वास्तविक संख्याएँ

1.1 भूमिका

कक्षा 9 में, आपने वास्तविक संख्याओं की खोज प्रारंभ की और इस प्रक्रिया से आपको अपरिमेय संख्याओं को जानने का अवसर मिला। इस अध्याय में, हम वास्तविक संख्याओं के बारे में अपनी चर्चा जारी रखेंगे। यह चर्चा हम अनुच्छेद 1.2 तथा 1.3 में धनात्मक पूर्णांकों के दो अति महत्वपूर्ण गुणों से प्रारंभ करेंगे। ये गुण हैं: यूक्लिड विभाजन एल्गोरिथ्म (कलन विधि) (Euclid’s division algorithm) और अंकगणित की आधारभूत प्रमेय (Fundamental Theorem of Arithmetic) I

जैसा कि नाम से विदित होता है, यूक्लिड विभाजन एल्गोरिथ्म पूर्णांकों की विभाज्यता से किसी रूप में संबंधित है। साधारण भाषा में कहा जाए, तो एल्गोरिथ्म के अनुसार, एक धनात्मक पूर्णांक a को किसी अन्य धनात्मक पूर्णांक b से इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है कि शेषफल r प्राप्त हो, जो b से छोटा (कम) है। आप में से अधिकतर लोग शायद इसे सामान्य लंबी विभाजन प्रक्रिया (long division process) के रूप में जानते हैं। यद्यपि यह परिणाम कहने और समझने में बहुत सरल है, परंतु पूर्णांकों की विभाज्यता के गुणों से संबंधित इसके अनेक अनुप्रयोग हैं। हम इनमें से कुछ पर प्रकाश डालेंगे तथा मुख्यतः इसका प्रयोग दो धनात्मक पूर्णांकों का महत्तम समापवर्तक (HCF) परिकलित करने में करेंगे।

दूसरी ओर, अंकगणित की आधारभूत प्रमेय का संबंध धनात्मक पूर्णांकों के गुणन से है। आप पहले से ही जानते हैं कि प्रत्येक भाज्य संख्या (Composite number) को एक अद्वितीय रूप से अभाज्य संख्याओं (prime numbers) के गुणनफल के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। यही महत्वपूर्ण तथ्य अंकगणित की आधारभूत प्रमेय है। पुनः, यह परिणाम कहने और समझने में बहुत सरल है, परंतु इसके गणित के क्षेत्र में बहुत व्यापक और सार्थक अनुप्रयोग हैं। यहाँ, हम अंकगणित की आधारभूत प्रमेय के दो मुख्य अनुप्रयोग देखेंगे। एक

तो हम इसका प्रयोग कक्षा IX में अध्ययन की गई कुछ संख्याओं, जैसे 2,3 और 5 आदि की अपरिमेयता सिद्ध करने में करेंगे। दूसरे, हम इसका प्रयोग यह खोजने में करेंगे कि किसी परिमेय संख्या, मान लीजिए pq(q0), का दशमलव प्रसार कब सांत (terminating) होता है तथा कब असांत आवर्ती (non-terminating repeating) होता है। ऐसा हम pq के हर q के अभाज्य गुणनखंडन को देखकर ज्ञात करते हैं। आप देखेंगे कि q के अभाज्य गुणनखंडन से pq के दशमलव प्रसार की प्रकृति का पूर्णतया पता लग जाएगा। अतः, आइए अपनी खोज प्रारंभ करें।

1.2 अंकगणित की आधारभूत प्रमेय

आप पिछली कक्षाओं में देख चुके हैं कि किसी भी प्राकृत संख्या को उसके अभाज्य गुणनखंडों के एक गुणनफल के रूप में लिखा जा सकता है। उदाहरणार्थ, 2=2,4=2×2, 253=11×23, इत्यादि। अब, आइए प्राकृत संख्याओं पर एक अन्य दृष्टिकोण से विचार करने का प्रयत्न करें। अर्थात् यह देखें कि क्या अभाज्य संख्याओं को गुणा करके, एक प्राकृत संख्या प्राप्त की जा सकती है। आइए इसकी जाँच करें।

कुछ अभाज्य संख्याओं, मान लीजिए 2,3,7,11 और 23 का कोई संग्रह लीजिए। यदि हम इन संख्याओं में से कुछ या सभी संख्याओं को इस प्रकार गुणा करें कि इन संख्याओं की हम जितनी बार चाहें पुनरावृत्ति कर सकते हैं, तो हम धनात्मक पूर्णांकों का एक बड़ा संग्रह बना सकते हैं (वास्तव में, अपरिमित रूप से अनेक)। आइए इनमें से कुछ की सूची बनाएँ:

7×11×23=1771,3×7×11×23=5313,2×3×7×11×23=10626,23×3×73=8232,22×3×7×11×23=21252 इत्यादि। 

अब मान लीजिए कि आपके संग्रह में, सभी संभव अभाज्य संख्याएँ सम्मिलित हैं। इस संग्रह की आमाप (size) के बारे में आप क्या अनुमान लगा सकते हैं? क्या इसमें परिमित संख्या में पूर्णांक सम्मिलित हैं अथवा अपरिमित रूप से अनेक पूर्णांक सम्मिलित हैं? वास्तव में, अभाज्य संख्याएँ अपरिमित रूप से अनेक हैं। इसलिए, यदि हम इन अभाज्य संख्याओं को सभी संभव प्रकारों से संयोजित करें तो हमें सभी अभाज्य संख्याओं और अभाज्य संख्याओं के सभी संभव गुणनफलों का एक अनंत संग्रह प्राप्त होगा। अब प्रश्न उठता है, क्या हम इस प्रकार से सभी भाज्य संख्याएँ (composite numbers) प्राप्त कर सकते हैं? आप क्या सोचते

हैं? क्या आप सोचते हैं कि कोई ऐसी भाज्य संख्या हो सकती है जो अभाज्य संख्याओं की घातों (powers) का गुणनफल न हो? इसका उत्तर देने से पहले, आइए धनात्मक पूर्णांकों के गुणनखंडन करें, अर्थात् अभी तक जो हमने किया है उसका उल्टा करें।

हम एक गुणनखंड वृक्ष (factor tree) का प्रयोग करेंगे जिससे आप पूर्व परिचित हैं। आइए, एक बड़ी संख्या, मान लीजिए 32760 , लें और उसके गुणनखंड नीचे दर्शाए अनुसार करें:

इस प्रकार, हमने 32760 को अभाज्य संख्याओं के एक गुणनफल के रूप में गुणनखंडित कर लिया है, जो 2×2×2×3×3×5×7×13 है। अर्थात् 32760=23×32×5×7×13 है, जो अभाज्य संख्याओं की घातों के रूप में हैं। आइए एक अन्य संख्या, मान लीजिए 123456789 लेकर उसके गुणनखंड लिखें। इसे 32×3803×3607 के रूप में लिखा जा सकता है। निःसंदेह, आपको इसकी जाँच करनी होगी कि 3803 और 3607 अभाज्य संख्याएँ हैं। (ऐसा ही अनेक अन्य प्राकृत संख्याएँ लेकर स्वयं करने का प्रयत्न करें।) इससे हमें यह अनुमान या कंजेक्चर (conjecture) प्राप्त होता है कि प्रत्येक भाज्य संख्या को अभाज्य संख्याओं की घातों के गुणनफल के रूप में लिखा जा सकता है। वास्तव में, यह कथन सत्य है तथा पूर्णांकों के अध्ययन में यह मूलरूप से एक अति महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसी कारण यह कथन

अंकगणित की आधारभूत प्रमेय (Fundamental Theorem of Arithmetic) कहलाता है। आइए इस प्रमेय को औपचारिक रूप से व्यक्त करें।

प्रमेय 1.1 (अंकगणित की आधारभूत प्रमेय) : प्रत्येक भाज्य संख्या को अभाज्य संख्याओं के एक गुणनफल के रूप में व्यक्त (गुणनखंडित) किया जा सकता है तथा यह गुणनखंडन अभाज्य गुणनखंडों के आने वाले क्रम के बिना अद्वितीय होता है।

अंकगणित की आधारभूत प्रमेय के रूप में विख्यात होने से पहले, प्रमेय 1.2 का संभवतया सर्वप्रथम वर्णन यूक्लिड के एलीमेंट्स की पुस्तक IX में साध्य (proposition) 14 के रूप में हुआ था। परंतु इसकी सबसे पहले सही उपपत्ति कार्ल फ्रैड्रिक गॉस (Carl Friedrich Gauss) ने अपनी कृति डिसक्वीशंस अरिथिमेटिकी (Disquisitions Arithmeticae) में दी। कार्ल फ्रैड्रिक गॉस को प्राय: ‘गणितज्ञों का राजकुमार’ कहा जाता है तथा उनका नाम सभी समयकालों के तीन महानतम गणितज्ञों में लिया जाता है, जिनमें आर्किमिडीज़ (Archimedes) कार्ल फ्रैड्रिक गॉस और न्यूटन (Newton) भी सम्मिलित हैं। उनका गणित और विज्ञान दोनों में मौलिक योगदान है।

अंकगणित की आधारभूत प्रमेय कहती है कि प्रत्येक भाज्य संख्या अभाज्य संख्याओं के एक गुणनफल के रूप में गुणनखंडित की जा सकती है। वास्तव में, यह और भी कुछ कहती है। यह कहती है कि एक दी हुई भाज्य संख्या को अभाज्य संख्याओं के एक गुणनफल के रूप में, बिना यह ध्यान दिए कि अभाज्य संख्याएँ किस क्रम में आ रही हैं, एक अद्वितीय प्रकार (Unique way) से गुणनखंडित किया जा सकता है। अर्थात् यदि कोई भाज्य संख्या दी हुई है, तो उसे अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के रूप में लिखने की केवल एक ही विधि है, जब तक कि हम अभाज्य संख्याओं के आने वाले क्रम पर कोई विचार नहीं करते। इसलिए, उदाहरणार्थ, हम 2×3×5×7 को वही मानते हैं जो 3×5×7×2, को माना जाता है। इसी प्रकार, इन्हीं अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के किसी अन्य क्रम को भी हम 2×3×5×7 जैसा ही मानेंगे। इस तथ्य को निम्नलिखित रूप में भी व्यक्त किया जाता है:

एक प्राकृत संख्या का अभाज्य गुणनखंडन, उसके गुणनखंडों के क्रम को छोड़ते हुए अद्वितीय होता है।

व्यापक रूप में, जब हमें एक भाज्य संख्या x दी हुई हो, तो हम उसे x=p1p2pn, के रूप में गुणनखंडित करते हैं, जहाँ p1,p2,,pn इत्यादि आरोही क्रम में लिखी अभाज्य संख्याएँ हैं। अर्थात् p1p2pn है। यदि हम समान अभाज्य संख्याओं को एक साथ (मिला) लें, तो हमें अभाज्य संख्याओं की घातें (powers) प्राप्त हो जाती हैं।

 उदाहरणार्थ, 32760=2×2×2×3×3×5×7×13=23×32×5×7×13

एक बार यह निर्णय लेने के बाद कि गुणनखंडों का क्रम आरोही होगा तो दी हुई संख्या के अभाज्य गुणनखंड अद्वितीय होंगे।

अंकगणित की आधारभूत प्रमेय के गणित तथा अन्य क्षेत्रों में भी अनेक अनुप्रयोग हैं। आइए इनके कुछ उदाहरण को देखें।

आप पिछली कक्षाओं में, यह पढ़ चुके हैं कि दो धनात्मक पूर्णांकों के HCF और LCM अंकगणित की आधारभूत प्रमेय का प्रयोग करके किस प्रकार ज्ञात किए जाते हैं। ऐसा करते समय, इस प्रमेय के नाम का उल्लेख नहीं किया गया था। इस विधि को अभाज्य गुणनखंडन विधि (prime factorisation method) भी कहते हैं। आइए, एक उदाहरण की सहायता से इस विधि को पुनः याद करें।

उपरोक्त उदाहरण से आपने यह देख लिया होगा कि HCF(6,20)×LCM(6,20)=6×20 है। वास्तव में, अंकगणित की आधारभूत प्रमेय का प्रयोग करके हम इसकी जाँच कर सकते हैं कि किन्हीं दो धनात्मक पूर्णांकों a और b के लिए, HCF(a,b)×LCM(a,b)= a×b होता है। इस परिणाम का प्रयोग करके, हम दो धनात्मक पूर्णांकों का LCM ज्ञात कर सकते हैं, यदि हमने उनका HCF पहले ही ज्ञात कर लिया है।

टिप्पणी : ध्यान दीजिए कि 6×72×120HCF(6,72,120)×LCM(6,72,120), अर्थात् तीन संख्याओं का गुणनफल उनके HCF और LCM के गुणनफल के बराबर नहीं होता है।

1.3 अपरिमेय संख्याओं का पुनर्भ्रमण

कक्षा IX में, आपको अपरिमेय संख्याओं एवं उनके अनेक गुणों से परिचित कराया गया था। आपने इनके अस्तित्व के बारे में अध्ययन किया तथा यह देखा कि किस प्रकार परिमेय और अपरिमेय संख्याएँ मिलकर वास्तविक संख्याएँ (real numbers) बनाती हैं। आपने यह भी सीखा था कि संख्या रेखा पर किस प्रकार अपरिमित संख्याओं के स्थान निर्धारित करते हैं। तथापि हमने यह सिद्ध नहीं किया था कि ये संख्याएँ अपरिमेय (irrationals) हैं। इस अनुच्छेद में, हम यह सिद्ध करेंगे कि 2,3,5 तथा, व्यापक रूप में, p अपरिमेय संख्याएँ हैं, जहाँ p एक अभाज्य संख्या है। अपनी उपपत्ति में, हम जिन प्रमेयों का प्रयोग करेंगे उनमें से एक है अंकगणित की आधारभूत प्रमेय।

याद कीजिए कि एक, संख्या ’ s ’ अपरिमेय संख्या कहलाती है, यदि उसे pq के रूप में नहीं लिखा जा सकता हो, जहाँ p और q पूर्णांक हैं और q0 है। अपरिमेय संख्याओं के कुछ उदाहरण, जिनसे आप परिचित हैं, निम्नलिखित हैं:

2,3,15,π,23,0.10110111011110, इत्यादि।

इससे पहले कि हम 2 को अपरिमेय संख्या सिद्ध करें, हमें निम्नलिखित प्रमेय की आवश्यकता पड़ेगी, जिसकी उपपत्ति अंकगणित की आधारभूत प्रमेय पर आधारित है।

प्रमेय 1.2: मान लीजिए p एक अभाज्य संख्या है। यदि p,a2 को विभाजित करती है, तो p, a को भी विभाजित करेगी, जहाँ a एक धनात्मक पूर्णांक है।

*उपपत्ति : मान लीजिए a के अभाज्य गुणनखंडन निम्नलिखित रूप के हैं: a=p1p2pn जहाँ p1,p2,pn अभाज्य संख्याएँ हैं, परंतु आवश्यक रूप से भिन्न-भिन्न नहीं हैं। अतः, a2=(p1p2pn)(p1p2pn)=p12p22pn2 अब, हमें दिया है कि p,a2 को विभाजित करती है। इसलिए, अंकगणित की आधारभूत प्रमेय के अनुसार; p,a2 का एक अभाज्य गुणनखंड है। परंतु अंकगणित की आधारभूत प्रमेय की अद्वितीयता के गुण का प्रयोग करने पर, हम पाएँगे कि a2 के अभाज्य गुणनखंड केवल p1, p2,,pn हैं। इसलिए p को p1,p2,,pn में से ही एक होना चाहिए। अब, चूँकि a=p1p2pn है, इसलिए p,a को विभाजित अवश्य करेगा। अब हम इसकी उपपत्ति दे सकते हैं कि 2 एक अपरिमेय संख्या है। यह उपपत्ति उस तकनीक पर आधारित है जिसे ‘विरोधोक्ति द्वारा उपपत्ति’ (proof by contradiction) कहते हैं (इस तकनीक की कुछ विस्तृत रूप से चर्चा परिशिष्ट 1 में की गई है)।

प्रमेय 1.3:2 एक अपरिमेय संख्या है।

उपपत्ति : हम इसके विपरीत यह मान लेते हैं कि 2 एक परिमेय संख्या है।

अतः, हम दो पूर्णांक r और s ऐसे ज्ञात कर सकते हैं कि 2=rs हो तथा s(0) हो। मान लीजिए r और s में, 1 के अतिरिक्त, कोई उभयनिष्ठ गुणनखंड है। तब, हम इस उभयनिष्ठ गुणनखंड से r और s को विभाजित करके 2=ab प्राप्त कर सकते हैं, जहाँ a और b सहअभाज्य (co-prime) हैं।

अत:

b2=a हुआ। 

दोनों पक्षों का वर्ग करने तथा पुनव्यर्वस्थित करने पर, हमें प्राप्त होता है:

2b2=a2

अतः 2,a2 को विभाजित करता है।

इसलिए प्रमेय 1.2 द्वारा 2,a को विभाजित करेगा।[^0]

अतः हम a=2c लिख सकते हैं, जहाँ c कोई पूर्णांक हैं।

a का मान प्रतिस्थापित करने पर हमें 2b2=4c2, अर्थात् b2=2c2 प्राप्त होता है।

इसका अर्थ है कि 2,b2 को विभाजित करता है और इसीलिए 2,b को भी विभाजित करेगा (प्रमेय 1.2 द्वारा p=2 लेने पर)।

अतः a और b में कम से कम एक उभयनिष्ठ गुणनखंड 2 है।

परंतु इससे इस तथ्य का विरोधाभास प्राप्त होता है कि a और b में, 1 के अतिरिक्त, कोई उभयनिष्ठ गुणनखंड नहीं है।

यह विरोधाभास हमें इस कारण प्राप्त हुआ है, क्योंकि हमने एक त्रुटिपूर्ण कल्पना कर ली है कि 2 एक परिमेय संख्या है।

अतः, हम निष्कर्ष निकालते हैं कि 2 एक अपरिमेय संख्या है।

1.4 सारांश

इस अध्याय में, आपने निम्नलिखित तथ्यों का अध्ययन किया है:

1. अंकगणित की आधारभूत प्रमेय:

प्रत्येक भाज्य संख्या को अभाज्य संख्याओं के एक गुणनफल के रूप में व्यक्त (गुणनखंडित) किया जा सकता है तथा यह गुणनखंडन अद्वितीय होता है, इस पर कोई ध्यान दिए बिना कि अभाज्य गुणनखंड किस क्रम में आ रहे हैं।

2. यदि p कोई अभाज्य संख्या है और p,a2 को विभाजित करता है तो p,a को भी विभाजित करेगा, जहाँ a एक धनात्मक पूर्णांक है।

3. उपपत्ति कि 2,3 इत्यादि अपरिमेय संख्याएँ हैं।

पाठकों के लिए विशेष

आपने देखा कि:

HCF(p,q,r)×LCM(p,q,r)p×q×r, जहाँ p,q,r धनात्मक पूर्णांक हैं (उदाहरण 8 देखिए)। जबकि निम्न परिणाम तीन संख्याओं p,q और r पर लागू होता है:

LCM(p,q,r)=pqrHCF(p,q,r)HCF(p,q)HCF(q,r)HCF(p,r)HCF(p,q,r)=pqrLCM(p,q,r)LCM(p,q)LCM(q,r)LCM(p,r)