Mathematics is a most exact science and its conclusions are capable of absolute proofs. - C.P. STEINMETZ

7.1 भूमिका (Introduction)

पिछली कक्षाओं में हमने सीखा है कि किस प्रकार a+b तथा ab जैसे द्विपदों का वर्ग व घन ज्ञात करते हैं। इनके सूत्रों का प्रयोग करके हम संख्याओं के वर्गों व घनों का मान ज्ञात कर सकते हैं जैसे (98)2=[(1002)]2,(999)3=[(10001)3], इत्यादि।

फिर भी, अधिक घात वाली संख्याओं जैसे (98)5,(101)6 इत्यादि की गणना, क्रमिक गुणनफल द्वारा अधिक जटिल हो जाती है। इस जटिलता को द्विपद प्रमेय द्वारा दूर किया गया।

इससे हमें (a+b)n के प्रसार की आसान विधि प्राप्त होती है जहाँ घातांक n एक पूर्णांक या परिमेय संख्या है। इस अध्याय में हम केवल धन पूर्णांकों के लिए द्विपद प्रमेय का अध्ययन करेंगें।

Blaise Pascal (1623-1662 A.D.)

7.2 धन पूर्णांकों के लिए द्विपद प्रमेय (Binomial Theorem for Positive Integral

Indices)

आइए पूर्व में की गई निम्नलिखित सर्वसमिकाओं पर हम विचार करें:

(a+b)0=1;a+b0(a+b)1=a+b(a+b)2=a2+2ab+b2(a+b)3=a3+3a2b+3ab2+b3(a+b)4=(a+b)3(a+b)=a4+4a3b+6a2b2+4ab3+b4

इन प्रसारों में हम देखते हैं कि

(i) प्रसार में पदों की कुल संख्या, घातांक से 1 अधिक है। उदाहरणतः (a+b)2 के प्रसार में (a+b)2 का घात 2 है जबकि प्रसार में कुल पदों की संख्या 3 है।

(ii) प्रसार के उत्तरोत्तर पदों में प्रथम a की घातें एक के क्रम से घट रही हैं जबकि द्वितीय राशि b की घातें एक के क्रम से बढ़ रही हैं। (iii) प्रसार के प्रत्येक पद में a तथा b की घातों का योग समान है और a+b की घात के बराबर है।

अब हम a+b के उपरोक्त विस्तारों में विभिन्न पदों के गुणांकों को निम्न प्रकार व्यवस्थित करते हैं ( आकृति 7.1)

घातांक गुणांक
0 1
1 1 1
2 1 2 1
3 1 3 3 1
4 1 4 6 4 1

आकृति 7.1

क्या हम इस सारणी में अगली पंक्ति लिखने के लिए किसी प्रतिरूप का अवलोकन करते हैं? हाँ। यह देखा जा सकता है कि घात 1 की पंक्ति में लिखे 1 और 1 का योग घात 2 की पंक्ति के लिए 2 देता है। घात 2 की पंक्ति में लिखे 1 और 2 तथा 2 और 1 का योग घात 3 की पंक्ति के लिए 3 और 3 देता है और आगे भी इसी प्रकार 1 पुनः प्रत्येक पंक्ति के प्रारंभ व अंत में स्थित है। इस प्रक्रिया को किसी भी इच्छित घात तक के लिए लिखा जा सकता है।

हम आकृति 7.2 में दिए गए प्रतिरूप को कुछ और पंक्तियाँ लिखकर आगे बढ़ा सकते हैं।

पास्कल त्रिभुज

आकृति 7.2 पास्कल त्रिभुज

आकृति 7.2 में दी गई सारणी को अपनी रूचि के अनुसार किसी भी घात तक बढ़ा सकते हैं। यह संरचना एक ऐसे त्रिभुज की तरह लगती है जिसके शीर्ष पर 1 लिखा है और दो तिरछी भुजाएं नीचे की ओर जा रही हैं। संख्याओं का व्यूह फ्रांसीसी गणितज्ञ Blaise Pascal के नाम पर पास्कल त्रिभुज के नाम से प्रसिद्ध है। इसे पिंगल के मेरुप्रस्त्र के नाम से भी जाना जाता है।

एक द्विपद की उच्च घातों का प्रसार भी पास्कल के त्रिभुज के प्रयोग द्वारा संभव है। आइए हम पास्कल त्रिभुज का प्रयोग कर के (2x+3y)5 का विस्तार करें। घात 5 की पंक्ति है:

15101051

इस पंक्ति का, और हमारे परीक्षणों (i), (ii), (iii), का प्रयोग करते हुए हम पाते हैं कि

(2x+3y)5=(2x)5+5(2x)4(3y)+10(2x)3(3y)2+10(2x)2(3y)3+5(2x)(3y)4+(3y)5=32x5+240x4y+720x3y2+1080x2y3+810xy4+243y5

अब यदि हम (2x+3y)12, का प्रसार ज्ञात करना चाहें तो पहले हमें घात 12 की पंक्ति ज्ञात करनी होगी। इसे पास्कल त्रिभुज की पंक्तियों को घात 12 तक की सभी पंक्तियाँ लिख कर प्राप्त किया जा सकता है। यह थोड़ी सी लंबी विधि है। जैसा कि आप देखते हैं कि और भी उच्च घातों का विस्तार करने के लिए विधि और अधिक कठिन हो जाएगी।

अतः हम एक ऐसा नियम ढूँढने का प्रयत्न करते हैं जिससे पास्कल त्रिभुज की ऐच्छिक पंक्ति से पहले की सारी पंक्तियों को लिखे बिना ही, द्विपद के किसी भी घात का विस्तार ज्ञात कर सकें।

इसके लिए हम पहले पढ़ चुके ‘संचय’ के सूत्रों का प्रयोग करके, पास्कल त्रिभुज में लिखी संख्याओं को पुनः लिखते हैं। हम जानते हैं कि

nCr=n!r!(nr)!,0rn जहाँ n ॠणेतर पूर्णांक है। nCo=1=nCn

अब पास्कल त्रिभुज को पुनः इस प्रकार लिख सकते हैं (आकृति 7.3)

0

3

4

5 गुणांक

0C0

(=1)

1C01C1(=1)(=1)

(=1)(=2)(=1)

5C05C1(=15C2(5C3(=55C4(=1)5C5

आकृति 7.3 पास्कल त्रिभुज

उपरोक्त प्रतिरूप (pattern) को देखकर, पूर्व पंक्तियों को लिखे बिना हम पास्कल त्रिभुज की किसी भी घात के लिए पंक्ति को लिख सकते हैं। उदाहरणतः घात 7 के लिए पंक्ति होगी:

7C07C17C27C37C47C57C67C7

इस प्रकार, इस पंक्ति और प्रेक्षण (i), (ii) व (iii), का प्रयोग करके हम पाते हैं,

(a+b)7=7C0a7+7C1a6b+7C2a5b2+7C3a4b3+7C4a3b4+7C5a2b5+7C6ab6+7C7b7

इन प्रेक्षणों का उपयोग करके एक द्विपद के किसी ऋणेतर पूर्णांक n के लिए प्रसार दिखाया जा सकता है। अब हम एक द्विपद के किसी भी (ऋणेतर पूर्णांक) घात के प्रसार को लिखने की अवस्था में हैं।

7.2.1 द्विपद प्रमेय किसी धन पूर्णांक n के लिए (Binomial theorem for any positive integer n )

(a+b)n=nC0an+nC1an1b+nC2an2b2++nCn1abn1+nCnbn

उपपत्ति इस प्रमेय की उपपत्ति गणितीय आगमन सिद्धांत द्वारा प्राप्त की जाती है।

मान लीजिए कथन P(n) निम्नलिखित है:

P(n):(a+b)n=nC0an+nC1an1b+nC2an2b2++nCn1abn1+nCnbnn=1 लेने पर P(1):(a+b)1=1C0a1+1C1b1=a+b

अतः P(1) सत्य है।

मान लीजिए कि P(k), किसी धन पूर्णांक k के लिए सत्य है, अर्थात्

(1)(a+b)k=kC0ak+kC1ak1b+kC2ak2b2++kCkbk

हम सिद्ध करेंगें कि P(k+1) भी सत्य है अर्थात्,

(a+b)k+1=k+1C0ak+1+k+1C1akb+k+1C2ak1b2++k+1Ck+1bk+1

अब,

(a+b)k+1=(a+b)(a+b)k=(a+b)(kC0ak+kC1ak1b+kC2ak2 b2++kCk1abk1+kCkbk)[(1) से ]=kC0ak+1+kC1akb+kC2ak1 b2++kCk1a2bk1+kCkabk+kC0akb+kC1ak1b2+kC2ak2b3++kCk1abk+kCkbk+1 [वास्तवक गुणा द्वारा] =kC0ak+1+(kC1+kC0)akb+(kC2+kC1)ak1b2++(kCk+kCk1)abk+kCkbk+1 (समान पदों के समूह बनाकर) =k+1C0ak+1+k+1C1akb+k+1C2ak1 b2++k+1Ckabk+k+1Ck+1bk+1

(k+1C0=1,kCr+kCr1=k+1Cr और kCk=1=k+1Ck+1 का प्रयोग करके )

इससे सिद्ध होता है कि यदि P(k) भी सत्य है तो P(k+1) सत्य है। इसलिए, गणितीय आगमन सिद्धांत द्वारा, प्रत्येक धन पूर्णांक n के लिए P(n) सत्य है।

हम इस प्रमेय को (x+2)6 के प्रसार का उदाहरण लेकर समझते हैं।

(x+2)6=6C0x6+6C1x52+6C2x422+6C3x323+6C4x224+6C5x25+6C626=x6+12x5+60x4+160x3+240x2+192x+64

इस प्रकार, (x+2)6=x6+12x5+60x4+160x3+240x2+192x+64.

प्रेक्षण

1. nC0anb0+nC1an1b1++nCranrbr++nCnannbn, जहाँ b0=1=ann

का संकेतन k=0nnCkankbk है।

अतः इस प्रमेय को इस प्रकार भी लिख सकते हैं।

(a+b)n=k=0nnCkankbk

2. द्विपद प्रमेय में आने वाले गुणांक nCr को द्विपद गुणांक कहते हैं।

3. (a+b)n के प्रसार में पदों की संख्या (n+1) है अर्थात् घातांक से 1 अधिक है।

4. प्रसार के उत्तरोत्तर पदों में, a की घातें एक के क्रम से घट रही हैं। यह पहले पद में n, दूसरे पद में (n1) और फिर इसी प्रकार अंतिम पद में शून्य है। ठीक उसी प्रकार b की घातें एक के क्रम से बढ़ रही हैं, पहले पद में शून्य से शुरू होकर, दूसरे पद में 1 और फिर इसी प्रकार अंतिम पद में n पर समाप्त होती हैं।

5. (a+b)n, के प्रसार में, a तथा b की घातों का योग, पहले पद में n+0=n, दूसरे पद में (n1)+1=n और इसी प्रकार अंतिम पद में 0+n=n है। अतः यह देखा जा सकता है कि प्रसार के प्रत्येक पद में a तथा b की घातों का योग n है।

7.2.2 (a+b)n के प्रसार की कुछ विशिष्ट स्थितियाँ (Some special cases)

(i) a=x तथा b=y, लेकर हम पाते हैं;

(xy)n=[x+(y)]n=nC0xn+nC1xn1(y)+nC2xn2(y)2+nC3xn3(y)3++nCn(y)n=nC0xnnC1xn1y+nC2xn2y2nC3xn3y3++(1)nnCnyn

इस प्रकार (xy)n=nC0xnnC1xn1y+nC2xn2y2++(1)nnCnyn

इसका प्रयोग करके हम पाते हैं,

(x2y)5=5C0x55C1x4(2y)+5C2x3(2y2)5C3x2(2y)3+5C4x(2y)45C5(2y)5=x510x4y+40x3y280x2y3+80xy432y5

(ii) a=1 तथा b=x, लेकर हम पाते हैं कि,

(1+x)n=nC0(1)n+nC1(1)n1x+nC2(1)n2x2++nCnxn=nC0+nC1x+nC2x2+nC3x3++nCnxn

इस प्रकार, (1+x)n=nC0+nC1x+nC2x2+nC3x3++nCnxn

विशेषत x=1, के लिए हम पाते हैं,

2n=nC0+nC1+nC2++nCn

(iii) a=1 तथा b=x, लेकर हम पाते हैं,

(1x)n=nC0nC1x+nC2x2+(1)nnCnxn

विशेषत x=1, के लिए हम पाते हैं,

0=nC0nC1+nC2+(1)nnCn

प्रश्नावली 7.1

प्रश्न 1 से 5 तक प्रत्येक व्यंजक का प्रसार कीजिए: 5 .

1. (12x)5

2. (2xx2)5

3. (2x3)6

4. (x3+1x)5

5. (x+1x)6

द्विपद प्रमेय का प्रयोग करके निम्नलिखित का मान ज्ञात कीजिए

6. (96)3

7. (102)5

8. (101)4

9. (99)5

10. द्विपद प्रमेय का प्रयोग करते हुए बताइए कौन-सी संख्या बड़ी है (1.1) 10000 या 1000.

11. (a+b)4(ab)4 का विस्तार कीजिए। इसका प्रयोग करके (3+2)4(32)4 का मान ज्ञात कीजिए।

12. (x+1)6+(x1)6 का मान ज्ञात कीजिए। इसका प्रयोग करके या अन्यथा (2+1)6+(21)6 का मान ज्ञात कीजिए।

13. दिखाइए कि 9n+18n9,64 से विभाज्य है जहाँ n एक धन पूर्णांक है।

14. सिद्ध कीजिए कि r=0n3rnCr=4n

अध्याय 7 पर विविध प्रश्नावली

1. यदि a और b भिन्न-भिन्न पूर्णांक हों, तो सिद्ध कीजिए कि (anbn) का एक गुणनखंड (ab) है, जबकि n एक धन पूर्णांक है।

[ संकेत an=(ab+b)n लिखकर प्रसार कीजिए।]

2. (3+2)6(32)6 का मान ज्ञात कीजिए।

3. (a2+a21)4+(a2a21)4 का मान ज्ञात कीजिए।

4. (0.99)5 के प्रसार के पहले तीन पदों का प्रयोग करते हुए इसका निकटतम मान ज्ञात कीजिए।

5. 1+x22xx0 का द्विपद प्रमेय द्वारा प्रसार ज्ञात कीजिए।

6. (3x22ax+3a2)3 का द्विपद प्रमेय से प्रसार ज्ञात कीजिए।

सारांश

एक द्विपद का किसी भी धन पूर्णांक n के लिए प्रसार द्विपद प्रमेय द्वारा किया जाता है। इस प्रमेय के अनुसार

(a+b)n=nC0an+nC1an1b+nC2an2b2++nCn1abn1+nCnbn

प्रसार के पदों के गुणांकों का व्यवस्थित क्रम पास्कल त्रिभुज कहलाता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

प्राचीन भारतीय गणितज्ञ (x+y)n,0n7, के प्रसार में गुणांकों को जानते थे। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में पिंगल ने अपनी पुस्तक छंद शास्त्र ( 200 ई॰ पू॰) में इन गुणांकों को एक आकृति, जिसे मेरुप्रस्त्र कहते हैं, के रूप में दिया था। 1303 ई॰ में चीनी गणितज्ञ Chu-shi-kie के कार्य में भी यह त्रिभुजाकार विन्यास पाया गया। 1544 के लगभग जर्मन गणितज्ञ Michael Stipel (1486-1567 ई०) ने सर्वप्रथम ‘द्विपद गुणांक’ शब्द को प्रारंभ किया। Bombelli (1572 ई०) ने भी, n=1,2,,7 के लिए तथा Oughtred (1631 ई॰) ने n=1,2,,10 के लिए, (a+b)n के प्रसार में गुणांकों को बताया। पिंगल के मेरुप्रस्त्र के समान थोड़े परिवर्तन के साथ लिखा हुआ अंकगणितीय त्रिभुज जो पास्कल त्रिभुज के नाम से प्रचलित है, यद्यपि बहुत बाद में फ्रांसीसी मूल के गणितज्ञ Blaise Pascal (1623-1662 ई०) ने बनाया। उन्होंने द्विपद प्रसार के गुणांकों को निकालने के लिए त्रिभुज का प्रयोग किया।

n के पूर्णांक मानों के लिए द्विपद प्रमेय का वर्तमान स्वरूप पास्कल द्वारा लिखित पुस्तक Trate du triange arithmetic में प्रस्तुत हुआ जो 1665 में उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुई।