उच्च पादपों में प्रकाश-संश्लेषण

सभी प्राणी, यहाँ तक कि मानव भी आहार के लिए पौधों पर निर्भर हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि पौधे अपना आहार कहाँ से प्राप्त करते हैं? वास्तव में, हरे पौधे अपना आहार संश्लेषित करते हैं तथा अन्य सभी जीव अपनी आवश्यकता के लिए उन पर निर्भर रहते हैं। हरे पौधे अपने लिए आवश्यक भोजन का निर्माण अथवा संश्लेषण ‘प्रकाश-संश्लेषण’ द्वारा करते हैं। अतः वे स्वपोषी कहलाते हैं। आप पहले ही पढ़ चुके हैं कि स्वपोषी संश्लेषण केवल पौधों में ही पाया जाता है तथा अन्य सभी जीव जो अपने भोजन के लिए पौधों पर निर्भर करते हैं, विषमपोषी कहलाते हैं। यह एक ऐसी भौतिक-रासायनिक प्रक्रिया है, जसमें कार्बनिक यौगिकों को संश्लेषित करने के लिए प्रकाश-ऊर्जा का उपयोग करते हैं। अंतः कुल मिलाकर पृथ्वी पर रहने वाले सारे जीव ऊर्जा के लिए सूर्य के प्रकाश पर निर्भर करते हैं। पौधों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण में उपयोग की गई सूर्य-ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन का आधार है। प्रकाश-संश्लेषण के महत्वपूर्ण होने के दो कारण हैं: यह पृथ्वी पर समस्त खाद्य पदार्थों का प्राथमिक स्रोत है तथा यह वायुमंडल में ऑक्सीजन छोड़ता है। क्या आपने कभी सोचा है कि यदि साँस लेने के लिए ऑक्सीजन न हो, तो क्या होगा? इस अध्याय में प्रकाश-संश्लेषी (मशीनरी) तथा विभिन्न प्रतिक्रियाओं के विषय में बताया जाएगा जो प्रकाश-ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करती है।

11.1 हम क्या जानते हैं?

आइए, पहले यह पता करें कि हम प्रकाश-संश्लेषण के विषय में क्या जानते हैं। पिछली कक्षाओं में आपने कुछ सरल प्रयोग किए होंगे। जिनसे पता लगा होगा कि क्लोरोफिल (पत्तियों का हरा वर्णक), प्रकाश तथा कार्बनडाइऑक्साइड $\left(\mathrm{CO} _{2}\right)$ प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक है।

आपने शायद शबलित (वेरीगेट) पत्तियों अथवा उस पत्ती में जिसे आंशिक रूप से काले कागज से ढक दिया हो और प्रकाश में रखा हो, जिससे स्टार्च (मंड) बनाने का

(अ)

( स)

(ब)

(द)

चित्र 11.1 प्रीस्टले का प्रयोग

प्रयोग को किया होगा। स्टार्च के लिए इन पत्तियों के परीक्षण से यह बात प्रकट होती है कि प्रकाश-संश्लेषण क्रिया सूर्य के प्रकाश में पेड़ के केवल हरे भाग में संपन्न होती है।

आपने एक अन्य प्रयोग आधी पत्ती से किया होगा जिसमें एक पत्ती का आंशिक भाग परखनली के अंदर रखा होगा और इसमें $\mathrm{KOH}$ से भीगी हुई रूई भी रखी होगी $\left(\mathrm{KOH} \mathrm{CO}{ } _{2}\right.$ को अवशोषित करता है) जबकि शेष भाग को प्रकाश में रहने दिया होगा। इसके बाद इस उपकरण को कुछ समय के लिए धूप में रखा जाता है। कुछ समय के बाद आप स्टार्च के लिए पत्ती का परीक्षण करते हों। इस परीक्षण से आपको पता लगा कि पत्ती का जो भाग परखनली में था, उसने स्टार्च की पुष्टि नहीं की और जो भाग प्रकाश में था, उसने स्टार्च की पुष्टि की। इस प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए कार्बनडाइऑक्साइड $\left(\mathrm{CO} _{2}\right)$ आवश्यक है। क्या आप इसका वर्णन कर सकते हो कि ऐसा निष्कर्ष किस प्रकार निकाला जा सकता है?

11.2 प्रारंभिक प्रयोग

उन साधारण प्रयोगों के विषय में जानना काफी रुचिकर होगा जिनसे प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया क्रमिक विकसित हुई है।

जोसेफ प्रीस्टले (1733-1804) ने 1770 में बहुत से प्रयोग किए जिनसे पता लगा कि हरे पौधों की वृद्धि में हवा की एक अनिवार्य भूमिका है। आप को याद होगा कि प्रीस्टले ने 1774 में ऑक्सीजन की खोज की थी। प्रीस्टले ने देखा कि एक बंद स्थान-जैसे कि एक बेलजार में जलने वाली मोमबत्ती जल्दी ही बुझ जाती है (चित्र 11.1 अ,ब,स,द)। इसी प्रकार किसी चूहे का सीमित स्थान में जल्दी ही दम घुट जाएगा। इन अवलोकनों के आधार पर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि चाहे जलती मोमबत्ती हो अथवा कोई प्राणी जो वायु से साँस लेते हैं, वे हवा को क्षति पहुँचाते हैं। लेकिन जब उसने उसी बेल जार में एक पुदीने का पौधा रखा तो उसने पाया कि चूहा जीवित रहा और मोमबत्ती भी सतत जलती रही। इस आधार पर प्रीस्टले ने निम्न परिकल्पना की: “पौधे उस वायु की क्षतिपूर्ति करते हैं, जिन्हें साँस लेने वाले प्राणी और जलती हुई मोमबत्ती कम कर देती है।”

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि प्रीस्टले ने प्रयोग करने के लिए एक मोमबत्ती एवं पौधे का उपयोग कैसे किया होगा? याद रखें कि उसे मोमबत्ती को कुछ दिनों बाद पुनः जलाने की आवश्यकता होगी ताकि यह पता कर सके कि कुछ दिनों बाद वह जलेगी अथवा नहीं। सेटअप को बिना बाधित किए आप मोमबत्ती को जलाने के लिए कितनी विधियों के बारे में सोच सकते हो?

जॉन इंजेनहाउज (1730-1799) ने प्रीस्टले द्वारा निर्मित जैसे सेटअप का उपयोग किया जिसमें उसने उसे एक बार अंधेरे में और फिर एक बार सूर्य की रोशनी में रखा।

इससे यह पता लगा कि पौधों की इस प्रक्रिया में सूर्य का प्रकाश अनिवार्य है। यह जलती हुई मोमबत्ती या सांस लेने वाले प्राणियों द्वारा खराब हुई वायु को शुद्ध बनाता है। इंजेनहाउज ने अपने एक परिष्कृत प्रयोग में एक जलीय पौधे के साथ यह दिखाया कि तेज धुप में पौधे के हरे भाग के आस-पास छोटे-छोटे बुलबुले बन गए थे, जबकि अंधेरे में रखे गए पौधे के आस-पास बुलबुले नहीं बने थे। बाद में उसने इन बुलबुलों की पहचान ऑक्सीजन के रूप में की थी। अतः उसने यह दिखा दिया कि पौधे का केवल हरा भाग ही ऑक्सीजन को छोड़ सकता है।

1854 से पहले तक इसकी जानकारी नहीं थी, किंतु जूलियस वोन सैचस् ने यह प्रमाण दिया कि जब पौधा वृद्धि करता है तब ग्लूकोज (शर्करा) बनती है। ग्लूकोज प्राय: स्टार्च के रूप में संचित होता है। उसके बाद के अध्ययनों से यह पता लगा कि पौधे का हरा पदार्थ-जिसे क्लोरोफिल कहते हैं। पौधों की कोशिकाओं में स्थित विशिष्ट भाग (जिसे क्लोरोप्लास्क कहते हैं) में होता है। उसने बताया कि पौधों के हरे भाग में ग्लूकोज बनाता है और ग्लूकोज प्रायः स्टार्च के रूप में संचित होता है।

अब आप टी.डब्ल्यू एंजिलमैन (1843-1909) द्वारा किए गए रोचक प्रयोग पर ध्यान दें। उसने प्रिज्म की सहायता से प्रकाश को स्पेक्ट्रमी घटकों में अलग किया और और फिर एक हरे शैवाल क्लैडोफोरा को जिसे ऑक्सी बैक्टीरिया के निलंबन में रखा गया था, को प्रदीप्त किया गया। बैक्टीरिया का उपयोग ऑक्सीजन निकलने का केंद्र पता लगाने के लिए था। उसने पाया कि बैक्टीरिया प्रमुखतः लाल एवं नीले प्रकाश क्षेत्रों में एकत्र हो गए थे। इस तरह से प्रकाश-संश्लेषण का पहला सक्रिय स्पेक्ट्रम (एक्शन स्पेक्ट्रम) वर्णित किया गया। यह मोटे तौर पर क्लोरोफिल ’ $a$ ’ एवं ’ $b$ ’ के अवशोषण स्पेक्ट्रा से मेल खाता है (11.4 खंड में इसका वर्णन किया गया है)।

उन्नीसवीं सदी के मध्य तक पादप प्रकाश-संश्लेषण की सभी मुख्य विशिष्टताओं के बारे में पता चल चुका था। जैसे कि, पौधे $\mathrm{CO} _{2}$ तथा पानी से प्रकाश ऊर्जा का उपयोग कर कार्बोहाइड्रेट्स बनाते हैं। ऑक्सीजन उत्पन्न करने वाले जीवों में प्रकाश-संश्लेषण की कुल प्रतिक्रिया को आनुभविक समीकरण द्वारा प्रस्तुत किया गया।

$$ \mathrm{CO} _{2}+\mathrm{H} _{2} \mathrm{O} \xrightarrow{\text { प्रकाश }}\left[\mathrm{CH} _{2} \mathrm{O}\right]+\mathrm{O} _{2} $$

जहाँ पर $\left(\mathrm{CH} _{2} \mathrm{O}\right)$ एक कार्बोहाइड्रेट (जैसे ग्लूकोज- एक छह (6) कार्बन शुगर) का प्रतिनिधित्व करता है।

एक सूक्ष्मजीव विज्ञानी कोर्नेलियस वैन नील (1897-1985) के प्रयोग ने प्रकाश-संश्लेषण को समझने में मील के पत्थर का काम किया। उसका अध्ययन बैंगनी (पर्पल) एवं हरे बैक्टीरिया पर आधारित था। उन्होंने बताया कि प्रकाश-संश्लेषण एक प्रकाश आधारित प्रतिक्रिया है जिसमें ऑक्सीकरणीय यौगिक से प्राप्त हाइड्रोजन कार्बनडाइऑक्साइड को अपचयित करके कार्बोहाइड्रेट बनाते हैं। इसे निम्नलिखित रूप से व्यक्त किया जा सकता है:

$$ 2 \mathrm{H} _{2} \mathrm{~A}+\mathrm{CO} _{2} \xrightarrow{\text { प्रकाश }} 2 \mathrm{~A}+\mathrm{CH} _{2} \mathrm{O}+\mathrm{H} _{2} \mathrm{O} $$

हरे पौधों में $\mathrm{H} _{2} \mathrm{O}$ हाइड्रोजन दाता है और ऑक्सीकृत होकर $\mathrm{O} _{2}$ देता है। कुछ जीव प्रकाश-संश्लेषण के दौरान $\mathrm{O} _{2}$ मुक्त नहीं करते हैं जब $\mathrm{H} _{2} \mathrm{~S}$ बैंगनी एवं हरे बैक्टीरिया

के लिए हाइड्रोजन दाता होता है तो ‘ऑक्सीकरण’ उत्पाद जीवों के अनुसार सल्फर अथवा सल्फेट होता है न कि ऑक्सीजन। इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हरे पौधों द्वारा निकाली गई ऑक्सीजन $\mathrm{H} _{2} \mathrm{O}$ से आती है, न कि कार्बनडाइऑक्साइड से। बाद में यह बात रेडियो आइसोटोपिक तकनीक के उपयोग से सही प्रमाणित हुई। इसलिए कुल प्रकाश-संश्लेषण को प्रस्तुत करने वाला सही समीकरण निम्न है:

$$ 6 \mathrm{CO} _{2}+12 \mathrm{H} _{2} \mathrm{O} \xrightarrow{\text { प्रकाश }} \mathrm{C} _{6} \mathrm{H} _{12} \mathrm{O} _{6}+6 \mathrm{H} _{2} \mathrm{O}+6 \mathrm{O} _{2} $$

यहाँ पर $\mathrm{C} _{6} \mathrm{H} _{12} \mathrm{O} _{6}$ ग्लूकोज का प्रतिनिधित्व करता है। जल से निकलने वाली $\mathrm{O} _{2}$ को रेडियो आइसोटोपिक तकनीक से सिद्ध किया जा चुका है। यह एक एकल क्रिया नहीं है, बल्कि बहुचरणी प्रक्रम का वर्णन है जिसे प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं। क्या आप यह वर्णन करेंगे कि उपरोक्त समीकरण में जल के 12 अणुओं का क्रियाधार के रूप में क्यों प्रयोग किया गया है?

11.3 प्रकाश-संश्लेषण कहाँ संपन्न होता है?

अध्याय 8 में पढ़ने के बाद निश्चित ही आपका उत्तर होगा: हरी पत्तियों में अथवा आप कह सकते हैं क्लोरोप्लास्ट में, निश्चित ही आपका उत्तर सही है। प्रकाश-संश्लेषण क्रिया हरी पत्तियों में तो संपादित होती ही है लेकिन यह पौधों के अन्य सभी हरे भागों में भी होती है। क्या आप पौधे के कुछ अन्य भागों के नाम बता सकते हैं, जहाँ प्रकाश-संश्लेषण संपादित हो सकता है?

आपने पिछली इकाई में पढ़ा होगा कि पत्तियों में मेसोफिल कोशिकाएं होती हैं। जिनमें अत्यधिक मात्रा में क्लोरोप्लास्ट होते हैं। सामान्यतः क्लोरोप्लास्ट मेसोफिल कोशिकाओं की भित्ति के साथ पंक्तिबद्ध होता है जिससे कि वे ईष्टतम मात्रा में आपतित प्रकाश प्राप्त कर सकें। आपके विचार से हरित लवक कब अपने सपाट पटल भित्ति के समानांतर

चित्र 11.2 इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के द्वारा दिखाया गया हरित लवक की काट का आरेख प्रस्तुतीकरण

पंक्तिबद्ध होते हैं? वे आपतित सूर्य के प्रकाश से कब लंबित होते होंगे?

आपने अध्याय 8 में क्लोरोप्लास्ट की संरचना के बारे में पढ़ा है। क्लोरोप्लास्ट में एक झिल्ली तंत्र होता है जिसमें ग्रैना, स्ट्रोमा लैमेले और स्ट्रोमा तरल होता है (चित्र 11.2)। क्लोरोप्लास्ट में सुस्पष्ट श्रम विभाजन होता है। झिल्ली तंत्र प्रकाश-ऊर्जा को ग्रहण करता है और एटीपी एवं एनएडीपीएच का संश्लेषण करता है। स्ट्रोमा में एंजाइमैटिक प्रतिक्रिया होती है जो शर्करा का संश्लेषण करता है जो बाद में स्टार्च में परिवर्तित हो जाता है। पहली वाली प्रतिक्रिया को प्रकाश अभिक्रिया (प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया) कहा जाता है, चूँकि यह पूर्णतः प्रकाश पर आधारित है। दूसरी प्रतिक्रिया प्रकाश अभिक्रिया के उत्पाद पर निर्भर होती है अर्थात् एटीपी तथा एनएडीपीएच, जो सैद्धांतिक रूप में अंधेरे में संपन्न होती हैं अतः इसे अप्रकाशी अभिक्रिया (कार्बन अभिक्रिया) कहते हैं। (इसके विषय का विस्तृत अध्ययन बाद में इसी अध्याय में किया जाएगा)

11.4 प्रकाश-संश्लेषण में कितने प्रकार के वर्णक भाग लेते हैं?

जब आप किसी पौधे को देख रहे होते हैं तो क्या कभी आश्चर्य हुआ है कि उसी पौधे में पत्तियों के हरे रंग में सूक्ष्म अंतर क्यों और कैसे है? हम इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए किसी भी हरे पादप के पर्णवर्णकों को पेपर क्रोमेटोग्राफी (कागज वर्णलेखिकी) द्वारा अलग कर सकते हैं। क्रोमेटोग्राफी से पता लगता है कि पत्तियों में स्थित वर्णक के कारण जो हरापन दिखाई देता है, वह किसी एक वर्णक के कारण नहीं, बल्कि चार वर्णकों: क्लोरोफिल ए (क्रोमेटोग्राफी में चमकीला अथवा नीला हरा), क्लोरोफिल बी (पीला हरा), जैन्थोफिल (पीला) तथा कारटीनोएड (पीले से नारंगी पीले) के कारण होता है। आइए, अब देखें कि प्रकाश-संश्लेषण में विभिन्न वर्णकों की क्या भूमिका है।

वर्णक वे पदार्थ हैं जिनमें प्रकाश की विशिष्ट तरंगदैर्घ्यों को अवशोषित करने की क्षमता होती है। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि विश्व में कौन सा पादप वर्णक सर्वाधिक है? आइए, अब क्लोरोफिल ए वर्णक को ग्राफ में विभिन्न तरंगदैर्ध्यता में प्रकाश अवशोषण का अध्ययन

( अ)

चित्र 11.3.अ क्लोरोफिल ए,बी तथा केरोटेनोइड्स का अवशोषित वर्णक्रम प्रदर्शित करता हुआ ग्राफ

चित्र 11.3.ब प्रकाश-संश्लेषण क्रियात्मक वर्णक्रम प्रदर्शित करता हुआ ग्राफ

चित्र 11.3.स क्लोरोफिल ए के अवशोषित वर्णक्रम पर प्रकाश-संश्लेषण के क्रियात्मक वर्णक्रम का अध्यारोपित दृश्य का ग्राफ

करें (चित्र 11.3. अ)। आप स्पष्टतः प्रकाश के दृश्य स्पेक्ट्रम की तरंगदैर्ध्यता एवं विबग्योर (vibgyor) से परिचित हैं।

चित्र 11.3 अ को देखकर क्या आप बता सकते हैं कि किस तरंगदैर्ध्य पर क्लोरोफिल ‘ए’ अधिकतम अवशोषण करेगा? क्या यह किसी अन्य तरंगदैर्ध्यता पर कोई अन्य अवशोषण चोटी दिखाते हैं? यदि हाँ तो वे कौन हैं?

अब आप चित्र 11.3 (ब) को देखें जिसमें उन तरंगदैर्ध्यों को दिखाया गया है, जहाँ पर पादप में अधिकतम प्रकाश-संश्लेषण होता है। क्या आप देख रहे हैं कि तरंगदैर्घ्य क्लोरोफिल ‘ए’ अर्थात् नीला तथा लाल क्षेत्र में अवशोषण करता है, उस क्षेत्र में प्रकाश-संश्लेषण की दर भी अधिकतम है। अतः हम कह सकते हैं कि क्लोरोफिल ‘ए’ प्रकाश-संश्लेषण के लिए एक प्रमुख वर्णक है लेकिन चित्र 11.3(स) देखने पर क्या आप कह सकते हैं कि क्लोरोफिल ‘ए’ के अवशोषण स्पेक्ट्रम तथा प्रकाश-संश्लेषण के क्रियात्मक स्पेक्ट्रम के बीच पूर्णतः परस्पर ब्यापन है?

ये ग्राफ, एक साथ यह बता रहे हैं कि अधिकतम प्रकाश-संश्लेषण स्पेक्ट्रम के नीले एवं लाल क्षेत्र में संपन्न होती है, और कुछ प्रकाश-संश्लेषण स्पेक्ट्रम की अन्य तंरगदैर्ध्यों पर भी संपन्न होती है। आइए, देखें कि यह कैसे होता है। यद्यपि क्लोरोफिल ’ $ए$ ’ प्रकाश को अवशोषित करने का मुख्य वर्णक है, फिर भी अन्य थाइलेकोइड में वर्णक जैसे क्लोरोफिल बी, जैन्थोफिल तथा केरोटिन, जिन्हें सहायक वर्णक कहते हैं, वे प्रकाश को अवशोषित करते हैं तथा अवशोषित ऊर्जा को क्लोरोफिल ए में स्थानांतरित कर देते हैं। वास्तव में ये वर्णक न केवल प्रकाश-संश्लेषण को प्रेरित करने वाली उपयोगी तरंगदैर्ध्य के क्षेत्र को बढ़ाते हैं बल्कि ये क्लोरोफिल ‘ए’ को फोटोऑक्सीडेसन से भी बचाते हैं।

11.5 प्रकाश अभिक्रिया क्या है?

चित्र 11.4 प्रकाश संग्रहण तंतुजाल प्रकाश अभिक्रिया अथवा ‘प्रकाशरसायन’ चरण में प्रकाश अवशोषण, जल विघटन, ऑक्सीजन निष्कर्षण तथा उच्च-ऊर्जा रसायन माध्यमिकों, जैसे एटीपी तथा एनएडीपीएच का निर्माण शामिल है। इस प्रक्रिया में अनेक प्रोटीन कॉम्पलेक्स सम्मिलित होते हैं। यहाँ वर्णक दो सुस्पष्ट प्रकाश रसायन लाइट हार्वेस्टिंग कॉम्पलेक्स (एलएचसी) जिन्हें फोटोसिस्टम I (पीएस I) तथा फोटोसिस्टम II ( पीएस II) कहते हैं - में गठित होता है। इन्हें खोज के क्रम में ये नाम दिए गए हैं न कि प्रकाश अभिक्रिया के दौरान उनके काम करने के अनुक्रम में। एलएचसी प्रोटीन से आबद्ध हजारों वर्णक अणुओं से बने होते हैं। प्रत्येक फोटोसिस्टम में सभी वर्णक होते हैं, (सिवाय क्लोरोफिल ‘ए’ के एक अणु के) तथा एलएचसी का निर्माण करते हैं जिन्हें ऐन्टेनी कहते हैं (चित्र 11.4)। ये वर्णक विभिन्न तंरगदैर्यों के प्रकाश को अवशोषित कर प्रकाश-संश्लेषण को अधिक दक्ष बनाते हैं। क्लोरोफिल

’ $ए$ ’ का एक अकेला अणु अभिक्रिया केंद्र बनाना है। दोनों फोटोसिस्टम में प्रतिक्रिया केंद्र पृथक् होते हैं। पीएस I में अभिक्रिया केंद्र क्लोरोफिल ‘ए’ का अवशोषण शीर्ष 700 एनएम $(\mathrm{nm})$ पर होता है अतः इसे पी 700 कहते हैं। पीएस II में अवशोषण शीर्ष 680 एनएम $(\mathrm{nm})$ पर होता है अतः इसे पी 680 कहते हैं।

11.6 इलेक्ट्रॉन परिवहन

फोटोसिस्टम II में अभिक्रिया केंद्र में मौजूद क्लोरोफिल ‘ए’ 680 एनएम वाले लाल प्रकाश को अवशोषित करता है, जिससे इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर परमाणु नाभिक से दूर चला जाता है। इसे इलेक्ट्रॉन को एक इलेक्ट्रॉन ग्राही ले लेता है और इन्हें इलेक्ट्रॉन्स ट्रांसपोर्ट सिस्टम जिसमें साइटोक्रोम होते हैं, पहुँचा दिया जाता है (चित्र 11.5)। इलेक्ट्रॉन की यह गतिविधि अधोगामी है जो अपचयोपचय विभव मापन (रिडैक्स पोटेंशियल स्केल) के रूप में है। जब इलेक्ट्रॉन्स परिवहन शृंखला से इलेक्ट्रॉन्स गुजरते हैं तब उनका उपयोग नहीं होता बल्कि उन्हें फोटोसिस्टम पीएस I के वर्णकों को दे दिया जाता है। इसके साथ ही साथ, पीएस I का अभिक्रिया केंद्र के इलेक्ट्रॉन भी लाल प्रकाश की 700 एनएम तरंगदैर्ध्य को अवशोषित कर उत्तेजित होता है और यह अन्य ग्राही अणु में जिसका अपचयोपचय (रिडौक्स) विभव अधिक हो, स्थानांतरित होता है। ये इलेक्ट्रॉन्स पुनः अधोगामी गति करते हैं, परंतु इस बार वे ऊर्जा से प्रचुर एनएडीपी ${ }^{+}$अणु की ओर जाते हैं। ये इलेक्ट्रॉन्स एनएडीपी ${ }^{+}$को अपचयित कर एनएडीपीएच + $\mathrm{H}^{+}$को बनाते हैं। इलेक्ट्रॉन के स्थानांतरण की यह सारी योजना पीएस II से शुरू होकर शिखरोपरिग्राही की ओर, इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला से होते हुए पीएस $I$ तक, इलेक्ट्रॉन की उत्तेजना, अन्य ग्राही में स्थानांतरण और अंतः में अधोगामी होकर एनएडीपी को अपचयित कर एनएडीपीएच $+\mathrm{H}^{+}$के बनने तक होती हैं। यह सारी योजना $\mathrm{Z}$ के आकार की होती है, इसलिए इसे $\mathbf{Z}$ स्कीम कहते हैं (चित्र 11.5)।

चित्र 11.5 प्रकाश अभिक्रिया की $Z$ - स्कीम यह आकृति तब बनती है जब सभी वाहक क्रमानुसार एक अपचयोपचय विभव माप पर हों।

11.6.1 जल का विघटन

अब आप पूछेंगे कि पीएस II कैसे इलेक्ट्रॉन की आपूर्ति निरंतर करता है? वे इलेक्ट्रॉन जो फोटोसिस्टम II में निकलते हैं, उनकी जगह निश्चित ही दूसरों को लेनी चाहिए। जल विघटन का संबंध पीएस $\mathrm{II}$ से है। जल $\mathrm{H}^{+},[\mathrm{O}]$ तथा इलेक्ट्रॉन में विघटित होता है। इससे ऑक्सीजन उत्पन्न होती है, जो प्रकाश-संश्लेषण का एक शुद्ध उत्पाद है। फोटोसिस्टम I से निकलने वाले इलेक्ट्रॉन, फोटोसिस्टम II से उपलब्ध कराए जाते हैं।

$$ 2 \mathrm{H} _{2} \mathrm{O} \longrightarrow 4 \mathrm{H}^{+}+\mathrm{O} _{2}+4 \mathrm{e}^{-} $$

हमें यह अच्छी प्रकार जान लेना चाहिए कि जल विघटन पीएस II से संबंधित है जो थाइलेकोइड की झिल्ली की भीतरी ओर होता है। तब इस दौरान बनने वाले प्रोटोन्स एवं $\mathrm{O} _{2}$ कहां मुक्त होते हैं- अवकाशिका (ल्युमेन)में अथवा झिल्लिका के बाहर की ओर?

फोटोसिस्टम I

चित्र 11.6 प्रकाश अभिक्रिया की $Z$ - स्कीम

11.6.2 चक्रीय एवं अचक्रीय फोटो-फोस्फोरीलेशन

जीवों में ऑक्सीकरणीय पदार्थो से ऊर्जा निकालने तथा उसे बंध -ऊर्जा के रूप में संचय करने की क्षमता होती है। विशेष पदार्थ जैसे एटीपी, इस ऊर्जा को अपने रासायनिक बंध में संजोये रखती हैं। कोशिकाओं द्वारा (माइटोकोंड्रिया तथा क्लोरोप्लास्ट में) एटीपी के संश्लेषण की प्रक्रिया को फोस्फोरीलेशन कहते हैं। फोटो-फोस्फोरीलेशन वह प्रक्रिया है जिसमें प्रकाश की उपस्थिति में एडीपी तथा अकार्बनिक फोस्फेट से एटीपी का संश्लेषण होता है। जब दो फोटोसिस्टम क्रमिक कार्य करते हैं जिसमें पीएस II पहले और पीएस I दूसरे क्रम में कार्य करें तो इस प्रक्रिया को अचक्रीय फोटो-फॉस्फोरीलेशन कहते हैं। ये दोनों फोटोसिस्टम एक इलेक्ट्रॉन परिवहन भृंखला से जुड़े होते हैं जैसे कि पहले $Z$ स्कीम में देख चुके हैं। एटीपी तथा एनएडीपीएच $+\mathrm{H}+$ दोनों ही इस प्रकार के इलेक्ट्रॉन प्रवाह द्वारा संश्लेषित होते हैं (चित्र 11.5)। जब केवल पीएस I क्रियाशील होता है, तब इलेक्ट्रॉन फोटोसिस्टम में ही घूमता रहता है और फोस्फोरीलेशन इलेक्ट्रॉन चक्रीय प्रवाह के कारण होता है (चित्र 11.6)। यह प्रवाह संभवतः स्ट्रोमा लैमिली में होती है। ग्राना की झिल्ली अथवा लैमिला में पीएस I एवं पीएस II, दोनों ही होते हैं, जबकि स्ट्रोमा लैमिली झिल्लियों में पीएस II एवं एनएडीपी रिडक्टेस एंजाइम नहीं होते हैं। उत्तेजित इलेक्ट्रॉन एनएडीपी+ में पारित नहीं होता, बल्कि वापस पीएस I कॉम्पलेक्स में इलेक्ट्रॉन प्रवाह भृंखला द्वारा चक्रित होता रहता है (चित्र 11.6)। अतः चक्रीय प्रवाह में केवल एटीपी का संश्लेषण होता है न कि एनएडीपीएच + एच $^{+}$का। चक्रीय फोटो-फॉस्फोरीलेशन तभी होता है जब उत्तेजना के लिए प्रकाश का तरंगदैर्ध्य $680 \mathrm{~nm}$ से अधिक हो।

11.6.3 रसोपरासरणी परिकल्पना ( केमिओस्मोटिक हाइपोथेसिस )

आइए, अब हम यह समझने का प्रयत्न करें कि क्लोरोप्लास्ट में एटीपी कैसे संश्लेषित होता है? इस प्रक्रम का वर्णन रसोपरासरणी परिकल्पना द्वारा कर सकते हैं। श्वसन की भाँति ही प्रकाश-संश्लेषण में भी, एटीपी का संश्लेषण एक झिल्लिका के आर-पार प्रोटोन प्रवणता के कारण होता है। यहाँ पर ये झिल्लिकाएं थाइलेकोइड की होती हैं। यहाँ पर एक अंतर यह है कि प्रोटोन झिल्लिका के अंदर की ओर अर्थात् अवकोशिका (ल्यूमेन) में संचित होता है। श्वसन में प्रोटोन माइटोकांड्रिया की अंतरा झिल्ली अवकोशिका में संचित होती है, जब इलेक्ट्रॉन इटीएस (अध्याय 12) से गुजरते हैं।

आइए, यह समझें कि किन कारणों से प्रोटोन प्रवणता झिल्लिका के आर-पार होती है? हमें पुनः उन प्रक्रियाओं पर ध्यान देना होगा जो इलेक्ट्रॉन के सक्रियता और उनके परिवहन के समय संपन्न होता है, ताकि उन चरणों को सुनिश्चित किया जा सके जिनके कारण प्रोटोन प्रवणता का विकास होता (चित्र 11.7) है।

(अ) चूँकि जल के अणु का विघटन झिल्लिका के अंदर की तरफ होता है अत: जल के विघटन से उत्पन्न हाइड्रोजन आयन अथवा प्रोटोन थाइलाकोइड अवकाशिका (ल्यूमेन) में संचित होते हैं।

(ब) जैसे ही इलेक्ट्रॉन्स फोटोसिस्टम के माध्यम से गति करते हैं, प्रोटोन झिल्लिका के पार चला जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इलेक्ट्रॉन का प्राथमिक ग्राही, जो कि झिल्लिका के बाहर की ओर स्थित होता है, यह अपने इलेक्ट्रॉन को एक इलेक्ट्रॉन वाहक को स्थानांतरित नहीं करता, बल्कि एक हाइड्रोजन वाहक को करता है। अतः इलेक्ट्रॉन प्रवाह के समय यह अणु स्ट्रोमा से एक प्रोटोन को ले लेता है, जब यह अणु अपने इलेक्ट्रॉन को झिल्ली के भीतरी ओर स्थित इलेक्ट्रॉन वाहक को देता है, तब प्रोटोन के अंदर ओर अथवा झिल्ली की अवकाशिका की ओर मुक्त होता है।

(स) एनएडीपी रिडक्टेस एंजाइम झिल्ली के स्ट्रोमा की ओर होता है। पीएस I के इलेक्ट्रॉन ग्राही से आने वाले इलेक्ट्रॉन्स के साथ-साथ प्रोटोन एनएडीपी+ को एनएडीपी एच + एच+ में अपचयित करने के लिए आवश्यक होता है। ये प्रोटोन स्ट्रोमा पीठिका से ही आते हैं।

चित्र 11.7 रसोपरासरण के द्वारा एटीपी का निर्माण

अतः क्लोरोप्लास्ट में स्थित स्ट्रोमा में प्रोटोन की संख्या घटती है, जबकि ल्यूमेन (अवकाशिका) में प्रोटोन का संचयन होता है। इस प्रकार यह थाइलाकोइड झिल्ली के आर-पार एक प्रोटोन प्रवणता उत्पन्न होती है और साथ ही साथ ल्यूमेन में पी एच $(\mathrm{pH})$ भी कम हो जाता है।

हमारे लिए प्रोटोन प्रवणता इतना महत्वपूर्ण क्यों है? प्रोटोन प्रवणता इसलिए महत्वपूर्ण है; चूँकि प्रवणता टूटने पर एटीपी का संश्लेषण होता है और ऊर्जा मुक्त होती है। यह प्रवणता इसलिए भंग होती है; क्योंकि प्रोटोन झिल्लिका में मौजूद एटीपी सिन्थेज के पारगमन वाहिका $\left(\mathrm{CF} _{0}\right)$ के माध्यम से स्ट्रोमा में गतिशील होता है। आपने अध्याय 12 में एटीपी तथा एटीपी सिन्थेज एंजाइम के बारे में पढ़ा है। आपको याद होगा कि एटीपी सिन्थेज एंजाइम में दो भाग होते हैं: इसमें एक एफ शून्य $\left(\mathrm{F} _{0}\right)$ कहलाता है, जो झिल्लिका में अतः स्थापित होता है तथा एक पारगमन झिल्लिका चैनल की रचना करता है जो कि झिल्लिका के आर-पार प्रोटोन के विसरण को आगे बढ़ाता है। इसका दूसरा भाग एफ वन $\left(\mathrm{F} _{1}\right)$ कहलाता है और थाइलेकोइड की बाहरी सतह जो स्ट्रोमा की ओर होती है पर उद्धर्व के रूप में होता है प्रवणता का भंजन पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करता है, जिसके कारण एटीपी सिन्थेज के कण एफ वन $\left(\mathrm{F} _{1}\right)$ में संरूपण परिवर्तन आता है। जिससे कि एंजाइम ऊर्जा से प्रचूर एटीपी का संश्लेषण कर सकें।

रसोपरासरण (केमिओस्मोसिस) के लिए एक झिल्लिका, एक प्रोटोन पंप, एक प्रोटोन प्रवणता तथा एटीपी सिन्थेज की आवश्यकता होती है। प्रोटोन को एक झिल्लिका के आर-पार पंप करने के लिए ऊर्जा का उपयोग होता है, ताकि थाइलेकोइड ल्यमेन में एक प्रवणता अथवा प्रोटोन की उच्च सांद्रता पैदा हो सके। एटीपी सिन्थेज के पास एक चैनल अथवा नलिका होता है, जो झिल्लिका के आर-पार प्रोटोन को विसरण का अवसर देता है। यह एटीपी सिन्थेज एंजाइम को सक्रिय करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा छोड़ता है जो एटीपी संश्लेषण को उत्प्रेरित करता है।

इलेक्ट्रॉन की गतिशीलता से उत्पादित एनएडीपीएच के साथ एटीपी भी स्ट्रोमा (पीठिका) में संपन्न होने वाले जैव संश्लेषण में तुरंत उपयोग कर लिए जाएंगे, जो $\mathrm{CO} _{2}$ के स्थिरण एवं शर्करा के संश्लेषण के लिए आवश्यक है।

11.7 एटीपी तथा एनएडीपीएच कहाँ उपयोग होते हैं?

हमने पढ़ा है कि प्रकाश अभिक्रिया के उत्पाद एटीपी, एनएडीपीएच तथा $\mathrm{O} _{2}$ हैं। इनमें से $\mathrm{O} _{2}$ क्लोराप्लास्ट के बाहर विसरित होती है; जबकि एटीपी तथा एनएडीपीएच का उपयोग आहार अथवा शर्करा को संश्लेषित करने वाली प्रक्रिया में होता है। यह प्रकाश-संश्लेषण का जैव संश्लेषण चरण होता है। यह प्रक्रिया परोक्ष रूप से प्रकाश पर निर्भर नहीं होती; बल्कि यह प्रकाश के प्रक्रियाओं के उत्पादों अर्थात् एटीपी तथा एनएडीपीएच के अतिरिक्त $\mathrm{CO} _{2}$ तथा $\mathrm{H} _{2} \mathrm{O}$ (जल) पर निर्भर होती है। आप शायद यह आश्चर्य कर सकते हैं कि इसकी सत्यता की जाँच कैसे की जा सकती है? यह बहुत ही सरल है। प्रकाश उपलब्ध न होने के तुरंत बाद कुछ समय तक के लिए जैव संश्लेषण प्रक्रिया जारी रहती है और इसके बाद बंद हो जाती है। यदि इसके बाद पुनः प्रकाश उपलब्ध होता है तो संश्लेषण पुनः आरंभ हो जाता है।

अतः जैव संश्लेषण चरण को अप्रकाशी अभिक्रिया (डार्क रिएक्शन) कहना क्या एक मिथ्या है? अपने साथियों के बीच इसकी चर्चा करें।

आइए अब देखें कि जैव संश्लेषण चरण में एटीपी तथा एनएडीपीएच का उपयोग कैसे होता है? हम पहले देख चुकें हैं कि $\mathrm{H} _{2} \mathrm{O}$ के साथ $\mathrm{CO} _{2}$ के मिलने से $\left(\mathrm{CH} _{2} \mathrm{O}\right) _{\mathrm{n}}$ अथवा शर्करा उत्पादित होती है। यह वैज्ञानिकों की रुचि थी कि उन्होंने यह खोजा कि यह प्रतिक्रिया कैसे संपन्न होती है अथवा यह जाना कि $\mathrm{CO} _{2}$ के प्रतिक्रिया में आने से अथवा यौगिकीकृत होने से कौन सा पहला उत्पाद बनता है। द्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद, लाभदायी उपयोग हेतु रेडियो आइसोटोपिक का उपयोग किया गया। इस उपयोग में मेलविन केल्विन का कार्य सराहनीय था। उन्होंने शैवाल में रेडियो एक्टिव $14 _{\mathrm{C}}$ का उपयोग प्रकाश-संश्लेषण अध्ययन में किया, जिससे पता लगा कि $\mathrm{CO} _{2}$ यौगिकीकरण ( फिक्सेशन) पहला उत्पाद एक 3 कार्बन वाला कार्बनिक अम्ल था। इसके साथ ही उसने संपूर्ण जैव संश्लेषण पथ की खोज की अतः इसे केल्विन चक्र कहते हैं। इस पहले उत्पाद का नाम 3 -फोस्फोग्लिसेरिक अम्ल अथवा संक्षेप में पीजीए है। इसमें कितने कार्बन परमाणु होते हैं?

वैज्ञानिकों ने जानने का यह भी प्रयत्न किया कि क्या सभी पौधे $\mathrm{CO} _{2}$ यौगिकीकरण (स्थिरीकरण) के बाद पहला उत्पाद पीजीए ही बनाते हैं अथवा फिर अन्य पौधों में कोई अन्य उत्पाद हैं। बहुत सारे पौधों में व्यापक शोध किए गए, जहाँ पर $\mathrm{CO} _{2}$ के यौगिकीकरण का पहला स्थायी उत्पाद पुनः एक कार्बनिक अम्ल था, जिसमें कार्बन के चार परमाणु थे। यह अम्ल ओक्सैलोएसिटिक अम्ल अथवा ओएए था। तब से प्रकाश-संश्लेषण के दौरान $\mathrm{CO} _{2}$ के स्वांगीकरण (एसिमिलेशन) को दो मुख्य विधियों से बताया गया। जिन पौधों में, $\mathrm{CO} _{2}$ यौगिकीकरण का पहला उत्पाद $\mathrm{C} _{3}$ अम्ल (PGA) था उसे $\mathrm{C} _{3}$ पथ और जिनका पहला उत्पाद $\mathrm{C} _{4}$ अम्ल (ओएए) था, उसे $\mathbf{C} _{4}$ पथ कहते हैं। इन दोनों समूह के पौधों में कुछ अन्य अभिलक्षण भी होते हैं, जिनकी चर्चा हम बाद में करेंगे।

11.7.1 $\mathbf{C O} _{2}$ के प्राथमिकग्राही

आइए, अब हम अपने आप से एक प्रश्न पूछें, जिसे कि उन वैज्ञानिकों द्वारा पूछा गया था जो अप्रकाशी अभिक्रिया को समझने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उस अणु में कितने कार्बन परमाणु हैं जो $\mathrm{CO} _{2}$ को ग्राह्य करने के बाद तीन कार्बन यौगिक (अर्थात् पीजीए) बनाते हैं?

अध्ययनों से पता लगा कि ग्राही अणु एक पाँच कार्बन वाला कीटोज शुगर (शर्करा) था, यह रिब्यूलोज 1-5 बायफोस्फेट (RuBP) था। क्या आपमें से किसी ने इस संभावना के बारे में सोचा था? परेशान मत होइए; वैज्ञानिकों को भी इसे जानने में बहुत समय लगा और किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले बहुत सारे प्रयोग किए गए थे। उन्हें यह भी यकीन था कि, चूँकि पहला उत्पाद $\mathrm{C} _{3}$ अम्ल था, अतः प्राथमिक्राही 2 कार्बन कंपाउंड (यौगिक) होगा। उन्होंने पहले 2 कार्बन कम्पाउंड को पहचानने के लिए कई वर्ष तक प्रयत्न किए। अंततः उन्होंने पाँच कार्बन वाले RuBP की खोज करने में सफलता प्राप्त की।

11.7.2 केल्विन चक्र

केल्विन तथा उसके सहकर्मियों ने संपूर्ण पथ का पता लगाया और बताया कि यह पथ एक चक्रीय क्रम में संचालित होता है; जिसमें RuBP पुनः उत्पादित होता है। आइए, अब यह देखें कि केल्विन पथ कैसे संचालित होता है और शर्करा कहाँ पर संश्लेषित होती है। आइए, शुरू में ही हम स्पष्ट रूप से समझ लें कि केल्विन चक्र उन सभी पौधों में होता है जो प्रकाश-संश्लेषण करते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनमें चाहे पथ $\mathrm{C} _{3}$ अथवा $\mathrm{C} _{4}$ (अथवा कोई अन्य) हो (चित्र 11.8)।

चित्र 11.8 कैल्विन चक्र तीन भागों में बांटा जा सकता है। (1) कार्बोक्सिलेशन जिसमें $\mathrm{CO} _{2}$ राइबुलोज-1, 5 विसफांस्फेट से योग करता है (2) अवकरण, जिसमें कार्बोहाइड्रेट का निर्माण प्रकाश रासायनिक ग्राही तथा एनएडीपीएच की मदद से होता है तथा (3) पुनरुद्भवन जिसमें $\mathrm{CO} _{2}$ ग्राही राइबुलोज-1, 5 विसफॉस्फेट का फिर से निर्माण होता है तथा चक्र चलता रहता है।

केल्विन चक्र को आसानी से समझने के लिए इसको तीन चरणों - कार्बोक्सिलीकरण (कार्बोक्सीलेशन), रिडक्शन तथा रिजनरेशन में वर्णन करते हैं।

1. कार्बोक्सिलीकरण- $\mathrm{CO} _{2}$ के यौगिकीकरण से एक स्थिर कार्बनिक मध्यस्थ बनता है। केल्विन चक्र में कार्बोक्सिलीकरण एक अत्यधिक निर्णायक चरण है जहाँ $\mathrm{RuBP}$ के कार्बोक्सिलीकरण के लिए $\mathrm{CO} _{2}$ का उपयोग किया जाता है। यह प्रतिक्रिया एंजाइम RuBP कार्बोक्सिलेस के द्वारा उत्प्रेरित होती है, जिसके परिणामस्वरूप 3-P GA के दो अणु बनते हैं। चूँकि इस एंजाइम में एक ऑक्सीजिनेश (ऑक्सीकरण) क्षमता भी होती है, अतः यह ज्यादा उचित होगा कि हम इस एंजाइम को RuBP कार्बोक्सीलेस-ऑक्सीजिनेस अथवा रुबिस्को कहें।

2. रिडक्शन (अपचयन) यह प्रतिक्रियाओं की एक शृंखला है जिसमें ग्लूकोज बनता है। इस चरण में प्रत्येक $\mathrm{CO} _{2}$ अणु के स्थिरण हेतु एटीपी के 2 अणुओं का उपयोग फॉस्फोरिलेशन के लिए तथा एनएडीपीएच के दो अणुओं का उपयोग अपचयन हेतु होता है। पथ से ग्लूकोज के एक अणु को बनाने के लिए $\mathrm{CO} _{2}$ के 6 अणुओं के यौगिकीकरण तथा चक्करों की आवश्यकता होती है।

3. रिजेनरेशन ( पुनरुद्भवन) यदि चक्र को बिना बाधा के जारी रहना है तो $\mathrm{CO} _{2}$ ग्राही अणु RuBP का पुनरुद्भवन बहुत ही आवश्यक होता है। पुनरुद्भवन के चरण में RuBP गठन हेतु फॉस्फोरीलेशन के लिए एक एटीपी की आवश्यकता होती है।

इसलिए, केल्विन चक्र में $\mathrm{CO} _{2}$ के प्रत्येक अणु को प्रवेश के लिए एटीपी के 3 अणु तथा एनएडीपीएच के 2 अणुओं की आवश्यकता होती है। अप्रकाश अभिक्रिया में उपयोग होने वाले एटीपी और एनएडीपीएच की संख्याओं में यह अंतर ही चक्रीय फॉस्फोरीलेशन को संपन्न कराने का कारण है।

ग्लूकोस के एक अणु की रचना के लिए इस चक्र के 6 चक्करों की आवश्यकता होती है। यह पता करें कि केल्विन पथ के माध्यम से ग्लूकोस के एक अणु की रचना के लिए कितने एटीपी तथा एनएडीपीएच के अणुओं को आवश्यकता होती है। आपको यह बात शायद समझने में मदद करेगी कि केल्विन चक्र में क्या अंदर जाता है और क्या बाहर निकलता है।

अंदर बाहर
$6 \mathrm{CO} _{2}$ एक ग्लूकोज
18 एटीपी 18 एडीपी
12 एनएडीपीएच 12 एनएडीपी

11.8 पथ $\mathbf{C} _{4}$

$\mathrm{C} _{4}$ पथ जैसा कि पहले बताया गया है कि पौधे जो शुष्क उष्णकटिबंधी क्षेत्र में पाए जाते हैं उनमें $\mathrm{C} _{4}$ पथ होता है। इन पौधों में $\mathrm{CO} _{2}$ को यौगिकीकरण का पहला उत्पाद यद्यपि $\mathrm{C} _{4}$ औक्जेलोएसिटिक अम्ल होता है फिर भी इनके मुख्य जैव संश्लेषण पथ में $\mathrm{C} _{3}$ पथ

अथवा केल्विन चक्र ही होता है। तब फिर से $\mathrm{C} _{3}$ पौधों से किस प्रकार में भिन्न हैं? यह एक प्रश्न है जिसे आप पूछ सकते हैं।

$\mathrm{C} _{4}$ पौधे विशिष्ट हैं: इनकी पत्तियों में एक विशेष प्रकार की शारीरिकी होती है। ये उच्च ताप को सह सकते हैं। ये उच्च प्रकाश तीव्रता के प्रति अनुक्रिया करते हैं। उनमें प्रकाश श्वसन प्रक्रिया नहीं होती और उनमें जैव भार अधिक उत्पन्न होता है। आइए, इन्हें एक-एक करके समझें।

आओ, $\mathrm{C} _{3}$ तथा $\mathrm{C} _{4}$ पत्तियों की खड़ी काट का अध्ययन करें। क्या आपने इन दोनों में कोई अंतर देखा है? क्या दोनों में एक ही प्रकार के पर्णमध्योतक हैं? क्या इनके संवहनी पूलाच्छद के आस-पास एक ही प्रकार की कोशिकाएं हैं?

$\mathrm{C} _{4}$ पथ पौधों की संवहन बंडल के चारों ओर स्थित बृहद् कोशिकाएं पूलाच्छद (बंडल शीथ) कोशिकाएं कहलाती है और पत्तियाँ जिनमें ऐसी शारीर होती है, उन्हें क्रैंजी शारीर वाली पत्तियाँ कहते हैं। यहाँ, क्रैंज का अर्थ है छल्ला अथवा घेरा, चूँकि कोशिकाओं की व्यवस्था एक छल्ले के रूप में होती है। संवहन बंडल के आस-पास पूलाच्छद कोशिकाओं की अनेकों परतें होती हैं, इनमें बहुत अधिक संख्या में क्लोरोप्लास्ट होते हैं,

चित्र 11.9 हैच एवं स्लैक पाथवे इसकी मोटी भित्तियाँ गैस से अप्रवेश्य होती हैं और इनमें अंतरकोशीय स्थान नहीं होता। आप $\mathrm{C} _{4}$ पौधों जैसे मक्का अथवा ज्वार की पत्तियों का एक भाग काटो, ताकि क्रैंज शारीर एवं पर्णमध्योतक देख सकें।

अपने आस-पास के विभिन्न स्पेशीज के पेड़ों की पत्तियाँ एकत्र करें और उनकी पत्तियों की खड़ी काट लें। सूक्ष्मदर्शी से इसके संवहन बंडल पूल के आस-पास पूलाच्छद को देखें। पूलाच्छद की उपस्थिति $\mathrm{C} _{4}$ पौधों को पहचानने में आपकी सहायता करेगा।

अब चित्र 11.9 में दिखाए गए पथ का अध्ययन करें। इस पथ को हैच एवं स्लैल पथ कहते हैं। यह भी एक चक्रीय प्रक्रिया है। आइए, हम चरणों को समझते हुए पथ का अध्ययन करें।

$\mathrm{CO} _{2}$ का प्राथमिक ग्राही एक 3 कार्बन अणु फोस्फोइनोल पाइरुवेट (PEP) है और वह पर्णमध्योतक कोशिका में स्थित होता है। इस यौगिकीकरण को पेप कार्बोक्सीलेस अथवा पेप केस (PEP) नामक एंजाइम संपन्न करता है। पर्णमध्योतक कोशिकाओं में रुबिस्को एंजाइम नहीं होता है। $\mathrm{C} _{4}$ अम्ल ओएए पर्णमध्योतक कोशिका में निर्मित होता है।

इसके बाद ये पर्णमध्योतक कोशिका में अन्य 4-कार्बन वाले अम्ल जैसे मैलिक अम्ल और एस्पार्टिक अम्ल बनते हैं, जोकि पूलाच्छद कोशिका में चले जाते हैं। पूलाच्छद कोशिका में यह $\mathrm{C} _{4}$ अम्ल विघटित हो जाता है जिससे $\mathrm{CO} _{2}$ तथा एक 3 -कार्बन अणु मुक्त होते हैं।

3-कार्बन अणु पुनः पर्णमध्योतक में वापस आ जाता है, जहाँ यह पुनः पेप में बदला जाता है और इस तरह से यह चक्र पूरा होता है।

पूलाच्छद कोशिका से निकली $\mathrm{CO } _{2}$ केल्विन पथ अथवा $\mathrm{C} _{3}$ में प्रवेश करती है केल्विन एक ऐसा पथ जो सभी पौधों में समान रूप से होता है। पूलाच्छद कोशिका रुबिस्को से भरपूर होती है, परंतु पेप केस से रहित होती है। अतः मौलिक पथ केल्विन पथ जिसके परिणामस्वरूप शर्करा बनती है, वह $\mathrm{C} _{3}$ एवं $\mathrm{C} _{4}$ पौधों में सामान्य रूप से होता है।

क्या आपने ध्यान दिया है कि केल्विन पथ सभी $\mathrm{C} _{3}$ पौधों की पर्णमध्योतक कोशिकाओं में पाया जाता है? $\mathrm{C} _{4}$ पौधों में पर्णमध्योतक कोशिकाओं में यह संपन्न नहीं होता है, किंतु पूलाच्छद कोशिकाओं में केवल कारगर होता है।

11.9 प्रकाश श्वसन ( फोटोरेस्पिरेशन )

आइए, हम एक और प्रक्रिया- प्रकाश श्वसन को जानने का प्रयत्न करते हैं, जो $\mathrm{C} _{3}$ एवं $\mathrm{C} _{4}$ पौधों में महत्वपूर्ण अंतर करती है। प्रकाश श्वसन समझने के लिए, हमें केल्विन पथ के प्रथम चरण अर्थात् $\mathrm{CO} _{2}$ स्थिरीकरण के पहले चरण के विषय में कुछ अधिक जानकारी करनी होगी। यह वह अभिक्रिया है जहाँ RuBP कार्बन डाईऑक्साइड से संयोजित कर 3 पीजीए के 2 अणुओं का गठन करता है और एक एंजाइम रिबूलोज विसफोस्फेट कार्बोक्सीलेस ऑक्सीजिनेस (RuBisCO) के द्वारा उत्प्रेरित होता है।

$$ \mathrm{RuBP}+\mathrm{CO} _{2} \xrightarrow{\text { रुबिस्को }} 2 \times 3 \text { PGA } $$

रुबिस्को नामक एंजाइम विश्व में सबसे ज्यादा प्रचुर है (आपको आश्चर्य होता है क्यों?) और इसका यह गुण है कि इसकी सक्रिय जगह $\mathrm{CO} _{2}$ एवं $\mathrm{O} _{2}$ दोनों से बंधित हो सकता है। इसलिए इसे रुबिस्को कहते हैं। क्या आप सोच सकते हैं कि यह केसे संभव है? जब $\mathrm{CO} _{2}$ व $\mathrm{O} _{2}$ का अनुपात लगभग समान होता है रुबिस्को में $\mathrm{O} _{2}$ की अपेक्षा $\mathrm{CO} _{2}$ के लिए अधिक बंधुता है। कल्पना कीजिए कि यदि ऐसा नहीं होता तो क्या होता! यह आबंधता प्रतियोगितात्मक है। $\mathrm{O} _{2}$ अथवा $\mathrm{CO} _{2}$ इनमें से कौन आबंध होगा, यह उनकी सापेक्ष सांद्रता पर निर्भर करता है।

$\mathrm{C} _{3}$ पौधों में कुछ $\mathrm{O} _{2}$ रुबिस्को से बंधित होती है अतः $\mathrm{CO} _{2}$ का यौगिकीकरण कम हो जाता है। यहाँ पर आरयुबीपी 3 -PGA के अणुओं में पतिवर्तित होने की बजाय ऑक्सीजन से संयोजित होकर चक्र में एक फास्फोग्लिसरेट अणु तथा फॉस्फोग्लाइकोलेट का एक अणु बनाते हैं जिसे प्रकाश श्वसन कहते हैं। प्रकाश श्वसन पथ में शर्करा और एटीपी का संश्लेषण नहीं होता; बल्कि इसमें एटीपी के उपयोग के साथ $\mathrm{CO} _{2}$ भी निकलती है। प्रकाश श्वसन पथ में एटीपी अथवा एनएडीपीएच का संश्लेषण नहीं होता। प्रकाश श्वसन के जैविक कार्य के बारे में अभी तक पता नहीं है।

तालिका $11.1 \mathbf{C} _{3}$ एवं $\mathbf{C} _{4}$ पौधों के बीच अंतर करने के लिए इस तालिका के कालम 2 और 3 को भरो।

विशिष्टताएं $\mathrm{C} _{3}$ पौधे $\mathrm{C} _{4}$ पौधे इनमें से चुनिए
वह कोशिका प्रकार जिसमें केल्विन चक्र संपन्न होता है पर्णमध्योतक/पूलाच्छद/दोनों
वह कोशिका प्रकार जिसमें प्रारंभिक कार्बोक्सिलेशन प्रतिक्रिया घटित होता है। पर्णमध्योतक/पूलाच्छद/दोनों
एक पत्ती में कितने प्रकार की कोशिकाएं होती है जो $\mathrm{CO} _{2}$ का यौगिकीकरण करती है। एक: पर्णमध्योतक, दो: पूलाच्छद एवं पर्णमध्योतक तीन: पूलाच्छद, पैलिसेड (खंभ), स्पजी पर्णमध्योतक
$\mathrm{CO} _{2}$ का प्राथमिक ग्राही कौन सा है? आरयुबीपी/पीईपी/पीजीए
प्राथमिक $\mathrm{CO} _{2}$ ग्राही में कितनी संख्या में कार्बन होते हैं? $5 / 4 / 3$
$\mathrm{CO} _{2}$ स्थिरीकरण का प्राथमिक उत्पाद कौन सा है? पीजीए/ओएए/आरयुबीपी
$\mathrm{CO} _{2}$ स्थिरीकरण के प्राथमिक उत्पाद में कितने कार्बन हैं? $3 / 4 / 5$
क्या पौधे में रुबिस्को (RuBisCO) होता है? हाँ/नहीं/सदैव नहीं
क्या पौधे में पेपकेस (PEPCase) होता है? हाँ/नहीं/सदैव नहीं
पौधे में किन कोशिकाओं में रुबिस्को (Rubisco) होता है? पर्णमध्योतक/पूलाच्छद कोई नहीं
उच्च प्रकाश स्थिति में $\mathrm{CO} _{2}$ के यौगिकीकरण की दर निम्न/उच्च/मध्यम
क्या निम्न प्रकाश तीव्रता में प्रकाश श्वसन होता है? उच्च/नगण्य/कभी-कभी
क्या उच्च प्रकाश तीव्रता में प्रकाश श्वसन होता है? उच्च/नगण्य/कभी-कभी
क्या निम्न $\mathrm{CO} _{2}$ सांद्रता में प्रकाश श्वसन होगा? उच्च/नगण्य/कभी-कभी
क्या उच्च $\mathrm{CO} _{2}$ सांद्रता में प्रकाश श्वसन होगा? उच्च/नगण्य/कभी-कभी
अनुकूलतम तापमान $30-40^{\circ} \mathrm{C} / 20-25^{\circ} \mathrm{C} \quad 40^{\circ} \mathrm{C}$ से ऊपर
उदाहरण विभिन्न पौधों की पत्तियों के खडे सेक्सन काटें तथा सूक्ष्मदर्शी के नीचे रखकर क्रैंज शरीर देखें तथा उन्हें उपयुक्त खाने (कॉलम) में भरें।

$\mathrm{C} 4$ पौधे में प्रकाश श्वसन नहीं होता है। इसका कारण यह है कि इनमें एक ऐसी प्रणाली होती है जो एंजाइम स्थल पर $\mathrm{CO} _{2}$ की साद्रंता बढ़ा देती है। ऐसा तब होता है जब पर्णमध्योतक का $\mathrm{C} _{4}$ अम्ल पूलाच्छद में टूटकर $\mathrm{CO} _{2}$ को मुक्त करता है, जिसके परिणामस्वरूप $\mathrm{CO} _{2}$ की अंतरकोशिकीय सांद्रता बढ़ जाती है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि रुबिस्को कार्बोक्सीलेस के रूप में कार्य करता है, जिससे इसकी ऑक्सीजिनेस के रूप में कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है।

अब, आप जानते है कि $\mathrm{C} _{4}$ पौधों में प्रकाश श्वसन नहीं होता। अब संभवतः आप समझ गए होंगे कि इन पौधों में उत्पादकता एवं उत्पादन क्यों अच्छा होता है। इसके अतिरिक्त ये पौधे उच्च ताप को भी सहन कर सकते हैं।

उपर्युक्त परिचर्चा के आधार पर क्या आप उन पौधों की तुलना कर सकते हो जिसमें $\mathrm{C} _{3}$ तथा $\mathrm{C} _{4}$ पथ होता है। आप दी गई तालिका का उपयोग कर आवश्यक सूचनाओं को भरें।

11.10 प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक

प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारकों के विषय में जानना आवश्यक है। प्रकाश-संश्लेषण की दर पौधों एवं फसली पादपों के उत्पादन जानने में अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। प्रकाश-संश्लेषण कई कारकों से प्रभावित होता है जो बाह्य तथा आंतरिक दोनों ही हो सकते हैं। पादप कारकों में संख्या, आकृति, आयु तथा पत्तियों का विन्यास, पर्णमध्योतक कोशिकाएं तथा क्लोराप्लास्ट आंतरिक $\mathrm{CO} _{2}$ की सांद्रता और क्लोराफिल की मात्रा आदि है। पादप अथवा आंतरिक कारक पौधे की वृद्धि तथा आनुवंशिक पूर्वानुकूलता पर निर्भर करते हैं।

बाह्य कारक हैं सूर्य का प्रकाश, ताप, $\mathrm{CO} _{2}$ की सांद्रता तथा जल। पादप की प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया में ये सभी कारक एक समय में साथ-साथ ही प्रभाव डालते हैं। यद्यपि, बहुत सारे कारक परस्पर क्रिया करते हैं तथा साथ-साथ प्रकाश-संश्लेषण अथवा $\mathrm{CO} _{2}$ के यौगिकीकरण को प्रभावित करते हैं, फिर भी प्राय: इनमें से कोई भी एक कारक इस की दर को प्रभावित अथवा सीमित करने का मुख्य कारण बन जाता है। अतः किसी भी समय पर उपानुकूलतम स्तर पर उपलब्ध कारक द्वारा प्रकाश-संश्लेषण की दर का निर्धारण होगा।

जब अनेक कारक किसी (जैव) रासायनिक प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं तो ब्लैकमैन का (1905) लॉ ऑफ लिमिटिंग फैक्टर्स प्रभाव में आता है। इसके अनुसारः यदि कोई रासायनिक प्रक्रिया एक से अधिक कारकों द्वारा प्रभावित होती है तो इसकी दर का निर्धारण उस समीपस्थ कारक द्वारा होगा जो कि न्यूनतम मान (मूल्य) वाला हो। अगर उस कारक की मात्रा बदल दी जाए तो कारक प्रक्रिया को सीधे प्रभावित करता है।

चित्र 11.10 प्रकाश की तीव्रता का प्रकाशसंश्लेषण के प्रति दर पर प्रभाव का ग्राफ

उदाहरण के लिए एक हरी पत्ती, अधिकतम अनुकूल प्रकाश तथा $\mathrm{CO} _{2}$ की उपस्थिति के बावजूद, यदि ताप बहुत कम हो तो प्रकाश-संश्लेषण नहीं करेगी। इस पत्ती में प्रकाश-संश्लेषण तभी शुरु होगा, यदि उसे ईष्टतम ताप प्रदान किया जाए।

11.10.1 प्रकाश

जब हम प्रकाश को प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक के रूप में लेते हैं तो हमें प्रकाश की गुणवत्ता, प्रकाश की तीव्रता तथा दीप्तिकाल के बीच अंतर करने की आवश्यकता है। यहाँ कम प्रकाश तीव्रता पर आपतित प्रकाश तथा $\mathrm{CO} _{2}$ के यौगिकीरण की दर के बीच एक रैखीय संबंध है। उच्च प्रकाश तीव्रता होने पर, इस दर में कोई वृद्धि नहीं होती है, अन्य कारक सीमित हो जाते हैं (चित्र 11.10)। इसमें ध्यान देने वाली रोचक बात यह है कि प्रकाश संतृप्ति पूर्ण प्रकाश के 10 प्रतिशत पर होती है। छाया अथवा सघन जंगलों में उगने वाले पौधों को छोड़कर प्रकाश शायद ही प्रकृति में सीमाकारी कारक हो। एक सीमा के बाद आपतित प्रकाश क्लोरोफिल के विघटन का कारण होती है, जिससे प्रकाश-संश्लेषण की दर कम हो जाती है।

11.10.2 कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता

प्रकाशसंश्लेषण में कार्बन डाइऑक्साइड एक प्रमुख सीमाकारी कारक है। वायुमंडल में $\mathrm{CO} _{2}$ की सांद्रता बहुत ही कम है ( 0.03 और 0.04 प्रतिशत के बीच)। $\mathrm{CO} _{2}$ की सांद्रता में 0.05 प्रतिशत तक वृद्धि के कारण $\mathrm{CO} _{2}$ की यौगिकीकरण दर में वृद्धि हो सकती है, लेकिन इससे अधिक की मात्रा लंबे समय तक के लिए क्षतिकारक बन सकता है। $\mathrm{C} _{3}$ एवं $\mathrm{C} _{4}$ पौधे $\mathrm{CO} _{2}$ की सांद्रता में भिन्न अनुक्रिया करते हैं। निम्न प्रकाश स्थितियों में दोनों में से कोई भी समूह उच्च $\mathrm{CO} _{2}$ सांद्रता के प्रति अनुक्रिया नहीं करते हैं। उच्च प्रकाश तीव्रता में $\mathrm{C} _{3}$ तथा $\mathrm{C} _{4}$ दोनों ही तरह के पादपों में प्रकाश-संश्लेषण की बढ़ी दर अधिक हो जाती है। यहाँ पर यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि $\mathrm{C} _{4}$ पौधे लगभग $360 \mu \mathrm{LL}^{-1}$ पर संतृप्त हो जाते हैं जबकि $\mathrm{C} _{3}$ बढ़ी हुई $\mathrm{CO} _{2}$ सांद्रता पर अनुक्रिया करता है तथा संतृप्तन केवल $450 \mu \mathrm{lL}^{-1}$ के बाद ही दिखाती है। अतः उपलब्ध $\mathrm{CO} _{2}$ का स्तर $\mathrm{C} _{3}$ पादपों के लिए सीमाकारी है।

सच यह है कि $\mathrm{C} _{3}$ पौधे उच्चतर $\mathrm{CO} _{2}$ सांद्रता में अनुक्रिया करते हैं और इससे प्रकाश-संश्लेषण की दर में वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप उत्पादन अधिक होता है और सिद्धांत का उपयोग ग्रीन हाउस फसलों, जैसे टमाटर एवं बेल मिर्च में किया गया है। इन्हें कार्बन-डाइऑक्साइड से भरपूर वातावरण में बढ़ने का अवसर दिया जाता है ताकि उच्च पैदावार प्राप्त हो।

11.10 .3 ताप

अप्रकाशी अभिक्रिया एंजाइम पर निर्भर करती है, इसलिए ताप द्वारा नियंत्रित होती है। यद्यपि प्रकाश अभिक्रिया भी ताप संवेदी होती है, लेकिन उस पर ताप का काफी कम प्रभाव होता है। $\mathrm{C} _{4}$ पौधे उच्च ताप पर अनुक्रिया करते हैं तथा उनमें प्रकाश-संश्लेषण की दर भी ऊँची होती है, जबकि $\mathrm{C} _{3}$ पौधे के लिए ईष्टतम ताप कम होता है।

विभिन्न पौधों के प्रकाश-संश्लेषण लिए इष्टतम ताप उनके अनुकूलित आवास पर निर्भर करता है। उष्णकटिबंधी पौधों के लिए ईष्टतम ताप उच्च होता है। समशीतोष्ण जलवायु में उगने वाले पौधों के लिए एक अपेक्षाकृत कम ताप की आवश्यकता होती है।

11.10.4 जल

यद्यपि प्रकाश अभिक्रिया में जल एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया अभिकारक है, तथापि, कारक के रूप में जल का प्रभाव पूरे पादप पर पड़ता है, न कि सीधे प्रकाश-संश्लेषण पर। जल तनाव रंध्र को बंद कर देता है अतः $\mathrm{CO} _{2}$ की उपलब्धता घट जाती है। इसके साथ ही, जल तनाव से पत्तियाँ मुरझा जाती हैं, जिससे पत्ती का क्षेत्रफल कम हो जाता है और इसके साथ ही साथ उपापचयी क्रियाएं भी कम हो जाती हैं।

सारांश

पौधे अपने भोजन को प्रकाश-संश्लेषण द्वारा स्वयं तैयार करते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान वायुमंडल में उपलब्ध कार्बनडाइऑक्साइड पत्तियों के रंध्रों द्वारा ली जाती है और कार्बोहाइड्रेट्स- मुख्यतः ग्लूकोज (शर्करा) एवं स्टार्च बनाने में उपयोग की जाती है। प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया पौधों के हरे भागों, मुख्यतः पत्तियों में संपन्न होती है। पत्तियों के अंतर्गत पर्णमध्योतक कोशिकाओं में भारी मात्रा में क्लोरोप्लास्ट होता है जोकि $\mathrm{CO} _{2}$ के यौगिकीकरण (फिक्सेशन) के लिए उत्तरदायी होता है। क्लोरोप्लास्ट के अंतर्गत, प्रकाश अभिक्रिया के लिए झिल्लिकाएं वह स्थल होती हैं, जबकि केमोसिंथेटिक पथ स्ट्रोमा में स्थित होता है। प्रकाश-संश्लेषण में दो चरण होते हैं: प्रकाश अभिक्रिया तथा कार्बन फिक्सिंग रिएक्शन (कार्बन यौगिकीकरण अभिक्रिया)। प्रकाश अभिक्रिया में प्रकाश ऊर्जा एंटेना में मौजूद वर्णकों द्वारा अवशोषित किए जाते हैं तथा अभिक्रिया केंद्र में मौजूद क्लोरोफिल ए के अणुओं को भेज दिए जाते हैं। यहाँ पर दो फोटोसिस्टम (प्रकाश प्रणाली) पीएस I तथा पीएस II होते हैं। पीएस I के अभिक्रिया केंद्र में क्लोरोफिल ए पी 700 के अणु जो प्रकाश तरंगदैर्ध्य 700 एनएम को अवशोषित करते हैं, जबकि पीएस II में एक पी 680 अभिक्रिया केंद्र होता है जो लाल प्रकाश को 680 एनएम पर अवशोषित करता है। प्रकाश अवशोषण के बाद इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होते हैं और PS II तथा PS I से स्थानांतरित होते हुए अंत में एनएडीपी (NADP) में पहुँच एनएडीपीएच (NADPH) की रचना करते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान एक प्रोटोन प्रवणता थाइलेकोइड की झिल्लिका के आर-पार पैदा की जाती है। एटीपी एंजाइम के हिस्से $\mathrm{F} _{0}$ से प्रोटोन की गति के कारण प्रवणता भंग हो जाती है तथा एटीपी के संश्लेषण हेतु पर्याप्त ऊर्जा मुक्त की जाती है। पानी के अणु का विघटन PS II के साथ जुड़ा होता है, परिणामतः $\mathrm{O} _{2}$, और प्रोटोन की रिहाई होती है और PS II में इलेक्ट्रॉन का स्थानांतरण होता है।

कार्बन यौगिकीकरण में, एंजाइम रुबिस्को द्वारा $\mathrm{CO} _{2}$ एक 5 कार्बन यौगिक $\mathrm{RuBP}$ से जोड़ा जाता है तथा 3 कार्बन पीजीए के 2 अणु में बदलता है। इसके बाद केल्विन चक्र द्वारा यह शर्करा में परिवर्तित होता है और RuBP पुनरुद्भवित होता है। इस प्रक्रिया के दौरान प्रकाश अभिक्रिया द्वारा संश्लेषित एटीपी एवं एनएडीपी एच इस्तेमाल होता है। इसके साथ ही $\mathrm{C} _{3}$ पौधों में रुबिस्को एक निर्थक ऑक्सीजिनेशन प्रतिक्रिया: प्रकाश श्वसन को उत्प्रेरित करता है।

कुछ उष्णकटिबंधीय पौधे विशेष प्रकार का प्रकाश-संश्लेषण करते हैं जिसे $\mathrm{C} _{4}$ कहते हैं। इन पौधों के पर्णमध्योतक में संपन्न होने वाले $\mathrm{CO} _{2}$ यौगिकीकरण के उत्पाद एक 4 कार्बन यौगिक हैं। पूलाच्छद कोशिका में केल्विन पथ चलाया जाता है, जिससे कार्बोहाइड्रेटस का संश्लेषण होता है।



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