प्रायिकता
14.1 प्रायिकता — एक सैद्धांतिक दृष्टिकोण
आइए निम्नलिखित स्थिति पर विचार करें :
मान लीजिए एक सिक्के को यादृच्छया उछाला जाता है।
जब हम एक सिक्के की बात करते हैं, तब हम यह कल्पना करते हैं कि वह न्यायसंगत (fair) है। अर्थात् वह सममित (symmetrical) है, ताकि कोई कारण न हो कि वह एक ही ओर, दूसरी ओर की अपेक्षा, अधिक गिरे। हम सिक्के के इस गुण को उसका अपक्षपातपूर्ण (unbiased) होना कहते हैं। ‘यादृच्छया उछाल’ (random toss) से हमारा तात्पर्य है कि सिक्के को बिना किसी पक्षपात (bias) या रुकावट के स्वतंत्रतापूर्वक गिरने दिया जाता है।
हम पहले से जानते हैं कि सिक्का दो संभव विधियों में से केवल एक ही विधि से गिर सकता है - या तो चित ऊपर होगा या फिर पट ऊपर होगा [हम सिक्के के, उसके किनारे (edge) के अनुदिश गिरने की संभावना को अस्वीकार करते हैं, जो उदाहरणार्थ, तब संभव है जब सिक्का रेत पर गिरे]। हम यह तर्कसंगतरूप से मान सकते हैं कि प्रत्येक
परिणाम, चित या पट, का प्रकट होना उतनी ही बार हो सकता है जितना कि अन्य परिणाम का। दूसरे शब्दों में हम कहते हैं कि परिणाम चित और पट समप्रायिक (equally likely) हैं। समप्रायिक परिणामों के एक अन्य उदाहरण के लिए मान लीजिए कि हम एक पासे को फेंकते हैं। हमारे लिए, एक पासे का अर्थ सदैव एक न्यायसंगत पासे से होगा। संभव परिणाम क्या है? ये $1,2,3,4,5,6$ हैं। प्रत्येक संख्या के ऊपर आने की समान संभावना है। अतः, पासे को फेंकने से प्राप्त होने वाले समप्रायिक परिणाम $1,2,3,4,5$ और 6 हैं।
क्या प्रत्येक प्रयोग के परिणाम समप्रायिक होते हैं? आइए देखें।
मान लीजिए एक थैले में 4 लाल गेंदें और 1 नीली गेंद है तथा आप इस थैले में से, बिना थैले के अंदर कुछ देखें, एक गेंद निकालते हैं। इसके क्या परिणाम हैं? क्या एक लाल गेंद और एक नीली गेंद के परिणाम समप्रायिक हैं? चूँकि यहाँ 4 लाल गेंदें हैं और नीली गेंद केवल एक ही, अतः आप यह अवश्य स्वीकार करेंगे कि आपके द्वारा एक नीली गेंद की अपेक्षा एक लाल गेंद निकालने की संभावना अधिक है। अतः ये परिणाम (एक लाल गेंद और एक नीली गेंद) समप्रायिक नहीं हैं। परंतु थैले में से किसी भी रंग की गेंद निकालने के परिणाम समप्रायिक हैं।
अतः, सभी प्रयोगों के परिणामों का समप्रायिक होना आवश्यक नहीं है। परंतु, इस अध्याय में, हम आगे यह मानकर चलेंगे कि सभी प्रयोगों के परिणाम समप्रायिक हैं।
कक्षा IX में, हमने एक घटना $\mathrm{E}$ की प्रयोगात्मक या आनुभविक प्रायिकता $\mathrm{P}(\mathrm{E})$ को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया था :
$$ \mathrm{P}(\mathrm{E})=\frac{\text { अभिप्रयोगों की संख्या जिनमें घटना घटित हुई है }}{\text { अभिप्रयोगों की कुल संख्या }} $$
प्रायिकता की आनुभविक व्याख्या का बड़ी संख्या में दोहराए जा सकने वाले किसी भी प्रयोग से जुड़े प्रत्येक घटना के लिए अनुप्रयोग किया जा सकता है। किसी प्रयोग को दोहराने की आवश्यकता एक गंभीर परिसीमा है, क्योंकि अनेक स्थितियों में यह अधिक व्यय वाला हो सकता है या यह भी हो सकता है कि ऐसा करना संभव ही न हो। निस्संदेह, सिक्का उछालने या पासा फेंकने के प्रयोगों में, इसमें कोई कठिनाई नहीं हुई। परंतु एक उपग्रह (satellite) छोड़ने के प्रयोग को यह परिकलित करने के लिए बार-बार दोहराने की छोड़ते समय उसकी असफलता की आनुभवित प्रायिकता क्या है, के बारे में आप क्या सोचते हैं अथवा यह कि एक भूकंप के कारण कोई बहुमंजिली इमारत नष्ट होगी या नहीं, की आनुभविक प्रायिकता परिकलित करने के लिए भूकंप की परिघटना के दोबारा घटित होने के बारे में आप क्या कह सकते हैं?
ऐसे प्रयोगों में, जहाँ हम कुछ कल्पनाओं को सही मानने को तैयार हो जाएँ, हम एक प्रयोग के दोहराने से बच सकते हैं, क्योंकि वे कल्पनाएँ सीधे सही (सैद्धांतिक) प्रायिकता परिकलित करने में हमारी सहायता करती हैं। परिणामों के समप्रायिक होने की कल्पना (जो अनेक प्रयोगों में मान्य होती है, जैसे कि ऊपर सिक्का उछालने और पासा फेंकने के दोनों उदाहरणों में है) इन कल्पनाओं में से एक है जो हमें किसी घटना की प्रायिकता की निम्नलिखित परिभाषा की ओर अग्रसर करती है।
किसी घटना $\mathrm{E}$ की सैद्धांतिक प्रायिकता (theoretical probability) [ जिसे परंपरागत प्रायिकता (classical probability) भी कहा जाता है।] $\mathrm{P}(\mathrm{E})$ निम्नलिखित रूप में परिभाषित की जाती है
$$ \mathrm{P}(\mathrm{E})=\frac{\mathrm{E} \text { के अनुकूल परिणामों की संख्या }}{\text { प्रयोग के सभी संभव परिणामों की संख्या }} $$
यहाँ हम यह कल्पना करते हैं कि प्रयोग के परिणाम समप्रायिक हैं।
हम संक्षिप्त रूप में, सैद्धांतिक प्रायिकता को केवल प्रायिकता ही कहेंगे।
प्रायिकता की उपरोक्त परिभाषा 1795 में पियरे-साइमन लाप्लास (Pierre-Simon Laplace) ने दी थी।
प्रायिकता सिद्धांत का सूत्रपात 16 वीं शताब्दी में हुआ, जब एक इतालवी भौतिकशास्त्री एवं गणितज्ञ जे. कार्डन ने इस विषय पर पहली पुस्तक लिखी, जिसका नाम था : The Book on Games of Chance अपने प्रादुर्भाव से ही, प्रायिकता के अध्ययन को महान गणितज्ञों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इन गणितज्ञों में जेम्स बर्नूली (1654-1705), ए.ड़ी मोइवरे (1667-1754) और पियरे-साइमन लाप्लास ऐसे लोग हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में एक सार्थक योगदान दिया। लाप्लास द्वारा 1812 में लिखी गई कृति (Theorie Analytiquedes Probabilities) को
पियरे-साइमन लाप्लास (1749 - 1827) एक अकेले व्यक्ति द्वारा प्रायिकता के सिद्धांत के लिए किया गया सबसे बड़ा योगदान माना जाता है। हाल ही के कुछ वर्षों में, प्रायिकता का अनेक क्षेत्रों, जैसे कि जैविकी, अर्थशास्त्र, वंश संबंधी शास्त्र (genetics), भौतिकी, समाजशास्त्र इत्यादि क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में उपयोग किया जा रहा है।
आइए ऐसे प्रयोगों से संबंधित कुछ घटनाओं की प्रायिकता ज्ञात करें, जिनमें समप्रायिक होने की कल्पना मान्य है।
टिप्पणी :
(1) किसी प्रयोग की वह घटना जिसका केवल एक ही परिणाम हो प्रारंभिक घटना (elementary event) कहलाती है। उदाहरण 1 में दोनों घटनाएँ $\mathrm{E}$ और $\mathrm{F}$ प्रारंभिक घटनाएँ हैं।
इसी प्रकार, उदाहरण 2 में, घटना $\mathrm{Y}, \mathrm{R}$ और $\mathrm{B}$ में प्रत्येक एक प्रारंभिक घटना है।
(2) उदाहरण 1 में, हम देखते हैं कि $\mathrm{P}(\mathrm{E})+\mathrm{P}(\mathrm{F})=1$
उदाहरण 2 में, हम देखते हैं कि $\mathrm{P}(\mathrm{Y})+\mathrm{P}(\mathrm{B})+\mathrm{P}(\mathrm{R})=1$
ध्यान दीजिए कि किसी प्रयोग की सभी प्रारंभिक घटनाओं की प्रायिकताओं का योग 1 है। यह व्यापक रूप में भी सत्य है।
टिप्पणी : उदाहरण 1 से, हम देखते हैं कि
$$ \begin{equation*} \mathrm{P}(\mathrm{E})+\mathrm{P}(\mathrm{F})=\frac{1}{2}+\frac{1}{2}=1 \tag{1} \end{equation*} $$
जहाँ घटना $\mathrm{E}$ ‘एक चित प्राप्त करना’ है तथा घटना $\mathrm{F}$ ‘एक पट प्राप्त करना’ है।
उदाहरण 3 के (i) और (ii) से भी हम देखते हैं कि
$$ \begin{equation*} \mathrm{P}(\mathrm{E})+\mathrm{P}(\mathrm{F})=\frac{1}{3}+\frac{2}{3}=1 \tag{2} \end{equation*} $$
$ \text { जहाँ घटना } \mathrm{E}^{\prime} 4 \text { से बड़ी संख्या प्राप्त करना’तथा घटना } \mathrm{F}^{\prime} 4 \text { के बराबर या कम संख्या प्राप्त } $ करना’ है।
ध्यान दीजिए कि 4 से बड़ी संख्या नहीं प्राप्त करने का अर्थ वही है जो 4 से छोटी या उसके बराबर संख्या प्राप्त करने का है और इसी प्रकार इसका विलोम भी यही प्रकट करता है।
उपरोक्त (1) और (2) में, क्या घटना ‘F’, ’ $E$ नहीं’ (not E) के समान नहीं है। हाँ, ऐसा ही है। हम घटना ’ $E$ नहीं, को $\overline{\mathrm{E}}$ से व्यक्त करते हैं।
अतः,
अर्थात् $\mathrm{P}(\mathrm{E})+\mathrm{P}(\overline{\mathrm{E}})=1$ है, जिससे $\mathrm{P}(\overline{\mathrm{E}})=1-\mathrm{P}(\mathrm{E})$ प्राप्त होता है।
व्यापक रूप में, किसी घटना $\mathrm{E}$ के लिए यह सत्य है कि
$$ \mathbf{P}(\overline{\mathbf{E}})=1-\mathbf{P}(\mathbf{E}) $$
घटना ’ $\mathrm{E}$ नहीं’ को निरूपित करने वाली घटना $\overline{\mathrm{E}}$ घटना $\mathrm{E}$ की पूरक (complement) घटना कहलाती है। हम यह भी कहते हैं कि $\mathrm{E}$ और $\overline{\mathrm{E}}$ परस्पर पूरक घटनाएँ हैं।
आगे बढ़ने से पहले, आइए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ज्ञात करने का प्रयत्न करें:
(i) पासे को एक बार फेंकने पर संख्या 8 प्राप्त करने की क्या प्रायिकता है?
(ii) पासे को एक बार फेंकने पर 7 से छोटी संख्या प्राप्त करने की क्या प्रायिकता है? आइए (i) का उत्तर दें :
हम जानते हैं कि पासे को एक बार फेंकने पर केवल छः ही संभावित परिणाम हैं। ये परिणाम $1,2,3,4,5$ और 6 हैं। चूँकि पासे के किसी भी फलक पर 8 अंकित नहीं है, इसलिए 8 के अनुकूल कोई भी परिणाम नहीं है, अर्थात् ऐसे परिणामों की संख्या शून्य $(0)$ है। दूसरे शब्दों में, पासे को एक बार फेंकने पर, संख्या 8 प्राप्त करना असंभव (impossible) है। अतः $\mathrm{P}(8$ प्राप्त करना $)=\frac{0}{6}=0$
अर्थात् उस घटना, जिसका घटित होना असंभव है, की प्रायिकता 0 होती है। ऐसी घटना को एक असंभव घटना (impossible event) कहते हैं।
आइए (ii) का उत्तर दें :
चूँकि पासे के प्रत्येक फलक पर ऐसी संख्या लिखी है जो 7 से छोटी है, इसलिए पासे को एक बार फेंकने पर यह निश्चित है कि प्राप्त संख्या सदैव 7 से छोटी होगी। अतः, घटना के अनुकूल परिणामों की संख्या सभी संभावित परिणामों की संख्या के बराबर होगी, जो 6 है।
इसलिए
$$ \mathrm{P}(\mathrm{E})=\mathrm{P}(7 \text { से छोटी संख्या प्राप्त करना })=\frac{6}{6}=1 $$
अतः उस घटना, जिसका घटित होना निश्चित (sure) है, की प्रायिकता 1 होती है। ऐसी घटना को एक निश्चित (sure) या निर्धारित (certain) घटना कहते हैं।
टिप्पणी : प्रायिकता $\mathrm{P}(\mathrm{E})$ की परिभाषा से, हम देखते हैं कि अंश (घटना $\mathrm{E}$ के अनुकूल परिणामों की संख्या) सदैव हर (सभी संभव परिणामों की संख्या) से छोटा होता है या उसके बराबर होता है। अतः,
$$ 0 \leq \mathrm{P}(\mathrm{E}) \leq \mathbf{1} $$
आइए अब एक उदाहरण, ताशों (playing cards) से संबंधित लें। क्या आपने ताशों की एक गड्डी देखी है? इसमें 52 पत्ते (cards) होते हैं, जो 4 समूहों में बँटे होते हैं। प्रत्येक समूह में 13 पत्ते होते हैं। ये 4 समूह हुकुम (spades) ($), पान (hearts) ( $\vee$ ), ईंट (diamonds) (४) और चिड़ी (clubs) ( हैं। चिड़ी और हुकुम काले रंग के होते हैं तथा पान और ईंट लाल रंग के होते हैं। प्रत्येक समूह के पत्ते : इक्का (ace), बादशाह (king), बेगम (queen), गुलाम (jack), 10, 9, 8, 7, 6, 5, 4, 3 और 2 होते हैं। बादशाह, बेगम और गुलाम वाले पत्ते फेस कार्ड (face cards) कहलाते हैं।
टिप्पणी : ध्यान दीजिए कि $\mathrm{F}$ और कुछ नहीं बल्कि $\overline{\mathrm{E}}$ ही है। अतः, हम $\mathrm{P}(\mathrm{F})$ को इस प्रकार भी परिकलित कर सकते हैं : $\mathrm{P}(\mathrm{F})=\mathrm{P}(\overline{\mathrm{E}})=1-\mathrm{P}(\mathrm{E})=1-\frac{1}{13}=\frac{12}{13}$.
टिप्पणी : हम $\mathrm{P}$ (लड़का) को इस प्रकार भी निर्धारित कर सकते हैं :
$$ \mathrm{P}(\text { लड़का })=1-\mathrm{P}(\text { लड़का नहीं })=1-\mathrm{P}(\text { लड़की })=1-\frac{5}{8}=\frac{3}{8} $$
टिप्पणी : आप $\mathrm{P}(\mathrm{E})$ इस प्रकार भी ज्ञात कर सकते हैं:
$$ \mathrm{P}(\mathrm{E})=1-\mathrm{P}(\overline{\mathrm{E}})=1-\frac{1}{4}=\frac{3}{4} \text { चूँकि } \mathrm{P}(\overline{\mathrm{E}})=\mathrm{P}(\text { कोई चित नहीं })=\frac{1}{4} $$
क्या आपने यह देखा कि अब तक के सभी उदाहरणों में, प्रत्येक प्रयोग के सभी संभव परिणामों की संख्या परिमित थी? यदि नहीं, तो अब इसकी जाँच कर लीजिए।
अनेक प्रयोग ऐसे हैं, जहाँ परिणाम दो संख्याओं के बीच में कोई भी संख्या हो सकती है या जिनमें परिणाम एक वृत्त या आयत के अंदर का प्रत्येक बिंदु होता है, इत्यादि। क्या अब आप सभी संभव परिणामों को गिन सकते हैं? जैसाकि आप जानते हैं, यह संभव नहीं है, क्योंकि दो संख्याओं के बीच में अपरिमित रूप से अनेक संख्याएँ होती हैं, या यह कि एक वृत्त के अंदर अपरिमित रूप से अनेक बिंदु होते हैं। अतः, आपके द्वारा अध्ययन की
गई (सैद्धांतिक) प्रायिकता की परिभाषा को वर्तमान रूप में यहाँ प्रयोग नहीं किया जा सकता। इस समस्या का फिर हल क्या है? इसके उत्तर के लिए, आइए निम्नलिखित उदाहरण पर विचार करें।
क्या हम उदाहरण 10 की अवधारणा को किसी घटना की प्रायिकता उसके अनुकूल क्षेत्रफल और संपूर्ण क्षेत्रफल के अनुपात के रूप में विस्तृत कर सकते हैं।
14.2 सारांश
इस अध्याय में, आपने निम्नलिखित तथ्यों का अध्ययन किया है :
1. घटना $\mathrm{E}$ की सैद्धांतिक (या परंपरागत) प्रायिकता $\mathrm{P}(\mathrm{E})$ को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया जाता है:
$$ \mathrm{P}(\mathrm{E})=\frac{\mathrm{E} \text { के अनुकूल परिणामों की संख्या }}{\text { प्रयोग के सभी संभावित परिणामों की संख्या }} $$
जहाँ हम कल्पना करते हैं कि प्रयोग के सभी परिणाम समप्रायिक हैं।
2. एक निश्चित (या निर्धारित) घटना की प्रायिकता 1 होती है।
3. एक असंभव घटना की प्रायिकता 0 होती है।
4. घटना $\mathrm{E}$ की प्रायिकता एक ऐसी संख्या $\mathrm{P}(\mathrm{E})$ है कि
$$ 0 \leq \mathrm{P}(\mathrm{E}) \leq 1 $$
5. वह घटना जिसका केवल एक ही परिणाम हो एक प्रारंभिक घटना कहलाती है। किसी प्रयोग की सभी प्रारंभिक घटनाओं की प्रायिकता का योग 1 होता है।
6. किसी भी घटना $\mathrm{E}$ के लिए $\mathrm{P}(\mathrm{E})+\mathrm{P}(\overline{\mathrm{E}})=1$ होता है, जहाँ $\mathrm{E}$ घटना ’ $\mathrm{E}$ नहीं’ को व्यक्त करता है। $\mathrm{E}$ और $\mathrm{E}$ पूरक घटनाएँ कहलाती हैं।
पाठकों के लिए विशेष
एक घटना की प्रायोगिक या आनुभविक प्रायिकता वास्तविक रूप से घटना के घटित होने पर आधारित होती है, जबकि उस घटना की सैद्धांतिक प्रायिकता में कुछ कल्पनाओं के आधार पर यह प्रागुक्ति की जाती है कि क्या घटना घटेगी। जैसे-जैसे एक प्रयोग में अभिप्रयोगों की संख्या बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे प्रायोगिक और सैद्धांतिक प्रायिकताओं की लगभग बराबर होने की प्रत्याशा की जा सकती है।