अध्याय 12 अणुगति सिद्धांत
12.1 भूमिका
बॉयल ने 1661 में एक नियम की खोज की, जिसे उनके नाम से जाना जाता है। बॉयल, न्यूटन एवं अन्य कई वैज्ञानिकों ने गैसों के व्यवहार को यह मानकर समझाने की चेष्टा की कि गैसें अत्यंत सूक्ष्म परमाण्वीय कणों से बनी हैं। वास्तविक परमाणु सिद्धांत तो इसके 150 से भी अधिक वर्ष बाद ही स्थापित हो पाया। अणुगति सिद्धांत इस धारणा के आधार पर गैसों के व्यवहार की व्याख्या करता है कि गैसों में अत्यंत तीव्र गति से गतिमान परमाणु अथवा अणु होते हैं। यह संभव भी है, क्योंकि ठोसों तथा द्रवों के परमाणुओं के बीच अंतरापरमाणुक बल, जो कि लघु परासी बल है, एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जबकि गैसों में इस बल को उपेक्षणीय माना जा सकता है। अणुगति सिद्धांत, 19 वीं शताब्दी में, मैक्सवेल, बोल्ट्ज़मान और अन्य वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया था। यह असाधारण रूप से सफल सिद्धांत रहा है। यह दाब एवं ताप की एक आण्विक व्याख्या प्रस्तुत करता है तथा आवोगाद्रो की परिकल्पना और गैस नियमों के अनुरूप है। यह बहुत सी गैसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिता की ठीक-ठीक व्याख्या करता है। यह श्यानता, चालकता, विसरण जैसे गैसों के मापनीय गुणों को आण्विक प्राचलों से जोड़ता है और अणुओं की आमापों एवं द्रव्यमानों का आकलन संभव बनाता है। इस अध्याय में अणुगति सिद्धांत का आरंभिक ज्ञान दिया गया है।
12.2 द्रव्य की आणिवक प्रकृति
बीसवीं शताब्दी के महान वैज्ञानिकों में एक रिचर्ड फीनमेन, इस खोज को कि ‘द्रव्य परमाणुओं से बना है’ अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं। यदि हम विवेक से काम नहीं लेंगे, तो (नाभिकीय विध्वंस के कारण) मानवता का विनाश हो सकता है, या फिर वह (पर्यावरणीय विपदाओं के कारण) विलुप्त हो सकती है। यदि वैसा होता है और संपूर्ण वैज्ञानिक ज्ञान के नष्ट होने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो फीनमेन विश्व की अगली पीढ़ी के प्राणियों को परमाणु परिकल्पना संप्रेषित करना चाहेंगे। परमाणु परिकल्पना : सभी वस्तुएँ परमाणुओं से बनी हैं, जो अनवरत
प्राचीन भारत एवं यूनान में परमाण्वीय परिकल्पना
यद्यपि, आधुनिक विज्ञान से परमाण्वीय दृष्टिकोण का परिचय कराने का श्रेय जॉन डाल्टन को दिया जाता है, तथापि, प्राचीन भारत और यूनान के विद्वानों ने बहुत पहले ही परमाणुओं और अणुओं के अस्तित्व का अनुमान लगा लिया था। भारत में वैशेषिक दर्शन, जिसके प्रणेता कणाद थे (छठी शताब्दी ई.पू.), में परमाण्वीय प्रारूप का विस्तृत विकास हुआ । उन्होंने परमाणुओं को अविभाज्य, सूक्ष्म तथा द्रव्य का अविभाज्य अंश माना । यह भी तर्क दिया गया कि यदि द्रव्य को विभाजित करने के क्रम का कोई अन्त न हो तो किसी सरसों के दाने तथा मेरु पर्वत में कोई अंतर नहीं रहेगा । चार प्रकार के परमाणुओं (संस्कृत में सूक्ष्मतम कण को परमाणु कहते हैं) की कल्पना की गई जिनकी अपनी अभिलाक्षणिक संहति तथा अन्य विशेषताएँ थीं जो इस प्रकार हैं : भूमि (पृथ्वी), अप् (जल), तेज (अग्नि) तथा वायु (हवा)। उन्होंने आकाश (अंतरिक्ष) को सतत् तथा अक्रिय माना और यह बताया कि इसकी कोई परमाण्वीय संरचना नहीं है । परमाणु संयोग करके विभिन्न अणुओं का निर्माण करते हैं (जैसे दो परमाणु संयोग करके एक द्विपरमाणुक अणु ‘द्वैणुक’, तीन परमाणुओं के संयोग से ‘त्रसरेणु’ अथवा त्रिपरमाणुक अणु बनाते हैं), इनके गुण संघटक अणुओं की प्रकृति एवं अनुपात पर निर्भर करते हैं। अनुमानों द्वारा अथवा उन विधियों द्वारा जो हमें ज्ञात नहीं हैं, उन्होंने परमाणुओं के आकार का आकलन भी किया । इन आकलनों में विविधता है । ललित विस्तार - बुद्ध की एक प्रसिद्ध जीवनी जिसे मुख्य रूप से ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में लिखा गया, में परमाणु का आकार
पुरातन ग्रीस में, डेमोक्रिटस (चतुर्थ शताब्दी ई.पू.) को उनकी परमाण्वीय परिकल्पना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ग्रीक भाषा में ‘Atom’ शब्द का अर्थ है ‘अविभाज्य’। उनके अनुसार परमाणु एक दूसरे से भौतिक रूप में, आकृति में, आकार में तथा अन्य गुणों में भिन्न होते हैं तथा इसी के परिणामस्वरूप उनके संयोग द्वारा निर्मित पदार्थों के भिन्न-भिन्न गुण होते हैं। उनके विचारों के अनुसार जल के अणु चिकने तथा गोल होते हैं तथा वे एक दूसरे के साथ जुड़ने योग्य नहीं होते, यही कारण है कि जल आसानी से प्रवाहित होने लगता है। भूमि के परमाणु खुरदरे तथा काँटेदार होते हैं जिसके कारण वे एक दूसरे को जकड़े रहते हैं तथा कठोर पदार्थ निर्मित करते हैं । उनके विचार से अग्नि के परमाणु कँटीले होते हैं जिसके कारण वे पीड़ादायक जलन उत्पन्न करते हैं। ये धारणाएँ चित्ताकर्षक होते हुए भी, और आगे विकसित न हो सकीं। इसका कदाचित यह कारण हो सकता है कि ये विचार उन दार्शनिकों की अंतर्दर्शी कल्पनाएं एवं अनुमान मात्र थे, जिनका न तो परीक्षण किया गया था और न ही मात्रात्मक प्रयोगों (जो कि आधुनिक विज्ञान का प्रमाण-चिह्न हैं) द्वारा संशोधन ।
गतिमान अत्यंत सूक्ष्म कण हैं, बीच में अल्प दूरी होने पर ये एक दूसरे को आकर्षित करते हैं पर एक दूसरे में निष्पीडित किए जाने पर प्रतिकर्षित करने लगते हैं।
यह चिंतन कि द्रव्य सतत नहीं हो सकता, कई स्थानों और संस्कृतियों में विद्यमान था। भारत में कणाद और यूनान में डेमोक्रिटस ने यह सुझाव दिया था कि द्रव्य अविभाज्य अवयवों का बना हो सकता है। प्राय: वैज्ञानिक आण्विक सिद्धांत की खोज का श्रेय डाल्टन को देते हैं। तत्वों के संयोजन द्वारा यौगिक बनने की प्रक्रिया में पालन किए जाने वाले निश्चित अनुपात और बहुगुणक अनुपात के नियमों की व्याख्या करने के लिए डाल्टन ने यह सिद्धांत प्रस्तावित किया था। पहला नियम बताता है कि किसी यौगिक में अवयवों के द्रव्यमानों का अनुपात नियत रहता है। दूसरे नियम का कथन है कि जब दो तत्व मिलकर दो या अधिक यौगिक बनाते हैं तो एक तत्व के निश्चित द्रव्यमान से संयोजित होने वाले दूसरे तत्व के द्रव्यमानों में एक सरल पूर्णांकीय अनुपात होता है। इन नियमों की व्याख्या करने के लिए, लगभग 200 वर्ष पूर्व डाल्टन ने सुझाया कि किसी तत्व के सूक्ष्मतम अवयव परमाणु हैं। एक तत्व के सभी परमाणु सर्वसम होते हैं पर ये दूसरे तत्वों के परमाणुओं से भिन्न होते हैं। अल्प संख्या में तत्वों के परमाणु संयोग करके यौगिक का अणु बनाते हैं। 19 वीं शताब्दी के आरंभ में दिए गए गै-लुसैक के नियम के अनुसार: जब गैसें रासायनिक रूप से संयोजन करके कोई अन्य गैस बनाती हैं, तो उनके आयतन लघु पूर्णांकों के अनुपात में होते हैं। आवोगाद्रो का नियम (या परिकल्पना) बताता है कि समान ताप और दाब पर गैसों के समान आयतनों में अणुओं की संख्या समान होती है। आवोगाद्रो नियम को डाल्टन के सिद्धांत से जोड़ने पर गै-लुसैक के नियम की व्याख्या की जा सकती है। क्योंकि, तत्व प्रायः अणुओं के रूप में होते हैं, डाल्टन के परमाणु सिद्धांत को द्रव्य का आण्विक सिद्धांत भी कहा जा सकता है। इस सिद्धांत को अब वैज्ञानिकों द्वारा मान्यता है। तथापि, उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक भी ऐसे कई प्रसिद्ध
वैज्ञानिक थे जो परमाणु सिद्धांत में विश्वास नहीं करते थे। आधुनिक काल में, बहुत से प्रेक्षणों से, अब हम यह जानते हैं कि पदार्थ अणुओं (एक या अधिक परमाणुओं से बने) से मिलकर बना होता है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी एवं क्रमवीक्षण सुरंगक सूक्ष्मदर्शी की सहायता से अब हम उनको देख सकते हैं। परमाणु का आमाप लगभग एक ऐंस्ट्रॉम
परमाणु सिद्धांत हमारी खोजों का अंत नहीं है बल्कि यह तो इसका एक आरंभ है। अब हम जानते हैं कि परमाणु अविभाज्य या मूल कण नहीं हैं। उनमें एक नाभिक और इलेक्ट्रॉन होते हैं। नाभिक स्वयं प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों से बने होते हैं। यही नहीं प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन क्वार्कों से मिलकर बने होते हैं। हो सकता है कि क्वार्क भी इस कहानी का अंत न हों। यह भी हो सकता है कि स्ट्रिंग (तंतु) जैसी कोई प्राथमिक सत्ता हो। प्रकृति हमारे लिए सदैव ही विलक्षण भरी है, पर, सत्य की खोज आनंददायक होती है और हर आविष्कार में अपना सौंदर्य होता है। इस अध्याय में हम अपना अध्ययन गैसों के (और थोड़ा बहुत ठोसों के) व्यवहार तक ही सीमित रखेंगे। इसके लिए हम उन्हें अनवरत गति करते गतिमान कणों का समूह मानेंगे।
12.3 गैसों का व्यवहार
ठोसों एवं द्रवों की तुलना में गैसों के गुणों को समझना आसान है। यह मुख्यतः इस कारण होता है, क्योंकि, गैस में अणु एक दूसरे से दूर-दूर होते हैं और दो अणुओं के संघट्ट की स्थिति को छोड़कर उनके बीच पारस्परिक अन्योन्य क्रियाएँ उपेक्षणीय होती हैं जैसे निम्न दाब व उनके द्रवित (या घनीभूत) होने के तापों की अपेक्षा अत्यधिक उच्च ताप पर अपने ताप, दाब और आयतन में लगभग निम्नलिखित संबंध दर्शाती हैं (देखिए अध्याय 10)
यह संबंध गैस के दिए गए नमूने के लिए है। यहाँ
यदि
आदर्श गैस समीकरण को हम इस प्रकार लिख सकते हैं,
जहाँ
जहाँ,
चित्र 12.1 निम्न दाब और उच्च तापों पर वास्तविक गैसों का व्यवहार आदर्श गैसों के सदृश होने लगता है।
जहाँ
समीकरण (12.3) का दूसरा उपयोगी रूप है,
जहाँ
कोई गैस, जो समीकरण (12.3) का, सभी तापों और दाबों पर पूर्णतः पालन करती है आदर्श गैस कहलाती है। अत: आदर्श गैस किसी गैस का सरल सैद्धांतिक निदर्श है। कोई भी वास्तविक गैस सही अर्थों में आदर्श गैस नहीं होती। चित्र 12.1 में तीन भिन्न तापों पर किसी वास्तविक गैस का आदर्श गैस से विचलन दर्शाया गया है। ध्यान दीजिए, निम्न दाबों और उच्च तापों पर सभी वक्र आदर्श गैस व्यवहार के सदृश होने लगते हैं।
निम्न दाबों और उच्च तापों पर अणु दूर-दूर होते हैं और उनके बीच की आण्विक अन्योन्य क्रियाएँ उपेक्षणीय होती हैं। अन्योन्य क्रियाओं की अनुपस्थिति में गैस एक आदर्श गैस की तरह व्यवहार करती है।
समीकरण 12.3 में यदि हम
अर्थात्, नियत ताप पर, गैस के किसी दिए गए द्रव्यमान का दाब उसके आयतन के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यही प्रसिद्ध बॉयल का नियम है। चित्र 12.2 में प्रायोगिक
चित्र 12.2 भाप के लिए, तीन भिन्न तापों पर प्रायोगिक
वक्रों में संगति स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। अब, यदि आप
चित्र 12.3 तीन भिन्न दाबों के लिए
अंत में, हम एक बर्तन में रखे गए, परस्पर अन्योन्य क्रियाएँ न करने वाली आदर्श गैसों के मिश्रण पर विचार करते हैं, जिसमें
स्पष्टतः,
अब हम कुछ ऐसे उदाहरणों पर विचार करेंगे जिनसे हमें अणुओं द्वारा घेरे गए आयतन और एक अणु के आयतन के विषय में जानकारी प्राप्त होगी।
12.4 आदर्श गैसों का अणुगति सिद्धांत
गैसों का अणुगति सिद्धांत इस मान्यता पर आधारित है कि द्रव्य अणुओं का बना है। गैस के किसी दिए गए द्रव्यमान में अति विशाल (प्रारूपिक मान आवोगाद्रो संख्या की कोटि का) संख्या में अणु होते हैं जो लगातार यादृच्छिक गति करते हैं। सामान्य ताप और दाब पर अणुओं के बीच की दूरी अणु के आकार
हम इस मूल धारणा से प्रारंभ करते हैं कि गैस के अणु सतत यादृच्छिक गति में हैं और वे एक दूसरे से और धारक पात्र की दीवारों से संघट्ट करते रहते हैं। अणुओं के संघट्ट चाहे पारस्परिक हों, या धारक पात्र की दीवार से ये सभी संघट्ट प्रत्यास्थ होते हैं। इसका अर्थ है कि इनकी कुल गतिज ऊर्जा संरक्षित रहती है। कुल संवेग भी, जैसा प्राय: होता है, संरक्षित रहता है।
12.4.1 किसी आदर्श गैस का दाब
माना कि
दीवार पर आरोपित बल (एवं दाब) का परिकलन करने के लिए, हमें प्रति एकांक समय में दीवार पर प्रदान किए जाने वाले संवेग का परिकलन करना होगा। एक अल्प काल-अंतराल
चित्र 12.4 गैस के एक अणु का धारक की दीवार से प्रत्यास्थ संघट्ट।
सभी अणु, जो दीवार के पास
दीवार पर लगा बल संवेग हस्तांतरण की दर
वास्तव में, गैस के सभी अणुओं का वेग समान नहीं होता, वेग अणुओं पर वितरित रहते हैं। अतः, उपरोक्त समीकरण अणुओं के उस समूह के कारण दाब को व्यक्त करती है जिनकी
जहाँ
जहाँ
इस व्युत्पत्ति पर कुछ टिप्पणियाँ : (i) प्रथम, यद्यपि हमने घनाकार बर्तन का चयन किया है, परंतु वास्तव में, बर्तन की आकृति से कुछ अंतर नहीं पड़ता है। बर्तन किसी भी यादृच्छिक आकृति का हो, हम एक अत्यंत सूक्ष्म समतल लेकर उस पर उपरोक्त व्युत्पत्ति के चरण लागू कर सकते हैं। ध्यान दीजिए,
12.4.2 ताप की अणु गतिक व्यख्या
समीकरण (12.14) को इस प्रकार भी लिखा जा सकता है,
यहाँ
समीकरण
अब हम ताप की अणुगतिक व्याख्या के लिए तैयार हैं। समीकरण (12.17) का आदर्श गैस समीकरण (12.3) से संयोजित करने पर
या
अर्थात्, किसी अणु की औसत गतिज ऊर्जा, गैस के परम ताप के अनुक्रमानुपाती होती है : यह आदर्श गैस की प्रकृति, दाब या आयतन पर निर्भर नहीं करती। यह एक मौलिक निष्कर्ष है, जो किसी गैस के ताप, जो गैस का एक स्थूल, मेय, प्राचल (जिसे ऊष्मागतिकी चर कहा जाता है) है, को किसी आण्विक
संकेत
राशि, जिसे अणु की औसत गतिज ऊर्जा कहते हैं से संबद्ध करता है। बोल्ट्ज़मान नियतांक इन दो प्रभाव क्षेत्रों को जोड़ता है। ध्यान से देखें तो समीकरण (12.18) यह स्पष्ट करती है कि आदर्श गैस की आंतरिक ऊर्जा केवल उसके ताप पर निर्भर करती है, दाब या आयतन पर नहीं। ताप की इस व्याख्या से स्पष्ट है कि आदर्श गैसों का अणुगति सिद्धांत आदर्श गैस समीकरण और इस पर आधारित विभिन्न गैस नियमों के पूर्णतः संगत है।
अक्रिय आदर्श गैसों के मिश्रण के लिए कुल दाब मिश्रण की प्रत्येक गैस के दाब का योगदान होता है। समीकरण (12.14) को नए रूप में इस प्रकार लिख सकते हैं,
साम्यावस्था में विभिन्न गैसों के अणुओं की औसत गतिज ऊर्जा समान हो जाएगी। अर्थात्
अतः,
यही डाल्टन का आंशिक दाबों का नियम है।
समीकरण (12.19) से हम किसी गैस में अणुओं की प्रारूपिक चाल का अनुमान लगा सकते हैं। नाइट्रोजन के एक अणु की
यहाँ,
(
इस चाल की कोटि वायु में ध्वनि के वेग के समान है। समीकरण (12.19) से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि समान ताप पर हलके अणुओं की
जब गैसें विसरित होती हैं, तो उनके विसरण की दर उनके अणुओं के द्रव्यमान के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है (देखिए अभ्यास 12.12)। क्या उपरोक्त उत्तर के आधार पर आप इस तथ्य की व्याख्या का अनुमान लगा सकते हैं?
चित्र 12.5 एक सरंध्र दीवार से गुज़रते हुए अणु।
12.5 ऊर्जा के समविभाजन का नियम
किसी एकल अणु की गतिज ऊर्जा होती है :
क्योंकि यहाँ कोई वरीय दिशा नहीं है, अतः समीकरण (12.23) से इंगित होता है कि
दिक्स्थान में गति के लिए स्वतंत्र किसी अणु की स्थिति दर्शाने के लिए हमें तीन निर्देशांकों की आवश्यकता होती है। यदि इसकी गति किसी एक समतल में बाध्य कर दी जाए, तो दो निर्देशांकों की, और यदि इसे किसी सरल रेखा के अनुदिश गति के लिए बाध्य कर दिया जाए, तो केवल एक निर्देशांक की आवश्यकता होगी। इसे एक दूसरे ढंग से भी व्यक्त किया जा सकता है। हम कहते हैं कि सरल रेखीय गति के लिए इसकी स्वातंत्र्य कोटि एक है, समतल गति की स्वातंत्र्य कोटि दो तथा दिक्स्थान में गति के लिए स्वातंत्र्य कोटि तीन है। किसी संपूर्ण पिण्ड की एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक गति को स्थानांतरीय गति कहते हैं। अतः, दिक्स्थान में गति के लिए स्वतंत्र अणु की तीन स्वातंत्र्य कोटि होती हैं। प्रत्येक स्थानांतरीय स्वतंत्रता की एक स्वातंत्र्य कोटि होती है, जिसमें गति के किसी चर का वर्ग सम्मिलित होता है, उदारहणार्थ यहाँ
आर्गन जैसी एकपरमाणुक गैस के अणुओं में केवल स्थानांतरीय स्वातंत्र्य कोटि होती है। लेकिन
चित्र 12.6 द्विपरमाणुक अणु के दो स्वतंत्र घूर्णन अक्ष।
यहाँ
जहाँ
पुनः ध्यान दीजिए, समीकरण (12.26) में दिए गए कंपन-ऊर्जा पद में, गति के कंपन चरों
यह भी देखिए कि प्रत्येक स्थानांतरीय एवं घूर्णी स्वातंत्र्य कोटि ने तो एक ही “वर्गित पद” का योगदान किया है, पर समीकरण (12.26) में दिए गए कंपन स्वातंत्य कोटि के सापेक्ष पद में गतिज एवं स्थितिज ऊर्जा व्यक्त करने वाले दो वर्गित पद हैं।
ऊर्जा के व्यंजक में प्रत्येक द्विघाती पद अणु द्वारा ऊर्जा अवशोषित करने का एक ढंग बताता है। हम देख चुके हैं कि परम ताप
परमाणुओं को मिलाने वाली रेखा के परितः घूर्णन का जड़त्व आघूर्ण बहुत कम होता है और क्वांटम यांत्रिकीय कारणों से प्रभावी नहीं हो पाता। अनुभाग 12.6 का अंतिम भाग देखिए।
जबकि प्रत्येक कंपन आवृत्ति
ऊर्जा के समविभाजन नियम की उपपत्ति इस पुस्तक की विषय वस्तु से बाहर है। यहाँ हम सैद्धांतिक रूप से गैसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिता ज्ञात करने के लिए इस नियम का उपयोग करेंगे। बाद में ठोसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिता के लिए भी इसके उपयोग का संक्षिप्त विवरण देंगे।
12.6 विशिष्ट ऊष्मा धारिता
12.6.1 एकपरमाणुक गैसों के लिए
एकपरमाणुक गैस के अणु में केवल तीन स्थानांतरीय स्वातंत्र्य कोटि होती हैं। अतः इनके एक अणु की
नियत आयतन पर मोलर विशिष्ट ऊष्मा धारिता
आदर्श गैस के लिए
जहाँ,
अतः,
इन दो विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं का अनुपात
12.6.2 द्विपरमाणुक गैसों के लिए
जैसा पहले स्पष्ट किया जा चुका है कि द्विपरमाणुक अणु की आकृति डंबलाकार होती है और यदि इस आकृति को दृढ़ घूर्णी मानें, तो इसकी 5 स्वातंत्र्य कोटि हैं : 3 स्थानांतरीय एवं 2 घूर्णी। ऊर्जा समविभाजन के नियमानुसार इस प्रकार की गैस के एक मोल की,
अतः मोलर विशिष्ट ऊष्मा धारिताएँ
यदि द्विपरमाणुक अणु दृढ़ नहीं है, वरन् इसमें एक अतिरिक्त कंपन रूप भी सम्मिलित है, तो
12.6.3 बहुपरमाणुक गैसों के लिए
व्यापक रूप में किसी बहुपरमाणुक अणु में 3 स्थानांतरीय, 3 घूर्णी स्वातंत्र्य कोटि एवं कुछ निश्चित संख्या
अर्थात्
ध्यान दीजिए,
सारणी (12.1) में, गैसों में, कंपन रूपों की उपेक्षा करते हुए, उनकी विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के विषय में सैद्धांतिक पूर्वानुमानों को सूचीबद्ध किया गया है। ये मान सारणी (12.2) में दिए गए कई गैसों के लिए विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के प्रायोगिक मानों से काफी मेल खाते हैं। यह सत्य है, कि ऐसी कई गैसे हैं (जो सारणी में नहीं दर्शाई गई हैं), जैसे
सारणी 12.1 गैसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के पूर्वानुमानित मान (कंपन रूपों की उपेक्षा करते हुए)
गैस की प्रकृति |
||||
---|---|---|---|---|
एकपरमाणुक द्विपरमाणुक |
12.5 | 20.8 | 8.31 | 1.67 |
त्रिपरमाणुक | 24.93 | 29.1 | 8.31 | 1.40 |
सारणी 12.2 कुछ गैसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के मापित मान
गैस की प्रकृति |
गैस | ||||
---|---|---|---|---|---|
एकपरमाणुक | 12.5 | 20.8 | 8.30 | 1.66 | |
एकपरमाणुक | 12.7 | 20.8 | 8.12 | 1.64 | |
एकपरमाणुक | 12.5 | 20.8 | 8.30 | 1.67 | |
द्विपरमाणुक | 20.4 | 28.8 | 8.45 | 1.41 | |
द्विपरमाणुक | 21.0 | 29.3 | 8.32 | 1.40 | |
द्विपरमाणुक | 20.8 | 29.1 | 8.32 | 1.40 | |
त्रिपरमाणुक | 27.0 | 35.4 | 8.35 | 1.31 | |
बहुपरमाणुक | 27.1 | 35.4 | 8.36 | 1.31 |
मानों में बहुत अंतर पाया गया है। साधारणतः इन गैसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के मान सारणी (12.1) में दिए गए सैद्धांतिक मानों से अधिक पाए गए हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि हम परिकलनों में कंपन रूपों के योगदान को भी सम्मिलित करें, तो प्रायोगिक एवं सैद्धांतिक मानों में अधिक संगति दृष्टिगोचर होगी। अतः, सामान्य ताप पर ऊर्जा समविभाजन का नियम, प्रायोगिक रूप से अच्छी तरह पुष्ट होता है।
12.6.4 ठोसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिता
ठोसों की विशिष्ट ऊष्माधारिता ज्ञात करने के लिए भी हम ऊर्जा समविभाजन का नियम लागू कर सकते हैं। किसी ठोस के विषय में विचार कीजिए, जो
अब, नियत दाब पर
सारणी 12.3 कमरे के ताप एवं वायुमंडलीय दाब पर कुछ ठोसों की विशिष्ट ऊष्ष्मा धारिताओं के मान
पदार्थ का नाम |
विशिष्ट ऊष्मा धारिता |
मोलर विशिष्ट ऊष्मा धारिता |
---|---|---|
ऐलुमिनियम | 900.0 | 24.4 |
कार्बन | 506.5 | 6.1 |
ताँबा | 386.4 | 24.5 |
सीसा | 127.7 | 26.5 |
चाँदी | 236.1 | 25.5 |
टंग्टन | 134.4 | 24.9 |
सारणी 12.3 दर्शाती है कि व्यापक रूप से, सामान्य ताप पर प्राप्त प्रायोगिक मान प्रागुक्त मानों से मेल खाते हैं। (कार्बन एक अपवाद है)।
12.7 माध्य मुक्त पथ
गैसों में अणुओं की गति काफी अधिक, वायु में ध्वनि के वेग की कोटि के बराबर होती है। तो भी, रसोईघर में सिलिंडर से लीक हुई गैस को कमरे के दूसरे कोने तक विसरित होने में काफी अधिक समय लगता है। वायुमंडल में धुएँ का बादल घंटों तक बना रहता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि, गैस के अणु एक परिमित, पर अत्यंत छोटी आमाप के होते हैं। इसीलिए वे परस्पर टकराते रहने के लिए बाध्य हैं। परिणामस्वरूप, वे अबाध्य रूप से, सरल रेखा में चलते नहीं रह सकते, उनका पथ निरंतर परिवर्तित रहता है।
चित्र
मान लीजिए, किसी गैस के अणु
किन्हीं दो क्रमिक संघट्टों के बीच की औसत दूरी, जिसे माध्य मुक्त पथ
इस व्युत्पत्ति में हमने यह कल्पना की है कि दूसरे सभी अणु विरामावस्था में हैं। परंतु वास्तव में सभी अणु गतिमान हैं और संघट्ट दर अणुओं के औसत आपेक्षिक वेग द्वारा निर्धारित की जाती है। अतः हमें समीकरण (12.38) में
आइये, अब हम वायु के अणुओं के लिए, STP पर औसत वेग
जैसी अपेक्षा थी, समीकरण (12.40) द्वारा दिया गया माध्य मुक्त पथ का मान अणु की आमाप एवं संख्या घनत्व पर प्रतिलोमतः निर्भर करता है। किसी अत्यधिक निर्वातित नली में चाहे
ध्यान दीजिए, माध्य मुक्त पथ, पूर्व परिकलनों द्वारा ज्ञात अंतरापरमाणुक दूरी
अणुगति सिद्धांत का उपयोग करके, श्यानता, ऊष्मा-चालकता, एवं विसरण जैसे स्थूल मेय गुणों को आण्विक आमाप जैसे अतिसूक्ष्म प्राचलों से संबंधित किया जा सकता है। इसी तरह के संबंधों से ही सर्वप्रथम अणुओं की आमाप का आकलन किया गया था।
सारांश
1. दाब
यहाँ
वास्तविक गैसें, आदर्श गैस समीकरण का अधिकाधिक पालन केवल उच्च ताप तथा निम्न दाब पर ही करती हैं।
2. आदर्श गैस के अणुगति सिद्धांत के अनुसार
यहाँ
इससे हमें यह ज्ञात होता है कि किसी गैस का ताप उसके किसी अणु की औसत गतिज ऊर्जा की माप है और यह गैस या अणु की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता। एक नियत ताप पर गैसों के मिश्रण में भारी अणु की औसत चाल अपेक्षाकृत कम होती है।
3. स्थानांतरीय गतिज ऊर्जा
इससे हमें यह सूत्र प्राप्त होता है-
4. ऊर्जा समविभाजन का नियम बताता है कि यदि एक निकाय परमताप
5. ऊर्जा समविभाजन का नियम लागू करके हम गैसों की मोलर विशिष्ट ऊष्मा धारिता ज्ञात कर सकते हैं और इस प्रकार प्राप्त विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के मान कई गैसों के प्रयोगों द्वारा प्राप्त विशिष्ट ऊष्मा धारिताओं के मानों से मिलते हैं। यदि गति के कंपन रूपों को भी परिकलनों में सम्मिलित करें तो यह साम्यता और भी सटीक बैठेगी।
6. माध्य मुक्त पथ
जहाँ
विचारणीय विषय
1. किसी तरल का दाब केवल धारक की दीवारों पर ही आरोपित नहीं होता, बल्कि यह तरल में हर जगह विद्यमान रहता है। बर्तन में रखे गैस के आयतन में कोई परत साम्यावस्था में होती है क्योंकि इस परत के दोनों ओर समान दाब होता है।
2. गैस में अंतरापरमाणुक दूरी के संबंध में हमें बहुत बढ़ा-चढ़ा कर कोई धारणा नहीं बनानी चाहिए। सामान्य ताप और दाब पर यह ठोसों और द्रवों में अंतरापरमाणुक दूरी के लगभग दस गुने के बराबर है। बहुत भिन्न अगर कुछ है तो वह माध्य मुक्त पथ है जो किसी गैस में अंतरापरमाणुक दूरी का 100 गुना और अणु की आमाप का 1000 गुना होता है।
3. ऊर्जा समविभाजन के नियम को हम इस प्रकार कह सकते हैं- तापीय साम्य में प्रत्येक स्वातंत्र्य कोटि के साथ
4. किसी कमरे में वायु के सब अणु नीचे नहीं गिर जाते (गुरुत्व के कारण) तथा फर्श पर आकर नहीं ठहर जाते क्योंकि वह बहुत वेग से गतिमान होते हैं और निरंतर संघट्ट करते रहते हैं। साम्यावस्था में कम ऊँचाइयों पर घनत्व थोड़ा अधिक होता है (जैसे वायुमण्डल में)। इसका प्रभाव कम है, क्योंकि सामान्य ऊँचाइयों के लिए स्थितिज ऊर्जा
5.