पादप में श्वसन

हम सभी जीवित रहने के लिए साँस लेते हैं, लेकिन जीवन के लिए साँस लेना इतना आवश्यक क्यों है? जब हम साँस लेते हैं, तब क्या होता है। क्या सभी जीवधारी, चाहे पादप हों या सूक्ष्म जीव साँस लेते हैं? यदि ऐसा है तो कैसे?

सभी जीवधारियों को अपने दैनिक जीवन में अवशोषण, परिवहन, गति, प्रजनन जैसे कार्य करने हेतु और यहाँ तक की साँस लेने हेतु भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह सभी ऊर्जा कहाँ से आती है? हम जानते हैं कि ऊर्जा के लिए हम भोजन करते हैं, लेकिन ये ऊर्जा भोजन से कैसे प्राप्त होती है? यह ऊर्जा कैसे उपयोग में आती है? क्या सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों से समान प्रकार की ऊर्जा मिलती है? क्या पादप भोजन करते हैं? पादप यह ऊर्जा कहाँ से प्राप्त करते हैं? और सूक्ष्मजीव इस ऊर्जा की आवश्यकता के लिए क्या भोजन करते हैं?

उपरोक्त किए गए अनेक प्रश्नों से आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि इनमें बहुत अधिक सामंजस्य नहीं है। लेकिन वास्तव में साँस लेने की प्रक्रिया व खाद्य पदार्थ से मुक्त होने वाली ऊर्जा की प्रक्रिया में बहुत अधिक संबद्धता होती है। हम यह समझने का प्रयास करें कि यह कैसे होता है?

जीवन विधि के लिए आवश्यक सभी ऊर्जा कुछ वृहत् अणुओं के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है, जिसे खाद्य पदार्थ कहते हैं। केवल हरे पादप व नीले हरित जीवाणु अपना भोजन स्वयं संश्लेषित कर सकते हैं। ये प्रकाश-संश्लेषण विधि, द्वारा प्रकाशीय ऊर्जा को रसायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर कार्बोहाइड्रेट-ग्लूकोज, सुक्रोज व स्टार्च के रूप में संचित करते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि हरे पादपों में भी सभी कोशिकाओं, ऊतकों, अंगों में प्रकाश-संश्लेषण नहीं होता है, केवल वे कोशिकाएं, जिनमें क्लोरोप्लास्ट होता है, वे ही

प्रकाश-संश्लेषण करती हैं। चूंकि हरे पादपों में सभी अंग, ऊतक व कोशिकाएं हरी नहीं होती हैं, इसलिए इनमें ऑक्सीकरण के लिए खाद्य पदार्थ की आवश्यकता होती है। इसलिए खाद्य पदार्थ का अहरित भागों में परिवहन होता है। प्राणी परपोषित होते हैं, इसलिए वे अपना भोजन पादपों से परोक्ष (शाकाहारी), या अपरोक्ष (माँसाहारी) रूप में प्राप्त करते हैं। मृतजीवी जैसे कवक, मृत या सड़े गले पदार्थों पर निर्भर रहते हैं। यह जान लेना अति महत्वपूर्ण है कि जीवन में साँस हेतु आवश्यक सभी खाद्य पदार्थ प्रकाश-संश्लेषण द्वारा प्राप्त होते हैं। इस अध्याय में कोशिकीय साँस अथवा कोशिका में खाद्य पदार्थों के टूटने से निकलने वाली ऊर्जा की क्रियाविधि तथा एटीपी के संश्लेषण को समझाया गया है।

निसंदेह, प्रकाश-संश्लेषण क्लोरोप्लास्ट में संपन्न होता है (यूकैरियोट में), जबकि ऊर्जा प्राप्त करने के लिए कॉम्पलेक्स अणुओं का विघटन से कोशिका द्रव्य तथा माइटोकोंड्रिया में होता है (वह भी केवल यूकैरियोट में) जबकि कोशिकाओं में कॉम्पलेक्स अणुओं के C-C (कार्बन-कार्बन) आबंध के, ऑक्सीकरण होने पर पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा का मुक्त होना साँस कहलाता है। इस प्रक्रिया में जिस यौगिक का ऑक्सीकरण होता है उसे श्वसनी क्रियाधार कहते हैं। प्रायः कार्बोहाइड्रेट के ऑक्सीकरण से ऊर्जा मुक्त होती है, किंतु कुछ पादपों में विशेष परिस्थितियों में प्रोटीन,वसा तथा यहाँ तक कि कार्बनिक अम्ल भी श्वसनी क्रियाधार के रूप में प्रयोग में आ सकते हैं। कोशिका के अंदर ऑक्सीकरण के दौरान श्वसनी क्रियाधार में स्थित संपूर्ण ऊर्जा कोशिका में एक साथ मुक्त नहीं होती है। यह एंजाइम द्वारा नियंत्रित चरणबद्ध धीमी अभिक्रियाओं के रूप में मुक्त होती है, जो रासायनिक ऊर्जा एटीपी के रूप मे एकत्रित हो जाती है। यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि साँस में ऑक्सीकरण द्वारा निकलने वाली ऊर्जा सीधे उपयोग में नहीं आती (या संभवतया नहीं भी हो सकती) किंतु यह एटीपी के संश्लेषण के उपयोग में आती है तथा इस ऊर्जा की जब भी (तथा जहाँ भी) आवश्यकता होती है, ये टूट जाती हैं इस कारण से एटीपी कोशिका के लिए ऊर्जा मुद्रा का कार्य करती है। एटीपी में संचित उर्जा, जीवधारियों की विभिन्न ऊर्जा आवश्यक प्रक्रियाओं में उपयोग में आती है। साँस के दौरान निर्मित कार्बनिक पदार्थ कोशिका में दूसरे अणुओं के संश्लेषण के लिए पूर्वगामी के रूप काम आते हैं।

12.1 क्या पादप साँस लेते हैं?

इस प्रश्न का कोई परोक्ष उत्तर नहीं है। हाँ पादपों में साँस हेतु ऑक्सीजन $\left(\mathrm{O} _{2}\right)$ की आवश्यकता होती है और वे कार्बन-डाइऑक्साइड $\left(\mathrm{CO} _{2}\right)$ को मुक्त करते हैं। इस कारण से पादपों में ऐसी व्यवस्था है, जिससे ऑक्सीजन $\left(\mathrm{O} _{2}\right)$ की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। पादपों में प्राणियों की तरह गैसीय आदान-प्रदान हेतु विशिष्ट अंग नहीं होते, बल्कि उनमें इस उद्देश्य हेतु रंध्र व वातरंध्र मिलते हैं। पौधे बिना श्वसन अंग के कैसे श्वसन करते हैं, इसके कई कारण हो सकते हैं। प्रथम कारण यह है कि पादपों का प्रत्येक भाग अपनी गैसीय आदान-प्रदान की आवश्यकता का ध्यान रखता है। पादपों के एक भाग से दूसरे भाग में गैसों का परिवहन बहुत कम होता है। दूसरा कारण यह है कि पादपों में गैसों के

आदान-प्रदान की बहुत अधिक मांग नहीं होती। पादप के विभिन्न भागों में मूल, तना व पत्ती में श्वसन, जंतुओं की अपेक्षा बहुत ही धीमी दर से होता है। केवल प्रकाश-संश्लेषण के दौरान गैसों का अत्यधिक आदान-प्रदान होता है तथा प्रत्येक पत्ती, पूर्णतया इस प्रकार से अनुकूलित होती है कि इस अवधि के दौरान अपनी आवश्यकता का ध्यान रखती है। जब कोशिका श्वसन करती है। ऑक्सीजन की उपलब्धता की कोई समस्या नहीं होती है, क्योंकि कोशिका में प्रकाश-संश्लेषण के दौरान ऑक्सीजन निकलती है। तृतीय कारण यह है कि बड़े, स्थूल पादपों में गैसें अधिक दूरी तक विसरित नहीं होती हैं। पादपों में प्रत्येक सजीव कोशिका पादपों की सतह के बिल्कुल पास स्थित होती है। यह ‘पत्ती के लिए सत्य कथन’ है। आप यह पूछ सकते हैं कि मोटे, काष्ठीय तनों और मूल के लिए क्या होता है? तना में सजीव कोशिकाएं छाल व छाल के नीचे पतली सतह के रूप में व्यवस्थित रहती हैं। इनमें भी छिद्र होते हैं, जिन्हें वातरंध्र कहते हैं। भीतर की कोशिकाएं मृत होती हैं तथा यांत्रिक सहायता प्रदान करती हैं। अतः पादपों की अधिकांश कोशिकाओं की सतह हवा के संपर्क में होती है। यह पैरेंकाइमा कोशिकाओं के द्वारा इस कार्य को आगे बढ़ाते हैं जो कि वायु रिक्तकाओं के आपस में जुड़े हुए जालरूपी रचना के कारण संभव होता है।

ग्लूकोज के नियंत्रित संपूर्ण आक्सीकरण दहन से अंतिम उत्पाद के रूप में कार्बनडाइऑक्साइड $\left(\mathrm{CO} _{2}\right)$, तथा जल $\left(\mathrm{H} _{2} \mathrm{O}\right)$ के साथ ऊर्जा निकलती है जिसका सर्वाधिक भाग ऊष्मा के रूप में निकल जाता है। यदि यह ऊर्जा कोशिका के लिए आवश्यक है तो इसका उपयोग कोशिका में दूसरे अणुओं के संश्लेषण में होना चाहिए।

$$ \mathrm{C} _{6} \mathrm{H} _{12} \mathrm{O} _{6}+6 \mathrm{O} _{2} \longrightarrow 6 \mathrm{CO} _{2}+6 \mathrm{H} _{2} \mathrm{O}+\text { ऊर्जा } $$

पादप कोशिकाएं इस तरह से भोजन बनाती हैं कि ग्लूकोज अणु के अपचय से निकलने वाली संपूर्ण ऊर्जा मुक्त उष्मा के रूप में न निकल पाए। मुख्य बात यह है कि ग्लूकोज का ऑक्सीकरण एक चरण में न होकर छोटे-छोटे अनेक चरणों में होता है, जिनमें कुछ चरण इतने बड़े होते हैं कि इनसे निकलने वाली पर्याप्त ऊर्जा एटीपी के संश्लेषण में उपयोग में आ जाती है। यह कैसे होता है, वास्तव में यही साँस का इतिहास है! साँस की क्रियाविधि के दौरान ऑक्सीजन का उपयोग होता है तथा कार्बनडाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा उत्पाद के रूप में निकलती है। दहन अभिक्रिया के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। परंतु कुछ कोशिकाएं ऑक्सीजन की उपस्थिति और अनुपस्थिति में भी जीवित रहती हैं। क्या आप ऐसी परिस्थतियों के बारे (और जीवों) में सोच सकते हैं जहाँ ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं होती है। विश्वास करने के लिए पर्याप्त कारण है कि प्रथम कोशिका इस ग्रह पर ऐसे वातावरण में मिली थी, जहाँ ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं थी। आज भी उपलब्ध सजीवों में हम जानते हैं कि कुछ अनाक्सी (ऑक्सीजन रहित) वातावरण हेतु अपने को अनुकूलित कर चुके हैं। इनमें से कुछ विकल्पीय अनाक्सी हैं जबकि कुछ के लिए अनॉक्सी स्थिति की आवश्यकता अविकल्पीय होती है। हर स्थिति में सभी जीवों में एंजाइम तंत्र होता है जो ग्लूकोज को बिना ऑक्सीजन की सहायता से आंशिक रूप से ऑक्सीकृत करता है। इस प्रकार ग्लूकोज का पाइरुविक अम्ल में विघटन ग्लाइकोलिसिस कहलाता है।

12.2 ग्लाइकोलिसिस

ग्लाइकोलिसिस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ग्लाइकोस

चित्र 12.1 ग्लाइकोलिसिस के चरण

अर्थात् शर्करा एवं लाइसिस अर्थात् टूटना से हुआ है। ग्लाइकोलिसिस की प्रक्रिया गुस्ताव इंबेडेन, ओटो मेयर हॉफ तथा जे पारानास द्वारा दिया गया तथा इसे सामान्यतः इएमपी पाथ कहते हैं। अनाक्सी जीवों में साँस की केवल यही प्रक्रिया है। ग्लाइकोलिसिस कोशिका द्रव्य में संपन्न होता है और यह सभी सजीवों में मिलता है । इस प्रक्रिया में ग्लूकोज आंशिक ऑक्सीकरण द्वारा पाइरुविक अम्ल के दो अणुओं में बदल जाता है। पादपों में यह ग्लूकोज सुक्रोज से प्राप्त होता है जो कि प्रकाश संश्लेषित कार्बन अभिक्रियाओं का अंतिम उत्पाद है या संचयित कार्बोहाइड्रेट से प्राप्त होता है। सुक्रोस इंवर्टेस नामक एंजाइम की सहायता से ग्लूकोज तथा फ्रुक्टोज में परिवर्तित हो जाता है। ये दोनों मोनोसैकेराइड्स सरलता से ग्लाइकोलाइटिक चक्र में प्रवेश कर जाते हैं।

ग्लूकोज एवं फ्रुक्टोज, हेक्सोकाइनेज एंजाइम द्वारा फॉस्फरिकृत होकर ग्लूकोज-6 फॉस्फेट बनाते हैं। ग्लूकोज का फॉस्फरिकृत रूप समायवीकरण द्वारा फ्रुक्टोज- 6 फॉस्फेट में परिवर्तित हो जाता है। ग्लूकोज एवं फ्रुक्टोज के उपापचय के बाद के क्रम एक समान होते हैं। ग्लाइकोलिसिस के विभिन्न चरण चित्र 12.1 में दर्शाए गए हैं। ग्लाइकीलिसस में दस शृंखलाबद्ध अभिक्रियाओं में विभिन्न एंजाइम द्वारा ग्लूकोज से पाइरुवेट का निर्माण होता है। ग्लाइकोलिसिस के विभिन्न चरणों के अध्ययन के दौरान उन चरणों पर ध्यान दें जिसमें एटीपी का उपयोग (एटीपी ऊर्जा) अथवा संश्लेषण (इस मामले में $\mathrm{NADH}+\mathrm{H}^{+}$) होता है।

एटीपी का उपयोग दो चरणों में होता है: पहले चरण में जब ग्लूकोज-6 फॉस्फेट में परिवर्तन होता है तथा दूसरे चरण में व दूसरे फ्रुक्टोज-6 फॉस्फेट का फ्रुक्टोज 1,6 , बिसफॉस्फेट में परिवर्तन होता है।

फ्रुक्टोज 1,6 बिसफॉस्फेट टूटकर डाइहाइड्रोक्सीएसीटोन फॉस्फेट तथा 3-फॉस्फोग्लिसरिल्डहाइड (पीजीएएल) बनाता है। जब 3-फॉस्फोग्लिसरल्डिहाइड (पीजीएएल) का 1 , 3 -बाई फॉस्फोग्लिसरेट (बीपीजीए) में परिवर्तन होता है तो $\mathrm{NAD}^{+}$से $\mathrm{NADH}+\mathrm{H}^{+}$का निर्माण होता है। पीजीएएल से दो समान अपचयोपचय (रिडॉक्स) दो हाइड्रोजन अणु

पृथक होकर NAD के एक अणु की ओर स्थानांतरित होता है। पीजीएएल ऑक्सीकृत होकर अकार्बनिक फॉस्फेट से मिलकर बीपीजीए में परिवर्तित हो जाता है। डीपीजीए का 3- फॉस्फोग्लिसरीक अम्ल में परिवर्तन ऊर्जा उत्पादन करने वाली प्रक्रिया है। इस ऊर्जा का उपयोग एटीपी (ATP) निर्माण में होता है। पीईपी (P.E.P.) का पायरुविक अम्ल में परिवर्तन के दौरान भी एटीपी का निर्माण होता है। क्या तुम यह गणना कर सकते हो कि एक अणु से कितने एटीपी के अणुओं का प्रत्यक्ष रूप से संश्लेषण होता है?

पायरुविक अम्ल ग्लाइकोलिसिस का मुख्य उत्पाद है। पायरुवेट का उपापचयी भविष्य क्या है? यह कोशिकीय आवश्यकता पर निर्भर है। यहाँ तीन प्रमुख तरीके हैंजिसमें विभिन्न कोशिकाएं ग्लाइकोलिसिस द्वारा उत्पन्न पायरुविक अम्ल का उपयोग करती हैं। ये लैक्टिक अम्ल किण्वन, एल्कोहलिक किण्वन और ऑक्सी साँस है। अधिकांश प्रोकैरियोट तथा एक कोशिका यूकैरियोट में किण्वन अनाक्सी परिस्थितियों में होता है। ग्लूकोज के पूर्ण ऑक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बनडाइऑक्साइड तथा जल बनने हेतु जीवधारियों में क्रेब्स चक्र के द्वारा होता है, जिसे ऑक्सी श्वसन या साँस कहते हैं, जिसमें ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।

12.3 किण्वन

किण्वन में यीस्ट द्वारा ग्लूकोज का अनाक्सी परिस्थितियों में अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है। जिसमें अभिक्रियाओं के विभिन्न चरणों द्वारा पायरुविक अम्ल, कार्बनडाइऑक्साइड तथा इथेनोल में परिवर्तित हो जाता है। एंजाइम पायरुविक अम्ल डिकार्बोविसलेज एवं एल्कोहल डिहाइड्रोजिनेस इस अभिक्रिया को उत्प्रेरित करता है। दूसरे जीव जैसे कुछ बैक्टीरिया पायरुविक अम्ल से लैक्टिक अम्ल का निर्माण करते हैं। ये चरण चित्र 12.2 में दर्शाए गए हैं। प्राणी की मांसपेशियों की कोशिकाओं में शारीरिक अभ्यास के दौरान जब कोशिकीय साँस के लिए अपर्याप्त ऑक्सीजन होती है तब पायरुविक अम्ल लैक्टिक डिहाइड्रोजिनेस द्वारा लैक्टिक अम्ल में अपचयित हो जाता है। अपचयीकारक $\mathrm{NADH}+\mathrm{H}^{+}$होता है जो पुन: दोनों प्रक्रियाओं में $\mathrm{NAD}^{+}$ में ऑक्सीकृत हो जाता है।

दोनों लैक्टिक अम्ल तथा एल्कोहल किण्वन में पर्याप्त ऊर्जा मुक्त नहीं होती है। ग्लूकोज से 7 प्रतिशत से कम ऊर्जा मुक्त होती है और इसकी संपूर्ण ऊर्जा का उपयोग उच्च ऊर्जा बंध वाले एटीपी (ATP) के निर्माण में नहीं होता है। अम्ल व एल्कोहल बनने वाली उत्पाद की प्रक्रिया खतरनाक होती है। ग्लूकोज के एक अणु से किण्वन के बाद एल्कोहल या लैक्टिक अम्ल बनने के दौरान कितने शुद्ध एटीपी का संश्लेषण होता है। (अर्थात्

चित्र 12.2 श्वसन के प्रमुख पथ

ग्लाइकोलिसिस के दौरान उपयोग में आने वाले एटीपी (ATP) की संख्या घटाकर गणना करें कि कितने एटीपी (ATP) का संश्लेषण होता है)। जब एल्कोहल की मात्रा 13 प्रतिशत या अधिक होती है, तो यीस्ट के लिए यह विषाक्तता व मृत्यु का कारण बनती है। प्राकृतिक किण्वत पेय में एल्कोहल की अधिकतम सांद्रता कितनी होगी? क्या आप सोच सकते हैं कि मादक पेय में एल्कोहल की मात्रा इसमें स्थित एल्कोहल की सांद्रता से अधिक कैसे प्राप्त की जा सकती है?

वह क्या प्रक्रिया है जिसके द्वारा जीव में ग्लूकोज का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है,और इस दौरान मुक्त ऊर्जा कोशिकीय उपापचय की आवश्यकता के अनुसार बहुत से एटीपी अणुओं का संश्लेषण करती है। यूकैरियोट में ये सभी चरण माइटोकोन्ड्रिया में संपन्न होते हैं। जिसके लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। ऑक्सी साँस वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा रासायनिक पदार्थों का ऑक्सीजन की उपस्थिति में पूर्ण ऑक्सीकरण होता है तथा जिसके पश्चात् कार्बनडाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा निकलती है। इस प्रकार का साँस सामान्यतया उच्च जीवों में मिलता है। हम इन प्रक्रियाओं को अगले खंड में पढ़ेंगे।

12.4 ऑक्सी श्वसन ( साँस )

माइटोकोंड्रिया में होने वाले ऑक्सी श्वसन के दौरान ग्लाइकोलिसिस का अंतिम उत्पाद पायरुवेट कोशिका द्रव्य से माइटोकोंड्रिया में परिवहन किया जाता है। ऑक्सी श्वसन की मुख्य घटनाएं निम्नलिखित हैं-

  • पायरुवेट का चरणबद्ध क्रम में पूर्ण ऑक्सीकरण के उपरांत सभी हाइड्रोजन परमाणु पृथक होते हैं जिससे 3 कार्बनडाइऑक्साइड के अणु भी मुक्त होते हैं।

  • हाइड्रोजन परमाणुओं से पृथक् हुए इलेक्ट्रॉन ऑक्सीजन अणु की ओर जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप एटीपी का संश्लेषण होता है।

सबसे अधिक रोचक बात यह है कि इसकी पहली प्रक्रिया माइटोकोंड्रिया के आधात्री में संपन्न होती है जब कि द्वितीय प्रक्रिया माइटोकोंड्रिया की भीतरी झिल्ली पर संपन्न होती है। कोशिका द्रव्य में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट के ग्लाइकोलिटिक अपचय द्वारा बनने वाले पायरुवेट माइटोकोंड्रिया की आधात्री में प्रवेश करता है जो ऑक्सीकृत कार्बोक्सिलिकरण की कॉम्पलेक्स सामूहिक क्रिया द्वारा पायरुवेट डिहाइड्रोजिनेस एंजाइम द्वारा उत्प्रेरित होता है। पायरुविक डिहाइड्रोजिनेस अभिक्रियाओं में कई सह एंजाइम भाग लेते हैं। जैसे $\mathrm{NAD}^{+}$तथा $\mathrm{A}$ सहएंजाइम।

पायरुविक अम्ल $+\mathrm{CoA}+\mathrm{NAD}^{+}$

$$ \xrightarrow[\text { पाइरुवेट डिहाइड्रोजिनेज }]{\mathrm{Mg}^{2+}} \text { ऐसीटाइल } \mathrm{CoA}+\mathrm{CO} _{2}+\mathrm{NADH}+\mathrm{H}^{+} $$

इस प्रक्रिया के दौरान पायरुविक अम्ल के दो अणुओं के उपापचय से NADH के दो अणुओं का निर्माण होता है। (ग्लाकोलिसिस के दौरान ग्लूकोज के एक अणु से निर्मित होते हैं)

ऐसीटाइल CoA चक्रीय पथ, ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र में प्रवेश करता है। जिसे साधारणतया वैज्ञानिक हैन्स क्रेब की खोज के कारण क्रेब्स चक्र कहते हैं।

12.4.1 ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र ( टीसीए)

TCA चक्र का प्रारंभ एसीटाइल समूह के ओक्सेलो ऐसिटिक अम्ल (OAA) तथा जल के साथ संघनन से होता है और सिट्रिक अम्ल का निर्माण होता है (चित्र 12.3) यह अभिक्रिया सिट्रेट सिंथेटेज एंजाइम द्वारा होती है तथा CoA का एक अणु मुक्त होता है। तब सिट्रेट, आइसोसिट्रेट में समायवित हो जाता है। यह डिकार्बोक्सिलिकरण के दो लगातार चरणों के रूप में होता है। इसके उपरांत एल्फाकीटो ग्लूटेरिक अम्ल, तत्पश्चात् सक्सीनाइल $\mathrm{CoA}$ का निर्माण होता है। सिट्रिक अम्ल के बचे हुए चरणों में सक्सीनाइल CoA, OAA (ओक्सेलोऐसीटिक अम्ल) में ऑक्सीकृत होकर चक्र को आगे बढ़ाने में सहायक होता है। सक्सीनाइल (CoA) से सक्सीनिक अम्ल के रूपांतरण के दौरान जीटीपी के एक अणु का निर्माण होता है। इसे क्रियाधार स्तरीय फॉस्फोरिलिकरण कहते हैं। इन युग्मित अभिक्रियाओं में जीटीपी, जीडीपी में रूपांतरित हो जाता है तथा एडीपी से एटीपी का निर्माण होता है। चक्र में तीन स्थान ऐसे होते हैं जिसमें $\mathrm{NAD}^{+}$का $\mathrm{NADH}+\mathrm{H}^{+}$में अपचयन होता है और एक स्थान पर $\mathrm{FAD}^{+}$का $\mathrm{FADH} _{2}$ में अपयचन होता है।

टीसीए चक्र द्वारा एसिटिल $\mathrm{CoA}$ को एंजाइमस अम्ल के निरंतर ऑक्सीकरण हेतु ऑक्सेलोऐसीटेट अम्ल के पुनर्निमाण की आवश्यकता होती है, जो चक्र का प्रथम सदस्य है। इसके साथ-साथ $\mathrm{NAD}^{+}$तथा $\mathrm{FAD}^{+}$का $\mathrm{NADH}$ व $\mathrm{FADH} _{2}$ से क्रमशः पुनःउत्पादन होता है। अतः साँस की इस अवस्था के समीकरण को संक्षेप में निम्नवत लिखा जा सकता है:

$$ \begin{aligned} \text { पायरुविक अम्ल }+4 \mathrm{NAD}^{+}+\mathrm{FAD}^{+}+2 \mathrm{H} _{2} \mathrm{O}+\mathrm{ADP}+\mathrm{Pi} \xrightarrow{\text { माइट्रोकोंड्रियल आधात्री }} 3 \mathrm{CO} _{2}+4 \mathrm{NADH}+4 \mathrm{H}^{+} \ +\mathrm{FADH} _{2}+\mathrm{ATP} \end{aligned} $$

अब तक हम देख चुके हैं कि TCA चक्र में ग्लूकोज के विखंडन से कार्बनडाइऑक्साइड $\left(\mathrm{CO} _{2}\right)$ निकलती है, $\mathrm{NADH}+\mathrm{H}^{+}$ के आठ अणु, $\mathrm{FADH} _{2}$ के दो अणु तथा दो एटीपी अणुओं का निर्माण होता है। आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि अभी तक साँस की चर्चा के दौरान न ही कहीं पर ऑक्सीजन का तथा न ही कहीं पर एटीपी के बहुत सारे अणुओं के निर्माण की चर्चा हुई है। अब संश्लेषित $\mathrm{NADH}+\mathrm{H}^{+}$ तथा $\mathrm{FADH} _{2}$ की क्या भूमिका होगी। हमें अब समझना होगा कि साँस में ऑक्सीजन की भूमिका तथा एटीपी का निर्माण कैसे होता है?

12.4.2 इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र अथवा ऑक्सीकरणी फॉस्फोरिलिकरण

साँस प्रक्रिया के अगले चरण में $\mathrm{NADH}+\mathrm{H}^{+}$तथा $\mathrm{FADH} _{2}$ में संचित ऊर्जा मुक्त व उपयोग में लाना है। यह तब संपादित होता है। जब उनका ऑक्सीकरण इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र द्वारा होता है तथा इलेक्ट्रॉन ऑक्सीजन पर चला जाता है तथा पानी का निर्माण होता

चित्र 12.4 इलेक्ट्रॉन तंत्र

है। उपापचयी पथ जिसके द्वारा इलेक्ट्रॉन एक वाहक से अन्य वाहक की ओर गुजरता है इसे इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र (ETS) कहते हैं, (चित्र 12.4) जो माइटोकोंड्रिया के भितरी झिल्ली पर संपन्न होता है। माइटोकोंड्रिया के आधात्री में टीसीए चक्र के दौरान NADH से बनने वाले इलेक्ट्रॉन, एंजाइम NADH डिहाइड्रोजिनेज द्वारा ऑक्सीकृत होता है (कॉम्पलेक्स-I), तत्पश्चात् इलेक्ट्रॉन भीतरी झिल्ली में उपस्थित यूबीक्विनोन की ओर स्थानांतरित होता है। यूबीक्विनोन अपचयी समतुल्य $\mathrm{FADH} _{2}$ द्वारा प्राप्त करता है (कॉम्पलेक्स-II) जो सिट्रिक अम्ल चक्र में सक्सीन के ऑक्सीकरण के दौरान उत्पन्न होते हैं। अपचयित यूबिक्विनोन (यूबिक्विनोल) इलेक्ट्रॉन को साइटोक्रोम $\mathrm{bc} _{1}$ साइटोक्रोम $\mathrm{C}$ की ओर स्थानांतरित कर ऑक्सीकृत हो जाता है (कॉम्पलेक्स-III)। साइटोक्रोम $\mathrm{C}$ एक छोटा प्रोटीन है जो, भीतरी: झिल्ली की बाह्य सतह पर चिपका होता है जो इलेक्ट्रॉन को कॉम्पलेक्स-III तथा कॉम्पलेक्स-IV के बीच स्थानांतरण का कार्य गतिशील वाहक के रूप में करता है। कॉम्पलेक्स-IV साइटोक्रोम $C$ ऑक्सीडेज कॉम्पलेक्स है, जिसमें साइटोक्रोम $a, a _{3}$ तथा दो तांबा केंद्र मिलते हैं।

जब इलेक्ट्रॉन, इलेक्ट्रॉन परिवहन शृंखला में एक वाहक से दूसरे वाहक तक कॉम्पलेक्स-I से कॉम्पलेक्स-IV द्वारा गुजरते हैं, तब वे एटीपी सिंथेज (कॉम्पलेक्स-V) से युग्मित होकर एडीपी व अकार्बनिक फॉस्फेट से एटीपी का निर्माण करते हैं। इस दौरान संश्लेषित होने वाली एटीपी अणुओं की संख्या इलेक्ट्रॉन दाता पर निर्भर है। $\mathrm{NADH}$ के एक अणु के ऑक्सीकरण से एटीपी के तीन अणुओं का निर्माण होता है जबकि $\mathrm{FADH} _{2}$ का एक अणु से एटीपी का दो अणु बनता है जबकि साँस की ऑक्सी प्रक्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में ही संपन्न होती है। प्रक्रिया के अंतिम चरण में ऑक्सीजन की भूमिका सीमित होती है। यद्यपि ऑक्सीजन की उपस्थिति अत्यावश्यक है; क्योंकि यह पूरे तंत्र से $\mathrm{H} _{2}$ (हाइड्रोजन) को मुक्त कर पूरी प्रक्रिया को संचालित करती है। ऑक्सीजन अंतिम इलेक्ट्रॉन ग्राही के रूप में कार्य करता है। प्रकाश फॉस्फोरिलिकरण के विपरीत, जहाँ प्रोटीन प्रवणता के निर्माण में प्रकाश ऊर्जा का उपयोग फॉस्फोरिलिकरण के लिए होता है, साँस में इसी प्रकार की प्रक्रिया में ऑक्सीकरण अपचयन द्वारा ऊर्जा की पूर्ति होती है। फलस्वरूप इस कारण से हुई क्रियाविधि को ऑक्सीकारी-फॉस्फोरिलिकरण कहते हैं।

झिल्ली से जुड़े एटीपी संश्लेषण की क्रियाविधि के बारे में आप पहले ही पढ़ चुके हैं जिसे पिछले अध्याय में रसोपरासरण परिकल्पना (केमियोओस्मोटिक हाइपोथिसिस) के आधार पर बताया गया है। जैसा कि पहले वर्णित है कि इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र के दौरान मुक्त ऊर्जा का उपयोग एटीपी सिंथेज (कॉम्पलेक्स-V) की सहायता से एटीपी के संश्लेषण में होता है। यह कॉम्पलेक्स, दो प्रमुख घटकों $\mathrm{F} _{0}$ व $\mathrm{F} _{1}$ से बनते हैं (चित्र 12.5) $\mathrm{F} _{1}$ शीर्ष परिधीय झिल्ली प्रोटीन कॉम्पलेक्स है, जहाँ पर अकार्बनिक फास्फेट तथा एडीपी से एटीपी का संश्लेषण होता है। वैद्युत रसायन प्रोटोन प्रवणता के फलस्वरूप $4 \mathrm{H}^{+}$ आयन अंतर झिल्ली अवकाश से $\mathrm{F} _{\mathrm{o}}$ में होकर आधात्री की ओर गति करता है जिससे एक एटीपी का संश्लेषण होता है।

चित्र 12.5 माइटोकोंड्रिया में एटीपी संश्लेषण का चित्रात्मक प्रदर्शन

12.5 श्वसनीय संतुलन चार्ट

प्रत्येक ऑक्सीकृत ग्लूकोज अणु से बनने वाले प्राप्त शुद्ध एटीपी की गणना करना अब संभव है, किंतु वास्तविकता में यह एक सैद्धांतिक अभ्यास ही रह गया है। यह गणना कुछ निश्चित कल्पनाओं के आधार पर ही की जा सकती हैं।

  • यह एक क्रमिक, सुव्यवस्थित, क्रियात्मक पाथ है जिसमें एक क्रियाधार से दूसरे क्रियाधार का निर्माण होता है जिसमें ग्लाइकोलिसिस से शुरू होकर टीसीए चक्र तथा पथ (ETS) एक के बाद एक आती है।

  • ग्लाइकोलिसिस में संश्लेषित NADH माइटोकोंड्रिया में आता है, जहाँ उसका फॉस्फोरिलीकरण होता है।

  • पथ का कोई भी मध्यवर्ती दूसरे यौगिक के निर्माण के उपयोग में नहीं आते हैं।

  • श्वसन में केवल ग्लूकोज का ही उपयोग होता है- कोई दूसरा वैकल्पिक क्रियाधार पथ के किसी भी मध्यवर्ती चरण में प्रवेश नहीं करता है।

हालांकि इस प्रकार की कल्पना सजीव तंत्र में वास्तव में तर्कसंगत नहीं होती है; सभी पथ एक के बाद एक नहीं, बल्कि एक साथ कार्य करते हैं। पथ में क्रियाधार आवश्यकता अनुसार बाहर तथा अंदर आ जा सकते हैं; आवश्यकतानुसार एटीपी का उपयोग हो सकता है; एंजाइम की क्रिया की दर को अनेकों विधियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। फिर भी यह क्रिया करना उपयोगी है; क्योंकि सजीव तंत्र में ऊर्जा का निष्कर्षण एवं संग्रहण हेतु इसकी दक्षता सराहनीय है। अतः ऑक्सी श्वसन के दौरान ग्लूकोज के एक अणु से एटीपी के 36 अणुओं की शुद्ध प्राप्ति होती है।

अब हम किण्वन तथा ऑक्सी श्वसन की तुलना करें।

  • किण्वन में ग्लूकोज का आंशिक विघटन होता है जबकि ऑक्सी श्वसन में पूर्ण विघटन होता है तथा कार्बनडाइऑक्साइड एवं जल बनते हैं।

  • किण्वन में ग्लूकोज के एक अणु से पायरुविक अम्ल बनने के दौरान एटीपी के शुद्ध 2 अणुओं की प्राप्ति होती है, जबकि ऑक्सी श्वसन में बहुत अधिक एटीपी के अणु बनते हैं।

  • किण्वन में $\mathrm{NADH}$ का $\mathrm{NAD}^{+}$में ऑक्सीकरण मंद गति से होता है, जबकि ऑक्सी श्वसन में यह अभिक्रिया तीव्र गति से होती है।

12.6 ऐंफीबोलिक पथ

साँस के लिए ग्लूकोज अनुकूल क्रियाधार है श्वसन में सभी कार्बोहाइड्रेट उपयोग में लाने से पहले ग्लूकोज में परिवर्तित होते हैं। जैसे कि पहले बताया जा चुका है कि दूसरे क्रियाधार भी साँस में प्रयोग किए जा सकते हैं। किंतु तब वे साँस के पहले चरण में उपयोग में नहीं आते हैं। चित्र 12.6 को देखिए कि विभिन्न क्रियाधार श्वसन पथ में कहाँ

चित्र 12.6 श्वसन मध्यस्थता के दौरान विभिन्न कार्बनिक अणुओं का व जल में विखंडन को दर्शाने वाला उपापचय पाथक्रम के आपसी संबंध का प्रदर्शन

उपयोग करते हैं। वसा सबसे पहले ग्लिसरेल तथा वसीय अम्ल में विघटित होता है। यदि वसीय अम्ल साँस के उपयोग में आता है तो वह पहले एसीटाइल सह-एंजाइम बनकर पथ में प्रवेश करता है। ग्लिसरेल पहले पीजीएएल (PGAL) में परिवर्तित होकर श्वसन पथ में प्रवेश करता है। प्रोटीन प्रोटिएज एंजाइम द्वारा विघटित होकर अमीनो अम्ल बनाता है। प्रत्येक अमीनो अम्ल (विऐमीनीकरण के बाद) अपनी संरचना के आधार पर क्रेष्स चक्र के अंदर विभिन्न चरणों में प्रवेश करता है।

चूंकि साँस के दौरान क्रियाधारक टूटते हैं, अतः साँस प्रक्रिया परंपरागत अपचयी प्रक्रिया है और श्वसन पथ श्वसनीय अपचयी पथ है। किंतु आप क्या इसे ठीक समझते हैं? ऊपर वर्णित है कि विभिन्न क्रियाधार ऊर्जा हेतु श्वसन पथ में कहाँ प्रवेश करते हैं। यह जानना महत्वपूर्ण है कि ये यौगिक उपरोक्त क्रियाधार बनाने के लिए श्वसनीय पथ से अलग होंगे। अतः पथ में प्रवेश करने से पहले वसा अम्ल जब क्रियाधार के रूप में उपयोग में आते हैं तो श्वसनीय पथ में उपयोग में आने से पूर्व एसीटाइल $\mathrm{CoA}$ में विखंडित हो जाता है। जब जीवधारी को वसा अम्ल का संश्लेषण करना होता है तो श्वसनी पथ एसीटाइल $\mathrm{CoA}$ अलग हो जाता है। इसलिए वसा अम्ल के संश्लेषण तथा विखंडन के दौरान श्वसनीय पथ का उपयोग होता है। इसी प्रकार से प्रोटीन के संश्लेषण व विखंडन के दौरान भी होता है। इस प्रकार विघटन की प्रक्रिया कम करता है। सजीवों में अपचय कहलाती है तथा संश्लेषण उपचय कहलाती है; चूँकि श्वसनी पथ में अपचय तथा उपचय दोनों ही होते हैं। इसलिए श्वसनी पथ को ऐंफीबोलिक पथ कहना उचित होगा न कि उपचय पथ; क्योंकि यह अपचयी व उपचयी दोनों में भाग लेती है।

12.7 साँस गुणांक

अब साँस के दूसरे पक्ष को देखते हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि ऑक्सी श्वसन के दौरान ऑक्सीजन का उपयोग होता है और कार्बनडाइऑक्साइड निकलती है। साँस के दौरान मुक्त हुई कार्बनडाइऑक्साइड तथा उपयोग में लाई गई ऑक्सीजन का अनुपात को साँस गुणांक (R.Q.) या श्वसनीय अनुपात कहते हैं।

$$ \text { साँस गुणांक }=\frac{\text { मुक्त हुई } \mathrm{CO} _{2} \text { का आयतन }}{\text { उपयोग में लाई गई } \mathrm{O} _{2} \text { का आयतन }} $$

साँस गुणांक, साँस के दौरान उपयोग में आने वाले श्वसनी क्रियाधार पर निर्भर करता है। जब कार्बोहाइड्रेड क्रियाधार के रूप में आकर पूर्ण ऑक्सीकृत हो जाते हैं तो साँस गुणांक 1 होगा; क्योंकि समान मात्रा में $\mathrm{CO} _{2}$ व $\mathrm{O} _{2}$ क्रमशः मुक्त होती हैं एवं उपयोग में लाई जाती हैं, जैसा कि समीकरण से स्पष्ट है:

$$ \begin{gathered} \mathrm{C} _{6} \mathrm{H} _{12} \mathrm{O} _{6}+6 \mathrm{O} _{2} \longrightarrow 6 \mathrm{CO} _{2}+6 \mathrm{H} _{2} \mathrm{O}+\text { ऊर्जा } \ \text { साँस गुणांक (R.Q.) }=\frac{6 \mathrm{CO} _{2}}{60 _{2}}=1.0 \end{gathered} $$

$$ \begin{gathered} 2\left(\mathrm{C} _{51} \mathrm{H} _{98} \mathrm{O} _{6}\right)+145 \mathrm{O} _{2} \longrightarrow 102 \mathrm{CO} _{2}+98 \mathrm{H} _{2} \mathrm{O}+\text { उर्जा } \ \text { साँस गुणांक (R.Q.) }=\frac{102 \mathrm{CO} _{2}}{145 \mathrm{O} _{2}}=0.7 \end{gathered} $$

जब वसा साँस में प्रयुक्त होती है तो साँस गुणांक 1.00 से कम होता है। वसा अम्ल ट्राइपामाटिन के रूप में उपयोग में आता है तब इसकी गणना निम्नवत होगी:

जब प्रोटीन श्वसनी क्रियाधार के रूप में प्रयुक्त होता है तब अनुपात 0.9 के लगभग होते है।

यहाँ, यह जानना अतिमहत्वपूर्ण है कि सजीवों में श्वसनीय क्रियाधार अक्सर एक से अधिक होते हैं; किंतु शुद्ध प्रोटीन व वसा श्वसनी क्रियाधारों के रूप में प्रयुक्त नहीं होते हैं।

सारांश

प्राणियों की तरह पादपों में श्वसन या गैसीय आदान प्रदान हेतु कोई विशिष्ट तंत्र नहीं होता है। रंध्र व वातरंध्र द्वारा विसरण से गैसों का आदान प्रदान होता है। पौधों में लगभग सभी सजीव कोशिकाएं वायु के संपर्क में होती हैं।

जटिल कार्बनिक अणुओं के ऑक्सीकरण द्वारा $\mathrm{C}-\mathrm{C}$ आवंधों के टूटने के उपरांत जब कोशिका से ऊर्जा की अत्यधिक मात्रा निकलती है तो उसे कोशिकीय साँस कहते हैं। साँस के लिए ग्लूकोज सर्वाधिक उपयोगी क्रियाधार है। वसा एवं प्रोटीन के टूटने के बाद भी ऊर्जा निकलती है। कोशिकीय साँस की प्रारंभिक प्रक्रिया कोशिका द्रव्य में संपन्न होती है। प्रत्येक ग्लूकोज का अणु एंजाइम उत्प्रेरित श्रृंखलाओं की अभिक्रियाओं द्वारा पायरुविक अम्ल के 2 अणुओं में टूट जाता है, इस प्रक्रिया को ग्लाइकोलिसिस कहते हैं। पायरुवेट का भविष्य $\mathrm{O} _{2}$ की उपलब्धता तथा जीव पर निर्भर करता है। अनॉक्सी परिस्थितियों में किण्वन द्वारा लैक्टिक अम्ल या एल्कोहल बनते हैं। किण्वन बहुत सारे प्रोकै रियोटिक, एक कोशिक यूकैरियोट व अंकुरित बीजों में अनॉक्सी परिस्थितियों में संपन्न होता है। यूकैरियोट जीवों में $\mathrm{O} _{2}$ की उपस्थिति में ऑक्सी साँस होता है। पायरुविक अम्ल का माइटोकोंड्रिया में परिवहन के बाद एसीटाइल $\mathrm{CoA}$ में रूपांतरण होता है साथ ही $\mathrm{CO} _{2}$ निकलती है। तत्पश्चात एसीटाइल $\mathrm{COA}$ टीसीए पथ अथवा क्रेब्स चक्र में प्रवेश करता है जो माइटोकोंड्रिया के आधात्री में होता है। क्रेब्स चक्र में $\mathrm{NADH}+\mathrm{H}^{+}$ तथा $\mathrm{NADH} _{2}$ बनते हैं। इन अणुओं व $\mathrm{NADH}+\mathrm{H}^{+}$ जो ग्लाइकोलिसिस के दौरान बनता है। इनकी ऊर्जा का उपयोग एटीपी के संश्लेषण में होता है। यह सूक्ष्मकणिका के अंतः झिल्ली पर स्थित वाहकों के तंत्र, जिसे इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र कहते हैं, के द्वारा संपन्न होती है जब इलेक्ट्रॉन इस तंत्र से होकर गति करता है, तो निकलने वाली पर्याप्त ऊर्जा एटीपी का संश्लेषण होता है, इसे ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण कहते हैं, इस प्रक्रिया में अंततः अंतिम इलेक्ट्रॉन ग्राही $\mathrm{O} _{2}$ होता है, जो पानी में अपचयित हो जाता है।

श्वसनी पथ में उपचयी अथवा अपचयी दोनों भाग लेते हैं, इसलिए इसे ऐंफीबेलिक पथ कहते हैं। साँस गुणांक साँस के दौरान में आने वाले श्वसनी क्रियाधार पर निर्भर करता है।



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