अध्याय 02 नैदानिक पोषण और आहारिकी
प्रस्तावना
पोषण, जैसा कि आप जानते हैं, यह खाद्य, पोषकों और दूसरे पदार्थों के साथ शरीर द्वारा उनके पाचन, अवशोषण तथा उपयोग का विज्ञान है। पोषण का सरोकार भोजन और खाने के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक पहलुओं से भी है। यह सर्वविदित है कि संक्रमण से रोधक्षमता और सुरक्षा देने तथा विभिन्न प्रकार की बीमारियों से स्वास्थ्य लाभ पाने के साथ असाध्य बीमारियों से निपटने के लिए समुचित पोषण महत्वपूर्ण होता है। जब पोषक पदार्थों की प्राप्ति अपर्याप्त होती है, तो शरीर के लिए रोधक्षमता रक्षा, घाव भरने, उपचार के उपयोग, अंगों के सुचारु रूप से कार्य करने में कठिनाई होती है। ऐसे व्यक्ति अतिरिक्त जटिलताओं के शिकार हो सकते हैं। पोषण बीमारी की अवस्था में भी महत्वपूर्ण होता है। कुछ बीमारियों में, पोषण व्यवस्था और उपचार में प्रमुख भूमिका निभाता है
और कुछ में यह चिकित्सीय उपचार में पूरक का कार्य करता है। बीमारी से पहले और बाद में पोषक स्थिति और सहायता रोग के पूर्वानुमान, स्वास्थ्यलाभ और अस्पताल में ठहरने के समय निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अस्वस्थता और बीमारी मिलकर, पोषक असंतुलन उत्पन्न कर सकती हैं। ऐसा उस व्यक्ति में भी हो सकता है, जिसकी पोषण स्थिति पूर्व में अच्छी थी। अतः स्वास्थ्य और पोषण परस्पर अंतरंग रूप से जुड़े हुए हैं। निम्न पोषण न केवल स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न करता है, परंतु वर्तमान समस्याओं को बदतर बना सकता है। पोषण का विशिष्ट क्षेत्र, जो बीमारी के समय के पोषण से संबंधित है, “नैदानिक पोषण” कहलाता है। आजकल इस क्षेत्र को चिकित्सीय पोषण उपचार कहते हैं।
महत्त्व
पोषण के देख-रेख को संपूर्ण विश्व में महत्व प्राप्त हुआ है, ऐसा गत वर्षों में अधिक हुआ है। स्वास्थ्य समस्याएँ/ अस्वस्थता/बीमारियाँ और उनका उपचार पोषण स्थिति को कई प्रकार से प्रभावित कर सकते हैं जैसे व्यक्ति के खाने और/अथवा निगलने की क्षमता को कम करके, पाचन, अवशोषण और उपापचय के साथ-साथ उत्सर्जन में बाधा डालकर। यदि कुछ व्यक्तियों में प्रारंभ में एक क्रिया प्रभावित होती है, तो स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ जाने पर, शरीर की अन्य क्रियाएँ भी प्रभावित हो सकती हैं। नैदानिक पोषण प्रमाणित बीमारी वाले मरीजों के पोषण प्रबंधन पर केंद्रित रहता है।
यह ध्यान रखना चाहिए कि शरीर के किसी अवयव/ऊतक/तंत्र की क्रिया बीमारी से प्रभावित हो सकती है। यह बीमारी छोटी और विकट से बड़ी और कभी-कभी असाध्य अथवा दीर्घकालीन समस्याओं के रूप में हो सकती है। इन सब परिस्थितियों में, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति का समुचित रूप से पोषण हो और इसके लिए जो व्यक्ति सेवाएँ दे रहा हो, वह प्रशिक्षित आहार विशेषज्ञ/डॉक्टरी पोषण उपचारक/चिकित्सीय पोषण विशेषज्ञ हो। व्यावसायिक चिकित्सीय पोषण विशेषज़/आहार विशेषज्ञ पोषण देखभाल के लिए एक व्यवस्थित और औचित्य पूर्ण तरीका काम में लाता है, जो प्रत्येक व्यक्ति/मरीज़ की विशिष्ट आवश्यकताओं पर केंद्रित होता है और व्यक्तिगत तथा पूर्ण रूप से लागू होता है। मरीज़ पोषण देखभाल प्रक्रिया का प्राथमिक केंद्र होता है।
बीसवीं और इक्कीसवीं शताब्दियों में चिकित्सा और औषध विज्ञान के क्षेत्र में बहुत प्रगति देखी गई है, जिसने हमें अनेक संचारी और संक्रामक बीमारियों पर नियंत्रण पाने योग्य बनाया। परंतु नयी बीमारियाँ जैसे - एच.आई.वी./ एड्स उभर कर आई हैं और मोटापा, ह्दयय रोग, अति तनाव और मधुमेह जैसी गैर संक्रामक बीमारियाँ न केवल व्यापक रूप से बढ़ रही हैं, बल्कि बहुत कम उम्र में हो रही हैं। वास्तव में भारत विश्व की ‘मधुमेह राजधानी’ बन सकता है। इसके अतिरिक्त जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो रहे हैं जिसमें वृद्धजनों की संख्या में वृद्धि हुई है। इस प्रकार, जनसंख्या का वह भाग बढ़ रहा है, जिसे पोषण देखभाल, सहायता और आहार सलाह की आवश्यकता है। नैदानिक पोषण विशेषज्ञ/चिकित्सा पोषण उपचारक विभिन्न बीमारियों के प्रबंधन के लिए चिकित्सीय आहार बताने के अलावा बीमारियों की रोकथाम और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
असाध्य और गंभीर बीमारियों में शरीर-क्रियात्मक और उपापचयी गड़बड़ी संबंधी नवीन वैज्ञानिक ज्ञान सामने आया है; पोषण मूल्यांकन के नए तरीके विकसित हुए हैं और अपनाए जा रहे हैं; मरीजों के पोषण की नयी तकनीक और पूरकों का उपयोग किया जा रहा है। पोषण संबंधी आधारभूत शोध ने विभिन्न पोषकों और अन्य पदार्थों जैसे - पादपरसायनों /जैवसक्रिय पदार्थों की भूमिका और खाद्य तथा औषध निर्माण उद्योग में हुए विकास पर प्रकाश डाला है। इससे नैदानिक पोषण के क्षेत्र में उन्नति हुई है। शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने जीन अभिव्यक्ति, उपापचयी नियमन और बिमारियों की रोकथाम और उपचार में प्रत्येक पोषक की भूमिका की खोज़ निर्त्तर जारी रखी हुई है। उदाहरण के लिए विशेष रूप से खाद्य पदार्थों से प्राप्त प्रति-ऑक्सीकारकों जैसे - बीटा-केरोटीन, सेलेनियम, विटामिन ई और विटामीन सी, एक संरक्षी भूमिका निभाते दिखते हैं।
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफ.एस.एस.ए.आई.) के अनुसार, विशेष आहार उपयोग के लिए खाद्य पदार्थ या न्यूट्रास्यूटिकल या स्वास्थ्य के लिए पूरक खाद्य पदार्थ का अर्थ है वह खाद्य पदार्थ जो विशेष रूप से संसाधित या विशेष आहार आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार किए जाते हैं जो किसी विशेष शारीरिक या तुलनीय प्रकृति के सामान्य खाद्य पदार्थों की संरचना में अंतर होना चाहिएण यदि इस प्रकार के सामान्य खाद्य पदार्थ अर्क, एकल या संयोजन में;
i. पौधे या वनस्पति या उनके हिस्से पाउडर के रूप में, पानी में गढ़ा करके, एथिल अल्कोहल या हाइड्रो अल्कोहलिक अर्क, एकल या संयोजन में;
ii. खनिज या विटामिन या प्रोटीन या खनिज या अन्य यौगिक या अमीनो एसिड
iii. पशु मूल के पदार्थ;
iv. मनुष्य द्वारा आहार के उपयोग के लिए एक पूरक खाद्य पदार्थ जो कुल आहार सेवन में वृद्धि करता है।
चिकित्सीय खाद्य पदार्थ वे उत्पाद हैं जो विशिष्ट आवश्यकताओं वाले लोगों के लिए विशेषरूप से तैयार किए जाते हैं। इस प्रकार के खाद्य पदार्थ नियंत्रित किए जाते हैं और किसी बीमारी या स्थिति की विशिष्ट आहार व्यवस्था के अंतर्गत केवल डॉक्टरी नुस्खे/सलाह पर इनका उपयोग किया जा सकता है।
पादप रसायन/जैवसक्रिय यौगिक खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले ऐसे अवयव होते हैं जिनकी शरीर में क्रियात्मक या जैविक क्रियाशीलता होती है और स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
मूलभूत संकल्पनाएँ
आहार विशेषज्ञ/नैदानिक पोषण चिकित्सक की भूमिका सलाह देने और तकनीकी सूचना को आहार संबंधी दिशानिर्देशों में बदलने की और यदि आवश्यक हो तो जीवन चक्र के विभिन्न स्तरों, कोख से मृत्यु तक (अर्थात् गर्भावस्था, नवजात और बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक) अच्छी पोषण स्थिति बनाए रखने और स्वस्थ्य रहने में मदद करने की होती है। इसके अतिरिक्त, पोषण और आहार चिकित्सा का उपयोग विस्तृत परिस्थितियों में मरीजों के स्वास्थ्य के संपूर्ण सुधार के लिए किया जाता है। इन परिस्थितियों के उदाहरण हैं — दस्त, उल्टी, भोजन एलर्जी, अरक्तता, बुख़ार आंत्रज्वर (टाइफॉइड), क्षयरोग, अल्सर, अतिअम्लता और हृदय जलन, मिरगी (एपिलेप्सी), जठरांत्र समस्याएँ, एड्स, कैंसर, ऑस्टेपोरोसिस, मोटापा, जलन, उपापचयी गड़बड़ और किडनी, लीवर और अग्नाशयी गड़बड़ियाँ। जिन मरीज़ों को सर्जरी करानी होती है, उन्हें सर्जरी से पहले और बाद में पोषण हस्तक्षेप/पूरक आहार की आवश्यकता होती है। अत: चिकित्सीय पोषण और आहारिकी का सरोकार विभिन्न रोगों से पीड़ित मरीज़ों की पोषण आवश्यकताओं से और उन्हें सही प्रकार का आहार सुझाने से है। आहार चिकित्सा के उद्देश्य हैं -
(i) मरीज़ की भोजन की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए आहार की सूची तैयार करना,
(ii) बीमारी के हालात को सुधारने और नियंत्रण में रखने के लिए वर्तमान आहार में परिवर्तन करना,
(iii) पोषणहीनता की स्थिति में आहार उपचार हीनता को दूर करना,
(iv) दीर्घकालिक बीमारियों में आहार उपचार अल्पकालिक और दीर्घकालिक समस्याओं को रोकने में मदद करना है और
(v) निर्धारित आहार का अनुसरण करने की आवश्यकता संबंधी शिक्षा और सलाह मरीज़ को देना।
एक आहार विशेषज्ञ के लिए आवश्यक है कि वह भोजन के स्वीकरण और उपयोग पर अस्वस्थता के प्रभाव को भी देखे। कुछ कारक जिन पर विचार किया गया है, उनमें सम्मिलित हैं-
(a) पोषण तनाव
(b) मानसिक तनाव
(c) भोजन के स्वीकरण पर अस्वस्थता का प्रभाव और
(d) परिष्कृत चिकित्सीय आहारों की स्वीकार्यता।
पोषण देखभाल प्रक्रिया किसी भी व्यक्ति या समूह पर भिन्न स्थितियों के लिए लागू की जाती है। यह स्थितियाँ हो सकती हैं - स्वस्थ व्यक्ति जो स्वस्थता/नीरोग केंद्र/कार्यक्रम के ग्राहक हैं, गर्भवती महिलाएँ,
इस प्रकार बीमारी में पोषण देखभाल गतिविधियों का एक व्यवस्थित समूह है, जिसमें हैं -
- पोषण स्थिति का मूल्यांकन करना
- पोषण समस्याओं का निदान करना
- पोषण आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए पोषण हस्तक्षेपों की योजना बनाना और वरीयता तय करना
- पोषण देखभाल के परिणामों का मूल्यांकन और जाँच करना और यदि आवश्यकता हो तो परिवर्तन करना।
वयोवृद्ध व्यक्ति,निजी चिकित्सकों के निदानगृहों में उपचार पाने वाले व्यक्तियों से लेकर अस्पताल में भर्ती मरीज़, चाहे वह नगर परिषद्, सरकारी, धर्मार्थ अथवा निजी अस्पताल हों।
डॉक्टरी पोषण और आहारिकी का अध्ययन व्यावसायियों को निम्नलिखित के लिए सक्षम बनाता है -
- जीवन चक्र के विभिन्न स्तरों की पोषण आवश्यकताओं के लिए सही तरीके से आहार की योजना बनाना,
- बीमारी की विभिन्न स्थितियों में मरीज़ की भौतिक दशा, रोज़गार, जातीय और सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, उपचार संबंधी नियम और पसंद-नापसंद को ध्यान में रखते हुए आहारों में परिवर्तन करना,
- खिलाड़ियों के लिए और विशिष्ट परिस्थितियों में जैसे अंतरिक्ष में, पनडुळ्बियों में काम करने वालों के लिए, रक्षा सेवाओं के व्यक्तियों के लिए, उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों के लिए आहारों की योजना बनाना,
- अस्पतालों में भर्ती मरीज़ों या बाह्य रोगियों के साथ-साथ संस्थानिक परिवेशों के मरीजों के स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देना,
- विभिन्न प्रकार के संस्थानिक परिवेशों जैसे- वृद्धजन आवासों, विद्यालयों, अनाथालयों इत्यादि में आहार सेवाओं का प्रबंधन करना,
- दीर्घकालिक बीमारियों जैसे - मधुमेह और हृदय रोग के रोगियों की जटिलता को रोकने और जीवन की गुणवत्ता सुधारने में मदद करना,
- समुदाय में बेहतर स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में बेहतर रोगी देखभाल प्रबंधन के रूप में समग्र देखभाल सेवाओं की बेहतर क्षमता को बढ़ावा देना और बेहतर जीवन तथा स्वास्थ्य लाभ में योगदान देना।
यह ध्यान में रखना चाहिए कि चिकित्सक ही रोगी की चिकित्सीय आवश्यकताओं, जिसमें पोषण भी सम्मिलित है, को पूरा करने के लिए मूलरूप से उत्तरदायी होते हैं। डॉक्टर आहार के बारे में बताता है। इनको लागू करने के लिए चिकित्सक, आहार विशेषज्ञ / पोषण चिकित्सक पर निर्भर रहता है। आज, आहार विशेषज्ञ मेडिकल टीम का एक अभिन्न हिस्सा है जोकि चिकित्सीय उपचार की मुख्य धारा में तेज़ी से जुड़ता चला जा रहा है।
आहार विशेषज्ञ का मूलभूत उत्तरदायित्व है कि रोगी की पोषण स्थिति का मूल्यांकन करके, पोषण आवश्यकताओं (विभिन्न बीमारियों/रोग अवस्थाओं में पोषण आवश्यकताएँ परिवर्तित होती हैं) का विश्लेषण करे और सुनिश्चित करे कि रोगी को उचित आहार और पर्याप्त पोषण देखभाल मिल रही है। साथ ही पोषण देखभाल योजना विकसित करना और अस्पताल में भर्ती अथवा बाह्य रोगी विभाग (ओ. पी. डी.) में रोगियों को उचित हिदायतें देकर उन्हें लागू करना भी उसका दायित्व है।
व्यक्ति में अच्छे पोषण को बनाए रखने के लिए सामान्य और डॉक्टरी दोनों प्रकार के आहारों की योजना बनाई जाती है। यह डॉक्टरी पोषण चिकित्सक/आहार विशेषज्ञ द्वारा भोजन के प्रतिरूप, विभिन्न प्रकार के भोजन को ग्रहण करने की आवृत्ति, बीमारी का निदान और डॉक्टर द्वारा दिया गया नुस्खा, स्वास्थ्य स्थिति और भौतिक दशा जिसमें खाने वाले भोजन को खाने, चबाने, निगलने, पचाने और अवशोषण करने की क्षमता भी सम्मिलित है, भूख का अहसास, शारीरिक गतिविधियाँ और जीवन शैली, आहारीय और
दूसरी खाई जाने वाली वस्तुएँ, सांस्कृतिक और जातीय प्रथाएँ तथा धार्मिक विश्वास को ध्यान में रखकर किया जाता है।
आओ डॉक्टरी पोषण विशेषज्ञों तथा आहारिकी विशेषज्ञों द्वारा उपयोग में लिए जाने वाले कुछ मूलभूत शब्दों की जानकारी प्राप्त करें।
आहार के प्रकार- पोषण देख-रेख संबंधी किसी योजना में सभी पोषकों को समुचित मात्रा में लेने के साथ ही आयु, जेंडर, शारीरिक अवस्था, रोज़गार और स्वास्थ्य की स्थिति के आधार पर आवश्यकताओं के अनुसार उपलब्ध कराना सम्मिलित होता है।
- एक मानव का नियमित आहार वह होता है जो सभी प्रकार के भोजनों को सम्मिलित करता है और स्वस्थ व्यक्तियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
- संशोधित आहार वे होते हैं जो रोगी की चिकित्सीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समायोजित किए जाते हैं। हालाँकि अस्पताल के नियमित आहार में तले हुए वसायुक्त खाद्य पदार्थ, मिठाइयाँ व मसाले कम होते हैं। संशोधित आहार इनमें निम्नलिखित में से एक या अधिक हो सकते हैं -
(1) क्रमबद्धता और/अथवा बनावट (जैसे-तरल और नरम आहार) (2) ऊर्जा (कैलोरी) अंतर्ग्रहण में कमी अथवा वृद्धि (3) एक या अधिक पोषकों को कम या अधिक मात्रा में शामिल करना। उदाहरण के लिए शल्यक्रिया (सर्जरी) में अधिक प्रोटीन लेना, गुर्दा (किडनी) ख़राब हो जाने पर कम प्रोटीन लेना, अधिक या कम रेशा (फ़ाइबर), कम वसा लेना, सोडियम लेने पर रोक, तरल भोजन पर रोक, कुछ विशेष खाद्य पदार्थों पर रोका जिनमें अपोषीय आहार अवयवों की मात्रा अधिक हो सकती है, उदाहरण के लिए गुर्दे में पथरी होने पर, एलर्जी की स्थितियों में कुछ विशिष्ट खाद्य पदार्थों को सम्मिलित करते हैं या हटा देते हैं (4) भोजन की संख्या परिवर्तित करते हैं अथवा भोजन करने के समय अंतराल में संशोधन करते हैं अथवा जब भोजन देने का मार्ग बदलता है तो ऐसे रोगियों के लिए विशेष योजना बनाई जाती है।
तरलता में परिवर्तन — परिस्थितियों के अनुसार, रोगियों को तरल, नरम या नियमित आहार/ ठोस खाद्य पदार्थ लेने की सलाह दी जा सकती है। (i) तरल आहार कमरे के ताप पर सामान्यत: द्रव अवस्था में रहते हैं। इन्हें पूर्ण तरल आहार के रूप में भी जाना जाता है। इनमें ऐसे खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं जो फाइबर से मुक्त होते हैं और पोषक रूप से पर्याप्त होते हैं। इसका लाभ यह है कि यदि जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) क्षेत्र सामान्य रूप से कार्य कर रहा है तो पोषक भली-भाँति अवशोषित हो जाते हैं। इस प्रकार के आहार लेने की सलाह उन व्यक्तियों को दी जाती है जो सामान्य रूप से चबा या निगल नहीं सकते। जैसे पोस्ट ऑपरेटिव रोगी या गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकारों (जैसे-अल्सर) के रोगियों आदि को। इस प्रकार के आहारों के उदाहरण हैं — नारियल पानी, फलों के रस, सूप, दूध, छाछ, मिल्क शेक, इत्यादि परंतु इनकी सीमा यह है कि व्यक्ति की पोषण आवश्यकताओं को इनसे पूर्ण रूप से पूरा करना आसान नहीं है। (ii) नरम आहार-नरम परंतु ठोस भोजन पदार्थ उपलब्ध कराता है, जो हलके पकाए जाते हैं। इनमें अधिक रेशेदार या गैस बनाने वाले खाद्य पदार्थ नहीं होते। इन आहारों को चबाना और पचाना आसान होता है। नरम आहार में सम्मिलित भोजन के
उदाहरण हैं, खिचड़ी, दलिया, इत्यादि। दिए जाने वाले खाद्य पदार्थों से अपाचन, पेट के फूलने, उबकाई, ऐंठन अथवा किसी जठरांत्र समस्या का खतरा कम-से-कम हो जाता है।
तैयार मृदु आहार — इस संदर्भ में हम बड़ी उम्र समूह के सामान्य प्रौढ़ों के लिए भी कुछ संशोधन कर सकते हैं। यह तैयार मृदु आहार कहलाता है, जिसमें वृद्धजनों के लिए नरम, कुचला हुआ और शोरबा युक्त भोजन होता है जिनको चबाने में आसानी होती है। दूसरी ओर मृदु आहार उपचार के अनुसार एक आहारी संशोधन होता है। यह पूर्णतया नरम होता है और यह केवल साधारण या आसानी से पचने वाला भोजन होता है, जिसमें कठोर रेशे, उच्च वसा या मसाले युक्त खाद्य पदार्थ नहीं होते।
भोजन देने के तरीके — रोगी को भोजन देने का सबसे सही तरीका मुँह से भोजन खिलाना है। परंतु ऐसे रोगी हो सकते हैं जिनके लिए चबाना या निगलना संभव न हो, अर्थात् यदि व्यक्ति बेहोश है या उसकी आहार नली में कोई समस्या है। ऐसे व्यक्तियों के लिए दो विकल्प हैं (a) नली द्वारा भोजन ग्रहण करना अथवा (b) अंत:शिरा से भोजन देना। नली द्वारा भोजन खिलाने में पोषण की दृष्टि से संपूर्ण भोजन नली द्वारा दे दिया जाता है। यह तरीका अंत:शिरा संभरण की अपेक्षा अधिक पसंद किया जाता है यदि जठरांत्र क्षेत्र कार्य कर रहा है और व्यक्ति को जो कुछ दिया जाता है, वह सब पचा लेता है और अवशोषित कर लेता है। अंत:शिरा संभरण का अर्थ है कि रोगी को पोषण विशेष विलयनों से दिया जाता है, जिन्हें शिरा में ड्रिप द्वारा पहुँचाया जाता है।
चिरकालिक रोगों की रोकथाम — आहार और अच्छा पोषण (साथ ही स्वस्थ जीवन शैली) रोगी व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण होने के अतिरिक्त, चिरकालिक रोगों को नियंत्रित करने और उनके प्रारंभ होने की अवस्था में विलंब कर सकता है। जो खाद्य पदार्थ आज हम उपयोग में ले रहे हैं, उनमें बहुत से अन्य पदार्थ मिलाए जाते हैं, जिनमें अधिक वसा और/या शक्कर होती है। ये अकसर अत्यधिक परिष्कृत खाद्य पदार्थों से निर्मित होते हैं और इस कारण इनमें रेशेदार और ऐसे अन्य महत्वपूर्ण अवयव कम होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। इसलिए हमें उचित विकल्प ढूँढ़ने में मदद की ज़रूरत होती है।
क्या पिछले दशक में शहरी भारतीयों के आहारों में हुए विभिन्न प्रकार के परितर्वनों को आप पहचाान सकते हैं? यह देखा जा सकता है कि वसा और परिष्कृत शक्कर का उपयोग बढ़ गया है। रेशेदार भोजन के अतिरिक्त कई विटामिनों और खनिजों का लिया जाना भी कम हो गया है। माँसाहारी लोगों में जंतु प्रोटीन का उपयोग भी बढ़ गया है।
इन आहार संबंधी परिवर्तनों के क्या परिणाम हैं? प्रमुख रूप से, ये परिवर्तन चिरकालिक रोगों, जैसे-मोटापा, कोलन का कैंसर, मधुमेह, हृदयरोग और अतितनाव, की बढ़ती संख्या से संबंधित हैं। उदाहरण के लिए शक्कर और वसा के बढ़ते उपभोग के साथ रेशों के कम उपभोग और शारीरिक गतिविधियों में कमी के कारण मोटापा और मधुमेह रोग पनप रहे हैं। यह भी पाया गया है कि अधिक लवण युक्त खाद्य पदार्थों, अधिक सोडियम अंश वाले संसाधित खाद्य पदार्थों, पोटेशियम से परिपूर्ण फलों, सब्जियों, अनाजों और दालों का कम उपयोग, संभवत: कम कैल्सियम अंत:ग्रहण, कम शारीरिक गतिविधियाँ और तनाव (उच्च रक्तचाप) के खतरे को बढ़ाने के लिए उत्तरदायी हैं।
नैदानिक पोषण विशेषज्ञ इस प्रकार की समस्याओं के उत्पन्न होने को रोकने के लिए समाज के विभिन्न समूहों, जैसे - विद्यालय, महाविद्यालय, इत्यादि को उचित आहार परामर्श और मार्गदर्शन दे सकते हैं।
वैज्ञानिकों को आहार और रोगों के बीच संबंध का पता चला है। उदाहरण के लिए 20,000 पुरुषों के नैदानिक अध्ययन में पाया गया कि सप्ताह में एक बार मछली खाने वालों में हृदय रोग से अचानक मरने की संभावना में $52 \%$ की कमी आती है। मछली में ओमेगा-3 वसा अम्लों की मात्रा अधिक होती है, जो कोशिकाओं के आवश्यक अवयव होते हैं और हृदय को घातक एरीथीमियास (असामान्य हृदय लय/ताल) जैसे रोगों से बचा सकता है।
42,000 महिलाओं के एक अन्य डॉक्टरी अध्ययन में पाया गया कि जो महिलाएँ खूब फल, सब्जियाँ, पूर्ण अनाज, निम्न वसा के दुाध उत्पाद और बिना चरबी का माँस खाने वाली थीं वे अधिक समय तक जीवित रहीं। अधिक फल, सब्ज़याँ और दालें खाने से हृदय रोग उत्पन्न होने का ख़तरा कम हो जाता है।
आप निम्नलिखित के बारे में क्या निष्कर्ष निकालते हैं -
(a) रोग उत्पन्न करने में आहार की भूमिका
b) रोगों की रोकथाम में आहार की भूमिका
जीविका की तैयारी
व्यावसायिक नैदानिक, आहार विशेषज्ञ या आहार विशेषज्ञ में आवश्यक रूप से निम्नलिखित कौशल होने चाहिए -
- रोग की पारिस्थितियों में शारीरिक परिवर्तनों, पोषक तत्व की प्रस्तावित दैनिक मात्रा (आर. डी. ए.) में परिवर्तनों, पोषक तत्व की प्रस्तावित दैनिक मात्रा (आर. डी.ए.) में परिवर्तन/ बीमारी में पोषकों की आवश्यकता और आवश्यक आहारी संशोधनों के प्रकार, परंपरागत और जातीय पाक - विधियों, रोगियों के साथ प्रभावी रूप से बातचीत के लिए विभिन्न भाषाओं का ज्ञान।
- नैदानिक और जैवरासायनिक मापदंडों का उपयोग कर रोगियों की आहारी दशा के मूल्यांकन, वैयक्तिक रोगियों और विशिष्ट रोग परिस्थितियों में आवश्यकताओं के अनुरूप आहार योजना तैयार करने, रोगियों के लिए आहारों की संस्तुति करने और देने, आहार की सलाह हेतु बातचीत करने, सांस्कृतिक वातावरण को अपनाने तथा भोजन निषिद्धता और मिथ्या धारणाओं से मुक्त होने का कौशल।
यह बहुत आवश्यक है कि पोषण, भोजन विज्ञान, भोजन संघटन, नैदानिक पोषण और आहारिकी अथवा आज-कल प्रचलित पारिभाषिकी जैसे-चिकित्सीय पोषण उपचार अथवा
चिकित्सीय पोषण प्रबंधन के विषय क्षेत्रों का (सैद्धांतिक और प्रायोगिक दोनों का) ज्ञान हो। इसके लिए नैदानिक आहार विशेषजों और आहार विशेषजों को मूलभूत जैविक और भौतिक विज्ञानों जिसमें रसायन, जीवविज्ञान, शरीर विज्ञान, जैव रसायन सम्मिलित हैं, का पूरा ज्ञान और समझ होनी चाहिए, क्योंकि भोजन सुरक्षा, विशेष रूप से संस्थानों में सुरक्षा संकटपूर्ण होती है, अत: उसे सूक्ष्मजैविकी और खाद्य सूक्ष्मजैविकी तथा सुरक्षा, खाद्य गुणवत्ता और आश्वासन, खाद्य कानूनों और नियमनों, भोजन तैयार करने, उसके भंडारण और परोसने के विभिन्न उपकरणों के रख-रखाव और प्रभावी उपयोग का ज्ञान आवश्यक रूप से होना चाहिए। भोजन परोसने के प्रबंधन और तैयार किए जाने वाले भोजन की मात्रा का ज्ञान होना आवश्यक है। बहीखाता और हिसाब-किताब, रिकॉर्ड रखना, प्रबंधन-विशेष रूप से कर्मचारियों का प्रबंधन महत्वपूर्ण है। आहार विशेषज्ञ के काम के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक रोगियों को परामर्श देना है। रोग शरीर और मानस में परिवर्तन लाता है। इससे शरीर की शारीरिक और मानसिक/भावात्मक दशाओं दोनों पर भारी प्रभाव पड़ सकता है। परामर्श सेवा एक कला और विज्ञान है। एक अच्छा आहार परामर्शदाता बनने के लिए, आहार विशेषज्ञ को मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, शिक्षा और परामर्श सेवा का ज्ञान होना चाहिए।
नैदानिक पोषणाविद् को महामारी विज्ञान (एपिडेमिओलॉजी) और आहारिकी विकार तथा रोगों के उत्पन्न होने और व्यापकता के पैटर्न का अतिरिक्त ज्ञान, रोगियों की संख्या का सर्वेक्षण करने का कौशल, जैव रसायन मापदंडों का उपयोग कर प्रयोगशाला शोध में कौशल, विभिन्न आहारों, औषधियों और पोषक पूरकों की उपयोगिता का पता लगाने के लिए रोगियों के साथ प्रयोगात्मक अनुसंधान तैयार करने के कौशल की आवश्यकता होती है।
जीविका के लिए तैयारी
यदि आप आहार विशेषज्ञ बनना चाहते हैं, तो आपको कम-से-कम आहारिकी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पास करना होगा और साथ ही इंटर्नशिप करनी होगी, जिससे आप पंजीकृत आहार विशेषज़ के योग्य हो सकें। जिनके पास जीवन विज्ञान, जैवरसायन, सूक्ष्मजैविकी, खाद्य प्रौद्योगिकी या जैवर्रौद्योगिकी में बी.एससी. की डिग्री है, वे इस क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिप्लोमा स्तर पर प्रवेश पा सकते हैं। खाद्य विज्ञान और पोषण अथवा आहारिकी में एम.एससी. किसी भी व्यक्ति को इस क्षेत्र में विशेषज्ञात प्रदान करती है और ऐसे व्यक्ति को कई स्थानों पर नौकरी में वरीयता दी जाती है। एक आहार विशेषज्ञ अपनी विश्वविद्यालय की शिक्षा पूरी करने के बाद आगे अध्ययन करके ‘पंजीकृत आहार विशेषज्’ की योग्यता का प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकता है। बहुत से देशों में इस संबंध में नियंत्रक कानून हैं। यदि आप शिक्षण और शोध पर केंद्रित जीविका का चयन करते हैं तो विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और शोध संस्थानों में बहुत से विकल्प खुल जाते हैं। शिक्षण संबंध पदों के लिए योग्य होने के लिए अब आवश्यक हो गया है कि आप विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अथवा राज्य पात्रता परीक्षा को पास करें। यह सलाह दी जाती है कि यदि आप शैक्षिक या शोध क्षेत्रों में अपनी जीविका चाहते हैं तो आप पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त कर लें।
कार्यक्षेत्र
नैदानिक पोषण और आहारिकी में पोषण विशेषज, आहार सलाहकार, शिक्षक, शोधकर्ता या उद्योग सलाहकार के रूप में संतोषजनक जीविका के लिए पर्याप्त कार्य करने के अवसर और क्षमताएँ हैं। इस क्षेत्र में प्राथमिक जीविका के अवसरों में — आहार विशेषज्ञ, आहार सलाहकार अथवा नैदानिक पोषण विशेषज़ बनना शामिल हैं जो शोध और/अथवा शिक्षण में कार्यरत् हों। इसके अतिरिक्त नैदानिक पोषण विशेषज्ञों के लिए ऐसे उद्योगों में जीविका के अवसर हैं जो शोध और विकास से तथा चिकित्सीय खाद्य पदार्थों, पोषण औषधियों, नली से लिए जाने वाले आहारों, विभिन्न प्रकार के पोषण सहायक फार्मूला बनाने के प्रयोजन खाद्य पदार्थों से संबंधित हैं।
यदि आपकी रोग की स्थितियों पर नियंत्रण, रोकथाम और उपचार के लिए भोजन के उपयोग के तरीकों को सुधारने में गहरी रुचि है तो आपके लिए नैदानिक पोषण और आहारिकी ऐसा क्षेत्र है जिसे आपको चुनना चाहिए। डॉक्टरी पोषण और आहारिकी का भविष्य उज्ज्वल है। यद्यपि हम में से अधिकांश को आहार विशेषजों और आहार सलाहकारों की भूमिका के बारे में पता है, लेकिन हमें शायद यह जानकारी नहीं है कि बीमारी की परिस्थितियों द्वारा होने वाले शारीरिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों पर शोध करने के अवसरों का दायरा बढ़ता जा रहा है। विभिन्न प्रकार की रोग स्थितियों की रोकथाम, उपचार और इलाज में पोषण के महत्त्व की स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। शोध से दवाओं और पोषण पूरकों का विकास; सामाजिक परिवेश में रोगियों के पुनर्वास; आहार संबंधी दिशानिर्देश और पोषण शिक्षा का विकास हुआ है।
इसके अतिरिक्त नैदानिक पोषण-विशेषज्ञ की सार्वजनिक योजना बनाने और पोषणहीनता से होने वाले विकारों को दूर करने के लिए रोकथाम और प्रोत्साहक पोषण कार्यक्रमों को बनाने और लागू करने में भूमिका हो सकती है। आप अस्पतालों/क्लीनिकों कल्याण केंद्रों/जिम/स्लिमिंग क्लीनिक में आहार विशेषज्ञ और सलाहकार के रूप में, विश्वविद्यालय या महाविद्यालय में शिक्षक के रूप में, चिकित्सीय शोध संस्थानों और पोषण शोध प्रयोगशालाओं में, चिकित्सीय खाद्यपदार्थ और पूरकों का उत्पादन करने वाली कंपनियों में सलाहकार के रूप में, अस्पतालों में भोजन सेवा प्रदाता/्रबंधक के रूप में रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं। आप अपने खुद के उद्यम चलाने वाले फ्रिलाँसर आहार सलाहकार या आहार विशेषज्ञ के रूप में भी काम कर सकते हैं।
जीविका के अवसर
- स्वास्थ्य क्लबों या व्यायामशालाओं में सलाहकारोंचिकित्सकों के साथ आहार विशेषज्ञ
- अस्पतालों में विशिष्ट विभागों सहित अन्य में आहार विशेषज्ञ के रूप में स्वास्थ्य देखभाल दल को पोषण-सहायता करने वाला प्रमुख सदस्य
- अस्पतालों, विद्यालयों, उद्योगों के अल्पाहार गॄहों, इत्यादि की खान-पान सेवाओं में आहार विशेषज्ञा
- उद्यमी जो विशिष्ट स्वास्थ्य प्रयोजनों के लिए विशिष्ट प्रकार के खाद्य पदार्थों का विकास और आपूर्ति करते हैं।
- शिक्षण और शैक्षिक
- शोध जिसमें चिकित्सीय शोध भी सम्मिलित है।
- पोषण विपणन
- तकनीकी लेखन
आहारिकी, नैदानिक पोषण, आहारी संशोधन, चिकित्सीय आहार, रोग की रोकथाम, पोषण परामर्श सेवा।
पुनरवलोकन प्रश्न
1. नैदानिक पोषण और आहारिकी के अध्ययन का क्या महत्व है?
2. आहारीय संशोधन क्या है, जो एक चिकित्सीय पोषण विशेषज्ञ कर सकता है?
3. विभिन्न प्रकार के चिरकालिक रोगों से बचने के लिए हमें आहारी परिवर्तनों की आवश्यकता क्यों होती है? ये जीवन शैली से किस प्रकार संबंधित हैं?
4. एक आहार विशेषज्ञ की भूमिकाएँ क्या होती हैं? एक आहार विशेषज्ञ रोगी की देखभाल के लिए, अन्य स्वास्थ्य देखभाल करने वाले कर्मचारियों के साथ टीम कैसे बनाता है?
5. डॉक्टरी पोषण और आहार विशेषज्ञों की जीविका के लिए हम कैसे तैयारी कर सकते हैं?
6. अस्वस्थता/रोग किस प्रकार किसी व्यक्ति की पोषण स्थिति को प्रभावित करता है?
प्रायोगिक कार्य - 1
विषयवस्तु — वृद्धजनों के लिए सामान्य आहार को मृदु आहार में परिवर्तित करना
कार्य - 1. एक वृद्धजन से बातचीत करके उनके द्वारा एक दिन में लिए जाने वाले भोजन की मात्रा को रिकॉर्ड करना।
2. यह जानने के लिए आहार का आकलन करना कि क्या यह पोषण की दृष्टि से संतुलित है।
3. मृदु आहार की आवश्यकता वाले वृद्धजन की आवश्यकता के अनुरूप आहार को संशोधित करना।
4. संशोधित आहार का यह जानने के लिए आकलन करना कि क्या यह पोषण की दृष्टि से संतुलित है।
5. वृद्धजन से बात कर तय करना कि क्या संशोधित आहार उन्हें स्वीकार होगा।
उदेश्य — यह प्रयोग विद्यार्थियों को विशिष्ट उद्देश्य के लिए आहार संशोधन और व्यक्ति के आयु, जेंडर और स्वास्थ्य स्थिति को ध्यान में रखते हुए, अच्छा-संतुलित, पोषक आहार देने के महत्त्व की मूलभूत अवधारणाओं को समझने के योग्य बनाएगा। यह उनको व्यक्ति से साक्षात्कार करके आहार के अंत:ग्रहण को रिकॉर्ड करने का भी अवसर देगा।
प्रयोग कराना
शिक्षकों के लिए टिप्पणी- प्रयोग का पहला भाग (कार्य 1 और 2 ) लगभग एक 60 वर्षीय व्यक्ति के साथ करना है और आहार का संशोधन (कार्य 3,4 और 5 ) एक वृद्ध व्यक्ति के साथ करना है, जैसे अगले पृष्ठ पर दिया गया है।
इस प्रयोग को विद्यार्थी अगले या जोड़े बनाकर संपादित कर सकते हैं -
1. प्रत्येक विद्यार्थी/जोड़ा अपने परिवार अथवा पड़ोस के 60 वर्ष से कम आयु के पुरुष या महिला के साथ साक्षात्कार करे।
2. एक दिन का आहार अर्थात् भोजन जिसमें सभी द्रव और पेय पदार्थ सम्मिलित हैं, के बारे में दिए गए प्रारूप में रिकॉर्ड करें। आपके संदर्भ के लिए उदाहरण आगे दिया गया है।
3. अब आहार का आकलन यहाँ दिए जा रहे दिशानिर्देशों द्वारा यह जानने के लिए किया जा सकता है कि यह पोषण की दृष्टि से सही तरीके से संतुलित है या नहीं।
4. फिर इस आहार को संशोधित कर निम्नलिखित परिस्थितियों के लिए मृदु (चबाने और निगलने में सुविधाजनक) में परिवर्तित किया जा सकता है- (शिक्षकों के लिए टिप्पणी - निम्नलिखित में से एक प्रत्येक विद्यार्थी या जोड़े को दिया जा सकता है)
(a) एक बड़ी आयु के पुरुष/महिला जिसके दाँत न हों- आयु 70 वर्ष।
(b) एक बड़ी आयु के पुरुष/महिला जिसके दाँत नहीं हैं और उन्हें निगलने में असुविधा होती है।
(c) एक बड़ी आयु के पुरुष/महिला जो नकली दाँत लगाते हों (आयु लगभग 60-65)
(d) एक बड़ी आयु का पुरुष/महिला जिनके चर्वणक (चवर्ण-दंत) न हों।
5. संशोधित आहार का आकलन कीजिए कि क्या वह पोषण की दृष्टि से संतुलित है।
6. अपने परिवार अथवा पड़ोस के वृद्धजनों से बातचीत कीजिए।
7. अपनी आहार योजना उन्हें बताइए और उनकी टिप्पणियों और सुझावों को रिकॉर्ड कीजिए।
8. शिक्षक इस अभ्यास पर चर्चा कक्षा में कराएँ।
24- घंटे में लिए गए आहार का रिकॉर्ड
दिन का समय | भोजन | व्यंजन सूची | संघटक | खाई गई मात्रा (घरेलू माप में) |
टिप्पणी* |
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प्रात:काल से कुछ पहले | चाय | ||||
प्रात:काल | नाश्ता | ||||
प्रातःकाल और अपराह्न के मध्य |
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अपराह्न | भोजन | ||||
संध्याकाल | |||||
रात्रि काल | रात्रि भोजन | ||||
सोने से पहले |
- किसी भी अतिरिक्त अवयव को नोट कीजिए, जैसे - दूध में शक्कर, चपाती या चावल पर घी, दूध में कुछ अन्य पूरक सामग्री, ब्रेड या चपाती के साथ खाई गयी शक्कर, गुड़ या शहद, इत्यादि को नोट कीजिए।
खाए गए भोजन को रिकॉर्ड करने का उदाहरण
दिन का समय | भोजन | व्यंजन सूची | संघटक | खाई गई मात्रा | टिप्पणी* |
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उदाहरण 6:30 प्रात: |
चाय | चाय | दूध, शक्कर | 1 मग | दो चम्मच शक्कर मिलाई |
7:30 प्रातः | नाश्ता | आमलेट के | ब्रेड, मक्खन | 2 स्लाइस | |
साथ ब्रेड | अंडा- 1 तेल, | 2 स्लाइस 1 आमलेट |
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प्याज़, धनिया | 1 मग दूध | 1 चम्मच शक्कर | |||
दूध | दूध | मिलाई: पूरक | |||
पदार्थ मिलाएँ | |||||
जैसे 1 चम्मच |
आहार की गुणवत्ता और क्या आहार पोषण की दृष्टि से संतुलित है, का आकलन करने हेतु निर्देशिका
खाद्य समूह | भोजन को कितनी बार परोसा गया |
परोसने की संस्तुत संख्या |
संस्तुत्त मात्रा और उपभोग में अंतर |
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अनाज और मोटे अनाज | लगभग 10 | ||
दालें और फलियाँ | 2 | ||
हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ | 1/2 से 1 कटोरी पकी हुई | ||
अन्य सब्ज़ियाँ | 2 कटोरी B पकी हुई | ||
मूल और कंद | 1/2 से 1 कटोरी | ||
फल | 2-3 बार A | ||
दूध/दूध उत्पाद जैसे - दही | 1 गिलास /1 कटोरी | ||
प्रत्यक्ष वसा और तेल, मक्खन, घी, इत्यादि सहित | 6 चम्मच* | ||
शक्कर और गुड़ | 4 चम्मच |
नोट- ग्रहण की जाने वाली अधिकतम वांछनीय मात्रा
(a) फलों में कम-से-कम एक विटामिन $\mathrm{C}$ का स्रोत होना चाहिए
(b) सलाद सहित