अध्याय 11 उपभोक्ता संरक्षण

अधिगम उद्देश्य

इस अध्याय को पढने के पश्चात् आप-

उपभोक्ता संरक्षण के महत्व को बता सकेंगे;

भारत में उपभोक्ता संरक्षण की कानूनी रूपरेखा का वर्णन कर सकेंगे;

भारत में उपभोक्ता अधिकारों का वर्णन कर सकेंगे;

उपभोक्ता दायत्विों को सूचीबद्ध कर सकेंगे;

उपभोक्ता संरक्षण के तरीकों और साधनों की व्याख्या कर सकेंगे।

उपभोक्ता हितों के संरक्षण में उपभोक्ता संगठनों तथा गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका का वर्णन कर सकेंगे।

एटीएम में लेन-देन की विफलता और उसमें नकदी न होने के लिए बैंक उत्तरदायी

एक ऐतिहासिक उपभोक्ता मंच के फैसले में अब अगर आपको एटीएम से पैसे नहीं मिलते हैं, तो इसे बैंक की ओर से सेवाओं की कमी माना जाएगा। रायपुर में 4 मई, 2017 को उपभोक्ता मंच में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें शिकायतकर्ता ने बैंक के एटीएमों में नकदी की अनुपलब्धता के कारण तीन विफल एटीएम लेन-देन की तस्वीरें और वीडियो रिकॉर्डिंग पेश की।

मंच के सामने बैंक ने तर्क दिया कि एटीएम इंटरेट कनेक्टिविटी के साथ चलता है, इसलिए जिस समय उपयोगकर्ता एटीएम का उपयोग करते हैं, वे प्रत्यक्ष रूप से बैंक के ग्राहक नहीं होते हैं। इसलिए, यदि उक्त धनराशि एटीएम से नहीं निकाली जा सकती है, तो इसे सेवा में कमी नहीं कहा जा सकता है।

मंच ने बैंक के तर्क को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया। याचिकाकर्ता ने पैसे निकलते समय के फ़ोटो और वीडियो रिकॉर्डिंग को मंच के सामने साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। मंच ने स्वीकार किया कि उपभोक्ता कई बार एटीएम से पैसे निकालने जाते हैं, हर बार ‘नकदी उपलब्ध नहीं’ का संदेश, सेवा में कमी है।

मंच ने याचिका स्वीकार कर ली। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, मंच ने आदेश दिया कि यदि बैंक ग्राहक को एटीएम सेवा उपलब्ध नहीं कराएगा, तो इसे सेवा में कमी माना जाएगा। उपभोक्ता मंच ने बैंक पर 2,500 रुपए का जुर्माना लगाया, जिसमें मानसिक उत्पीड़न के लिए हर्जाने के रूप में 1,500 रुपए और बैंक सेवाओं में कमी के रूप में अपने एटीएम में नकदी की अनुपलब्धता के लिए कानूनी खर्च के लिए 1000 रुपए शामिल थे।

स्रोत — http://dailypost.in/news/consumerforum-fines-sbi-ignoring-customers/, 2017

क्या आपने कभी सोचा है कि यदि उपभोक्ताओं को पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराई जाती है, तो उनकी क्या दुर्दशा होगी?

प्रस्तावना

हम में से हर एक किसी न किसी रूप में एक उपभोक्ता है। बाजार में हमारे लिए उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं के बारे में जागरूक और विवेकपूर्ण उपभोक्ता होना हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। उपरोक्त मामला उन कई समस्याओं के उदाहरणों में से एक है, जिनका उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की खरीद, उपयोग और उपभोग में सामना करते हैं। लेकिन, बहुत कम उपभोक्ताओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 द्वारा उन्हें दिए गए उनके अधिकारों के बारे में जानकारी है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 ने अधिनियम 1986 का स्थान लिया है और उपभोक्ता की चिंताओं को दूर करने में इसके दायरे को व्यापक करने का प्रयास किया है।

बढ़ती प्रतिस्पर्धा के साथ और अपनी बिक्री और बाजार में हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रयास में निर्माताओं, विक्रेताओं और सेवा-प्रदाताओं को दोषपूर्ण और असुरक्षित उत्पादों, मिलावट, झुठे और भ्रामक विज्ञापन देने, जमाखोरी, काला-बाज़ारी, आदि जैसे अनैतिक, शोषणकारी और अनुचित व्यापार पद्धतियों में शामिल पाया जा सकता है। इसका अर्थ है कि असुरक्षित उत्पादों के कारण एक उपभोक्ता को जोखिम का सामना करना पड़ सकता है, मिलावटी खाद्य उत्पादों के कारण स्वास्थ्य खराब हो सकता है, भ्रामक विज्ञापनों या नकली उत्पादों की बिक्री के कारण धोखा हो सकता है, अधिक मूल्य भुगतान करना पड़ सकता है, यदि विक्रेता अधिक मूल्य, जमाखोरी या कालाबाज़ारी आदि में लगे हों। परिणामस्वरूप, उपभोक्ता असुरक्षित हो जाता है, ठगा सा महसूस करता है और कई जोखिमों और स्वास्थ्य समस्याओं में फँस जाता है।

उपभोक्ता को मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था में राजा कहा जाता है। इसलिए, उपभोक्ता संरक्षण का उपभोक्ता और व्यवसाय दोनों के लिए समान महत्व है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के अंतर्गत, भारत सरकार ने उपभोक्ता के हितों की सुरक्षा के लिए कानूनी संरक्षण प्रदान किया है। क्या व्यवसाय उपभोक्ताओं के हितों की अनदेखी कर सकता है? बाजार की ताकतों ने एक विक्रेता बाजार, अर्थात् कैविट एम्पटर के पहले के दृष्टिकोण जिसका अर्थ है कि क्रेता स्वयं चौकन्ना रहे, को उपभोक्ता बाज़ार अर्थात्, कैविट वेंडिटर जिसका अर्थ है विक्रेता को सावधान रहना चाहिए से बदल दिया गया है।

उपभोक्ता संरक्षण का महत्व

उपभोक्ता संरक्षण की संकल्पना उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है। यह उपभोक्ताओं को व्यवसायों के अनैतिक अनाचारों से बचाने के उपायों को अपनाता है और निम्नलिखित के संबंध में उनकी शिकायतों का त्वरित निवारण करता है-

1. मिलावटी सामानों की बिक्री, जैसे कि बेचे जा रहे उत्पाद में घटिया पदार्थ मिलाना।

2. नकली वस्तुओं की बिक्री, जैसे वास्तविक उत्पाद से कम मूल्य का उत्पाद बेचना।

3. घटिया वस्तुओं की बिक्री, जैसे कि उन उत्पादों की बिक्री जो निर्धारित गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करते हैं।

4. असली जैसे दिखने वाले नकली माल की बिक्री।

5. तोल और माप में हेर-फेर करना, जिससे उत्पादों का भार कम हो जाता है।

6. कालाबाजाारी और जमाखोरी, जिससे अंततः उत्पाद की कमी हो जाती है और साथ ही उसकी कीमत में वृद्धि हो जाती है।

7. किसी उत्पाद का अधिक मूल्य लेना अर्थातु, किसी उत्पाद के अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक पैसे वसूल करना।

8. दोषपूर्ण माल की आपूर्ति।

9. ऐसे विज्ञापन, जो भ्रामक होते हैं, अर्थात् जो किसी उत्पाद या सेवा का झूठा दावा करते हैं, जिसे वास्तव में बेहतर गुणवत्ता नहीं होने पर भी, उत्कृष्ट ग्रेड या मानक वाला दिखाया जाता है।

10. घटिया सेवाएँ देना, अर्थात सेवा की गुणवत्ता से तय शर्त से कम।

इसलिए हमें अपने आप को एक विवेकपूर्ण उपभोक्ता के रूप में जागना होगा और विभिन्न प्रकार के शोषण से बचना होगा और इसके बारे में शिकायत करनी होगी। उपभोक्ता संरक्षण का व्यापक दायरा है। इसमें न केवल उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों और उत्तरदायित्वों के बारे में शिक्षित करना शामिल है, बल्कि इससे उनकी शिकायतों के निवारण में भी मदद मिलती है। इसके लिए न केवल उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए एक न्यायिक मशीनरी की आवश्यकता होती है, बल्कि उपभोक्ताओं को एकजुट होकर अपने हितों के संरक्षण और संवर्धन के लिए स्वयं को उपभोक्ता संघों में शामिल करना पड़ता है। इसके साथ ही उपभोक्ता संर्षण का व्यापार में विशिष्ट महत्व है।

उपभोक्ता संरक्षण की आवश्यकता

उपभोक्ता संरक्षण की आवश्यकता उपभोक्ताओं को नुकसान या चोट या अन्य प्रचलित दुर्भावनाओं से बचाने और निम्नलिखित को सुनिश्चित करने की आवश्यकता से उत्पन्न होती है-

  1. किसी उपभोक्ता की शारीरिक सुरक्षा
  2. सम्पूर्ण जानकारी की उपलब्धता
  3. उचित मूल्यों पर वस्तुओं की गुणवत्ता और मात्रा उपलब्ध कराने के लिए निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व
  4. उपभोक्ता संतुष्टि
  5. सामाजिक न्याय और न्यासिता (ट्रस्टीशिप)
  6. व्यवसायों का टिका रहना और वृद्धि।

उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से

उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से उपभोक्ता संरक्षण के महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है-

(i) उपभोक्ता की अनभिज्ता- उपभोक्ताओं में उनके अधिकारों और उनके लिए उपलब्ध राहत के बारे में व्यापक अज्ञानता है, इस दृष्टि से उपभोक्ता जागरूकता पाने के लिए उन्हें शिक्षित करना आवश्यक है।

(ii) असंगठित उपभोक्ता— उपभोक्ताओं को उपभोक्ता संगठनों के रूप में संगठित होने की आवश्यकता है जो उनके हितों का ध्यान रखेंगे। हालांकि भारत में हमरोरे पास उपभोक्ता संगठन हैं जो इस दिशा में काम कर रहे हैं, फिर भी उपभोक्ताओं को पर्याप्त सुरक्षा देने की आवश्यकता है, जब तक कि ये संगठन उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली नहीं बन जाते।

(iii) उपभोक्ताओं का व्यापक शोषण- दोषपूर्ण और असुरक्षित उत्पादों, मिलावट, झूठे और भ्रामक विज्ञापन, जमाखोरी, कालाबाजारी, आदि जैसी अनैतिक, शोषणकारी और अनुचित व्यापार पद्धतियों के द्वारा उपभोक्ताओं का शोषण किया जा सकता है। उपभोक्ताओं को विक्रेताओं के इस तरह के दुराचारों के खिलाफ संरक्षण की आवश्यकता होती है।

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व्यवसाय के दृष्टिकोण से

सभी प्रकार के व्यापारों में उपभोक्ताओं के संरक्षण एवं संतुष्टि पर बल दिया जाता है। संरक्षण के महत्त्व को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है-

(i) व्यवसाय का दीर्घ-कालिक लाभ- जानकार व्यवसायी समझते हैं कि अपने ग्राहकों को संतुष्ट करना उनके दीर्घकालिक हित में है। संतुष्ट ग्राहक न केवल बार-बार बिक्री करवाते हैं, बल्कि भावी ग्राहकों को अच्छा फ़ीडबैक भी देते हैं और इस प्रकार व्यवसाय के ग्राहक-आधार को बढ़ाने में मदद करते हैं। इस प्रकार व्यासायिक फर्मों को ग्राहक संतुष्टि के माध्यम से दीर्घकालिक लाभ को अधिकतम करने का लक्ष्य रखना चाहिए। (ii) व्यवसाय समाज के संसाधनों का उपयोग करता है— व्यावसायिक संगठन उन संसाधनों का उपयोग करते हैं, जो समाज के हैं। इस प्रकार, उनके पास ऐसे उत्पादों की आपूर्ति करने और ऐसी सेवाएँ देने का उत्तरदायित्व है, जो सार्वजनिक हित में हैं और उन पर जनता के विश्वास को कम नहीं होने देंगे।

(iii) सामाजिक उत्तरदायित्व- एक व्यवसाय के विभिन्न हितकारी समूहों के प्रति सामाजिक उत्तरदायित्व होते हैं। व्यावसायिक संगठन उपभोक्ताओं को माल बेचकर और सेवाएँ उपलब्ध कराकर पैसा कमाते हैं। इस प्रकार उपभोक्ता व्यवसाय के कई हितधारकों के बीच एक महत्त्वपूर्ण समूह बनाते हैं और अन्य हितधारकों की तरह, उनकी रुचि का अच्छी तरह से ध्यान रखना पड़ता है।

(iv) नैतिक औचित्य- किसी भी व्यवसाय का नैतिक कर्तव्य है कि वह उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखे और उनके शोषण के किसी भी रूप से बचे। इस प्रकार एक व्यवसाय को दोषपूर्ण और असुरक्षित उत्पादों, मिलावट, झूठे और भ्रामक विज्ञापनों, जमाखोरी, काला-बाजारी आदि जैसे अनैतिक, शोषणकारी और अनुचित व्यापारिक पद्धतियों से बचना चाहिए।

(v) सरकारी हस्तक्षेप— किसी भी रूप में शोषक व्यापार पद्धतियों में लिप्त व्यवसाय सरकारी हस्तक्षेप या कार्रवाई को आमंत्रित करेगा। इससे कंपनी की छवि क्षीण और धूमिल हो सकती है। इसलिए, बुद्धिमानी इसी में है कि व्यावसायिक संगठन स्वेच्छा से ऐसी पद्धतियों को अपनाएँ, जहाँ ग्राहकों की आवश्यकताओं और हितों का भली-भाँति ध्यान रखा जाता है। उपरोक्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार ने विभ्निन्न नियमों की रचना कर उन्हें अधिनियमित किया है, जिससे कि उपभोक्ताओं को समुचित संरक्षण दिया जा सके। यहाँ हम कुछ नियमों पर चर्चा करेंगे।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 उपभोक्ताओं की शिकायतों का त्वरित और सरल तरीके से निवारण करके उनके हितों की रक्षा करने और बढ़ावा देने का प्रयास करता है। यह पूरे भारत में मान्य है। यह सभी प्रकार के व्यवसायों पर लागू होता है, चाहे वह एक निर्माता या व्यापारी हो और चाहे ई-कॉमर्स फर्मों सहित माल की आपूर्ति करने वाला या सेवाएँ देनेवाला हो। यह अधिनियम उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने और उनके हितों की रक्षा करने की दृष्टि से उन्हें कुछ अधिकार प्रदान करता है।

उपभोक्ता कौन है?

एक ‘उपभोक्ता’ को आमतौर पर किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में समझा जाता है, जो सामान का उपयोग या उपभोग करता है या किसी सेवा को काम में लेता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अंतर्गत, एक उपभोक्ता वह व्यक्ति होता है, जो किसी सामान को खरीदता है या सेवाएँ प्राप्त करता है, जिसका भुगतान किया गया है या भुगतान करने का वादा किया गया है, या आंशिक रूप से भुगतान किया गया है या आंशिक रूप से भुगतान करने का वादा किया गया है या किसी योजना के अंतर्गत भुगतान को टाल दिया गया है। इसमें इस तरह के सामान या सेवाओं के लाभार्थी का कोई भी उपयोगकर्ता शामिल है, यदि ऐसा उपयोग खरीदार की स्वीकृति के साथ किया जाता है। यह इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से या टेलीशॉपिंग या सीधी बिक्री या मल्टीलेवल मार्केटिंग के माध्यम से ऑफ़लाइन और ऑनलाइन लेन-देन, दोनों पर लागू होता है। परंतु, कोई भी व्यक्ति जो पुनर्विक्रय या वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए सामान या सेवाएँ प्राप्त करता है, उसे उपभोक्ता नहीं माना जाता है और वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के दायरे से बाहर होता है।

शब्द और परिभाषाएँ

  1. शिकायत— प्रतिबंधित व्यापार पद्धति, वस्तुओं में दोष या उपलब्ध कराई गई सेवाओं में कमी, अधिक दाम लेना या जीवन और सुरक्षा के लिए हानिकारक वस्तु या सेवा देने के संदर्भ में राहत प्राप्त करने के लिए शिकायतकर्ता द्वारा लिखित में लगाया गया कोई आरोप।
  2. शिकायतकर्ता— एक या अधिक उपभोक्ता या किसी स्वैच्छिक उपभोक्ता संघ, केंद्र या राज्य सरकार या केंद्रीय प्राधिकरण या कानूनी उत्तराधिकारी या कानूनी प्रतिनिधि या नाबालिग के मामले में माता-पिता या कानूनी प्रतिनिधि।
  3. नकली समान— जिन सामानों पर असली होने का झूठा दावा किया जाता है।
  4. अनुचित व्यापार पद्धति— किसी भी सामान या सेवा की बिक्री, उपयोग या आपूर्ति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक व्यापार पद्धति, जो उसकी गुणवत्ता, मानक, मात्रा, संरचना, शैली या मॉडल को गलत रूप से दर्शाती है।
  5. प्रतिबंधित व्यापार पद्धति— एक व्यापार पद्धति, जो वस्तुओं और सेवाओं से संबंधित दाम में इस प्रकार चालबाजी करती है या बाजार में आपूर्ति के प्रवाह को प्रभावित करती है कि उपभोक्ता से एक अनुचित कीमत वसूल की जाती है।
  6. दोष— वस्तु या उत्पाद के संबंध में गुणवत्ता, प्रकृति और कार्य करने के तरीके में कोई त्रुटि, अपूर्णता, कमी या अपर्याप्तता।
  7. कमी— किसी भी सेवा के संबंध में गुणवत्ता, प्रकृति और प्रदर्शन के तरीके में कोई दोष, अपूर्णता, कमी या अपर्याप्तता और इसमें लापरवाही या चूक या कमीशन या संबंधित जानकारी को रोकना शामिल है, जो उपभोक्ता को हानि या चोट पहुँचाता है।
  8. चोट- शरीर, मन या संपत्ति में किसी व्यक्ति को अवैध रूप से पहुँचाई गई कोई हानि।
  9. उत्पाद— किसी वस्तु या सामान या पदार्थ या कच्चे माल या ऐसे उत्पाद का कोई विस्तारित चक्र जो या तो गैसीय, तरल या ठोस अवस्था में हो, जिसका वितरण में सक्षम आंतरिक मूल्य हो, इसे व्यापार के लिए या तो जोड़कर-निर्मित या संघटक के रूप में उत्पादित किया गया हो। इसमें मानव ऊतक, रक्त, रक्त उत्पाद और अंग शामिल नहीं हैं।
  10. उत्पाद विक्रेता— कोई भी व्यक्ति जो व्यवसाय की प्रक्रिया में आयात करता है, बिक्री करता है, वितरण करता है, पट्टे पर देता है, स्थापित करता है, बनाता है, लेबल लगाता है, विपणन करता है, मरम्मत करता है, रख-रखाव करता है या अन्यथा उत्पाद को वाणिज्यिक उपयोग के लिए रखने में शामिल होता है या सेवा प्रदाता।
  11. उत्पाद दायित्व- किसी भी उत्पाद निर्माता या किसी उत्पाद या सेवा के विक्रेता की किसी उपभोक्ता को निर्मित या बेचे गए दोषपूर्ण उत्पाद या सेवाओं में कमी के कारण होने वाली किसी भी क्षति के लिए भरपाई करने की जिम्मेदारी होती है।

उपभोक्ता अधिकार

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 उपभोक्ताओं के छह अधिकारों का प्रावधान करता है। इन अधिकारों में निम्नलिखित शामिल हैं -

1. सुरक्षा का अधिकार- उपभोक्ता को उन वस्तुओं और सेवाओं के प्रति सुरक्षित होने का अधिकार है जो जीवन, स्वास्थ्य और संपत्ति के लिए खतरनाक हैं, उदाहरण के लिए- बिजली के उपकरण जो घटिया उत्पादों के साथ निर्मित होते हैं या सुरक्षा मानदंडों के अनुरूप नहीं होते हैं, उनसे गंभीर चोट लग सकती है। इस प्रकार उपभोक्ताओं को शिक्षित किया जाता है कि वे उन बिजली के उपकरणों का उपयोग करें जो आईएसआई चिह्लित हैं, क्योंकि यह ऐसे उत्पादों की गुणवत्ता के विशेष विवरणों को पूरा करने का आश्वासन होगा।

2. सूचित किए जाने का अधिकार- उपभोक्ता को उस उत्पाद के बारे में पूरी जानकारी पाने का अधिकार है, जिसे वह खरीदने का इरादा रखता है। इसमें उत्पाद के संघटक, निर्माण की तिथि, मूल्य, मात्रा, उपयोग के लिए निर्देश आदि शामिल होते हैं। यह इस कारण से है कि कानूनी ढाँचे में भारत में निर्माताओं को उत्पाद के पैकेज और लेबल पर ऐसी जानकारी आवश्यक रूप से देनी पड़ती है।

3. आश्वस्त होने का अधिकार- उपभोक्ता को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर विभिन्न प्रकार के उत्पाद पाने की स्वतंत्रता है। इसका तात्पर्य यह है कि विक्रेताओं को गुणवत्ता, ब्रांड, कीमतों, साइजज आदि के संदर्भ में कई तरह के उत्पाद प्रस्तुत करने चाहिए और उपभोक्ता को इनमें से चुनाव करने का विकल्प देना चाहिए।

4. सुनवाई का अधिकार- उपभोक्ता को किसी वस्तु या सेवा से असंतोष के मामले में शिकायत दर्ज करने और सुनवाई का अधिकार है। इस कारण से कई प्रबुद्ध व्यावसायिक फर्मों ने अपने उपभोक्ता सेवा और शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित किए हैं। कई उपभोक्ता संगठन भी इस दिशा में काम कर रहे हैं और उपभोक्ताओं को उनकी शिकायतों के निवारण में मदद कर रहे हैं।

5. निवारण पाने का अधिकार- उपभोक्ता को यह अधिकार है कि यदि उत्पाद या सेवा में उसकी अपेक्षाओं की तुलना में कमी रहती है, तो उसे अनुचित व्यापार पद्धति की प्रतिबंधी व्यापार पद्धतियों या अनैतिक शोषण के खिलाफ राहत पाने का अधिकार है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 में उत्पाद को बदलने, उत्पाद में दोष को दूर कराने, उपभोक्ता को किसी भी हानि या चोट के लिए क्षतिपूर्ति के भुगतान, आदि सहित उपभोक्ताओं को निवारण उपलब्ध कराने का प्रावधान है।

6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार- उपभोक्ता को ज्ञान प्राप्त करने और जीवन भर एक अच्छा जानकार उपभोक्ता होने का अधिकार है। उसे किसी उत्पाद या सेवा के उसकी अपेक्षा से कम होने की स्थिति में अपने अधिकारों और उपलब्ध राहतों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। कई उपभोक्ता संगठन और कुछ ज्ञान सम्पन्न व्यवसाय इस संबंध में उपभोक्ताओं को शिक्षित करने में सक्रिय भाग ले रहे हैं।

उपभोक्ता के उत्तरदायित्व

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ता को विक्रेताओं द्वारा अपनाई गई किसी भी अनैतिक, शोषक और अनुचित, प्रतिबंधित व्यापार पद्धतियों के विरुद्ध लड़ने का अधिकार देता है। उपभोक्ता अधिकार अपने आप उपभोक्ता संरक्षण के उद्देश्य को प्राप्त करने में प्रभावी नहीं हो सकते। उपभोक्ता संरक्षण वास्तव में तभी प्राप्त किया जा सकता है जब उपभोक्ता भी अपने उत्तरदायित्वों को समझते हैं।

एक उपभोक्ता को वस्तुओं और सेवाओं की खरीद, उपयोग और उपभोग करते समय निम्नलिखित उत्तरदायित्वों को ध्यान में रखना चाहिए -

(i) बाज़ार में उपलब्ध विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के बारे में जागरूक रहें, ताकि एक बुद्धिसंगत और विवेकी विकल्प अपनाया जा सके।

(ii) केवल मानकीकृत सामान खरीदें, क्योंकि वे गुणवत्ता का आश्वासन देते हैं। इस प्रकार बिजली के सामानों पर आईएसआई मार्क, खाद्य उत्पादों पर एफपीओ मार्क, गहनों पर हॉलमार्क आदि को देखें। (iii) उत्पादों और सेवाओं से जुड़े जोखिमों के बारे में जानें, निर्माता के निर्देशों का पालन करें और उत्पादों का सुरक्षित उपयोग करें।

(iv) लेबल को ध्यान से पढ़ें, ताकि कीमतों, कुल भार, बनने और उपयोग-समाप्ति की तारीखों आदि के बारे में जानकारी हो सके।

(v) यह सुनिश्चित करने पर बल दें कि आपका सौदा संतोषजनक रहे।

(vi) अपने लेन-देन में ईमानदार रहें। केवल वैध वस्तुओं और सेवाओं को चुनें और कालाबाज़ारी, जमाखोरी आदि जैसी अनैतिक पद्धतियों को हतोत्साहित करें।

(vii) वस्तुओं या सेवाओं की खरीद पर नकद मेमो देने के लिए कहें। यह खरीद के प्रमाण के रूप में कार्य करेगा।

(viii) खरीदे गए सामान या सेवाओं की गुणवत्ता में कमी के मामले में एक उपयुक्त उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज कराएँ। इसकी राशि के कम होने पर भी कार्रवाई करें।

(ix) उपभोक्ता समितियाँ बनाएँ जो उपभोक्ताओं को शिक्षित करने और उनके हितों की सुरक्षा में एक सक्रिय भूमिका निभाएँगी।

(x) पर्यावरण का सम्मान करें। अपशिष्ट, कूड़ा-कचरा फैलाने और प्रदूषण को बढ़ाने से बचें।

उपभोक्ता संरक्षण के तरीके और साधन

अपने अधिकारों और उत्तरदायित्वों के बारे में उपभोक्ताओं की जागरूकता सिर्फ एक तरीका है, जिससे उपभोक्ता संरक्षण के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे अन्य तरीके हैं, जिनसे यह उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं-

1. व्यवसाय द्वारा स्व-नियमन- सामाजिक रूप से उत्तरदायी फर्म अपने ग्राहकों के साथ लेन-देन करने में नैतिक मानक और पद्धतियों का पालन करती हैं। अच्छी और नैतिक पद्धतियाँ फर्मों को यह अनुभव करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं कि ग्राहकों को सही तरीके से सेवा देना उनके दीर्घकालिक हित में है। कई फर्मों ने अपने उपभोक्ताओं की समस्याओं और शिकायतों के निवारण के लिए अपने ग्राहक सेवा और शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित किए हैं।

2. व्यापार संघ- फेडेशेन ऑफ़ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स (FICCI) और भारतीय उद्योग परिसंघ (CII), जैसे- व्यापार, वाणिज्य और व्यवसाय संघों ने अपनी आचार संहिता को निर्धारित किया है, जो ग्राहकों के साथ उनके लेन-देन में उनके सदस्यों के लिए मार्गदर्शन निर्धारित करता है।

3. उपभोक्ता जागरुकता- एक उपभोक्ता, जिसे अपने अधिकारों और उसके लिए उपलब्ध राहतों के बारे में अच्छी तरह से जानकारी है, वह किसी भी अनुचित व्यापार पद्धतियों या अनैतिक शोषण के खिलाफ़ अपनी आवाज़ उठाने की स्थिति में होगा। इसके अलावा, उपभोक्ता के उत्तरदायित्वों की अपनी समझ भी उसे अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम बनाएगी। इस संबंध में उपभोक्ता मामलों का विभाग (भारत सरकार), उपभोक्ताओं में जागरूकता पैदा करने के लिए ‘जागो ग्राहक जागो’ अभियान चला रहा है।

4. उपभोक्ता संगठन— उपभोक्ता संगठन उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये संगठन व्यावसायिक फर्मों को अनुचित पद्धतियाँ न अपनाने और उपभोक्ताओं का शोषण न करने के लिए विवश कर सकते हैं।

5. सरकार- सरकार विभिन्न उपायों के लिए अधिनियम बनाकर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा कर सकती है, उदाहरण के लिए भारत सरकार ने इस उद्देश्य के लिए एक टोल-फ्री राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन नंबर 1800114000 दिया है। भारत में कानूनी ढाँचा उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने वाले विभिन्न कानूनों को शामिल करता है। इन विनियमों में सबसे महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 है। अधिनियम उपभोक्ताओं के अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार पद्धतियों और झूठे या भ्रामक विज्ञापनों, जो उपभोक्ताओं के हितों के प्रतिकूल होते हैं, से संबंधित मामलों को विनियमित करने के लिए एक केंद्रीय प्राधिकरण प्रदान करता है। इसे केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के रूप में जाना जाता है। उपभोक्ता शिकायतों के निवारण के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर त्रि-स्तरीय मशीनरी है।

उपभोक्ता संरक्षण के अंतर्गत निवारण

अभिकरण अथवा एजेंसियाँउपभोक्ताओं की शिकायतों के निवारण के लिए, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 में जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एक त्रिस्तरीय प्रवर्तन मशीनरी स्थापित करने का प्रावधान है, जिसे जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग कहा जाता है। उन्हें संक्षेप में क्रमशः ‘जिला आयोग’, ‘राज्य आयोग’ और ‘राष्ट्रीय आयोग’ के रूप में जाना जाता है। जबकि राष्ट्रीय आयोग की स्थापना केंद्र सरकार द्वारा की जाती है, राज्य आयोगों और जिला आयोगों की स्थापना राज्य सरकार द्वारा की जाती है।

आइए, अब देखते हैं कि त्रि-स्तरीय मशीनरी द्वारा उपभोक्ताओं शिकायतों का निवारण कैसे किया जाता है-

1. जिला आयोग- जिला आयोग के पास उन शिकायतों पर विचार करने का क्षेत्राधिकार है, जहाँ विचाराधीन वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य को एक करोड़ रुपए से अधिक नहीं माना जाता है। पहली सुनवाई पर या बाद में, यदि जिला आयोग को लगता है कि समझौता हो सकता है, जो दोनों पक्षों को स्वीकार हो, तो वह उन्हें पाँच दिनों के भीतर मध्यस्थता के माध्यम से विवाद के निपटारे के लिए अपनी-अपनी सहमति देने का निर्देश दे सकता है। यदि पक्ष मध्यस्थता से निपटोरे के लिए सहमत होते हैं और लिखित सहमति देते हैं, तो जिला आयोग मध्यस्थता के लिए मामले को संदर्भित करता है और मध्यस्थता से संबंधित प्रावधान लागू होंगे। परंतु, मध्यस्थता द्वारा निपटारे की विफलता की स्थिति में मामला शिकायत के साथ आगे बढ़ता है। यदि शिकायत, माल में दोष का आरोप लगाती है, जिसे माल के उचित विश्लेषण या परीक्षण के बिना निर्धारित नहीं किया जा सकता है, तो आयोग माल का नमूना प्राप्त करता है, इसे सील करता है और विश्लेषण के लिए उपयुक्त प्राधिकारी को भेज देता है। सेवाओं के मामले में शिकायतकर्ता द्वारा उनके नोटिस में लाए गए सबूतों के आधार पर विवाद का निपटारा किया जाता है और निपटारे के लिए सेवा प्रदाता से किसी भी आवश्यक जानकारी के दस्तावेज या रिकॉर्ड माँगे जा सकते हैं।

यदि जिला आयोग के आदेश से कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं है तो वह आदेश की तारीख से पैंतालीस दिनों के भीतर तथ्यों या कानून के आधार पर राज्य आयोग को ऐसे आदेश के खिलाफ अपील कर सकता है।

2. राज्य आयोग— यह संबंधित राज्य सरकार द्वारा स्थापित किया गया है और सामान्यत: राज्य की राजधानी में कार्य करता है। राज्य आयोग के पास उन शिकायतों पर विचार करने का क्षेत्राधिकार है, जहाँ विचाराधीन वस्तुओं और दी गई सेवाओं का मूल्य एक करोड़ से अधिक है, लेकिन दस करोड़ रुपए से अधिक नहीं है। यदि राज्य आयोग के आदेश से कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं है तो वह ऐसे आदेश के तीस दिनों की अवधि के भीतर राष्ट्रीय आयोग को इस तरह के आदेश के खिलाफ अपील कर सकता है।

3. राष्ट्रीय आयोग- राष्ट्रीय आयोग का पूरे देश पर क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार है। राष्ट्रीय आयोग के पास उन शिकायतों पर विचार करने का क्षेत्राधिकार है, जहाँ विचार के रूप में भुगतान की गई वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य दस करोड़ रुपए से अधिक है। यदि राष्ट्रीय आयोग के आदेश से कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं है, तो वह ऐसे आदेश के तीस दिनों की अवधि के भीतर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में इस तरह के आदेश के खिलाफ अपील कर सकता है।

उपलब्ध राहत

यदि जिला या राज्य या राष्ट्रीय आयोग माल में दोष या किसी अनुचित व्यापार पद्धति में सेवाओं में कमी या उत्पाद दायित्व के अंतर्गत क्षतिपूर्ति के लिए दावा करने से संतुष्ट हो, तो निम्नलिखित आदेश जारी करता है-

(i) माल में दोष या सेवा में कमी को दूर करने के लिए।

(ii) दोषपूर्ण उत्पाद के स्थान पर नया दोष-मुक्त उत्पाद देने के लिए।

(iii) उत्पाद के लिए भुगतान की गई कीमत या सेवा के लिए दिए गए शुल्क को वापस करने के लिए।

(iv) विरोधी पक्ष की लापरवाही के कारण उपभोक्ता को हुए किसी भी नुकसान या चोट के लिए उचित मात्रा में क्षतिपूर्ति-राशि का भुगतान करने के लिए।

(v) उपयुक्त परिस्थितियों में दंडात्मक हर्जाना देने के लिए।

(vi) अनुचित अथवा प्रतिबंधित व्यापार पद्धति को बंद करने और भविष्य में इसे न दोहराने के लिए।

(vii) बिक्री के लिए खतरनाक वस्तुओं को नहीं देने के लिए।

उपभोक्ता मध्यस्थता प्रकोष्ठ स्थापित करना

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019, का अध्याय V तीन स्तरों- राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर विवादों के निपटारे के लिए मध्यस्थता प्रक्रिया प्रदान करता है, जहाँ तीनों को संबंधित आयोगों के साथ संलग्न किया जाता है। अधिनियम 2019 में एक वैकल्पिक कार्यविधि के रूप में संबंधित आयोगों द्वारा विवादों के तेजी से निपटारे को सुनिश्चित करने के लिए एक नया प्रावधान है।

(viii) बिक्री से खतरनाक वस्तुओं को वापस लेने के लिए।

(ix) खतरनाक वस्तुओं के निर्माण को रोकने और खतरनाक सेवाएँ देने से रोकने के लिए।

(x) उत्पाद दायित्व कार्रवाई के अंतर्गत उपभोक्ता को होने वाली किसी भी हानि या चोट के लिए क्षतिपूर्ति करने और खतरनाक उत्पादों को बिक्री आदि किए जाने से रोकने के लिए।

यदि विवाद में शामिल किसी भी पक्ष द्वारा इस तरह के आदेश के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जाती है। जिला आयोग, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के प्रत्येक आदेश को अंतिम माना जाता है।

उपभोक्ता संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों की भमिका

भारत में उपभोक्ता हितों के संरक्षण और संवर्धन के लिए कई उपभोक्ता संगठन और गैर-सरकारी संगठन स्थापित किए गए हैं। गैर-सरकारी संगठन गैर-लाभकारी संगठन हैं, जिनका उद्देश्य लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना है। उनका अपना संविधान होता है और वे सरकार के हस्तक्षेप से मुक्त होते हैं। उपभोक्ता संगठन और गैर-सरकारी संगठन उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण और संवर्धन के लिए कई कार्य करते हैं। इनमें शामिल हैं -

(i) प्रशिक्षण कार्यक्रमों, संगोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन करके उपभोक्ता अधिकारों के बारे में आम जनता को शिक्षित करना|

(ii) उपभोक्ता समस्याओं, कानूनी रिपोर्टिंग, उपलब्ध राहत और हित के अन्य मामलों के बारे में ज्ञान देने के लिए आवधिक-पत्रिकाओं और अन्य प्रकाशनों का प्रकाशन करना।

(iii) प्रतिस्पर्धी ब्रांडों के सापेक्ष गुणों का परीक्षण करने के लिए अधिकृत प्रयोगशालाओं में उपभोक्ता उत्पादों के तुलनत्मक परीक्षण करवाना और उपभोक्ताओं के लाभ के लिए परीक्षण परिणामों को प्रकाशित करना।

(iv) उपभोक्ता को विक्रेताओं के अनैतिक, शोषणकारी और अनुचित व्यापार पद्धतियों का दृढ़ता से विरोध करने और इनके विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करना।

(v) कानूनी उपाय प्राप्त करने के लिए सहायता, कानूनी सलाह आदि देकर उपभोक्ताओं को कानूनी सहायता उपलब्ध कराना।

(vi) उपभोक्ताओं की ओर से उपयुक्त उपभोक्ता न्यायालयों में शिकायत दर्ज करना।

(vii) उपभोक्ता अदालतों में किसी व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि आम जनता के हित में शिकायत दायर करना।

मुख्य शब्दावली

उपभोक्ता संरक्षण | उपभोक्ता अधिकार | उपभोक्ता उत्तरदायित्व | निवारण कार्यविधि | मध्यस्थता

सारांश

उपभोक्ता संरक्षण का महत्व- उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से, उपभोक्ता संरक्षण महत्वपूर्ण है, क्योंकि उपभोक्ता अज्ञानी, अंगगठित और विक्रेताओं द्वारा शोषित होते हैं। उपभोक्ता संरक्षण व्यवसाय के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि (i) यह व्यवसाय के दीर्घकालिक हित में है, (ii) व्यवसाय समाज के संसाधनों का उपयोग करता है, (iii) यह व्यवसाय की एक सामाजिक ज़िम्मेदारी है, (iv) इसका नैतिक औचित्य है, (v) यह व्यवसाय के कामकाज में सरकारी हस्तक्षेप को दूर रखता है।

उपभोक्ता अधिकार- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986, छह उपभोक्ता अधिकारों का प्रावधान करता है। ये हैं- (i) सुरक्षा का अधिकार, (ii) सूचना का अधिकार, (iii) चुनने का अधिकार, (iv) सुनवाई का अधिकार, (v) निवारण प्राप्त करने का अधिकार और (vi) उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार।

उपभोक्ता उत्तरदायित्व— अपने अधिकारों का उपयोग करने के अलावा, एक उपभोक्ता को सामान और सेवाओं की खरीद, उपयोग और उपभोग करते समय अपने उत्तरदायित्वों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

उपभोक्ता संरक्षण के तरीके और उपाय- ऐसे विभिन्न तरीके हैं, जिनसे उपभोक्ता संरक्षण के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है। इनमें शामिल हैं- (i) व्यवसाय द्वारा स्व-विनियमन, (ii) व्यावसायिक संघ, (iii) उपभोक्ता जागरूकता, (iv) उपभोक्ता संगठन और (v) सरकार।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत निवारण एजेंसियाँ— उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर त्रि-स्तरीय प्रदर्तन मशीनरी स्थापित करने का प्रावधान करता है। इन्हें ‘जिला फोरम’, ‘राज्य आयोग’ और ‘राष्ट्रीय आयोग’ के रूप में जाना जाता है। इस अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ताओं को विभिन्न राहतें उपलब्ध हैं। उपयुक्त उपभोक्ता अदालत माल में दोष को हटाने, एक दोषपूर्ण उत्पाद को बदलने, उत्पाद की कीमत वापस करने, नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति का भुगतान करने आदि के लिए आदेश पारित कर सकती है।

अभ्यास

अति लघु उत्तरी प्रश्न

1. किस उपभोक्ता अधिकार के अंतर्गत एक व्यावसायिक फर्म उपभोक्ता शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित करती है?

2. कृषि उत्पादों के लिए किस गुणवत्ता प्रमाणीकरण चिन्न का उपयोग किया जाता है?

3. उन मामलों का क्षेत्राधिकार क्या है, जो जिला आयोग और राष्ट्रीय आयोग में दायर किए जा सकते हैं?

4. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ताओं को उपलब्ध कोई दो राहतें बताइए।

5. उत्पाद मिश्रण के उस घटक का नाम बताएँ, जो उपभोक्ता को सूचना के अधिकार का प्रयोग करने में मदद करता है।

6. मध्यस्थता से आप क्या समझ सकते हैं?

7. उपभोक्ता किसे कहते हैं?

लघु उत्तरी प्रश्न

1. ‘उपभोक्ता के अधिकारों का महत्त्व अपने उत्तरदायित्वों को समझने में है - व्याख्या करें।।

2. एफएसएसएआई (भारतीय खाध्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण) ने होटलों और अन्य फूड आउटलेट्स के लिए एक प्रस्ताव बनाया है कि वे अपनी व्यंजन-सूची (मेन्यू) में प्रत्येक खाद्य पदार्थ के पकाने में इस्तेमाल होने वाले तेल अथवा वसा का नाम दें। इस प्रस्ताव द्वारा लागू किए जाने वाले उपभोक्ता अधिकार का नाम दें और उसे समझाएँ।

3. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार उपभोक्ता कौन है?

4. शिकायत दर्ज कराने के लिए उत्पाद का क्रेता, उत्पाद का उपभोगकर्ता और शिकायतकर्ता एक ही व्यक्ति होना चाहिए। क्या आप सहमत हैं? तर्क दें।

5. उत्पाद दायित्व क्या है? यह उपभोक्ता निवारण में किस प्रकार सहायक है?

दीर्घ उत्तरी प्रश्न

1. किसी व्यवसाय के दृष्टिकोण से उपभोक्ता संरक्षण के महत्व को समझाएँ।

2. उपभोक्ता के अधिकारों और उत्तरदायित्वों के बारे में बताएँ?

3. उपभोक्ता संरक्षण के उद्देश्य को प्राप्त करने के विभिन्न तरीके क्या हैं?

4. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अंतर्गत उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध निवारण कार्यविधि की व्याख्या करें।

5. उपभोक्ता के हितों की रक्षा और उन्हें बढ़ावा देने में उपभोक्ता संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों की भूमिकाओं की व्याख्या करें।

6. श्रीमती माथुर ने जनवरी 2018 में एक कपड़े धोने की दुकान पर एक जैकेट भेजी। यह जैकेट 4,500 रुपए की खरीदी गई थी। उन्होंने पहले शाइन ड्राई क्लीनर्स के पास जैकेट को ड्राई क्लीनिंग के लिए भेजा था और जैकेट को अच्छी तरह से साफ किया गया था। परंतु, उन्होंने देखा कि जब उन्होंने इस बार जैकेट को दुकान से लिया तो उनकी जैकेट पर रंग उड़ने से सफेद धब्बे पड़े हुए थे। ड्राई क्लीनर को सूचित करने पर, श्रीमती माथुर को एक पत्र मिला, जिसमें पुष्टि की गई थी कि वास्तव में जैकेट को ड्राई क्लीन करने से उसका रंग उड़ा था। उसने कई बार ड्राई क्लीनर से संपर्क किया और जैकेट के लिए क्षतिपूर्ति का अनुरोध किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उपभोक्ता अदालत के हस्तक्षेप के बाद, शाइन ड्राई क्लीनर्स बदरंग जैकेट के लिए श्रीमती माथुर को 2,500 रुपए की भरपाई करने के लिए सहमत हुआ।

(i) पहली बात कि श्रीमती माथुर द्वारा किस अधिकार का प्रयोग किया गया था।

(ii) उस अधिकार का नाम बताएँ और व्याख्या करें, जिसने श्रीमती माथुर को क्षतिपूर्ति प्राप्त करने में मदद की।

(iii) बताएँ कि उपरोक्त मामले में श्रीमती माथुर द्वारा किस उपभोक्ता उत्तरदायित्व को पूरा किया गया है।

(iv) उपभोक्ताओं द्वारा अपनाए जाने वाले अन्य दो उत्तरदायित्व बताएँ।

परियोजना कार्य

1. अपने शहर में एक उपभोक्ता संगठन के पास जाएँ। इसके द्वारा किए गए विभिन्न कार्यों को सूचीबद्ध करें।

2. कुछ उपभोक्ता मामलों और उसमें दिए गए निर्णयों के कुछ समाचार पत्रों की कतरनें एकत्रित करें।



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