All Mathematical truths are relative and conditional - C.P. STEINMETZ
4.1 भूमिका (Introduction)
पिछले अध्याय में, हमने आव्यूह और आव्यूहों के बीजगणित के विषय में अध्ययन किया है। हमने बीजगणितीय समीकरणों के निकाय को आव्यूहों के रूप में व्यक्त करना भी सीखा है। इसके अनुसार रैखिक समीकरणों के निकाय
को
P.S. Laplace (1749-1827) यदि
इस अध्याय में, हम केवल वास्तविक प्रविष्टियों के 3 कोटि तक के सारणिकों पर विचार करेंगे। इस अध्याय में सारणिकों के गुण धर्म, उपसारणिक, सह-खण्ड और त्रिभुज का क्षेत्रफल ज्ञात करने में सारणिकों का अनुप्रयोग, एक वर्ग आव्यूह के सहखंडज और व्युत्क्रम, रैखिक समीकरण के निकायों
की संगतता और असंगतता और एक आव्यूह के व्युत्क्रम का प्रयोग कर दो अथवा तीन चरांकों के रैखिक समीकरणों के हल का अध्ययन करेंगे।
4.2 सारणिक (Determinant)
हम
यदि
यदि
(i) आव्यूह
(ii) केवल वर्ग आव्यूहों के सारणिक होते हैं।
4.2.1 एक कोटि के आव्यूह का सारणिक (Determinant of a matrix of order one)
माना एक कोटि का आव्यूह
4.2.2 द्वितीय कोटि के आव्यूह का सारणिक (Determinant of a matrix of order two)
माना
तो
4.2.3 कोटि के आव्यूह का सारणिक (Determinant of a matrix of order )
तृतीय कोटि के आव्यूह के सारणिक को द्वितीय कोटि के सारणिकों में व्यक्त करके ज्ञात किया जाता है। यह एक सारणिक का एक पंक्ति (या एक स्तंभ) के अनुदिश प्रसरण कहलाता है। तृतीय कोटि के सारणिक को छः प्रकार से प्रसारित किया जाता है तीनों पंक्तियों
जहाँ
प्रथम पंक्ति
चरण
अर्थात्
चरण 2 क्योंकि
अर्थात्
चरण 3 क्योंकि
अर्थात्
चरण 4 अब
या
टिप्पणी हम चारों चरणों का एक साथ प्रयोग करेंगे।
द्वितीय पंक्ति
पहले स्तंभ
दिया गया है कि वे यह सत्यापित करें कि
अतः एक सारणिक को किसी भी पंक्ति या स्तंभ के अनुदिश प्रसरण करने पर समान मान प्राप्त होता है।
टिप्पणी
(i) गणना को सरल करने के लिए हम सारणिक का उस पंक्ति या स्तंभ के अनुदिश प्रसरण करेंगे जिसमें शून्यों की संख्या अधिकतम होती है।
(ii) सारणिकों का प्रसरण करते समय
(iii) मान लीजिए
अवलोकन कीजिए कि
व्यापक रूप में, यदि
प्रश्नावली 4.1
प्रश्न 1 से 2 तक में सारणिकों का मान ज्ञात कीजिए
1.
2. (i)
(ii)
3. यदि
4. यदि
5. निम्नलिखित सारणिकों का मान ज्ञात कीजिए
(i)
(ii)
(iii)
(iv)
6. यदि
7.
(i)
(ii)
8. यदि
(A) 6
(B)
(C) -6
(D) 0
4.3 त्रिभुज का क्षेत्रफल (Area of a Triangle)
हमने पिछली कक्षाओं में सीखा है कि एक त्रिभुज जिसके शीर्षबिंदु
टिप्पणी
(i) क्योंकि क्षेत्रफल एक धनात्मक राशि होती है इसलिए हम सदैव (1) में सारणिक का निरपेक्ष मान लेते हैं।
(ii) यदि क्षेत्रफल दिया हो तो गणना के लिए सारणिक का धनात्मक और ॠणात्मक दोनों मानों का प्रयोग कीजिए।
(iii) तीन संरेख बिंदुओं से बने त्रिभुज का क्षेत्रफल शून्य होगा।
प्रश्नावली 4.2
1. निम्नलिखित प्रत्येक में दिए गए शीर्ष बिंदुओं वाले त्रिभुजों का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
(i)
(ii)
(iii)
2. दर्शाइए कि बिंदु
3. प्रत्येक में
(i)
(ii)
4. (i) सारणिकों का प्रयोग करके
(ii) सारणिकों का प्रयोग करके
5. यदि शीर्ष
(B) -2
(C)
(D)
4.4 उपसारणिक और सहखंड (Minor and Co-factor)
इस अनुच्छेद में हम उपसारणिकों और सहखंडों का प्रयोग करके सारणिको के प्रसरण का विस्तृत रूप लिखना सीखेंगे।
परिभाषा 1 सारणिक के अवयव
टिप्पणी
प्रश्नावली 4.3
निम्नलिखित सारणिकों के अवयवों के उपसारणिक एवं सहखंड लिखिए।
1. (i)
(ii)
2. (i)
(ii)
3. दूसरी पंक्ति के अवयवों के सहखंडों का प्रयोग करके
4. तीसरे स्तंभ के अवयवों के सहखंडों का प्रयोग करके
5. यदि
(A)
(B)
(C)
(D)
4.5 आव्यूह के सहखंडज और व्युत्क्रम (Adjoint and Inverse of a Matrix)
पिछले अध्याय में हमने एक आव्यूह के व्युत्क्रम का अध्ययन किया है। इस अनुच्छेद में हम एक आव्यूह के व्युत्क्रम के अस्तित्व के लिए शर्तों की भी व्याख्या करेंगे।
4.5.1 आव्यूह का सहखंडज (Adjoint of a matrix)
परिभाषा 3 एक वर्ग आव्यूह
मान लीजिए
तब
टिप्पणी
हम बिना उपपत्ति के निम्नलिखित प्रमेय निर्दिष्ट करते हैं।
प्रमेय 1 यदि
सत्यापन: मान लीजिए
क्योंकि एक पंक्ति या स्तंभ के अवयवों का संगत सहखंडों की गुणा का योग
इस प्रकार
इसी प्रकार, हम दर्शा सकते हैं कि
अत:
परिभाषा 4 एक वर्ग आव्यूह
उदाहरण के लिए आव्यूह
परिभाषा 5 एक वर्ग आव्यूह
मान लीजिए
अतः
हम निम्नलिखित प्रमेय बिना उपपत्ति के निर्दिष्ट कर रहे हैं।
प्रमेय 2 यदि
प्रमेय 3 आव्यूहों के गुणनफल का सारणिक उनके क्रमशः सारणिकों के गुणनफल के समान होता है अर्थात्
टिप्पणी हम जानते हैं कि
दोनों ओर आव्यूहों का सारणिक लेने पर,
अर्थात्
अर्थात्
अर्थात्
व्यापक रुप से, यदि
प्रमेय 4 एक वर्ग आव्यूह
विलोमतः मान लीजिए
अब
(प्रमेय 1)
या
या
अतः
प्रश्नावली 4.4
प्रश्न 1 और 2 में प्रत्येक आव्यूह का सहखंडज (adjoint) ज्ञात कीजिए
1.
2.
प्रश्न 3 और 4 में सत्यापित कीजिए कि
3.
4.
प्रश्न 5 से 11 में दिए गए प्रत्येक आव्यूहों के व्युत्क्रम (जिनका अस्तित्व हो) ज्ञात कीजिए।
5.
6.
7.
8.
9.
10.
11.
12. यदि
13. यदि
14. आव्यूह
15. आव्यूह
इसकी सहायता से
16. यदि
17. यदि
18. यदि
4.6 सारणिकों और आव्यूहों के अनुप्रयोग ( Applications of Determinants and
Matrices)इस अनुच्छेद में हम दो या तीन अज्ञात राशियों के रैखिक समीकरण निकाय के हल और रैखिक समीकरणों के निकाय की संगतता की जाँच में सारणिकों और आव्यूहों के अनुप्रयोगों का वर्णन करेंगे। संगत निकायः निकाय संगत कहलाता है यदि इसके हलों (एक या अधिक) का अस्तित्व होता है। असंगत निकाय: निकाय असंगत कहलाता है यदि इसके किसी भी हल का अस्तित्व नहीं होता है।
टिप्पणी इस अध्याय में हम अद्वितीय हल के समीकरण निकाय तक सीमित रहेंगे।
4.6.1 आव्यूह के व्युत्क्रम द्वारा रैखिक समीकरणों के निकाय का हल (Solution of a system of linear equations using inverse of a matrix)
आइए हम रैखिक समीकरणों के निकाय को आव्यूह समीकरण के रूप में व्यक्त करते हैं और आव्यूह के व्युत्क्रम का प्रयोग करके उसे हल करते हैं। निम्नलिखित समीकरण निकाय पर विचार कीजिए
मान लीजिए
तब समीकरण निकाय
स्थिति 1 यदि
या
यह आव्यूह समीकरण दिए गए समीकरण निकाय का अद्वितीय हल प्रदान करता है क्योंकि एक आव्यूह का व्युत्क्रम अद्वितीय होता है। समीकरणों के निकाय के हल करने की यह विधि आव्यूह विधि कहलाती है।
स्थिति 2 यदि
इस स्थिति में हम
यदि
यदि
प्रश्नावली 4.5
निम्नलिखित प्रश्नों 1 से 6 तक दी गई समीकरण निकायों का संगत अथवा असंगत के रूप में वर्गीकरण कीजिए
1.
2.
3.
4.
5.
6.
निम्नलिखित प्रश्न 7 से 14 तक प्रत्येक समीकरण निकाय को आव्यूह विधि से हल कीजिए।
7.
8.
9.
10.
11.
12.
13.
14.
15. यदि
समीकरण निकाय को हल कीजिए।
16.
अध्याय 4 पर विविध प्रश्नावली
1. सिद्ध कीजिए कि सारणिक
2.
3. यदि
4. मान लीजिए
5.
6.
7. निम्नलिखित समीकरण निकाय को हल कीजिए
निम्नलिखित प्रश्नों 8 से 9 में सही उत्तर का चुनाव कीजिए।
8. यदि
(A)
(B)
(C)
(D)
9. यदि
(A)
(B)
(C)
(D)
सारांश
-
आव्यूह
का सारणिक के द्वारा दिया जाता है। -
आव्यूह
का सारणिक
- आव्यूह
के सारणिक का मान ( के अनुदिश प्रसरण से) निम्नलिखित
रूप द्वारा दिया जाता है।
और शीर्षों वाली त्रिभुज का क्षेत्रफल निम्नलिखित रूप द्वारा दिया जाता है:
-
दिए गए आव्यूह
के सारणिक के एक अवयव का उपसारणिक, वीं पंक्ति और वां स्तंभ हटाने से प्राप्त सारणिक होता है और इसे द्वारा व्यक्त किया जाता है। -
का सहखंड द्वारा दिया जाता है। -
के सारणिक का मान है और इसे एक पंक्ति या स्तंभ के अवयवों और उनके संगत सहखंडों के गुणनफल का योग करके प्राप्त किया जाता है। -
यदि एक पंक्ति (या स्तंभ) के अवयवों और अन्य दूसरी पंक्ति (या स्तंभ) के सहखंडों की गुणा कर दी जाए तो उनका योग शून्य होता है उदाहरणतया
-
यदि आव्यूह
, तो सहखंडज होता है, जहाँ का सहखंड है। -
, जहाँ कोटि का वर्ग आव्यूह है। -
यदि कोई वर्ग आव्यूह क्रमशः अव्युत्क्रमणीय या व्युत्क्रमणीय कहलाता है यदि
या -
यदि
, जहाँ एक वर्ग आव्यूह है तब का व्युत्क्रम होता है और या और इसलिए -
किसी वर्ग आव्यूह
का व्युत्क्रम है यदि और केवल यदि व्युत्क्रमणीय है। -
-
यदि
तब इन समीकरणों को
जहाँ
-
समीकरण
का अद्वितीय हल द्वारा दिया जाता है जहाँ -
समीकरणों का एक निकाय संगत या असंगत होता है यदि इसके हल का अस्तित्व है अथवा नहीं है।
-
आव्यूह समीकरण
में एक वर्ग आव्यूह के लिए
(i) यदि
(ii) यदि
(iii) यदि
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
गणना बोर्ड पर छड़ों का प्रयोग करके कुछ रैखिक समीकरणों की अज्ञात राशियों के गुणांकों को निरूपित करने की चीनी विधि ने वास्तव में विलोपन की साधारण विधि की खोज करने में सहायता की है। छड़ों की व्यवस्था क्रम एक सारणिक में संख्याओं की उचित व्यवस्था क्रम जैसी थी। इसलिए एक सारणिक की सरलीकरण में स्तंभों या पंक्तियों के घटाने का विचार उत्पन्न करने में चीनी प्रथम विचारकों में थे (‘Mikami, China, pp 30, 93).
सत्रहवीं शताब्दी के महान जापानी गणितज्ञ Seki Kowa द्वारा 1683 में लिखित पुस्तक ‘Kai Fukudai no Ho’ से ज्ञात होता है कि उन्हें सारणिकों और उनके प्रसार का ज्ञान था। परंतु उन्होंने इस विधि का प्रयोग केवल दो समीकरणों से एक राशि के विलोपन में किया परंतु युगपत रैखिक समीकरणों के हल ज्ञात करने में इसका सीधा प्रयोग नहीं किया था। ‘T. Hayashi, “The Fakudoi and Determinants in Japanese Mathematics,” in the proc. of the Tokyo Math. Soc., V.
Vendermonde पहले व्यक्ति थे जिन्होनें सारणिकों को स्वतंत्र फलन की तरह से पहचाना इन्हें विधिवत इसका अन्वेषक (संस्थापक) कहा जा सकता है। Laplace (1772) ने सारणिकों को इसके पूरक उपसारणिकों के रूप में व्यक्त करके प्रसरण की व्यापक विधि दी। 1773 में Lagrange ने दूसरे व तीसरे क्रम के सारणिकों को व्यवहत किया और सारणिकों के हल के अतिरिक्त उनका अन्यत्र भी प्रयोग किया। 1801 में Gauss ने संख्या के सिद्धांतों में सारणिकों का प्रयोग किया।
अगले महान योगदान देने वाले Jacques - Philippe - Marie Binet, (1812) थे जिन्होंने
उसी दिन Cauchy (1812) ने भी उसी विषय-वस्तु पर शोध प्रस्तुत किए। उन्होंने आज के व्यावहारिक सारणिक शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने Binet से अधिक संतुष्ट करने वाली गुणनफल प्रमेय की उपपत्ति दी।
इन सिद्धांतों पर महानतम योगदान वाले Carl Gustav Jacob Jacobi थे। इसके पश्चात सारणिक शब्द को अंतिम स्वीकृति प्राप्त हुई।