अध्याय 08 वस्त्र एवं परिधान के लिए डिज़ाइन

प्रस्तावना

डिजाइन (परिरूप) एक लोकप्रिय समकालीन शब्द है, जिसके विभिन्न गुण तथा अर्थ होते हैं। अकसर यह उच्च फ़ैशन पोशाकों और उससे जुड़ी वस्तुओं के लिए प्रयोग में लाया जाता है। फिर भी यह एक पूर्ण वर्णन नहीं है। डिजाइइ मात्रा सजावट नहीं है। सबसे अधिक कलात्मक रूप से मोहक वस्तु भली-भाँति डिजाइइन की हुई नहीं समझी जाती यदि यह अपने उपयोग के लिए कार्यात्मक तथा उपयुक्त नहीं है। डिज़ाइन के बहुत से अर्थ होते हैं। व्यापक अर्थ में, इसे रूप में सामंजस्य के लिए बताया जा सकता है, परंतु डिज़ाइन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू डिजाइनरों की सृजनात्मक लालसा और अभिव्यक्ति के अर्थ और उपयोग में निहित होता है और इसलिए सर्वोच्च सामंजस्य तभी प्राप्त होता है, जब अच्छे डिजाइन का कलात्मक पहलू उस वस्तु की उपयोगिता से वास्तविक रूप से एकीकृत हो, जिसे रचा गया है, अत: हम कह सकते हैं, “डिजजाइन उत्पादों की कल्पना करने, योजना बनाने और कार्यान्वित करने की मानवीय सामर्र्य है, जो मानव जाति को किसी

वैयक्तिक अथवा सामूहिक उद्देश्य के निष्पादन में सहायता करती है।" एक अच्छा डिजाइइन कलात्मक रूप से मोहक होने से भी अधिक महत्व का होता है। इसमें सामग्री का सही उपयोग उन लोगों के लिए होता है जो लोग मूल्य, रंग और लाभ संबंधी अपेक्षा रखते हैं।

मूलभूत संकल्पनाएँ

डिजा़न विश्लेषण — चाही गई वस्तु की रचना के लिए डिज़ाइन एक योजना के अनुसार व्यवस्था होती है। यह योजना के कार्यात्मक भाग से एक कदम आगे होती है और एक परिणाम देती है, जिससे सौंदर्यबोधक संतोष मिलता है। इसका अध्ययन दो पहलुओं में होता है — संरचनात्मक तथा अनुर्रयुक्त।

संरचनात्मक डिज़ाइन वह है जो रूप पर निर्भर करता है, न कि ऊपरी सजावट पर। वस्त्र उत्पादन में, इसमें सम्मिलित हैं, रेशों का मूल संसाधन, रेशों और धागों के प्रकार, बुनाई इत्यादि में विविधता और वे स्थितियाँ जहाँ रंग मिलाना है। पोशाक में, यह कपड़े की मूल कटाई या आकार से संबंध रखता है। अनुप्रयुक्त डिजजाइन मुख्य डिजाइन का एक भाग होता है, जो मूल संरचना के ऊपर बनाया जाता है। वस्त्र की सज्जा में रँगाई तथा छपाई, कसीदाकारी और विलक्षण सुई-धागे का काम उसके रूप को बदल देता है। इसमें पोशाकों पर संवारने तथा बाँधने की युक्तियाँ सम्मिलित रहती हैं, जो अंतिम उत्पाद के महत्त्व को बढ़ा देती हैं। चित्रकला अथवा मूर्तिकला, अत: इस पर भी कला का अर्थ उसी प्रकार लागू होता है।

डिज़ाइन में दो मुख्य कारक होते हैं — तत्व्व एवं सिद्धांत

डिज़ाइन के तत्त्व कला के उपकरण हैं। ये रंग, बनावट और रेखा, आकृति अथवा रूप हैं। डिज़ाइन के तत्व्व सामंजस्य, संतुलन, आवर्तन, अनुपात और महत्त्व के सर्जन हेतु परिचालित किए जाते हैं। ये डिजाइन के सिद्धांत हैं।

डिज़ाइन के तत्त्व

1. रंग — हमारे चारों ओर रंग कई रूपों में हैं। ये सभी वस्त्र निर्माण वस्तुओं के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक हैं, चाहे वह परिधान घरेलू, व्यापारिक अथवा संस्थागत उपयोग के लिए हों। उत्पाद की पहचान का श्रेय अधिकतर रंग को दिया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति रंग के प्रति प्रतिक्रिया करता है और उसकी निश्चित प्राथमिकताएँ होती हैं। रंग मौसम, समारोह तथा लोगों की भावनाओं को प्रतिबिंबित करता है, रंग की पसंद, संस्कृति, परंपरा, जलवायु, मौसम, अवसर अथवा पूर्णतया वैयक्तिक कारण से प्रभावित होती है। रंग फ़ैशन का एक महत्वपूर्ण अंग है। डिज़ाइनर एक सुनिश्चित विवरण के लिए रंगों का चयन सावधानीपूर्वक करते हैं।

2. रंग सिद्धांत — रंग को प्रकाश के किसी वस्तु के पृष्ठ से टकराकर परावर्तन होने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह दृश्य प्रकाश किरणों के परावर्तन के परिणामस्वरूप होने वाली अनुभूति है, किरणें दृष्ट्पिपटल से टकराती हैं और आँख की तंत्रिकाओं की कोशिकाओं को उत्तेजित करती हैं। तंत्रिकाएँ मस्तिष्क को एक संदेश भेजती हैं, जो एक विशेष अनुभूति उत्पन्न करता है और हम रंग देखते हैं। जो रंग मस्तिष्क द्वारा अवलोकित किया जाता है, वह प्रकाश स्रोत की एक विशिष्ट

तरंग-दैर्ध्यों के संयोजन पर निर्भर करता है। किसी वस्तु का रंग देखने के लिए यह आवश्यक है कि वस्तु द्वारा परावर्तित प्रकाश को देखा जा सके। जब प्रकाश की सभी किरणें परावर्तित होती हैं तो वस्तु सफ़ेद दिखाई पड़ती है, जब कोई भी किरण परावर्तित नहीं होती तो वस्तु काली दिखाई पड़ती है।

रंग को समझना

रंग का अध्ययन प्रकाश पर निर्भर करता है। प्रकाश एक प्रकार की विकिरणी ऊर्जा है और यह विद्युत-चुंबकीय विकिरण वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) का एक अंग है। सूर्य का प्रकाश विकिरणी ऊर्जा है जो प्रकाश तरंगों के रूप में पृथ्वी पर पहुँचता है। वर्षा की बूँदों पर पड़ने वाला प्रकाश प्रकीर्णन के पश्चात् सात रंगों का वर्णक्रम उत्पन्न करता है। ये सात रंग क्रमश: बैंगनी, इंडिगो, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल हैं। वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) को अंग्रेज़ी में संक्षिप्त रूप में VIBGYOR कहते हैं। सूर्य के प्रकाश की किरणें इन सात दृश्य रंगों के अतिरिक्त पराबैंगनी तथा अवरक्त किरणों से बनी होती हैं।

कम तरंग-दैर्ध्यों वाली प्रकाश किरणों का समूह शांत प्रभाव वाले रंगों — हरा, नीला और बैंगनी, वाला होता है। अधिक तरंग-दैर्ध्यों वाले प्रकाश में लाल, नारंगी और पीला प्रकाश है, जो उत्तेजित प्रभाव वाले रंग हैं। चूँकि प्रकाश विभिन्न तरंग-दैर्ध्यों का बना होता है, रंग को विभिन्न महत्त्व और तीव्रता में देखा जाता है।

रंग को तीन रूपों में उल्लेखित किया जाता है — रंग (हूयू), मान तथा तीव्रता या क्रोमा।

ह्यू रंग का सामान्य नाम है। वर्णक्रम (VIBGYOR) सात रंगों को दर्शाता है। डिजाइन की दृष्टि से रंग को समझने के लिए मंसेल रंग चक्र (Munsell’s Colour Wheel) का संदर्भ दिया जाता है। यह रंगों को निम्न प्रकार से विभाजित करता है -

1. प्राथमिक रंग (प्राइमरी कलर) — ये ऐसे रंग हैं, जो किन्हीं अन्य रंगों को मिलाने से नहीं बनते। ये रंग हैं-लाल, पीला और नीला (आगे चित्र 8.1 में वृत्तों द्वारा दिखाए गए हैं)।

2. द्वितीयक रंग (सेकेन्डरी कलर) — ये रंग दो प्राथमिक रंगों को मिलाकर बनाए जाते हैं। ये रंग हैंनारंगी, हरा और बैंगनी (पिछले पृष्ठ पर चित्र 8.1 में वर्गों द्वारा दिखाए गए हैं)।

3. तृतीयक या माध्यमिकरंग (टर्शियरी कलर/इंटरमीडिएट कलर) —ये रंग चक्र पर निकटवर्ती प्राथमिक और एक द्वितीयक रंग को मिलाकर बनाए जाते हैं। इस प्रकार हमारे पास हैं, लाल-नारंगी, पीला-नारंगी, पीला-हरा, नीला-हरा, नीला-बैंगनी और लाल-बैंगनी (चित्र 8.1 में त्रिभुजों द्वारा दिखाए गए हैं)।

इसके अतिरिक्त अन्य समूह हैं, जैसे उदासीन रंग (न्यूटूल कलर) — सफ़ेद, काला, धूसर, रजत और धात्विका इनको अवर्णक कहते हैं अर्थात् बिना रंग के रंग।

सामान्य रंग, चक्र रंगों को उनके विशुद्ध रूप और पूर्ण तीव्रता के साथ प्रदर्शित करता है। रंग का मान उसके हलकेपन या गहरेपन को बताता है, जिसे आभा या रंगत माना जाता है, सफ़ेद रंग का मान अधिकतम तथा काले रंग का मान न्यूनतम होता है। ग्रे पैमाने (ग्रे स्केल) और मान चार्ट (वैल्यू चार्ट) में मान का अनुमान लगाने के लिए 11 ग्रेड $(0-10)$ है। यह काले रंग का मान 0 से और सफ़ेद का 10 दर्शाता है तथा मध्य मान 5 धूसर या ह्यू के लिए है। जब रंग सफ़ेद रंग की ओर जाता है तो यह आभा (टिंट) है और जब यह काले रंग की ओर जाता है तो यह शेड होता है। ग्रे पैमाना हमें किसी भी रंग के तुल्य मान का अनुमान लगाने में भी मदद करता है।

0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
काला धूसर सफ़ेद
रं हृ्यू T I N T $\mathrm{S}$

शेड (रंगत) $(0-5)$ काले रंग का मान

आभा $(10-5)$ सफ़ेद रंग का मान

चित्र 8.3 - रंग की रंगत और आभा

क्रोमा या तीव्रता (इंटेंसिटी) रंग की चमक या विशुद्धता होती है। जब किसी रंग को अन्य रंग के साथ मिलाते हैं, विशेषकर रंग चक्र (कलर क्हील) पर इसके विपरीत रंग के साथ तो रंग में मंदता आ जाती है।

रंग को पहचानना — हम में से अधिकांश अपनी सामान्य दृष्टि से विभिन्न रंगों के मानों और तीव्रताओं में भेद करने और उन्हें नाम देने (जैसे - ईंट-सा लाल, रक्त-सा लाल, टमाटर-सा लाल, रूबी-सा लाल, गाजर-सा लाल इत्यादि) में सक्षम होते हैं। रंगों के नाम प्राकृतिक स्रोतों जैसे - फूल, वृक्ष, काष्ठ, खाद्य, फल, वनस्पति, मसाले, पक्षी, पशु, फ़र, पत्थर और धातु, खनिज, मिट्टी, रंजक और पेंट इत्यादि के साथ-साथ अनेक अन्य स्रोतों से प्राप्त किए जाते हैं। प्रत्येक समूह में आप लाल और गुलाबी, पीला और नारंगी, नीललोहित और बैंगनी, नीले, हरे, भूरे और धूसर देख सकेंगे। नामों में अकसर क्षेत्रीय झलक होती है। अत: एक क्षेत्र के नाम का अर्थ दूसरे क्षेत्र के लोगों के लिए अलग हो सकता है। आज भी दुनिया में, जहाँ भारी मात्रा में सामग्री (विशेष रूप से वस्त्र उत्पादों) का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार होता है, नामों के साथ संख्याएँ उपयोग में लाने की पद्धति बनाई गई है। पेंटोन शेड कार्ड रंगों, आभाओं और शेडों को विभिन्न तीव्रताओं के साथ प्रदर्शित करता है। प्रत्येक को एक कोड संख्या दी गई है, जिसको अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया है। इसमें फ़ैशन के बारे में पूर्व जानकारी (फोरकास्ट) देने और विदेशों में उत्पादों का ऑर्डर देने में सहायता मिलती है।

चित्र 8.4 - पेंटोन शेड कार्ड

चित्र 8.5 - पेंटोन रंग चार्ट (एक विशिष्ट क्रम के लिए)

1. वस्त्र में रंग — वस्त्रों में रंग को विविध डिजााइन-रूपों में देखा जा सकता है। हम वस्त्रों को देखते हैं, जिनमें एक समरूप टिकाऊ रंग होता है, अन्य वस्त्रों में जहाँ रंग अंतर्ग्रथित धागों का अनुसरण करता प्रतीत होता है, इसके अलावा अन्य किसी भी प्रकार के वस्त्रों में रंग हो सकता है। वस्त्र के उत्पाद के चरणों में जब रंग को विभिन्नता लिए जोड़ा जाता है तो कई प्रकार के डिज़ाइन प्राप्त होते हैं।

(क) रेशे के स्तर पर रँगाई बहुत कम होती है, क्योंकि यह बहुत महँगी प्रक्रिया सिद्ध होती है। फिर भी कुछ निर्मित रेशों के लिए इसका सहारा लेना पड़ता है, जैसे जो आसानी से रंगे नहीं जा सकते अथवा डिज़ाइन की आवश्यकता ऐसे धागों की होती है, जिसमें बहुंगी रेशे हों।

(ख) धागे के स्तर पर की गई रँगाई, बहुविध डिजााइन की रचना में मदद करती है। बुनी हुई धारीदार पट्टियाँ, चौकदार कपड़ा, पट्टू इत्यादि बनाए जाने वाले सामान्य डिजजाइन हैं। ज़ी और जैकार्ड

पैटर्न रंगे हुए धागों को बुनकर तैयार किया जाता है। जब धागों की बँधाईरँगाई की जाती है, तो सुंदर इकत पैटर्न प्राप्त होते हैं।

(ग) वस्त्र के स्तर पर रँगना एक सबसे अधिक प्रचलित विधि है। यह विधि एक सामान्य एकल रंग वाले वस्त्र प्राप्त करने के लिए और बँधाई तथा बाटिक प्रक्रिया द्वारा डिज़ाइन वाली सामग्री प्राप्त करने के लिए उपयोग में

चित्र 8.6 - पेनों में पेंटोन रंग लाई जा सकती है।

(घ) वस्त्र के स्तर पर भी रँगाई, चित्रकारी, छपाई, कसीदाकारी और पैच अथवा गोटा-पट्टा द्वारा की जा सकती है। यहाँ रंग का अनुप्रयोग किसी भी आकार और रूप में हो सकता है।

वस्त्र डिज़ाइनरों को विभिन्न रेशों और वस्त्रों की रँगाई के गुणों का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है। अंतिम उत्पाद की आवश्यकताओं पर निर्भर करते हुए, वे रंग अनुप्रयोग का स्तर और तकनीक सुनिश्चित करते हैं।

रंग योजनाएँ अथवा रंग सुमेल

रंगों के संयोजन के लिए मार्गदर्शन के रूप में कुछ मूलभूत रंग योजनाएँ उपयोग में लाई जाती हैं। एक वर्ण योजना यह सुझाती है कि किन रंगों का संयोजन करना है, रंगों के मान और तीव्रताएँ और उपयोग में आने वाले प्रत्येक रंग की मात्रा का निर्धारण डिज़ाइनर अथवा उपभोक्ता करते हैं। रंग योजनाओं का अध्ययन वर्णचक्र के संदर्भ में भली-भाँति किया जाता है।

वर्ण योजनाओं की चर्चा दो समूहों में की जा सकती है - 1 . संबंधित 2. विषम

1. संबंधित योजनाओं में कम से कम एक रंग सर्वनिष्ठ (सामान्य) होता है। ये योजनाएँ हैं -

(क) एक वर्णी सुमेल का अर्थ है कि सुमेल एक रंग पर आधारित है। इस अकेले रंग के मान और/ अथवा तीव्रता में विविधता लाई जा सकती है।

(ख) अवर्णी सुमेल केवल उदासीन रंगों का उपयोग करता है, जैसे - काले और सफ़ेद का संयोजन।

(ग) विशिष्टतापूर्ण उदासीन एक रंग और एक उदासीन या एक आवर्णी रंग का उपयोग करता है।

(घ) अनुरूप सुमेल का अर्थ उस वर्ण संयोजन से है, जिसे वर्णचक्र के दो या तीन निकटवर्ती रंगों के उपयोग से प्राप्त किया जाता है। चार या अधिक रंग एक गड़बड़झाला उत्पन्न कर सकते हैं, जब तक कि एक रंग बहुत कम मात्रा में न हो।

2. विषम योजनाएँ निम्नलिखित हो सकती हैं-

(क) पूरक सुमेल में दो रंगों का उपयोग होता है, जो वर्णचक्र में एक-दूसरे के ठीक सामने होते हैं।

(ख) दोहरा पूरक सुमेल दो पूरक युगलों से होता है, जो सामान्यत: वर्णचक्र में पड़ोसी होते हैं।

(ग) विभाजित पूरक सुमेल में एक रंग, उसके पूरक रंग (वर्णचक्र पर ठीक सामने) और पड़ोसी रंग का उपयोग कर तीन रंगों का संयोजन होता है।

(घ) अनुरूप सुमेल अनुरूप और पूरक योजनाओं का संयोजन है, इसमें पड़ोसी रंगों के समूह में प्रधानता के लिए पूरक का चयन किया जाता है।

(ङ) त्रणात्मक सुमेल वर्णचक्र पर एक-दूसरे से समान दूरी पर स्थित तीन रंगों का संयोजन होता है।

क्रियाकलाप 8.1

वस्त्र, मुद्रित कागज, पोशाकों के चित्र, कक्षों के आंतरिक चित्र इत्यादि के नमूने एकत्र कीजिए। रंग, मान और तीव्रता को बताते हुए वर्ण सुमेलों का विश्लेषण कीजिए।

बुनावट ( टेक्सचर ) — बुनावट दिखने और छूने की एक संवेदी अनुभूति है जो वस्त्र की स्पर्शी तथा दृश्य गुणवत्ता को बताती है। प्रत्येक वस्तु (चाहे वस्त्र हो या कुछ अन्य) की एक विशिष्ट बुनावट होती है। बुनावट को निम्नलिखित पदों में उल्लेखित किया जा सकता है-

1. वह कैसा दिखाई देता है — चमकीला, मंद, अपारदर्शक, घना, पारदर्शक, पारभासी या चिकना

2. उसकी प्रकृति कैसी है — ढीला, लटका हुआ, कड़ा, बाहर को निकला हुआ, चिपकने वाला, लहराता हुआ

3. छूने पर कैसा लगता है — नरम, कड़क, रूखा, समतल, सतह वाला, ऊबड़-खाबड़, खुरदरा, कणीय, दानेदार

कक्षा 11 की पुस्तक में “वस्त्र हमारे आस-पास" नामक अध्याय में आपने सीखा कि मुख्य रूप से वस्त्र वह सामग्री है जो हमारे दैनिक जीवन में स्पर्श से होने वाला अनुभव लाती है। आप उन कारकों का स्मरण कीजिए, जो सामग्री में बुनावट का निर्धारण करते हैं। ये संक्षेप में इस प्रकार हैं-

(क) रेशा — रेशे का प्रकार (प्राकृतिक या मानव-निर्मित), इसकी लंबाई, उत्कृष्टता और इसके पृष्ठीय गुण

(ख) धागे का संसाधन और धागे का प्रकार — संसाधन की विधि, संसाधन के समय समावेशित घुमाव, धागे की उत्कृष्टता और धागे का प्रकार (सरल, जटिल, नवीनता अथवा स्पर्श के विशिष्ट अनुभव युक्त)

(ग) वस्त्र निर्माण तकनीक -बुनावट (बुनने का प्रकार और उसकी सघनता), बुनाई, नमदा बनाना, गुँथना, लेस या जाली बनाना इत्यादि

(घ) वस्त्र सज्जा — कड़ा करना (माँड़ लगाना, आकार मापन या गोंद लगाना), इस्तरी करना, कैलेंडरिंग और टेंटरिंग, नैपिंग, परिष्करण करना

(ङ) पृष्ठीय सजावट — गुच्छे से सजाना, मखमली मुद्रण, कसीदाकरी और सिलाई डिजाइन के प्रभाव

पोशाक डिजाइन में बुनावट का मुख्य उद्देश्य रुचि उत्पन्न करना और व्यक्ति के वाँछित लक्षणों को उभारना होता है। सुमेल प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाई गयी बुनावटों में परस्पर अनुकूल संबंध होने चाहिए। पोशाक में, उपयोग में लाई गयी बुनावट शारीरिक आकार, निजी गुण, वेशभूषा की रूपरेखा या आकार तथा अवसर के उपयुक्त होनी चाहिए।

क्रियाकलाप 8.2

विभिन्न बुनावटों वाली वस्त्र सामग्री के नमूने इकटे करिए उपयुक्त शब्दों (चमकदार, कड़ा, मुलायम, इत्यादि) में उनकी बुनावट का वर्णन करिए। उन कारकों का विश्लेषण करिए, जिनके कारण वह बुनावट प्राप्त हुई है।

शिक्षक के लिए नोट — सहायक कक्षा सामग्री में विभिन्न वस्त्र उत्पाद, काष्ठ पत्थरों, खनिजों, धातुओं, बालू इत्यादि के प्रकार सम्मिलित किए जा सकते हैं, जिनका उपयोग स्पर्श और दृश्य लक्षणों के लिए किया जाता है।

रेखा

रेखा को उस चिह्न के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो दो बिंदुओं को जोड़ती है, उसमें एक प्रारंभ और एक अंत होता है। यह किसी वस्तु, आकृति या आकार की रूपरेखा की भाँति भी हो सकती है। किसी डिज़ाइन के तत्व के रूप में यह वस्तुओं की आकृति प्रदर्शित करती है, गति प्रदान करती है और दिशा निर्धारित करती है। रेखा और आकार दो तत्व हैं, जो मिलकर प्रत्येक डिजाइइ के प्रतिरूप (पैटर्न) अथवा योजना का सर्जन करते हैं। प्रत्येक वस्तु पर जो सजावट हम देखते या उपयोग में लाते हैं, वह रेखाओं और आकारों का संयोजन होता है।

रेखा के प्रकार — मूल रूप से रेखा के दो प्रकार होते हैं - 1. सरल रेखा 2. वक्र रेखा।

1. सरल रेखा — सरल रेखा एक दृढ़ अखंडित रेखा होती है। सरल रेखाएँ अपनी दिशा के अनुसार विभिन्न प्रभावों का सर्जन करती हैं। वे मनोवृत्ति का प्रदर्शन भी करती हैं।

(क) ऊर्ध्वाधर रेखाएँ ऊपर और नीचे गति पर बल देती हैं, ऊँचाई का महत्त्व बताती हैं और वह प्रभाव देती हैं जो तीव्र, सम्मानजनक और सुरक्षित होता है।

(ख) क्षैतिज रेखाएँ एक ओर से दूसरी ओर गति पर बल देती हैं और चौड़ाई के भ्रम का सर्जन करती हैं, क्योंकि ये धरातली रेखा की पुनरावृत्ति करती हैं, ये एक स्थायी एवं सौम्य प्रभाव देती हैं।

(ग) तिरछी अथवा विकर्ण रेखाएँ कोण की कोटि और दिशा पर निर्भर करते हुए चौड़ाई और ऊँचाई को बढ़ाती या घटाती हैं। ये एक सक्रिय, आश्चर्यजनक अथवा नाटकीय प्रभाव सर्जित कर सकती हैं।

2. वक्र रेखाएँ — वक्र रेखा किसी भी कोटि की गोलाई वाली रेखा होती है। वक्र रेखा एक सरल चाप अथवा एक जटिल मुक्त हस्त से खींचा गया वक्र हो सकता है। गोलाई की कोटि वक्र का निर्धारण करती है। अल्प कोटि की गोलाई सीमित वक्र कहलाती है। अधिक कोटि की गोलाई एक वृत्तीय वक्र देती है। कुछ वस्तुएँ इन वक्रों से संबंधित हैं और उनके नाम उसी प्रकार हैं, जैसे - परवलय, कुंडली, विसर्पण, केशपिन, चाबुक की रस्सी अथवा सर्पाकार आठ की आकृति आदि।

(क) लंबी और लहराती हुई वक्र रेखाएँ अत्यंत मनोहर तथा लयबद्ध दिखाई देती हैं।

(ख) बड़े गोल वक्र एक नाटकीय स्पर्श प्रदान करते हैं और अमाप को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करते हैं।

(ग) छोटे, हलके वक्र युवा एवं प्रफुल्ल होते हैं।

रेखाएँ दिखने वाला अर्थ व्यक्त करती हैं ( सरल रेखाएँ बल, सामर्र्य तथा दृढ़ता, जबकि वक्र रेखाएँ मृदु तथा शालीन दिखाई देती हैं, जब इनका प्रयोग डिज़ाइन में किया जाता है। यदि सरल रेखाएँ अधिक प्रधान हैं, तो डिजााइन का प्रभाव पुरुषोचित होता है। वहीं वक्र रेखाएँ नारीत्व तथा कोमलता का प्रभाव देती हैं। आकृतियाँ या आकार — रेखाओं को जोड़कर बनाए जाते हैं। आकृतियाँ द्विविमीय हो सकती हैं, जैसे - एक कागज़ या वस्त्र पर चित्रकारी या मुद्रण। ये त्रिविमीय भी हो सकती हैं, वस्तु के रूप में जिसे तीन या अधिक दिशाओं से देखा जा सकता हो, जैसे - एक मानव शरीर या उस पर पोशाकें, क्योंकि आकृतियाँ

रेखाओं को जोड़ने से बनती हैं, अत: उपयोग में ली जाने वाली रेखाओं के गुण, आकृति के गुण निर्धारित करेंगे। यदि केवल सरल रेखाओं का उपयोग किया जाता है, तो आकृति उस आकृति से भिन्न होगी जब केवल वक्र रेखाओं का उपयोग किया जाता है। विभिन्न प्रकार की आकृतियों का उपयोग, विभिन्न संयोजनों के साथ करके, अनेक प्रकार की आकृतियों का सर्जन किया जा सकता है। आकृतियों के चार मूलभूत समूह होते हैं-

1. प्राकृतिक आकृतियाँ वे होती हैं, जो प्रकृति अथवा मानव-निर्मित वस्तुओं की सामान्य आकृतियों की नकल होती हैं।

2. फ़ैशनेबल शैली की आकृतियाँ सरलीकृत अथवा संशोधित प्राकृतिक आकृतियाँ होती हैं। इसका कुछ भाग विकृत अथवा अतिश्योक्तिपूर्ण हो सकता है।

3. ज्यामितीय आकृतियाँ वे हैं, जो गणितीय रूप से बनाई जाती हैं अथवा कुछ वैसा ही आभास देती हैं। इनको पैमाना, कंपास अथवा अन्य मापक उपकरणों का उपयोग कर बनाया जा सकता है।

4. अमूर्त आकृतियाँ मुक्त-रूप होती हैं। वे किसी विशिष्ट वस्तु जैसी दिखाई नहीं देती हैं, बल्कि अपने वैयक्तिक संबंधों के कारण वे विभिन्न लोगों के लिए विभिन्न वस्तुएँ हो सकती हैं।

वस्त्र में आकृति और रूप का संबंध सामग्री के प्रभाव या सजावट, अलंकरण तथा कलाकृतियों के आकार पर और उनके स्थापन या आवृति अर्थात् अंतिम पैटर्न बनने से होता है। परिधान में यह रूपरेखा, काटना और अंतिम विवरण को प्रदर्शित करता है।

पैटर्न — एक पैटर्न (प्रतिरूप) तब बनता है, जब आकृतियाँ एक साथ समूहित की जाती हैं। यह समूहन एक प्रकार की आकृतियों अथवा दो या अधिक प्रकार की आकृतियों के संयोजन का हो सकता है। इन आकृतियों का समूहन भी प्राकृतिक, रूढ़ शैली का, ज्यामितीय अथवा अमूर्त हो सकता है।

डिज़ाइन के सिद्धांत (प्रिंसिपल्स ऑफ़ डिजजाइन)

एक सफल डिजाइन का विकास मूल डिज़ाइन सिद्धांतों की समझ पर निर्भर करता है। डिज़ाइन के सिद्धांत वे नियम हैं, जो संचालन करते हैं कि किस प्रकार श्रेष्ठतम तरीके से डिजाइन के तत्वों को परस्पर मिलाया जाए। इसमें अनुपात, संतुलन, महत्त्व, लय तथा सामंजस्य सम्मिलित हैं। यद्यपि, प्रत्येक सिद्धांत एक पृथक अस्तित्व रखता है, उन्हें सफलतापूर्वक छान डालना एक प्रभावशाली उत्पाद का निर्माण करता है।

अनुपात — अनुपात का अर्थ वस्तु के एक भाग का दूसरे भाग से संबंध होता है। एक अच्छा डिजाइइन सरल-विश्लेषण नहीं होने देता। तत्वों को इतनी कुशलतापूर्वक सम्मिश्रित किया जाता है कि जहाँ से एक समाप्त होता है और दूसरा प्रारंभ होता है, वह वास्तव में प्रकट नहीं होता। यह संबंध आमाप, रंग, आकृति, और बुनावट में सर्जित किया जा सकता है। इन सबका परस्पर और संपूर्ण रूप में रोचकतापूर्वक संबंधित होना आवश्यक होता है। यह सामान्यतः स्वर्णिम माध्य के अनुपात पर आधारित होता है, जिसे $3: 5: 6$ से $5: 8: 13$ और इसी प्रकार के अन्य अनुपातों से प्रदर्शित किया जाता है। छोटे भाग 3 का बड़े भाग 5 से वही संबंध है जो बड़े भाग 5 का पूर्ण भाग 8 से होता है। पोशाक को क्षैतिज रूप से $3: 5,5: 8$ या $8: 13$ भाग में बाँटा गया

है। ये भाग कमर रेखा, योक (कंधों) का भाग और किनारे की रेखा पर दृष्टिगत होते हैं। पोशाक मनोहर लगती है यदि ब्लाउज, स्कर्ट और संपूर्ण शरीर $3: 5: 8$ का अनुपात प्रदर्शित करता है।

उदाहरण के लिए, एक स्कर्ट और ब्लाउज़ पोशाक में ब्लाउज 3 प्रदर्शित करता है, स्कर्ट 5 प्रदर्शित करता है और संयुक्त प्रभाव 8 प्रदर्शित करता है। इसी प्रकार, एक कमीज-पेंट पोशाक में कमीजज 5 को दर्शाए और पेंट 8 को दर्शाए तथा 13 से संयुक्त प्रभाव उत्पन्न हो।

  • रंग का अनुपात — स्वर्णिम माध्य का उपयोग करते हुए, रंग का अनुपात उत्पन्न करने के लिए कमीज और पेंट के विभिन्न रंग पहने जा सकते हैं।
  • बुनावट का अनुपात — यह तब प्राप्त होता है, जब पोशाक बनाने वाली सामग्री की विभिन्न बुनावटें, पोशाक पहनने वाले व्यक्ति का साइज़ बढ़ा या घटा देती हैं। उदाहरण के लिए, एक दुबले और ठिगने व्यक्ति पर भारी तथा वृद्दाकार बुनावटें हावी होती प्रतीत होती हैं।
  • आकृति तथा रूप का अनुपात - एक पोशाक में कलाकृतियों अथवा छपाई का साइज और स्थिति पहनने वाले के साइज़ के अनुपात में होते हैं। शरीर की चौड़ाई, कमर या धड़ की लंबाई, टाँगों की लंबाई आदर्श शारीरिक आकृति से अलग हो सकती हैं। वस्त्र-धारण रुचिकर ढंग से भद्दे शारीरिक अनुपात का एक उचित अनुपात में रूपांतरण करते हैं। उदाहरण के लिए, मातृत्व में उपयोग में ली जाने वाली ऊँची कमर की कुरती बढ़े हुए पेट को छुपा लेती है। समान विभाजन व्यक्ति को दिखने में छोटा और चौड़ा बनाते हैं, जबकि असमान क्षैतिज विभाजन व्यक्ति को दिखने में पतला बना देते हैं।

संतुलन — इसे पोशाक के केंद्र बिंदु से भार के एक समान वितरण करने के रूप में परिभाषित करते हैं। पोशाक को ऊर्ध्वाधर रूप में (केंद्रीय रेखा से) और क्षैतिज रूप में (ऊपर से नीचे) दोनों प्रकार से संतुलित करने की आवश्यकता होती है। इसकी उपलब्धि तीन प्रकार-औपचारिक, अनौपचारिक तथा रेडियल के रूप में हो सकती हैं। डिज्ञाइन के तत्वों-रेखा, रूप रंग, बुनावट, सभी पर पोशाक में संतुलन बनाते समय विचार किया जाता है।

औपचारिक संतुलन — एक सामान्य मानव शरीर सममित होता है, जिसका अर्थ है कि केंद्रीय ऊर्ध्वाधर रेखा के दोनों ओर शरीर समान होता है। दो बाहें, दो आँखें, दो टाँगें केंद्रीय ऊर्ध्वाधर रेखा के दोनों ओर देखे जाते हैं, परंतु वास्तव में थोड़ा अंतर फिर भी रहता है। यदि शरीर एक ओर कुछ भिन्न दिखाई पड़ता है, तो सावधानीपूर्वक डिजाइइन किए गए वस्त्र उस भिन्नता को न्यूनतम कर देते हैं। औपचारिक ऊर्ध्वाधर संतुलन सबसे कम खर्चीला है और कम कीमती वस्त्रों पर पाया जाने वाला सबसे अधिक आपेक्षित प्रकार का डिजाइन होता है। औपचारिक संतुलन स्थायित्व, गरिमा तथा औपचारिकता देता है, परंतु इसमें नीरस होने की प्रवृत्ति होती है। क्षैतिज संतुलन मूल रूप से डिजाइन के विभिन्न तत्वों का उपयोग करके, उदाहरण के लिए, गहरी वर्ण आभा बड़े साइज़ के लिए आकृति की समस्याओं का समाधान करता है

महत्त्व — पोशाक का महत्वपूर्ण अथवा केंद्र बिंदु वह स्थान होता है, जो देखने वालों की आँखों को सर्वप्रथम आकर्षित करता है। यह पोशाक में रुचि की वृद्धि करता है और इसे रंग, डिज़ाइन रेखाओं, विस्तारण अथवा उपसाधनों का उपयोग करके सर्जित किया जा सकता है। महत्वपूर्ण केंद्र पोशाक के विशिष्ट क्षेत्र पर दर्शकों का ध्यान केंद्रित करता है। अग्रभाग के विवरण प्रभावशाली होते हैं, क्योंकि हमारी संस्कृति में

अग्रभाग (फ्रंट) सौंदर्य का केंद्र बिंदु (फ़ोकल पाइंट) होता है। एक सुंदर कसीदाकारी युक्त योक अथवा एक विषम रंगों वाला ब्लाउज अग्रभाग को और अधिक महत्वपूर्ण बनाता है। शारीरिक आकृति वाली समस्याओं वाले लोग अपनी आकृति संबंधी समस्याओं को महत्त्व दे सकते हैं अथवा छुपा सकते हैं। उदाहरण के लिए, पतली कमर वाली महिला अपनी पतली कमर को महत्त्व देने के लिए एक चमकदार और विषम रंग वाली बेल्ट पहन सकती है, जबकि बड़े नितंबों वाली महिला नितंब बेल्ट पहनकर अथवा नितंब भाग पर अन्य डिज़ाइन विवरणों के साथ, अधिक उजागर कर सकती है। विषम रंगों, विभिन्न असामान्य आकृतियों, रेखाओं तथा बुनावटों का उपयोग करके महत्त्व का सर्जन किया जा सकता है।

आवर्तिता (रिपिटीशन) — आवर्तिता का अर्थ है डिज़ाइन अथवा विवरण की लाइनों, रंगों अथवा अन्य तत्वों को दोहराकर पैटर्न का सर्जन करना, जिसके माध्यम से पदार्थ या वस्तु/ पोशाक आँख को अच्छा लगे। आवर्तिता रेखाओं, आकृतियों, रंगों तथा बुनावटों का उपयोग कर इस प्रकार सर्जित की जा सकती है कि यह दृश्य-एकता दर्शाती है। इसे निम्नलिखित प्रकार से सर्जित किया जा सकता है-

  • यह कसीदाकारी युक्त लेसों, बटनों की गोट (पाइपिंग), रंग इत्यादि को गले, बाहों, किनारों पर दोहराकर प्राप्त किया जाता है।
  • इसे कलाकृतियों, रेखाओं, बटनों, रंगों, बुनावटों के माप में क्रमिक वृद्धि अथवा कमी करके प्राप्त किया जा सकता है।
  • विकिरण आँखें एक केंद्र बिंदु से एक व्यवस्थित तरीके से गतिमान होती हैं, अर्थात् कमर, योक अथवा कफ़, इत्यादि पर संग्रहित होती हैं।
  • समांतरता—यह तब सर्जित होती है जब तत्व एक-दूसरे के समांतर होते हैं, जैसे—योक में चुन्नटें अथवा घाघरे (स्कर्ट) में धारदार चुन्नटें। रंग की धारियाँ भी किसी पोशाक में एक आवर्तिता प्रभाव उत्पन्न करती हैं।

सामंजस्यता — सामंजस्यता अथवा एकता तब उत्पन्न होती है, जब डिजाइइन के सभी तत्व एक रोचक सामंजस्यपूर्ण प्रभाव के साथ एक-दूसरे के साथ आते हैं। यह विपणन योग्य (जन स्वीकृति) डिजजाइनों के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण कारक है।

आकृति द्वारा सामंजस्यता— यह तब उत्पन्न होती है जब पोशाक के सभी भाग एक जैसी आकृति दर्शाते हैं। जब कॉलर, कफ़ तथा किनारे गोलाई लिए होते हैं, तब यदि जेबें वर्गाकार बना दी जाएँ, तो ये डिज़ाइन की निरंतरता में बाधक होंगी।

जब पोशाक कई भागों में हो, जैसे - सलवार, कुरता और दुप्टा, तो पोशाक के लिए सही बुनावट का उपयोग करके बुनावट में सामंजस्य सर्जित किया जा सकता है। सूती दुप्टे का उपयोग एक रेशमी कुरते और सलवार के साथ खराब सामंजस्य प्रदर्शित करेगा।

चित्र 8.7 - सांमजस्यता

जीविका के लिए तैयारी

वस्त्र और परिधान के लिए डिजााइन का क्षेत्र विस्तृत हो गया है और इतना व्यापक हो गया है कि इसे वास्तव में दो विशेषज्ञताओं के रूप में माना जा सकता है। परिधान और घरेलू उपयोग के अतिरिक्त वस्त्र का उपयोग अन्य अनेक वस्तुओं में किया जाता है और परिधान में मात्र वस्त्र के अतिरिक्त अन्य पदार्थों का भी उपयोग होता है। प्रत्येक उपयोग में दिखने और टिकाऊपन तथा लागत निर्धारण के संबंध में विशिष्ट आवश्यकताएँ होती हैं, अतः वस्त्र डिजाइइनर को रेशे के गुणों, लाभों और सीमाओं तथा संसाधन का संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए, जो वाँछित परिणामों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है। उनको विभिन्न रेशों और वस्त्रों की रँगाई के गुणों का अच्छा ज्ञान होता है। अंतिम उत्पाद की आवश्यकताओं पर निर्भर करते हुए, वे रंग के अनुप्रयोग का चरण तथा तकनीक निर्धारित करते हैं। वे डिज्ञाइन के सिद्धांतों को भी समझते हैं।

बहुत से संस्थान दीर्घ तथा लघु, दोनों अवधियों के पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं, जो इस क्षेत्र में सर्टिफ़िकेट, डिप्लोमा, ऐसोसिएट या स्नातक की डिग्री देते हैं। आपकी पसंद कुछ कारकों पर निर्भर करती है, जिनको लेकर आप प्रत्येक डिग्री कार्यक्रम की विशिष्ट गुणवत्ताओं पर विचार कर सकते हैं।

कार्यक्षेत्र

डिजाइन उद्योग एक जीवंत, विविधतापूर्ण तथा सक्रिय रचनात्मक क्षेत्र है जो हमारे जीवन के कई भागों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वस्त्र निर्माण या वस्त्र डिजाइइन में कार्य करना बदलती प्रवृत्तियों और शैलियों के प्रति जागरूकता और डिज़ाइनों के उत्पादन की योग्यता की माँग करता है, जो नयी आधुनिक या फ़ैशन वक्र से भी आगे हों। परिधान, फ़ैशन के लिए वस्त्र डिज़ाइन, सजावट की सामग्री के डिज़ाइनों की अपेक्षा, अधिक तेजी से बदलने की प्रवृत्ति रखते हैं। वस्त्र निर्माण डिज़ाइनर उद्योग में काम करते हैं-अनुसंधान करते हैं और वस्त्र-निर्माता कपंनियों अथवा फ़ैशन प्रतिष्ठानों के लिए डिजााइनों का उत्पादन करते है-परंतु वे डिज़ाइन एजेंसियों के लिए अथवा स्वतंत्र कार्यकर्ता के रूप में भी कार्य कर सकते हैं।

प्रमुख शब्द

डिज़ाइन, संरचनात्मक तथा अनुप्रयुक्त डिज़ाइन, डिजाइन के तत्व, रंग, बुनावट, रेखा, रूप/आकृति और पैटर्न, डिजजाइन के सिद्धांत, सामंजस्यता, अनुपात, आवर्तिता, संतुलन, महत्त्व, वर्ण आभा, मूल्य, तीव्रता, वर्णक्रम

पुनरवलोकन प्रश्न

1. आप ‘डिज़ाइन’ शब्द से क्या समझते हैं?

2. वे कौन से कारक हैं जो वस्त्र के ताने-बाने को उसके निर्माण के समय प्रभावित करते हैं?

3. वस्त्र निर्माण के विभिन्न चरणों में रंग का अनुप्रोग किस प्रकार से वस्त्र में डिजाइइन को प्रभावित करता है।

4. विभिन्न प्रकार की रेखाएँ तथा आकृतियाँ कौन-सी होती हैं? वे किस प्रकार विभिन्न प्रभावों तथा मनोदशाओं का सर्जन करती हैं?

5. आप पोशाक में आवर्तिता तथा सामंजस्यता किस प्रकार प्राप्त करते हैं?

प्रयोग 1

विषय-वस्तु — अनुप्रयुक्त वस्त्र डिजाइइन तकनीक (बँधाई और रँगाई) का प्रयोग करके वस्तुएँ तैयार करना

कार्य — बँधाई और रँगाई की विभिन्न तकनीकों को सीखना

सिद्धांत — डिज़ाइन बनाने का सबसे पुराना तरीका रोध रँगाई है। रोध सामग्री धागा, वस्त्र के टुकड़े या पदार्थ जैसे - मिट्टी और मोम हो सकते हैं, जो भौतिक रुकावट प्रदान करते हैं। रोध की सबसे सामान्य विधि धागे से बाँधना है। बँधाई और रँगाई (टाई एंड डाई) उस तकनीक का नाम है, जिसमें जिन भागों में पैटर्न बनाना है, उन्हें धागों से कसकर बाँध कर रोध देते हैं। जब रंग में वस्त्र को डुबोया जाता है, तो रोधित भागों में वस्त्र का मूल रंग बना रहता है। आप कक्षा 11 की पुस्तक से स्मरण कर सकते हैं, बाँधनी, चुनरी, लहरिया सामग्री के कुछ नाम हैं, जिसमें उन्हें बुनने के बाद वस्त्र में बँधाई-रँगाई से पैटर्न सर्जित किए जाते हैं। बँधाई-रँगाई का एक विशिष्ट डिज़ाइन बंधेज है, जहाँ पैटर्न तिरछी पट्टियों के रूप में होता है। गुजरात और राजस्थान इस प्रकार के वस्त्रों के घर हैं।

उद्देश्य - (1) बँधाई और रँगाई की अवधारणा को सीखना

(2) विभिन्न तकनीकों से बँधाई और रँगाई के प्रक्रम को सीखना

(3) आँख और हाथ के बीच समंवयन

(4) पैटर्न (प्रतिरूप) पर इंगित घुमावदार रेखाओं और शेड्स की पहचान

प्रयोग कराना

प्रकृति में उपस्थित पत्तियों और फूलों की आकृतियों का अवलोकन करें और पेंसिल से ड्रा करें। अब गहराई देने के लिए अलग-अलग प्रकार से शेड्स दें।

वर्तमान शिल्प के रूप में रंग-बिंगे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए बँधाई की अनेक तकनीकें काम में ली जाती हैं। विभिन्न मोटाइयों के धागे उपयोग में लेकर रोध लगाए जाते हैं अथवा वस्त्र में गाँठ लगाकर, मरोड़कर अथवा मोड़कर और फिर उस पर बँधाई कर रोध लगाए जाते हैं। कुछ तकनीकों का वर्णन यहाँ किया जा रहा है-

1. गाँठ लगाना — यह डिजााइन बनाने के सरलतम तथा शीघ्रतम तरीकों में से एक है। गाँठें बहुत से तरीकों से लगाई जा सकती हैं, जो वस्त्र के आमाप, आवृति तथा तंतुरचना पर निर्भर करती हैं। महीन वस्त्र पर सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होते हैं। यह छाया युक्त वृत्ताकार पैटर्न सर्जित करता है।

चित्र 8.8 - गेंद बनाना

2. मार्बलिंग — यह प्रभाव दो प्रकार से प्राप्त किया सकता है। वस्त्र को इकट्ठा करके एक गेंद के रूप में परिवर्तित कर लिया जाता है और सभी दिशाओं में बाँधकर उसे ठोस पिंड बना दिया जाता है। इस वस्त्र को लंबाई में मरोड़ा और कुंडलित करके तथा बाँधकर मार्बलिंग प्रभाव उत्पन्न किया जाता है। यह विधि रंग-बिरंगा और अनियमित बादल जैसे प्रभाव देती है, अतः यह सामान्यतः हलके रंगों में रंगा जाता है और दो या अधिक रंगों में इसकी पुनरावृत्ति की जा सकती है। यह एक बहुरंगी पृष्ठभूमि उत्पन्न करने में मदद करता है, जिसे बाद में अधिक सुस्पष्ट पैटर्न में बाँधा-रंगा जा सकता है।

चित्र 8.9 - कुंडलन

चित्र 8.10 - कुंडलन

3. बँधाई — रँगाई से पहले वस्त्र के कुछ भाग धागे से बहुत कसकर बाँधे जाते हैं। बँधाई एक बिंदु, एक पट्टी, रेखा, आड़ा-तिरछा या कुंडली के रूप में हो सकती है। डिज़ाइन पट्टियों की तरह होते हैं-सीधे या तिरछे (लहरिया), गोले या चित्ती (बंधेज)।

चित्र 8.11 - बाँधना

4. त्रितिक या सिलाई — एक सुनिश्चित पैटर्न में सीधे बड़े टाँकों का उपयोग करके वस्त्र को सुई से सिला जाता है। प्रारंभ में एक बड़ी गाँठ लगाकर एक मजबूूत धागा उपयोग में लाया जाता है। इसे खींचा जाता है, जिससे वस्त्र पास-पास इकटे हो जाएँ और इसके बाद फिर एक गाँठ लगा दी जाती है, ताकि इकड्टा हुआ वस्त्र वैसा बना रहे। इस प्रकार उत्पन्न पैटर्न विभिन्न आकृतियों की बिंदुदार रोचक पट्टियों वाले होते हैं।

5. तहें लगाना — वस्त्र की विभिन्न प्रकार से तहें लगाई जाती हैं, जैसे - पट्टी वर्ग, त्रिभुज। तहों को इकट्ठा बनाए रखने के लिए धागे या क्लिपों का उपयोग करके उन्हें क्रमशः बाँधा या क्लिप किया जाता है। इस प्रकार बने पैटर्न सममित धारियों, पट्टियों, वर्गों इत्यादि के रूप में होते हैं। सर्वोत्तम प्रभाव मोटे वस्त्रों पर प्राप्त किया जाता है, क्योंकि वस्त्र स्वयं रोध का कार्य करता है। ये पैटर्न बाद में ब्लॉक प्रिंटिंग तथा कसीदाकारी के लिए भी पृष्ठभूमि के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं। कक्षा में सफ़ेद सूती वस्त्र के नमूनों पर डिजाइइ बनाए जा सकते हैं। बँधाई के बाद, वस्त्र को साधारण रँगाई-विधि से रंगा जाता है।

चित्र 8.12 - मोड़ना

नोट- वस्त्र को बाँधने के पूर्व उसे गरम साबुन के पानी से धो लीजिए, ताकि वस्त्र द्वारा रंग को समान रूप से अवशोषित कर लिया जाए।

प्रयोग 2

विषय-वस्तु — अनुप्रयुक्त वस्त्र डिज़ाइन तकनीक (बाटिक) का उपयोग करके वस्तुओं को तैयार करना कार्य — बाटिक की तकनीक सिखाना

सिद्धांत — बाटिक रोध छपाई का एक प्रकार है, जहाँ डिजाइन में मोम का प्रयोग कर रोध प्राप्त किया जाता है। तब रँगाई ठंडे में की जाती है, ताकि मोम को पिघलने से बचाया जा सके और इस प्रकार केवल बिना

मोम वाला भाग ही रंगा जाए। साथ ही मोम का चयनित प्रयोग तथा पुन: रँगाई से विभिन्न प्रकार की रँगाई की जा सकती है। बाटिक की विशेषता यह है कि रँगाई के समय मोम में दरारें आ जाएँ और इन दरारों में रंग प्रवेश कर जाए।

उद्देश्य - (1) बाटिक की अवधारणा को सीखना

(2) कोई वस्तु तैयार करके बाटिक के प्रक्रम को सीखना

प्रयोग कराना

बाटिक कार्य के लिए लिया गया वस्त्र धूल और ग्रीस से पूर्णतया मुक्त होना चाहिए। तब इसे फ्रेम पर तना हुआ लगा देना चाहिए, जिससे इस पर डिज़ाइन की चित्रकारी हो सके तथा मोम लगाया जा सके। दो मुख्य प्रकार का मोम प्रयोग में लाया जाता है अर्थात् हलका, आसानी से हटाया जा सकने वाला प्रकार, जिसमें मुख्य रूप से पैराफ़िन मोम होता है और दूसरा गहरे रंग का अधिक चिपकने वाला प्रकार, जिसमें मुख्य रूप से मधुमक्खियों का मोम होता है। विभिन्न प्रकार की दररें प्राप्त करने के लिए पैराफ़िन तथा मधुमक्खी—दोनों प्रकार का मोम—परिवर्ती अनुपातों में लिया जा सकता है।

मोम का अनुप्रयोग — मोम लगाने के लिए विभिन्न चौड़ाइयों और साइज़ के सामान्य ब्रुश काम में लिए जाते हैं। बुरोंों में प्राकृतिक बालों के रेशे होने चाहिए जैसे कि नायलॉन या थर्मोप्लास्टिक पदार्थों के। वस्त्र पर मोम को निम्नलिखित में से किसी एक तकनीक/विधि द्वारा लगाया जाता है-

  • चित्रकारी अर्थात् डिज़ाइन क्षेत्र पर मोम से चित्रकारी करके
  • रूपरेखा बनाना अर्थात् मोम से डिजाइइन/कलाकृति की बाहरी रेखाओं को पेंट करना
  • शुष्क ब्रुश करना अर्थात् चपटे ब्रुश, जो मोम के आधिक्य से मुक्त हो, की सहायता से डिज़ाइन की रेखाओं के साथ ले जाकर छाया का प्रभाव देना
  • खुरचना अर्थात् वस्त्र के एक भाग को मोम से ढक देना और फिर पिन या ब्रुश के पिछले भाग से डिजाइइन लाइन को खुर्चना

मोम को एक छोटे पात्र में पिघलाया जाता है और ऊपर दी गई तकनीकों में से किसी एक का उपयोग कर ब्रुश से पूर्व निर्धारित पैटर्न के अनुसार वस्त्र पर लगाया जाता है। मोम वस्त्र के दोनों ओर पहुँचना चाहिए और उसके लिए वस्त्र के अग्रभाग-पृष्ठभाग, दोनों पर मोम लगाया जा सकता है।

रँगाई - वस्त्र पर मोम लगाने के बाद उसे रंगा जाता है। रँगाई किसी ऐसे रंग से की जाती है जो $35^{\circ} \mathrm{C}$ से कम ताप पर हो सके। उपयोग में लिए गए रंग सामान्यत: आइस कलर या बाटिक रंग कहलाते हैं। बहु-रंग प्रभाव बाद में मोम लगाकर/मोम हटाकर और अतिरिक्त मोम लगाकर और फिर दूसरे रंग में रंगकर प्राप्त किए जा सकते हैं।

मोम को हटाना — रँगाई के बाद वस्त्र को सुखाएँ और तह लगाकर इसे जलरोधी पैकेट में पैक करें और उसे जमा दीजिए। जमी हुई मोम को हटाकर चूरा बनाइए। शेष मोम को अवशोषी कागज़ की तहों के मध्य गरम प्रेस कर हटा दीजिए और अंतिम रूप से गर्म अवस्था में साबुन से धो दीजिए।

प्रयोग 3

विषय-वस्तु — अनुप्युक्त वस्त्र डिजजाइन तकनीक (ब्लॉक छपाई) का उपयोग करके वस्तुओं को तैयार करना कार्य — ब्लॉक छपाई की तकनीक सीखना और ब्लॉकों का उपयोग कर पैटर्नों का सर्जन करना सिद्धांत — वस्त्र पर डिज़ाइन के अनुप्रयोग की विधियों में से एक ब्लॉक छपाई है। ब्लॉक छपाई में, संपूर्ण डिज़ाइन के प्रत्येक रंग के लिए एक पृथक ब्लॉक की आवश्यकता होती है। ब्लॉक इस प्रकार तैयार किए जाते हैं कि डिजजाइन का क्षेत्र उभरा हुआ हो और पृष्ठभूमि क्षेत्र, जिसे छापना नहीं है, उत्कीर्ण कर दिया जाता है। अधिकांश ब्लॉक काष्ठ के बनाए जाते है, परंतु डिजजाइन के भाग को मज़बूती देने के लिए धातु का प्रयोग किया जा सकता है। ब्लॉकों में एक कलाकृति पैटर्न, बॉर्डर पैटर्न अथवा संपूर्ण पैटर्न हो सकते हैं।

उद्देश्य- (1) ब्लॉक छपाई की अवधारणा को सीखना

(2) ब्लॉक छपाई के प्रक्रम को सीखना

प्रयोग कराना

वस्त्र छपाई के लिए रंग और लकड़ी के ब्लॉक बाज़ार में उपलब्ध होते हैं। छपाई की प्रक्रिया गयद्देदार मेज़ पर वस्त्र को समतल फैलाकर शुरू होती है, जो एक रक्षी शीट से ढका रहता है। ध्यान रखना चाहिए कि वस्त्र मेज से दृढ़ता से लगा रहे, ताकि छपाई के समय यह इधर-उधर खिसके नहीं। रंग का पेस्ट एक समरूप परत के रूप में ब्लॉक के उभरे हुए भाग पर लगाया जाता है। इसके लिए ब्लॉक को छपाई-ट्रे में हलका-सा दबाकर लगाया जाता है, जिसमें स्पंज-आधार पर रंग का पेस्ट होता है। इसके बाद ब्लॉक को वस्त्र की सतह पर पर्याप्त दाब के साथ दबाया जाता है, जिससे रंग वस्त्र में प्रवेश कर जाए। जब बहुरंगी ब्लॉकों का उपयोग करना हो, तो सबसे गहरा रंग लेकर रूपरेखा वाले ब्लॉक से शुरू कीजिए और फिर हलके रंगों से भराई वाले ब्लॉकों से छपाई कीजिए। वस्त्र को अब सूखने दीजिए। फिर इसे उलटी तरफ़ से गरम प्रेस कीजिए।



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