अध्याय 02 सरल रेखा में गति

2.1 भूमिका

विश्व की प्रत्येक वस्तु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गतिमान रहती है । हमारा चलना, दौड़ना, साइकिल सवारी आदि दैनिक जीवन में दिखाई देने वाली क्रियाएँ गति के कुछ उदाहरण हैं। इतना ही नहीं, निद्रावस्था में भी हमारे फेफड़ों में वायु का प्रवेश एवं निष्कासन तथा हमारी धमनियों एवं शिराओं में रुधिर का संचरण होता रहता है । हम पेड़ों से गिरते हुए पत्तों को तथा बाँध से बहते हुए पानी को देखते हैं । मोटरगाड़ी और वायुयान यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाते हैं । पृथ्वी 24 घंटे में एक बार अपनी अक्ष के परितः घूर्णन करती है तथा वर्ष में एक बार सूर्य की परिक्रमा पूरी करती है । सूर्य अपने ग्रहों सहित हमारी आकाशगंगा नामक मंदाकिनी में विचरण करता है, तथा जो स्वयं भी स्थानीय मंदाकिनियों के समूह में गति करती है ।

इस प्रकार समय के सापेक्ष वस्तु की स्थिति में परिवर्तन को गति कहते हैं। समय के साथ स्थिति कैसे परिवर्तित होती है ? इस अध्याय में हम गति के बारे में पढ़ेंगे । इसके लिए हमें वेग तथा त्वरण की धारणा को समझना होगा । इस अध्याय में हम अपना अध्ययन वस्तु के एक सरल रेखा के अनुदिश गति तक ही सीमित रखेंगे । इस प्रकार की गति को सरल रेखीय गति भी कहते हैं । एकसमान त्वरित सरल रेखीय गति के लिए कुछ सरल समीकरण प्राप्त किए जा सकते हैं। अंततः गति की आपेक्षिक प्रकृति को समझने के लिए हम आपेक्षिक गति की धारणा प्रस्तुत करेंगे ।

इस अध्ययन में हम सभी गतिमान वस्तुओं को अतिसूक्ष्म मानकर बिंदु रूप में निरूपित करेंगे । यह सन्निकटन तब तक मान्य होता है जब तक वस्तु का आकार निश्चित समय अंतराल में वस्तु द्वारा चली गई दूरी की अपेक्षा पर्याप्त रूप से कम होता है । वास्तविक जीवन में बहुत-सी स्थितियों में वस्तुओं के आमाप (साइज़) की उपेक्षा की जा सकती है और बिना अधिक त्रुटि के उन्हें एक बिंदु-वस्तु माना जा सकता है ।

शुद्धगतिकी में, हम वस्तु की गति के कारणों पर ध्यान न देकर केवल उसकी गति का ही अध्ययन करते हैं। इस अध्याय एवं अगले अध्याय में विभिन्न प्रकार की गतियों का वर्णन किया गया है । इन गतियों के कारणों का अध्ययन हम पाँचवें अध्याय में करेंगे ।

2.2 तात्क्षणिक वेग एवं चाल

जैसा कि हम पढ़ चुके हैं कि औसत वेग से हमें यह ज्ञात होता है कि कोई वस्तु किसी दिए गए समय अंतराल में किस गति से चल रही है, किन्तु इससे यह पता नहीं चल पाता कि इस समय अंतराल के भिन्न-भिन्न क्षणों पर वह किस गति से चल रही है। अतः किसी क्षण t पर वेग के लिए हम तात्क्षणिक वेग या केवल वेग v को परिभाषित करते हैं ।

गतिमान वस्तु का तात्क्षणिक वेग उसके औसत वेग के बराबर होगा यदि उसके दो समयों (t तथा t+Δt) के बीच का अंतराल (Δt) अनन्तः सूक्ष्म हो । गणितीय विधि से हम इस कथन को निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं -

(2.1a)V=limΔt0ΔxΔt(2.1b)=dx dt

यहाँ प्रतीक limΔ0 का तात्पर्य उसके दायीं ओर स्थित राशि (जैसे ΔxΔt ) का वह मान है जो Δt के मान को शून्य की ओर (Δt0) प्रवृत्त करने पर प्राप्त होगा। कलन गणित की भाषा में समीकरण में दायीं ओर की राशि (dx dt)x का t के सापेक्ष अवकलन गुणांक है। यह गुणांक उस क्षण पर वस्तु की स्थिति परिवर्तन की दर होती है।

किसी क्षण पर वस्तु का वेग निकालने के लिए हम समीकरण (2.1a) का उपयोग कर सकते हैं । इसके लिए ग्राफिक या गणितीय विधि को प्रयोग में लाते हैं। मान लीजिए कि हम गतिमान कार का वेग t=4 s (बिंदु P ) पर निकालना चाहते हैं। पहले हम t=4 s को केंद्र में रखकर Δt को 2 s लें। औसत वेग की परिभाषा के अनुसार सरल रेखा P1P2 (चित्र 2.1) की प्रवणता 3 s से 5 s के अंतराल में वस्तु के औसत वेग को

चित्र 2.1 स्थिति-समय ग्राफ से वेग ज्ञात करना t=4 s पर वेग उस क्षण पर ग्राफ की स्पर्श रेखा की प्रवणता है।

व्यक्त करेगी । अब हम Δt का मान 2 s से घटाकर 1 s कर देते हैं तो P1P2 रेखा O1O2 हो जाती है और इसकी प्रवणता 3.5 s से 4.5 s अंतराल में औसत वेग का मान देगी । अंततः सीमांत मान Δt0 की परिस्थिति में रेखा P1P2 स्थिति-समय वक्र के बिंदु P पर स्पर्श रेखा हो जाती है । इस प्रकार t=4 s क्षण पर कार का वेग उस बिंदु पर खींची गई स्पर्श रेखा की प्रवणता के बराबर होगा । यद्यपि ग्राफिक विधि से इसे प्रदर्शित करना कुछ कठिन है तथापि यदि इसके लिए हम गणितीय विधि का उपयोग करें तो सीमांत प्रक्रिया आसानी से समझी जा सकती है । चित्र 2.1 में खींचे गए ग्राफ के लिए x=0.8t3 है । सारणी 2.1 में t=4 s को केंद्र में रखकर Δt=2.0 s,1.0 s, 0.5 s,0.1 s तथा 0.01 s के लिए Δx/Δt के मूल्यों को दर्शाया गया है । दूसरे और तीसरे कॉलम में t1(=tΔt/2) तथा t2(=tΔt/2) और चौथे एवं पाँचवें कॉलम में x के तदनुरूप मानों अर्थात x(t1)=0.08t13 तथा x(t2)=0.03t3 को दिखलाया गया है । छठे कॉलम में अंतर Δx=x(t2)x(t1) को तथा अंतिम कॉलम में ΔxΔt के अनुपात को व्यक्त किया गया

सारणी 2.1t=4 s के लिए Δx/Δt का सीमांत मान

Δt
(s)
t1
(s)
t2
(s)
x(t1)
(m)
x(t2)
(m)
Δx
(m)
ΔΔ/Δt
(ms1)
2.0 3.0 5.0 2.16 10.0 7.84 3.92
1.0 3.5 4.5 3.43 7.29 3.86 3.86
0.5 3.75 4.25 4.21875 6.14125 1.9225 3.845
0.1 3.95 4.05 4.93039 5.31441 0.38402 3.8402
0.01 3.995 4.005 5.100824 5.139224 0.0384 3.8400

है । यह अनुपात प्रथम कॉलम में अंकित Δt के भिन्न-भिन्न मानों के संगत औसत वेग का मान है ।

सारणी 2.1 से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे Δt का मान 2.0 s से घटाते-घटाते 0.01 s करते हैं तो औसत वेग अंततः सीमांत मान 3.84 ms1 के बराबर हो जाता है जो t=4 s पर कार का वेग है अर्थात t=4 s पर dx/dt का मान । इस प्रकार गति के हर क्षण के लिए हम कार का वेग निकाल सकते हैं ।

यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि वस्तु का तात्क्षणिक वेग निकालने के लिए ग्राफिक विधि सदैव सुविधाजनक नहीं होती है । इस विधि (ग्राफिक विधि) में हम गतिमान वस्तु के स्थिति-समय ग्राफ को सावधानीपूर्वक खींचते हैं तथा Δt को उत्तरोत्तर कम करते हुए वस्तु के औसत वेग (v¯) की गणना करते जाते हैं । भिन्न-भिन्न क्षणों पर वस्तु का वेग निकालना तब बहुत आसान हो जाता है जब विभिन्न समयों पर हमारे पास वस्तु की स्थिति के पर्याप्त आँकड़े उपलब्ध हों अथवा वस्तु की स्थिति का समय के फलन के रूप में हमारे पास यथार्थ व्यंजक उपलब्ध हो। ऐसी स्थिति में उपलब्ध आँकड़ों का उपयोग करते हुए समय अंतराल Δt को क्रमशः सूक्ष्म करते हुए Δx/Δt का मान निकालते जाएँगे और अंततः सारणी 2.1 में दर्शाई गई विधि के अनुसार Δx/ Δt का सीमांत मान प्राप्त कर लेंगे । अन्यथा किसी दिए गए व्यंजक के लिए अवकल गणित का प्रयोग करके गतिमान वस्तु के भिन्न-भिन्न क्षणों के लिए dx/dt की गणना कर लेंगे जैसा कि उदाहरण 2.1 में बताया गया है ।

ध्यान दीजिए कि एकसमान गति में हर समय ( तात्क्षणिक) वेग का वही मान होता है जो औसत वेग का होता है।

तात्क्षणिक चाल या केवल चाल गतिमान वस्तु के वेग का परिमाण है । उदाहरण के तौर पर, वेग +24.0 m s1 तथा 24.0 m s1 दोनों में प्रत्येक का परिमाण 24.0 m s1 होगा। यहाँ यह तथ्य ध्यान में रखना है कि जहाँ किसी सीमित समय अंतराल में वस्तु की औसत चाल उसके औसत वेग के परिमाण के या तो बराबर होती है या उससे अधिक होती है वहीं किसी क्षण पर वस्तु की तात्क्षणिक चाल उस क्षण पर उसके तात्क्षणिक वेग के परिमाण के बराबर होती है । ऐसा क्यों होता है ?

2.3 त्वरण

सामान्यतः वस्तु की गति की अवधि में उसके वेग में परिवर्तन होता रहता है । वेग में हो रहे इस परिवर्तन को कैसे व्यक्त करें। वेग में हो रहे इस परिवर्तन को समय के सापेक्ष व्यक्त करना चाहिए या दूरी के सापेक्ष ? यह समस्या गैलीलियो के समय भी थी। गैलीलियो ने पहले सोचा कि वेग में हो रहे परिवर्तन की इस दर को दूरी के सापेक्ष व्यक्त किया जा सकता है परंतु जब उन्होंने मुक्त रूप से गिरती हुई तथा नत समतल पर गतिमान वस्तुओं की गति का विधिवत् अध्ययन किया तो उन्होंने पाया कि समय के सापेक्ष वेग परिवर्तन की दर का मान मुक्त रूप से गिरती हुई वस्तुओं के लिए, स्थिर रहता है जबकि दूरी के सापेक्ष वस्तु का वेग परिवर्तन स्थिर नहीं रहता वरन जैसे-जैसे गिरती हुई वस्तु की दूरी बढ़ती जाती है वैसे-वैसे यह मान घटता जाता है। इस अध्ययन ने त्वरण की वर्तमान धारणा को जन्म दिया जिसके अनुसार त्वरण को हम समय के सापेक्ष वेग परिवर्तन के रूप में परिभाषित करते हैं ।

जब किसी वस्तु का वेग समय के सापेक्ष बदलता है तो हम कहते हैं कि उसमें त्वरण हो रहा है । वेग में परिवर्तन तथा तत्संबंधित समय अंतराल के अनुपात को हम औसत त्वरण कहते हैं । इसे a¯ से प्रदर्शित करते हैं :

(2.2)a¯=v2v1t2t1=ΔvΔt

यहां t1,t2 क्षणों पर वस्तु का वेग क्रमशः v1 तथा v2 है । यह एकांक समय में वेग में औसत परिवर्तन होता है । त्वरण का SI मात्रक ms2 है ।

वेग-समय (vt) ग्राफ से हम वस्तु का औसत त्वरण निकाल सकते हैं । यह इस प्रकार के ग्राफ में उस सरल रेखा की प्रवणता के बराबर होता है जो बिंदु (v2,t2) को बिंदु (v1,t1) से जोड़ती है ।

तात्क्षणिक त्वरण : जिस प्रकार हमने पूर्व में तात्क्षणिक वेग की व्याख्या की है, उसी प्रकार हम तात्क्षणिक त्वरण को भी परिभाषित करते हैं। वस्तु के तात्क्षणिक त्वरण को a से चिह्नित करते हैं, अर्थात

(2.3)a=limΔt0ΔvΔt=dv dt

vt ग्राफ में किसी क्षण वस्तु का त्वरण उस क्षण वक्र पर खींची गई स्पर्श रेखा की प्रवणता के बराबर होता है ।

चूँकि वेग एक सदिश राशि है जिसमें दिशा एवं परिमाण दोनों होते हैं अतएव वेग परिवर्तन में इनमें से कोई एक अथवा दोनों निहित हो सकते हैं । अतः या तो चाल (परिमाण) में परिवर्तन, दिशा में परिवर्तन अथवा इन दोनों में परिवर्तन से त्वरण का उद्भव हो सकता है। वेग के समान ही त्वरण भी धनात्मक, ऋणात्मक अथवा शून्य हो सकता है। इसी प्रकार के त्वरण संबंधी स्थिति-समय ग्राफों को चित्रों 2.2 (a), 2.2 (b) तथा 2.2 (c) में दर्शाया गया है । चित्रों से स्पष्ट है कि धनात्मक त्वरण के लिए xt ग्राफ ऊपर की ओर वक्रित है किन्तु ॠणात्मक त्वरण के लिए ग्राफ नीचे की ओर वक्रित है । शून्य त्वरण के लिए xt ग्राफ एक सरल रेखा है ।

(a)

(b)

(c) चित्र 2.2 ऐसी गति के लिए स्थिति-समय ग्राफ जिसके लिए (a) त्वरण धनात्मक है, (b) त्वरण ऋणात्मक है तथा (c) त्वरण शून्य है ।

यद्यपि गतिमान वस्तु का त्वरण समय के साथ-साथ बदल सकता है, परंतु सुविधा के लिए इस अध्याय में गति संबंधी हमारा अध्ययन मात्र स्थिर त्वरण तक ही सीमित रहेगा । ऐसी स्थिति में औसत त्वरण a¯ का मान गति की अवधि में स्थिर त्वरण के मान के बराबर होगा ।

यदि क्षण t=0 पर वस्तु का वेग v0 तथा t क्षण पर उसका वेग v हो, तो त्वरण a=a¯=vv0t0 होगा ।

(2.4) अतएव, v=v0+at

अब हम यह देखेंगे कि कुछ सरल उदाहरणों में वेग-समय ग्राफ कैसा दिखलाई देता है । चित्र 2.3 में स्थिर त्वरण के लिए चार अलग-अलग स्थितियों में vt ग्राफ दिखाए गए हैं:

(a)

(b)

(c)

(d) चित्र 2.3 स्थिर त्वरण के साथ गतिमान वस्तु का वेग-समय ग्राफ (a) धनात्मक त्वरण से धनात्मक दिशा में गति, (b) ऋणात्मक त्वरण से धनात्मक दिशा में गति, (c) ॠणात्मक त्वरण से ॠणात्मक दिशा में गति, (d) ॠणात्मक त्वरण के साथ वस्तु की गति जो समय t1 पर दिशा बदलती है । 0 से t1 समयावधि में यह धनात्मक x की दिशा में गति करती है जबकि t1t2 के मध्य वह विपरीत दिशा में गतिमान है ।

(a) कोई वस्तु धनात्मक दिशा में धनात्मक त्वरण से गतिमान है।

(b) कोई वस्तु धनात्मक दिशा में ऋणात्मक त्वरण से गतिमान है।

(c) कोई वस्तु ऋणात्मक दिशा में ऋणात्मक त्वरण से गतिमान है ।

(d) कोई वस्तु पहले t1 समय तक धनात्मक दिशा में चलती है और फिर ऋणात्मक दिशा में ऋणात्मक त्वरण के साथ गतिमान है ।

किसी गतिमान वस्तु के वेग-समय ग्राफ का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है कि vt ग्राफ के अंतर्गत आने वाला क्षेत्रफल वस्तु का विस्थापन व्यक्त करता है। इस कथन की सामान्य उपपत्ति के लिए अवकल गणित की आवश्यकता पड़ती है तथापि सुगमता के लिए एक स्थिर वेग u से गतिमान वस्तु पर विचार करके इस कथन की सत्यता प्रमाणित कर सकते हैं। इसका वेग-समय ग्राफ चित्र 2.4 में दिखाया गया है ।

चित्र 2.4 V - t ग्राफ के अंतर्गत आने वाला क्षेत्रफल वस्तु द्वारा निश्चित समय अंतराल में विस्थापन व्यक्त करता है।

चित्र में v - t वक्र समय अक्ष के समांतर एक सरल रेखा है । t=0 से t=T के मध्य इस रेखा के अंतर्गत आने वाला क्षेत्रफल उस आयत के क्षेत्रफल के बराबर है जिसकी ऊँचाई u तथा आधार T है । अतएव क्षेत्रफल =u×T=uT, जो इस समय में वस्तु के विस्थापन को व्यक्त करता है । कोई क्षेत्रफल दूरी के बराबर कैसे हो सकता है ? सोचिए ! दोनों निर्देशांक अक्षों के अनुदिश जो राशियाँ अंकित की गई हैं, यदि आप उनकी विमाओं पर ध्यान देंगे तो आपको इस प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा।

ध्यान दीजिए कि इस अध्याय में अनेक स्थानों पर खींचे गए xt,vt तथा at ग्राफों में कुछ बिंदुओं पर तीक्ष्ण मोड़ हैं। इसका आशय यह है कि दिए गए फलनों का इन बिंदुओं पर अवकलन नहीं निकाला जा सकता । परंतु किसी वास्तविक परिस्थिति में सभी ग्राफ निष्कोण वक्र होंगे और उनके सभी बिंदुओं पर फलनों का अवकलन प्राप्त किया जा सकता है।

इसका अभिप्राय है कि वेग तथा त्वरण किसी क्षण सहसा नहीं बदल सकते। परिवर्तन सदैव सतत होता है।

2.4 एकसमान त्वरण से गतिमान वस्तु का शुद्धगतिकी

संबंधी समीकरणअब हम एकसमान त्वरण ’ a ’ से गतिमान वस्तु के लिए कुछ गणितीय समीकरण व्युत्पन्न कर सकते हैं जो पाँचों राशियों को किसी प्रकार एक दूसरे से संबंधित करते हैं । ये राशियाँ हैं: विस्थापन (x), लिया गया समय (t),t=0 समय पर वस्तु का प्रारंभिक वेग (v), समय t बीत जाने पर अंतिम वेग (v), तथा त्वरण (a)। हम पहले ही vo और V के मध्य एक समीकरण (2.4) प्राप्त कर चुके हैं जिसमें एकसमान त्वरण a तथा समय t निहित हैं । यह समीकरण है :

(2.4)v=vo+at

इस समीकरण को चित्र 2.5 में ग्राफ के रूप में निरूपित किया गया है ।

चित्र 2.5 एकसमान त्वरण से गतिमान वस्तु के लिए vt वक्र के नीचे का क्षेत्रफल ।

इस वक्र के अंतर्गत आने वाला क्षेत्रफल :

0 से t समय के बीच का क्षेत्रफल = त्रिभुज ABC का क्षेत्रफल + आयत OACD का क्षेत्रफल

=12( VV0)t+v0t

जैसे कि पहले स्पष्ट किया जा चुका है, vt ग्राफ के अंतर्गत आने वाला क्षेत्रफल वस्तु का विस्थापन होता है। अतः वस्तु का विस्थापन x होगा :

(2.5)x=12(vv0)t+v0t

परंतु vV0=at

अत: x=12at2+vOt

अथवा x=v0t+12at2

समीकरण (2.5) को हम निम्न प्रकार भी लिख सकते हैं

X=V+v02t(2.7a)=v¯t(2.7b)v¯=v+v02 ( मात्र स्थिर त्वरण के लिए ) 

समीकरण (2.7a) तथा (2.7b) का अभिप्राय है कि वस्तु का विस्थापन X माध्य वेग V¯ से होता है जो प्रारंभिक एवं अंतिम वेगों के समांतर माध्य के बराबर होता है ।

समीकरण (2.4) से t=(vv0)/a । यह मान समीकरण (2.7a) में रखने पर

x=v¯t=v+v02vv0a=v2v022a(2.8)v2=v02+2ax

यदि हम समीकरण (2.4) से t का मान समीकरण (2.6) में रख दें तो भी उपरोक्त समीकरण को प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार पांचों राशियों V0,V,a,t तथा x के बीच संबंध स्थापित करनेवाले हमें तीन महत्त्वपूर्ण समीकरण प्राप्त हुए-

v=v0+atx=v0t+12at2(2.9a)v2=v02+2ax

ये सभी एकसमान त्वरित सरल रेखीय गति के शुद्धगतिक समीकरण हैं ।

व्यंजक (2.9a) में जो समीकरण दिए गए हैं, उसकी व्युत्पत्ति के लिए हमने माना है कि क्षण t=0 पर वस्तु की स्थिति 0 है (अर्थात् x=0 ) । परंतु यदि हम यह मान लें कि क्षण t= 0 पर वस्तु की स्थिति शून्य न हो, वरन् अशून्य यानी x0 हो तो समीकरण (2.9a) और व्यापक समीकरण में रूपांतरित हो जाएगी (यदि हम x के स्थान पर xXO लिखें):

v=v0+at(2.9b)x=x0+v0t+12at2(2.9c)v2=v02+2a(xx0)

सारांश

1. यदि किसी वस्तु की स्थिति समय के साथ बदलती है तो हम कहते हैं कि वस्तु गतिमान है। एक सरल रैखिक गति में वस्तु की स्थिति को सुगमता के दृष्टिकोण से चुने गए किसी मूल बिंदु के सापेक्ष निर्दिष्ट किया जा सकता है । मूल बिंदु के दायों ओर की स्थितियों को धनात्मक तथा बायों ओर की स्थितियों को ऋणात्मक कहा जाता है ।

2. किसी वस्तु द्वारा चली गई दूरी की लंबाई को पथ-लंबाई के रूप में परिभाषित करते हैं ।

3. वस्तु की स्थिति में परिवर्तन को हम विस्थापन कहते हैं और इसे Δx से निरूपित करते हैं;

Δx=x2x1

X1 और x2 वस्तु की क्रमशः प्रारंभिक तथा अंतिम स्थितियाँ हैं ।

पथ-लंबाई उन्हीं दो बिंदुओं के बीच विस्थापन के परिणाम के बराबर या उससे अधिक हो सकती है ।

4. जब कोई वस्तु समान समय अंतराल में समान दूरियाँ तय करती है तो ऐसी गति को एकसमान गति कहते हैं । यदि ऐसा नहीं है तो गति असमान होती है ।

5. विस्थापन की अवधि के समय अंतराल द्वारा विस्थापन को विभाजित करने पर जो राशि प्राप्त होती है, उसे औसत वेग कहते हैं तथा इसे v¯ द्वारा चिह्नित करते हैं;

v¯=ΔxΔt

xt ग्राफ में किसी दिए गए अंतराल की अवधि में औसत वेग उस सरल रेखा की प्रवणता है जो समय अंतराल की प्रांरभिक एवं अंतिम स्थितियों को जोड़ती है ।

6. वस्तु की यात्रा की अवधि में चली गई कुल पथ-लंबाई एवं इसमें लगे समय अंतराल अनुपात को औसत चाल कहते हैं। किसी वस्तु की औसत चाल किसी दिए गए समय अन्तराल में उसके औसत वेग के परिणाम के बराबर अथवा अधिक होती है ।

7. जब समय अतंराल Δt अत्यल्प हो तो वस्तु के औसत वेग के सीमान्त मान को तात्क्षणिक वेग या केवल वेग कहते हैं :

v=limΔt0v¯=limΔt0ΔxΔt=dx dt

किसी क्षण वस्तु का वेग उस क्षण स्थान समय-ग्राफ की प्रवणता के बराबर होता है ।

8. वस्तु के वेग में परिवर्तन को संगत समय अंतराल से विभाजित करने पर जो राशि प्राप्त होती है, उसे औसत त्वरण कहते हैं :

a¯=ΔvΔt

9. जब समय अंतराल अत्यल्प Δt0 हो तो, वस्तु के औसत त्वरण के सीमान्त मान को तात्क्षणिक त्वरण या केवल त्वरण कहते हैं :

a=limΔt0a¯=limΔt0ΔvΔt=dv dt

किसी क्षण वस्तु का त्वरण उस क्षण वेग-समय ग्राफ की प्रवणता के बराबर होता है । एकसमान गति के लिए त्वरण शून्य होता है तथा Xt ग्राफ समय-अक्ष पर आनत एक सरल रेखा होती है । इसी प्रकार एकसमान गति के लिए vt ग्राफ समय-अक्ष के समांतर सरल रेखा होती है । एकसमान त्वरण के लिए xt ग्राफ परवलय होता है जबकि Vt ग्राफ समय-अक्ष के आनत एक सरल रेखा होती है ।

10. किन्हीं दो क्षणों t1 तथा t2 के मध्य खींचे गए वेग-समय वक्र के अंतर्गत आने वाला क्षेत्रफल वस्तु के विस्थापन के बराबर होता है ।

11. एकसमान त्वरण से गतिमान वस्तु के लिए कुछ सामान्य समीकरणों का एक समूह होता है जिससे पाँच राशियाँ यथा विस्थापन X, तत्संबंधित समय t, प्रारंभिक वेग vo, अंतिम वेग v तथा त्वरण a एक दूसरे से संबंधित होते हैं । इन समीकरणों को वस्तु के शुद्धगतिक समीकरणों के नाम से जाना जाता है :

v=vo+at

x=v0t+12at2v2=v02+2ax

इन समीकरणों में क्षण t=0 पर वस्तु की स्थिति x=0 ली गई है । यदि वस्तु x=xo से चलना प्रारंभ करे तो उपर्युक्त समीकरणों में x के स्थान पर (xx0) लिखेंगे ।

विचारणीय विषय

1. मूल बिंदु तथा किसी अक्ष की धनात्मक दिशा का चयन अपनी रुचि का विषय है । आपको सबसे पहले इस चयन का उल्लेख कर देना चाहिए और इसी के बाद राशियों; जैसे- विस्थापन, वेग तथा त्वरण के चिह्नों का निर्धारण करना चाहिए।

2. यदि किसी वस्तु की चाल बढ़ती जा रही है तो त्वरण वेग की दिशा में होगा परंतु यदि चाल घटती जाती है तो त्वरण वेग की विपरीत दिशा में होगा । यह कथन मूल बिंदु तथा अक्ष के चुनाव पर निर्भर नहीं करता ।

3. त्वरण के चिह्न से हमें यह पता नहीं चलता कि वस्तु की चाल बढ़ रही है या घट रही है । त्वरण का चि्न (जैसा कि उपरोक्त बिंदु 1 में बतलाया गया है) अक्ष के धनात्मक दिशा के चयन पर निर्भर करता है । उदाहरण के तौर पर यदि ऊपर की ओर ऊर्ध्वाधर दिशा को अक्ष की धनात्मक दिशा माना जाए तो गुरुत्वजनित त्वरण ऋणात्मक होगा। यदि कोई वस्तु गुरुत्व के कारण नीचे की ओर गिर रही है तो भी वस्तु की चाल बढ़ती जाएगी यद्यपि त्वरण का मान ऋणात्मक है। वस्तु ऊपर की दिशा में फेंकी जाए तो उसी ॠणात्मक (गुरुत्वजनित) त्वरण के कारण वस्तु की चाल में कमी आती जाएगी।

4. यदि किसी क्षण वस्तु का वेग शून्य है तो यह आवश्यक नहीं है कि उस क्षण उसका त्वरण भी शून्य हो । कोई वस्तु क्षणिक रूप से विरामावस्था में हो सकती है तथापि उस क्षण उसका त्वरण शून्य नहीं होगा । उदाहरणस्वरूप, यदि किसी वस्तु को ऊपर की ओर फेंका जाए तो शीर्षस्थ बिंदु पर उसका वेग तो शून्य होगा परंतु इस अवसर पर उसका त्वरण गुरुत्वजनित त्वरण ही होगा ।

5. गति संबंधी शुद्धगतिक समीकरणों [समीकरण (2.9)] की विभिन्न राशियाँ बीजगणितीय हैं अर्थात वे धनात्मक या ऋणात्मक हो सकती हैं। ये समीकरण सभी परिस्थितियों (स्थिर त्वरण वाली एकविमीय गति) के लिए उपयुक्त होते हैं बशर्ते समीकरणों में विभिन्न राशियों के मान उपयुक्त चिह्नों के साथ रखे जाएँ ।

6. तात्क्षणिक वेग तथा त्वरण की परिभाषाएँ [समीकरण (2.1) तथा समीकरण (2.3)] यथार्थ हैं और सदैव सही हैं जबकि शुद्धगतिक समीकरण [समीकरण (2.9)] उन्हीं गतियों के लिए सही है जिनमें गति की अवधि में त्वरण का परिमाण और दिशा स्थिर रहते हैं ।