अध्याय 07 परियोजना कार्य के लिए सुझाव (मूल्यांकन के लिए नहीं है)

यह अध्याय कुछ छोटी-छोटी अनुसंधान परियोजनाओं के बारे में सुझाव देता है जिन पर आप कार्य कर सकते हैं। अनुसंधान के बारे में पढ़ने और उसे वास्तव में करने में बहुत अंतर होता है। किसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए व्यावहारिक प्रयास करना और सुव्यवस्थित रूप से साक्ष्य इकट्ठा करना एक अत्यंत उपयोगी अनुभव है। आशा है यह अनुभव आपका समाजशास्त्रीय अनुसंधान से जुड़ी कुछ कठिनाइयों से नहीं बल्कि इसके उत्साह से भी परिचय कराएगा। इस अध्याय को पढ़ने से पहले, कृपया 11 वीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक ‘समाजशास्त्र परिचय’ के अध्याय 5 (समाजशास्त्र - अनुसंधान पद्धतियाँ) पर पुन:दृष्टिपात करें।

यहाँ जो सुझाव दिए गए हैं उनमें उन संभावित समस्याओं को ध्यान में रखने का प्रयास किया गया है जो विभिन्न संदर्भों, परिस्थितियों या विभिन्न प्रकार के विद्यालयों में ऐसे शोध कार्यों के दौरान उपस्थित हो सकती हैं। इनका अभिप्राय आपके मन में शोध के बारे में एक उत्साह पैदा करना है। एक “वास्तविक" अनुसंधान परियोजना निश्चित रूप से अधिक विस्तृत होगी और उसे संपन्न करने के लिए छात्रों को विद्यालय में उपलब्ध समय से कहीं अधिक समय देने एवं प्रयत्न करने की आवश्यकता होगी। यह सिर्फ़ सुझाव मात्र है-आप अपने अध्यापकों के साथ विचार-विमर्श कर अन्य शोध परियोजनाएँ तैयार कर उन पर कार्य करने के लिए स्वतंत्र हैं।

प्रत्येक अनुसंधान प्रश्न यानी शोध विषय पर कार्य करने के लिए एक उपयुक्त अनुसंधान पद्धति की आवश्यकता होती है। एक प्रश्न का उत्तर अक्सर एक से अधिक पद्धतियों से दिया जा सकता है लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि एक अनुसंधान पद्धति सभी प्रश्नों के लिए उपयुक्त हो। दूसरे शब्दों में, अधिकांश शोध प्रश्नों के लिए, शोधकर्ता के पास संभावित पद्धतियों को चुनने की स्वतंत्रता होती है, लेकिन यह चुनाव आमतौर पर सीमित होता है। शोध प्रश्न का सावधानीपूर्वक निर्धारण करने के बाद, शोधकर्ता का सबसे पहला काम उपयुक्त शोध प्रणाली का चयन करना होता है। यह चयन तकनीकी कसौटियों (यानी प्रश्न और पद्धति के बीच कितनी संगतता है) के अनुसार ही नहीं बल्कि व्यावहारिकता को भी ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। व्यावहारिकता में अनेक बातें शामिल हो सकती हैं जैसे, अनुसंधान के लिए उपलब्ध समय की मात्रा, लोगों एवं सामग्री दोनों के रूप में उपलब्ध संसाधन; वे परिस्थितियाँ जिनमें शोध किया जाना है, इत्यादि।

उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आप ‘सह-शिक्षा विद्यालयों’ और ‘केवल बालकों’ या ‘केवल बालिकाओं’ वाले विद्यालयों के बीच तुलना करना चाहते हैं। दरअसल, यह एक व्यापक विषय है। इसलिए सर्वप्रथम आप एक विशेष प्रश्न तैयार करें जिसका आप उत्तर देना चाहते हों। उदाहरण के लिए, क्या सह-शिक्षा विद्यालयों के छात्र केवल बालकों/बालिकाओं वाले विद्यालयों के छात्रों की अपेक्षा पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन करते हैं? क्या केवल बालकों वाले विद्यालय खेल-कूद में सह-शिक्षा विद्यालयों से हमेशा बेहतर होते हैं? क्या केवल बालकों या बालिकाओं वाले विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे सह-शिक्षा विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों की अपेक्षा अधिक खुश रहते हैं; अथवा इसी तरह के अन्य प्रश्न। एक निर्धारित प्रश्न चुन लेने के बाद अगला कदम होता है उपयुक्त पद्धति का चयन करना।

उदाहरणार्थ, अंतिम प्रश्न यानी क्या केवल बालकों या बालिकाओं वाले विद्यालयों के बच्चे अधिक खुश रहते हैं? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आप विभिन्न प्रकार के विद्यालयों के छात्रों से साक्षात्कार की पद्धति चुन सकते हैं। साक्षात्कार में आप छात्रों से सीधे यह पूछ सकते हैं कि वे अपने विद्यालय के

परियोजना कार्य के लिए सुझाव

बारे में कैसा महसूस करते हैं। फिर आप इस प्रकार इकटे किए गए उत्तरों का विश्लेषण यह देखने के लिए कर सकते हैं कि क्या विभिन्न प्रकार के विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों के उत्तरों में क्या कोई भिन्नता है? शोध प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के लिए एक विकल्प के रूप में आप एक दूसरी पद्धति भी अपना सकते हैं जैसे, प्रत्यक्ष प्रेक्षण। इसका अर्थ यह हुआ कि आपको सह-शिक्षा और बालक/बालिका वाले विद्यालयों में कुछ समय यह अवलोकन करने में बिताना होगा कि वहाँ के छात्र कैसा व्यवहार करते हैं। आपको कुछ कसौटियाँ निर्धारित करनी होंगी जिनके आधार पर आप यह कह सकेंगे कि छात्र अपने विद्यालय से कितना खुश हैं। इस प्रकार, पर्याप्त समय तक विभिन्न प्रकार के स्कूलों का अवलोकन करने के बाद आप अपने प्रश्न का ठीक उत्तर देने की आशा कर सकेंगे। आप एक तीसरी पद्धति, सर्वेक्षण प्रणाली, भी अपना सकते हैं। इसके लिए आपको छात्रों से उनके विद्यालय के बारे में उनके विचार जानने के लिए एक प्रश्नावली तैयार करनी होगी। इसके बाद आप अपनी प्रश्नावली प्रत्येक प्रकार के विद्यालय में समान संख्या में छात्रों को वितरित कर देंगे। तत्पश्चात् आप छात्रों से भरी हुई प्रश्नावलियों को इकठा करके उनके परिणामों का विश्लेषण करेंगे।

यहाँ कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों के उदाहरण दिए गए हैं जो इस तरह का अनुसंधान करते समय शायद आपके समक्ष आ सकती हैं। मान लीजिए कि आप सर्वेक्षण करने का निर्णय लेते हैं। आपको सर्वप्रथम प्रश्नावली की बहुत सारी प्रतियाँ तैयार करनी होंगी। इस कार्य में समय, प्रयत्न और पैसा लगता है। इसके बाद, आपको छात्रों को उनकी कक्षाओं में प्रश्नावली वितरित करने के लिए अध्यापकों से अनुमति भी लेनी होगी। हो सकता है कि आपको पहली बार में यह अनुमति न मिले या यह कह दिया जाए कि बाद में आना। प्रश्नावली वितरण के बाद, यह स्थिति आ सकती है कि जिन छात्रों को आपने प्रश्नावली दी थी, उनमें से बहुतों ने तो उसे भरकर लौटाने का कष्ट ही न किया हो अथवा सब प्रश्नों के उत्तर न दिए हों; इसी तरह की और भी कई समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं। तब आपको यह निर्णय लेना होगा कि ऐसी समस्याओं से कैसे निपटा जाए; क्या आधे-अधूरे उत्तर देने वाले उत्तरदाताओं के पास जाकर यह कहा जाए कि वे अपनी प्रश्नावली को पूरी तरह भरें; अथवा अपूर्ण प्रश्नावलियों को एक तरफ़ छोड़कर ठीक से भरी गई प्रश्नावलियों पर ही विचार करें; पूरे दिए गए उत्तरों के आधार पर ही अपना निर्णय ले लें; इत्यादि। शोध कार्य के दौरान आपको ऐसी व्यावहारिक समस्याओं से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।

7.1 शोध पद्धतियों की बहुलता

शायद आपको 11 वीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक समाजशास्त्र परिचय के पाँचवें अध्याय में अनुसंधान पद्धतियों पर की गई चर्चा याद होगी। आपकी याददाश्त को ताज़ा करने के लिए इस अध्याय को दुबारा पढ़ने का यह अच्छा समय है।

सर्वेक्षण प्रणाली

इस प्रणाली के अंतर्गत सामान्यतः निर्धारित प्रश्नों को अपेक्षाकृत बड़ी संख्या में लोगों से पूछा जाता है। (यह संख्या 30, 1000, 2000 या इससे भी अधिक हो सकती है, ‘बड़ी संख्या’ किसे माना जाएगा यह विषय एवं संदर्भ पर आधारित होता है।) ये प्रश्न अन्वेषक द्वारा व्यक्तिगत रूप से पूछे जा सकते हैं जहाँ

उत्तरदाता प्रश्न सुनकर उनका उत्तर देता है और अन्वेषक उन उत्तरों को लिख लेता है। अथवा, प्रश्नावली उत्तरदाताओं को सौंप दी जाती है और उत्तरदाता स्वयं उन प्रश्नावलियों को भर कर अन्वेषक को लौटा देते हैं। सर्वेक्षण प्रणाली का मुख्य लाभ यह है कि इसके अंतर्गत एक साथ काफ़ी बड़ी संख्या में लोगों के विचार जाने जा सकते हैं। इसलिए, इसके परिणाम संबंधित समूह या जनसंख्या के विचारों का सही प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रणाली की कमजोरी यह है कि इसके द्वारा जो प्रश्न पूछे जाते हैं वे पहले से ही निर्धारित होते हैं। प्रश्न पूछते वक्त इसमें कोई फेरबदल नहीं किया जा सकता। इसलिए, यदि उत्तरदाता किसी प्रश्न को ठीक से नहीं समझ पाते तो गलत या भ्रामक परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा, यदि कोई उत्तरदाता कोई दिलचस्प बात कहता है तो उसके बारे में आगे कोई नए प्रश्न नहीं पूछे जा सकते क्योंकि आपको प्रश्नावली की पूर्व-निर्धारित सीमाओं के भीतर रहना पड़ता है। इसके अलावा, प्रश्नावलियाँ एक विशेष समय पर खींची गई फ़ोटो की तरह एक निश्चित स्थिति का ही चित्र प्रस्तुत करती हैं। यह स्थिति आगे चलकर बदल भी सकती है अथवा यह भी संभव है कि पहले उसका स्वरूप आज जैसा न रहा हो, लेकिन सर्वेक्षण में इन बदली हुई स्थितियों को शामिल नहीं किया जा सकता।

साक्षात्कार

साक्षात्कार, सर्वेक्षण पद्धति से इस तरह से भिन्न होता है कि साक्षात्कार हमेशा व्यक्तिगत रूप से किया जाता है और इस पद्धति में अपेक्षाकृत काफ़ी कम लोगों (जैसे, 5,20 , या 40 आमतौर पर इससे अधिक नहीं) को शामिल किया जाता है। साक्षात्कार संरचित हो सकते हैं यानी उनमें पूर्व निर्धारित प्रश्न पूछे जाते हैं अथवा ये असंरचित होते हैं। जिनमें कुछ विषय या प्रकरण ही पूर्वनिर्धारित होते हैं और वास्तविक प्रश्न वार्तालाप के दौरान उभर कर आते हैं। साक्षात्कार अधिक या कम गहन हो सकते हैं, इस अर्थ में कि साक्षात्कार लेने वाला एक व्यक्ति का लंबेे समय (2-3 घंटे) तक साक्षात्कार ले सकता है या उनकी कहानी की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए बार-बार साक्षात्कार कर सकता है।

साक्षात्कार पद्धति का एक लाभ यह भी होता है कि साक्षात्कारों में लचीलापन होता है, यानी कि संबंधित विषयों पर विस्तार से चर्चा की जा सकती है, प्रश्नों को आवश्यकतानुसार तोड़ा-मरोड़ा या संशोधित किया जा सकता है और उत्तरदाता से उसके द्वारा दिए गए उत्तर को स्पष्ट करने के लिए भी कहा जा सकता है। साक्षात्कार पद्धति की एक कमजोरी यह है कि इसमें बहुत ज़्यादा लोगों को शामिल नहीं किया जा सकता और यह व्यक्तियों के एक चयनित समूह के विचारों को ही प्रस्तुत कर सकता है।

प्रेक्षण

प्रेक्षण पद्धति के अंतर्गत शोधकर्ता को अपने शोध कार्य के लिए निर्धारित परिस्थिति या संदर्भ में क्या-कुछ हो रहा है इस पर बारीकी से नज़र रखनी होती है और उसका अभिलेख तैयार करना होता है। यह काम ऊपर से तो बहुत आसान दिखाई देता है पर व्यावहारिक रूप से हमेशा इतना सरल नहीं होता। कौन-सी घटना शोध कार्य की दृष्टि से प्रासंगिक है और कौन-सी नहीं है इसका पूर्वनिर्णय किए बिना जो कुछ हो रहा है उस पर सावधानीपूर्वक नजजर रखनी होती है। कभी-कभी, जो घटित नहीं हो रहा है वह वास्तव में जो घटित हो रहा है उतना ही महत्त्वपूर्ण या दिलचस्प होता है। उदाहरण के लिए, यदि आपका शोधप्रश्न

परियोजना कार्य के लिए सुझाव

यह हो कि विभिन्न वर्गों के लोग कुछ विशिष्ट स्थानों (जैसे, बाग, पार्क, मैदान या अन्य सार्वजनिक स्थान) का इस्तेमाल कैसे करते हैं, तब यह जानना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है कि एक दिए गए वर्ग या समूह के लोग (उदाहरण के लिए, गरीब या मध्य वर्ग के लोग) उस जगह कभी नहीं गए हों अथवा उन्होंने उसे कभी देखा नहीं हो।

एक से अधिक पद्धतियों का सम्मिश्रण

आप एक ही शोध प्रश्न पर विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार करने के लिए पद्धतियों का सम्मिश्रण भी कर सकते हैं। वस्तुतः इस सम्मिश्रण को अपनाने के लिए अक्सर सिफ़ारिश की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि आप सामाजिक जीवन में समाचारपत्र और टेलीविज़न जैसे जनसंचार के साधनों की बदलती हुई स्थिति के बारे में शोध कर रहे हैं तो आप सर्वेक्षण और ऐतिहासिक पद्धतियों को एक साथ अपना सकते हैं। सर्वेक्षण आपको यह बता देगा कि आज क्या हो रहा है, जबकि ऐतिहासिक पद्धति से आपको यह पता चल सकेगा कि पहले पत्रिकाएँ, समाचारपत्र अथवा टेलीविज़न के कार्यक्रम कैसे होते थे।

7.2 छोटी शोध परियोजनाओं के लिए संभावित प्रकरण एवं विषय

यहाँ कुछ संभावित शोध विषयों के बारे में सुझाव दिए जा रहे हैं, ये सुझाव मात्र हैं, आप अपने अध्यापकों से परामर्श करके अन्य विषय चुन सकते हैं। स्मरण रहे कि यह विषय मात्र हैं; आपको इन विषयों पर आधारित निर्धारित प्रश्नों का चुनाव करने की आवश्कता है। यह भी याद रखें कि इनमें से अधिकांश विषयों के लिए अधिकांश प्रणालियाँ अपनाई जा सकती हैं, लेकिन आपने जिस प्रश्न विशेष को चुना है, उसके लिए अपनाई जाने वाली प्रणाली उपयुक्त होनी चाहिए। आप प्रणालियों का सम्मिश्रण भी कर सकते हैं। सुझाए गए विषय किसी विशेष क्रम में नहीं दिए गए हैं। जो विषय आपकी पाठ्यपुस्तकों से स्पष्ट या प्रत्यक्ष रूप से नहीं लिए गए हैं, उन पर विशेष बल दिया गया है क्योंकि पाठ्य सामग्री से संबंधित अपने परियोजनागत विचारों पर सोचना आपके तथा आपके अध्यापकों के लिए अधिक आसान होगा।

1. सार्वजनिक परिवहन

लोगों के जीवन में इसकी क्या भूमिका है? इसकी आवश्यकता किन्हें होती है? उन्हें इसकी आवश्यकता क्यों होती है? विभिन्न प्रकार के लोग सार्वजनिक परिवहन पर कितने निर्भर हैं? सार्वजनिक परिवहन से किस प्रकार की समस्याएँ और मुद्ेे जुड़े हैं? सार्वजनिक परिवहन के साधन या उनके रूप समय के साथ किस प्रकार बदलते रहे हैं? क्या सार्वजनिक परिवहन की उपलब्धता में अंतर आने से सामाजिक समस्याएँ पैदा होती हैं? क्या ऐसे समूह हैं जिन्हें सार्वजनिक परिवहन की आवश्यकता नहीं होती? उनकी इसके प्रति क्या सोच है? आप परिवहन के किसी एक विशेष साधन जैसे, ताँगा या रिक्शा या रेलगाड़ी को भी चुन सकते हैं और अपने कस्बे या शहर के संदर्भ में उसका इतिहास लिख सकते हैं। परिवहन के इस साधन में अब तक क्या-क्या परिवर्तन हुए हैं? इसका अन्य किन-किन साधनों के साथ तगड़ा मुकाबला रहा है?

इस मुकाबले में किसकी जीत या हार हुई? इस हार या जीत के कारण क्या थे? परिवहन के इस साधन का भविष्य कैसा होगा? क्या कोई इसकी कमी महसूस करेगा?

यदि आप दिल्ली में रहते हैं तो दिल्ली मेट्रो (रेल) के बारे में और जानने की कोशिश करें। क्या आप एक विज्ञान-कथा लिख सकते हैं कि आज से लगभग 50 साल बाद यानी 2050 या 2060 में यह मेट्रो रेलगाड़ी कैसी होगी? (याद रहे, एक अच्छी विज्ञान-कथा लिखना आसान नहीं होता! आप जो भी कल्पना करें उसके लिए कारण अवश्य दें। ये कल्पनाएँ वर्तमान वस्तुओं/स्थितियों/संबंधों से अलग होते हुए भी इनसे किसी मायने में जुड़ी भी होनी चाहिए। इसलिए आपको यह कल्पना करनी होगी कि भविष्य में सार्वजनिक परिवहन वर्तमान परिस्थितियों में से किस प्रकार विकसित होगा और आज की तुलना में, मेट्रो की भूमिका भविष्य में कैसी होगी)।

2. सामाजिक जीवन में संचार माध्यमों की भूमिका

संचार माध्यमों में जनसंचार के साधन जैसे, समाचारपत्र, टेलीविजन, फ़िल्में, इंटरनेट, इत्यादि शामिल हो सकते हैं जो कि सूचना प्रदान करते हैं और बड़ी संख्या में लोगों द्वारा देखे जाते हैं या बड़ी संख्या में लोग इनका इस्तेमाल करते हैं। इनमें वे साधन भी शामिल किए जा सकते हैं जिनका प्रयोग लोग परस्पर संपर्क के लिए करते हैं जैसे, दूरभाष, पत्र, मोबाइल फ़ोन, ई-मेल और इंटरनेट। इन क्षेत्रों में आप उदाहरणार्थ, सामाजिक जीवन में संचार माध्यमों के बदलते हुए स्थान और मुद्रित सामग्री (पुस्तकें, समाचारपत्र, पत्रिकाएँ), रेडियो, टेलीविज़न एवं अन्य प्रमुख माध्यमों में होने वाले परिवर्तनों के बारे में अन्वेषण कर सकते हैं। एक अन्य स्तर पर आप फ़िल्मों, पुस्तकों आदि के संबंध में कुछ विशेष समूहों (वर्गों, आयु समूहों और लिंगों) की पसंदों और नापसंदों के बारे में विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछ सकते हैं। नए संचार माध्यमों (जैसे, मोबाइल फ़ोन या इंटरनेट) और उनके प्रभाव के बारे में लोगों का दृष्टिकोण क्या है? लोगों के जीवन में उनका स्थान क्या है, इस बारे में हम प्रेक्षण और पूछताछ के जरिये क्या जान सकते हैं? प्रेक्षण के माध्यम से आप कही गई बातों और वास्तविक व्यवहार के बीच के अंतर (यदि कोई हो)

को जान सकते हैं। लोग जितने घंटे टेलीविजजन देखने के बारे में सोचते हैं क्या वह वास्तव में उतने ही घंटे टेलीविज़न देखते हैं या उनके विचार से कितने घंटे टेलीविज़न देखना उचित होगा, आदि)। संचार माध्यमों के बाह्य रूप में परिवर्तन हो जाने के कुछ परिणाम क्या हैं? (उदाहरण के लिए, क्या टेलीविजजन ने रेडियो और समाचारपत्रों के महत्त्व को वास्तव में कम कर दिया है अथवा प्रत्येक माध्यम का अपना अलग स्थान है?)। वे कौन से कारण हैं जिनकी वजह से लोग किसी एक या अन्य माध्यम को अधिक पसंद करते हैं?

वैकल्पिक रूप से, आप संचार माध्यमों (समाचारपत्रों, पत्रिकाओं, टेलीविजजन, आदि) की विषय-वस्तु के विश्लेषण के आधार पर चाहे जितनी परियोजनाओं पर कार्य करने की बात सोच सकते हैं और यह भी कि इन माध्यमों ने कुछ विशेष विषयों या प्रकरणों जैसे, विद्यालय औ0र विद्यालयी शिक्षा, पर्यावरण, जाति, धार्मिक संघर्षों, खेल-कूद के कार्यक्रम, स्थानीय बनाम राष्ट्रीय या क्षेत्रीय समाचार, आदि का कैसा विवेचन किया है?

3. घर-परिवार में काम आने वाले उपकरण एवं घरेलू कार्य

ऐसे घरेलू उपकरणों का मतलब है वे सभी उपकरण जो घरेलू काम में इस्तेमाल किए जाते हैं जैसे, गैस, कैरोसीन या अन्य प्रकार के स्टोव; मिक्सियाँ, विभिन्न प्रकार के खाद्य परिसाधक (फूड प्रोसेसर) और ग्राइंडर; कपड़ों पर इस्तरी करने के लिए बिजली या अन्य प्रकार की इस्तरियाँ; कपड़े धोने की मशीनें; ओवन; टोस्टर; प्रेशर कुकर, आदि। समय के साथ घरेलू काम-काज में कैसा परिवर्तन हुआ है? क्या इन उपकरणों के आ जाने से काम का स्वरूप, विशेष रूप से घर-परिवार के भीतर श्रम-विभाजन का स्वरूप बदल गया है? वे लोग कौन हैं जो इन उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं? क्या वे अधिकतर पुरुष या स्त्रियाँ, जवान या बूढ़े, वेतन-भोगी या निःशुल्क काम करने वाले लोग हैं? इन उपकरणों का प्रयोग

करने वाले उनके बारे में क्या महसूस करते हैं? क्या इन उपकरणों ने काम को वास्तव में आसान बना दिया है? क्या घर-परिवार के भीतर किए जाने वाले आयु से संबंधित कार्यों में कोई परिवर्तन आया है? (अर्थात, क्या अब जवान/बूढ़े लोगों द्वारा किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के कार्यों में, पहले की तुलना में, कोई अंतर आया है?)।

वैकल्पिक रूप से, आप केवल इस बात पर ही ध्यान केंद्रित कर सकते हैं कि घर-परिवार के भीतर घरेलू कार्यों का बँटवारा कैसे किया जाता है, कौन क्या करता है और क्या इस बारे में हाल में कोई परिवर्तन हुआ है?

###4. सार्वजनिक स्थान का उपयोग

यह शोध विषय उन सार्वजनिक स्थानों (जैसे, खुला मैदान, सड़क के किनारे की जगह या पैदल-पटरी, आवासीय बस्तियों में खाली पड़े भूखंड, सार्वजनिक कार्यालयों के बाहर की खाली जगह, आदि) के बारे में है जिनका उपयोग विभिन्न तरह से किया जाता है। उदाहरण के लिए, कुछ खाली जगहों में तो कई तरह के छोटे-छोटे काम-धंधे चलते हैं जैसे, सड़क के किनारे की खाली जगह में छिटपुट सामान बेचने वाले

खड़े होते हैं, छोटी-मोटी कामचलाऊ दुकानें होती हैं अथवा वाहन खड़े किए जाते हैं। अन्य जगहें, वैसे तो खाली दिखाई देती हैं, लेकिन समय-समय पर विभिन्न तरीकों से काम में लाई जाती है जैसे, विवाह या धार्मिक समारोहों के लिए, सार्वजनिक बैठकों के लिए, अथवा कई तरह की चीजें फेंकने के लिए…. अनेक खाली स्थानों पर बेघर गरीब लोग रहने लगते हैं और इस प्रकार वहाँ उनके घर ही बन जाते हैं। इस सामान्य विषय पर आप कुछ शोध प्रश्न तैयार करने की कोशिश करें: विभिन्न वर्गों के लोग सार्वजनिक स्थान के उपयोग के बारे में क्या महसूस करते हैं? इन वर्गों के लिए इस खाली जगह का क्या उपयोग हो सकता है? आपके पड़ोस में स्थित किसी खाली जगह का इस्तेमाल, समय के साथ, कैसे बदलता रहा है? क्या इसकी वजह से कोई लड़ाई-झगड़ा या मनमुटाव होता है? इन झगड़ों के क्या कारण हैं?

5. विभिन्न आयु वर्गों की बदलती हुई आकांक्षाएँ

क्या आपके संपूर्ण जीवन में आपकी महत्त्वाकांक्षाएँ सदा एक जैसी ही रही हैं? अधिकांश लोग विशेष रूप से छोटी उम्र में अपने लक्ष्य बदलते रहते हैं। इस शोध विषय के अंतर्गत यह पता लगाने का प्रयत्न किया जाता है कि यह परिवर्तन कौन से हैं और क्या विभिन्न समहों में इन परिवर्तनों का कोई विशेष

अनुसंधान पद्धति/तकनीक का प्रकार टीका-टिप्पणी/
सुझाव
ऐतिहासिक साक्षात्कार
परिवर्तन के इतिहास
को जानने के लिए
समाचारपत्र और
अन्य स्रोत
नियमित रूप से या
कभी-कभी इस्तेमाल करने
वालों के विचार;
पुरुष बनाम स्त्रियाँ, आदि
अपेक्षाकृत बड़े
शहरों के लिए ही
उपयुक्त
विभिन्न प्रकार
के उपकरणों के लिए
विज्ञापन के स्वरूप
विशेष उपकरणों के
बारे में विभिन्न
प्रकार के लोगों
की प्रतिक्रिया क्या है?
इस कार्य को करने
के लिए लड़ों को
प्रोत्साहित किया जाए;
यह विषय ‘लड़कियों का’
नहीं रह जाए
गत वर्षों में किसी
विशेष स्थान
को किन विभिन्न
प्रकारों से उपयोग किया
जाता था?
क्या विभिन्न
सामाजिक वर्गों, समूहों
के लोग खाली जगह
के उपयोग के बारे में
विभिन्न विचार
रखते हैं?
उत्तम यही होगा कि
शोध कार्य के लिए ऐसे
स्थानों को चुना जाए
जिनसे लोग भलीभाँति
परिचित हों या संबंध
रखते हों
अतीत से
सामग्री की (जैसे, इस
विषय पर विद्यालय में
लिखे गए निबंध की
उपलब्धता पर निर्भर
एक समूह से उनके
अपने विकास के बारे में
बातचीत करें, अथवा
विभिन्न आयु वर्गों के
लोगों से बातचीत करें
साक्षात्कार लेने के लिए
चुने गए छात्र अपने ही
विद्यालय के नहीं होने
चाहिए
किसी भी मौजूदा
दिलचस्प मुद्दे को
संचार माध्यमों में
दिए गए स्थान का
विश्लेषण
फ़ोन सुलभ हो जाने के
बाद लोग पत्र
लिखने में आई गिरावट
के बारे में क्या महसूस
करते हैं?
इस मुद्दे पर
कोई पूर्वनिर्णय न लें (जैसे,
यह बड़े दुख की बात
है कि पत्र-लेखन में इतनी
गिरावट आ गई है) पूछें,
बताएँ नहीं।

स्वरूप है। इस संबंध में शोध कार्य करने के लिए आप विभिन्न प्रकार के विद्यालयों में विभिन्न आयु वर्गों (जैसे, कक्षा 5,8 और 11) के बच्चों, स्त्री-पुरुष, विभिन्न पैतृक पृष्ठभूमि, आदि के लोगों को चुन सकते हैं और यह देख सकते हैं कि क्या उनमें परिवर्तन का कोई विशेष रूप दिखाई देता है। आप अपने शोध कार्य में वयस्कों को भी शामिल कर सकते हैं और यह देख सकते हैं कि क्या उन्हें कोई ऐसा परिवर्तन याद आता है और क्या विद्यालय जाने वाले बच्चों की तुलना में विद्यालयी शिक्षा समाप्त कर चुके बच्चों में परिवर्तनों का कोई निश्चित स्वरूप है।

6. एक वस्तु की जीवनी

आप अपने घर में मौजूद एक विशेष उपभोग वस्तु जैसे, टेलीविज़न, मोटर साइकिल, कारपेट (कालीन) या फर्नीचर के बारे में सोचें। यह कल्पना करने की कोशिश करें कि उस वस्तु का जीवन-इतिहास क्या रहा होगा। आप अपने आपको वह वस्तु मानकर अपनी ‘आत्मकथा’ लिखें। उस वस्तु को अपनी वर्तमान स्थिति तक पहुँचने के लिए विनिमय के किन दौरों से गुजरना पड़ा है? क्या आप उन सामाजिक संबंधों को खोज सकते हैं जिनके माध्यम से वह वस्तु बनाई, बेची और खरीदी गई थी? इसका इसके मालिकों यानी आप, आपके परिवार, समुदाय के लिए क्या प्रतीकात्मक महत्त्व है?

यदि आपका टेलीविज़न (या सोफा-सेट अथवा मोटर साइकिल…) स्वयं सोच या बोल सकता तो वह उन लोगों के बारे में क्या कहता जिनके संपर्क में वह आया है? (जैसे, आपका परिवार अथवा अन्य परिवार या घर जिनकी आप कल्पना कर सकते हों)।

शब्दावली

गणितीय वृद्धि (Arithmetic progression) : Progression-arithmetic देखें।

आत्मसात्मीकरण (Assimilation) : सांस्कृतिक एकीकरण और समजातीयता की एक प्रक्रिया जिसके द्वारा नए शामिल हुए या अधीनस्थ समूह अपनी विशिष्ट संस्कृति को खो देते हैं तथा प्रभुत्वशाली बहुसंख्यकों की संस्कृति को अपना लेते हैं। आत्ममात्मीकरण जबबरजस्ती भी करवाया जा सकता है और यह ऐच्छिक भी हो सकता है एवं सामान्यतः यह अधूरा होता है, जहाँ अधीनस्थ या शामिल होने वाले समूह को समान शर्तों पर पूर्ण सदस्यता प्रदान नहीं की जाती। उदाहरण के लिए, प्रभुत्वशाली बहुसंख्यकों द्वारा एक प्रवासी समुदाय के साथ भेदभाव करना और परस्पर विवाह की अनुमति नहीं देना।

**सत्तावाद (Authoritarianism) **: सरकार की वह व्यवस्था जो अपनी वैधता लोगों से प्राप्त नहीं करती है। यह सरकार का प्रजातांत्रिक या गणतंत्रीय स्वरूप नहीं होता है।

संतति निरोध (Birth control) : गर्भाधान और शिशु जन्म को रोकने के लिए गर्भनिरोधक उपायों का प्रयोग करना।

व्यापार प्रक्रिया के लिए बाहरी स्रोतों की सहायता लेना (BPO - Business Process Outsourcing) : एक ऐसी पद्धति जिसके द्वारा उत्पादन प्रक्रिया के किसी हिस्से को अथवा सेवा उद्योग के किसी अंग को किसी तीसरे पक्ष द्वारा संपन्न करने के लिए बाहर ठेका (संविदा) दिया जाए। उदाहरण के लिए, टेलीफोन की लाइनें और सेवाएँ प्रदान करने वाली टेलीफोन कंपनी अपने ग्राहक सेवा प्रभाग के कार्य बाहरी स्रोत से पूरे करवा सकती है; यानी कि वह अपने ग्राहकों की सभी कॉलों और शिकायतों पर कार्रवाई करने के लिए किसी एक छोटी कंपनी की सेवाएँ ले सकती है।

**पूँजी (Capital) **: निवेश योग्य संसाधनों की संचित निधि। इस शब्द का प्रयोग आमतौर पर ‘सक्रिय’ निधियों यानी ऐसी निधियों के लिए किया जाता है जो सिर्फ बचाकर इकह्डी ही नहीं की जाती बल्कि उन्हें निवेश के लिए सँभालकर रखा जाता है पूँजी को बढ़ाने; उसमें धनराशि जोड़ने का प्रयत्न चलते रहना चाहिए - यही संचयन की प्रक्रिया है।

पूँजीवाद (Capitalism) : सामान्य वस्तु या पण्य उत्पादन पर आधारित उत्पादन पद्धति या एक सामाजिक व्यवस्था जहाँ (क) व्यक्तिगत संपत्ति और बाज़ार ने सभी क्षेत्रों में अपनी पैठ बना ली है और सभी चीजों के साथ-साथ श्रम शक्ति को भी बाज़ार में बिकने वाली वस्तु के रूप में बदल दिया है; (ख) दो मुख्य वर्ग विद्यमान होते हैं, एक प्रतिदिन मजदूरी करने वाले श्रमिक जिनके पास अपनी श्रम शक्ति के अलावा कुछ नहीं होता (श्रम करने की उनकी क्षमता), और पूँजीपतियों का एक वर्ग, जो पूँजीपति के रूप में बने रहने के लिए अपनी पूँजी का निवेश ज़ूर करते हैं तथा प्रतिस्पर्धात्मक बाजार अर्थव्यवस्था में हमेशा बढ़ने वाले लाभ को प्राप्त करते हैं।

**प्राकृतिक निरोध (Checks-positive) **: टी.आर. माल्थस द्वारा इस शब्द का प्रयोग जनसंख्या वृद्धि की दर पर लगने वाली ऐसी रोकथाम के संबंध में किया गया है जो प्रकृति द्वारा, मानव इच्छाओं की परवाह न करते हुए, लगाई जाती हैं। ऐसे निरोधों के उदाहरणों में अकाल, महामारियाँ और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ शामिल हैं।

कृत्रिम निरोध (Checks- preventive) : टी. आर. माल्थस द्वारा इस शब्द का प्रयोग जनसंख्या वृद्धि की दर पर लगने वाली ऐसी रोकथाम के संबंध में किया गया है जो मनुष्यों द्वारा स्वयं अपने ऊपर स्वेच्छा से लगाई जाती है। ऐसे निरोधों के उदाहरणों में विवाह देरी से करना और ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करना या संतति निरोध के उपाय अपनाना शामिल है।

नागरिक समाज (Civil Socity) : समाज का वह क्षेत्र जो परिवार से परे हो पर राज्य या बाज़ार का हिस्सा न हो। उन स्वैच्छिक संस्थाओं एवं संगठनों का क्षेत्र जो सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक अथवा अन्य गैर-व्यावसायिक और गैर-राजकीय सामूहिक कार्यों के लिए बनाई गई हैं।

वर्ग (Class) : एक ऐसा आर्थिक समूह जो उत्पादन के सामाजिक संबंधों में, आय तथा समृद्धि के स्तरों पर, जीवनशैली तथा राजनीतिक अधिमान्यताओं के संदर्भ में सामान्य या समान स्थिति पर आधारित होता है।

उपनिवेशवाद (Colonialism) : एक ऐसी विचारधारा, जिसके द्वारा एक देश दूसरे देश को जीतने और उसे अपना उपनिवेश बनाने (जबरन वहाँ बसने, उस पर शासन करने) का प्रयत्न करता है। ऐसा उपनिवेश, उपनिवेशकर्ता देश का एक अधीनस्थ हिस्सा बन जाता है और फिर उपनिवेशकर्ता देश के लाभ के लिए उस उपनिवेश का तरह-तरह से शोषण किया जाता है। वैसे तो उपनिवेशवाद साम्राज्यवाद से संबंधित है, पर उपनिवेशवाद के अंतर्गत उपनिवेशकर्ता देश उपनिवेश में बसने और उस पर अपना शासन बनाए रखने में (यानी व्यापक रूप से स्थानीय नियंत्रण रखने में) अधिक रुचि रखता है जबकि साम्राज्यवादी देश उपनिवेश को लूटकर उसे छोड़ देता है अथवा दूर से ही उस पर शासन करता रहता है (वहाँ आकर बसता नहीं)।

पण्यीकरण (Commodification or commoditisation) : एक पण्येत्तर यानी गैर-पण्य वस्तु (यानी ऐसी वस्तु जिसे बाज़ार में खरीदा और बेचा नहीं जाता) का पण्य में रूपांतरण।

पण्य (Commodity): कोई वस्तु या सेवा जो बाजार में खरीदी या बेची जा सकती हो।

पण्यरीति (Commodity fetishism): (पण्य संबंधी अंधभक्ति, वस्तु पूजा): पूँजीवाद के अंतर्गत एक ऐसी स्थिति जिसमें सामाजिक संबंधों को भी वस्तुओं के बीच के संबंधों की तरह अभिव्यक्त किया जाता है। संप्रदायवाद या सांप्रदायिकता (Communalism) : धार्मिक पहचान पर आधारित उग्र राष्ट्रवाद। यह विश्वास कि धर्म ही व्यक्ति या समूह की पहचान के सभी अन्य पक्षों की तुलना में सर्वोपरि होता है। आमतौर पर, यह उन व्यक्तियों या समूहों के प्रति एक आक्रामक और शत्रुतापूर्ण रवैया होता है जो दूसरे धर्मों को मानते हैं अथवा जिनकी गैर-धार्मिक पहचान होती है।

समुदाय (Community): किसी भी ऐसे विशिष्ट समूह के लिए प्रयुक्त सामान्य शब्द, जिसके सदस्य सचेतन रूप से मान्यताप्राप्त समानताओं और नातेदारी के बंधनों, भाषा, संस्कृति आदि के कारण आपस में जुड़े हों। इन समानताओं में विश्वास उनके अस्तित्व के वास्तविक प्रमाण से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।

उपभोग (Consumption) : उन लोगों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का अंतिम उपभोग, जिन्होंने उसे खरीदा है (उपभोक्ता)।

लोकतंत्र (Democracy): सरकार का वह रूप जो जनता (जनसाधारण) से अपनी वैधता प्राप्त करता है और चुनावों (निर्वाचन) के माध्यम से अथवा जनता की राय जानने के किसी और तरीके से जनता के स्पष्ट समर्थन पर आश्रित रहता है।

कथन या प्रवचन (Discourse) : सामाजिक जीवन के एक खास क्षेत्र में चिंतन की एक रूपरेखा या परिपाटी। उदाहरण के लिए, अपराधिता (criminality) संबंधी कथन का अर्थ है-लोग एक निर्धारित समाज में अपराधिता के बारे में क्या सोचते हैं।

भेदभाव (Discrimination): ऐसे व्यवहार, कार्य अथवा गतिविधियाँ जिनके परिणामस्वरूप किसी एक खास समूह के सदस्यों को उन वस्तुओं, सेवाओं, नौकरियों, संसाधनों आदि से वंचित रखना जो आमतौर पर दूसरों को उपलब्ध होते हैं। भेदभाव और पूर्वाग्रह के बीच के अंतर को समझना जरूूरी है, हालाँकि ये दोनों भाव काफ़ी गहराई से परस्पर जुड़े हुए हैं।

विविधता (सांस्कृतिक विविधता) (Diversity - Cultural diversity) : बड़े राष्ट्रीय, क्षेत्रीय अथवा अन्य किसी संदर्भ में अनेक विभिन्न प्रकार के समुदायों जैसे, भाषा, धर्म, क्षेत्र आदि द्वारा परिभाषित समुदायों की उपस्थिति। पहचानों की बहुलता अथवा अनेकता।

प्रबल जाति (Dominant caste) : जाति व्यवस्था के अंतर्गत कोई मध्यम या उच्च-मध्यम वर्गीय जाति जिसकी जनसंख्या काफ़ी बड़ी हो और जिसके पास भूमि-स्वामित्व के नवार्जित अधिकार हों। बड़ी जनसंख्या और इन नए-नए प्राप्त हुए अधिकारों की बदौलत ये जातियाँ, भारत के कई क्षेत्रों के देहाती इलाकों में, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से प्रबल हो गई हैं। प्रबल जातियाँ उन पुरानी जातियों का स्थान ग्रहण कर लेती हैं जो पहले अपनी प्रबलता का प्रयोग करती थीं। पूर्ववर्ती प्रबल जातियों के विपरीत, ये जातियाँ ‘द्विज’ अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य वर्णों के अंतर्गत नहीं आती।

आर्थिक मानवविज्ञान (Economic anthropology): सामाजिक सांस्कृतिक मानवविज्ञान का एक उपक्षेत्र जो प्रागैतिहासिक, ऐतिहासिक और नृजाति-वृत्तीय अभिलेखों में पाई जाने वाली समस्त प्रकार की अर्थन्यवस्थाओं और संस्कृतियों, विशेष रूप से गैर-बाज़ारी आर्थिक व्यवस्थाओं का अध्ययन करता है।

अंतःस्थापित (Embedded) : (‘सामजिक रूप से अंतःस्थापित’) एक बड़े समाज या संस्कृति के अंदर विद्यमान होना जो किसी प्रक्रिया या प्रघटना को ‘आकार’ देती है। यह कथन कि आर्थिक संस्थाएँ समाज में अंतः स्थापित हैं, यह बताता है कि वे समाज में विद्यमान हैं और वे इसलिए अपना काम कर सकती हैं क्योंकि समाज ने इस संबंध में आवश्यक नियम एवं व्यवस्थाएँ बना रखी हैं।

अंतर्विवाह (Endogamy) : इस प्रथा के अंतर्गत व्यक्ति अपने सांस्कृतिक समूह, जिसका वह पहले से ही सदस्य है, उदाहरण के लिए जाति, के भीतर ही विवाह करता है।

गणना (Enumeration) : इसका शाब्दिक अर्थ है ‘गिनना’। इसका तात्पर्य गिनने और मापने की, विशेष रूप से जनसंबंधी, प्रक्रिया से है जैसे, जनगणना अथवा सर्वेक्षण की प्रक्रिया।

महामारी (Epidemic) : इसका अर्थ है किसी खास भौगोलिक क्षेत्र के लोगों में एक समय-विशेष पर किसी बीमारी के रोगियों की दर में अचानक वृद्धि हो जाना। किसी आम बीमारी को महामारी बनाने वाला निर्णायक तत्त्व यह है कि उसके होने या फैलने की दर (समय की प्रति इकाई जैसे, प्रतिदिन, प्रति सप्ताह अथवा प्रतिमास सूचित किए गए नए रोगियों की संख्या) ‘सामान्य’ दर से काफ़ी ऊँची हो। यह निर्णय अंशतः व्यक्तिपरक भी हो सकता है। यदि कोई बीमारी होने की दर किसी खास भौगोलिक क्षेत्र में ऊँची तो हो पर लगातार एक स्तर पर ही बनी रहे (यानी उसमें अचानक कोई बढ़ोतरी न हो) तो इसे स्थानिक भारी महामारी कहा जाएगा। यदि कोई महामारी किसी खास भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित न रहे और दूरू-दूर तक (यानी राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय यहाँ तक कि भूमंडलीय स्तर पर) फैल जाए तो उसे देशव्यापी या सार्वभौमिक (pandemic) महामारी कही जाती है।

संजातीय सफ़ाई (Ethnic cleansing): किसी क्षेत्र-विशेष से अन्य नृजातीय जनसंख्या को एक साथ बाहर निकालकर उस राज्य क्षेत्र को संजातीय दृष्टि से समरूप बनाना।

संजातीयता (Ethnicity) : संजातीय समूह वह होता है जिसके सभी सदस्य एक ऐसी साझी सांस्कृतिक पहचान के प्रति जागरुक रहते हैं जो उन्हें आसपास के दूसरे समूहों से अलग दिखाती है।

बहिर्विवाह (Exogamy) : इसके अंतर्गत व्यक्ति अपने समूह के बाहर विवाह करता है।

परिवार (Family) : यह व्यक्तियों का एक ऐसा समूह होता है जो नातेदारी संबंधों द्वारा आपस में जुड़े होते हैं, उसके वयस्क सदस्य बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हैं।

प्रजनन शक्ति (Fertility) : मानव जनसंख्या के संदर्भ में, इसका तात्पर्य मानव प्राणियों की प्रजनन यानी बच्चे पैदा करने की क्षमता से है। चूँकि प्रजनन प्राथमिक रूप से नारी-क्रेंद्रित प्रक्रिया है इसलिए प्रजनन क्षमता का हिसाब स्त्रियों की जनसंख्या यानी बच्चा पैदा करने की आयु वाली स्त्रियों की संख्या के संदर्भ में लगाया जाता है।

लिंग (Gender) : सामाजिक सिद्धांत में, यह शब्द पुरुषों तथा स्त्रियों के बीच सामाजिक तथा सांस्कृतिक रूप से उत्पन्न अंतरों को दर्शाने के लिए प्रयोग किया है। (यह ‘यौन’ (sex) शब्द से भिन्न है जो पुरुष और स्त्री के बीच के शारीरिक-जैव वैज्ञानिक अंतरों को स्पष्ट करता है)। प्रकृति यौन अंतर उत्पन्न करती है और समाज लैंगिक अंतरों की रचना करता है।

गुणोत्तर वृद्धि (Geometric progression) : Progression-geometric देखें।

भूमंडलीकरण (Globalisation) : आर्थिक, सामाजिक, प्रौद्योगिकीय, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तनों की एक जटिल भृंखला जिसने विविध प्रकार के स्थानों के लोगों और आर्थिक कार्यकर्ताओं (कंपनियों) में पारस्परिक निर्भरता, एकीकरण और अंतः क्रिया को बढ़ावा दिया है।

एकीकरण (Integration) : सांस्कृतिक जुड़ाव या समेकन की एक प्रक्रिया जिसके द्वारा सांस्कृतिक विभेद निजी क्षेत्र में चले जाते हैं और एक सामान्य सार्वजनिक संस्कृति सभी समूहों द्वारा अपना ली जाती है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत आमतौर पर प्रबल या प्रभावशाली समूह की संस्कृति को ही आधिकारिक संस्कृति के रूप में अपनाया जाता है। सांस्कृतिक अंतरों, विभेदों या विशिष्टताओं की अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित नहीं किया जाता अथवा कभी-कभी तो सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसी अभिव्यक्ति पर रोक लगा दी जाती है।

जजमानी व्यवस्था (Jajmani system) : (उत्तर) भारतीय गांव में उपज, वस्तुओं और सेवाओं का गैर-बाजारी आदान-प्रदान, जिसमें पैसे का प्रयोग नहीं किया जाता। यह आदान-प्रदान जाति व्यवस्था और रूढ़िगत व्यवहारों पर आधारित होता है।

जाति (Caste) : अंग्रेज़ी शब्द ‘कास्ट’ के लिए हिंदी शब्द। ऐसी जातियों का एक क्षेत्र-विशेष में अधिक्रमित अनुक्रम जो अपनी ही परिसीमाओं में विवाह करते हैं, वंशागत पेशे अपनाते हैं; यह सब जन्म के आधार पर निर्धारित होता है। यह परंपरागत व्यवस्था है, लेकिन समय के साथ इसमें कई परिवर्तन आ गए हैं।

नातेदारी (Kinship) : व्यक्तियों के बीच ऐसे संबंध जो विवाह अथवा वंशानुक्रम की रेखा के माध्यम से स्थापित होते हैं और रक्त-संबंधियों (माता, पिता, सहोदर, संतान, आदि) को आपस में जोड़ते हैं।

श्रम-शक्ति (Labour power) : श्रम करने की क्षमता; मानव प्राणियों की मानसिक तथा शारीरिक क्षमताएँ जो उत्पादन की प्रक्रिया में काम आती हैं (जबकि श्रम किया गया कार्य होता है)।

अहस्तक्षेप नीति (Laissez-faire) : (फ्रेंच, जिसका शाब्दिक अर्थ, छोड़ दिया जाए या ‘हस्तक्षेप न किया जाए’ है) एक आर्थिक दार्शनिक नीति जो मुक्त बाज़ार प्रणाली और आर्थिक मामालों में सरकार की ओर से अल्पतम हस्तक्षेप का समर्थन करती है।

उदारीकरण (Liberalisation) : यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा आर्थिक कार्यकलाप पर राज्य के नियंत्रण ढीले कर दिए जाते हैं और उन्हें बाजार की ताकतों के हवाले कर दिया जाता है। सामान्यतः एक ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा कानूनों को अधिक उदार और सरल बना दिया जाता है।

जीवनावसर (Life chances) : व्यक्ति को अपने जीवन में उपलब्ध होने वाले संभावित अवसर अथवा उपलब्धियाँ।

**जीवनशैली (Lifestyle) **: जिंदगी जीने का तरीका; अधिक ठोस रूप में उपभोग के विशिष्ट प्रकार एवं स्तर जिनसे कुछ विशेष सामाजिक समूहों का दैनंदिन जीवन परिभाषित होता है।

बज़ारीकरण (Marketisation) : सामाजिक, राजनीतिक अथवा आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए बाज़ार-आधारित समाधानों का प्रयोग करना।

विवाह (Marriage) : दो वयस्क व्यक्तियों (स्त्री-पुरुषों) के बीच सामाजिक रूप के स्वीकृत एवं अनुमोदित यौन संबंध। जो दो लोग आपस में विवाह करते हैं तो वे परस्पर नातेदार बन जाते हैं।

अल्पसंख्यक समूह (Minority group) : एक निर्धारित समाज में लोगों का एक ऐसा समूह जो अपनी विशिष्ट शारीरिक या सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण अल्पमत में हों और अपने आपको उस समाज के भीतर असमानता की स्थितियों में पाता हो। इन समूहों में नृजातीय अल्पसंख्यक भी आते हैं।

उत्पादन विधि (Mode of production) : मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद में, उत्पादन की शक्तियों और उत्पादन के संबंधों का एक विशिष्ट गठजोड़ जो ऐतिहासिक दृष्टि से भिन्न सामाजिक रचना तैयार करता है।

आदान-प्रदान या परस्परता (Reciprocity) : एक गैर-बाज़ारी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं का अनौपचारिक सांस्कृतिक विनिमय (व्यापार)।

भूमिका संघर्ष (Role conflict) : उन विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं के बीच संघर्ष, जिन्हें एक ही व्यक्ति को निभाना पड़ता है। उदाहरण के लिए, एक पिता, कामगार के रूप में अपनी भूमिका तथा पिता या पति के रूप में अपनी भूमिका-दोनों भूमिकाओं के बीच संघर्ष का अनुभव कर सकता है।

एकविवाह प्रथा (Monogamy) : यह प्रथा एक समय में एक ही जीवन साथी (पति/पत्नी) रखने की अनुमति देती है। इस प्रथा के अंतर्गत, एक निर्धारित समय पर एक पुरुष एक ही पत्नी और एक स्त्री एक ही पति रख सकती है।

जन्म परिवार (Natal family) : वह परिवार जिसमें व्यक्ति का जन्म हुआ हो, जन्म का परिवार। (यह ससुराल के परिवार से भिन्न होता है जिसे विवाह के बाद अपनाया जाता है)।

राष्ट्र (Nation) : एक ऐसा समुदाय जो अपने आपको एक समुदाय मानता है और अनेक साझा विशिष्टताओं जैसे: साझी भाषा, भौगोलिक स्थिति, इतिहास, धर्म, प्रजाति, संजाति, राजनीतिक आकांक्षाओं आदि पर आधारित होता है। किंतु, राष्ट्र ऐसी एक या अधिक विशिष्टताओं के बिना भी अस्तित्व में रह सकते हैं। एक राष्ट्र उन लोगों से मिलकर बना होता है जो उस राष्ट्र के अस्तित्व, सार्थकता और शक्ति के स्रोत होते हैं।

राष्ट्र-राज्य (Nation-state) : एक विशेष प्रकार का राज्य, जो आधुनिक जगत की विशेषता है, जिसमें एक सरकार की एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र पर संप्रभु शक्ति होती है और वाँा रहने वाले लोग उसके नागरिक कहलाते हैं। जो अपने आपको उस एकल राष्ट्र का हिस्सा मानते हैं। राष्ट्र-राज्य राष्ट्रीयता के उदय से घनिष्ठता से जुड़े हैं, यद्यपि राष्ट्रवादी निष्ठाएँ हमेशा उनके विशिष्ट राज्यों, जो आज विद्यमान हैं की परिसीमाओं के अनुरूप नहीं होती। राष्ट्र-राज्यों का विकास, प्रारंभ में यूरोप में शुरू हुई राष्ट्र-राज्य प्रणाली के अंतर्गत हुआ था लेकिन आज यह राष्ट्र-राज्य संपूर्ण भूमंडल में पाए जाते हैं।

राष्ट्रवाद (Nationalism) : अपने राष्ट्र और उससे संबंधित हर चीज़ के लिए, प्रतिबद्धता, आमतौर पर भावपूर्ण प्रतिबद्धता| हर मामले में राष्ट्र को सर्वोपरि रखना, उसके पक्ष में अभिनति या झुकाव रखना आदि। यह विचारधारा कि भाषा, धर्म, इतिहास, प्रजाति, संजाति आदि की समानता समुदाय को विशिष्टता तथा अद्वितीयता प्रदान करती है।

पूर्वाग्रह (Prejudice) : किसी व्यक्ति या समूह के बारे में पूर्वनिर्धारित विचार रखना; ऐसे विचार जो कि नयी जानकारी प्राप्त होने पर भी बदलने को तैयार न हों। पूर्वाग्रह सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का हो सकता है, लेकिन इसका सामान्य प्रयोग नकारात्मक या अनादरपूर्ण पूर्धधारणा के लिए ही होता है।

निवारक रोकथाम (Preventive checks) : Checks-preventive देखें।

कृषि की उत्पादकता (Productivity of agriculture) : कृषि की उपज की राशि (यानी खाद्यान्न या अन्य फसलों की मात्रा) जो प्रति इकाई क्षेत्र (उदाहरणार्थ, एकड़, हैक्टेयर, बीघा, आदि) में उत्पन्न होती है। उत्पादकता का हिसाब लगाते समय उन्हीं वृद्धियों को शामिल किया जाता है जो केवल खेती के तरीकों में तथा निविष्टियों (खाद्य आदि) की गुणवत्ता में किए गए परिवर्तनों के कारण होती है, न कि कृषि के क्षेत्र में किए गए विस्तार के कारण। इन परिवर्तनों के उदाहरणों में ट्रैक्टों, उर्रकों, उन्नत बीजों, आदि का प्रयोग शामिल होता है।

समांतर वृद्धि (Progression-arithmetic) : संख्याओं (अंकों) की ऐसी शृंखला या श्रेणी जो किसी भी संख्या से प्रारंभ हो सकती है, लेकिन जहाँ प्रत्येक परवर्ती संख्या पूर्ववती संख्या में एक निर्धारित राशि (संख्या) जोड़ने से प्राप्त होती है। उदाहरणार्थ, $6,10,14,18$ आदि-आदि जहाँ 6 एक मनमर्जी से लिया गया प्रारंभ बिंदु है लेकिन $10=6+4,14=10+4,18=14+4$ आदि-आदि की भृंखला में होते हैं।

गुणोत्तर वृद्धि (Progression-geometric) : संख्याओं की ऐसी भृंखला या श्रेणी जो किसी भी संख्या से प्रारंभ हो सकती है, लेकिन जहाँ प्रत्येक परवर्ती संख्या पूर्ववर्ती संख्या को एक सतत गुणक से गुणा करने पर प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए, $4,20,100,500$ और इसी तरह आगे भी, जहाँ 4 एक मनमर्जी से लिया गया प्रारंभ बिंदु है लेकिन $20=4 \times 5,100=20 \times 5,500=100 \times 5$ आदि-आदि की भृंखला में होते हैं।

प्रतिवर्ती (Reflexive) : इसका शाब्दिक अर्थ है अपने तरफ मुड़ना। एक प्रतिवर्ती (या आत्म-प्रतिवर्ती) सिद्धांत वह होता है जो संसार के बारे में ही स्पष्टीकरण देने का प्रयत्न नहीं करता, बल्कि संसार के भीतर अपने निजी कार्यों का स्पष्टीकरण देने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार, एक प्रतिवर्ती समाजशास्त्र अन्य बातों को स्पष्ट करने के साथ-साथ, समाजशास्त्र को स्वयं एक सामाजिक प्रघटना के रूप में वर्णित करने का प्रयास करता है। सामान्यतः सिद्धांत अपने उद्देश्य के बारे में ही स्पष्टीकरण देते हैं, अपने बारे में नहीं।

क्षेत्रवाद (Regionalism) : एक खास क्षेत्रीय पहचान के लिए प्रतिबद्ध विचारधारा, जो भौगोलिक क्षेत्र के अलावा, भाषा, संजातीयता आदि अन्य विशेषताओं पर आधारित होती है।

उत्पादन संबंध (Relations of production) : उत्पादन के मामले में लोगों और समूहों के बीच के संबंध विशेष रूप से ऐसे संबंध जो संपत्ति तथा श्रम से संबंधित हों।

प्रतिस्थापन दर (Replacement level): प्रजनन क्षमता का वह स्तर जिस पर मौजूदा पीढ़ी उतने ही बच्चे पैदा करती है जो उनके अपने स्थान की पूर्ति के लिए पर्याप्त हों, जिससे कि अगली पीढ़ी का आकार (कुल जनसंख्या) उतना ही हो जितना कि वर्तमान पीढ़ी का है। इसका अर्थ है कि स्त्री को लगभग 2.1 बच्चे पैदा करने की ज़ूरूत है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि दंपति की मृत्यु होने पर उनका खाली स्थान भर जाएगा। (अतिरिक्त 0.1 रखना अप्रत्याशित या आकस्मिक मृत्यु से होने वाली क्षति की पूर्ति करने के लिए अपेक्षित है)। दूसरे शब्दों में, कुल प्रजनन दर का प्रतिस्थापन स्तर आमतौर पर 2.1 बताया जाता है।

संस्कृतीकरण (Sanskritisation) : एम. एन. श्रीनिवास द्वारा गढ़ा गया यह शब्द उस प्रक्रिया का उल्लेख करता है, जिसके द्वारा मध्यम या निम्न जातियाँ अपने से ऊँची जातियों, सामान्यतः ब्राहमणों और क्षत्रियों के सामाजिक आचार-व्यवहार और धार्मिक कर्मकांडों या रीति रिवाजों को अपनाकर समाज में ऊपर की ओर बढ़ने का प्रयत्न करती हैं।

अपमार्जन (Scavenging) : मानव मल तथा अन्य कूड़ा-कर्कट और रद्री चीजों को हाथ से साफ करने की प्रथा। यह प्रथा आज भी उन स्थानों पर प्रचलित है जहाँ जल-मल निकासी की प्रणालियाँ मौजूद नहीं हैं। यह एक ऐसी सेवा हो सकती है जिसे अछूत जातियों को सेवा करने के लिए बाध्य किया जाता है।

पंथनिरपेक्षता (Secularism) : इसके भिन्न-भिन्न रूप या प्रकार हैं: (क) वह सिद्धांत जिसके द्वारा राज्य को धर्म से बिल्कुल अलग रखा जाता है, यानी पाश्चात्य समाजों की तरह ‘चर्च’ और ‘राज्य’ का अलगाव (ख) ऐसा सिद्धांत जिसके अंतर्गत राज्य भिन्न-भिन्न धर्मों के बीच भेदभाव नहीं बरतता और सभी धर्मों का समान रूप से आदर करता है। (ग) इसका जनता में प्रचलित अर्थ हैः सांप्रदायिकता या संप्रदायवाद का विरोधी; यानी ऐसी अभिवृत्ति जो किसी भी धर्म के पक्ष में या विरुद्ध न हो।

सामाजिक रचनावाद (Social constructionism) : ऐसा परिप्रेक्ष्य जो वास्तविकता की व्याख्या करते समय प्रकृति की तुलना में समाज पर अधिक बल देता है। यह जीव विज्ञान और प्रकृति की बजाय सामाजिक संबंधों, मूल्यों और अंतःक्रियाओं को वास्तविकता का अर्थ तथा विषय-वस्तु निर्धारित करने में निर्णायक मानता है। (उदाहरण के लिए, सामाजिक रचनावाद का विश्वास है कि लिंग, बुढ़ापा, अकाल आदि चीजें भौतिक या प्राकृतिक होने की बजाय सामाजिक अधिक हैं।

सामाजिक अपवर्जन (Social exclusion) : यह वंचन और भेदभाव का मिलाजुला प्रतिफल है जो व्यक्तियों या समूहों को उनके अपने समाज के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से शामिल होने से रोकता है। सामाजिक अपवर्जन संरचनात्मक, यानी व्यक्ति का कार्य होने की बजाय, सामाजिक प्रक्रियाओं तथा संस्थाओं का परिणाम होता है।

पुत्र-अधिमान्यता (Son preference) : एक सामाजिक प्रघटना या स्थिति जहाँ एक समुदाय के सदस्य पुत्रियों की बजाय पुत्र प्राप्त करना अधिक पसंद करते हैं, अर्थात् वे पुत्रियों की तुलना में पुर्रों को अधिक मान-महत्त्व देते हैं। पुत्रों को अधिमान्यता देने की सच्चाई को सिद्ध करने के लिए पुत्रों तथा पुत्रियों के प्रति सामाजिक व्यवहार का अवलोकन किया जा सकता है अथवा लोगों से सीधे ही उनकी पसंद या सोच के बारे में प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

राज्य (State) : एक अमूर्त सत्व (इकाई) जिसमें कई प्रकार की राजनीतिक-वैधिक संस्थाओं का समूह विद्यमान हो, जो एक खास भौगोलिक क्षेत्र पर और उसमें रहने वालों लोगों पर अपने नियंत्रण का दावा करता हो। एक प्रदेश-विशेष में वैध हिंसा के प्रयोग पर अपना एकाधिकार रखने वाला, अनेक परस्पर जुड़ी संस्थाओं का समुच्चय। इसमें विधान मंडल, न्यायपालिका, कार्यपालिका, सेना, नीति और प्रशासन जैसी अनेक संस्थाएँ शामिल होती हैं। एक-दूसरे अर्थ में, एक बड़ी राष्ट्रीय संरचना के भीतर एक क्षेत्रीय सरकार को भी यह नाम दिया जाता है जैसे कि तमिलनाडु की राज्य सरकार आदि।

रूढ़िबद्ध धारणा (Stereotype) : एक समूह के लोगों का निश्चित और अनम्य (अपरिवर्तनीय) स्वरूप। स्तरीकरण (Stratification) : समाज के भिन्न-भिन्न टुकड़ों, स्तर अथवा उप-समूहों में अधिक्रमित व्यवस्था, जिनके सभी सदस्य अधिक्रम में एक सामान्य स्थिति रखते हों। स्तरीकरण का निहितार्थ है असमानता; समतावादी समाजों में सिद्धांत रूप में अलग-अलग स्तर नहीं होते, हालाँकि उनमें अन्य रूप एवं प्रकार के उप-समूह हो सकते हैं जो अधिक्रम में नहीं होते यानी उनमें ऊँच-नीच का भाव नहीं होता।

स्टॉक बाज़ार (Stock market) : कंपनियों के स्टॉक या शेयोों (अंशों) का बाजार। संयुक्त पूँजी कंपनियाँ अपने शेयर बेचकर अपने लिए पूँजी जुटाती हैं - एक शेयर कंपनी की परिसंपत्तियों का एक विनिर्धारित हिस्सा होता है। शेयर/अंशधारी कंपनी में अपने हिस्से (शेयर) खरीदने के लिए पैसा देते हैं और कंपनी अपनाकारोबार चलाने के लिए इस धन का उपयोग करती है। अंशधारियों को लाभांश (डिविडेंड) अथवा कंपनी द्वारा अर्जित लाभों में से उनका हिस्सा दिया जाता है। लाभांश का वितरण प्रत्येक अंशधारी द्वारा धारित शेयरों की संख्या के अनुसार किया जाता है। स्टॉक बाज़ार एक ऐसा स्थान या तंत्र है जहाँ इन शेयरों की खरीद-फ़रोख्त होती रहती है।

अतिरिक्त मूल्य (Surplus value) : निवेश के मूल्य में वृद्धि अथवा पूँजी की वापसी; पूँजीवाद के अंतर्गत, अतिरिक्त मूल्य वह धनराशि है जो अधिशेष श्रम से अथवा किए गए उस श्रम से प्राप्त किया जाता है और श्रमिकों को मज़दूरी चुकाने के बाद बच जाता है।

समन्वयवाद (Syncretism) : एक सांस्कृतिक प्रघटना या प्रक्रिया जिसके अंतर्गत भिन्न-भिन्न धर्मों तथा परंपराओं का परस्पर मिलन या मिश्रण हो जाता है। दो भिन्न-भिन्न प्रकार की धार्मिक या सांस्कृतिक परंपराओं का संकर रूप।

अतिक्रमण (Transgression) : किसी नियम या प्रतिमान या मानदंड का उल्लंघन। सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से निर्धारित नियमों और प्रथाओं एवं रूढ़ियों से परे जाना; किसी सामाजिक या सांस्कृतिक नियम (जो विधिक या औपचारिक लिखित कानून न भी हो) को तोड़ना।

जनजाति (Tribe) : एक सामाजिक समूह जिसमें कई परिवार, वंशज (कुल) शामिल हों और जो नातेदारी, संजातीयता, सामान्य इतिहास अथवा प्रादेशिक-राजनीतिक संगठन के साझे संबंधों पर आधारित हो। जाति से यह इस तरह अलग है कि जाति परस्पर अलग-अलग जातियों की अधिक्रमिक व्यवस्था है जबकि जनजाति एक समावेशात्मक समूह होती है (हालाँकि इसमें कुलों या वंशों पर आधारित विभाजन हो सकते हैं)।

अस्पृश्यता (Untouchability) : जाति व्यवस्था के भीतर एक सामाजिक प्रथा, जिसके द्वारा निम्न जातियों के सदस्य कर्मकांडीय दृष्टि से इतने अपवित्र समझे जाते हैं कि केवल छूने भर से लोगों को अपवित्र या प्रदूषित कर देते हैं। अछूत जातियाँ सामाजिक पैमाने पर सबसे नीचे की श्रेणी में आती हैं और अधिकांश सामाजिक संस्थाओं से बाहर रखी जाती हैं।

वर्ण (Varna) : इसका शाब्दिक अर्थ है, ‘रंग’, जाति व्यवस्था का एक राष्ट्रव्यापी रूप जो समाज को चार अधिक्रमिक वर्णों या जातिगत समूहों-्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में विभाजित करता है।

आभासी बाज़ार (Virtual market) : एक ऐसा बाज़ार जो केवल इलैक्ट्रॉनिक रूप में ही मौजूद हो और कंप्यूटरों तथा दूरसंचार माध्यमों के द्वारा लेन-देन करता हो। ऐसा बाजजार एक भौतिक अर्थ में नहीं, बल्कि आंकड़ों के रूप में ही मौजूद होता है जो इलैक्ट्रॉनिक माध्यमों से संग्रहित होते हैं।

वसीयतनामा (Will) : इसका शाब्दिक अर्थ है, इच्छा या संकल्प (जीवित रहने आदि का संकल्प)। लेकिन मूर्त संज्ञा के रूप में यह एक ऐसा दस्तावेज़ होता है जिसमें व्यक्ति की ऐसी इच्छाएँ निर्दिष्ट होती हैं कि उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का क्या उपयोग किया जाना चाहिए। इसमें उत्तराधिकार या उत्तराधिकारी के बारे में निर्देश दिए जाते हैं कि अमुक व्यक्ति को मृतक की परिसंपत्तियों का स्वामित्व दिया जाएगा।



विषयसूची