पुष्पी पादपों का शारीर
आप बड़े प्राणियों पादप तथा जंतु (प्राणी)-दोनों में रचनात्मक समानता तथा बाह्य आकारिकी में विभिन्नता देख सकते हैं। इस प्रकार जब हम भीतरी रचना का अध्ययन करते हैं, तब हमें बहुत सी समानताओं तथा विभिन्नताओं का पता लगता है। इस अध्याय में हम उच्च पौधों में भीतरी रचनात्मक तथा कार्यात्मक संरचनाओं के विषय में पढ़ेंगे। पौधों की भीतरी संरचना के अध्ययन को शारीर कहते हैं। पौधों में कोशिका आधार भूत इकाई है। कोशिकाएँ ऊतकों में और ऊतक अंगों में संगठित होते हैं। पौधे के विभिन्न अंगों की भीतरी संरचना में अंतर होता है। एंजियोस्पर्म में ही एकबीजपत्री की शारीरीकी द्विबीजपत्री से भिन्न होती है। भीतरी संरचना पर्यावरण के प्रति अनुकूलन को भी दर्शाती है।
6.1 ऊतक तंत्र
हम अब तक विभिन्न प्रकार के ऊतकों तथा उनमें स्थित कोशिकाओं के प्रकार के आधार पर चर्चा कर रहे थे। आओ, अब हम देखें कि पौधे के विभिन्न स्थानों पर स्थित ऊतक कैसे एक दूसरे से भिन्न होते हैं। उनकी रचना तथा कार्य भी उनकी स्थिति के अनुसार होते हैं। रचना तथा स्थिति के आधार पर ऊतक तंत्र तीन प्रकार का होता है। ये तंत्र हैंबाह्यत्वचीय ऊतक तंत्र, भरण अथवा मौलिक ऊतक तंत्र, संवहनी ऊतक तंत्र।
6.1.1 बाह्य त्वचीय ऊतक तंत्र
बाह्यत्वचीय ऊतक तंत्र पौधे का सबसे बाहरी आवरण है। इसके अंर्तगत बाह्य त्वचीय कोशिकाएं रंध्र तथा बाह्यत्वचीय उपांग - मूलरोम आते हैं। बाह्यत्वचा पौधों के भागों की बाहरी त्वचा है। इसकी कोशिकाएं लंबी तथा एक दूसरे से सटी हुई होती हैं और एक
अखंड सतह बनाती है। बाह्यत्वचा प्रायः एकल सतह वाली होती है। बाह्यत्वचीय कोशिकाएं पैरेंकाइमी होती है जिनमें बहुत कम मात्रा में साइटोप्लाज्म होता है जो कोशिका भित्ति के साथ होता है। इसमें एक बड़ी रसधानी होती है। बाह्यत्वचा की बाहरी सतह मोम की मोटी परत से ढकी होती है, जिसे क्यूटिकल कहते हैं। क्यूटिकल पानी की हानि को रोकती है। मूल में क्यूटिकल नहीं होती।
रंध्र ऐसी रचनाएँ हैं, जो पत्तियों की बाह्यत्वचा पर होते हैं। रंध्र वाष्पोत्सर्जन तथा गैसों के विनिमय को नियमित करते हैं। प्रत्येक रंध्र में दो सेम के आकार की दो कोशिकाएं होती हैं जिन्हें द्वारकोशिकाएं कहते हैं। घास में द्वार कोशिकाएं डंबलाकार होती हैं। द्वारकोशिका की बाहरी भित्ति पतली तथा आंतरिक भित्ति मोटी होती है। द्वार कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट होता है और यह रंध्र के खुलने तथा बंद होने के क्रम को नियमित करता है। कभी-कभी कुछ बाह्यत्वचीय कोशिकाएं जो रंध्र के आस-पास होती हैं। उनकी आकृति, माप तथा पदार्थो में विशिष्टता आ जाती है। इन कोशिकाओं को सहायक कोशिकाएं कहते हैं। रंध्रीय छिद्र, द्वारकोशिका तथा सहायक कोशिकाएं मिलकर रंध्री तंत्र का निर्माण करती हैं (चित्र 6.1)।
चित्र 6.1 रंध्री तंत्र (अ) सेम के आकार वाली द्वार कोशिका सहित रंध्र (ब) डंबलाकार द्वार कोशिका सहित रंध्र
बाह्यत्वचा की कोशिकाओं पर अनेक रोम होते हैं। इन्हें मूलरोम कहते हैं ये बाह्यत्वचा की कोशिकाओं का एककोशिकीय दीर्घीकरण स्वरूप होती है जो जल एवं खनिजतत्वों के अवशोषण में सहायक होती हैं। तने पर पाए जाने वाले ये बाह्य त्वचीय रोम त्वचारोम (ट्राइकोम्स) कहलाते हैं प्ररोह तंत्र में यह त्वचारोम बहुकोशिकीय होते हैं। ये शाखित या अशाखित तथा कोमल या नरम हो सकते हैं ये स्रावी हो सकते हैं ये वाष्पोतसर्जन से होने वाले जल की हानि रोकते हैं।
6.1.2 भरण ऊतक तंत्र
बाह्यत्वचा तथा संवहन बंडल के अतिरिक्त सभी ऊतक भरण ऊतक बनाते हैं। इसमें सरल ऊतक जैसे पैरेंकाइमा, कॉलेंकाइमा तथा स्कलेरकाइमा होते हैं। प्राथमिक तने में पेरेंकाइमी कोशिकाएं प्रायः वल्कुट, (कॉर्टेक्स) परिरंभ, पिथ तथा मज्जाकिरण में होती हैं। पत्तियों में भरण ऊतक पतली भित्ति वाले तथा क्लोरोप्लास्ट युक्त होते हैं और इसे पर्णमध्योतक (मेजोफिल) कहते हैं।
(स)
चित्र 6.2 विभिन्न प्रकार के संवहन बंडल (अ) अरीय (ब) संयुक्त बंद (स) संयुक्त खुला
6.1.3 संवहनी ऊतक तंत्र
संवहनी तंत्र में जटिल ऊतक, जाइलम तथा फ्लोएम होते हैं। जाइलम तथा फ्लोएम दोनों मिलकर संवहन बंडल बनाते हैं (चित्र 6.2)। द्विबीजपत्री में जाइलम तथा फ्लोएम के बीच कैंबियम होता है। ऐसे संवहनी बंडलों जिनमें कैंबियम होता है और वे लगातार द्वितीयक जाइलम तथा फ्लोएम बनाते रहते हैं उन्हें खुला संवहन बंडल कहते हैं। एकबीजपत्री पादपों में कैंबियम नहीं होता। चूंकि वे द्वितीयक ऊतक नहीं बनाते इसलिए उन्हें बंद संवहन बंडल कहते हैं।
जब जाइलम तथा फ्लोएम एकांतर तरीके से भिन्न त्रिज्या पर होते हैं, तब ऐसे बंडल को अरीय कहते है जैसे मूल में। संयुक्त बंडल में जाइलम तथा फ्लोएम एक ही त्रिज्या पर स्थित होते हैं जैसे तने तथा पत्तियों में। संयुक्त संवहन बंडल में प्रायः फ्लोएम जाइलम के बाहर की ओर स्थित होता है।
6.2 द्विबीजपत्री तथा एकबीजपत्री पादपों का शारीर
मूल, तने तथा पत्तियों में ऊतक की संरचना का भलीभाँति अध्ययन करने के लिए पौधे के इन भागों की परिपक्व अनुप्रस्थ काट का अध्ययन करना चाहिए।
6.2.1 द्विबीजपत्री मूल
चित्र 6.3 (अ) को देखो। इसमें सूरजमुखी मूल की अनुप्रस्थ काट को दिखाया गया है। भीतरी ऊतकों के विन्यास को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया गया है।
सबसे बाहरी भित्ति मूलीय त्वचा है। इसमें नलिकाकार सजीव घटक होते हैं। इनमें से कुछ कोशिकाएँ बाहर की ओर निकली होती हैं जो एक कोशिकीय मूल रोम बनाती हैं। वल्कुट में पतली भित्ति वाली पैरेकाइमी कोशिकाओं की कई परतें होती हैं। इनके बीच में अंतराकोशिकीय स्थान होता है। वल्कुट की सबसे भीतरी परत अंतस्त्वचा होती है। इसमें नालाकर की कोशिकाओं की एकल सतह
होती है। इन कोशिकाओं में अंतरा कोशिकीय स्थान नहीं होता। अंतस्त्वचा की कोशिकाओं की स्पर्श रेखीय तथा अरीय भित्तियों पर कैस्पेरी पट्टियों के रूप में जल अपारगम्य, मोमी पदार्थ सूवेरिन होता है। अंतस्त्वचा से भीतर की ओर मोटी भित्ति पैरेंकाइमी कोशिकाएँ होती हैं जिसे परिरंभ कहते हैं। इन कोशिकाओं में द्वितीयक वृद्धि के दौरान संवहन कैंबियम तथा पार्श्वीय मूल प्रेरित होती है। पिथ छोटी अथवा अस्पष्ट होती है। पैरेंकाइमी कोशिकाएँ जो जाइलम तथा फ्लोएम बंडल के बीच में हैं उन्हें कंजकटिव ऊतक कहते हैं। दो से चार तक जाइलम तथा फ्लोएम के खंड होते हैं। इसके बाद जाइलम तथा फ्लोएम के बीच एक कैंबियम छल्ला बनता हैं अंतस्त्वचा के अंदर की ओर सारे ऊतक जैसे परिरंभ, संवहन ऊतक तथा पिथ मिलकर रंभ (स्टेल) बनाते हैं।
6.2.2 एकबीजपत्री मूल
एक बीजपत्री मूल का शारीर बहुत अधिक द्विबीजपत्री मूल के शारीर के समान होता है (चित्र 6.3 ब)। इसमें बाह्यत्वचा, वल्कुट, अंतस्त्वचा, परिरंभ, संवहन बंडल तथा पिथ होते हैं। एक बीजपत्री में इनकी संख्या प्राय: छः से अधिक (बहु-आदिदारुक) होती है जबकि द्विबीजपत्री में कुछ ही जाइलम बंडल होते हैं। पिथ बड़ी तथा बहुत विकसित होती है तथा एकबीजपत्री मूल में कैंबियम नहीं होता। इसलिए इसमें द्वितीयक वृद्धि नहीं होती है।
6.2.3 द्विबीजपत्री तना
एक प्ररुप शैशव द्विबीजपत्री तने की अनुप्रस्थ काट में निम्नलिखित संरचनाएँ होती हैं। बाह्यत्वचा तने की सबसे बाहरी रक्षी सतह है (चित्र 6.4 अ)। यह क्यूटीकल पतली परत से ढकी होती है। इस पर कुछ बहुकोशकीय, एक पंक्तिक त्वचारोम तथा कुछ रंध्र होते हैं। बाह्यत्वचा तथा परिरंभ के बीच कोशिकाओं की बहुत सी सतहें होती है, जिसे वल्कुट कहते है। इसके
(अ)
(ब)
चित्र 6.3 अनुप्रस्थकाट (अ) द्विबीजपत्री मूल (प्राथमिक) (ब) एकबीजपत्री मूल
तीन क्षेत्र होते हैं। बाहरी अधस्त्वचा (हाइपोडमिंस) ये कॉलेंकाइमा कोशिकाओं की कुछ परतें होती हैं जो बाह्यत्वचा के नीचे होती हैं। ये शैशव तने को यांत्रिक सहारा देती हैं। वल्कुट सतहें अधस्त्वचा के नीचे होती हैं। इसमें गोलाकार पतली भित्ति वाले पैरेंकाइमा कोशिकाओं की कुछ परतें होती हैं। उसमें सुस्पष्ट अंतरा कोशिकीय स्थान होता है। अंतस्त्वचा वल्कुट की सबसे भीतरी सतह होती है और इसमें नाल आकार की
(अ)
चित्र 6.4 तने की अनुप्रस्थ काट (अ) द्विबीजपत्री (ब) एकबीजपत्री
कोशिकाओं की एक सतह होती है। इन कोशिकाओं में स्टार्च प्रचुर मात्रा में होता है, इसलिए इसे स्टार्च आच्छद भी कहते हैं। परिरंभ अंतस्त्वचा के नीचे और फ्लोएम के ऊपर होती है। इसमें स्कलेंरकाइमा की कोशिकाएँ अर्द्धचंद्राकार समूह में होती है। संवहन बंडलों के बीच अरीय रूप में विन्यस्त पैरेंकाइमा कोशिकाओं की कुछ सतहें होती हैं जो मज्जाकिरण बनाते हैं। बहुसंख्य संवहन बंडल एक छल्ले में होते हैं। संवहन बंडलों का छल्ले में बना होना द्विबीजपत्री तने का गुण है। प्रत्येक संवहन बंडल संयुक्त मध्यादिदारुक तथा खुले होते हैं। तने में पिथ केंद्र में होती हैं इसमें गोलाकार, पैरेकाइमी कोशिकाएँ होती हैं। इन कोशिकाओं के बीच में अंतरा कोशिकीय स्थान होता है।
6.2.4 एकबीजपत्री तना
एकबीजपत्री तने की शारीरिक रचना द्विबीजपत्री तने से कुछ भिन्न है, लेकिन ऊतकों के विन्यस्त रहने के क्रम में कोई अंतर नहीं हैं। चित्र 6.4 अ में आप देखेंगे कि एकबीजपत्री तने की बाह्यत्वचा पर त्वचारोम नहीं होते। एकबीजपत्री तने में अधस्वचा स्कलेरकाइमा कोशिकाओं की बनी होती है। वल्कुट में कई सतहें होती हैं, इसमें बहुत से बिखरे हुए संवहन बंडल होते हैं। इसके संवहन बंडल के चारों ओर स्कलेंकाइमी बंडल आच्छद होता है (चित्र 6.4 ब)। संवहन बंडल संयुक्त तथा बंद होते हैं। परिधीय संवहन बंडल प्रायः छोटे और केंद्र में बड़े होते हैं। संवहन बंडल में फ्लोएम पैरेंकाइमा नहीं होते और इसमें जल रखने वाली गुहिकाएँ होती हैं।
6.2.5 पृष्ठाधार ( द्विबीजपत्री ) पत्ती
पृष्ठाधर पत्ती के फलक की लंबवत् काट तीन प्रमुख भागों जैसे बाह्यत्वचा, पर्ण मध्योतक तथा संवहन तंत्र दिखाते हैं। बाह्यत्वचा जो ऊपरी सतह (अभ्यक्ष बाह्यत्वचा) तथा निचली सतह (अपाक्ष बाह्यत्वचा) को घेरे रहती हैं उस पर क्यूटीकल होती है। निचली बाह्यत्वचा पर ऊपरी सतह की अपेक्षा रंध्र बहुत अधिक संख्या में होते हैं। ऊपरी सतह पर रंध्र नहीं भी हो सकते हैं। ऊपरी तथा निचली बाह्यत्वचा के बीच स्थित सभी ऊतकों को पर्णमध्योतक कहते हैं। पर्णमध्योतक जिसमें क्लोरोप्लास्ट होते हैं और प्रकाश संश्लेषण करते हैं, पैरेंकाइमा कोशिकाओं से बनते हैं। और इसमें दो प्रकार की कोशिकाएं होती है-
(i) खंभ पैरेंकाइमा तथा (ii) स्पंजी पैरेकाइमा है। खंभ पैरेंकाइमा ऊपरी बाह्यत्वचा के बिल्कुल नीचे होते हैं और इनकी कोशिकाएँ लंबी होती हैं। ये लंबवत समानांतर होती हैं। स्पंजी पैरेंकाइमा खंभ कोशिकाओं से नीचे होती हैं और निचली बाह्यत्वचा तक जाती है। इस क्षेत्र की कोशिकाएँ अंडाकर अथवा गोल होती हैं। इन कोशिकाओं के बीच बहुत खाली स्थान तथा वायु गुहिकाएँ होती हैं। संवहन तंत्र में संवहन बंडल होते हैं। इन बंडल शिराओं तथा मध्यशिरा संवहन बंडल का माप शिराओं के माप पर आधारित होता है। शिराओं की मोटाई द्विबीजपत्री पत्तियों की जालिका शिराविन्यास में भिन्न होती है। संवहन बंडल संयुक्त बहिःफ्लोएमी तथा मध्यादिदारुक होते हैं। प्रत्येक संवहन बंडल के चारों
(अ)
(ब)
चित्र 6.5 पत्ती की अनुप्रस्थ काट (अ) द्विबीज (ब) एकबीजपत्री ओर मोटी भित्ति वाली कोशिकाओं की एक परत होती है जो सघन होती हैं। इसे बंडल आच्छद कहते हैं। चित्र 6.5 (अ) देखो और संवहन बंडल में जाइलम के स्थान को देखो।
6.2.6 समद्धि पार्श्व ( एकबीजपत्री ) पत्ती
एक समृद्धि पार्श्व पत्ती का शारीर तथा पृष्ठाध र पत्ती का शारीर अधिकांश समान ही है; लेकिन उनमें कुछ भिन्नता भी देख सकते हैं इसमें ऊपरी तथा निचली बाह्यत्वचा पर एक समान क्यूटीकल होती है और उसमें दोनों सतह पर रंध्रों की संख्या लगभग समान होती है चित्र 6.5(ब)।
घास में ऊपरी बाह्यत्वचा कुछ कोशिकाएँ लंबी, खाली तथा रंगहीन होती हैं। इन कोशिकाओं को आवर्ध त्वक्कोशिका कहते हैं। जब कोशिकाएँ स्फीत होती हैं, तब ये कोशिकाएँ मुड़ी हुई पत्तियों को खुलने में सहायता करती हैं। वाष्पोत्सर्जन की अधिक दर होने पर ये पत्तियाँ वाष्पोत्सर्जन की दर कम करने के लिए मुड़ जाती हैं। एक बीजपत्री की पत्तियों में शिरा विन्यास समानांतर होता है इसका पता तब लगता है जब हम पत्ती की लंबवत काट देखते हैं जिसमें संवहन बंडल का माप भी एक समान होता है।
सारांश
शारीरिकी दृष्टि से पौधा विभिन्न प्रकार के ऊतकों से बना है। ऊतक मुख्यतः मेरिस्टेमेटिक (शीर्ष, पार्श्वीय तथा अंतर्वेशी) तथा स्थायी (सरल तथा जटिल) में विभक्त होते हैं। ऊतक अनेकों कार्य करते हैं जैसे स्वांगीकरण, यांत्रिक सहारा, संचय तथा पानी, खनिज लवण तथा प्रकाशसंश्लेषी जैसे पदार्थों का संवहन। बाह्य त्वचीय तंत्र में बाह्य त्वचीय कोशिकाएँ, रंध्र तथा बाह्य त्वचीय उपांग होते हैं। तीन प्रकार के ऊतक तंत्र होते हैं- जैसे बाह्य त्वचीय, भरण तथा संवहन। भरण ऊतक तंत्र के तीन क्षेत्र होते हैं- वल्कुट (कॉर्टेक्स), परिरंभ तथा पिथ। संवहन ऊतक तंत्र में जाइलम तथा फ्लोएम होता है। जाइलम तथा फ्लोएम की स्थिति के अनुसार संवहन बंडल विभिन्न प्रकार के होते हैं।
संवहन बंडल संवहन रचना बनाते हैं और पानी, खनिज तथा खाद्य पदार्थों का स्थानांतरण करते हैं। द्विबीजपत्री तथा एक बीजपत्री पौधों की आंतरिक रचना में बहुत अंतर होता है। ये प्रकार, संख्या तथा संवहन बंडल की स्थिति के आधार पर अलग-अलग होते हैं। द्वितीयक वृद्धि द्विबीजपत्री पौधों के तने तथा मूल में होती है।