अध्याय 01 मनोवैज्ञानिक गुणों में विभिन्नताएँ
परिचय
यदि आप अपने मित्रों, सहपाठियों या संबंधियों का प्रेक्षण करें तो आप पाएँगे कि उनके प्रत्यक्षण करने, सीखने और चिंतन करने के साथ-साथ विभिन्न कृत्यों को निष्पादित करने के उनके ढंग में अनेक भिन्नताएँ हैं। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ऐसी व्यक्तिगत भिन्नताएँ देखी जा सकती हैं। इस तरह यह स्पष्ट है कि सभी व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होते हैं। कक्षा 11 में आपने उन मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों को पढ़ा है जो मानव व्यवहार को समझने में अनुप्रयुक्त होते हैं। हमें यह भी जानने की आवश्यकता है कि किस तरह लोग भिन्न होते हैं, ये भिन्नताएँ कैसे उत्पन्न होती हैं और कैसे इन भिन्नताओं का मूल्यांकन किया जा सकता है। आपको स्मरण होगा कि कैसे गाल्टन (Galton) के समय से ही व्यक्तिगत भिन्नताओं का अध्ययन आधुनिक मनोविज्ञान का मुख्य अध्ययन क्षेत्र रहा है। इस अध्याय के माध्यम से व्यक्तिगत भिन्नताओं की कुछ मूल बातों से आप परिचित होंगे।मनोवैज्ञानिकों के लिए रुचिकर प्रमुख मनोवैज्ञानिक गुणों में से एक बुद्धि है। लोग एक दूसरे से जटिल विचारों को समझने, पर्यावरण से अनुकूलन करने, अनुभव से सीखने, विविध प्रकार की तर्कनाओं में व्यस्त होने तथा विविध बाधाओं पर विजय प्राप्त करने की योग्यता में एक दूसरे से भिन्न होते हैं। इस अध्याय में आप बुद्धि का स्वरूप, बुद्धि संत्रत्यय की बदलती परिभाषाएँ, बुद्धि में सांस्कृतिक भिन्नताएँ, लोगों की बौद्धिक सक्षमताओं की सीमा और उनमें विचलन तथा विशिष्ट योग्यताओं या अभिक्षमताओं की प्रकृति के बारे में पढ़ेंगे।
मानव प्रकार्यों में व्यक्तिगत भिन्नताएँ
विभिन्न प्रजाति के प्राणियों में तथा किसी एक ही प्रजाति के प्राणियों में भी समान ढंग की वैयक्तिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं। भिन्नताओं के कारण ही प्रकृति में आकर्षण तथा सौंदर्य होता है। एक क्षण के लिए अपने चतुर्दिक् ऐसे जगत की कल्पना करें जिसमें जरा सोचें कि सभी वस्तुएँ एक ही रंग की, लाल या नीली अथवा हरी हों तो दुनिया कैसी लगेगी। निश्चित ही वह सुंदर नहीं होगी। पूरी संभावना है कि आपका उत्तर नहीं होगा और न आप ऐसे संसार में रहना ही चाहेंगे। वस्तुओं की तरह ही मनुष्यों में भी विविधता पाई जाती है। प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न विशेषकों का सम्मिश्रण होता है।
विचलनशीलता या विभिन्नता एक प्राकृतिक तथ्य है और व्यक्ति इसके अपवाद नहीं हैं। प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से शारीरिक विशेषताओं जैसे - ऊँचाई, वज़न, शक्ति, बालों का रंग आदि में भिन्न होता है। उनमें मनोवैज्ञानिक विशेषताओं में भी भिन्नताएँ पाई जाती हैं। वे अधिक या कम बुद्धिमान हो सकते हैं, प्रभावी या विनम्र हो सकते हैं, उच्च मात्रा में सर्जनशील या बिल्कुल भी सर्जनशील नहीं हो सकते हैं तथा जावक या विनिवर्तित हो सकते हैं। विभिन्नताओं की सूची बहुत लंबी हो सकती है। किसी एक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न विशेषकों की भिन्न-भिन्न मात्राएँ हो सकती हैं। इस प्रकार हममें से प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय होता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति विभिन्न विशेषकों के विशिष्ट सम्मिश्रण को अभिव्यक्त करता है। आप प्रश्न कर सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति क्यों और कैसे एक दूसरे से भिन्न हो जाता है। वस्तुतः इस प्रश्न से संबंधित विषयवस्तु ही व्यक्तिगत भिन्नताओं (individual differences) का अध्ययन कहा जाता है। मनोवैज्ञानिकों के लिए व्यक्तिगत भिन्नता का अर्थ है व्यक्तियों की विशेषताओं तथा व्यवहार के स्वरूपों में पाया जाने वाला वैशिष्ट्य तथा विचलनशीलता।
कुछ मनोवैज्ञानिक यह विश्वास करते हैं कि हमारे व्यवहार हमारे व्यक्तिगत विशेषकों से प्रभावित होते हैं जबकि कुछ दूसरे मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि हमारे व्यवहार स्थितिपरक कारकों से अधिक निर्धारित होते हैं। यह दूसरा मत स्थितिवाद (situationism) कहा जाता है जिसमें यह मान्यता है कि किसी व्यक्ति का व्यवहार उसकी परिस्थिति या वर्तमान दशाओं से प्रभावित होता है। एक व्यक्ति जो सामान्यतः आक्रामक प्रवृति का है, अपने सर्वोच्च अधिकारी की उपस्थिति में बहुत विनम्र व्यवहार करता है। कभी-कभी स्थितियों का प्रभाव इतना शक्तिशाली होता है कि व्यक्तित्व के भिन्न-भिन्न विशेषकों को रखने वाले लोगों का व्यवहार लगभग समान होता है। स्थितिवादी परिप्रेक्ष्य बाह्य कारकों के प्रभाव को मनुष्य के व्यवहार के लिए अपेक्षाकृत अधिक प्रभावकारी मानता है।
मनोवैज्ञानिक गुणों का मूल्यांकन
व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक गुणों का संबंध बहुत सरल घटना, जैसे - किसी उद्दीपक के प्रति अनुक्रिया करने में लगने वाला समय अर्थात प्रतिक्रिया काल से भी होता है और बहुत अधिक व्यापक संप्रत्यय, जैसे - प्रसन्नता से भी होता है। मापन करने योग्य समस्त मनोवैज्ञानिक गुणों को परिभाषित करना और उनकी सूची बना पाना एक कठिन कार्य है। किसी मनोवैज्ञानिक गुण को समझने का पहला चरण उसका मूल्यांकन (assessment) करना है। मूल्यांकन करने का अर्थ व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक गुणों का मापन करने से है। मापन के अंर्गत व्यक्तियों के गुणों की तुलना करने की अनेक मानक विधियाँ अपनाई जा सकती हैं। किसी व्यक्ति में किसी गुण की उपस्थिति तभी स्वीकार की जाती है जब उस गुण का किसी वैज्ञानिक विधि से मापन किया जा सके। उदाहरण के लिए जब हम कहते हैं कि ‘हरीश एक प्रभावी व्यक्ति है’ तो हम हरीश में ‘प्रभाविता’ होने की मात्रा का संकेत करते हैं। हरीश के बारे में हमारा यह कथन उसमें ‘प्रभाविता’ होने के गुण का हमारे द्वारा किए गए मूल्यांकन का परिणाम है। किसी गुण का मूल्यांकन अनौपचारिक अथवा औपचारिक हो सकता है। औपचारिक मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ, मानकीकृत तथा व्यवस्थित रूप में किया जाता है। दूसरी ओर अनौपचारिक मूल्यांकन जिन व्यक्तियों का किया जाना है उनके बदल जाने से तथा मूल्यांकन करने वाले व्यक्तियों के बदल जाने से परिवर्तित होता रहता है जिससे प्राप्त परिणाम या मूल्यांकन की व्यक्तिनिष्ठ व्याख्या होने लगती है। मनोवैज्ञानिक गुणों के औपचारिक मूल्यांकन के लिए मनोवैज्ञानिकों को प्रशिक्षित किया जाता है।
मूल्यांकन कर लेने के पश्चात प्राप्त सूचना के आधार पर हम हरीश द्वारा भविष्य में किए जाने वाले व्यवहारों का पूर्वकथन कर सकते हैं। हम यह पूर्वकथन कर सकते हैं कि यदि भविष्य में हरीश को किसी दल का नेतृत्व करने का अवसर दिया गया तो उसके एक सत्तावादी नेता होने की संभावना अधिक होगी। यदि हमें यह पूर्वकथन के अनुसार उत्पन्न स्थिति ग्राह्य नहीं है तो हम इसमें हस्तक्षेप करते हुए हरीश के व्यवहारों में परिवर्तन लाने का प्रयास कर सकते हैं। मूल्यांकन किए जाने के लिए किसी गुण का चयन हमारे उद्देश्यों पर निर्भर करता है। यदि हम किसी कमज़ोर विद्यार्थी द्वारा परीक्षा में अच्छा निष्पादन करने में सहायता करना चाहते हैं तो हमें उसकी बौद्धिक शक्ति तथा कमज़ोरियों का मूल्यांकन करना होगा। यदि कोई व्यक्ति अपने परिवार तथा पड़ोस के सदस्यों के साथ समायोजन नहीं कर पा रहा है तो हम उसके व्यक्तित्व विशेषकों के मूल्यांकन पर विचार कर सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति में अभिप्रेरणा की मात्रा बहुत कम है तो हम उसकी अभिरुचियों तथा वरीयताओं का मूल्यांकन कर सकते हैं। व्यक्तियों की योग्यताओं, व्यवहारों, और व्यक्तिगत गुणों के मनोवैज्ञानिक मापन में व्यवस्थित परीक्षण की विधियों का उपयोग किया जाता है।
मनोवैज्ञानिक गुणों के कुछ क्षेत्र
मनोवैज्ञानिक गुण रेखीय अथवा एकविमीय नहीं होते। वे जटिल होते हैं और उन्हें कई विमाओं द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। कोई एक रेखा बहुत से बिंदुओं का एक समूह होती है और बिंदु कोई स्थान नहीं घेरता। परंतु एक डिब्बे के बारे में सोचें तो यह स्थान घेरता है। डिब्बे का वर्णन इसकी तीन विमाओं की सहायता से किया जा सकता है। ये तीन विमाएं हैं- इसकी लंबाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई। यही स्थिति मनोवैज्ञानिक गुणों की भी होती है। ये गुण सामान्यतया बहुविमात्मक या बहुपक्षीय होते हैं। यदि आप किसी व्यक्ति का पूर्ण मूल्यांकन करना चाहते हैं तो आपको यह मूल्यांकन करना होगा कि वह विभिन्न क्षेत्रों, जैसे - संज्ञातात्मक, सांवेगिक, सामाजिक आदि में कैसा व्यवहार या निष्पादन करता है।
इस अध्याय में हम मनोवैज्ञानिकों की अभिरुचि के कुछ महत्वपूर्ण गुणों का वर्णन करेंगे। इन गुणों का संवर्गीकरण मनोवैज्ञानिक साहित्य में उल्लिखित अनेक प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षणों पर आधारित है।
1. बुद्धि(intelligence) का आशय पर्यावरण को समझने, सविवेक चिंतन करने तथा किसी चुनौती के सामने होने पर उपलन्ध संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की व्यापक क्षमता से है। बुद्धि परीक्षणों से व्यक्ति की व्यापक सामान्य संज्ञानात्मक सक्षमता तथा विद्यालयीय शिक्षा से लाभ उठाने की योग्यता का ज्ञान होता है। सामान्यतया कम बुद्धि रखने वाले विद्यार्थी विद्यालय की परीक्षाओं में उतना अच्छा निष्पादन करने की संभावना नहीं रखते परंतु जीवन के अन्य क्षेत्रों में उनकी सफलता की प्राप्ति का संबंध मात्र बुद्धि परीक्षणों पर उनके प्राप्तांकों से नहीं होता।
2. अभिक्षमता (aptitude) का अर्थ किसी व्यक्ति की कौशलों के अर्जन के लिए अंतर्निहित संभाव्यता से है। अभिक्षमता परीक्षणों का उपयोग यह पूर्वकथन करने में किया जाता है कि व्यक्ति उपयुक्त पर्यावरण और प्रशिक्षण प्रदान करने पर कैसा निष्पादन कर सकेगा। एक उच्च यांत्रिक अभिक्षमता वाला व्यक्ति उपयुक्त प्रशिक्षण का अधिक लाभ उठाकर एक अभियंता के रूप में अच्छा कार्य कर सकता है। इसी प्रकार भाषा की उच्च अभिक्षमता वाले एक व्यक्ति को प्रशिक्षण देकर एक अच्छा लेखक बनाया जा सकता है।
3. अभिरुचि (interest) का अर्थ किसी व्यक्ति द्वारा दूसरी क्रियाओं की अपेक्षा किसी एक अथवा एक से अधिक विशिष्ट क्रियाओं में स्वयं को अधिक व्यस्त रखने की वरीयता से है। विद्यार्थियों की अभिरुचि के मूल्यांकन से हमें यह निर्णय लेने में सहायता मिल सकती है कि वे किन विषयों या पाठ्यक्रमों का प्रसन्नता के साथ अध्ययन कर सकते हैं। अभिरुचि का ज्ञान हमें विकल्पों के निर्धारण में सहायता करता है जो जीवन में संतुष्टि के साथ-साथ कार्य निष्पादन को उन्नत करता है।
4. व्यक्तित्व (personality) का अर्थ व्यक्ति की अपेक्षाकृत स्थायी प्रकार की उन विशेषताओं से है जो उसे अन्य व्यक्तियों से भिन्न बनाती हैं। व्यक्तित्व परीक्षण व्यक्ति की अद्वितीय विशेषताओं, जैसे व्यक्ति प्रभावी है या विनम्र, जावक है या विनिवर्तित, संवेगत: स्थिर है या तुनक-मिज़ाज आदि का मूल्यांकन करने का प्रयास करता है। व्यक्तित्व-मूल्यांकन हमें किसी व्यक्ति के व्यवहारों की व्याख्या करने में सहायता प्रदान करने के साथ-साथ यह पूर्वकथन करने की क्षमता प्रदान करता है कि व्यक्ति भविष्य में कैसा व्यवहार करेगा।
5. मूल्य (value) आदर्श व्यवहारों के संबंध में व्यक्ति के स्थायी विश्वास होते हैं। व्यक्ति के मूल्य उसके जीवन में व्यवहारों के लिए एक मानक निर्धारित करते हैं और उन्हें निर्देशित करते हैं। मूल्यों द्वारा ही व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों के व्यवहारों के औचित्य का मूल्यांकन करता है। मूल्यों के मूल्यांकन में हम किसी व्यक्ति में प्रभावी मूल्यों का निर्धारण करते हैं। उदाहरण के लिए मूल्यांकन द्वारा हम यह जानना चाहते हैं कि किसी व्यक्ति में राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक आदि मूल्यों में से कौन-सा मूल्य उसके व्यवहार को निर्देशित करने हेतु प्रभावी रहता है।
मूल्यांकन की विधियाँ
मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के लिए अनेक विधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं। इनमें से कुछ विधियों के बारे में आप कक्षा 11 में पढ़ चुके हैं। आइए हम फिर उनकी प्रमुख विशेषताओं का पुनःस्मरण करें।
- मनोवैज्ञानिक परीक्षण (psychological test) व्यक्ति की मानसिक तथा व्यवहारपरक विशेषताओं का वस्तुनिष्ठ तथा मानकीकृत मापक होता है। ऊपर बताई गई सभी मनोवैज्ञानिक विशेषताओं (उदाहरणार्थ बुद्धि, अभिक्षमता आदि) की सभी विमाओं के मापन के लिए वस्तुनिष्ठ परीक्षण विकसित किए जा चुके हैं। क्लिनिकल निदान, निर्देशन, कार्मिक चयन, स्थानन तथा प्रशिक्षण आदि कार्यों में इन परीक्षणों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के अतिरिक्त मनोवैज्ञानिकों ने विशेष रूप से व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए कुछ प्रक्षेपी परीक्षणों का भी निर्माण किया है। इनके बारे में आप अध्याय 2 में पढ़ढंगे।
- साक्षात्कार (interview) की विधि में परीक्षणकर्ता व्यक्ति से वार्तालाप करके सूचनाएँ एकत्र करता है। आप इसे प्रयुक्त होते हुए देख सकते हैं जब कोई परामर्शद किसी सेवार्थी से अंतःक्रिया करता है, एक विक्रेता घर-घर जाकर किसी विशिष्ट उत्पाद की उपयोगिता के संबंध में सर्वेक्षण करता है, कोई नियोक्ता अपने संगठन के लिए कर्मचारियों का चयन करता है अथवा कोई पत्रकार राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों पर महत्वपूर्ण व्यक्तियों का साक्षात्कार करता है।
- व्यक्ति अध्ययन (case study) विधि में किसी व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक गुणों तथा उसके मनोसामाजिक और भौतिक पर्यावरण के संदर्भ में उसके मनोवैज्ञानिक इतिहास आदि का गहनता से अध्ययन किया जाता है। नैदानिक मनोवैज्ञानिक इस विधि का व्यापक रूप से उपयोग करते हैं। इच्छुक व्यक्ति महान व्यक्तियों के जीवन के केस विश्लेषणों द्वारा उन महान व्यक्तियों के जीवन अनुभवों से सीख प्राप्त कर सकता है। व्यक्ति अध्ययन में विभिन्न विधियों, जैसे - साक्षात्कार, प्रेक्षण, प्रश्नावली, मनोवैज्ञानिक परीक्षण आदि के उपयोग से प्रदत्त या आँकड़े एकत्र किए जाते हैं।
- प्रेक्षण (observation) में व्यक्ति की नैसर्गिक या स्वाभाविक दशा में घटित होने वाली तात्क्षणिक व्यवहारपरक घटनाओं का व्यवस्थित, संगठित तथा वस्तुनिष्ठ ढंग से अभिलेख तैयार किया जाता है। कुछ गोचर, जैसे ‘मातृ-शिशु अंतःक्रिया’ का अध्ययन प्रेक्षण-प्रणाली द्वारा सरलता से किया जा सकता है। प्रेक्षण-प्रणाली की एक बड़ी समस्या यह है कि इसमें स्थिति पर प्रेक्षक का बहुत कम नियंत्रण होता है और प्रेक्षण से प्राप्त विवरण की प्रेक्षक द्वारा व्यक्तिनिष्ठ व्याख्या की जा सकती है।
- आत्म-प्रतिवेदन(self-report) वह विधि है जिसमें व्यक्ति स्वयं अपने विश्वासों, मतों आदि के बारे में तथ्यात्मक सूचनाएँ प्रदान करता है। ऐसी सूचनाएँ किसी साक्षात्कार अनुसूची अथवा प्रश्नावली, किसी मनोवैज्ञानिक परीक्षण अथवा वैयक्तिक डायरी का उपयोग करके प्राप्त की जा सकती हैं।
बुद्धि
व्यक्तियों की पारस्परिक भिन्नता जानने में बुद्धि एक मुख्य निर्मिति है। किसी व्यक्ति की बुद्धि जानने से यह भी ज्ञात होता है कि वह अपने पर्यावरण के अनुरूप अपने व्यवहार को किस प्रकार अनुकूलित करता है। इस खंड में आप बुद्धि तथा उसके विभिन्न स्वरूपों के बारे में पढ़ेंगे।
सामान्यजन बुद्धि के स्वरूप के बारे में जो समझते हैं, मनोवैज्ञानिकों द्वारा उससे बिल्कुल भिन्न ढंग से इसे समझा जाता है। यदि आप किसी बुद्धिमान व्यक्ति के व्यवहारों का प्रेक्षण करें तो आप पाएँगे कि उसमें मानसिक सतर्कता, हाज़िरज़वाबी, शीघ्र सीख लेने की योग्यता और संबंधों को समझ लेने की योग्यता जैसे अनेक गुण होते हैं। ऑक्सफोर्ड शब्दकोश ने बुद्धि को प्रत्यक्षण करने (perceiving), सीखने (learning), समझने (understanding) और जानने (knowing) की योग्यता के रूप में परिभाषित किया है। बुद्धि के प्रारंभिक सिद्धांतकारों ने भी इन्हीं गुणों द्वारा बुद्धि को परिभाषित किया था। अल्फ्रेड बिने (Alfred Binet) बुद्धि के विषय पर शोधकार्य करने वाले पहले मनोवैज्ञानिकों में से एक थे। उन्होंने बुद्धि को अच्छा निर्णय लेने की योग्यता, अच्छा बोध करने की योग्यता और अच्छा तर्क प्रस्तुत करने की योग्यता के रूप में परिभाषित किया। वेश्लर (Wechsler), जिनका बनाया गया बुद्धि परीक्षण बहुत व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, ने बुद्धि को उसकी प्रकार्यात्मकता के रूप में समझा अर्थात उन्होंने पर्यावरण के प्रति अनुकूलित होने में बुद्धि के मूल्य को महत्त्व प्रदान किया। वेश्लर के अनुसार बुद्धि व्यक्ति की वह समग्र क्षमता है जिसके द्वारा व्यक्ति सविवेक चिंतन करने, सोद्देश्य व्यवहार करने तथा अपने पर्यावरण से प्रभावी रूप से निपटने में समर्थ होता है। कुछ अन्य मनोवैज्ञानिकों, जैसे -
क्रियाकलाप 1.1
बुद्धिमान व्यक्तियों के गुणों का पता लगाना
1. आपकी कक्षा में सबसे बुद्धिमान सहपाठी कौन है? उसके गुणों के बारे में कुछ शब्दों/वाक्यांशों में उसका वर्णन कीजिए।
2. इसके पश्चात् अपने परिचितों में से तीन अन्य बुद्धिमान व्यक्तियों को छाँटकर उनमें से प्रत्येक के गुणों के बारे में कुछ शब्दों वाक्यांशों में वर्णन कीजिए।
3. प्रथम बिंदु के अंतर्गत लिखे गए गुणों के संदर्भ में बाद के तीन व्यक्तियों के गुणों का तुलनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
4. ऐसे सभी गुणों की एक सूची बनाइए जिन्हें आप बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहारों को अभिव्यक्ति समझते हैं। इस सूची के आधार पर बुद्धि को परिभाषित करने का प्रयास कीजिए।
5. अपने विवरण के बारे में अपने सहपाठियों तथा अध्यापक से विचार-विमर्श कीजिए।
6. अपने विवरण की तुलना ‘बुद्धि’ के बारे में शोधकर्ताओं के विवरण से कीजिए।
गार्डनर (Gardner) और स्टर्नबर्ग (Sternberg) का सुझाव है कि एक बुद्धिमान व्यक्ति न केवल अपने पर्यावरण से अनुकूलन करता है बल्कि उसमें सक्रियता से परिवर्तन और परिमार्जन भी करता है। आपको बुद्धि का संप्रत्यय और उसका क्रमविकास बुद्धि के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों की विवेचना किए जाने के उपरांत समझ में आ जाएगा।
बुद्धि के सिद्धांत
मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है। इन सिद्धांतों को मोटे तौर पर मनोमितिक/संरचनात्मक उपागम अथवा सूचना प्रक्रमण उपागम का प्रतिनिधित्व करने वाले दो संवर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
मनोमितिक उपागम (psychometric approach) में बुद्धि को अनेक प्रकार की योग्यताओं का एक समुच्चय माना जाता है। यह व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले निष्पादन को उसकी संज्ञानात्मक योग्यताओं के एक सूचकांक के रूप में व्यक्त करता है। दूसरी ओर, सूचना प्रक्रमण उपागम (information-processing approach) में बौद्धिक तर्कना तथा समस्या समाधान में व्यक्तियों द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रक्रियाओं का वर्णन किया जाता है। इस उपागम का प्रमुख केंद्रबिंदु एक बुद्धिमान व्यक्ति द्वारा की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं पर होता है। बुद्धि की संरचना तथा उसमें अंतर्निहित विभिन्न विमाओं पर अधिक ध्यान न देकर सूचना प्रक्रमण उपागम बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहारों में अंतर्निहित संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के अध्ययन पर अधिक बल देता है। अब हम इन दो उपागमों के कुछ प्रतिनिधि सिद्धांतों का वर्णन प्रस्तुत करेंगे।
हम पहले बता चुके हैं कि बुद्धि के संप्रत्यय को मानसिक संक्रियाओं के रूप में औपचारिक बनाने का प्रयास करने वालों में अल्फ्रेड बिने प्रथम मनोवैज्ञानिक थे। बिने के पहले, बुद्धि के संबंध में साधारण वर्णन भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक परंपराओं में उपलब्ध अनेक दार्शानिक निबंधों में मिलता है। बिने द्वारा दिया गया बुद्धि का सिद्धांत बहुत ही सरल प्रकार का है क्योंकि इस सिद्धांत की उत्पत्ति अधिक बुद्धिमान और कम बुद्धिमान व्यक्तियों की अलग-अलग पहचान करने के प्रयासों के अंतर्गत हुई थी। इसलिए बिने ने बुद्धि को योग्यताओं का एक समुच्चय माना जिसका उपयोग व्यक्ति के पर्यावरण में स्थित किसी एक अथवा समस्त समस्याओं का समाधान करने में किया जा सकता है। उनका सिद्धांत बुद्धि के एक-कारक सिद्धांत (onefactor theory) के रूप में जाना जाता है। जब मनोवैज्ञानिकों ने बिने द्वारा निर्मित किए गए बुद्धि परीक्षणों द्वारा व्यक्तियों से प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण करना प्रारंभ किया तो यह सिद्धांत विवादग्रस्त हो गया।
1927 में चार्ल्स स्पीयरमैन (Charles Spearman) ने बुद्धि का द्वि-कारक सिद्धांत (two-factor theory) प्रस्तावित किया। यह सिद्धांत कारक विश्लेषण की साख्यिकीय विधि पर आधारित था। उन्होंने प्रदर्शित किया कि बुद्धि के अंतर्गत एक सामान्य कारक (सा-कारक) (g-factor) तथा कुछ विशिष्ट कारक (वि-कारक) (s-factors) होते हैं। सा-कारक के अंतर्गत वे सभी मानसिक संक्रियाएँ होती हैं जो प्राथमिक हैं और जिनका प्रभाव सभी प्रकार के कार्यों के निष्पादन पर पड़ता है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति में सा-कारक के साथ-साथ कई विशिष्ट योग्यताएँ भी होती हैं। इन विशिष्ट योग्यताओं को उन्होंने वि-कारक कहा। श्रेष्ठ गायक, वास्तुकार, वैज्ञानिक तथा खिलाड़ी आदि सा-कारक में उच्च स्तर के हो सकते हैं परंतु उनमें विशिष्ट क्षेत्रों से संबंधित विशिष्ट योग्यताएँ भी होती हैं जिनके कारण वे अपने-अपने क्षेत्र में श्रेष्ठ हो जाते हैं। स्पीयरमैन के सिद्धांत के बाद लुईस थर्स्टन (Louis Thurstone) ने प्राथमिक मानसिक योग्यताओं का सिद्धांत (theory of primary mental abilities) प्रस्तुत किया। इसमें कहा गया कि बुद्धि के अंतर्गत सात प्राथमिक मानसिक योग्यताएँ होती हैं जो एक दूसरे से अपेक्षाकृत स्वतंत्र होकर कार्य करती हैं। ये योग्यताएँ हैं- (1) वाचिक बोध (शब्दों, संप्रत्ययों तथा विचारों के अर्थ को समझना), (2) संख्यात्मक योग्यताएँ (संख्यात्मक तथा अभिकलनात्मक कार्यों को गति एवं परिशुद्धता से करने का कौशल), (3) देशिक संबंध (प्रतिरूपों तथा रचनाओं का मानस-प्रत्यक्षीकरण कर लेना), (4) प्रात्यक्षिक गति (विस्तृत प्रत्यक्षीकरण करने की गति), (5) शब्द प्रवाह (शब्दों का प्रवाह तथा नम्यता के साथ उपयोग कर लेना), (6) स्मृति (सूचनाओं के पुनःस्मरण में परिशुद्धता) तथा (7) आगमनात्मक तर्कना (दिए गए तथ्यों से सामान्य नियमों को व्युत्पन्न करना)।
आर्थर जेन्सेन (Arthur Jensen) ने बुद्धि का एक पदानुक्रमिक मॉडल प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने कहा कि योग्यताएँ दो स्तरों - प्रथम स्तर (Level I) तथा द्वितीय स्तर (Level II) पर कार्य करती हैं। प्रथम स्तर साहचर्यात्मक अधिगम का होता है जिसमें आगत तथा निर्गत लगभग समान होते हैं (उदाहरण के लिए रट कर किया जाने वाला अधिगम तथा स्मृति)। द्वितीय स्तर संज्ञानात्मक सक्षमताओं का होता है जिसमें उच्च स्तरीय कौशल होते हैं जो आगत को एक प्रभावी निर्गत में परिवर्तित करते हैं।
जे.पी. गिलफोर्ड (J.P. Guilford) ने बुद्धि-संरचना मॉडल (structure-of-intellect model) प्रस्तुत किया जिसमें बौद्धिक विशेषताओं को तीन विमाओं में वर्गीकृत किया गया है- संक्रियाएँ, विषयवस्तु तथा उत्पाद/ संक्रियाओं से तात्पर्य बुद्धि द्वारा की जाने वाली क्रियाओं से है। इसमें संज्ञान, स्मृति अभिलेखन, स्मृति प्रतिधारण, अपसारी उत्पादन, अभिसारी उत्पादन तथा मूल्यांकन की क्रियाएँ होती हैं। विषय-वस्तु का संबंध उस सामग्री या सूचना के स्वरूप से होता है जिस पर व्यक्ति को बौद्धिक क्रियाएँ करनी होती हैं। इसमें चाक्षुष, श्रवणात्मक, प्रतीकात्मक (जैसे - अक्षर तथा संख्याएँ), अर्थविषयक (जैसे - शब्द) तथा व्यवहारात्मक (व्यक्तियों के व्यवहार, अभिवृत्तियों, आवश्यकताओं आदि से संबंधित सूचनाएँ)। उत्पाद का अर्थ उस स्वरूप से होता है जिसमें व्यक्ति सूचनाओं का प्रक्रमण करता है। उत्पादों को इकाई, वर्ग, संबंध, व्यवस्था, रूपांतरण तथा निहितार्थ में वर्गीकृत किया जाता है। चूँकि इस वर्गीकरण (गिलफोर्ड, 1988) में
बुद्धि के उपर्युक्त सिद्धांत मनोमितिक उपागम द्वारा बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहारों को समझने के लिए दिए गए सिद्धांतों के प्रतिनिधि सिद्धांत हैं।
बहु-बुद्धि का सिद्धांत
बहु-बुद्धि का सिद्धांत हावर्ड गार्डनर (Howard Gardner) द्वारा प्रस्तुत किया गया। उनके अनुसार, बुद्धि कोई एक तत्व नहीं है बल्कि कई भिन्न-भिन्न प्रकार की बुद्धियों का अस्तित्व होता है। प्रत्येक बुद्धि एक दूसरे से स्वतंत्र रहकर कार्य करती है। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी व्यक्ति में किसी एक बुद्धि की मात्रा अधिक है तो यह अनिवार्य रूप से इसका संकेत नहीं करता कि उस व्यक्ति में किसी अन्य प्रकार की बुद्धि अधिक होगी, कम होगी या कितनी होगी। गार्डनर ने यह भी बताया कि किसी समस्या का समाधान खोजने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की बुद्धियाँ आपस में अंतःक्रिया करते हुए साथ-साथ कार्य करती हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में असाधारण योग्यताओं का प्रदर्शन करने वाले अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्तियों का गार्डनर ने अध्ययन किया और इसके आधार पर आठ प्रकार की बुद्धियों का वर्णन किया। ये निम्नलिखित हैं-
भाषागत (linguistic) (भाषा के उत्पादन और उपयोग करने की योग्यता) - यह अपने विचारों को प्रकट करने तथा दूसरे व्यक्तियों के विचारों को समझने हेतु प्रवाह तथा नम्यता के साथ भाषा का उपयोग करने की क्षमता है। जिन व्यक्तियों में यह बुद्धि अधिक होती है वे ‘शब्द-कुशल’ होते हैं। ऐसे व्यक्ति शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थों के प्रति संवेदनशील होते हैं, अपने मन में भाषा के बिंबों का निर्माण कर सकते हैं और स्पष्ट तथा परिशुद्ध भाषा का उपयोग करते हैं। लेखकों तथा कवियों में यह बुद्धि अधिक मात्रा में होती है।
तार्किक-गणितीय (logical-mathematical) (तार्किक तथा आलोचनात्मक चिंतन एवं समस्याओं को हल करने की योग्यता) - इस प्रकार की बुद्धि की अधिक मात्रा रखने वाले व्यक्ति तार्किक तथा आलोचनात्मक चिंतन कर सकते हैं। वे अमूर्त तर्कना कर लेते हैं और गणितीय समस्याओं के हल के लिए प्रतीकों का प्रहस्तन अच्छी प्रकार से कर लेते हैं। वैज्ञानिकों तथा नोबेल पुरस्कार विजेताओं में इस प्रकार की बुद्धि अधिक पाई जाने की संभावना रहती है।
देशिक (spatial) (दृश्य बिंब तथा प्रतिरूप निर्माण को बनाने की योग्यता) - यह मानसिक बिंबों को बनाने, उनका उपयोग करने तथा उनमें मानसिक धरातल पर परिमार्जन करने की योग्यता है। इस बुद्धि को अधिक मात्रा में रखने वाला व्यक्ति सरलता से देशिक सूचनाओं को अपने मस्तिष्क में रख सकता है। विमान-चालक, नाविक, मूर्तिकार, चित्रकार, वास्तुकार, आंतरिक साज-सज्जा के विशेषज्ञ, शल्य-चिकित्सक आदि में इस बुद्धि के अधिक पाए जाने की संभावना होती है।
संगीतात्मक (musical) (सांगीतिक लय तथा अभिरचनाओं को उत्पन्न तथा प्रहस्तन करने की योग्यता) सांगीतिक अभिरचनाओं को उत्पन्न करने, उनका सर्जन तथा प्रहस्तन करने की क्षमता सांगीतिक योग्यता कहलाती है। इस बुद्धि की उच्च मात्रा रखने वाले लोग ध्वनियों और स्पंदनों तथा ध्वनियों की नई अभिरचनाओं के सर्जन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
शारीरिक-गतिसंवेदी (bodily-kinaesthetic) (संपूर्ण शरीर अथवा उसके किसी अंग की लोच का उपयोग करने की योग्यता तथा उसमें सर्जनात्मकता प्रदर्शित करना) किसी वस्तु अथवा उत्पाद के निर्माण के लिए अथवा मात्र शारीरिक प्रदर्शन के लिए संपूर्ण शरीर अथवा उसके किसी एक अथवा एक से अधिक अंग की लोच तथा पेशीय कौशल की योग्यता शारीरिक-गतिसंवेदी योग्यता कही जाती है। धावकों, नर्तकों, अभिनेताओं/अभिनेत्रियों, खिलाड़ियों, जिमनास्टों तथा शल्य-चिकित्सकों में इस बुद्धि की अधिक मात्रा पाई जाती है।
अंतर्वैयक्तिक (interpersonal) (दूसरे व्यक्तियों के सूक्ष्म व्यवहारों को जानने की योग्यता) - इस योग्यता द्वारा व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों की अभिप्रेरणाओं या उद्देश्यों, भावनाओं तथा व्यवहारों का सही बोध करते हुए उनके साथ मधुर संबंध स्थापित करता है। मनोवैज्ञानिक, परामर्शद, राजनीतिज्, सामाजिक कार्यकर्ता तथा धार्मिक नेता आदि में उच्च अंतर्वैयक्तिक बुद्धि पाए जाने की संभावना होती है।
अंतःव्यक्ति (intrapersonal) (अपनी निजी भावनाओं, अभिप्रेरणाओं तथा इच्छाओं को जानने की योग्यता)इस बुद्धि के अंतर्गत व्यक्ति को अपनी शक्ति तथा कमज़ोरियों का ज्ञान और उस ज्ञान का दूसरे व्यक्तियों के साथ सामाजिक अंतःक्रिया में उपयोग करने की ऐसी योग्यता सम्मिलित है जिससे वह अन्य व्यक्तियों से प्रभावी संबंध स्थापित करता है। इस बुद्धि की अधिक मात्रा रखने वाले व्यक्ति अपनी अनन्यता या पहचान, मानव अस्तित्व और जीवन के अर्थों को समझने में अति संवेदनशील होते हैं। दार्शनिक तथा आध्यात्मिक नेता आदि में इस प्रकार की उच्च बुद्धि देखी जा सकती है।
प्रकृतिवादी (naturalistic) (पर्यावरण के प्राकृतिक पक्ष की विशेषताओं को पहचानने की योग्यता) - इस बुद्धि का तात्पर्य प्राकृतिक पर्यावरण से हमारे संबंधों की पूर्ण अभिज्ता से है। विभिन्न पशु-पक्षियों तथा वनस्पतियों के सौंदर्य का बोध करने में तथा प्राकृतिक पर्यावरण में सूक्ष्म विभेद करने में यह बुद्धि सहायक होती है। शिकारी, किसान, पर्यटक, वनस्पतिविज्ञानी, प्राणीविज्ञानी और पक्षीविज्ञानी आदि में प्रकृतिवादी बुद्धि अधिक मात्रा में होती है।
बुद्धि का त्रिचापीय सिद्धांत
राबर्ट स्टर्नबर्ग (1985) ने बुद्धि का त्रिचापीय सिद्धांत प्रस्तुत किया। स्टर्नबर्ग के अनुसार “बुद्धि वह योग्यता है जिससे व्यक्ति अपने पर्यावरण के प्रति अनुकूलित होता है, अपने

चित्र 1.1 बुद्धि के त्रिचापीय सिद्धांत के तत्व
तथा अपने समाज और संस्कृति के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु पर्यावरण के कुछ पक्षों का चयन करता है और उन्हें परिवर्तित करता है”। इस सिद्धांत के अनुसार मूल रूप से बुद्धि तीन प्रकार की होती है - घटकीय, आनुभविक तथा सांदर्भिक। बुद्धि के त्रिचापीय सिद्धांत के तत्व चित्र 1.1 में प्रदर्शित किए गए हैं।
घटकीय बुद्धि (componential intelligence) घटकीय या विश्लेषणात्मक बुद्धि द्वारा व्यक्ति किसी समस्या का समाधान करने के लिए प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करता है। इस बुद्धि की अधिक मात्रा रखने वाले लोग विश्लेषणात्मक तथा आलोचनात्मक ढंग से सोचते हैं और विद्यालय में सफलता प्राप्त करते हैं। इस बुद्धि के भी तीन अलग-अलग घटक होते हैं जो अलग-अलग कार्य करते हैं। पहला घटक ज्ञानार्जन से संबंधित होता है जिसके द्वारा व्यक्ति अधिगम करता है तथा विभिन्न कार्यों को करने की विधि का ज्ञान प्राप्त करता है। दूसरा घटक अधि या एक उच्च स्तरीय घटक होता है जिसके द्वारा व्यक्ति योजनाएँ बनाता है कि उसको क्या करना है और कैसे करना है।
क्रियाकलाप 1.2
कुछ ‘व्यावहारिक’ बातें
आपका किसी विद्यालय/कॉलेज में कुछ ही दिनों पूर्व प्रवेश हुआ है। पूरे वर्ष में आपकी तीन परीक्षाएँ होंगी। आप अवश्य ही परीक्षा में अच्छे अंक पाना चाहते होंगे। इसकी कितनी संभावना है कि आप निम्नलिखित में से प्रत्येक कार्य में सन्नद्ध होंगे? निम्नलिखित कार्यों का कोटि क्रम निर्धारण करें और अपने सहपाठियों से उनको मिलाएँ।
- कक्षा में नियमित रूप से आना।
- साप्ताहिक विवेचना के लिए अपने मित्रों के साथ अध्ययन समूह का निर्माण करना।
- कक्षा में विस्तृत नोट्स बनाना।
- किसी कोचिंग संस्था में नामांकन करा लेना।
- प्रत्येक अध्याय के लिए लिखित नोट्स बनाना।
- पाठ्यपुस्तक के अध्यायों को अच्छी तरह से पढ़ना।
- पिछलें तीन वर्षों की परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर तैयार करना।
कक्षा के उपरांत अपने अध्यापक से विचारविमर्श कीजिए।
तीसरा घटक निष्पादन से संबंधित होता है। इस बुद्धि द्वारा व्यक्ति किसी कार्य का वास्तव में निष्पादन करता है।
आनुभविक बुद्धि (experiential intelligence) आनुभविक या सर्जनात्मक बुद्धि वह बुद्धि है जिसके द्वारा व्यक्ति किसी नई समस्या के समाधान हेतु अपने पूर्व अनुभवों का सर्जनात्मक रूप से उपयोग करता है। यह बुद्धि सर्जनात्मक निष्पादन में प्रदर्शित होती है। इस बुद्धि की उच्च मात्रा रखने वाले लोग विगत अनुभवों को मौलिक रूप में समाकलित करते हैं तथा समस्या के मौलिक समाधान खोजते हुए आविष्कार करते हैं। किसी विशेष स्थिति में वे तुरंत समझ जाते हैं कि कौन-सी सूचना अधिक निर्णायक होगी।
सांदर्भिक बुद्धि(contextual intelligence) सांदर्भिक या व्यावहारिक बुद्धि वह बुद्धि है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में आने वाली पर्यावरणी माँगों से निपटता है। इसे आप व्यावहारिक बुद्धि या व्यावसायिक समझ कह सकते हैं। इस बुद्धि की अधिक मात्रा रखने वाले व्यक्ति अपने वर्तमान पर्यावरण से शीघ्र अनुकूलित हो जाते हैं या फिर वर्तमान पर्यावरण की अपेक्षा अधिक अनुकूल पर्यावरण का चयन कर लेते हैं या फिर अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप पर्यावरण में वांछित परिवर्तन कर लेते हैं। इस प्रकार ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में सफल होते हैं।
स्टर्नबर्ग का त्रिचापीय सिद्धांत बुद्धि को समझने के लिए सूचना प्रक्रमण उपागम के अंतर्गत आने वाले सिद्धांतों का एक प्रतिनिधि सिद्धांत है।
बुद्धि की योजना, अवधान-भाव प्रबोधन तथा सहकालिकआनुक्रमिक मॉडल
बुद्धि के इस मॉडल को जे.पी. दास (J.P. Das), जैक नागलीरी (Jack Naglieri) तथा किर्बी (Kirby) (1994) ने विकसित किया। संक्षेप में यह मॉडल ‘PASS’ (planning, attention, simultaneous and successive) के नाम से जाना जाता है। इस मॉडल के अनुसार बौद्धिक क्रियाएँ अन्योन्याश्रित तीन तंत्रिकीय या स्नायुविक तंत्रों की क्रियाओं द्वारा संपादित होती हैं। इन तीन तंत्रों को मस्तिष्क की तीन प्रकार्यात्मक इकाईयाँ कहा जाता है। ये तीन इकाइयाँ क्रमशः भाव प्रबोधन/अवधान, कूट संकेतन या प्रक्रमण और योजना-निर्माण का कार्य करती हैं।
भाव प्रबोधन/अवधान (arousal/attention)भाव प्रबोधन की दशा किसी भी व्यवहार के मूल में होती है क्योंकि यही किसी उद्दीपक की ओर हमारा ध्यान आकर्षित कराती है। भाव प्रबोधन तथा अवधान ही व्यक्ति को सूचना का प्रक्रमण करने के योग्य बनाता है। भाव प्रबोधन के इष्टतम स्तर के कारण हमारा ध्यान किसी समस्या के प्रासंगिक पक्षों की ओर आकृष्ट होता है। भाव प्रबोधन का बहुत अधिक होना अथवा बहुत कम होना अवधान को बाधित करता है। उदाहरण के लिए जब आपके अध्यापक कहते हैं कि अमुक दिन आप सबकी एक परीक्षा ली जाएगी तो आपका भाव प्रबोधन बढ़ जाता है और आप विशिष्ट अध्यायों पर अधिक ध्यान देने लगते हैं। आपका भाव प्रबोधन आपके ध्यान को प्रासंगिक अध्यायों की विषय-वस्तुओं को पढ़ने, दोहराने तथा सीखने के लिए अभिप्रेरित करता है।
सहकालिक तथा आनुक्रमिक प्रक्रमण (simultaneous and successive processing) - आप अपने ज्ञान भंडार में सूचनाओं का समाकलन सहकालिक अथवा आनुक्रमिक रूप से कर सकते हैं। विभिन्न संप्रत्ययों को समझने के लिए उनके पारस्परिक संबंधों का प्रत्यक्षण करते हुए उनको एक सार्थक प्रतिरूप में समाकलित करते समय सहकालिक प्रक्रमण होता है। उदाहरण के लिए रैवेन्स प्रोग्रेसिव मैट्रिसेस (आर.पी.एम.) परीक्षण में परीक्षार्थी को एक अपूर्ण अभिकल्प या डिज़ाइन दिखाया जाता है और उसे दिए गए छः विकल्पों में से उस विकल्प को चुनना होता है जिससे अपूर्ण अभिकल्प पूरा हो सके। सहकालिक प्रक्रमण द्वारा दिए गए अमूर्त चित्रों के पारस्परिक संबंधों को समझने में सहायता मिलती है। आनुक्रमिक प्रक्रमण उस समय होता है जब सूचनाओं को एक के बाद एक क्रम से याद रखना होता है ताकि एक सूचना का पुनःस्मरण ही अपने बाद वाली सूचना का पुनःस्मरण करा देता है। गिनती सीखना, वर्णमाला सीखना, गुणन सारणियों को सीखना आदि आनुक्रमिक प्रक्रमण के उदाहरण हैं।
योजना (planning) - योजना बुद्धि का एक आवश्यक अभिलक्षण है। जब किसी सूचना की प्राप्ति और उसके पश्चात् उसका प्रक्रमण हो जाता है तो योजना सक्रिय हो जाती है। योजना के कारण हम क्रियाओं के समस्त संभावित विकल्पों के बारे में सोचने लगते हैं, लक्ष्य की प्राप्ति हेतु योजना को कार्यान्वित करते हैं तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न परिणामों की प्रभाविता का मूल्यांकन करते हैं। यदि कोई योजना इष्ट फलदायक नहीं होती तो हम कार्य या स्थिति की माँग के अनुरूप उसमें संशोधन करते हैं। उदाहरण के लिए यदि आपके अध्यापक आपकी परीक्षा लेने वाले हैं तो आपको इसकी योजना बनाते हुए लक्ष्य निर्धारित करना होता है। आप पढ़ने के लिए एक समय सारणी बना लेते हैं। अध्याय में कोई समस्या आने पर उसका स्पष्टीकरण कराते हैं। फिर यदि आपको परीक्षा के लिए नियत अध्याय को समझने में कठिनाई आती है तो आप अन्य मार्ग खोजने लगते हैं। संभव है कि आप अपने अध्ययन का समय बढ़ाकर या किसी मित्र के साथ अध्ययन करके अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास करने लगें।
उपर्युक्त तीनों पास (PASS) प्रक्रियाएँ औपचारिक रूप से (पढ़ने, लिखने तथा प्रयोग करने) अथवा पर्यावरण से अनौपचारिक रूप से संकलित ज्ञान के भंडार पर कार्य करती हैं। इन प्रक्रियाओं का स्वरूप अंतःक्रियात्मक तथा गतिशील होता है। इसके बावजूद इनके अपने स्वतंत्र अस्तित्व तथा विशिष्ट प्रकार्य होते हैं। दास तथा नागलीरी ने एक परीक्षण माला भी विकसित की है जिसे संज्ञानात्मक मूल्यांकन प्रणाली (cognitive assessment system) के नाम से जाना जाता है। विद्यालयीय शिक्षा से अग्रभावित मूल संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के मापन के लिए इस परीक्षण माला में वाचिक तथा अवाचिक दोनों ही प्रकार के कृत्य रखे गए हैं। यह परीक्षण माला 5 से 18 वर्ष तक के व्यक्तियों की संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का मापन कर सकती है। मापन से प्राप्त परिणामों का उपयोग बच्चों में संज्ञानात्मक न्यूनता या उनकी अधिगम संबंधित कठिनाइयों को दूर करने में किया जा सकता है।
यह मॉडल बुद्धि के सूचना प्रक्रमण उपागम का प्रतिनिधित्व करता है।
बुद्धि में व्यक्तिगत भिन्नाएँ
कुछ लोग दूसरों की तुलना में अधिक बुद्धिमान क्यों होते हैं? ऐसा उनकी आनुवंशिकता के कारण होता है अथवा यह पर्यावरणी कारकों के प्रभाव से होता है। किसी व्यक्ति के विकास में इन कारकों के प्रभाव के बारे में आप कक्षा 11 में पहले ही पढ़ चुके हैं।
बुद्धि-आनुवंशिकता तथा पर्यावरण की अंतःक्रिया
बुद्धि पर आनुवंशिकता के प्रभावों के प्रमाण मुख्य रूप से यमज या जुड़वाँ तथा दत्तक बच्चों के अध्ययन से प्राप्त होते हैं। साथ-साथ पाले गए समरूप जुड़वाँ बच्चों की बुद्धि में 0.90 सहसंबंध पाया गया है। बाल्यावस्था में अलग-अलग करके पाले गए जुड़वाँ बच्चों की बौद्धिक, व्यक्तित्व तथा व्यवहारपरक विशेषताओं में पर्याप्त समानता दिखाई देती है। अलग-अलग पर्यावरण में पाले गए समरूप जुँड़वा बच्चों की बुद्धि में 0.72 सहसंबंध है, साथ-साथ पाले गए भ्रातृ जुड़वाँ बच्चों की बुद्धि में लगभग 0.60 सहसंबंध, साथ-साथ पाले गए भाई-बहनों की बुद्धि में 0.50 सहसंबंध तथा अलग-अलग पाले गए सहोदरों की बुद्धि में 0.25 सहसंबंध पाया गया है। इस संबंध में अन्य प्रमाण दत्तक बच्चों के उन अध्ययनों से प्राप्त हुए हैं जिनमें यह पाया गया है कि बच्चों की बुद्धि गोद लेने वाले माता-पिता की अपेक्षा जन्म देने वाले माता-पिता के अधिक समान होती है।
बुद्धि पर पर्यावरण के प्रभावों के संबंध में किए गए अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि जैसे-जैसे बच्चों की आयु बढ़ती जाती है उनका बौद्धिक स्तर गोद लेने वाले माता-पिता की बुद्धि के स्तर के निकट पहुँचता जाता है। सुविधावंचित परिस्थितियों वाले घरों के जिन बच्चों को उच्च सामाजिकआर्थिक स्थिति के परिवारों द्वारा गोद ले लिया जाता है उनकी बुद्धि प्राप्तांकों में अधिक वृद्धि दिखाई देती है। यह इस बात का प्रमाण है कि पर्यावरणी वंचन बुद्धि के विकास को घटा देता है जबकि प्रचुर एवं समृद्ध पोषण, अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि तथा गुणवत्तायुक्त शिक्षा-दीक्षा बुद्धि में वृद्धि कर देती है। सामान्यतया सभी मनोवैज्ञानिकों की इस तथ्य पर सहमति है कि बुद्धि आनुवंशिकता (प्रकृति) तथा पर्यावरण (पोषण) की जटिल अंतःक्रिया का परिणाम होती है। आनुवंशिकता द्वारा किसी व्यक्ति की बुद्धि की परिसीमाएँ तय हो जाती हैं और बुद्धि का विकास उस परिसीमन के अंतर्गत पर्यावरण में उपलभ्य अवलंबों और अवसरों द्वारा निर्धारित होता है।
बुद्धि का मूल्यांकन
सर्वप्रथम 1905 में अल्फ्रेड बिने तथा थियोडोर साइमन (Theodore Simon) ने औपचारिक रूप से बुद्धि के मापन का सफल प्रयास किया। 1908 में अपनी मापनी का संशोधन करते समय उन्होंने मानसिक आयु (mental age, MA) का संप्रत्यय दिया। मानसिक आयु के माप का अर्थ है कि किसी व्यक्ति का बौद्धिक विकास अपनी आयु वर्ग के अन्य व्यक्तियों की तुलना में कितना हुआ है। यदि किसी बच्चे की मानसिक आयु 5 वर्ष है तो इसका अर्थ है कि किसी बुद्धि परीक्षण पर उस बच्चे का निष्पादन 5 वर्ष के बच्चों के औसत निष्पादन के बराबर है। बच्चे की कालानुक्रमिक आयु (chronological age, CA) जन्म लेने के बाद बीत चुकी अवधि के बराबर होती है। एक तीव्रबुद्धि बच्चे की मानसिक आयु उसकी कालानुक्रमिक आयु से अधिक होती है जबकि एक मंदबुद्धि बच्चे की मानसिक आयु उसकी कालानुक्रमिक आयु से कम होती है। यदि किसी बच्चे की मानसिक आयु उसकी कालानुक्रमिक आयु से 2 वर्ष कम हो तो बिने तथा साइमन ने इसे बौद्धिक मंदता के रूप में परिभाषित किया।
1912 में एक जर्मन मनोवैज्ञानिक विलियम स्टर्न (William Stern) ने बुद्धि लब्धि (intelligence quotient, I(3) का संप्रत्यय विकसित किया। किसी व्यक्ति की मानसिक आयु को उसकी कालानुक्रमिक आयु से भाग देने के बाद उसको 100 से गुणा करने से उसकी बुद्धि लब्धि प्राप्त हो जाती है।
गुणा करने में 100 की संख्या का उपयोग दशमलव बिंदु समाप्त करने के लिए किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति की मानसिक आयु तथा कालानुक्रमिक आयु बराबर हो तो उसकी बुद्धि लब्धि 100 प्राप्त होती है। यदि मानसिक आयु कालानुक्रमिक आयु से अधिक हो तो बुद्धि लब्धि 100 से अधिक प्राप्त होती है। बुद्धि लब्धि 100 से कम उस दशा में प्राप्त होती है जब मानसिक आयु कालानुक्रमिक आयु से
क्रियाकलाप 1.3
‘बुद्धि की संख्या’
(बुद्धि लब्धि का अभिकलन या संगणना करना)
- एक 14 साल के बच्चे को मानसिक आयु 16 वर्ष है। उसकी बुद्धि लब्धि ज्ञात कीजिए।
- यदि 12 साल के एक बच्चे को बुद्धि लब्धि 90 हो तो उसकी मानसिक आयु ज्ञात कीजिए।
कम हो। उदाहरण के लिए एक 10 वर्ष के बच्चे की मानसिक आयु यदि 12 वर्ष हो तो उसकी बुद्धि लब्धि 120
जनसंख्या में बुद्धि लब्धि प्राप्तांक इस प्रकार वितरित होते हैं कि अधिकांश लोगों के प्राप्तांक वितरण के मध्य क्षेत्र में रहते हैं। बहुत कम लोगों के प्राप्तांक बहुत अधिक या बहुत कम होते हैं। बुद्धि लब्धि प्राप्तांकों का यदि एक आवृत्ति वितरण वक्र बनाया जाए तो यह लगभग एक घंटाकार वक्र के सदृश होता है। इस वक्र को सामान्य वक्र (normal curve) कहा जाता है। ऐसा वक्र अपने केंद्रीय मूल्य या माध्य के दोनों ओर सममित आकार का होता है। एक सामान्य वितरण के रूप में बुद्धि लब्धि प्राप्तांकों के वितरण को चित्र 1.2 में प्रदर्शित किया गया है।
किसी जनसंख्या की बुद्धि लब्धि प्राप्तांक का माध्य 100 होता है। जिन व्यक्तियों की बुद्धि लब्धि प्राप्तांक 90 से 110 के बीच होती है उन्हें सामान्य बुद्धि वाला कहा जाता है। जिनकी बुद्धि लब्धि 70 से भी कम होती है वे बौद्धिक अशक्तता से प्रभावित समझे जाते हैं और जिनकी बुद्धि लब्धि 130 से अधिक होती है वे असाधारण रूप से प्रतिभाशाली समझे जाते हैं। किसी व्यक्ति के बुद्धि लब्धि प्राप्तांक की व्याख्या तालिका 1.1 की सहायता से की जा सकती है।
सभी व्यक्तियों की बौद्धिक क्षमता एक समान नहीं होती। कुछ व्यक्ति असाधारण रूप से तीव्रबुद्धि वाले होते हैं तथा कुछ औसत से कम बुद्धि वाले। बुद्धि परीक्षणों का एक व्यावहारिक उपयोग यह है कि इनसे बहुत अधिक तथा बहुत कम बुद्धि वाले व्यक्तियों की पहचान की जा सकती है। यदि आप तालिका 1.1 को देखें तो आप पाएँगे कि जनसंख्या के लगभग 2 प्रतिशत व्यक्तियों की बुद्धि लब्धि 130 से अधिक होती है और उतने ही प्रतिशत व्यक्तियों की बुद्धि लब्धि 70
तालिका 1.1 बुद्धि लब्धि के आधार पर व्यक्तियों का वर्गीकरण
बुद्धि लब्धि वर्ग | वर्णनात्मक वर्गनाम | जनसंख्या प्रतिशत |
---|---|---|
130 से अधिक | अतिश्रेष्ठ | 2.2 |
श्रेष्ठ | 6.7 | |
उच्च औसत | 16.1 | |
औसत | 50.0 | |
निम्न औसत | 16.1 | |
सीमावर्ती | 6.7 | |
70 से कम | बौद्धिक रूप से | 2.2 |
अशक्त |

चित्र 1.2 जनसंख्या में बुद्धि लब्धि प्राप्तांक के वितरण का सामान्य वक्र
से कम होती है। पहले वर्ग के लोगों को बौद्धिक रूप से प्रतिभाशाली (intellectually gifted) कहा जाता है जबकि दूसरे वर्ग के लोगों को बौद्धिक रूप से अशक्त (intellectually disabled) कहा जाता है। ये दोनों वर्ग अपनी संज्ञातात्मक, संवेगात्मक तथा अभिप्रेरणात्मक विशेषताओं में सामान्य लोगों की अपेक्षा पर्याप्त भिन्न होते हैं।
बुद्धि में विचलन
बौद्धिक न्यूनता
किसी जनसंख्या में एक ओर तो प्रतिभाशाली तथा सर्जनात्मक व्यक्ति होते हैं जिनका वर्णन हम ऊपर कर चुके हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं जिन्हें बहुत साधारण कौशलों को सीखने में भी बहुत कठिनाई होती है। ऐसे बच्चों को जिनमें बौद्धिक न्यूनता होती है उन्हें ‘बौद्धिक रूप से अशक्त’ कहा जाता है। बौद्धिक अशक्तता वाले बच्चों की बुद्धि लब्धि में भी व्यक्तिगत भिन्नताएँ पाई जाती हैं। अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ मेंटल डिफ़िशॅन्सि (ए.ए.एम.डी.) के अनुसार बौद्धिक अशक्तता से तात्पर्य ‘उस अवसामान्य साधारण बौद्धिक प्रकार्यात्मकता से है जो व्यक्ति की विकासात्मक अवस्थाओं में प्रकट होती है तथा उसके अनुकूलित व्यवहार में न्यूनता से संबंधित होती है’। इस परिभाषा की तीन मूल विशेषताएँ हैं। पहली, किसी व्यक्ति को बौद्धिक रूप से अशक्त कहलाने के लिए आवश्यक है कि उसकी बौद्धिक प्रकार्यात्मकता सामान्य स्तर से पर्याप्त कम हो। जिन व्यक्तियों की बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है उनकी बौद्धिक प्रकार्यात्मकता सामान्य से पर्याप्त कम समझी जाती है। दूसरी विशेषता का संबंध अनुकूलित व्यवहार में न्यूनता से है। अनुकूलित व्यवहार का अर्थ व्यक्ति की उस क्षमता से है जिसके द्वारा वह आत्मनिर्भर बनता है और अपने पर्यावरण से प्रभावी ढंग से अपना समायोजन करता है। तीसरी विशेषता यह है कि बौद्धिक अशक्तता व्यक्ति की विकासात्मक अवस्थाओं ( 0 से 18 वर्ष की आयु के मध्य) में ही दिखाई पड़ जाना चाहिए।
जिन व्यक्तियों को बौद्धिक रूप से अशक्त के समूह में वर्गीकृत किया जाता है उनकी योग्यताओं में भी पर्याप्त
भिन्नताएँ दिखाई पड़ती हैं। उनमें से कुछ व्यक्तियों को तो विशेष ध्यान देकर साधारण प्रकार के कार्य करना सिखाया जा सकता है परंतु कुछ ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जिन्हें कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जा सकता और उन्हें जीवन भर संस्थागत देखभाल की आवश्यकता पड़ती है। आप पहले ही सीख चुके हैं कि किसी जनसंख्या की बुद्धि लब्धि प्राप्तांक का माध्य 100 होता है। बुद्धि लब्धि की संख्याएँ बौद्धिक रूप से अशक्त व्यक्तियों के भिन्न-भिन्न वर्गों को समझने में सहायक होती हैं। बौद्धिक अशक्तता के विभिन्न वर्ग इस प्रकार होते हैं - निम्न (बुद्धि लब्धि 55 से लगभग 70 ), सामान्य (बुद्धि लब्धि 35-40 से लगभग 50-55), तीव्र (बुद्धि लब्धि 20-25 से लगभग 35-40) तथा अतिगंभीर (बुद्धि लब्धि
बौद्धिक प्रतिभाशालिता
अपनी उत्कृष्ट संभाव्यताओं के कारण बौद्धिक रूप से प्रतिभाशाली व्यक्यिों का निष्पादन श्रेष्ठ प्रकार का होता है। प्रतिभाशाली व्यक्तियों के अध्ययन 1925 में उस समय प्रारंभ हुए जब लेविस टर्मन (Lewis Terman) ने 130 या उससे भी अधिक बुद्धि लब्धि वाले 1500 बच्चों के जीवन का अभिलेख यह जानने के लिए रखना प्रारंभ किया कि बुद्धि व्यावसायिक सफलता और जीवन में समायोजन के साथ किस प्रकार संबंधित होती है। यद्यपि ‘प्रवीणता’ (talent) तथा ‘प्रतिभा’ (giftedness) शब्दों का समान अर्थों में उपयोग किया जाता है परंतु इन दोनों के अर्थ में भिन्नता होती है। प्रतिभा का अर्थ उस असाधारण सामान्य प्रकार की योग्यता से है जो विस्तृत क्षेत्र के कार्यों में किए गए श्रेष्ठ निष्पादन में दिखाई पड़ती है। जबकि प्रवीणता का अर्थ किसी विशिष्ट अथवा संकुचित क्षेत्र (जैसे - आध्यात्मिक, सामाजिक, सौंदर्यपरक आदि) में श्रेष्ठ योग्यता से होता है। अधिक प्रवीण व्यक्तियों को कभी-कभी ‘अदूभुत-प्रतिभाशाली’ भी कहा जाता है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, अध्यापकों के दृष्टिकोण से किसी व्यक्ति की प्रतिभाशालिता उसकी उच्च योग्यता (high ability), उच्च सर्जनात्मकता (high creativity) तथा उच्च प्रतिबद्धता (high commitment) जैसे गुणों के संयोजन पर निर्भर करती है।
प्रतिभाशाली बच्चों में उनकी बौद्धिक श्रेष्ठता के लक्षण बहुत पहले ही दिखाई पड़ जाते हैं। शैशवकाल तथा पूर्व-बाल्यावस्था में ही उनमें अधिक अवधान विस्तृति, अच्छी प्रत्यभिज्ञान स्मृति, नवीनता के प्रति रुझान, पर्यावरणी परिवर्तनों के प्रति उच्च संवेदनशीलता तथा भाषा-कौशल का शीघ्र प्रकटीकरण दिखाई देने लगता है। प्रतिभाशालिता तथा बहुत अच्छे ैैक्षिक या अकादमिक निष्पादन को एक समझना सही नहीं है। बहुत श्रेष्ठ मनोगतिक योग्यता प्रदर्शित करने वाले खिलाड़ी भी प्रतिभाशाली कहे जाएँगे। प्रत्येक प्रतिभाशाली विद्यार्थी के पास भिन्न-भिन्न क्षमताएँ, व्यक्तित्व तथा विशेषताएँ होती हैं। प्रतिभाशाली बच्चों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
- उन्नत तार्किक चिंतन, प्रश्न करने की प्रवृत्ति तथा समस्या समाधान की अधिक योग्यता।
- सूचना प्रक्रमण की उच्च गति।
- सामान्यीकरण तथा विभेदन करने की श्रेष्ठ योग्यता।
- मौलिक तथा सर्जनात्मक चिंतन का उच्च स्तर।
- अंतर्भूत अभिप्रेरणा तथा आत्म-सम्मान का उच्च स्तर।
- स्वतंत्र एवं अननुरूप प्रकार का चिंतन।
- लंबी अवधि तक अकेला रहकर अध्ययन करने को वरीयता देना।
प्रतिभाशाली व्यक्ति की पहचान के लिए किसी बुद्धि परीक्षण पर किया गया निष्पादन ही एकमात्र माप नहीं है। सूचनाओं के बहुत से अन्य स्रोतों, जैसे - अध्यापकों द्वारा किया गया निर्णय, विद्यालय में उपलब्धि के अभिलेख, बच्चों के माता-पिता के साक्षात्कार, समकक्षियों तथा स्वयं द्वारा किए गए निर्धारण आदि का भी उपयोग बौद्धिक मूल्यांकन के साथ-साथ किया जा सकता है। अपने पूर्ण संभाव्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिभाशाली बालकों को सामान्य बालकों को नियमित कक्षाओं में दी जाने वाली शिक्षा के साथ-साथ विशेष ध्यान तथा भिन्न प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है। इस शिक्षा में जीवन-समृद्धि से संबंधित कार्यक्रम हो सकते हैं जो बालकों के फलद चिंतन, योजना-निर्माण, निर्णयन और संर्रेषण के कौशलों में अभिवृद्धि कर सकते हैं।
बुद्धि परीक्षणों के प्रकार
बुद्धि परीक्षण कई प्रकार के होते हैं। परीक्षणों को देने की प्रक्रिया के आधार पर उन्हें वैयक्तिक परीक्षण तथा समूह परीक्षण में वर्गीकृत किया जा सकता है। परीक्षण के एकांशों के स्वरूप के आधार पर भी उन्हें शाब्दिक या वाचिक परीक्षण तथा निष्पादन परीक्षण में वर्गीकृत किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त उन्हें संस्कृति-निष्पक्ष तथा संस्कृति-अभिनत में इस आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है कि परीक्षण किस सीमा तक एक संस्कृति की अपेक्षा किसी दूसरी संस्कृति का पक्ष ले रहा है। अपने उपयोग के उद्देश्य के आधार पर आप किसी परीक्षण को चुन सकते हैं।
वैयक्तिक तथा समूह बुद्धि परीक्षण
वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण वह परीक्षण होता है जिसके द्वारा एक समय में एक ही व्यक्ति का बुद्धि परीक्षण किया जा सकता है। समूह बुद्धि परीक्षण को एक साथ बहुत से व्यक्तियों को समूह में दिया जा सकता है। वैयक्तिक परीक्षण में आवश्यक होता है कि परीक्षणकर्ता परीक्षार्थी से सौहार्द स्थापित करे और परीक्षण सत्र के समय उसकी भावनाओं, भावदशाओं और अभिव्यक्तियों के प्रति संवेदनशील रहे। समूह परीक्षण में परीक्षणकर्ता को परीक्षार्थियों की निजी भावनाओं से परिचित होने का अवसर नहीं मिलता। वैयक्तिक परीक्षणों में परीक्षार्थी पूछे गए प्रश्नों का मौखिक अथवा लिखित रूप में भी उत्तर दे सकता है अथवा परीक्षणकर्ता के अनुदेशानुसार वस्तुओं का प्रहस्तन भी कर सकता है। समूह परीक्षण में परीक्षार्थी सामान्यतः लिखित उत्तर देता है और प्रश्न भी प्रायः बहुविकल्पी स्वरूप के होते हैं।
शाब्दिक, अशाब्दिक तथा निष्पादन परीक्षण
एक बुद्धि परीक्षण पूर्णतः शाद्दिक, पूर्णतः अशाब्दिक या अवाचिक अथवा पूर्णतः निष्पादन परीक्षण हो सकता है। इसके अतिरिक्त कोई बुद्धि परीक्षण इन तीनों प्रकार के परीक्षणों के एकांशों का मिश्रित रूप भी हो सकता है। शाब्दिक परीक्षणों में परीक्षार्थी को मौखिक अथवा लिखित रूप में शाब्दिक अनुक्रियाएँ करनी होती हैं। इसलिए शाब्दिक परीक्षण केवल साक्षर व्यक्तियों को ही दिया जा सकता है। अशाब्दिक परीक्षणों में एकांशों के रूप में चित्रों अथवा चित्रनिरूपणों का उपयोग किया जाता है। अशाद्दिक परीक्षणों का एक उदाहरण रैवेंस प्रोग्रेसिव मैट्रिसेस (आर.पी.एम.) है जिसमें परीक्षार्थी को एक अपूर्ण प्रतिरूप दिखाया जाता है और उसे दिए गए अनेक वैकल्पिक प्रतिरूपों में से उस विकल्प को चुनना होता है जिससे अपूर्ण प्रतिरूप पूरा हो सके। इस परीक्षण के एक एकांश को उदाहरणस्वरूप चित्र 1.3 में प्रदर्शित किया गया है।

चित्र 1.3 रैवेंस प्रोग्रेसिव मैट्रिसेस परीक्षण का एक एकांश
निष्पादन परीक्षण में परीक्षार्थी को कोई कार्य संपादित करने के लिए कुछ वस्तुओं या अन्य सामग्रियों का प्रहस्तन करना होता है। एकांशों का उत्तर देने के लिए लिखित भाषा के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती। उदाहरण के लिए कोह (Kohs) के ब्लॉक-डिज़ाइन परीक्षण (block design test) में लकड़ी के कई घनाकार गुटके होते हैं। परीक्षार्थी को दिए गए समय के अंतर्गत गुटकों को इस प्रकार बिछाना होता है कि उनसे दिया गया डिज़ाइन बन जाए। निष्पादन परीक्षणों का एक लाभ यह हैं कि उन्हें भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के व्यक्तियों को आसानी से दिया जा सकता है।
बॉक्स 1.1
बुद्धि परीक्षणों के कुछ दुरुपयोग
अब तक आप जान चुके होंगे कि बुद्धि परीक्षण कई उपयोगी उद्देश्यों को पूर्ण करता है, जैसे - चयन, परामर्श, निर्देशन, आत्मविश्लेषण और निदान में। जब तक ये परीक्षण किसी प्रशिक्षित परीक्षणकर्ता द्वारा नहों उपयोग किए जाते, जानबूझकर या अनजाने में इनका दुरुपयोग हो सकता है। नौसिखिआ परीक्षणकर्ताओं द्वारा किए गए बुद्धि परीक्षणों के कुछ दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं -
- किसी परीक्षण पर खराब प्रदर्शन बच्चे पर कलंक लगा सकता है तथा उससे उनके निष्पादन और आत्म-सम्मान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- परीक्षण माता-पिता, अध्यापकों तथा बड़ों के भेदभावपूर्ण आचरण को न्योता दे सकता है।
- मध्यवर्गीय और उच्चवर्गीय जनसंख्याओं के पक्ष में अभिनत परीक्षण समाज के सुविधारंचित समूहों से आने वाले बच्चों की बुद्धि लब्धि को कम आँक सकता है।
- बुद्धि परीक्षण सर्जनात्मक संभाव्यताओं और बुद्धि के व्यावहारिक पक्ष का माप नहीं कर पाता है और उनका जीवन में सफलता से ज़्यादा संबंध नहीं होता। बुद्धि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उपलव्धियों का एक संभाव्य कारक हो सकती है।
ऐसा सुझाव दिया जाता है कि बुद्धि परीक्षणों से संबंधित त्रुटिपूर्ण अभ्यासों के प्रति सावधान रहना चाहिए तथा किसी व्यक्ति की शक्तियों और कमज़ोरियों के विश्लेषण के लिए किसी प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक की मदद लेनी चाहिए।
संस्कृति-निष्प्ष तथा संस्कृति-अभिनत परीक्षण
बुद्धि परीक्षण संस्कृति-निष्पक्ष अथवा संस्कृति-अभिनत हो सकते हैं। बहुत से बुद्धि परीक्षण उस संस्कृति के प्रति अभिनति प्रदर्शित करते हैं जिसमें वे बुद्धि परीक्षण विकसित किए जाते हैं। अमेरिका तथा यूरोप में विकसित किए गए बुद्धि परीक्षण नगरीय तथा मध्यवर्गीय सांस्कृतिक लोकाचार का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए इन परीक्षणों पर उस देश के शिक्षित मध्यवर्गीय श्वेत व्यक्ति सामान्यतः अच्छा निष्पादन कर लेते हैं। इन परीक्षणों के एकांश या प्रश्न एशिया या अफ्रीका के सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य का ध्यान नहीं रखते। इन परीक्षणों के मानकों का निर्माण भी पश्चिमी संस्कृति के व्यक्तियों के समूहों से किया जाता है। आप परीक्षणों के मानक के विषय में पहले ही कक्षा 11 में पढ़ चुके हैं।
किसी ऐसे परीक्षण का निर्माण करना लगभग असंभव कार्य है जो सभी संस्कृतियों के लोगों पर एक समान सार्थक रूप से अनुप्रयुक्त किया जा सके। मनोवैज्ञानिकों ने ऐसे परीक्षणों का निर्माण करने का प्रयास किया है जो संस्कृति-निष्पक्ष हों या सभी संस्कृति-उपयुक्त हों अर्थात जो भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के व्यक्तियों में भेदभाव न करें। ऐसे परीक्षणों में एकांशों की रचना इस प्रकार की जाती है कि वे सभी संस्कृतियों में सर्वनिष्ठ रूप से होने वाले अनुभवों का मूल्यांकन करें या उस परीक्षण में ऐसे प्रश्न रखे जाएँ जिनमें भाषा का उपयोग न हो। शाब्दिक परीक्षणों मे पाई जाने वाली सांस्कृतिक अभिनति अशाब्दिक तथा निष्पादन परीक्षण में कम हो जाती है।
भारत में बुद्धि परीक्षण
1930 में एस.एम. मोहसिन (S.M. Mohsin) ने हिन्दी भाषा में बुद्धि परीक्षण के निर्माण का प्रयास करके एक पथप्रदर्शक कार्य किया। सी.एच. राइस (C.H. Rice) ने बिने के बुद्धि परीक्षण को उर्दू तथा पंजाबी भाषा में मानकीकृत करने का प्रयास किया। लगभग उसी समय महलानोबिस (Mahalanobis) ने बिने के परीक्षण को बंगाली भाषा में मानकीकृत करने का प्रयास किया। भारतीय शोधकर्ताओं ने पश्चिमी देशों में बने कुछ बुद्धि परीक्षणों, जैसे - रैवेन्स प्रोग्रेसिव मैट्रिसेस (RPM), वेश्लर एडल्ट इंटेलिजेंस स्केल (WAIS), एलेक्जेंडर का पासएलांग (Passalong) परीक्षण, घन रचना (cube construction) परीक्षण तथा कोह का ब्लॉक-डिज़ाइन परीक्षण आदि का भारतीय मानक विकसित करने का प्रयास किया। लांग (Long) तथा मेहता (Mehta) ने एक मानसिक मापन पुस्तिका प्रकाशित की जिसमें भारत की विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध 103 बुद्धि परीक्षणों की सूची है। उसके बाद से बहुत से नए बुद्धि परीक्षण या तो विकसित किए गए या फिर पश्चिमी संस्कृतियों में निर्मित परीक्षणों का भारतीय संस्कृति के लिए उपयुक्त अनुकूलन किया गया। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी.) के शैक्षिक तथा मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के राष्ट्रीय पुस्तकालय (एन.एल.ई.पी.टी.) ने भारतीय परीक्षणों के प्रलेखन के बाद अभिलेख तैयार किया है। भारतीय परीक्षणों के आलोचनात्मक पुनरीक्षण पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हैं। एन.एल.ई.पी.टी. ने बुद्धि, अभिक्षमता, व्यक्तित्व,
तालिका 1.2 भारत में विकसित कुछ परीक्षण
शाब्दिक | निष्पादन |
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अभिवृत्ति और अभिरुचि आदि के परीक्षणों की एक पुस्तिका प्रकाशित की है। भारत में विकसित कुछ परीक्षणों की एक सूची तालिका 1.2 में प्रस्तुत की गई है जिसमें से भाटिया की निष्पादन परीक्षणमाला काफ़ी प्रचलित है।
संस्कृति तथा बुद्धि
बुद्धि की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह पर्यावरण से अनुकूलित होने में व्यक्ति की सहायता करती है। व्यक्ति का सांस्कृतिक पर्यावरण बुद्धि के विकसित होने में एक संदर्भ प्रदान करता है। एक रूसी मनोवैज्ञानिक वाइगॉट्सकी (Vygotsky) ने कहा कि संस्कृति एक ऐसा सामाजिक संदर्भ प्रदान करती है जिसमें व्यक्ति रहता है, विकसित होता है और अपने आस-पास के जगत को समझता है। उदाहरण के लिए तकनीकी रूप से कम विकसित समाज में सामाजिक अंतर्वैयक्तिक संबंधों को बनाने वाले सामाजिक तथा सांवेगिक कौशलों को अधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है जबकि तकनीकी रूप से विकसित समाज में तर्कना तथा निर्णय लेने की योग्यताओं पर आधारित निजी उपलब्धियों को बुद्धि समझा जाता है।
अपने पहले के अध्ययनों से आप जानते होंगे कि संस्कृति रीति-रिवाजों, विश्वासों, अभिवृत्तियों तथा कला और साहित्य में उपलब्धियों की एक सामूहिक व्यवस्था को कहते हैं। इन सांस्कृतिक प्राचालों के अनुरूप ही किसी व्यक्ति की बुद्धि के ढलने की संभावना होती है। अनेक सिद्धांतकार बुद्धि को व्यक्ति की विशेषता समझते हैं और व्यक्ति की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की उपेक्षा कर देते हैं। परंतु अब बुद्धि के सिद्धांतों में संस्कृति की अनन्य विशेषताओं को भी स्थान मिलने लगा है। स्टर्नबर्ग के सांदर्भिक अथवा व्यावहारिक बुद्धि का अर्थ यह है कि बुद्धि संस्कृति का उत्पाद होती है। वाइगॉट्स्की का भी विश्वास था कि व्यक्ति की तरह संस्कृति का भी अपना एक जीवन होता है, संस्कृति का भी विकास होता है और उसमें परिवर्तन होता है। इसी प्रक्रिया में संस्कृति ही यह निर्धारित करती है कि अंतत: किसी व्यक्ति का बौद्धिक विकास किस प्रकार का होगा। वाइगॉट्स्की के अनुसार, कुछ प्रारंभिक मानसिक प्रक्रियाएँ (जैसे - रोना, माता की आवाज़ की ओर ध्यान देना, सूँघना, चलना, दौड़ना आदि) सर्वव्यापी होती हैं, परंतु उच्च मानसिक प्रक्रियाएँ, जैसे - समस्या का समाधान करने तथा चिंतन करने आदि की शैलियाँ मुख्यतः संस्कृति का प्रतिफल होती हैं।
तकनीकी रूप से विकसित समाज के व्यक्ति ऐसी बाल-पोषण रीतियाँ अपनाते हैं जिससे बच्चों में सामान्यीकरण तथा अमूर्तकरण, गति, न्यूनतम प्रयास करने तथा मानसिक स्तर पर वस्तुओं का प्रहस्तन करने की क्षमता विकसित हो सके। ऐसे समाज बच्चों में एक विशेष प्रकार के व्यवहार के विकास को बढ़ावा देते हैं जिसे आप तकनीकी-बुद्धि (technological intelligence) कह सकते हैं। ऐसे समाजों में व्यक्ति अवधान देने, प्रेक्षण करने, विश्लेषण करने, अच्छा निष्पादन करने, तेज काम करने तथा उपलब्धि की ओर उन्मुख रहने आदि कौशलों में दक्ष होते हैं। पश्चिमी संस्कृतियों में निर्मित किए गए बुद्धि परीक्षणों में विशुद्ध रूप से व्यक्ति के इन्हीं कौशलों की परीक्षा की जाती है।
एशिया तथा अफ्रीका के अनेक समाजों में तकनीकी बुद्धि को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता। एशिया तथा अफ्रीका की संस्कृतियों में पश्चिमी देशों की अपेक्षा पूर्णतः भिन्न गुणों तथा कौशलों को बुद्धि का परिचायक माना जाता है। गैर-पश्चिमी संस्कृतियों में व्यक्ति की अपनी संज्ञानात्मक सक्षमता के साथ-साथ उसमें समाज के दूसरे व्यक्तियों के साथ सामाजिक संबंध बनाने के कौशलों को भी बुद्धि का लक्षण माना जाता है। कुछ गैर-पश्चिमी समाजों में समाज-केंद्रित तथा सामूहिक उन्मुखता पर बल दिया जाता है जबकि पश्चिमी समाजों में निजी उपलब्धियों तथा व्यक्तिपरक उन्मुखता को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यद्यपि पश्चिम के सांस्कृतिक प्रभावों के कारण अब यह भिन्नता धीरे-धीरे समाप्त हो रही है।
भारतीय परंपरा में बुद्धि
तकनीकी बुद्धि के संप्रत्यय के विपरीत भारतीय परंपरा में बुद्धि को जिस प्रकार समझा गया है उसे समाकलित बुद्धि (integral intelligence) कहा जा सकता है जिसमें समाज तथा सम्पूर्ण वैश्विक पर्यावरण से व्यक्ति के संबंधों को अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है। भारतीय विचारकों ने बुद्धि को उसकी समग्रता के परिप्रेक्ष्य में देखा है जिसमें संज्ञानात्मक तथा असंज्ञानात्मक दोनों प्रकार की प्रक्रियाओं तथा उनके समाकलन पर समान रूप से बल दिया गया है।
अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘इंटेलिजेंस’ के स्थान पर संस्कृत भाषा के जिस ‘बुद्धि’ शब्द का उपयोग किया जाता है उसका अर्थ ‘इंटेलिजेंस’ शब्द के अर्थ से बहुत अधिक व्यापक है। जे.पी. दास के अनुसार बुद्धि के अंतर्गत मानसिक प्रयास, दृढ़ निश्चय के साथ की जानेवाली क्रियाएँ, अनुभूतियाँ तथा मत के साथ-साथ ज्ञान, विभेदन करने की योग्यता तथा समझ जैसी संज्ञानात्मक क्षमताएँ भी आती हैं। कुछ अन्य विशेषताओं के साथ-साथ अंतर्विवेक, संकल्प एवं अभिलाषाओं के आधार पर आत्मज्ञान भी बुद्धि का ही अंश होता है। अतः बुद्धि के अंतर्गत संज्ञानात्मक घटक के साथ-साथ अभिप्रेरणात्मक तथा भावात्मक घटक भी होते हैं। पश्चिमी विचारक बुद्धि के अंतर्गत मात्र संज्ञानात्मक कौशलों को ही प्राथमिक महत्त्व का स्वीकार करते हैं। परंतु इसके विपरीत भारतीय परंपरा में अधोलिखित क्षमताएँ बुद्धि के अंतर्गत स्वीकार की जाती हैं -
- संज्ञानात्मक क्षमता (cognitive capacity) (संदर्भ के प्रति संवेदनशीलता, समझ, विभेदन क्षमता, समस्या समाधान की योग्यता तथा प्रभावी संप्रेषण की योग्यता)।
- सामाजिक क्षमता (social competence) (सामाजिक व्यवस्था के प्रति सम्मान, अपने से बड़ों, छोटों तथा वंचित व्यक्तियों के प्रति प्रतिबद्धता, दूसरों की चिंता, दूसरे व्यक्तियों के परिप्रेक्ष्य का सम्मान)।
- सांवेगिक क्षमता (emotional competence) (अपने संवेगों पर आत्म-नियमन तथा आत्म-परिवीक्षण, ईमानदारी, शिष्टता, अच्छा आचरण तथा आत्म-मूल्यांकन।
- उद्यमी क्षमता (entrepreneurial competence) (प्रतिबद्धता, अध्यवसाय, धैर्य, कठिन परिश्रम, सतर्कता तथा लक्ष्यनिर्देशित व्यवहार)।
सांवेगिक बुद्धि
सांवेगिक बुद्धि का संप्रत्यय बुद्धि के संप्रत्यय को उसके बौद्धिक क्षेत्र से अधिक विस्तार देता है और संवेगों को भी बुद्धि के अंतर्गत सम्मिलित करता है। सांवेगिक बुद्धि का संप्रत्यय सामान्य बुद्धि की भारतीय परंपरा की अवधारणा से निर्मित हुआ है। सांवेगिक बुद्धि (emotional intelligence) अनेक कौशलों, जैसे - अपने तथा दूसरे व्यक्तियों के संवेगों का परिशुद्ध मूल्यांकन, प्रकटीकरण तथा संवेगों का नियमन आदि का एक समुच्चय है। यह बुद्धि का भावात्मक पक्ष है। जीवन में सफल होने के लिए उच्च बुद्धि लब्धि तथा विद्यालयीय परीक्षाओं में अच्छा निष्पादन ही पर्याप्त नहीं है। आप अनेक ऐसे व्यक्ति पाएँगे जो उच्च शैक्षिक प्रतिभा वाले तो हैं परंतु अपने जीवन में सफल नहीं हो पाते। परिवार में तथा कार्य स्थान पर उनको अनेक समस्याएँ रहती हैं। वे अच्छा अंतर्वैयक्तिक संबंध नहीं बना पाते। ऐसे व्यक्तियों में कौन सी कमी होती है? कुछ मनोवैज्ञानिकों का विश्वास है कि उनकी समस्याएँ उनकी सांवेगिक बुद्धि की कमी के कारण उत्पन्न होती हैं। सांवेगिक बुद्धि के संप्रत्यय को सर्वप्रथम सैलोवी (Salovey) तथा मेयर (Meyer) ने प्रस्तुत किया था। इन लोगों के अनुसार “अपने तथा दूसरे व्यक्तियों के संवेगों का परिवीक्षण करने और उनमें विभेदन करने की योग्यता तथा प्राप्त सूचना के अनुसार अपने चिंतन तथा व्यवहारों को निर्देशित करने को योग्यता ही सांवेगिक बुद्धि है”। सांवेगिक लब्धि (emotional quotient, EQ) का उपयोग किसी व्यक्ति की सांवेगिक बुद्धि की मात्रा बताने में उसी प्रकार किया
बॉक्स 1.2
संवेगतः बुद्धिमान व्यक्तियों की विशेषताएँ
- अपनी भावनाओं और संवेगों को जानना और उसके प्रति संवेदनशील होना।
- दूसरे व्यक्तियों के विभिन्न संवेगों को उनकी शरीर भाषा, आवाज़ और स्वरक तथा आनन अभिव्यक्तियों पर ध्यान देते हुए जानना और उसके प्रति संवेदनशील होना।
- अपने संवेगों को अपने विचारों से संबद्ध करना ताकि समस्या समाधान तथा निर्णय करते समय उन्हें ध्यान में रखा जा सके।
- अपने संवेगों की प्रकृति और तीव्रता के शक्तिशाली प्रभाव को समझना।
- अपने संवेगों और उनकी अभिव्यक्तियों को दूसरों से व्यवहार करते समय नियंत्रित करना ताकि शांति और सामंजस्य की प्राप्ति हो सके।
जाता है जिस प्रकार बुद्धि लब्धि (आई.क्यू.) का उपयोग बुद्धि की मात्रा बताने में किया जाता है।
साधारण शब्दों में सांवेगिक सूचनाओं की परिशुद्धता तथा कुशलता के साथ प्रक्रमण करने की योग्यता ही सांवेगिक बुद्धि है। किसी उच्च सांवेगिक बुद्धि वाले व्यक्ति की विशेषताएँ जानने के लिए बॉक्स 1.2 को देखें।
बाह्य जगत के दबावों तथा चुनौतियों से प्रभावित विद्यार्थियों से संबंध रखने में शिक्षकों का ध्यान उनकी सांवेगिक बुद्धि पर उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। विद्यार्थियों की सांवेगिक बुद्धि में अभिवृद्धि करने वाले कार्यक्रमों से उनकी शैक्षिक उपलब्धियों पर लाभप्रद प्रभाव पड़ता है। इससे उनके सहयोगी व्यवहार को प्रोत्साहन मिलता है तथा समाज विरोधी गतिविधियाँ कम हो जाती हैं। ऐसे कार्यक्रम/योजनाएँ विद्यार्थियों को कक्षा के बाहर की दुनिया की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करने में बहुत उपयोगी होती हैं।
विशिष्ट योग्यताएँ
अभिक्षमता-स्वरूप एवं मापन
अब तक आप बुद्धि के बारे में पर्याप्त रूप से समझ गए होंगे। आपको याद होगा कि बुद्धि परीक्षण एक प्रकार की सामान्य मानसिक योग्यता का मापन करते हैं। अभिक्षमता (aptitude) क्रियाओं के किसी विशेष क्षेत्र की विशेष योग्यता को कहते हैं। अभिक्षमता विशेषताओं का ऐसा संयोजन है जो व्यक्ति द्वारा प्रशिक्षण के उपरांत किसी विशेष क्षेत्र के ज्ञान अथवा कौशल के अर्जन की क्षमता को प्रदर्शित करता है। अभिक्षमताओं का मापन कुछ विशिष्ट परीक्षणों द्वारा किया जाता है। किसी व्यक्ति की अभिक्षमता के मापन से हमें उसके द्वारा भविष्य में किए जाने वाले निष्पादन का पूर्वकथन करने में सहायता मिलती है।
बुद्धि का मापन करने की प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिकों को बहुधा यह ज्ञात होता है कि समान बुद्धि रखने वाले व्यक्ति भी किसी विशेष क्षेत्र के ज्ञान अथवा कौशलों को भिन्न-भिन्न दक्षता के साथ अर्जित करते हैं। आप अपनी कक्षा में ही देख सकते हैं कि कुछ बुद्धिमान विद्यार्थी भी कुछ विषयों में अच्छा निष्पादन नहीं कर पाते। जब आपको गणित में कोई समस्या आती है तो आप अमन से सहायता चाहते हैं परंतु जब आपको कविता समझने में कठिनाई आती है तो आप अविनाश के पास जाते हैं। इसी प्रकार जब आपको विद्यालय के वार्षिक समारोह में कोई गीत गाना होता है तो आप शबनम की सहायता लेते हैं परंतु जब आपके स्कूटर के स्टार्ट होने में समस्या होती है तो आप जॉन को याद करते हैं। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की ये विशिष्ट योग्यताएँ तथा कौशल ही अभिक्षमताएँ कहलाती हैं। उचित प्रशिक्षण देकर इन योग्यताओं में पर्याप्त अभिवृद्धि की जा सकती है।
किसी विशेष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में अभिक्षमता के साथ-साथ अभिरुचि (interest) का होना भी आवश्यक है। अभिरुचि किसी विशेष कार्य को करने की वरीयता या तरज़ीह को कहते हैं जबकि अभिक्षमता उस कार्य को करने की संभाव्यता या विभवता को कहते हैं। किसी व्यक्ति में किसी कार्य को करने की अभिरुचि हो सकती है परंतु हो सकता है कि उसे करने की अभिक्षमता उसमें न हो। इसी प्रकार यह भी संभव है कि किसी व्यक्ति में किसी कार्य को करने की अभिक्षमता हो परंतु उसमें उसकी अभिरुचि न हो। इन दोनों ही दशाओं में उसका निष्पादन संतोषजनक नहीं होगा। एक ऐसे विद्यार्थी की सफल यांत्रिक अभियंता बनने की अधिक संभावना है जिसमें उच्च यांत्रिक अभिक्षमता हो और अभियांत्रिकी में उसकी अभिरुचि भी हो।
अभिक्षमता परीक्षण दो रूपों में प्राप्त होते हैं - स्वतंत्र (विशेषीकृत) अभिक्षमता परीक्षण तथा बहुल (सामान्यीकृत) अभिक्षमता परीक्षण। लिपिकीय अभिक्षमता, यांत्रिक अभिक्षमता, आंकिक अभिक्षमता तथा टंकण अभिक्षमता आदि के परीक्षण स्वतंत्र अभिक्षमता परीक्षण हैं। बहुल अभिक्षमता परीक्षणों में एक परीक्षणमाला होती है जिससे अनेक भिन्न-भिन्न प्रकार की परंतु समजातीय क्षेत्रों में अभिक्षमता का मापन किया जाता है। विभेदक अभिक्षमता परीक्षण (डी.ए.टी.), सामान्य अभिक्षमता परीक्षणमाला (जी.ए.टी.बी.) तथा आर्म्ड सर्विसेस व्यावसायिक अभिक्षमता परीक्षणमाला (ए.एस.वी.ए.बी.) आदि प्रसिद्ध अभिक्षमता परीक्षण मालाएँ हैं। इनमें से शैक्षिक पर्यावरण में विभेदक अभिक्षमता परीक्षण का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। इस परीक्षण में 8 स्वतंत्र उप-परीक्षण हैं - 1. शाद्दिक तर्कना, 2. आंकिक तर्कना, 3. अमूर्त तर्कना, 4. लिपिकीय गति एवं परिशुद्धता, 5. यांत्रिक तर्कना, 6. देशिक या स्थानिक संबंध, 7. वर्तनी तथा 8. भाषा का उपयोग। जे.एम. ओझा (J.M. Ojha) ने इस परीक्षण का भारतीय अनुकूलन विकसित किया है। भारत में वैज्ञानिक, शैक्षिक, साहित्यिक, लिपिकीय तथा अध्यापन अभिक्षमता आदि का मापन करने के लिए अन्य अभिक्षमता परीक्षणों का भी निर्माण किया गया है।
सर्जनात्मकता
अभी तक आपने पढ़ा कि बुद्धि, अभिक्षमता, व्यक्तित्व जैसे मनोवैज्ञानिक गुणों में वैयक्तिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं। अब हम आपको बताएँगे कि सर्जनात्मक संभाव्यता में तथा इस संभाव्यता के अभिव्यक्त होने की रीति में भी व्यक्तिगत भिन्नताएँ पाई जाती हैं। कुछ व्यक्तियों में सर्जनात्मकता बहुत अधिक मात्रा में होती है और कुछ व्यक्तियों में उतनी अधिक नहीं होती। कुछ व्यक्तियों की सर्जनात्मकता लेखन कार्य में अभिव्यक्त होती है और कुछ की नृत्य, संगीत, कविता, विज्ञान अथवा किसी अन्य क्षेत्र में अभिव्यक्त होती है। किसी समस्या का नए प्रकार का समाधान खोजने, आविष्कार करने, कविता लिखने, चित्र बनाने, किसी नई रासायनिक क्रिया को खोजने, कानून के क्षेत्र में कुछ नया विचार देने, किसी बीमारी की चिकित्सा अथवा रोकथाम को नई दिशा देने या इसी प्रकार के किसी अन्य क्षेत्र में सर्जनात्मकता की अभिव्यक्ति का प्रेक्षण किया जा सकता है। प्रत्येक क्षेत्र में सर्जनात्मक चिंतन में भिन्नता होने के बावजूद एक तत्व सर्वनिष्ठ होता है कि सभी में कुछ नया और अनोखा तथ्य उत्पन्न किया जाता है।
जब हम सर्जनात्मकता के बारे में सोचते समय कुछ सर्जनशील व्यक्तियों का नाम याद करते हैं तो रवींद्रनाथ टैगोर, आइंसटीन, सी.वी. रमन, रामानुजन आदि का नाम याद आता है। इन लोगों ने भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान दिया है। हाल के वर्षों में सर्जनात्मकता के संबंध में हमारी समझ विस्तृत हो गई है। सर्जन की प्रतिभा कुछ कलाकारों, वैज्ञानिकों, कवियों या आविष्कारकों तक ही सीमित नहीं होती। एक ऐसा सामान्य व्यक्ति भी सर्जनशील हो सकता है जो मिट्टी के बर्तन बनाने, बढ़ईगगरी या भोजन बनाने जैसे साधारण पेशे से जुड़ा हुआ है। यद्यपि इस दशा में उनकी सर्जनात्मकता का वह स्तर नहीं होता जो एक श्रेष्ठ वैज्ञानिक या लेखक में होता है। अतः हम कह सकते हैं कि व्यक्तियों द्वारा सर्जनात्मकता की अभिव्यक्ति के क्षेत्रों तथा स्तरों के आधार पर भिन्नता पाई जाती है और सभी व्यक्ति एक ही स्तर पर सर्जनात्मकता की अभिव्यक्ति नहीं करते। आइंसटीन का सापेक्षता का सिद्धांत उच्चतम स्तर की सर्जनात्मकता का एक उदाहरण है जिसमें उन्होंने पूर्णतया नए विचार, नए तथ्य, सिद्धांत अथवा एक उत्पाद प्रस्तुत किया। सर्जनात्मकता का एक अन्य स्तर यह भी है जिसमें व्यक्ति पहले से स्थापित विचारों या वस्तुओं को किसी नए परिप्रेक्ष्य में रखकर या उसकी नई उपयोगिता प्रस्तुत करके उसमें परिवर्तन या रूपांतर करता है।
इस संबंध में शोध साहित्य यह बताते हैं कि बच्चे बाल्यावस्था के प्रारंभिक वर्षों में अपनी कल्पनाशक्ति का विकास करने लगते हैं परंतु वे अपनी सर्जनात्मकता की अभिव्यक्ति मुख्य रूप से शारीरिक तथा अवाचिक क्रियाओं के माध्यम से करते हैं। जब उनमें भाषा तथा बौद्धिक प्रकार्यों का पूर्ण विकास हो जाता है और उनकी स्मृति में पर्याप्त ज्ञान का भंडारण हो जाता है तब उनकी सर्जनात्मकता की अभिव्यक्ति शाब्दिक रूप से भी होने लगती है। जिन व्यक्तियों में सर्जनात्मकता अधिक मात्रा में होती है वे अपने द्वारा चुनी गई क्रियाओं द्वारा यह संकेत प्रदान कर सकते हैं कि उनकी सर्जनात्मकता की दिशा क्या है। कुछ व्यक्तियों के लिए आवश्यक होता है कि उन्हें ऐसे अवसर प्रदान किए जाएँ जिनमें वे अपनी अदृश्य या प्रच्छन्न सर्जनात्मक संभाव्यता अभिव्यक्ति प्राप्त कर सकें।
हम सर्जनात्मकता की संभाव्यता में पाई जाने वाली भिन्नता की व्याख्या किस प्रकार कर सकते हैं? जिस प्रकार हम अन्य शारीरिक तथा मानसिक विशेषताओं की व्याख्या आनुवंशिकता तथा पर्यावरण की जटिल अंतःक्रिया के माध्यम से करते हैं, उसी प्रकार सर्जनात्मकता में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताओं की व्याख्या भी करते हैं। इस विषय पर कोई असहमति नहीं है कि सर्जनात्मकता आनुवंशिकता तथा पर्यावरण दोनों द्वारा निर्धारित होती है। सर्जनात्मक संभाव्यता की सीमाएं व्यक्ति की आनुवंशिकता द्वारा नियत हो जाती हैं तथा पर्यावरणी कारक सर्जनात्मकता के विकास को उद्दीप्त करते हैं। किसी व्यक्ति में सर्जनात्मक संभाव्यता का कितना विकास होगा, किस आयु में होगा तथा उसका रूप और दिशा क्या होगी - यह मुख्य रूप से पर्यावरणी कारकों, जैसे - अभिप्रेरणा, प्रतिबद्धता, पारिवारिक अवलंब या समर्थन, समकक्षियों का प्रभाव, प्रशिक्षण प्राप्त करने के अवसर आदि द्वारा निर्धारित होता है। यद्यपि एक सामान्य व्यक्ति को चाहे जितना प्रशिक्षण दिया जाए वह टैगोर या शेक्सपीयर नहीं बन सकता परंतु यह भी सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी सर्जनात्मक संभाव्यता के वर्तमान स्तर को उससे ऊँचे स्तर तक बढ़ा सकता है। इस संदर्भ में आप कक्षा 11 में सर्जनात्मकता को बढ़ाने वाली युक्तियों या उपायों के विषय में पढ़ चुके हैं।
सर्जनात्मकता तथा बुद्धि
सर्जनात्मकता में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताओं को समझने में उत्पन्न वाद-विवाद का एक महत्वपूर्ण कारण बुद्धि तथा सर्जनात्मकता के संबंधों का स्वरूप है।
हम कक्षा के दो विद्यार्थियों का उदाहरण देते हैं। सुनीता को उसके अध्यापक एक श्रेष्ठ छात्रा समझते हैं। वह अपने काम को समय से पूरा करती है, अपनी कक्षा में उच्चतम श्रेणी या ग्रेड प्राप्त करती है, अध्यापकों के अनुदेशों को ध्यान से सुनती है और तुरंत समझ जाती है। वह अधिगत पाठ्य सामग्रियों का परिशुद्धता से पुन:प्रस्तुति करती है परंतु शायद ही कभी कोई ऐसा विचार रखती है जो उसका अपना हो। रीता एक अन्य छात्रा है जो अध्ययन में औसत स्तर की है और विभिन्न परीक्षाओं में लगातार उच्च श्रेणी भी नहीं प्राप्त की है। वह अपने आप चीज़ों के सीखने को वरीयता देती है। वह घर में अपनी माँ की सहायता करने के लिए काम करने के तरीकों में सुधार करती है तथा अपने दत्तकार्य करने के नए-नए तरीके खोज लेती है। इस दशा में हम सुनीता को अधिक बुद्धिमान तथा रीता को अधिक सर्जनशील कहेंगे। अतः एक व्यक्ति जो तीव्रगति से सीखने की योग्यता रखता है और अधिगत विषयवस्तु का परिशुद्धता से पुन :प्रस्तुति करता है- अधिक सर्जनशील की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान कहा जाएगा। यदि वह सीखने में तथा अन्य कार्यों के संपादन में नए तरीकों की खोज भी करने लगे तभी वह अधिक सर्जनशील भी कहा जाएगा।
टर्मन (Terman) ने 1920 में पाया कि यह आवश्यक नहीं है कि अधिक बुद्धिमान व्यक्ति सर्जनशील भी हो। साथ ही, सर्जनात्मक विचार उस व्यक्ति में भी उत्पन्न हो सकते हैं जिसकी बुद्धि लब्धि अत्यधिक न हो। कुछ शोधकर्ताओं ने यह भी प्रदर्शित किया है कि जिन बच्चों की पहचान प्रतिभाशाली के रूप में की गई थी उनमें से शायद ही किसी एक ने भी जीवन में किसी क्षेत्र में अपनी सर्जनात्मकता के कारण प्रसिद्धि प्राप्त की हो। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि दोनों प्रकार के-अधिक बुद्धिमान तथा सामान्य बुद्धि वाले बच्चों में उच्च तथा निम्न स्तर की सर्जनात्मकता पाई जा सकती है। इसलिए एक व्यक्ति सर्जनशील तथा बुद्धिमान दोनों हो सकता है परंतु यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति सर्जनशील ही हो। यहाँ बुद्धिमान शब्द का मंतव्य उसके परंपरागत अर्थ से है। अतः अधिक बुद्धिमान हो जाना यह निश्चित नहीं करता कि व्यक्ति सर्जनशील भी होगा।
शोधकर्ताओं ने पाया है कि सर्जनात्मकता तथा बुद्धि में सकारात्मक संबंध होता है। प्रत्येक सर्जनात्मक कार्य के लिए ज्ञान प्राप्त करने के लिए तथा समस्या को समझने, सूचनाओं को भंडारित करने तथा आवश्यकता पड़ने पर उनकी पुन:प्राप्ति करने के लिए एक न्यूनतम स्तर की योग्यता तथा क्षमता की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए सर्जनशील लेखकों को भाषा के उपयोग में दक्षता की आवश्यकता होती है। एक चित्रकार के लिए यह जानना आवश्यक है कि चित्र बनाने की उसकी एक विशेष तकनीक का दर्शक पर कैसा प्रभाव उत्पन्न होगा, एक वैज्ञानिक को तर्कना में कुशल होना चाहिए आदि। अतः सर्जनात्मकता के लिए एक विशेष मात्रा में बुद्धि का होना आवश्यक है परंतु उस विशेष मात्रा से अधिक बुद्धि का सर्जनात्मकता से सहसंबंध नहीं होता। निष्कर्ष यह है कि सर्जनात्मकता के कई रूप और सम्मिश्रण होते हैं। कुछ व्यक्तियों में बौद्धिक गुण अधिक मात्रा में होते हैं और कुछ व्यक्तियों में सर्जनात्मकता से संबद्ध विशेषताएँ अधिक मात्रा में होती हैं। परंतु, एक सर्जनशील व्यक्ति में कौन से गुण होते हैं? आप जानना चाहेंगे कि वे कौन से गुण हैं जो सभी सर्जनशील व्यक्तियों में पाए जाते हैं।
सर्जनात्मकता परीक्षणों का निर्माण बुद्धि से भिन्न सर्जनात्मकता की संभाव्यता में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताओं के मूल्यांकन के लिए किया गया था।
अधिकांश सर्जनात्मकता परीक्षणों की एक सामान्य विशेषता यह होती है कि वे मुक्त-अंत वाले होते हैं। इसका अर्थ यह है कि इन परीक्षणों में व्यक्ति को स्वतंत्रता होती है कि वह किसी प्रश्न या समस्या के संबंध में अपने अनुभवों के आधार पर उसके विभिन्न उत्तरों के बारे में मुक्त होकर जिस प्रकार से चाहे सोचे। सर्जनात्मकता परीक्षणों में पूछे गए प्रश्नों या दी गई समस्याओं का कोई निश्चित उत्तर नहीं होता। अतः व्यक्ति को यह स्वतंत्रता रहती है कि वह अपनी कल्पनाशक्ति का पूरा उपयोग करे तथा उसकी मौलिक अभिव्यक्ति करे। सर्जनात्मकता परीक्षणों में अपसारी चिंतन का उपयोग करना होता है और इन परीक्षणों द्वारा भाँति-भाँति के विचारों अर्थात नए तथा अछूते विचारों को उत्पन्न करने की योग्यता, असंबद्ध प्रतीत होने वाली वस्तुओं में नए संबंधों की परिकल्पना कर लेने की योग्यता, कारणों और परिणामों का अनुमान लगाने की योग्यता, वस्तुओं और विचारों को एक नए संदर्भ में रखने की योग्यता आदि का मूल्यांकन किया जाता है। ये परीक्षण बुद्धि परीक्षणों से इस तरह भिन्न होते हैं कि बुद्धि परीक्षणों में मुख्य रूप से अभिसारी चिंतन का उपयोग होता है। बुद्धि परीक्षणों में व्यक्ति को किसी प्रश्न का सही उत्तर खोजना होता है या किसी समस्या का सही समाधान खोजना होता है और व्यक्ति की स्मृति, तार्किक योग्यता, परिशुद्धता, प्रत्यक्षज्ञान-योग्यता और स्पष्ट चिंतन जैसी योग्यताओं का मूल्यांकन करना इन परीक्षणों का उद्देश्य होता है। इन परीक्षणों में स्वतःस्फूर्ति, मौलिकता तथा कल्पनाशक्ति का उपयोग करने का कम ही अवसर होता है।
सर्जनात्मकता परीक्षणों में अभिव्यक्यिों की विविधता पाई जाती है इसलिए इन परीक्षणों के निर्माण में विभिन्न प्रकार के उद्दीपकों, जैसे - शब्दों, चित्रों, क्रियाओं तथा ध्वनियों का उपयोग किया जाता है। ये परीक्षण व्यक्ति की सामान्य सर्जनात्मक चिंतन योग्यताओं, जैसे - किसी दी गई स्थिति या विषय पर विभिन्न प्रकार के विचारों को उत्पन्न करने की योग्यता, वस्तुओं को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखने की योग्यता, समस्याओं के भिन्न-भिन्न प्रकार के समाधान निकालने की योग्यता, कारणों तथा परिणामों के बारे में अनुमान लगाने की योग्यता, प्रचलित वस्तुओं के उपयोग तथा उसमें सुधार के विकल्पों के बारे में मौलिक विचार करने की योग्यता तथा असामान्य प्रकार के प्रश्न करना आदि का मापन किया जाता है। कुछ शोधकर्ताओं ने सर्जनात्मकता के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों, जैसे - साहित्यिक सर्जनात्मकता, वैज्ञानिक सर्जनात्मकता, गणितीय सर्जनात्मकता आदि में सर्जनात्मकता परीक्षण विकसित किए हैं। सर्जनात्मकता परीक्षणों का निर्माण करने वाले मनोवैज्ञानिकों में गिलफोर्ड (Guilford), टोरेंस (Torrance), खटेना (Khatena), वालाश (Wallach) तथा कोगन (Kogan), परमेश (Paramesh), बाकर मेंहदी (Baqer Mehdi) तथा पासी (Passi) आदि के नाम प्रमुख हैं। प्रत्येक परीक्षण की एक मानकीकृत विधि होती है, उसकी एक विधिपुस्तिका होती है और परिणामों की व्याख्या हेतु एक संदर्शिका भी होती है। परीक्षण प्रशासन और परीक्षण प्राप्तांकों की व्याख्या के विस्तृत प्रशिक्षण के उपरांत ही इनका उपयोग किया जा सकता है।
प्रमुख पद
अभिक्षमता, अभिक्षमता परीक्षण, व्यक्ति अध्ययन, संज्ञानात्मक मूल्यांकन प्रणाली, घटकीय बुद्धि, सांदर्भिक बुद्धि, सर्जनात्मकता, संस्कृति-निष्पक्ष परीक्षण, सांवेगिक बुद्धि, आनुभविक बुद्धि, सा-कारक, व्यक्तिगत भिन्नताएँ, बौद्धिक प्रतिभाशालिता, बुद्धि, बुद्धि परीक्षण, बुद्धि लब्धि (आई.क्यू. ), अभिरुचि, साक्षात्कार, मानसिक आयु, बौद्धिक अशक्तता, प्रेक्षण प्रणाली, योजना या नियोजन, मनोवैज्ञानिक परीक्षण, सहकालिक प्रक्रमण, स्थितिवाद, आनुक्रमिक प्रक्रमण, मूल्य।
सारांश
- व्यक्ति शारीरिक और मनोवैज्ञानिक गुणों या अभिलक्षणों में भिन्न होते हैं। व्यक्तिगत भिन्नताओं का तात्पर्य व्यक्तियों के अभिलक्षणों और व्यवहार के स्वरूपों के वैशिष्ट्य तथा उनमें भिन्नताओं से होता है।
- विविध वैयक्तिक गुणों, जैसे - बुद्धि, अभिक्षमता, अभिरुचि, व्यक्तित्व और मूल्य का मूल्यांकन किया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण, साक्षात्कार, व्यक्ति अध्ययन, प्रेक्षण और आत्म-प्रतिवेदन जैसी विधियों द्वारा मनोवैज्ञानिक इन गुणों का मूल्यांकन करते हैं।
- ‘बुद्धि’ शब्द का तात्पर्य किसी व्यक्ति की अपने परिवेश को समझने की क्षमता से, विवेकपूर्ण चिंतन करने से और जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए उपलभ्य संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने से है। बौद्धिक विकास आनुवांशिक कारकों (प्रकृति) तथा पर्यावरणी दशाओं (पोषण) के मध्य एक जटिल अंतःक्रिया का परिणाम होता है।
- बुद्धि के मनोमितिक उपागम योग्यताओं के एक समूह के रूप में, जिनको परिमाणात्मक शब्दों, जैसे - बुद्धि लब्धि में व्यक्त किया जाता है, बुद्धि के अध्ययन को महत्त्व देते हैं। इसके विपरीत, बुद्धि के सूचना प्रक्रमण उपगम के प्रतिनिधि सिद्धांत, जैसे - स्टर्नबर्ग का त्रिचापीय सिद्धांत तथा दास का पास मॉडल, बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहरों में अंतर्निहित प्रक्रियाओं की व्याख्या करते हैं। हावर्ड गार्डनर ने अपने बहु-बुद्धि के सिद्धांत में बुद्धि के आठ विभिन्न प्रकारों का वर्णन किया है।
- बुद्धि का मूल्यांकन विशेष रूप से निर्मित परीक्षणों की सहायता से किया जाता है। बुद्धि परीक्षण शाद्धिक या निष्पादन प्रकार के हो सकते हैं, उनको व्यक्तिगत रूप से या समूहों में दिया जा सकता है और वे संस्कृति-अभिनत या संस्कृति-निष्पक्ष हो सकते हैं। बुद्धि को दो चरमसीमाओं पर एक और बौद्विक न्यूनता वाले व्यक्ति और दूसरी ओर बौद्धिक प्रतिभाशाली होते हैं।
- संस्कृति बौद्धिक विकास के लिए एक संदर्भ प्रदान करती है। पश्चिमी संस्कृति विश्लेषण, निष्पादन, गति और उपलब्धि-प्रवणता जैसे कौशलों पर आधारित ‘तकनीकी बुद्धि’ को बढ़ावा देती है। इसके विपरीत, गैर-पश्चिमी संस्कृतियाँ आत्म-परावर्तन, सामाजिक और सांवेगिक सक्षमता को बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार के लक्षणों के रूप में महत्त्व देती हैं। भारतीय संस्कृति ‘समाकलित बुद्धि’ को बढ़ावा देती है जो दूसरे लोगों तथा व्यापक सामाजिक संसार से व्यक्ति के संबंधों को महत्त्व देती है।
- सांवेगिक बुद्धि में अपनी तथा दूसरों को भावनाओं और संवेगों को जानने तथा नियंत्रित करने, स्वयं को अभिप्रेरित करने तथा अपने आवेगों को नियंय्तित रखने तथा अंतवैैयक्तिक संबंधों को प्रभावी ढंग से प्रबंध करने की योग्यताएँ सम्मिलित होती हैं।
- अभिक्षमता का तात्पर्य किसी व्यक्ति की कुछ विशिष्ट कौशलों को अर्जित करने की संभाव्यता से होता है। अभिक्षमता परीक्षण पूर्वकथन करते हैं कि कोई व्यक्ति उचित प्रशिक्षण और पर्यावरण दिए जाने के बाद क्या कर पाएगा।
- सर्जनात्मकता नूतन, उपयुक्त और उपयोगी विचारों, वस्तुओं या समस्या समाधानों को उत्पन्न करने की योग्यता है। सर्ननशील होने के लिए एक निश्चित स्तर की बुद्धि का होना आवश्यक है परंतु किसी व्यक्ति की उच्चस्तरीय बुद्धि फिर भी यह सुनिश्चित नहीं करती है कि वह अवश्य ही सर्जनशील होगा।
समीक्षात्मक प्रश्न
1. किस प्रकार मनोवैज्ञानिक बुद्धि का लक्षण वर्णन और उसे परिभाषित करते हैं?
2. किस सीमा तक हमारी बुद्धि आनुवंशिकता (प्रकृति) और पर्यावरण (पोषण) का परिणाम है? विवेचना कीजिए।
3. गाउर्रर के द्वारा पहचान की गई बहु-बुद्धि की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
4. किस प्रकार त्रिचापीय सिद्धांत बुद्धि को समझने में हमारी सहायता करता है?
5. “प्रत्येक बौद्धिक क्रिया तीन तंत्रिकीय तंत्रों के स्वतंत्र प्रकार्यों को सम्मिलित करती है।” पास मॉडल के संदर्भ में उक्त कथन की व्याख्या कीजिए।
6. क्या बुद्धि के संप्रत्ययीकरण में कुछ सांस्कृतिक भिन्नताएँ होती हैं?
7. बुद्धि लब्धि क्या है? किस प्रकार मनोवैज्ञानिक बुद्धि लब्धि प्राप्तांकों के आधार पर लोगों को वर्गीकृत करते हैं?
8. किस प्रकार आप शाब्दिक और निष्पादन बुद्धि परीक्षणों में भेद कर सकते हैं?
9. सभी व्यक्तियों में समान बौद्धिक क्षमता नहीं होती। कैसे अपनी बौद्धिक योग्यताओं में लोग एक-दूसरे से भिन्न होते हैं? व्याख्या कीजिए।
10. आपके विचार से बुद्धि लब्धि और सांवेगिक लक्धि में से कौन-सी जीवन में सफलता से ज़्यादा संबंधित होगी और क्यों?
11. ‘अभिक्षमता’ ‘अभिरुचि और बुद्धि’ से कैसे भिन्न है? अभिक्षमता का मापन कैसे किया जाता है?
12. किस प्रकार सर्जनात्मकता बुद्धि से संबंधित होती है?
परियोजना विचार
1. आप अपने पड़ोस के पाँच व्यक्तियों का प्रेक्षण और साक्षात्कार यह देखने के लिए करें कि किस प्रकार वे कुछ मनोवैज्ञानिक गुणों में एक-दूसरे से भिन्न हैं। अध्याय में वर्णित सभी पाँच क्षेत्रों को सम्मिलित करें। प्रत्येक व्यक्ति की एक मनोवैज्ञानिक परिच्छेदिका तैयार कर उनकी तुलना करें।
2. पाँच व्यवसायों का चयन करें तथा लोगों द्वारा इन व्यवसायों में किए जा रहे कार्यों की प्रकृति के बारे में सूचनाएँ एकत्र करें। साथ ही इन व्यवसायों में सफल निष्पादन के लिए अपेक्षित मनोवैज्ञानिक गुणों का विश्लेषण करें और एक रिपोर्ट लिखें।