाण भी अचर होता है। परंतु दिशा बदलती रहती है और सदैव केंद्र की ओर होती है। इस प्रकार निष्कर्ष निकलता है कि अभिकेंद्र त्वरण एकसमान सदिश नहीं होता है ।

किसी वस्तु के एकसमान वृत्तीय गति के वेग तथा त्वरण को हम एक दूसरे प्रकार से भी समझ सकते हैं । चित्र 3.18 में दिखाए गए अनुसार Δt(=tt) समय अंतराल में जब कण P से P पर पहुँच जाता है तो रेखा CP कोण Δθ से घूम जाती है । Δθ को हम कोणीय दूरी कहते हैं । कोणीय वेग ω (ग्रीक अक्षर ‘ओमेगा’) को हम कोणीय दूरी के समय परिवर्तन की दर के रूप में परिभाषित करते हैं । इस प्रकार,

(3.44)ω=Δ6Δt

अब यदि Δt समय में कण द्वारा चली दूरी को Δs से व्यक्त करें (अर्थात् PP=Δs ) तो,

v=ΔsΔt

किंतु Δs=RΔθ, इसलिए v=RΔθΔt=Rω

अत: v=ωR

अभिकेंद्र त्वरण को हम कोणीय चाल के रूप में भी व्यक्त कर सकते हैं । अर्थात्,

ac=v2R=ω2R2R=ω2R

या

(3.46)ac=ω2R

वृत्त का एक चक्कर लगाने में वस्तु को जो समय लगता है उसे हम आवर्तकाल T कहते हैं । एक सेकंड में वस्तु जितने चक्कर लगाती है, उसे हम वस्तु की आवृत्ति v कहते हैं । परंतु इतने समय में वस्तु द्वारा चली गई दूरी s=2πR होती है, इसलिए

(3.47)v=2πR/T=2πRv

इस प्रकार ω,v तथा ac को हम आवृति v के पद में व्यक्त कर सकते हैं, अर्थात्

ω=2πνv=2πνR(3.48)ac=4π2ν2R

सारांश

1. अदिश राशियाँ वे राशियाँ हैं जिनमें केवल परिमाण होता है । दूरी, चाल, संहति (द्रव्यमान) तथा ताप अदिश राशियों के कुछ उदाहरण हैं ।

2. सदिश राशियाँ वे राशियाँ हैं जिनमें परिमाण तथा दिशा दोनों होते हैं । विस्थापन, वेग तथा त्वरण आदि इस प्रकार की राशि के कुछ उदाहरण हैं । ये राशियाँ सदिश बीजगणित के विशिष्ट नियमों का पालन करती हैं ।

3. यदि किसी सदिश A को किसी वास्तविक संख्या λ से गुणा करें तो हमें एक दूसरा सदिश B प्राप्त होता है जिसका परिमाण A के परिमाण का λ गुना होता है । नए सदिश की दिशा या तो A के अनुदिश होती है या इसके विपरीत । दिशा इस बात पर निर्भर करती है कि λ धनात्मक है या ऋणात्मक ।

4. दो सदिशों AB को जोड़ने के लिए या तो शीर्ष व पुच्छ की ग्राफी विधि का या समान्तर चतुर्भुज विधि का उपयोग करते हैं ।

5. सदिश योग क्रम-विनिमेय नियम का पालन करता है-

A+B=B+A

साथ ही यह साहचर्य के नियम का भी पालन करता है अर्थात् (A+B)+C=A+(B+C)

6. शून्य सदिश एक ऐसा सदिश होता है जिसका परिमाण शून्य होता है। क्योंकि परिमाण शून्य होता है इसलिए इसके साथ दिशा बतलाना आवश्यक नहीं है ।

इसके निम्नलिखित गुण होते हैं :

A+0=AλO=0OA=0

7. सदिश B को A से घटाने की क्रिया को हम AB को जोड़ने के रूप में परिभाषित करते हैं-

AB=A+(B)

8. किसी सदिश A को उसी समतल में स्थित दो सदिशों a तथा b के अनुदिश दो घटक सदिशों में वियोजित कर सकते हैं:

यहाँ λμ वास्तविक संख्याएँ हैं ।

A=λa+μb

9. किसी सदिश A से संबंधित एकांक सदिश वह सदिश है जिसका परिमाण एक होता है और जिसकी दिशा सदिश A के अनुदिश होती है । एकांक सदिश n^=A|A|

एकांक सदिश i^,j^,k^ इकाई परिमाण वाले वे सदिश हैं जिनकी दिशाएँ दक्षिणावर्ती निकाय की अक्षों क्रमशः x-, yZ के अनुदिश होती हैं ।

10. दो विमा के लिए सदिश A को हम निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं-

A=Axi^+Ayj^

यहाँ Ax तथा Ay क्रमशः x-, y-अक्षों के अनुदिश A के घटक हैं । यदि सदिश A,x-अक्ष के साथ θ कोण बनाता है, तो Ax=Acosθ,Ay=Asinθ तथा

A=|A|=Ax2+Ay2,tanθ=AyAx

11. विश्लेषणात्मक विधि से भी सदिशों को आसानी से जोड़ा जा सकता है । यदि xy समतल में दो सदिशों AB का योग R हो, तो

R=Rxi^+Ryj^ जहाँ Rx=Ax+Bx तथा Ry=Ay+By

12. समतल में किसी वस्तु की स्थिति सदिश r को प्रायः निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं :

r=xi^+yj^

स्थिति सदिशों rr के बीच के विस्थापन को निम्न प्रकार से लिखते हैं :

Δr=rr=(xx)i^+(yy)j^=Δxi^+Δyj^

13. यदि कोई वस्तु समय अंतराल Δt में Δr से विस्थापित होती है तो उसका औसत वेग v=ΔrΔt होगा । किसी क्षण t पर वस्तु का वेग उसके औसत वेग के सीमान्त मान के बराबर होता है जब Δt शून्य के सन्निकट हो जाता है । अर्थात्

v=limΔt0ΔrΔt=drdt

इसे एकांक सदिशों के रूप में भी व्यक्त करते हैं :

जहाँ

v=vxi^+vyj^+vzk^vx=dx dt,vy=dy dt,vz=dz dt

जब किसी निर्देशांक निकाय में कण की स्थिति को दर्शाते हैं, तो v की दिशा कण के पथ के वक्र की उस बिंदु पर खींची गई स्पर्श रेखा के अनुदिश होती है ।

14. यदि वस्तु का वेग Δt समय अंतराल में v से v में बदल जाता है, तो उसका औसत त्वरण a=vvΔt=ΔvΔt होगा । जब Δt का सीमान्त मान शून्य हो जाता है तो किसी क्षण t पर वस्तु का त्वरण a=limΔ0ΔvΔt=dvdt होगा । घटक के पदों में इसे निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है :

a=axi^+ayj^+azk^

यहाँ,

ax=dvxdt,ay=dvydt,az=dvzdt

15. यदि एक वस्तु किसी समतल में एकसमान त्वरण a=|a|=ax2+ay2 से गतिमान है तथा क्षण t=0 पर उसका स्थिति सदिश ro है, तो किसी अन्य क्षण t पर उसका स्थिति सदिश r=r0+v0t+12at2 होगा तथा उसका वेग v=v0+at होगा ।

यहाँ v0,t=0 क्षण पर वस्तु के वेग को व्यक्त करता है ।

घटक के रूप में

x=xo+voxt+12axt2y=yo+voyt+12ayt2vx=v0x+axtvy=v0y+ayt

किसी समतल में एकसमान त्वरण की गति को दो अलग-अलग समकालिक एकविमीय व परस्पर लंबवत् गतियों के अध्यारोपण के रूप में मान सकते हैं ।

16. प्रक्षेपित होने के उपरांत जब कोई वस्तु उड़ान में होती है तो उसे प्रक्षेप्य कहते हैं । यदि x-अक्ष से θ0 कोण पर वस्तु का प्रारंभिक वेग v0 है तो t क्षण के उपरांत प्रक्षेप्य के स्थिति एवं वेग संबंधी समीकरण निम्नवत् होंगे-

x=(v0cosθ0)ty=(v0sinθ0)t(1/2)gt2vx=v0x=v0cosθ0vy=v0sinθ0gt

प्रक्षेप्य का पथ परवलयिक होता है जिसका समीकरण

y=(tanθ0)xgx22(vocosθo)2 होगा । 

प्रक्षेप्य की अधिकतम ऊँचाई hm=(vosinθo)22g, तथा

इस ऊँचाई तक पहुंचने में लगा समय tm=vosinθog होगा ।

प्रक्षेप्य द्वारा अपनी प्रारंभिक स्थिति से उस स्थिति तक, जिसके लिए नीचे उतरते समय y=0 हो, चली गई क्षैतिज दूरी को प्रक्षेप्य का परास R कहते हैं ।

अतः प्रक्षेप्य का परास R=vo2gsin2θo होगा ।

17. जब कोई वस्तु एकसमान चाल से एक वृत्तीय मार्ग में चलती है तो इसे एकसमान वृत्तीय गति कहते हैं । यदि वस्तु की चाल v हो तथा इसकी त्रिज्या R हो, तो अभिकेंद्र त्वरण, ac=v2/R होगा तथा इसकी दिशा सदैव वृत्त के केंद्र की ओर होगी । कोणीय चाल ω कोणीय दूरी के समान परिवर्तन की दर होता है । रैखिक वेग v=ωR होगा तथा त्वरण ac=ω2R होगा ।

यदि वस्तु का आवर्तकाल T तथा आवृत्ति v हो, तो ω,v तथा ac के मान निम्नवत् होंगे ।

ω=2πν,v=2πνR,ac=4π2ν2R

विचारणीय विषय

1. किसी वस्तु द्वारा दो बिंदुओं के बीच की पथ-लंबाई सामान्यतया, विस्थापन के परिमाण के बराबर नहीं होती। विस्थापन केवल पथ के अंतिम बिंदुओं पर निर्भर करता है जबकि पथ-लंबाई (जैसाकि नाम से ही स्पष्ट है) वास्तविक पथ पर निर्भर करती है । दोनों राशियां तभी बराबर होंगी जब वस्तु गति मार्ग में अपनी दिशा नहीं बदलती । अन्य दूसरी परिस्थितियों में पथ-लंबाई विस्थापन के परिमाण से अधिक होती है ।

2. उपरोक्त बिंदु 1 की दृष्टि से वस्तु की औसत चाल किसी दिए समय अंतराल में या तो उसके औसत वेग के परिमाण के बराबर होगी या उससे अधिक होगी । दोनों बराबर तब होंगी जब पथ-लंबाई विस्थापन के परिमाण के बराबर हो ।

3. सदिश समीकरण (3.33) तथा (3.34) अक्षों के चुनाव पर निर्भर नहीं करते हैं । निःसंदेह आप उन्हें दो स्वतंत्र अक्षों के अनुदिश वियोजित कर सकते हैं ।

4. एकसमान त्वरण के लिए शुद्धगतिकी के समीकरण एकसमान वृत्तीय गति में लागू नहीं होते क्योंकि इसमें त्वरण का परिमाण तो स्थिर रहता है परंतु उसकी दिशा निरंतर बदलती रहती है ।

5. यदि किसी वस्तु के दो वेग v1 तथा v2 हों तो उनका परिणामी वेग v=v1+v2 होगा । उपरोक्त सूत्र तथा वस्तु 2 के सापेक्ष वस्तु का 1 के वेग अर्थात्: v12=v1v2 के बीच भेद को भलीभांति जानिए । यहां v1 तथा v2 किसी उभयनिष्ठ निर्देश तन्त्र के सापेक्ष वस्तु की गतियां हैं ।

6. वृत्तीय गति में किसी कण का परिणामी त्वरण वृत्त के केंद्र की ओर होता है यदि उसकी चाल एकसमान है।

7. किसी वस्तु की गति के मार्ग की आकृति केवल त्वरण से ही निर्धारित नहीं होती बल्कि वह गति की प्रारंभिक दशाओं (प्रारंभिक स्थिति व प्रारंभिक वेग) पर भी निर्भर करती है । उदाहरणस्वरूप, एक ही गुरुत्वीय त्वरण से गतिमान किसी वस्तु का मार्ग एक सरल रेखा भी हो सकता है या कोई परवलय भी, ऐसा प्रारंभिक दशाओं पर निर्भर करेगा ।