अध्याय 10 द्रव्य के तापीय गुण
10.1 भूमिका
हम सभी में ताप तथा ऊष्मा की सहज बोध धारणा होती है। ताप किसी वस्तु की तप्तता (ऊष्णता) की माप होती है। उबलते जल से भरी केतली बर्फ से भरे बॉक्स से अधिक तप्त होती है। भौतिकी में हमें ऊष्मा, ताप, आदि धारणाओं को अधिक सावधानीपूर्वक परिभाषित करने की आवश्यकता होती है। इस अध्याय में आप यह जानेंगे कि ऊष्मा क्या है और इसे कैसे मापते हैं, तथा एक वस्तु से दूसरी वस्तु में ऊष्मा प्रवाह की विभिन्न प्रक्रियाओं का अध्ययन करेंगे। अध्ययन करते आप यह भी ज्ञात करेंगे कि किसी घोड़ागाड़ी के लकड़ी के पहिए की नेमि पर लोहे की रिंग चढ़ाने से पहले लोहार इसे तप्त क्यों करते हैं, तथा सूर्य छिपने के पश्चात् समुद्र तटों पर पवन प्रायः अपनी दिशा उत्क्रमित क्यों कर लेती हैं? आप यह भी जानेंगे कि क्या होता है जब जल उबलता अथवा जमता है तथा इन प्रक्रियाओं की अवधि में इसके ताप में परिवर्तन नहीं होता, यद्यपि काफी मात्रा में ऊष्मा इनके भीतर/इनसे बाहर प्रवाहित होती है।
10.2 ताप तथा ऊष्मा
हम द्रव्य के तापीय गुणों के अध्ययन का आरंभ ताप तथा ऊष्मा की परिभाषा से कर सकते हैं। ताप तप्तता अथवा शीतलता की आपेक्षिक माप अथवा सूचन होता है। किसी तप्त बर्तन के ताप को उच्च ताप तथा बर्फ के घन के ताप को निम्न ताप कहते हैं। एक पिण्ड जिसका ताप दूसरे पिण्ड की अपेक्षा अधिक है, अपेक्षाकृत अधिक तप्त कहा जाता है। ध्यान दीजिए, कि लंबे और ठिगने की भांति तप्त तथा शीत भी आपेक्षिक पद हैं। हम स्पर्श द्वारा ताप का अनुभव कर सकते हैं। परन्तु यह ताप बोध कुछ-कुछ अविश्वसनीय होता है तथा इसका परिसर इतना सीमित है कि किसी वैज्ञानिक कार्यों के लिए इसका कोई उपयोग नहीं किया जा सकता।
अपने अनुभवों से हम यह जानते हैं कि किसी तप्त गर्मी के दिन एक मेज पर रखा बर्फ के शीतल जल से भरा गिलास अंततोगत्वा गर्म हो जाता है जबकि तप्त चाय से भरा प्याला उसी मेज पर ठंडा हो जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि जब भी किसी वस्तु (निकाय), इस प्रकरण में बर्फ का शीतल जल अथवा
गर्म चाय, तथा उसके परिवेशी माध्यम के तापों में अंतर होगा तो वस्तु तथा उसके परिवेशी माध्यम के बीच उस समय तक ऊष्मा स्थानांतरण होता है जब तक वस्तु तथा इसका परिवेशी माध्यम समान ताप पर नहीं आ जाते। हम यह भी जानते हैं कि गिलास में भरे शीतल जल के प्रकरण में ऊष्मा पर्यावरण से गिलास में प्रवाहित होती है, जबकि गर्म चाय के प्रकरण में ऊष्मा गर्म चाय के प्याले से पर्यावरण में प्रवाहित होती है। अत: हम यह कह सकते हैं कि ऊष्मा ऊर्जा का एक रूप है जिसका स्थानांतरण दो (अथवा अधिक) निकायों के बीच अथवा किसी निकाय तथा उसके परिवेश के बीच ताप में अंतर के कारण होता है। स्थानांतरित ऊष्मा ऊर्जा के SI मात्रक को जूल (J) में व्यक्त किया जाता है जबकि ताप का SI मात्रक केल्विन
10.3 ताप मापन
तापमापी (थर्मामीटर) का उपयोग करके ताप की एक माप प्राप्त होती है। पदार्थों के बहुत से भौतिक गुणों में ताप के साथ पर्याप्त परिवर्तन होते हैं। ऐसे कुछ गुणों को तापमापी की रचना का आधार मानकर उपयोग किया जाता है। सामान्य उपयोग में आने वाला गुण “ताप के साथ किसी द्रव के आयतन में परिवर्तन” होता है। उदाहरण के लिए, सामान्य काँच-में-द्रव प्रकार के तापमापियों में पारा, ऐल्कोहॉल आदि का उपयोग किया जाता है, जिनका एक बड़े परिसर में आयतन तापीय प्रसार रेखीय होता है। जिससे आप परिचित हैं। पारा तथा एल्कोहॉल ऐसे द्रव हैं जिनका उपयोग अधिकांश काँच-में-द्रव तापमापियों में किया जाता है।
तापमापियों का अंशांकन इस प्रकार किया जाता है कि किसी दिए गए ताप को कोई संख्यात्मक मान किसी उपयुक्त मापक्रम पर निर्धारित किया जा सके। किसी भी मानक मापक्रम के लिए दो नियत संदर्भ बिंदुओं की आवश्यकता होती है। चूंकि ताप के साथ सभी पदार्थों की विमाएँ परिवर्तित होती हैं अतः प्रसार के लिए कोई निरपेक्ष संदर्भ उपलब्ध नहीं है। तथापि आवश्यक नियत बिंदु को सदैव समान ताप पर होने वाली भौतिक परिघटनाओं से संबंधित किया जा सकता है। जल का हिमांक तथा भाप-बिंदु दो सुविधाजनक नियत बिंदु हैं, जिन्हें हिमांक तथा क्वथनांक कहते हैं। ये दो नियत बिंदु वह ताप हैं जिन पर शुद्ध जल मानक दाब के अधीन जमता तथा उबलता है। फारेनहाइट ताप मापक्रम तथा सेल्सियस ताप मापक्रम, दो सुपरिचित ताप मापक्रम हैं। फारेनहाइट मापक्रम पर हिमांक तथा
भाप-बिंदु के मान क्रमशः
चित्र 10.1 फारेनहाइट ताप
दो मापक्रमों में रूपांतरण के लिए आवश्यक संबंध को फारेनहाइट ताप
10.4 आदर्श-गैस समीकरण तथा परम ताप
काँच-में-द्रव तापमापी, प्रसार गुणों में अंतर के कारण नियत बिंदुओं से अन्य तापों के भिन्न पाठ्यांक दर्शाते हैं। परन्तु ऐसे तापमापी जिनमें गैस का उपयोग होता है, चाहे उनमें किसी भी गैस का उपयोग किया जाए, सदैव एक ही पाठ्यांक प्रदर्शित करते हैं। प्रयोग यह दर्शाते हैं कि सभी गैसें कम घनत्व होने पर समान प्रसार-आचरण दर्शाती हैं। वे चर राशियाँ, जो किसी दी गई मात्रा (द्रव्यमान) की गैस के आचरण की व्याख्या करते हैं, दाब, आयतन तथा ताप
अथवा
यहाँ,
समीकरण 10.2 से हमने जाना है कि दाब तथा आयतन (का गुणनफल) ताप के अनुक्रमानुपाती है :
चित्र 10.2 नियत आयतन पर रखी किसी कम घनत्व की गैस के दाब तथा आयतन के बीच ग्राफ।
(0 K)
चित्र 10.3 दाब तथा ताप के बीच ग्राफ का आलेखन तथा कम घनत्व की गैसों के लिए रेखाओं का बहिर्वेशन समान परम शुन्य ताप को संकेत करता है। चित्र 10.2 में दर्शाए अनुसार, इस प्रकरण में, दाब तथा ताप के बीच ग्राफ एक सरल रेखा होता है।
तथापि, निम्न ताप पर वास्तविक गैसों पर ली गई मापों तथा आदर्श गैस नियम द्वारा प्रागुक्त मानों में अंतर पाया गया है। परन्तु एक विस्तृत ताप परिसर में यह संबंध रैखिक है तथा ऐसा प्रतीत होता है कि यदि गैस गैसीय अवस्था में ही बनी रहे तो ताप घटाने पर दाब शून्य हो जाएगा। चित्र 10.3 में दर्शाए अनुसार, सरल रेखा को बहिर्वेशित करके किसी आदर्श गैस के लिए परम निम्निष्ठ ताप प्राप्त किया जा सकता है। इस ताप का मान
चित्र 10.4 केल्विन, सेल्सियस तथा फारेनहाइट ताप मापक्रमों में तुलना।
केल्विन तथा सेल्सियस मापक्रमों के लिए मात्रक की आमाप अंश समान होते हैं, अतः इन मापक्रमों के तापों में संबंध इस प्रकार है :
10.5 तापीय प्रसार
आपने यह देखा होगा कि कभी-कभी धातुओं के ढक्कन वाली बंद बोतलों के चूड़ीदार ढक्कनों को इतना कसकर बंद कर दिया जाता है कि ढक्कनों को खोलने के लिए उन्हें कुछ देर तक गर्म जल में डालना होता है। ऐसा करने पर ढक्कन में प्रसार होकर वह ढीला हो जाता है और उसकी चूड़याँ आसानी से खुल जाती हैं। द्रवों के प्रकरण में आपने यह देखा होगा कि जब किसी तापमापी
को हलके उष्ण जल में रखते हैं, तो उस तापमापी में पारा कुछ ऊपर चढ़ जाता है। यदि हम तापमापी को उष्ण जल से बाहर निकाल लेते हैं तो तापमापी में पारे का तल नीचे गिर जाता है। इसी प्रकार, गैसों के प्रकरण में, ठंडे कमरे में आंशिक रूप से फूला कोई गुब्बारा, उष्ण जल में रखे जाने पर अपनी पूरी आमाप तक फूल सकता है। इसके विपरीत, जब किसी पूर्णतः फूले किसी गुब्बारे को शीतल जल में डुबाते हैं तो वह भीतर की वायु के सिकुड़ने के कारण सिकुड़ना आरंभ कर देता है।
यह हमारा सामान्य अनुभव है कि अधिकांश पदार्थ तप्त होने पर प्रसारित होते हैं तथा शीतलन पर सिकुड़ते हैं। किसी वस्तु के ताप में परिवर्तन होने पर उसकी विमाओं में अंतर हो जाता है। किसी वस्तु के ताप में वृद्धि होने पर उसकी विमाओं में वृद्धि होने को तापीय प्रसार कहते हैं। लंबाई में प्रसार को रैखिक प्रसार कहते हैं। क्षेत्रफल में प्रसार को क्षेत्र प्रसार कहते हैं। आयतन में प्रसार को आयतन प्रसार कहते हैं (चित्र 10.5)।
(a) रैखिक प्रसार
(b) क्षेत्र प्रसार
(c) आयतन प्रसार चित्र 10.5 तापीय प्रसार।
यदि पदार्थ किसी लंबी छड़ के रूप में है, तो ताप में अल्प परिवर्तन,
जहाँ
पदार्थ | |
---|---|
एलुमिनियम | 2.5 |
पीतल | 1.8 |
लोहा | 1.2 |
ताँबा | 1.7 |
चाँदी | 1.9 |
सोना | 1.4 |
काँच ( पायरेक्स) | 0.32 |
लैड | 0.29 |
इसी प्रकार, हम किसी ताप परिवर्तन,
यहाँ भी
चित्र 10.6 ताप के फलन के रूप में ताँबे का आयतन प्रसार गुणांक।
सारणी 10.2 में
विशिष्ट मिश्र धातु) जैसे पदार्थों के
सारणी 10.2 कुछ पदार्थों के आयतन प्रसार गुणांक के मान
पदार्थ | |
---|---|
एलुमिनियम | |
पीतल | |
लोहा | |
पैराफीन | |
काँच (सामान्य) | |
काँच ( पायरेक्स) | |
कठोर रबड़ | |
इनवार | |
पारा | |
जल | |
एल्कोहॉल (इथैनॉल) |
जल असंगत व्यवहार प्रदर्शित करता है; यह
इसका अर्थ यह हुआ कि जल का घनत्व
सामान्य ताप पर ठोसों तथा द्रवों की अपेक्षा गैसों में अपेक्षाकृत अधिक प्रसार होता है। द्रवों के लिए, आयतन प्रसार गुणांक अपेक्षाकृत ताप पर निर्भर नहीं करता। परन्तु गैसों के लिए यह ताप पर निर्भर करता है। किसी आदर्श गैस के लिए किसी नियत दाब पर आयतन प्रसार गुणांक का मान आदर्श गैस समीकरण से प्राप्त किया जा सकता है :
नियत ताप पर
अर्थात्
(10.6)
(b)
(a)
चित्र 10.7 जल का तापीय प्रसार।
आयतन प्रसार गुणांक
इसीलिए,
समीकरण 10.7 में हमने
इससे हमें प्राप्त होता है
क्या होता है, जब किसी छड़ के दोनों सिरों को दृढ़ता से जड़कर इसके तापीय प्रसार को रोका जाता है। स्पष्ट है कि सिरों के दृढ़ अवलंबों द्वारा प्रदत्त बाह्य बलों के कारण छड़ में संपीडन विकृति उत्पन्न हो जाती है जिसके तदनुरूपी छड़ में एक प्रतिबल उत्पन्न होता है जिसे तापीय प्रतिबल कहते हैं। उदाहरण के लिए
10.6 विशिष्ट ऊष्मा धारिता
किसी बर्तन में जल लेकर उसे किसी बर्नर पर गर्म करना आरंभ कीजिए। शीघ्र ही आप जल में बुलबुले ऊपर उठते देखेंगे। जैसे ही ताप में वृद्धि की जाती है, तो जल के कणों की गति में विक्षोभ होने तक वृद्धि होती जाती है और जल उबलने लगता है। वे कौन से कारक हैं जिन पर किसी पदार्थ का ताप बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा निर्भर करती है? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए प्रथम चरण में, जल की कुछ मात्रा को गर्म करके उसके ताप में कुछ वृद्धि, जैसे
दूसरे चरण में, अब मान लीजिए आप दो गुना जल लेकर इसे गर्म करने के लिए उसी स्रोत का उपयोग करके इसके ताप में
तीसरे चरण में, जल के स्थान पर, अब किसी तेल, जैसे सरसों का तेल, की समान मात्रा लेकर इसके ताप में भी
उपरोक्त प्रेक्षण यह दर्शाते हैं कि किसी दिए गए पदार्थ को उष्ण करने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा इसके द्रव्यमान
यहाँ
विशिष्ट ऊष्मा धारिता किसी पदार्थ का वह गुण होता है जो इस पदार्थ द्वारा एक दिए गए परिमाण की ऊष्मा को अवशोषित (अथवा बहिष्कृत) करने पर (यदि प्रावस्था परिवर्तन नहीं है) उस पदार्थ के ताप में होने वाले परिवर्तन को निर्धारित करता है। इसे “ऊष्मा की वह मात्रा जो किसी पदार्थ का एकांक द्रव्यमान अपने ताप में एकांक परिवर्तन के लिए अवशोषित अथवा बहिष्कृत करता है” के रूप में परिभाषित किया जाता है। विशिष्ट ऊष्मा धारिता का
जहाँ
परन्तु, गैसों की विशिष्ट ऊष्मा धारिता के संबंध में
सारणी 10.3 वायुमण्डलीय दाब तथा कक्ष ताप पर कुछ पदार्थों की विशिष्ट ऊष्मा धारिताएँ
पदार्थ | विशिष्ट ऊष्मा धारिता |
---|---|
एलुमिनियम | 900.0 |
कार्बन | 506.5 |
ताँबा | 386.4 |
लैड | 127.7 |
चाँदी | 236.1 |
टंग्सटन | 134.1 |
जल | 4186.0 |
पदार्थ | विशिष्ट ऊष्मा धारिता |
---|---|
बर्फ | 2060 |
काँच | 840 |
आयरन | 450 |
कैरोसीन | 2118 |
खाद्य तेल | 1965 |
पारा | 140 |
अध्याय 11 देखिए। सारणी 10.3 में वायुमण्डलीय दाब तथा कक्ष ताप पर कुछ पदार्थों की विशिष्ट ऊष्मा धारिता के मापे हुए मानों की सूची दी गई है जबकि सारणी 10.4 में कुछ गैसों की
सारणी 10.4 कुछ गैसों की मोलर विशिष्ट ऊष्मा धारिताएँ
गैस | ||
---|---|---|
20.8 | 12.5 | |
28.8 | 20.4 | |
29.1 | 20.8 | |
29.4 | 21.1 | |
37.0 | 28.5 |
मोलर विशिष्ट ऊष्मा धारिता की सूची दी गई है। सारणी 10.3 से आप यह ध्यान में रख सकते हैं कि अन्य पदार्थों की तुलना में जल की विशिष्ट ऊष्मा धारिता उच्चतम होती है। यही कारण है कि स्वचालित वाहनों के रैडिएटरों में जल का उपयोग शीतलक के रूप में किया जाता है तथा सिकाई के लिए उपयोग होने वाली तप्त जल थैलियों में जल का उपयोग तापक के रूप में किया जाता है। उच्च विशिष्ट ऊष्मा धारिता होने के कारण गर्मियों में थल की अपेक्षा जल बहुत धीमी गति से गर्म होता है फलस्वरूप समुद्र की ओर से आने वाली पवनें शीतल होती हैं। अब आप यह बता सकते हैं कि मरुक्षेत्रों में पृथ्वी का पृष्ठ दिन के समय शीघ्र उष्ण तथा रात्रि के समय शीघ्र शीतल क्यों हो जाता है।
10.7 ऊष्मामिति
किसी निकाय को वियुक्त निकाय तब कहा जाता है जब उस निकाय तथा उसके परिवेश के बीच कोई ऊष्मा विनिमय अथवा ऊष्मा स्थानांतर नहीं होता। जब किसी वियुक्त निकाय के विभिन्न भाग भिन्न-भिन्न ताप पर होते हैं, तब ऊष्मा की कुछ मात्रा उच्च ताप के भाग से निम्न ताप वाले भाग को स्थानांतरित हो जाती है। उच्च ताप के भाग द्वारा लुप्त ऊष्मा निम्न ताप के भाग द्वारा ऊष्मा लब्धि के बराबर होती है।
ऊष्मामिति का अर्थ ऊष्मा मापन है। जब कोई उच्च ताप की वस्तु किसी निम्न ताप की वस्तु के संपर्क में लाई जाती है, तो उच्च ताप की वस्तु द्वारा लुप्त ऊष्मा निम्न ताप की वस्तु द्वारा ऊष्मा लब्धि के बराबर होती है, बशर्ते कि निकाय से ऊष्मा का कोई भाग भी परिवेश में पलायन न करे। ऐसी युक्ति जिसमें ऊष्मा मापन किया जा सके उसे ऊष्मामापी कहते हैं (चित्र 10.20)। यह धातु के एक बर्तन तथा उसी पदार्थ जैसे ताँबा अथवा एल्युमिनियम के विडोलक से मिलकर बना होता है। इस बर्तन को एक लकड़ी के आवरण के भीतर, जिसमें ऊष्मारोधी पदार्थ जैसे काँच तंतु भरा होता है, रखा जाता है। बाहरी आवरण ऊष्मा कवच की भांति कार्य करता है तथा यह भीतरी बर्तन से ऊष्मा-हानि को कम कर देता है। बाहरी आवरण में एक छिद्र बनाया जाता है जिससे होते हुए पारे का तापमापी बर्तन के भीतर पहुँचता है। निम्नलिखित उदाहरण द्वारा आपको किसी दिए गए ठोस पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा धारिता ज्ञात करने की ऐसी विधि मिल जाएगी जिसमें लुप्त ऊष्मा = ऊष्मा लब्धि के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है।
10.8 अवस्था परिवर्तन
सामान्य रूप में द्रव्य की तीन अवस्थाएँ हैं : ठोस, द्रव तथा गैस। इन अवस्थाओं में से किसी एक अवस्था से दूसरी अवस्था में संक्रमण को अवस्था परिवर्तन कहते हैं। दो सामान्य अवस्था परिवर्तन ठोस से द्रव तथा द्रव से गैस (तथा विलोमतः) हैं। ये परिवर्तन तब ही हो सकते हैं जबकि पदार्थ तथा उसके परिवेश के बीच ऊष्मा का विनिमय होता है। तापन अथवा शीतलन पर अवस्था परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए आइए निम्नलिखित क्रियाकलाप करते हैं।
क्रियाकलाप 10.1
एक बीकर में कुछ हिम क्यूब लीजिए। हिम का ताप नोट कीजिए। इसे धीरे-धीरे किसी अचल ऊष्मा स्रोत पर गर्म करना आरंभ कीजिए। हर एक मिनट के पश्चात् ताप नोट कीजिए। जल तथा हिम के मिश्रण को निरंतर विडोलित करते रहिए। समय और ताप के बीच ग्राफ आलेखित कीजिए (चित्र 10.9)। आप यह पाएँगे कि जब तक बीकर में हिम उपस्थित है तब तक ताप में कोई परिवर्तन नहीं होता। उपरोक्त प्रक्रिया में, निकाय को ऊष्मा की सतत आपूर्ति होने पर भी उसके ताप में कोई परिवर्तन नहीं होता। यहाँ संभरण की जा रही ऊष्मा का उपयोग ठोस (हिम) से द्रव (जल) में अवस्था परिवर्तन किए जाने में हो रहा है।
चित्र 10.9 हिम को गर्म करने पर अवस्था में हुए परिवर्तनों को ताप और समय के बीच ग्राफ आलेखित करके दर्शाना (पैमाने के अनुसार नहीं)।
ठोस से द्रव में अवस्था परिवर्तन को गलन (अथवा पिघलना) तथा द्रव से ठोस में अवस्था परिवर्तन को हिमीकरण कहते हैं। यह पाया गया है कि ठोस पदार्थ की समस्त मात्रा के पिघलने तक ताप नियत रहता है अर्थात् ठोस से द्रव में अवस्था परिवर्तन की अवधि में पदार्थ की दोनों अवस्थाएँ ठोस तथा द्रव तापीय साम्य में सहवर्ती होती हैं। वह ताप जिस पर किसी पदार्थ की ठोस तथा द्रव अवस्थाएँ परस्पर तापीय साम्य में होती हैं उसे उस पदार्थ का गलनांक कहते हैं। यह किसी पदार्थ का अभिलक्षण होता है। यह दाब पर भी निर्भर करता है। मानक वायुमण्डलीय दाब पर किसी पदार्थ के गलनांक को प्रसामान्य गलनांक कहते हैं। हिम के गलने की प्रक्रिया को समझने के लिए आइए निम्नलिखित क्रियाकलाप करें।
क्रियाकलाप 10.2
एक हिम शिला लीजिए। एक धातु का तार लेकर उसके दोनों सिरों से समान भार जैसे
चित्र 10.10
जब समस्त हिम जल में रूपांतरित हो जाता है और इसके पश्चात् जैसे ही हम और आगे गर्म करना चालू रखते हैं तो हम यह पाते हैं कि ताप में वृद्धि होनी आरंभ हो जाती है चित्र 10.9 । ताप में यह वृद्धि निरंतर लगभग
द्रव से वाष्प (अथवा गैस) में अवस्था परिवर्तन को वाष्पन कहते हैं। यह पाया गया है कि समस्त द्रव के वाष्प में रूपांतरित होने तक ताप नियत रहता है। अर्थात्, ठोस से वाष्प में अवस्था परिवर्तन की अवधि में पदार्थ की दोनों अवस्थाएँ द्रव तथा गैस तापीय साम्य में सहवर्ती होती हैं। वह ताप जिस पर किसी पदार्थ की द्रव तथा वाष्प दोनों अवस्थाएँ तापीय साम्य में परस्पर सहवर्ती होती हैं उसे उस पदार्थ का क्वथनांक कहते हैं। जल के क्वथन की प्रक्रिया को समझने के लिए आइए निम्नलिखित क्रियाकलाप करें।
क्रियाकलाप 10.3
आधे से अधिक जल से भरा एक गोल पेंदी का फ्लास्क लीजिए। चित्र 10.11 में दर्शाए अनुसार फ्लास्क के मुख पर लगी कार्क के वेधों से होकर भीतर जाते हुए एक तापमापी तथा एक भाप निकास कार्क में लगाइए और फ्लास्क को बर्नर के ऊपर रखिए। जैसे ही जल गर्म होता है, तो पहले यह देखिए कि वह वायु, जो जल में विलीन थी, छोटे-छोटे बुलबुलों के रूप में बाहर आएगी। तत्पश्चात् भाप के बुलबुले फ्लास्क की तली में बनेंगे, परन्तु जैसे ही वे शीर्षभाग के पास के शीतल जल की ओर ऊपर उठते हैं, संघनित होकर अदृश्य हो जाते हैं। अंतत: जैसे ही समस्त जल का ताप
चित्र 10.11 क्वथन प्रक्रिया।
अब यदि कुछ सेकंडों के लिए भाप निकास को बंद कर दें, ताकि फ्लास्क के भीतर दाब में वृद्धि हो, तब आप यह देखेंगे कि क्वथन रुक जाता है। जल में क्वथन प्रक्रिया पुन: आरंभ होने तक जल के ताप में वृद्धि करने के लिए (दाब पर निर्भर करते हुए) और ऊष्मा की आवश्यकता होती है। इस प्रकार दाब में वृद्धि के साथ क्वथनांक में वृद्धि हो जाती है।
आइए अब हम बर्नर को हटा लेते हैं तथा जल को लगभग
त्रिक बिंदु
किसी पदार्थ का ताप उसकी अवस्था परिवर्तन (प्रावस्था परिवर्तन) की अवधि में नियत रहता है। किसी पदार्थ के ताप
(a)
(b)
(a) जल तथा (b)
बंद कर देते हैं। अब फ्लास्क को स्टैंड पर उलटा करके रखते हैं और फ्लास्क पर हिमशीतित जल उड़ेलते हैं। ऐसा करने पर फ्लास्क के भीतर की जलवाष्प संघनित होकर फ्लास्क के भीतर जल के पृष्ठ पर दाब को कम कर देती है। अब निम्न ताप पर जल में पुनः क्वथन आरंभ हो जाता है। इस प्रकार दाब में कमी होने पर क्वथनांक घट जाता है।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पहाड़ी क्षेत्रों में भोजन पकाना क्यों कठिन होता है। उच्च तुंगता पर वायुमण्डलीय दाब निम्न होता है, जिसके कारण वहाँ पर समुद्र तट की तुलना में जल का क्वथनांक घट जाता है। इसके विपरीत, दाब कुकर के भीतर दाब में वृद्धि करके क्वथनांक बढ़ाया जाता है। इसीलिए पाकक्रिया तेज होती है। मानक वायुमण्डलीय दाब पर किसी पदार्थ के क्वथनांक को प्रसामान्य क्वथनांक कहते हैं।
परन्तु, सभी पदार्थ इन तीनों अवस्थाओं - ठोस, द्रव तथा गैस से नहीं गुजरते। कुछ पदार्थ ऐसे भी हैं जो सामान्यतः
सीधे ठोस से वाष्प अवस्था में और विलोमतः पहुँच जाते हैं। किसी पदार्थ का ठोस अवस्था से वाष्प अवस्था में, बिना द्रव अवस्था से गुजरे, पहुँचना ऊर्ध्वपातन कहलाता है तथा ऐसे पदार्थ को ऊर्ध्वपातन पदार्थ कहते हैं। शुष्क हिम (ठोस
10.8. 1 गुप्त ऊष्मा
अनुभाग 10.8 में हमने यह सीखा है कि जब कोई पदार्थ अवस्था परिवर्तन की स्थिति में होता है तो पदार्थ तथा उसके परिवेश के बीच ऊष्मा की एक निश्चित मात्रा स्थानांतरित होती है। किसी पदार्थ की अवस्था परिवर्तन की अवधि में, ऊष्मा की मात्रा का प्रति एकांक द्रव्यमान स्थानांतरण, उस पदार्थ की इस
सारणी
पदार्थ | गलनांक |
क्वथनांक |
||
---|---|---|---|---|
इथैनॉल | -114 | 1.0 | 78 | 8.5 |
सोना | 1063 | 0.645 | 2660 | 15.8 |
लैड | 328 | 0.25 | 1744 | 8.67 |
पारा | -39 | 0.12 | 357 | 2.7 |
नाइट्रोजन | -210 | 0.26 | -196 | 2.0 |
ऑक्सीजन | -219 | 0.14 | -183 | 2.1 |
जल | 0 | 3.33 | 100 | 22.6 |
प्रक्रिया के लिए गुप्त ऊष्मा कहलाती है। उदाहरण के लिए, यदि
अवस्था परिवर्तन के समय आवश्यक ऊष्मा का परिमाण जिस पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन हो रहा है उसके द्रव्यमान तथा रूपांतरण-ऊष्मा पर निर्भर करता है। इस प्रकार, यदि
अथवा
यहाँ
चित्र 10.12 जल के लिए ताप तथा ऊष्मा के बीच ग्राफ आलेखन (पैमाने के अनुसार नहीं)।
ध्यान दीजिए कि जब अवस्था परिवर्तन के समय ऊष्मा दी (अथवा ली) जाती है, तो ताप नियत रहता है। ध्यान से देखिए कि चित्र 10.12 में प्रावस्था रेखाओं की प्रवणताएँ समान नहीं हैं जो यह संकेत देता है कि विभिन्न अवस्थाओं की विशिष्ट ऊष्मा धारिताएँ समान नहीं हैं। जल के लिए, संगलन तथा वाष्पन की गुप्त ऊष्माएँ क्रमशः
10.9 ऊष्मा स्थानांतरण
हमने देखा है कि ताप में अंतर के कारण एक निकाय से दूसरे निकाय में अथवा किसी निकाय के एक भाग से उसके दूसरे भाग में ऊर्जा के स्थानांतरण को ऊष्मा कहते हैं। इस ऊर्जा स्थानांतर के विविध साधन क्या हैं? ऊष्मा स्थानांतरण की सुस्पष्ट तीन विधियाँ हैं: चालन, संवहन तथा विकिरण (चित्र 10.13)।
चित्र 10.13 चालन, संवहन तथा विकिरण द्वारा तापन।
10.9.1 चालन
किसी वस्तु के दो संलग्न भागों के बीच उनके तापों में अंतर के कारण ऊष्मा स्थानांतरण की क्रियाविधि को चालन कहते हैं। मान लीजिए किसी धातु की छड़ का एक सिरा आग की ज्वाला में रखा है। शीघ्र ही छड़ का दूसरा सिरा इतना गर्म हो जाएगा कि आप उसे अपने नंगे हाथों से पकड़ नहीं सकेंगे। यहाँ छड़ में ऊष्मा स्थानांतरण चालन द्वारा छड़ के तप्त सिरे से छड़ के विभिन्न भागों से होकर दूसरे सिरे तक होता है। गैसें हीन ऊष्मा चालक होती हैं तथा द्रवों की चालकता ठोसों तथा गैसों के बीच की होती है।
मात्रात्मक रूप में, ऊष्मा चालन का वर्णन “किसी पदार्थ में किसी दिए गए तापांतर के लिए ऊष्मा प्रवाह की दर” द्वारा किया जाता है।
चित्र 10.14 किसी छड़ जिसके दो सिरों को
आनुपातिकता स्थिरांक
अच्छे ऊष्मा चालकों (धातुओं) की अपेक्षाकृत अधिक ऊष्मा चालकताओं की तुलना कुछ अच्छे ऊष्मारोधी पदार्थों, जैसे लकड़ी तथा काँच तंतु, की अपेक्षाकृत कम ऊष्मा चालकताओं से कीजिए। आपने यह पाया होगा कि खाना पकाने के कुछ बर्तनों की पेंदी पर ताँबे का विलेपन होता है। ऊष्मा का अच्छा चालक होने के कारण ताँबा बर्तन की पेंदी पर ऊष्मा वितरण को उन्नत करता है जिससे भोजन समान रूप से पकता है। इसके विपरीत, प्लास्टिक फेन, मुख्यतः वायु की कोटरिका होने के कारण, अच्छे ऊष्मारोधी होते हैं। याद कीजिए गैसें अल्प चालक होती हैं तथा सारणी 10.6 से वायु की निम्न ऊष्मा चालकता नोट कीजिए। बहुत से अन्य अनुप्रयोगों में ऊष्मा धारण तथा स्थानांतरण महत्वपूर्ण होते हैं। हमारे देश में, कंक्रीट की छतों वाले घर गर्मियों में बहुत गर्म हो जाते हैं, इसका कारण यह है कि कंक्रीट की ऊष्मा चालकता (यद्यपि धातुओं की तुलना काफी कम है।) फिर भी बहुत कम नहीं है। इसीलिए, प्राय: लोग छतों पर फोन-रोधन कराना पसंद करते हैं ताकि ऊष्मा स्थानांतरण को रोककर कमरे को शीतल रखा जा सके। कुछ स्थितियों में ऊष्मा स्थानांतरण क्रांतिक होता है। उदाहरण के लिए नाभिकीय रिएक्टरों में सुविस्तृत ऊष्मा-स्थानांतर निकायों को स्थापित करने की आवश्यकता होती है ताकि नाभिकीय रिएक्टर के क्रोड में नाभिकीय विखंडन द्वारा उत्पन्न विशाल ऊर्जा का काफी तेज़ी से बाहर पारगमन किया जा सके तथा क्रोड अतितप्त होने से बचा रहे।
सारणी 10.6 कुछ पदार्थों की ऊष्मा चालकताएँ
पदार्थ | ऊष्मा चालकता |
---|---|
धातुएँ | |
चाँदी | |
ताँबा | |
ऐलुमिनियम | 406 |
पीतल | 205 |
स्टील | 109 |
लैड | 50.2 |
पारा | 34.7 |
अधातुएँ | 8.3 |
ऊष्मारोधी ईंट | |
कंक्रीट | 0.15 |
शरीर-वसा | 0.8 |
नमदा | 0.20 |
काँच | 0.04 |
हिम | 0.8 |
काँच तंतु | 1.6 |
लकड़ी | 0.04 |
जल | 0.12 |
गैसें | 0.8 |
वायु | |
ऑर्गन | 0.14 |
हाइड्रोजन |
10.9.2 संवहन
संवहन वह विधि है जिसमें पदार्थ की वास्तविक गति द्वारा ऊष्मा स्थानांतरण होता है। यह केवल तरलों में ही संभव है। संवहन प्राकृतिक हो सकता है अथवा प्रणोदित भी हो सकता है। प्राकृतिक संवहन में गुरुत्व एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब किसी तरल को नीचे से गर्म किया जाता है, तो गर्म भाग में प्रसार होता है, फलस्वरूप उसका घनत्व घट जाता है। उत्प्लावना के कारण यह ऊपर उठता है तथा ऊपरी शीतल भाग इसे प्रतिस्थापित कर देता है। यह पुनः तप्त होता है, ऊपर उठता है तथा तरल के अपेक्षाकृत शीतल भाग द्वारा प्रतिस्थापित होता है। यह प्रक्रिया चलती रहती है। स्पष्ट रूप से ऊष्मा स्थानांतर की यह विधि चालन से भिन्न होती है। संवहन में तरल के विभिन्न भागों का स्थूल अभिगमन होता है।
प्रणोदित संवहन में पदार्थ को किसी पम्प अथवा किसी अन्य भौतिक साधन द्वारा गति करने के लिए विवश किया जाता है। घरों में प्रणोदित वायु तापन निकाय, मानव परिसंचरण तंत्र तथा स्वचालित वाहनों के इंजनों के शीतलन निकाय प्रणोदित संवहन निकायों के सामान्य उदाहरण हैं। मानव शरीर में हृदय एक पम्प की भांति कार्य करता है जो रुधिर का शरीर के विभिन्न भागों में संचरण करता है, तथा इस प्रकार प्रणोदित संवहन द्वारा ऊष्मा स्थानांतरित करके शरीर में एकसमान ताप स्थापित करता है।
प्राकृतिक संवहन बहुत सी सुपरिचित परिघटनाओं के लिए उत्तरदायी है। दिन के समय बड़े जलाशयों की तुलना में थल शीघ्र तप्त हो जाता है। ऐसा दो कारणों से होता है - पहला जल की विशिष्ट ऊष्मा धारिता उच्च है तथा दूसरा मिश्रित धाराएँ अवशोषित ऊष्मा को विशाल आयतन के जल के सब भागों में विसारित कर देती हैं। तप्त थल के संपर्क वाली वायु चालन
थल जल की अपेक्षा उष्ण रात्रि
जल थल की अपेक्षा उष्ण
चित्र 10.17 संवहन चक्र।
द्वारा गर्म होती है तथा तप्त होकर वायु फैलती है, जिससे परिवेश की शीतल वायु की तुलना में इसका घनत्व कम हो जाता है। फलस्वरूप उष्ण वायु ऊपर उठती है (वायु धाराएँ), तथा रिक्त स्थान को भरने के लिए अन्य वायु गति करती हैं (पवनें) जिससे बड़े जलाशयों के निकट समुद्र समीर उत्पन्न हो जाती हैं। ठंडी वायु नीचे आती हैं तथा एक तापीय संवहन चक्र बन जाता है, जो ऊष्मा को थल से दूर स्थानांतरित कर देता है। रात्रि में थल की ऊष्मा का ह्रास अधिक शीघ्रता से होता है तथा जलीय पृष्ठ थल की तुलना में उष्ण होती है। परिणामस्वरूप चक्र उत्क्रमित हो जाता है (चित्र 10.17)।
प्राकृतिक संवहन का एक अन्य उदाहरण उत्तर पूर्व से विषुवत् वृत्त की ओर पृथ्वी पर बहने वाली स्थायी पृष्ठीय पवनें हैं, जिन्हें व्यापारिक पवनें कहते हैं। इनके बहने की यथोचित व्याख्या इस प्रकार है : पृथ्वी के विषुवतीय क्षेत्रों तथा ध्रुवीय क्षेत्रों को सूर्य की ऊष्मा समान मात्रा में प्राप्त नहीं होती। विषुवत वृत्त के समीप पृथ्वी के पृष्ठ पर वायु तप्त होती है जबकि ध्रुवों के ऊपरी वायुमण्डलीय वायु शीतल होती है। किसी अन्य कारक की अनुपस्थिति में, संवहन धाराएँ प्रवाहित होने लगेंगी जिसमें वायु विषुवतीय पृष्ठ से ऊपर उठकर ध्रुवों की ओर बहेगी, फिर नीचे की ओर जाएगी तथा बहती हुई पुनः विषुवत वृत्त की ओर जाएगी। परन्तु, पृथ्वी की घूर्णन गति इस संवहन धारा में संशोधन कर देती है जिसके कारण विषुवत वृत्त के समीप की वायु की पूर्व की ओर चाल
10.9.3 विकिरण
चालन तथा संवहन को परिवहन माध्यम के रूप में किसी पदार्थ की आवश्यकता होती है। ऊष्मा स्थानांतरण की ये विधियाँ निर्वात से पृथक दो वस्तुओं के बीच क्रियाशील नहीं हो सकतीं। परन्तु विशाल दूरी होने पर भी पृथ्वी सूर्य से ऊष्मा प्राप्त कर लेती है। इसी प्रकार, हम पास की आग की उष्णता शीघ्र ही अनुभव कर लेते हैं, यद्यपि वायु अल्प चालक है तथा इतने कम समय में संवहन धाराएँ भी स्थापित नहीं हो पातीं। ऊष्मा स्थानांतरण की तीसरी विधि को किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती। इस विधि को विकिरण कहते हैं, तथा विद्युत चुंबकीय तरंगों द्वारा इस प्रकार विकरित ऊर्जा को विकिरण ऊर्जा कहते हैं। किसी विद्युत चुंबकीय तरंग में वैद्युत तथा चुंबकीय क्षेत्र दिक तथा काल में दोलन करते हैं। अन्य किसी तरंग की भांति विद्युत चुंबकीय तरंगों की विभिन्न तरंगदैर्घ्य हो सकती हैं तथा वे निर्वात में समान चाल, जिसे प्रकाश की चाल कहते हैं अर्थात्
जब यह ऊष्मा विकिरण अन्य पिण्डों पर पड़ता है तो इसका आंशिक परावर्तन तथा आंशिक अवशोषण होता है। ऊष्मा का वह परिमाण जिसे कोई पिण्ड विकिरण द्वारा अवशोषित कर सकता है, उस पिण्ड के वर्ण (रंग) पर निर्भर करता है।
हम यह पाते हैं कि कृष्ण पिण्ड विकिरण ऊर्जा का अवशोषण तथा उत्सर्जन हलके वर्णों के पिण्डों की अपेक्षा अधिक करते हैं। इस तथ्य के हमारे दैनिक जीवन में अनेक अनुप्रयोग हैं। हम गर्मियों में श्वेत अथवा हलके वर्णों के वस्त्र पहनते हैं ताकि वे सूर्य की कम से कम ऊष्मा अवशोषित करें। परन्तु सर्दियों में हम गहरे वर्ण के वस्त्र पहनते हैं जो सूर्य की अधिक ऊष्मा को अवशोषित करके हमें उष्ण रखते हैं। खाना पकाने के बर्तनों की पेंदी को काला पोत दिया जाता है ताकि आग से वह अधिकतम ऊष्मा अवशोषित करके पकाई जाने वाली सब्जी को दें।
इसी प्रकार, ड्यूआर फ्लास्क अथवा थर्मस बोतल एक ऐसी युक्ति है जो बोतल की अंतर्वस्तु तथा बाहरी परिवेश के बीच ऊष्मा स्थानांतरण को निम्नतम कर देती है। यह दोहरी दीवारों का काँच का बर्तन होता है जिसकी भीतरी तथा बाहरी दीवारों पर चाँदी का लेप होता है। भीतरी दीवार से विकिरण परावर्तित होकर बोतल की अंतर्वस्तु में वापस लौट जाते हैं। इसी प्रकार बाहरी दीवार भी बाहर से आने वाले किन्हीं भी विकिरणों को वापस परावर्तित कर देती है। दीवारों के बीच के स्थान को निर्वातित करके चालन तथा संवहन द्वारा होने वाले ऊष्मा क्षय को घटाया जाता है तथा फ्लास्क को ऊष्मा रोधी जैसे कार्क पर टिकाया जाता है। इसीलिए यह युक्ति तप्त अंतर्वस्तु (जैसे दूध) को ठंडा होने से बचाने में उपयोगी है, अथवा वैकल्पिक रूप से ठंडी अंतर्वस्तुओं (जैसे हिम) का भंडारण करने में भी उपयोगी है।
10.9.4 कृष्णिका विकिरण
अब तक हमने उष्मा विकिरण के तरंगदैर्घ्य के पक्ष का उल्लेख नहीं किया है। किसी ताप पर उष्मा विकिरण के विषय में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि विकरण में मात्र एक ही (या कतिपय) तरंगदैर्घ्य नहीं होते हैं, बल्कि इसमें कम तरंगदैर्घ्य से लेकर अधिक तरंगदैर्घ्य के बीच उसका सतत् स्पैक्ट्रम होता है। तथापि विभिन्न तरंगदैर्घ्यों के लिए विकिरित उष्मा की ऊर्जा की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। चित्र 10.18 विभिन्न तापों पर किसी कृष्णिका के एकांक क्षेत्र द्वारा एकांक तरंगदैर्घ्य पर उत्सर्जित विकिरित ऊर्जा तथा तरंगदैर्घ्य के मध्य प्रायोगिक वक्र दर्शाता है।
चित्र 10.18: कुष्णिका द्वारा विभिन्न तापों पर उत्सर्जित ऊर्जा तथा तंरगदैर्घ्य के मध्य खींचे गए वक्र।
इस बात पर गौर कीजिए कि तरंगदैर्घ्य
नियतांक (वीन नियतांक) का मान
चित्र 10.18 में दर्शाए गए कृष्णिका विकिरण वक्रों से संबंधित सर्वाधिक विशिष्ट बात यह है कि ये वक्र सार्वत्रिक होते हैं। ये कृष्णिका के केवल ताप पर निर्भर करते हैं न कि उसके आकार, आकृति या पदार्थ पर। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में कृष्णिका के विकिरण को सैद्धांतिक रूप से व्याख्या करने के लिए जो प्रयास किए गए उन्होंने भौतिकी में क्वांटम क्रांति की प्रेरणा दी। इसके विषय में आप आगे अपने पाठ्यक्रम में पढ़ेंगे।
विकिरण द्वारा ऊर्जा बिना माध्यम के (अर्थात् निर्वात में) बहुत दूरियों तक स्थानान्तरित की जा सकती है। परम ताप
किसी वस्तु द्वारा उत्सर्जित कुल विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा उसके आकार, उसकी उत्सर्जित करने की क्षमता (जिसे उत्सर्जकता कहते हैं) और विशेष रूप से उसके ताप के समानुपाती होती है। एक वस्तु के लिए जो पूर्ण उत्सर्जक है, प्रति इकाई समय में उत्सर्जित ऊर्जा
जहाँ
किसी आदर्श विकिक के लिए
उस वस्तु के लिए जिसकी उत्सर्जकता
उदाहरणार्थ, आइए, हम अपने शरीर से उत्सर्जित उष्मा की गणना करें। मान लीजिए किसी व्यक्ति के शरीर का पृष्ठ क्षेत्रफल लगभग
जो विराम अवस्था में शरीर द्वारा उत्पन्न ऊर्जा की दर
10.10 न्यूटन का शीतलन नियम
हम सभी यह जानते हैं कि तप्त जल अथवा दूध मेज पर यदि रखा छोड़ दें तो वह धीरे-धीरे शीतल होना आरंभ कर देता है। अंततः वह परिवेश के ताप पर पहुँच जाता है। कोई दी गई वस्तु अपने परिवेश से ऊष्मा का विनिमय करके कैसे शीतल हो सकती है, इसका अध्ययन करने के लिए आइए निम्नलिखित क्रियाकलाप करें।
क्रियाकलाप 10.4
एक विडोलक सहित ऊष्मामापी में कुछ जल, मान लें
चित्र 10.19 समय के साथ तप्त जल के शीतलन को दर्शाने वाला वक्र।
ग्राफ से आप यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि किस प्रकार तप्त जल का शीतलन उसके अपने तथा अपने परिवेश के तापों के बीच अंतर पर निर्भर करता है। आप यह भी नोट करेंगे कि आरंभ में शीतलन की दर उच्च है तथा वस्तु के ताप में कमी होने पर यह दर घट जाती है।
उपरोक्त क्रियाकलाप यह दर्शाता है कि कोई तप्त पिण्ड ऊष्मा विकिरण के रूप में अपने परिवेश को ऊष्मा खो देता है। यह ऊष्मा-क्षय की दर पिण्ड तथा उसके परिवेश के तापों के अंतर पर निर्भर करती है। न्यूटन ऐसे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने किसी दिए गए अंतःक्षेत्र के भीतर रखे किसी पिण्ड द्वारा लुप्त ऊष्मा तथा उसके ताप के बीच संबंध का योजनाबद्ध अध्ययन किया।
न्यूटन के शीतलन नियम के अनुसार किसी पिण्ड के ऊष्मा क्षय की दर,
यहाँ
समीकरणों (10.15) तथा (10.16) से हमें प्राप्त होता है
समीकरण (10.23) की सहायता से एक विशिष्ट ताप परिसर के आद्योपांत शीतलन का समय परिकलित किया जा सकता है। लघु तापांतरों के लिए, चालन, संवहन तथा विकिरण के संयुक्त प्रभाव के कारण शीतलन की दर तापांतर के अनुक्रमानुपाती होती है। किसी विकिरक से कमरे में ऊष्मा स्थानांतरण, कमरे की दीवारों से पार होकर ऊष्मा-क्षति अथवा मेज पर प्याले में रखी चाय के शीतलन में यह एक वैध सन्निकटन है।
(a)
(b) चित्र 10.20 न्यूटन के शीतलन नियम का सत्यापन।
चित्र 10.20(a) में दर्शायी गई प्रायोगिक व्यवस्था की सहायता से न्यूटन के शीतलन नियम का सत्यापन किया जा सकता है। इसमें दोहरी दीवारों वाला एक बर्तन (V) जिसकी दीवारों के बीच जल भरा होता है, लिया जाता है। इस दोहरी दीवारों वाले बर्तन में तप्त जल से भरा ताँबे का ऊष्मामापी (C) रखते हैं। इसमें दो तापमापियों का उपयोग किया जाता है, जिसमें तापमापी
सारांश
1. ऊष्मा ऊर्जा का एक रूप है जो किसी पिण्ड तथा उसके परिवर्ती माध्यम के बीच उनमें तापांतर के कारण प्रवाहित होती है। किसी पिण्ड की तप्तता की कोटि मात्रात्मक रूप में ताप द्वारा निरूपित होती है।
2. किसी ताप मापन युक्ति (तापमापी) में मापन योग्य किसी ऐसे गुण (जिसे तापमापीय गुण कहते हैं) का उपयोग किया जाता है, जिसमें ताप के साथ परिवर्तन होता है। विभिन्न तापमापी में भिन्न-भिन्न ताप मापक्रम बनते हैं। कोई ताप मापक्रम बनाने के लिए दो नियत बिंदुओं का चयन किया जाता है तथा उन्हें कुछ यादृच्छिक ताप मान दिए जाते हैं। ये दो संख्याएँ मापक्रम के मूल बिंदु तथा उसके मात्रक की आमाप को निश्चित करती हैं।
3. सेल्सियस ताप
4. दाब
यहाँ
5. परम ताप मापक्रम में, मापक्रम का शून्य, ताप के परम शून्य को व्यक्त करता है। यह वह ताप है जिस पर प्रत्येक पदार्थ में न्यूनतम संभावित आण्विक सक्रियता होती है। केल्विन परम ताप मापक्रम
6. रैखिक प्रसार गुणांक
यहाँ
7. किसी पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा धारिता को इस प्रकार परिभाषित किया जाता है:
यहाँ
यहाँ
8. संगलन की गुप्त ऊष्मा
9. ऊष्मा-स्थानांतरण की तीन विधियाँ हैं - चालन, संवहन तथा विकिरण।
10. चालन में किसी पिण्ड के आस-पास के भागों के बीच ऊष्मा का स्थानांतरण आण्विक संघट्टनों द्वारा संपन्न होता है परन्तु इसमें द्रव्य का प्रवाह नहीं होता। किसी
यहाँ
11. न्यूटन के शीतलन नियम के अनुसार किसी पिण्ड के शीतलन की दर परिवेश के ऊपर वस्तु के ताप-आधिक्य के अनुक्रमानुपाती होती है
यहाँ
राशि | प्रतीक | विमाएँ | मात्रक | टिप्पणी |
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पदार्थ की मात्रा | (मोल) | मोल |
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सेल्सियस ताप | ||||
केल्विन परम ताप रैखिक प्रसार गुणांक |
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आयतन प्रसार गुणांक किसी निकाय को आपूर्त ऊष्मा विशिष्ट ऊष्मा धारिता |
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ऊष्मा चालकता |
विचारणीय विषय
1. केल्विन ताप
तथा जल के त्रिक बिंदु के लिए (चयन द्वारा)
2. जब कोई द्रव वाष्प के साथ साम्य में होता है तो समस्त निकाय का दाब तथा ताप समान होता है तथा साम्यावस्था में दोनों प्रावस्थाओं के मोलर आयतनों में अंतर (घनत्वों में अंतर) होता है। यह सभी निकायों पर लाग होता है चाहे उसमें कितनी भी प्रावस्थाएँ साम्य में हों।
3. ऊष्मा स्थानांतरण में सदैव दो निकायों अथवा एक ही निकाय के दो भागों के बीच तापांतर सम्मिलित होता है। ऐसा ऊर्जा स्थानांतरण जिसमें किसी भी रूप में तापांतर सम्मिलित नहीं होता, वह ऊष्मा नहीं है।
4. संवहन में किसी तरल के भीतर उसके भागों में असमान ताप होने के कारण द्रव्य का प्रवाह सम्मिलित होता है। किसी टोंटी से गिरते जल के नीचे रखी किसी तप्त छड़ की ऊष्मा का क्षय छड़ के पृष्ठ तथा जल के बीच चालन के कारण होता है जल के भीतर संवहन द्वारा नहीं होता।