जीव जगत

जीव जगत कैसा निराला है? जीवों के विस्तृत प्रकारों की श्रृंखला विस्मयकारी है। असाधारण वास स्थान चाहे वे ठंडे पर्वत, पर्णपाती वन, महासागर, अलवणीय (मीठा) जलीय झीलें, मरूस्थल अथवा गरम झरनों जिनमें जीव रहते हैं, वे हमें आश्चर्यचकित कर देते हैं। सरपट दौड़ते घोड़े, प्रवासी पक्षियों, घाटियों में खिलते फूल अथवा आक्रमणकारी शार्क की सुंदरता विस्मय तथा चमत्कार का आहवान करती है। पारिस्थितिक विरोध, तथा समष्टि के सदस्यों तथा समष्टि और समुदाय में सहयोग अथवा यहां तक कि कोशिका में आण्विक गतिविधि से पता चलता है कि वास्तव में जीवन क्या है ? इस प्रश्न में दो निर्विवाद प्रश्न हैं। पहला तकनीकी है जो जीव तथा निर्जीव क्या हैं, इसका उत्तर खोजने का प्रयत्न करता है, तथा दूसरा प्रश्न दार्शनिक है जो यह जानने का प्रयत्न करता है कि जीवन का उद्देश्य क्या है। वैज्ञानिक होने के नाते हम दूसरे प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास नहीं करेंगे। हम इस विषय पर चिंतन करेंगे कि जीव क्या है?

1.1 जीव जगत में विविधता

यदि आप अपने आस-पास देखें तो आप जीवों की बहुत सी किस्में देखेंगे, ये किस्में, गमले में उगने वाले पौधे, कीट, पक्षी, पालतू अथवा अन्य प्राणी व पौधे हो सकती हैं। बहुत से ऐसे जीव भी होते हैं जिन्हें आप आँखों की सहायता से नहीं देख सकते, लेकिन आपके आस-पास ही हैं। यदि आप अपने अवलोकन के क्षेत्र को बढ़ाते हैं तो आपको विविधता की एक बहुत बड़ी श्रृंखला दिखाई पड़ेगी। स्पष्टतः यदि आप किसी सघन वन में जाएं तो आपको जीवों की बहुत बड़ी संख्या तथा उनकी कई किस्में दिखाई पड़ेंगी।

प्रत्येक प्रकार के पौधे, जंतु अथवा जीव जो आप देखते हैं किसी एक जाति (स्पीशीज) का प्रतीक हैं। अब तक की ज्ञात तथा वर्णित स्पीशीज की संख्या लगभग 1.7 मिलियन से लेकर 1.8 मिलियन तक हो सकती है। हम इसे जैविक विविधता अथवा पृथ्वी पर स्थित जीवों की संख्या तथा प्रकार कहते हैं। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि जैसे-जैसे हम नए तथा यहां तक कि पुराने क्षेत्रों की खोज करते हैं, हमें नए-नए जीवों का पता लगता रहता है।

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि विश्व में कई मिलियन पौधे तथा प्राणी हैं। हम पौधों तथा प्राणियों को उनके स्थानीय नाम से जानते हैं। ये स्थानीय नाम एक ही देश के विभिन्न स्थान के अनुसार बदलते रहते हैं। यदि हमने कोई ऐसी विधि नहीं निकाली जिसके द्वारा हम किसी जीव के विषय में चर्चा कर सके जो शायद इससे भ्रमकारी स्थिति पैदा हो सकती है।

प्रत्येक जीव का एक मानक नाम होता है, जिससे वह उसी नाम से सारे विश्व में जाना जाता है। इस प्रक्रिया को नाम-पद्धति कहते हैं। स्पष्टतः नाम-पद्धति तभी संभव है जब जीवों का वर्णन सही हो और हम यह जानते हों कि यह नाम किस जीव का है। इसे पहचानना कहते हैं।

अध्ययन को सरल करने के लिए अनेकों वैज्ञानिकों ने प्रत्येक ज्ञात जीव को वैज्ञानिक नाम देने की प्रक्रिया बनाई है। इस प्रक्रिया को विश्व में सभी जीव वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है। पौधों के लिए वैज्ञानिक नाम का आधार सर्वमान्य नियम तथा कसौटी है, जिनको इंटरनेशनल कोड ऑफ बोटेनीकल नोमेनकलेचर (ICBN) में दिया गया है। आप पूछ सकते हैं कि प्राणियों का नामकरण कैसे किया जाता है। प्राणी वर्गिकीविदों ने इंटरनेशनल कोड ऑफ जूलोजीकल नोमेनकलेचर (ICZN) बनाया है। वैज्ञानिक नाम की यह गारंटी है कि प्रत्येक जीव का एक ही नाम रहे। किसी भी जीव के वर्णन से विश्व में किसी भी भाग में लोग एक ही नाम बता सके। वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि एक ही नाम किसी दूसरे ज्ञात जीव का न हो।

जीव विज्ञानी ज्ञात जीवों के वैज्ञानिक नाम देने के लिए सार्वजनिक मान्य नियमों का पालन करते हैं। प्रत्येक नाम के दो घटक होते हैं : वंशनाम तथा जाति संकेत पद। इस प्रणाली को जिसमें दो नाम के दो घटक होते हैं, उसे द्विपदनाम पद्धति कहते हैं। इस नामकरण प्रणाली को कैरोलस लीनियस ने सुझाया था। इसका उपयोग सारे विश्व के जीवविज्ञानी करते हैं। दो शब्दों वाली नामकरण प्रणाली बहुत सुविधाजनक है। आओ, आपको आम के उदाहरण द्वारा वैज्ञानिक नाम देने की विधि को समझाएं। आम का वैज्ञानिक नाम मैंजीफेरा इंडिका है। तब आप यह देख सकते हैं कि यह नाम कैसे द्विपद है। इस नाम में मैंजीफेरा वंशनाम है जबकि इंडिका एक विशिष्ट स्पीशीज अथवा जाति संकेत पद है। नाम पद्धति के अन्य सार्वजनिक नियम निम्नलिखित हैं :

1. जैविक नाम प्रायः लैटिन भाषा में होते हैं और तिरछे अक्षरों में लिखे जाते हैं। इनका उद्भव चाहे कहीं से भी हुआ हो। इन्हें लैटिनीकरण अथवा इन्हें लैटिन भाषा का व्युत्पन्न समझा जाता है।

2. जैविक नाम में पहला शब्द वंशनाम होता है जबकि दूसरा शब्द जाति संकेत पद होता है।

3. जैविक नाम को जब हाथ से लिखते हैं तब दोनों शब्दों को अलग-अलग रेखांकित अथवा छपाई में तिरछा लिखना चाहिए। यह रेखांकन उनके लैटिन उद्भव को दिखाता है।

4. पहला अक्षर जो वंश नाम को बताता है, वह बड़े अक्षर में होना चाहिए जबकि जाति संकेत पद में छोटा अक्षर होना चाहिए। मैंजीफेरा इंडिका के उदाहरण से इसकी व्याख्या कर सकते हैं।

जाति संकेत पद के बाद अर्थात् जैविक नाम के अंत में लेखक का नाम लिखते हैं और इसे संक्षेप में लिखा जाता है। उदाहरणतः मैंजीफेरा इंडिका ( लिन)। इसका अर्थ है सबसे पहले स्पीशीज का वर्णन लीनियस ने किया था।

यद्यपि सभी जीवों का अध्ययन करना लगभग असंभव है, इसलिए ऐसी युक्ति बनाने की आवश्यकता है जो इसे संभव कर सके। इस प्रक्रिया को वर्गीकरण कहते हैं। वर्गीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें कुछ सरलता से दृश्य गुणों के आधार पर सुविधाजनक वर्ग में वर्गीकृत किया जा सके। उदाहरण के लिए हम पौधों अथवा प्राणियों और कुत्ता, बिल्ली अथवा कीट को सरलता से पहचान लेते हैं। जैसे ही हम इन शब्दों का उपयोग करते है, उसी समय हमारे मस्तिष्क में इन जीव के ऐसे कुछ गुण आ जाते हैं जिससे उनका उस वर्ग से संबंध होता है। जब आप कुत्ते के विषय में सोचते हो तो आपके मस्तिष्क में क्या प्रतिबिंब बनता है। स्पष्टतः आप कुत्ते को ही देखेंगे न कि बिल्ली को। अब, यदि एलशेशियन के विषय में सोचे तो हमें पता लगता है कि हम किसके विषय में चर्चा कर रहे हैं। इसी प्रकार, मान लो हमें ‘स्तनधारी’ कहना है तो आप ऐसे जंतु के विषय में सोचोगे जिसके बाह्य कान और शरीर पर बाल होते हैं। इसी प्रकार पौधों में यदि हम ‘गेहूँ’ के विषय में चर्चा करें तो हमारे मस्तिष्क में गेहूँ का पौधा आ जाएगा। इसलिए ये सभी ‘कुत्ता’, ‘बिल्ली’, ‘स्तनधारी’, ‘गेहूँ, ‘चावल’, ‘पौधे’, ‘जंतु’ आदि सुविधाजनक वर्ग हैं जिनका उपयोग हम पढ़ने में करते हैं। इन वर्गो की वैज्ञानिक शब्दावली टैक्सा है। यहाँ आपको स्वीकार करना चाहिए कि ‘टैक्सा’ विभिन्न स्तर पर सही वर्गों को बता सकता है। ‘पौधे’ भी एक टैक्सा हैं। ‘गेहूँ’ भी एक टैक्सा है। इसी प्रकार ‘जंतु’, ‘स्तनधारी’, ‘कुत्ता’ ये सभी टैक्सा हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुत्ता एक स्तनधारी और स्तनधारी प्राणी है। इसलिए प्राणी, स्तनधारी तथा कुत्ता विभिन्न स्तरों पर टैक्सा को बताता है।

इसलिए, गुणों के आधार पर सभी जीवों को विभिन्न टैक्सा में वर्गीकृत कर सकते हैं। गुण जैसे प्रकार, रचना, कोशिका की रचना, विकासीय प्रक्रम तथा जीव की पारिस्थितिक सूचनाएं आवश्यक हैं और ये आधुनिक वर्गीकरण अध्ययन के आधार हैं। इसलिए, विशेषीकरण, पहचान (अभिज्ञान), वर्गीकरण तथा नाम पद्धति आदि ऐसे प्रक्रम (प्रणाली) हैं जो वर्गिकी (वर्गीकरण विज्ञान) के आधार हैं।

वर्गिकी कोई नई नहीं है। मानव सदैव विभिन्न प्रकार के जीवों के विषय में अधिकाधिक जानने का प्रयत्न करता रहा है, विशेष रूप से उनके विषय में जो उनके लिए अधिक उपयोगी थे। आदिमानव को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं जैसे- भोजन, कपड़े तथा आश्रय के लिए नए-नए स्रोत खोजने पड़ते थे। इसलिए विभिन्न जीवों के वर्गीकरण का आधार ‘उपयोग’ पर आधारित था।

काफी समय से मानव विभिन्न प्रकार के जीवों के विषय में जानने और उनकी विविधता सहित उनके संबंध में रुचि लेता रहा है। अध्ययन की इस शाखा को वर्गीकरण पद्धति (सिस्टेमेटिक्स) कहते हैं। ‘सिटेमेटिक्स’ शब्द लैटिन शब्द ‘सिस्टेमा’ से आया है जिसका अर्थ है जीवों की नियमित व्यवस्था। लीनियस ने अपने पब्लिकेशन का टाइटल ‘सिस्टेमा नेचर’ चुना। वर्गीकरण पद्धति में पहचान, नाम पद्धति तथा वर्गीकरण को शामिल करके इसके क्षेत्र को बढ़ा दिया गया है। वर्गीकरण पद्धति में जीवों के विकासीय संबंध का भी ध्यान रखा गया है।

1.2 वर्गिकी संवर्ग

वर्गीकरण एकल सोपान प्रक्रम नहीं है; बल्कि इसमें पदानुक्रम सोपान होते हैं जिसमें प्रत्येक सोपान पद अथवा वर्ग को प्रदर्शित करता है। चूँकि संवर्ग समस्त वर्गिकी व्यवस्था है इसलिए इसे वर्गिकी संवर्ग कहते हैं और तभी सारे संवर्ग मिलकर वर्गिकी पदानुक्रम बनाते हैं। प्रत्येक संवर्ग वर्गीकरण की एक इकाई को प्रदर्शित करता है। वास्तव में, यह एक पद को दिखाता है और इसे प्रायः वर्गक (टैक्सॉन) कहते हैं।

वर्गिकी संवर्ग तथा पदानुक्रम का वर्णन एक उदाहरण द्वारा कर सकते हैं। कीट जीवों के एक वर्ग को दिखाता है जिसमें एक समान गुण जैसे तीन जोड़ी संधिपाद (टाँगें) होती हैं। इसका अर्थ है कि कीट स्वीकारणीय सुस्पष्ट जीव है जिसका वर्गीकरण किया जा सकता है, इसलिए इसे एक पद अथवा संवर्ग का दर्जा दिया गया है। क्या आप ऐसे किसी जीवों के अन्य वर्ग का नाम बता सकते हैं? स्मरण रहे कि वर्ग संवर्ग को दिखाता है। प्रत्येक पद अथवा वर्गक वास्तव में, वर्गीकरण की एक इकाई को बताता है। ये वर्गिकी वर्ग/संवर्ग सुस्पष्ट जैविक है ना कि केवल आकारिकीय समूहन।

सभी ज्ञात जीवों के वर्गिकीय अध्ययन से सामान्य संवर्ग जैसे जगत (किंगडम), संघ (फाइलम), अथवा भाग (पौधों के लिए), वर्ग (क्लास), गण (आर्डर), कुल (फैमिली), वंश (जीनस) तथा जाति (स्पीशीज) का विकास हुआ। पौधों तथा प्राणियों दोनों में स्पीशीज सबसे निचले संवर्ग में आती है। अब आप यह प्रश्न पूछ सकते हैं, कि किसी जीव को विभिन्न संवर्गो में कैसे रखते हैं ? इसके लिए मूलभूत आवश्यकता व्यष्टि अथवा उसके वर्ग के गुणों का ज्ञान होना है। यह समान प्रकार के जीवों तथा अन्य प्रकार के जीवों में समानता तथा विभिन्नता को पहचानने में सहायता करता है।

1.2.1 स्पीशीज ( जाति )

वर्गिकी अध्ययन में जीवों के वर्ग, जिसमें मौलिक समानता होती है, उसे स्पीशीज कहते हैं। हम किसी भी स्पीशज को उसमें समीपस्थ संबंधित स्पीशीज से, उनके आकारिकीय विभिन्नता के आधार पर उन्हें एक दूसरे से अलग कर सकते हैं। हम इसके लिए मैंजीफेरा इंडिका (आम) सोलेनम टयूवीरोसम (आलू) तथा पेंथरा लिओ (शेर) के उदाहरण लेते हैं। इन सभी तीनों नामों में इंडिका, टयूबीरोसम तथा लिओ जाति संकेत पद हैं। जबकि पहले शब्द मैंजीफेरा, सोलेनम, तथा पेंथरा वंश के नाम हैं और यह टैक्सा अथवा संवर्ग का भी निरूपण करते हैं। प्रत्येक वंश में एक अथवा एक से अधिक जाति संकेत पद हो सकते हैं जो विभिन्न जीवों, जिनमें आकारकीय गुण समान हों, को दिखाते

हैं। उदाहरणार्थ, पेंथरा में एक अन्य जाति संकेत पद है जिसे टिगरिस कहते हैं। सोलेनम वंश में नाइग्रिम, मेलांजेना भी आते हैं। मानव की जाति सेपियंस है, जो होमों वंश में आता है। इसलिए मानव का वैज्ञानिक नाम होमोसेपियंस है।

1.2.2 वंश ( जीनस )

वंश में संबंधित स्पीशीज का एक वर्ग आता है जिसमें स्पीशीज के गुण अन्य वंश में स्थित स्पीशीज की तुलना में समान होते हैं। हम कह सकते हैं कि वंश समीपस्थ संबंधित स्पीशीज का एक समूह है। उदाहरणार्थ आलू, टमाटर तथा बैंगन; ये दोनों अलग-अलग स्पीशीज हैं, लेकिन ये सभी सोलेनम वंश में आती हैं। शेर (पेंथरा लिओ), चीता (पेंथर पारडस) तथा (पेंथर टिगरिस) जिनमें बहुत से गुण हैं, वे सभी पेंथरा वंश में आते हैं। यह वंश दूसरे वंश फेलिस, जिसमें बिल्ली आती है, से भिन्न है।

1.2.3 कुल

अगला संवर्ग कुल है जिसमें संबंधित वंश आते हैं। वंश स्पीशीज की तुलना में कम समानता प्रदर्शित करते हैं। कुल के वर्गीकरण का आधार पौधों के कायिक तथा जनन गुण हैं। उदाहरणार्थ; पौधों में तीन विभिन्न वंश सोलेनम, पिटूनिआ तथा धतूरा को सोलेनेसी कुल में रखते हैं। जबकि प्राणी वंश पेंथरा जिसमें शेर, बाघ, चीता आते हैं को फेलिस (बिल्ली) के साथ फेलिडी कुल में रखे जाते हैं। इसी प्रकार, यदि आप बिल्ली तथा कुत्ते के लक्षण को देखो तो आपको दोनों में कुछ समानताएं तथा कुछ विभिन्नताएं दिखाई पड़ेंगी। उन्हें क्रमशः दो विभिन्न कुलों कैनीडी तथा फेलिडी में रखा गया है।

1.2.4 गण ( आर्डर )

आपने पहले देखा है कि संवर्ग जैसे स्पीशीज, वंश तथा कुल समान तीनों लक्षणों पर आधारित है। प्रायः गण तथा अन्य उच्चतर वर्गिकी संवर्ग की पहचान लक्षणों के समूहन के आधार पर करते हैं। गण में उच्चतर वर्ग होने के कारण कुलों के समूह होते हैं। जिनके कुछ लक्षण एक समान होते हैं। इसमें एक जैसे लक्षण कुल में शामिल विभिन्न वंश की अपेक्षा कम होते हैं। पादप कुल जैसे कोनवोलव्युलेसी, सोलेनेसी को पॉलिसोनिएलस गण में रखा गया है। इसका मुख्य आधार पुष्पी लक्षण है। जबकि प्राणी कारनीवोरा गण में फेलिडी तथा कैनीडी कुलों को रखा गया है।

1.2.5 वर्ग ( क्लास )

इस संवर्ग में संबंधित गण आते हैं। उदाहरणार्थ प्राइमेटा गण जिसमें बंदर, गोरिला तथा गिब्बॉन आते हैं, और कारनीवोरा गण जिसमें बाघ, बिल्ली तथा कुत्ता आते हैं, को मैमेलिया वर्ग में रखा गया है। इसके अतिरिक्त मैमेलिया वर्ग में अन्य गण भी आते हैं।

1.2.6 संघ ( फाइलम )

वर्ग जिसमें जंतु जैसे मछली, उभयचर, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारी आते हैं, अगले उच्चतर संवर्ग, जिसे संघ कहते हैं, का निर्माण करते हैं। इन सभी को एक समान गुणों

चित्र 1.1 आरोही क्रम में पदानुक्रम वर्गिकी संवर्ग

जैसे पृष्ठरज्जु (नोटोकॉर्ड) तथा पृष्ठीय खोखला तंत्रिका तंत्र के होने के आधार पर कॉर्डेटा संघ में रखा गया है। पौधों में इन वर्गो, जिसमें कुछ ही एक समान लक्षण होते हैं, को उच्चतर संवर्ग भाग (डिविजन) में रखा गया है।

1.2.7 जगत ( किंगडम )

जंतु के वर्गिकी तंत्र में विभिन्न संघों के सभी प्राणियों को उच्चतम संवर्ग जगत में रखा गया है। जबकि पादप जगत में विभिन्न भाग (डिविजन) के सभी पौधों को रखा गया है। विभिन्न संघों के सभी प्राणियों को एक अलग जगत एनिमेलिया में रखा गया है जिससे कि उन्हें पौधों से अलग किया जा सके। पौधों को प्लांटी जगत में रखा गया है। भविष्य में हम इन दो वर्गो को जंतु तथा पादप जगत कहेंगे।

इनमें स्पीशीज से लेकर जगत तक विभिन्न वर्गिकी संवर्ग को आरोही क्रम में दिखाया गया है। ये संवर्ग हैं। यद्यपि वर्गिकी विज्ञानियों ने इस पदानुक्रम में उपसंवर्ग भी बताए हैं। इसमें विभिन्न टैक्सा का उचित वैज्ञानिक स्थान देने में सुविधा होती है।

चित्र 1.1 में पदानुक्रम को देखो। क्या आप इस व्यवस्था के आधार का स्मरण कर सकते हो ? उदाहरण के लिए जैसे-जैसे हम स्पीशीज से जगत की ओर ऊपर जाते हैं; वैसे ही समान गुणों में कमी आती जाती है। सबसे नीचे जो टैक्सा होगा उसके सदस्यों में सबसे अधिक समान गुण होंगे। जैसे-जैसे उच्चतर संवर्ग की ओर जाते हैं, उसी स्तर पर अन्य टैक्सा के संबंध निर्धारित करने अधिक कठिन हो जाते हैं। इसलिए वर्गीकरण की समस्या और भी जटिल हो जाती है।

तालिका 1.1 में कुछ सामान्य जीवों जैसे घरेलू मक्खी, मानव, आम तथा गेहूँ के विभिन्न वर्गिकी संवर्गों को दिखाया गया है।

तालिका 1.1 वर्गिकी संवर्ग सहित कुछ जीव

सामान्य
नाम
जैविक
नाम
वंश कुल गण वर्ग संघ $/$ भाग
मानव होमो सेपियन्स होमो होमोनिडी प्राइमेट मेमेलिया कॉरडेटा
घरेलू मक्खी मस्का डोमस्टिका मस्का म्यूसीडी डिप्टेरा इंसेंक्टा आर्थ्रोपोडा
आम मेंजीफेरा इंडिका मेंजीफेरा एनाकरडिएसी सेपिन्डेल्स डाइकोटीलिडनी एंजियोस्पर्मी
गेहूँ ट्रीटीकम
एइस्टीवम
ट्रीटीकम पोएसी पोएलस् मोनोकोटीलिडनी एंजियोस्पर्मी

सारांश

जीव जगत में प्रचुर मात्रा में विविधताएं दिखाई पड़ती हैं। असंख्य पादप तथा प्राणियों की पहचान तथा उनका वर्णन किया गया है; परंतु अब भी इनकी बहुत बड़ी संख्या अज्ञात है। जीवों के एक विशाल परिसर को आकार, रंग, आवास, शरीर क्रियात्मक तथा आकारिकीय लक्षणों के कारण हमें जीवों की व्याख्या करने के लिए बाधित होना पड़ता है। जीवों की विविधता तथा इनकी किस्मों के अध्ययन को सुसाध्य एवं सरल बनाने के लिए जीव विज्ञानियों ने कुछ नियमों तथा सिद्धांतों का प्रतिपादन किया, जिससे जीवों की पहचान, उनका नाम पद्धति तथा वर्गीकरण संभव हो सकें। ज्ञान की इस शाखा को वर्गिकी का नाम दिया गया है। पादपों तथा प्राणियों की विभिन्न स्पीशीज का वर्गिकी अध्ययन कृषि वानिकी और हमारे जैव-संसाधन में भिन्नता के सामान्य ज्ञान में लाभदायक सिद्ध हुए। वर्गिकी के मूलभूत आधार जैसे जीवों की पहचान, उनका नामकरण, तथा वर्गीकरण विश्वव्यापी रूप से अंतर्राष्ट्रीय कोड के अंतर्गत विकसित किया गया है। समरूपता तथा विभिन्नताओं को आधार मानकर प्रत्येक जीव को पहचाना गया है तथा उसे द्विपद नाम दिया गया। सही वैज्ञानिक तंत्र के अनुसार द्विपद नाम पद्धति, जीव वैज्ञानिक नाम जो दो शब्दों से मिलकर बना होता है, दिया जा सकता है। जीव वर्गीकरण तंत्र में अपने स्थान को प्रदर्शित करता है। बहुत से वर्ग/पद होते हैं जिन्हें प्राय: वर्गिकी संवर्ग अथवा टैक्सा कहते हैं। यह सभी वर्ग वर्गिकी पदानुक्रम बनाते हैं।



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