There is no permanent place in the world for ugly mathematics … . It may be very hard to define mathematical beauty but that is just as true of beauty of any kind, we may not know quite what we mean by a beautiful poem, but that does not prevent us from recognising one when we read it. - G. H. Hardy
1.1 भूमिका (Introduction)
स्मरण कीजिए कि कक्षा XI में, संबंध एवं फलन, प्रांत, सहप्रांत तथा परिसर आदि की अवधारणाओं का, विभिन्न प्रकार के वास्तविक मानीय फलनों और उनके आलेखों सहित परिचय कराया जा चुका है। गणित में शब्द ‘संबंध (Relation)’ की सकंल्पना को अंग्रेज़ी भाषा में इस शब्द के अर्थ से लिया गया है, जिसके अनुसार दो वस्तुएँ परस्पर संबंधित होती है, यदि उनके बीच एक अभिज्ञेय (Recognisable) कड़ी हो। मान लीजिए कि , किसी स्कूल की कक्षा XII के विद्यार्थियों का समुच्चय है तथा उसी स्कूल की कक्षा XI के विद्यार्थियों का समुच्चय हैं। अब समुच्चय से समुच्चय तक के संबंधों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं
(i) का भाई है ,
(ii) की बहन है ,

Lejeune Dirichlet (1805-1859)
(iii) की आयु की आयु से अधिक है ,
(iv) : पिछली अंतिम परीक्षा में द्वारा प्राप्त पूर्णांक द्वारा प्राप्त पूर्णांक से कम है \},
(v) उसी जगह रहता है जहाँ रहता है . तथापि से तक के किसी संबंध को अमूर्तरूप (Abstracting) से हम गणित में के एक स्वेच्छ (Arbitrary) उपसमुच्चय की तरह परिभाषित करते हैं।
यदि , तो हम कहते हैं कि संबंध के अंतर्गत से संबंधित है और हम इसे लिखते हैं। सामान्यतः, यदि , तो हम इस बात की चिंता नहीं करते हैं कि तथा के बीच कोई अभिजेय कड़ी है अथवा नहीं है। जैसा कि कक्षा XI में देख चुके हैं, फलन एक विशेष प्रकार के संबंध होता हैं।
इस अध्याय में, हम विभिन्न प्रकार के संबंधों एवं फलनों, फलनों के संयोजन (composition), व्युत्क्रमणीय (Invertible) फलनों और द्विआधारी संक्रियाओं का अध्ययन करेंगे।
1.2 संबंधों के प्रकार (Types of Relations)
इस अनुच्छेद में हम विभिन्न प्रकार के संबंधों का अध्ययन करेंगे। हमें ज्ञात है कि किसी समुच्चय में संबंध, का एक उपसमुच्चय होता है। अतः रिक्त समुच्चय तथा स्वयं, दो अन्त्य संबंध हैं। स्पष्टीकरण हेतु, द्वारा प्रदत्त समुच्चय पर परिभाषित एक संबंध पर विचार कीजिए। यह एक रिक्त समुच्चय है, क्योंकि ऐसा कोई भी युग्म (pair) नहीं है जो प्रतिबंध को संतुष्ट करता है। इसी प्रकार , संपूर्ण समुच्चय के तुल्य है, क्योंकि के सभी युग्म को संतुष्ट करते हैं। यह दोनों अन्त्य के उदाहरण हमें निम्नलिखित परिभाषाओं के लिए प्रेरित करते हैं।
परिभाषा 1 समुच्चय पर परिभाषित संबंध एक रिक्त संबंध कहलाता है, यदि का कोई भी अवयव के किसी भी अवयव से संबंधित नहीं है, अर्थात् .
परिभाषा 2 समुच्चय पर परिभाषित संबंध , एक सार्वत्रिक (universal) संबंध कहलाता है, यदि का प्रत्येक अवयव के सभी अवयवों से संबंधित है, अर्थात् .
रिक्त संबंध तथा सार्वत्रिक संबंध को कभी-कभी तुच्छ (trivial) संबंध भी कहते हैं।
टिप्पणी कक्षा XI में विद्यार्थीगण सीख चुके हैं कि किसी संबंध को दो प्रकार से निरूपित किया जा सकता है, नामतः रोस्टर विधि तथा समुच्चय निर्माण विधि। तथापि बहुत से लेखकों द्वारा समुच्चय पर परिभाषित संबंध को द्वारा भी निरूपित किया जाता है, यदि और केवल यदि हो। जब कभी सुविधाजनक होगा, हम भी इस संकेतन (notation) का प्रयोग करेंगे।
यदि , तो हम कहते हैं कि से संबंधित है’ और इस बात को हम द्वारा प्रकट करते हैं।
एक अत्यन्त महत्वपूर्ण संबंध, जिसकी गणित में एक सार्थक (significant) भूमिका है, तुल्यता संबंध (Equivalence Relation) कहलाता है। तुल्यता संबंध का अध्ययन करने के लिए हम पहले तीन प्रकार के संबंधों, नामतः स्वतुल्य (Reflexive), सममित (Symmetric) तथा संक्रामक (Transitive) संबंधों पर विचार करते हैं।
परिभाषा 3 समुच्चय पर परिभाषित संबंध ;
(i) स्वतुल्य (reflexive) कहलाता है, यदि प्रत्येक के लिए ,
(ii) सममित (symmetric) कहलाता है, यदि समस्त के लिए से प्राप्त हो।
(iii) संक्रामक (transitive) कहलाता है, यदि समस्त, के लिए तथा से प्राप्त हो।
परिभाषा पर परिभाषित संबंध एक तुल्यता संबंध कहलाता है, यदि स्वतुल्य, सममित तथा संक्रामक है।
(i) के समस्त अवयव एक दूसरे से संबंधित हैं तथा के समस्त अवयव एक दूसरे से संबंधित हैं।
(ii) का कोई भी अवयव के किसी भी अवयव से संबंधित नहीं है और विलोमतः का कोई भी अवयव के किसी भी अवयव से संबंधित नहीं है।
(iii) तथा असंयुक्त है और है।
उपसमुच्चय , शून्य को अंतर्विष्ट (contain) करने वाला तुल्यता-वर्ग (Equivalence Class) कहलाता है और जिसे प्रतीक से निरूपित करते हैं। इसी प्रकार को अंतर्विष्ट करने वाला तुल्यता-वर्ग है, जिसे [1] द्वारा निरूपित करते हैं। नोट कीजिए कि और
. वास्तव में, जो कुछ हमने ऊपर देखा है, वह किसी भी समुच्चय में एक स्वेच्छ तुल्यता संबंध के लिए सत्य होता है। किसी प्रदत्त स्वेच्छ समुच्चय में प्रदत्त एक स्वेच्छ (arbitrary) तुल्यता संबंध को परस्पर असंयुक्त उपसमुच्चयों में विभाजित कर देता है, जिन्हें का विभाजन (Partition) कहते हैं ओर जो निम्नलिखित प्रतिबंधों को संतुष्ट करते हैं:
(i) समस्त के लिए के सभी अवयव एक दूसरे से संबंधित होते हैं।
(ii) का कोई भी अवयव, के किसी भी अवयव से संबंधित नहीं होता है, जहाँ
(iii) तथा
उपसमुच्चय तुल्यता-वर्ग कहलाते हैं। इस स्थिति का रोचक पक्ष यह है कि हम विपरीत क्रिया भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए के उन उपविभाजनों पर विचार कीजिए, जो के ऐसे तीन परस्पर असंयुक्त उपसमुच्चयों तथा द्वारा प्रदत्त हैं, जिनका सम्मिलन (Union) है,
में एक संबंध को विभाजित करता है परिभाषित कीजिए। उदाहरण 5 में प्रयुक्त तर्क के अनुसार हम सिद्ध कर सकते हैं कि एक तुल्यता संबंध हैं। इसके अतिरिक्त के उन सभी पूर्णांकों के समुच्चय के बराबर है, जो शून्य से संबंधित हैं, के उन सभी पूर्णांकों के समुच्चय के बराबर है, जो 1 से संबंधित हैं और के उन सभी पूर्णांकों के समुच्चय बराबर है, जो 2 से संबंधित हैं। अत: और . वास्तव में , और , जहाँ .
प्रश्नावली 1.1
1. निर्धारित कीजिए कि क्या निम्नलिखित संबंधों में से प्रत्येक स्वतुल्य, सममित तथा संक्रामक हैं :
(i) समुच्चय में संबंध , इस प्रकार परिभाषित है कि
(ii) प्राकृत संख्याओं के समुच्चय में तथा द्वारा परिभाषित संबंध .
(iii) समुच्चय में भाज्य है से द्वारा परिभाषित संबंध है।
(iv) समस्त पूर्णांकों के समुच्चय में एक पूर्णांक है द्वारा परिभाषित संबंध R.
(v) किसी विशेष समय पर किसी नगर के निवासियों के समुच्चय में निम्नलिखित संबंध
(a) तथा एक ही स्थान पर कार्य करते हैं
(b) तथा एक ही मोहल्ले में रहते हैं
(c) से ठीक-ठीक 7 सेमी लंबा है
(d) की पत्नी है
(e) के पिता हैं
2. सिद्ध कीजिए कि वास्तविक संख्याओं के समुच्चय में , द्वारा परिभाषित संबंध , न तो स्वतुल्य है, न सममित हैं और न ही संक्रामक है।
3. जाँच कीजिए कि क्या समुच्चय में द्वारा परिभाषित संबंध स्वतुल्य, सममित या संक्रामक है।
4. सिद्ध कीजिए कि में , द्वारा परिभाषित संबंध स्वतुल्य तथा संक्रामक है किंतु सममित नहीं है।
5. जाँच कीजिए कि क्या में द्वारा परिभाषित संबंध स्वतुल्य, सममित अथवा संक्रामक है?
6. सिद्ध कीजिए कि समुच्चय में द्वारा प्रदत्त संबंध सममित है किंतु न तो स्वतुल्य है और न संक्रामक है।
7. सिद्ध कीजिए कि किसी कॉलेज के पुस्तकालय की समस्त पुस्तकों के समुच्चय में तथा में पेजों की संख्या समान है द्वारा प्रदत्त संबंध एक तुल्यता संबंध है।
8. सिद्ध कीजिए कि में, सम है द्वारा प्रदत्त संबंध एक तुल्यता संबंध है। प्रमाणित कीजिए कि के सभी अवयव एक दूसरे से संबंधित हैं और समुच्चय के सभी अवयव एक दूसरे से संबंधित हैं परंतु का कोई भी अवयव के किसी अवयव से संबंधित नहीं है।
9. सिद्ध किजिए कि समुच्चय , में दिए गए निम्नलिखित संबंधों में से प्रत्येक एक तुल्यता संबंध है:
(i) का एक गुणज है ,
(ii) ,
प्रत्येक दशा में 1 से संबंधित अवयवों को ज्ञात कीजिए।
10. ऐसे संबंध का उदाहरण दीजिए, जो
(i) सममित हो परंतु न तो स्वतुल्य हो और न संक्रामक हो।
(ii) संक्रामक हो परंतु न तो स्वतुल्य हो और न सममित हो। .
(iii) स्वतुल्य तथा सममित हो किंतु संक्रामक न हो।
(iv) स्वतुल्य तथा संक्रामक हो किंतु सममित न हो।
(v) सममित तथा संक्रामक हो किंतु स्वतुल्य न हो।
11. सिद्ध कीजिए कि किसी समतल में स्थित बिंदुओं के समुच्चय में, : बिंदु की मूल बिंदु से दूरी, बिंदु की मूल बिंदु से दूरी के समान है द्वारा प्रदत्त संबंध एक तुल्यता संबंध है। पुनः सिद्ध कीजिए कि बिंदु से संबंधित सभी बिंदुओं का समुच्चय से होकर जाने वाले एक ऐसे वृत्त को निरूपित करता है, जिसका केंद्र मूलबिंदु पर है।
12. सिद्ध कीजिए कि समस्त त्रिभुजों के समुच्चय में, के समरूप है द्वारा परिभाषित संबंध एक तुल्यता संबंध है। भुजाओं वाले समकोण त्रिभुज , भुजाओं वाले समकोण त्रिभुज तथा भुजाओं वाले समकोण त्रिभुज पर विचार कीजिए। और में से कौन से त्रिभुज परस्पर संबंधित हैं?
13. सिद्ध कीजिए कि समस्त बहुभुजों के समुच्चय में, तथा की भुजाओं की संख्या समान है प्रकार से परिभाषित संबंध एक तुल्यता संबंध है। 3,4 , और 5 लंबाई की भुजाओं वाले समकोण त्रिभुज से संबंधित समुच्चय के सभी अवयवों का समुच्चय ज्ञात कीजिए।
14. मान लीजिए कि -तल में स्थित समस्त रेखाओं का समुच्चय है और में समान्तर है के \} द्वारा परिभाषित संबंध है। सिद्ध कीजिए कि एक तुल्यता संबंध है। रेखा से संबंधित समस्त रेखाओं का समुच्चय ज्ञात कीजिए।
15. मान लीजिए कि समुच्चय में, , द्वारा परिभाषित संबंध है। निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनिए।
(A) स्वतुल्य तथा सममित है किंतु संक्रामक नहीं है।
(B) स्वतुल्य तथा संक्रामक है किंतु सममित नहीं है।
(C) सममित तथा संक्रामक है किंतु स्वतुल्य नहीं है।
(D) एक तुल्यता संबंध है।
16. मान लीजिए कि समुच्चय में, द्वारा प्रदत्त संबंध है। निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनिए:
(A)
(B)
(C)
(D)
1.3 फलनों के प्रकार (Types of Functions)
फलनों की अवधारणा, कुछ विशेष फलन जैसे तत्समक फलन, अचर फलन, बहुपद फलन, परिमेय फलन, मापांक फलन, चिहन फलन आदि का वर्णन उनके आलेखों सहित कक्षा XI में किया जा चुका है।
दो फलनों के योग, अंतर, गुणा तथा भाग का भी अध्ययन किया जा चुका है। क्योंकि फलन की संकल्पना गणित तथा अध्ययन की अन्य शाखाओं (Disciplines) में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, इसलिए हम फलन के बारे में अपना अध्ययन वहाँ से आगे बढ़ाना चाहते हैं, जहाँ इसे पहले समाप्त किया था। इस अनुच्छेद में, हम विभिन्न प्रकार के फलनों का अध्ययन करेंगे।
निम्नलिखित आकृतियों द्वारा दर्शाए गए फलन तथा पर विचार कीजिए।
आकृति 1.2 में हम देखते हैं कि के भिन्न (distinct) अवयवों के, फलन के अंतर्गत, प्रतिबिंब भी भिन्न हैं, किंतु के अंतर्गत दो भिन्न अवयवों 1 तथा 2 के प्रतिबिंब एक ही हैं नामतः है। पुन: में कुछ ऐसे अवयव है जैसे तथा जो के अंतर्गत के किसी भी अवयव के प्रतिबिंब नहीं हैं, जबकि के अंतर्गत के सभी अवयव के किसी न किसी अवयव के प्रतिबिंब हैं।
उपर्युक्त परिचर्चा से हमें निम्नलिखित परिभाषाएँ प्राप्त होती हैं।
परिभाषा 5 एक फलन एकैकी (one-one) अथवा एकैक (injective) फलन कहलाता है, यदि के अंतर्गत के भिन्न अवयवों के प्रतिबिंब भी भिन्न होते हैं, अर्थात् प्रत्येक , के लिए का तात्पर्य है कि , अन्यथा एक बहुएक (many-one) फलन कहलाता है।
आकृति 1.2 (i) में फलन एकैकी फलन है तथा आकृति 1.2 (ii) में एक बहुएक फलन है।

(i)

(iii)

(ii)

आकृति 1.2
परिभाषा 6 फलन आच्छादक (onto) अथवा आच्छादी (surjective) कहलाता है, यदि के अंतर्गत का प्रत्येक अवयव, के किसी न किसी अवयव का प्रतिबिंब होता है, अर्थात् प्रत्येक , के लिए, में एक ऐसे अवयव का अस्तित्व है कि .
आकृति 1.2 (iii) में, फलन आच्छादक है तथा आकृति 1.2 (i) में, फलन आच्छादक नहीं है, क्योंकि के अवयव , तथा के अंतर्गत के किसी भी अवयव के प्रतिबिंब नहीं हैं।
टिप्पणी एक आच्छादक फलन है, यदि और केवल यदि का परिसर (range) . परिभाषा 7 एक फलन एक एकैकी तथा आच्छादक (one-one and onto) अथवा एकैकी आच्छादी (bijective) फलन कहलाता है, यदि एकैकी तथा आच्छादक दोनों ही होता है।
आकृति 1.2 (iv) में, फलन एक एकैकी तथा आच्छादी फलन है।
टिप्पणी उदाहरण 13 तथा 14 में प्राप्त परिणाम किसी भी स्वेच्छ परिमित (finite) समुच्चय , के लिए सत्य है, अर्थात् एक एकैकी फलन अनिवार्यतः आच्छादक होता है तथा प्रत्येक परिमित समुच्चय के लिए एक आच्छादक फलन अनिवार्यतः एकैकी होता है। इसके
विपरीत उदाहरण 8 तथा 10 से स्पष्ट होता है कि किसी अपरिमित (Infinite) समुच्चय के लिए यह सही नहीं भी हो सकता है। वास्तव में यह परिमित तथा अपरिमित समुच्चयों के बीच एक अभिलक्षणिक (characteristic) अंतर है।
प्रश्नावली 1.2
1. सिद्ध कीजिए कि द्वारा परिभाषित फलन एकैकी तथा आच्छादक है, जहाँ सभी ऋणेतर वास्तविक संख्याओं का समुच्चय है। यदि प्रांत को से बदल दिया जाए, जब कि सहप्रांत पूर्ववत ही रहे, तो भी क्या यह परिणाम सत्य होगा?
2. निम्नलिखित फलनों की एकैक (Injective) तथा आच्छादी (Surjective) गुणों की जाँच कीजिए:
(i) द्वारा प्रदत्त फलन है।
(ii) द्वारा प्रदत्त फलन है।
(iii) द्वारा प्रदत्त फलन है।
(iv) द्वारा प्रदत्त फलन है।
(v) द्वारा प्रदत्त फलन है।
3. सिद्ध कीजिए कि द्वारा प्रदत्त महत्तम पूर्णांक फलन , न तो एकैकी है और न आच्छादक है, जहाँ से कम या उसके बराबर महत्तम पूर्णांक को निरूपित करता है।
4. सिद्ध कीजिए कि द्वारा प्रदत्त मापांक फलन , न तो एकैकी है और न आच्छादक है, जहाँ बराबर , यदि धन या शून्य है तथा बराबर , यदि ॠण है।
5. सिद्ध कीजिए कि ,
द्वारा प्रदत्त चिहन फलन न तो एकैकी है और न आच्छादक है।
6. मान लीजिए कि तथा से तक एक फलन है। सिद्ध कीजिए कि एकैकी है।
7. निम्नलिखित में से प्रत्येक स्थिति में बतलाइए कि क्या दिए हुए फलन एकैकी, आच्छादक अथवा एकैकी आच्छादी (bijective) हैं। अपने उत्तर का औचित्य भी बतलाइए।
(i) द्वारा परिभाषित फलन है।
(ii) द्वारा परिभाषित फलन है।
8. मान लीजिए कि तथा दो समुच्चय हैं। सिद्ध कीजिए कि , इस प्रकार कि एक एकैकी आच्छादी (bijective) फलन है।
9. मान लीजिए कि समस्त के लिए,
द्वारा परिभाषित एक फलन है। बतलाइए कि क्या फलन एकैकी आच्छादी (bijective) है। अपने उत्तर का औचित्य भी बतलाइए।
10. मान लीजिए कि तथा हैं। द्वारा परिभाषित फलन पर विचार कीजिए। क्या एकैकी तथा आच्छादक है? अपने उत्तर का औचित्य भी बतलाइए।
11. मान लीजिए कि द्वारा परिभाषित है। सही उत्तर का चयन कीजिए।
(A) एकैकी आच्छादक है
(B) बहुएक आच्छादक है
(C) एकैकी है किंतु आच्छादक नहीं है
(D) न तो एकैकी है और न आच्छादक है।
12. मान लीजिए कि द्वारा परिभाषित फलन है। सही उत्तर चुनिए:
(A) एकैकी आच्छादक है
(B) बहुएक आच्छादक है
(C) एकैकी है परंतु आच्छादक नहीं है
(D) न तो एकैकी है और न आच्छादक है
1.4 फलनों का संयोजन तथा व्युत्क्रमणीय फलन (Composition of Functions and Invertible Function)
परिभाषा 8 मान लीजिए कि तथा दो फलन हैं। तब और का संयोजन, द्वारा निरूपित होता है, तथा फलन द्वारा परिभाषित होता है।

आकृति 1.5
परिभाषा 9 फलन व्युत्क्रमणीय (Invertible) कहलाता है, यदि एक फलन का अस्तित्व इस प्रकार है कि तथा है। फलन को फलन का प्रतिलोम (Inverse) कहते हैं और इसे प्रतीक द्वारा प्रकट करते हैं।
अतः, यदि व्युत्क्रमणीय है, तो अनिवार्यतः एकैकी तथा आच्छादक होता है और विलोमतः, यदि एकैकी तथा आच्छादक है, तो अनिवार्यतः व्युत्क्रमणीय होता है। यह तथ्य, को एकैकी तथा आच्छादक सिद्ध करके, व्युत्क्रमणीय प्रमाणित करने में महत्वपूर्ण रूप से सहायक होता है, विशेष रूप से जब का प्रतिलोम वास्तव में ज्ञात नहीं करना हो।
उदाहरण 17 मान लीजिए कि , द्वारा परिभाषित एक फलन है, जहाँ किसी के लिए । सिद्ध कीजिए कि व्युत्क्रमणीय है। प्रतिलोम फलन भी ज्ञात कीजिए।
हल के किसी स्वेच्छ अवयव पर विचार कीजिए। , की परिभाषा द्वारा, प्रांत के किसी अवयव के लिए है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि है। अब द्वारा
को परिभाषित कीजिए। इस प्रकार तथा है। इससे स्पष्ट होता है कि तथा , जिसका तात्पर्य यह हुआ कि व्युत्क्रमणीय है और फलन फलन का प्रतिलोम है।
अध्याय 1 पर विविध प्रश्नावली
1. सिद्ध कीजिए कि जहाँ द्वारा परिभाषित फलन एकैकी तथा आच्छादक है।
2. सिद्ध कीजिए कि द्वारा प्रदत्त फलन एकैक (Injective) है।
3. एक अरिक्त समुच्चय दिया हुआ है। जो कि के समस्त उपसमुच्चयों का समुच्चय है, पर विचार कीजिए। निम्नलिखित तरह से में एक संबंध परिभाषित कीजिए:
में उपसमुच्चयों के लिए, , यदि और केवल यदि है। क्या में एक तुल्यता संबंध है? अपने उत्तर का औचित्य भी लिखिए।
4. समुच्चय से स्वयं तक के समस्त आच्छादक फलनों की संख्या ज्ञात कीजिए।
5. मान लीजिए कि और , क्रमश: तथा द्वारा परिभाषित फलन हैं। क्या तथा समान हैं? अपने उत्तर का औचित्य भी बतलाइए। (संकेत : नोट कीजिए कि दो फलन तथा समान कहलाते हैं यदि हो।
6. यदि हो तो ऐसे संबंध जिनमें अवयव तथा हों और जो स्वतुल्य तथा सममित हैं किंतु संक्रामक नहीं है, की संख्या है
(A) 1
(B) 2
(C) 3
(D) 4
7. यदि हो तो अवयव वाले तुल्यता संबंधों की संख्या है।
(A) 1
(B) 2
(C) 3
(D) 4
सारांश
इस अध्याय में, हमने विविध प्रकार के संबंधों, फलनों तथा द्विआधारी संक्रियाओं का अध्ययन किया है। इस अध्याय की मुख्य विषय-वस्तु निम्नलिखित है:
-
में, द्वारा प्रदत्त संबंध , रिक्त संबंध होता है।
-
में, द्वारा प्रदत्त संबंध , सार्वत्रिक संबंध है।
-
में, ऐसा संबंध कि , स्वतुल्य संबंध है।
-
में, इस प्रकार का संबंध , जो प्रतिबंध का तात्पर्य है कि को संतुष्ट करता है सममित संबंध है।
-
में, प्रतिबंध तथा को संतुष्ट करने वाला संबंध संक्रामक संबंध है।
-
में, संबंध , जो स्वतुल्य, सममित तथा संक्रामक है, तुल्यता संबंध है।
-
में, किसी तुल्यता संबंध के लिए के संगत तुल्यता वर्ग का वह उपसमुच्चय है जिसके सभी अवयव से संबंधित हैं।
-
एक फलन एकैकी (अथवा एकैक) फलन है, यदि
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एक फलन आच्छादक (अथवा आच्छादी ) फलन है, यदि किसी प्रदत्त , इस प्रकार कि
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एक फलन व्युत्क्रमणीय है, यदि और केवल यदि एकैकी तथा आच्छादक है।
-
किसी प्रदत्त परिमित समुच्चय के लिए फलन एकैकी (तदानुसार आच्छादक) होता है, यदि और केवल यदि आच्दछादक (तदानुसार एकैकी) है। यह किसी परिमित समुच्चय का अभिलाक्षणिक गुणधर्म (Characterstic Property) है। यह अपरिमित समुच्चय के लिए सत्य नहीं है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
फलन की संकल्पना, R. Descartes (सन् 1596-1650 ई.) से प्रारंभ हो कर एक लंबे अंतराल में विकसित हुई है। Descartes ने सन् 1637 ई. में अपनी पांडुलिपि “Geometrie” में शब्द ‘फलन’ का प्रयोग, ज्यामितीय वक्रों, जैसे अतिपरवलय (Hyperbola), परिवलय (Parabola) तथा दीर्घवृत्त (Ellipse), का अध्ययन करते समय, एक चर राशि के धन पूर्णांक घात के अर्थ में किया था। James Gregory (सन् 1636-1675 ई.) ने अपनी कृति “Vera Circuliet Hyperbolae Quadratura” (सन् 1667 ई.) में, फलन को एक ऐसी राशि माना था, जो किसी अन्य राशि पर बीजीय अथवा अन्य संक्रियाओं को उत्तरोत्तर प्रयोग करने से प्राप्त होती है। बाद में G. W. Leibnitz (1646-1716 ई.) नें 1673 ई. में लिखित अपनी पांडुलिपि “Methodus tangentium inversa, seu de functionibus” में शब्द ‘फलन’ को किसी ऐसी राशि के अर्थ में प्रयोग किया, जो किसी वक्र के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक इस प्रकार परिवर्तित होती रहती है, जैसे वक्र पर बिंदु के निर्देशांक, वक्र की प्रवणता, वक्र की स्पर्शी तथा अभिलंब परिवर्तित होते हैं। तथापि अपनी कृति “Historia” (1714 ई.) में Leibnitz ने फलन को एक चर पर आधारित राशि के रूप में प्रयोग किया था। वाक्यांश ’ का फलन’ प्रयोग में लाने वाले वे सर्वप्रथम व्यक्ति थे। John Bernoulli (1667-1748 ई.) ने सर्वप्रथम 1718 ई. में संकेतन (Notation) को वाक्यांश ’ का फलन’ को प्रकट करने के लिए किया था। परंतु फलन को निरूपित करने के लिए प्रतीकों, जैसे का व्यापक प्रयोग Leonhard Euler (1707-1783 ई.) द्वारा 1734 ई. में अपनी पांडुलिपि “Analysis Infinitorium” के प्रथम खण्ड में किया गया था। बाद में Joeph Louis Lagrange (1736-1813 ई.) ने 1793 ई. में अपनी पांडुलिपि “Theorie des functions analytiques” प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने विश्लेषणात्मक (Analytic) फलन के बारे में परिचर्चा की थी तथा संकेतन आदि का प्रयोग के भिन्न-भिन्न फलनों के लिए किया था। तदोपरांत Lejeunne Dirichlet (1805-1859 ई.) ने फलन की परिभाषा दी। जिसका प्रयोग उस समय तक होता रहा जब तक वर्तमान काल में फलन की समुच्चय सैद्धांतिक परिभाषा का प्रचलन नहीं हुआ, जो Georg Cantor (1845-1918 ई) द्वारा विकसित समुच्चय सिद्धांत के बाद हुआ। वर्तमान काल में प्रचलित फलन की समुच्चय सैद्धांतिक परिभाषा Dirichlet द्वारा प्रदत्त फलन की परिभाषा का मात्र अमूर्तीकरण (Abstraction) है।