अध्याय 12 उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण

प्रस्तावना

हम सभी अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को खरीदते और सेवाएँ प्राप्त करते हैं, अतः प्रत्येक मनुष्य एक स्वाभाविक उपभोक्ता है। क्या आपने, आपके माता-पिता अथवा मित्रों ने कभी किसी ऐसी समस्या का अनुभव किया है, जब वस्तुओं की कीमत चुकाने के बाद भी, आपने पाया हो कि वस्तु की गुणवत्ता उसके लिए अदा की गई कीमत के अनुरूप नहीं है अथवा दी गई मात्रा, बताई गई मात्रा से कम है। क्या कभी आपने ऐसी सेवाओं के लिए मूल्य अदा किया है, जो विज्ञापन में आकर्षक दिखाई दीं, लेकिन वास्तविकता प्रस्तुत की गई छवि से काफ़ी भिन्न थी। ऐसी परिस्थितियों में आपकी प्रतिक्रिया क्या थी? क्या आपने महसूस किया कि आप ठगे गए हैं और आपको निराशा का अनुभव हुआ? आपने ऐसे में क्या किया? क्या आपने कोई कार्रवाई की और अपनी समस्या की ओर निर्माता/ सेवा प्रदाता का ध्यान आकर्षित किया था? क्या उन्होंने आपकी बात सुनी थी और किसी भी प्रकार के सुधार के

उपाय किए थे? क्या आप संतुष्ट हो गए थे? यदि नहीं, तो क्या आपने ऐसा महसूस किया था कि यदि आपको कोई समर्थन मिला होता तो स्थिति बेहतर हो सकती थी? आइए, हम इन प्रश्नों के उत्तर तलाशने का प्रयास करें।

आप पहले ही ग्यारहवीं कक्षा में परिवार के वित्तीय प्रबंधन — जिसमें आमदनी, उसके प्रबंधन, बचत निवेश और ऋण आदि शामिल हैं, के बारे में पढ़ चुके हैं और यह भी जान चुके हैं कि अपने द्वारा कमाए गए एक-एक पैसे को खर्च करके अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करना कितना महत्वपूर्ण है। उपभोक्ता शिक्षा आपको एक कुशल और जागरूक उपभोक्ता बनाना सिखाती है।

उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण का महत्त्व

आप अपने आस-पास देखें तो पाएँगे कि शहरी और ग्रामीण दोनों बाजारों में ही उत्पादों का निर्माण और बिक्री निरंतर बढ़ती जा रही है। हम सभी यह जानते हैं कि निर्माता अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पादों की आपूर्ति के लिए उत्तरदायी होते हैं और यदि कोई समस्या हो तो उपभोक्ता को उसकी शिकायत करने का अधिकार होता है। निर्माता उपभोक्ताओं/ ग्राहकों को अनदेखा नहीं कर सकते। उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या तथा वस्तुओं और सेवाओं के उपयोग की मात्रा बढ़ने के साथ, निर्माता/आपूर्तिकर्ता/सेवा प्रदाता ये समझने लगे हैं कि ‘उपभोक्ता’ का सम्मान और उन्हें संतुष्ट करना महत्वपूर्ण है, चूँकि कंपनी की प्रतिष्ठा और उसके लाभों का निर्धारण उपभोक्ता की राय पर ही आधारित होता है। भारत अल्पविकसित से विकासशील अर्थव्यवस्था में रूपांतरित हो रहा है। इसका अधिकांश श्रेय औद्योगीकरण और वैश्वीकरण को दिया जा सकता है। इन आर्थिक परिवर्तनों ने क्रय शक्ति बढ़ाने के साथ जीवन स्तर को बेहतर बनाया है। हम एक ‘वैश्विक ग्राम’ में रह रहे हैं और वैश्विक बाज़ार की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। ‘वैश्विक अर्थव्यवस्था’ की दिशा में बढ़ते कदम उपभोक्ताओं के लिए वैश्विक नज़रिए को आवश्यक बनाते हैं और वे महज़ मूकदर्शक नहीं बने रह सकते। उन्हें अपने कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए एक प्रगतिशील बल के रूप में उभरना होगा। उन्हें आर्थिक तंत्र और व्यक्तियों के एक-दूसरे के साथ, व्यवसाय और सरकार के साथ परस्पर संबंधों को समझना होगा। आज के उपभोक्ता के लिए सतर्क, जागरूक और पूरी जानकारी रखने वाला उपभोक्ता बनना आवश्यक है। इसलिए उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण आज के उपभोक्ता के लिए महत्वपूर्ण बन गए हैं।

यही नहीं, भारत सरकार उदार हो गई है और उसने विदेशी कंपनियों के लिए अपने द्वार खोल दिए हैं। इसलिए हम अनेक ऐसे उत्पाद देख सकते हैं जो उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बनाए जाते हैं, जिन्होंने भारत में अपनी निर्माण/संयोजन इकाइयाँ स्थापित की हैं अथवा अनेक स्टोर्स में आयातित वस्तुएँ भी देखी जा सकती हैं। इसके अनेक लाभ हैं, लेकिन साथ ही कुछ हानियाँ भी हैं। इसका सकारात्मक पहलू यह है कि भारतीय उपभोक्ता के पास चयन करने के लिए अनेक विकल्प हैं और वह प्रतिस्पर्धी कीमतों में से बेहतर उत्पादों को चुन सकता है। विविध प्रकार के उत्पाद उपलब्ध होने की हानि यह है कि सही उत्पाद का चयन अब अधिक कठिन होगया है, चूँकि उपभोक्ता को नयी प्रोद्यौगिकी, नए उत्पादों और नयी विशेषताओं को समझना पड़ता है। उपभोक्ता को कीमत और गुणवत्ता की तुलना करनी पड़ती है, विशेष रूप से जब उपभोक्ता अनाचार, बेईमान विक्रेताओं द्वारा शोषण, भ्रामक विज्ञापनों जैसी समस्याओं का सामना करते हैं, अतः प्रत्येक व्यक्ति के लिए समझदार उपभोक्ता बनना महत्वपूर्ण हो जाता है।

मलभूत संकल्पनाएँ

आइए पहले हम ‘उपभोक्ता’ शब्द को संक्षेप में समझ लें। हम उपभोक्ताओं को वस्तुओं और सेवाओं को अपनी व्यक्तिगत ज़रूरतों की संतुष्टि के लिए खरीदारी करने वाले के रूप में पारिभाषित कर सकते हैं, जिनमें प्राकृतिक उत्पादों से लेकर ब़ाजार के उत्पाद और/अथवा सेवाएँ तक शामिल होती हैं। उपभोक्ता किसी सामाजिक-आर्थिक तंत्र के प्राथमिक घटक होते हैं, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य जो छोटे से बड़े स्तर तक का उपभोक्ता है, वह चाहेगा कि उसका जीवन स्तर अच्छा हो, अतः क्रय क्षमता बढ़ जाने पर लोग ऐसे उत्पाद खरीदना चाहते हैं जो उन्हें सुविधा और संतुष्टि दें और प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में अधिक से अधिक संख्या में उपभोक्ता ऐसे उत्पादों को देखने/खरीदने आते हैं। जितने अधिक व्यक्ति खरीदारी करते हैं, उतना ही अधिक धन बाज़ार प्रणाली में आता है और इस तरह देश की अर्थन्यवस्था के विकास और वृद्धि में योगदान देता है।

आइए, हम अन्य प्रासंगिक शब्दों को भी जान लें-

उपभोक्ता उत्पाद-इस शब्द का अर्थ है ऐसी कोई भी वस्तु जिसे उपभोक्ता के व्यक्तिगत या परिवार के प्रयोग के लिए अपने घर में अथवा किसी संस्थान, जैसे - विद्यालय, अस्पताल, महाविद्यालय, कार्यालय आदि में अथवा व्यावसायिक उद्देश्य से निर्मित किया या बिक्री के लिए वितरित किया जाता है।

उपभोक्ता व्यवहार — यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा खरीदार खरीदने के बारे में निर्णय लेता है।

उपभोक्ता फ़ोरम — वह स्थान संगठन जहाँ उपभोक्ता, उपभोक्ता-उत्पादों, सेवाओं और उनके लाभ और हानियों के बारे में चर्चा कर सकते हैं। कुछ फ़ोरम मंच ऐसे समर्थन समूहों के रूप में कार्य करते हैं जो उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करते हैं और उपभोक्ता उत्पादों द्वारा होने वाली समस्याओं को प्रस्तुत करने में उनकी सहायता करते हैं।

उपभोक्ता आगमन संख्या — इसका अर्थ है किसी विशेष स्थान — जैसे किसी दुकान, स्टोर अथवा किसी मॉल में आने वाले उपभोक्ताओं अथवा ग्राहकों की संख्या, अतः देश में बढ़ते उपभोग के साथ उपभोक्ताओं के आगमन की संख्या में वृद्धि होगी। चित्र 12.1 में इसे संक्षेप में बताया गया है कि ग्राहक जब कोई उत्पाद अथवा सेवा खरीदता है तो उसकी क्या उम्मीदें होती हैं-

तथापि, कई बार उपभोक्ता इसलिए समस्याओं का सामना करते हैं, क्योंकि निर्माता अथवा सेवा प्रदाता उनकी सभी अपेक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ रहते हैं। उनमें से कुछ धोखेबाजी भी कर सकते हैं और अनेक उपभोक्ता निर्माताओं या खुदरा व्यापारियों द्वारा खराब उत्पादों को बेचने, अधिक कीमतों, मिलावटखोरी, गलत तौल और वजजन के लिए कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तथा/अथवा विभिन्न संरक्षण उपायों की उन्हें जानकारी नहीं होती है। इन समस्याओं के बारे में जानना महत्वपूर्ण है, जिससे व्यक्ति यह सुनिश्चित कर सके कि उसके साथ कोई धोखाधड़ी/ठगी नहीं की गई है। ये सर्वमान्य है कि उपभोक्ता जागरूकता और संरक्षण का स्तर देश के विकास और प्रगति का सूचक होता है। आइए, हम उपभोक्ताओं द्वारा झेली जाने वाली कुछ प्रमुख समस्याओं पर चर्चा करें -

1. कम स्तर की खराब गुणवत्ता वाली वस्तुएँ- विभिन्न विनिर्माता, जैसे - बड़े बहुराष्ट्रीय निगम, स्थानीय भारतीय निर्माता आदि एक ही उत्पाद को बना सकते हैं और कुछ उत्पादों का अन्य देशों से आयात किया जा सकता है। यद्यपि प्रयोग की जाने वाली सामग्री में उत्पाद की गुणवत्ता भिन्न हो सकती है, जिससे खराब उत्पाद की गुणवत्ता की पहचान करना कठिन हो जाता है। अनेक उपभोक्ताओं को गुणवत्ता मानकों की जानकारी नहीं होती है।

2. मिलावट - मिलावट जानबूझकर अथवा अनजाने में की जाती है। किसी पदार्थ को मिलावटी तब कहा जाता है, जब उत्पाद में कुछ पदार्थ या तो मिलाए जाते हैं अथवा उसमें से निकाल लिए जाते हैं। इसके फलस्वरूप उसका संयोजन, प्रकृति अथवा गुणवत्ता परिवर्तित हो जाती है। मिलावटखोरी एक गंभीर समस्या है, न सिर्फ़ इसलिए; क्योंकि इससे दुकानदार अनुचित लाभ उठाता है, बल्कि यह उपभोक्ता के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए हानिकारक भी हो सकती है।

3. अधिक कीमतें —प्रत्येक उपभोक्ता अपेक्षा करता है कि उससे उत्पाद का उचित मूल्य लिया जाए, तथापि, हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कीमतें सरकारी नीति, उपलब्धता, गुणवत्ता, वितरण प्रणाली, बाज़ार की स्थिति, वितरण की विधि/संवर्धन की लागतों, खरीद की विधि और सुविधा के लिए उपभोक्ता की इच्छा द्वारा प्रभावित होती हैं। इसके बावजूद, कुछ उपभोक्ता कीमत को उत्पाद की गुणवत्ता से संबंधित करते हैं, हालाँकि ज़रूरी नहीं है कि ऐसा ही हो। एक जैसी गुणवत्ता के उत्पादों की कीमतें उत्पादन की अधिक / कम लागतों, अतिरिक्त खर्चों, विज्ञापन आदि पर हुए खर्च के कारण भिन्न हो सकती हैं। कुछ आपूर्तिकर्ता जब यह देख लेते हैं कि उपभोक्ता को पूरी जानकारी नहीं है और उसे उत्पाद के बारे में कम पता है तो वे अधिक कीमत वसूल कर सकते हैं।

4. उपभोक्ता जानकारी का अभाव-अधिकांश उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों और दायित्वों की जानकारी नहीं होती है और वे उन विभिन्न वैधानिक प्रावधानों के बारे में नहीं जानते जो उनकी सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं।

5. विनिर्माता द्वारा अपूर्ण या त्रुटिपूर्ण जानकारी देना—इसमें शामिल हैं-

(क) अधिकांश उत्पादों के लेबल तथ्यात्मक रूप से सही नहीं होते हैं, इनमें से कुछ भ्रामक या गुमराह करने वाले होते हैं। अधिकांश लेबलों पर पूर्ण आवश्यक जानकारी नहीं होती है और अकसर उनकी शब्दावली ऐसी होती है जिसे सामान्य उपभोक्ता नहीं समझ पाता है।

(ख) विज्ञापनों से कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती और वे उत्पादों की गुणवत्ता और उपयोग के बारे में अनेक अनिवार्य प्रश्नों का उत्तर देने में समर्थ नहीं होते। विज्ञापनों में कभीकभार ही उत्पादों की विशेषताओं, देखभाल और रखरखाव तथा बिक्री-पश्चात् सेवाओं आदि के विषय में बताया जाता है।

(ग) उपभोक्ता को उत्पाद के टिकाऊ या गैर-टिकाऊ होने के बारे में निर्णय लेने में सहायता करने के लिए क्रय मार्गदर्शिका (गाइड) का उपलब्ध न होना।

(घ) पैकेजिंग का उपयोग एक प्रमुख विपणन (मार्केटिंग) साधन के रूप में किया जाता है। आकर्षक पैकेट उपभोक्ताओं को बिना सोचे समझे खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं। कई बार उत्पाद की पैकिंग करने के लिए उपयोग किया गया डिब्बा आदि उसकी सामग्री से काफ़ी बड़ा होता है। कई बार महँगी पैकिंग सामग्री की अनेक परतों का प्रयोग किया जाता है। विनिर्माता पहले से मौजूद उत्पादों को आकर्षक दिखने वाले नए-नए आकारों के पैकेटों में पुनः पैक कर देते हैं और उत्पाद का प्रचार ‘नए पैक’ के रूप में करते हैं जबकि उत्पाद की गुणवत्ता वही रहती है, तथापि उपभोक्ता नयी पैकिंग के प्रलोभन में आ जाता है।

6. गलत तौल और माप-उपभोक्ता को कभी-कभी गलत तौल और माप के कारण अपने द्वारा अदा की गई धनराशि की तुलना में कम मात्रा में सामग्री मिलती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि या तो सही बाट और तराज़ू को खुदरा व्यापारियों द्वारा बदल दिया जाता है अथवा सही बाटों का गलत तरीके से प्रयोग किया जाता है। माप अकसर भ्रामक होते हैं और उपभोक्ता के धन का शोषण होता है। बिना मुहर अथवा सत्यापन मुहर वाले बाट और तराजू प्रामाणिक नहीं होते हैं।

7. अप्रामाणिक/नकली/जाली उत्पाद-उपभोक्ता अप्रामाणिक और घटिया उत्पादों, प्रसिद्ध ब्रांड के नकली उत्पादों द्वारा भ्रमित हो जाते हैं और ठगे जाते हैं। इनमें से कुछ की पैकिंग रंग योजना एक जैसी होती है और उनके नाम भी ब्रांड के नामों से मिलते-जुलते होते हैं। अकसर ऐसे नकली उत्पाद खराब गुणवत्ता के होते हैं और इनका प्रयोग घातक और असुरक्षित हो सकता है।

8. उपभोक्ता को लुभाने के लिए बिक्री संवर्धन योजनाएँ-भारतीय बाज़ार में उत्पादों की भरमार है। राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ बाज़ार पर कब्जा करने के लिए एक-दूसरे से स्पर्धा कर रही हैं। इसके लिए, वे अनेक बिक्री संवर्धन योजनाओं जैसे पुराने के बदले नए सामान की अदलाबदली, बोनस, लकी ड्रॉ आदि को अपनाती हैं। बिक्री संवर्धन के ऐसे तरीके सदैव असली नहीं होते हैं और उपभोक्ता को छलते हैं। उपभोक्ता इन प्रलोभनकारी बिक्री संवर्धन तरीकों द्वारा भ्रमित हो जाते हैं और इसका शिकार हो जाते हैं।

9. सेवाओं के संबंध में उपभोक्ता समस्याएँ-उउपोक्ताओं को न केवल दैनिक उपयोग के उत्पादों के उपभोग के संबंध में समस्याओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें विभिन्न प्रकार की सेवाओं का उपयोग करते हुए भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसमें सार्वजनिक उपयोगिताओं, जैसे — म्यूनीसिपल कार्पोरेशन, पानी, बिजली, बैंक, बीमा और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रदान की गई सेवाएँ शामिल हैं। उपभोक्ताओं को बिक्री के बाद खराब सेवाएँ प्रदान करायी जाती हैं। सेवाओं के प्रदाता बिक्री अनुबंध के तहत जो वादा करते हैं, वह पूरा नहीं करते।

क्रियाकलाप 12.1

अपने मुहल्ले /पड़ोस के किन्हीं पाँच व्यक्तियों से बातचीत कीजिए और उनके सामने आने वाली उपभोक्ता समस्याओं का पता लगाइए। यह भी पता लगाइए कि इन समस्याओं को सुलझाने के लिए उन्होंने क्या कार्रवाई की। उनके द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं और उन पर की गई कार्रवाइयों की सूची बनाइए और उस पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन और ग्रीन उपभोग

स्थिरता इन दिनों चर्चा का विषय है। यह अनिवार्य रूप से उत्पादन और खपत प्रणाली से संबंधित है। ग्रीन मार्केटिंग उपभोक्ताओं को ऐसे उत्पाद प्रदान कराता है जो पर्यावरण के अनुकूल होते हैं, कम अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं, कम सामग्री का उपयोग करते हैं और अन्य संसाधनों को बचाते हैं।

चतुर और कपटपूर्ण बाजार हितों और विपणन कार्यनीतियों तथा अन्य समस्याओं से प्रभावी रूप से निपटने के लिए उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों, दायित्वों और संरक्षण क्रियाविधियों के बारे में जागरूक और जानकार होना ज़ूरी है, अतः उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण ऐसे साधन हैं जो उपभोक्ताओं को स्वयं को प्रतिकूल बाज़ार बलों से सुरक्षित करने के लिए सशक्त और तैयार करते हैं। इसके अतिरिक्त, ये उपभोक्ताओं को उन

चित्र 12.2 - उपभोक्ता संरक्षण

कानूनों और नीतिगत मसलों को समझने में सहायक होते हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता के रूप में उनके अधिकारों और विकल्पों पर प्रभाव डालते हैं।

भारत सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (सी.पी.ए.) 1986 के तहत छह उपभोक्ता अधिकारों को स्वीकृत, स्थापित और प्रतिष्ठापित किया है। इनमें चार मौलिक अधिकार हैं-

(1) सुरक्षा का अधिकार, (2) सूचित किए जाने का अधिकार, (3) चयन का अधिकार और (4) सुने जाने का अधिकार। दो अतिरिक्त अधिकार हैं- निवारण का अधिकार और शिक्षा का अधिकार।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ता के हित में एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम का मुख्य कार्य उपभोक्ताओं की बाज़ार में मौजूद कपटपूर्ण बाजजार नीतियों से सुरक्षा करना और उनकी शिकायतों का निवारण उपलब्ध कराना है। यह स्व-सहायता के सिद्धांत पर आधारित है और उपभोक्ता की सभी प्रकार के शोषण और अनुचित व्यवहार से सुरक्षा करता है। इसका आशय उपभोक्ताओं की शिकायतों के लिए उन्हें सरल, शीश्र और सस्ता निवारण उपलब्ध कराना है। अधिनियम के दो पहलू हैं-एक तो यह उपभोक्ता को अपनी शिकायत अधिकारी से करने का अधिकार देता है और तत्काल निवारण की माँग कर सकता है। दूसरे, उपभोक्ता विनिर्माता द्वारा की गई लापरवाही की वजह से होने वाली किसी हानि अथवा क्षति के लिए हर्जाने का दावा कर सकता है। यह बात सभी वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होती है, सिवाय उन वस्तुओं के जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा स्पष्ट रूप से अधिसूचित किया गया है। इस अधिनियम ने उपभोक्ता आंदोलन

को सशक्त, व्यापक आधार वाला, प्रभावी और जनमूलक बना दिया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (सी.पी.ए.) 2019 ने हाल ही में तीन दशक पुराने सी.पी.ए. 1986 की जगह ले ली है। नए अधिनियम ने कुछ उपायों का प्रस्ताव किया है और उपभोक्ता अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए मौजूदा नियमों को कड़ा किया है। एक केंद्रीय नियामक को शामिल करना, भ्रामक विज्ञापनों के लिए सख्त दंड और ई-कॉमर्स और इलेक्ट्रॉनिक सेवा प्रदाताओं के लिए दिशानिर्देश इसके कुछ मुख्य आकर्षण हैं। छात्र संशोधित सी.पी.ए. की विस्तृत जानकारी वेबसाइट से ले सकते हैं।

उपभोक्ता अधिकार वे अधिकार होते हैं, जो कानूनी रूप से उपभोक्ता हितों की सुरक्षा के लिए प्रदान किए जाते हैं अथवा किए जाने चाहिए। दूसरे शब्दों में, इन अधिकारों की रचना यह सुनिश्चित करने के लिए की गई है कि सभी उपभोक्ताओं को उचित गुणवत्तापूर्ण वस्तुएँ और सेवाएँ, उचित कीमतों पर प्राप्त हो सकें। आइए, हम संक्षेप में जानें कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत आने वाले इन छह अधिकारों के अंर्तगत क्या शामिल है-

1. सुरक्षा का अधिकार-इसका अर्थ उपभोक्ता के स्वास्थ्य/जीवन को होने वाले हानिकारक प्रभाव से सुरक्षित किए जाने का अधिकार है। यह अधिकार बताता है कि उपभोक्ता को ऐसे उत्पादों, उत्पादन प्रक्रियाओं और सेवाओं से सुरक्षा का अधिकार है, जो स्वास्थ्य अथवा जीवन के लिए हानिकारक हों।

2. सूचित किए जाने का अधिकार — इसका अर्थ है वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता स्तर और कीमत के बारे में जानकारी पाने का अधिकार, ताकि व्यापार के अनुचित तरीकों से उपभोक्ताओं की सुरक्षा की जा सके।

3. चयन का अधिकार-इसका अर्थ है कि प्रत्येक खरीदार को विभिन्न गुणवत्ताओं, मात्राओं, कीमतों, माप और डिज़ाइन के उत्पादों तक प्रतिस्पर्धी कीमतों पर पाने और अपनी ज़रूरतों तथा इच्छा के अनुसार उनमें से चयन करने का अधिकार है।

4. सुने जाने का अधिकार-बात सुने जाने के अधिकार का अर्थ है कि उपभोक्ताओं के हितों पर उपयुक्त मंचों पर उचित विचार-विमर्श किया जाए। इसमें उपभोक्ता कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए कार्य कर रहे विभिन्न मंचों से प्रस्तुत किए जाने का अधिकार भी शामिल है। उपभोक्ताओं को इस अधिकार का उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिए राष्ट्रीय और स्वैच्छिक संस्थाओं, दोनों से ऐसे मंचों को प्रदान करने की अपेक्षा की जाती है।

5. शिकायत-निवारण प्राप्त करने का अधिकार — प्रत्येक उपभोक्ता को व्यापार के अनुचित तरीकों अथवा अनैतिक शोषण के विरुद्ध शिकायत निवारण का अधिकार है। इसमें उचित शिकायतों के उपयुक्त निवारण का अधिकार भी शामिल है। इसमें दोषपूर्ण वस्तुओं और सेवाओं के लिए हर्जाना (क्षतिपूर्ति) प्राप्त करने का अधिकार शामिल है।

6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार-इसका अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को एक जानकार उपभोक्ता होने के लिए ज्ञान और कौशल अर्जित करने का अधिकार है, जिससे वह वस्तुओं को खरीदते समय अथवा सेवाओं को प्राप्त करते समय सही और विवेकपूर्ण निर्णय ले सके। इस अधिकार का अर्थ है कि उपभोक्ता को इतना शिक्षित होना चाहिए कि वह अपनी समस्या का समाधान स्वयं कर सके।

क्रियाकलाप 12.2

कक्षा को दो समूहों में बाँट दें। समूह ‘अ’ उपभोक्ता अधिकारों और समूह ‘ब’ उपभोक्ताओं के दायित्वों से संबंधित कार्य करेगा।

समूह ‘अ’ —अपने मुहल्ले के किन्हीं तीन व्यक्तियों से बात कीजिए और पता लगाइए कि उपभोक्ता अधिकारों के बारे में उन्हें कितनी जानकारी है।

समूह ‘ब’ — अपने मुहल्ले के किन्हीं तीन व्यक्तियों से बात कीजिए और पता लगाइए कि वे उपभोक्ता के दायित्वों के प्रति कितने जागरूक हैं।

अपने परिणामों पर कक्षा में चर्चा कीजिए और यह सुझाव दीजिए कि अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए क्या किया जा सकता है?

उपभोक्ता संरक्षण की दूसरी कार्यविधि मानकीकरण चिह्नों (मार्क) के ज़रिए संरक्षण प्रदान करना है। उपभोक्ताओं को मानकीकरण मार्कों वाले उत्पादों को ही खरीदना चाहिए, ताकि उत्पाद की गुणवत्ता/शुद्धता सुनिश्चित की जा सके। उपभोक्ता के लिए विभिन्न मानक चिह्नों और उनके अंतर्गत आने वाले उत्पादों के बारे में जानना महत्वपूर्ण है। गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए मानकीकरण एक प्रमुख आवश्यकता है। आइए, हम इन मानक चिह्नों के विषय में कुछ और जानकारी प्राप्त करते हैं।

आई.एस.आई. मार्क—यह भारतीय मानक ब्यूरो (बी.आई.एस.) का प्रमाणन चिद्न है, बी.आई.एस. पहले भारतीय मानक संस्थान (आई. एस.आई.) कहलाता था। इस योजना के अंतर्गत उन विनिर्माताओं को लाइसेंस जारी किए जाते हैं जिनके उत्पाद प्रासंगिक मानकों को पूरा करते हैं। भारतीय मानकों में खाद्य वस्तुएँ, जैसे- सब्ज़्जायाँ, फल और माँस उत्पाद,

मसाले और सुगंधित मसाले, संसाधित खाद्य पदार्थ, अनाज तथा सोया चित्र 12.3 - आई.एस.आई. मार्क उत्पाद, कैंडी टॉफ़ी और पेय पदार्थ आदि आते हैं। बी.आई.एस. मानकों से संबंधित अन्य उत्पादों में विद्युत उपकरण, साबुन, अपमार्जक डिटरजेंट, पेंट, कागज़ आदि सम्मिलित हैं। योजना के दायरे में आने वाली विभिन्न वस्तुओं में से कुछ के लिए प्रमाणन अनिवार्य है।

एगमार्क और फल उत्पाद आदेश (एफ़.पी.ओ.) — ये मानक भारत सरकार द्वारा लाग किए गए हैं। ये प्रमाणपत्र विशेष रूप से खाद्य उत्पादों के लिए हैं। उपभोक्ता को कोई भी कृषि उत्पाद खरीदने से पहले उस पर एगमार्क की मुहर देख लेनी चाहिए, क्योंकि यह उत्पाद की विश्वसनीयता को सुनिश्चित करता है। एफ.पी.ओ. विभिन्न फल एवं सब्ज्जी उत्पादों की गुणवत्ता, संसाधन की सुविधाओं आदि के संदर्भ में वैधानिक न्यूनतम मानकों को निर्धारित करता है। एफ़.पी.ओ. विभिन्न फल उत्पादों के लिए धातु संबंधी संदूषकों और परिरक्षकों की सीमा का भी निर्धारण करता है।

वूलमार्क — वूलमार्क अच्छी गुणवत्ता की ऊन अथवा ऊनी वस्त्रों के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऊन सचिवालय का मानक चिह्न है। यह दर्शाता है कि ऊन शुद्ध है और चिह्न युक्त वस्त्र अन्य रेशों का नहीं, बल्कि शुद्ध ऊन का बना है।

सिल्कमार्क — यह शुद्ध रेशम के आश्वासन के लिए गुणवत्ता आश्वासन का लेबल है और साथ ही यह शुद्ध रेशम के प्रोत्साहन के लिए एक ब्रांड का काम करता है। सिल्कमार्क ’ 100 ’ प्राकृतिक रेशम को सुनिश्चित करता है।

हॉलमार्क— यह दर्शाता है कि मूल्यवान धातुओं, जैसे - प्लैटिनम, चाँदी और स्वर्ण आभूषणों का मूल्यांकन और जाँच एक अधिकारिक मूल्यांकन और हालमार्किंग करने वाले केंद्र पर की गई है और उन्होंने यह प्रमाणित किया है कि प्रयुक्त धातु शुद्धता और उत्कृष्टता में राष्ट्रीय/ अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है।

ईकोमार्क योजना-बी.आई.एस. घरेलू उपभोक्ता उत्पादों जैसे — साबुन और डिटर्जेंट, कागज़, पैकेजिंग सामग्री, प्लास्टिक उत्पादों आदि की लेबलिंग के लिए ईकोमार्क योजना शुरू की है। ईकोमार्क का चिह्न एक मिट्टी का घड़ा है जो दर्शाता है कि यह उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल है और इसमें कोई खतरनाक अपशिष्ट नहीं निकलता है, यह बायो डिग्रेडेबल है और इसका पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है।

चित्र 12.4 - हाल मार्क

एफ.एस.एस.ए.आई. —भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक

चित्र 12.5 - ईको मार्क

प्राधिकरण (FSSAI) की स्थापना खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 के तहत की गई है। यह खाद्य पदार्थों के लिए विज्ञान आधारित मानकों को बताता है और मानव उपभोग के लिए खाद्य पदार्थ की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उनके निर्माण, भंडारण, वितरण और बिक्री को विनियमित करवाता है।

उपभोक्ता हितों की रक्षा करने वाले भारतीय मानक ब्यूरो (बी.आई.एस.) तथा विपणन और निरीक्षण निदेशालय, भारत सरकार (डी.एम.आई.) जैसे - वैधानिक, अर्ध-सरकारी और गैर-सरकारी निकायों के अतिरिक्त, सरकार द्वारा केंद्र और राज्य स्तरों पर संरक्षण परिषदों की भी स्थापना की गई है।

गैर-सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.)स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन अपने गैर-पक्षीय हितों के कारण उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे अपनी पत्रिकाओं, पुस्तिकाओं, समाचार-पत्रों, मार्गदर्शिकाओं, दृश्य-श्रव्य सामग्रियों और अनुसंधान रिपोर्ट आदि के माध्यम से जानकारी प्रसारित करते हैं। अनेक उपभोक्ता संगठन उत्पादों के तुलनात्मक परीक्षण, हानिकारक और असुरक्षित उत्पादों के बारे में उपभोक्ता जागरूकता फैलाने, उत्पादों के बारे में बताने, उपभोक्ताओं के लिए नए वैधानिक प्रावधानों के बारे में जानकारी का प्रचार करने, कानूनी सलाह और पैरवी करने, उपभोक्ताओं की शिकायतों से निपटने और सतर्कता समूहों के रूप में कार्य करने में संलग्न हैं। ये जनसभाएँ आयोजित करते हैं और इनके पुस्तकालय और दस्तावेज़ केंद्र होते हैं और ये उपभोक्ता जागरूकता, सशक्तिकरण और उपभोक्ता आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। भारत में, हमारे यहाँ अनेक उपभोक्ता संगठन हैं जो उपभोक्ता के हित में पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करते हैं। ‘वॉयस’ जोकि, दिल्ली का एक उपभोक्ता संगठन हैं ‘कंज्यूमर वॉयस’ नामक पत्रिका

निकालता है। सी.ई.आर.सी. जोकि अहमदाबाद का उपभोक्ता संगठन हैं ‘इन्साइट’ नामक पत्रिका निकालता है। इसी प्रकार, अमरीका में उपभोक्ता संघ ‘कंज़्यूमर रिपोर्ट्स’ निकालता है और ऑस्ट्रेलियाई उपभोक्ता संघ ‘चॉइस’ नामक पत्रिका निकालता है।

प्रत्येक मनुष्य के सिर्फ़ अधिकार ही नहीं, बल्कि कर्त्तव्य भी होते हैं। आपने कुछ लोगों को ‘अधिकारों और दायित्वों’ के बारे में कहते सुना होगा, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि दोनों का निवर्हन साथ-साथ होता है, अतः अपने अधिकारों का प्रयोग करने से पहले अपने कर्त्तव्यों की जानकारी होना आवश्यक है। इसलिए उपभोक्ता के रूप में, हमें अपने दायित्वों की जानकारी होनी चाहिए। उपभोक्ता के दायित्व निम्नलिखित हैं-

1. उपभोक्ताओं का यह दायित्व है कि वे सरकार द्वारा बनाए गए विभिन्न कानूनों और वैधानिक प्रावधानों के विषय में अपनी जानकारी को नियमित तौर पर अद्यतन (अपडेट) करते रहें।

2. उपभोक्ताओं को अपने सभी लेन-देन ईमानदारी से करने चाहिए और उन्हें अपनी समस्त खरीदारी का भुगतान करना चाहिए।

3. खरीदारी से पहले उपभोक्ताओं को विभिन्न दुकानों और बाजाारों में उपलब्ध वस्तुओं के विभिन्न ब्रांडों एवं विशेषताओं आदि का पता लगाने के लिए बाजार का सर्वेक्षण करना चाहिए और कीमतों की तुलना करनी चाहिए, इससे उन्हें उचित चयन करने में सहायता मिलेगी।

4. उपभोक्ता अपनी ज़रूरतों और आवश्यकताओं के अनुसार उपलब्ध विभिन्न किस्मों में से बिना किसी रोक-टोक के चयन कर सकता है।

5. खरीदारी करते समय, उसे लेबल//्रोशर पर दी गई समस्त जानकारी को पढ़ लेना चाहिए।

6. गुणवत्ता के प्रति आश्वस्त होने के लिए मानकीकरण चिह्नों वाले उत्पाद खरीदने चाहिए।

7. उपभोक्ता को खरीद की रसीद और अन्य संबद्ध दस्तावेज अपने पास रखने चाहिए। उत्पाद में कोई समस्या/नुटि/उसके ठीक से कार्य न करने की स्थिति में शिकायत दर्ज करते समय खरीद के प्रमाण के रूप में इनकी आवश्यकता पड़ सकती है।

8. बीमा, क्रेडिट कार्ड, बैंक जमा आदि सेवाओं को खरीदते समय, उसे सभी शर्तों और नियमों, दायित्वों, सेवा प्रभारों, को पढ़ और समझ लेना चाहिए और जो बातें स्पष्ट रूप से नहीं लिखी हों उनका स्पष्टीकरण प्रतिनिधि द्वारा करने का प्रयास करना चाहिए।

9. विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ता संगठनों की गतिविधियोंक्रियाकलापों और कार्यों के बारे में जानकारी बढ़ाना और ऐसे संगठनों का सदस्य बनने के लाभों को समझना चाहिए।

उपभोक्ता अध्ययन क्षेत्र में जीविका के लिए आवश्यक कौशल-

उपभोक्ता अध्ययनों के क्षेत्र में सफल होने के लिए आपको उपभोक्ता संरक्षण कार्यविधि और शिकायत-निवारण संस्थाओं की जानकारी होनी चाहिए, साथ ही आपको अच्छे संप्रेषण और अंतर्वैयक्तिक कौशल, परानुभूतिपूर्ण और विवेकपर्ण अभिवृति, अच्छे श्रोता होने, उपभोक्ता जागरूकता के लिए कार्यक्रमों, विज्ञापनों, वार्ताओं आदि को विकसित करने के लिए सर्जनात्मक होने जैसे व्यावहारिक (प्रक्रिया) कौशलों की भी आवश्यकता होती है। आप में उपभोक्ता शिक्षा के लिए शैक्षिक सामग्री विकसित करने के लिए लेखन-कौशल, उपभोक्ता उत्पादों के परीक्षणों की रिपोर्टिंग करने और व्यापक रूप से साथी उपभोक्ताओं और जनता की सहायता करने की इच्छाशक्ति होनी चाहिए।

इस क्षेत्र में व्यावसायिक रूप में प्रवेश के इच्छुक व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के, उत्पादों के गुणवत्ता मानकों, मिलावट और मिलावटी पदार्थों का पता लगाने की जानकारी के साथ ही उपभोक्ता संरक्षण कानूनों, उपभोक्ता अधिकारों और उत्तरदायित्वों की भी पूरी जानकारी होनी चाहिए।

पूर्व स्नातक और स्नातक स्तर पर पाठ्यक्रमों को करने के बाद उपभोक्ता शिक्षण और संरक्षण के क्षेत्र में जीविका के अनेक विकल्प आपके लिए खुल जाएँगे। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य उपभोक्ता मामलों के बारे में समग्र जानकारी और प्रशिक्षण देने के साथ ही उपभोक्ता संरक्षण पर विशेष महत्त्व देना है।

आपके पास बी. एससी. गृहविज्ञान/बी. एससी., परिवार संसाधन प्रबंधन/बी. एससी. गृह प्रबंधन/व्यवसाय प्रशासन में स्नातक (बी.बी.ए.)/व्यवसाय अध्ययन में स्नातक (बी.बी.एस.) आदि उपाधि पाठ्यक्रम करने के विकल्प हैं। विभिन्न संस्थानों में इस विषय को उपभोक्ता अध्ययन, उपभोक्ता शिक्षा, उपभोक्ता व्यवहार, बाज़ार में उपभोक्ता आदि भिन्न नामों से जाना जा सकता है।

कार्यक्षेत्र

उपभोक्ता शिक्षण और संरक्षण में प्रशिक्षण लेने के बाद आप निम्नलिखित क्षेत्रों में अपनी जीविका के अवसर विकसित कर सकते हैं-

  • भारतीय मानक ब्यूरो, विपणन और निरीक्षण निदेशालय, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय आदि, जैसेसरकारी संगठनों में विभिन्न निर्णय लेने वाले प्रबंधकीय और तकनीकी पदों पर कार्य कर सकते हैं।

उत्पाद परीक्षण, उपभोक्ता जागरूकता निर्मित करने, उपभोक्ता शिक्षण अथवा सशक्तीकरण, उनकी पत्रिका का प्रकाशन आदि के लिए स्वैच्छिक संगठनों में कार्य कर सकते हैं।

  • ऐसे निगमित कॉरपोरेट व्यापारिक संस्थानों के उपभोक्ता प्रभाग में कार्य कर सकते हैं, जो उपभोक्ता की शिकायतों और उपभोक्ता सुझावों से संबंधित कार्य करते हों अथवा ऐसे ग्राहक संबंध प्रबंधन और ग्राहक सुविधा प्रभाग में कार्य कर सकते हैं जो ग्राहक डाटा-बेस तैयार करते हों और उनके साथ व्यक्तिगत आधार पर संपर्क रखते हों।
  • उपभोक्ता व्यवहार, उत्पाद तक पहुँच, नए उत्पादों की उपभोक्ता स्वीकार्यता, उपभोक्ता की प्रतिपुष्टि और सुझावों के क्षेत्रों में बाज़ार अनुसंधान संगठनों के साथ कार्य कर सकते हैं।
  • अध्याय में बताए गए मुद्दों पर काम करने के लिए अपना निजी उपभोक्ता संगठन शुरू कर सकते हैं।
  • उपभोक्ता परामर्श सेवा और लोगों की शिकायतों के निवारण के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन में कार्य कर सकते हैं।
  • विद्यालयों और महाविद्यालयों द्वारा चलाए जाने वाले उपभोक्ता क्लबों में परामर्शदाता के रूप में कार्य कर सकते हैं, जहाँ वे अपना शैक्षिक और अन्य कार्यकलापों के प्रवंधन और योजना बनाने, उपभोक्ता अध्ययन के क्षेत्र में विद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षण का कार्य कर सकते हैं। आप उपभोक्ता न्यायालयों और अन्य वैकल्पिक शिकायत-निवारण क्रियाविधियों द्वारा शिकायत निवारण के मार्गदर्शन के लिए स्वतंत्र परामर्शदाता के रूप में भी कार्य कर सकते हैं।
  • दृश्य-श्रव्य प्रचार प्रभाग में विषय-वस्तु विकासकर्ता के रूप मे उपभोक्ता जागरूकता और शिक्षण से संबंधित विज्ञापनों में मुद्रित और इलैक्ट्रॉनिक प्रचार माध्यमों में कार्य कर सकते हैं।
  • उपभोक्ता परीक्षण प्रयोगशालाओं में उत्पादों के तुलनात्मक मूल्यांकन के लिए विश्लेषणकर्ता के रूप में कार्य कर सकते हैं।
  • कुछ व्यक्ति उपभोक्ता सक्रियतावादी भी बन सकते हैं और कानूनी प्रशिक्षण के साथ उपभोक्ता संरक्षण न्यायालयों में मामलों की पैरवी कर सकते हैं।
  • उत्कृष्ट लेखन कौशल वाले व्यक्ति उपभोक्ता मामलों से संबंधित, पत्रकारिता भी कर सकते हैं। उपर्युक्त सभी के अतिरिक्त, कुछ अतिरिक्त प्रशिक्षण के साथ इस क्षेत्र में दिलचस्पी रखने वाले लोग अन्य व्यक्तियों के लिए वित्तीय प्रबंधन के क्षेत्र में कनिष्ठ स्तर पर व्यक्तियों की सहायता कर सकते हैं। आगे प्रशिक्षण और अनुभव के साथ व्यक्ति बीमा, शेयर और वित्तीय पोर्टफ़ोलियो प्रबंधन से संबंधित क्षेत्रों में करियर अपना सकते हैं।

प्रमुख शब्द

उपभोक्ता, उपभोक्ता अधिकार, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, उपभोक्ता अधिकार और उत्तरदायित्व, मानकीकरण चिह्न|

पुनरवलोकन प्रश्न

1. निम्नलिखित को दो-तीन पंक्तियों में समझाइए -

(क) उपभोक्ता

(ख) उपभोक्ता के अधिकार

(ग) उपभोक्ता के दायित्व

(घ) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम

(ङ) उपभोक्ता-समस्याएँ

2. निम्नलिखित को सूचीबद्ध कीजिए-

(क) कोई तीन उपभोक्ता अधिकार

(ख) कोई तीन उपभोक्ता दायित्व

(ग) कोई पाँच उपभोक्ता समस्याएँ

(घ) कोई तीन मानकीकरण चिह्न (मार्क)

3. बताइए कि निम्नलिखित वक्तव्य सत्य हैं या असत्य -

(क) आई.एस.आई. मार्क बी.आई.एस. द्वारा दिया जाता है।

(ख) एगमार्क कृषि उत्पादों के लिए होता है।

(ग) सुरक्षा का अधिकार उपभोक्ता अधिकार नहीं है।

(घ) ‘वॉयस’ एक उपभोक्ता संगठन का नाम है।

4. उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण की मूलभूत संकल्पनाओं की संक्षेप में चर्चा कीजिए।

प्रयोग

विषय-वस्तु - उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण के लिए पर्चा/पुस्तिका (पैम्फ्लेट) तैयार कीजिए

कार्य - 1. विषयों से संबंधित प्रासंगिक जानकारी एकत्रित करने में सक्षम होंगे,

2. विषय को पत्रक अथवा पुस्तिका के रूप में सीमित स्थान में संकलित करना सीख पाएँगे।

3. संकल्पनाओं को सरल तरीके से लिखना सीखेंगे, जिन्हें लक्ष्य समूह द्वारा आसानी से समझा जा सके,

4. प्रत्येक लेख के लिए सुस्पष्ट प्रस्तावना, मुख्य भाग और निष्कर्ष अथवा अनुप्रयोग के तरीके लिखने की आवश्यकता होगी, जिससे पाठक विवेकपूर्ण उपभोक्ता बन सकें।

उद्देश्य -

1. यह शिक्षार्थी को दिए गए विषयों पर जानकारी एकत्रित करने और शीर्षक, उपशीर्षक तथा प्रमुख विशेषताएँ देते हुए विषय-वस्तु को सरल भाषा में अभिव्यक्त करना सिखाएगा।

2. विद्यार्थी जागरूकता अभियान के लिए पर्चा-पुस्तिका (पैम्फ्लेट) तैयार करने की कला को समझ लेंगे।

3. उपभोक्ता शिक्षण पर जागरूकता उत्पन्न कर सकेंगे।

प्रयोग कराना

1. कक्षा को पाँच समूहों में बाँटा जा सकता है।

2. प्रत्येक समूह एक विषय पर काम कर सकता है-उपभोक्ता संरक्षण, उपभोक्ता अधिकार, उपभोक्ता के दायित्व, मानकीकरण के चिह्न (मार्क), उपभोक्ता की शिकायतों का निवारण।

3. प्रत्येक समूह दिए गए विषय पर प्रस्तावना, मुख्य भाग और निष्कर्ष को सरल शब्दों अथवा स्थानीय भाषा में ही संकलित करके जानकारी एकत्रित कर सकता है।

4. इसे अपने प्रभारी शिक्षक से अनुमोदित करवा लीजिए।

5. फिर विषय-वस्तु को पर्चे अथवा पैम्फ्लेट के रूप में विद्यालय तथा समूह के सदस्यों के नामों के साथ लिख दें।

6. इस जानकारी को अपनी कक्षा के अन्य विद्यार्थियों को भी बताएँ।

7. इसे छपवा लीजिए अथवा फ़ोटोकॉपी करवा लीजिए और इसका प्रयोग स्थानीय समुदाय / क्षेत्र में जागरूकता शिविर के लिए करिए।

शिक्षकों के लिए निर्देश-

पर्चे में कागज़ का एक पन्ना हो सकता है जो दोनों तरफ़ छपा हो और विभिन्न तरीकों से मोड़ा गया हो। एक पन्ने के पर्चे का सबसे प्रचलित प्रकार दो तह वाला पर्चा है अर्थात् (एक कागज़ जो दोनों तरफ़ छपा और आधा मुड़ा हो) तथा तीन तह वाला पर्चा (एक कागजज जो तीन भागों में मुड़ा हुआ) है। दो तह वाले ब्रोशर से चार पैनल बन जाते हैं (दोनों तरफ़ दो-दो पैनल) जबकि तीन तह वाले से छह पैनल बन जाते हैं (तीन पैनल प्रत्येक तरफ़) पर्चे की रूपरेखा बनाते समय महत्वपूर्ण बिंदुओं/बातों को ध्यान में रखना चाहिए।

  • शीर्षक—पर्चे का शीर्षक सामान्यतः उसका सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है, क्योंकि यह वह भाग होता है जिस पर सबसे पहले नज़र जाती है। शीर्षक संक्षिप्त होना चाहिए, इसमें छोटे प्रभावपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए, जिससे विषय समझ में आ जाए।
  • उपशीर्षक — पर्चे में उपशीर्षकों का प्रयोग तब किया जाता है जब पाठ के मुख्य शीर्षक का सार प्रस्तुत करना असंभव होता है और आगे स्पष्टीकरण की आवश्यकता होती है। इनका प्रयोग पाठ के मुख्य भाग में अलग-अलग अनुच्छेदों को प्रस्तुत करने के लिए और शीर्ष पंक्ति तथा पाठ्य के बीच के अंतराल को भरने के लिए भी किया जा सकता है।
  • पाठ्यसामग्री — पहले कुछ शब्दों में ही लक्ष्य श्रोता-वर्ग का ध्यान आकर्षित करने के लिए पाठ के पहले एक या दो वाक्यों में संदेश का सार और उसके बाद तथ्य और उनका विवरण दें। पाठ सरल और संक्षिप्त होना चाहिए, जिसमें लक्ष्य श्रोता वर्ग को उलझन में डाले बिना संदेश प्रस्तुत करना चाहिए। पर्चे में सामान्यतः सिर्फ़ एक विषय होता है, ऐसा पर्चा जिनमें दो या अधिक असंबद्ध या अस्पष्ट रूप से संबंधित विषय होते हैं वे लक्ष्य श्रोता वर्ग को उलझन में डाल देते हैं।
  • चित्र — जब चित्रों, मुख्यत: फ़ोटो का उपयोग किया जाता है तो चित्र और पाठ सामग्री एक-दूसरे के पूरक होने चाहिए, उनके द्वारा लक्ष्य श्रोता वर्ग को वही विचार प्रेषित किया जाना चाहिए और प्रत्येक को दूसरे द्वारा कही गई बात को विस्तार से स्पष्ट करना चाहिए।

उपभोक्ता शिक्षण के लिए पर्चा/वैम्फ्लेट निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर हो सकता है-

(क) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम

(ख) उपभोक्ता अधिकार

(ग) उपभोक्ता के दायित्व

(घ) मानकीकरण चिह्न

(ङ) उपभोक्ता समस्याएँ/क्षतिपूर्ति

अतिरिक्त क्रियाकलाप

क्रियाकलाप 12.3

नियमित रूप से समाचार-पर्र पढ़िए और शिकायत निवारण के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्ततत बताए गए किसी भी मामले पर समाचार की कतरन काट लीजिए। इस पर कक्षा में चर्चा करिए।

क्रियाकलाप 12.4

दैनिक उपयोग की किन्हीं दस वस्तुओं (जैसे - मसालों, बिस्कुट, बल्ब, शक्कर, सॉस, जैम आदि) के लेबल / पैकेट एकत्रित करिए और देखिए उन पर कौन-से मानकीकरण चिह्न (मार्क) बने हैं। इस पर कक्षा में चर्चा करिए।

क्रियाकलाप 12.5

अपने राज्य के विश्वविद्यालय और अन्य प्रमुख भारतीय विश्वविद्यालयों की वेबसाइट देखिए और पता लगाइए कि वहाँ कौन-से विषयों पर पूर्व स्नातक डिग्री, डिप्लोमा और सर्टिफ़िकेट कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इनकी विस्तृत सूची बनाइए और कक्षा में इस पर चर्चा कीजिए।

स्नातकोत्तर स्तर पर — अनेक विश्वविद्यालयों द्वारा उपभोक्ता शिक्षा में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, स्वैच्छिक संगठनों के प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, उपभोक्ता सेवाओं में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्रस्तुत किए जा रहे हैं। स्नातकोत्तर डिग्री (उपाधि) पाठ्यक्रम, जैसे - एम.एससी. गृहविज्ञान, एम.एससी. संसाधन प्रबंधन और डिज़ाइन अनुप्रयोग, परिवार संसाधन प्रबंधन, विपणन में विशेष योग्यता के साथ एम.बी.ए. आदि कार्यक्रम उपभोक्ता सशक्तीकरण, संरक्षण और उपभोक्ता व्यवहार के संदर्भ में उपभोक्ता मुद्दों के संबंध में कार्य कर सकते हैं।

क्रियाकलाप 12.6

अपने राज्य के विश्वविद्यालय तथा अन्य प्रमुख भारतीय विश्वविद्यालयों की वेबसाइट देखिए और उपभोक्ता अध्ययनों के क्षेत्र में चलाए जाने वाले स्नातकोत्तर डिप्लोमा और डिग्री पाठ्यक्रमों का पता लगाइए। इसके अतिरिक्त ऐसे पाठ्यक्रमों को भी देखिए, जिनमें इसे एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है और पता लगाइए कि उसके लिए क्या पात्रता है। इस पर नोट्स बनाकर कक्षा में इसकी चर्चा कीजिए।[^0]



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