तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय

जैसा कि तुम जानते हो मानव शरीर में बहुत से अंग एवं अंग तंत्र पाए जाते हैं जो कि स्वतंत्र रूप से कार्य करने में असमर्थ होते हैं। जैव स्थिरता (समअवस्था) बनने हेतु इन अंगों के कार्यों में समन्वय अत्यधिक आवश्यक है। समन्वयता एक ऐसी क्रियाविधि है, जिसके द्वारा दो या अधिक अंगों में क्रियाशीलता बढ़ती है व एक-दूसरे अंगों के कार्यों में मदद मिलती है। उदाहरणार्थ, जब हम शारीरिक व्यायाम करते हैं तो पेशियों के संचालन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। ऑक्सीजन की आवश्यकता में भी वृद्धि हो जाती है। ऑक्सीजन की अधिक आपूर्ति के लिए श्वसन दर, हृदय स्पंदन, दर एवं वृक्क वाहिनियों में रक्त प्रवाह की दर बढ़ना स्वाभाविक हो जाता है। जब शारीरिक व्यायाम बंद कर देते हैं तो तंत्रिकीय क्रियाएं, फुप्फुस, हृदय रुधिर वाहिनियों, वृक्क व अन्य अंगों के कार्यों में समन्वय स्थापित हो जाता है। हमारे शरीर में तंत्रिका तंत्र एवं अंतःस्रावी तंत्र सम्मिलित रूप से अन्य अंगों की क्रियाओं में समन्वय करते हैं तथा उन्हें एकीकृत करते हैं, जिससे सभी क्रियाएं एक साथ संचालित होती रहती हैं।

तंत्रिकीय तंत्र ऐसे व्यवस्थित जाल तंत्र गठित करता है, जो त्वरित समन्वय हेतु बिंदु दर बिंदु जुड़ा रहता है। अंतःस्रावी तंत्र हार्मोन द्वारा रासायनिक समन्वय बनाता है। इस अध्याय में आप मनुष्य के तंत्रिकीय तंत्र एवं तंत्रिकीय समन्वय की क्रियाविधि जैसे तंत्रिकीय आवेग का संचरण तथा आवेगों का सिनेप्स से संचरण का अध्ययन करेंगे।

18.1 तंत्रिकीय तंत्र

सभी प्राणियों का तंत्रिका तंत्र अति विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं से बनता है, जिन्हें तंत्रिकोशिका कहते हैं। ये विभिन्न उद्दीपनों को पहचान कर ग्रहण करती हैं तथा इनका संचरण करती हैं।

निम्न अकशेरुकी प्राणियों में तंत्रिकीय संगठन बहुत ही सरल प्रकार का होता है। उदाहरणार्थ हाइड्रा में यह तंत्रिकीय जाल के रूप में होता है। कीटों का तंत्रिका तंत्र अधिक व्यवस्थित होता है। यह मस्तिष्क अनेक गुच्छिकाओं एवं तंत्रिकीय ऊतकों का बना होता है। कशेरुकी प्राणियों में अधिक विकसित तंत्रिका तंत्र पाया जाता है।

18.2 मानव का तंत्रिकीय तंत्र

मानव का तंत्रिका तंत्र दो भागों में विभाजित होता है (क) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तथा (ख) परिधीय तंत्रिका तंत्र। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु सम्मिलित है, जहाँ सूचनाओं का संसाधन एवं नियंत्रण होता है। मस्तिष्क एवं परिधीय तंत्रिका तंत्र सभी तंत्रिकाओं से मिलकर बनता है, जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (मस्तिष्क व मेरूरज्जू) से जुड़ी होती हैं। परिधीय तंत्रिका तंत्र में दो प्रकार की तंत्रिकाएं होती हैं (अ) संवेदी या अभिवाही एवं (ब) चालक/प्रेरक या अपवाही। संवेदी या अभिवाही तंत्रिकाएं उद्दीपनों को ऊतकोंअंगों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक तथा चालक/अभिवाही तंत्रिकाएं नियामक उद्दीपनों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से संबंधित परिधीय ऊतक/अंगों तक पहुँचाती हैं।

परिधीय तंत्रिका तंत्र दो भागों में विभाजित होता है कायिक तंत्रिका तंत्र तथा स्वायत्त तंत्रिका तंत्र। कायिक तंत्रिका तंत्र उद्दीपनों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से शरीर के अनैच्छिक अंगों व चिकनी पेशियों में पहुँचाता है। स्वायत्त तंत्रिका तंत्र पुनः दो भागों (अ) अनुकंपी तंत्रिका तंत्र व (ब) परानुकंपी तंत्रिका तंत्र में वर्गीकृत किया गया है। अंतरंग तंत्रिका तंत्र परिधीय तंत्रिका तंत्र का एक भाग है। इसके अंतर्गत वे सभी तंत्रिकाएँ, तंत्रिका तंतु, गुच्छिकाएँ एवं जालिकाएँ सम्मिलित हैं जिनके द्वारा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से आवेग, अंतरंगों तक तथा अंतरंगों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक संचरित होते हैं।

18.3 तंत्रिकोशिका (न्यूरॉन) तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं

क्रियात्मक इकाई

न्यूरॉन एक सूक्ष्मदर्शीय संरचना है जो तीन भागों से मिलकर बनती है - कोशिका काय, दुम्राक्ष्य व तंत्रिकाक्ष (चित्र 18.1)। कोशिका काय में कोशिका द्रव्य व प्रारूपिक कोशिकांग व विशेष दानेदार अंगक निसेल ग्रेन्यूल पाए जाते हैं। छोटे तंतु जो कोशिका काय से प्रवर्धित होकर लगातार विभाजित होते हैं तथा जिनमें निसेल ग्रेन्यूल भी पाए जाते हैं, दुम्राक्ष्य कहलाते हैं। ये तंतु उद्दीपनों को कोशिका काय की ओर भेजते हैं। एक तंत्रिकोशिका में एक तंत्रिकाक्ष निकलता है। इसका दूरस्थ भाग शाखित व प्रत्येक शाखित भाग का अंतिम छोर लड़ीनुमा संरचना सिनेप्टिक नोब जिसमें सिनेप्टी पुटिकाएं होती हैं, इसमें रसायन न्यूरोट्रांसमीटर्स पाए जाते हैं। तंत्रिकाक्ष तांत्रिकीय आवेगों को कोशिका काय से दूर सिनेप्स पर अथवा तांत्रिकीयपेशी संधि पर पहुँचाते हैं। तंत्रिकाक्ष तथा दुम्राक्ष की संख्या के आधार पर न्यूरोंस को तीन समूहों में बाँटते हैं। जैसे बहुध्रुवीय (एक तंत्रिकाक्ष व दो या अधिक दुम्राक्ष्य युक्त

चित्र 18.1 तंत्रिकोशिका की संरचना जो प्रमस्तिष्क वल्कुट में पाए जाते हैं।) तथा द्विध्रुवीय (एक तंत्रिकाक्ष एवं एक द्रुमाक्ष्य जो दृष्टि पटल में पाए जाते हैं।) तंत्रिकाक्ष दो प्रकार के होते हैं: आच्छदी व आच्छदहीन। आच्छदी तंत्रिका तंतु श्वान कोशिका से ढके रहते हैं, जो तंत्रिकाक्ष के चारो ओर माइलिन आवरण बनाती है। माइलिन आवरणों के बीच अंतराल पाए जाते हैं, जिन्हें रेनवीयर के नोड कहते हैं। आच्छदी तंत्रिका तंतु मेरू व कपाल तंत्रिकाओं में पाए जाते हैं। आच्छदहीन तंत्रिका तंतु भी श्वान कोशिका से घिरे रहते हैं; लेकिन वे ऐक्सोन के चारों ओर माइलीन आवरण नहीं बनाते हैं। सामान्यतया स्वायत्त तथा कायिक तंत्रिका तंत्र में मिलते हैं।

18.3.1 तंत्रिका आवेगों की उत्पत्ति व संचरण

तंत्रिकोशिकाएं (न्यूरोंस)उद्दीपनशील कोशिकाएं हैं; क्योंकि उनकी झिल्ली ध्रुवीय अवस्था में रहती है। क्या आप जानते हैं, यह झिल्ली ध्रुवीय अवस्था में क्यों रहती है? विभिन्न प्रकार के आयन पथ (चैनल) तंत्रिका झिल्ली पर पाए जाते हैं। ये आयन पथ विभिन्न आयनों के लिए चयनात्मक पारगम्य हैं। जब कोई न्यूरॉन आवेगों का संचरण नहीं करते हैं जैसे कि विराम अवस्था में तंत्रिकाक्ष झिल्ली सोडियम आयंस की तुलना में पोटैसियम आयंस तथा क्लोराइड आयंस के लिए अधिक पारगम्य होती है। इसी प्रकार से झिल्ली, तंत्रिकाक्ष द्रव्य में उपस्थित ऋण आवेषित प्रोटिकाल में भी अपारगम्य होती है। धीरे-धीरे तंत्रिकाक्ष के तंत्रिका द्रव्य में $\mathrm{K}^{+}$तथा ऋणात्मक आवेषित प्रोटीन की उच्च सांद्रता तथा $\mathrm{Na}^{+}$की निम्न सांद्रता होती है। इस भिन्नता के कारण सांन्द्रता प्रवणता बनती है। झिल्ली पर पाई जाने वाली इस आयनिक प्रवणता को सोडियम पोटैसियम पंप द्वारा नियमित किया जाता है। इस पंप द्वारा प्रतिचक्र $3 \mathrm{Na}^{+}$बाहर की ओर व $2 \mathrm{~K}^{+}$कोशिका में प्रवेश करते हैं। परिणामस्वरूप तंत्रिकाक्ष झिल्ली की बाहरी सतह धन आवेशित; जबकि आंतरिक सतह ऋण आवेशित हो जाती है; इसलिए यह ध्रुवित हो जाती है। विराम स्थिति में प्लाज्मा झिल्ली पर इस विभवांतर को विरामकला विभव कहते हैं।

आप यह जानने के लिए उत्सुक होंगे कि तंत्रिकाक्ष पर तंत्रिका आवेग की उत्पत्ति एवं उसका संचरण किस प्रकार होता है? जब किसी एक स्थान पर ध्रुवित झिल्ली पर आवेग होता है (चित्र 18.2 का उदाहरण) तब $\mathrm{A}$ स्थल की ओर स्थित झिल्ली $\mathrm{Na}^{+}$के लिए मुक्त पारगमी हो जाती है। जिसके फलस्वरूप $\mathrm{Na}^{+}$तीव्र गति से अंदर जाते हैं और एक सतह पर विपरीत ध्रुवता हो जाती है अर्थात् झिल्ली की बाहरी सतह ऋणात्मक आवेशित तथा आंतरिक सतह धनात्मक आवेशित हो जाती है। $A$ स्थल पर झिल्ली की विपरीत ध्रुवता होने से विध्रुवीकरण हो जाता है। $A$ झिल्ली की सतह पर विद्युत विभवांतर क्रियात्मक विभव कहलाता है, जिसे तथ्यात्मक रूप से तंत्रिका आवेग कहा जाता है।

चित्र 18.2 एक तंत्रिकाक्ष में तंत्रिका आवेग का संचरण प्रदर्शित करते हुए आरेख

तंत्रिकाक्ष से कुछ आगे (जैसे स्थान $\mathrm{B}$ ) झिल्ली की बाहरी सतह पर धनात्मक आवेश तथा आंतरिक सतह पर ऋणात्मक आवेश होता है। परिणामस्वरूप $A$ स्थल से $B$ स्थल की ओर झिल्ली की आंतरिक सतह पर आवेग विभव का संचरण होता है। अतः स्थान $\mathrm{A}$ पर आवेग क्रियात्मक विभव उत्पन्न होता है। तंत्रिकाक्ष की लंबाई के समांतर क्रम का पुनरावर्तन होता है और आवेग का संचरण होता है। उद्दीपन द्वारा प्रेरित $\mathrm{Na}^{+}$ के लिए बढ़ी पारगम्यता क्षणिक होती है उसके तुरंत पश्चात $\mathrm{K}^{+}$की प्रति पारगम्यता बढ़ जाती है। कुछ ही क्षणों के भीतर $\mathrm{K}^{+}$झिल्ली के बाहरी ओर परासरित होता है और उद्दीपन के स्थान पर (विराम विभव का) पुनः संग्रह करता है तथा तंतु आगे के उद्दीपनों के लिए एक बार फिर उत्तरदायी हो जाते हैं।

18.3.2 आवेगों का संचरण

तंत्रिका आवेगों का एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक संचरण सिनेप्सिस द्वारा होता है। एक सिनेप्स का निर्माण पूर्व सिनैप्टिक न्यूरॉन तथा पश्च सिनेप्टिन न्यूरॉन की झिल्ली द्वारा होता है, जो कि सिनेप्टिक दरार द्वारा विभक्त हो भी सकती है या नहीं भी। सिनेप्स दो प्रकार के होते हैं, विद्युत सिनेप्स एवं रासायनिक सिनेप्स। विद्युत सिनेप्सिस पर, पूर्व और पश्च सिनेप्टिक न्यूरॉन की झिल्लियाँ एक दूसरे के समीप होती है। एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक विद्युत धारा का प्रवाह सिनेप्सिस से होता है। विद्युतीय सिनेप्सिस से आवेग का संचरण, एक तंत्रिकाक्ष से आवेग के संचरण के समान होता है। विद्युतीय-सिनेप्सिस से आवेग का संचरण, रासायनिक सिनेप्सिस से संचरण की तुलना में अधिक तीव्र होता है। हमारे तंत्र में विद्युतीय सिनेप्सिस बहुत कम होते हैं।

रासायनिक सिनेप्स पर, पूर्व एवं पश्च सिनेप्टिक न्यूरोंस की झिल्लियाँ द्रव से भरे अवकाश द्वारा पृथक होती है जिसे सिनेप्टिक दरार कहते हैं (चित्र 18.3)। क्या आप

जानते हैं किस प्रकार पूर्व सिनेप्टिक आवेग (सक्रिय विभव) का संचरण सिनेप्टिक दरार से पश्च सिनेप्टिक न्यूरॉन तक करते हैं? सिनेप्सिस द्वारा आवेगों के संचरण में न्यूरोट्रॉसमीटर (तंत्रिका संचारी) कहलाने वाले रसायन सम्मिलित होते हैं। तंत्रिकाक्ष के छोर पर स्थित (आश्रय पुटिकाऐं) तंत्रिका संचारी अणुओं से भरी होती हैं। जब तक आवेग तंत्रिकाक्ष के छोर तक पहुँचता है। यह सिनेप्टिक पुटिका की गति को झिल्ली की ओर उत्तेजित करता है, जहाँ वे प्लाज्मा झिल्ली के साथ जुड़कर तंत्रिका संचारी अणुओं को सिनेप्टिक दरार में मुक्त कर देते हैं। मुक्त किए गए तंत्रिका संचारी अणु पश्च सिनेप्टिक झिल्ली पर स्थित विशिष्ट ग्राहियों से जुड़ जाते हैं। इस जुड़ाव के फलस्वरूप आयन चैनल खुल जाते हैं और उसमें आयनों के आगमन से पश्च सिनेप्टिक झिल्ली पर नया विभव उत्पन्न हो जाता है। उत्पन्न हुआ नया विभव उत्तेजक या अवरोधक हो सकता है।

चित्र 18.3 तंत्रिकाक्ष सिरा एवं सिनेप्स को प्रदर्शित करते हुए

18.4 केंद्रीय तंत्रिका तंत्र - मानव मस्तिष्क

मस्तिष्क हमारे शरीर का केंद्रीय सूचना प्रसारण अंग है और यह ‘आदेश व नियंत्रण तंत्र’ की तरह कार्य करता है। यह ऐच्छिक गमन शरीर के संतुलन, प्रमुख अनेच्छिक अंगों के कार्य (जैसे फेफड़े, हद्य, वृक्क आदि), तापमान नियंत्रण, भूख एवं प्यास, परिवहन, लय, अनेकों अंतःस्रावी ग्रंथियों की क्रियाएं और मानव व्यवहार का नियंत्रण करता है। यह देखने, सुनने, बोलने की प्रक्रिया, याददाश्त, कुशाग्रता, भावनाओं और विचारों का भी स्थल है।

मानव मस्तिष्क खोपड़ी के द्वारा अच्छी तरह सुरक्षित रहता है। खोपड़ी के भीतर कपालीय मेनिंजेज से घिरा होता है, जिसकी बाहरी परत ड्यूरा मैटर, बहुत पतली मध्य परत एरेक्नॉइड और एक आंतरिक परत पाया मैटर (जो कि मस्तिष्क ऊतकों के संपर्क में होती है) कहलाती है। मस्तिष्क को 3 मुख्य भागों में विभक्त किया जा सकता है: (i) अग्र मस्तिष्क, (ii) मध्य मस्तिष्क, और (iii) पश्च मस्तिष्क (चित्र 18.4)।

18.4.1 अग्र मस्तिष्क

अग्र मस्तिष्क सेरीब्रम, थेलेमस और हाइपोथेलेमस का बना होता हैं सेरीब्रम (प्रमस्तिष्क) मानव मस्तिष्क का एक बड़ा भाग बनाता है। एक गहरी लंबवत विदर प्रमस्तिष्क को दो भागों, दाएं व बाएं प्रमस्तिष्क गोलार्द्धो में विभक्त करती है। ये गोलार्द्ध तंत्रिका तंतुओं की पट्टी कार्पस कैलोसम द्वारा जुड़े होते हैं (चित्र 18.4)।

प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध को कोशिकाओं की एक परत आवरित करती है, जिसे प्रमस्तिष्क वल्कुट कहते हैं तथा यह निश्चित गर्तो में बदल जाती है। प्रमस्तिष्क वल्कुट को इसके धूसर रंग के कारण धूसर द्रव्य कहा जाता है। तंत्रिका कोशिका काय सांद्रित होकर इसे रंग प्रदान करती है। प्रमस्तिष्क वल्कुट में प्रेरक क्षेत्र, संवेदी भाग और बड़े भाग होते हैं, जो स्पष्टतया न तो प्रेरक क्षेत्र होते हैं न ही संवेदी। ये भाग सहभागी क्षेत्र कहलाते हैं तथा जटिल क्रियाओं जैसे अंतर संवेदी सहभागिता, स्मरण, संपर्क सूत्र आदि के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस पथ के रेशे माइलिन आच्छद से आवरित रहते हैं जो कि प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध का आंतरिक भाग बनाते हैं। ये इस परत को सफेद अपारदर्शी रूप प्रदान करते

चित्र 18.4 मानव मस्तिष्क का सममितार्धी (सेजीटल) काट

हैं, जिसे श्वेत द्रव्य कहते हैं। प्रमस्तिष्क थेलेमस नामक संरचना के चारों ओर लिपटा होता है, जो कि संवेदी और प्रेरक संकेतों का मुख्य संपर्क स्थल है। थेलेमस के आधार पर स्थित मस्तिष्क का दूसरा मुख्य भाग हाइपोथेलेमस स्थित होता है। हाइपोथेलेमस में कई केंद्र होते हैं, जो शरीर के तापमान, खाने और पीने का नियंत्रण करते हैं। इसमें कई तंत्रिका स्रावी कोशिकाएं भी होती हैं जो हाइपोथेलेमिक हार्मोन का स्रवण करती हैं। प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध का आंतरिक भाग और अंदरूनी अंगों जैसे एमिगडाला, हिप्पोकैपस आदि का समूह मिलकर एक जटिल संरचना का निर्माण करता है, जिसे लिंबिकलोब या लिबिंक तंत्र कहते हैं। यह हाइपोथेलेमस के साथ मिलकर लैंगिक व्यवहार, मनोभावनाओं की अभिव्यक्ति (जैसे उत्तेजना, खुशी, गुस्सा और भय) आदि का नियंत्रण करता है।

18.4.2 मध्य मस्तिष्क

मध्य मस्तिष्क अग्र मस्तिष्क के थेलेमस/हाइपोथेलेमस तथा पश्च मस्तिष्क के पोंस के बीच स्थित होता है। एक नाल प्रमस्तिष्क तरल नलिका मध्य मस्तिष्क से गुजरती है। मध्य मस्तिष्क का ऊपरी भाग चार लोबनुमा उभारों का बना होता है जिन्हें कॉर्पोरा क्वाड्रीजेमीन कहते हैं।

18.4.3 पश्च मस्तिष्क

पश्च मस्तिष्क पोंस, अनुमस्तिष्क और मध्यांश (मेड्यूला ओबलोगेंटा) का बना होता है। पोंस रेशेनुमा पथ का बना होता है जो कि मस्तिष्क के विभिन्न भागों को आपस में जोड़ते हैं। अनुमस्तिष्क की सतह विलगित होती है जो न्यूरोंस को अतिरिक्त स्थान प्रदान करती है। मस्तिष्क का मध्यांश मेरूरज्जु से जुड़ा होता है। मध्यांश में श्वसन, हृदय परिसंचारी प्रतिवर्तन और पाचक रसों के स्राव के नियंत्रण केंद्र होते हैं।

मध्य मस्तिष्क, पोंस और मेडुला ओबलोगेटा मस्तिष्क स्तंभ के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं। मस्तिष्क स्तंभ, मस्तिष्क और मेरू रज्जू के बीच संयोजन स्थापित करता है।

सारांश

तंत्रिका तंत्र समन्वयी तथा एकीकृत क्रियाओं के साथ ही अंगों की उपापचयी और समस्थैनिक क्रियाओं का नियंत्रण करता है। तंत्रिका तंत्र की क्रियात्मक इकाई न्यूरोंस, झिल्ली के दोनों ओर सांद्रता प्रवणता अंतराल के कारण उत्तेजक कोशिकाएं होती हैं। स्थिर तंत्रिकीय झिल्ली के दोनों ओर का विद्युत विभवांतर विरामकला विभव कहलाता है। तंत्रिकांक्ष झिल्ली पर विद्युत विभावांतर प्रेरित उद्दीपन द्वारा संचारित होता है। इसे सक्रिय विभव कहते हैं। तंत्रिकाक्ष झिल्ली की सतह पर आवेगों का संचरण विध्रुवीकरण और पुनध्रुवीकरण के रूप में होता है। पूर्व सिनेप्टिक न्यूरॉन और पश्च सिनेप्टिक न्यूरॉन की झिल्लियाँ सिनेप्स का निर्माण करती है, जो कि सिनैप्टिक विदर द्वारा पृथक हो सकती है या नहीं होती है। सिनेप्स दो प्रकार के होते हैं - विद्युत सिनैप्स और रासायनिक सिनेप्स। रासायनिक सिनैप्स पर आवेगों के संचरण में भाग लेने वाले रसायन न्यूरोट्रांसमीटर कहलाते हैं।

मानव तंत्रिका तंत्र दो भागों का बना होता है -

(i) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और (ii) परीधीय तांत्रिका तंत्र। सी एन एस मस्तिष्क और मेरूरज्जु का बना होता है। मस्तिष्क को तीन मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है। (i) अग्र मस्तिष्क (ii) मध्य मस्तिष्क (iii) पश्च मस्तिष्क। अग्र मस्तिष्क प्रमस्तिष्क, थेलेमस और हाइपोथेलेमस से बना होता है। प्रमस्तिष्क लंबवत् दो अर्धगोलार्धों में विभक्त होता है, जो कॉर्पस कैलोसम से जुड़े रहते हैं। अग्र मस्तिष्क का महत्वपूर्ण भाग हाइपोथेलेमस शरीर के तापक्रम, खाने और पीने आदि क्रियाओं का नियंत्रण करता है। प्रमस्तिष्क गोलार्द्धो का आंतरिक भाग और संगठित गहराई में स्थित संरचनाएं मिलकर एक जटिल संरचना बनाते हैं, जिसे लिम्बिक तंत्र कहते हैं और यह सूंघने, प्रतिवर्त्ती क्रियाओं, लैंगिक व्यवहार के नियंत्रण, मनोभावों की अभिव्यक्ति और अभिप्रेरण से संबंधित होता है। मध्य मस्तिष्क ग्राही व एकीकरण तथा एकीकृत दृष्टि तंतु तथा श्रवण अंतर क्रियाओं से संबंधित है।

पश्च मस्तिष्क पोंस, अनु मस्तिष्क और मेड्यूला का बना होता है। अनु मस्तिष्क कर्ण की अर्द्धचंद्राकार नलिकाओं तथा श्रवण तंत्र से प्राप्त होने वाली सूचनाओं को एकीकृत करता है। मध्यांश (मैड्यूला) में श्वसन, हृदय परिसंचयी, प्रतिवर्तित और जठर स्रावों के नियंत्रण केंद्र होते हैं। पोंस रेशेनुमा पथ का बना होता है, जो मस्तिष्क के विभिन्न भागों को आपस में जोड़ता है। परिधीय तंत्रिका तंत्र को प्राप्त उद्दीपनों के लिए अनैच्छिक प्रतिक्रियाओं को प्रतिवर्ती क्रियाएं कहा जाता है।



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