अध्याय 03 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

आप आंकड़ों के विभिन्न प्रकारों को दर्शाने वाले आलेख, आरेख और मानचित्र देख चुके हैं। उदाहरण के लिए, ग्यारहवों कक्षा की पुस्तक, भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य, भाग-I (एन. सी. ई. आर. टी., 2006) के प्रथम अध्याय में दिखाए गए विषयक मानचित्र, महाराष्ट्र में नागपुर जिले के उच्चावच और ढाल, जलवायु दशाएँ, चट्टानों और खनिज़ों का वितरण, मृदा, जनसंख्या, उद्योग, सामान्य भूमि उपयोग और फसल प्रतिरूप को चित्रित करते हैं। ये मानचित्र अनेक संबंधित आंकड़ों के एकत्रीकरण, संकलन और प्रक्रमण द्वारा तैयार किए जाते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि यदि संबंधित सूचना या तो तालिकाबद्ध रूप में अथवा विश्लेषणात्मक प्रतिलिपि में हो तो क्या होगा? शायद इस तरह के संचार माध्यम से दृश्यांकन को चित्रित करना संभव नहीं होगा जो कि हम इन मानचित्रों द्वारा प्राप्त करते हैं। इसके अतिरिक्त जो कुछ बिना आलेखन रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, उसके बारे में निष्कर्षों को निकालना समय को नष्ट करना ही होगा। इसलिए आलेख, आरेख और मानचित्र, प्रदर्शित तथ्यों के बीच अर्थपूर्ण तुलनाओं को बनाने में हमारी क्षमताओं में वृद्धि करते हैं, हमारा समय बचाते हैं और प्रदर्शित लक्षणों का एक सरल दृश्य प्रस्तुत करते हैं। प्रस्तुत अध्याय में हम विभिन्न प्रकार के आलेख, आरेख मानचित्र बनाने की विधियों का वर्णन करेंगे।

आंकड़ों का प्रदर्शन

आंकड़े उन तथ्यों की विशेषताओं का वर्णन करते हैं जो वे प्रदर्शित करते हैं। वे विभिन्न स्रोतों से एकत्रित किए जाते हैं (अध्याय-1)। इन दिनों भूगोलवेत्ता, अर्थशास्त्री, संसाधन वैज्ञानिक और निर्णयकर्ता बहुतायत आंकड़ों का उपयोग करते हैं। तालिकाबद्ध रूप के अतिरिक्त, आंकड़े कुछ आलेखीय, अथवा आरेखीय रूप में भी प्रदर्शित किए जा सकते हैं। दृश्य विधि जैसे आलेख, आरेख, मानचित्र और चार्ट द्वारा आंकड़ों के रूपांतरण को आंकड़ों का प्रदर्शन कहते हैं। आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण का यह रूप किसी भौगोलिक सीमा में जनसंख्या वृद्धि, वितरण तथा घनत्व, लिंगानुपात, आयु-लिंग संयोजन, व्यावसायिक संरचना आदि के प्रतिरूपों को सहज बनाता है। एक चीनी लोकोक्ति के अनुसार, “एक चित्र हज़ारों शब्दों के बराबर होता है।” आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण की आलेखी विधि हमारी समझ को बढ़ाती है और तुलनाओं को आसान बनाती है। इसके अतिरिक्त इस प्रकार की विधियाँ एक लंबे समय के लिए मस्तिष्क पर अपनी छाप छोड़ देती हैं।

आलेखों, आरेखों और मानचित्रों के चित्रांकन के सामान्य नियम

1. उपयुक्त विधि का चयन

आंकडे़ विभिन्न प्रकार की विषय वस्तु जैसे तापमान, वर्षा, जनसंख्या वृद्धि एवं वितरण, विभिन्न उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन, वितरण और व्यापार आदि को प्रस्तुत करते हैं। आंकड़ों की इन विशेषताओं को उपयुक्त आलेखी विधि द्वारा उपयुक्त ढंग से प्रदर्शित करने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए विभिन्न देशों/राज्यों के लिए तापमान और विभिन्न समयावधि के बीच जनसंख्या वृद्धि से संबंधित आंकड़े रेखा ग्राफ़ द्वारा सबसे अच्छे रूप में प्रदर्शित किए जा सकते हैं। इसी तरह दंड आरेख, वर्षा और उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन को दर्शाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। जनसंख्या वितरण, मानव और पशुधन दोनों अथवा फसल उत्पादक क्षेत्रों का वितरण बिंदु मानचित्र द्वारा और जनसंख्या घनत्व वर्णमात्री मानचित्र द्वारा अनुकूल ढंग से प्रदर्शित किए जा सकते हैं।

2. उपयुक्त मापनी का चयन

मापनी का उपयोग आरेख तथा मानचित्रों पर आंकड़ों की माप को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। इसलिए, दिए गए आंकड़ों के समूह के लिए उपयुक्त मापनी का चुनाव सावधानी से और संपूर्ण आंकड़े जिनको प्रदर्शित करना है, उसे ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। मापनी न तो बहुत बड़ी होनी चाहिए और न ही बहुत छोटी होनी चाहिए।

3. अभिकल्पना

हम जानते हैं कि अभिकल्पना एक महत्वपूर्ण मानचित्र कला संबंधी कार्य है। {11वों कक्षा की पाठ्यपुस्तक, भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य, भाग-1, (एन. सी. ई. आर. टी. 2006) के प्रथम अध्याय - ‘मानचित्र बनाने के लिए आवश्यक तत्त्व’ में देखें}। मानचित्र कला संबंधी निम्नलिखित अभिकल्पना घटक महत्वपूर्ण हैं। इसलिए ये अंकित आरेख/मानचित्र पर सावधानीपूर्वक प्रदर्शित किए जाने चाहिए।

शीर्षक

तैयार आरेख/मानचित्र का शीर्षक, क्षेत्र का नाम, प्रयुक्त आंकड़ों का संदर्भ वर्ष और आरेख के शीर्षक को दर्शाता है। ये घटक विभिन्न आकार और मोटाई के अक्षरों और संख्याओं द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। अतः चुने गए फांट, माप और मोटाई, कागज़ के आकार तथा मानचित्र/आरेख को चित्रित करने के लिए प्रयुक्त स्थान में एक आकर्षक दृश्य देने में सक्षम हो। इसके अतिरिक्त उनका स्थान निर्धारण भी महत्त्व रखता है। साधारणतया शीर्षक, उपशीर्षक और संदर्भित वर्ष मानचित्र/आरेख में सबसे ऊपर व बीच में दर्शाया जाता है।

निर्देशिका

निर्देशिका अथवा सूचिका किसी भी मानचित्र/आरेख का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह मानचित्र और चित्र में उपयोग किए गए रंगों, छाया, प्रतीकों और चिह्नों की व्याख्या करता है। इसे सावधानीपूर्वक बनाना चाहिए और मानचित्र और आरेख की विषयवस्तु के अनुरूप होना चाहिए। इसके अतिरिक्त इसका सही स्थिति निर्धारण भी आवश्यक है। सामान्यतया एक निर्देशिका या तो मानचित्र पत्रक पर नीचे बाईं ओर या नीचे दाईं ओर दर्शाई जाती हैं।

दिशा

पृथ्वी की धरातल के भाग का प्रदर्शन होने के कारण मानचित्र पर मुख्य दिशाओं के निर्धारण की भी आवश्यकता होती है। इसलिए दिशा प्रतीक अर्थात् अंतिम मानचित्र पर उत्तर दिशा के प्रतीक को निर्दिष्ट स्थान में अंकित करना चाहिए।

आरेखों की रचना

आंकड़े मापने योग्य विशेषताओं जैसे लंबाई, चौड़ाई तथा मात्रा से युक्त होते हैं। आरेख और मानचित्र जो कि इन विशेषताओं से संबंधित आंकड़ों को प्रदर्शित करने के लिए खींचे जाते हैं, उन्हें निम्नलिखित तरीकों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

(i) एक-आयामी आरेख, जैसे - रेखा ग्राफ़, बहुरेखाचित्र, दंड आरेख, आयत चित्र, आयु-लिंग पिरामिड आदि;
(ii) द्वि-आयामी आरेख, जैसे - वृत आरेख, और आयताकार आरेख;
(iii) त्रि-आयामी आरेख, जैसे - घन और गोलाकार आरेख।

इन विभिन्न प्रकार के आरेखों और मानचित्रों के निर्माण की विधियों पर, समय की कमी के कारण विचार करना संभव नहीं होगा। इसलिए हम सर्वाधिक प्रचलित आरेखों और मानचित्र का वर्णन करेंगें और उनके निर्माण का तरीका बताएँगें, ये इस प्रकार हैं :

  • रेखा ग्राफ़
  • दंड आरेख
  • वृत्त आरेख
  • पवन आरेख और तारा आरेख
  • प्रवाह संचित्र

रेखा ग्राफफ

रेखा ग्राफ़ सामान्यतः तापमान, वर्षा, जनसंख्या वृद्धि, जन्म दर और मृत्यु दर से संबंधित समय क्रम के आंकड़ा को प्रदर्शित करने के लिए खींचा जाता है। तालिका 3.1, चित्र 3.2 की रचना के लिए आंकड़ा प्रस्तुत करती है।

रेखा ग्राफ़ की रचना

(क) आंकड़े को पूर्णांक में बदल कर इसे सरल बना देते हैं जैसे कि तालिका 3.1 में 1961 और 1981 के लिए दर्शाए गए जनसंख्या वृद्धि दर को क्रमशः 2.0 और 2.2 पूर्णांक में बदला जा सकता है।

( ख) X और Y अक्ष खींचिए। समय क्रम चरों (वर्ष/महीना) को X अक्ष पर और आंकड़ों के मात्रा/मूल्य (जनसंख्या वृद्धि को प्रतिशत अथवा तापमान को से. में) को Y अक्ष पर अंकित करें।

( ग) एक उपयुक्त मापनी को चुनिए और Y अक्ष पर अंकित कर दीजिए। यदि आंकड़ा एक ॠणात्मक मूल्य है तो चुनी हुई मापनी को इसे भी दर्शाना चाहिए जैसा कि चित्र 3.1 में दिखाया गया है।


( घ) Y अक्ष पर चुनी हुई मापनी के अनुसार वर्ष/माह वार दर्शाने के लिए आँकड़े अंकित कीजिए और बिंदु द्वारा अंकित मूल्यों की स्थिति चिह्नित करें तथा इन बिंदुओं को हाथ से रेखा खींचकर मिलाएँ।

उदाहरण 3.1 : तालिका 3.1 में दिए गए आंकड़े को प्रदर्शित करने के लिए एक रेखा ग्राफ़ की रचना कीजिए।

तालिका 3.1 : भारत में जनसंख्या की वृद्धि दर - 1901 से 2011

वर्ष वृद्धि दर
% में
1901 -
1911 0.56
1921 -0.3
1931 1.04
1941 1.33
1951 1.25
1961 1.96
1971 2.2
1981 2.22
1991 2.14
2001 1.93
2011 1.79

चित्र 3.2 : भारत में जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि 1901-2011

क्रिया

चित्र 3.2 में दिखाए गए 1911 और 1921 के बीच जनसंख्या में अचानक आए परिवर्तन के लिए कारणों को खोजिए।

बहुरेखाचित्र

बहुरेखाचित्र एक रेखा ग्राफ़ है जिसमें दो या दो से अधिक चरों की तत्काल तुलना के लिए, रेखाओं की बराबर संख्या द्वारा दर्शाए गए हैं जैसे विभिन्न फसलों चावल, गेूूँ, दालों का वृद्धि दर अथवा विभिन्न राज्यों अथवा देशों की जन्म दर और मृत्यु दर, जीवन संभावना अथवा लिंग अनुपात। एक अलग रेखा प्रतिरूप जैसे सीधी रेखा (-), टूटी रेखा (—), बिंदु रेखा (…) अथवा बिंदु और टूटी रेखा का मिश्रण (—-) अथवा विभिन्न रंगों की एक रेखा का प्रयोग विभिन्न चरों के मानों को प्रदर्शित करने के लिए किया जा सकता है (चित्र 3.3)।

उदाहरण 3.2 : तालिका 3.2 में दिए गए विभिन्न राज्यों में लिंग अनुपात की वृद्धि की तुलना के लिए एक बहुरेखाचित्र की रचना कीजिए।

तालिका 3.2 : चुने हुए राज्यों का लिंग अनुपात (स्त्रियाँ/1000 पुरुष) 19612011

राज्य/संघ शासित क्षेत्र 1961 1971 1981 1991 2001 2011
दिल्ली 785 801 808 827 821 866
हरियाणा 868 867 870 86 846 877
उत्तर प्रदेश 907 876 882 876 898 908

स्रोत : 2011 की जनगणना के आंकड़े।

चित्र 3.3 : चुने हुए राज्यों का लिंग अनुपात 1961-2011

दंड आरेख

दंड आरेख बराबर चौड़ाई के कॉलम द्वारा खींचा जाता है। इसे स्तंभ आरेख भी कहते हैं। दंड आरेख की रचना करते समय निम्नलिखित नियमों को ध्यान में रखना चाहिए :

(i) सभी दंडों अथवा स्तंभों की चौड़ाई बराबर होनी चाहिए।
(ii) सभी दंड बराबर अंतराल/दूरी पर स्थापित होने चाहिए।
(iii) दंडों को एक-दूसरे से विभिन्न और आकर्षक बनाने के लिए रंगों अथवा प्रतिरूपों से छायांकित किया जा सकता है। साधारण, मिश्रित अथवा बहुदंड आरेखों की आंकड़ों के अनुरूप रचना की जा सकती है। साधारण दंड आरेख एक साधारण दंड आरेख की रचना तत्काल तुलना के लिए की जाती है। चढ़ते और उतरते हुए क्रम में दिए गए आंकड़ा समूह को व्यवस्थित करना और चरों के अनुसार रचना करना उपयुक्त है। यद्यपि समय क्रमे कुले आंकड़े समय अंतराल के अनुक्रम में प्रदर्शित किए जाते हैं।

उदाहरण 3.3 : तालिका 3.3 में दिए गए थिरुवनंथपुरम की वर्षा के आंकड़े को प्रदर्शित करने के लिए एक सामान्य दंड आरेख की रचना कीजिए।

तालिका 3.3 : थिर्वनंथपुरम की औसत मासिक वर्षा

मास जन. फर. मार्च अप्रै. मई जून जुलाई अग. सि. अक्टू. नव. दिस.
वर्षा ( से.मी. ) में 2.3 2.1 3.7 10.6 20.8 35.6 22.3 14.6 13.8 27.3 20.6 7.5

रचना

एक ग्राफ पेपर पर X और Y अक्ष खींचिए। 5 से.मी. का अंतराल लीजिए और इसे Y अक्ष पर से.मी. में वर्षा का आंकड़ा दर्शाने के लिए अंकित कीजिए। 12 महीनों को दर्शाने के लिए Y अक्ष को 12 बराबर भागों में बाँट दीजिए। प्रत्येक महीने के लिए वास्तविक वर्षा मानों को चित्र 3.4 में दर्शाई गई, चुनी हुई मापनी के अनुसार दर्शाया जाएगा।

चित्र 3.4 : थिरुवनंथुपुरम को औसत मासिक वर्षा

रेखा और दंड आरेख

रेखा एवं दंड आरेख पृथक् बनाए जा सकते है तथापि एक-दूसरे की निकट विशेषताओं जैसे - औसत मासिक तापमान और वर्षा से संबंधित आंकड़ों को चित्रित करने के लिए रेखा ग्राफ़ और दंड आरेख को मिला कर भी खींचा जा सकता है। ऐसा करने के लिए एक अकेला आरेख जिसमें मास X अक्ष पर प्रदर्शित किए जाते हैं जबकि तापमान और वर्षा Y अक्ष पर आरेख के दोनों तरफ़ दर्शाए जाते हैं।

उदाहरण 3.4 : तालिका 3.4 में दिए गए दिल्ली की औसत मासिक वर्षा और तापमान को दर्शाने के लिए एक रेखा ग्राफ़ और दंड आरेख की रचना कीजिए।

तालिका 3.4 : दिल्ली में औसत मासिक तापमान और वर्षा

मास तापमान वर्षा (से. मी.) में
जन. 14.4 2.5
फर. 16.7 1.5
मार्च 23.3 1.3
अप्रैल 30.0 1.0
मई 33.3 1.8
जून 33.3 7.4
जुलाई 30.0 19.3
अगस्त 29.4 17.8
सितम्बर 28.9 11.9
अक्टूबर 25.6 1.3
नवम्बर 19.4 0.2
दिसम्बर 15.6 1.0

(1) एक उपयुक्त लंबाई के X और Y अक्ष खींचिए और वर्ष के 12 महीनों को दर्शाने के लिए X अक्ष को 12 भागों में बाँट दीजिए।

(2) Y अक्ष पर तापमान आंकड़े के लिए 5 से. या 10 से. के बराबर अंतराल के अनुसार एक उपयुक्त मापनी चुनिए और इसे इसके दाईं तरफ़ अंकित कीजिए।

(3) इसी तरह Y अक्ष पर वर्षा के आंकड़े के लिए 5 से.मी. अथवा 10 से.मी. के बराबर अंतराल के अनुसार उपयुक्त मापनी चुनिए और इसे इसके बाईं तरफ़ अंकित कीजिए।

(4) तापमान आंकड़े को रेखा ग्राफ़ द्वारा और वर्षा को दंड आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए जैसा कि चित्र 3.5 में दिखाया गया है।

चित्र 3.5 : दिल्ली में तापमान और वर्षा

उदाहरण 3.5 : तालिका 3.5 में दी गई 1951-2011 के मध्य भारत में दशकीय साक्षरता दर को दर्शाने के लिए एक उपयुक्त दंड आरेख की रचना कीजिए।

तालिका 3.5 : भारत में साक्षरता दर 1951-2011 ( % में)

वर्ष साक्षरता दर
कुल
जनसंख्या
पुरुष स्त्री
1951 18.33 27.16 8.86
1961 28.3 40.4 15.35
1971 34.45 45.96 21.97
1981 43.57 56.38 29.76
1991 52.21 64.13 39.29
2001 64.84 75.85 54.16
2011 73.0 80.9 64.6

स्रोत : 2011 की जनगणना के आंकड़े।

रचना

(1) उपर्युक्त आंकड़े को दर्शाने के लिए बहुदंड आरेख को चुना जा सकता है।
(2) X अक्ष पर समय क्रम आंकड़ा और Y अक्ष पर साक्षरता दर को अंकित कीजिए।
(3) बंद खानों में कुल जनसंख्या, पुरुष और स्त्री के प्रतिशत को दर्शाइए (चित्र 3.6)

चित्र 3.6 : साक्षरता दर, 1951-2011

मिश्रित दंड आरेख

जब विभिन्न घटकों को तत्त्व/चर के एक समूह में वर्गीकृत किया जाता है अथवा एक घटक के विभिन्न चर साथ-साथ रखे जाते हैं, उनका प्रदर्शन एक यौगिक दंड आरेख द्वारा किया जाता है। इस विधि में, विभिन्न चरों को एक अकेले दंड में विभिन्न आयतों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

उदाहरण 3.6 : तालिका 3.6 में दिखाए गए आंकड़े को चित्रित करने के लिए एक मिश्रित दंड आरेख की रचना कीजिए।

तालिका 3.6: भारत में बिजली का कुल उत्पादन (बिलियन किलोवाट में)

वर्ष ऊष्मीय जलीय नाभिकीय कुल
200809 616.2 110.1 14.9 741.2
200910 677.1 104.1 18.6 799.8
201011 704.3 114.2 26.3 844.8

स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण, 2011-12

रचना

(क) आंकड़े को चढ़ते हुए या उतरते हुए क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
(ख) एक अकेला दंड दिए हुए वर्ष में कुल उत्पादित बिजली को चित्रित करेगा और ऊष्मीय, जलीय और नाभिकीय विद्युत को दंड को कुल लंबाई द्वारा विभाजित करके दर्शाया जाएगा जैसा कि चित्र 3.7 में दर्शाया गया है।

वृत्त आरेख

वृत्त आरेख, आंकड़े के प्रस्तुतीकरण की दूसरी आलेखी विधि है। दिए गए आंकड़ों के लक्षणों के कुल मूल्य को एक वृत के अंदर दर्शाया जाता है। वृत्त के कोण को अनुकूल अंशों में विभाजित करके, तब आंकड़ों के उप-समूह को प्रदर्शित करते हैं। इसलिए इसे, विभाजित वृत्त आरेख कहते हैं।

प्रत्येक चर के कोण को निम्नलिखित सूत्र द्वारा परिकलित करते है :

 दिए हुए राज्य/प्रदेश का मान  सभी राज्यों/पर्रदेशों का कुल मान ×360

चित्र 3.7 : भारत में कुल बिजली उत्पादन

यदि आंकड़ा प्रतिशत रूप में दिया गया है, कोणों की गणना के लिए निम्न सूत्र का उपयोग करते हैं :

x का प्रतिशत X360100

उदाहरण के लिए, एक वृत्त आरेख को भारत की ग्रामीण और नगरीय जनसंख्या के समानुपात सहित, भारत की कुल जनसंख्या को दिखाने के लिए खींचा जा सकता है। इस स्थिति में अनुकूल त्रिज्या का वृत्त कुल जनसंख्या के प्रदर्शन के लिए खींचा जाता है और इसके ग्रामीण और नगरीय जनसंख्या के उपविभाग कोणों के अनुकूल अंशों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

उदाहरण 3.7 : तालिका 3.7 (क) में दिए गए आंकड़े को अनुकूल आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए।

कोणों की गणना

(क) आंकड़े को, भारतीय निर्यात के प्रतिशत पर, चढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित करते हैं।

तालिका 3.7 (क) : 2010-11 में संसार के बड़े प्रदेशों को भारत का निर्यात

इकाईं/प्रदेश % भारतीय निर्यात का
यूरोप 20.2
अफ्रीका 6.5
अमेरिका 14.8
एशिया व ASEAN 56.2
अन्य 2.3
कुल 100

(ख) संसार के बड़े प्रदेशोंदेशों को भारत के निर्यात के दिए गए मानों को दिखाने के लिए कोणों के अंशों की गणना करते हैं। (तालिका 3.7 -ख) इसे, प्रतिशत को एक 3.6 के स्थिरांक के साथ गुणा करके जिसे वृत्त में कुल अंशों की संख्या को 100 से विभाजित करके प्राप्त किया गया है, जैसे - 360/100, किया जा सकता है।

(ग) विभिन्न प्रदेशों/देशों को भारत के निर्यात का हिस्सा दिखाने के लिए वृत्त को, विभागों की आवश्यक संख्या में विभाजन द्वारा आंकड़े को प्रदर्शित करते हैं (चित्र 3.8)।

तालिका 3.7 (ख) : में संसार के बड़े प्रदेशों को भारत का निर्यात 2010-11

देश % गणना अंश
यूरोप 20.2 20.2×3.6=72.72 73o
अफ्रीका 6.5 6.5×3.6=23.4 23o
अमेरिका 14.8 14.8×3.6=53.28 53o
एशिया व ASEAN 56.2 56.2×3.6=202.32 203o
अन्य 2.3 2.3×3.6=8.28 8o
कुल 100 360o

रचना

(क) खींचे जाने वाले वृत्त के लिए एक उपयुक्त त्रिज्या को चुनते हैं। दिए हुए आंकड़ा समूह के लिए 3,4 अथवा 5 से.मी. त्रिज्या को चुना जा सकता है।

(ख) वृत्त के बीच से चाप तक एक त्रिज्या की तरह रेखा खींचते हैं।

(ग) वाहनों की प्रत्येक श्रेणी के लिए चढ़ते हुए क्रम में, दक्षिणावर्त, छोटे कोण से शुरू करके वृत्त के चाप से कोणों को नापते हैं।

(घ) शीर्षक, उपशीर्षक और सूचिका द्वारा आरेख को पूर्ण करते हैं। प्रत्येक चर/श्रेणी के लिए सूचिका चिह्न चुने जा सकते हैं और विभिन्न रंगों द्वारा उभारे जा सकते हैं।

सावधानियाँ

(क) वृत्त को न तो अत्यधिक बड़ा होना चाहिए कि स्थान में फिट न हों सके और न ही बहुत छोटा होना चाहिए कि सुपाठ्य न हो।

(ख) बड़े कोण से शुरुआत गलतियों के संचयन को बढ़ावा देगी जो कि छोटे कोण को दर्शाने में मुश्किल देती है।

चित्र 3.8 : भारतीय निर्यातों की दिशा 2010-11

प्रवाह संचित्र

प्रवाह संचित्र आलेख और मानचित्र का मिश्रण है। इसे उत्पत्ति और उद्देश्य के स्थानों के बीच वस्तुओं अथवा लोगों के प्रवाह को दिखाने के लिए खींचा जाता है। इसे “गतिक मानचित्र” भी कहते हैं। यातायात मानचित्र, जो यात्रियों, वाहनों आदि की संख्या को प्रदर्शित करता है, प्रवाह संचित्र का सबसे अच्छा उदाहरण है। ये संचित्र समानुपाती चौड़ाई की रेखाओं द्वारा बनाया जाता है। बहुत-सी सरकारी शाखाएँ विभिन्न मार्गों पर यातायात के विभिन्न साधनों के घनत्व को दर्शाने के लिए प्रवाह संचित्र तैयार करती हैं। प्रवाह संचित्र सामान्यत: दो प्रकार के आंकड़ों को प्रदर्शित करने के लिए खींचते हैं, जो निम्न प्रकार है -

  1. वाहनों के गति की दिशानुसार वाहनों की संख्या और आवृत्ति।
  2. यात्रियों की संख्या अथवा परिवहन किए गए सामान की मात्रा।

प्रवाह संचित्र को तैयार करने के लिए आवश्यकताएँ

(क) स्टेशनों को जोड़ते हुए वांछित यातायात मार्गों को दर्शाने वाला एक मार्ग मानचित्र।

(ख) वस्तुओं, सेवाओं, वाहनों की संख्याओं के उनके उत्पत्ति बिंदु और गतियों की दिशा सहित प्रवाह से संबंधित आंकड़े।

(ग) एक मापनी का चुनाव जिसके द्वारा यात्रियों और वस्तुओं की मात्रा अथवा वाहनों की संख्या से संबंधित आंकड़े को प्रस्तुत करना है।

तालिका 3.8 : दिल्ली और उससे जुड़े हुए क्षेत्रों के चुने हुए मार्गों पर रेलगाड़ियों की संख्या

क्र. सं. रेलमार्ग रेलगाड़ी संख्या
1. पुरानी दिल्ली-नयी दिल्ली 50
2. नयी दिल्ली-निज़ामदद्दीन 40
3. निज़ामुद्दीन-बदरपर 30
4. निज़ामुद्दीन-सरोजनी नगर 12
5. सरोजनी नगर-पूसा सड़क 8
6. पुरानी दिल्ली-सदर बाजार 32
7. उद्योग नगर-टिकरी कलान 6
8. पूसा सड़क-पहलादपुर 15
9. साहिबाबाद-मोहन नगर 18
10. पुरानी दिल्ली-सीलमपुर 33
11. पुरानी दिल्ली-सीलमपुर 12
12. सीलमपुर-नंदनगरी 21
13. पुरानी दिल्ली-शालीमार बाग 16
14. सदर बाज़ार-उद्योग नगर 18
15. पुरानी दिल्ली-पूसा सड़क 22
16. पहलादपुर-पालम विहार 12

उदाहरण 3.10 : तालिका 3.11 में दी गई दिल्ली में चलने वाली रेलगाड़ियों की संख्या और उनसे जुड़े क्षेत्रों को प्रदर्शित करने के लिए एक प्रवाह संचित्र की रचना कीजिए।

रचना

(क) दिल्ली का एक रूप रेखा मानचित्र लीजिए जिसमें उससे जुड़े क्षेत्र जिसमें रेलवे लाइन और केंद्र स्टेशन दिखाए गए हों (चित्र 3.10)।

(ख) रेलगाड़ी की संख्या को दर्शाने के लिए एक मापनी का चुनाव करिए। अधिकतम संख्या 50 है और न्यूनतम 6 है। यदि हम से.मी. =50 रेलगाड़ियाँ, की मापनी को चुनते हैं तो अधिकतम और न्यूनतम संख्याएँ 10 मि.मी. की पट्टी और 1.2 मि.मी. मोटी रेखा द्वारा मानचित्र पर प्रदर्शित की जाएगी।

(ग) दिए हुए रेलमार्ग के बीच मार्ग की प्रत्येक पट्टी की मोटाई को अंकित करते हैं

(घ) एक सीढ़ीनुमा मापनी को एक सूचिका की तरह खींचते हैं और पट्टी पर केंद्र बिंदु (स्टेशन) को दर्शाने के लिए अलग-अलग चिह्नों अथवा संकेतों को चुनते हैं।

चित्र 3.9 : दिल्ली का मानचित्र

चित्र 3.10 : दिल्ली : यातायात (रेलमार्ग) प्रवाह संचित्र

उदाहरण 3.11 : गंगा बेसिन के जल प्रवाह मानचित्र की रचना कीजिए जैसा कि चित्र 3.12 में दर्शाया गया है।

चित्र 3.11 : गंगा बेसिन

रचना

(a) एक मापनी लेते हैं, जैसे -1 से.मी. चौड़ाई = पानी के 50,000 क्यूसेक।

(b) एक चित्र बनाते हैं, जैसा कि चित्र 3.18 में दिखाया गया है।

चित्र 3.12 : प्रवाह संचित्र की रचना

थिमैटिक मानचित्र

विभिन्न विशेषताओं को प्रस्तुत करने वाले आंकड़ों में आंतरिक विभिन्नताओं के बीच तुलना दिखाने के लिए आलेख और आरेख उपयोगी प्रयोजन प्रदान करते हैं। फिर भी कई बार आलेखों और आरेखों का उपयोग एक प्रादेशिक संदर्भ को प्रस्तुत करने में असफल होते हैं। इसलिए मानचित्रों की विविधता/प्रादेशिक वितरणों के प्रतिरूपों अथवा स्थानों पर विविधताओं की विशेषताओं को समझने के लिए विविध मानचित्रों को बनाया जाता है। ये मानचित्र वितरण मानचित्रों के नाम से भी जाने जाते हैं।

थिमैटिक मानचित्र निर्माण के लिए आवश्यकताएँ

(क) चुने हुए विषय से संबंधित राज्य/जिला स्तर के आंकड़े
(ख) अध्ययन क्षेत्र का प्रशासनिक सीमाओं सहित रूपरेखा मानचित्र
(ग) प्रदेश का भौतिक मानचित्र : उदाहरण के लिए जनसंख्या वितरण को प्रदर्शित करने के लिए भूआकृतिक मानचित्र एवं परिवहन मानचित्र निर्माण के लिए उच्चावच्च एवं अपवाह मानचित्र

थिमैटिक मानचित्रों को बनाने के लिए नियम

(i) थिमैटिक मानचित्रों की रचना बहुत ही सावधानीपूर्वक करनी चाहिए। अंतिम मानचित्र में निम्नलिखित घटक प्रदर्शित होने चाहिए-

(क) क्षेत्र का नाम
(ख) विषय का शीर्षक
(ग) आंकड़े का साधन और वर्ष
(घ) संकेत चिह्न, रंगों, छायाओं आदि के सूचक
(ड.) मापनी

(ii) थिमैटिक मानचित्र बनाने के लिए उपयुक्त विधि का चुनाव

रचना विधि के आधार पर धिमैटिक मानचित्रों का वर्गीकरण

विषयक मानचित्रों को मात्रात्मक और अमात्रात्मक मानचित्रों में वर्गीकृत किया जाता है। मात्रात्मक मानचित्रों को आंकड़ों में विविधता दर्शाने के लिए खींचा जाता है। उदाहरण के लिए, 200 से.मी. से अधिक वर्षा, 100 से 200 से.मी., 50 से 100 से.मी. और 50 से.मी. से नीचे वर्षा के क्षेत्रों को दर्शाने वाले मानचित्र को मात्रात्मक मानचित्र की तरह संदर्भित किया जाता है। ये मानचित्र सांख्यिकीय मानचित्र भी कहलाते हैं। दूसरी तरफ अमात्रात्मक मानचित्र दी हुई सूचना के वितरण में अपरिमेय विशेषताओं को दर्शाते हैं। जैसे उच्च और निम्न वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्रों को दिखाने वाला मानचित्र। इन मानचित्रों को विश्लेषणात्मक मानचित्र भी कहते हैं। समय की कमी में इन विभिन्न प्रकार के थिमैटिक मानचित्रों की रचना के बारे में विचार करना संभव नहीं होगा। इसलिए हम निम्नलिखित प्रकार के विश्लेषणात्मक मानचित्रों की रचना विधि पर विचार करने तक ही सीमित रहेंगे-

(क) बिंदुकित मानचित्र
(ख) वर्णमात्री मानचित्र
(ग) सममान रेखा मानचित्र

बिंदुकित मानचित्र

बिंदुकित मानचित्र तत्त्वों जैसे - जनसंख्या, जानवर, फ़सल के प्रकार आदि के वितरण को दर्शाने के लिए बनाए जाते हैं। चुनी हुई मापनी के अनुसार एक ही आकार के बिंदु वितरण के प्रतिरूपों को दर्शाने के लिए दी हुई प्रशासनिक इकाइयों पर अंकित किए जाते हैं।

आवश्यकताएँ

(क) दिए हुए क्षेत्र का प्रशासनिक मानचित्र जिसमें राज्य/जिला/खंड की सीमाएँ दिखाई गई हैं।
(ख) चुनी हुई प्रशासनिक इकाई के लिए चुने हुए विषय जैसे कुल जनसंख्या, पशु आदि पर सांख्यिकीय आंकडे।
(ग) एक बिंदु के मान को निश्चित करने के लिए मापनी का चुनाव।
(घ) प्रदेश के भू-आकृतिक मानचित्र विशेषकर उच्चावच और जल अपवाह मानचित्र।

सावधानियाँ

(क) विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों की सीमाओं को सीमांकित करने वाली रेखाएँ अत्यधिक घनी एवं मोटी न हों।
(ख) प्रत्येक बिंदु का आकार सामान होना चाहिए।

तालिका 3.9 : भारत की जनसंख्या, 2001

क्रम
संख्या
राज्य/
संघशासित क्षेत्र
कुल जनसंख्या बिंदु
संख्या
1. जम्मू और कश्मीर 10,069,917 100
2. हिमाचल प्रदेश 6,077,248 60
3. पंजाब 24,289,296 243
4. उत्तरांचल * 8,479,562 85
5. हरियाणा 21,082,989 211
6. दिल्ली 13,782,976 138
7. राजस्थान 56,473,122 565
8. उत्तर प्रदेश 166,052,859 1,660
9. बिहार 82,878,796 829
10 सिक्किम 540,493 5
11. अरुणाचल प्रदेश 1,091,117 11
12 नागालैंड 1,988,636 20
13. मणिपुर 2,388,634 24
14. मिज़ोरम 891,058 89
15 त्रिपुरा 3,191,168 32
16. मेघालय 2,306,069 23
17. असम 26,638,407 266
18. प. बंगाल 80,221,171 802
19. झारखंड 26,909,428 269
20 उड़ीसा* 36,706,920 367
21. छत्तीसगढ़ 20,795,956 208
22. मध्य प्रदेश 60,385,118 604
23. गुजरात 50,596,992 506
24. महाराष्ट्र् 96,752,247 968
25. आंध्र प्रदेश 75,727,541 757
26. कर्नाटक 52,733,958 527
27. गोवा 1,343,998 13
28. केरल 31,838,619 318
29. तमिलनाडु 62,110,839 621
  • उत्तरांचल को अब उत्तराखण्ड के नाम से तथा उड़ीसा को ओडिशा के नाम से जाना जाता है।

चित्र 3.13 : भारत की जनसंख्या, 2001

उदाहरण 3.12 : तालिका 3.9 में दिए गए 2001 के जनसंख्या आंकड़ों को प्रदर्शित करने के लिए बिंदुकित मानचित्र की रचना कीजिए।

रचना

(क) एक बिंदु के आकार और मान को चुनिए।

(ख) दी हुई मापनी के प्रयोग से प्रत्येक राज्य में बिंदुओं की संख्या निश्चित कीजिए। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में बिंदुओं की संख्या 9,67,52,247/100,000=967.52 इसे 968 में बदल सकते हैं क्योंकि इसका भिन्नात्मक 0.5 से ज्यादा है।

(ग) प्रत्येक राज्य में बिंदुओं को दर्शाइए जैसा कि सभी राज्यों में संख्या निश्चित की गई है।

(घ) पर्वतों, रेगिस्तान और बर्फ़ से ढके क्षेत्रों को पहचानने के लिए भारत के भू-आकृतिक/उच्चावच मानचित्र को देखिए और इन क्षेत्रों में कम संख्या में बिंदु अंकित कीजिए।

वर्णमात्री मानचित्र

वर्णमात्री मानचित्रों को, आंकड़े की विशेषताओं, जो कि प्रशासकीय इकाइयों से संबंधित हैं, को दर्शाने के लिए खींचा जाता है। ये मानचित्र जनसंख्या घनत्व, साक्षरता वृद्धि दर, लिंग अनुपात आदि को प्रदर्शित करने के लिए प्रयुक्त होते हैं।

वर्णमात्री मानचित्र की रचना के लिए आवश्यकताएँ

(क) विभिन्न प्रशासकीय इकाइयों को दर्शाने वाले क्षेत्रों का एक मानचित्र

(ख) प्रशासकीय इकाइयों के अनुसार अनुकूल सांख्यिकीय आंकड़ा

अनुसरण करने वाले कदम

(क) आंकड़ों को चढ़ते अथवा उतरते हुए क्रम में व्यवस्थित करना।

(ख) अति उच्च, उच्च, मध्यम, निम्न और अति निम्न केंद्रीकरण को दर्शाने के लिए आंकड़े को 5 श्रेणियों में वर्गीकृत करना।

(ग) श्रेणियों के बीच अंतराल को, निम्नलिखित सूत्र, परास/5 और परास = अधिकतम मान-न्यूनतम मान, द्वारा पहचाना जा सकता है।

(घ) प्रतिरूपों, छायाओं और रंगों का उपयोग चुनी हुई श्रेणियों को चढ़ते और उतरते क्रम में दर्शाने के लिए किया जाता है।

उदाहरण 3.13: तालिका 3.10 में दिए गए भारत में 2001 के साक्षरता दर को प्रदर्शित करने के लिए वर्णमात्री मानचित्र की रचना कीजिए।

रचना

(क) आंकड़े को चढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए जैसा कि ऊपर दिखाया गया है।

(ख) आंकड़े के अंदर के परास को पहचानिए। इस उदाहरण में, सबसे कम और सबसे अधिक सीक्षरता दर रिकार्ड किए गए राज्य क्रमशः बिहार (47 और केरल (90 हैं। इसलिए परास 91.0-47.0-44.0 होगा।

(ग) अति निम्न से अति उच्च श्रेणियों को प्राप्त करने के लिए परास को 5 से भाग दें (44.0/5 =8.80 हम इस मान को एक पूर्णांक जो कि 9.0 है, में बदल सकते हैं।

(घ) श्रेणियों की संख्याओं को उनके प्रत्येक श्रेणी के परास सहित निश्चित कीजिए। 9.0 को सबसे

तालिका 3.10 : भारत में साक्षरता दर, 2001

  • नोट: उत्तरांचल, उड़ीसा एवं पांडिचेरी को अब क्रमशः उत्तराखण्ड, ओडिशा एवं पुदुच्चेरी के नाम से जाना जाता है।

निम्न मान 47.0 में जोड़ दीजिए।

47 - 56 अति निम्न (बिहार, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर)
56 - 65 निम्न (उत्तर प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, मेघालय, उड़ीसा, असम, मध्य रदेश, छत्तीसगढ़)
65 - 74 मध्यम (नागालैंड, कर्नाटक, हरियाणा, प. बंगाल, सिक्किम, गुजरात, पंजाब,मणिपुर, उत्तरांचल, त्रिपुरा, तमिलनाडु)
74 - 83 उच्च (हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, गोवा)
83 - 92 अति उच्च (मिजोरम, केरल)

(ड.) निम्न से उच्च तक प्रत्येक श्रेणी के लिए रंग/प्रतिरूप को निश्चित कीजिए।

(च) मानचित्र को तैयार करिए जैसा कि चित्र 3.14 में दर्शाया गया है।

(छ) मानचित्र को मानचित्र योजना के लक्षणों सहित पूर्ण कीजिए।

सममान रेखा मानचित्र

हम देख चुके हैं कि प्रशासकीय इकाई से संबंधित आंकड़े को वर्णमात्री मानचित्र के उपयोग से प्रदर्शित किया गया है। फिर भी बहुत से उदाहरणों में, आंकड़े की विविधताओं को, प्राकृतिक सीमाओं के आधार पर देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, ढाल की डिग्री में विविधता, तापमान, वर्षा प्राप्ति आदि आंकड़ों में निरंतरता की विशेषताओं से युक्त होते हैं। ये भौगोलिक सत्य मानचित्र पर समान मानों की रेखाओं को खींचकर प्रदर्शित किए जा सकते हैं। इस तरह के सभी मानचित्रों को सममान रेखा मानचित्र कहते हैं। आइसोप्लेथ (Isopleth) शब्द, आइसो (Iso), जिसका अर्थ ‘बराबर’ (equal) और ‘प्लेथ’ (pleth) जिसका अर्थ रेखाएँ (Lines) हैं, शब्दों से लिया गया है। इस प्रकार एक काल्पनिक रेखा, जो समान मान के स्थानों को जोड़ती है, सममान रेखा कहलाती है। प्राय: खींची गई सममान रेखाओं के अंतर्गत समताप रेखा (समान तापमान), समवायुदाब रेखा (समान वायुदाब), समवर्षा रेखा (समान वर्षा), सममेघ रेखा (समान बादल), आइसोहेल (समान सूर्य प्रकाश), समोच्च रेखाएँ (समान ऊँचाई), सम गहराई रेखा (समान गहराई), समलवणता रेखा (समान लवणीयता) आदि आते हैं।

आवश्यकताएँ

(क) विभिन्न स्थानों की स्थिति को दर्शाने वाला आधार रेखा मानचित्र
(ख) निश्चित समय के अनुरूप तापमान, वायुदाब, वर्षा आदि का अनुकूल आंकड़ा।
(ग) चित्र उपकरण विशेषकर फ्रेंच कर्व आदि।

ध्यान में रखने वाले नियम

बराबर मानों को प्रदर्शित करने वाली सममान रेखाएँ एक-दूसरे को नहीं काटती हैं।

(क) मानों के बराबर अंतराल को चुना जाता है।
(ख) 5,10 अथवा 20 के आदर्श अंतराल को चुना जाता है।
(ग) सममान रेखाओं का मान रेखा के दूसरी तरफ़ अथवा रेखा को तोड़कर बीच में लिखना चाहिए।

क्षेपक

क्षेपक का उपयोग दो स्थानों की प्रेक्षित मानों के बीच मध्य मान को प्राप्त करने के लिए किया जाता है, जैसे - चेन्नई और हैदराबाद में मापा गया तापमान अथवा दो बिंदुओं की ऊँचाइयाँ। सामान्यतः, समान मानों के स्थानों को जोड़ने वाली सममान रेखाओं का चित्रण क्षेपक कहलाता है।

क्षेपक की विधि

क्षेपक के लिए निम्नलिखित चरणों का अनुसरण करते हैं :

(क) सबसे पहले, मानचित्र पर दिए गए न्यूनतम और अधिकतम मान को निश्चित करना।
(ख) मान की परास की गणना करना जैसे कि, परास = अधिकतम मान - न्यूनतम मान
(ग) श्रेणी के आधार पर, एक पूर्ण संख्या जैसे 5,1015 आदि में अंतराल निश्चित करमा? सममान रेखा के चित्रण के बिल्कुल ठीक बिंदु को निम्नलिखित सूत्र द्वारा निश्चित किया जाता है : सममान रेखा का बिंदु = दो बिंदुओं के बीच की दूरी (से.मी. में)  लिए गए बिंदुओं के दो मानों के बीच अंतर × अंतराल

चित्र 3.14 : साक्षरता दर, 2001

अंतराल, मानचित्र पर वास्तविक मान और क्षेपक मान के बीच का अंतर होता है। उदाहरण के लिए, दो स्थानों के समताप मानचित्र में, 28C और 33C दर्शाते हैं और आप 30C समताप रेखा को खींचना चाहते हैं तो दो बिंदुओं के बीच दूरी को नापते हैं। मान लीजिए दूरी 1 से.मी. या 10 मि.मी. है और 28 और 33 में 5 का अंतर है, जबकि 30,28 से बिंदु दूर और 33 बिंदु पीछे है, इस प्रकार 30 का सही बिंदु होगा। इस प्रकार 30C की समताप रेखा 28C से 4 मि.मी. दूर अथवा 33C के 6 मि.मी. आगे खींची जाएगी।

(घ) सबसे कम मान की सममान रेखा को सबसे पहले खींचिए, उसी के अनुसार दूसरी सममान रेखाएँ खींची जा सकती हैं।

चित्र 3.15: सममान रेखा आरेखन

अभ्यास

1. दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए

(i) जनसंख्या वितरण दर्शाया जाता है :

(क) वर्णमात्री मानचित्रों द्वारा
(ख) सममान रेखा मानचित्रों द्वारा
(ग) बिंदुकित मानचित्रों द्वारा
(घ) ऊपर में से कोई भी नहीं

(ii) जनसंख्या की दशकीय वृद्धि को सबसे अच्छा प्रदर्शित करने का तरीका है :

(क) रेखा ग्राफ़
(ख) दंड आरेख
(ग) वृत्त आरेख
(घ) ऊपर में से कोई भी नहीं

(iii) बहुरेखाचित्र की रचना प्रदर्शित करती है :

(क) केवल एक बार
(ख) दो चरों से अधिक
(ग) केवल दो चर
(घ) ऊपर में से कोई भी नहीं

(iv) कौन-सा मानचित्र “गतिदर्शी मानचित्र" जाना जाता है :

(क) बिंदुकित मानचित्र
(ख) सममान रेखा मानचित्र
(ग) वर्णमात्री मानचित्र
(घ) प्रवाह संचित्र

2. निम्नलिखित प्रश्नों के 30 शब्दों में उत्तर दीजिए :

(i) थिमैटिक मानचित्र क्या हैं?
(ii) आंकड़े के प्रस्तुतीकरण से आपका क्या तात्पर्य है?
(iii) बहुदंड आरेख और यौगिक दंड आरेख में अंतर बताइए।
(iv) एक बिंदुकित मानचित्र की रचना के लिए क्या आवश्यकताएँ हैं?
(v) सममान रेखा मानचित्र क्या है? एक क्षेपक को किस प्रकार कार्यान्वित किया जाता है?
(vi) एक वर्णमात्री मानचित्र को तैयार करने के लिए अनुसरण करने वाले महत्वपूर्ण चरणों की सचित्र व्याख्या कीजिए।
(vii) आंकड़े को वृत्त आरेख की सहायता से प्रदर्शित करने के लिए महत्वपूर्ण चरणों की विवेचना कीजिए।

क्रियाकलाप

1. निम्न आंकड़े को अनुकूल/उपयुक्त आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए :

भारत : नगरीकरण की प्रवृति 1901-2001

वर्ष दशवार्षिक
वृद्धि (%)
1911 0.35
1921 8.27
1931 19.12
1941 31.97
1951 41.42
1961 26.41
1971 38.23
1981 46.14
1991 36.47
2001 31.13

2. निम्नलिखित आंकड़े को उपयुक्त आरेख की सहायता से प्रदर्शित कीजिए :

भारत : प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में साक्षरता और नामांकन अनुपात

वर्ष साक्षरता अनुपात नामांकन अनुपात
प्राथमिक
नामांकन अनुपात
उच्च प्राथमिक
व्यक्ति पुरुष स्त्री लड़के लड़कियाँ कुल लड़के लड़कियाँ कुल
1950-51 18.3 27.2 8.86 60.6 25 42.6 20.6 4.6 12.7
1999-2000 65.4 75.8 54.2 104 85 94.9 67.2 50 58.8

3. निम्नलिखित आंकड़े को वृत्त आरेख की सहायता से प्रदर्शित कीजिए -

भारत : भूमि उपयोग 1951 - 2001

1950-51 1998-2001
शुद्ध ( निवल) बोया गया क्षेत्र 42 46
वन 14 22
कृषि के लिए अप्राप्य 17 14
परती भूमि 10 8
चरागाह और पेड़ 9 5
कृषि योग्य बंजर भूमि 8 5

4. नीचे दी गई तालिका का अध्ययन कीजिए और दिए हुए आरेखों/मानचित्रों को खींचिए -

बड़े राज्यों में चावल के क्षेत्र और उत्पादन

राज्य क्षेत्र कुल क्षेत्र उत्पाद
(000 ह. में)
कुल उत्पाद
(O00 टन में)
पश्चिम बंगाल 5,435 12.3 12,428 14.6
उत्तर प्रदेश 5,839 13.2 11,540 13.6
आंध्र प्रदेश 4,028 9.1 12,428 13.5
पंजाब 2,611 5.9 9,154 10.8
तमिलनाडु 2,113 4.8 7,218 8.5
बिहार 3,671 8.3 5,417 6.4

(क) प्रत्येक राज्य में चावल के क्षेत्र को दिखाने के लिए एक बहुदंड आरेख की रचना कीजिए।
(ख) प्रत्येक राज्य में चावल के अंतर्गत क्षेत्र के प्रतिशत को दिखाने के लिए एक वृत्त आरेख की रचना कीजिए।
(ग) प्रत्येक राज्य में चावल के उत्पादन को दिखाने के लिए एक बिंदुकित मानचित्र की रचना कीजिए।
(घ) राज्यों में चावल उत्पादन के प्रतिशत को दिखाने के लिए एक वर्णमात्री मानचित्र की रचना कीजिए।

5. कोलकाता के तापमान और वर्षा के निम्नलिखित आंकड़े को एक उपयुक्त आरेख द्वारा दर्शाइए :

माह तापमान
( से.)
वर्षा
(से.मी. में)
जनवरी 19.6 1.2
फरवरी 22.0 2.8
मार्च 27.1 3.4
अप्रैल 30.1 5.1
मई 30.4 13.4
जून 29.9 29.0
जुलाई 28.9 33.1
अगस्त 28.7 33.4
सितंबर 28.9 25.3
अक्टूबर 27.6 12.7
नवंबर 23.4 2.7
दिसंबर 19.7 0.4