वंशागति के आणविक आधार
पिछले अध्याय में आपने वंशागति प्रतिरूपों के आनुवंशिक आधार के बारे में पढ़ा हैं। मेंडल के नियमों के प्रतिपादन तक वे कारक जो वंशागति के प्रतिरूप को नियंत्रित करते हैं, उनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। सौ वर्षों बाद अनुमानित आनुवंशिक पदार्थ का पता चल पाया। अधिकतर जीवों में यह आनुवंशिक पदार्थ डीएनए डीआक्सीराइबो-न्यूक्लिक अम्ल था। कक्षा 11 में आप पढ़ चुके हैं कि न्यूक्लिक अम्ल न्यूक्लिओटाइड का बहुलक है।
सजीवों में दो प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल मिलते हैं डीआक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (डीएनए) व राइबोन्यूक्लिक अम्ल (आरएनए) अधिकतर जीवों में आनुवंशिक पदार्थ डीएनए होता है। कुछ विषाणुओं में आरएनए आनुवंशिक पदार्थ के रूप में मिलता है, लेकिन यह अधिकतर वाहक के रूप में कार्य करता है। आरएनए के अन्य और भी अतिरिक्त कार्य हैं। यह अनुकूलक, सरंचनात्मक व कुछ स्थितियों में उत्प्रेरक अणु का कार्य करता है। न्यूक्लिओटाइड्स की सरंचना व एकल ईकाईयों से जुड़कर न्यूक्लिक अम्ल बहुलक बनने के बारे में आप पहले ही कक्षा 11 में पढ़ चुके हैं। इस अध्याय में डीएनए की संरचना, इसकी प्रतिकृति, डीएनए से आरएनए के निर्माण की विधि (अनुलेखन), आनुवंशिक कूट (कोड) जो प्रोटीन्स में अमीनो अम्लों के क्रम को निर्धारित करते हैं प्रोटीन संश्लेषण (स्थानांतरण) प्रक्रिया
व इनके नियंत्रण के प्रारंभिक आधार के बारे में पढ़ंगे। पिछले दशक में मानव जीनोम में स्थित पूर्ण न्यूक्लियोराइड्स क्रमों के निर्धारण से जीनोमीक्स के नए महाकल्प को आरंभ हुआ। इस अध्याय के अंतिम खंड में मानव जीनोम अनुक्रम की आवश्यक पहलुओं एवं इसके परिणामों के बारे में वर्णन किया जाएगा।
अपनी चर्चा की शुरुआत सबसे पहले सजीवों में मिलने वाले सर्वाधिक रुचिकर अणु डीएनए की संरचना के अध्ययन से करें। आगे के खंडों में इस बात को समझने का प्रयास करेंगे कि यह बहुतायत से मिलने वाला आनुवंशिक पदार्थ क्यों है व इसका आएएनए के साथ क्या संबंध है।
5.1 डीएनए
डीएनए-डीआक्सीराइबोन्यूक्लिओटाइड्स का एक लंबा बहुलक है- डीएनए की लंबाई सामान्यतया इसमें मिलने वाले न्यूक्लियोटाइड्स (न्यूक्लियोटाइड्स युग्म का संबंध क्षार युग्म से है) पर निर्भर है। यह किसी भी जीव की विशेषता है। उदाहरणार्थ - एक जीवाणुभोजी जिसे
5.1.1 पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला की संरचना
पॉलीन्यूक्लियोटाइड शृंखला (डीएनए या आरएनए) की रासायनिक संरचना संक्षेप में निम्न है। न्यूक्लियोटाइड के तीन घटक होते हैं - नाइट्रोजनी क्षार, पेंटोस शर्करा (आरएनए के मामले में रिबोस तथा डीएनए में डीऑक्सीरिबोज) और एक फॉस्फेट ग्रुप। नाइट्रोजनी क्षार दो प्रकार के होते है - प्यूरीन्स (एडेनीन व ग्वानीन) व पायरिमिडीन (साइटोसीन, यूरेसिल व थाइमीन)। साइटोसीन डीएनए व आरएनए दोनों में मिलता है जबकि थाइमीन डीएनए में मिलता है। थाइमीन के स्थान पर यूरेसील आरएनए में मिलता है। नाइट्रोजनी क्षार नाइट्रोजन ग्लाइकोसिडिक बंध द्वारा पेंटोस शर्करा
चित्र 5.1 एक पालीन्यूक्लियोटाइड शृंखला
श्रृंखला का
आरएनए में प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड अवशेष के राइबोज की
फ्रेडरीच मेस्चर ने 1869 में केंद्रक में मिलने वाले अम्लीय पदार्थ डीएनए की खोज की थी। उसने इसका नाम ‘न्यूक्लिन’ दिया। ऐसे लंबे संपूर्ण बहुलक को तकनीकी कमियों के कारण विलगित करना कठिन था, इस कारण से बहुत लंबे समय तक डीएनए की संरचना के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं थी। मौरिस विल्किन्स व रोजलिंड फ्रैंकलिन द्वारा दिए गए एक्स-रे निवर्तन आंकड़े के आधार पर 1953 में जेम्स वाट्सन व फ्राँन्सिस क्रीक ने डीएनए की संरचना का द्विकुंडली नमूना प्रस्तुत किया। उनके प्रस्तावों में पॉलीन्यूक्लियोटाइड भृंखलाओं के दो लड़ियों के बीच क्षार युग्मन की उपस्थिति एक बहुत प्रमाणित शृंखला (चेन) थी। उपरोक्त प्रस्ताव द्विकुंडली डीएनए के इर्विन चारगाफ़ के परीक्षण के आधार पर भी था जिसमें इसने बताया कि एडनिन व थाइमिन तथा ग्वानिन व साइटोसीन के बीच अनुपात स्थित व एक दूसरे के बराबर रहता है।
क्षार युग्मन पॉलीन्यूक्लियोटाइड शृंखलाओं की एक खास विशेषता है। ये शृंखलाएँ एक दूसरे के पूरक है इसलिए एक रज्जुक में स्थित क्षार क्रमों के बारे जानकारी होने पर दूसरी रज्जुक के क्षार क्रमों की कल्पना कर सकते हैं। यदि डीएनए (इसे पैतृक डीएनए कहते हैं) की प्रत्येक रज्जुक नए रज्जुक के संश्लेषण हेतु टेम्पलेट का कार्य करते हैं। इस तरह से दो द्विरज्जुकीय डीएनए (जिसे संतति डीएनए कहते हैं) का निर्माण होता है जो पैतृक डीएनए अणु के समान होते हैं। इस कारण से आनुवंशिक डीएनए की संरचना के बारे में बहुत स्पष्ट जानकारी मिल सकी। द्विकुंडली डीएनए की संरचना की खास विशेषताएँ निम्न हैं -
(क) यह दो पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं का बना होता है जिसका आधार शर्करा-फॉस्फेट का बना होता है व क्षार भीतर की ओर प्रक्षेपी होता है।
(ख) दोनों भृंखलाएँ प्रति समानांतर ध्रुवणता रखती है। इसका मतलब एक शृंखला को ध्रुवणता
(ग) दोनों रज्जुकों के क्षार आपस में हाइड्रोजन बंध द्वारा युग्मित होकर क्षार युग्मक बनाते हैं। एडेनिन व थाइमिन जो विपरीत रज्जुकों में होते हैं। आपस में दो
वंशागति के आणविक आधार
चित्र 5.2 द्विरज्जुकीय पॉलीन्युक्लियोटाइड शृंखला
हाइड्रोजन बंध बनाते हैं। ठीक इसी तरह से ग्वानीन साइटोसलीन से तीन-हाइड्रोजन बंध द्वारा बँधा रहता है जिसके फलस्वरूप सदैव यूरीन के विपरीत दिशा में पीरीमिडन होता है। इससे कुंडली के दोनों रज्जुकों के बीच लगभग समान दूरी बनी रहती है (चित्र 5.2)।
(घ) दोनों श्रृंखलाएँ दक्षिणवर्ती कुंडलित होती हैं। कुंडली का पिच 3.4 नैनोमीटर (एक नैनोमीटर एक मीटर का 10 करोड़वाँ भाग होता है वह
(ङ) द्विकुंडली में एक क्षार युग्म की सतह के ऊपर दूसरे स्थित होते हैं। इसके
अतिरिक्त हाइड्रोजन बंध कुंडलिनी संरचना को स्थायित्व प्रदान करते हैं। प्यूरीन व पीरिमीडीन की संरचनात्मक तुलना करो। क्या आप बता सकते हैं कि चित्र 5.3 द्विकुंडली डीएनए डीएनए में दो पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं के बीच की दूरी हमेशा लगभग समान क्यों रहती है? (चित्र 5.3)।
डीएनए की द्विकुंडली संरचना का प्रस्ताव यू परिक्रमी है कि आनुवांशिक उलझाव को सरल तरीके से व्याख्या करने में सक्षम है। शीघ्र ही आणविक जीव विज्ञान में फ्रांसिस
क्रिक ने मूल सिद्धांत (सेंट्रल डोग्मा) का विचार प्रस्तुत किया जिससे स्पष्ट है कि आनुवांशिक सूचनाओं का बहाव डीएनए से आरएनए व इससे प्रोटीन की तरह रहता है (डीएनए
कुछ विषाणुओं में उपरोक्त बहाव विपरीत दिशा आरएनए से डीएनए की तरफ भी होता है। क्या तुम इस प्रक्रम के लिए एक साधारण नाम का सुझाव कर सकते हो?
5.1.2 डीएनए कुंडली का पैकेजिंग
लगातार दो क्षार युग्मों के बीच की दूरी 0.34 नैनोमीटर
चित्र 5.4 अ न्यूक्लियोसोम (साधारणतया सभी क्षार युग्म की संख्या को लगातार दो क्षार युग्म के बीच की दूरी से गुणा करने पर दूरी की गणना कर सकते हैं, वह है
यदि ई.कोलाई डीएनए की लंबाई 1.36 मिलीमीटर है तो क्या आप ई.कोलाई में क्षार युग्मों की संख्या की गणना कर सकते हैं?
असीमकेंद्रकी जैसी ई.कोलाई जिसमें स्पष्ट केंद्रक नहीं मिलता है इसके बावजूद भी डीएनए पूरी कोशिका में नहीं फैला होता है। डीएनए (ऋणात्मक आवेशित) कुछ प्रोटीन्स (धनात्मक आवेशित) से बँधकर एक जगह पर स्थित होते हैं जिसे केंद्रकाभ (न्यूक्लिआएड) कहते हैं। न्यूक्लीआएड में डीएनए बड़े लूपों में व्यवस्थित होता है जो प्रोटीन से जुड़े होते हैं।
ससीमकेंद्रकी/सुकेंद्रकी में यह संरचना और काफी जटिल होती है। धनात्मक आवेशित क्षारीय प्रोटीन का समूह होता है जिसे हिस्टोन्स कहते हैं। इस प्रोटीन्स का आवेश, आवेशित पार्श्व शृंखलाओं में स्थित एमीनो अम्लों की बहुलता पर निर्भर करता है। हिस्टोन्स में क्षारीय एमीनो अम्लीय लाइसीन व आरजीनीन अधिक मात्रा में मिलते हैं। दोनों एमीनो अम्ल की पार्श्व श्रृंखलाओं पर धनात्मक आवेश होता है। हिस्टोन व्यवस्थित होकर आठ हिस्टोन अणुओं की एक ईकाई बनाता है जिसे हिस्टोन अष्टक कहते हैं। धनात्मक आवेशित हिस्टोन अष्टक चारो तरफ से ऋणात्मक आवेशित डीएनए से सटा
होता है जिसे न्यूक्लियोसोम कहते हैं (चित्र 5.4अ)। एक प्रारूपी न्यूक्लियोसोम 200 क्षार युग्म की डीएनए कुंडली होती है। केंद्रक में मिलने वाली एक संरचना जिस पर न्यूक्लियोसोम्स एक के बाद एक मिलते है उसे क्रोमेटीन कहते हैं - जो केंद्रक में अभिरंजित धागे की तरह की संरचना होती है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने पर न्यूक्लियोसोम्स क्रोमेटीन जिस तरह से ‘डोरी पर बीड्स’ की तरह से दिखाई पड़ते हैं (चित्र 5.4ब)।
सैद्धांतिक रूप से तुम सोच सकते हो कि एक स्तनधारी कोशिका में ऐसे दाने (न्यूक्लियोसोम) की तरह की रचना की संख्या क्या हो सकती है?
चित्र 5.4 ब ई एम दृश्य ‘डोरी पर बीड्स’
डोरी पर बीड्स सदृश संरचना क्रोमेटीन में कोष्ठित होकर क्रोमेटीन धागों (सूत्रों) का निर्माण करती है जो आगे कुंडलित व संघनित होकर कोशिका विभाजन की मध्यावस्था में गुणसूत्र का निर्माण करते हैं। उच्च स्तर पर क्रोमेटीन के पेकेजिंग हेतु अतिरिक्त प्रोटीन की आवश्यकता होती है जिसे सामूहिक रूप से गैर-हिस्टोन गुणसूत्रीय प्रोटीन ( नान-हिस्टोन क्रोमोसोमल प्रोटीन, एन एस सी) कहते हैं। एक प्रारूपी केंद्रक में कुछ जगहों पर क्रोमेटीन ढीले-ढाले बँधे (हल्के अभिरंजित) होते हैं जिसे ‘यूक्रोमेटीन’ कहते हैं। क्रोमेटीन जो काफी अच्छे ढंग से बँधे होते हैं व गाढ़े रंग के दिखायी पड़ते हैं उसे ‘हेटोरोक्रोमेटीन’ कहते हैं।
5.2 आनुवंशिक पदार्थ की खोज
मेस्चर द्वारा न्यूक्लिन व मेंडल के वंशागति सिद्धांतों तथा एक लंबे समय के बाद यह सिद्ध व ज्ञात हो सका कि डीएनए आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करता है। आनुवंशिक वंशागति के आणविक आधार की खोज 1926 में हुई। ग्रेगर मेंडल, वाल्टर सटन, थामस हंट मार्गन व अन्य दूसरे वैज्ञानिकों की पूर्व खोजों के आधार पर स्पष्ट हो गया कि गुणसूत्र अधिकतम कोशिकाओं के केंद्रक से मिलता है। लेकिन इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल सका कि कौन-सा अणु वास्तव में आनुवंशिक पदार्थ है।
रूपांतरीय सिद्धांत - वर्ष 1928 में फ्रेडेरिक ग्रिफीथ ने स्ट्रेप्टोकोकस नीमोनी (जीवाणु जो निमोनिया के लिए जिम्मेदार है) के साथ कई प्रयोगों से रूपांतरण की अच्छे ढंग से व्याख्या थी। उनके प्रयोगों के दौरान एक सजीव जीव (जीवाणु) के प्राकृतिक रूप में परिवर्तन हो गया।
जब स्ट्रेप्टोकोकस नीमोनी (न्यूमोकोकस) जीवाणु की संवर्धन प्लेट पर वृद्धि करता है तब इसकी कुछ चिकनी चमकीली कालोनी
एस प्रभेद
आर प्रभेद
ग्रीफिथ ने जीवाणु को गर्म करने पर उन्हें मृत पाया। उसने पाया कि गर्म करने पर मृत एस प्रभेद जीवाणु को चूहे में प्रवेश कराने से उसकी मृत्यु नहीं हो पायी। लेकिन जब उसमें गर्म करने से मृत एस व सजीव आर जीवाणु के मिश्रण को चूहे में प्रवेश कराया तब चूहे की मृत्यु हो गयी। इस मृत चूहे से उसने सजीव एस जीवाणु को विलगित किया।
एस प्रभेद
आर प्रभेद
(सजीव)
ग्रीफिथ ने बताया कि आर-प्रभेद जीवाणु ताप मृत एस-प्रभेद जीवाणु द्वारा रूपांतरित किए गए। यह रूपांतरित कारक ताप मृत एस-प्रभेद से आर-प्रभेद में स्थानांतरित होने से इसमें चिकनी बहुशर्कराइड आवरण का निर्माण होता है जिससे यह उग्र रूप में परिवर्तन हो जाता है। यह निश्चित ही आनुवंशिक पदार्थ के स्थानांतरण के कारण हो पाता है। इन प्रयोगों से आनुवंशिक पदार्थ के जीव रासायनिक प्रकृति के बारे में नहीं बताया जा सकता है।
रूपांतरित सिद्धांत के जीव रासायनिक लक्षण - ओसवाल्ड एबेरी, कोलीन मैकलिओड व मैक्लीन मैककार्टी (1933-44) के कार्य के पहले ऐसा समझा जाता था कि आनुवंशिक पदार्थ प्रोटीन है। ग्रीफिथ के सभी प्रयोगों के आधार पर रूपांतरित सिद्धांत की जीव रासायनिक प्रकृति के बारे में पता चला।
ताप मृत एस कोशिकाओं से जैव रासायनों (प्रोटीन, डीएनए, आरएनए आदि) को अलग कर यह पता लगाने के किए शोधित किया कि इनमें से कौन आर कोशिका को एस कोशिका में रूपांतरित करने में सहायक होता है। उन्होंने इस बात का पता लगाया कि एस जीवाणु का केवल डीएनए ही आर जीवाणु को रूपांतरित कर सकता है।
उन्होंने इस बात का भी पता लगाया कि प्रोटीन पाचक एंजाइम (प्रोटीएजिज) व आरएनए पाचक एंजाइम (आरएनेज) इस रूपांतरण को प्रभावित नहीं करते हैं, इसलिए रूपांतरित पदार्थ प्रोटीन या आरएनए नहीं है। डीएनएज से पाचन के बाद रूपांतरण प्रक्रिया बंद हो जाती है। इससे स्पष्ट है कि डीएनए ही रूपांतरण के लिए जिम्मेदार है। इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि आनुवंशिक पदार्थ डीएनए है, लेकिन इस बात से सभी जीव विज्ञानी सहमत नहीं थे।
डीएनएएस (DNAs) व डीएनेज (DNase) के बीच क्या कोई अंतर है?
5.2.1 आनुवंशिक पदार्थ डीएनए है
डीएनए आनुवंशिक पदार्थ है इसके बारे में सुस्पष्ट प्रमाण अल्फ्रेड हर्षे व मार्था चेस (1952) के प्रयोगों से प्राप्त हुआ। इन्होंने उन विषाणुओं पर कार्य किया जो जीवाणु को संक्रमित करते हैं जिसे जीवाणुभोजी कहते हैं।
जीवाणुभोजी जीवाणु से चिपकते हैं अपने आनुवंशिक पदार्थ को जीवाणु कोशिका में भेजते हैं। जीवाणु कोशिका विषाणु के आनुवंशिक पदार्थ को अपना समझने लगते हैं जिससे आगे चलकर अधिक विषाणुओं का निर्माण होता है। हर्षे व चेस ने इस बात का पता लगाने के लिए प्रयोग किया कि विषाणु से प्रोटीन या डीएनए निकल कर जीवाणु में प्रवेश करता है।
उन्होंने कुछ विषाणुओं को ऐसे माध्यम पर पैदा किया जिसमें एक को विकिरण सक्रिय फॉस्फोरस व दूसरे विषाणुओं को विकिरण सक्रिय सल्फर पर वृद्धि किया था। जिस विषाणु को विकिरण सक्रिय फॉस्फोरस की उपस्थिति में पैदा किया। उसमें विकिरण सक्रिय डीएनए पाया गया जबकि विकिरण सक्रिय प्रोटीन नहीं था, क्योंकि डीएनए में फॉस्फोरस होता है; प्रोटीन नहीं। ठीक इसी तरह से विषाणु जिसे विकरण सक्रिय सल्फर
चित्र 5.5 हर्षे-चेस का प्रयोग
की उपस्थिति में पैदा किया गया उनमें विकिरण सक्रिय प्रोटीन पाई गई, डीएनए विकिरण सक्रिय नहीं था; क्योंकि डीएनए में सल्फर नहीं मिलता है।
विकरण सक्रिय जीवाणु भोजी ई.कोलाई जीवाणु से चिपक जाते हैं। जैसे संक्रमण आगे बढ़ता है जीवाणु को संमिश्रक में हिलाने से विषाणु आवरण अलग हो जाता है। जीवाणुओं को अपकेंद्रणयंत्र में प्रचक्रण कराने से विषाणु कण जीवाणुओं से अलग हो जाते हैं।
जो जीवाणु विकिरण सक्रिय डीएनए रखने वाले विषाणु से संक्रमित हुए थे, वे विकिरण सक्रिय रहे। इससे स्पष्ट है कि जो पदार्थ विषाणु से जीवाणु में प्रवेश करता है, वह डीएनए है। जो जीवाणु उन विषाणुओं से संक्रमित थे जिनमें विकिरण सक्रिय प्रोटीन था, वे विकिरण सक्रिय नहीं हुए। इससे संकेत मिलता है कि प्रोटीन विषाणु से जीवाणु में प्रवेश नहीं करता है। इस कारण से आनुवंशिक पदार्थ डीएनए ही है जो विषाणु से जीवाणु में जाता है (चित्र 5.5 )।
5.2.2 आनुवंशिक पदार्थ के गुण ( डीएनए बनाम आरएनए)
पिछली चर्चाओं से यह स्पष्ट है कि प्रोटीन बनाम डीएनए के बीच जो विवाद आनुवंशिक पदार्थ को लेकर था वह अब स्पष्ट रूप से हर्षे व चेस के प्रयोग से सुलझ चुका है। अब यह सर्वमान्य हो चुका है कि डीएनए आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करता है। फिर भी यह स्पष्ट हो गया कि कुछ विषाणुओं में आरएनए (उदाहरण -टोबैको मोज़ेक वाइरस, क्यूबीटा बैक्टिरीयोफेज आदि) आनुवंशिक पदार्थ है। कुछ प्रश्नों के उत्तर आपको देने हैं जैसे - क्यों डीएनए प्रमुख आनुवंशिक पदार्थ है, जबकि आरएनए दूत व अनुकूलन जैसे सक्रिय कार्य करता है, दोनों न्यूक्लिक अम्ल अणुओं की रासायनिक संरचना में अंतर बताइए।
क्या आप डीएनए व आरएनए के बीच दो रासायनिक अंतरों को बता सकते हो?
एक अणु जो आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य कर सकता है वह निम्न मानदंडों को अवश्य पूर्ण करता है-
(क) यह अपना प्रतिकृति बनाने में सक्षम है (प्रतिकृति)
(ख) इसे संरचना व रासायनिक संगठन के आधार पर स्थिर होना चाहिए।
(ग) इनमें धीमें परिवर्तनों (उत्परिवर्तन) की संभावना होती है जो विकास के लिए आवश्यक है।
(घ) इसे स्वयं ‘मेंडल के लक्षण’ के अनुरूप अभिव्यक्त होना चाहिए।
यदि कोई क्षार युग्मन पूरकता के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए परीक्षण करता है, तब वह पाएगा कि दोनों न्यूक्लिक अम्लों (डीएनए व आरएनए) में स्वयं प्रतिकृति की क्षमता होती है। सजीव तंत्र के अन्य अणुओं में जैसे - प्रोटीन स्वयं प्रथम मापदंड को पूर्ण करने में असफल है।
आनुवंशिक पदार्थ इतना स्थायी होना चाहिए कि जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं, उम्र या जीव की शरीरक्रिया में परिवर्तन से इसमें परिवर्तन नहीं होना चाहिए। आनुवंशिक
पदार्थ का स्थायित्व उसकी एक प्रमुख विशेषता है जो ग्रिफिथ के ‘रूपांतरित कारक’ से स्पष्ट है जिसमें ताप से जीवाणु की मृत्यु हो जाती है, लेकिन आनुवंशिक पदार्थ की कुछ विशेषताएँ नष्ट नहीं हो पाती हैं। डीएनए के परिपेक्ष में इस बात को और अच्छे ढंग से समझ सकते हैं कि डीएनए की दोनों रज्जुक एक दूसरे के पूरक होते हैं जो गर्म करने पर एक दूसरे से अलग हो जाते हैं; लेकिन पुनः उचित स्थिति के आने पर एक दूसरे से जुड़ जाते हैं। आरएनए के प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड पर
वास्तव में डीएनए में यूरेसील की जगह थाइमिन होने से उनमें एक अधिक स्थायत्त्व मिलता है। (इसके बारे में विस्तृत चर्चा हेतु हमें डीएनए में होने वाले मरम्मत की प्रक्रिया को समझना होगा, और आप इस प्रक्रिया के बारे में उच्च कक्षाओं में अध्ययन करेंगे।)
दोनों आरएनए व डीएनए उत्परिवर्तित हो सकते हैं। वास्तव में आरएनए अस्थायी व तीव्र गति से उत्परिवर्तित होता है। परिणामस्वरूप, विषाणुओं में आरएनए जीनोम मिलता है उसकी जीवन अवधि छोटी व तेजी से उत्परिवर्तित व विकसित होने वाली होती है। आरएनए प्रोटीन संश्लेषण के लिए सीधे कूटलेखन करते हैं, इसलिए वे आसानी से लक्षण व्यक्त करते हैं। डीएनए प्रोटीन संश्लेषण के लिए आरएनए पर निर्भर है। प्रोटीन संश्लेषण की सारी व्यवस्था आरएनए से विकसित हुई। उपरोक्त चर्चाओं से स्पष्ट है कि दोनों डीएनए व आरएनए आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करते हैं। डीएनए के अधिक स्थायी होने से वह आनुवंशिक सूचनाओं के संचय हेतु सबसे उपयोगी है, आनुवंशिक सूचनाओं के स्थानांतरण हेतु आरएनए उपयुक्त है।
5.3 आरएनए संसार
पूर्ववर्त्ती चर्चाओं से तत्काल एक प्रश्न उठता है कि प्रथम आनुवंशिक पदार्थ कौन सा है? इस अध्याय में रासायनिक विकास के बारे में विस्तृत रूप से वर्णन किया जाएगा; लेकिन संक्षेप में कुछ तथ्यों व बिंदुओं को हम अवश्य उजागर करेंगे।
आरएनए पहला आनुवंशिक पदार्थ था। अब बहुत पर्याप्त प्रमाण है कि जीवन के आवश्यक प्रक्रमों (जैसे-उपापचयी, स्थानांतरण, संबंधन आदि) का विकास आरएनए से हुआ। आरएनए आनुवंशिक पदार्थ के साथ एक उत्प्रेरक (जैविक तंत्र में कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण जैव रासायनिक अभिक्रियाएँ हैं जो आरएनए उत्प्रेरक द्वारा उत्प्रेरित की जाती है प्रोटीन एंजाइम का इसमें कोई योगदान नहीं है।) आरएनए उत्प्रेरक के रूप में क्रियाशील लेकिन अस्थायी है। इस कारण से आरएनए के रासायनिक रूपांतरण से डीएनए का विकास हुआ, जिससे यह अधिक स्थायी है। डीएनए के द्विरज्जुकों व पूरक रज्जुकों के कारण तथा इनमें मरम्मत प्रक्रियाओं के विकास से अपने में होने वाले परिवर्तनों के प्रति प्रतिरोधी है।
5.4 प्रतिकृति
डीएनए के द्विकुंडली रचना के प्रतिवादन के साथ ही वॉटसन व क्रिक ने तत्काल डीएनए की प्रतिकृति की योजना प्रस्तुत की। यदि उनके मूल कथनों को उद्धृत किया जाए तो वह इस प्रकार हैं-
“विशिष्ट युग्मन की जानकारी के बाद आनुवंशिक पदार्थ के नए रूप के निर्माण की प्रक्रियाओं के बारे में तत्काल प्रतिपादन करने से बचा नहीं जा सकता था।” (वाटसन व क्रिक, 1953)
उपरोक्त योजना से स्पष्ट है कि दोनों रज्जुक अलग होकर टेम्पलेट के रूप में कार्यकर नए पूरक रज्जुकों का निर्माण करते हैं। प्रतिकृति के पूर्ण होने के बाद जो डीएनए अणु बनता है उसमें एक पैतृक व एक नई निर्मित लड़ी रज्जुक होती है। डीएनए प्रतिकृति की यह योजना अर्धसरंक्षी (सेमीकंजरवेटिव) कहलाती है (चित्र 5.6)।
5.4.1 प्रायोगिक प्रमाण
अब यह सिद्ध हो चुका है कि डीएनए का अर्धसरंक्षी प्रतिकृतियन होता है। इसके बारे में सर्वप्रथम जानकारी इस्चेरिचिया कोलाई से प्राप्त हुई और आगे जाकर उच्च जीवों जैसे पौधों व मानव कोशिकाओं में पता लग पाया। मैथ्यूमेसेल्सन व फ्रैंकलिन स्टाल
ने 1958 में निम्न प्रयोग किया -
(क) इन्होंने ई.कोलाई को ऐसे संवर्धन में विकसित किया जिसमें
(ख) इसके बाद कोशिकाओं को ऐसे संवर्धन में स्थानांतरित किया जिसमें साधारण
चित्र 5.7 मेसेल्सन एवं स्टाल का प्रयोग
क्या तुम अपकेंद्रबल के बारे में बता सकते हो? और सोचो क्यों एक अणु जो अधिक द्रव्यमान घनत्व का है तेजी से अवछाद बनाता है?
परिणामों को चित्र 5.7 में दर्शाया गया है-
(ग) इस प्रकार, संवर्धन जिसको
ई. कोलाई के 80 मिनट बाद वृद्धि से प्राप्त डीएनए में हल्के व संकरित डीएनए घनत्व का अनुपात होगा?
ठीक इसी तरह का प्रयोग टेलट व उनके सहयोगियों ने 1958 में विसिया फाबा (फाबा सेम) पर नवनिर्मित डीएनए का गुणसूत्र में वितरण का पता लगाने के लिए विकिरण सक्रिय थाइमीडिन का प्रयोग किया। इस प्रयोग से यह सिद्ध हो गया कि गुणसूत्र में डीएनए अर्ध संरक्षकीय तरह से प्रतिकृति करता है।
5.4.2 कार्यप्रणाली व एंजाइम
सजीव कोशिकाओं जैसे ई.कोलाई में प्रतिकृति हेतु उत्प्रेरकों (एंजाइम) के समूहों की आवश्यकता होती है। मुख्य एंजाइम जो डीएनए पर निर्भर है, वह डीएनए पॉलीमरेज है। यह डीएनए टेम्प्लेट का उपयोग डीऑक्सीन्युक्लियोराइड के बहुलकन को उत्प्रेरित करता है। यह एंजाइम काफी प्रभावी है, क्योंकि बहुत ही कम समय में अधिक संख्या में न्युक्लियाटाइडस के बहुलकन को उत्प्रेरित करता है। कल्पना करो कि ई. कोलाई में
चित्र 5.8 प्रतिकृत द्विशाख
अधिक शुद्धता के साथ प्रतिकृति प्रक्रम को पूर्ण करने हेतु डीएनए पर निर्भर डीएनए पॉलीमरेज के साथ अन्य एंजाइम की आवश्यकता होती है। लंबे डीएनए अणुओं के दोनों रज्जुक एक साथ पृथक नहीं होते (क्योंकि इसके लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है), प्रतिकृति हेतु डीएनए कुंडलिनी छोटे-छोटे भाग में खुलते हैं जिसे प्रतिकृति द्विशाख कहते हैं। डीएनए पर निर्भर डीएनए पॉलीमरेज बहुलकन केवल एक दिशा
डीएनए पॉलीमरेज स्वयं प्रतिकृति प्रक्रम की शुरुआत नहीं कर सकते हैं। प्रतिकृति डीएनए के किसी भी जगह पर प्रतिकृति क्रमहीन प्रारंभ नहीं होती है। ई. कोलाई के डीएनए में कुछ निश्चित स्थान होते हैं। जहाँ से प्रतिकृति की शुरुआत होती है। इन जगहों को प्रतिकृति का स्थल नामकरण दिया गया है। इस कारण से प्रतिकृति की शुरुआत के लिए आवश्यक डीएनए खंडों की प्राप्ति पुनर्योगज डीएनए विधि के द्वारा होती है जिसमें संवाहक की आवश्यकता होती है। संवाहक से प्रतिकृति की शुरुआत होती है। मूल की प्रकृति और इस जगह पर होने वाले प्रक्रमों के बारे में आप विस्तृत रूप से उच्च कक्षाओं में पढ़ेंगे।
प्रतिकृति के बारे में अभी विस्तृत रूप से पूर्ण जानकारी नहीं है। ससीमकेंद्रकी सुकेंद्रकी में डीएनए की प्रतिकृति कोशिका चक्र के एस-प्रावस्था में होती है। डीएनए की प्रतिकृति व कोशिका विभाजन चक्र काफी संभावित ढंग से होती है। डीएनए प्रतिकृति के बाद कोशिका विभाजन न होने के कारण बहुगुणिता (पॉलीप्लॉयडी) की स्थिति (गुणसूत्री समानता) उत्पन्न होती है। इनमें से कुछ प्रक्रमों के बारे में विस्तृत रूप से आप उच्च कक्षाओं में पढ़ंगे।
5.5 अनुलेखन ( ट्रांसक्रिप्शन )
डीएनए की एक रज्जुक से आनुवंशिक सूचनाओं का आरएनए में प्रतिलिपीकरण करने की प्रक्रिया को अनुलेखन कहते हैं। यहाँ भी पूरकता का सिद्धांत अनुलेखन प्रक्रम को नियंत्रित करता है जिसमें एडिनोसिन थाइमिन की जगह पर यूरेसिल के साथ क्षारयुग्म बनाता है। यद्यपि प्रतिकृति प्रक्रम के विपरीत किसी जीव के कुल डीएनए द्विगुणित होकर अनुलेखन के दौरान अपना एक रज्जुक आरएनए के साथ मिलाकर उसी का रूप ले लेता है। इससे डीएनए की लड़ी व जगहों का पता चलता है जो अनुलेखन में भाग लेते हैं। अनुलेखन के दौरान दोनों रज्जुकों की प्रतिलिपीकरण क्यों नहीं होती है। इसका साधारण सा उत्तर है। प्रथम, दोनों रज्जुक टेम्प्लेट के रूप में कार्य करते हैं तब उनसे विभिन्न अनुक्रमों वाले आरएनए अणुओं का अनुलेखन होता है (याद रखो पूरकता का मतलब समानता नहीं है), यदि प्रोटीन का कूटलेखन करते हैं तब प्रोटीन में मिलने वाले एमीनो अम्लों का अनुक्रम भिन्न होगा। यदि इसी डीएनए का एक भाग दो भिन्न प्रोटीनों का कूटलेखन करता है तब आनुवंशिक सूचना स्थानांतरण तंत्र द्वारा जटिलता उत्पन्न करती है। दूसरा साथ-साथ दो आरएनए अणुओं जो एक दूसरे के पूरक है। इनके निर्माण से द्विरज्जुक आरएनए का निर्माण होगा। इससे आरएनए के प्रोटीन में अनुलेखन नहीं हो पाता है और अनुलेखन का प्रयास व्यर्थ जाता है।
5.5.1 अनुलेखन इकाई
डीएनए में अनुलेखन इकाई के मुख्यतया तीन भाग होते हैं-
(क) उन्नायक (प्रमोटर)
(ख) संरचनात्मक जीन (स्ट्रक्चरल जीन)
(ग) समापक (टर्मीनेटर)
अनुलेखन इकाई के संरचनात्मक जीन डीएनए के द्विरज्जुक का ही भाग है। चूँकि रज्जुक विपरीत ध्रुवत्व की ओर होते हैं इसलिए डीएनए - निर्भर आरएनए पॉलीमरेज बहुलकन केवल एकदिशा
3’-ए टी जी सी ए टी जी सी ए टी जी सी ए टी जी सी ए टी जी सी ए टी जी सी ए टी जी सी
उपरोक्त डीएनए से अनुलेखित आरएनए के अनुक्रमों को क्या आप लिख सकते हो? उन्नायक व समापक तथा किनारे पर स्थित संरचनात्मक जीन अनुलेखन ईकाई बनाते हैं। संरचनात्मक जीन के
यह डीएनए अनुक्रम है जिससे आरएनए पॉलीमरेज जुड़ता है और अनुलेखन ईकाई में स्थित उन्नायक टेम्प्लेट व कूटलेखन रज्जुक का निर्धारण करता है। समापक कूटलेखन रज्जुक के
चित्र 5.9 अनुलेखन एकल की आरेखिय संरचना
5.5.2 अनुलेखन इकाई व जीन
जीन वंशागति की क्रियात्मक इकाई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जीन डीएनए पर स्थित होते हैं। जीन को डीएनए अनुक्रम के शब्दों में साहित्यिक रूप से परिभाषित करना कठिन है। टीआरएनए अथवा आरआरएनए अणु डीएनए अनुक्रम अंतरण के लिए कार्य करते हैं उनसे भी जीन परिभाषित होता है। परिभाषा के अनुसार समपार (सीस्ट्रान) डीएनए का वह खंड है जो पॉलीपेप्टाइड का कूटलेखन करता है, अनुलेखन ईकाई में संरचनात्मक जीन मोनोसीस्ट्रानीक (अधिकतर सुकेंद्री में) या पॉलीसीस्ट्रानिक (अधिकतर जीवाणु में या असीमकेंद्री में) हो सकता हैं। सुकेंद्रकी में मोनोसिस्ट्रानिक संरचनात्मक जीन मिलती है जिसमें अंतरापित कूटलेखन अनुक्रम पाए जाते है - सुकेंद्री में जीन विखंडित होते हैं। कूटलेखन अनुक्रम या अभिव्यक्त अनुक्रमों को व्यक्तेक (एक्जान) कहते हैं। व्यक्तेक वे अनुक्रम हैं जो परिपक्व या संसाधित आरएनए में मिलते हैं। व्यक्तेक, अव्यक्तेक (इंट्रान) द्वारा अंतरापित होते हैं। अव्यक्तेक या मध्यवर्ती अनुक्रम परिपक्व या संसाधित आरएनए में नहीं मिलते हैं। डीएनए खंड के अर्थ में अंतरापित जीन व्यवस्था जीन की परिभाषा को जटिल बना देती है।
लक्षण की वंशागति संरचनात्मक जीन के उन्नायक व नियामक अनुक्रमों द्वारा प्रभावित होते हैं। चूँकि कभी-कभी नियामक अनुक्रम अस्पष्ट रूप से नियामक जीन कहलाते हैं, इसके बावजूद ये अनुक्रम किसी आरएनए या प्रोटीन का कूटलेखन नहीं करते हैं।
5.5.3 आरएनए के प्रकार व अनुलेखन का प्रक्रम
जीवाणु में मुख्यतया तीन प्रकार के आरएनए होते हैं - दूत आरएनए (आरआरएनए; मेसेंजर आरएनए) अंतरण आरएनए (टीआरएनए; ट्रांसफर आरएनए), व राइबोसोमल आरएनए (आरआरएनए) ए सभी तीन आरएनए कोशिका में प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक है। एमआरएनए टेम्पलेट प्रदान करता है, टी आरएनए एमीनो अम्लों के लाने व आनुवंशिक कूट को पढ़ने का काम व आरआरएनए स्थानांतरण के दौरान संरचनात्मक व उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है। जीवाणु में डीएनए पर निर्भर केवल एक आरएनए पॉलीमरेज होता है जो सभी प्रकार के आरएनए के अनुलेखन को उत्प्रेरित करता है। आरएनए पॉलीमरेज उन्नायक से जुड़कर अनुलेखन की शुरुआत (प्रारंभन) करते हैं। यह ट्राइफॉस्फेट को क्रियाधार के रूप में प्रयोगकर पूरकता के नियम का अनुपालन करते हुए टेम्प्लेट में बहुलकित हो जाता है। यह कुंडली को आगे खुलने व उसकी दीर्घीकरण में सहायता करता है। केवल छोटी लंबाई वाला आरएनए एंजाइम से जुड़ता है। जब आरएनए पॉलीमरेज समापक किनारे पर पहुँच जाता है तब नवनिर्मित आरएनए व आरएनए पॉलीमरेज अलग हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप अनुलेखन का समापन हो जाता है। यह एक जिज्ञासापूर्ण प्रश्न है कि आरएनए पॉलीमरेज किस तरह से उन तीनो चरणों प्रारंभन, दीर्घीकरण व समापन को उत्प्रेरित करता है। केवल आरएनए पॉलीमरेज ही दीर्घीकरण प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने में सक्षम है। यह अस्थायी रूप से प्रारंभन कारक व समापन कारक से जुड़ जाता है। अनुलेखन की शुरुआत पॉलीमरेज के साथ जुड़ने से उसकी विशिष्टता में परिवर्तन के साथ होती है जिससे या तो प्रारंभन या समापन होता है (चित्र 5.10)।
प्रारंभन
दीर्घीकरण
आरएनए
समापन
चित्र 5.10 बैक्टीरिया में अनुलेखन प्रक्रिया
जीवाणु में सक्रिय दूत आरएनए के निर्माण में संसाधन की आवश्यकता नहीं होती है व अनुलेखन तथा स्थानांतरण एक कक्ष (जीवाणु में कोशिका विलेय व केंद्रक में कोई अलगाव नहीं होता है) में होता है, इसलिए कई बार स्थानांतरण दूत आरएनए के पूर्ण रूप से अनुलेखित होने के पहले ही प्रारंभ हो जाता है। फलस्वरूप अनुलेखन व स्थानांतरण जीवाणु में साथ-साथ संपन्न हो सकता है।
सुकेंद्रकी में दो अतिरिक्त जटिलताएँ हैं -
(क) केंद्रक (अंगकों में मिलने वाले पॉलीमरेज के अतिरिक्त) में कम-से-कम तीन प्रकार के आरएनए पॉलीमरेज मिलते हैं। इनमें कार्यों का स्पष्ट विभाजन है। आरएनए पॉलीमरेज I राइबोसोमल आर आरएनए (rRNA) (28s, 18s, व
(ख) दूसरी जटिलता यह है कि प्रारंभिक अनुलेखन में व्यक्तेक व अव्यक्तेक दोनों मिलते हैं और वह असक्रिय होते हैं। चूँकि यह एक प्रक्रम से गुजरता है जिसे समबंधन (स्पलाइसिंग) कहते हैं जिसमें अव्यक्तेक अलग हो जाता है व व्यक्तेक एक निश्चित क्रम में आपस में जुड़ जाते हैं।
चित्र 5.11 सुकेंद्रकियों में अनुलेखन प्रक्रिया
रूप में टेम्पलेट के
उपरोक्त जटिलताओं के महत्त्व को अब समझने की आवश्यकता है। अंतरापित जीन व्यवस्था संभवतः जीनोम के पूर्व रूप को व्यक्त करता है। अव्येक्तेक की उपस्थिति पुराने समय की याद दिलाता है और संबंधन प्रक्रिया में आरएनए संसार की प्रभुता को व्यक्त करता है। वर्तमान समय में सजीव तंत्र में आरएनए निर्भर प्रक्रमों के बारे में समझने की अधिक आवश्यकता है।
5.6 आनुवंशिक कूट
प्रतिकृति व अनुलेखन के दौरान न्युक्लिक अम्ल से दूसरे न्युक्लिक अम्ल का प्रतिलिपिकरण होता है। इन प्रक्रमों को पूरकता के आधार पर समझना आसान है। स्थानांतरण की प्रक्रिया में आनुवंशिक सूचनाएँ न्यूक्लियोटाइड के बहुलक से एमीनों अम्लों के बहुलक की ओर स्थानांतरित होती है एमीनो अम्लों के न्यूक्लियोटाइड में न तो कोई पूरकता मिलती है न ही सैद्धांतिक रूप से इसके बारे में सोच सकते हैं। न्यूक्लिक अम्ल (आनुवंशिक पदार्थ) में परिवर्तन से प्रोटीन के एमीनो अम्ल में भी परिवर्तन हो जाता है। इस विचार के समर्थन हेतु पर्याप्त प्रमाण है। इससे आनुवंशिक कूट (जेनेटिक कोड) की परिकल्पना का प्रतिवादन हुआ जो प्रोटीन संश्लेषण के दौरान एमीनो अम्लों के अनुक्रम को निर्धारित करते हैं।
डीएनए की संरचना व आनुवंशिक पदार्थ के जैव रासायनिक प्रकृति का निर्धरण जितना उत्तेजना पूर्ण था, उससे ज्यादा आनुवंशिक कूट का अर्थ निकालना व प्रस्ताव करना चुनौतिपूर्ण था। सही अर्थों में इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों के वैज्ञानिकों भौतिकविद्, कार्बनिक रसायनविद्य, जैव रासायनज्ञ व आनुवंशिकविद् के सहयोग की आवश्यकता थी। जार्ज गेमो एक भौतिकविद् थे जिनका विचार था कि यदि क्षार केवल चार हैं तो इन बीस अमीनो अम्ल का कूटलेखन किस रूप से होता है; अतः कूट के निर्माण में क्षारों का समूह बनता है। इनका विचार था कि सभी बीस अमीनो अम्लों के कूट हेतु, कोड तीन न्यूक्लियोराइडों के बने होते हैं। यह एक बहुत ठोस विचार था, जिससे
प्रकूट (कोडान) त्रिक होते हैं इसका प्रमाण देना अत्यधिक कठिन कार्य था। हर गोविंद खुराना ने निश्चित क्षारों (समबहुलक या सहबहुलक) के समुच्चय युक्त आरएनए अणुओं के संश्लेषण की रासायनिक विधि का विकास किया था। प्रोटीन संश्लेषण हेतु मार्शल नीटेनबर्ग की कोशिश स्वतंत्र तंत्र कूट का अर्थ निकालने में काफी सहयोगी रही। सेबवेटो ओकोआ एंजाइम (पॉलीन्यूक्लियोराइड फास्फोरीलेज) आरएनए को स्वतंत्र रूप (आरएनए का एंजाइम संश्लेषण) से टेम्प्लेट के निश्चित अनुक्रमों के साथ
बहुलकित होने में सहायता प्रदान करता है। अंत में आनुवंशिक कूट का चेकर बोर्ड (पैनेट आरेख) नीचे तालिका 5.1 में दिया गया है -
आनुवंशिक कूट की प्रमुख विशेषताएँ निम्न है -
(क) प्रकूट त्रिक होता है। 61 प्रकूट अमीनो अम्ल का कूट लेखन करते हैं व तीन प्रकूट का कूट लेखन नहीं करते हैं इस कारण से यह रोध प्रकूट के रूप में कार्य करता है।
(ख) एक प्रकूट केवल एक अमीनो अम्ल का कूट लेखन करता है इस कारण से यह असंदिगध व विशिष्टि होता है।
(ग) कुछ अमीनो अम्ल का कूट लेखन एक से अधिक प्रकूटों द्वारा होता है, इस कारण से इन्हें अपह्रासित कूट कहते हैं।
(घ) प्रकूट दूत आरएनए में लगातार पढ़े जाते हैं। ये बीच में रुके हुए नहीं होते हैं।
(ङ) कूट लगभग सार्वभौमिक होते हैं, उदाहरणार्थ — जीवाणु से मनुष्य में यू यू यू (UUU) फेनिलएलेनीन (पीएचइ) का कूटलेखन करता है। इस नियम के कुछ अपवाद सूचकणिका प्रकूट व कुछ आदि जंतुओं (प्रोटोजोआ) में मिलता है।
(च) AUG दोहरा कार्य करते हैं। यह मीथियोनीन का कूट लेखन करता है। यह एक प्रारंभक प्रकूट के रूप में कार्य करता है।
यदि एक दूत आरएनए में निम्न न्युक्यिटाइड अनुक्रम है तो इनके द्वारा कूटलेखित अमीनो अम्ल के अनुक्रमों की कल्पना करो (चेकरबोर्ड की सहायता लीजिए)।
-AUG UUU UUC UUC UUU UUU UUC-
अब इसके विपरीत के बारे में बताओ। नीचे दिए गए दूत आरएनए द्वारा कूटलेखित अमीनो अम्ल के अनुक्रम हैं। आरएनए में न्युकियोटाइड अनुक्रम का पता लगाओ
तालिका 5.1 विभिन्न अमीनो अम्ल के लिए प्रकूट
Met-Phe-Phe-Phe-Phe-Phe-Phe
क्या आप इसका विपरीत पता लगाने में परेशानी महसूस करते हैं? क्यों?
क्या आप अब आनुवंशिक कूट की दो विशेषताओं के बारे सामंजस्य बिठा सकते हैं, जिसके बारे में आप पढ़ चुके हैं?
5.6.1 उत्परिवर्तन व आनुवंशिक कूट
जीन व डीएनए के बीच आपसी संबंधों को उत्परिवर्तन द्वारा अच्छे ढंग से समझा जा सकता है। तुम उत्परिवर्तन और इसके प्रभाव के बारे में विस्तृत रूप से अध्याय 5 में पढ़ चुके हो। एक डीएनए के खंड में अधिक लोपन व पुनर्योजन के प्रभाव के बारे में आसानी से समझ सकते हो। इसके परिणाम स्वरूप जीन के कार्य की क्षति या वृद्धि होती है। बिंदु उत्परिवर्तन का एक प्रतिष्ठित उदाहरण बीटा ग्लोबिन शृंखला के जीन में एक क्षार युग्म में परिवर्तन के परिणामस्वरूप अमीनो अम्ल अवशिष्ट ग्लूटामेट से वैलीन में परिवर्तित होता है। इसके परिणाम स्वरूप होने वाले रोग को दात्र कोशिका सुरक्तता (सिकिल सेल एनीमिया) कहते हैं। बिंदु उत्परिवर्तन के कारण संरचनात्मक जीन में एक क्षार के प्रवेश या विलोपन के बारे में नीचे दिए गए साधारण उदाहरण के द्वारा अच्छी तरह से समझ सकते हैं।
इस कथन पर ध्यान दो जो निम्न शब्दों से बना है जिनमें तीन वर्ण (अक्षर) आनुवंशिक कूट की तरह मिलते हैं -
RAM HAS RED CAP
यदि HAS व RED बीच अक्षर
RAM HAS BRE DCA
ठीक इसी तरह से, उसी जगह पर हो अक्षर जो से
RAM HAS BIR EDC AP
अब हम एक साथ तीन अक्षरों जैसे
RAM HAS BIG RED CAP
उपर्युक्त अभ्यास को RED अक्षरों को एक के बाद एक विलोपित कर दोहरा सकते हैं और यह त्रिक अक्षरों का वाक्य निम्नवत् बनेगा -
RAM HAS EDC AP
RAM HAS DGA
RAM HAS CAP
उपर्युक्त अभ्यास से निष्कर्ष बहुत स्पष्ट है। एक या दो क्षारों के निवेशन या विलोपन से निवेशन या विलोपन बिंदु के पढ़ने के प्राधार (रीडिंग फ्रेम) में परिवर्तन होता है। यद्यपि ऐसे परिवर्तन का उल्लेख वाचन प्राधार निवेशन या विलोपन के रूप में किया जाता हैं। तीन या तीन क्षारों के गुणित निवेशन अथवा विलोपन से एक अथवा अनेक कोड तदनुसार एक अथवा अनेक एमीनो अम्ल के वाचन प्राधार इस बिंदु के आगे अपरिवर्तित रहते हैं।
5.6.2 अंतरण आरएनए अनुकूलक अणु
कूट परिकल्पना के बहुत समय पहले से फ्रेनसिस क्रिक के अनुसार कूट के पढ़ने व इसके अमीनो अम्ल से संबंध रखने वाली एक क्रियाविधि है,
चित्र 5.12 tआरएनए-अनुकूलक अणु क्योंकि अमीनो अम्ल में कोई संरचनात्मक विशिष्ता नहीं होती जिससे कि यह कूट को विशेष ढंग से पढ़ सके। इसके अनुसार एक अनुकूलतम अणु जो एक तरफ से कूट को पढ़ता है व दूसरे तरफ इससे विशिष्ट अमीनो अम्ल जुड़ जाते हैं। अंतरण आरएनए जिसे विलेय आरएनए (एसआरएनए) कहते हैं, के बारे में जानकारी आनुवंशिक कूट से पहले थी। फिर भी अनुकूलक अणु के रूप में इसकी भूमिका के बारे में बाद में जानकारी मिल पायी।
अंतरण आरएनए में एक प्रति प्रकूट
(G1y-) (Leu)- Tyx
ser
वर्धक पालीपेप्टाइड श्रंखला Leu
चित्र 5.13 स्थानांतरण (एंटीकोडान) फंदा होता है जिसमें कूट के पूरक क्षार मिलते हैं व इसमें एक अमीनो अम्ल स्वीकार्य छोर होता है जिससे यह अमीनो अम्ल से जुड़ जाता है। प्रत्येक अमीनो अम्ल के लिए विशिष्ट अंतरण आरएनए (tRNA) होते हैं (चित्र 5.12)। प्रारंभन हेतु दूसरा विशिष्ट अंतरण आरएनए होता है जिसे प्रारंभक अंतरण आरएनए कहते हैं। रोध प्रकूट के लिए कोई अंतरण आरएनए नहीं होता है। उपरोक्त चित्र में अंतरण आरएनए की द्वितीयक संरचना दर्शायी गयी है जो तिपतिया (क्लोवर) की पत्ती जैसी दिखायी देती है। वास्तविक संरचना के अनुसार अंतरण आरएनए सघन अणु है जो उल्टे एल (L) की तरह दिखाई देता है।
5.7 स्थानांतरण ( रूपांतरण )
स्थानांतरण या रूपांतरण वह प्रक्रिया है जिसमें अमीनो अम्लों के बहुलकन से पॉलीपेप्टाइड का निर्माण होता है (चित्र 5.13)। अमीनो अम्लों के क्रम व अनुक्रम दूत आरएनए में पाए जाने वाले क्षारो के अनुक्रम पर निर्भर करता है। अमीनो अम्ल पेप्टाइड
बंध द्वारा जुड़े रहते हैं। पेप्टाइड बंध के निर्माण में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस कारण से प्रथम प्रावस्था में अमीनो अम्ल स्वयं एटीपी के उपस्थिति में सक्रिय हो जाते है व सजातीय अंतरण आरएनए से जुड़ जाते हैं — इस प्रक्रिया को अधिक स्पष्ट रूप से अंतरण आरएनए का आवेशीकरण या अंतरण आरएनए एमीनोएसिलेशन कहते हैं। इस तरह से आवेशित दो अंतरण आरएनए का एक दूसरे से काफी पास में आने से उनमें पेप्टाइड बंध का निर्माण होता है। उत्प्रेरक की उपस्थिति में पेप्टाइड बंध बनने की दर बढ़ जाती है।
कोशकीय कारखाना जो प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक है वह राइबोसोम है। राइबोसोम संरचनात्मक आरएनए व लगभग 80 विभिन्न प्रोटीनों से मिलकर बना होता है। यह अपनी निष्क्रिय अवस्था में दो उप एकको-एक बड़ी उप एकक व एक छोटी उपएकक से मिलकर बना होता है। जब छोटा उपएकक दूत आरएनए में मिलता है तब दूत आरएनए का प्रोटीन में स्थानांतरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। बड़े उपएकक में दो स्थल होते हैं जिससे बाद में अमीनो अम्ल जुड़कर एक दूसरे के काफी पास में आ जाते हैं जिससे पॉली पेप्टाइड बंध बन जाता है। राइबोसोम पेप्टाइड बंध के निर्माण में उत्प्रेरक ( 23 राइबोसोमल आरएनए जीवाणु में एंजाइम - राइबोजाइम) का काम करता है।
दूत आरएनए में स्थानांतरण इकाई आरएनए का अनुक्रम है जिसके किनारो पर प्रारंभक प्रकूट (AUG स्टार्ट कोडान) व रोध प्रकूट (स्टाप कोडान) मिलते है जो पॉलीपेप्टाइड का कूटलेखन करते हैं। दूत आर एन में कुछ अतिरिक्त अनुक्रम होते हैं जो स्थानांतरित नहीं होते हैं उन्हें अस्थानातंरित स्थल (अनट्रांसलेटेड रीजन्स, यूटीआर) कहते हैं। यूटी आर दोनों
प्रारंभन हेतु राइबोसोम दूत आरएनए के प्रारंभक प्रकूट (AUG) से बंधता है जिसकी पहचान प्रारंभक अंतरण आरएनए द्वारा की जाती है। राइबोसोम इसके बाद प्रोटीन संश्लेषण की दीर्घीकरण प्रावस्था की ओर बढ़ता है। इस अवस्था में एमीनो अम्ल अंतरण आरएनए से जुड़कर एक जटिल रचना का निर्माण करते हैं जो आगे चलकर अंतरण आरएनए के प्रति प्रकूट (एंटीकोडान) से पूरक क्षार युग्म बना कर दूत आरएनए के उचित प्रकूट से जुड़ जाते हैं। राइबोसोम दूत आरएनए के साथ एक प्रकूट से दूसरे प्रकूट की ओर जाता है। एक के बाद एक अमीनो अम्लों के जुड़ने से पॉली पेप्टाइड अनुक्रमों का स्थानांतरण होता है जो डीएनए द्वारा निर्देशित व दूत आरएनए द्वारा निरूपित होते हैं। अंत में विमोचक कारक का रोध प्रकूट से जुड़ने से स्थानांतरण प्रक्रिया का समापन हो जाता है व राइबोसोम से पूर्ण पॉलीपेप्टाइड अलग हो जाते हैं।
5.8 जीन अभिव्यक्ति का नियमन
जीन अभिव्यक्ति के नियमन का बहुत व्यापक अर्थ है जो विभिन्न स्तरों पर होती है। जीन अभिव्यक्ति के परिणामस्वरूप पॉलीपेप्टाइड का निर्माण होता है जिसे कई स्तरों पर नियमित कर सकते हैं। सुकेंद्रकी में नियमन कई स्तर पर हो सकता है-
(क) अनुलेखन स्तर (प्रारंभिक अनुलेख का निर्माण) (ख) संसाधन स्तर (संबंधन का नियमन) (ग) दूत आरएनए का केंद्रक से कोशिकाप्रवण में अभिगमन (घ) स्थानांतरीय स्तर।
जीन कोशिका में अभिव्यक्त होकर एक विशेष कार्य या एक निश्चित कार्य को संपन्न करते हैं। उदाहरणार्थ-ई. कोलाई में स्थित एंजाइम बीटा-गैलेक्टोसाइडेज डाइसैकेटाइड-लैक्टोज का जल अपघटन कर गैलेक्टोज व ग्लूकोज का निर्माण करते हैं जिसे जीवाणु ऊर्जा के स्रोत के रूप में प्रयोग करते हैं। लैक्टोज जो जीवाणु के ऊर्जा स्रोत हैं कि अनुपस्थिति में बीटा गैलेक्टोसाइडेज एंजाइम का संश्लेषण नहीं होता है। इस कारण से साधारण शब्दों में कहा जाए तो यह एक उपापचयी, शरीर क्रियात्मक या वातावरण स्थिति है जो जीन की अभिव्यक्ति को नियमित करती है। एक भ्रूण का व्यस्क जीव में विकास व विभेदन जीन के विभिन्न समूहों की अभिव्यक्ति समंवित नियमन का परिणाम है।
असीमकेंद्रकी में जीन अभिव्यक्ति के नियंत्रक के लिए कुछ ऐसे प्रभावी स्थल होते हैं जो अनुलेखन प्रारंभन की दर को नियमित करते हैं। अनुलेखन ईकाई में एक निश्चित उन्नायक के साथ आरएनए पॉलीमरेज की क्रियाशीलता अतिरिक्त प्रोटीन से पारस्परिक क्रिया द्वारा उसे नियमित होती है जो प्रारंभक स्थल के पहचान में इसे सहयोग देते हैं। ये नियामक प्रोटीन सहयोगात्मक (सक्रिया, एक्टिवेटर) या असहयोगात्मक (दमनकारी, रिप्रेसर) दोनों रूप में कार्य कर सकते हैं। असीमकेंद्रकी डीएनए में उन्नायक स्थल की उपलब्धता प्रोटीन की विशेष अनुक्रमों जिसे प्रचालक (आपरेटर) कहते हैं से अन्योय क्रिया द्वारा नियमित होती रहती है। अधिकतर प्रचालेक (औपरॉन) में प्रचालक स्थल, उन्नायक भाग के पास में ही स्थित होता है और अधिकतर स्थिति में प्रचालक के अनुक्रम दमनकारी प्रोटीन से बँध जाते हैं। प्रत्येक औपरॉन का अपना विशिष्ट प्रचालेक व दमनकारी (रिप्रेशर) होता है। उदाहरण-लैक प्रचालेक केवल लैक-प्रचालेक (एलएसी-आपरेटर) में मिलता है यह विशेषरूप से लैक-दमनकारी (एलएसी-रिप्रेसर) से आपसी क्रिया करता है।
5.8.1 लैक प्रचालेक ( लैक-ओपेरान )
लैक ओपेरान के बारे स्पष्ट जानकारी आनुवंशिकीविज्ञ फ्रेंक्वास जैकब व जैव रसायनविज्ञ जैक्वे मोनाड के आपसी प्रयास से हो पायी है। उन्होंने पहली बार अनुलेखनीय नियमित तंत्र के बारे में बताया। लैक-प्रचालेक (यहाँ लैक का मतलब लैक्टोज है) में पॉलीसीसट्रानिक संरचनात्मक जीन का नियमन एक सामान्य उन्नायक व नियामक जीन द्वारा होता है। इस तरह की व्यवस्था जीवाणु में बहुत सामान्य है इसे प्रचालेक (ओपेरान) कहते हैं। ऐसे कुछ उदाहरण है - लैक प्रचालेक (एलएसी ओपेटान), ट्रिप प्रचालेक (टीआरपी - ओपेरान), एटा-प्रचालेक (एआरए-ओपेरान), हिस प्रचालेक (एचआईएस ओपेरान), व वैल-प्रचालेक (बीएएल-ओपेरान) आदि।
लैक प्रचालेक एक नियामक जीन (आई (i) जीन - यहाँ आई का मतलब प्रेरक (इनडयूसर) नहीं, बल्कि यह शब्द मंदक (इनहिबीटर) से किया गया है और तीन संरचनात्मक जीन (जेड, वाई व ए) से मिलकर बना होता है। आई (i) जीन लैक प्रचालेक के दमनकारी का कूटलेखन करता है। जेड जीन बीटा-गैलेक्टोसाइडेज (बीटा-गाल;
निष्क्रिय दमनकारी
चित्र 5.14 लैक ओपेरान
एकलक ईकाई गैलेक्टोज व ग्लूकोज का निर्माण करता है। वाई
लैक्टोज एंजाइम बीटा-गैलेक्टोसाइडेज के लिए क्रियाधार का काम करता है जो प्रचालेक की सक्रियता के आरंभ (आन) या निष्क्रियता समाप्ति (आफ) को नियमित करता है। इसे प्रेरक कहते हैं। सबसे उपयुक्त कार्बन स्रोत-ग्लूकोज की अनुपस्थिति में यदि जीवाणु के संवर्धन माध्यम में लैक्टोज डाल दिया जाता है तब परमिएड की क्रिया द्वारा लैक्टोज कोशिका के अंदर अभिगमन करता है। (याद करो कोशिका में लैक-प्रचालेक की अभिव्यक्ति निम्न स्तर पर हमेशा बनी रहती है अन्यथा लैक्टोज कोशिकाओं के भीतर प्रवेश नहीं कर सकता है)। इसके बाद लैक्टोज प्रचालेक को निम्न ढंग से प्रेरित करता है।
प्रचालेक का दमनकारी आई (i) जीन द्वारा संश्लेषित (हमेशा उपस्थित रहता है) होता है। दमनकारी प्रोटीन प्रचालेक के प्रचालक स्थल से बंधकर आरएनए पॉलीमरेज को निष्क्रिय कर देता है जिससे प्रचालेक अनुलेखित नहीं हो पाता है। प्रेरक जैसे लैक्टोज
(या एलोलैक्टोज) की उपस्थिति में दमनकारी प्रेरक से क्रियाकर निष्क्रियित हो जाता है। इसके फलस्वरूप आरएनए पॉलीमरेज उन्नायक से बँध कर अनुलेखन की शुरुआत करता है (चित्र 5.14)। लैक प्रचालेक के नियमन को इसके क्रियाधार द्वारा एंजाइम के संश्लेषण के रूप में निरुपित किया जा सकता है।
याद रखो लैक-प्रचालेक किए ग्लूकोज या गैलेक्टोज प्रेरक के रूप में कार्य नहीं कर सकता है। क्या तुम बता सकते हो लैक्टोज की उपस्थिति में कब तक लैक-प्रचालेक अभिव्यक्त हो सकता है?
दमनकारी द्वारा लैक-प्रचालेक के नियमन को ऋणात्मक नियमन (निगेटीव रेग्यूलेशन) कहते है। लैक प्रचालेक धनात्मक नियमन (पाजीटीव रेग्यूलेशन) के नियंत्रण में भी होता है, लेकिन इस स्तर पर इसके बारे में चर्चा नहीं कि जाएगी।
5.9 मानव जीनोम परियोजना ( ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट )
पिछले खंडों में तुम पढ़ चुके हो कि डीएनए में मिलने वाले क्षारों का अनुक्रम किसी भी जीव का आनुवंशिक सूचना का निर्धारण करता है। दूसरे शब्दों में किसी भी जीव की आनुवंशिक व्यवस्था उसके डीएनए में मिलने वाले अनुक्रम से निर्धारित होती है। दो विभिन्न व्यक्तियों में मिलने वाला डीएनए अनुक्रम कुछ जगहों पर भिन्न-भिन्न होता है। ये कल्पनाएँ मानव जीनोम में मिलने वाले पूर्ण डीएनए अनुक्रम के बारे में पता लगाने के लिए विवश करती हैं। आनुवंशिक अभियांत्रिक तकनीकों के विकास से किसी भी, डीएनए खंड को विलगित व क्लोन किया जा सकता है व डीएनए अनुक्रमों को शीघ्र जानने के लिए साधारण तकनीक के विकास से 1990 में मानव जीनोम के अनुक्रमों को पता लगाने के लिए एक महत्त्वाकांक्षी योजना की शुरुआत हुई।
मानव जीनोम योजना (एचजीपी) महायोजना (मेगा प्रोजेक्ट) कहलाती है। यदि इस योजना के उद्देश्यों को ध्यान दें तो इसके विस्तार व आवश्यकता के बारे में कल्पना कर सकते हैं -
मानव जीनोम में लगभग
एच जी पी के लक्ष्य
(क) मानव डीएनए में मिलने वाले एचजीपी के कुछ महत्त्वपूर्ण लक्ष्य निम्नलिखित हैं लगभग -
(ख) मानव डीएनए को बनाने वाले 3 बिलियन रासायनिक क्षार युग्मों के अनुक्रमों को निर्धारित करना,
(ग) उपरोक्त जानकारी को आँकड़ों के रूप में संग्रहित करना,
(घ) आँकड़ों के विश्लेषण हेतु नयी तकनीक का सुधार करना,
(ङ) योजना द्वारा उठने वाले नैतिक, कानूनी व सामाजिक मुद्दों (इ एल एस आई) के बारे में विचार करना।
मानव जीनोम परियोजना 13 वर्ष की योजना का जिसे अमेरिकी ऊर्जा विभाग (यू एस डिपार्टमेंट ऑफ इनर्जी) व राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ) द्वारा सहयोग प्राप्त था। प्रारंभिक वर्षों में वेलकम न्यास (यू.के.) की एचजीपी में भागीदारी थी और बाद में जापान, फ्रांस, जर्मनी, चीन व अन्य देशों द्वारा सहयोग प्रदान किया गया। यह योजना 2003 में पूर्ण हो गई। विभिन्न व्यक्तियों में मिलने वाले डीएनए की विभिन्नता के बारे में प्राप्त जानकारी से मानव में मिलने वाले हजारों अनियमितताओं के बारे में पहचानने, उपचार करने व कुछ हद तक उनके रोकने में सहायता मिली है। इसके अतिरिक्त मानव जीव विज्ञान के सुरागों को समझने, अमानवीय जीवों के डीएनए अनुक्रमों की प्राप्त जानकारी के आधार पर उनकी प्राकृतिक क्षमताओं का उपयोग कर स्वास्थ्य सुरक्षा, कृषि, ऊर्जा उत्पादन व पर्यावरण सुधार की दिशा में उठने वाली चुनौतियों को हल किया सकता है। कई अमानवीय प्रतिरूप-जीवों गैसे-जीवाणु, यीस्ट, केएनोरहेब्डीटीस इलीगेंस (स्वतंत्र अरोगजनक सूत्रकृमि), ड्रासोफिला (फलमक्खी), पौधा (धान व एरेबीडाप्सीस) आदि के अनुक्रमों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है।
कार्य-प्रणालियाँ- इन विधियों में दो महत्त्वपूर्ण तरीकों का उपयोग किया गया है। पहले प्रयास में उन सभी जीन जो आरएनए के रूप में व्यक्त होते हैं उनके बारे में ध्यान देना इसे व्यक्त अनुक्रम घुंडी (इक्सेप्रेस्ड सीक्वेंश टैग्स, ESTs)। दूसरा प्रयास यह है कि जीन में मिलने वाले सभी जीनोम के व्यक्तेक व अव्यक्तेक अनुक्रमों की जानकारी प्राप्त कर उनके कार्यों को निर्धारित करना (इसे अनुक्रम टिप्पण या सिक्वेंस एनोटेसन कहते हैं) हैं। कोशिका के पूर्ण डीएनए में स्थित अनुक्रमों की जानकारी के लिए पहले इसे विलगित कर छोटे-छोटे यादृच्छिक खंड (याद करो डीएनए एक बहुत लंबा बहुलक है इस कारण से डीएनए के लंबे टुकड़ों के अनुक्रमण में परेशानी होती है) बना कर संवाहकों का उपयोग उचित आतिथेय में भेज देते हैं। क्लोनिंग प्रत्येक डीएनए के प्रवर्धन में सहायता करता है जिससे इन अनुक्रमों के बारे में जानकारी मिलना आसान हो जाता है। सामान्यतया उपयोगी आतिथेय जीवाणु व यीस्ट है और संवाहकों को बी ए सी (जीवाणु कृत्रिम गुणसूत्र; बैक्टिरियल आर्टिफिशियल क्रोमोसोम) व वाइ ए सी (यीस्ट कृत्रिम गुणसूत्र; यीस्ट आर्टिफिशियल क्रोमोसोम) कहते हैं।
खंडों को स्वचालित डीएनए अनुक्रमक (डीएनए सीक्वेंसर) जो फ्रेडरिक सेंगर द्वारा विकसित विधि के सिद्धांत पर कार्य करता है का उपयोग कर अनुक्रमण करते हैं। (याद करो, प्रोटीन में अमीनो अम्लों के अनुक्रमों को निर्धारित करने वाली विधि के विकास का श्रेय भी सेंगर को ही जाता है)। इन अनुक्रमों को एक दूसरे में स्थित अंशछादन (ओवर लैपिंग) के आधार पर व्यवस्थित करते हैं। अनुक्रमण हेतु अंशछादन
चित्र 5.15 मानव जीनोम परियोजना का निरूपक आरेख
खंडों का निर्माण होना आवश्यक है। इन अनुक्रमों को मनुष्य द्वारा पंक्तिबद्ध करना संभव नहीं है। इस कारण से कम्प्यूटर आधारित विशेष प्रक्रमन (प्रोग्राम) के विकास की आवश्यकता है (चित्र 5.15) बाद में इन अनुक्रमकों का टिप्पणी कर प्रत्येक गुणसूत्र के साथ निर्धारित किया गया। गुणसूत्र 1 का अनुक्रमण में मई 2006 (यह मानव के 24 गुणसूत्रों में अंतिम था
5.9.1 मानव जीनोम की मुख्य विशेषताएँ
मानव जीनोम परियोजना से प्राप्त विशेष परिक्षण निम्नवत हैं -
(क) मानव जीनोम 3164.7 करोड़ क्षार युग्म मिलते हैं।
(ख) औसतन प्रत्येक जीन में 3000 क्षार स्थित हैं जिनके आकार में अधिक विभिन्नताएँ हैं। मनुष्य को ज्ञात सबसे बड़ी जीन डिसट्रॉफिन (Dystrophin) में 2.4 करोड़ क्षार मिले हैं।
(ग) जीन की संख्या 30,000 है जो पहले की अनुमानित संख्या 80,000 से 140,000 से काफी कम है। लगभग सभी ( 99.9 प्रतिशत) लोगों में मिलने न्यूक्लियो टाइड्स क्षार एक समान है।
(घ) खोजी गई 50 प्रतिशत से अधिक जीन के कार्य के बारे में जानकारी प्राप्त है।
(ङ) दो प्रतिशत से कम जीनोम प्रोटीन का कूटलेखन करते हैं।
(च) मानव जीनोम के बहुत बड़े भाग का निर्माण पुनरावृत्ति अनुक्रम द्वारा होता हैं।
(छ) पुनरावृत्ति अनुक्रम डीएनए के फैले हुए भाग हैं जिनकी कभी-कभी सौ से हजार बार पुनरावृत्ति होती है। जिनके बारे में यह विचार है कि इनका सीधा कूटलेखन में कोई कार्य नहीं है लेकिन इनसे गुणसूत्र की संरचना, गतिकीय व विकास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
(ज) गुणसूत्र 1 में सर्वाधिक जीन (2968) व
(झ) वैज्ञानिकों ने मानव में लगभग 1.4 करोड़ जगहों पर अलग इकहरा क्षार (SNPs - एकल न्यूक्लियोटाइड बहुरूपता; सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमारफीज़्म; जिसे ‘स्निप्स’ कहा जाता है) का पता लगाया। उपरोक्त
जानकारी से गुणसूत्रों में उन जगहों जो रोग आधारित अनुक्रम मानव इतिहास का पता लगाने में सहायक है के बारे में जानकारी एकत्र करने में काफी सहयोग प्रदान किया।
5.9.2 उपयोग व भविष्य की चुनौतियाँ
डीएनए अनुक्रमों से प्राप्त सार्थक जानकारियाँ व शोधों से आने वाले दशकों में जैविक तंत्र को समझने में काफी सहुलियत रही। इस वृहद् कार्य को पूर्ण करने में विश्व के सार्वजनिक व असावर्जनिक क्षेत्र के कई हजार विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों व रचनाकारों का योगदान रहा। एच जी अनुक्रमों का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह रहा कि जैविक अनुसंधानों में मूलतः नए आयामों का समावेश हो सका। पहले शोधकर्त्ता एक समय पर एक या कुछ जीन के बारे में ही अध्ययन कर पाते थे। पूर्ण जीनोम अनुक्रमों व नयी तकनीकों के आधार पर अब काफी व्यापक स्तर व व्यवस्थित तरीके से उठने वाले प्रश्नों को हल करने में सहायता मिली है। इससे जीनोम में मिलने वाले सभी जीन के बारे में अध्ययन किया जा सका, उदाहरणार्थ — विशेष ऊतकों या अंग या अर्बुद में मिलने वाले सभी अनुलेखों व हजारों जीन व प्रोटीन आपस में जुड़े हुए तार की तरह कैसे कार्य करते है इनसे प्राप्त जानकारी से जीवन के रसायन को वांच्छनीय बनाने में उपयोगी रहा।
5.10 डीएनए अंगुलिछापी ( डीएनए फिंगर प्रिंटिंग )
पिछले खंड में यह बताया गया है कि मनुष्यों में मिलने वाले क्षार अनुक्रम लगभग 99.9 प्रतिशत समान होते हैं। यह मानते हुए कि मानव जीनोम में
डीएनए अंगुलिछापी में डीएनए अनुक्रम में स्थित कुछ विशिष्ट जगहों के बीच विभिन्नता का पता लगाते हैं इसको पुनरावृत्ति डीएनए (रीपीटेटिव डीएनए) कहते हैं; अनुक्रमों में डीएनए का छोटा भाग कई बार पुनरावृत होता है। इस पुनरावृत्ति डीएनए को जीनोमिक डीएनए के ढेर से अलग करने के लिए जो विभिन्न शिखर बनाते है घनत्व प्रवणता अपकेंद्रीकरण द्वारा अलग करते हैं। डीएनए ढेर एक बहुत बड़ा शिखर बनाता है जबकि साथ में अन्य छोटे शिखर बनते है जिसे अनुषंगी डीएनए (सेटेलाइट डीएनए) कहते हैं। क्षार घटकों, खंडों की लंबाई, व पुनरावृत्ति ईकाईयों के आधार पर अनुषंगी, लघु-अनुषंगी आदि में वर्गीकृत किया गया है। अनुक्रम समान्यतया किसी भी प्रोटीन का कूटलेखन नहीं करते हैं, लेकिन ये मानव जीनोम के अधिकांश भाग में मिलते हैं। ये अनुक्रम उच्चश्रेणी बहुरूपता प्रदर्शित करते हैं जो डीएनए अंगुलिछापी का आधार है।
किसी भी व्यक्ति के विभिन्न ऊतकों (जैसे-खून, बाल पुटक, त्वचा, हड्डी, लार, शुक्राणु आदि) से प्राप्त डीएनए में एक समान बहुरूपता मिलती है जो न्यायालयीन उपयोग में एक पहचान औजार के रूप में उपयोगी है। चूँकि बहुरूपता जनक से बच्चों की ओर वंशागत होती है, इसलिए डीएनए अंगुलिछापी विवाद की स्थिति में पैतृत्व परीक्षण में सहायक है।
डीएनए अनुक्रम में मिलने वाली बहुरूपता के साथ-साथ डीएनए अंगुलिछापी मानव जीनोम के आनुवंशिक नक्शे तैयार करने में लाभदायक है साधारण तौर से हमें यह समझ लेना चाहिए कि डीएनए बहुरूपता क्या है। बहुरूपता (आनुंवंशिक आधार पर विभिन्नता) उत्परिवर्तन के कारण ही उत्पन्न होता है। आप अध्याय 4 व इस अध्याय के पिछले खंडों में उत्परिवर्तन के विभिन्न प्रकार व उनके प्रभावों के बारे में पढ़ चुके हैं।) किसी व्यक्ति में नए उत्परिवर्तन उसकी कायिक कोशिकाओं या जनन कोशिकाओं (लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों उस कोशिका से युग्मक बनाते हैं) में पैदा होता है। यदि जनन कोशिका उत्परिवर्तन किसी व्यक्ति की संतानोत्पत्ति क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित नहीं करते तो यह उत्परिवर्तन स्थानांतरित होता है जिससे जनसंख्या के दूसरे सदस्यों (लैंगिक प्रजनन द्वारा) में यह फैल जाता है। विकल्पी (पुनः अध्याय 4 से विकल्पी की परिभाषा याद करो) अनुक्रम विभिन्नता जिसे परंपरागत रूप से डीएनए बहुरूपता कहते हैं। मानव जनसंख्या में 0.01 से अधिक आवृत्ति में एक विस्थल में असंगति मिलने से होती है। साधारण तौर से यदि एक वंशागत उत्परिवर्तन जनसंख्या में उच्च आवृत्ति से मिलता है तो इसे डीएनए बहुरूपता कहते हैं। उपरोक्त विभिन्नता की संभावना अव्यक्तेक डीएनए अनुक्रम में ज्यादा होती है व इन अनुक्रमों में होने वाला उत्परिवर्तन व्यक्ति की प्रजनन क्षमता को प्रभावित नहीं कर पाता है। इस तरह के उत्परिवर्तन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में एकत्रित होते रहते हैं जिसके फलस्वरूप विभिन्नता/बहुरूपता उत्पन्न होती है। बहुरूपता विभिन्न प्रकार की होती है जिसमें एक न्यूक्लियोटाइड में या विस्तृत स्तर पर परिवर्तन होता है। विकास व जाति उद्भवन में उपरोक्त बहुरूपता की बहुत बड़ी भूमिका होती है जिसके बारे में आप उच्च कक्षाओं में विस्तृत रूप से पढ़ेंगे।
डीएनए अंगुलिछापी तकनीक का प्रारंभिक विकास एलेक जेफ़रीज द्वारा किया गया। इन्होंने अनुषंगी डीएनए को प्रोब के रूप में उपयोग किया जिसमें काफी बहुरूपता मिलती है। इसे अनुबद्ध पुनरार्तक की विभिन्न संख्या (वैरिएबल नंबर आफ टेंडेम रिपीट, वी एन टी आर) के रूप में जानते हैं। तकनीक जैसा पहले उपयोग किया जा चुका है, वह सदर्न ब्लाट हाइब्रिडाइजेसन है। जिसमें विकिरण चिह्नित वीएनटी आर एक प्रोब के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें शामिल है - (क) डीएनए का विलगन (ख) प्रतिबंधन एंडान्यूक्लिएज द्वारा डीएनए का पाचन (ग) इलेक्ट्रोफोरेसिस द्वारा डीएनए खंडों का पृथक्करण (घ) पृथक्कृत डीएनए खंडों का संश्लेषित झिल्ली जैसे - नाइट्रोसेलुलोज या नाइलान पर स्थानांतरण (ब्लाटिंग) (ङ) चिह्नित वी एन टी आर प्रोब का उपयोग करते हुए संकरण व (च) स्वविकिरणी चित्रण द्वारा संकरित डीएनए खंडों का पता लगाना। डीएनए अंगुलिछापी चित्रीय प्रदर्शन चित्र 5.16 में दिखाया गया है।
चित्र 5.16 कुछ प्रतिनिधि गुणसूत्र में डीएनए अंगुलिछापी का चित्रात्मक प्रदर्शन जिनमें वीएनटीआर के विभिन्न प्रतिरूप संख्या दर्शाये गये हैं। समझने हेतु विभिन्न रंग योजन का उपयोग जेल में स्थित प्रत्येक पट्टी के उद्गम का पता लगाने में किया गया है। एक गुणसूत्र के दो एलील्स (पैतृक व मातृक) में वीएनटीआर के विभिन्न प्रतिरूप संख्या स्थित है। अपराधिक पृष्ठभूमि यह साबित होता है कि डीएनए के पट्टीदार नमूने व्यक्तिगत बी से मिलता जुलता है।
वीएनटीआर अनुषंगी डीएनए की श्रेणी से संबंधित है इसलिए इसे लघुअनुषंगी कहते है। इसमें एक छोटा डीएनए अनुक्रम बहुरूपीय संख्या में अनुबद्धीय व्यवस्थित होता है। किसी व्यक्ति के एक गुणसूत्र से दूसरे गुणसूत्र की रूपीय संख्या में विभिन्नता मिलती है। पुनरावृत्तों की संख्या में बहुत उच्च श्रेणी की बहुरूपता मिलती है। जिसके फलस्वरूप वीएनटीआर के आकार परिवर्तित होते रहते हैं इनके आकार 0.1 से 20 किलोबेस के होते हैं। वीएनटीआर प्रोब से संकरण के फलस्वरूप प्राप्त स्वविकिरण चित्र में विभिन्न आकार की पट्टियाँ दिखायी पड़ती हैं। ये पट्टियाँ किसी व्यक्ति के डीएनए की विशिष्ट प्रारूप को व्यक्त करती हैं (चित्र 5.16)। ये पट्टियाँ एकयुग्मज (समरूपी) जुड़वाँ को
छोड़कर किसी भी जनसंख्या के एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न-भिन्न होती है (चित्र 5.16)। पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया का उपयोग कर तकनीक की संवेदनशीलता को बढ़ा सकते हैं (पीसीआर के बारे में तुम अध्याय 9 में पढ़ोगे)। इसके फलस्वरूप किसी भी एक कोशिका से प्राप्त डीएनए से पर्याप्त डीएनए अंगुलिछापी विश्लेषण किया जा सकता है। न्यायालयीन विज्ञान में उपयोग के अतिरिक्त इसका बहुत अधिक उपयोग है जैसे- जनसंख्या व आनुवंशिक विभिन्नता के निर्धारण में। वर्तमान समय में कई प्रकार के संपरीक्षक का उपयोग डीएनए अंगुलिछाप बनाने में किया जा रहा है।
सारांश
न्यूक्लिक अम्ल न्यूक्लियोटाइड्स का एक लंबा बहुलक है। डीएनए आनुवंशिक सूचनाओं को संग्रहित करने जबकि आरएनए मुख्यतया सूचनाओं के स्थानांतरण व अभिव्यक्ति में सहायता करते हैं। डीएनए व आरएनए दो आनुवंशिक पदार्थ के रूप में कार्य करते हैं, लेकिन डीएनए रासायनिक व संरचनात्मक अधिक स्थिर होने से उपयुक्त आनुवंशिक पदार्थ है। फिर भी आरएनए सबसे पहले विकसित हुआ जबकि डीएनए आरएनए से प्राप्त हुआ। डीएनए के द्वि श्रृंखला कुंडलित संरचना की विशिष्टता उसके विपरीत रज्जुकों के बीच उपस्थित हाइड्रोजन बंध है। नियम के अनुसार एडेनिन थाइमिन से दो हाइड्रोजन बंध द्वारा जुड़ा होता है जबकि ग्वानिन व साइटोसीन तीन हाइड्रोजन बंध द्वारा जुड़े होते हैं। इससे एक रज्जुक दूसरे के पूरक होते हैं डीएनए की प्रतिकृति सेमीकंजरवेटिव ढंग से होती है जबकि यह प्रक्रम पूरक हाइड्रोजन बंध द्वारा निर्देशित होता है। साधारण ढंग से कहा जाए तो डीएनए का यह खंड जो आरएनए का कूटलेखन करता है उसे जीन कहते हैं। अनुलेखन के दौरान डीएनए का एक रज्जुक टेम्पलेट के रूप में कार्य करता है जो पूरक आरएनए के संश्लेषण में दूत आरएनए को सक्रिय करता हुआ स्थानांतरित हो जाता है। जीवाणुओं में अनुलेखित एमआरएनए क्रियात्मक होता है अतः वह सीधे ही हो जाता है। सुकेंद्रीय में जीन विखंडित होते है। व्यक्तेक अनुक्रम एक्जान के बीच में अव्यक्तेक अनुक्रम इंट्रान मिलता है। इंट्रान को अलगकर व एक्जान को स्पलाइसिंग द्वारा आपस में जोड़कर सक्रिय आरएनए का निर्माण करते हैं। दूत आरएनए में मिलने वाले क्षार अनुक्रमों को तीन के समूहों में पढ़ते हैं (त्रिक आनुवंशिक कूट का निर्माण) जो एक एमीनो अम्ल का कूटलेखन करते हैं। अंतरण आरएनए द्वारा आनुवंशिक कूट को पूरकता के सिद्धांत पर पढ़ा जाता है जो एक अनुकूलक अणु के रूप में कार्य करता है। प्रत्येक एमीनो अम्ल के लिए विशिष्ट अंतरण आरएनए होते हैं। टी आरएनए विशिष्ट एमीनो अम्ल को अपने एक किनारे से जोड़ता है व दूत आरएनए पर स्थित कूट से अपने एंटीकोडान के बीच हाइड्रोजन बंध बनाकर युग्मित होता है। स्थानांतरण स्थल (प्रोटीन संश्लेषण) राइबोसोम है, जो दूत आरएनए से जुड़कर एमीनो अम्लों को जोड़ने के लिए पेप्टाइड बंध बनाने के लिए उत्प्रेरक का काम करता है जो एक आरएनए एंजाइम (राइबोजाइम) का उदाहरण है। स्थानांतरण एक प्रक्रम है जिसका विकास आरएनए के इर्दगिर्द हुआ है जो इस बात का सूचक है कि जीवन का विकास आरएनए से हुआ है। चूँकि अनुलेखन व स्थानांतरण उर्जात्मक एक बहुत मँहगी प्रक्रिया है,
इसलिए यह दृढ़ता पूर्वक नियमित होते हैं। अनुलेखन का नियमन जीन की अभिव्यक्ति के नियमन का प्रथम चरण है। जीवाणु में एक से अधिक जीन आपस में इस तरह से व्यवस्थित होते हैं कि वे एक ईकाई के रूप में नियमित होते हैं जिसे प्रचालेक कहते है। लैक-ओपेरान जीवाणु में आद्यरूप का प्रचालेक है जो लैक्टोज के उपापचय के लिए जीन के कूटलेखन के लिए उत्तरदायी हैं। प्रचालेक का नियमन संवर्धन में उपस्थित लैक्टोज की मात्रा पर निर्भर है, जहाँ जीवाणु की वृद्धि होती है। इस कारण से इस प्रकार के नियमन को क्रियाधार के द्वारा एंजाइम संश्लेषण के नियमन के रूप में देख सकते हैं।
मानव जीनोम परियोजना एक वृहद् योजना थी जिसका उद्देश्य मानव जीनोम में स्थित सभी क्षारों का अनुक्रम करना था। इस परियोजना से बहुत नयी सूचनाएँ प्राप्त हुई। इस परियोजना के फलस्वरूप कई नए क्षेत्रों व अवसरों के रास्ते खुले। डीएनए अंगुलिछापी एक तकनीक है जिसमें डीएनए के स्तर पर एक जनसंख्या में स्थित विभिन्न लोगों के बीच विभिन्नता के बारे में पता लगाते हैं। यह डीएनए अनुक्रम में बहुरूपता के सिद्धांत पर कार्य करता है। इसका न्यायालयीन विज्ञान, आनुवंशिक विविधता व विकासीय जीव विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधिक उपयोग है।