अध्याय 05 खाद्य गुणवत्ता और खाद्य सुरक्षा

प्रस्तावना

भोजन किसी जनसंख्या की स्वास्थ्य पोषक स्थिति और उत्पादकता का प्रमुख निर्धारक है। अत: यह आवश्यक है कि जो भोजन हम खाते हैं वह पौष्टिक और सुरक्षित होना चाहिए। असुरक्षित भोजन से बहुत से खाद्य-जनित रोग हो सकते हैं। आपने संदूषित और मिलावटी खाद्य पदार्थों से उत्पन्न होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में अखबारों में पढ़ा होगा। वैश्विक स्तर पर खाद्य-जनित रोग, सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी प्रमुख समस्या है। वर्ष 2005 में दस्त जैसे रोगों से 18 लाख लोगों की मृत्यु हुई। भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16 में बताया गया है कि 5 वर्ष के कम आयु वाले बच्चों में प्रतिवर्ष गंभीर दस्त के

9 लाख से अधिक मामले सामने आए हैं। खाद्य-जनित रोग न केवल मृत्यु के लिए उत्तरदायी हैं, बल्कि इनसे व्यापार और पर्यटन को भी क्षति पहुँचती है और इस कारण धनार्जन में हानि, बेरोज़गारी और मुकद्दमेबाज़ी बढ़ती है। अत: आर्थिक विकास में रुकावट आती है। इन कारणों से पूरे विश्व में खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता के महत्त्व में वृद्धि हुई।

महत्त्व

खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता घरेलू स्तर पर महत्वपूर्ण हैं, परंतु बड़े पैमाने पर खाद्य उत्पादन और संसाधन, यहाँ तक कि जहाँ ताजा भोजन बनाया और परोसा जाता है, वहाँ यह स्थिति गंभीर होती है। पुराने समय में बहुत से खाद्य पदार्थ घरेलू स्तर पर संसाधित किए जाते थे और उनकी शुद्धता चिंता का विषय नहीं होती थी। प्रौद्योगिकी और संसाधन में प्रगति, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि और बेहतर क्रय क्षमता के साथ-साथ उपभोक्ता की बढ़ती माँग के कारण खाद्य उत्पादों का बड़े पैमाने पर निर्माण हो रहा है जैसे-संसाधित खाद्य पदार्थ, स्वास्थ्य के लिए खाद्य/व्यावहारिक खाद्य पदार्थ। ऐसे खाद्य पदार्थों की सुरक्षा के आकलन की आवश्यकता होती है।

कच्चे और पकाए गए खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता का संबंध जन स्वास्थ्य से होता है और इस पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। पिछले दशक में, पूरे विश्व के साथ-साथ भारत में भी सुरक्षा चुनौतियाँ काफ़ी बदल गई हैं और खाद्य गुणवत्ता तथा खाद्य सुरक्षा से संबंधित मामलों को अत्यधिक महत्त्व मिला है। इसके लिए बहुत से कारण उत्तरदायी हैं, जैसे -

  • जीवन-शैली और खान-पान की आदतों के तेज़ी से बदलने के कारण अधिक संख्या में लोग घरों के बाहर खाने के लिए जाने लगे हैं। व्यावसायिक प्रयोजन के लिए जब खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में और कई घंटे पहले तैयार कर लिए जाते हैं, यदि उनका भंडारण सही तरीके से न किया जाए तो ये खराब हो सकते हैं।
  • संसाधित और पैक किए हुए खाद्य पदार्थ बहुत से हैं। इन खाद्य पदार्थों की सुरक्षा महत्त्व रखती है।
  • मिर्च-मसालों और तिलहनों को घरेलू स्तर पर संसाधित किया जाता था और इनकी शुद्धता की चिंता नहीं होती थी। आज पैक किए हुए विभिन्न मसालों, स्वादवर्धक मसालों, पिसे हुए मसालों और मसालों के मिश्रणों की माँग विशेषकर शहरों और बड़े नगरों में बहुत अधिक हो गई है। संसाधित खाद्यों के अतिरिक्त कच्चे खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता भी सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंध रखती है और उस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • भोजन की व्यवस्था के लिए बड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थों को अन्य स्थान पर पहुँचाना एक जटिल कार्य है और संसाधित तथा उपभोग के बीच एक लंबा अंतराल रहता है। अत: बड़ी मात्रा में उत्पादन और बड़ी मात्रा में वितरण के बीच का समय भी जोखिम आकलन और सुरक्षा प्रबंधन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
  • सूक्ष्मजैविक अनुकूलन, प्रतिजैविक प्रतिरोधकता, परिवर्तित मानवीय सुग्राहिता और अंतर्ताष्ट्रीय यात्राओं ने मिलकर खाद्य-जनित सूक्ष्मजैविक रोगों के मामलों में वृद्धि की है। आज हमें जितने भी खाद्य-जनित रोगाणुओं की जानकारी है उनमें से लगभग आधे खाद्य-जनित रोगाणुओं की खोज

पिछले 25-30 वर्षों में हुई है। अभी भी बहुत से ऐसे खाद्य-जनित रोग हैं जिनके कारणों की जानकारी अभी तक नहीं है। यह वैश्विक जन स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा है और रोगाणुओं को ढूँढ़ने, पहचानने और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय निगरानी की प्रणालियाँ स्थापित करने की आवश्यकता है।

  • भारत ने भी विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ) नि:शुल्क समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे सभी देशों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रवेश पाने और विश्व बाज़ार की अधिक उपलब्धता के अवसर मिले हैं। इस परिवेश में, यह आवश्यक हो गया है कि प्रत्येक देश खाद्य पदार्थों की सुरक्षा और गुणवत्ता को बनाए रखे और सुनिश्चित करे कि आयातित खाद्य पदार्थ अच्छी गुणवत्ता के हैं और खाने के लिए उपयुक्त हैं। देश में खाद्य उत्पादन को सुरक्षित रखने के साथ-साथ दूसरे देशों के साथ व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी खाद्य मानकों और नियंत्रणकारी प्रणालियों की आवश्यकता है। सभी खाद्य निर्माताओं के लिए आवश्यक है कि वे गुणवत्ता और सुरक्षा के लिए प्रस्तावित मानक बनाए रखें और अपने उत्पादों का नियमित रूप से परीक्षण कराते रहें।
  • वायुमंडल, मृदा और जल के प्रदूषण तथा कीटनाशकों के उपयोग से कृषि उत्पादों में इनके संदूषण का अंश आ जाता है। इसके अतिरिक्त, मिलाए जाने वाले पदार्थों जैसे - परिरक्षक, रंजक, सुगंधकारक, और अन्य पदार्थ जैसे स्थायीकारक, के कारण खाद्यों के विभिन्न अवयवों - पोषकों और संदूषकों का विश्लेषण करना अनिवार्य हो जाता है।

उपर्युक्त कारकों के कारण, आज के अत्यधिक गतिशील खाद्य व्यापार परिवेश में सुरक्षित, पौष्टिक और पोषक खाद्य पदार्थों की ओर ध्यान बढ़ रहा है, जिससे इस क्षेत्र में प्रसार की संभावनाएँ और जीविका के अवसर बढ़ गए हैं। इस क्षेत्र में विभिन्न जीविकाओं के विकल्प जानने से पहले यह बेहतर होगा कि हम खाद्य गुणवत्ता, खाद्य सुरक्षा, जोखिमों का आकलन, खाद्य मानकों और गुणवत्ता प्रबंधन-प्रणालियों की आधारभूत संकल्पनाओं को समझ लें।

मूलभूत संकल्पनाएँ

खाद्य सुरक्षा

खाद्य सुरक्षा का अर्थ है यह आश्वासन कि अपने इच्छित उपयोग के अनुसार भोजन, मानव उपभोग के लिए स्वीकार्य है। खाद्य सुरक्षा की समझ को दो अन्य संकल्पनाओं - आविषालुता और संकट को परिभाषित करके उन्नत किया जा सकता है।

आविषालुता — किसी पदार्थ की किसी प्रकार और किन्हीं परिस्थितियों में क्षति उत्पन्न करने की क्षमता होती है। खतरा वह सापेक्षिक संभावना है कि जब पदार्थ को किसी प्रस्तावित तरीके और मात्रा में प्रयुक्त न किया जाए तो उसके फलस्वरूप क्षति हो सकती है। संकट भौतिक, रासायनिक और जैविक हो सकता है जो उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है।

भौतिक संकट - कोई भी भौतिक पदार्थ हो सकता है, जो सामान्यत: खाद्य पदार्थों में नहीं पाया जाता है, जो रोग उत्पन्न कर सकता है अथवा आघात पहुँचा सकता है। इसमें सम्मिलित हैं, लकड़ी, पत्थर, कीट के अंश, बाल, इत्यादि (चित्र-6.1)।

चित्र 6.1 - खाद्य पदार्थों के भौतिक संकट

चित्र 6.2 -खाद्य पदार्थों में अदृश्य रासायनिक संकट

रासायनिक संकट वे रासायनिक अथवा हानिकारक पदार्थ होते हैं जो खाद्यों में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं अथवा खाद्यों में जाने या अनजाने मिला दिए जाते हैं। इस संकटदायी वर्ग में कीटनाशक, रासायनिक अवशेष, विषेली धातुएँ, पॉलिक्लोरीकृत बाईफिनाइल, परिरक्षक, खाद्य रंग और अन्य मिलावटी पदार्थ सम्मिलित हैं (चित्र 6.2)।

जैविक संकट में विभिन्न जीवधारी शामिल हैं, जिनमें सूक्ष्मजीवी जीव सम्मिलित हैं (चित्र 6.3 और 6.4)। ये सूक्ष्मजीव जो खाद्य से संबंधित होते हैं और रोग उत्पन्न करते हैं, खाद्य-जनित रोगाणु कहलाते हैं। सूक्ष्मजीवी रोगाणुओं से दो प्रकार के खाद्यजनित रोग उत्पन्न होते हैं - संक्रमण और विषाक्तता।

चित्र 6.3 - खाद्य पदार्थों में दिखाई देने वाले जैविक संकट

चित्र 6.4 - खाद्य पदार्थों में दिखाई न देने वाले सूक्ष्मजैविक संकट

खाद्य संक्रमण रोगाणु जीवों के शरीर में प्रवेश से उत्पन्न होता है, जो वहाँ पहुँच कर संख्या में बढ़ते हैं और रोग उत्पन्न करते हैं। साल्मोनेला इसका एक आदर्श उदाहरण है। यह जीव जंतुओं के आंत्र क्षेत्र में उपस्थित रहता है। कच्चा दूध और अंडे भी इसके स्रोत हैं। गर्म करने पर साल्मोनेला नष्ट हो जाता है, परंतु अपर्याप्त पाकक्रिया से कुछ जीव जीवित बचे रहते हैं। अकसर साल्मोनेला पारसंदूषण से फैलते हैं। यह ऐसे हो सकता है कि कोई रसोइया एक तख्ते पर कच्चा माँस/मुर्गा-मुर्गी के टुकड़े काटे और बिना तख्ते को साफ़ किए उस पर ऐसे खाद्य के टुकड़े काटे जिन्हें पकाने की आवश्यकता नहीं होती,जैसे -सलाद। साल्मोनेला बहुत तेज़ी से अपनी संख्या में वृद्धि करते हैं और प्रत्येक 20 मिनट में उनकी संख्या दुगुनी हो जाती है।

खाद्य विषाक्तता/आविषिता — खाद्य पदार्थ से रोगाणुओं के नष्ट हो जाने पर भी कुछ जीवाणु रह जाते हैं जो हानिकारक आविष उत्पन्न करते हैं। जीव तभी आविष उत्पन्न करते हैं जब खाद्य पदार्थ अधिक गरम या अधिक ठंडे नहीं होते। खाद्यों में आविष गंध, दिखावट अथवा स्वाद से नहीं पहचाने जा सकते। अतः ऐसे खाद्य पदार्थ जो गंध और रूप में ठीक लगते हैं, ज़ूरी नहीं कि सुरक्षित ही हों। ‘स्टैफ़लोकॉकस आरियस’ (Staphylococcus aureus) ऐसे ही जीवों का उदाहरण है। इस प्रकार के जीव वायु, धूल और जल में पाए जाते हैं। ये 50 प्रतिशत स्वस्थ व्यक्तियों के नासिका मार्ग, गले और त्वचा तथा बालों में पाए जाते हैं। विभिन्न परजीवी भी रोग का कारण हो सकते हैं, जैसे - सुअर के माँस में फ़ीताकृमि द्वारा संक्रमण। इसके अतिरिक्त खाद्य पदार्थ पीड़कों और कीटों द्वारा भी ग्रसित हो सकता है (चित्र 6.5)।

चित्र 6.5 - खाद्य पदार्थों का संक्रमण

खाद्यों से होने वाले विभिन्न खतरों के अंतर्तत, जैविक संकट खाद्य-जनित रोगों के प्रमुख कारण हैं। खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में सभी प्रयासों के बावजूद भी, जैविक खाद्य-जनित रोगाणु गंभीर चिंता का विषय हैं और नए रोगाणु निरंतर उत्पन्न होते रहते हैं।

रोगाणुओं के उत्पन्न होने के लिए जो कारक महत्वपूर्ण हैं उनमें सम्मलित हैं-मानव परपोषी, जंतु परपोषी और मानव एवं स्वयं रोगाणुओं के साथ उनकी पारस्परिक क्रियाएँ, पर्यावरण जिसमें भोजन का उत्पादन, संसाधन, भोजन पकाना, परोसना आदि क्रियाएँ और भंडारण होता है। उदाहरण के लिए कुपोषण,

आयु और अन्य परिस्थितियों के कारण परपोषी की संवेदनशीलता में परिवर्तन आने से सुभेद्द जनसंख्या में नए रोग लग सकते हैं। जीवों में आनुवंशिक विनिमय अथवा उत्परिर्वतन नए प्रभेद पैदा कर सकते हैं जिनमें रोग उत्पन्न करने की क्षमता होती हैं। खाने की आदतों में परिवर्तन, जलवायु, बड़ी मात्रा में उत्पादन, खाद्य संसाधन और खाद्य पूर्ति में वैश्विक वृद्धि के माध्यम से नए रोगाणुओं से संपर्क हो सकता है और इस प्रकार नयी जनसंख्या तथा नए भौगोलिक क्षेत्रों में रोगाणु पनप सकते हैं।

उदाहरण हैं- नोरोवायरस, रोटावायरस, हेपेटाइटस $E$ जिनका लगभग 70 प्रतिशत मामलों में योगदान रहता है। नए रोगाणु उत्पन्न होते रहेंगे और इसलिए उन्हें पहचानने, नियंत्रित करने और खाद्य पदार्थों में उनकी उपस्थिति पता लगाने के लिए विधियों को विकसित करने की आवश्यकता है।

खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में संदूषण और अपमिश्रण जैसे शब्दों को समझना महत्वपूर्ण है।

संदूषण- संसाधन अथवा भंडारण के समय/पहले/बाद में खाद्य पदार्थ में हानिकारक, अखाद्य अथवा आपत्तिजनक बाहरी पदार्थों जैसे -रसायन, सूक्ष्मजीव, तनुकारी पदार्थों की उपस्थिति संदूषण कहलाती है।

खाद्य अपमिश्रण — वह प्रक्रिया है जिसमें भोजन की गुणवत्ता या तो खराब गुणवत्ता वाली सामग्री के अतिरिक्त मिश्रण या मूल्यवान घटक के निष्कर्षण से कम हो जाती है। इसमें खाद्य पदार्थों के विकास, भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन और वितरण की अवधि के दौरान न केवल पदार्थों का जानबूझकर जोड़ या प्रतिस्थापन शामिल है बल्कि जैविक और रासायनिक संदूषण भी शामिल है, जो खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता में गिरावट के लिए भी ज़िम्मेदार है। मिलावट वे पदार्थ हैं जिनका उपयोग मानव उपभोग के लिए खाद्य उत्पादों को असुरक्षित बनाने के लिए किया जाता है।

खाद्य सुरक्षा को समझने के बाद, आइए अब गुणवत्ता की चर्चा करें।

खाद्य गुणवतत्ता — खाद्य गुणवत्ता उन गुणों की ओर संकेत है जो उपभोक्ताओं के लिए उत्पादों के गुणों को प्रभावित करती है। इसमें नकारात्मक गुण भी शामिल हैं, जैसे - सड़ना, संदूषण, अपमिश्रण, खाद्य सुरक्षा खतरे और साथ ही सकारात्मक गुण भी शामिल हैं, जैसे - रंग, सुगंध, बनावट। यह एक परिपूर्ण संकल्पना है जो पोषक विशेषताओं, संवेदनशील गुणों (रंग, बनावट, आकार, रूप/स्वाद, सुुचि, गंध) सामाजिक सोच विचार और सुरक्षा जैसे कारकों को जोड़ती है। सुरक्षा, गुणवत्ता का प्राथमिक और सबसे महत्वपूर्ण गुण है। पूरे विश्व में विभिन्न सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने खाद्य मानक तय किए हैं जो यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि खाद्य पदार्थ सुरक्षित हैं और अच्छी गुणवत्ता के हैं। निर्माता/सप्लायरों से इन मानकों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है।

अतः सभी खाद्य सेवा उपलब्ध कराने वालों (वे सभी सेवाएँ जो पूर्व तैयारी और पकाना/संसाधन, पैक करने और सेवा देने हेतु शामिल हैं) को चाहिए कि वे बेहतर निर्माण विधियों को अपनाएँ और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करें। ध्यान में रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें हैं -

1. कच्चे माल और जल की गुणवत्ता

2. परिसर, कर्मचारियों, उपकरणों, खाद्य निर्माण और भंडारण क्षेत्रों की स्वच्छता

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3. उपयुक्त ताप पर खाद्य का भंडारण

4. खाद्य स्वास्थ्य- विज्ञान

5. बेहतर सेवा के तरीके

क्रियाकलाप 1

5 ताज़े फल, 5 ताज़ी सब्जिजाया और एक तैयार खाद्य पदार्थ, जैसे - ब्रेड/चपाती/रोटी एकत्र कीजिए और दिए गए प्रारूप में गुणवत्ता संबंधित सूची बनाइए। इन्हें एक सप्ताह तक कमरे के ताप पर रखें, देखें और गुणवत्ता में होने वाले परिवर्तनों की एक सूची और चार्ट तैयार कीजिए -

खाद्य पदार्थ/उत्पाद का नाम ताज़ा भंडारण के समय
दूसरे या तीसरे दिन सातवें दिन
दिखावट
i) चमकीला/बिना चमक
ii) मुर्झाया हुआ ?
iii) फफूँदी लगा हुआ ?
बनावट
(दृढ़ता/कोमलता/नरम)
रंग
गंध

खाद्य मानक

खाद्य के प्रत्येक पहलू में एकीकृत गुणवत्ता लाने, स्वच्छ, पौष्टिक खाद्य की आपूर्ति सुनिश्चित करने के अतिरिक्त देश के भीतर और देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने के लिए प्रभावी खाद्य मानकों और नियंत्रण प्रणालियों की आवश्यकता होती है। मानकों के चार स्तर हैं जिनमें भली-भाँति समन्वय होते हैं।

a) कंपनी मानक-ये कंपनी द्वारा अपने स्वयं के उपयोग के लिए बनाए जाते हैं। सामान्यत: यह राष्ट्रीय मानकों की नकल होती है।

b) राष्ट्रीय मानक-ये राष्ट्रीय मानक संगठन द्वारा निकाले जाते हैं।

c) क्षेत्रीय मानक-समान भौगोलिक, जलवायु, इत्यादि वाले क्षेत्रीय समूहों के कानूनी मानकीकरण संगठन होते हैं।

d) अंतर्राष्ट्रीय मानक-अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आई. एस. ओ.) और कोडेक्स ऐलिमेन्टैरियस कमीशन (सी. ए. सी.) अंतर्राष्ट्रीय मानक प्रकाशित करते हैं।

भारत में खाद्य और मानक नियमन

स्वैच्छिक उत्पादन प्रमाणीकरण - कुछ स्वैच्छिक श्रेणीकरण और अंकन योजनाएँ है जैसे बी.आई.एस. का आई.एस.आई. मार्क और ऐगमार्क। भारतीय मानक ब्यूरो (बी.आई.एस.) विभिन्न उपभोक्ता सामग्री (जिसमें खाद्य उत्पाद भी सम्मिलित हैं) के मानकीकरण से संबंधित है और संसाधित खाद्य पदार्थों के लिए आई. एस. आई. नाम से जानी जाने वाली स्वैच्छिक प्रमाणीकरण योजना चलाता है। ऐगमार्क उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए कृषि उत्पादों (कच्चे और संसाधित) के लिए प्रमाणीकरण की एक स्वैच्छिक योजना है। क्योंकि सरकार के बहुत से नियमन और नियम हैं, खाद्य उद्योग को इनका पालन करना बहुत पेचीदा लगने लगे। अत: इस बात की आवश्यकता महसूस की गई है कि खाद्य की गुणवत्ता के नियमन के लिए इन सभी नियमों का एकीकरण कर दिया जाए। इस दृष्टिकोण से, भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (एफ़. एस. एस. ए), 2006 पारित कर दिया।

खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 - इस अधिनियम का उद्देश्य खाद्य से संबंधित नियमों को समेकित करना है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफ.एस.एस.ए.आई.) की स्थापना खाद्य सुरक्षा और मानक, 2006 के तहत की गई है, जो विभिन्न कार्यों और आदेशों को समेकित करता है। इसमें विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में भोजन से संबंधित मुद्दों को नियंत्रित किया जाता है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकार की स्थापना खाद्य के लिए विज्ञान-आधारित मानक निर्धारित करने और उनके निर्माण, भंडारण, वितरण, विक्रय और आयात के नियमन के लिए की गई थी, ताकि मानव उपयोग के लिए सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सके। अधिनियम में निर्माण परिसर और उसके चारों ओर स्वास्थ्यजनक परिस्थितियाँ बनाए रखने, वैज्ञानिक तरीके से मानव स्वास्थ्य के खतरों के कारकों का आकलन और प्रबंधन का प्रावधान है, जो पी. एफ़. ए. में स्पष्ट नहीं थे। एफ़. एस. एस. ए., खाद्य नियमों के संघटकीय मानकों या ऊर्ध्वाधर मानकों सुरक्षा या क्षैतिज मानकों में अंतर्राष्ट्रीय बदलाव को प्रतिबिंबित करता है।

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफ.एस.एस.ए.आई.) को निम्नलिखित कार्य करने के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 द्वारा अनिवार्य किया गया है-

  • भोजन के लेखों के संबंध में मानकों और दिशानिर्देशों को निर्धारित करने के लिए विनियमों का निर्धारण और इस प्रकार अधिसूचित विभिन्न मानकों को लागू करने की उपयुक्त प्रणाली को निर्दिष्ट करना।
  • खाद्य व्यवसायों के लिए खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली के प्रमाणन में लगे प्रमाणीकरण निकायों की मान्यता के लिए तंत्र और दिशानिर्देशों को रखना।
  • प्रयोगशालाओं की मान्यता और मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं की अधिसूचना के लिए प्रक्रिया और दिशानिर्देशों को रखना।
  • खाद्य सुरक्षा और पोषण का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित क्षेत्रों में नीति और नियमों को तैयार करने के मामलों में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को वैज्ञानिक सलाह और तकनीकी सहायता प्रदान करना।
  • खाद्य पदार्थों की खपत, घटनाओं और जैविक जोखिम के प्रसार, भोजन में प्रदषण, विभिन्न प्रकार के अवशेष, खाद्य पदार्थों के उत्पादों में दूषित पदार्थ, उभरते जोखिमों की पहचान और तेज़ी से सतर्क प्रणाली की शुरुआत के बारे में डेटा एकत्र करना।
  • देश भर में एक सूचना नेटवर्क बनाना ताकि जनता, उपभोक्ताओं, पंचायतों आदि को खाद्य सुरक्षा और चिंता के मुद्दों के बारे में तेज़ी से, विश्वसनीय और उद्देश्यपूर्ण जानकारी प्राप्त हो।
  • उन लोगों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करना जो खाद्य व्यवसायों में शामिल हैं या शामिल होने का इरादा रखते हैं।
  • भोजन, स्वच्छता और फाइटो-सैनिटरी मानकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी मानकों के विकास में योगदान करना।
  • खाद्य सुरक्षा और खाद्य मानकों के बारे में सामान्य जागरूकता को बढ़ावा देना। अधिक जानकारी के लिए देखें-https://fssai.gov.in

खाद्य मानकों, गुणवत्ता, शोध और व्यापार से संबद्ध अंतर्राष्ट्रीय संस्थान और समझौते

भोजन में मिलावट रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम (PFA, 1954) 1954 में अधिनियमित किया गया था। अधिनियम में आवश्यकता के अनुसार कई बार (200 से अधिक संशोधन) संशोधन किया गया है। पी.एफ.ए. के अलावा, अन्य आदेश या अधिनियम हैं जो विशिष्ट खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में मदद करते हैं जैसे कि—

1. फल और सब्जी उत्पाद आदेश- इसके अंतर्गत फल के लिए विनिर्देशों और सब्जी उत्पाद आते हैं।

2. मांस खाद्य उत्पाद आदेश- इस आदेश के तहत माँस उत्पादों का प्रसंस्करण लाइसेंस आता है।

3. वनस्पति तेल उत्पाद आदेश— इसमें वनस्पति, मार्जरीन के लिए विनिर्देश और शोर्टिंस्स आते हैं। ऐसे सभी कृत्यों को एफ.एस.एस.ए. के तहत समेकित किया गया है।

एफ.एस.एस.ए. के तहत निर्धारित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सभी खाद्य उत्पाद भारत में निर्मित होते हैं, या भारत में आयात और बेचे जाते हैं।

प्राचीन काल से ही पूरे विश्व में उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा और खाद्य पदार्थों के विक्रय के कपट पूर्ण तरीकों को रोकने के लिए सरकारी प्राधिकारणों द्वारा खाद्य मानकों को विकसित करने और लागू करने के प्रयास किए जाते रहे हैं। बहुत से अंतर्राष्ट्रीय संस्थान और समझौते हैं जिन्होंने खाद्य सुरक्षा, गुणवत्ता और बचाव को बढ़ावे, शोध और व्यापार को सुसाध्य करने में (सी.ए.सी.) महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रमुख भूमिका निभाने वाले मुख्य संस्थान हैं -

1. कोडेक्स ऐलिमेन्टैरियस कमीशन (सी.ए.सी.)

2. अंतर्राष्ट्रीय मानक संस्थान

3. विश्व व्यापार संगठन

4. कोडेक्स ऐलिमेन्टैरियस कमीशन (सी. ए. सी.)

सी. ए. सी. एक अंर्तसरकारी संस्था है, जिसे उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य मानक, सुरक्षा और खाद्य तथा कृषि व्यापार को सुसाध्य बनाने के लिए स्थापित किया गया। 1999 में अंतर्राष्ट्रीय सदस्यों की संख्या क्रमश: 166 सदस्य देश और एक सदस्य संगठन (यूरोपियन समुदाय) की थी। भारत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से इसका एक सदस्य है। सी. ए. सी. खाद्य मानकों से संबंधित विकास कार्यों के लिए एक मात्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ केंद्र है जिसका अर्थ ‘खाद्य नियमावली’ है और यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनाए गए खाद्य मानकों का एक संग्रह है। सी. ए. सी. द्वारा प्रकाशित प्रलेख कोडेक्स ऐलिमेन्टैरियस है। इस प्रलेख में उपभोक्ताओं के बचाव और खाद्य व्यापार में निष्कपट पद्धतियों को सुनिश्चित करने के लिए मानक, पद्धति की नियमावली, मार्गदर्शन और अन्य अनुशंसाएँ सम्मिलित हैं। विभिन्न देश अपने राष्ट्रीय मानकों के विकास के लिए कोडेक्स मानकों का उपयोग करते हैं।

2. अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आई. एस. ओ.)

अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आई. एस. ओ.) राष्ट्रीय मानक संस्थाओं (आई. एस. ओ. सदस्य संस्थाएँ) का विश्वव्यापी गैर-सरकारी संघ है। आई. एस.ओ. का मिशन वस्तुओं के अंतर्राष्ट्रीय विनिमय को सुसाध्य बनाने और बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक, प्रौद्योगिक और आर्थिक गतिविधयों के क्षेत्रों में सहयोग विकसित करने के दृष्टिकोण से विश्व में मानकीकरण और संबंधित गतिविधियों के विकास को प्रोत्साहन देना है। आई. एस. ओ. द्वारा किया गया कार्य अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में परिणित हो जाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय मानकों के रूप में प्रकाशित होते हैं।

आई. एस. ओ. 9000 गुणवत्ता आवश्यकताओं का एक अंतर्राष्ट्रीय संकेत चिह्न है। यह किसी संस्थान के “गुणवत्ता प्रबंधन” से संबंधित होता है। इन मानकों को अपनाना स्वैच्छिक होता है। कोडेक्स और आई. एस. ओ. में अंतर निम्नलिखित बॉक्स में दिए गए हैं -

कोडेक्स और आई. एस. ओ. में अंतर

कोडेक्स आई. एस. ओ.
- राष्ट्रीय नियमनों के विकास के लिए - स्वैच्छिक
उपयोग में लाया जाता है। - प्रत्येक पाँच वर्ष बाद मानकों का
परिवर्तन बहुत धीमे होते हैं। पुनरवलोकन होता है।
- अल्पमत स्वीकृत पद्धतियों का वर्णन -वर्तमान मानक औद्योगिक
करता है।
पद्धतियों का वर्णन करता है।

अधिक जानकारी के लिए देखिए

3. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी. ओ.)

विश्व व्यापार संगठन की स्थापना वर्ष 1955 में हुई थी। डब्ल्यू. टी. ओ. का मुख्य उद्देश्य व्यापार के समझौतों को लागू करके, व्यापार के झगड़ों को निपटाकर, देशों की व्यापार नीति के मुद्दों में सहायता करके

सहजता पूर्वक, स्वतंत्रता पूर्वक, निष्कपटता पूर्वक और पूर्वानुमान के साथ व्यापार को चलाने में सहायता करना है। डबल्यू. टी. ओ. समझौते में वस्तुएँ, सेवाएँ और बौद्धिक संपदा शामिल हैं।

मानकों को अपनाने और लागू करने पर ज़ोर देने के लिए एक सुदृढ़ खाद्य नियंत्रण तंत्र की आवश्यकता है। एक प्रभावी खाद्य नियंत्रण प्रणाली में ये अवश्य शामिल होने चाहिए- (i) खाद्य निरीक्षण और (ii) विश्लेषणात्मक क्षमता।

खाद्य निरीक्षण — उत्पादों की मानकों के साथ समनुरूपता को निरीक्षण द्वारा सत्यापित किया जाता है। इससे सुनिश्चित होगा कि सभी खाद्य पदार्थों का उत्पादन, हस्तन, संसाधन, भंडारण और वितरण नियमनों और कानून के अनुपालन के साथ होता है। सरकार/नगर परिषदों के प्राधिकारी खाद्य निरीक्षकों की नियुक्ति करते हैं जो अपनी प्रयोगशालाओं के मानकों के साथ गुणवत्ता समनुरूपता की स्थिति का निर्धारण करते हैं। विश्लेषणात्मक क्षमता — खाद्यों के विश्लेषण के लिए हर प्रकार से सुसज्जित और सरकारी मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त भली-भाँति प्रशिक्षित कर्मचारियों की भी आवश्यकता होती है, जिन्हें प्रयोगशाला प्रबंधन के सिद्धांतों और भौतिक, रासायनिक तथा सूक्ष्मजैविक विश्लेषण, खाद्य और खाद्य उत्पादों के परीक्षणों का ज्ञान होना चाहिए। खाद्य संदूषण, पर्यावरणीय रसायनों, जैव आविषों, रोगजनक जीवाणु, खाद्य जनित जीवाणुओं और परपोषियों का पता लगाने की विश्लेषण क्षमताओं की आवश्यकता होती है।

खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणालियाँ

वर्षों से खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता के मुद्दे मात्र खाद्य-जनित रोगाणुओं, रासायनिक आविषों और अन्य खतरों से आगे जा चुके हैं। खाद्य संकट आहार शृंखला के किसी भी चरण में, उसमें प्रवेश कर सकता है, अतःसंपूर्ण आहार शृंखला के अंतर्गत पर्याप्त नियंत्रण आवश्यक है। खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता निम्नलिखित के माध्यम से सुनिश्चित की जाती है -

  • उत्तम निर्माण पद्धतियाँ (जी. एम. पी.)
  • उत्तम हस्तन पद्धतियाँ (जी. एच. पी.)
  • संकट विश्लेषण क्रांतिक नियंत्रण बिंदु (एच. ए. सी. सी. पी.)

उत्तम निर्माण पद्धतियाँ (जी. एम. पी.) — उत्तम निर्माण पद्धतियाँ गुणवत्ता आश्वासन का एक भाग हैं, जो यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि निर्माता/संसाधक यह सुनिश्चित करने के लिए पहले से ही उपाय करें कि उनके उत्पाद सुरक्षित हैं। इससे संदूषण को कम करने या दूर करने और गलत लेबल लगाने से बचने में मदद मिलती है। इससे उपभोक्ता को उन उत्पादों, “जो हानिकारक नहीं हैं" खरीदने से गुमराह होने से बचाया जा सकता है। निर्माताओं/उत्पादकों द्वारा अनुपालन और निष्पादन करने में सहायता करने हेतु जी. एम. पी. एक अच्छा व्यावसायिक माध्यम है।

उत्तम हस्तन पद्धतियाँ — यह एक ऐसा व्यापक अभिगम है जो खेत से भंडार अथवा उपभोक्ता तक के जोखिमों के संभावित स्रोतों की पहचान करता है और बताता है कि संदूषण के खतरे को कम करने के लिए क्या कदम उठाने होंगे और क्या विधियाँ अपनानी होंगी। उत्तम हस्तन यह सुनिश्चित करता है कि खाद्य पदार्थों का हस्तन करने वाले सभी व्यक्तियों की स्वास्थ्य संबंधी आदतें अच्छी हैं।

संकट विश्लेषण संकटपूर्ण महत्वपूर्ण नियंत्रित बिंदु (एच. ए. सी. सी. पी.)

एच. ए. सी. सी. पी. खाद्य की सुरक्षा का आश्वासन देने का एक साधन है। एच. ए. सी. सी. पी. खाद्य निर्माण और भंडारण के लिए एक उपागम है, जिसमें कच्ची सामग्री और एक विशेष प्रक्रम के प्रत्येक चरण पर विस्तार से ध्यान दिया जाता है, जिससे कि रोगजनक सूक्ष्मजीवों अथवा अन्य खाद्य संकटों के विकास में योगदान के लिए उसकी क्षमता का आकलन किया जा सके। इसमें सम्मिलित हैं- संकटों की पहचान, कच्ची सामग्री एकत्र करना, निर्माण, वितरण, खाद्य उत्पादों का उपयोग, आहार भृंखला के प्रत्येक चरण के समय होने वाले संकटों की संभावनाओं का आकलन और संकटों के नियंत्रण के लिए उपाय बताना।

क्रियाकलाप 2

निकटवर्ती भोजनालय/केंटीन/ढाबे/सड़क पर भोजन बेचने वाले स्थल पर जाएँ और निम्नलिखित बातें देखें

  • वह क्षेत्र जहाँ भोजन बनता और परोसा जाता है,
  • भोजन कैसे बनाया और भंडारित किया जाता है,?
  • भोजन कैसे परोसा जाता है,
  • भोजन परोसे जाने वाला स्थल,
  • बर्तन आदि धोने वाला स्थल,
  • इकाई के आस-पास का क्षेत्र,
  • खाने की पूर्व तैयारी से परोसने तक भोजन का काम करने में लगे सभी लोग।

स्वच्छता और स्वस्थता पर टिप्पणी कीजिए और सुधार के लिए सुझाव दीजिए। आई. सी. टी. (सूचना संप्रेषण प्रौद्योगिकी) का उपयोग करके खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य पर एक पुस्तिका (Pamphlet) तैयार कीजिए।

एच. ए. सी. सी. पी. को क्यों लागू करें?

  • यह खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने का उपागम है।
  • प्रत्येक तैयार उत्पाद का निरीक्षण और परीक्षण यद्यपि महत्वपूर्ण है, लेकिन यह अधिक समय लगाने वाला और महँगा है तथा समस्याएँ तभी इसकी पकड़ में आती हैं, जब वे उत्पन्न हो जाती हैं। इसके विपरीत, एच. ए. सी. सी. पी. अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए संसाधन या निर्माण के किसी भी स्तर पर जब समस्या उत्पन्न होती है तभी उचित कार्रवाई करके हमें खतरों की पहचान करने के लिए सक्षम बनाती है।
  • यह खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए उत्पादकों, संसाधकों, वितरकों और निर्यात करने वालों को संसाधनों का उपयोग प्रभावशाली तरीके से करने के लिए सक्षम बनाती है।
  • एफ. एस. एस. ए., 2006 एच. ए. सी. सी. पी, जी. एम. पी और जी. एच. पी. के माध्यम से खाद्य सुरक्षा का प्राथमिक उत्तरदायित्व उत्पादकों और आपूर्ति करने वालों पर प्रभाव डालता है। यह उपभोक्ता संरक्षण और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है।
  • यह नियमित रूप से उत्तम गुणवत्ता वाले उत्पादों का आश्वासन देता है।

कार्यक्षेत्र

भारत खाद्य संसाधन के क्षेत्र में उन्नति कर रहा है। भारत में खाद्य उद्योग समग्र घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) में 26 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है और आने वाले वर्षों में विकास का एक प्रमुख क्षेत्र होगा। इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन मिला है, परंतु इसके साथ ही स्वच्छता और पादप-स्वच्छता संरक्षण के संदर्भ में कहें तो उपयुक्त सुरक्षा स्तर प्राप्त करने का उत्तरदायित्व भी बढ़ गया है। इसके अलावा, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 खाद्य कानून में प्रमुख बदलाव प्रतिबिंबित करता है और आहार शृंखला के सभी स्तरों पर खाद्य की सुरक्षा और पौष्टिकता को सुनिश्चित करके अधिक उपभोक्ता संरक्षण देने का प्रयत्न करता है। इसके परिवर्तित हो रहे परिदृश्य ने इस क्षेत्र में कार्य अवसरों को बढ़ा दिया है और जीविका के विकल्पों/अवसरों में वृद्धि की है।

जो व्यावसायिक इस क्षेत्र को अपनी जीविका का साधन बनाना चाहते हैं, उन्हें खाद्य रसायन, खाद्य संसाधन और संरक्षण, खाद्य विश्लेषण और गुणवत्ता नियंत्रण में पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। यह भी वाँछनीय है कि वे खाद्य सूक्ष्मजैविकी, खाद्य कानून और संवेदी मूल्यांकन में भी निपुण हों। व्यावसायिकों को सुव्यवस्थित स्वास्थ्य एजेंसियों में खाद्य विधिकर्ता, खाद्य सुरक्षा अधिकारी (निरीक्षक), खाद्य विश्लेषण/सार्वजनिक विश्लेषक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। व्यावसायिक स्वैच्छिक एजेंसियों जैसे - ऐगमार्क, बी. आई. एस. और गुणवत्ता नियंत्रक प्रयोगशालाओं में भी कार्य कर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त कर, खाद्य लेखा परीक्षक के रूप में कार्य कर सकता है। इसके अलावा बड़े खाद्य उद्योग, वायुयानों के रसोईघरों में उनकी अपनी गुणवत्ता नियंत्रण इकाइयाँ होती हैं जिनमें प्रशिक्षित व्यावसायिकों की आवश्यकता होती है। खाद्य उद्योग में अनेक अवसर उपलब्ध हैं, जैसा चित्र 6.6 में दिखाया गया है-

चित्र 6.6 - खाद्य उद्योग में रोजजगार के अवसर

स्व: रोज़गार और उद्यमशीलता — कोई भी व्यक्ति विश्लेषणात्मक खाद्य प्रयोगशाला, खाद्य सुरक्षा परामर्श केंद्र और खाद्य सुरक्षा तथा स्वच्छता शिक्षा के माध्यम से उद्यमशील गतिविधियाँ प्रारंभ कर सकता है।

नियामक और स्वास्थ्य एजेंसियों दोनों में विभिन्न स्तरों पर नियुक्तियों के अवसर उभर कर आ रहे हैं। गृह-विज्ञान पाठ्यचर्या विशेषकर खाद्य विज्ञान और पोषण के विषय क्षेत्र में एकीकृत पहुँच सुरक्षा और गुणवत्ता में सुधार के लिए ज्ञान देती है। ये पाठ्यक्रम खाद्य सुरक्षा खतरों को समझने और उनके प्रबंधन के लिए आवश्यक कौशल विकसित करने के योग्य बनाते हैं।

जीविकाओं के अवसर -

  • खाद्य उद्योग की गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं में विश्लेषक अथवा प्रबंधक स्तर पर
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं में खाद्य निरीक्षकों, खाद्य परीक्षण सहित विभिन्न पद
  • एच. ए. सी. सी. पी. में विशेषज्ञ
  • लेखा परीक्षक
  • गुणवत्ता प्रमाणीकरण जैसे — आई. एस. ओ.
  • शिक्षण और शैक्षिक क्षेत्र
  • शोध
  • वैज्ञानिक लेखक
  • स्वैच्छिक संगठनों में विभिन्न पदों पर
प्रमुख शब्द

खाद्यजनित रोग, खाद्य विषाक्तता, खाद्य गुणवत्ता, खाद्य सुरक्षा, संकट, खाद्य संदूषण, खाद्य मानक, खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम।

पुनरवलोकन प्रश्न

1. खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता एक वैश्विक मुद्दा क्यों हैं? स्पष्ट रूप से समझाइए।

2. इन शब्दों को समझाइए — खाद्य संकट, खाद्य आविषालुता, संदूषण, खाद्य गुणवत्ता, अपमिश्रण।

3. कोडेक्स ऐलिमेन्टैरियस क्या है?

4. एच. ए. सी. सी. पी. के महत्त्व की विवेचना कीजिए।

5. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य मानकों की सूची बनाइए।

विषयवस्तु — खाद्य अपमिश्रण का परीक्षण

कार्य- 1. स्थानीय दुकानों पर जाएँ और कच्चे और पकाए हुए दोनों प्रकार के विभिन्न खाद्य पदार्थ इकट्ठा कीजिए।

2. अपमिश्रण पदार्थों की उपस्थिति के लिए खाद्य पदार्थों का परीक्षण

3. प्रेक्षणों को रिकॉर्ड करना

उद्देश्य

यह प्रयोग विद्यार्थियों को खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण की पहचान के तरीकों से परिचित कराएगा और वे खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा के महत्त्व को समझ सकेंगे ।

प्रयोग कराना

1. कक्षा को तीन समूहों में विभाजित कीजिए।

2. निम्नलिखित प्रकार से प्रत्येक समूह खाद्य पदार्थों के नमूने लाएगा -

  • समूह A - कच्चे खाद्य जैसे — चावल, गेहूँ, दालें, मसाले-सरसों के बीज, धनिए के बीज, जीरा और चाय की पत्ती (नोट - प्रत्येक के 100 ग्राम के दो-दो नमूने दो अलग-अलग दुकानों से लें। जहाँ तक संभव हो खुली मिलने वाली, बिना पैक की हुई वस्तुएँ न लें)
  • समूह B - अल्पाहार की सामग्री जैसे — पकौड़े, इडली, समोसे या अन्य कोई वस्तु जो स्थानीय रूप से उपलब्ध हो सड़क के किनारे बेचने वाले दो या तीन विक्रेताओं से लाएगा।
  • समूह $\mathrm{C}$ - मिली-जुली मिठाइयाँ। भारतीय मिठाइयाँ अलग-अलग स्रोतों से प्राप्त करे।

3. सभी समूह दिए गए कार्यपत्रक (वर्कशीट) का उपयोग करेंगे और खाद्य पदार्थों में विभिन्न संकटों की उपस्थति या अनुपस्थिति का आकलन करेंगे।

कार्य पत्रक

बड़ी मात्रा/संख्या में
उपस्थित
सामान्य मात्र//
संख्या में उपस्थित
कम मात्रा/संख्या में
उपस्थित
अनुपस्थित
आप खाद्य पदार्थों को बनाने के लिए जिन कच्ची सामग्रियों का प्रयोग करते हैं, क्या आपने उनमें निम्नलिखित किसी
पदार्थ को देखा है ?
बाल
पत्थर
डंडियाँ और बीज
माचिस की तीलियाँ
स्टैपलर के पिन
बीड़ी/सिगरेट
कपूर की गोलियाँ
कीट/कीट के हिस्से
पारे की गोलियाँ
संदूषित अनाज
अन्य कोई

4. प्रत्येक विक्रेता और प्रत्येक खाद्य पदार्थ के लिए अलग कार्य पत्रक उपयोग में लाएँ।

5. विभिन्न खाद्य वस्तुओं की गुणवत्ता की तुलना करें और उस पर टिप्पणी करें।

प्रायोगिक कार्य — 2

विषयवस्तु — खाद्य अपमिश्रण के लिए गुणात्मक परीक्षण

कार्य -

1. नीचे दिए गए परीक्षणों के लिए आवश्यक सभी रसायनों और काँच के उपकरणों को इकट्ठा कीजिए।

2. विभिन्न स्रोतों जैसे — ब्रांड वाले, बिना ब्रांड वाले, पैक किए हुए, खुले बिकने वाले खाद्य पदार्थों को इकट्टा कीजिए, जिनका परीक्षण करना है।

3. दी गई विधि द्वारा खाद्य पदार्थों का परीक्षण कीजिए।

4. परीक्षणों के परिणामों की व्याख्या कीजिए।

5. ब्रांड वाले, बिना ब्रांड वाले, पैक किए हुए, खुले खाद्य पदार्थों की तुलना करिए और उनकी गुणवत्ता पर टिप्पणी कीजिए।

उद्देश्य

यह प्रयोग विद्यार्थियों को खाद्य अपमिश्रण के कुछ गुणात्मक परीक्षणों की जानकारी देगा। यह खाद्य पदार्थों के परीक्षण का प्रायोगिक अनुभव कराएगा और विद्यार्थियों को परीक्षण किए गए खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता पर टिप्पणी करने योग्य बनाएगा। यह उनको अच्छी गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों के महत्त्व को पहचानने योग्य भी बनाएगा।

प्रयोग कराना

कक्षा को समूहों में इस प्रकार बाँटें कि प्रत्येक समूह में 3-4 विद्यार्थी हों। प्रत्येक समूह निम्नलिखित के नमूने कक्षा में लेकर आए।

1. काली मिर्च — ब्रांड वाली और पैक की हुई, बिना ब्रांड की पैक की हुई और खुली बिकने वालीप्रत्येक 25 ग्राम

2. आइसक्रीम — ब्रांड वाली और बिना ब्रांड वाली (स्थानीय विक्रेता द्वारा तैयार की जाने और बेची जाने वाली) — प्रत्येक का एक छोटा कप।

3. दूध - पैक किया हुआ ब्रांडवाला, खुला - प्रत्येक के ( 100 मि.ली.)

4. वनस्पति तेल — तिल का तेल, मूँगफली का तेल, हाइड्रोजनिकृत वसा/वनस्पति घी-ब्रांड वाले और बिना ब्रांड के खुले बिकने वाले, शुद्ध घी (प्रत्येक 25 ग्राम)

5. चाय की पत्ती — ब्रांड वाली, स्थानीय खुली मिलने वाली (तीन नमूने) - प्रत्येक नमूने के 100 ग्राम

6. हल्दी पाउडर — ब्रांड वाला, बिना ब्रांड का पैक किया हुआ और खुला

7. हींग पाउडर — - ब्रांड वाला, बिना ब्रांड वाला खुला

प्रत्येक खाद्य पदार्थ के प्रयोग करने के लिए बनाई गई सूची के अनुसार रसायन इकट्ठा कीजिए।

विधि के अनुसार परीक्षण कीजिए।

परीक्षण

1. शुद्ध घी में तिल के तेल का पता लगाने का परीक्षण, यह निर्धारित करने के लिए कि क्या घी में हाइड्रोजनिकृत वसा/वनस्पति की मिलावट है, जिसमें तिल का तेल है।

रसायन -1. प्रतिशत सुक्रोस विलयन सांद्रित हाइड्रोक्लोरिक अम्ल

विधि- पाँच परखनलियाँ लीजिए परखनली $\mathrm{A}$ में लगभग $2 \mathrm{ml}$ तिल का तेल डालिए। परखनली $\mathrm{B}$ में लगभग $2 \mathrm{ml}$ मूँगफली का तेल डालिए।

परखनली $\mathrm{C}$ में लगभग $2 \mathrm{ml}$ पिघला हुआ वनस्पति घी डालिए। परखनली $\mathrm{D}$ में लगभग $2 \mathrm{ml}$ पिघला हुआ ब्रांड वाला घी लीजिए। परखनली $\mathrm{E}$ में लगभग $2 \mathrm{ml}$ पिघला हुआ खुला घी लीजिए।

प्रत्येक परखनली में $1 \mathrm{ml}$ का 1 प्रतिशत सुक्रोस विलयन मिलाइए। अब प्रत्येक परखनली में $1 \mathrm{ml}$ सांद्रित हाइड्रोक्लोरिक अम्ल को अच्छी तरह मिलाइए।

प्रेक्षण—-नोट कीजिए कि क्या गुलाबी रंग उत्पन्न होता है। गुलाबी रंग होना यह बताता है कि घी में तिल का तेल मिला हुआ है।

व्याख्या—घी के नमूने शुद्ध हैं अथवा मिलावट वाले ?

2. चाय की पत्तियों में डंठल के आधिक्य की उपस्थिति के लिए परीक्षण विधि-

विधि-1. एक $1000 \mathrm{ml}$ क्षमता वाला शंकु के आकार वाले फ़्लास्क अथवा बीकर में 5 ग्राम पत्तियाँ तोलकर डाल दीजिए।

2. इसमें $500 \mathrm{ml}$ जल मिलाकर 15 मिनट तक उबालिए।

3. अब द्रव को छान लीजिए।

4. चाय के नमूने को एक चपटी सफ़ेद प्लेट में डाल दीजिए और चिमटी की सहायता से डंडियों को चुनकर एक पहले से तोल कर रखी पेट्रीडिश या क्रूसिबल में डालिए।

5. डंडियों को $100^{\circ} \mathrm{C}$ पर सुखा लीजिए जिससे सारी नमी दूर हो जाए।

6. सूखी डंडियों को तोल लीजिए।

7. चाय में डंडियों का प्रतिशत निकालिए।

व्याख्या — चाय में डंडियों का अनुपात 25 प्रतिशत से कम होना चाहिए।

3. काली मिर्च में हलकी बेरी तेल निकली काली मिर्च का पता लगाने के लिए परीक्षण

रसायन - ऐल्कोहाल और जल का परीक्षण (घनत्व 0.8 से 0.82 )

विधि-1. एक $250 \mathrm{~mL}$ वाले बीकर में लगभग 10 ग्राम काली मिर्च लीजिए।

2. इसमें लगभग $150-200 \mathrm{~mL}$ ऐल्कोहल और जल का मिश्रण मिलाइए।

3. उन बेरी को निकाल लीजिए जो तैर कर ऊपर आ जाती हैं।

4. बेरियों को सुखा कर तोल लीजिए।

5. सूखी बेरी के प्रतिशत की गणना कर लीजिए।[^0]

6. हल्दी में मेटानिल येलो की उपस्थिति के लिए परीक्षण

रसायन - सांद्रित हाइड्रोक्लोरिक अम्ल

विधि-1. एक परखनली में लगभग 2 ग्राम हल्दी लीजिए।

2. इसमें $5 \mathrm{ml}$ आसुत जल मिलाइए।

3. अच्छी तरह मिलाइए।

4. अब इसमें धीरे-धीरे सांद्रित हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (लगभग $5 \mathrm{ml}$ से $10 \mathrm{ml}$ ) मिलाइए।

प्रेक्षण - गुलाबी रंग को मैजेंटा रंग में बदलते हुए परखनली को ध्यान से देखें।

व्याख्या — गुलाबी से मैजेंटा रंग आने का अर्थ है कि हल्दी में मेटानिल येलों रंग उपस्थित है, जो कि एक विषाक्त मिलावट है।

5. दूध और आइसक्रीम में स्टार्च की उपस्थित का परीक्षण

रासायन - आयोडीन विलयन

विधि-1. एक परखनली में लगभग 10 मि.ली. दूध या पिघली हुई आइसक्रीम लीजिए।

2. इसमें अब बूँद-बूँद करके आयोडीन विलयन डालिए।

3. परखनली की सामग्री को हिलाकर अच्छी तरह मिलाइए।

प्रेक्षण-देखें कि परखनली की सामग्री का रंग क्या नीला हो जाता है।

व्याख्या —नीला रंग विकसित होना नमूने में स्टार्च की उपस्थति दर्शाता है।

6. हींग में कोलेफेनियल रेजिन की उपस्थिति का परीक्षण

रसायन — कॉपर ऐसीटेट का 0.5 प्रतिशत जलीय विलयन, पेट्रोलिम ईथर

विधि-1. एक परखनली में लगभग $1-2$ ग्राम हींग का नमूना लीजिए। इसमें लगभग $10 \mathrm{ml}$ पेट्रोलियम ईथर मिलाइए

2. परखनली को अच्छी तरह हिलाइए।

3. परखनली की सामग्री को छानिए।

4. छने हुए द्रव का $5 \mathrm{ml}$ लेकर कॉपर ऐसीटेट का $5 \mathrm{ml}$ विलयन मिलाइए।

5. हिलाइए और परतों को पृथक होने दीजिए।

प्रेक्षण —नोट करें कि क्या ईथर वाली परत का रंग नीला या हरा हो गया है।

व्याख्या—नीला या हरा रंग आना कोलोफेनियल रेजिन की उपस्थिति दर्शाता है, जिसे हींग में मिलाने की अनुमति नहीं है।

आगे अध्ययन के लिए संदर्भ

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चंद्रशेखर, यू. 2002. फूड साइंस एंड एप्लिकेशंस इन इंडियन कुकरी, फीनिक्स पब्लिशिंग हाउस प्रा. लि. जूड, एस. एंड खेतरपॉल, एन. 1991. फूड प्रि.जर्वेशन. एग्रोटैक पब्लिशिंग अकादमी जयपुर.

जोशी, एस. ए. 2010., न्यूट्रिशन एंड डायटिक्स विद इंडियन केस स्टडी.ज, टाटा मैग्रा हिल ऐजुकेशन प्रा. लि. मुंबई. डब्ल्यू. एच. ओ. वैबसाइट www.whoindia.org, www.who.int फूड सेफ़्टी एंड स्टैंडर्डस आथॉरिटी ऑफ़ इंडिया. मिनिस्टरी ऑफ़ हैल्थ एंड फैमिली वैलफेयर, भारत सरकार. भारत सरकार की खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय व महिला बाल विकास की वैबसाइटें.

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मुदांबी एस. आर. एंड राजगोपाल एम. वी. 2006. फंडामैंटल्स ऑफ़ फूडस् एंड न्यूट्रीशन. विली ईस्टर्न लि. यूनिसेफ़ वेबसाइट www.unicef.org - स्टेट ऑफ़ दि वल्ड चिल्ड्रन, लैटैस्ट रिपोर्ट.

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