अध्याय 07 सामाजिक प्रभाव एवं समूह प्रक्रम

परिचय

अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन और अपनी सामाजिक अंतःक्रिया के बारे में विचार कीजिए। प्रातःकाल विद्यालय जाने से पहले आप अपने परिवार के सदस्यों से अंतःक्रिया करते हैं; विद्यालय में आप अपने शिक्षकों तथा सहपाठियों से किसी प्रसंग या विषय के बारे में विचार-विमर्श करते हैं और विद्यालय के बाद आप दोस्तों को फ़ोन करते हैं, उनके साथ कहों जाते हैं या उनके साथ खेलते हैं। इन सभी स्थितियों में आप एक समूह के अंग हैं जो न केवल आवश्यक सहायता एवं सुविधा प्रदान करता है बल्कि यह एक व्यक्ति के रूप में आपकी संवृद्धि एवं विकास को भी सुकर बनाता है। क्या आप कभी दूर ऐसे स्थान पर रहे हैं जहाँ आपका परिवार, विद्यालय एवं मित्रों का साथ न रहा हो? आपने कैसा अनुभव किया? क्या आपने अनुभव किया कि आपके जीवन में किसी महत्वपूर्ण चीज़ का अभाव था?

हमारा जीवन हमारे समूह सदस्यता की प्रकृति से प्रभावित होता है। इसलिए किसी ऐसे समूह का अंग बनना आवश्यक है जो हमें सकारात्मक तरीके से प्रभावित करे और अच्छे नागरिक बनने में हमारी सहायता करे। इस अध्याय में हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि समूह क्या हैं एवं ये किस प्रकार से हमारे व्यवहार को प्रभावित करते हैं। यहाँ पर यह जान लेना भी आवश्यक है कि केवल दूसरे लोग ही हमें प्रभावित नहीं करते हैं बल्कि व्यक्ति के रूप में हम भी दूसरों को एवं समाज को परिवर्तित करने में सक्षम हैं।

समूह की प्रकृति एवं इसका निर्माण

समूह क्या है?

उपरोक्त परिचय का खंड हमारे जीवन में समूह के महत्त्व को स्पष्ट करता है। एक प्रश्न जो मन में आता है वह यह है कि समूह (जैसे - आपका परिवार, कक्षा तथा वह समूह जिसके साथ आप खेलते हैं अर्थात क्रीड़ा-समूह) किस प्रकार से व्यक्तियों के दूसरे प्रकार के समुच्चय से भिन्न है। उदाहरण के लिए वे लोग जो आपके विद्यालय के एक समारोह में क्रिकेट का खेल देखने के लिए एकत्रित हुए हैं वे सभी एक स्थान पर उपस्थित हैं परंतु वे अन्योन्याश्रित या परस्पर-निर्भर नहीं हैं। उनकी कोई परिभाषित भूमिका, हैसियत या स्थिति एवं एक दूसरे से प्रत्याशाएँ नहीं होती हैं। परंतु अपने परिवार, कक्षा एवं क्रीड़ा-समूह के संदर्भ में आप यह अनुभव करेंगे कि वहाँ पर पारस्परिक निर्भरता होती है, सभी सदस्यों की एक भूमिका होती है, हैसियत या स्थिति विभिन्नताएँ होती हैं और एक दूसरे से प्रत्याशाएँ भी होती हैं। अतः आपका परिवार, कक्षा एवं क्रीड़ा-समूह, समूहों के उदाहरण हैं और व्यक्तियों के दूसरे प्रकार के समुच्चय से भिन्न हैं।

एक समूह को ऐसे दो या दो से अधिक व्यक्तियों की एक संगठित व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो एक दूसरे से अंतःक्रिया करते हैं एवं परस्पर-निर्भर होते हैं, जिनकी एक जैसी अभिप्रेरणाएँ होती हैं, सदस्यों के बीच निर्धारित भूमिका संबंध होता है और सदस्यों के व्यवहार को नियमित या नियंत्रित करने के लिए प्रतिमान या मानक होते हैं।

समूह की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ होती हैं -

  • यह दो या दो से अधिक व्यक्तियों, जो स्वयं को समूह से संबद्ध समझते हैं, की एक सामाजिक इकाई है। समूह की यह विशेषता एक समूह को दूसरे समूह से पृथक् करने में सहायता करती है और समूह को अपनी एक अलग अनन्यता या पहचान प्रदान करती है।
  • यह ऐसे व्यक्तियों का एक समुच्चय है जिसमें सभी की एक जैसी अभिप्रेरणाएँ एवं लक्ष्य होते हैं। समूह निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने या समूह को किसी खतरे से दूर करने के लिए कार्य करते हैं।
  • यह ऐसे व्यक्तियों का एक समुच्चय होता है जो परस्पर-निर्भर होते हैं अर्थात एक व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य दूसरों के लिए कुछ परिणाम उत्पन्न कर सकता है। कल्पना करें कि क्रिकेट के खेल में एक खिलाड़ी कोई महत्वपूर्ण कैच छोड़ देता है तो इसका प्रभाव संपूर्ण टीम पर पड़ेगा।
  • वे लोग जो अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि अपने संयुक्त संबंध के आधार पर कर रहे हैं वे एक दूसरे को प्रभावित भी करते हैं।
  • यह ऐसे व्यक्तियों का एकत्रीकरण या समूहन है जो एक दूसरे से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अंतःक्रिया करते हैं।
  • यह ऐसे व्यक्तियों का एक समुच्चय होता है जिनकी अंतःक्रियाएँ निर्धारित भूमिकाओं और प्रतिमानों के द्वारा संरचित होती हैं। इसका आशय यह हुआ कि जब समूह के सदस्य एकत्रित होते हैं या मिलते हैं तो समूह के सदस्य हर बार एक ही तरह के कार्यों का निष्पादन करते हैं और समूह के सदस्य समूह के प्रतिमानों का पालन करते हैं। प्रतिमान हमें यह बताते हैं कि समूह में हम लोगों को किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए और प्रतिमान समूह के सदस्यों से अपेक्षित व्यवहार को निर्धारित करते हैं।

समूह को व्यक्तियों के एकत्रीकरण या समूहन के दूसरे प्रकारों से विभेदित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए भीड़ (crowd) भी व्यक्तियों का एक समूहन या एकत्रीकरण है जिसमें लोग एक स्थान या स्थिति में संयोगवश उपस्थित रहते हैं। कल्पना कीजिए कि आप सड़क पर कहीं जा रहे हों और कोई दुर्टटना घटित हो जाती है। शीघ्र ही बड़ी संख्या में लोग वहाँ एकत्र हो जाते हैं। यह भीड़ का एक उदाहरण है। भीड़ में न तो कोई संरचना होती है और न ही आत्मीयता की भावना होती है। भीड़ में लोगों का व्यवहार अविवेकी होता है और सदस्यों के बीच परस्पर-निर्भरता भी नहीं होती है।

टीम या दल (team) समूहों के विशेष प्रकार होते हैं। दल के सदस्यों में प्रायः पूरक कौशल होते हैं और वे एक समान लक्ष्य या उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं। सदस्य अपने क्रियाकलापों के लिए परस्पर उत्तरदायी होते हैं। दलों में सदस्यों के समन्वित प्रयासों के द्वारा एक सकारात्मक सहक्रिया प्राप्त की जाती है। समूहों और दलों के बीच निम्न मुख्य अंतर हैं -

  • समूह में सदस्यों के व्यक्तिगत योगदानों पर निष्पादन आश्रित रहता है। दल में व्यक्तिगत योगदान एवं दल-कार्य या टीम-कार्य दोनों ही महत्त्व रखते हैं।

चित्र 7.1 इन दोनों चित्रों को देखिए

चित्र ‘अ’ एक फुटबाल की टीम को प्रदर्शित करता है- एक समूह जिसमें सदस्य एक दूसरे से अंतःक्रिया करते हैं, उनकी भूमिकाएँ होती हैं और लक्ष्य होते हैं। चित्र ‘ब’ फुटबाल मैच देख रहे दर्शकगण को प्रदर्शित करता है - ऐसे व्यक्तियों का मात्र एकत्रीकरण जो किसी संयोगवश (संभव है फुटबाल में उनकी अभिरुचि के कारण) एक ही स्थान पर एक ही समय पर उपस्थित हैं।

  • समूह में नेता या समूह का मुखिया कार्य की ज़िम्मेदारी संभालता है। जबकि दल में यद्यपि एक नेता होता है फिर भी सभी सदस्य स्वयं पर ही ज़िम्मेदारी लेते हैं।

दर्शकगण या श्रोता (audience) भी व्यक्तियों का एक समुच्चय होते हैं जो किसी विशेष उद्देश्य से, जैसे क्रिकेट मैच या चलचित्र देखने के लिए एकत्र होते हैं। दर्शकगण सामान्यतया निष्क्रिय होते हैं लेकिन कभी-कभी वे आवेश में आकर उत्तेजित जनसमूह या असंयत भीड़ का रूप ले लेते हैं। असंयत भीड़ में प्रयोजन का एक सुस्पष्ट बोध रहता है। लोगों के अवधान में ध्रुवीकरण पाया जाता है और लोगों की क्रियाएँ एक ही दिशा में अग्रसर होती हैं। असंयत भीड़ में विचारों और व्यवहार में समजातीयता या समरूपता के साथ ही साथ आवेगशीलता की विशेषता पाई जाती है।

व्यक्ति क्यों समूह में सम्मिलित होते हैं?

आप सभी अपने परिवार, कक्षा और उस समूह के सदस्य हैं जिनके साथ आप अंतःक्रिया करते हैं या खेलते हैं। इसी प्रकार किसी विशेष समय पर अन्य व्यक्ति भी अनेक समूहों के सदस्य होते हैं। अलग-अलग समूह भिन्न-भिन्न प्रकार की आवश्यकताओं को संतुष्ट करते हैं और इसलिए हम एक साथ अनेक समूहों के सदस्य होते हैं। यह कभी-कभी हम लोगों के लिए एक दबाव उत्पन्न करता है क्योंकि समूहों की प्रतिस्पर्धी प्रत्याशाएँ और माँगें हो सकती हैं। अधिकांश स्थितियों में हम ऐसी प्रतिस्पर्धी माँगों और प्रत्याशाओं को प्रबंधित करने में सक्षम होते हैं। लोग समूह में इसलिए सम्मिलित होते हैं क्योंकि ऐसे समूह अनेक आवश्यकताओं को संतुष्ट करते हैं। सामान्यतः लोग निम्न कारणों से समूह में सम्मिलित होते हैं -

  • सुरक्षा - जब हम अकेले होते हैं तो असुरक्षित अनुभव करते हैं। समूह इस असुरक्षा को कम करता है। व्यक्तियों के साथ रहना आराम की अनुभूति और संरक्षण प्रदान करता है। परिणामस्वरूप लोग स्वयं को अधिक शक्तिशाली महसूस करते हैं और खतरों की संभावना कम हो जाती है।
  • प्रतिष्ठा या हैसियत - जब हम किसी ऐसे समूह के सदस्य होते हैं जो दूसरे लोगों द्वारा महत्वपूर्ण समझा जाता है तो हम सम्मानित महसूस करते हैं तथा शक्ति-बोध का अनुभव करते हैं। कल्पना कीजिए कि आपका विद्यालय किसी अंतर्विद्यालयी वादविवाद प्रतियोगिता का विजेता बन जाता है तो आप गर्व का अनुभव करते हैं और आप स्वयं को दूसरों से बेहतर समझते हैं।
  • आत्म-सम्मान - समूह आत्म-अर्ध की अनुभूति देता है और एक सकारात्मक सामाजिक अनन्यता स्थापित करता है। एक प्रतिष्ठित समूह का सदस्य होना व्यक्ति की आत्म-धारणा या आत्म-संप्रत्यय को बढ़ावा देता है।
  • व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आवश्यकताओं की संतुष्टि - समूह व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आवश्यकताओं को संतुष्ट करते हैं, जैसे समूह के द्वारा आत्मीयता-भावना, ध्यान देना और पाना, प्रेम तथा शक्ति-बोध का अनुभव प्राप्त करना।
  • लक्ष्य प्राप्ति - समूह ऐसे लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है जिन्हें व्यक्तिगत रूप से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। बहुमत में शक्ति होती है।
  • ज्ञान और जानकारी या सूचना प्रदान करना - समूह सदस्यता हमें ज्ञान और जानकारी प्रदान करती है और हमारे दृष्टिकोण को विस्तृत करती है। संभव है कि वैयक्तिक रूप से हम सभी वांछित जानकारियों या सूचनाओं को प्राप्त न कर सकें। समूह इस प्रकार की जानकारी और ज्ञान की कमी को पूरा करता है।

समूह का निर्माण

इस खंड में हम देखेंगे कि समूहों का निर्माण किस प्रकार होता है या समूह किस प्रकार बनते हैं। समूह निर्माण का आधार व्यक्तियों के बीच संपर्क और अंतःक्रिया है। यह अंतःक्रिया निम्नलिखित दशाओं से सुकर या सुगम हो जाती है।

  • सान्निध्य - अपने मित्र समूह के बारे में ज़रा विचार कीजिए। यदि आप एक ही कॉलोनी में नहीं रहते, एक ही विद्यालय में नहीं जाते या एक ही खेल-मैदान में नहीं खेलते तो क्या आप किसी के मित्र होते? संभवतः आपका उत्तर होगा ‘नहीं’। एक ही व्यक्तियों के समूह से पुनरावृत्त अंतःक्रियाएँ हम लोगों को उन्हें समझने एवं उनको अभिरुचियों एवं अभिवृत्तियों को जानने का अवसर प्रदान करती हैं। एक समान अभिरुचि, अभिवृत्ति तथा पृष्ठभूमि समूह के सदस्यों के प्रति आपकी पसंद मुख्य निर्धारक है।
  • समानता - किसी के साथ कुछ समय तक रहने पर हमें अपनी समानताओं के मूल्यांकन का अवसर प्राप्त होता है, जो समूह के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करता है। हम ऐसे लोगों को क्यों पसंद करते हैं जो हमारी तरह या हमारे समान होते हैं? मनोवैज्ञानिकों ने इसके लिए अनेक व्याख्याएँ प्रस्तुत की हैं। एक व्याख्या यह है कि व्यक्ति संगति पसंद करता है और ऐसे संबंधों को पसंद करता है जो संगत हों। जब दो व्यक्ति एक जैसे होते हैं तो वहाँ संगति होती है और दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगते हैं। उदाहरण के लिए आप फुटबाल खेलना पसंद करते हैं और आपकी कक्षा के एक अन्य छात्र को भी फुटबाल का खेल प्रिय है; इस स्थिति में आप दोनों की अभिरुचियाँ मेल खाती हैं। आप दोनों के मित्र बन जाने की संभावना उच्च है। मनोवैज्ञानिकों ने जो दूसरी व्याख्या प्रस्तुत की है वह यह है कि जब हम अपने जैसे व्यक्तियों से मिलते हैं तो वे हमारे मत और मूल्यों को प्रबालित करते हैं और उन्हें वैधता या मान्यता प्रदान करते हैं। हमें अनुभव होता है कि हम सही हैं और हम उन्हें पसंद करने लगते हैं। मान लीजिए कि आप इस मत के हैं कि बहुत अधिक टेलीविज़न देखना अच्छा नहीं होता है क्योंकि इसमें बहुत अधिक हिंसा को दिखाया जाता है। आप किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जिसका मत आपके समान होता है। इससे आपके मत को मान्यता मिलती है और आप उस व्यक्ति को पसंद करने लगते हैं जो आपके मत को मान्यता प्रदान करने में सहायक था।
  • समान अभिप्रेरक एवं लक्ष्य - जब लोगों के अभिप्रेरक एवं लक्ष्य समान होते हैं तो वे एक साथ मिलकर एक समूह का निर्माण करते हैं, जो उनके लक्ष्य प्राप्ति को सुकर बनाता है। मान लीजिए कि आप मलिन बस्ती के उन बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं जो विद्यालय जाने में सक्षम नहीं हैं। यह कार्य आप अकेले नहीं कर सकते क्योंकि आपके पास आपके स्वयं के अध्ययन का काम एवं गृह कार्य होता है। इसलिए आप समान रुचि के मित्रों के एक समूह का निर्माण करते हैं और ऐसे बच्चों का अध्यापन या शिक्षण प्रारंभ करते हैं। इस प्रकार आप वह करने में सक्षम हो जाते हैं जो आप अकेले नहीं कर पाते।

समूह निर्माण की अवस्थाएँ

याद रखें कि जीवन में अन्य चीज़ों की तरह समूह का विकास होता है। जिस क्षण आप लोगों के संपर्क में आते हैं उसी समय आप समूह के सदस्य नहीं बन जाते हैं। समूह सामान्यतया निर्माण, द्वंद्र, स्थायीकरण, निष्पादन और निष्कासन/अस्वीकरण की विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुज़रता है। टकमैन (Tuckman) ने बताया है कि समूह पाँच विकासात्मक अनुक्रमों से गुजरता है। ये पाँच अनुक्रम हैं निर्माण या आकृतिकरण, विप्लवन या झंझावात, प्रतिमान या मानक निर्माण, निष्पादन एवं समापन।

  • जब समूह के सदस्य पहली बार मिलते हैं तो समूह, लक्ष्य एवं लक्ष्य को प्राप्त करने के संबंध में अत्यधिक अनिश्चितता होती है। लोग एक दूसरे को जानने का प्रयत्न करते हैं और यह मूल्यांकन करते हैं कि क्या वे समूह के लिए उपयुक्त रहेंगे। यहाँ उत्तेजना के साथ ही साथ भय भी होता है। इस अवस्था को निर्माण या आकृतिकरण की अवस्था (forming stage) कहा जाता है।

  • प्राय: इस अवस्था के बाद अंतरा-समूह द्ववंद्व की अवस्था होती है जिसे विप्लवन या झंझावात (storming) की अवस्था कहा जाता है। इस अवस्था में समूह के सदस्यों के बीच इस बात को लेकर द्वृंद्व चलता रहता है कि समूह के लक्ष्य को कैसे प्राप्त करना है, कौन समूह एवं उसके संसाधनों को नियंत्रित करने वाला है और कौन क्या कार्य निष्पादित करने वाला है। इस अवस्था के संपन्न होने के बाद समूह में नेतृत्व करने का एक प्रकार का पदानुक्रम विकसित होता है और समूह के लक्ष्य को कैसे प्राप्त करना है इसके लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण होता है।

  • विप्लवन या झंझावात की अवस्था के बाद एक दूसरी अवस्था आती है जिसे प्रतिमान या मानक निर्माण (norming) की अवस्था के नाम से जाना जाता है। इस अवधि में समूह के सदस्य समूह व्यवहार से संबंधित मानक विकसित करते हैं। यह एक सकारात्मक समूह अनन्यता के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

  • चतुर्थ अवस्था निष्पादन (performing) की होती है। इस अवस्था तक समूह की संरचना विकसित हो चुकी होती है और समूह के सदस्य इसे स्वीकृत कर लेते हैं। समूह लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में समूह अग्रसर होता है। कुछ समूहों के लिए यह समूह विकास की अंतिम अवस्था हो सकती है।

  • तथापि कुछ समूहों के लिए, जैसे - विद्यालय समारोह के लिए आयोजन समिति के संदर्भ में एक अन्य अवस्था हो सकती है जिसे समापन की अवस्था (adjourning stage) के नाम से जाना जाता है। इस अवस्था में जब समूह का कार्य पूरा हो जाता है तब समूह भंग किया जा सकता है।

फिर भी यह बताना आवश्यक है कि सभी समूह हमेशा ऐसे व्यवस्थित ढंग से एक के बाद दूसरी अवस्था में अग्रसर नहीं होते हैं। कभी-कभी एक साथ या एक ही समय अनेक अवस्थाएँ चलती रहती हैं जबकि दूसरी स्थितियों में समूह विभिन्न अवस्थाओं के मध्य आगे एवं पीछे चलता रहता है या वह कुछ अवस्थाओं को छोड़ते हुए भी आगे बढ़ सकता है।

समूह निर्माण की प्रक्रिया की अवधि में समूह एक संरचना भी विकसित करता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि समूह संरचना (group structure) तब विकसित होती है जब सदस्य परस्पर अंतःक्रिया करते हैं। समय के साथ यह पारस्परिक अंतःक्रिया निष्पादित किए जाने वाले कार्य के वितरण, सदस्यों के निर्दिष्ट उत्तरदायित्वों और सदस्यों की प्रतिष्ठा या सापेक्ष स्थिति में एक नियमितता प्रदर्शित करते हैं।

समूह संरंचना के चार मुख्य घटक हैं -

  • भूमिकाएँ (roles) सामाजिक रूप से परिभाषित अपेक्षाएँ होती हैं जिन्हें दी हुई स्थितियों में पूर्ण करने की अपेक्षा व्यक्तियों से की जाती है। भूमिकाएँ वैसे विशिष्ट व्यवहार को इंगित करती हैं जो व्यक्ति को एक दिए गए सामाजिक संदर्भ में चित्रित करती हैं। आपकी एक पुत्र या पुत्री की भूमिका है और इस भूमिका के साथ कुछ निश्चित भूमिका प्रत्याशाएँ हैं अर्थात् किसी विशिष्ट भूमिका में किसी व्यक्ति से अपेक्षित व्यवहार इन भूमिका प्रत्याशाओं में निहित होता है। एक पुत्र या पुत्री के रूप में आपसे अपेक्षा या आशा की जाती है कि आप बड़ों का आदर करें, उनकी बातों को सुनें और अपने अध्ययन के प्रति जिम्मेदार रहें।
  • प्रतिमान या मानक (norms) समूह के सदस्यों द्वारा स्थापित, समर्थित एवं प्रवर्तित व्यवहार एवं विश्वास के अपेक्षित मानदंड होते हैं। इन्हें समूह के ‘अकथनीय नियम’ के रूप में माना जा सकता है। आपके परिवार के भी मानक होते हैं जो परिवार के सदस्यों के व्यवहार का मार्गदर्शन करते हैं। इन मानकों को संसार को समझने के साझा तरीके के रूप में देखा जा सकता है।
  • हैसियत या प्रतिष्ठा (status) समूह के सदस्यों को अन्य सदस्यों द्वारा दी जाने वाली सापेक्ष स्थिति को बताती है। यह सापेक्ष स्थिति या प्रतिष्ठा या तो प्रदत्त या आरोपित (संभव है कि यह एक व्यक्ति की वरिष्ठता के कारण दिया जा सकता है) या फिर साधित या उपार्जित (व्यक्ति ने विशेषज्ञता या कठिन परिश्रम के कारण हैसियत या प्रतिष्ठा को अर्जित किया है) होती है। समूह के सदस्य होने से हम इस समूह से जुड़ी हुई प्रतिष्ठा का लाभ प्राप्त करते हैं। इसलिए हम सभी ऐसे समूहों के सदस्य बनना चाहते हैं जो प्रतिष्ठा में उच्च स्थान रखते हों अथवा दूसरों द्वारा अनुकूल दृष्टि से देखे जाते हों। यहाँ तक कि किसी समूह के अंदर भी विभिन्न सदस्य भिन्न-भिन्न सम्मान एवं प्रतिष्ठा रखते हैं। उदाहरण के लिए एक क्रिकेट टीम का कप्तान अन्य सदस्यों की अपेक्षा उच्च हैसियत या प्रतिष्ठा रखता है, जबकि सभी सदस्य टीम की सफलता के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण होते हैं।

क्रियाकलाप 7.1
समूह निर्माण की अवस्थाओं को पहचानना

अपनी कक्षा से दस सदस्यों का यादृच्छिक रूप से चयन कीजिए और मुक्त-सदन की योजना बनाने के लिए एक समिति गठित कीजिए। देखिए कि वे किस प्रकार आगे बढ़ते हैं। उन्हें संपूर्ण योजना बनाने की पूर्ण स्वायत्तता दें। कक्षा के दूसरे सदस्य उनके कार्य का प्रेक्षण करें।

क्या आप इसमें किसी अवस्था को उभरते हुए देखते हैं? वे कौन-सी अवस्थाएँ थीं? अवस्थाओं का क्रम क्या था? कौन-सी अवस्थाएँ छूट गईं? कक्षा में इस पर विचार-विमर्श कीजिए।

  • संसक्तता (cohesiveness) समूह सदस्यों के बीच एकता, बद्धता एवं परस्पर आकर्षण को इंगित करती है। जैसे-जैसे समूह अधिक संसक्त होता है समूह के सदस्य एक सामाजिक इकाई के रूप में विचार, अनुभव एवं कार्य करना प्रारंभ करते हैं और पृथक्कृत व्यक्तियों के समान कम। उच्च संसक्त समूह के सदस्यों में निम्न संसक्त सदस्यों की तुलना में समूह में बने रहने की तीव्र इच्छा होती है। संसक्तता दल-निष्ठा अथवा ‘वयं भावना’ अथवा समूह के प्रति आत्मीयता की भावना को प्रदर्शित करती है। एक संसक्त समूह को छोड़ना अथवा एक उच्च संसक्त समूह की सदस्यता प्राप्त करना कठिन होता है। हालाँकि कभी-कभी अत्यधिक संसक्तता समूह के हित में नहीं भी हो सकती है। मनोवैज्ञानिकों ने समूहचिंतन (groupthink) (बॉक्स 7.1 देखें) के गोचर की खोज की है जो अत्यधिक संसक्तता की एक परिणति होती है।

बॉक्स 7.1
समूहचिंतन

सामान्यतया समूह में टीम-कार्य हितकारी परिणाम देता है। फिर भी इरविंग जेनिस (Irving Janis) ने बताया है कि संसक्ति, प्रभावी नेतृत्व को बाधित कर सकती है और अनर्थकारी या घोर संकट उत्पन्न करने वाले निर्णयों को जन्म दे सकती है। जेनिस ने एक ऐसे प्रक्रम की खोज की जिसे ‘समूहचिंतन’ के नाम से जाना जाता है जिसमें समूह एकमत्य या सर्वसम्मति के प्रति ध्यान रखता है। वास्तव में ये ‘कार्य की योजना के वास्तविक मूल्यांकन की अभिप्रेरणा की अवहेलना करते हैं। यह निर्णयकर्ता के द्वारा तर्कहीन एवं अविवेचनात्मक निर्णय लेने की प्रवृत्ति में परिणत होता है। समूहूचिंन समूह में मतैक्य या सर्वसम्मत निर्णय के द्वारा परिभाषित होता है। प्रत्येक सदस्य यह विश्वास करता है कि सभी सदस्य किसी विशिष्ट निर्णय अथवा नीति पर सहमत हैं। कोई भी व्यक्ति असहमत मत व्यक्त नहीं करता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति यह विश्वास करता है कि यह समूह की संसक्ति को कम करेगा एवं वह अलोकप्रिय हो जाएगा। अध्ययन यह प्रदर्शित करते हैं कि ऐसे समूह में घटनाओं को नियंत्रित करने की स्वयं की क्षमता के संबंध में एक अतिरंजित भावना होती है और वास्तविक जगत के उन संकेतों को जो समूह की योजना के लिए खतरे का संकेत करता है, उन्हें वह नकारने या न्यूनीकृत करने की ओर प्रवृत्त हो जाता है। समूह के आंतरिक सामंजस्य एवं सामूहिक कुशल-क्षेम को संरक्षित रखने के लिए यह उत्तरोत्तर वास्तविकता के संपर्क से दूर हो जाता है। बाहरी लोगों से पृथक् एवं सामाजिक रूप से समजातीय संसक्त समूह जिसमें विकल्पों पर ध्यान देने की परंपरा नहीं होती है और निर्णय लेने में असफलता का सामना करना पड़ता है अथवा निर्णय के लिए जिन्हें उच्च कीमत चुकानी पड़ती है, वैसे समूह में समूहचिंतन के उत्पन्न होने की संभावना अधिक होती है। अंतराष्ट्रीय स्तर पर लिए गए अनेक समूह निर्णय के उदाहरणों को समूहचिंतन के गोचर के स्पष्टीकरण के लिए उद्धत किया जा सकता है। ये निर्णय बहुत बड़ी असफलता के रूप में परिणत हुए हैं। वियतनाम युद्ध इसका एक उदाहरण है। 1964 से 1967 तक राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन और संयुक्त राष्ट्र में उनके सलाहकारों ने वियतनाम युद्ध को यह सोच कर बढ़ाया कि यह युद्ध उत्तरी वियतनाम को शांति-वार्ता के लिए अग्रसर करेगा। चेतावनी के बावजूद युद्ध को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया। इस घोर गलत-आकलित निर्णय के परिणामस्वरूप 56,000 अमरीकियों एवं 10 लाख से अधिक वियतनामियों को अपनी जान गँवानी पड़ी और इसने बहुत बड़े बजट घाटे अर्थात आर्थिक तंगी को उत्पन्न किया। समूहचिंतन के रोकथाम अथवा प्रतिकार करने के कुछ उपाय अग्रांकित हैं - (1) समूह सदस्यों के बीच असहमति के बावजूद आलोचनात्मक चिंतन को पुरस्कृत एवं प्रोत्साहित करना, (2) समूह को वैकल्पिक कार्य योजना प्रस्तुत करने के लिए प्रत्साहित करना, (3) समूह के निर्णयों के मूल्यांकन के लिए बाहरी विशेषज्ञों को आमंत्रित करना और (4) सदस्यों को अन्य विश्वासपात्रों से अपने निर्णय के संबंध में प्रतिक्रिया को जानने के लिए प्रोत्साहित करना।

समूह के प्रकार

समूह अनेक पक्षों में भिन्न होते हैं; कुछ समूह में सदस्यों की संख्या अधिक होती है (जैसे - एक देश), कुछ छोटे होते हैं (जैसे - एक परिवार), कुछ बहुत थोड़े समय तक ही बने रहते हैं (जैसे - एक समिति), कुछ अनेक वर्षों तक साथ बने रहते हैं (जैसे - धार्मिक समूह), कुछ उच्च रूप से संगठित होते हैं (जैसे - सेना, पुलिस इत्यादि) और दूसरे अनौपचारिक रूप से संगठित होते हैं (जैसे - एक मैच के दर्शक)। लोग विभिन्न प्रकार के समूहों के सदस्य हो सकते हैं। समूहों के प्रमुख प्रकार को नीचे अंकित किया गया है -

  • प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह
  • औपचारिक एवं अनौपचारिक समूह
  • अंतःसमूह एवं बाह्य समूह।

प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह

प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह के मध्य एक प्रमुख अंतर यह है कि प्राथमिक समूह पूर्व-विद्यमान निर्माण होते हैं जो प्राय: व्यक्ति को प्रदत्त किया जाता है जबकि द्वितीयक समूह वे होते हैं जिसमें व्यक्ति अपनी पसंद से जुड़ता है। अतः परिवार, जाति एवं धर्म प्राथमिक समूह हैं जबकि राजनीतिक दल की सदस्यता द्वितीयक समूह का उदाहरण है। प्राथमिक समूह में मुखोन्मुख अंतःक्रिया होती है, सदस्यों में घनिष्ठ शारीरिक सामीप्य होता है और उनमें एक उत्साहपूर्ण सांवेगिक बंधन पाया जाता है। प्राथमिक समूह व्यक्ति के प्रकार्यों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं और विकास की आरंभिक अवस्थाओं में व्यक्ति के मूल्य एवं आदर्श के विकास में इनकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके विपरीत, द्वितीयक समूह वे होते हैं जहाँ सदस्यों में संबंध अधिक निर्वैयक्तिक, अप्रत्यक्ष एवं कम आवृत्ति वाले होते हैं। प्राथमिक समूह में सीमाएँ कम पारगम्य होती हैं अर्थात सदस्यों के पास इसकी सदस्यता वरण या चयन करने का विकल्प नहीं रहता है विशेष रूप से द्वितीयक समूह की तुलना में जहाँ इसकी सदस्यता को छोड़ना और दूसरे समूह से जुड़ना आसान होता है ।

औपचारिक एवं अनौपचारिक समूह

ऐसे समूह उस मात्रा में भिन्न होते हैं जिस मात्रा में समूह के प्रकार्य स्पष्ट एवं औपचारिक रूप से घोषित किए जाते हैं। एक औपचारिक समूह, जैसे - किसी कार्यालय संगठन के प्रकार्य स्पष्ट रूप से घोषित होते हैं। समूह के सदस्यों द्वारा निष्पादित की जाने वाली भूमिकाएँ स्पष्ट रूप से घोषित होती है। औपचारिक तथा अनौपचारिक समूह संरचना के आधार पर भिन्न होते हैं। औपचारिक समूह का निर्माण कुछ विशिष्ट नियमों या विधि पर आधारित होता है और सदस्यों की सुनिश्चित भूमिकाएँ होती हैं। इसमें मानकों का एक समुच्चय होता है जो व्यवस्था स्थापित करने में सहायक होता है। कोई विश्वविद्यालय एक औपचारिक समूह का उदाहरण है। दूसरी तरफ़ अनौपचारिक समूहों का निर्माण नियमों या विधि पर आधारित नहीं होता है और सदस्यों में घनिष्ठ संबंध होता है।

अंतःसमूह एवं बाह्य समूह

जिस प्रकार व्यक्ति अपनी तुलना दूसरों से समानता या भिन्नता के आधार पर इस संदर्भ में करते हैं कि क्या उनके पास है और क्या दूसरों के पास है, वैसे ही व्यक्ति जिस समूह से संबंध रखते हैं उसकी तुलना उन समूहों से करते हैं जिनके वे सदस्य नहीं हैं। ‘अंतःसमूह’ स्वयं के समूह को इंगित करता है और ‘बाह्य समूह’ दूसरे समूह को इंगित करता है। अंतःसमूह में सदस्यों के लिए ‘हमलोग’ (we) शब्द का उपयोग होता है जबकि बाह्य समूह के सदस्यों के लिए ‘वे’ (they) शब्द का उपयोग किया जाता है। हमलोग या वे शब्द के उपयोग से कोई व्यक्ति लोगों को समान या भिन्न के रूप में वर्गीकृत करता है। यह पाया गया है कि अंतःसमूह में सामान्यतया व्यक्तियों में समानता मानी जाती है, उन्हें अनुकूल दृष्टि से देखा जाता है और उनमें वांछनीय विशेषक पाए जाते हैं। बाह्य समूह के सदस्यों को अलग तरीके से देखा जाता है और उनका प्रत्यक्षण अंतःसमूह के सदस्यों की तुलना में प्रायः नकारात्मक होता है। अंतःसमूह

क्रियाकलाप 7.2
अंतःसमूह एवं बाह्य समूह में विभेद

कुछ समय पूर्व में आयोजित किसी अंतःसांस्थानिक प्रतियोगिता के बारे में विचार कीजिए। अपने मित्रों से अपने विद्यालय और इसके विद्यार्थियों के बारे में तथा एक दूसरे विद्यालय एवं उसके विद्यार्थियों के बारे में एक पैरग्राफ़्र का विवरण लिखने के लिए कहिए। अपनी कक्षा में अपने सहपाठियों तथा दूसरे विद्यालय के विद्यार्थियों के व्यवहार एवं विशेषताओं की एक सूची बनाने के लिए कहिए। दोनों के मध्य भिन्तताओं का प्रक्षण कीजिए एवं कक्षा में इस पर विचार-विमर्श कीजिए। क्या आप दोनों के बीच समानताएँ भी देखते हैं? यदि हाँ, तो इस पर भी परिचर्चा कीजिए।

बॉक्स 7.2
न्यूनतम समूह प्रतिमान प्रयोग

ताजफेल एवं उनके सहयोगियों की अंतःसमूह व्यवहार के लिए न्यूनतम शर्तों को जानने में अभिरुचि थी। इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए ‘न्यूनतम समूह प्रतिमान’ विकसित किया गया। ब्रिटिश विद्यालयों के बच्चों ने दो चित्रकारों, वैसिली कैंडिन्सकी एवं पाल क्ली, की पेंटिंग के प्रति अपनी वरीयता या पसंद को व्यक्त किया। बच्चों को यह बताया गया कि यह निर्णयन के संबंध में एक प्रयोग था। वे जानते थे कि उन्हें किस समूह (कैंडिन्सकी समूह तथा क्ली समूह) में रखा गया था। समूह के अन्य सदस्यों की पहचान को कोड संख्या के द्वारा गुप्त रखा गया था। इसके बाद बच्चों ने केवल समूह सदस्यता एवं कोड संख्या के आधार पर प्राप्तकर्ताओं के बीच धन का वितरण किया।

प्रतिदर्श वितरण आधात्री या मैट्रिक्स

अंतःसमूह - 78910111213141516171819

बाह्य समूह - 135791113151719212325

आप सहमत होंगे कि इन समूहों का निर्माण कमज़ोर कसौटी (अर्थात दो चित्रकारों की पेंटंग के प्रति वरीयता या पसंद) के आधार पर किया गया था जिनका न तो कोई पुराना इतिहास था और न ही भविष्य फिर भी परिणाम यह प्रदर्शित करते हैं कि बच्चों ने अपने समूह का पक्ष लिया।

तथा बाह्य समूह का प्रत्यक्षण हमारे सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है। इन भिन्नताओं को बॉक्स 7.2 में दिए गए ताजफेल (Tajfel) के प्रयोग का अध्ययन करके आसानी से समझा जा सकता है।

यद्यपि इस प्रकार का संवर्गीकरण करना एक सामान्य बात है फिर भी यह समझना चाहिए कि ये संवर्ग वास्तविक नहों है और ये हमलोगों के द्वारा बनाए गए हैं। कुछ संस्कृतियों में जैसे कि भारत में, बहुविधता को सम्मान दिया जाता है। हमलोगों की संस्कृति एक अनोखी सामासिक संस्कृति है जो न केवल हमारे उस जीवन में प्रदर्शित होती है जिसे हम जी रहे हैं बल्कि हमारी कला, स्थापत्य या वास्तुकला एवं संगीत में भी प्रतिबिंबित होती है।

व्यक्ति के व्यवहार पर समूह प्रभाव

हमने यह देखा कि समूह शक्तिशाली होते हैं क्योंकि ये व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं। इस प्रभाव की प्रकृति कैसी होती है? हमारे निष्पादन पर दूसरों की उपस्थिति का क्या प्रभाव पड़ता है? हम लोग दो स्थितियों की परिचर्चा करेंगे - (1) दूसरों की उपस्थिति में एक व्यक्ति का अकेले किसी कार्य पर निष्पादन करना (सामाजिक सुकरीकरण) (social facilitation) तथा (2) एक बड़े समूह के अंग के रूप में दूसरे व्यक्तियों के साथ एक व्यक्ति का किसी कार्य पर निष्पादन करना (सामाजिक स्वैराचार) (social loafing)।

सामाजिक स्वैराचार

सामाजिक सुकरीकरण शोध यह बताता है कि दूसरों की उपस्थिति भाव प्रबोधन उत्पन्न करती है और यह व्यक्ति को अपने निष्पादन में वृद्धि करने के लिए अभिप्रेरित करती है यदि वह पहले से ही कुछ चीज़ों का समाधान करने में अच्छे होते हैं। यह वृद्धि तब होती है जब व्यक्ति के प्रयासों का मूल्यांकन वैयक्तिक रूप से किया जाता है। यदि एक समूह में व्यक्ति के प्रयासों को समुच्चित कर दिया जाए या एक साथ मिला दिया जाए जिसके कारण आप संपूर्ण समूह के स्तर पर निष्पादन को देखने लगते हैं तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? क्या आप जानते हैं कि ऐसी स्थिति में प्राय: क्या होता है? यह पाया गया है कि अकेले निष्पादन करने की तुलना में समूह में व्यक्ति कम मेहनत से कार्य करता है। यह एक ऐसे गोचर को इंगित करता है जिसे ‘सामाजिक स्वैराचार’ कहा जाता है। सामाजिक स्वैराचार सामूहिक कार्य अर्थात वैसा कार्य जिसमें कार्य के परिणाम में समूह के सभी अन्य सदस्यों का प्रयास सम्मिलित रहता है, करने में व्यक्तिगत प्रयास की कमी है। ऐसे एक कार्य का उदाहरण रस्साकशी का खेल है। आपके लिए यह पहचान करना संभव नहीं होता है कि दल का प्रत्येक सदस्य कितना बल लगा रहा है। ऐसी स्थितियाँ समूह सदस्यों को विश्राम करने एवं दूसरे के प्रयास का परिणाम मु.प्त में प्राप्त करने या मु.प्तखोर बनने का अवसर प्रदान करती हैं। इस गोचर को लताने (Latane) एवं सहयोगियों द्वारा किए गए अनेक प्रयोगों में प्रदर्शित किया गया है जिसमें इन लोगों ने छात्रों के समूह को जितना संभव हो सके उतने ज़ोर से ताली बजाने या वाहवाही करने के लिए कहा क्योंकि ये लोग (प्रयोक्ता या प्रयोगकता) यह जानने में अभिरुचि रखते थे कि लोग सामाजिक स्थितियों में कितना शोरगुल करते हैं। इन लोगों ने समूह के आकार में परिवर्तन किया, व्यक्ति या तो अकेले थे अथवा दो, चार एवं छः व्यक्तियों के समूह में थे। इस अध्ययन के परिणाम ने यह प्रदर्शित किया कि यद्यपि शोरगुल की मात्रा समूह के आकार के बढ़ने के साथ बढ़ी परंतु प्रत्येक सहभागी के द्वारा उत्पन्न किए गए शोरगुल की मात्रा घट गई। दूसरे शब्दों में जैसे-जैसे समूह का आकार बढ़ा प्रत्येक सहभागी ने कम प्रयास किया। सामाजिक स्वैराचार क्यों उत्पन्न होता है? जो व्याख्याएँ दी गई हैं वे निम्न हैं -

  • समूह के सदस्य निष्पादित किए जाने वाले संपूर्ण कार्य के प्रति कम उत्तरदायित्व का अनुभव करते हैं और इस कारण वे कम प्रयास करते हैं।
  • सदस्यों की अभिप्रेरणा कम हो जाती है क्योंकि वे अनुभव करते हैं कि उनके योगदान का मूल्यांकन व्यक्तिगत स्तर पर नहीं किया जाएगा।
  • समूह के निष्पादन की तुलना किसी दूसरे समूह से नहीं की जाती है।
  • सदस्यों के बीच अनुपयुक्त समन्वय होता है (या समन्वय नहीं होता है)।
  • सदस्यों के लिए उसी समूह की सदस्यता आवश्यक नहीं होती है। यह मात्र व्यक्तियों का एक समुच्चयन या समूहन होता है।

सामाजिक स्वैराचार को निम्न के द्वारा कम किया जा सकता है -

  • प्रत्येक सदस्य के प्रयासों को पहचानने योग्य बनाना।
  • कठोर परिश्रम के लिए दबाव को बढ़ाना (सफल कार्य निष्पादन के लिए समूह सदस्यों को वचनबद्ध करना)।
  • कार्य के प्रकट महत्त्व या मूल्य को बढ़ाना।
  • लोगों को यह अनुभव कराना कि उनका व्यक्तिगत प्रयास महत्वपूर्ण है।
  • समूह संसक्तता को प्रबल करना जो समूह के सफल परिणाम के लिए अभिप्रेरणा को बढ़ाता है।

समूह ध्रुवीकरण

हम सभी जानते हैं कि महत्वपूर्ण निर्णय समूह के द्वारा लिए जाते हैं न कि व्यक्तियों के द्वारा अकेले। उदाहरण के लिए यह निर्णय करना है कि क्या गाँव में विद्यालय स्थापित किया जाए? ऐसा निर्णय एक समूह निर्णय होना चाहिए। हम लोगों ने यह भी देखा है कि जब समूह निर्णय लेते हैं तो कभी-कभी समूहचिंतन के गोचर के उत्पन्न होने का भय बना रहता है (बॉक्स 7.1 देखें)। समूह दूसरे प्रकार की प्रवृत्ति भी प्रदर्शित करते हैं जिसे ‘समूह ध्रुवीकरण’ कहा जाता है। यह पाया गया है कि व्यक्तियों के द्वारा अकेले की तुलना में समूह द्वारा अंतिम निर्णय लेने की संभावना अधिक होती है। मान लीजिए कि एक कर्मचारी को घूस लेते हुए अथवा किसी अन्य अनैतिक कार्य करते हुए पकड़ा गया है। कर्मचारी के सहयोगियों से यह पूछा जाता है कि उसे क्या दंड दिया जाना चाहिए। वे कर्मचारी को अपराध से मुक्त कर सकते हैं अथवा उसके अनैतिक कार्य के अनुकूल दंड देने के स्थान पर उसे नौकरी से निकाल देने (सेवा-समाप्ति) का निर्णय ले सकते हैं। समूह की प्रारंभिक स्थिति जो भी हो, समूह में विचार-विमर्श के परिणामस्वरूप यह स्थिति और मज़बूत हो जाती है। समूह में अंतःक्रिया और विचार-विमर्श के परिणामस्वरूप समूह की प्रारंभिक स्थिति की इस प्रबलता या मज़बूती को समूह ध्रुवीकरण कहा जाता है। इसके कभी-कभी खतरनाक प्रभाव या परिणाम हो सकते हैं क्योंकि समूह चरम स्थितियों, अर्थात बहुत कमज़ोर से बहुत कठोर निर्णय लेने की स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं।

समूह ध्रुवीकरण क्यों उत्पन्न होता है? चलिए एक उदाहरण को लें कि क्या मृत्युदंड का प्रावधान होना चाहिए। मान लीजिए कि आप जघन्य अपराध के लिए मृत्युदंड के पक्ष में हैं और यदि आप इस मुद्दे पर किसी समान विचार रखने वाले व्यक्ति से परिचर्चा कर रहे हैं तो क्या होगा? इस अंतःक्रिया के बाद आपका विचार और

अधिक दृढ़ हो सकता है। इस दृढ़ धारणा के निम्नलिखित तीन कारण हैं -

  • समान विचार रखने वाले व्यक्ति की संगति में आपके दृष्टिकोण को समर्थित करने वाले नए तर्क को सुनने की संभावना रहती है। यह आपको मृत्युदंड के प्रति अधिक पक्षधर बनाएगा।
  • जब आप यह देखते हैं कि अन्य लोग भी मृत्युदंड के पक्ष में हैं तो आप यह अनुभव करते हैं कि यह दृष्टिकोण या विचार जनता के द्वारा वैधीकृत किया जा रहा है। यह एक प्रकार का अनुरूपता प्रभाव (bandwagon effect) है।
  • जब आप समान विचार रखने वाले व्यक्तियों को देखते हैं तो संभव है कि आप उन्हें अंतःसमूह के रूप में देखें। आप समूह के साथ तादात्म्य स्थापित करना प्रारंभ कर देते हैं, अनुरूपता का प्रदर्शन आरंभ कर देते हैं और जिसके परिणामस्वरूप आपके विचार दृढ़ हो जाते हैं।

क्रियाकलाप 7.3
ध्रुवीकरण का मूल्यांकन

अपनी कक्षा में अध्यापक द्वारा निर्मित एक 5 -एकांशीय लघु अभिवृत्ति मापनी मृत्युदंड के प्रति अभिवृत्ति मापन के लिए दीजिए। उनकी अनुक्रियाओं के आधार पर कक्षा को दो समूहों, अर्थात मृत्युदंड समर्थक एवं मृत्युदंड विरोधी समूह, में विभाजित करें। अब इन समूहों को दो अलग-अलग कमरों में बैठाएँ और उन्हें हाल के एक ऐसे मुकदमे पर परिचर्चा करने के लिए कहिए जिसमें न्यायालय द्वारा मृत्युदंड की सज़ा सुनाई गई हो। देखें कि इन दोनों समूहों में परिचर्चा किस प्रकार से आगे बढ़ती है। परिचर्चा के बाद दोनों समूहों को अभिवृत्ति मापनी पुन: दीजिए। यह जाँच करें कि क्या समूह परिचर्चा के परिणामस्वरूप दोनों समूहों में प्रारंभिक स्थिति की तुलना में स्थिति अधिक दृढ़ हुई है।

प्रमुख पद

संसक्तता, द्वंद्य, लक्ष्य प्राप्ति, समूह, समूह निर्माण, समूहचिंतन, अनन्यता, परस्पर-निर्भरता, प्रतिमान या मानक, बाह्य समूह, सान्निध्य, भूमिकाएँ, सामाजिक प्रभाव, सामाजिक स्वैराचार, हैसियत या प्रतिष्ठा, संरचना।

सारांश

  • समूह व्यक्तियों के दूसरे प्रकार के एकत्रीकरण से भिन्न होते हैं। परस्पर-निर्भरता, भूमिकाएँ, हैसियत या प्रतिष्ठा तथा प्रत्याशाएँ समूह की प्रमुख विशेषताएँ होती हैं।
  • समूह दो या दो से अधिक व्यक्तियों की एक संगठित व्यवस्था है।
  • लोग समूहों में इसलिए सम्मिलित होते हैं क्योंकि समूह सुरक्षा, हैसियत, आत्म-सम्मान, लक्ष्य प्राप्त, ज्ञान और सूचना या जानकारी तथा व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं को संतुष्टि प्रदान करता है।
  • सान्निध्य, समानता तथा समान अभिप्रेरणा और लक्ष्य समूह निर्माण को सुकर बनाते हैं।
  • सामान्यतया समूह कार्य का परिणाम लाभप्रद होता है। हालाँकि कभी-कभी संसक्त तथा समजातीय समूह में समूहचिंतन का गोचर उत्पन्न हो सकता है।
  • समूह विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे - प्राथमिक एवं द्वितीयक, औपचारिक एवं अनौपचारिक तथा अंतःसमूह एवं बाह्य समूह।
  • समूह व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। सामाजिक सुकरीकरण एवं सामाजिक स्वैराचार समूह के दो मुख्य प्रभाव हैं।

समीक्षात्मक प्रश्न

1. औपचारिक एवं अनौपचारिक समूह तथा अंतः एवं बाह्य समूहों की तुलना कीजिए एवं अंतर बताइए।

2. क्या आप किसी समूह के सदस्य हैं? वह क्या है जिसने आपको इस समूह में सम्मिलित होने के लिए अभिप्रेरित किया? इसकी विवेचना कीजिए।

3. समूह निर्माण को समझने में टकमैन का अवस्था मॉडल किस प्रकार से सहायक है?

4. समूह हमारे व्यवहार को किस प्रकार से प्रभावित करते हैं?

5. समूहों में सामाजिक स्वैराचार को कैसे कम किया जा सकता है? अपने विद्यालय में सामाजिक स्वैराचार की किन्हों दो घटनाओं पर विचार कीजिए। आपने इसे कैसे दूर किया?

परियोजना विचार

1. भारत द्वारा हाल में खेली गई किसी टेस्ट मैच शृंखला (क्रिकेट की) को लीजिए। उस अवधि के समाचारपत्रों को एकत्र कीजिए। मैचों की समीक्षा एवं भारतीय तथा प्रतिद्वंद्वी विवरणकार (कॉमेंटेटर) की टिप्पणियों का मूल्यांकन कीजिए। क्या आप टिप्पणियों में कोई अंतर देखते हैं?



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