अध्याय 07 परिवहन तथा संचार

हम अपने दैनिक जीवन में अनेक वस्तुओं का उपयोग करते हैं। दंतमंजन या टूथपेस्ट से लेकर सुबह की चाय, दूध, कपड़े, साबुन तथा खाद्य पदार्थ आदि की हमें प्रतिदिन आवश्यकता पड़ती है। इन सभी को बाज़ार से खरीदा जा सकता है। क्या आपने कभी सोचा है कि इन वस्तुओं को अपने उत्पादन-स्थल से किस प्रकार लाया जाता है? सभी उत्पादन निश्चय ही खपत के लिए होते हैं। खेतों एवं कारखानों से तैयार सभी उत्पादों को उन स्थानों पर लाया जाता है, जहाँ से उपभोक्ता उन्हें खरीद सके। यह परिवहन ही है जो इन वस्तुओं को उत्पादन स्थलों से बाज़ार तक पहुँचाता है जहाँ ये उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध होते हैं।

हम अपने दैनिक जीवन में फल, शाक-सब्ज़ियों, किताबें एवं कपड़ा आदि जैसी भौतिक वस्तुएँ ही नहीं उपयोग में लाते हैं; बल्कि विचारों, दर्शन तथा संदेशों का भी उपयोग करते हैं। क्या आप जानते हैं कि विभिन्न साधनों के माध्यम से संचार करते समय हम अपने विचारों, दर्शन और संदेशों का विनिमय एक स्थान से दूसरे स्थान तक, अथवा एक व्यक्ति से दूसरे तक करते हैं।

परिवहन तथा संचार का उपयोग एक वस्तु की उपलब्धता वाले स्थान से उसके उपयोग वाले स्थान पर लाने-ले जाने की हमारी आवश्यकता पर निर्भर करता है। मानव विभिन्न वस्तुओं, पदार्थों और विचारों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए भिन्न विधियों का प्रयोग करता है।

निम्नलिखित आरेख परिवहन के प्रमुख साधनों को दर्शाता है -

स्थल परिवहन

भारत में मार्गों एवं कच्ची सड़कों का उपयोग परिवहन के लिए प्राचीन काल से किया जाता रहा है। आर्थिक तथा प्रौद्योगिक विकास के साथ भारी मात्रा में सामानों तथा लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए पक्की सड़कों तथा रेलमार्गों का विकास किया गया है। रज्जुमार्गों, केबिल मार्गों तथा पाइप लाइनों जैसे साधनों का विकास विशिष्ट सामग्रियों को विशिष्ट परिस्थितियों में परिवहन की माँग को पूरा करने के लिए किया गया।

सड़क परिवहन

भारत का सड़क जाल विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सड़क-जाल है। इसकी कुल लंबाई लगभग 62.16 लाख कि.मी. (वार्षिक रिपोर्ट 2020-21, morth.nic.in) है। सड़क योजना (1961) आरंभ की गई। हालाँकि, सड़कों का संकेंद्रण नगरों एवं उनके आसपास के क्षेत्रों में ही रहा। ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों से सड़कों द्वारा संपर्क लगभग नहों के बराबर था।

चित्र 7.1

यहाँ प्रतिवर्ष सड़कों द्वारा लगभग 85 प्रतिशत यात्री तथा 70 प्रतिशत भार यातायात का परिवहन किया जाता है। छोटी दूरियों की यात्रा के लिए सड़क परिवहन अपेक्षाकृत अनुकूल होता है।

क्या आप जानते हैं

शेरशाह सूरी ने अपने साम्राज्य को सिंधु घाटी (पाकिस्तान) से लेकर बंगाल की सोनार घाटी तक सुदृढ़ एवं संघटित (समेकित) रखने के लिए शाही राजमार्ग का निर्माण कराया था। कोलकाता से पेशावर तक जोड़ने वाले इसी मार्ग को ब्रिटिश शासन के दौरान ग्रांड ट्रंक (जी. टी.) रोड के नाम से पुन: नामित किया गया था। वर्तमान में यह अमृतसर से कोलकाता के बीच विस्तृत है।

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या (पुरानी तथा नयी) से संबंधित जानकारी वेबसाइट north.nic.in/national-highway-details से एकत्रित करें।

भारत में, द्वितीय विश्व युद्ध से पहले तक आधुनिक प्रकार का सड़क परिवहन अत्यंत सीमित था। पहला गंभीर प्रयास 1943 में ‘नागपुर योजना’ बनाकर किया गया। रजवाड़ों और ब्रिटिश भारत के बीच समन्वय के अभाव के कारण यह योजना क्रियान्वित नहीं हो पाई। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में सड़कों की दशा सुधारने के लिए एक बीस वर्षीय निर्माण एवं रख-रखाव के उद्देश्य से सड़कों को राष्ट्रीय महामार्गों ( $\mathrm{NH})$, राज्य महामार्गों $(\mathrm{SH})$, प्रमुख ज़िला सड़कों तथा ग्रामीण सड़कों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

राष्ट्रीय महामार्ग

वे प्रमुख सड़कें, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा निर्मित एवं अनुरक्षित किया जाता है, राष्ट्रीय महामार्ग के नाम से जानी जाती है। इन सड़कों का उपयोग अंतर्राज्यीय परिवहन तथा सामरिक क्षेत्रों तक रक्षा सामग्री एवं सेना के आवागमन के लिए होता है। ये महामार्ग राज्यों की राजधानियों, प्रमुख नगरों, महत्वपूर्ण पत्तनों तथा रेलवे जंक्शनों को भी जोड़ते हैं। राष्ट्रीय महामार्गों की लंबाई 1951 में 19,700 कि.मी. से बढ़कर, 2020 में $1,36,440$ कि.मी. हो गई है। राष्ट्रीय महामार्गों की लंबाई पूरे देश की कुल सड़कों की लंबाई की मात्र 2 प्रतिशत है; किंतु ये सड़क यातायात के 40 प्रतिशत भाग का वहन करते हैं।

भारतीय राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण (एन.एच.ए.आई.) का प्रचालन 1995 में हुआ था। यह भूतल परिवहन मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्तशासी निकाय है। इसे राष्ट्रीय महामार्गों के विकास, रख-रखाव तथा प्रचालन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। इसके साथ ही यह राष्ट्रीय महामार्गों के रूप में निर्दिष्ट सड़कों की गुणवत्ता सुधार के लिए एक शीर्ष संस्था है।

तालिका 7.1 : भारत का सड़क जाल ( 2020 )

क्रम सं. सड़क वर्ग लंबाई कि.मी. में
1. राष्ट्रीय महामार्ग 1,36,440
2. राज्य महामाम्ग 1,76,818
3. अन्य 59,02,539
कुल 62,15,797

स्रोतः सड़क परिवहन मंत्रालय, वार्षिक रिपोर्ट, 2020-21: नवीनतम आंकड़ों के लिए देखे वेबसाइट morth.nic.in

राष्ट्रीय महामार्ग विकास परियोजनाएँ

भारतीय राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण (एन एच ए आई) ने देश-भर में विभिन्न चरणों में कई प्रमुख परियोजनाओं की जिम्मेदारी ले रखी है।

स्वर्णिम चतुर्भुज (Golden Quadrilateral) परियोजना : इसके अंतर्गत 5,846 कि.मी. लंबी $4 / 6$ लेन वाले उच्च सघनता के यातायात गलियारे शामिल हैं जो देश के चार विशाल महानगरों-दिल्ली-मुंबई-चेन्नईकोलकाता को जोड़ते हैं। स्वर्णिम चतुर्भुज के निर्माण के साथ भारत के इन महानगरों के बीच समय-दूरी तथा यातायात की लागत महत्वपूर्ण रूप से कम होगी।

उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम गलियारा (North-South Corridor) : उत्तर-दक्षिण गलियारे का उद्देश्य जम्मू व कश्मीर के श्रीनगर से तमिलनाडु के कन्याकुमारी (कोच्चि-सेलम पर्वत स्कंध सहित) को 4,016 कि.मी. लंबे मार्ग द्वारा जोड़ना है। पूर्व एवं पश्चिम गलियारे का उद्देश्य असम में सिलचर से गुजरात में पोरबंदर को 3,640 कि.मी. लंबे मार्ग द्वारा जोड़ना है।

राज्य महामार्ग

इन मार्गों का निर्माण एवं अनुरक्षण राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। ये राज्य की राजधानी से ज़िला मुख्यालयों तथा अन्य महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ते हैं। ये मार्ग राष्ट्रीय महामार्गों से जुड़े होते हैं। इनके अंतर्गत देश की कुल सड़कों की लंबाई का 4 प्रतिशत भाग आता है।

ज़िला सड़कें

ये सड़कें ज़िला मुख्यालयों तथा ज़िले के अन्य महत्वपूर्ण स्थलों के बीच संपर्क मार्ग का कार्य करती हैं। इनके अंतर्गत देश-भर की कुल सड़कों की लंबाई का 14 प्रतिशत भाग आता है।

ग्रामीण सड़कें ये सड़कें ग्रामीण क्षेत्रों को आपस में जोड़ने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। भारत की कुल सड़कों की लंबाई का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण सड़कों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ग्रामीण सड़कों के घनत्व में प्रादेशिक विषमता पाई जाती है क्योंकि ये भूभाग (terrain) की प्रकृति से प्रभावित होती हैं।

चित्र 7.2 : प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत निर्मित सड़क

ग्रामीण सड़कों का घनत्व पर्वतीय, पठारी एवं वनीय क्षेत्रों में बहुत कम क्यों होता है? नगरीय केंद्रों से दूर ग्रामीण सड़कों की गुणवत्ता क्यों घटती चली जाती है?

अन्य सड़कें

अन्य सड़कों के अंतर्गत सीमांत सड़कें एवं अंतर्राष्ट्रीय महामार्ग आते हैं। मई 1960 में सीमा सड़क संगठन (बी.आर.ओ.) को देश की उत्तरी एवं उत्तर-पूर्वी सीमा से सटी सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सड़कों के तीव्र और समन्वित सुधार के माध्यम से आर्थिक विकास को गति देने एवं रक्षा तैयारियों को मज़बूती प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। यह एक अग्रणी बहुमुखी निर्माण अभिकरण है। इसने अति ऊँचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में चंडीगढ़ को मनाली (हिमाचल प्रदेश) तथा लेह (लद्दाख) से जोड़ने वाली सड़क बनाई है। यह सड़क समुद्र तल से औसतन 4,270 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

सामरिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में सड़कें बनाने व अनुरक्षण करने के साथ-साथ बी.आर.ओ. अति ऊँचाइयों वाले क्षेत्रों में बर्फ़ हटाने की ज़िम्मेदारी भी सँभालता है। अंतर्राष्ट्रीय महामार्गों का उद्देश्य पड़ोसी देशों के बीच भारत के साथ प्रभावी संपर्कों को उपलब्ध कराते हुए सद्भावपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना है (चित्र 7.3 व 7.4 )।

चित्र 7.3 : लद्दाख में खारदुंग ला पास

क्या आप जानते हैं

विश्व की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग अटल टनल ( 9.02 किलोमीटर) सीमा सड़क संगठन द्वारा बनाई गयी है। यह सुरंग पूरे साल मनाली को लाहौल-स्पीति घाटी से जोड़ती है। पहले यह घाटी भारी बर्फबारी के कारण लगभग 6 महीने तक अलग-थलग रहती थी। यह सुरंग हिमालय की पीरपंजाल पर्वतमाला में औसत समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊँचाई पर अति-आधुनिक सुविधाओं के साथ बनाई गई है।

स्रोतः http//www.bro.gov.in/ pagefimg.asp?imid=144, and PIB Delhi 03 October 2020


क्रियाकलाप

दक्षिण (भारत) में बेंगलूरु तथा हैदराबाद और उत्तर (भारत) में दिल्ली, कानपुर तथा पटना महत्वपूर्ण केंद्रों के रूप में क्यों उभरे हैं?

क्या आप जानते हैं

भारतमाला एक प्रस्तावित वृहद् योजना है-

(i) तटवर्ती भागों से लगे हुए राज्यों की सड़कों का विकास/सीमावर्ती भागों तथा छोटे बंदरगाहों को जोड़ना।

(ii) पिछड़े इलाकों, धार्मिक, पर्पटन स्थलों को जोड़ने की योजना।

(iii) सेतू भारतम परियोजना के अंतर्गत 1500 बड़े पुलों तथा 200 रेल ओवर ब्रिज/रेल अंडर ब्रिज का निर्माण।

(iv) लगभग 900 कि.मी. के नए घोषित किए गए राष्ट्रीय राजमागों के विकास के लिए जिला मुख्यालय जोड़ने की योजना।

यह कार्यक्रम 2022 तक पूरा किया जाना है।

स्रोतः आरिक सर्वेक्षण, 2015-16, पृ. 146

रेल परिवहन

भारतीय रेल जाल विश्व के सर्वाधिक लंबे रेल जालों में से एक है। यह माल एवं यात्री परिवहन को सुगम बनाने के साथ-साथ आर्थिक वृद्धि में भी योगदान देता है। महात्मा गांधी ने कहा था- “भारतीय रेलवे ने विविध संस्कृति के लोगों को एक साथ लाकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया है।”

भारतीय रेल की स्थापना 1853 में हुई तथा मुंबई (बंबई) से थाणे के बीच 34 कि.मी. लंबी रेल लाइन निर्मित की गई।

देश में भारतीय रेल सरकार का विशालतम उद्यम है। भारतीय रेल जाल की कुल लंबाई 67956 कि.मी. है (रेलवे ईयर बुक 2019-20)। इसका अति विशाल आकार केंद्रीकृत रेल प्रबंधन तंत्र पर अत्यधिक दबाव डालता है। अतएव भारतीय रेल को 16 मंडलों में विभाजित किया गया है।

तालिका 7.2: भारतीय रेल रेलमंडल तथा मुख्यालय

रेल-मंडल मुख्यालय
सेंट्रल मुंबई (सी.एस.टी.)
इस्टर्न कोलकाता
ईस्ट सेंट्लल हाजीपुर
ईस्ट कोस्ट भुवनेश्वर
नार्दन नई दिल्ली
नार्थ सेंट्रल इलाहाबाद
नार्थ इस्टर्न गोरखपुर
नार्थ ईस्ट फ्रंटियर मालीगाँव (गुवाहाटी)
नार्थ वेस्टर्न जयपुर
सदर्न चेन्नई
साउथ सेंट्रल सिकंदराबाद
साउथ ईस्टर्न कोलकाता
साउथ ईस्ट सेंट्रल बिलासपुर
साउथ वेस्टर्न हुबली
वेस्टर्न मुंबई (चर्च गेट)
वेस्ट सेंट्रल जबलपुर

क्या आप जानते हैं

रेलवे पटरी की चौड़ाई के आधार पर भारतीय रेल के तीन वर्ग बनाए गए हैं।

बड़ी लाइन (Broad Guage) - ब्रॉड गेज में रेल पटरियों के बीच की दूरी 1.616 मीटर होती है। ब्रॉड गेज लाइन की कुल लंबाई 63950 कि.मी. थी (2019-20)।

मीटर लाइन (Meter Guage) - इसमें दो रेल पटरियों के बीच की दूरी एक मीटर होती है। इसकी कुल लंबाई 2402 कि.मी. थी (2019-20)।

छोटी लाइन (Narrow Guage) - इसमें दो रेल पटरियों के बीच की दूरी 0.762 मीटर या 0.610 मीटर होती है। इसकी कुल लंबाई 1604 कि.मी. थी (2019-20)। यह प्राय: पर्वतीय क्षेत्रों तक सीमित है।

भारतीय रेल ने मीटर तथा नैरो गेज रेलमार्गों को ब्रॉड गेज में बदलने के लिए व्यापक कार्यक्रम शुरू किया है। इसके अतिरिक्त वाष्पचालित इंजनों के स्थान पर डीज़ल और विद्युत इंजनों को लाया गया है। इस कदम से रेलों की गति बढ़ने के साथ-साथ उनकी ढुलाई क्षमता भी बढ़ गई है। कोयले द्वारा चालित वाष्प इंजनों के प्रतिस्थापन से रेलवे स्टेशनों के पर्यावरण में भी सुधार हुआ है।

मेट्रो रेल ने भारत में नगरीय परिवहन व्यवस्था में क्रांति ला दी है। डीज़ल चालित बसों की जगह सी.एन.जी. चालित वाहनों के साथ-साथ मेट्रो रेल का प्रचालन नगरीय केंद्रों के वायु प्रदूषण को नियंत्रण करने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है।

भारत के किन शहरों में मेट्रो रेल सुविधा उपलब्ध है? इनके बारे में जानकारी एकत्रित करें और कक्षा में चर्चा करें।

ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान से ही शहरी क्षेत्र, कच्चा माल/सामग्री उत्पादन क्षेत्र, बागान तथा अन्य व्यावसायिक

कोंकण रेलवे

1998 में कोंकण रेलवे का निर्माण भारतीय रेल की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह 760 कि.मी. लंबा रेलमार्ग महाराष्ट्र में रोहा को कर्नाटक के मंगलौर से जोड़ता है। इसे अभियांत्रिकी का एक अनूठा चमत्कार माना जाता है। यह रेलमार्ग 146 नदियों व धाराओं तथा 2000 पुलों एवं 91 सुंगंगों को पार करता है। इस मार्ग पर एशिया की सबसे लंबी 6.5 कि.मी. की सुरंग भी है। इस उद्यम में कर्नाटक, गोवा तथा महाराष्ट्र राज्य भागीदार हैं। फ़सल क्षेत्र, पहाड़ी स्थल तथा छावनी क्षेत्र रेलमार्गों से अच्छी तरह जुड़े हुए थे। ये मुख्य रूप से संसाधनों के शोषण हेतु विकसित किए गए थे। देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद इन रेलमार्गों का विस्तार अन्य क्षेत्रों में भी किया गया। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण कोंकण रेलवे का विकास है जो भारत के पश्चिमी समुद्री तट के साथ मुंबई और मंगलूरु के बीच सीधा संपर्क उपलन्ध कराता है।

जल परिवहन

भारत में जलमार्ग यात्री तथा माल वहन, दोनों के लिए परिवहन की एक महत्वपूर्ण विधा है। यह परिवहन का सबसे सस्ता साधन है तथा भारी एवं स्थूल सामग्री के परिवहन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। यह ईंधन-दक्ष तथा पारिस्थितिकी अनुकूल परिवहन प्रणाली है। जल परिवहन दो प्रकार का होता है(क) अन्तः स्थलीय जलमार्ग और (ख) महासागरीय जलमार्ग।

अंत:स्थलीय जलमार्ग

रेलमार्गों के आगमन से पहले यह परिवहन की प्रमुख विधा थी। हालाँकि, इसे रेल व सड़क परिवहन के साथ कठिन प्रतियोगिता का सामना करना पड़ा। इसके अतिरिक्त, नदियों के जल को सिंचाई हेतु बाँट देने के कारण इनके मार्गों के अधिकांश भाग नौसंचालन के योग्य नहीं रहे हैं। इस समय भारत में 14,500 कि.मी. लंबा जलमार्ग नौकायन हेतु उपलब्ध है जो देश के परिवहन में लगभग $1 %$ का योगदान देता है। इसके अंतर्गत नदियाँ, नहरें, पश्च जल तथा सँकरी खाड़ियाँ आदि आती हैं। वर्तमान में 5,685 कि.मी. प्रमुख नदी जलमार्ग चपटे तल वाले व्यापारिक जलपोतों द्वारा नौकायन योग्य है

चित्र 7.6 : उत्तर-पूर्व में नदी नौपरिवहन

देश में राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास, अनुरक्षण तथा नियमन हेतु 1986 में अंतः स्थलीय जलमार्ग प्राधिकरण स्थापित जलमार्ग प्राधिकरण ने 10 अन्य जलमार्गों की भी पहचान की किया गया था। निम्नलिखित जलमार्ग सरकार द्वारा राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए गए हैं (तालिका 7.3) अंतः स्थलीय है जिनका कोटि उन्नयन किया जा सकेगा।

चित्र $7.7:$ राष्ट्रीय जलमार्ग सं. 3

तालिका 7.3 : भारत के राष्ट्रीय जलमार्ग

केरल के पश्च जल (कडल) का अंतः स्थलीय जलमार्गों में अपना एक विशिष्ट महत्व है। ये परिवहन का सस्ता साधन उपलब्ध कराने के साथ-साथ केरल में भारी संख्या में पर्यटकों को भी आकर्षित करते हैं। यहाँ की प्रसिद्ध नेहरू ट्रॉफी नौकादौड़ (वल्लामकाली) भी इसी पश्च जल में आयोजित की जाती है।

महासागरीय मार्ग

भारत के पास द्वीपों सहित लगभग 7,517 कि.मी. लंबा व्यापक समुद्री तट है। 12 प्रमुख तथा 185 गौण पत्तन इन मार्गों को संरचनात्मक आधार प्रदान करते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था के परिवहन सेक्टर में महासागरीय मार्गों की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत में भार के अनुसार लगभग $95 %$ तथा मूल्य के अनुसार $70 %$ विदेशी व्यापार महासागरीय मार्गों द्वारा होता है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के साथ-साथ इन मार्गों का उपयोग देश की मुख्य भूमि तथा द्वीपों के बीच परिवहन के लिए भी होता है।

वायु परिवहन

वायु परिवहन एक स्थान से दूसरे स्थान तक गमनागमन का तीव्रतम साधन है। इसने यात्रा समय को घटाकर दूरियों को कम कर दिया है। यह भारत जैसे विस्तृत देश के लिए बहुत ही आवश्यक है क्योंकि यहाँ दूरियाँ बहुत लंबी हैं तथा भूभाग एवं जलवायवी दशाएँ अत्यंत विविधतापूर्ण हैं।

भारत में वायु परिवहन की शुरुआत 1911 में हुई, जब इलाहाबाद से नैनी तक की 10 कि.मी. की दूरी हेतु वायु डाक प्रचालन संपन्न किया गया था। लेकिन इसका वास्तविक विकास देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् हुआ। भारतीय वायु प्राधिकरण (एयर अथॉरिटी ऑफ इंडिया) भारतीय वायुक्षेत्र में सुरक्षित, सक्षम वायु यातायात एवं वैमानिकी संचार सेवाएँ प्रदान करने के लिए उत्तरदायी है।

पवन हंस एक हेलीकॉप्टर सेवा है जो पर्वतीय क्षेत्रों में सेवारत है और उत्तर-पूर्व सेक्टर में व्यापक रूप से पर्यटकों द्वारा उपयोग में लाया जाता है।
इसके अतिरिक्त पवन हंस लिमिटेड मुख्यतः पेट्रोलियम सेक्टर के लिए हेलीकॉप्टर सेवाएँ उपलब्ध कराता है।

तेल एवं गैस पाइप लाइन

पाइप लाइनें गैसों एवं तरल पदार्थों के लंबी दूरी तक परिवहन हेतु अत्यधिक सुविधाजनक एवं सक्षम परिवहन प्रणाली है। यहाँ तक की इनके द्वारा ठोस पदार्थों को भी घोल या गारा में बदलकर परिवहित किया जा सकता है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के प्रशासन के अधीन स्थापित आयल इंडिया लिमिटेड (ओ.आई.एल.) कच्चे तेल एवं प्राकृतिक गैस के अन्वेषण, उत्पादन और परिवहन में संलग्न है। इसे 1959 में एक कंपनी के रूप में निगमित किया गया था। एशिया की पहली 1157 कि.मी. लंबी देशपारीय पाइपलाइन (असम के नहरकरिटया तेल क्षेत्र से बरौनी के तेल शोधन कारखाने तक) का निर्माण आई.ओ.एल. ने किया था। इसे 1966 में और आगे कानपुर तक विस्तारित किया गया। गेल (इंडिया) लिमिटेड की स्थापना 1984 में एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के रूप में प्राकृतिक गैस के परिवहन, प्रसंस्करण और उसके आर्थिक उपयोग के लिए उसका विपणन करने के लिए की गयी थी। गेल द्वारा निर्मित पहली 1,700 किलोमीटर लंबी हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर (एचवीजे) क्रॉस कंट्री गैस पाइपलाइन ने मुंबई हाई और बसीन गैस क्षेत्रों को पश्चिमी और उत्तरी भारत में विभिन्न उर्वरक, बिजली और औद्योगिक परिसरों से जोड़ा है। इन गैस पाइप लाइनों ने भारतीय गैस बाजार के विकास को गति प्रदान की। कुल मिलाकर भारत के गैस बुनियादी ढाँचे का विस्तार क्रॉस-कंट्री पाइपलाइनों के 1700 किलोमीटर से बढ़कर 18500 किलोमीटर तक, दस गुना से अधिक हो गया है और पूर्वोत्तर राज्यों सहित देश भर में सभी गैस स्रोतों और उपभोक्ता बाजारों को जोड़कर गैस ग्रिड के रूप में जल्द ही 34000 किलोमीटर से अधिक तक पहुँचाने की सम्भावना है।

संचार जाल

मानव ने कालांतर में संचार के विभिन्न माध्यम विकसित किए हैं। आरंभिक समय में ढोल या पेड़ के खोखले तने को बजाकर, आग या धुएँ के संकेतों द्वारा अथवा तीव्र धावकों की सहायता से संदेश पहुँचाए जाते थे। उस समय घोड़े, ऊँट, कुत्ते, पक्षी तथा अन्य पशुओं को भी संदेश पहुँचाने के लिए प्रयोग किया जाता था। आरंभ में संचार के साधन ही परिवहन के साधन होते थे। डाकघर, तार, प्रिंटिंग प्रेस, दूरभाष तथा उपग्रहों की खोज ने संचार को बहुत त्वरित एवं आसान बना दिया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास ने संचार के क्षेत्र में क्रांति लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

संदेश पहुँचाने के लिए लोग संचार की विभिन्न विधाओं का उपयोग करते हैं। मापदंड एवं गुणवत्ता के आधार पर संचार साधनों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-

वैयक्तिक संचार तंत्र

उपर्युक्त सभी वैयक्तिक संचार तंत्रों में इंटरनेट सर्वाधिक प्रभावी एवं अधुनातन है। नगरीय क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जाता है। यह उपयोगकर्ता को ई-मेल के माध्यम से ज्ञान एवं सूचना की दुनिया में सीधे पहुँच बनाने में सहायक होता है। यह ई-कॉमर्स तथा मौद्रिक लेन-देन के लिए अधिकाधिक प्रयोग में लाया जा रहा है। इंटरनेट विभिन्न मदों पर विस्तृत जानकारी सहित आँकड़ों का विशाल केंद्रीय भंडारागार जैसा होता है। इंटरनेट तथा ई-मेल के माध्यम से यह नेटवर्क अपेक्षाकृत कम लागत में सूचनाओं को अभिगम्यता प्रदान करता है।

जनसंचार तंत्र

रेडियो

भारत में रेडियो का प्रसारण सन् 1923 में रेडियो क्लब ऑफ बाम्बे द्वारा प्रारंभ किया गया था। तब से इसने असीमित लोकप्रियता पाई है और लोगों के सामाजिक-संस्कृतिक जीवन में परिवर्तन ला दिया है। अल्पकाल में ही इसने देश-भर में प्रत्येक घर में जगह बना ली है। सरकार ने इस सुअवसर का लाभ उठाया और 1930 में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम के अंतर्गत इस लोकप्रिय संचार माध्यम को अपने नियंत्रण में ले लिया। 1936 में इसे ऑल इंडिया रेडियो और 1957 में आकाशवाणी में बदला दिया गया। ऑल इंडिया रेडियो सूचना, शिक्षा एवं मनोरंजन से जुड़े विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों को प्रसारित करता है। विशिष्ट अवसरों जैसे संसद तथा राज्य विधानसभाओं के सत्रों के दौरान विशेष समाचार बुलेटिनों को भी प्रसारित किया जाता है।

टेलीविज़न (टी.वी.)

सूचना के प्रसार और आम लोगों को शिक्षित करने में टेलीविज़न प्रसारण एक अत्यधिक प्रभावी दृश्य-श्रव्य माध्यम के रूप में उभरा है। प्रारंभिक दौर में टी.वी. सेवाएँ केवल राष्ट्रीय राजधानी तक सीमित थीं, जहाँ इसे 1959 में प्रारंभ किया गया था। 1972 के बाद कई अन्य केंद्र चालू हुए। सन् 1976 में टी.वी. को ऑल इंडिया रेडियो (ए.आई.आर.) से विगलित कर दिया गया और इसे दूरदर्शन (डी.डी.) के रूप में एक अलग पहचान दी गई। इनसैट (INSAT) 1ए ( राष्ट्रीय टेलीविज़न डीडी-1) के चालू होने के बाद समूचे नेटवर्क के लिए साझा राष्ट्रीय कार्यक्रमों (सीएनपी) की शुरुआत की गई और इन्हें देश-भर के पिछड़े और सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तारित किया गया।

उपग्रह संचार

उपग्रह, संचार की स्वयं में एक विधा हैं और ये संचार के अन्य साधनों का भी नियमन करते हैं। हालाँकि, उपग्रह के उपयोग से एक विस्तृत क्षेत्र का सतत एवं सारिक दृश्य प्राप्त होने के कारण, उपग्रह संचार आर्थिक एवं सामरिक कारणों से महत्त्वपूर्ण हो गया है। उप्रह से प्राप्त चित्रों का मौसम के पूर्वानुमान, प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी, सीमा क्षेत्रों की चौकसी आदि के लिए उपयोग किया जा सकता है।

भारत की उपग्रह प्रणाली को समाकृति तथा उद्देश्यों के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है- इंडियन नेशनल सेटेलाइट सिस्टम (INSAT) तथा इंडियन रिमोट सेंसंग सेटेलाइट सिस्टम (IRS)। इनसैट (INSAT), जिसकी स्थापना 1983 में हुई थी, एक बहुउद्देश्यीय उपग्रह प्रणाली है जो दूरसंचार, मौसम विज्ञान संबंधी अवलोकनों तथा विभिन्न अन्य आँकड़ों एवं कार्यक्रमों के लिए उपयोगी है।

आई आर एस उपग्रह प्रणाली मार्च 1988 में रूस के वैकानूर से आई आर एस-वन ए (IRS-IA) के प्रक्षेपण के साथ आरंभ हो गई थी। भारत ने भी अपना स्वयं का प्रक्षेपण वाहन पी एस एल वी (पोलर सेटेलाइट लाँच वेहकिल विकसित किया। ये उपग्रह अनेक वर्णक्रमीय (स्पेक्ट्रल) बैंड सेंसिंग सेंटर (NRSC) आँकड़ों के अधिग्रहण एवं प्रक्रमण (समूह) को एकत्रित करते हैं तथा विविध उपयोगों हेतु की सुविधा उपलब्ध कराती है। प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन भू-स्टेशनों पर संप्रेषित करते हैं। हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट के लिए ये बहुत ही उपयोगी होते हैं।

अभ्यास

1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए।

(i) भारतीय रेल प्रणाली को कितने मंडलों में विभाजित किया गया है?

(क) 9
(ख) 12
(ग) 16
(घ) 14

(ii) राष्ट्रीय जल मार्ग संख्या-1 किस नदी पर तथा किन दो स्थानों के बीच पड़ता है?

(क) ब्रह्लपुत्र - सादिया - धुबरी
(ख) गंगा - हल्दिया - इलाहाबाद
(ग) पश्चिमी तट नहर - कोट्टापुरम से कोल्लाम

(iii) निम्नलिखित में से किस वर्ष में पहला रेडियो कार्यक्रम प्रसारित हुआ था?

(क) 1911
(ख) 1936
(ग) 1927
(घ) 1923

2. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।

(i) परिवहन किन क्रियाकलापों को अभिव्यक्त करता है? परिवहन के तीन प्रमुख प्रकारों के नाम बताएँ।
(ii) पाइपलाइन परिवहन से लाभ एवं हानि की विवेचना करें।
(iii) ‘संचार’ से आपका क्या तात्पर्य है?

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।

(i) भारत में परिवहन के प्रमुख साधन कौन-कौन से हैं? इनके विकास को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें।
(ii) पाइप लाइन परिवहन से लाभ एवं हानि की विवेचना करें।
(iii) भारत के आर्थिक विकास में सड़कों की भूमिका का वर्णन करें।

परियोजना

उन सुविधाओं को ज्ञात करें जो भारतीय रेल यात्रियों को प्रदान करती हैं।



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