अध्याय 09 फैशशन डिज़ाइन और व्यापार

प्रस्तावना

आज विश्व में फ़ैशन डिज़ाइन और व्यापार सबसे अधिक उत्साहवर्धक जीविका-विकल्पों में से एक हैं। भारत जैसे देश में, जहाँ वस्त्र-निर्माण उद्योग सदियों से फल-फूल रहा है, फ़ैशन डिजाइन के क्षेत्र में हाल ही में तेजी़ से वृद्धि होने से परिधान और उससे जुड़े डिजााइनों के लिए वर्तमान क्षेत्र में नयी संभावनाएँ उत्पन्न हुई हैं। फ़ैशन उद्योग लोगों की रचनात्मक लालसा और भौतिक आवश्यकताओं, दोनों को पूरा करता है। आप फ़ैशन व्यापार के बारे में बहुत बार सुनते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि इसमें क्या होता है? आइए, इस व्यापार को इसकी शुरुआत से जानें। आप अपने इतिहास के पहले के पाठों से स्मरण कर सकते हैं कि वस्तुओं और शिल्प का विनिमय व्यापार पद्धति का प्रारंभ था। धीर–धीरे व्यापार का स्वरूप बना ‘जो उपलब्ध था वह बिकाऊ था’, अतः वितरण प्रणाली में कोई जटिलता नहीं थी। परंतु वर्ष 1920 में ‘पहनने के लिए तैयार’ वस्त्रों का उत्पादन हुआ और जल्द ही दुकानदारों ने अनुभव किया कि इस प्रकार वस्त्रों का विक्रय एक बड़ा

व्यवसाय है। बहुत कम समय अंतराल में ही फ़ैशन परिधान बड़ी दुकानों का महत्वपूर्ण व्यापार बन गया। अतः फ़ैशन के आर्थिक अवसरों के परिणामस्वरूप, फ़ैशन व्यापार एक नयी विशेषज्ञता के रूप में अस्तित्व में आया।

महत्त्व

फ़ैशन डिज़ाइन और व्यापार से आप पूरी कहानी समझ पाएँगे कि फ़ैशन व्यवसाय कैसे काम करता है। इसमें कच्चा माल, परिधान और सहायक सामग्री के उत्पादन तथा दुकानें जो जनता को फ़ैशन का माल बेचती हैं, से संबंधित सभी प्रक्रम सम्मिलित हैं। फ़ैशन व्यवसाय का एक पक्ष यह भी है जिसमें आप वस्त्र निर्माण (कपड़े और रेशे जो इन्हें बनाने में काम आते हैं) के बारे में सीखते हैं। फ़ेशन व्यापार सबसे पहले इस बात का उत्तर देने में सक्षम बनाता है कि क्या, क्यों और कब एक शैली फ़ैशन बन जाती है और फिर विशेष खुदरा विक्रय और उसकी समय-सीमा के लिए उसकी उपयुक्तता निर्धारण में मदद करता है, अतः कह सकते हैं कि यह ‘नियोजन, क्रय और विक्रय’ को सम्मिलित करता है।

क्या आप जानते हैं?

महिलाओं ने 1950 के दशक तक जींस पहननी प्रारंभ नहीं की थी

मूलभूत संकल्पनाएँ

फ़ैशन आज एक बहुत बड़ा व्यवसाय है, जिसमें डिज़ाइन, निर्माण, वितरण, विपणन, विक्रय, विज्ञापन, प्रसार, प्रकाशन और परामर्श के क्षेत्र में लाखों लोग रोज़गार प्राप्त कर रहे हैं। फ़ैशन डिजाइइन समझने के लिए फ़ैशन की प्रकृति और उसके काम करने के ढंग को समझने की आवश्यकता है। फ़ैशन के मूल सिद्धांत और फ़ैशन तथा उसे प्रभावित करने वाले कारकों के परस्पर संबंधों की कुछ संकल्पनाएँ होती हैं, जिन्हें समझना आवश्यक होता है।

फ़ैशन संबंधी शब्दावली

फ़ैशन एक जटिल विषय है और फ़ैशन के विभिन्न पहलुओं की चर्चा करने के लिए अकसर कुछ शब्दों और वाक्यांशों का उपयोग किया जाता है। फ़ैशन उद्योग की संकल्पनाओं को समझने के लिए उन्हें समझना चाहिए। जिसमें शामिल हैं-

  • फ़्रैशन एक शैली या शैलियाँ हैं, जो किसी एक कालावधि में सबसे अधिक प्रचलन में रहती हैं।
  • शैली परिधान अथवा सहायक सामग्री की विशेष दिखावट अथवा विशिष्टता होती है। फ़ैशन में शैली आती है और चली जाती है, परंतु विशिष्ट शैलियाँ सदैव बनी रहती हैं।
  • अस्थायी फ़ैशन (फ़ैड्स) कम समय के लिए होते हैं और एक ही बार आकर चले जाते हैं। ये डिजाइन इतने प्रभावी नहीं होते कि ये ग्राहकों को लंबे समय तक आकर्षित कर सकें। उदाहरण के लिए, हॉट पैटें, बैगी पैटें और बेमेल बटन।
  • चिरसम्मत (क्लासिक) शैली जो कभी पूर्णतया अग्रचलित नहीं होती, परंतु एक लंबे समय तक लगभग स्वीकृत रहती है। पुरातन में डिज़ाइन की सादगी की विशिष्टता होती है, जो इसे आसानी से हटने या पुराना नहीं होने देती। उदाहरण के लिए, ब्लेज़र जैकेट, पोलोशर्ट्स और चैनल सूट, सम्मिलित हैं।

फ़ैशन का विकास

फ़ैशन उद्योग की कार्यशैली को समझने के लिए फ़ैशन के मूल सिद्धांत का ज्ञान होना चाहिए। इस क्रम में सबसे पहले यह जानना है कि फैशन व्यवसाय कैसे विकसित हुआ। इस प्रकार फ़ैशन का इतिहास डिजाइन बनाने वालों को वर्तमान और भावी फ़ैशनों संबंधी निर्णय लेने में मदद करता है। भूतपूर्व धारणाएँ आज के फ़्रेशन के लिए अकसर पुनर्विवेचित की जाती हैं।

जैसा कि हम जानते हैं फ़ैशन अपेक्षाकृत नया विषय है। प्राचीनकाल और मध्यकालीन शैलियाँ एक साथ पूरी शताब्दी तक परिवर्तित नहीं होती थीं। नवजागरण काल में पश्चिमी सभ्यता ने विभिन्न संस्कृतियों, रीति-रिवाज़ और पोशाकों की खोज करके फ़ैशन परिवर्तन को बढ़ावा दिया। इसके साथ ही नए कपड़ों और विचारों की उपलब्धता के कारण लोग और ज़्यादा नयी वस्तुओं के लिए लालायित हुए।

फ़ैशन का केंद्र — फ्रांस

अंतर्राष्ट्रीय फ़ैशन में फ्रांस का प्रभुत्व 18 वीं शताब्दी के प्रारंभ में शुरू हुआ। औद्योगिक क्रांति से पूर्व लोग दो प्रमुख वर्गों से संबंध रखते थे — अमीर और गरीब| केवल अमीर ही फ़ैशन वाले कपड़े खरीदने में समर्थ थे। 18 वीं शताब्दी के अंत तक सम्राट लुईस चौदहवें के कोर्ट के सदस्य अपनी रुचि को प्राथमिकता देते हुए दिशा-दाता बन गए और पेरिस को यूरोप की राजधानी बना दिया। फ्रांस के बहुत से शहर कोर्ट के रेशमी वस्त्र, रिबन और लेस भेज रहे थे। इस काल में फ़ैशन के लिए सिलाई के जोड़ लगाने के लिए हाथ से सिलाई करने का, मेहनत वाला काम करना पड़ता था। सभी कपड़े हाथ से बने होते थे और ग्राहक के अनुसार अर्थात् ग्राहक के सही नाप के अनुसार बने होते थे।

शाही न्यायालय से समर्थन मिलने और वहाँ रेशम उद्योग के विकसित होने के कारण फ्रांस फ़ैशन का केंद्र बन गया था। परिधान निर्माण की कला को ‘कूटूअर’ (Couture) कहा जाता था। परिधान को डिजाइन करने वाला पुरुष कूटूरियर (Couturier) और महिला कूटुरियरे (Couturiere) कहलाते थे।

औद्योगिक क्रांति ने वस्त्र निर्माण और परिधान उत्पादन की प्रौद्योगिक उन्नति का प्रारंभ किया। विकास के कारण कम समय में अधिक वस्त्रों का निर्माण होने लगा। इस काल में कातने वाला यंत्र और मशीन करघों का आविष्कार हुआ। इसके कारण अमरीका के वस्त्र निर्माण उद्योग का विकास हुआ। तेजी से बढ़ते व्यापार और उद्योग ने मध्य वर्ग को जन्म दिया, जिसके पास जीवन की विलासिताओं और अच्छे कपड़ों को खरीदने के लिए धन था।

सिलाई मशीन के आविष्कार ने हस्तशिल्प को एक उद्योग में बदल दिया। इसने फ़ैशन का लोकतंत्रीकरण कर दिया और इसे प्रत्येक के लिए सुलभ बना दिया। वर्ष 1859 में ‘इसाक सिंगर’ ने सिलाई मशीन को पैरों से चलाने के लिए पाँव-चक्की (ट्रेडल) विकसित की, जिसने कपड़े को सिलने के लिए हाथों को मुक्त कर दिया। प्रारंभ में सिलाई मशीनों का उपयोग युद्ध के समय सैनिकों की वर्दी सिलने के लिए किया गया।

वर्ष 1849 में ‘लेवी स्ट्रॉस’ ने टेंटों और मालडिब्बों के कवरों के लिए बने कपड़ों का उपयोग करके ज़्यादा चलने वाली पैंें बनाई, जिनमें औज़ार रखने के लिए जेबें लगाई गईं। बाद में इनके बहुत प्रचलित होने

से ये ‘डेनिम्स’ कहलाती थीं। यह मज़दरों के लिए विशेष रूप से बनाए जाने वाले कपड़ों की शुरुआत थी। यही एकमात्र परिधान है जो पिछले लगभग 150 वर्षों से एक जैसा रहा है।

महिलाओं ने 1880 के दशक से स्कर्ट (घाघरा) और ब्लाउज़ पहनने शुरू किए। यह महिलाओं के लिए पहनने को तैयार कपड़ों के निर्माण की ओर एक कदम था। लंबाई और कमर आसानी से माप के अनुकूल ठीक कर लिए जाते थे और इससे यह संभव हो सका कि रोज़गार से जुड़ी महिलाओं की अलमारी में अलग परिधानों को केवल आपस में मिलाने से विविधता आ जाती थी।

19 वीं शताब्दी में मेलों और बाजारों के माध्यम से जनसाधारण को जेब के अनुकूल फ़ैशन उपलब्ध कराए गए। यात्री व्यापारी इन बाज़ारों में कपड़े लाते थे और खरीदने वाले और बेचने वाले, दोनों अकसर मोलभाव करते थे, क्योंकि अधिक संख्या में लोग शहरों में बस गए थे, अतः उनकी आवश्यकताओं को पूरा

फ़ैशन का विकास

फ़ैशन चक्र — जिस तरीके से फ़ैशन बदलता है, उसे सामान्यतः फ़ैशन चक्र के रूप में जाना जाता है। वह समय या जीवनकाल, जिसमें एक फ़ैशन अस्तित्व में रहता है, प्रवेश से लेकर अप्रचलन तक पाँच स्तरों में गति करता है।

1. शैली की प्रस्तुति — डिज़ाइनर अपने शोध और रचनात्मक विचारों को परिधान में ढालते हैं और फिर जनसाधारण को नयी शैली उपलब्ध कराते हैं। डिज़ाइनों की रचना के लिए रूपरेखा, रंग, आकृति, वस्त्र जैसे अवयवों तथा अन्य विवरण को एवं उनके एक-दूसरे के साथ संबंध को बदलना पड़ता है।

2. लोकप्रियता में वृद्धि — जब नया फ़ैशन बहुत से लोगों द्वारा खरीदा, पहना और देखा जाता है, तो इसकी लोकप्रियता बढ़नी शुरू होती है।

3. लोकप्रियता की पराकाष्ठा — जब कोई फ़ेशन लोकप्रियता की ऊँचाई पर होता है, तो उसकी माँग इतनी अधिक हो जाती है कि बहुत से निर्माता उसकी नकल करते हैं या विभिन्न मूल्य स्तरों पर उसके रूपांतरणों का उत्पादन करते हैं।

4. लोकत्रियता में कमी होना — अंततः उस फ़ैशन की प्रतियों का भारी संख्या में उत्पादन होने से फ़ैशन प्रिय व्यक्ति उस शैली से ऊब जाते हैं और कुछ नया देखना शुरू कर देते हैं। इस घटती लोकत्रियता वाली सामग्री को दुकानों पर कम कीमत पर बेच दिया जाता है।

5. शैली का परित्याग अथवा अप्रचलन — फ़ैशन चक्र के अंतिम पड़ाव में कुछ उपभोक्ता पहले से ही नए रंग-रूप में आ जाते हैं और इस प्रकार नया फ़ैशन चक्र प्रारंभ हो जाता है।

फ़ैशन व्यापार

फ़ैशन व्यापार का अर्थ है बिक्री के प्रोत्साहन के लिए सही समय पर, सही स्थान पर और सही मूल्य पर आवश्यक योजना बनाना। यदि इन सभी स्थितियों की योजना बनाई जाए तो अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

व्यापारी वह व्यक्ति होता है, जो प्रेरणा को डिज़ाइन में परिवर्तित करने को सुसाध्य बनाता है, संकल्पना के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है और फ़ैशन उद्योग में उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं और माँगों के लिए उत्पादों के नियोजन, उत्पादन, संवर्धन और वितरण पर ध्यान देता है।

फ़ैशन व्यापार को अच्छी तरह समझने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि फ़ैशन की वस्तुओं के उत्पादन, क्रय, संवर्धन और विक्रय में व्यापारियों की भूमिका की परख की जाए। आइए, इनमें से प्रत्येक पहलू पर फ़ैशन व्यापारियों की भूमिका की परख करें-

विनिर्माण में फ़ैशन व्यापारी किसी एक परिधान को बनाने में विभिन्न प्रकार के कपड़ों का उपयोग करते समय बहुत अधिक सावधानी बरतता है। वस्त्र की ऐतिहासिक और सामाजिक-सांस्कृतिक सूझ-बूझ होने पर डिजाइइनर की कल्पनाशक्ति को वास्तविकता में बदलने हेतु मदद मिलती है। कपड़ों और परिधान निर्माण के ज्ञान का उपयोग करते हुए, फ़ैशन व्यापारी डिज़ाइनर द्वारा तैयार किए गए परिधान को ले लेता है और इसके उत्पादन का श्रेष्ठ तरीका ढूँढ़ता है, साथ ही मूल्य और लक्षित बाज़ार जैसी बातों का भी ध्यान रखता है।

क्रय फ़ैशन व्यापार का हिस्सा बन जाता है, जब एक व्यापारी फ़ैशन की सामग्री दुकानों में रखने के लिए खरीदता है। एक फ़ैशन व्यापारी को फ़ैशन की वस्तुओं के लिए लक्षित बाजार की जानकारी अवश्य होनी चाहिए और साथ ही उसे फ़ेशन प्रवृत्ति विश्लेषण और पूर्वानुमान लगाने में भी बहुत निपुण होना चाहिए। इससे अधिक सही ऑर्डर दिया जा सकता है। एक डिज़ाइनर के साथ मिलकर कार्य करने वाला फ़ैशन व्यापारी एक बार फिर वस्त्र निर्माण और वस्त्रों के विषय में डिजाइनर को अपनी विशेषज्ञता प्रदान कर सकेगा।

संवर्धन, जब फ़ैशन व्यापारी डिजााइनर के लिए काम करता है, तब उसकी पहली वरीयता यह होती है कि वह डिजाइनर के उत्पाद को उन दुकानों तक पहुँचाए जो उसे अधिक मात्रा में खरीदना पसंद कर सकते हैं। फ़ैशन व्यापारी को न केवल रचनात्मक मस्तिष्क और प्रबल व्यापारिक कौशलों में दृष्टि की आवश्यकता होती है, बल्कि उसके उत्पादन कौशल भी तेज़ होने चाहिए। फ़ैशन व्यापारी डिज़ाइनर द्वारा तैयार परिधानों को फ़ैशन प्रदर्शनों द्वारा बढ़ावा देता है, जहाँ रचनाएँ और उनके दृश्य-प्रभाव संभावित ग्राहकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त फ़ैशन व्यापारी डिजाइनर के कपड़ों के लिए लक्षित बाज़ार ढूँढ़ते हैं, जैसे - बच्चों के कपड़ों की दुकानें, विभागीय दुकानें या छूट देने वाली दुकानें।

विक्रय, फ़ेशन व्यापार का अंतिम घटक विक्रय है। एक फ़ैशन व्यापारी जो एक डिज़ाइनर के साथ काम करता है, दुकानों को फ़ैशन की वस्तुएँ बेचने के लिए उत्तरदायी होता है और दुकानें वह माल ग्राहकों

को बेचती हैं। इसके लिए भी व्यापारी को पूर्वानुमान और बाज़ार की प्रवृत्ति का ज्ञान होना चाहिए, जिससे वह वस्तुओं के उत्पादन की अनुशंसा कर सके। सृजनात्मकता महत्वपूर्ण होती है, जिससे व्यापारी यह सलाह अवश्य दे सके कि दुकान में वस्तुओं को कैसे प्रदर्शित किया जाए। जब फ़ैशन व्यापारी एक खुदरा दुकान के लिए काम करता है तो उसके उत्तरदायित्वों में वस्तुओं को खरीदना और दुकान में सजाना भी शामिल रहता है।

व्यापार विभिन्न स्तरों पर होता है। फ़ैशन उद्योग में व्यापार तीन स्तरों पर होता है-

1. खुदरा संगठन में व्यापारिक गतिविधियाँ फ़ैशन उद्योग के भीतर यह एक विशिष्ट प्रबंधन प्रकार्य है। यह वह व्यवसाय है जो फ़ैशन की दुनिया को डिज़ाइनर के प्रदर्शन कक्ष से खुदरा दुकानों तक और फिर ग्राहकों के हाथों में पहुँचाता है। यह खुदरा संगठन के आंतरिक नियोजन द्वारा प्राप्त किया जाता है जो यह सुनिश्चित करता है कि व्यापार में विक्रय के लिए उस मूल्य पर माल का पर्याप्त प्रावधान रहे, जिस मूल्य पर ग्राहक इच्छापूर्वक लेने को तैयार है, ताकि लाभप्रद प्रचालन सुनिश्चित रहे।

2. क्रय एजेंसी व्यापार में सामान— यह एजेंसी वस्तु के क्रय के लिए परामर्श देती है। क्रय एजेंसी ग्राहकों के लिए सामान उपलब्ध कराने के कार्यालय का काम करती हैं। क्रय एजेंसियों के माध्यम से खरीदना निर्यातकों के लिए लाभदायक रहता है, क्योंकि यह लागत और समय की पर्याप्त बचत करती हैं। क्रय एजेंटों का उत्तरदायित्व विक्रेताओं की पहचान करना, मूल्य का मोलभाव करना, बनते समय गुणवत्ता की जाँच करना और लदान-पूर्व गुणवत्ता की जाँच करना होता है। वे उत्पादन प्रक्रिया के दौरान गुणवत्ता पर नियमित नियंत्रण रखते हैं।

3. निर्यात उद्यम में व्यापारिक गतिविधियाँ- इसे समझने के लिए सबसे अच्छा यह होगा कि पहले निर्यात उद्यम में व्यापारी की भूमिका को समझा जाए। निर्यात उद्यम में दो प्रकार के व्यापारी होते हैं-क्रय एजेंट और उत्पादक व्यापारी। क्रय एजेंट खरीदारों और उत्पादकों के बीच मध्यस्थता का कार्य करते हैं। उनकी ज़िम्मेदारी यह सुनिश्चित करना होती है कि उत्पाद का विकास खरीदार की आवश्यकताओं के अनुसार हुआ है। इस प्रकार, उनकी जिम्मेदारी स्रोत ढूँढ़ने, नमूना लेने और खरीदार से बातचीत करने की होती है। दूसरी ओर उत्पादक व्यापारी उत्पादन और खरीदार व्यापारियों के बीच मध्यस्थता का कार्य करते हैं। उनकी ज़िम्मेदारी उत्पादन को समयबद्धता और खरीदार की आवश्यकताओं के अनुसार कराने की होती है।

फ़ैशन व्यापार में अन्य संकल्पनाएँ और आवश्यकताएँ जिनको समझने की ज़रूरत है, निम्नलिखित हैं-

लक्षित बाज़ार- इसे उपभोक्ता की उस श्रेणी के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसे व्यापारी अपने उत्पाद बेचने के लिए लक्षित करता है। यह आवश्यक है कि लक्षित बाज़ार को समझा जाए, क्योंकि यह विक्रय विभाग को उन उपभोक्ताओं पर केंद्रित करने में सहयोग देगा, जिनके द्वारा सामान खरीदने की संभावना अधिक होगी और साथ ही विपणन / विक्रय पर हुए व्यय का अधिकतम लाभ मिलेगा।

यह बाज़ार विभाजन द्वारा किया जा सकता है। बाज़ार विभाजन ऐसी नीति है जो बड़े बाज़ार को उपभोक्ताओं के ऐसे उपसमूहों में बाँटती है, जिनकी आवश्यकताएँ और सामान की उपयोगिताएँ तथा बाजार में उपलब्ध सेवाएँ सर्वसामान्य होती हैं।

बाज़ार को विभिन्न प्रकार से विभाजित किया जा सकता है -

जनांकिकीय विभाजीकरण — यह समून मुख्य रूप से जनसंख्या, आयु, जेंडर, व्यवसाय, शिक्षा और आय पर आधारित होता है।

भौगोलिक विभाजीकरण — मुख्य रूप से नगरों, राज्यों और क्षेत्रों पर आधारित समूहन है। विभिन्न स्थानों की जलवायु परिवर्तनशील हो सकती है और यह व्यापार के विकल्पों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, विशेष रूप से कपड़ों का चयन जलवायु पर निर्भर रहता है।

मनोवृत्तिपरक विभाजीकरण — यह समूहन सामाजिक गतिविधियों, अभिरुचियों, मनोविनोद संबंधी कार्यों, आवश्यकताओं और अपेक्षाओं पर आधारित है। समान जीवन शैलियों वाले लोग लक्षित बाजार समूह बना सकते हैं।

व्यवहारगत विभाजीकरण — विशिष्ट उत्पादों या सेवाओं की राय पर आधारित समूहन है। कई बार उत्पादों और सेवाओं के उपयोग का मूल्यांकन किया जाता है। सेवा/उत्पादन में सुधार के लिए, मदद से उसे दूसरों से अलग बनाते हैं।

व्यापारी के रूप में उपभोक्ता की माँग की भी व्याख्या करने की आवश्यकता होती है। यह समझने की आवश्यकता होती है कि उपभोक्ता की खरीदारी के लिए प्रोत्साहन क्या होते हैं।

व्यापार के लिए सही बातें -

सही व्यापार-फ़ुटकर व्यापारी को अपनी शेल्फें उस सामान से भरी रखनी चाहिए, जिसकी ग्राहकों को जरूूरत रहती है।

सही स्थान पर-व्यापार के लिए स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह ग्राहक की पहुँच तय करता है। सही समय पर-अधिकांश व्यापारिक सामग्री मौसमी प्रकृति की होती है। जब इसकी सबसे अधिक आवश्यकता हो, तब यह सामग्री उपलब्ध होनी चाहिए।

सही मात्रा में-इसका अर्थ है, बिक्री की मात्रा और वाँछित लक्ष्य के बिकाऊ माल सूची की सामान सूची की मात्रा के बीच लाभप्रद संतुलन का होना।

सही मूल्य—व्यापारी को ऐसा मूल्य रखना चाहिए जो इतना अधिक हो कि दुकान को लाभ मिले और फिर भी इतना कम हो कि स्पर्धा में रह सके और ग्राहकों की अपेक्षाओं के अनुरूप हो।

सही संवर्धन-निवेश और ग्राहकों को आकर्षित करने के मध्य सही संतुलन।

फैशन के खुदरा संगठन

संगठनात्मक ढाँचे में प्राधिकारियों की स्पष्ट समझ और पूरे किए जाने वाले प्रत्येक कार्य के लिए उत्तरदायित्व शामिल हैं। संगठन प्रणाली विभिन्न प्रकार की व्यापार सामग्री, फुटकर फ़र्म के आकार और लक्षित ग्राहक के अनुसार भिन्न होती है।

छोटा एकल-इकाई स्टोरपड़ोस की दुकान की तरह होता है। ये मालिक और परिवार द्वारा चलाए जाने वाले स्टोर होते हैं।

विभागीय स्टोर में पृथक भाग होते हैं जो विभागों के नाम से जाने जाते हैं, जैसे - कपडे़, खेल का सामान, यांत्रिक सप्लाई, स्वास्थ्य और सौंदर्य उत्पाद तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण। कुछ विभागीय स्टोर खाद्य उत्पाद भी बेचते हैं।

स्टोर श्रृंखला ऐसी फुटकर दुकानें होती हैं, जिनका एक ही ब्रांड और केंद्रीय प्रबंधन होता है और सामान्यतः इनकी मानकीकृत व्यावसायिक विधियाँ और पद्धतियाँ होती हैं।

प्रमुख विभाग

1. व्यापारिक प्रभाग — क्रय, व्यापारिक नियोजन और नियंत्रण, विक्रय, फ़ैशन समन्वय

2. विक्रय और संवर्धन प्रभाग — विज्ञापन, दृश्य व्यापार विशेष घटनाएँ, प्रचार और जनसंपर्क

3. वित्त और नियंत्रण प्रभाग — जमा, खातादेय और सामानसूरी नियंत्रण

4. प्रचालन प्रभाग — सुविधाओं, भंडार/दुकानों और व्यापार सामग्री के सुरक्षा की देखभाल

5. कार्मिक और शाखा स्टोर प्रभाग — यदि स्टोर प्रचालन बहुत बड़े हैं तो यह प्रभाग अलग से कार्य कर सकता है।

क्रियाकलाप 9.1

किसी बाज़ार में जाएँ। बाज़ार में विभिन्न प्रकार के स्टोरों का अवलोकन करिए, पहचान करिए और उनकी सूची बनाइए।

जीविका (करिअर) के लिए तैयारी

क्योंकि यह जीविका शैली के साथ व्यापार बोध को जोड़ती है, इसलिए केवल फ़ैशन के लिए अंतर्बोध (मात्र) ही यहाँ सफलता नहीं लाएगा, बल्कि तीन प्राथमिक (और भिन्न) कौशल हैं जो इस क्षेत्र में सफलता के लिए डिजाइइनों, व्यापारियों और बाज़ार चलाने वालों के पास होने चाहिए।

1. पूर्वानुमान योग्यता — फ़ैशन की प्रवृत्तियों के संबंध में पूर्वानुमान की योग्यता इस जीविका का आवश्यक भाग है। यह विगतभावी प्रवृत्तियों, वर्तमान प्रवृत्तियों (जैसा कि कभी-कभी फ़ैशन उद्योग के भीतर सूक्ष्म परिवर्तनों द्वारा प्रदर्शित होता है) का परिपूर्ण ज्ञान प्राप्त करता है और उस बात की जागरूकता रखता है कि किस प्रकार किसी उत्पाद का विपणन इन फ़ैशन प्रवत्तियों में योगदान करता है। इसके अतिरिक्त समय रहते इस व्यापार से पूँजी कमाने के लिए, इन फ़ैशन प्रवृत्तियों के बारे में काफ़ी आगे की सोच रखने की क्षमता होनी चाहिए।

2. विश्लेषणात्मक योग्यता — फ़ैशन व्यापारी और बिक्री संवर्धनकर्ता में अपने कार्यों की पूँजी और समझदारी भाग का विश्लेषण करने की योग्यता होनी चाहिए। इसका अर्थ है कि उन्हें संपूर्ण अर्थव्यवस्था की जानकारी हो, अपनी विशिष्ट कंपनियों की अर्थन्यवस्था की जानकारी हो और उस बात की भी समझ होनी चाहिए कि किस प्रकार कुछ शैलियाँ उपभोक्ता के बजट में समा सकेंगी। वे जटिल कारकों के समूह को इस प्रकार सुलझाएँ कि अपने नियोक्ताओं के लिए लाभ सुनिश्चित कर सकें।

3. संत्रेषण योग्यता — इस क्षेत्र में उत्कृष्ट संप्रेषण कौशलवाला होना अत्यंत आवश्यक गुण है। उनमें निर्माता के साथ मूल्यों को तय करने के लिए बातचीत करने की योग्यता हो और जनसाधारण को उनके पसंद के फ़ेशन बेच सकें। इसके लिए वे प्राय: विज्ञापन देते हैं, समाचार-पत्रों में विज्ञात्तियाँ भेजते हैं और यहाँ तक कि उपभोक्ताओं को व्यक्तिगत रूप से पत्र भी लिखते हैं। इन सब कार्यों के लिए अच्छे संर्रेषण कौशल का होना जरूरी है।

फ़ैशन डिजाइनरों को फ़ैशन डिज़ाइन में संबंधित ‘ऐसोसिएट’ या ‘स्नातक उपाधि’ प्राप्त करने की आवश्यकता है। कुछ फ़ैशन डिजाइनर खासतौर पर वे जो अपना व्यापार अथवा खुदरा दुकान चलाना चाहते हैं, फ़ैशन डिज़ाइन और व्यापार में अनेक प्रकार के डिग्री कार्यक्रम हैं। आप इस क्षेत्र में एक प्रमाण-पत्र, डिप्लोमा, एक ‘ऐसोसिएट’ अथवा स्नातक उपाधि अर्जित कर सकते हैं। आपकी पसंद अनेक कारकों पर निर्भर करती है, जो प्रत्येक उपाधि कार्यक्रम के विशिष्ट गुणों को ध्यान में रखते हैं।

1. फ़्रेशन व्यापार में प्रमाण-पत्र या डिप्लोमा, डिग्री कार्यक्रम सामान्यत: छह माह से एक वर्ष में पूरा हो जाता है। कार्यक्रम की अवधि छोटी इसलिए होती है, क्योंकि अध्ययनकालीन अभ्यास कार्य को फ़ैशन व्यापार के वास्तविक रोजगार पर केंद्रित करना होता है। यदि आपके पास लंबी अवधि तक विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने का धैर्य नहीं है और आप फ़ैशन के क्षेत्र में.ज्यादा जल्दी प्रवेश करने के योग्य बनना चाहते हैं तो एक प्रमाण-पत्र या डिप्लोमा कार्यक्रम आपके लिए उपयुक्त रहेगा।

2. फ़्शेश व्यापार से संबंधित उपाधियाँ दो वर्षीय स्नातकोत्तर कार्यक्रम हैं, जो फ़ैशन और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में सहज कलाओं का ज्ञान (अथवा सामान्य शिक्षा का ज्ञान) आवश्यकतानुसार जोड़ सकते हैं।

3. फ़्रैशन डिजााइन अथवा फ़ैशन व्यापार में स्नातक उपाधियाँ चार वर्षीय कार्यक्रम हैं, जिनमें फ़ैशन और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के साथ सहज कलाओं को आवश्यकतानुसार पर्याप्त मात्रा में जोड़ देते हैं। यदि आप में लंबे समय तक पढ़ने का धैर्य, एक व्यापक शिक्षा पाने की इच्छा और विभिन्न उन्नति के अवसर प्राप्त करने की लालसा है, तो स्नातक उपाधि आपके लिए उपयुक्त होती है।

कार्यक्षेत्र

अनेक लोग लाभप्रद आय के अवसरों की उपलब्धता के कारण फ़ैशन उद्योग में अपनी जीविका पाने की कोशिश करते हैं। इसके अतिरिक्त यह विचार कि आप स्वयं के बलबूते पर सफलता प्राप्त कर सकते हैं, महत्वाकांक्षियों को अधिक प्रोत्साहित करता है। वास्तव में, लगभग एक तिहाई व्यावसायिक फ़ैशन डिज़ाइन स्व-उद्यमी होते हैं।

सामान्यत: फ़ैशन डिज़ाइन व्यावसायिकों में स्वाभाविक कलात्मक और रचनात्मक गुण होते हैं। वे अपनी रचनात्मक और कलात्मक प्रतिभा का उपयोग विभिन्न फ़ैशन अनुप्रयोगों के लिए अद्वितीय डिजाइन और संकल्पनाओं की रचना में करते हैं। आज फ़ैशन डिज़ाइनर व्यावसायिकों की माँग विभिन्न प्रकार के उद्योगों में है, क्योंकि एक विशिष्ट क्षेत्र में विशेषज्ञता वाले फ़ैशन डिजाइइनरों की माँग लगातार रहती है, अत: अधिकांश उम्मीदवार अपनी प्रतिभा को एक विशेष क्षेत्र पर केंद्रित करते हैं, जैसे - आंतरिक डिजाइनिंग, व्यापारिक प्रदर्शन, कपड़े / परिधान, नाट्यमंच और कई अन्य। आपके पास सदैव ताज़े और नए विचार होने चाहिए, क्योंकि बाज़ार और फ़ैशन प्रवृत्तियाँ निरंतर परिवर्तित होती रहती हैं।

वर्तमान में फ़ैशन डिजाइइन के क्षेत्र में अनेक जीविकाएँ उपलब्ध हैं। कुछ लोकत्रिय फ़ैशन डिजाइन जीविकाएँ निम्नलिखित हैं-

1. दृश्य व्यापार डिज़ाइन — ये मुख्य रूप से शो केस में प्रदर्शन, दुकानों में सामान व्यवस्था, आकर्षक प्रचार-वाक्यों की रचना, कपड़ों को रखने की व्यवस्था, पुतलों को आकर्षक ढंग से सजाने और प्रदर्शन एवं विज्ञापन अभियानों को नेतृत्व्व करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।

2. फ़ैशन डिजााइनर —फ़ेशन डिजाइनर के रूप में कार्य करने वाले व्यवसायी कपड़ों और परिधानों की रचना का विशिष्ट कार्य करते हैं। कुछ लोकप्रिय फ़ैशन डिज़ाइनरों के साथ काम करते हैं, जबकि अन्य अपना स्वयं का फ़ैशन कार्य करते हैं।

3. सेट डिजाइनर — जैसा कि नाम से पता चलता है, डिजाइन मुख्य रूप से चलचित्रों, टेलीविजन के सेट और नाटकों के सेटों के लिए डिजाइनों की रचना करते हैं। उनकी शैलियाँ और डिज़ाइन आलेख अथवा निदेशक की आवश्यकता-अनुसार होने चाहिए। कुछ सेट डिजाइइनर व्यापार प्रदर्शनों और संग्रहालयों के लिए अद्वितीय डिजाइइन तैयार करते हैं।

4. आंतरिक डिजाइनर — आंतरिक डिज़ाइनरों का प्रमुख लक्ष्य कार्य को पूरी तरह निर्देश के अनुरूप बनाना होता है। उनका प्रमुख कार्य किसी विशेष स्थल या क्षेत्र को ऐसा आंतरिक रूप देना होता है जो उसके सौंदर्य, सुरक्षा और क्रियाशीलता में वृद्धि करता हो। आंतरिक डिज़ाइनर विभिन्न कार्यस्थलों पर कार्य करते हैं, जैसे - खुदरा दुकानें, रहने का घर, दफ़्तर, अस्पताल, होटल और अन्य बहुत से स्थान।

प्रमुख शब्द

फ़ैशन, शैली, अस्थायी फ़ैशन, पुरातन, कूटुअर, वृहत् मात्रा में उत्पादन, फ़ैशन चक्र, फ़ैशन व्यापार, लक्षित बाज़ार, क्रय उद्यम/एजेंसियाँ, निर्यात उद्यम, बाजजार विभाजीकरण और खुदरा संगठन

पुनरवलोकन प्रश्न

1. फ़ैशन के प्रमुख विकास की रूपरेखा दीजिए।

2. फ़ैशन चक्र के विभिन्न स्तरों की पहचान कीजिए और उनको समझाइए।

3. फ़ैशन व्यापार से आप क्या समझते हैं?

4. व्यापार के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।

5. ‘उपभोक्ता की माँग की व्याख्या करने के लिए लक्षित बाज़ार और ग्राहक प्रोत्साहन को समझना चाहिए’ विस्तार से बताइए।

6. उन ज्ञान और कौशलों के नाम बताइए जो एक फ़ैशन डिज़ाइनर और व्यापारी के पास अवश्य होने चाहिए।

7. आप अपने उस मित्र को क्या सलाह देंगे जो फ़ैशन डिजाइनिंग और व्यापार को जीविका के रूप में अपनाना चाहता है।

रयोग 1

विषय वस्तु — एक महिला की फ़ैशन आकृति बनाना

कार्य — फ़ैशन आकृति और उसके अनुपातों की रेखाकृति बनाना

उद्देश्य — यह प्रयोग विद्यार्थियों को एक आकृति सृजित करने के लिए शरीर के विभिन्न भागों के अनुपातों को समझने में सहायक होगा। इससे ऐसा रूप प्राप्त होगा, जिस पर वे परिधान के लिए अपने डिजाइन के विचार प्रकट कर सकते हैं। फ़ेशन आकृति को क्रोक़ूयस (जिसका अर्थ है रूपरेखा, स्केच या कच्चा चित्र) कहते हैं। क्रोक़ूयस की रचना सिर को मापने की इकाई को लेकर की जाती है। फ़ैशन-चित्र के पूरे साइज़ में $8 \frac{1}{2}$ से 10 सिर के बराबर का माप होता है। शरीर के विभिन्न भागों के विभिन्न अनुपातों के लिए सिर के गुणाकों को मापन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। मूलभूत सिर मापन एक विशेष समय के फ़ैशन पर निर्भर करते हुए भिन्न होगा।

आवश्यक सामग्री — रेखाचित्र बनाने की फ़ाइल और पेंसिलें।

प्रयोग कराना

1. क्राक्विस-अनुपात निम्नलिखित हैं -

(क) कंधे सबसे चौड़े होते हैं - $1 \frac{1}{2}$ सिर

(ख) कमर सबसे छोटी होती है — सिर

(ग) कूल्हे दोनों के बीच के होते हैं - 1 सिर

(घ) फ़्शेन चित्र सिर के ऊपर से धड़ के नीचे तक लगभग $1 / 2$ और धड़ के अंत से टखने तक $1 / 2$ होता है।

2. समस्तर दिशानिर्देशों में निम्नलिखित स्तर होते हैं -

(क) कंधे की रेखा

(ख) आवक्ष रेखा

(ग) कमर रेखा

(घ) कूल्हे की रेखा

(ङ) धड़ की रेखा

3. ऊर्ध्व स्तर-निर्देश हैं -

(क) सामने के मध्य से

(ख) मोढा

(ग) प्रिंसेस (जैसे शमीज)

रेखाचित्र बनाना

1. एक केंद्रीय रेखा बनाएँ जिसका माप 10 सिर हो, जहाँ एक सिर का माप 1 हो। इसे सामने के मध्य की रेखा कहते हैं।

2. इसे 10 भागों में बाँट लीजिए जैसा चित्र में दिखाया गया है। अब निम्नलिखित को बताए गए स्तरों पर चिद्नित कीजिए-

3. आँख की रेखा $-1 / 2$ सिर

4. कंधे की रेखा $-1 \frac{1}{2}$ सिर

5. आवक्ष रेखा -2 के ठीक नीचे

6. कमर रेखा -3 के ठीक नीचे

7. कूल्हे की रेखा $-31 / 2$ सिर

8. धड़ का अंतिम भाग $-4 \frac{1 / 2}{2}$ सिरों के थोड़ा ऊपर

9. घुटने $-61 / 2$ सिर

10. टखने -9 या ऊपर

11. पेंसिल से स्तरों को जोड़िए और चित्र में दिए गए रूप को विकसित कीजिए।

12. आपके डिजाइन विचारों को प्रदर्शित करने वाला क्रोक़ूयस उपयोग के लिए तैयार है।

विभिन्न सिर माप वाले कम से कम पाँच क्रोक़ूयस बनाने का अभ्यास कीजिए।



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