अध्याय 08 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
आप अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विभिन्न पहलुओं के बारे में पहले ही ‘मानव भूगोल के मूल सिद्धांत’ नामक पुस्तक में पढ़ चुके हैं। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सभी देशों के लिए परस्पर लाभदायक हैं, चूँकि कोई भी देश आत्मनिर्भर नहीं है। हाल ही के वर्षों में भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ने मात्रा, संघटन के साथ-साथ व्यापार की दिशा के संबंध में आमूल परिवर्तनों का अनुभव किया है। यद्यपि, विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी कुल मात्रा का केवल एक प्रतिशत है तथापि, विश्व की अर्थव्यवस्था में इसकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
स्रोतः आर्थिक सर्वेक्षण, 2011-12
आइए, भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बदलते प्रारूप (Pattern) की पड़ताल करें। वर्ष 1950-51 में, भारत का वैदेशिक व्यापार का मूल्य 1,214 करोड़ रुपए था, जो कि वर्ष 2016-17 में बढ़कर 44,29,762 करोड़ रुपए हो गया। क्या आप 1950-51 के मुकाबले 2016-17 की प्रतिशत वृद्धि का परिकलन कर सकते हैं? विदेशी व्यापार में इस तीव्र वृद्धि के अनेक कारण हैं जैसे कि विनिर्माण के क्षेत्र में संवेगी (गतिशील) उठान, सरकार की उदार नीतियाँ तथा बाज़ारों की विविधरूपता आदि।
समय के साथ भारत के विदेशी व्यापार की प्रकृति में बदलाव आया है (तालिका 8.1)। यद्यपि, यहाँ पर आयात एवं निर्यात दोनों की ही मात्रा में वृद्धि हुई है, परंतु निर्यात की तुलना में आयात का मूल्य अधिक है।
भारत के निर्यात-संघटन के बदलते प्रारूप
वर्ष 2012-13 से 2016-17 के दौरान भारत के विदेश व्यापार में निर्यात एवं आयात के बीच अंतर का फैलाव
स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण, 2016-17चित्र 8.1
तालिका 8.1 : भारत का विदेश व्यापार
$\qquad$ $\qquad$ $\qquad$$\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ (रु. करोड़ में)
वर्ष | निर्यात | आयात | कुल व्यापार | व्यापार संतुलन |
---|---|---|---|---|
2004-05 | 3,75,340 | 5,01,065 | 8,76,405 | -1,25,725 |
2009-10 | 8,45,534 | 13,63,736 | 22,09,270 | -5,18,202 |
2013-14 | 19,05,011 | 27,15,434 | 46,20,445 | -8,10,423 |
2016-17 | 18,52,340 | 25,77,422 | 44,29,762 | -7,25,082 |
स्रोत : http:/commerce.nic.in/publications/annual report-2010-11 और आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17
क्रियाकलाप
एक दंड आरेख बनाकर सारणी में दी गई सभी मदों के निर्यात की प्रवृत्ति को दर्शाएँ। इसके लिए भिन्न-भिन्न रंगों के पेन या पेंसिलें इस्तेमाल करें।
तालिका 8.2 : भारत का निर्यात संघटन, 2009-17
$\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$(निर्यात में प्रतिशत अंश)
वस्तुएँ/माल | 2009-2010 | 2010-11 | 2015-2016 | 2016-17 |
---|---|---|---|---|
कृषि एवं समवर्गी उत्पाद | 10.0 | 9.9 | 12.6 | 12.3 |
अयस्क एवं खानज | 4.9 | 4.0 | 1.6 | 1.9 |
विनिर्मित वस्तुएँ | 67.4 | 68.0 | 72.9 | 73.6 |
पेट्रोलियम व अपरिष्कृत उत्पाद | 16.2 | 16.8 | 11.9 | 11.7 |
अन्य वस्तुएँ | 1.5 | 1.2 | 1.1 | 0.5 |
स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17
भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वस्तुओं के संघटकों में समय के साथ बदलाव आए हैं। इसमें कृषि तथा समवर्गी उत्पादों का हिस्सा घटा है, जबकि पेट्रोलियम तथा अपरिष्कृत उत्पादों एवं अन्य वस्तुओं में वृद्धि हुई है। अयस्क खनिजों तथा निर्मित सामानों का हिस्सा वर्ष 2009-10 से 2010-11 तथा 2015-16 से 2016-17 तक व्यापक तौर पर लगातार स्थिर-सा रहा है।
परंपरागत वस्तुओं के व्यापर में गिरावट का कारण मुख्यत: कड़ी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा है। कृषि उत्पादों के अंतर्गत कॉफ़ी, काजू, दालों आदि जैसी परंपरागत वस्तुओं के निर्यात में गिरावट आई है। हालाँकि पुष्पकृषि उत्पादों ताजे़े फलों, समुद्री उत्पादों तथा चीनी आदि के निर्यात में वृद्धि दर्ज की गई है।
वर्ष 2016-17 के दौरान विनिर्माण क्षेत्र ने भारत के कुल निर्यात मूल्य में अकेले 73.6 प्रतिशत की भागीदारी अंकित की है। चीन तथा अन्य पूर्व एशियाई देश हमारे प्रमुख प्रतिस्पर्धी हैं। भारत के विदेश व्यापार में मणि-रत्नों तथा आभूषणों की एक व्यापक हिस्सेदारी है।
क्रियाकलाप
तालिका 11.3 का अध्ययन करते हुए ऐसी प्रमुख वस्तुएँ चुनें, जिन्हें वर्ष 2016-17 में निर्यातित किया गया हो। दंड आरेख बनाकर उन वस्तुओं के बीच विविधता को समझने हेतु तुलना करें।
भारत के आयात-संघटन के बदलते प्रारूप
भारत ने 1950 एवं 1960 के दशक में खाद्यान्नों की गंभीर कमी का अनुभव किया है। उस समय आयात की प्रमुख वस्तुएँ खाद्यान्न, पूँजीगत माल, मशीनरी एवं उपस्कर आदि थे। उस समय भुगतान संतुलन बिल्कुल विपरीत था; चूँकि आयात प्रतिस्थापन के सभी प्रयासों के बावजूद आयात निर्यातों से अधिक थे। 1970 के दशक के बाद हरित क्रांति में सफलता मिलने पर खाद्यान्नों का आयात रोक दिया गया। लेकिन 1973
तालिका 8.3 : कुछ प्रमुख उपयोगी वस्तुओं का निर्यात
$\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ रु. करोड़ में
वस्तुएँ | 2016-17 00 रु. में |
---|---|
कृषि एवं समवर्गी उत्पाद | 2,28,001 |
अयस्क एवं खनिज | 35,947 |
विनिर्माणक सामान | 13,63,232 |
खनिज ईंधन और लुब्रिकेंट्स | 2,16,280 |
स्रोत : आर्थिक सर्वक्षण 2016-17
में आए ऊर्जा संकट से पेट्रोलियम (पदार्थों) के मूल्य में उछाल आया फलतः आयात बजट भी बढ़ गया। खाद्यान्नों के आयात की जगह उर्वरकों एवं पेट्रोलियम ने ले ली। मशीन एवं उपस्कर, विशेष स्टील, खाद्य तेल तथा रसायन मुख्य रूप से आयात व्यापार की रचना करते हैं। तालिका 8.4 में आयात के बदलते प्रारूप का परीक्षण करें तथा उसमें हुए परिवर्तन को समझने का प्रयास करें।
तालिका 8.4 यह दर्शाती है कि पेट्रोलियम तथा इसके उत्पादों के आयात में तीव्र वृद्धि हुई है। इसे न केवल ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है बल्कि इसका प्रयोग उद्योगों में एक कच्चे माल के रूप में भी होता है। इससे बढ़ते हुए औद्योगीकरण और बेहतर जीवन स्तर का संकेत मिलता है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में भी इसकी कदाचनिक मूल्यवृद्धि भी एक अन्य कारण रही है। निर्याताभिमुख उद्योगों एवं घरेलू क्षेत्र की बढ़ती हुई माँग के कारण पूँजीगत वस्तुओं के आयात में एक स्थिर वृद्धि होती रही है। गैर-वैद्युतिक मशीनरी परिवहन उपस्कर, धातुओं के विनिर्मितियाँ तथा मशीनी औज़ार आदि पूँजीगत वस्तुओं की मुख्य मदें होती थीं। खाद्य तेलों के अयात में आई गिरावट के साथ खाद्य तथा समवर्गी उत्पादों के आयात में कमी आई है। भारत के आयात में अन्य प्रमुख वस्तुओं में मोती तथा उपरत्नों, स्वर्ण एवं चाँदी, धातुमय अयस्क तथा धातु छीजन, अलौह धातुएँ तथा इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ आदि आते हैं। वर्ष 2016-17 के भारत की कुछ प्रमुख वस्तुओं के आयात के विवरण तालिका 8.5 में दिए गए हैं-
तालिका 8.5 के आँकड़ों के आधार पर कुछ क्रियाकलाप किए जा सकते हैं : आरोही क्रम में अथवा अवरोही क्रम में सभी वस्तुओं को क्रमबद्ध ढंग से व्यवस्थित करें और भारत के 2016-17 की आयात सूची की प्रमुख पाँच वस्तुओं का नाम लिखें।
भारत एक कृषि की दृष्टि से समृद्ध देश होते हुए भी खाद्य तेलों एवं दालों का आयात क्यों करता है? पाँच सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण वस्तुओं को तथा पाँच सबसे कम महत्त्वपूर्ण वस्तुओं को चुनकर उन्हें दंड-आरेख द्वारा दर्शाएँ।
क्या आप आयात सूची में कुछ ऐसे मदों को पहचान सकते हैं जिनके विकल्प भारत में विकसित किए जा सकते हैं।
तालिका 8.4 : भारत का आयात संघटन, 2009-2017
$\qquad$$\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$(प्रतिशत में)
उपयोगी वस्तुएँ | $\mathbf{2 0 0 9 - 1 0}$ | $\mathbf{2 0 1 0 - 1 1}$ | $\mathbf{2 0 1 5 - 1 6}$ | $\mathbf{2 0 1 6 - 1 7}$ |
---|---|---|---|---|
खाद्य तथा संबंधित वस्तुएँ | 3.7 | 2.9 | 5.1 | 5.6 |
ईंधन (कोयला, पी ओ एल) | 33.2 | 31.3 | 25.4 | 26.7 |
उर्वरक | 2.3 | 1.9 | 2.1 | 1.3 |
पेपर बोर्ड विनिर्मित और न्यूज प्रिंट | 0.5 | 0.6 | 0.8 | 0.9 |
पूंजीगत वस्तुएँ | 15.0 | 13.1 | 13.0 | 13.6 |
अन्य | 42.6 | 47.7 | 38.1 | 37.0 |
स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण, 2016-17
तालिका 8.5 : कुछ प्रमुख वस्तुओं का आयात
$\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ (करोड़ रु. में)
वस्तुएँ | 2016-17 |
---|---|
उर्वरक एवं उर्वरक विनिर्मितियाँ | 33,726 |
खाद्य तेल | 73,048 |
लुगदा (लुगदी) तथा अपशिष्ट पेपर (कागज़) | 6,537 |
अलौह धातुएँ | 2,62,961 |
लोहा और इस्पात | 55,278 |
पेट्रोलियम एवं उत्पाद | 5,82,762 |
मोती, बहुमूल्य एवं अल्प मूल्य रत्न | 1,59,464 |
चिकित्सीय एवं फार्मा उत्पाद | 33,504 |
रासायनिक उत्पाद | 1,47,350 |
स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17
व्यापार की दिशा
भारत के व्यापारिक संबंध विश्व के अधिकांश देशों एवं प्रमुख व्यापारी गुटों के साथ हैं। वर्ष 2016-17 के दौरान क्षेत्रानुसार एवं उपक्षेत्रानुसार व्यापार तालिका 8.6 में दिया गया है।
तालिका 8.6 : भारत के आयात व्यापार की दिशा
$\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ (करोड़ रु. में)
प्रदेश | आयात |
---|---|
$\mathbf{2 0 1 6 - 1 7}$ | |
यूरोप | 4,03,972 |
अफ्रीका | 19,332 |
उत्तरी अमेरिका | 1,95,332 |
लैटिन अमेरिका | 1,15,762 |
एशिया एवं आसियान | 15,44,520 |
स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण, 2016-17
भारत का उद्देश्य आगामी पाँच वर्षों के दौरान अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपनी हिस्सेदारी को दुगुना करने का है। इसने इस दिशा में, पहले से ही आयात उदारीकरण, आयात करों में कमी, डि-लाइसेंसिंग (विअनुज्ञाकरण) तथा प्रक्रिया से उत्पाद के एकस्व (पेटेंट) में बदलाव आदि अनुकूल उपाय अपनाने शुरू कर दिए हैं।
प्रमुख व्यापारिक साझेदारों को प्रदर्शित करने के लिए एक बहुदंड आरेख बनाएँ।
भारत का अधिकतर विदेशी व्यापार समुद्री एवं वायु मार्गों द्वारा संचालित होता है। हालाँकि, विदेशी व्यापार का छोटा सा भाग सड़क मार्ग द्वारा नेपाल, भूटान, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान जैसे पड़ोसी राज्यों में सड़क मार्ग द्वारा किया जाता है।
समुद्री पत्तन-अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार के रूप में
भारत तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है और प्रकृति ने हमें एक लंबी तटरेखा प्रदान की है। जल सस्ते परिवहन के लिए एक सपाट तल प्रदान करता है। समुद्री यात्राओं की भारत में
चित्र 8.3 : पत्तन पर माल को उतारना
एक लंबी परंपरा रही है, यहाँ तक कि कई स्थानों के साथ उपनाम पत्तन जुड़ा हुआ है। भारत में समुद्री पत्तनों का एक रोचक तथ्य यह है कि इसके पूर्वी तट की अपेक्षा पश्चिमी तट पर अधिक पत्तन हैं।
चित्र 8.4 : भारत - मुख्य पत्तन एवं समुद्री मार्ग
क्या आप इन दोनों तटों पर पत्तनों की अवस्थिति की भिन्नता के कारणों का पता लगा सकते हैं।
यद्यपि भारत में पत्तनों का उपयोग प्राचीन काल से हो रहा है तथापि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार के रूप में पत्तनों का उभरना यूरोपीय व्यापारियों का आगमन तथा अंग्रेज़ी द्वारा भारत के उपनिवेशीकरण के बाद महत्त्वपूर्ण बना। इसी कारण देश में पत्तनों के आकार और गुणवत्ता में विविधता आई। यहाँ पर कुछ पत्तन ऐसे हैं जिनके पास विस्तृत प्रभाव क्षेत्र हैं जबकि कुछ के पास सीमित प्रभाव क्षेत्र है। वर्तमान में, भारत में 12 प्रमुख और 200 छोटे या मझोले पत्तन हैं। प्रमुख पत्तनों के संबंधों में केंद्र सरकार नीतियाँ बनाती है तथा नियामक क्रियाओं को निभाती हैं। छोटे पत्तनों के लिए राज्य सरकारें नीतियाँ बनाती है व नियामक क्रियाएँ निभाती हैं। प्रमुख पत्तन कुल यातायात के बड़े हिस्से का निपटान करती हैं।
अंग्रेज़ों ने इन पत्तनों का उपयोग उनके पृष्ठप्रदेशों के संसाधनों के अवशोषण केंद्र के रूप में किया था। आंतरिक प्रदेशों में रेलवे के विस्तार ने स्थानीय बाज़ारों को क्षेत्रीय बाज़ारों और क्षेत्रीय बाज़ारों को राष्ट्रीय बाज़ारों तथा राष्ट्रीय बाज़ारों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों से जोड़ने की सुगमता प्रदान की। यह प्रवृत्ति 1947 तक बनी रही। यह अपेक्षा की गई थी कि देश की स्वतंत्रता इस प्रक्रम को उलट देगी, परंतु देश के विभाजन से भारत के दो अति महत्त्वपूर्ण पत्तन अलग हो गए। कराची पत्तन पाकिस्तान में चला गया और चिटगाँव पत्तन तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश में चला गया। इस क्षतिपूर्ति के लिए अनेक नए पत्तनों को विकसित किया गया जैसे कि पश्चिम में कांडला तथा पूर्व में हुगली नदी पर कोलकाता के पास डायमंड हार्बर का विकास हुआ।
इस बड़ी हानि के बावजूद, देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद से भारतीय पत्तन निरंतर वृद्धि कर रहे हैं। आज भारतीय पत्तन विशाल मात्रा में घरेलू के साथ-साथ विदेशी व्यापार का निपटान कर रहे हैं। अधिकतर पत्तन आधुनिक अवसंरचना से लैस हैं। पहले पत्तनों के विकास एवं आधुनिकीकरण की ज़िम्मेदारी सरकारी अभिकरणों पर थी, लेकिन काम के बढ़ने और इन पत्तनों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पत्तनों के समकक्ष बनाने की आवश्यकता ने भारत की पत्तनों के आधुनिकीकरण के लिए निजी उद्यमियों को आमंत्रित किया। आज भारतीय पत्तनों की नौभार निपटान की क्षमता 1951 में 20 मिलियन टन से 2016 में 837 मिलियन टन से अधिक बढ़ गई थी। अपने पृष्ठ प्रदेशों के साथ कुछ भारतीय पत्तन अग्रलिखित हैं-
कच्छ की खाड़ी के मुँहाने पर अवस्थित कांडला पत्तन को देश के पश्चिमी एवं उत्तर-पश्चिमी भाग की ज़रूरतों को पूरा करने और मुंबई पत्तन पर दबाव को घटाने के लिए एक प्रमुख पत्तन के रूप में विकसित किया गया है। इस पत्तन को विशेष रूप से भारी मात्रा में पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत्पादों एवं उर्वरकों को ग्रहण करने के लिए बनाया गया है। वाडीनार में एक अपतटीय टर्मिनल विकसित किया गया है ताकि कांडला पत्तन के दबाव को घटाया जा सके।
पृष्ठ प्रदेश (hinter land)की सीमाओं का चिह्नांकन मुश्किल होता है क्योंकि यह क्षेत्र पर सुस्थिर नहीं होता। अधिकतर मामलों में एक पत्तन का पृष्ठ प्रदेश दूसरे पत्तन के पृष्ठप्रदेश का अतिव्यापन कर सकता है।
मुंबई एक प्राकृतिक पत्तन और देश का सबसे बड़ा पत्तन है। यह पत्तन मध्यपूर्व, भूमध्य सागरीय देशों, उत्तरी अफ्रीका, उत्तर अमेरिका तथा यूरोप के देशों के सामान्य मार्ग के निकट स्थित है जहाँ से देश के विदेशी व्यापार का अधिकांश भाग संचालित किया जाता है। यह पत्तन 20 कि.मी. लंबा तथा 6-10 कि.मी. चौड़ा है। जिसमें 54 गोदियाँ और देश का विशालतम टर्मिनल हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के भाग मुंबई पत्तन की पृष्ठभूमि की रचना करते हैं।
जवाहरताल नेहरू पत्तन को न्हावा-शेवा में मुंबई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए एक अनुषंगी पत्तन के रूप में विकसित किया गया था। यह भारत का विशालतम कंटेनर पत्तन है।
जुआरी नदमुख के मुँहाने पर अवस्थित मार्मागाओ पत्तन गोवा का एक प्राकृतिक बंदरगाह है। जापान को लौह-अयस्क के निर्यात का निपटान करने के लिए 1961 में हुए पुनर्प्रतिरूपण के बाद इसका महत्त्व बढ़ा। कोंकण रेलवे ने इस पत्तन के पृष्ठ प्रदेश में महत्त्वपूर्ण विस्तार किया है। कर्नाटक, गोआ तथा दक्षिणी महाराष्ट्र इसकी पृष्ठभूमि की रचना करते हैं
न्यू मंगलौर पत्तन कर्नाटक में स्थित है और लौह-अयस्क और लौह-सांद्र के निर्यात की जरूरतों को पूरा करता है। यह पत्तन भी उर्वरकों, पेट्रोलियम उत्पादों, खाद्य तेलों, कॉफ़ी, चाय, लुगदी, सूत, ग्रेनाइट पत्थर, शीरा आदि का निपटान करता है। पृष्ठ कर्नाटक इस पत्तन का प्रमुख पृष्ठप्रदेश है।
चित्र 8.5 : भारत - वायु मार्ग
बेंवानद कायाल, जिसे ‘अरब सागर की रानी’ (क्वीन ऑफ अरेबियन सी) के लोकप्रिय नाम से जाना जाता है, के मुँहाने पर स्थित कोच्चि पत्तन भी एक प्राकृतिक पत्तन है। इस पत्तन को स्वेज कोलंबो मार्ग के पास अवस्थित होने का लाभ प्राप्त है। यह केरल, दक्षिणी कर्नाटक तथा दक्षिण-पश्चिमी तमिलनाडु की आवश्यकताओं को पूरा करता है।
कोलकाता पत्तन हुगली नदी पर अवस्थित है जो बंगाल की खाड़ी से 128 कि.मी. स्थल में अंदर स्थित है। मुंबई पत्तन की भाँति इसका विकास भी अंग्रेज़ों द्वारा किया गया था। कोलकाता को ब्रिटिश भारत की राजधानी होने के प्रारंभिक लाभ प्राप्त थे। इस पत्तन ने विशाखापट्नम, पाराद्वीप और उसकी अनुषंगी पत्तन हल्दिया जैसी अन्य पत्तनों की ओर निर्यात के दिक्परिवर्तन के कारण अपनी सार्थकता काफ़ी हद तक खो दी है।
कोलकाता पत्तन हुगली नदी द्वारा लाई गई गाद की समस्या से भी जूझता रहा है जो कि उसे समुद्र से जुड़ने का मार्ग प्रदान करती है। इसके पृष्ठ प्रदेश के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम और उत्तर-पूर्वी राज्य आते हैं। इन सबके अतिरिक्त, यह पत्तन हमारे भूटान और नेपाल जैसे स्थलरुद्ध पड़ोसी देशों को भी सुविधाएँ उपलब्ध कराता है।
हल्दिया पत्तन कोलकाता से 105 कि.मी. अंदर अनुप्रवाह (डाउनस्ट्रीम) पर स्थित है। इसका निर्माण कोलकाता पत्तन की संकुलता को घटाने के लिए किया गया है। यह स्थूल नौभार जैसे- लौह-अयस्क, कोयला, पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, जूट एवं जूट उत्पाद, कपास तथा सूती धागों आदि का निपटान (handle) करता है।
पारादीप पत्तन कटक से 100 कि.मी. दूर महानदी डेल्टा पर स्थित है। इसका पोताश्रय सबसे गहरा है जो भारी पोतों के निपटान के लिए सर्वाधिक अनुकूल है। इसे मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर लौह-अयस्क के निर्यात के लिए निपटान विकसित किया गया है। इस पत्तन के पृष्ठ प्रदेश के अंतर्गत ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ आते हैं।
विशाखापट्नम आंध्र प्रदेश में एक भू-आबद्ध पत्तन है जिसे ठोस चट्टान एवं बालू को काटकर एक नहर के द्वारा समुद्र से जोड़ा गया है। एक बाह्य पत्तन का विकास लौह-अयस्क, पेट्रोलियम तथा सामान्य नौभार के निपटान हेतु विकसित किया गया है। इस पत्तन का प्रमुख पृष्ठ प्रदेश आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना है।
चेन्नई पत्तन-पूर्वी तट पर स्थित यह सबसे पुराने पत्तनों में से एक है। यह एक कृत्रिम पत्तन है जिसे 1859 में बनाया गया था। तट के निकट उथले जल के कारण यह पत्तन विशाल पोतों के लिए अनुकूल नहीं है। तमिलनाडु और पुदुच्चेरी इसके पृष्ठप्रदेश हैं।
तमिलनाडु में नई विकसित एन्नोर पत्तन चेन्नई के उत्तर में 25 कि.मी. दूर चेन्नई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए बनाई गई है।
तूतीकोरिन पत्तन का विकास भी चेन्नई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए किया गया था। यह विभिन्न प्रकार के नौभार का निपटान करता है जिसके अंतर्गत कोयला, नमक, खाद्यान्न, खाद्य तेल, चीनी, रसायन तथा पेट्रोलियम उत्पाद शामिल हैं।
हवाई अड्ड्डे
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वायु परिवहन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन्हें लंबी दूरी वाले उच्च मूल्य वाले या नाशवान सामानों को कम से कम समय में ले जाने व निपटाने के लिए लाभ प्राप्त होते हैं। यह भारी और स्थूल वस्तुओं के वहन करने के लिए बहुत महँगा और अनुपयुक्त होता है। यही कारण अंततः अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महासागरीय मार्गों की तुलना में इस क्षेत्र की भागीदारी को घटा देता है।
देश में 25 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे कार्य कर रहे हैं (वार्षिक रिपोर्ट 2016-17)। अंतर्राष्ट्रीय हवाई पत्तनों के अंतर्गत अहमदाबाद, बेंगलूरु, चेन्नई, दिल्ली, गोवा, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोच्चि, कोलकाता, मुंबई, थिरुवनंथपुरम, श्रीनगर, जयपुर, कालीकट, नागपुर, कोयम्बटूर, लखनऊ, पुणे, चण्डीगढ़, मंगलूरु, विशाखापट्नम, इंदौर, पटना, भुवनेश्वर और कन्नूर हैं।
आप इससे पहले के अध्याय में वायु परिवहन के बारे में पढ़ चुके हैं। आप परिवहन पर अध्याय को देखें और भारत में वायु परिवहन की प्रमुख विशेषताओं को ज्ञात करें।
क्रियाकलाप
अपने निवास स्थान से निकटतम घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय हवाई पत्तनों के नाम लिखें। सबसे अधिक घरेलू हवाई पत्तन वाले राज्य की पहचान भी करें।
उन चार नगरों की पहचान करें, जहाँ सबसे अधिक हवाई मार्ग अभिसारित होते हों और इसके कारण भी बताएँ।
अभ्यास
1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए।
(i) दो देशों के मध्य व्यापार कहलाता है-
(क) अंतर्देशीय व्यापार
(ख) बाह्य व्यापार
(ग) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
(घ) स्थानीय व्यापार
(ii) निम्नलिखित में से कौन-सा एक स्थलबद्ध पोताश्रय है?
(क) विशाखापट्नम
(ख) मुंबई
(ग) एन्नोर
(घ) हल्दिया
(iii) भारत का अधिकांश विदेशी व्यापार वहन होता है-
(क) स्थल और समुद्र द्वारा
(ख) स्थल और वायु द्वारा
(ग) समुद्र और वायु द्वारा
(घ) समुद्र द्वारा
2. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।
(i) भारत के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ii) पत्तन और पोताश्रय में अंतर बताइए।
(iii) पृष्ठप्रदेश के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
(iv) उन महत्त्वपूर्ण मदों के नाम बताइए जिन्हें भारत विभिन्न देशों से आयात करता है?
(v) भारत के पूर्वी तट पर स्थित पत्तनों के नाम बताइए।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।
(i) भारत में निर्यात और आयात व्यापार के संयोजन का वर्णन कीजिए।
(ii) भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति पर एक टिप्पणी लिखिए।