अध्याय 04 खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी

प्रस्तावना

खाद्य पदार्थ विभिन्न कारणों से संसाधित किए जाते रहे हैं। प्राचीन काल से फ़सल कटने पर अनाजों को सुखा लिया जाता रहा है, जिससे उनका सुरक्षा काल बढ़ जाता है। प्रारंभ में खाद्य पदार्थों का संसाधन उनकी सुपाच्यता, स्वाद सुधारने और खाद्य पदार्थ की निरंतर आपूर्ति (Supply) सुनिश्चित करने के लिए किया जाता था। भारत में अचार, मुरब्बा और पापड़ संरक्षित उत्पादों के उदाहरण हैं जो कुछ सब्जियों/फलों/अनाजों से बनाए जाते हैं। समय बीतने के साथ-साथ, उन्नत परिवहन, संचार और बढ़ते औद्योगीकरण ने ग्राहकों की आवश्यकताओं को अधिक विविध बना दिया और अब सुविधाजनक खाद्यों, ‘ताज़े’ और ‘अधिक

प्राकृतिक’ खाद्यों, ‘सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक’ खाद्यों, तथा पर्याप्त सुरक्षा काल वाले खाद्यों की माँग बढ़ती जा रही है। उपभोक्ता बेहतर गुणवत्ता वाले खाद्यों की अपेक्षा करते हैं जिनमें पोषक तत्त्व सुरक्षित रहें और जो विशिष्ट क्रियात्मक गुणों और स्वाद/रचना/उपयुक्त गाढ़ेपन वाले, साथ ही खराब नहीं होने वाले और आसानी से पैक, भंडारित और परिवहन किए जा सकने वाले हों। इन सभी ने वैज्ञानिकों को प्रेरित किया कि वे खाद्यों को संसाधित करने की ऐसी विधियाँ और तकनीक विकसित करें जिससे सभी बने बनाए खाद्य पदार्थ खाते हैं। ये बिस्कुट, ब्रेड, अचार/पापड़ से लेकर खाने के लिए तैयार तरकारियाँ, माँसाहारी व्यंजन एवं अल्पाहार के व्यंजन इत्यादि हो सकते हैं। ऐसे खाद्य पदार्थ विभिन्न प्रकार के प्रक्रमों और प्रौद्योगिकियों को उपयोग में लाकर बड़े पैमाने पर तैयार किए जाते हैं। कुछ के लिए साधारण परंपरागत विधियाँ अभी भी काम में ली जाती हैं, जबकि बड़े पैमाने पर खाद्यों के उत्पादन के लिए नयी विधियाँ और प्रौद्योगिकियाँ काम में ली जाती हैं।

महत्त्व

भारत ने एक कृषि-न्यून वाले देश से अब कृषि-आधिक्य वाले देश के रूप में प्रगति की है। इससे कृषि और बागवानी के उत्पादों के भंडारण और प्रसंस्करण की आवश्यकता उत्पन्न हो गई। फलस्वरूप भारतीय खाद्य उद्योग, संसाधित खाद्यों के प्रमुख उत्पादन के रूप में उभरा है और लगभग 6 प्रतिशत जी.डी.पी. (सकल घरेलू उत्पाद) के योगदान के साथ आकार की दृष्टि से पाँचवे स्थान पर है। इसके अतिरिक्त जीवनशैली में परिवर्तन, आवागमन में वृद्धि और वैश्वीकरण ने विभिन्न प्रकार के उत्पादों की माँग बढ़ा दी है। इससे नयी प्रौद्योगिकी की माँग एवं आवश्यकता बढ़ गई है। यह सर्वविदित है कि सामान्य अनाजों पर आधारित मुख्य भोजन में अकसर कुछ पोषक तत्वों की कमी होती है, जिससे पोषण की कमी हो जाती है। अत: खाद्य पदार्थों या मसालों में जिन पोषक पदार्थों की कमी होती है, उन्हें मिलाकर खाद्य पदार्थों का प्रबलीकरण (फूड फ़ॉर्टीफ़िकेशन) किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि आहार की न्यूनतम आवश्यकताएँ पूरी हो रही हैं। उदाहरण के लिए आयोडीन युक्त नमक, विटामिन $\mathrm{A}$ और $\mathrm{D}$ युक्त तेल/घी और दुध। वास्तव में, एफ.एस.एस.ए. आई. (FSSAI) ने नमक, गेहूँ के आटे, दूध और तेलों जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों के सुदृढ़ीकरण के लिए मानक निर्धारित किए हैं। हृदय रोग और मधुमेह जैसे रोगों की बढ़ती व्यापकता से वैज्ञानिकों के लिए यह आवश्यक हो गया है कि खाद्यों में कुछ पोषक तत्वों की मात्रा को बदल दें, उदाहरण के लिए संसाधित खाद्यों की कैलोरी मात्रा को कम करने के लिए खाद्य को कृत्रिम मिठास देने वाले पदार्थों से बदल दें। इसी प्रकार आइसक्रीम में वसा की जगह विशेष रूप से उच्चारित प्रोटीनों का प्रयोग आइसक्रीम को वसा जैसी चिकनी बनावट तो देता है, परंतु ऊर्जा की मात्रा को कम कर देता है। इसके अलावा भोजन पदार्थों के बारे में उपभोक्ता का नज़रिया भी परिवर्तित हो गया है। अब इस प्रकार के खाद्य पदार्थों की माँग तेज़ी से बढ़ रही है, जो रसायनों, पीड़कनाशियों और परिरक्षकों से मुक्त हों, परंतु उनका सुर्काकाल (शैल्फ़ लाइफ़) अधिक हो और वे अपनी प्राकृतिक महक लिए हुए हों। इन सबके कारण खाद्य संसाधन और प्रौद्योगिकी का एक विषय विशेष के रूप में महत्त्व बढ़ गया है और अब खाद्य प्रौद्योगिकीविदों की बहुत अधिक माँग है।

मूलभूत संकल्पनाएँ

खाद्य विज्ञान — यह एक विशिष्ट क्षेत्र है जिसमें आधारभूत विज्ञान विषयों जैसे -रसायन और भौतिकी, पाककलाओं, कृषिविज्ञान और सूक्ष्मजीव विज्ञान के अनुप्रयोग शामिल हैं। यह एक बहुत व्यापक विषय विशेष है जिसमें फ़सल काटने अथवा पशुवध से लेकर भोजन पकाने और उपभोग तक खाद्य के सभी तकनीकी पहलू जुड़े हुए हैं। खाद्य वैज्ञानिकों को खाद्य पदार्थों का संघटन, फ़सल काटने से लेकर विभिन्न प्रक्रमों और भंडारण की विभिन्न स्थितियों में होने वाले परिवर्तनों, उनके नष्ट होने के कारण और खाद्य संसाधन से जुड़े सिद्धांतों के अध्ययन के लिए जीवविज्ञान, भौतिक विज्ञानों और अभियांत्रिकी का उपयोग करना पड़ता है। खाद्य वैज्ञानिक खाद्य के भौतिक-रासायनिक पहलुओं से संबंध रखते हैं, अत: हमें खाद्य की प्रकृति और गुणों को समझने में मदद करते हैं।

खाद्य संसाधन — यह ऐसी विधियों और तकनीकों का समूह है, जो कच्ची सामग्रियों को तैयार या आधे तैयार उत्पादों में बदल देता है। खाद्य संसाधन के लिए पौधों और/अथवा जंतुओं से प्राप्त अच्छी गुणवत्ता वाले कच्चे माल की आवश्यकता होती है, जिसे आकर्षक, विपणन योग्य और अकसर लंबे सुरक्षा-काल वाले खाद्य उत्पादों में बदला जाता है।

खाद्य प्रौद्योगिकी — यह एक ऐसा विज्ञान है जिसमें वैज्ञानिक अनुप्रयोगों के ज्ञान और खाद्य उत्पादन के कानूनी नियमों का व्यावहारिक उपयोग होता है। खाद्य प्रौद्योगिकी विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के उत्पादन के लिए खाद्य विज्ञान और खाद्य अभियांत्रिकी का उपयोग करती है, उसका लाभ उठाती है। खाद्य प्रौद्योगिकी का अध्ययन विज्ञान और प्रौद्योगिकी को गहरा देता है और सुरक्षित, पोषक, संपूर्ण, वाँछनीय के साथसाथ सुविधाजनक खाद्य पदार्थों के चयन, भंडारण, संरक्षण, संसाधन, पैक करने के कौशलों को विकसित करता है। खाद्य प्रौद्योगिकी का अन्य महत्वपूर्ण पहलू सभी उत्पादित खाद्यों को सुरक्षित करना और उपयोग में लाना है।

खाद्य उत्पादन —इसमें खाद्य उत्पादों को बढ़ती जनसंख्या की विविध माँगों को पूरा करने के लिए खाद्य प्रौद्योगिकी के सिद्धांतों का उपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर तैयार किया जाता है। खाद्य उत्पादन वर्तमान काल का सबसे बड़ा उत्पादन उद्योग है।

खाद्य संसाधन और प्रौद्योगिकी का विकास

कई दशकों से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शोध कार्य किया गया है। वर्ष 1810 में निकोलस ऐप्पर्ट द्वारा खाद्य पदार्थों को डिब्बों में बंद करने की प्रक्रिया को विकसित करना एक निर्णायक घटना थी। डिब्बाबंदी का खाद्य संरक्षण तकनीकों पर प्रमुख प्रभाव पड़ा। बाद में वर्ष 1864 में लुई पाश्चर द्वारा अँगूरी शराब के खराब होने पर शोध ‘उसे खराब होने से कैसे बचाएँ’ का वर्णन खाद्य प्रौद्योगिकी को वैज्ञानिक आधार देने का प्रारंभिक प्रयास था। अँगूरी शराब के खराब होने के अतिरिक्त पाश्चर ने ऐल्कोहल, सिरका, अँगूरी शराब और बीयर के अतिरिक्त दूध के खट्टा होने पर शोध कार्य किया। उन्होंने रोग उत्पन्न करने वाले जीवों को नष्ट करने के लिए पाश्च्चुरीकरण (निर्जीवीकरण) प्रक्रम को विकसित किया। पाश्च्चुरीकरण खाद्य की सूक्ष्मजीवों से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम था।

खाद्य प्रौद्योगिकी को प्रारंभ में सेना की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में लाया गया। बीसवीं सदी में विश्वयुद्धों, अंतरिक्ष में खोज और उपभोक्ताओं द्वारा विभिन्न उत्पादों की बढ़ती माँग ने खाद्य प्रौद्योगिकी के विकास में योगदान दिया। बीसवीं सदी में, कामकाजी महिलाओं की आवश्यकताओं को विशेष रूप से पूरा करने के लिए तत्काल मिलाकर बनने वाले सूप मिश्रण और पकाने को तैयार पदार्थ एवं भोजन सम्मिलित करते हुए प्रौद्योगिकियाँ विकसित हुईं। इसके साथ ही खाद्य उद्योग, पोषण संबंधी मुद्दों पर ध्यान देने के लिए बाध्य हुआ। भोजन की अधिमान्यताएँ और रुचियाँ बदलीं और लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों और देशों की खाद्य वस्तुएँँव्यंजन अपनाना प्रारंभ कर दिया। पूरे वर्ष में मौसमी खाद्यों के लिए पसंद भी बढ़ गई। खाद्य प्रौद्योगिकीविदों ने नयी तकनीकों का उपयोग कर सुरक्षित और ताजजे खाद्य उपलब्ध कराने का प्रयास किया। इक्कीसवीं सदी में, खाद्य प्रौद्योगिकीविदों के सामने चुनौती है कि वे उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और अन्य बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप खाद्य पदार्थों का उत्पादन करें। खाद्य प्रौद्योगिकी ने विविध प्रकार के सुरक्षित और सुविधाजनक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए हैं। विकासशील देशों में तेजी से फैल रहे और विकसित हो रहे इस क्षेत्र ने खाद्य सुरक्षा में सुधार लाने में मदद की है और सभी स्तरों पर रोज़गार के रास्ते भी खोल दिए हैं।

खाद्य-संसाधन और संरक्षण का महत्त्व

यह पहले बताया जा चुका है कि खाद्य संसाधन विनिर्माण की एक शाखा है, जिसमें वैज्ञानिक ज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का उपयोग करके कच्चे माल को मध्यवर्ती स्तर पर तैयार खाद्य पदार्थों अथवा तुरंत खाने के लिए तैयार उत्पादों में बदला जाता है। स्थूल, नाशवान् और कभी-कभी खाये न जा सकने वाले पदार्थों को अधिक उपयोगी, सांद्रित, लंबे समय तक स्थायी रहने योग्य और स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों अथवा पेय पदार्थों में बदलने के लिए विभिन्न प्रक्रम उपयोग में लाए जाते हैं। उत्पादों में किए गए परिवर्तनों से गृहिणियों/ बावरचियों के खाना बनाने में समय कम लगता है। अधिकतर खाद्यों के संसाधन करने से भंडारण, लाने-ले जाने, स्वाद और सुविधा बढ़ने से उत्पादों का महत्त्व बढ़ जाता है। खाद्य संसाधन से जुड़े व्यावसायिकों को कच्चे खाद्य पदार्थों के सामान्य गुणों, खाद्य संरक्षण के सिद्धांत, गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले कारकों, पैक करना, जल और अपशिष्ट प्रबंधन, अच्छी निर्माण प्रक्रियाएँ और सफ़ाई की विधियों की संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए। आइए हम संक्षेप में खाद्य संसाधन की आवश्यकता, सिद्धांत, विधियों और आधुनिकीकरण की जाँच करें -

खाद्य पदार्थ भौतिक, रासायनिक और जैविक रूपों से खराब हो सकते हैं। खाद्य के विकृत होने के साथ उसका नष्ट होना, दुर्गुं आना, बनावट नष्ट होना, रंग बिगड़ना, भिन्न स्तर पर पोषण मान में कमी, सौंदर्य-बोध में कमी और उपयोग के लिए अनुपयुक्त/असुरक्षित होना सम्मिलित है। भोजन के बिगड़ने या नष्ट होने के लिए बहुत से कारक उत्तरदायी हैं, जैसे- पीड़क, कीटों का आक्रमण, संसाधन और/अथवा भंडारण के लिए अपेक्षा से अनुपयुक्त ताप, प्रकाश और अन्य विकिरणों, ऑक्सीजन और नमी का अत्यधिक प्रभाव। खाद्य पदार्थ सूक्ष्मजीवों (जीवाणु, यीस्ट और फफूँदी) अथवा पीड़कनाशियों जैसे कि रासायन से संदूषित होते हैं। खाद्य पदार्थ प्राकृतिक रूप से उपस्थित एंजाइम (वृहत् प्रोटीन अणु जो रासायनिक अभिक्रियाओं को त्वरित करने के लिए जैविक उत्र्रेरकों का काम करते हैं) द्वारा निम्नीकरण से भी नष्ट हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त पौधों और जंतु स्रोतों से प्राप्त खाद्य पदार्थों के कुछ अवयवों में फ़सल काटने या पशु वध के तुरंत बाद भौतिक और रासायनिक परिवर्तन होते हैं, जो खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता बदल सकते हैं।

अत: खाद्य पदार्थ को भोज्य और सुरक्षित रूप से संरक्षित करने के लिए खाद्य संसाधन और संरक्षण की आवश्यकता है। खाद्यों को फ़सल कटने या पशु के बाद नष्ट होने से बचाने की विधियाँ इतिहास पूर्व काल से चली आ रही हैं। सबसे पुरानी विधियाँ थीं- धूप में सुखाना, नियंत्रित किण्वन, नमक लगाना/अचार बनाना, सेकना, भूनना, धूमन, चूल्हे में पकाना और मसालों का परिरक्षी के रूप में उपयोग करना। यद्यपि औद्योगिक क्रांति आने से नयी विधियाँ विकसित हो चुकी हैं परंतु ये आजमाई और परखी हुई तकनीकें आज भी उपयोग में लाई जा रही हैं। खाद्य संसाधन, खाद्यों के विभिन्न वर्गों के सामान्य गुणों और खाद्य विज्ञान के सिद्धांतों, रासायन, खाद्य सूक्ष्मजीव विज्ञान, पोषण, संवेदी विश्लेषण और आँकड़ों को नियमों के अनुसार अच्छी खाद्य विनिर्माण पद्धतियों सहित आँकड़ों को समाविष्ट करता है।

खाद्य पदार्थों के वर्ग

विकार्य खाद्य पदार्थ वे हैं जो एक-दो दिन में खराब हो जाते हैं, जैसे - दूध, दही, मछली और माँस। अर्ध-विकार्य पदार्थ वे हैं जो 1-2 सप्ताह तक सही हालत में रह सकते हैं, जैसे -फल और सब्जियाँ। रूपांतरित तने वाली फ़सलें जैसे - प्याज और आलू $2-4$ सप्ताह तक खराब नहीं होते। अविकार्य पदार्थ वे हैं जो सामान्यत: एक वर्ष तक खराब नहीं होते, जैसे - अनाज (चावल, गेहूँ), दालें और तिलहन।

बहुत से खाद्य संसाधन संबंधी कार्य खाद्य उत्पादों के शैल्फ़काल को बढ़ाने के लिए डिजजाइन किए जाते हैं। खाद्य संसाधन के साथ जुड़ी हुई संकल्पनाओं में सूक्ष्मजीवी गतिविधियों और अन्य कारक, जो खाद्य के खराब होने को प्रभावित करते हैं, को कम करने पर ध्यान दिया जाता है। भोजन पदार्थों को नष्ट करने वाले मुख्य सूक्ष्मजीव, जीवाणु, कवक, यीस्ट और फफूँदी हैं। अपने जीवविज्ञान के अध्ययन को याद कीजिए जहाँ आपने पढ़ा कि ये अनुकूल परिस्थितियों में विशेषत: बहुत जल्दी बढ़ते हैं। सूक्ष्मजैविक वृद्धि को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं - पोषक पदार्थों की उपलब्धता, नमी $\mathrm{pH}$ ऑक्सीजन स्तर और रोधक पदार्थों जैसे-प्रतिजैविक की उपस्थिति या अनुपस्थित। खाद्य पदार्थों में मूलरूप से उपस्थित एंजाइमों की गतिविधि भी $\mathrm{pH}$ और ताप पर निर्भर करती है। ताज़े फलों और सब्जियों में उपस्थित ऑक्सीकरणी एंजाइम ऊर्जा के लिए ग्लूकोस का उपपाचय करने के लिए ऑक्सीजन का उपयोग करना जारी रखते हैं और फलों तथा सब्जियों का शैल्फ़ काल कम करते हैं। अत: आप समझ सकते हैं कि खाद्य पदार्थों को नष्ट होने से बचाने के लिए संसाधित विधियों की मूलभूत संकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं -

1. ऊष्मा का अनुप्रयोग,

2. जल को हटाना,

3. भंडारण के समय ताप कम करना,

4. $\mathrm{pH}$ कम करना और

5. ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की उपलब्धता पर नियंत्रण करना।

खाद्य पदार्थों का वर्गीकरण, संसाधन की सीमा और प्रकार के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-

न्यूनतम संसाधित खाद्य— ये कम-से-कम संसाधित खाद्य पदार्थ होते हैं, जिससे ताजे़ खाद्य

क्या आप जानते हैं कि-

  • जीवाणु अधिक प्रोटीन युक्त खाद्य पसंद करते हैं, जैसे -माँस, मछली, अंडे, मुर्गा-मुर्गी और डेरी उत्पाद। ये सब अत्यधिक जोखिम वाले खाद्य कहलाते हैं।
  • जीवाणु 5 से $60^{\circ} \mathrm{C}$ ताप पर वृद्धि करते हैं। ताप की यह परास खतरे का क्षेत्र कहलाती है।

पदार्थों की गुणवत्ता बनी रहती है। सामान्यत: इसके लिए उपयोग में लाई जाने वाली प्रक्रियाएं हैं- साफ़ करना, काट-छाँट करना, छीलना, काटना, पतले टुकड़े करना और निम्न ताप अर्थात् प्रशीतन ताप पर भंडारण करना।

1. संरक्षित खाद्य—इसके अंतर्गत संरक्षण के लिए प्रयुक्त की गईं विधियाँ उत्पाद के गुणों में अधिक परिवर्तन नहीं करतीं, जैसे — हिमशीतित मटर, हिमशीतित सब्जियाँ, निर्जलित मटर, निर्जलित सब्जियाँ और डिब्बाबंद फल।

2. विनिर्मित खाद्य——स प्रकार के उत्पादों में कच्ची सामग्री के मूल गुण काफ़ी समाप्त हो जाते हैं और संरक्षरण के लिए कुछ मूलभूत विधियाँ काम में लाई जाती हैं, अकसर विभिन्न संघटकों जैसे -नमक, शक्कर, तेल या रासायनिक संरक्षकों का उपयोग किया जाता है। इसके उदाहरण हैं-अचार, जैम, मुरख्बा, शरबत, पापड़ और वड़ी।

3. फार्मूलाबद्ध खाद्य — विभिन्न संघटकों को मिलाकर और संसाधित करके ये उत्पाद तैयार किए जाते हैं, जिससे प्राप्त खाद्य उत्पादों का शैल्फ़काल अपेक्षाकृत अधिक हो सके। इनके उदाहरण हैं - डबलरोटी, बिस्कुट, आइसक्रीम, केक, कुल्फी, इत्यादि।

4. खाद्य न्युत्पन्न — उद्योग में खाद्य पदार्थों के संघटकों को कच्ची सामग्री से शोधन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है, जैसे गन्ने से शक्कर, अथवा तिलहन (तेल युक्त बीज) से तेल। कुछ मामलों में, व्युत्पन्न अथवा संघटक को और अधिक संसाधित किया जाता है, जैसे — तेल का वनस्पति घी में परिवर्तन (इस प्रक्रिया को हाइड्रोजनीकरण कहते हैं)।

5. संश्लेषित खाद्य—ये उत्पाद सूक्ष्मजैविक अथवा रासायनिक संश्लेषण द्वारा विनिर्मित किए जाते हैं, उदाहरण के लिए उद्योगों में उपयोग में आने वाले एंजाइम और पोषक जैसे कि विटामिन।

6. कार्यमूलक खाद्य — ये खाद्य पदार्थ मानव स्वास्थ्य पर लाभदायक प्रभाव डालते हैं।

7. चिकित्सीय खाद्य—ये रोगों के आहारी प्रबंधन में उपयोग में लाए जाते हैं, उदाहरण के लिए कम सोडियम वाला नमक, लैक्टोस असह्यता वाले व्यक्तियों के लिए लैक्टोस मुक्त दूध।

क्रियाकलाप 1

  • अपने क्षेत्र/समुदाय/घर में परिरक्षित किए जाने वाले खाद्यों की सूची बनाइए और उन विधियों और परिरक्षकों की सूची बनाइए जो वहाँ परिरक्षण के लिए काम में लाए जाते हैं।
  • अपने क्षेत्र में उपलब्ध संसाधित खाद्य पदार्थ जो कि कृत्रिम मिठास देने वाले पदार्थ का उपयोग कर बनाया गया हो उसकी पहचान कीजिए।

खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी में लगे हुए व्यावसायिकों में व्यापक ज्ञान और कौशल होना चाहिए। सारणी-1 में निम्नलिखित में तीन स्तरों पर खाद्य उत्पादों के वर्गीकरण और प्रत्येक के लिए ज्ञान तथा कौशलों की सूची दिखाई गई है-

1. सामग्री के रूप में खाद्य

2. खाद्य उत्पादन विकास

3. रैसीपी विकास

सारणी 1. - खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल

सामग्री के रूप में खाद्य खाद्य उत्पादन विकास रैसीपी विकास
- खाद्य सामग्री की प्रकृति
और गुण
पोषक मात्रा और उसका
विश्लेषण
खाद्य पदार्थ की लागत/
कीमत
रासायनिक पीड़कनाशी,
समय, नमी, ताप और
संयोजी पदार्थों का प्रभाव
गुणवत्ता वाली खाद्य
सामग्री के उत्पादन के लिए
कच्चे खाद्य और संघटकों
की गुणवत्ता का आकलन
खाद्य स्वच्छता और खाद्य
सुरक्षा
समकालीन खाद्य उत्पादन
के लिए सूचना प्रौद्योगिकी
का ज्ञान
- बड़े पैमाने पर खाद्य उत्पादन के
लिए खाद्य पदार्थ तैयार करने और
पाकक्रिया के कौशलों का ज्ञान
उत्पादन विनिर्देशन और उसका
परीक्षण करने का ज्ञान
- विश्लेषण विवरण के अनुसार
खाद्य पदार्थ के गुणवत्ता नियंत्रण
का प्रेक्षण और मापन
- संवेदी विधियों द्वारा आकलन
(उत्पादित खाद्यों का परीक्षण
करके और स्वाद चखकर)
- प्रौद्योगिक पद्धतियाँ और
विनिर्माण तंत्र तथा उनका नियंत्रण
- विपणन योग्य तैयार उत्पाद पर
लेबल लगाना और उसे पैक
करना
संकट-विश्लेषण और क्रांतिक
नियंत्रण बिंदु (एच. ए. सी. सी. पी.)
- पाकक्रिया में निपुणता तथा भोजन
की प्रकृति और गुणों का ज्ञान
- संघटकों के उपयोग, उनका यथार्थ
मापन और तोलना
- एक मूल रैसीपी को डिजााइन
करना, विश्लेषण करना और उसे
अपनाना
- खाद्य पदार्थों को संभालने और
काम में लाने के कौशल
- स्वच्छता और सुरक्षा के मापदंडों
का पालन करते हुए खाद्य उत्पादन
औज़ारों और उपकरणों का
सावधानी पूर्वक प्रयोग
उपभोक्ताओं के बोध के अनुसार
उत्पादों को बनाना और डिज़ाइन
बनाने में नव प्रवर्तन
समकालीन उत्पादन के लिए
सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग

जीविका के लिए तैयारी करना

खाद्य उद्योग में संसाधन/निर्माण, शोध और विकास (वर्तमान खाद्य उत्पादों में सुधार, नए उत्पादों का विकास, उपभोक्ता बाजजारों में शोध और नयी प्रौद्योगिकियों का विकास), खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना और खाद्य गुणवत्ता को मॉनीटर करना, गुणवत्ता को नियंत्रित करने की पद्धतियों में सुधार करना, लाभप्रद उत्पादन को सुनिश्चित करने हेतु लागत निकालना और नियामक मामले सम्मिलित हैं। जीविका के लिए लोग खाद्य प्रौद्योगिकी की किसी एक शाखा में विशेषज्ञता प्राप्त कर सकते हैं जैसे - पेय पदार्थ, डेरी उत्पाद, मांस और मुर्गी पालन, समुद्री खाद्य, वसा और तेल, स्थायीकारी/परिरक्षक स्थायीकारी/परिरक्षक/रंग, अनाज और योजक पदार्थ। इस क्षेत्र के व्यावसायिक में निम्नलिखित ज्ञान और कौशल होने आवश्यक हैं-

  • खाद्य विज्ञान, खाद्य रसायन, सूक्ष्मजीव विज्ञान, खाद्य संसाधन, सुरक्षा/ुुणवत्ता आश्वासन, बेहतर विनिर्माण पद्धतियाँ और पोषण
  • कच्चे और पकाए हुए/ निर्मित खाद्यों के संघटन, गुणवत्ता और सुरक्षा का विश्लेषण
  • खाद्य सामग्री, बड़े पैमाने पर खाद्य निर्माण और खाद्य उत्पादन में उनका उपयोग
  • उत्पादन विनिर्देशन और खाद्य उत्पादन में विकास
  • संवेदी मूल्यांकन और स्वीकार्यता
  • औद्योगिक पद्धतियाँ, कार्य प्रणाली नियंत्रण, वितरण-प्रणालियाँ, उपभोक्ता क्रय पैटर्न
  • खाद्यों को पैक करना और उन पर लेबल लगाना
  • उत्पादन रूपरेखा डिजाइन की सहायता के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग की योग्यता
  • खाना बनाने और पाकक्रिया में कौशल और
  • डिज़ाइन (प्रतिरूप) तैयार करने, विश्लेषण करने, प्रतिरूप का अनुसरण और ैैसीपी का अनुकूलन। भौतिकी, रसायन और गणित (पी. सी. एम.) अथवा भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान (पी. सी. बी.) विषयों के साथ $10+2$ अथवा समकक्ष परीक्षा पास करने के बाद कोई भी व्यक्ति विभिन्न राज्यों के विभिन्न खाद्य शिल्प संस्थानों / अनुप्रयुक्त विज्ञानों के महाविद्यालयों से कम अवधि के प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम, शिल्प और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश प्राप्त कर सकता है। ऐसा ही एक संस्थान केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी शोध संस्थान सी.एफ़.टी.आर.आई., मैसूर है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम खाद्य परिरक्षण और संसाधन तथा खाद्य प्रबंध संस्थानों के लघु उद्योग विभागों में रोज़गार प्राप्त करने के लिए उपयोगी हैं। खाद्य उद्योग, विशेषकर बड़े पैमाने की इकाइयों में नौकरियों के लिए और शोध कार्य तथा प्रशिक्षण तथा साथ ही स्वउद्यमिता के लिए स्नातक, स्नातकोत्तर डिग्रियाँ और शोध योग्यता आवश्यक आधार होती हैं। भारत और विदेश के अनेक विश्वविद्यालय इस क्षेत्र में स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्रियाँ देते हैं। कुछ संस्थान खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी के विशिष्ट पहलुओं से संबंधित स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम उपलब्ध कराते हैं, सोनीपत में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ फूड टेक्नोलॉजी एंड एंटर्रेन्योरशिप मैनेजमेंट (NIFTEM) की तरह।

कार्यक्षेत्र

संसाधित, पैक किए हुए, सुविधाजनक और लंबे शैल्फ़ काल वाले खाद्यों की माँग के कारण खाद्य उद्योग को अच्छे प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। खाद्य प्रौद्योगिकी और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में प्रोत्साहित करने वाले, चुनौतीपूर्ण और लाभदायक भविष्य वाले व्यवसाय और जीविकाओं के अवसर मिलते हैं। चूँकि इस क्षेत्र में खाद्य और खाद्य उत्पादों के संसाधन, उपयोग, परिक्षण, पैक करने और वितरण के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के ज्ञान और उसके अनुप्रयोग की आवश्यकता होती है, अत: यह क्षेत्र विविध प्रकार की विशेषजताओं को समावेशित करता है।

खाद्य प्रौद्योगिकीविदों का काम मुख्य रूप से खाद्य उद्योगों, गुणवत्ता नियंत्रक विभागों, होटलों, अस्पतालों, लेबल लगाने और पैक करने वाले उद्योगों, मद्य निर्माण कारखानों, मृदु पेय उद्योगों, डेयरी, कन्फ़ेकशनरी, मछली और माँस संसाधन, फल और सब्ज़ी संसाधन, अनाजों, धान्यों, ज्वार-बाजरा, चावल, आटा कारखाने इत्यादि में होता है। अत: इन संस्थानों के विभिन्न विभागों जैसे -क्रय और भंडारण, संसाधन / विनिर्माण, गुणवत्ता नियंत्रण और प्रबंधन, सुरक्षा आकलन के साथ-साथ शोध और विकास में वे अपनी प्रवीणता का उपयोग कर सकते हैं।

जीविका (करिअर) के अवसर

  • उत्पादन प्रबंधक
  • परियोजना कार्यान्वयन
  • विपणन और विक्रय अधिकारी
  • संवेदी मूल्यांकन
  • गुणवत्ता आश्वासन
  • शोध और विकास, उत्पादन विकास
  • परियोजना की वित्तीय व्यवस्था
  • परियोजना का मूल्यांकन
  • शिक्षण और शोध
  • उद्यमशीलता विकास
  • परामर्श
  • उत्पादों का तकनीकी विपणन

वैश्वीकरण के साथ विदेशी निवेश और प्रौद्योगिकियों के लिए भारत ने अपने द्वार खोल दिए हैं। परिणाम स्वरूप, बहुत-सी विदेशी कंपनियाँ और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ हमारे देश में अपने उत्पाद, शोध और विकास (आर. एंड. डी.), शैक्षिक स्तर और बाह्य स्रोत सुविधाएँ स्थापित कर रही हैं। अत: खाद्य प्रौद्योगिकीविदों/ वैज्ञानिकों के लिए भारतीय और विदेशी संस्थानों में काम करने के भरपूर अवसर उपलब्ध हैं। खाद्य संसाधन उद्योग ने न केवल उत्पादों के निर्यात के लिए ही अच्छे अवसर उपलब्ध कराए हैं।

स्वरोजगार के अवसर - भारत में खाद्य संसाधन हमेशा घरेलू या कुटीर स्तर की गतिविधि के रूप में कार्यरत् रहा है। खाद्य संसाधन प्रकार्यो में मूलभूत प्रशिक्षण की कमी के रहते हुए भी मिठाइयाँ, पापड़, मुर््बा, अचार, तले हुए अल्पाहार, भुने हुए और फुलाए हुए अनाज बनाए और बेचे जाते रहे हैं। अब कृषि, बागवानी और मत्स्यपालन में वृद्धि होने के कारण, कच्चे माल के उत्पादन में सुधार हुआ है। इसके अतिरिक्त सरकार वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण, आधारभूत ढाँचा और विपणन सुविधाएँ उपलब्ध कराकर उन तकनीकी व्यक्तियों को प्रोत्साहन और सहायता देती है, जो स्वयं अपने उद्यम स्थापित करना चाहते हैं। बहुत से बैंकों द्वारा, विशेषकर महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। राज्य सरकोरें भी स्वउद्यमियों की मदद के लिए उन्हें भूमि उपलब्ध कराती हैं। खाद्य प्रौद्योगिकी में आपका स्वरोजगार का प्रयास बहुत अधिक प्रौद्योगिकी-उन्मुख और निवेश अधिक वाला हो सकता है अथवा यह बहुत निम्न प्रौद्योगिकी और कम निवेश वाली इकाइयों के रूप में हो सकता है, जैसे - नमकीन मूँगफली, पेय जल की थैली, बीटल नट पाउडर, अचार, इत्यादि।

भारत ने कृषि-न्यून वाले देश से कृषि-आधिक्य वाले देश के रूप में उन्नति की है। इससे अनाजों के साथ उद्यान-कृषि उत्पादों के भंडारण और प्रबंधन की आवश्यकता उत्पन्न हो गई है। भारतीय खाद्य उद्योग, औद्योगिक रूप से निर्मित खाद्य पदार्थों के प्रमुख उत्पादक और उपभोक्ता के रूप में उभर कर आया है। अपने 61 बिलियन अमरीकी डॉलरों के पूँजी निवेश के आधार पर भारत का पाँचवाँ स्थान है, सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में लगभग 6 प्रतिशत का योगदान है, भारत के निर्यात का 13 प्रतिशत और देश के कुल औद्योगिक निवेश में 6 प्रतिशत का हिस्सा है। इसके अतिरिक्त यह 20 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहा है, जिसका 25 प्रतिशत भाग संसाधित खाद्यों के हिस्से से प्राप्त है। इस उद्योग के मुख्य हिस्से दूध व दूध उत्पाद, अल्पाहार के खाद्य पदार्थ, बेकरी उत्पाद, फल और सब्जी उत्पाद, पेय पदार्थ (ऐल्कोहल युक्त और बिना ऐल्कोहल वाले), मछली और माँस संसाधन, खाद्य संसाधन मशीनें और संबंधित उपकरण हैं। निर्यात निरंतर बढ़ रहा है और यह रोज़गार के अवसरों को बढ़ावा देगा। हमारी सरकार ने 14 जनवरी, 2010 को भारत में खाद्य संसाधन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के भाग के रूप में वर्ष 2012 तक 30 वृहत् खाद्य संसाधन पार्को की स्थापना की घोषणा की। अत: आगे बढ़ें और आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएँ।

प्रमुख शब्द

खाद्य संसाधन, खाद्य प्रौद्योगिकी, खाद्य परिक्षण, खाद्य विज्ञान, खाद्य का खराब होना, खाद्य उत्पादन विकास

पुनरवलोकन प्रश्न

1. निम्नलिखित पदों को समझाइए-

(A) खाद्य विज्ञान, (B) खाद्य संसाधन, (C) खाद्य प्रौद्योगिकी, (D) खाद्य विनिर्माण, (E) खाद्य का खराब होना।

2. खाद्य प्रौद्योगिकी के महत्त्व को संक्षेप में समझाइए। इसने आधुनिक महिलाओं विशेषकर कार्यरत् महिलाओं के जीवन पर किस प्रकार प्रभाव डाला है?

3. खाद्य परिरक्षण की उन पुरानी विधियों की उदाहरण सहित सूची बनाइए जो घरों में उपयोग में लाई जाती हैं और वर्तमान में उनकी क्या व्यवहार्यता है।

4. खाद्य परिरक्षण की वर्तमान स्थिति तक इसके विकास का संक्षिप्त विवरण दीजिए।

5. एक भावी खाद्य प्रौद्योगिकीविद् के रूप में, उद्योग द्वारा आपसे किस ज्ञान और कौशलों की अपेक्षा की जाती है?

6. स्वास्थ्य और कल्याणकारी संकल्पनाओं को ध्यान में रखते हुए उदाहरण सहित समझाइए कि खाद्य वैज्ञानिक संसाधित और पैक किए हुए खाद्यों के खाद्य मानों को बढ़ाने का किस प्रकार प्रयास कर रहे हैं ?

7. निम्नलिखित को संक्षेप में समझाइए -

  • हमें खाद्य को संसाधित और परिरक्षित करने की आवश्यकता क्यों है?
  • खाद्य पदार्थ किन कारणों से खराब होते हैं और मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त बन जाते हैं?
  • खाद्य पदार्थों के खराब होने का कारण सामान्यत: जीवाणु होते हैं। जीवाणुओं के विकास और वृद्धि के लिए कौन सी चार परिस्थितियाँ आवश्यक होती हैं?
  • लेबल पर दी गई पोषक तत्वों के मान संबंधी सूचना किस प्रकार उपयोगी होती है?
  • $10+2$ परीक्षा पास करने के बाद खाद्य संसाधन और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में व्यवसाय के क्या-क्या अवसर होते हैं?

प्रायोगिक कार्य -1

विषयवस्तु- एक संसाधित खाद्य उत्पाद का डिज़ाइन बनाना, उसे तैयार करना और उसका मूल्यांकन करना

कार्य- 1. एक ऐसे उत्पाद का चयन कीजिए और उसे बनाइए, जिसे परिरक्षित किया जा सकता हो।

2. उत्पाद की स्वीकार्यता के लिए उसका मूल्यांकन कीजिए।

3. उत्पाद के पोषक मान की गणना कीजिए।

उद्देश्य -

यह प्रयोग विद्यार्थियों का एक संसाधित उत्पाद, जिसे परिरक्षित किया जा सके, की योजना बनाने, उसे तैयार करने, पैक करने और लेबल लगाने का स्वत: अनुभव कराने के लिए है। यह प्रयोग पूरे प्रक्रम में स्वच्छता बनाए रखने के महत्त्व को समझने और संसाधित उत्पाद का मूल्यांकन करने का अवसर भी देगा।

प्रयोग कराना

कक्षा को समूहों में इस प्रकार बाँटें कि प्रत्येक समूह में 5-6 विद्यार्थी हों। प्रत्येक समूह अलग-अलग निम्नलिखित चरणों के अनुसार प्रयोग करे —

1. एक ऐसे उत्पाद की पहचान करें जिसका शैल्फ़ काल लंबा हो, (जिसका परिरक्षण और भंडारण किया जा सके) जैसे - अचार, जैम, शर्बत, मुर्बा और पापड़।

2. एक ऐसा उत्पाद तैयार करें जो बाजार में पहले से उपलब्ध उत्पादों से भिन्न हो। लगभग 500 ग्राम उत्पाद बनाएँ। इसके लिए अलग से कुछ कच्ची सामग्रियों का उपयोग करें, जैसे कि शक्कर के स्थान पर कुछ मात्रा में कृत्रिम मिठास देने वाले पदार्थ तथा स्थानीय उपलब्ध फल और सब्जियाँ/ फल या सब्जियों के छिलकों का उपयोग करें, जैसे- तरबूज़ का छिलका अथवा संतरे के छिलके/स्वीट लाइम के छिलके, कद्दू के बीज, खररबूज़े के बीज, दूधिया-छिलके।

3. सब्जियों/फलों, संघटक पदार्थों, परिरक्षक पदार्थों, बर्तन, उपकरण और पकाने के साधन जैसे - गैस/ बिजली/चूल्हा आदि की सूची बनाएँ और इन्हें इकट्ठा करें।

4. कच्ची सामग्री, उपकरणों और अतिरिक्त साधनों के चयन हेतु प्रयोग में लाए गए मापदंडों की सूची बनाएँ।

5. रैसीपी का नाम, बनाने की विधि और चरण-बद्ध जानकारी विस्तार से लिखें।

6. पैक करने के लिए सामग्री का चयन जैसे - गिलास/प्लास्टिक की बोतलें, या पॉलीथीन की थैलियाँ या झोले।

7. उत्पादन को यथासंभव स्वच्छ परिवेश में तैयार करें।

8. खाद्य सामग्री और संघटक सामग्री, उपयुक्त ऊर्जा, मज़दरी, और भंडारण तथा पैक करने वाली सामग्री की लागत के संदर्भ में कुल लागत की गणना करें।

9. उत्पादन का मूल्यांकन बनावट, स्वाद, ंग और गुणवत्ता के संदर्भ में करें और अपने प्रेक्षण लिखें।

10. उत्पादन के लिए एक लेबल भी तैयार करें। लेबल में निम्नलिखित सूचनाएँ होनी चाहिए-

(a) उत्पादन का नाम और फ़ोटो अथवा रेखा चित्र (यदि संभव हो),

(b) विनिर्माता का नाम और पता,

(c) संघटक पदार्थों, (संघटकों के नाम, उनके प्रयोग की गई मात्रा के घटते अनुपात के अनुसार लिखें) उनके कुल भार/ आयतन की सूची बनाइए,

(d) उपयोग के लिए निर्देश (यदि कोई हो),

(e) भंडारण निर्देश,

(f) उत्पाद से प्राप्त 100 ग्राम में पोषकों का मान दीजिए।

(g) ‘तक प्रयोग करें’ या — ‘से पहले उपयोग में लाना सर्वश्रेष्ठ है’ की तिथि दर्शाएँ।



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