अध्याय 12 अणुगति सिद्धांत

12.1 भूमिका

बॉयल ने 1661 में एक नियम की खोज की, जिसे उनके नाम से जाना जाता है। बॉयल, न्यूटन एवं अन्य कई वैज्ञानिकों ने गैसों के व्यवहार को यह मानकर समझाने की चेष्टा की कि गैसें अत्यंत सूक्ष्म परमाण्वीय कणों से बनी हैं। वास्तविक परमाणु सिद्धांत तो इसके 150 से भी अधिक वर्ष बाद ही स्थापित हो पाया। अणुगति सिद्धांत इस धारणा के आधार पर गैसों के व्यवहार की व्याख्या करता है कि गैसों में अत्यंत तीव्र गति से गतिमान परमाणु अथवा अणु होते हैं। यह संभव भी है, क्योंकि ठोसों तथा द्रवों के परमाणुओं के बीच अंतरापरमाणुक बल, जो कि लघु परासी बल है, एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जबकि गैसों में इस बल को उपेक्षणीय माना जा सकता है। अणुगति सिद्धांत, 19 वीं शताब्दी में, मैक्सवेल, बोल्ट्ज़मान और अन्य वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया था। यह असाधारण रूप से सफल सिद्धांत रहा है। यह दाब एवं ताप की एक आण्विक व्याख्या प्रस्तुत करता है तथा आवोगाद्रो की परिकल्पना और गैस नियमों के अनुरूप है। यह बहुत सी गैसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिता की ठीक-ठीक व्याख्या करता है। यह श्यानता, चालकता, विसरण जैसे गैसों के मापनीय गुणों को आण्विक प्राचलों से जोड़ता है और अणुओं की आमापों एवं द्रव्यमानों का आकलन संभव बनाता है। इस अध्याय में अणुगति सिद्धांत का आरंभिक ज्ञान दिया गया है।

12.2 द्रव्य की आणिवक प्रकृति

बीसवीं शताब्दी के महान वैज्ञानिकों में एक रिचर्ड फीनमेन, इस खोज को कि ‘द्रव्य परमाणुओं से बना है’ अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं। यदि हम विवेक से काम नहीं लेंगे, तो (नाभिकीय विध्वंस के कारण) मानवता का विनाश हो सकता है, या फिर वह (पर्यावरणीय विपदाओं के कारण) विलुप्त हो सकती है। यदि वैसा होता है और संपूर्ण वैज्ञानिक ज्ञान के नष्ट होने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो फीनमेन विश्व की अगली पीढ़ी के प्राणियों को परमाणु परिकल्पना संप्रेषित करना चाहेंगे। परमाणु परिकल्पना : सभी वस्तुएँ परमाणुओं से बनी हैं, जो अनवरत

प्राचीन भारत एवं यूनान में परमाण्वीय परिकल्पना

यद्यपि, आधुनिक विज्ञान से परमाण्वीय दृष्टिकोण का परिचय कराने का श्रेय जॉन डाल्टन को दिया जाता है, तथापि, प्राचीन भारत और यूनान के विद्वानों ने बहुत पहले ही परमाणुओं और अणुओं के अस्तित्व का अनुमान लगा लिया था। भारत में वैशेषिक दर्शन, जिसके प्रणेता कणाद थे (छठी शताब्दी ई.पू.), में परमाण्वीय प्रारूप का विस्तृत विकास हुआ । उन्होंने परमाणुओं को अविभाज्य, सूक्ष्म तथा द्रव्य का अविभाज्य अंश माना । यह भी तर्क दिया गया कि यदि द्रव्य को विभाजित करने के क्रम का कोई अन्त न हो तो किसी सरसों के दाने तथा मेरु पर्वत में कोई अंतर नहीं रहेगा । चार प्रकार के परमाणुओं (संस्कृत में सूक्ष्मतम कण को परमाणु कहते हैं) की कल्पना की गई जिनकी अपनी अभिलाक्षणिक संहति तथा अन्य विशेषताएँ थीं जो इस प्रकार हैं : भूमि (पृथ्वी), अप् (जल), तेज (अग्नि) तथा वायु (हवा)। उन्होंने आकाश (अंतरिक्ष) को सतत् तथा अक्रिय माना और यह बताया कि इसकी कोई परमाण्वीय संरचना नहीं है । परमाणु संयोग करके विभिन्न अणुओं का निर्माण करते हैं (जैसे दो परमाणु संयोग करके एक द्विपरमाणुक अणु ‘द्वैणुक’, तीन परमाणुओं के संयोग से ‘त्रसरेणु’ अथवा त्रिपरमाणुक अणु बनाते हैं), इनके गुण संघटक अणुओं की प्रकृति एवं अनुपात पर निर्भर करते हैं। अनुमानों द्वारा अथवा उन विधियों द्वारा जो हमें ज्ञात नहीं हैं, उन्होंने परमाणुओं के आकार का आकलन भी किया । इन आकलनों में विविधता है । ललित विस्तार - बुद्ध की एक प्रसिद्ध जीवनी जिसे मुख्य रूप से ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में लिखा गया, में परमाणु का आकार 1010 m की कोटि का बताया गया है । यह आकलन परमाणु के आकार के आधुनिक आकलनों के निकट है ।

पुरातन ग्रीस में, डेमोक्रिटस (चतुर्थ शताब्दी ई.पू.) को उनकी परमाण्वीय परिकल्पना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ग्रीक भाषा में ‘Atom’ शब्द का अर्थ है ‘अविभाज्य’। उनके अनुसार परमाणु एक दूसरे से भौतिक रूप में, आकृति में, आकार में तथा अन्य गुणों में भिन्न होते हैं तथा इसी के परिणामस्वरूप उनके संयोग द्वारा निर्मित पदार्थों के भिन्न-भिन्न गुण होते हैं। उनके विचारों के अनुसार जल के अणु चिकने तथा गोल होते हैं तथा वे एक दूसरे के साथ जुड़ने योग्य नहीं होते, यही कारण है कि जल आसानी से प्रवाहित होने लगता है। भूमि के परमाणु खुरदरे तथा काँटेदार होते हैं जिसके कारण वे एक दूसरे को जकड़े रहते हैं तथा कठोर पदार्थ निर्मित करते हैं । उनके विचार से अग्नि के परमाणु कँटीले होते हैं जिसके कारण वे पीड़ादायक जलन उत्पन्न करते हैं। ये धारणाएँ चित्ताकर्षक होते हुए भी, और आगे विकसित न हो सकीं। इसका कदाचित यह कारण हो सकता है कि ये विचार उन दार्शनिकों की अंतर्दर्शी कल्पनाएं एवं अनुमान मात्र थे, जिनका न तो परीक्षण किया गया था और न ही मात्रात्मक प्रयोगों (जो कि आधुनिक विज्ञान का प्रमाण-चिह्न हैं) द्वारा संशोधन ।

गतिमान अत्यंत सूक्ष्म कण हैं, बीच में अल्प दूरी होने पर ये एक दूसरे को आकर्षित करते हैं पर एक दूसरे में निष्पीडित किए जाने पर प्रतिकर्षित करने लगते हैं।

यह चिंतन कि द्रव्य सतत नहीं हो सकता, कई स्थानों और संस्कृतियों में विद्यमान था। भारत में कणाद और यूनान में डेमोक्रिटस ने यह सुझाव दिया था कि द्रव्य अविभाज्य अवयवों का बना हो सकता है। प्राय: वैज्ञानिक आण्विक सिद्धांत की खोज का श्रेय डाल्टन को देते हैं। तत्वों के संयोजन द्वारा यौगिक बनने की प्रक्रिया में पालन किए जाने वाले निश्चित अनुपात और बहुगुणक अनुपात के नियमों की व्याख्या करने के लिए डाल्टन ने यह सिद्धांत प्रस्तावित किया था। पहला नियम बताता है कि किसी यौगिक में अवयवों के द्रव्यमानों का अनुपात नियत रहता है। दूसरे नियम का कथन है कि जब दो तत्व मिलकर दो या अधिक यौगिक बनाते हैं तो एक तत्व के निश्चित द्रव्यमान से संयोजित होने वाले दूसरे तत्व के द्रव्यमानों में एक सरल पूर्णांकीय अनुपात होता है। इन नियमों की व्याख्या करने के लिए, लगभग 200 वर्ष पूर्व डाल्टन ने सुझाया कि किसी तत्व के सूक्ष्मतम अवयव परमाणु हैं। एक तत्व के सभी परमाणु सर्वसम होते हैं पर ये दूसरे तत्वों के परमाणुओं से भिन्न होते हैं। अल्प संख्या में तत्वों के परमाणु संयोग करके यौगिक का अणु बनाते हैं। 19 वीं शताब्दी के आरंभ में दिए गए गै-लुसैक के नियम के अनुसार: जब गैसें रासायनिक रूप से संयोजन करके कोई अन्य गैस बनाती हैं, तो उनके आयतन लघु पूर्णांकों के अनुपात में होते हैं। आवोगाद्रो का नियम (या परिकल्पना) बताता है कि समान ताप और दाब पर गैसों के समान आयतनों में अणुओं की संख्या समान होती है। आवोगाद्रो नियम को डाल्टन के सिद्धांत से जोड़ने पर गै-लुसैक के नियम की व्याख्या की जा सकती है। क्योंकि, तत्व प्रायः अणुओं के रूप में होते हैं, डाल्टन के परमाणु सिद्धांत को द्रव्य का आण्विक सिद्धांत भी कहा जा सकता है। इस सिद्धांत को अब वैज्ञानिकों द्वारा मान्यता है। तथापि, उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक भी ऐसे कई प्रसिद्ध

वैज्ञानिक थे जो परमाणु सिद्धांत में विश्वास नहीं करते थे। आधुनिक काल में, बहुत से प्रेक्षणों से, अब हम यह जानते हैं कि पदार्थ अणुओं (एक या अधिक परमाणुओं से बने) से मिलकर बना होता है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी एवं क्रमवीक्षण सुरंगक सूक्ष्मदर्शी की सहायता से अब हम उनको देख सकते हैं। परमाणु का आमाप लगभग एक ऐंस्ट्रॉम (1\AA(1010 m) है। ठोसों में, जहाँ कण कसकर एक दूसरे से जुड़े हैं, परमाणुओं के बीच कुछ ऐंग्स्रॉम (2\AA) की दूरी है। द्रवों में भी परमाणुओं के बीच इतनी ही दूरी है। द्रवों में परमाणु एक दूसरे के साथ उतनी दृढ़ता से नहीं बँधे होते जितने ठोसों में, और, इसलिए इधरउधर गति कर सकते हैं। इसीलिए, द्रवों में प्रवाह होता है। गैसों में अंतरपरमाणुक दूरी दसों एंग्ट्रॉम में होती है। वह औसत दूरी जो कोई अणु बिना संघट्ट किए चल सकता है उसकी औसत मुक्त पथ कहलाती है। गैसों में औसत मुक्त पथ हजारों एंग्ट्रॉम की कोटि का होता है। अतः गैसों में परमाणु अत्यधिक स्वतंत्र होते हैं और बड़ी-बड़ी दूरियों तक बिना संघट्ट किए जा सकते हैं। यदि बंद करके न रखा जाए, तो गैसें विसरित हो जाती हैं। ठोसों और द्रवों में पास-पास होने के कारण परमाणुओं के बीच के अंतर परमाणुक बल महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ये बल अधिक दूरियों पर आकर्षण और अल्प दूरी पर प्रतिकर्षण बल होते हैं। जब परमाणु एक दूसरे से कुछ एंग्ट्रॉम की दूरी पर होते हैं तो वे एक दूसरे को आकर्षित करते हैं पर बहुत पास लाए जाने पर प्रतिकर्षित करने लगते हैं। गैस का स्थैतिक दिखाई पड़ना भ्रामक है। गैस सक्रियता से भरपूर है और इनका संतुलन गतिक संतुलन है। गतिक संतुलन में अणु एक दूसरे से संघट्ट करते हैं और संघट्ट की अवधि में उनकी चालों में परिवर्तन होता है। केवल औसत गुण नियत रहते हैं।

परमाणु सिद्धांत हमारी खोजों का अंत नहीं है बल्कि यह तो इसका एक आरंभ है। अब हम जानते हैं कि परमाणु अविभाज्य या मूल कण नहीं हैं। उनमें एक नाभिक और इलेक्ट्रॉन होते हैं। नाभिक स्वयं प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों से बने होते हैं। यही नहीं प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन क्वार्कों से मिलकर बने होते हैं। हो सकता है कि क्वार्क भी इस कहानी का अंत न हों। यह भी हो सकता है कि स्ट्रिंग (तंतु) जैसी कोई प्राथमिक सत्ता हो। प्रकृति हमारे लिए सदैव ही विलक्षण भरी है, पर, सत्य की खोज आनंददायक होती है और हर आविष्कार में अपना सौंदर्य होता है। इस अध्याय में हम अपना अध्ययन गैसों के (और थोड़ा बहुत ठोसों के) व्यवहार तक ही सीमित रखेंगे। इसके लिए हम उन्हें अनवरत गति करते गतिमान कणों का समूह मानेंगे।

12.3 गैसों का व्यवहार

ठोसों एवं द्रवों की तुलना में गैसों के गुणों को समझना आसान है। यह मुख्यतः इस कारण होता है, क्योंकि, गैस में अणु एक दूसरे से दूर-दूर होते हैं और दो अणुओं के संघट्ट की स्थिति को छोड़कर उनके बीच पारस्परिक अन्योन्य क्रियाएँ उपेक्षणीय होती हैं जैसे निम्न दाब व उनके द्रवित (या घनीभूत) होने के तापों की अपेक्षा अत्यधिक उच्च ताप पर अपने ताप, दाब और आयतन में लगभग निम्नलिखित संबंध दर्शाती हैं (देखिए अध्याय 10)

(12.1)PV=KT

यह संबंध गैस के दिए गए नमूने के लिए है। यहाँ T केल्विन (या परम) पैमाने पर ताप है, K दिए गए नमूने के लिए नियतांक है परंतु आयतन के साथ परिवर्तित होता है यदि अब हम परमाणु या अणु की धारणा लागू करें तो, K दिए गए नमूने में अणुओं की संख्या N के अनुक्रमानुपाती है। हम लिख सकते हैं, K=Nk । प्रयोग हमें बताते हैं कि k का मान सभी गैसों के लिए समान है। इसको बोल्ट्समान नियतांक कहा जाता है और kB द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।

(12.2)P1V1N1T1=P2V2N2T2= नियतांक =kB

यदि P,V एवं T समान हों तो N भी सभी गैसों के लिए समान होगा। यही आवोगाद्रो परिकल्पना है कि समान ताप एवं दाब पर सभी गैसों के प्रति एकांक आयतन में अणुओं की संख्या समान होती है। किसी गैस के 22.4 लीटर आयतन में यह संख्या 6.02×1023 है। इस संख्या को आवोगाद्रो संख्या कहा जाता है और संकेत NA द्वारा चिह्नित किया जाता है। किसी गैस के 22.4 लीटर आयतन का STP (मानक ताप =273 K एवं मानक दाब =1 एटमौस्फियर) पर द्रव्यमान उस गैस के ग्राम में व्यक्त अणु द्रव्यमान के बराबर है। पदार्थ की यह मात्रा मोल (mole) कहलाती है (अधिक परिशुद्ध परिभाषा के लिए अध्याय 1 देखिए)। आवोगाद्रो ने रासायनिक अभिक्रियाओं के अध्ययन के आधार पर यह अनुमान लगा लिया था कि समान ताप और दाब पर गैसों के समान आयतन में अणुओं की संख्या समान होगी। अणुगति सिद्धांत इस परिकल्पना को न्यायसंगत ठहराता है।

आदर्श गैस समीकरण को हम इस प्रकार लिख सकते हैं,

(12.3)PV=μRT

जहाँ μ मोलों की संख्या है एवं R=NAkB एक सार्वत्रिक नियतांक है। ताप T, परम ताप है। परम ताप के लिए केल्विन पैमाना चुनें, तो R=8.314 J mol1 K1 | यहाँ

(12.4)μ=MM0=NNA

जहाँ, M गैस का द्रव्यमान है जिसमें N अणु हैं, M0 मोलर द्रव्यमान है एवं NA आवोगाद्रो संख्या है। समीकरण (12.4) का उपयोग करके समीकरण (12.3) को इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं :

PV=kBNT अथवा P=kBnT

चित्र 12.1 निम्न दाब और उच्च तापों पर वास्तविक गैसों का व्यवहार आदर्श गैसों के सदृश होने लगता है।

जहाँ n संख्या घनत्व, अर्थात् प्रति एकांक आयतन में अणुओं की संख्या है। kB उपरिवर्णित बोल्ट्ज़मान नियतांक हैं। SI मात्रकों में इसका मान 1.38×1023 J K1 है।

समीकरण (12.3) का दूसरा उपयोगी रूप है,

(12.5)P=ρRTM0

जहाँ ρ गैस का द्रव्यमान घनत्व है।

कोई गैस, जो समीकरण (12.3) का, सभी तापों और दाबों पर पूर्णतः पालन करती है आदर्श गैस कहलाती है। अत: आदर्श गैस किसी गैस का सरल सैद्धांतिक निदर्श है। कोई भी वास्तविक गैस सही अर्थों में आदर्श गैस नहीं होती। चित्र 12.1 में तीन भिन्न तापों पर किसी वास्तविक गैस का आदर्श गैस से विचलन दर्शाया गया है। ध्यान दीजिए, निम्न दाबों और उच्च तापों पर सभी वक्र आदर्श गैस व्यवहार के सदृश होने लगते हैं।

निम्न दाबों और उच्च तापों पर अणु दूर-दूर होते हैं और उनके बीच की आण्विक अन्योन्य क्रियाएँ उपेक्षणीय होती हैं। अन्योन्य क्रियाओं की अनुपस्थिति में गैस एक आदर्श गैस की तरह व्यवहार करती है।

समीकरण 12.3 में यदि हम μ एवं T को निश्चित कर दें, तो,

PV= नियतांक

अर्थात्, नियत ताप पर, गैस के किसी दिए गए द्रव्यमान का दाब उसके आयतन के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यही प्रसिद्ध बॉयल का नियम है। चित्र 12.2 में प्रायोगिक PV वक्र एवं बॉयल के नियमानुसार भविष्यवाची सैद्धांतिक वक्र, तुलना के लिए एक साथ दर्शाये गए हैं। एक बार फिर आप देख सकते हैं कि निम्न दाब और उच्च ताप पर प्रायोगिक एवं सैद्धांतिक

चित्र 12.2 भाप के लिए, तीन भिन्न तापों पर प्रायोगिक PV वक्रों (ठोस रेखाएँ) की बॉयल के नियम (बिंदुकित रेखाएँ) से तुलना। P का मान 22 atm के मात्रकों में है और V का मान 0.09 लीटर के मात्रकों में है।

वक्रों में संगति स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। अब, यदि आप P को नियत रखें तो समीकरण (12.1) दर्शाती है कि VT अर्थात्, नियत दाब पर किसी दी गई गैस का आयतन उसके परम ताप T के अनुक्रमानुपाती होता है ( चार्ल्स का नियम )। चित्र 12.3 देखिए।

चित्र 12.3 तीन भिन्न दाबों के लिए CO2 के प्रायोगिक TV वक्रों की (पूर्ण रेखाओं द्वारा प्रदर्शित) चार्ल्स नियमानुसार प्राप्त सैद्धांतिक वक्रों से (बिंदुकित रेखाओं द्वारा प्रदर्शित) तुलना। T,300 K के मात्रकों में एवं V,0.13 लीटर के मात्रकों में है।

अंत में, हम एक बर्तन में रखे गए, परस्पर अन्योन्य क्रियाएँ न करने वाली आदर्श गैसों के मिश्रण पर विचार करते हैं, जिसमें μ1 मोल गैस- 1 के, μ2 मोल गैस- 2 के और इसी प्रकार अन्य गैसों के विभिन्न मोल हैं। बर्तन का आयतन V है, गैस का परम ताप T एवं दाब P है। मिश्रण की अवस्था का समीकरण लिखें तो,

(12.7)PV=(μ1+μ2+)RT(12.8) अर्थात् P=μ1RTV+μ2RTV+(12.9)=P1+P2+

स्पष्टतः, P1=μ1RT/V वह दाब है जो ताप और आयतन की समान अवस्थाओं में अन्य सभी गैसों की अनुपस्थिति में केवल गैस- 1 के कारण होता। इस दाब को गैस का आंशिक दाब कहते हैं। अतः आदर्श गैसों के किसी मिश्रण का कुल दाब मिश्रण में विद्यमान गैसों के आंशिक दाबों के योग के बराबर होता है। यह डाल्टन का आंशिक दाबों का नियम है।

अब हम कुछ ऐसे उदाहरणों पर विचार करेंगे जिनसे हमें अणुओं द्वारा घेरे गए आयतन और एक अणु के आयतन के विषय में जानकारी प्राप्त होगी।

12.4 आदर्श गैसों का अणुगति सिद्धांत

गैसों का अणुगति सिद्धांत इस मान्यता पर आधारित है कि द्रव्य अणुओं का बना है। गैस के किसी दिए गए द्रव्यमान में अति विशाल (प्रारूपिक मान आवोगाद्रो संख्या की कोटि का) संख्या में अणु होते हैं जो लगातार यादृच्छिक गति करते हैं। सामान्य ताप और दाब पर अणुओं के बीच की दूरी अणु के आकार (2\AA) की तुलना में 10 गुने से भी अधिक होती है। इसलिए अणुओं के बीच उपेक्षणीय अन्योन्य क्रिया होती है और ऐसा हम मान सकते हैं वे न्यूटन के गति के प्रथम नियम के अनुसार स्वतंत्र रूप से सरल रेखा में चलते हैं, तथापि, कभी-कभी वे एक दूसरे के अत्यधिक निकट आ जाते हैं, तब वे अंतर-आण्विक बल का अनुभव करते हैं और उनके वेग परिवर्तित हो जाते हैं। अणुओं के बीच की इस अन्योन्य क्रिया को संघट्ट कहते हैं। इस प्रकार अणु लगातार परस्पर और धारक पात्र की दीवारों से संघट्ट करके अपने वेग परिवर्तित करते रहते हैं। ये सभी संघट्ट प्रत्यास्थ होते हैं। अणुगति सिद्धांत के आधार पर हम गैस के दाब के लिए एक व्यंजक व्युत्पन्न कर सकते हैं।

हम इस मूल धारणा से प्रारंभ करते हैं कि गैस के अणु सतत यादृच्छिक गति में हैं और वे एक दूसरे से और धारक पात्र की दीवारों से संघट्ट करते रहते हैं। अणुओं के संघट्ट चाहे पारस्परिक हों, या धारक पात्र की दीवार से ये सभी संघट्ट प्रत्यास्थ होते हैं। इसका अर्थ है कि इनकी कुल गतिज ऊर्जा संरक्षित रहती है। कुल संवेग भी, जैसा प्राय: होता है, संरक्षित रहता है।

12.4.1 किसी आदर्श गैस का दाब

माना कि l भुजा के किसी घनाकार बर्तन में कोई आदर्श गैस भरी है। चित्र 12.4 में दर्शाए अनुसार बर्तन की भुजाएँ संदर्भ अक्षों के समांतर हैं। एक अणु जिसका वेग (vx,vy,vz) है, yz तल के समांतर दीवार, जिसका क्षेत्रफल A(=l2) है, पर संघात करता है। क्योंकि संघट्ट प्रत्यास्थ है, यह अणु दीवार से टकराकर उसी वेग से वापस लौटता है। संघट्ट के फलस्वरूप इसके वेग के y और z घटक तो परिवर्तित नहीं होते परंतु x-घटक का चिह्न उत्क्रमित हो जाता है। अर्थात् संघट्ट के पश्चात वेग (vx,vy,vz) हो जाता है। इस अणु के संवेग में परिवर्तन mvx(mvx)=2mvx होगा। संवेग संरक्षण के नियमानुसार इतना ही संवेग =2mvx संघट्ट में दीवार को प्रदान किया जाएगा।

दीवार पर आरोपित बल (एवं दाब) का परिकलन करने के लिए, हमें प्रति एकांक समय में दीवार पर प्रदान किए जाने वाले संवेग का परिकलन करना होगा। एक अल्प काल-अंतराल Δt में कोई अणु जिसके वेग का x-अवयव vx है दीवार से संघट्ट करेगा यदि यह दीवार से vxΔt दूरी के भीतर है। अर्थात् वह

चित्र 12.4 गैस के एक अणु का धारक की दीवार से प्रत्यास्थ संघट्ट।

सभी अणु, जो दीवार के पास AvxΔt आयतन में हैं; Δt समय में केवल वही दीवार से संघात कर सकेंगे। परंतु औसतन इन अणुओं में से आधे दीवार की ओर गति करते हैं और आधे दीवार से दूर गति करते हैं। अतः (vx,vy,vz) वेग से चलते हुए अणुओं में से 1/2AvxΔtn अणु Δt समय में दीवार से संघात करेंगे, यहाँ n प्रति एकांक आयतन में अणुओं की संख्या है। तब Δt समय में अणुओं द्वारा दीवार को प्रदान किया गया संवेग होगा,

(12.10)Q=(2mvx)(nAvxΔt)

दीवार पर लगा बल संवेग हस्तांतरण की दर Q/Δt एवं दाब प्रति एकांक क्षेत्रफल पर लगा बल है,

P=Q/(AΔt)=nmvx2

वास्तव में, गैस के सभी अणुओं का वेग समान नहीं होता, वेग अणुओं पर वितरित रहते हैं। अतः, उपरोक्त समीकरण अणुओं के उस समूह के कारण दाब को व्यक्त करती है जिनकी x-दिशा में चाल vx है और n इस ही अणु समूह का संख्या घनत्व है। कुल दाब ज्ञात करने के लिए सभी समूहों के योगदानों का संकलन करना होगा। तब,

(12.12)P=nmv2

जहाँ vx2,vx2 का औसत है। अब, क्योंकि गैस समदैशिक है, अर्थात् धारक पात्र में अणुओं के वेग की कोई वरीय दिशा नहीं है, इसलिए सममिति के अनुसार,

vx2=vy2=v32=

(12.13)(1/3)[vx2+vy2+v32]=(1/3)v2

जहाँ v चाल है, और v2 वर्गीकृत चालों का माध्यम है। अतः,

(12.14)P=(1/3)nmv2

इस व्युत्पत्ति पर कुछ टिप्पणियाँ : (i) प्रथम, यद्यपि हमने घनाकार बर्तन का चयन किया है, परंतु वास्तव में, बर्तन की आकृति से कुछ अंतर नहीं पड़ता है। बर्तन किसी भी यादृच्छिक आकृति का हो, हम एक अत्यंत सूक्ष्म समतल लेकर उस पर उपरोक्त व्युत्पत्ति के चरण लागू कर सकते हैं। ध्यान दीजिए, A एवं Δt दोनों ही अंतिम परिणाम में प्रकट नहीं होते हैं। अध्याय 10 में दिए गए पास्कल के नियम के अनुसार यदि कोई गैस साम्यावस्था में हो, तो उसके एक भाग पर जितना दाब होता है उतना ही दाब किसी दूसरे भाग पर भी होता है। (ii) द्वितीय, इस व्युत्पत्ति में हमने किन्हीं भी संघट्टों को उपेक्षणीय मानकर परिकलनों में सम्मिलित नहीं किया है। यद्यपि, इस पूर्वधारणा का कोई पक्का औचित्य बताना तो कठिन है, परंतु गुणात्मक रूप से हम यह देख सकते हैं कि इससे अंतिम परिणाम में त्रुटि नहीं आती। Δt सेकंड में दीवार से संघात करने वाले अणुओं की औसत संख्या nAvxΔt पाई जाती है। अब, चूंकि संघट्ट यादृच्छिक है और गैस एक स्थायी प्रावस्था में है, यदि (vx,vy,vz) वेग वाले अणु की, संघट्ट के कारण, गति बदल भी जाएगी तो भिन्न प्रारंभिक वेग वाला कोई कण संघट्ट के बाद यह वेग (vx,vy,vz) प्राप्त कर लेगा। क्योंकि यदि ऐसा नहीं होगा तो वेगों का वितरण स्थायी नहीं रह पाएगा। सभी प्रकरणों में हम vx2 का मान प्राप्त करेंगे। और इस प्रकार अणुओं के संघट्ट (जब तक कि वे बहुत जल्दी-जल्दी नहीं हो रहे हैं और एक संघट्ट में लगा समय दो संघट्टों के बीच के समय की तुलना में उपेक्षणीय है) से उपरोक्त परिकलन प्रभावित नहीं होता।

12.4.2 ताप की अणु गतिक व्यख्या

समीकरण (12.14) को इस प्रकार भी लिखा जा सकता है,

(12.15a)PV=(1/3)nVmv2(12.15b)PV=(2/3)[Nxmv2]

यहाँ N(=nV) गैस के नमूने में अणुओं की कुल संख्या है। दीर्घ कोष्ठक में लिखी राशि गैस के अणुओं की औसत स्थानांतरीय गतिज ऊर्जा है। क्योंकि किसी आदर्श गैस की आंतरिक ऊर्जा पूर्णतः गतिज ऊर्जां ही है,

(12.16)E=N×(1/2)mv2

समीकरण (12.15 b) से तब हमें प्राप्त होता है,

(12.17)PV=(2/3)E

अब हम ताप की अणुगतिक व्याख्या के लिए तैयार हैं। समीकरण (12.17) का आदर्श गैस समीकरण (12.3) से संयोजित करने पर

(12.18)E=(3/2)kBNT

या E/N=mv2=(3/2)kBT

अर्थात्, किसी अणु की औसत गतिज ऊर्जा, गैस के परम ताप के अनुक्रमानुपाती होती है : यह आदर्श गैस की प्रकृति, दाब या आयतन पर निर्भर नहीं करती। यह एक मौलिक निष्कर्ष है, जो किसी गैस के ताप, जो गैस का एक स्थूल, मेय, प्राचल (जिसे ऊष्मागतिकी चर कहा जाता है) है, को किसी आण्विक

संकेत E आंतरिक ऊर्जा U, जिसमें अन्य स्वातंत्र्य कोटियों के कारण भी ऊर्जाएँ सम्मिलित हो सकती हैं (देखिये अनुभाग 12.5), का केवल स्थानांतरीय भाग ही व्यक्त करता है।

राशि, जिसे अणु की औसत गतिज ऊर्जा कहते हैं से संबद्ध करता है। बोल्ट्ज़मान नियतांक इन दो प्रभाव क्षेत्रों को जोड़ता है। ध्यान से देखें तो समीकरण (12.18) यह स्पष्ट करती है कि आदर्श गैस की आंतरिक ऊर्जा केवल उसके ताप पर निर्भर करती है, दाब या आयतन पर नहीं। ताप की इस व्याख्या से स्पष्ट है कि आदर्श गैसों का अणुगति सिद्धांत आदर्श गैस समीकरण और इस पर आधारित विभिन्न गैस नियमों के पूर्णतः संगत है।

अक्रिय आदर्श गैसों के मिश्रण के लिए कुल दाब मिश्रण की प्रत्येक गैस के दाब का योगदान होता है। समीकरण (12.14) को नए रूप में इस प्रकार लिख सकते हैं,

(12.20)P=(1/3)[n1m1v12+n2m2v22+]

साम्यावस्था में विभिन्न गैसों के अणुओं की औसत गतिज ऊर्जा समान हो जाएगी। अर्थात्

(12.21)m1v12=m2v22=(3/2)kBT

अतः, P=(n1+n2+)kBT

यही डाल्टन का आंशिक दाबों का नियम है।

समीकरण (12.19) से हम किसी गैस में अणुओं की प्रारूपिक चाल का अनुमान लगा सकते हैं। नाइट्रोजन के एक अणु की T=300 K, ताप पर माध्य वर्ग चाल होगी :

यहाँ, m=MN2NA=286.02×1026=4.65×1026 kg

v2=3kBT/m=(516)2 m2 s2

v2 का वर्गमूल इसकी वर्ग माध्य मूल (rms) चाल कहलाती है और इसे vrms द्वारा निर्दिष्ट करते हैं।

( v2 को हम v2 भी लिख सकते हैं)

vrms =516 m s1

इस चाल की कोटि वायु में ध्वनि के वेग के समान है। समीकरण (12.19) से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि समान ताप पर हलके अणुओं की rms चाल अधिक होती है।

जब गैसें विसरित होती हैं, तो उनके विसरण की दर उनके अणुओं के द्रव्यमान के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है (देखिए अभ्यास 12.12)। क्या उपरोक्त उत्तर के आधार पर आप इस तथ्य की व्याख्या का अनुमान लगा सकते हैं?

चित्र 12.5 एक सरंध्र दीवार से गुज़रते हुए अणु।

12.5 ऊर्जा के समविभाजन का नियम

किसी एकल अणु की गतिज ऊर्जा होती है :

(12.22)εt=12mvx2+12mvy2+12mvz2

T ताप पर, तापीय साम्य में किसी गैस की औसत ऊर्जा का मान εt द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है, अतः

εt=12mvx2+12mvy2+12mvz2=32kBT

क्योंकि यहाँ कोई वरीय दिशा नहीं है, अतः समीकरण (12.23) से इंगित होता है कि

12mvx2=12kBT;12mvy2=12kBT;

12mvz2=12kBT

दिक्स्थान में गति के लिए स्वतंत्र किसी अणु की स्थिति दर्शाने के लिए हमें तीन निर्देशांकों की आवश्यकता होती है। यदि इसकी गति किसी एक समतल में बाध्य कर दी जाए, तो दो निर्देशांकों की, और यदि इसे किसी सरल रेखा के अनुदिश गति के लिए बाध्य कर दिया जाए, तो केवल एक निर्देशांक की आवश्यकता होगी। इसे एक दूसरे ढंग से भी व्यक्त किया जा सकता है। हम कहते हैं कि सरल रेखीय गति के लिए इसकी स्वातंत्र्य कोटि एक है, समतल गति की स्वातंत्र्य कोटि दो तथा दिक्स्थान में गति के लिए स्वातंत्र्य कोटि तीन है। किसी संपूर्ण पिण्ड की एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक गति को स्थानांतरीय गति कहते हैं। अतः, दिक्स्थान में गति के लिए स्वतंत्र अणु की तीन स्वातंत्र्य कोटि होती हैं। प्रत्येक स्थानांतरीय स्वतंत्रता की एक स्वातंत्र्य कोटि होती है, जिसमें गति के किसी चर का वर्ग सम्मिलित होता है, उदारहणार्थ यहाँ mvx2 और इसी के सदृश पद vy एवं vz हैं। समीकरण (12.24) में हम देखते हैं कि तापीय साम्य में इस प्रकार के प्रत्येक पद का औसत मान kBT है।

आर्गन जैसी एकपरमाणुक गैस के अणुओं में केवल स्थानांतरीय स्वातंत्र्य कोटि होती है। लेकिन O2 या N2 जैसी द्विपरमाणुक गैसों के विषय में क्या कह सकते हैं? O2 के अणु में 3 स्थानांतरीय स्वातंत्र्य कोटि तो होती ही हैं, पर, इनके अतिरिक्त यह अणु अपने द्रव्यमान केंद्र के परितः घूर्णन गति भी कर सकते हैं। चित्र 12.6 में, ऑक्सीजन के दो परमाणुओं को जोड़ने वाली रेखा के लंबवत् दो स्वतंत्र घूर्णन अक्ष 1 एवं 2 दर्शाए गए हैं जिनके परितः अणु घूर्णन गति कर सकता है*। अतः इन अणुओं में प्रत्येक की दो घूर्णी स्वातंत्र्य कोटि होती हैं। इस प्रकार कुल ऊर्जा में स्थानांतरीय ऊर्जा εt एवं घूर्णी ऊर्जा εr दोनों का योगदान होता है।

εt+εr=12mvx2+12mvy2+12mvz2+12I1ω12+12I2ω22

चित्र 12.6 द्विपरमाणुक अणु के दो स्वतंत्र घूर्णन अक्ष। यहाँ ω1 एवं ω2 क्रमशः अक्षों 1 एवं 2 के परितः कोणीय चाल तथा I1 एवं I2 उनके संगत जड़त्व-आघूर्ण हैं। ध्यान दीजिए, प्रत्येक घूर्णी स्वातंत्य कोटि ऊर्जा में एक पद का योगदान करती है जिसमें घूर्णी गति के किसी चर का वर्ग सम्मिलित होता है। ऊपर हमने यह मान लिया है, कि O2 अणु एक “दृढ़ घूर्णी” है, अर्थात्, यह अणु कंपन नहीं करता। O2 के लिए यह पूर्वधारणा, यद्यपि (सामान्य ताप पर) सही पाई गई है, पर सदैव मान्य नहीं होती। CO जैसे कुछ अणु, सामान्य ताप पर भी कुछ कंपन करते हैं, अर्थात् इनके परमाणु, अंतरापरमाणुक अक्ष के अनुदिश एकविमीय कंपन करते हैं (ठीक वैसे ही जैसे एकविमीय लोलक) और परिणामतः कुल ऊर्जा में एक पद, εv कंपन ऊर्जा का भी होता है, यहाँ,

εv=12m(dy dt)2+12ky2

जहाँ k लोलक का बल नियतांक एवं y इसका कंपन निर्देशांक है। अब,

(12.26)ε=εt+εr+εv

पुनः ध्यान दीजिए, समीकरण (12.26) में दिए गए कंपन-ऊर्जा पद में, गति के कंपन चरों y एवं dy/dt के वर्ग सम्मिलित हैं।

यह भी देखिए कि प्रत्येक स्थानांतरीय एवं घूर्णी स्वातंत्र्य कोटि ने तो एक ही “वर्गित पद” का योगदान किया है, पर समीकरण (12.26) में दिए गए कंपन स्वातंत्य कोटि के सापेक्ष पद में गतिज एवं स्थितिज ऊर्जा व्यक्त करने वाले दो वर्गित पद हैं।

ऊर्जा के व्यंजक में प्रत्येक द्विघाती पद अणु द्वारा ऊर्जा अवशोषित करने का एक ढंग बताता है। हम देख चुके हैं कि परम ताप T पर तापीय साम्यावस्था में स्थानांतरीय गति के प्रत्येक ढंग के लिए औसत ऊर्जा 112kBT है। सर्वप्रथम मैक्सवेल द्वारा सिद्ध किए गए चिर प्रतिष्ठित सांख्यिकीय यांत्रिकी के सर्वाधिक परिष्कृत सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा के विभाजन के प्रत्येक ढंग में ऐसा ही होता है चाहे ऊर्जा स्थानांतरीय हो, घूर्णी हो या कंपन ऊर्जा हो। अर्थात् तापीय साम्य में, ऊर्जा समान रूप से सभी संभव ऊर्जा रूपों पर बंटित होती है और प्रत्येक रूप में औसत ऊर्जा 1/2kBT पाई जाती है। यही ऊर्जा का समविभाजन नियम है। तदनुसार, किसी अणु की स्थानांतरीय एवं घूर्णी स्वातंत्र्य कोटियों में प्रत्येक 112kBT ऊर्जा का योगदान देती है

परमाणुओं को मिलाने वाली रेखा के परितः घूर्णन का जड़त्व आघूर्ण बहुत कम होता है और क्वांटम यांत्रिकीय कारणों से प्रभावी नहीं हो पाता। अनुभाग 12.6 का अंतिम भाग देखिए।

जबकि प्रत्येक कंपन आवृत्ति 2×112kBT=kBT ऊर्जा का योगदान देती है, क्योंकि, कंपन रूप में गतिज और स्थितिज दोनों प्रकार की ऊर्जाओं का योगदान होता है।

ऊर्जा के समविभाजन नियम की उपपत्ति इस पुस्तक की विषय वस्तु से बाहर है। यहाँ हम सैद्धांतिक रूप से गैसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिता ज्ञात करने के लिए इस नियम का उपयोग करेंगे। बाद में ठोसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिता के लिए भी इसके उपयोग का संक्षिप्त विवरण देंगे।

12.6 विशिष्ट ऊष्मा धारिता

12.6.1 एकपरमाणुक गैसों के लिए

एकपरमाणुक गैस के अणु में केवल तीन स्थानांतरीय स्वातंत्र्य कोटि होती हैं। अतः इनके एक अणु की T ताप पर औसत ऊर्जा (3/2)kBT होगी। इस प्रकार की गैस के 1 मोल की कुल आंतरिक ऊर्जा,

(12.27)U=32kBT×NA=32RT

नियत आयतन पर मोलर विशिष्ट ऊष्मा धारिता Cv का मान है,

Cv (एकपरमाणुक गैस के लिए) =dU dT=32RT

आदर्श गैस के लिए

CpCv=R

जहाँ, Cp नियत दाब पर मोलर विशिष्ट ऊष्माधारिता है।

अतः, Cp=52R

इन दो विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं का अनुपात

(12.31)γ=CpCv=53

12.6.2 द्विपरमाणुक गैसों के लिए

जैसा पहले स्पष्ट किया जा चुका है कि द्विपरमाणुक अणु की आकृति डंबलाकार होती है और यदि इस आकृति को दृढ़ घूर्णी मानें, तो इसकी 5 स्वातंत्र्य कोटि हैं : 3 स्थानांतरीय एवं 2 घूर्णी। ऊर्जा समविभाजन के नियमानुसार इस प्रकार की गैस के एक मोल की, T ताप पर कुल आंतरिक ऊर्जा,

(12.32)U=52kBT×NA=52RT

अतः मोलर विशिष्ट ऊष्मा धारिताएँ

(12.33)Cv( दृढ़ द्विपरमाणुक )=52R,Cp=72R

γ( दृढ़ द्विपरमाणुक )=75

यदि द्विपरमाणुक अणु दृढ़ नहीं है, वरन् इसमें एक अतिरिक्त कंपन रूप भी सम्मिलित है, तो

U=(52kBT+kBT)NA=72RT(12.35)Cv=72R,Cp=92R,γ=97R

12.6.3 बहुपरमाणुक गैसों के लिए

व्यापक रूप में किसी बहुपरमाणुक अणु में 3 स्थानांतरीय, 3 घूर्णी स्वातंत्र्य कोटि एवं कुछ निश्चित संख्या (f) के कंपन रूप होते हैं। ऊर्जा समविभाजन के नियमानुसार यह सुगमता से समझा जा सकता है कि इस प्रकार की गैस के 1 मोल की कुल आंतरिक ऊर्जा

U=(32kBT+32kBT+fkBT)NA

अर्थात् Cv=(3+f)R;Cp=(4+f)R,

(12.36)γ=(4+f)(3+f)

ध्यान दीजिए, CpCv=R सभी आदर्श गैसों के लिए सत्य है, फिर चाहे वह गैस एकपरमाणुक हो, द्विपरमाणुक हो अथवा बहुपरमाणुक भी क्यों न हो।

सारणी (12.1) में, गैसों में, कंपन रूपों की उपेक्षा करते हुए, उनकी विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के विषय में सैद्धांतिक पूर्वानुमानों को सूचीबद्ध किया गया है। ये मान सारणी (12.2) में दिए गए कई गैसों के लिए विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के प्रायोगिक मानों से काफी मेल खाते हैं। यह सत्य है, कि ऐसी कई गैसे हैं (जो सारणी में नहीं दर्शाई गई हैं), जैसे Cl2,C2H और बहुत सी बहुपरमाणुक गैसें, जिनके प्रायोगिक और सैद्धांतिक

सारणी 12.1 गैसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के पूर्वानुमानित मान (कंपन रूपों की उपेक्षा करते हुए)

गैस की
प्रकृति
Cv
(J mol1K1)
Cp
(Jmol1K1)
CpCv
(Jmol1K1)
γ
एकपरमाणुक
द्विपरमाणुक
12.5 20.8 8.31 1.67
त्रिपरमाणुक 24.93 29.1 8.31 1.40

सारणी 12.2 कुछ गैसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के मापित मान

गैस की
प्रकृति
गैस CH(Jmol1K1) Cp
(Jmol
CpCv
( Jmol1K1)
γ
एकपरमाणुक He 12.5 20.8 8.30 1.66
एकपरमाणुक Ne 12.7 20.8 8.12 1.64
एकपरमाणुक Ar 12.5 20.8 8.30 1.67
द्विपरमाणुक H2 20.4 28.8 8.45 1.41
द्विपरमाणुक O2 21.0 29.3 8.32 1.40
द्विपरमाणुक N2 20.8 29.1 8.32 1.40
त्रिपरमाणुक H2O 27.0 35.4 8.35 1.31
बहुपरमाणुक CH4 27.1 35.4 8.36 1.31

मानों में बहुत अंतर पाया गया है। साधारणतः इन गैसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के मान सारणी (12.1) में दिए गए सैद्धांतिक मानों से अधिक पाए गए हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि हम परिकलनों में कंपन रूपों के योगदान को भी सम्मिलित करें, तो प्रायोगिक एवं सैद्धांतिक मानों में अधिक संगति दृष्टिगोचर होगी। अतः, सामान्य ताप पर ऊर्जा समविभाजन का नियम, प्रायोगिक रूप से अच्छी तरह पुष्ट होता है।

12.6.4 ठोसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिता

ठोसों की विशिष्ट ऊष्माधारिता ज्ञात करने के लिए भी हम ऊर्जा समविभाजन का नियम लागू कर सकते हैं। किसी ठोस के विषय में विचार कीजिए, जो N परमाणुओं का बना है। प्रत्येक परमाणु अपनी माध्य स्थिति के इधर-उधर कंपन कर रहा है। किसी एकविमीय कंपन की औसत ऊर्जा 2×12kBT =kBT है। त्रिविमीय कंपनों के लिए औसत ऊर्जा 3kBT है। ठोस के 1 मोल के लिए N=NA और इसकी कुल आंतरिक ऊर्जा

U=3kBT×NA=3RT

अब, नियत दाब पर ΔQ=ΔU+PΔV=ΔU, क्योंकि किसी ठोस के लिए ΔV उपेक्षणीय है। अतः

(12.37)C=ΔQΔT=ΔUΔT=3R

सारणी 12.3 कमरे के ताप एवं वायुमंडलीय दाब पर कुछ ठोसों की विशिष्ट ऊष्ष्मा धारिताओं के मान

पदार्थ का
नाम
विशिष्ट ऊष्मा धारिता
( kg1k1)
मोलर विशिष्ट ऊष्मा
धारिता (J mol1 k1)
ऐलुमिनियम 900.0 24.4
कार्बन 506.5 6.1
ताँबा 386.4 24.5
सीसा 127.7 26.5
चाँदी 236.1 25.5
टंग्टन 134.4 24.9

सारणी 12.3 दर्शाती है कि व्यापक रूप से, सामान्य ताप पर प्राप्त प्रायोगिक मान प्रागुक्त मानों से मेल खाते हैं। (कार्बन एक अपवाद है)।

12.7 माध्य मुक्त पथ

गैसों में अणुओं की गति काफी अधिक, वायु में ध्वनि के वेग की कोटि के बराबर होती है। तो भी, रसोईघर में सिलिंडर से लीक हुई गैस को कमरे के दूसरे कोने तक विसरित होने में काफी अधिक समय लगता है। वायुमंडल में धुएँ का बादल घंटों तक बना रहता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि, गैस के अणु एक परिमित, पर अत्यंत छोटी आमाप के होते हैं। इसीलिए वे परस्पर टकराते रहने के लिए बाध्य हैं। परिणामस्वरूप, वे अबाध्य रूप से, सरल रेखा में चलते नहीं रह सकते, उनका पथ निरंतर परिवर्तित रहता है।

चित्र 12.7Δt समय में किसी अणु द्वारा प्रसर्पित आयतन जिसमें कोई दूसरा अणु इससे टकराएगा।

मान लीजिए, किसी गैस के अणु d व्यास के गोले हैं। यहाँ हम अपना ध्यान किसी ऐसे गतिमान अणु पर केंद्रित करेंगे जिसकी माध्य चाल v है। यह किसी भी ऐसे दूसरे अणु से संघट्ट करेगा जो इन दो अणुओं के केंद्रों के बीच की दूरी d के अंदर आ जाएगा। Δt समय में यह आयतन ( πd2vΔt ) तय करता है जिसमें आने वाला कोई अणु इससे टकराएगा (देखें चित्र 12.7)। यदि प्रति एकांक आयतन में अणुओं की संख्या n हो तो कोई अणु Δt समय में nπd2vΔt संघट्ट करेगा। इस प्रकार संघट्टों की दर nπd2v है। अथवा दो क्रमिक संघट्टों के बीच औसत अंतराल,

τ=1/(nπvd2)

किन्हीं दो क्रमिक संघट्टों के बीच की औसत दूरी, जिसे माध्य मुक्त पथ (l) कहते हैं, होगा :

(12.39)l=vτ=1/(nπd2)

इस व्युत्पत्ति में हमने यह कल्पना की है कि दूसरे सभी अणु विरामावस्था में हैं। परंतु वास्तव में सभी अणु गतिमान हैं और संघट्ट दर अणुओं के औसत आपेक्षिक वेग द्वारा निर्धारित की जाती है। अतः हमें समीकरण (12.38) में v को vr से प्रतिस्थापित करना होगा। अतः अधिक यथार्थ व्युत्पत्ति द्वारा

(12.40)l=1/(2nπd2)

आइये, अब हम वायु के अणुओं के लिए, STP पर औसत वेग v=(485 m/s) लेकर l एवं T का आकलन करते हैं।

Erroneous nesting of equation structures

जैसी अपेक्षा थी, समीकरण (12.40) द्वारा दिया गया माध्य मुक्त पथ का मान अणु की आमाप एवं संख्या घनत्व पर प्रतिलोमतः निर्भर करता है। किसी अत्यधिक निर्वातित नली में चाहे n कितना भी कम क्यों न हो, माध्य मुक्त पथ का मान नली की लंबाई के बराबर हो सकता है।

ध्यान दीजिए, माध्य मुक्त पथ, पूर्व परिकलनों द्वारा ज्ञात अंतरापरमाणुक दूरी 40\AA=4×109 m की तुलना में 100 गुनी है। माध्य मुक्त पथ का यह बड़ा मान ही गैसों के प्रारूपिक व्यवहार का मार्गदर्शक है। बिना किसी धारक पात्र के गैसों को सीमित नहीं किया जा सकता है।

अणुगति सिद्धांत का उपयोग करके, श्यानता, ऊष्मा-चालकता, एवं विसरण जैसे स्थूल मेय गुणों को आण्विक आमाप जैसे अतिसूक्ष्म प्राचलों से संबंधित किया जा सकता है। इसी तरह के संबंधों से ही सर्वप्रथम अणुओं की आमाप का आकलन किया गया था।

सारांश

1. दाब (P), आयतन (V) और परम ताप (T) में संबंध स्थापित करने वाली आदर्श गैस समीकरण है,

PV=μRT=kBNT

यहाँ μ गैस में मोलों की संख्या और N अणुओं की संख्या है। R तथा kB क्रमशः सार्वत्रिक गैस नियतांक एवं बोल्ट्ज़मान नियतांक हैं। R=8.314 J mol1 K1,kB=RNA=1.38×1023 J K1

वास्तविक गैसें, आदर्श गैस समीकरण का अधिकाधिक पालन केवल उच्च ताप तथा निम्न दाब पर ही करती हैं।

2. आदर्श गैस के अणुगति सिद्धांत के अनुसार

P=13nmv2

यहाँ n अणुओं का संख्या घनत्व, m अणु का द्रव्यमान एवं v2 इनकी माध्य वर्ग चाल है। इसको आदर्श गैस समीकरण के साथ मिलाने से ताप की एक अणुगतिक व्याख्या प्राप्त होती है,

12mv2=32kBT,vrms=(v2)1/2=3kBTm

इससे हमें यह ज्ञात होता है कि किसी गैस का ताप उसके किसी अणु की औसत गतिज ऊर्जा की माप है और यह गैस या अणु की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता। एक नियत ताप पर गैसों के मिश्रण में भारी अणु की औसत चाल अपेक्षाकृत कम होती है।

3. स्थानांतरीय गतिज ऊर्जा

E=32kBNT

इससे हमें यह सूत्र प्राप्त होता है-

PV=23E

4. ऊर्जा समविभाजन का नियम बताता है कि यदि एक निकाय परमताप T पर साम्यावस्था में है तो कुल ऊर्जा समान रूप से विभिन्न ऊर्जा रूपों में बँट कर अवशोषित होती है और हर रूप के साथ जुड़ी यह ऊर्जा kBT होती है। प्रत्येक स्थानांतरीय एवं घूर्णी स्वातंत्र्य कोटि के संगत अवशोषण का एक ऊर्जा रूप होता है और इससे जुड़ी ऊर्जा kBT होती है। प्रत्येक कंपन आवृत्ति के साथ ऊर्जा के दो रूप (गतिज एवं स्थितिज) जुड़ते हैं इसलिए इसके संगत ऊर्जा =2×kBT=kBT

5. ऊर्जा समविभाजन का नियम लागू करके हम गैसों की मोलर विशिष्ट ऊष्मा धारिता ज्ञात कर सकते हैं और इस प्रकार प्राप्त विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के मान कई गैसों के प्रयोगों द्वारा प्राप्त विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के मानों से मिलते हैं। यदि गति के कंपन रूपों को भी परिकलनों में सम्मिलित करें तो यह साम्यता और भी सटीक बैठेगी।

6. माध्य मुक्त पथ l अणु के दो क्रमिक संघट्टों के बीच उसके द्वारा चलित औसत दूरी है

l=12nπd2

जहाँ n संख्या घनत्व एवं d अणु का व्यास है।

विचारणीय विषय

1. किसी तरल का दाब केवल धारक की दीवारों पर ही आरोपित नहीं होता, बल्कि यह तरल में हर जगह विद्यमान रहता है। बर्तन में रखे गैस के आयतन में कोई परत साम्यावस्था में होती है क्योंकि इस परत के दोनों ओर समान दाब होता है।

2. गैस में अंतरापरमाणुक दूरी के संबंध में हमें बहुत बढ़ा-चढ़ा कर कोई धारणा नहीं बनानी चाहिए। सामान्य ताप और दाब पर यह ठोसों और द्रवों में अंतरापरमाणुक दूरी के लगभग दस गुने के बराबर है। बहुत भिन्न अगर कुछ है तो वह माध्य मुक्त पथ है जो किसी गैस में अंतरापरमाणुक दूरी का 100 गुना और अणु की आमाप का 1000 गुना होता है।

3. ऊर्जा समविभाजन के नियम को हम इस प्रकार कह सकते हैं- तापीय साम्य में प्रत्येक स्वातंत्र्य कोटि के साथ 1/2kBT ऊर्जा जुड़ी होती है। अणु की कुल ऊर्जा के व्यंजक में प्रत्येक द्विघाती पद एक स्वातंत्र्य कोटि गिना जाना चाहिए। अतः, प्रत्येक कंपन-विधा में दो स्वातंत्य्य कोटि (न कि एक) होते हैं (गतिज एवं स्थितिज रूपों के संगत) जिनकी ऊर्जा 2×1/2kBT=kBT होती है।

4. किसी कमरे में वायु के सब अणु नीचे नहीं गिर जाते (गुरुत्व के कारण) तथा फर्श पर आकर नहीं ठहर जाते क्योंकि वह बहुत वेग से गतिमान होते हैं और निरंतर संघट्ट करते रहते हैं। साम्यावस्था में कम ऊँचाइयों पर घनत्व थोड़ा अधिक होता है (जैसे वायुमण्डल में)। इसका प्रभाव कम है, क्योंकि सामान्य ऊँचाइयों के लिए स्थितिज ऊर्जा (mgh) का मान अणु की औसत गतिज ऊर्जा 1/2mv2 की तुलना में काफी कम है।

5. v2 सदैव (v)2 के बराबर नहीं होता। किसी राशि के वर्ग का माध्य आवश्यक नहीं है कि उस राशि के माध्य के वर्ग के बराबर हो। क्या आप इस कथन की पुष्टि के लिए उदाहरण बता सकते हैं?