अध्याय 06 प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा
प्रस्तावना
कक्षा 11 में आप युवावस्था के बाद व्यक्ति के विकास के अध्ययन के महत्व के बारे में पढ़ चुके हैं। किसी व्यक्ति में विकास के दौरान अनेक परिवर्तन होते हैं। जो विद्यार्थी मानव विकास और परिवार अध्ययन (एच. डी. एफ़. एस.) में विशेषज्ताा हासिल करना चाहते हैं इन परिवर्तनों का अध्ययन करते हैं और उन तरीकों को भी सीखते हैं जिनके द्वारा वे भिन्न स्थितियों में, भिन्न जजरूरतों वाले, विभिन्न आयुवर्ग के लोगों के लिए प्रभावी और अर्थपूर्ण सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं। आगामी अध्यायों में हम इस क्षेत्र में रोज़गार के विभिन्न विकल्पों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। हम सभी यह जानते हैं कि मानव पारिस्थतिकी एवं परिवार विज्ञान (एच. ई. एफ़. एस.) का अध्ययन हमें अपने और अपने आस-पास के लोगों को बेहतर और अधिक अर्थपूर्ण जीवन जीने में सहायता करता है और हमारी सांस्कृतिक परंपरा में समाकलित होने के साथ ही विकासशील जगत, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और प्रगति की जानकारी भी प्रदान करता है और इसमें किसी व्यक्ति को समझने के लिए उसके व्यक्तिगत, पारिवारिक जीवन पर पूरी तरह से विचार किया जाता है।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा - 2005 में सभी जाति समूहों, भाषाओं, धर्मों और समुदायों को समान माना गया है। आगामी अध्यायों में हम उन रोज़गार विकल्पों के बारे में जानेंगे, जो इस क्षेत्र में कार्य करने के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं।
महाविद्यालय स्तर पर (मानव विकास और परिवार अध्ययन) विषय को विभिन्न संस्थानों में भिन्न नामों जैसे - विकास, मानव विकास तथा बाल्यावस्था अध्ययन और मानव पारिस्थितिकी के नाम से जाना जाता है। सभी में मुख्य विषय वही रहता है, लेकिन उसके परिप्रेक्ष्यों में थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है। उदाहरण के लिए जब इसे बाल विकास विषय के अंतर्गत पढ़ा जाता है तो बाल्यावस्था पर अधिक तथा जीवन की अन्य विकास अवस्थाओं पर कम महत्त्व दिया जाता है। यद्यपि, ये अंतर सिर्फ़ थोड़े बहुत ही होते हैं और विषय का वास्तविक घटक समान रहता है।
मानव विकास और परिवार अध्ययन में रोज़गार विशेष रूप से उनके लिए उपयुक्त है जिनका रुझान पारस्परिक वैयक्तिक संबंधों को जानने में होता है और जो इन मुद्दों पर आसानी से बात कर सकते हैं। ईमानदार आत्म-अभिव्यक्ति सामान्यतः मानव विकास और परिवार अध्ययन में रोज़गार करिअर के लिए आवश्यक है। यह रोचक हो सकता है, क्योंकि इसमें आप अपने और अपने आस-पास स्थित दूसरों के बारे में अधिक जान पाते हैं।
यद्यपि मानव विकास और परिवार अध्ययन विषय आपको विभिन्न व्यक्तियों और समूहों के पूरे जीवनकाल अर्थात् बहुत छोटे बच्चों से लेकर वृद्धों तक के साथ कार्य करने की क्षमताओं को विकसित करने में सहायक होता है, लेकिन आप देखेंगे कि इस क्षेत्र में संगठन और कार्यक्रम विशिष्ट आयामों पर केंद्रित होते हैं। कुछ लोग आरंभिक बाल्यावस्था के बच्चों के साथ काम कर सकते हैं, जिससे उनके समग्र विकास
के लिए अनुकूल स्थितियाँ निर्मित हो सकें, कुछ लोग विशिष्ट आयु समूहों के व्यक्तियों को परामर्श सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं। कुछ लोग शिक्षा के क्षेत्र में संरचनात्मक पहल के लिए प्रयास कर सकते हैं। वास्तव में इस अध्याय में आगे हमने मानव विकास और परिवार अध्ययन के क्षेत्र में कार्य के मुख्य क्षेत्रों की पहचान की है और उसी के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से जानकारी प्रस्तुत की है - (1) प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ई. सी. सी. ई.), (2) बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के लिए सहायक सेवाओं, संस्थानों और कार्यक्रमों का प्रबंधन।
महत्त्व
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा मानव विकास के अध्ययन का एक बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। हमने पिछले वर्ष पढ़ा था कि किस प्रकार नन्हें शिशु बहुत छोटी उम्र से ही सीखना शुरू कर देते हैं। अपने आस-पास की दुनिया के बारे में नयी बातें सीखने के साथ ही छोटा बच्चा अपने परिवार के सदस्यों विशेषरूप से अपने माता-पिता और यदि कोई भाई-बहन हों तो उनके साथ लगाव विकसित करने लगता है। छोटा बच्चा परिवार के अन्य सदस्यों और उन लोगों को भी पहचानने लगता है, जिनसे वह नियमित रूप से मिलता है। इस प्रकार, बच्चा उन लोगों के बीच अंतर करना सीखता है जिन्हें वह पहचानता है और जो उसके लिए अपरिचित
होते हैं। यह पहचान उसके व्यवहार में तब अभिव्यक्त होती है। जब लगभग 8-12 माह का छोटा बच्चा, अनजान व्यक्ति के प्रति भय प्रदर्शित कर सकता है। यह भय महज़ भावनात्मक प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह परिचित चेहरों को पहचानने की क्षमता को दर्शाता है और इस प्रकार अपरिचित लोगों के प्रति भय को प्रदर्शित करता है। यही नहीं, बच्चा अपनी माँ से अत्यधिक लगाव रखता है, जो हमेशा नहीं लेकिन अधिकतर प्रमुख रूप से उसकी देखभाल करती है और उसके कमरे से बाहर जाने पर बच्चा रोना भी शुरू कर सकता है। लगभग एक वर्ष का छोटा बच्चा माँ अथवा देखभाल करने वाले दूसरे व्यक्ति से चिपका रहता है और हर जगह उसके पीछे जाता है। अधिकाँश मामलों में यह व्यवहार जल्दी ही छूट जाता है, क्योंकि बच्चे में यह समझने की क्षमता विकसित हो जाती है कि माँ के दूसरे कमरे में चले जाने पर वह लुप्त नहीं हो जाएगी। बच्चे में प्रमुख देखभाल कर्ता की अनुपस्थिति में भी सुरक्षा का बोध विकसित हो जाता है। बच्चा बहुत तेज़ी से बढ़ रहा होता है, वह चलना, ठीक से चीजों को पकड़ना और अनेक मुद्राओं में अपने शरीर को कई तरीकों से संतुलित रखना सीख रहा होता है। बच्चा मल और मूत्र विसर्जन पर नियंत्रण भी सीखता है।
अधिकांश मामलों में बच्चे कुछ वर्षों तक मात्र अपने परिवार में ही पलते हैं। कुछ मामलों में जहाँ माँ घर के बाहर काम करती हो, वहाँ बच्चे की देखभाल के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की आवश्यकता हो सकती है। सामान्यतया पारंपरिक रूप से बच्चे की देखभाल परिवार की अन्य ऐसी महिला पर होती थी जो स्थायी रूप से परिवार के साथ रहती थी जैसे कि संयुक्त परिवारों में अथवा बच्चे की देखभाल के लिए अस्थायी रूप से परिवार में रहती हैं। जबकि, आजकल संस्थागत शिशु देखभाल के प्रावधान की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। इसके लिए कोई अनौपचारिक पारिवारिक देखभाल की व्यवस्था हो सकती है जिसमें आस-पड़ोस की कोई महिला अपने घर में व्यवसाय के रूप में शिशु केंद्र (क्रेच) चला सकती है, अथवा यह कोई संस्थागत केंद्र हो सकता है, जहाँ बच्चों की देखभाल की जाती है। शिशु केंद्र को प्राथमिक देखभाल कर्ता के विकल्प के रूप में देखा जाता है। यद्यपि, इन्हें बच्चे के सीखने और विकास की बेहतरी के लिए आवश्यक अनुभव के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
क्रियाकलाप 1
पिछले वर्ष के पाठ्यक्रम को याद करके कुछ ऐसी बातों की सूची बनाइए जिनके बारे में आप समझते हैं कि बच्चे को पता होनी चाहिए कि कैसे करनी हैं अथवा कक्षा में प्रवेश से पहले जिन्हें करना आना चाहिए उदाहरण के लिए क्या बच्चा चल सकता है, बात कर सकता है अथवा पूरे वाक्य पढ़ सकता है? शिक्षक इन पर चर्चा करके सूची में जोड़/घटा कर सकते हैं।
आदर्श रूप से बच्चे के लगभग 3 वर्ष का हो जाने पर उसकी गतिविधियाँ और अनुभव बढ़ने लगते हैं। यद्यपि, बच्चे को औपचारिक विद्यालय में प्रवेश से पहले किस उम्र तक घर में रखना चाहिए, इस पर विशेषज्ञों की राय भिन्न है। यद्यपि बच्चा अब भी सिर्फ़ अनौपचारिक और छोटी सामूहिक गतिविधियों को ही कर पाता है, लेकिन फिर भी परिवार और निकट परिजनों के अलावा अन्य लोगों के साथ मेलजोल के अवसरों का भी अत्यधिक महत्त्व है। ये आरंभिक वर्ष बच्चे के लिए नयी चीजें सीखने, अपने परवेश का पता लगाने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। जब बच्चा चलना और दौड़ना, चीजों को उलटना-पलटना
और बोलना सीख लेता है तो वह परिवेश के साथ सक्रिय भागीदारी करने में सक्षम हो जाता है। अपने आसपास के लोगों और चीजों के साथ परस्पर व्यवहार से ही इस उम्र के बच्चे समस्त जानकारी एकत्रित करते हैं, जो वह कर सकते हैं। इस उम्र में मातृभाषा में शब्दज़ान तेज़ी से बढ़ता है और उसके साथ ही बच्चे की प्राकृतिक वस्तुओं जैसे - बालू, जल, पक्षियों मशीनों और अन्य सामग्रियों की समझ बढ़ती है। उनमें और अधिक जानने की जिज्ञासा प्रबल होती जाती है। कोई चीज़ देखने पर वो अकसर बड़ों से पूछते हैं कि ‘ऐसा क्यों हैं?’, इसलिए इस उम्र में सीखने के लिए अनुकूल परिवेश प्रदान करना और बच्चे पर उसकी सीखने की क्षमता से अधिक बोझ न डालने का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यदि हम बच्चे को एक जगह बैठाकर बड़े बच्चों के औपचारिक विद्यालय की भाँति पढ़ने को बाध्य करते हैं तो उसकी जिज्ञासा खत्म हो जाएगी और बच्चा बेचैन और असुरक्षित महसूस करेगा। इसलिए यह समझना अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि इस उम्र में बच्चे के लिए सीखने का सबसे अनुकूल परिवेश वह है जो सुरक्षित, निरापद, प्रेमपूर्ण, विविध प्रकार के व्यक्तियों और खेल सामग्रियों (खिलौने अथवा प्राकृतिक चीज़ों) से युक्त हो और वहाँ देखभाल करने वाले वयस्क जैसे - माँ, दादी, दादा अथवा विद्यालय पूर्व शिक्षक या भाई बहन उपस्थित हों।
किसी अच्छे विद्यालय पूर्व केंद्र की पढ़ाई और अन्य अनुभव इस उम्र के छोटे बच्चों के लिए अत्यधिक लाभदायक पाए गए हैं। बाल-केंद्रित उपागम और खेल-खेल में सीखने का तरीका जो पढ़ाई को रुचिकर बना देता है, छोटे बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त होता है। बच्चा, दूसरे बच्चों का साथ पसंद करता है, बहुत तेज़ी से काम करना सीखता है और अकसर अपने माता-पिता को भी चकित कर देता है। विद्यालय पूर्व केंद्र में अकसर छोटे बच्चों के अभिभावकों द्वारा आश्चर्य व्यक्त किया जाता है जब उन्हें पता चलता है कि उनका बच्चा अपने आप खाना खा लेता है और उन चीजों को भी खा लेता है जो वह घर में सामान्यत: नहीं खाता है। बच्चे साथियों के साथ बहुत जल्दी सीखते हैं और इसी कारण तथा कुछ अन्य कारणों से विद्यालय पूर्व अनुभव इस उम्र में महत्वपूर्ण होते हैं। यही नहीं, जो बच्चे कठिन परिस्थितियों में पलते हैं अथवा जिन्हें सीखने के लिए अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता होती है उनके लिए विद्यालय पूर्व परिवेश बहुत लाभदायक समझा जाता है।
क्या इसका यह अर्थ है कि जो बच्चे नर्सरी स्कूल में नहीं जाते वे नहीं सीखते हैं? ऐसा बिलकुल नहीं है। सभी बच्चे प्राकृतिक रूप से सीखते हैं। विद्यालय पूर्व केंद्र के अनुभव, बच्चे की अन्य वयस्कों तथा परिवेश और वस्तुओं से संबंधित जानकारी बढ़ाते हैं और उससे भी महत्वपूर्ण है छोटे बच्चों को विद्यालय में पढ़ने के लिए तैयार करना। विद्यालय पूर्व एक ऐसा कार्यक्रम है जो बाल-केंद्रित और अनौपचारिक होता है तथा बच्चे को सीखने का अनुकूल परिवेश प्रदान करता है, जो घर में सीखने के अच्छे परिवेश के लाभों का पूरक है। साथ ही ऐसी स्थितियों में जहाँ घर के परिवेश में कोई कमी हो, वहाँ विद्यालय पूर्व केंद्र बच्चे की घर के बाहर वृद्धि और विकास में सहायता करने में एक प्रमुख कारक हो सकता है।
अनेक समुदायों में विशेष रूप से सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले अथवा जिनके पास कम संसाधन होते हैं, वहाँ अपेक्षाकृत बड़े बच्चों को जो विद्यालय जाने की उम्र के होते हैं, अकसर छोटे बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी सौंप दी जाती है, क्योंकि माता-पिता काम के लिए बाहर जाते हैं। इस कारण बड़ा बच्चा विद्यालय नहीं जा पाता है। इसलिए छोटे बच्चों की संस्थागत देखभाल बड़े बच्चे के लिए भी लाभदायक होती है,
क्योंकि वह छोटे बच्चे की देखभाल से मुक्त होकर विद्यालय जा सकता/सकती है। इस प्रकार ये अगली पीढ़ी के बच्चों के भविष्य निर्माण और विकास के काम में समाज की सहायता करते हैं। प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा और देखभाल एक ऐसी गतिविधि है जो विभिन्न स्थितियों में बाल्यावस्था को लाभ पहुँचाने के साथ ही इन मूलभूत कामों में माता-पिता और समाज की सहायता करके परिवारों को भी लाभान्वित करती है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005 के प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा पर एन. सी. ई. आर. टी. द्वारा प्रकाशित पत्र के अनुसार प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा के मूल उद्देश्य निम्नलिखित हैं -
- बच्चे का समग्र विकास जिससे वह अपनी क्षमता पहचान सके
- विद्यालय के लिए तैयारी
- महिलाओं और बच्चों के लिए सहायक सेवाएँ प्रदान करना है
मूलभूत संकल्पनाएँ
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा से संबंधित कुछ प्रमुख संकल्पनाएँ हैं, जिनके बारे में आगे पढ़ने से पहले हमें समझ लेना चाहिए। प्रारंभिक बाल्यावस्था, जीवन की जन्म से लेकर आठ वर्ष की आयु तक की अवस्था है, जिसे सामान्यतया दो भागों में बाँटा जाता है, जन्म से लेकर 3 वर्ष तक तथा 3 से लेकर 8 वर्ष तक यह विभाजन इन दोनों अवस्थाओं में छोटे बच्चों में होने वाले विकासात्मक परिवर्तनों पर आधारित होता है। शैशवावस्था जन्म से लेकर एक वर्ष की आयु तक की अवधि है (कुछु विशेषज्ञ शैशवावस्था को 2 वर्ष तक मानते हैं), जिसमें बच्चा अपनी प्रत्येक ज़रूरत के लिए वयस्कों पर निर्भर करता है। यह अवधि वयस्कों, सामान्यत: माता या पिता अथवा प्रमुख देखभाल करने वाले किसी अन्य व्यक्ति पर अत्यधिक निर्भरता की अवधि होती है, जो दादी/नानी अथवा अन्य कोई सहायक हो सकता है। ऐसी स्थितियों में जब माँ घर से बाहर नौकरी करती हो, तो शिशु की देखभाल वैकल्पिक रूप से देखभाल करने वाले व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो परिवार का कोई सदस्य अथवा वेतन पर रखा गया कोई व्यक्ति हो सकता है। वैकल्पिक देखभाल की अवस्था घर में अथवा किसी संस्था अथवा शिशु केंद्र (र्रेच) में हो सकती है। शिशुकेंद्र एक संस्थागत व्यवस्था को दिया गया नाम है जिसे विशेषरूप से शिशुओं और छोटे बच्चों की घर में देखभाल करने वालों की अनुपस्थिति में देखभाल के लिए बनाया गया है। दूसरी तरफ़ (डे केयर सेंटर) दिन में देखभाल करने वाले केंद्र, बच्चों की विद्यालय पूर्व वर्षों में देखभाल करते हैं, इसमें शिशु एवं विद्यालय पूर्व के बच्चे शामिल हो सकते हैं और घर में प्रमुख देखभाल कर्ता की अनुपस्थिति में इनकी देखभाल की जाती है।
दिवस देखभाल केंद्र (डे केयर) और शिशु केंद्र (र्रेच) सामान्यतया पूरे दिन के कार्यक्रम होते हैं। इन कार्यक्रमों में शिक्षक और सहायकों को बहुत छोटे बच्चों की देखभाल, उनकी सुरक्षा, उनके खाने पीने, शौचालय आदतों, भाषा विकास, सामाजिक और भावनात्मक ज़रूतों को समझने और सिखाने के लिए विशेषरूप से प्रशिक्षित होना चाहिए। जिन शिक्षकों को तीन वर्ष से ऊपर के बच्चों की देखभाल करनी होती है, उन्हें भिन्न प्रकार के कौशलों की आवश्यकता होती है। दो से तीन वर्ष के बच्चों को कभी-कभी “टॉडलर" कहा जाता है। इस शब्द की व्युत्पत्ति इस उम्र के छोटे बच्चों की फुदक कर चलने की प्रवृत्ति से हुई है।
विद्यालय पूर्व बच्चा नाम इसलिए दिया गया है, क्योंकि वह बच्चा अब किसी ऐसे परिवेश में रहने के लिए तैयार होता है जो परिवार से बाहर का होता है। इस कार्यक्रम के लिए भी शिक्षक को विद्यालय पूर्व अथवा नर्सरी स्कूल शिक्षक के विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। छोटे बच्चों के लिए कुछ विद्यालय पूर्व, अकसर मॉन्टेसरी स्कूल कहलाते हैं। यह ऐसे विद्यालय हैं जो प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा के उन सिद्धांतों पर आधारित हैं, जिनकी रूपरेखा विख्यात शिक्षाविद् मारिया मॉन्टेसरी द्वारा बनाई गई है। यह बताना सही होगा कि भारत सरकार ने इस आयु समूह की आवश्यकताओं को आँगनबाड़ी द्वारा विद्यालय पूर्व शिक्षा देकर पूरा किया है जो इसकी समेकित बाल-विकास सेवाओं (आई.सी.डी.एस.) के अंतर्गत कार्य करती हैं। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों दोनों में आँगनवाड़ियाँ हैं।
इस क्षेत्र से संबंधित कुछ अन्य संकल्पनाएँ जिन्हें हमें जानना चाहिए, वह इस तथ्य को समझने से संबंधित हैं कि इस उम्र में बच्चों का अपने आस-पास की चीजों को समझने का बहुत भिन्न व्यवहार होता है। विकास मनोवैज्ञानिक पियाजे ने अपना जीवन यह समझने और समझाने के प्रयास में गुजार दिया कि छोटे बच्चों के दुनिया को समझने के तरीके भिन्न होते हैं जिसके कारण घटनाओं को अपने तरीके से समझने के लिए उन्हें अनुकूल परिवेश की आवश्यकता होती है। आपने बाल-विकास की इन विशेषताओं को पिछले वर्ष कक्षा XI में पढ़ा था। उन विवरणों को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है, जिससे आप छोटे बच्चों की देखभाल और शिक्षा के सिद्धांतों को ठीक से समझ सकें।
ध्यान रखने योग्य अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत, यह तथ्य है कि किसी भी संस्थान को उस जगह के सांस्कृतिक संदर्भ के महत्त्व को समझना चाहिए, जहाँ वह संचालन करता है और साथ ही उसे बच्चे के परिवार के सांस्कृतिक संदर्भ के प्रतिकूल नहीं, बल्कि उसके अनुकूल ही काम करना चाहिए। यद्यपि यह सभी आयु वर्गों के लिए सत्य है, लेकिन छोटे बच्चों के लिए यह अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि वे भिन्न परिप्रेक्यों और भिन्न वास्तविकताओं के बारे में उस तरीके से अंतर नहीं कर सकते हैं, जिस प्रकार अपेक्षाकृत बड़े बच्चे अथवा वयस्क कर सकते हैं। अत: हमें यह समझना होगा कि बच्चों के लिए शैक्षिक और देखभाल की व्यवस्थाओं में इन सिद्धांतों का पालन किया जाए।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा - 2005 (एन.सी.एफ़.) के ई. सी. सी. ई. पर प्रकाशन के अनुसार, ई. सी. सी. ई. के मार्गदर्शी सिद्धांत निम्नलिखित हैं -
- सीखने का आधार खेल हो
- शिक्षा का आधार कला हो
- बच्चों की विशिष्ट सोच-विशेषताओं को मान्यता देना
- विशेषज्ञता की बजाय अनुभव को प्रमुखता (अर्थात्- अनुभवजन्य अधिगम को महत्त्व दिया गया है)
- दैनिक नित्यचर्या में अच्छी जानकारी और चुनौतियों का अनुभव
- औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार की परस्पर बातचीत
- पाठविषयक और सांस्कृतिक स्रोतों का मेल
- स्थानीय सामग्रियों, कला और ज्ञान का उपयोग
- विकासात्मक रूप से उपयुक्त तरीके, लचीलापन तथा अनेकता, और
- स्वास्थ्य, कल्याण और स्वस्थ आदतें।
क्रियाकलाप 2
अपने बचपन की यादों को ध्यान करके कोई ऐसी कहानी लिखिए, जिसे सुनकर आपको बहुत मज़ा आया था। यह भी बताइए कि आपको कौन कहानी सुनाता था और कहानी में आपको क्या पसंद आया था, कहानी का कौन-सा पात्र आपको सबसे अधिक पसंद आया और क्यों ?
शिक्षक को कक्षा में सुनाने के लिए कुछ कहानियाँ चुन लेनी चाहिए, जिससे बच्चे एक दूसरे से सीख सकें तथा सामूहिक यादों और परस्पर बातचीत का मज़ा ले सकें। साथ ही इससे बच्चों को अन्य परिवारों, संस्कृतियों और समुदायों को समझने का अवसर भी मिलता है।
खेलते हुए बच्चे
चित्रकारी का मजजा लेते बच्चे
प्रकृति को समझते बच्चे
जीविका के लिए तैयारी करना
यह पहले बताया जा चुका है कि चूँकि 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों की दुनिया और सामाजिक संबंधों को समझने के विशिष्ट तरीके होते हैं, उनकी विकासात्मक ज़रूरतें भिन्न होती हैं, अत: बच्चों के लिए काम करने
वाले किसी वयस्क व्यक्ति का प्रारंभिक बाल्य विकास और देखभाल के क्षेत्र में सुप्रशिक्षित और सावधान होना आवश्यक है। हम यहाँ यह सोच सकते हैं कि जब युवा महिलाएँ और पुरुष माता-पिता बनते हैं तो उन्हें बच्चों की देखभाल के लिए किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती तो किसी शिक्षक अथवा देखभाल कर्ता को प्रशिक्षण की आवश्यकता क्यों होती है?
बच्चे जो क्रियाकलाप/गतिविधियाँ करते हैं, उन्हें कैसे और क्यों करते हैं, उसके बारे में अधिक जानने से माता-पिता के भी लाभान्वित होने के अनेक कारण हैं। माता-पिता को भी समान उम्र के बच्चों के बीच संभावित भिन्नताओं के बारे में अधिक जानने से बहुत लाभ होगा और वे यह भी समझ पाएँगे कि बच्चों में व्यक्तिगत भिन्नताएँ होती हैं। उन्हें यह भी समझना चाहिए कि अकसर विभिन्न बच्चों अथवा भाई-बहनों के बीच भी प्रतिस्पर्द्धी तुलना करने का कोई अर्थ नहीं है। अत: हमें यह समझना चाहिए कि वे सभी वयस्क जो बच्चों के संपर्क में रहते हैं, उन्हें निश्चित रूप से विकास और वृद्धि की वैज्ञानिक समझ से लाभ होगा जिससे हम बच्चों के साथ वास्तविक अपेक्षाएँ रख सकें और उनसे परस्पर बातचीत कर सकें।
बाल्यावस्था तथा विकासात्मक परिवर्तनों और चुनौतियों का प्रशिक्षण और जानकारी उन वयस्कों के लिए और भी अधिक महत्वपूर्ण हैं जो प्रारंभिक बाल्यावस्था कार्यक्रमों का चयन अपनी जीविका के लिए करते हैं। प्रारंभिक बाल-देखभाल व्यावसायिक अपने बच्चों के अतिरिक्त अन्य बच्चों के प्रति भी उत्तरदायी होते हैं। बाल-देखभाल व्यावसायिकों के रूप में किए जाने वाले क्रियाकलाप उनके काम के भाग होते हैं और उन्हें उसके लिए औपचारिक पहचान मिलती है। शिक्षक और देखभाल करने वालों पर उन बच्चों की देखभाल का दायित्व होता है जो उनकी संतान नहीं होते हैं और बच्चों के परिवार के सदस्यों के बड़े वयस्कजनों के समूह की भी उन पर ज़िम्मेदारी होती है, जिनकी वे देखभाल करते हैं और साथ ही वे जिस संस्थान में काम करते हैं उसकी और वृहतर समाज की भी ज़िम्मेदारी उन पर होती है। प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा व्यावसायिकों को बच्चों, उनके कल्याण और अधिगम के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए।
छोटे बच्चों के वयस्क शिक्षक/देखभालकर्ता से क्या अपेक्षा की जाती है? विद्यालय पूर्व के वर्षों में, शिक्षक को उपयुक्त सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिए, लेकिन विद्यालय पूर्व बच्चों की शारीरिक देखभाल जैसे- सफ़ाई, खान-पान, शौच आदि की निगरानी करने की कम आवश्यकता होती है, क्योंकि बच्चा बोलने, मल और मूत्र विसर्जन की गतिविधियों पर नियंत्रण और अपने स्वयं खा-पी लेने की क्षमता विकसित कर लेता है। शिक्षक को बच्चों को नयी चीज़ों को सीखने, प्राकृतिक घटनाओं का अनुभव करने और अनेक प्रकार के अनुभवों जैसे- शारीरिक, भाषायी, सामाजिक-भावनात्मक और अन्य अधिगम अनुभवों के दिलचस्प और रोमांचक अवसर प्रदान करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। इस समय उसकी रचनात्मक अभिव्यक्ति और खोज-बीन करने की प्रवृति को बढ़ावा दिया जाता है, यद्यपि ये बातें प्रारंभिक वर्षों में भी इतनी ही महत्वपूर्ण होती हैं।
हमें प्रमुख रूप से छोटे बच्चों को अवसर प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए क्योंकि बच्चों को वयस्कों के मार्गदर्शन की बहुत ज़रूरत होती है। यदि हम वयस्क होने के नाते अपनी सॄर्जनात्मकता को व्यक्त करना चाहते हैं तो हमें स्थितियों की व्यवस्था करने में सक्षम होना चाहिए। यदि हम किसी से बात करना चाहते हैं तो हम अपनी तरफ़ से पहल कर सकते हैं। बच्चों को विद्यालय पूर्व के वर्षों में इन कामों
के लिए वयस्कों की सहायता की आवश्यकता होती है। एक मनोवैज्ञानिक और शिक्षाविद् ‘व्यागोत्सकी’ ने इस बात को अत्यधिक आवश्यक बताया है कि बच्चों को उनका खयाल रखने वाले, देखभाल करने वाले और जानकार वयस्क की ज़रूरत होती है। विद्यालय पूर्व शिक्षक को बच्चों की क्षमताओं के बारे में दुनिया संबंधी जानकारी की अपेक्षा अधिक जानकारी होनी चाहिए। बच्चा वास्तव में क्या जानता है और कितना जानने/समझने की उसमें क्षमता है, यह जान लेने पर एक वयस्क ऐसा अनुकूल परिवेश प्रदान करने में सहायक हो सकता है जिसमें सीखना आसान, आनंददायक और अर्थपूर्ण हो सकता है। बच्चे को दिया गया काम न तो बहुत आसान और न ही बहुत कठिन होना चाहिए, अन्यथा बच्चे की या तो उसमें दिलचस्पी नहीं रहती है या वह कार्यकलाप करने के लिए प्रेरित नहीं होता।
कुछ कौशल जो प्रारंभिक बाल्यावस्था के व्यावसायिकों में होने चाहिए, वे इस प्रकार हैं-
- बच्चों और उनके विकास में रुचि
- छोटे बच्चों की आवश्यकताओं और क्षमताओं के बारे में जानकारी
- बच्चों से बातचीत (अंत: क्रिया) करने की क्षमता और प्रेरणा
- विकास के सभी क्षेत्रों में बच्चों के साथ रचनात्मक और रोचक गतिविधियों के लिए कौशल
- कहानी सुनाने, खोज-बीन करने, प्रकृति संबंधी और सामाजिक अंत:क्रिया जैसे कार्यकलायों के लिए उत्साह
- बच्चों की शंकाओं/प्रश्नों के उत्तर देने की इच्छा और रुचि
- व्यक्तिगत भिन्नताओं को समझने की क्षमता और
- काफ़ी लंबे समय तक शारीरिक गतिविधियों के लिए सक्रियता और उनके लिए तत्पर रहना।
इस क्षेत्र में जीविका (करिअर) की तैयारी करने वाले व्यक्ति के लिए बच्चों के विकास और देखभाल के मूलभूत सिद्धांतों के बारे में अध्ययन आवश्यक है। इसके पाठ्यक्रम के भाग के रूप में बाल/मानव विकास और/अथवा बाल-मनोविज्ञान जैसे विषय में स्नातक-पूर्व उपाधि होना आवश्यक है। तथापि, यदि शिक्षा पूर्ण करने के बाद ही इस क्षेत्र में आने की इच्छा हो तो इस क्षेत्र में एक वर्ष का डिप्लोमा अथवा मुक्त विश्वविद्यालय के शैक्षिक पाठ्यक्रमों का विकल्प भी है। नर्सरी अध्यापक प्रशिक्षण (नर्सरी टीचर ट्रेनिंग) एक अन्य ऐसा पाठ्यक्रम है जो इस क्षेत्र में प्रशिक्षण प्रदान करता है।
इन पाठ्यक्रमों को करने और उपाधियों को अर्जित करने के अतिरिक्त, यह याद रखना आवश्यक है कि यदि आप एक प्रभावी प्रारंभिक बाल्यावस्था विशेषज्ञ बनना चाहते हैं तो बच्चों के प्रति उदारता और उनसे बातचीत (अंत:क्रिया) करने के लिए रुझान होना एक मूलभूत आवश्यकता है। व्यक्ति को समुदाय और संस्कृति की भी जानकारी होनी चाहिए ताकि विद्यालयपूर्व केंद्र की गतिविधियाँ उस सांस्कृतिक और क्षेत्रीय पर्यावरण के अनुरूप हों जिसमें बच्चा पल-बढ़ रहा है। शिक्षक को उन प्रशासनिक और प्रबंधकीय कौशलों में भी सक्षम होना चाहिए जिनकी रिकॉर्ड रखने, लेखाकरण, रिपोर्ट लिखने आदि के लिए आवश्यकता होती है जिससे संस्थान उचित रिकॉर्ड रख सके और अभिभावकों के साथ संपर्क और अंत:क्रिया प्रभावी और अर्थपूर्ण हो सके।
शिक्षक में विविध कला कौशल होना भी अत्यधिक सहायक होता है। कहानी सुनाने, नृत्य, संगीत, आवाज़ में परिवर्तन करने तथा भीतरी और बाहरी खेल-पूर्व गतिविधियाँ आयोजित करने के कौशल बच्चों के लिए काम करने में अत्यधिक लाभदायक होते हैं। प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षुं के लिए ऐसे सत्रों का आयोजन किया जाता है, लेकिन व्यक्ति के लिए बच्चों के साथ अनेकों तरीकों से बात (अंतःक्रिया) करने की इच्छा रखना और उनमें पूरी तरह संलग्न होना भी महत्वपूर्ण है।
बड़े बच्चों और वयस्कों की तुलना में छोटे बच्चे कम समय तक ही ध्यान केंद्रित कर सकते हैं अतः कई गतिविधियों के लिए तैयार रहना ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि अपनी कार्ययोजना के अनुसार कार्यों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय इस दौरान बच्चों के प्रति अनुकूल और लचीला होना भी आवश्यक है। विद्यालय पूर्व शिक्षक को अकसर अपनी पाठ योजनाओं, अपनी कार्यनीतियों और तकनीकों को छोटे बच्चों की जरूरतों के अनुसार बदलना पड़ता है जिससे कि वह एक प्रभावी शिक्षक बन सके। इसके लिए बच्चों से संबंधित इस जीविका में प्रवेश करने से पहले गतिविधियों और कौशलों का खज़ाना तैयार कर लेना चाहिए।
कार्यक्षेत्र
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का कार्यक्षेत्र बहुत व्यापक है। छोटे बच्चों के शिक्षक अथवा देखभालकर्ता के रूप में प्रशिक्षित व्यक्ति या तो नर्सरी स्कूल के शिक्षक के रूप में कार्य कर सकते हैं अथवा शिशुकेंद्र (कैच) में देखभालकर्ता के रूप में अथवा छोटे बच्चों के कार्यक्रमों के लिए काम करने वाले दल के सदस्य के रूप में काम कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, अनेक सरकारी और गै-सरकारी संगठन छोटे बच्चों के लिए अभियानों अथवा सेवाओं की योजना बनाने और संवर्धन के लिए वेतन पर व्यावसायिकों की सेवाएँ लेते हैं। व्यक्ति, उद्यमी के रूप में अपना बाल-देखभाल केंद्र और शिक्षा-संबंधी कार्यक्रम प्रारंभ कर सकता है। जिसका अर्थ है आप घर पर ही अथवा किसी पृथक स्थान पर अपना कार्यक्रम चला सकते हैं। ऐसे उद्यम के लिए बाल देखभाल कार्यकर्ता और शिक्षक के रूप में प्रशिक्षण के अलावा ऐसे संस्थानों के संगठन और प्रबंधन से संबंधित विशेषज्ञा की भी आवश्यकता होती है। अपनी शिक्षा और रुचि के अनुसार, आप किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम में समन्वयक के रूप में अथवा इस विषय में शिक्षकों के प्रशिक्षक के रूप में भी काम कर सकते हैं। यदि आप उच्चतर शिक्षा अर्जित करना चाहते हैं तो आप प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा में स्नातकोत्तर अथवा डिग्री के लिए पंजीकरण करवा सकते हैं अथवा इस क्षेत्र में शोध (पीएच. डी.) कर सकते हैं जिसके लिए इस क्षेत्र में आपको और अधिक अनुसंधान करना होगा और इस क्षेत्र में व्यावसायिक के रूप में और अधिक उच्च गतिविधियाँ भी करनी होगीं।
इस क्षेत्र में उपलब्ध कुछ सामान्य सेवाएँ निम्न हैं -
- शिशु देखभाल केंद्र
- दिवस देखभाल केंद्र
- नर्सरी सकूल
- गै-सरकारी संगठन (एन. जी. ओ.)
- समेकित बाल-विकास सेवाएँ (आई.सी.डी.एस.) और
- प्रशिक्षण संस्थान
जीविका के अवसर
- नर्सरी स्कूलों में शिक्षक
- दिवस देखभाल केंद्रों और शिशु केंद्रों में देखभालकर्ता
- छोटे बच्चों के लिए कार्यक्रमों के दल के सदस्य
- सरकारी अथवा गैर-सरकारी संगठनों द्वारा बच्चों के लिए आयोजित अभियानों अथवा सेवाओं की योजना बनाने और संवर्धन करने के लिए व्यावसायिक
- बाल-संबंधी क्रियाकलापों में उद्यमी शिविर, शैक्षिक पिकनिक, क्रिया क्लब, विद्यालय पूर्व शिक्षा केंद्र और
- उच्च शिक्षा- प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा में स्नातकोत्तर डिप्लोमा अथवा डिग्री, बाद में इस क्षेत्र में अनुसंधान सहित पीएच.डी.।
क्रियाकलाप 3
अपने आस-पड़ोस में उपलब्ध विभिन्न प्रकार की बाल देखभाल सेवाओं के नाम बताइए।
ई.सी.सी.ई., बाल देखभाल, विद्यालय पूर्व शिक्षा, देखभालकर्ता, दिवस देखभाल केंद्र, शिशु देखभाल केंद्र|
पुनरवलोकन प्रश्न
1. प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा से आप क्या समझते हैं ?
2. देखभाल की वे कौन-सी विभिन्न व्यवस्थाएँ हैं जिनकी आवश्यकता छोटे बच्चों को हो सकती है?
3. किन कारणों से छोटे बच्चों को औपचारिक स्कूली शिक्षा से पहले विशेष अनौपचारिक कार्यक्रम की आवश्यकता होती है?
4. बाल-केंद्रित उपागम से क्या अभिप्राय है?
5. शिशु देखभाल केंद्र क्या होता है और यह केंद्र कौन-सी सेवाएँ प्रदान करता है ?
6. उन कौशलों को सूचीबद्ध कीजिए जो ई. सी. सी. ई. कार्यकर्ता में होने चाहिए।
7. हम ई. सी. सी. ई. में जीविका के लिए किस प्रकार तैयारी कर सकते हैं? वर्णन कीजिए।
प्रायोगिक कार्य - 1
विषयवस्तु — विद्यालय-पूर्व बच्चों के लिए क्रियाकलाप
कार्य- 1. खेल के मैदान अथवा बाहरी खुले क्षेत्र का भ्रमण
2. खेल सामग्री एकत्रित करना
उद्देश्य -
इस प्रयोगिक कार्य का उद्देश्य विद्यार्थी को छोटे बच्चों के साथ गतिविधियों की योजना बनाने और उसके लिए सामग्रियों की व्यवस्था करने के लिए तैयार करना है। इसमें विशेष रूप से स्थानीय रूप से उपलब्ध, सस्ती अथवा बिना लागत की सामग्रियों के प्रयोग पर महत्त्व दिया गया है।
प्रयोग कराना
1. कक्षा को पाँच-पाँच विद्यार्थियों के दो समूहों में बाँट लें। उन सभी को अपने विद्यालय के खेल-मैदान अथवा विद्यालय के बाहर किसी खुले क्षेत्र में भ्रमण के लिए ले जाएँ।
2. आस-पास देखिए और ऐसी वस्तुओं को एकत्रित कीजिए जो आप समझते हैं कि छोटे बच्चों के साथ खेलने के लिए साफ़, सुरक्षित और उपयुक्त हैं। कुछ सुझाव - पत्थर-कंकड़, फूल-पत्तियाँ, डंडियाँ आदि हैं।
3. सामग्री एकत्रित कर लेने के बाद उनको अच्छी तरह से साफ़ कर लें ताकि बच्चों के लिए उनका उपयोग किया जा सके।
4. प्रत्येक समूह को निम्न में से किसी एक अथवा अधिक संकल्पनाओं का प्रयोग करके बच्चों के लिए कोई एक क्रियाकलाप तैयार करना चाहिए -
- रंग
- संख्या
- सामग्री के प्रकार
- बुनावट
- आकृति
- आकार (साइजज)
उदाहरण 1 - विभिन्न आकृतियों और आकार की पत्तियाँ लेकर, एकत्रित पत्तियों को उनकी आकृति और आकार के आधार पर दो समूहों में व्यवस्थित कीजिए। उन पौधों अथवा वृक्षों को पहचानने की कोशिश कीजिए जिनसे इन पत्तियों को लिया गया है। अखबार के दो पन्ने लीजिए। दोनों समूहों की पत्तियों को इन पर चिपकाएँ। उन वृक्षों / पौधों के नामों की चर्चा कीजिए जिनसे पत्तियों को लिया गया है। अन्य सुझावपत्तियों के रंग की चर्चा करना, फूलों का मिलान करना या पौधों के नाम की चर्चा करना आदि।
उदाहरण 2 - उसी सामग्री का प्रयोग करके बच्चे (आपके मार्गदर्शन में) घर, विद्यालय अथवा वन का कोई प्राकृतिक दृश्य बना सकते हैं जिसमें कुछ भागों का चित्र बनाया जा सकता है और कुछ एकत्रित सामग्री को कागजज पर चिपका कर तैयार किया जा सकता है। ऐसा ही फ़र्श अथवा दीवार पर भी किया जा सकता है। यदि
कोई स्थानीय शिल्प अथवा कला हो जो उसी क्षेत्र की हो जिसमें बच्चे रहते हैं तो, उसको लोक गतिविधियों से जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए ताकि बच्चे के घर के माहौल को भी ध्यान में रखा जा सके।
उदाहरण 3 - बच्चों को, एकत्रित की गई पत्तियों के इर्द-गिर्द पशुओं, पक्षियों और कीड़े-मकौड़ों की तरह अभिनय करने के लिए कहा जा सकता है। इस तरह उनसे, उन जंतुओं पर चर्चा की जा सकती है जिन्हें, उन्होंने पत्ते खाते देखा है। जंतुओं की अन्य विशेषताओं पर भी चर्चा की जा सकती है।
ये सिर्फ़ कुछ उदाहरण हैं। कक्षा में शिक्षक वास्तव में उसी खेल सामग्री से बच्चों की दिलचस्पी के अनुसार अनेक क्रियाकलापों की योजना बना सकता है। कहानी सुनाना और भूमिका निर्वाह बच्चों लिए विशेष रूप से मनोरंजक होता है।
शिक्षक के लिए नोट- इस कार्य निर्धारण में बताए गए उद्देश्यों के आधार पर कुछ प्रायोगिक कार्य समझाए गए हैं। आप अपनी कक्षा को चार समूहों में बाँट सकते हैं ताकि सुझाए गए चारों प्रायोगिक कार्यों में से प्रत्येक विद्यार्थियों के समूह को एक प्रायोगिक कार्य करने के लिए दे सकें। अंत में वे अपनी सामग्रियों और अनुभवों का आपस में आदान-प्रदान कर सकते हैं।
कार्य — देसी सामग्रियों से छोटे बच्चों के लिए एक पहेली बनाइए।
उद्देश्य - खेल सामग्री विकसित और तैयार करने के लिए सीखने के अनुभव प्रदान करना - उदाहरण के लिए पहेली बनाना जिससे छोटे बच्चों के विकास को सुगम बनाया जा सके।
प्रयोग कराना
1. बच्चों से गत्ते के पुराने डिब्बे/पुरानी नोटबुक के कवर लाने के लिए कहें।
2. बच्चों से किसी जंतु जैसे - मछली/हाथी अथवा स्थानीय रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थ जैसे - केला आदि के दो एक चित्र बनाने के लिए कहें।
3. चित्र में चटकीले रंग भरें।
4. एक चित्र को नोटबुक के कवर/बॉक्स के अंदर की और चिपकाएँ।
5. दूसरे वैसे ही चित्र को दूसरे गत्ते पर चिपकाएँ।
6. जब चित्र सूख जाए तो उसे चार टुकड़ों में काट लें।
7. गत्ते के बक्से पर चिपके चित्र पर इन टुकड़ों को चिपकाइए।
8. पहेली तैयार है।
9. समाचार पत्रों अथवा पत्रिकाओं से लिए गए चित्रों से भी पहेलियाँ तैयार की जा सकती हैं। इन कटे हुए चित्रों और ड्रॉईंग का इस्तेमाल स्क्रैपबुक बनाने के लिए भी किया जा सकता है। मेरा परिवार, मेरा विद्यालय अथवा मेरा आस-पड़ोस या गाँव आदि कुछ विषयों पर स्क्रैप बुक बनाई जा सकती है। इसी प्रकार के कुछ अन्य क्रियाकलापों के लिए फलों, जंतुओं, घरेलू वस्तुओं, प्राकृतिक वस्तुओं के चित्रों का उपयोग किया जा सकता है।
प्रायोगिक कार्य - 3
विषयवस्तु — खेल सामग्रियाँ तैयार करना
कार्य- $\quad$ कठपुतलियाँ और मुखौटे बनाना
उद्देश्य — विद्यार्थियों को यह सीखना होगा कि बच्चों के लिए खेल सामग्री कैसे बनाई जाए। छोटे बच्चों को मुखौटों से खेलने और स्वयं चित्रकारी करके चीज़ों को बनाना अच्छा लगता है। जब कोई ऐसा क्रियाकलाप 4-6 वर्ष के बच्चों के साथ किया जाता है, तो उन्हें चीज़ बनाने में शामिल करना चाहिए। चीजेें बनाने के लिए सस्ती सामग्रियों का प्रयोग करना चाहिए। मुखौटों और कठपुतलियों का उपयोग भाषायी और सामाजिक भावनात्मक विकास को बढ़ावा देता है।
प्रयोग कराना
कोई कड़ा कागजज, समाचार पत्र, कपड़े की कतरनें, धागा, पत्तियाँ और फूल एकत्रित कीजिए (कागज़ को रंगने के लिए) कागज़ का टुकड़ा लीजिए और नीचे बताए गए अनुदेशों के अनुसार काम कीजिए -
1. उस कागज़ पर एक 10 वर्ष की आयु के बच्चे का चेहरा बनाइए। मुखौटे पर सूरज, फूल अथवा किसी जानवर की बाहरी रेखा बनाइए।
2. एक छोटा चेहरा बनाइए और कपड़े से बनाई गई भुजाओं, टाँगों और बालों को इस चेहरे से जोड़ दीजिए।
3. तैयार किए गए मुखौटों और कठपुतलियों का प्रयोग करते हुए, कोई कहानी सुनाइए अथवा किसी अंत:क्रियात्मक क्रियाकलाप के रूप में कोई भूमिका निर्वाह कीजिए।
4. विश्लेषण कीजिए कि ऐसे क्रियाकलाप से सभी बच्चे क्या सीख सकते हैं?
शिक्षक के लिए नोट- बच्चों के साथ अथवा उनके बिना, मुखौटे बनाने के काम का पर्यवेक्षण करें और अधिगम के परिणामों के बारे में चर्चा करें।