उच्च पादपों में प्रकाश-संश्लेषण
सभी प्राणी, यहाँ तक कि मानव भी आहार के लिए पौधों पर निर्भर हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि पौधे अपना आहार कहाँ से प्राप्त करते हैं? वास्तव में, हरे पौधे अपना आहार संश्लेषित करते हैं तथा अन्य सभी जीव अपनी आवश्यकता के लिए उन पर निर्भर रहते हैं। हरे पौधे अपने लिए आवश्यक भोजन का निर्माण अथवा संश्लेषण ‘प्रकाश-संश्लेषण’ द्वारा करते हैं। अतः वे स्वपोषी कहलाते हैं। आप पहले ही पढ़ चुके हैं कि स्वपोषी संश्लेषण केवल पौधों में ही पाया जाता है तथा अन्य सभी जीव जो अपने भोजन के लिए पौधों पर निर्भर करते हैं, विषमपोषी कहलाते हैं। यह एक ऐसी भौतिक-रासायनिक प्रक्रिया है, जसमें कार्बनिक यौगिकों को संश्लेषित करने के लिए प्रकाश-ऊर्जा का उपयोग करते हैं। अंतः कुल मिलाकर पृथ्वी पर रहने वाले सारे जीव ऊर्जा के लिए सूर्य के प्रकाश पर निर्भर करते हैं। पौधों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण में उपयोग की गई सूर्य-ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन का आधार है। प्रकाश-संश्लेषण के महत्वपूर्ण होने के दो कारण हैं: यह पृथ्वी पर समस्त खाद्य पदार्थों का प्राथमिक स्रोत है तथा यह वायुमंडल में ऑक्सीजन छोड़ता है। क्या आपने कभी सोचा है कि यदि साँस लेने के लिए ऑक्सीजन न हो, तो क्या होगा? इस अध्याय में प्रकाश-संश्लेषी (मशीनरी) तथा विभिन्न प्रतिक्रियाओं के विषय में बताया जाएगा जो प्रकाश-ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करती है।
11.1 हम क्या जानते हैं?
आइए, पहले यह पता करें कि हम प्रकाश-संश्लेषण के विषय में क्या जानते हैं। पिछली कक्षाओं में आपने कुछ सरल प्रयोग किए होंगे। जिनसे पता लगा होगा कि क्लोरोफिल (पत्तियों का हरा वर्णक), प्रकाश तथा कार्बनडाइऑक्साइड
आपने शायद शबलित (वेरीगेट) पत्तियों अथवा उस पत्ती में जिसे आंशिक रूप से काले कागज से ढक दिया हो और प्रकाश में रखा हो, जिससे स्टार्च (मंड) बनाने का
(अ)
( स)
(ब)
(द)
चित्र 11.1 प्रीस्टले का प्रयोग
प्रयोग को किया होगा। स्टार्च के लिए इन पत्तियों के परीक्षण से यह बात प्रकट होती है कि प्रकाश-संश्लेषण क्रिया सूर्य के प्रकाश में पेड़ के केवल हरे भाग में संपन्न होती है।
आपने एक अन्य प्रयोग आधी पत्ती से किया होगा जिसमें एक पत्ती का आंशिक भाग परखनली के अंदर रखा होगा और इसमें
11.2 प्रारंभिक प्रयोग
उन साधारण प्रयोगों के विषय में जानना काफी रुचिकर होगा जिनसे प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया क्रमिक विकसित हुई है।
जोसेफ प्रीस्टले (1733-1804) ने 1770 में बहुत से प्रयोग किए जिनसे पता लगा कि हरे पौधों की वृद्धि में हवा की एक अनिवार्य भूमिका है। आप को याद होगा कि प्रीस्टले ने 1774 में ऑक्सीजन की खोज की थी। प्रीस्टले ने देखा कि एक बंद स्थान-जैसे कि एक बेलजार में जलने वाली मोमबत्ती जल्दी ही बुझ जाती है (चित्र 11.1 अ,ब,स,द)। इसी प्रकार किसी चूहे का सीमित स्थान में जल्दी ही दम घुट जाएगा। इन अवलोकनों के आधार पर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि चाहे जलती मोमबत्ती हो अथवा कोई प्राणी जो वायु से साँस लेते हैं, वे हवा को क्षति पहुँचाते हैं। लेकिन जब उसने उसी बेल जार में एक पुदीने का पौधा रखा तो उसने पाया कि चूहा जीवित रहा और मोमबत्ती भी सतत जलती रही। इस आधार पर प्रीस्टले ने निम्न परिकल्पना की: “पौधे उस वायु की क्षतिपूर्ति करते हैं, जिन्हें साँस लेने वाले प्राणी और जलती हुई मोमबत्ती कम कर देती है।”
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि प्रीस्टले ने प्रयोग करने के लिए एक मोमबत्ती एवं पौधे का उपयोग कैसे किया होगा? याद रखें कि उसे मोमबत्ती को कुछ दिनों बाद पुनः जलाने की आवश्यकता होगी ताकि यह पता कर सके कि कुछ दिनों बाद वह जलेगी अथवा नहीं। सेटअप को बिना बाधित किए आप मोमबत्ती को जलाने के लिए कितनी विधियों के बारे में सोच सकते हो?
जॉन इंजेनहाउज (1730-1799) ने प्रीस्टले द्वारा निर्मित जैसे सेटअप का उपयोग किया जिसमें उसने उसे एक बार अंधेरे में और फिर एक बार सूर्य की रोशनी में रखा।
इससे यह पता लगा कि पौधों की इस प्रक्रिया में सूर्य का प्रकाश अनिवार्य है। यह जलती हुई मोमबत्ती या सांस लेने वाले प्राणियों द्वारा खराब हुई वायु को शुद्ध बनाता है। इंजेनहाउज ने अपने एक परिष्कृत प्रयोग में एक जलीय पौधे के साथ यह दिखाया कि तेज धुप में पौधे के हरे भाग के आस-पास छोटे-छोटे बुलबुले बन गए थे, जबकि अंधेरे में रखे गए पौधे के आस-पास बुलबुले नहीं बने थे। बाद में उसने इन बुलबुलों की पहचान ऑक्सीजन के रूप में की थी। अतः उसने यह दिखा दिया कि पौधे का केवल हरा भाग ही ऑक्सीजन को छोड़ सकता है।
1854 से पहले तक इसकी जानकारी नहीं थी, किंतु जूलियस वोन सैचस् ने यह प्रमाण दिया कि जब पौधा वृद्धि करता है तब ग्लूकोज (शर्करा) बनती है। ग्लूकोज प्राय: स्टार्च के रूप में संचित होता है। उसके बाद के अध्ययनों से यह पता लगा कि पौधे का हरा पदार्थ-जिसे क्लोरोफिल कहते हैं। पौधों की कोशिकाओं में स्थित विशिष्ट भाग (जिसे क्लोरोप्लास्क कहते हैं) में होता है। उसने बताया कि पौधों के हरे भाग में ग्लूकोज बनाता है और ग्लूकोज प्रायः स्टार्च के रूप में संचित होता है।
अब आप टी.डब्ल्यू एंजिलमैन (1843-1909) द्वारा किए गए रोचक प्रयोग पर ध्यान दें। उसने प्रिज्म की सहायता से प्रकाश को स्पेक्ट्रमी घटकों में अलग किया और और फिर एक हरे शैवाल क्लैडोफोरा को जिसे ऑक्सी बैक्टीरिया के निलंबन में रखा गया था, को प्रदीप्त किया गया। बैक्टीरिया का उपयोग ऑक्सीजन निकलने का केंद्र पता लगाने के लिए था। उसने पाया कि बैक्टीरिया प्रमुखतः लाल एवं नीले प्रकाश क्षेत्रों में एकत्र हो गए थे। इस तरह से प्रकाश-संश्लेषण का पहला सक्रिय स्पेक्ट्रम (एक्शन स्पेक्ट्रम) वर्णित किया गया। यह मोटे तौर पर क्लोरोफिल ’
उन्नीसवीं सदी के मध्य तक पादप प्रकाश-संश्लेषण की सभी मुख्य विशिष्टताओं के बारे में पता चल चुका था। जैसे कि, पौधे
जहाँ पर
एक सूक्ष्मजीव विज्ञानी कोर्नेलियस वैन नील (1897-1985) के प्रयोग ने प्रकाश-संश्लेषण को समझने में मील के पत्थर का काम किया। उसका अध्ययन बैंगनी (पर्पल) एवं हरे बैक्टीरिया पर आधारित था। उन्होंने बताया कि प्रकाश-संश्लेषण एक प्रकाश आधारित प्रतिक्रिया है जिसमें ऑक्सीकरणीय यौगिक से प्राप्त हाइड्रोजन कार्बनडाइऑक्साइड को अपचयित करके कार्बोहाइड्रेट बनाते हैं। इसे निम्नलिखित रूप से व्यक्त किया जा सकता है:
हरे पौधों में
के लिए हाइड्रोजन दाता होता है तो ‘ऑक्सीकरण’ उत्पाद जीवों के अनुसार सल्फर अथवा सल्फेट होता है न कि ऑक्सीजन। इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हरे पौधों द्वारा निकाली गई ऑक्सीजन
यहाँ पर
11.3 प्रकाश-संश्लेषण कहाँ संपन्न होता है?
अध्याय 8 में पढ़ने के बाद निश्चित ही आपका उत्तर होगा: हरी पत्तियों में अथवा आप कह सकते हैं क्लोरोप्लास्ट में, निश्चित ही आपका उत्तर सही है। प्रकाश-संश्लेषण क्रिया हरी पत्तियों में तो संपादित होती ही है लेकिन यह पौधों के अन्य सभी हरे भागों में भी होती है। क्या आप पौधे के कुछ अन्य भागों के नाम बता सकते हैं, जहाँ प्रकाश-संश्लेषण संपादित हो सकता है?
आपने पिछली इकाई में पढ़ा होगा कि पत्तियों में मेसोफिल कोशिकाएं होती हैं। जिनमें अत्यधिक मात्रा में क्लोरोप्लास्ट होते हैं। सामान्यतः क्लोरोप्लास्ट मेसोफिल कोशिकाओं की भित्ति के साथ पंक्तिबद्ध होता है जिससे कि वे ईष्टतम मात्रा में आपतित प्रकाश प्राप्त कर सकें। आपके विचार से हरित लवक कब अपने सपाट पटल भित्ति के समानांतर
चित्र 11.2 इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के द्वारा दिखाया गया हरित लवक की काट का आरेख प्रस्तुतीकरण
पंक्तिबद्ध होते हैं? वे आपतित सूर्य के प्रकाश से कब लंबित होते होंगे?
आपने अध्याय 8 में क्लोरोप्लास्ट की संरचना के बारे में पढ़ा है। क्लोरोप्लास्ट में एक झिल्ली तंत्र होता है जिसमें ग्रैना, स्ट्रोमा लैमेले और स्ट्रोमा तरल होता है (चित्र 11.2)। क्लोरोप्लास्ट में सुस्पष्ट श्रम विभाजन होता है। झिल्ली तंत्र प्रकाश-ऊर्जा को ग्रहण करता है और एटीपी एवं एनएडीपीएच का संश्लेषण करता है। स्ट्रोमा में एंजाइमैटिक प्रतिक्रिया होती है जो शर्करा का संश्लेषण करता है जो बाद में स्टार्च में परिवर्तित हो जाता है। पहली वाली प्रतिक्रिया को प्रकाश अभिक्रिया (प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया) कहा जाता है, चूँकि यह पूर्णतः प्रकाश पर आधारित है। दूसरी प्रतिक्रिया प्रकाश अभिक्रिया के उत्पाद पर निर्भर होती है अर्थात् एटीपी तथा एनएडीपीएच, जो सैद्धांतिक रूप में अंधेरे में संपन्न होती हैं अतः इसे अप्रकाशी अभिक्रिया (कार्बन अभिक्रिया) कहते हैं। (इसके विषय का विस्तृत अध्ययन बाद में इसी अध्याय में किया जाएगा)
11.4 प्रकाश-संश्लेषण में कितने प्रकार के वर्णक भाग लेते हैं?
जब आप किसी पौधे को देख रहे होते हैं तो क्या कभी आश्चर्य हुआ है कि उसी पौधे में पत्तियों के हरे रंग में सूक्ष्म अंतर क्यों और कैसे है? हम इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए किसी भी हरे पादप के पर्णवर्णकों को पेपर क्रोमेटोग्राफी (कागज वर्णलेखिकी) द्वारा अलग कर सकते हैं। क्रोमेटोग्राफी से पता लगता है कि पत्तियों में स्थित वर्णक के कारण जो हरापन दिखाई देता है, वह किसी एक वर्णक के कारण नहीं, बल्कि चार वर्णकों: क्लोरोफिल ए (क्रोमेटोग्राफी में चमकीला अथवा नीला हरा), क्लोरोफिल बी (पीला हरा), जैन्थोफिल (पीला) तथा कारटीनोएड (पीले से नारंगी पीले) के कारण होता है। आइए, अब देखें कि प्रकाश-संश्लेषण में विभिन्न वर्णकों की क्या भूमिका है।
वर्णक वे पदार्थ हैं जिनमें प्रकाश की विशिष्ट तरंगदैर्घ्यों को अवशोषित करने की क्षमता होती है। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि विश्व में कौन सा पादप वर्णक सर्वाधिक है? आइए, अब क्लोरोफिल ए वर्णक को ग्राफ में विभिन्न तरंगदैर्ध्यता में प्रकाश अवशोषण का अध्ययन
( अ)
चित्र 11.3.अ क्लोरोफिल ए,बी तथा केरोटेनोइड्स का अवशोषित वर्णक्रम प्रदर्शित करता हुआ ग्राफ
चित्र 11.3.ब प्रकाश-संश्लेषण क्रियात्मक वर्णक्रम प्रदर्शित करता हुआ ग्राफ
चित्र 11.3.स क्लोरोफिल ए के अवशोषित वर्णक्रम पर प्रकाश-संश्लेषण के क्रियात्मक वर्णक्रम का अध्यारोपित दृश्य का ग्राफ
करें (चित्र 11.3. अ)। आप स्पष्टतः प्रकाश के दृश्य स्पेक्ट्रम की तरंगदैर्ध्यता एवं विबग्योर (vibgyor) से परिचित हैं।
चित्र 11.3 अ को देखकर क्या आप बता सकते हैं कि किस तरंगदैर्ध्य पर क्लोरोफिल ‘ए’ अधिकतम अवशोषण करेगा? क्या यह किसी अन्य तरंगदैर्ध्यता पर कोई अन्य अवशोषण चोटी दिखाते हैं? यदि हाँ तो वे कौन हैं?
अब आप चित्र 11.3 (ब) को देखें जिसमें उन तरंगदैर्ध्यों को दिखाया गया है, जहाँ पर पादप में अधिकतम प्रकाश-संश्लेषण होता है। क्या आप देख रहे हैं कि तरंगदैर्घ्य क्लोरोफिल ‘ए’ अर्थात् नीला तथा लाल क्षेत्र में अवशोषण करता है, उस क्षेत्र में प्रकाश-संश्लेषण की दर भी अधिकतम है। अतः हम कह सकते हैं कि क्लोरोफिल ‘ए’ प्रकाश-संश्लेषण के लिए एक प्रमुख वर्णक है लेकिन चित्र 11.3(स) देखने पर क्या आप कह सकते हैं कि क्लोरोफिल ‘ए’ के अवशोषण स्पेक्ट्रम तथा प्रकाश-संश्लेषण के क्रियात्मक स्पेक्ट्रम के बीच पूर्णतः परस्पर ब्यापन है?
ये ग्राफ, एक साथ यह बता रहे हैं कि अधिकतम प्रकाश-संश्लेषण स्पेक्ट्रम के नीले एवं लाल क्षेत्र में संपन्न होती है, और कुछ प्रकाश-संश्लेषण स्पेक्ट्रम की अन्य तंरगदैर्ध्यों पर भी संपन्न होती है। आइए, देखें कि यह कैसे होता है। यद्यपि क्लोरोफिल ’
11.5 प्रकाश अभिक्रिया क्या है?
चित्र 11.4 प्रकाश संग्रहण तंतुजाल प्रकाश अभिक्रिया अथवा ‘प्रकाशरसायन’ चरण में प्रकाश अवशोषण, जल विघटन, ऑक्सीजन निष्कर्षण तथा उच्च-ऊर्जा रसायन माध्यमिकों, जैसे एटीपी तथा एनएडीपीएच का निर्माण शामिल है। इस प्रक्रिया में अनेक प्रोटीन कॉम्पलेक्स सम्मिलित होते हैं। यहाँ वर्णक दो सुस्पष्ट प्रकाश रसायन लाइट हार्वेस्टिंग कॉम्पलेक्स (एलएचसी) जिन्हें फोटोसिस्टम I (पीएस I) तथा फोटोसिस्टम II ( पीएस II) कहते हैं - में गठित होता है। इन्हें खोज के क्रम में ये नाम दिए गए हैं न कि प्रकाश अभिक्रिया के दौरान उनके काम करने के अनुक्रम में। एलएचसी प्रोटीन से आबद्ध हजारों वर्णक अणुओं से बने होते हैं। प्रत्येक फोटोसिस्टम में सभी वर्णक होते हैं, (सिवाय क्लोरोफिल ‘ए’ के एक अणु के) तथा एलएचसी का निर्माण करते हैं जिन्हें ऐन्टेनी कहते हैं (चित्र 11.4)। ये वर्णक विभिन्न तंरगदैर्यों के प्रकाश को अवशोषित कर प्रकाश-संश्लेषण को अधिक दक्ष बनाते हैं। क्लोरोफिल
’
11.6 इलेक्ट्रॉन परिवहन
फोटोसिस्टम II में अभिक्रिया केंद्र में मौजूद क्लोरोफिल ‘ए’ 680 एनएम वाले लाल प्रकाश को अवशोषित करता है, जिससे इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर परमाणु नाभिक से दूर चला जाता है। इसे इलेक्ट्रॉन को एक इलेक्ट्रॉन ग्राही ले लेता है और इन्हें इलेक्ट्रॉन्स ट्रांसपोर्ट सिस्टम जिसमें साइटोक्रोम होते हैं, पहुँचा दिया जाता है (चित्र 11.5)। इलेक्ट्रॉन की यह गतिविधि अधोगामी है जो अपचयोपचय विभव मापन (रिडैक्स पोटेंशियल स्केल) के रूप में है। जब इलेक्ट्रॉन्स परिवहन शृंखला से इलेक्ट्रॉन्स गुजरते हैं तब उनका उपयोग नहीं होता बल्कि उन्हें फोटोसिस्टम पीएस I के वर्णकों को दे दिया जाता है। इसके साथ ही साथ, पीएस I का अभिक्रिया केंद्र के इलेक्ट्रॉन भी लाल प्रकाश की 700 एनएम तरंगदैर्ध्य को अवशोषित कर उत्तेजित होता है और यह अन्य ग्राही अणु में जिसका अपचयोपचय (रिडौक्स) विभव अधिक हो, स्थानांतरित होता है। ये इलेक्ट्रॉन्स पुनः अधोगामी गति करते हैं, परंतु इस बार वे ऊर्जा से प्रचुर एनएडीपी
चित्र 11.5 प्रकाश अभिक्रिया की
11.6.1 जल का विघटन
अब आप पूछेंगे कि पीएस II कैसे इलेक्ट्रॉन की आपूर्ति निरंतर करता है? वे इलेक्ट्रॉन जो फोटोसिस्टम II में निकलते हैं, उनकी जगह निश्चित ही दूसरों को लेनी चाहिए। जल विघटन का संबंध पीएस
हमें यह अच्छी प्रकार जान लेना चाहिए कि जल विघटन पीएस II से संबंधित है जो थाइलेकोइड की झिल्ली की भीतरी ओर होता है। तब इस दौरान बनने वाले प्रोटोन्स एवं
फोटोसिस्टम I
चित्र 11.6 प्रकाश अभिक्रिया की
11.6.2 चक्रीय एवं अचक्रीय फोटो-फोस्फोरीलेशन
जीवों में ऑक्सीकरणीय पदार्थो से ऊर्जा निकालने तथा उसे बंध -ऊर्जा के रूप में संचय करने की क्षमता होती है। विशेष पदार्थ जैसे एटीपी, इस ऊर्जा को अपने रासायनिक बंध में संजोये रखती हैं। कोशिकाओं द्वारा (माइटोकोंड्रिया तथा क्लोरोप्लास्ट में) एटीपी के संश्लेषण की प्रक्रिया को फोस्फोरीलेशन कहते हैं। फोटो-फोस्फोरीलेशन वह प्रक्रिया है जिसमें प्रकाश की उपस्थिति में एडीपी तथा अकार्बनिक फोस्फेट से एटीपी का संश्लेषण होता है। जब दो फोटोसिस्टम क्रमिक कार्य करते हैं जिसमें पीएस II पहले और पीएस I दूसरे क्रम में कार्य करें तो इस प्रक्रिया को अचक्रीय फोटो-फॉस्फोरीलेशन कहते हैं। ये दोनों फोटोसिस्टम एक इलेक्ट्रॉन परिवहन भृंखला से जुड़े होते हैं जैसे कि पहले
11.6.3 रसोपरासरणी परिकल्पना ( केमिओस्मोटिक हाइपोथेसिस )
आइए, अब हम यह समझने का प्रयत्न करें कि क्लोरोप्लास्ट में एटीपी कैसे संश्लेषित होता है? इस प्रक्रम का वर्णन रसोपरासरणी परिकल्पना द्वारा कर सकते हैं। श्वसन की भाँति ही प्रकाश-संश्लेषण में भी, एटीपी का संश्लेषण एक झिल्लिका के आर-पार प्रोटोन प्रवणता के कारण होता है। यहाँ पर ये झिल्लिकाएं थाइलेकोइड की होती हैं। यहाँ पर एक अंतर यह है कि प्रोटोन झिल्लिका के अंदर की ओर अर्थात् अवकोशिका (ल्यूमेन) में संचित होता है। श्वसन में प्रोटोन माइटोकांड्रिया की अंतरा झिल्ली अवकोशिका में संचित होती है, जब इलेक्ट्रॉन इटीएस (अध्याय 12) से गुजरते हैं।
आइए, यह समझें कि किन कारणों से प्रोटोन प्रवणता झिल्लिका के आर-पार होती है? हमें पुनः उन प्रक्रियाओं पर ध्यान देना होगा जो इलेक्ट्रॉन के सक्रियता और उनके परिवहन के समय संपन्न होता है, ताकि उन चरणों को सुनिश्चित किया जा सके जिनके कारण प्रोटोन प्रवणता का विकास होता (चित्र 11.7) है।
(अ) चूँकि जल के अणु का विघटन झिल्लिका के अंदर की तरफ होता है अत: जल के विघटन से उत्पन्न हाइड्रोजन आयन अथवा प्रोटोन थाइलाकोइड अवकाशिका (ल्यूमेन) में संचित होते हैं।
(ब) जैसे ही इलेक्ट्रॉन्स फोटोसिस्टम के माध्यम से गति करते हैं, प्रोटोन झिल्लिका के पार चला जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इलेक्ट्रॉन का प्राथमिक ग्राही, जो कि झिल्लिका के बाहर की ओर स्थित होता है, यह अपने इलेक्ट्रॉन को एक इलेक्ट्रॉन वाहक को स्थानांतरित नहीं करता, बल्कि एक हाइड्रोजन वाहक को करता है। अतः इलेक्ट्रॉन प्रवाह के समय यह अणु स्ट्रोमा से एक प्रोटोन को ले लेता है, जब यह अणु अपने इलेक्ट्रॉन को झिल्ली के भीतरी ओर स्थित इलेक्ट्रॉन वाहक को देता है, तब प्रोटोन के अंदर ओर अथवा झिल्ली की अवकाशिका की ओर मुक्त होता है।
(स) एनएडीपी रिडक्टेस एंजाइम झिल्ली के स्ट्रोमा की ओर होता है। पीएस I के इलेक्ट्रॉन ग्राही से आने वाले इलेक्ट्रॉन्स के साथ-साथ प्रोटोन एनएडीपी+ को एनएडीपी एच + एच+ में अपचयित करने के लिए आवश्यक होता है। ये प्रोटोन स्ट्रोमा पीठिका से ही आते हैं।
चित्र 11.7 रसोपरासरण के द्वारा एटीपी का निर्माण
अतः क्लोरोप्लास्ट में स्थित स्ट्रोमा में प्रोटोन की संख्या घटती है, जबकि ल्यूमेन (अवकाशिका) में प्रोटोन का संचयन होता है। इस प्रकार यह थाइलाकोइड झिल्ली के आर-पार एक प्रोटोन प्रवणता उत्पन्न होती है और साथ ही साथ ल्यूमेन में पी एच
हमारे लिए प्रोटोन प्रवणता इतना महत्वपूर्ण क्यों है? प्रोटोन प्रवणता इसलिए महत्वपूर्ण है; चूँकि प्रवणता टूटने पर एटीपी का संश्लेषण होता है और ऊर्जा मुक्त होती है। यह प्रवणता इसलिए भंग होती है; क्योंकि प्रोटोन झिल्लिका में मौजूद एटीपी सिन्थेज के पारगमन वाहिका
रसोपरासरण (केमिओस्मोसिस) के लिए एक झिल्लिका, एक प्रोटोन पंप, एक प्रोटोन प्रवणता तथा एटीपी सिन्थेज की आवश्यकता होती है। प्रोटोन को एक झिल्लिका के आर-पार पंप करने के लिए ऊर्जा का उपयोग होता है, ताकि थाइलेकोइड ल्यमेन में एक प्रवणता अथवा प्रोटोन की उच्च सांद्रता पैदा हो सके। एटीपी सिन्थेज के पास एक चैनल अथवा नलिका होता है, जो झिल्लिका के आर-पार प्रोटोन को विसरण का अवसर देता है। यह एटीपी सिन्थेज एंजाइम को सक्रिय करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा छोड़ता है जो एटीपी संश्लेषण को उत्प्रेरित करता है।
इलेक्ट्रॉन की गतिशीलता से उत्पादित एनएडीपीएच के साथ एटीपी भी स्ट्रोमा (पीठिका) में संपन्न होने वाले जैव संश्लेषण में तुरंत उपयोग कर लिए जाएंगे, जो
11.7 एटीपी तथा एनएडीपीएच कहाँ उपयोग होते हैं?
हमने पढ़ा है कि प्रकाश अभिक्रिया के उत्पाद एटीपी, एनएडीपीएच तथा
अतः जैव संश्लेषण चरण को अप्रकाशी अभिक्रिया (डार्क रिएक्शन) कहना क्या एक मिथ्या है? अपने साथियों के बीच इसकी चर्चा करें।
आइए अब देखें कि जैव संश्लेषण चरण में एटीपी तथा एनएडीपीएच का उपयोग कैसे होता है? हम पहले देख चुकें हैं कि
वैज्ञानिकों ने जानने का यह भी प्रयत्न किया कि क्या सभी पौधे
11.7.1 के प्राथमिकग्राही
आइए, अब हम अपने आप से एक प्रश्न पूछें, जिसे कि उन वैज्ञानिकों द्वारा पूछा गया था जो अप्रकाशी अभिक्रिया को समझने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उस अणु में कितने कार्बन परमाणु हैं जो
अध्ययनों से पता लगा कि ग्राही अणु एक पाँच कार्बन वाला कीटोज शुगर (शर्करा) था, यह रिब्यूलोज 1-5 बायफोस्फेट (RuBP) था। क्या आपमें से किसी ने इस संभावना के बारे में सोचा था? परेशान मत होइए; वैज्ञानिकों को भी इसे जानने में बहुत समय लगा और किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले बहुत सारे प्रयोग किए गए थे। उन्हें यह भी यकीन था कि, चूँकि पहला उत्पाद
11.7.2 केल्विन चक्र
केल्विन तथा उसके सहकर्मियों ने संपूर्ण पथ का पता लगाया और बताया कि यह पथ एक चक्रीय क्रम में संचालित होता है; जिसमें RuBP पुनः उत्पादित होता है। आइए, अब यह देखें कि केल्विन पथ कैसे संचालित होता है और शर्करा कहाँ पर संश्लेषित होती है। आइए, शुरू में ही हम स्पष्ट रूप से समझ लें कि केल्विन चक्र उन सभी पौधों में होता है जो प्रकाश-संश्लेषण करते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनमें चाहे पथ
चित्र 11.8 कैल्विन चक्र तीन भागों में बांटा जा सकता है। (1) कार्बोक्सिलेशन जिसमें
केल्विन चक्र को आसानी से समझने के लिए इसको तीन चरणों - कार्बोक्सिलीकरण (कार्बोक्सीलेशन), रिडक्शन तथा रिजनरेशन में वर्णन करते हैं।
1. कार्बोक्सिलीकरण-
2. रिडक्शन (अपचयन) यह प्रतिक्रियाओं की एक शृंखला है जिसमें ग्लूकोज बनता है। इस चरण में प्रत्येक
3. रिजेनरेशन ( पुनरुद्भवन) यदि चक्र को बिना बाधा के जारी रहना है तो
इसलिए, केल्विन चक्र में
ग्लूकोस के एक अणु की रचना के लिए इस चक्र के 6 चक्करों की आवश्यकता होती है। यह पता करें कि केल्विन पथ के माध्यम से ग्लूकोस के एक अणु की रचना के लिए कितने एटीपी तथा एनएडीपीएच के अणुओं को आवश्यकता होती है। आपको यह बात शायद समझने में मदद करेगी कि केल्विन चक्र में क्या अंदर जाता है और क्या बाहर निकलता है।
अंदर | बाहर |
---|---|
एक ग्लूकोज | |
18 एटीपी | 18 एडीपी |
12 एनएडीपीएच | 12 एनएडीपी |
11.8 पथ
अथवा केल्विन चक्र ही होता है। तब फिर से
आओ,
चित्र 11.9 हैच एवं स्लैक पाथवे इसकी मोटी भित्तियाँ गैस से अप्रवेश्य होती हैं और इनमें अंतरकोशीय स्थान नहीं होता। आप
अपने आस-पास के विभिन्न स्पेशीज के पेड़ों की पत्तियाँ एकत्र करें और उनकी पत्तियों की खड़ी काट लें। सूक्ष्मदर्शी से इसके संवहन बंडल पूल के आस-पास पूलाच्छद को देखें। पूलाच्छद की उपस्थिति
अब चित्र 11.9 में दिखाए गए पथ का अध्ययन करें। इस पथ को हैच एवं स्लैल पथ कहते हैं। यह भी एक चक्रीय प्रक्रिया है। आइए, हम चरणों को समझते हुए पथ का अध्ययन करें।
इसके बाद ये पर्णमध्योतक कोशिका में अन्य 4-कार्बन वाले अम्ल जैसे मैलिक अम्ल और एस्पार्टिक अम्ल बनते हैं, जोकि पूलाच्छद कोशिका में चले जाते हैं। पूलाच्छद कोशिका में यह
3-कार्बन अणु पुनः पर्णमध्योतक में वापस आ जाता है, जहाँ यह पुनः पेप में बदला जाता है और इस तरह से यह चक्र पूरा होता है।
पूलाच्छद कोशिका से निकली
क्या आपने ध्यान दिया है कि केल्विन पथ सभी
11.9 प्रकाश श्वसन ( फोटोरेस्पिरेशन )
आइए, हम एक और प्रक्रिया- प्रकाश श्वसन को जानने का प्रयत्न करते हैं, जो
रुबिस्को नामक एंजाइम विश्व में सबसे ज्यादा प्रचुर है (आपको आश्चर्य होता है क्यों?) और इसका यह गुण है कि इसकी सक्रिय जगह
तालिका
विशिष्टताएं | इनमें से चुनिए | ||
---|---|---|---|
वह कोशिका प्रकार जिसमें केल्विन चक्र संपन्न होता है | पर्णमध्योतक/पूलाच्छद/दोनों | ||
वह कोशिका प्रकार जिसमें प्रारंभिक कार्बोक्सिलेशन प्रतिक्रिया घटित होता है। | पर्णमध्योतक/पूलाच्छद/दोनों | ||
एक पत्ती में कितने प्रकार की कोशिकाएं होती है जो |
एक: पर्णमध्योतक, दो: पूलाच्छद एवं पर्णमध्योतक तीन: पूलाच्छद, पैलिसेड (खंभ), स्पजी पर्णमध्योतक | ||
आरयुबीपी/पीईपी/पीजीए | |||
प्राथमिक |
|||
पीजीए/ओएए/आरयुबीपी | |||
क्या पौधे में रुबिस्को (RuBisCO) होता है? | हाँ/नहीं/सदैव नहीं | ||
क्या पौधे में पेपकेस (PEPCase) होता है? | हाँ/नहीं/सदैव नहीं | ||
पौधे में किन कोशिकाओं में रुबिस्को (Rubisco) होता है? | पर्णमध्योतक/पूलाच्छद कोई नहीं | ||
उच्च प्रकाश स्थिति में |
निम्न/उच्च/मध्यम | ||
क्या निम्न प्रकाश तीव्रता में प्रकाश श्वसन होता है? | उच्च/नगण्य/कभी-कभी | ||
क्या उच्च प्रकाश तीव्रता में प्रकाश श्वसन होता है? | उच्च/नगण्य/कभी-कभी | ||
क्या निम्न |
उच्च/नगण्य/कभी-कभी | ||
क्या उच्च |
उच्च/नगण्य/कभी-कभी | ||
अनुकूलतम तापमान | |||
उदाहरण | विभिन्न पौधों की पत्तियों के खडे सेक्सन काटें तथा सूक्ष्मदर्शी के नीचे रखकर क्रैंज शरीर देखें तथा उन्हें उपयुक्त खाने (कॉलम) में भरें। |
अब, आप जानते है कि
उपर्युक्त परिचर्चा के आधार पर क्या आप उन पौधों की तुलना कर सकते हो जिसमें
11.10 प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक
प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारकों के विषय में जानना आवश्यक है। प्रकाश-संश्लेषण की दर पौधों एवं फसली पादपों के उत्पादन जानने में अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। प्रकाश-संश्लेषण कई कारकों से प्रभावित होता है जो बाह्य तथा आंतरिक दोनों ही हो सकते हैं। पादप कारकों में संख्या, आकृति, आयु तथा पत्तियों का विन्यास, पर्णमध्योतक कोशिकाएं तथा क्लोराप्लास्ट आंतरिक
बाह्य कारक हैं सूर्य का प्रकाश, ताप,
जब अनेक कारक किसी (जैव) रासायनिक प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं तो ब्लैकमैन का (1905) लॉ ऑफ लिमिटिंग फैक्टर्स प्रभाव में आता है। इसके अनुसारः यदि कोई रासायनिक प्रक्रिया एक से अधिक कारकों द्वारा प्रभावित होती है तो इसकी दर का निर्धारण उस समीपस्थ कारक द्वारा होगा जो कि न्यूनतम मान (मूल्य) वाला हो। अगर उस कारक की मात्रा बदल दी जाए तो कारक प्रक्रिया को सीधे प्रभावित करता है।
चित्र 11.10 प्रकाश की तीव्रता का प्रकाशसंश्लेषण के प्रति दर पर प्रभाव का ग्राफ
उदाहरण के लिए एक हरी पत्ती, अधिकतम अनुकूल प्रकाश तथा
11.10.1 प्रकाश
जब हम प्रकाश को प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक के रूप में लेते हैं तो हमें प्रकाश की गुणवत्ता, प्रकाश की तीव्रता तथा दीप्तिकाल के बीच अंतर करने की आवश्यकता है। यहाँ कम प्रकाश तीव्रता पर आपतित प्रकाश तथा
11.10.2 कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता
प्रकाशसंश्लेषण में कार्बन डाइऑक्साइड एक प्रमुख सीमाकारी कारक है। वायुमंडल में
सच यह है कि
11.10 .3 ताप
अप्रकाशी अभिक्रिया एंजाइम पर निर्भर करती है, इसलिए ताप द्वारा नियंत्रित होती है। यद्यपि प्रकाश अभिक्रिया भी ताप संवेदी होती है, लेकिन उस पर ताप का काफी कम प्रभाव होता है।
विभिन्न पौधों के प्रकाश-संश्लेषण लिए इष्टतम ताप उनके अनुकूलित आवास पर निर्भर करता है। उष्णकटिबंधी पौधों के लिए ईष्टतम ताप उच्च होता है। समशीतोष्ण जलवायु में उगने वाले पौधों के लिए एक अपेक्षाकृत कम ताप की आवश्यकता होती है।
11.10.4 जल
यद्यपि प्रकाश अभिक्रिया में जल एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया अभिकारक है, तथापि, कारक के रूप में जल का प्रभाव पूरे पादप पर पड़ता है, न कि सीधे प्रकाश-संश्लेषण पर। जल तनाव रंध्र को बंद कर देता है अतः
सारांश
पौधे अपने भोजन को प्रकाश-संश्लेषण द्वारा स्वयं तैयार करते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान वायुमंडल में उपलब्ध कार्बनडाइऑक्साइड पत्तियों के रंध्रों द्वारा ली जाती है और कार्बोहाइड्रेट्स- मुख्यतः ग्लूकोज (शर्करा) एवं स्टार्च बनाने में उपयोग की जाती है। प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया पौधों के हरे भागों, मुख्यतः पत्तियों में संपन्न होती है। पत्तियों के अंतर्गत पर्णमध्योतक कोशिकाओं में भारी मात्रा में क्लोरोप्लास्ट होता है जोकि
कार्बन यौगिकीकरण में, एंजाइम रुबिस्को द्वारा
कुछ उष्णकटिबंधीय पौधे विशेष प्रकार का प्रकाश-संश्लेषण करते हैं जिसे