कोऑर्डिनेशन संयोजन योजना 09

प्रश्न:

जैविक कोपर सल्फेट विलयन (नीला रंग) किसे देता है: (i) जलीय कालियम फ्लोराइड के साथ हरी परिणामसाधारी शोध करेगा और (ii) जलीय पोटेशियम क्लोराइड के साथ चमकदार हरी विलय करेगा। इन प्रयोगात्मक परिणामों को समझाएं।

उत्तर:

(i) जब जलीय कोपर सल्फेट विलयन को जलीय कालियम फ्लोराइड के साथ मिश्रित किया जाता है, तो एक हरी अवकंटि बन जाता है। इसका कारण यह है कि कॉपर सल्फेट विलयन में कॉपर आयन कालीयम फ्लोराइड रासायनिक के साथ योगिता करते हैं और हारे अपघट स्पष्ट-क्रियात्मक में अस्थायी होते हैं।

(ii) जब जलीय कोपर सल्फेट विलयन को जलीय पोटेशियम क्लोराइड के साथ मिश्रित किया जाता है, तो एक चमकदार हरी विलय बन जाती है। इसका कारण यह है कि कॉपर सल्फेट विलयन में कॉपर आयन क्लोराइड आयन के साथ योगिता करते हैं और पानी में घुलनशील होते हैं और एक चमकदार हरी विलय बनाते हैं।

प्रश्न:

कॉपर सल्फेट के एक जलीय विलयन के एक जलीय समाधान में जब ज्यादा मात्रा में नीचे कालियम साइनाइड जोड़ दिया जाता है, तो कौन सी समन्वय सत्ता बनाई जाती है? कृपया बताएं कि कोपर सल्फाइड के सफेद निचोड़ क्यों प्राप्त नहीं होता है जब H2S(g) को इस समाधान से गुजारा जाता है?

उत्तर:

उत्तर: जब जलीय कोपर सल्फेट विलयन के एक जलीय समाधान में जब अधिक से अधिक कालियम साइनाइड जोड़ दिया जाता है, तो एक कालियम कॉपराइड का समन्वय सत्ता बनता है। इसका कारण यह है कि CN- आयन एक मजबूत योगिता होता है और कॉपर(I) आयन के साथ एक मजबूत समन्वय संबंध बना सकता है।

H2S(g) को इस समाधान से गुजारे जाने पर कॉपर सल्फाइड का कोई निचोड़ नहीं मिलता है क्योंकि H2S(g) पहले CN- योगियों के साथ प्रतिक्रिया करता है, हाइड्रोजन साइनाइड (HCN) और गंधक बनाकर, कॉपर(I) आयन के साथ प्रतिक्रिया करके कॉपर सल्फाइड नहीं बनाता।

प्रश्न:

IUPAC मानकों का उपयोग करके निम्नलिखित के लिए सूत्र लिखें: (i) टेट्राहायड्रोक्सिडोज़िंकेट(II) (ii) पोटैशियम टेट्राक्लोरिडोपलाडेट(II) (iii) डाइयमिनेडिक्लोरिडोप्लेटिनम(II) (iv) पोटेशियम टेट्रासायनिदोनिकलिएट(II) (v) पेंटामिननाइट्रिटो-ओ-कोबाल्ट(III) (vi) हेक्सामिन्नेकोबाल्ट(III) सल्फेट (vii) पोटैशियम ट्राइ(ऑक्सलेटो)क्रोमेट(III) (viii) हेक्सामिन्नेप्लेटिनम(IV) (ix) टेत्राब्रोमाइडोकॉपरेट(II) (x) पेंटामिननाइट्रिटो-एन-कोबाल्ट(III)

उत्तर:

(i) Zn(OH)4 (ii) K2PdCl4 (iii) Pt(NH3)2Cl2 (iv) K4[Ni(CN)4] (v) [Co(NO2)5(NH3)5]O (vi) [Co(NH3)6]SO4 (vii) K3[Cr(C2O4)3] (viii) [Pt(NH3)6]Cl4 (ix) CuBr4 (x) [Co(NO2)5(NH3)5]N

प्रश्न:

Werners postulates के माध्यम से समन्वय समाधानों में बांधन को कैसे समझाएं।

उत्तर:

  1. सबसे पहले, Werners postulates क्या हैं यह समझाएं। वर्नर द्वारा 1893 में प्रस्तावित नियम सेट हैं जो समन्वय समाधानों की ज्यामिति को समझाते हैं। ये नियम कहते हैं कि केंद्रीय अणु की समन्वय संख्या उसके साथ जुड़े हुए योगियों की संख्या के बराबर होती है, और योगियों को अष्टाकोणीय, चतुर्भुजीय या वर्गाकाररूप से व्यवस्थित किया जाता है।

२. अगले, समन्वय संयोजन यौगों में बांध में वर्नर के पोस्ट्यूल कैसे उपयोग होसकते हैं का व्याख्यान करें। समन्वय संयोजन उत्पन्न होते हैं जब एक केंद्रीय धातु अणु के द्वारा आर्य तत्वों द्वारा घेरे जाते हैं। आर्य आमतौर पर केंद्रीय धातु के साथ समन्वय सहयोगी वनस्पतीय पदार्थ या अवधारण जिन्हें कोऑर्डनेट सन्निदर्भ संयमी बंध बना सकते हैं। केंद्रीय धातु के लगभग कांटे लगे होने वाले आर्यों की संख्या समन्वय संख्या निर्धारित करती है, और वर्नर के पोस्ट्यूल समन्वय संयोजन की ज्यामिति को समझाने के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं। पोस्ट्यूल्स यह कहते हैं कि केंद्रीय धातु की समन्वय संख्या उसे बांधी आर्यों की संख्या के बराबर होती है, और वह आर्य अक्टाहेद्रल, टेट्राहेद्रल या वर्गीय नियत्रित ज्यामिति में व्यवस्थित होते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि कुछ समन्वय संयोजन एक विशेष आकार या ज्यामिति होती हैं।

सवाल:

निम्नलिखित समन्वय तत्वों में कितने ज्यामितिक अनुपात हो सकते हैं? (ई) [Cr(C2​O4​)3]3- (घ) [Co(NH3)3Cl3]

उत्तर:

(ई) [Cr(C2​O4​)3]3-

[Cr(C2​O4​)3]3- में कोई ज्यामितिक अनुपात संभव नहीं है क्योंकि आर्यों (C2​O4​) सभी एक ही हैं और केंद्रीय धातु (Cr) से एक ही तरीके से बंधे हैं।

(घ) [Co(NH3)3Cl3]

[Co(NH3)3Cl3] में ६ ज्यामितिक अनुपात संभव हैं। यह इसलिए है क्योंकि आर्य (NH3 और Cl3) अलग-अलग हैं और इन्हें केंद्रीय धातु (Co) से अलग-अलग तरीके से बांधा जा सकता है।

सवाल:

निम्नलिखित में से, सबसे स्थिर यौग कौन है? (ई) [Fe(H2O)6]3+ (घ) [Fe(NH3)6]3+ (श्री) [Fe(C2​O4​)3]3- (छ) [FeCl6​]3-

उत्तर:

चरण 1: प्रश्न को समझें।

प्रश्न यह पूछ रहा है कि दिए गए यौगों में से कौन सबसे स्थिर है।

चरण 2: यौगों का विश्लेषण करें।

(ई) [Fe(H2O)6]3+: इस यौग में Fe3+ आयन को छः पानी के मोलेक्यूलों ने घेरा हुआ है।

(घ) [Fe(NH3)6]3+: इस यौग में Fe3+ आयन को छः अमोनिया के मोलेक्यूलों ने घेरा हुआ है।

(श्री) [Fe(C2​O4​)3]3-: इस यौग में Fe3+ आयन को तीन आक्सालेट के मोलेक्यूलों ने घेरा हुआ है।

(छ) [FeCl6​]3-: इस यौग में Fe3+ आयन को छः क्लोराइड आयों ने घेरा हुआ है।

चरण 3: सबसे स्थिर यौग निर्धारित करें।

सबसे स्थिर यौग [Fe(NH3)6]3+ है क्योंकि अमोनिया मोलेक्यूलें मजबूत क्षेत्र लिगन्ड हैं, जो मतलब है कि वे अन्य यौगों से अधिक फ़सला देने में कर्शनी हो सकती हैं।

सवाल:

[Pt(NH3)(Br)(Cl)(py)] के सभी ज्यामितिक विशेषज्ञ लिखें और इनमें से कितने दिखाई देंगे?

उत्तर:

१. [Pt(NH3)(Br)(Cl)(py)] के ज्यामितिक विशेषज्ञ हैं:

अ. सिस-[Pt(NH3)(Br)(Cl)(py)] ब. ट्रांस-[Pt(NH3)(Br)(Cl)(py)]

  1. This ring-like structure, known as a chelate, is formed when the ligand binds to the metal ion at multiple sites, creating a more stable and stronger bond compared to when the ligand binds at only one site.

  2. The chelate effect increases the stability of the complex, as the metal-ligand bonds are typically stronger in chelates compared to complexes with non-chelating ligands.

  3. An example of the chelate effect is the formation of ethylenediaminetetraacetate (EDTA) complexes with metal ions. EDTA is a chelating ligand that can bind to metal ions through its amino and carboxylic acid groups.

  4. When EDTA forms a chelate complex with a metal ion, such as calcium or magnesium, the resulting complex is more stable and has a higher coordination number compared to complexes formed with non-chelating ligands.

  5. This increased stability is due to the chelating ability of EDTA, which allows it to bind to the metal ion at multiple sites, forming a ring-like structure that enhances the strength and stability of the metal-ligand bonds.

Overall, the chelate effect plays a significant role in various chemical and biological processes, including metal ion transport, catalysis, and metal detoxification in living organisms.

२. शेलेट प्रभाव का एक उदाहरण EDTA के साथ होता है, एक जटिल मोलेक्यूल जो कैल्शियम, मैग्नीशियम, लोहा और जस्ता जैसे धातु आयनों से बंधता है। EDTA को सामान्यतया सफाई और औद्योगिक प्रक्रियाओं में एक शेलेटिंग एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है।

सवाल:

निम्नलिखित सम्बन्धों में केंद्रीय धातु आयन का ऑक्सीकरण राशि, डी-मांगलिक कब्ज़ीकरण और समन्वयांकन संख्या दें: (i) K3[Co(C2O4)]3 (ii) cis−[CrCl2(en)2]Cl (iii) (NH4)2[CoF4] (iv) [Mn(H2O)6]SO4

उत्तर:

(i) ऑक्सीकरण राशि: +3, डी-मांगलिक कब्ज़ीरता: 5, समन्वयांकन संख्या: 6

(ii) ऑक्सीकरण राशि: +3, डी-मांगलिक कब्ज़ीरता: 6, समन्वयांकन संख्या: 4

(iii) ऑक्सीकरण राशि: +2, डी-मांगलिक कब्ज़ीरता: 6, समन्वयांकन संख्या: 4

(iv) ऑक्सीकरण राशि: +2, डी-मांगलिक कब्ज़ीरता: 5, समन्वयांकन संख्या: 6

सवाल:

निम्नलिखित कम्प्लेक्सों के सभी आइसोमर (ज्योमेट्रिक और ऑप्टिकल) खींचें: (i) [CoCl2(en)2]+ (ii) [Co(NH3)Cl(en)2]2+ (iii) [Co(NH3)2Cl2(en)]+

उत्तर:

(i) [CoCl2(en)2]+

ज्योमेट्रिक आइसोमर:

  1. cis-[CoCl2(en)2]+
  2. trans-[CoCl2(en)2]+

ऑप्टिकल आइसोमर:

  1. [CoCl2(en)2]+ (R)-फॉर्म
  2. [CoCl2(en)2]+ (S)-फॉर्म

(ii) [Co(NH3)Cl(en)2]2+

ज्योमेट्रिक आइसोमर:

  1. cis-[Co(NH3)Cl(en)2]2+
  2. trans-[Co(NH3)Cl(en)2]2+

ऑप्टिकल आइसोमर:

  1. [Co(NH3)Cl(en)2]2+ (R)-फॉर्म
  2. [Co(NH3)Cl(en)2]2+ (S)-फॉर्म

(iii) [Co(NH3)2​Cl2(en)]+

ज्योमेट्रिक आइसोमर:

  1. cis-[Co(NH3)2​Cl2(en)]+
  2. trans-[Co(NH3)2​Cl2(en)]+

ऑप्टिकल आइसोमर:

  1. [Co(NH3)2​Cl2(en)]+ (R)-फॉर्म
  2. [Co(NH3)2​Cl2(en)]+ (S)-फॉर्म

सवाल:

प्रत्येक सम्बन्ध के लिए IUPAC नाम दर्ज करें और ऑक्सीकरण राशि, इलेक्ट्रॉनिक कॉन्फ़िगरेशन और समन्वयांकन संख्या दें। साथ ही कम्प्लेक्स की स्टीरियोकेमिस्ट्री और चुंबकीय क्षेत्र भी दें: (i) K[Cr(H2O)2​(C2​O4​)2​].3H2O (ii) [Co(NH33)5Cl-]Cl2 (iii) [CrCl3(py)3] (iv) Cs[FeCl4] (v) K4​[Mn(CN)6]

उत्तर:

(i) पोटैशियम डाईक्रोमेट डाइहाइड्रेट, ऑक्सीकरण राशि: +6, इलेक्ट्रॉनिक कॉन्फ़िगरेशन: [Ar] 3d३ 4s0, समन्वयांकन संख्या: 6, स्टीरियोकेमिस्ट्री: ऑक्टाहेड्रल, चुंबकीय क्षेत्र: 0

उत्तर:

  1. क्रिस्टल फ़ील्ड स्प्लिटिंग ऊर्जा (Δ0) एक समन्वयन इकाई में डी ऑर्बिटल की ऊर्जा स्तरों के बीच की ऊर्जा अंतर है जब इसे एक बाह्य विद्युत क्षेत्र की गणना में आविष्कारित किया जाता है।

  2. Δ0 की मात्रा समन्वयन इकाई में डी ऑर्बिटल की वास्तविक व्यवस्था निर्धारित करती है। Δ0 की अधिकतम मात्रा डी ऑर्बिटल को दो समूहों में उच्चतर पर और निम्नतर पर विभाजित करेगी, जबकि Δ0 की कम मात्रा डी ऑर्बिटल को अधिक समूहों में विभाजित करेगी। डी ऑर्बिटल की वास्तविक व्यवस्था Δ0 की मात्रा और मध्यम में लिगैंड्स की व्यवस्था पर निर्भर करेगी।

प्रश्न: (आ)क्रिस्टल फ़ील्ड स्प्लिटिंग ऊर्जा क्या है? Δ0​ की मात्रा डी ऑर्बिटल की वास्तविक व्यवस्था का निर्धारण कैसे करती है? (ब) बायोलॉजिकल प्रणालियों में समन्वयन यौगों की भूमिका पर चर्चा करें। (छ) औषधीय रसायन विज्ञान में थोड़ी सी चर्चा करें। (जी) विश्लेषणात्मक रसायन विज्ञान (अनुश्लेषण) में समन्वयन यौगों की भूमिका पर चर्चा करें (पी) धातुओं के निष्कर्षण / खाद्युत में मेटलूर्जी में समन्वयन यौगों की भूमिका की चर्चा करें।

उत्तर: (आ) क्रिस्टल फ़ील्ड स्प्लिटिंग ऊर्जा (Δ0) एक बाह्य विद्युत क्षेत्र के संपर्क में रहते हुए एक समन्वयन इकाई में डी ऑर्बिटल के ऊर्जा स्तरों के बीच की ऊर्जा अंतर है।

(ब) बायोलॉजिकल प्रणालियों में समन्वयन यौगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उदाहरण के लिए, हीमोग्लोबिन, जो रक्त में ऑक्सीजन ले जाने के लिए जिम्मेदार प्रोटीन है, में एक समन्वयन यौग होता है जिसे हीम (heme) कहा जाता है, जो लोहे को शामिल करता है। हीम का कार्य होता है ऑक्सीजन मोलेक्यूलों को बांधना, इसकी वजह से वे शरीर में ले जाए जा सकते हैं।

(छ) औषधीय रसायन विज्ञान में समन्वयन यौगों का भी उपयोग होता है। उदाहरण के लिए, कुछ समन्वयन यौग दवाएँ के रूप में उपयोग होते हैं, जैसे कैंसर के इलाज के लिए उपयोग होने वाले प्लैटिन आधारित कीमोथेरेपी दवाएँ।

(जी) (एनालिटिकल रसायन विज्ञान में) विश्लेषणात्मक रसायन विज्ञान में भी समन्वयन यौगों का उपयोग होता है। उदाहरण के लिए, इस्पेक्ट्रोस्कोपिक तकनीकों में उपयोग होते हैं, जैसे अविरोधक तकनीक और परमाणु चुंबकीय आवेग (एनएमआर) तकनीक, अज्ञात यौगों की पहचान और विशेषताओं की व्याख्या करने के लिए।

(पी) धातुओं के निष्कर्षण / खाद्युत में मेटलूर्जी में समन्वयन यौगों की भूमिका पर चर्चा करें।

चौथा प्रश्न: कुछ उदाहरण देने के बाद विवरण धातुओं की निकासी और धातुशास्त्र में समीकरण यौग चिकित्सा में समीकरण धातुओं की भूमिका।]];

उत्तर: चौथी पंक्ति: अक्षर और उत्तेजना सहित समीकरण यौगों में धातुओं की निकासी और धातुशास्त्र तथा चिकित्सा में धातुओं की भूमिका के संबंध में एक मापदंड है।

(i) [Cr(H2O)6]3+ has 3 unpaired electrons, therefore it has the highest magnetic moment value amongst the given ions.

स्टेप 4: क्रोमियम के पास तीन आयनों में सर्वोच्च चुंबकीय क्षण मान होता है, क्योंकि इसके पास अपेयर्ड इलेक्ट्रॉन्स (5) की सबसे बड़ी संख्या होती है।

प्रश्न: निम्नलिखित में से प्रत्येक के दो उदाहरणों के साथ निम्नलिखित को व्याख्या करें: समन्वय सत्ता, लिगंड, समन्वय संख्या, समन्वय पॉलीहेड्रन, होमोलेप्टिक और हेटेरोलेप्टिक

उत्तर: समन्वय सत्ता: समन्वय सत्ता एक प्रजाति होती है जब एक केंद्रीय परमाणु या आयन को एक समूह के लिगंडों द्वारा घिरा हुआ होता है। उदाहरणों में [Fe(CN)6]4- (हेक्सासाइनोफेरेट(III)) और [Co(NH3)6]3+ (हेक्सामिनकोबाल्ट(III)) शामिल होते हैं।

लिगंड: एक लिगंड एक परमाणु या अणुलेख को एक केंद्रीय परमाणु या आयन से जोड़ने के लिए एक अणु या मोलेक्यूल होता है ताकि एक समन्वय सत्ता बनाए। उदाहरणों में CN- (सायनाइड) और NH3 (अमोनिया) शामिल होते हैं।

समन्वय संख्या: एक केंद्रीय परमाणु या आयन की समन्वय संख्या उससे जुड़े लिगंडों की संख्या होती है। उदाहरणों में [Fe(CN)6]4- (हेक्सासाइनोफेरेट(III)) की समन्वय संख्या 6 होती है, और [Co(NH3)6]3+ (हेक्सामिनकोबाल्ट(III)) की समन्वय संख्या 6 होती है।

समन्वय पॉलीहेड्रन: समन्वय पॉलीहेड्रन एक त्रिआयामी ढांचा होता है जो एक केंद्रीय परमाणु या आयन को एक समूह के लिगंडों द्वारा घिरा हुआ होता है। उदाहरणों में हेक्सागोन (छह लिगंडों द्वारा बनाया गया) और टेट्रागोन (चार लिगंडों द्वारा बनाया गया) शामिल होते हैं।

होमोलेप्टिक: होमोलेप्टिक यौगिक एक ऐसा होता है जिसमें केंद्रीय परमाणु या आयन से जुड़े सभी लिगंड एक जैसे होते हैं। उदाहरणों में [Fe(CN)6]4- (हेक्सासाइनोफेरेट(III)) और [Co(NH3)6]3+ (हेक्सामिनकोबाल्ट(III)) शामिल होते हैं।

हेटेरोलेप्टिक: हेटेरोलेप्टिक यौगिक एक ऐसा होता है जिसमें केंद्रीय परमाणु या आयन से जुड़े लिगंड अलग-अलग होते हैं। उदाहरणों में [Fe(CO)4]2- (टेट्राकार्बोनिलफेरेट(II)) और [NiCl2(NH3)4] (टेट्रामिनक्लोरोनाइट्रोजिलनिकल(II)) शामिल होते हैं।

प्रश्न: छिद्रित हल्के में [Fe(CN)6]4- और [Fe(H2O)6]2+ विभिन्न रंगों के होते हैं। क्यों?

उत्तर:

  1. दो आयनों, [Fe(CN)6]4- और [Fe(H2O)6]2+, अलग-अलग तत्वों, लोहे और पानी, से मिलकर बने होते हैं।

  2. दो आयनों के अलग-अलग संरचनाएं होती हैं, [Fe(CN)6]4- आइयन में षट्कोणीय संरचना होती है और [Fe(H2O)6]2+ आइयन में अष्टकोणीय संरचना होती है।

  3. दो आयनों के अलग-अलग चार्ज घनत्व होती है, [Fe(CN)6]4- आइयन में [Fe(H2O)6]2+ आइयन की तुलना में अधिक चार्ज घनत्व होती है।

  4. दो आयनों का प्रकाश के साथ भिन्न प्रभाव होता है, [Fe(CN)6]4- आइयन प्रतीक्षित दिखाई देता है और [Fe(H2O)6]2+ आइयन प्रतीक्षाधिक्‍त दिखाई देता है।

Answer: Various types of isomerism possible for coordination compounds are as follows:

  1. Geometrical Isomerism: In this type of isomerism, the arrangement of ligands around the central metal ion differs. An example of geometrical isomerism is [Pt(NH3)2Cl2]. It exists in two forms, cis and trans isomers.

  2. Stereoisomerism: This type of isomerism occurs when the ligands can be arranged differently in three-dimensional space, resulting in different spatial arrangements. An example of stereoisomerism is [Co(NH3)3Cl3]. It exists in two forms, fac and mer isomers.

  3. Linkage Isomerism: In this type of isomerism, the ligands can bond to the central metal ion through different atoms. An example of linkage isomerism is [Pt(NH3)2(NO2)2]. It exists in two forms, nitrito and nitro isomers.

  4. Coordination Isomerism: This type of isomerism occurs when the ligands exchange places with the counter ions in a complex. An example of coordination isomerism is [Co(NH3)6(SCN)3] and [Co(SCN)6(NH3)3].

  5. Ionization Isomerism: In this type of isomerism, the ligand and counter ion of the complex interchange places. An example of ionization isomerism is [Cr(CN)6]3- and [Cr(NH3)6]3+.

These are the various types of isomerism possible in coordination compounds, along with examples of each.

  1. संरचनात्मक इजोमेरशः: संरचनात्मक इजोमेरशः होता है जब समान अणुओं को अलग-अलग व्यवस्थाओं में जोड़ा जाता है। समन्वयनयुक्त यौगिकों में संरचनात्मक इजोमेरशः की एक उदाहरण है सिस-डाक्वाबिस(इथाइलीनडाइएमीन)कोबाल्ट(III) क्लोराइड और ट्रांस-डाक्वाबिस(इथाइलीनडाइएमीन)कोबाल्ट(III) क्लोराइड।

  2. लिंकेज इजोमेरशः: लिंकेज इजोमेरशः होता है जब समान अणुओं को अलग-अलग तरीकों में जोड़ा जाता है। समन्वयनयुक्त यौगिकों में लिंकेज इजोमेरशः की एक उदाहरण है डायाक्वाबिस(इथाइलीनडाइएमीन)कोबाल्ट(III) क्लोराइड और डायाक्वाबिस(इथाइलीनडाइएमीन)कोबाल्ट(III) ब्रोमाइड।

  3. समन्वयन इजोमेरशः: समन्वयन इजोमेरशः होता है जब समान अणुओं को अलग-अलग तरीकों में और धातु आयन की समन्वयन संख्या भिन्न होती है। समन्वयनयुक्त यौगिकों में समन्वयन इजोमेरशः की एक उदाहरण है डायाकवाबिस(इथाइलीनडाइएमीन)कोबाल्ट(III) क्लोराइड और डायाक्वाडाइऑक्साइदकोबाल्ट(III) क्लोराइड।

  4. सत्रगुणित इजोमेरशः: सत्रगुणित इजोमेरशः होता है जब समान अणुओं को अलग-अलग तरीकों में और मोलेक्यूल की ज्यामिति भिन्न होती है। समन्वयनयुक्त यौगिकों में सत्रगुणित इजोमेरशः की एक उदाहरण है सिस-डाक्वाबिस(इथाइलीनडाइएमीन)कोबाल्ट(III) क्लोराइड और ट्रांस-डाक्वाबिस(इथाइलीनडाइएमीन)कोबाल्ट(III) क्लोराइड।

प्रश्न:

वैलेंस बॉन्ड सिद्धांत के आधार पर निम्नलिखित समन्वयन पदार्थों में बॉन्डिंग का स्वरूप चर्चा कीजिए: (i) [Fe(CN)6]4- (ii) [FeF6]3- (iii) [Co(C2​O4​)3]3- (iv) [CoF6]3-

उत्तर:

(i) [Fe(CN)6]4-: [Fe(CN)6]4- में बॉन्डिंग का स्वरूप एकात्मिक और आयोनिक बॉन्डिंग का संयोजन है। Fe-C और Fe-N बॉन्डों का स्वरूप संयुक्तभूत होता है और Fe-CN बॉन्ड आयोनिक होता है।

(ii) [FeF6]3-: [FeF6]3- में बॉन्डिंग का स्वरूप प्रमुख रूप से आयोनिक होता है। Fe-F बॉन्ड इलेक्ट्रोनेगेटिविटी के अंतर के कारण आयोनिक होते हैं।

(iii) [Co(C2​O4​)3]3-: [Co(C2​O4​)3]3- में बॉन्डिंग का स्वरूप एकात्मिक और आयोनिक बॉन्डिंग का संयोजन होता है। Co-C बॉन्ड संयुक्तभूत होता है और Co-O बॉन्ड आयोनिक होता है।

(iv) [CoF6]3-: [CoF6]3- में बॉन्डिंग का स्वरूप प्रमुख रूप से आयोनिक होता है। Co-F बॉन्ड इलेक्ट्रोनेगेटिविटी के अंतर के कारण आयोनिक होते हैं।



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