अध्याय 10 विपणन

अधिगम उद्देश्य

इस अध्याय के अध्ययन के पश्चात् आप -

विपणन के अर्थ को समझा सकेंगे;

‘विपणन’ एवं ‘विक्रय’ में अंतर कर सकेंगे;

विपणन के महत्त्वपूर्ण कार्यों को सूचीबद्ध कर सकेंगे;

अर्थन्यवस्था के विकास में विपणन की भूमिका पर विचार कर सकेंगे एवं;

विपणन मिश्रण के घटक को समझा सकेंगे;

उत्पादों का विभिन्न वर्गों में वर्गीकरण कर सकेंगे;

मूल्य निर्धारण के तत्व का विश्लेषण कर सकेंगे;

वितरण प्रणाली के विभिन्न प्रकारों की सूची बना सकेंगे;

प्रचार यानी प्रमोशन, जैसे- तकनीकों, विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय, विकास संवर्धन एवं प्रचार को समझा सकेंगे।

कंपनियाँ अपना व्यवसाय कहाँ करती हैं?

बाजार में अथवा समाज में?

यह एक निर्विवाद सत्य है कि कंपनी केवल अपने उपभोक्ताओं के कारण ही जीवित नहीं रहती, बल्कि सरकार, धार्मिक नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, एन.जी.ओ. मीडिया आदि पर भी निर्भर करती है। इसलिए इन पक्षों की संतुष्टि भी अपरिहार्य है, व्योंकि यह मौखिक प्रचार से ब्रांड शक्ति में वृद्धि करती हैं।

समाज का ध्यान रखने से ब्रांड की शक्ति में वृद्धि होती है, जिन कंपनियों ने गहनतम सामाजिक मूल्यों को अपनाया है, वह एक सशक्त ब्रांड के निर्माण में सफल रही हैं तथा उनके बड़ी संख्या में ग्राहक बने हैं। निगमित सामाजिक न्याय के क्षेत्र को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है। पहले वर्ग में बच्चों का पोषण, उनकी देख-भाल, बुजुर्गों के लिए घर, भूख को समाप्त करना, प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को सहायता प्रदान करना आदि जैसी समस्याएँ आती हैं, जिन पर मानवीयता के नाते तुरंत्त्यान देना आवश्यक है।

समस्याएँ, दूसे वर्ग में आती हैं, जो समाज को एक लंबी अवधि में रहने का एक सुंदर स्थान बनाती हैं। स्वास्थ्य के संबंधं में जागरककता तथा सहायता, शिक्षा, पर्यावरण संक्षण, महिलाओं को रोजगार एवं उन्हें सशक्त बनाना, गैर न्यायोचित भेदभाव (जाति, सुुदाय, धर्म, कौम वर्ग-भेद लिंग के आधार पर) को रोकना, रोजगार के माध्यम से गरीबी को दू करना, संस्कृति की सुर्का मूल्य,नैतिकता, अनुमंधान में योगदान आदि दूसरे वर्ग में आते हैं।

प्रोट्टर एंड गैंबल्स P & G का दर्शन है कि इसे वैश्विक पर्यावरण कार्यक्रम के क्रियान्वयन में उद्योग जगत को नेतृत्व प्रदान करना चाहिए। P & G दुनिया की उन पहली कंपनियों में से एक है, जो उपभोक्ता पदार्थों के पर्यावरण पर प्रभाव के अध्ययन में सक्रिय है तथा जिसने प्लास्टिक की शीशियों के पुनःक्रमण एवं पुनः भरावन पैकेजों से उद्योग को परिचित कराया है। P & G विकास को बनाए रखने में योगदान देता है तथा अपने उत्पाद एवं सेवाओं से संबंधित पर्यावरण एवं सामाजिक समस्याओं का समाधान करता है।

स्रोत— ‘इफेक्टिव एक्जिक्यूटिव’

विपणन शब्द की व्याख्या अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग ढंग से की है। कुछ लोगों का मानना है कि वस्तुओं का क्रय और विपणन एक ही है। जब भी वह बाज़ार में कुछ वस्तु अथवा सेवाओं की खरीददारी करने जाते हैं, तो वह इसे विपणन कहते हैं। कुछ लोगों को भ्रांति है कि विक्रय ही विपणन है तथा उनका मानना है कि विपणन की क्रिया किसी उत्पाद अथवा सेवा के उत्पादन के पश्चात् शुरू होती है। कुछ लोग इसकी व्याख्या वस्तु के व्यापार अथवा उनके रूपांकन के रूप में करते हैं। यह सभी व्याख्याएँ आंशिक रूप से सही हो सकती हैं, लेकिन विपणन बहुत व्यापक अवधारणा है, जिसका वर्णन नीचे किया गया है-

परंपरागत रूप से विपणन की व्याख्या इसके कार्य अथवा क्रियाओं के रूप में की गई है। इस अर्थ में विपणन को उन व्यावसायिक क्रियाओं का निष्पादन माना जाता है, जिनके कारण वस्तु एवं सेवाएँ उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुँचती हैं।

हम जानते हैं कि अधिकांश विनिर्माण में लगी फर्में वस्तुओं का उत्पादन अपने स्वयं के उपभोग के लिए नहीं करती हैं, बल्कि दूसरे लोगों के उपभोग के लिए करती हैं। इसीलिए वस्तु एवं सेवाओं को उत्पादक से उपभोक्ता तक ले जाने के लिए कई प्रक्रियाएँ करनी होती हैं, जैसे- उत्पाद का रूपांकन अथवा व्यापार, पैकेजिंग भंडारण, परिवहन, ब्रांडिग, विक्रय, विज्ञापन एवं मूल्य निर्धारण। इन सभी क्रियाओं को विपणन क्रिया कहते हैं।

अतः हम कह सकते हैं कि विक्रय, खरीददारी, क्रय-विक्रय किसी फर्म की बड़ी संख्या में की जाने वाली प्रक्रियाएँ हैं, जिनको मिलाकर विपणन कहते हैं।

यहाँ ध्यान देने की बात है कि विपणन मात्र उत्पादन के बाद की क्रिया नहीं है। इसमें कई वे क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जो वस्तुओं के वास्तविक उत्पादन से पूर्व की जाती हैं तथा उनके विक्रय के पश्चात् भी जारी रहती हैं। उदाहरण के लिए उपभोक्ता की आवश्यकताओं की पहचान करना, उत्पादन के विकास के लिए सूचना एकत्रित करना, उपयुक्त उत्पाद पैकेज का रूपांकन करना तथा ब्रांड नाम देना ऐसी प्रक्रियाएँ हैं, जिन्हें वास्तविक उत्पादन को प्रारंभ करने से पहले किया जाता है। इसी प्रकार से बिक्री की पुनरावृत्ति के लिए ग्राहकों से अच्छे संबंधों के लिए कई प्रक्रियाएँ की जाती हैं।

“व्यवसाय वित्तीय विज्ञान न होकर, व्यापार, क्रय एवं विक्रय है। इसका संबंध ऐसी श्रेष्ठ वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादन से हैं, जिसके लिए लोग भुगतान करने को तत्पर हो जाएँगे।”

एंटा रोडिक

“विपणन को एक दिन में सीखा जा सकता है, लेकिन दुर्भाग्यवश इसमें दक्षता प्राप्त करने के लिए समय लगता है।”

फिलिप कोटलर

बाज़ार किसे कहते हैं

प्रचलित रूप से बाजार से अभिप्राय उस स्थान से है, जहाँ क्रेता एवं विक्रेता वस्तु एवं सेवाओं के विनिमय संबंधी लेन-देन करते हैं। आज भी आम बोल-चाल की भाषा में बाजार शब्द को इसी रूप में प्रयोग किया जाता है। दसरे रूप में इस शब्द का प्रयोग इनके संदर्भ में किया जाता है— उत्पाद बाजार (रुई मंडी, स्वर्ण अथवा शेयर बाजार), भौगोलिक बाजार (राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजजार), उपभोक्ता के प्रकार (फुटकर बाजजार एवं थोक बाज़ार)

आधुनिक रूप में बाजार शब्द का व्यापक अर्थ है। इससे अभिप्राय किसी वस्तु अथवा सेवा के वास्तविक एवं संभावित क्रेताओं के समूह से है। उदाहरण के लिए माना एक फैशन डिजाइनर ने नए डिजाइन की पोशाक तैयार की है तथा वह इसका विनिमय करना चाहती है। वह सभी लोग, जो इस पोशाक का क्रय करना चाहते हैं तथा इसका मूल्य चुकाने को तैयार हैं, वह सभी मिलकर इस पोशाक का बाजार कहे जा सकते हैं। इसी प्रकार से पंखों का बाज़ार, साइकिलों का बाज़ार, बिजली के बल्बों का बाज़ार अथवा शैम्पू का बाज़ार से अभिप्राय इन सभी उत्पादों के वास्तविक एवं संभावित क्रेताओं से है।

विपणन एक सामाजिक क्रिया है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें लोग वस्तु एवं सेवाओं का मुद्रा अथवा किसी ऐसी वस्तु में विनिमय करते हैं, जिसका उनके लिए कुछ मूल्य है। फिलिप कोटलर ने विपणन की परिभाषा इस प्रकार दी है, “यह एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके अनुसार लोगों के समूह उत्पादों का सृजन कर उन वस्तुओं को प्राप्त करते हैं, जिनकी उनको आवश्यकता है तथा उन वस्तुओं एवं सेवाओं का स्वतंत्रता से विनिमय करते हैं जिनका कोई मूल्य है।"

इस प्रकार से विपणन एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसको लोग बात-चीत कर दूसरों को एक विशेष प्रकार से व्यवहार के लिए प्रेरित करते हैं, जैसेकिसी उत्पाद अथवा सेवा को क्रय करना। वह उन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डालते। परिभाषा का ध्यान से विश्लेषण करने पर विपणन की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-

1. अपेक्षा एवं आवश्यकता- विपणन प्रक्रिया, व्यक्ति एवं समूह को वह जो कुछ चाहते हैं, उसे प्राप्त करने में सहायक होती हैं। अतः लोगों को विपणन प्रक्रिया में लगने के लिए प्रेरित करने का प्राथमिक कारण उनकी कुछ-न-कुछ आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। दूसरे शब्दों में विपणन प्रक्रिया का पूरा ध्यान लोगों एवं संगठनों की आवश्यकताओं पर होता है। आवश्यकता एक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति किसी चीज से वंचित हो जाता है अथवा उसे लगता है कि वह वंचित रह गया है। यदि इसकी पूर्ति नहीं होती है, तो व्यक्ति असंतुष्ट एवं असहज हो जाता है। उदाहरण के लिए जब हमें भूख लगती है तो हम असहज और व्यग्र हो जाते हैं तथा उन चीजों की ओर देखने लगते हैं जो हमारी भूख को शांत करेंगी।

अपेक्षाएँ मनुष्य के लिए आधारभूत होती हैं तथा यह किसी वस्तु विशेष के लिए नहीं होती हैं। दूसरी ओर आवश्यकताएँ शालीनतापूर्वक परिभाषित वे उद्देश्य हैं, जो अपेक्षाओं की संतुष्टि कर सकती हैं। दूसरे शब्दों में जिन मानवीय अपेक्षाओं को संस्कृति, व्यक्तित्व एवं धर्म जैसे तत्व ढालते हैं, उन्हें आवश्यकता कहते हैं। उदाहरण के लिए खाने की मूलभूत अपेक्षा के कई रूप हो सकते हैं, जैसे- दक्षिणी भारतीय के लिए डोसा एवं चावल तथा उत्तरी भारतीय के लिए चपाती एवं सब्जियाँ। एक विपणनकर्ता का कार्य किसी संगठन में लक्षित ग्राहकों की आवश्यकताओं की पहचान करना तथा उन उत्पादों एवं सेवाओं का विकास करना है, जो इन आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।

2. उत्पाद का सृजन- विपणनकर्ता बाज़ार के लिए उत्पाद का निर्माण करता है। बाज़ार उत्पाद से अभिप्राय किसी वस्तु के अथवा सेवा के संपूर्ण प्रस्तावना से है, जिनके लक्षण हैं — आकार, गुणवत्ता, रुचि आदि जो एक निश्चित मूल्य पर, निश्चित दुकान अथवा स्थान पर उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए प्रस्तावित वस्तु एक सेलफोन है, जो कि चार विभिन्न प्रकारों में उपलब्ध हैं, जिनकी विशेषताएँ उनके संचय की क्षमता, टेलीविजन देखने की सुविधा, इंटरनेट कैमरा आदि हैं। जिनका मूल्य 5,000 रुपए एवं 20,000 रुपए के बीच है, (जो मॉडल पर निर्भर करता है। जो देश के महानगरों में तथा उनके आस-पास विशिष्ट दुकानों पर उपलब्ध हैं। बाज़ार में बेची जाने वाली वह श्रेष्ठ वस्तु है, जिसका विकास संभावित क्रेताओं की आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं के विश्लेषण के पश्चात् किया जाता है।

3. ग्राहक के योग्य मूल्य— विपणन प्रक्रिया क्रेता एवं विक्रेता के बीच वस्तु एवं सेवाओं के विनिमय को सुगम बनाती है। क्रेता किसी वस्तु के क्रय का निर्णय लेते समय यह देखता है कि वह उनकी लागत की तुलना में उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति कितने मूल्य तक करती है। किसी वस्तु का वह क्रय तभी करेगा जब उसे लगेगा कि उनकी खर्च राशि का अधिकतम लाभ अथवा मूल्य प्राप्त होगा। एक विपणनकर्ता का, यह कार्य है कि वह उत्पाद को अधिक मूल्यवान बनाए, जिससे कि ग्राहक अन्य प्रतियोगी विपणनकर्ता के उत्पाद को वस्तुओं की तुलना में विपणनकर्ता के उत्पादन को पसंद करें तथा उसे करने क्रय का निर्णय लें।

4. विनिमय पद्धति — विपणन प्रक्रिया विनिमय पद्धति के माध्यम से कार्य करती है। लोग (क्रेता एवं विक्रेता) विनिमय प्रक्रिया के माध्यम से अपनी इच्छित तथा आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करते हैं। दूसरे शब्दोंमें विपणन प्रक्रिया, मुद्रा अथवा लोग जिसे मूल्यवान समझते हैं, के बदले में वस्तु एवं सेवाओं को प्राप्त करना है।

विनिमय से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है, जिसके माध्यम से दो या दो से अधिक पक्ष किसी अन्य पक्ष से इच्छित वस्तु अथवा सेवा प्राप्त करने के लिए एकजुट हो जाते हैं, जो कुछ किसी अन्य वस्तु के बदले में देना चाहता है। उदाहरण के लिए माना एक व्यक्ति भूखा है उसे खाना अथवा कुछ राशि अथवा अन्य कोई वस्तु अथवा सेवा के बदले उस व्यक्ति से प्राप्त हो जाएगा, जो खाने के बदले यह सब कुछ स्वीकार करने का इच्छुक है।

आधुनिक जगत में वस्तुओं का उत्पादन अलग-अलग स्थानों पर होता है तथा उनका वितरण विभिन्न मध्यस्थों के माध्यम से एक विस्तृत क्षेत्र में किया जाता है, जिसमें वितरण के विभिन्न स्तरों पर विनिमय होता है। विनिमय को इसीलिए विपणन का सार कहा गया है। किसी भी विनिमय के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना महत्त्वपूर्ण है-

(i) इसमें कम-से-कम दो पक्षों अर्थात् क्रेता एवं विक्रेता का होना आवश्यक है;

(ii) प्रत्येक पक्ष दूसरे पक्ष को मूल्य चुकाने की क्षमता रखता हो;

(iii) प्रत्येक पक्ष संत्रेषण एवं वस्तु अथवा सेवा की आपूर्ति के योग्य होना चाहिए। कोई भी विनिमय संभव नहीं है, यदि क्रेता एवं विक्रेता का एक-दूसरे से संप्रेषण नहीं है या फिर वह दूसरे को कोई ऐसी वस्तु नहीं दे सकते, जिसका कोई मूल्य हो|

(iv) प्रत्येक पक्ष को दूसरे पक्ष के प्रस्ताव को स्वीकार करने अथवा उसे अस्वीकार करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए; तथा

(v) विभिन्न पक्ष एक-दूसरे से लेन-देन करने के लिए इच्छुक होने चाहिए। इस प्रकार से प्रस्ताव

की स्वीकृति अथवा अस्वीकृति स्वैच्छिक होती है न कि किसी दबाव में। उपरोक्त बातें विनिमय की आवश्यक शर्तें हैं। विनिमय का होना या न होना दोनों पक्षों की विनिमय क्रिया की उपयुक्तता पर निर्भर करता है। फिर भले ही इससे पक्षों को लाभ होता हो या फिर कम-सेकम उनको कोई हानि नहीं होनी चाहिए। विपणन के संबंध में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि विपणन मात्र व्यावसायिक घटना नहीं है या फिर व्यावसायिक संगठनों तक ही सीमित नहीं है। विपणन क्रियाएँ गैर-लाभकारी संगठनों जैसे अस्पताल, स्कूल, स्पोर्ट्स क्लब एवं सामाजिक तथा धार्मिक संगठनों में भी उतना ही प्रासंगिक हैं। यह इन संगठनों को अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। ये उद्देश्य हैंपरिवार नियोजन के संदेश का प्रसार करना, लोगों के शिक्षा के स्तर में सुधार तथा बीमारों को इलाज की सुविधा की व्यवस्था करना।

विपणन प्रबंध

विपणन प्रबंध का अर्थ है, विपणन कार्य का प्रबंधन। दूसरे शब्दों में विपणन प्रबंध से अभिप्राय उन क्रियाओं के नियोजन, संगठन, निदेशन एवं नियंत्रण से है, जो उत्पादक एवं उपभोक्ता अथवा उत्पाद एवं सेवा के उपयोगकर्ता के बीच वस्तु एवं सेवाओं के विनिमय को सुगम बनाते हैं। विपणन प्रबंध बाज़ार में विपणन से इच्छित परिणाम प्राप्त करने पर केंद्रित रहता है। प्रबंध के परिप्रेक्ष्य में देखें तो विपणन की परिभाषा अमरीकन मैनेजमेंट एसोसिएशन ने इस प्रकार दी है, “यह विचार, वस्तु एवं सेवाओं की अवधारणा, मूल्य निर्धारण, प्रवर्तन एवं वितरण की नियोजन एवं क्रियान्वयन प्रक्रिया है, जो विनिमय के लिए होती हैं जिससे व्यक्तिगत एवं संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।"

फिलिप कोटलर के शब्दों में, “विपणन प्रबंध" बाजार का चयन करने एवं प्रबंध की अधिक श्रेष्ठ ग्राहक मूल्य पैदा करने, सुपुर्दगी करने एवं संप्रेषण करने के माध्यम से ग्राहकों को पकड़ना, उन्हें अपना बनाए रखना एवं उनमें वृद्धि करने की कला एवं विज्ञान है।"

विपणन की परिभाषा का यदि ध्यान से विश्लेषण करें तो हम पाएँगे कि विपणन प्रबंध प्रक्रिया में निम्नलिखित तत्व सम्मिलित हैं-

विपणन किसका किया जा सकता है?

भौतिक पदार्थ - डीवीडी प्लेयर, मोटर साईकल, आईपैड्स, सेलफोन, फुटवियर, टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर।

सेवाएँ - बीमा, हेल्थ केयर, व्यावसायिक प्रक्रिया का बाह्य स्रोतीकरण, सुक्षा, सुगम बिल सेवा, वित्तीय सेवाएँ (निवेश), कंप्यूटर शिक्षा, ऑनलाइन व्यापरा|

विचार - पोलियो टीकाकरण, हेल्पेज, परिवार नियोजन, खक्तदान (डेक्रास), झंडा दिवस पर धन चंदा, (सामुदायिक सदृभाव, संस्थान)

व्यक्ति - किन्हीं पदों के लिए प्रत्याशियों के चुनाव हेतु आमंत्रित हैं-

स्थान - आगरा-प्रेम नगर, उदयपुर-झीलों का नगर, मैसूर— बागों का नगर, जब उड़ीसा में समारोह होता है तो भगवान भी सम्मिलित होते हैं।

घटनाएँ - खेल आयोजन (जैसे कि ओलंपिक क्रिकेट भृंखला, दीपावली मेला, फैशन शो, संगीत समारोह फिल्म उत्सव, हाथी दौड़ (केरल पर्यटन)

सूचना - संगठन (जैसे विश्वविद्यालय) द्वारा उत्पादों का पैकेजिंग एवं सूचना वितरण, अनुसंधान संगठन, बाज़ार सूचना के रूप में सूचना प्रदान करना (विपणन अनुसंधान एजेंसियाँ), प्रौद्योगिकी सूचना।

(i) बाज़ार का चयन जैसे एक विनिर्माता 5 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए तैयार सिले सिलाए वस्त्रों को तैयार करना तय करता है;

(ii) बाज़ार के चयन में प्रबंध प्रक्रिया ग्राहक बनाने उन्हें अपना बनाए रखने एवं उनकी संख्या में वृद्धि पर केंद्रित होती है, इसका अर्थ हुआ विपणनकर्ता को अपने उत्पाद के लिए माँग पैदा करनी होती है, जिससे कि ग्राहक उत्पाद का क्रय करें, उन्हें फर्म के उत्पादों से संतुष्ट करना होता है तथा और नए ग्राहक बनाने होते हैं, जिससे कि फर्म और ऊँचा उठे।

(iii) उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए तंत्र ग्राहकों के लिए अधिक श्रेष्ठ मूल्यों का निर्माण, विकास एवं संत्रेषण माध्यम है। इसका अर्थ हुआ कि विपणन प्रबंधक का प्राथमिक कार्य वस्तुओं को अधिक उपयोगी बनाना है, जिससे कि ग्राहक वस्तु एवं सेवाओं की ओर आकर्षित हों, संभावित ग्राहकों को इनके संबंध में बताएँ तथा उन्हें इन उत्पादों को खरीदने के लिए तैयार करें।

विपणन प्रबंध विभिन्न कार्य करता है, जैसेविपणन गतिविधियों का विश्लेषण एवं नियोजन करना, विपणन नियोजन का क्रियान्वयन तथा नियंत्रण तंत्र की स्थापना करना। यह कार्य इस प्रकार से किए जाते हैं कि संगठन के उद्देश्यों को न्यूनतम लागत पर प्राप्त किया जा सके।

सामान्य रूप से विपणन प्रबंध का संबंध माँग के निर्माण से है। कुछ स्थितियों में प्रबंध की माँग को सीमित रखना होता है। उदाहरण के लिए आपूर्ति से भी अधिक माँग की स्थिति अर्थात् वह स्थिति, जिसमें कंपनी जितनी माँग को पूरा कर सकती है अथवा करना चाहती है, से माँग अधिक है। जैसे हमारे देश में 90 के दशक में उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति को अपनाने से पहले ऑटोमोबाइल अथवा इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं या फिर स्थायी उत्पादों जैसे उपभोक्ता वस्तुओं की स्थिति थी। इन स्थितियों में विपणन प्रबंधकों का कार्य अस्थायी रूप से माँग को घटाने के रास्ते ढूँढ़ना है, जैसे- प्रवर्तन पर व्यय को कम करना या फिर मूल्यों में वृद्धि करना। इसी तरह से माँग अनियमित हो सकती है जैसे मौसमी उत्पादों (पंखे, ऊनी वस्त्र) के मामले में विपणनकर्ताओं का कार्य क्रेताओं को छोटी अवधि के देने जैसे उपायों के माध्यम से माँग के समय स्वरूप में परिवर्तन करना होता है। अतः विपणन प्रबंध का संबंध केवल माँग पैदा करना ही नहीं है, बल्कि बाज़ार की स्थिति के अनुसार माँग का प्रभावी प्रबंधन भी है।

विपणन प्रबंध दर्शन

बाज़ार से विनिमय के इच्छित परिणाम प्राप्त करने के लिए यह निर्णय लेना महत्त्वपूर्ण है कि किसी संगठन के विपणन संबंधी कार्यों को कौन-सा दर्शन अथवा विचारधारा दिशा प्रदान करे। जिस दर्शन अथवा अवधारणा को अपनाना है उसकी समझ का बहुत महत्त्व है, क्योंकि यह संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने में विभिन्न तत्वों पर बल देने अथवा महत्त्व देने का निर्धारण करता है। उदाहरण के लिए संगठन की विपणन क्रियाएँ उत्पाद के रूपांकन अथवा विक्रय की पद्धतियाँ या फिर ग्राहक की आवश्यकताओं या सामाजिक अपेक्षाओं पर अधिक बल देंगी।

विपणन की अवधारणा अथवा दर्शन का विकास एक लंबे समय में हुआ है तथा इसका वर्णन नीचे किया गया है-

उत्पादन की अवधारणा

औद्योगिक क्रांति के प्रारंभिक दिनों में औद्योगिक उत्पादों की माँग तो बढ़ने लगी थी, लेकिन उत्पादकों की संख्या सीमित थी। परिणामस्वरूप पूर्ति से माँग अधिक थी। माल का विक्रय करना कोई समस्या नहीं थी। जो भी व्यक्ति यदि वस्तुओं का उत्पादन करता तो वह

विपणन एवं विक्रय

कई लोग विपणन का अर्थ विक्रय से लगाते हैं। वह इन दोनों को एक ही मानते हैं। विपणन बड़ी संख्या में क्रियाओं का समह है तथा विक्रय उसका एक भाग है। उदाहरण के लिए टेलीविजन का विपणनकर्ता, विक्रय से पहले कई कार्य करता है, जैसे — टेलीवीजन के उत्पादन के लिए उसके प्रकार, एवं मॉडल की योजना तैयार करना, इसके विक्रय मूल्य को तय करना, उन वितरण केंद्रों का चयन करना, जिन पर ये उपलब्ध होंगे तथा अन्य आदि। संक्षेप में कह सकते हैं कि विपणन में बहुत बड़ी संख्या में विभिन्न क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जिनका संबंध उन उत्पादों के नियोजन, मूल्य निर्धारण, प्रवर्तन एवं वितरण से है जो ग्राहकों की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।

दूसरी ओर विक्रय का कार्य, विक्रय कला, विज्ञापन एवं प्रचार तथा लघु अवधि प्रलोभन के माध्यम से, वस्तु एवं सेवाओं के प्रर्वतन तक सीमित है। इससे उत्पाद का स्वामित्व विक्रेता से क्रेता को हस्तांतरित हो जाता है। दूसरे शब्दों में उत्पाद के बदले में रोकड़ प्राप्त हो जाती है।

बिक जाती थीं। इसलिए व्यावसायिक क्रियाएँ वस्तुओं के उत्पादन पर केंद्रित थीं। यह विश्वास किया जाता था कि वस्तुओं का बड़ी मात्रा में उत्पादन कर अधिकतम लाभ कमाया जा सकता था। इससे उत्पादन की औसत लागत को कम किया जा सकता था। यह भी धारणा थी कि ग्राहक उन वस्तुओं को खरीदेंगे, जिनका मूल्य उनकी सामर्थ्य के अनुसार होगा। इस प्रकार से किसी व्यावसायिक की इकाई की सफलता की कुंजी उत्पाद की उपलब्धता एवं सामर्थ्य में होना माना जाता था।

उत्पाद की अवधारणा

प्रारंभ के दिनों में उत्पादन क्षमता पर अधिक बल दिया गया। परिणामस्वरूप आगे चलकर पूर्ति में वृद्धि हुई। बिक्री में वृद्धि के लिए उत्पाद की उपलब्धता तथा कम मूल्य ही पर्याप्त नहीं थे और न ही इन कारणों से इकाई का अस्तित्व में बने रहना तथा उसका विकास सुनिश्चित नहीं था। जैसे-जैसे पूर्ति में वृद्धि हुई ग्राहक उन वस्तुओं की माँग करने लगा जो गुणवत्ता, आवश्यकता पूर्ति तथा लक्षण की दृष्टि से श्रेष्ठ थीं। अतः इकाइयाँ उत्पादन की मात्रा के स्थान पर उत्पाद की गुणवत्ता को अधिक महत्त्व देने लगी। व्यावसायिक क्रिया का केंद्र बिंदु अब निंतर गुणवत्ता में सुधार तथा वस्तु को नया स्वरूप प्रदान करना हो गया। इस प्रकार से उत्पादमूलक अवधारणा में उत्पाद में सुधार फर्म के अधिकतम लाभ की कुंजी बन गया।

बिक्री की अवधारणा

जैसे-जैसे समय बीतता गया, विपणन पर्यावरण में फिर परिवर्तन आया। व्यवसाय अब और बड़े पैमाने पर होने लगा, जिससे पूर्ति में और वृद्धि हुई, जिससे विक्रेताओं के बीच प्रतियोगिता भी बढ़ी। अब क्योंकि बड़ी संख्या में विक्रेता अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं का विक्रय कर रहे थे, इसलिए उत्पाद की उपलब्धता एवं गुणवत्ता फर्म के अस्तित्व एवं इसके विकास को सुनिश्चित करने के लिए अपर्याप्त थे। परिणामस्वरूप वस्तु को क्रय करने के लिए ग्राहक को आकर्षित करना तथा उस पर जोर देना अधिक महत्वपूर्ण हो गया। व्यवसाय की पूरी सोच ही बदल गई। अब यह धारणा बन गई कि ग्राहक तब तक वस्तु का क्रय नहीं करेगा या फिर पर्याप्त मात्रा में क्रय नहीं करेगा जब तक कि उसे इसके लिए भली-भाँति प्रभावित एवं अभिप्रेरित न किया जाए। ग्राहक उनके उत्पादों का क्रय करें, इसके लिए अब व्यवसायों के लिए आक्रामक विक्रय एवं प्रवर्तन करना अनिवार्य हो गया है। उत्पादों की बिक्री के लिए विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय एवं विक्रय प्रवर्तन जैसी विक्रय संवर्धन तकनीकों का प्रयोग आवश्यक माना जाने लगा। अब व्यावसायिक इकाइयाँ अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए आक्रामक विक्रय पद्धतियों पर अधिक ध्यान देने लगी, जिससे कि ग्राहकों को वस्तुओं के क्रय के लिए प्रोत्साहित, लुभाया एवं तैयार बिंदु ग्राहकों की संतुष्टि होता है। उदाहरण के लिए किया जा सके। यह अधिक महत्वपूर्ण हो गया कि किसी भी तरह से वस्तुओं की बिक्री की जाए। यह मान लिया गया कि क्रेताओं का येन-केन-प्रकोण माल बेचा जा सकता है, लेकिन यह भूल गए कि दीर्घ अवधि में केवल उपभोक्ताओं की संतुष्टि ही उपयोगी होती है।

विपणन की अवधारणा

विपणनमुखी का अर्थ है बाज़ार में किसी भी संगठन की सफलता की कुंजी उपभोक्ता की आवश्यकताओं की संतुष्टि है। इसमें यह माना जाता है कि दीर्घ अवधि में कोई भी संगठन यदि अपने अधिकतम लाभ के उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है, तो उसे अपने वर्तमान तथा संभावित क्रेताओं की आवश्यकताओं की पहचान कर उनकी प्रभावी रूप से संतुष्टि करनी होगी। किसी भी फर्म में सभी निर्णय ग्राहकों के ध्यान में रखकर लिए किस वस्तु का उत्पादन किया जाएगा, इस पर निर्भर जाते हैं। दूसरे शब्दों में संगठन में सभी निर्णयों का केंद्र करेगा कि ग्राहक क्या चाहते हैं। माना ग्राहकरेफ्रिजरेटर में दो पल्ले का दरवाजा चाहता है या पानी ठंडा करने के लिए अलग से प्रावधान चाहता है, तो विनिर्माता इन विशेषताओं के साथ रेफ्रिजरेटर बनाएगा, इसका इतना मूल्य रखेगा, जिसे क्रेता देना चाहता है। यदि सभी विपणन संबंधी निर्णय इस संदर्भ में लिए जाएँगे तो विक्रय में कोई समस्या नहीं आएगी। फर्म की मूल भूमिका तब आवश्यकता की पहचान कर उसकी पूर्ति करनी होगी। इस अवधारणा का आधार है कि उत्पाद एवं सेवाएँ उनके गुण, पैकिंग अथवा ब्रांड के कारण नहीं खरीदी जाती, बल्कि यह ग्राहक की कुछ विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं इसलिए खरीदी जाती हैं। किसी भी संगठन की सफलता की पहली आवश्यकता ग्राहक की आवश्यकताओं को समझकर उसके अनुसार कार्य करना है।

विपणन प्रबंध दर्शन में अंतर

दर्शन या आधारमूलक उत्पादन अवधारणा उत्पाद अवधारणा विक्रय अवधारणा विपणन अवधारणा समाज अवधारणा
1. प्रारंभ बिंदु कारखाना कारखाना कारखाना बाज़ार बाज़ार या समाज
2. मुख्य केंद्र बिंदु उत्पाद की मात्रा उत्पाद की गुणवत्ता, निष्पादन उत्पाद का स्वरूप उत्पाद में वृद्धि उपभोक्ता की आवश्यकताएँ उपभोक्ता की आवश्यकताएँ तथा समाज कल्याण
3. साधन उत्पाद की उपलब्धता एवं क्रय क्षमता उत्पाद में सुधार विक्रय एवं विक्रय प्रवर्तन एकीकृत विपणन एकीकृत विपणन
4. समाप्ति उत्पादन की मात्रा द्वारा लाभ अर्जन उत्पाद की गुणवत्ता से लाभ प्राप्ति विक्रय की मात्रा से लाभ प्राप्ति ग्राहक की संतुष्टि से लाभ प्राप्ति उपभोक्ता संतुष्टि एवं कल्याण से लाभ प्राप्ति

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि विपणन की आवधारणा के निम्नलिखित स्तम्भ हैं-

(i) बाज़ार अथवा ग्राहकों का विपणन के लक्ष्यों के रूप में चयन करना;

(ii) लक्षित बाजजार के ग्राहकों की इच्छा एवं आवश्यकताओं को समझना;

(iii) लक्षित बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पाद एवं सेवाओं का विकास करना;

(iv) लक्षित बाज़ार की आवश्यकताओं को अपने प्रतियोगियों की तुलना में अधिक श्रेष्ठता से पूरा करना; एवं

(v) यह सभी कुछ लाभ के लिए करना।

इस प्रकार से विपणन की अवधारणा का केंद्र बिंदु ग्राहक की चाहत है तथा व्यावसायिक इकाई के अधिकतम लाभ के उद्देश्य की प्राप्ति ग्राहक की संतुष्टि से प्राप्त की जा सकती है। विपणन का उद्देश्य ग्राहक को आकृष्ट कर लाभ कमाना है।

विपणन की सामाजिक अवधारणा

आगे के अनुभागों में विपणन की अवधारणा का जो वर्णन किया गया है। वह अपर्याप्त रहेगा यदि हम पर्यावरण प्रदषण, जंगलों की कटाई, संसाधनों की कमी, जनसंख्या विस्फोट तथा मुद्रा स्फीति जैसी सामाजिक समस्याओं की चुनौतियों पर ध्यान दें, क्योंकि कोई भी कार्य जो मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करता हो, लेकिन समाज के अधिकांश हितों के विरुद्ध हो तो उसे न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए इसे व्यवसाय में दूरदर्शिता की कमी माना जाएगा। यदि यह केवल उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इसे दीर्घ आवधिक समाज कल्याण की बड़ी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। जैसा कि ऊपर उदाहरण दिया गया है।

समाज मूलक विपणन अवधारणा की धारणा है कि किसी भी संगठन का कार्य बाज़ार की आवश्यकताओं को पहचान कर उनकी प्रभावी ढंग से तथा भली-भाँति संतुष्टि करना है, जिससे कि उपभोक्ता एवं समाज का दीर्घ आवधिक कल्याण हो सके। इस प्रकार से समाज मूलक विपणन अवधारणा विपणन की अवधारणा का विस्तार है, जिसमें दीर्घ आवधिक समाज कल्याण का भी ध्यान रखा जाता है। ग्राहक की संतुष्टि के अतिरिक्त इसमें विपणन के सामाजिक, नैतिक एवं प्राकृतिक पक्षों पर भी ध्यान दिया जाता है। ऐसी अनेक समस्याएँ हैं, जिन पर ध्यान देना आवश्यक है।

विपणन के कार्य

विपणन का संबंध वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादक तथा उपभोक्ता अथवा उपयोगकर्ता के बीच इस प्रकार के विनिमय से है, जो उपभोक्ता की आवश्यकताओं की अधिकतम संतुष्टि प्रदान करता है। प्रबंध के कार्य के रूप में इसकी अनेक क्रियाएँ हैं, जिनका वर्णन नीचे किया गया है-

1. बाज़ार संबंधी सूचना एकत्रित करना तथा उसका विश्लेषण करना- एक विपणनकर्ता के महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक कार्य बाज़ार संबंधी सूचना एकत्रित करना तथा उसका विश्लेषण करना है। ग्राहकों की आवश्यकताओं की पहचान करना तथा वस्तु एवं सेवाओं के सफल विपणन के लिए विभिन्न निर्णय लेना आवश्यक है। संगठन के अवसर एवं कठिनाइयाँ तथा उसकी सुदढ़ता एवं कमजोरियों का विश्लेषण करना तथा यह निर्णय लेना कि किन अवसरों का लाभ उठाने के लिए कार्य किया जाए, यह अधिक महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्र हैं। जैसे- इंटरनेट का प्रयोग, सैल फोनों का बाजार आदि, जिनमें तीव्र विकास की संभावनाएँ हैं। किस संगठन को किस क्षेत्र में कार्य करना चाहिए या फिर अपनी गतिविधियों का विस्तार करना चाहिए इसका निर्णय लेने के लिए संगठन की शक्तियों एवं कमजोरियों कीध्यान से जाँच करनी होती है, जिसे बाजार के विश्लेषण की सहायता से किया जा सकता है।

कंप्यूटर के विकास के कारण बाज़ार के संबंध में सूचना एकत्रित करने की नई प्रवृति पैदा हुई है। अधिक से अधिक कंपनियाँ इंटरनेट पर ऐसे साइट का उपयोग कर रही हैं, जहाँ वे पासस्परिक विचार के द्वारा महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक निर्णय लेने से पहले ग्राहकों के विचार एकत्रित करती हैं।

टेलीविजन के लोकप्रिय समाचार चैनलों (हिंदी) में से एक दर्शकों के विचार माँगते हैं (एस.एम.एस. के माध्यम से) कि दिन भर के चार अथवा पाँच मुख्य समाचारों में से किसी कहानी का प्राइम टाइम पर प्रसारण किया जाए। इससे दर्शक अपनी पसंद की कहानी सुन सकते हैं।

2. विपणन नियोजन— संगठन के विपणन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक विपणनकर्ता का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य अथवा क्षेत्र उचित विपणन योजना का विकास करना है। उदाहरण के लिए माना कि रंगीन टी.वी. का विपणनकर्ता, जिसकी देश के बाजार में वर्तमान में 10 प्रतिशत की भागीदारी है, अगले तीन वर्ष में इस भागीदारी को 20 प्रतिशत तक बढ़ाना चाहता है। इसके लिए उसे एक पूरी विपणन योजना तैयार करनी होगी, जिसमें उत्पादन के स्तर में वृद्धि, वस्तुओं का प्रर्वतन आदि जैसे महत्वपूर्ण पक्ष सम्मिलित किए जाएँगे तथा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए क्रियान्वयन कार्यक्रम का निर्धारण भी होगा।

3. उत्पाद का रूपांकन एवं विकास— विपणन का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य अथवा निर्णय क्षेत्र उत्पाद का रूपांकन एवं विकास है। उत्पाद का रूपांकन लक्षित उपभोक्ताओं के लिए उत्पाद को और अधिक आकर्षित बनाने में सहायक होता है। एक अच्छा स्वरूप उत्पाद की उपयोगिता को बढ़ा सकता है तथा बाज़ार में इसे और अधिक प्रतियोगी बना सकता है। उदाहरण के लिए जब हम किसी उत्पाद के क्रय का मन बनाते हैं, जैसे- मोटर साइकिल, तब हम न केवल इसकी लागत, प्रति मीटर दूरी तय करना आदि विशेषताओं को देखते हैं, बल्कि इसके डिजाइन पक्ष, जैसे- आकार, स्टाइल आदि को भी देखते हैं।

4. प्रमापीकरण (मानकीकरण) एवं ग्रेड तय करना- प्रमापीकरण का अर्थ है पूर्व निर्धारित विशिष्टताओं के अनुरूप वस्तुओं का उत्पादन करना, जिससे उत्पाद में एकरूपता तथा अनुकूलता आती है। प्रमापीकरण क्रेताओं को यह सुनिश्चित करता है कि वस्तुएँ पूर्व निर्धारित गुणवत्ता, मूल्य एवं पैकेजिंग के मानकों के अनुसार हैं। इससे उत्पादों के निरीक्षण, जाँच एवं मूल्यांकन की आवश्यकता कम हो जाती है।

ग्रेड निर्धारण उत्पाद का गुणवत्ता, आकार आदि महत्तपूर्ण विशेषताओं के आधार पर विभिन्न समूहों में वर्गीकृत करना है। श्रेणीकरण विशेष रूप से उन उत्पादों जैसे- गेहूँ, संतरे आदि के लिए आवश्यक है, जिनका पूर्व निर्धारित विशिष्टताओं के अनुसार उत्पादन नहीं किया जाता। श्रेणीकरण यह सुनिश्चित करता है कि वस्तुएँ एक विशेष गुणवत्ता वाली हैं तथा उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों को ऊँचे मूल्य पर बेचने में सहायक होता है।

5. पैकेजिंग एवं लेबलिंग- पैकेजिंग का अर्थ है उत्पाद के पैकेज का रूपाकंन करना। लेबलिंग में पैकेज पर जो लेबल लगाए जाते हैं, उनका रूपांकन किया जाता है। लेबल साधारण फीता से लेकर जटिल ग्राफिक्स तक अनेक प्रकार के होते हैं।

पैकेजिंग एवं लेबलिंग वर्तमान विपणन में इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि इन्हें विपणन का स्तंभ माना जाने लगा है। पैकेजिंग न केवल वस्तु को सुरक्षित रखती है, बल्कि यह वस्तु प्रवर्तन के साधन का कार्य भी करती है। कभी-कभी क्रेता पैकेजिंग से ही उत्पाद की गुणवत्ता का आकलन करते हैं। आज के समय में ‘लेस’ अथवा ‘अंकल चिप्स’ आल के वेफर्स, क्लीनिक प्लस शैम्पू तथा कॉलगेट टूथपेस्ट आदि उपभोक्ता ब्रांड की सफलता में पैकेजिंग की महत्वपूर्ण भूमिका है।

6.ब्रांडिंग- अधिकांश उपभोक्ता उत्पादों के विपणन के लिए एक महत्तपपूर्ण निर्णय यह लिया जाता है कि क्या उत्पाद को इसके वर्ग विशेष के नाम (उत्पाद किस वर्ग का है, जैसे - पंखे, ,ैन आदि) से बेचा जाए अथवा इनकी बिक्री ब्रांड के नाम (जैसे- पोलर पंखे अथवा रोटोमैक पेन) से की जाए। ब्रांड का नाम उत्पाद को अन्य उत्पादों से भिन्न बनाता है, जो किसी फर्म के उत्पाद को प्रतियोगी के उत्पाद से अंतर का आधार बन जाता है, जिससे उत्पाद के लिए उपभोक्ता का लगाव पैदा होता है तथा इससे बिक्री संवर्धन में सहायता मिलती है। ब्रांडिग के संबंध में जो निर्णय लिए जाते हैं उनमें से एक तो ब्रांडिग की रणनीति के संबंध में है जैसेक्या प्रत्येक उत्पाद के लिए अलग-अलग ब्रांड नाम दिए जाएँ या फिर कंपनी के सभी उत्पादों के लिए एक ही ब्रांड नाम हो, जैसे- फिलिप्स बल्ब, ट्रूब एवं टेलीविजन या फिर वीडियोकॉन कपडे़ धोने की मशीन, टेलीवीजन एवं रेफ्रिजरेटर आदि। सही ब्रांड नाम का चयन किसी उत्पाद की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

7.ग्राहक समर्थन सेवाएँ- विपणन प्रबंध का एक महत्त्वपर्ण कार्य ग्राहक समर्थक सेवाओं का विकास करना है, जैसे- बिक्री के बाद की सेवाएँ, ग्राहकों की शिकायत को दूर करना एवं समायोजनों को देखना साख सेवाएँ, रख-रखाव सेवाएँ, तकनीकी सेवाएँ प्रदान करना एवं उपभोक्ता सूचनाएँ देना आदि। ये सभी सेवाएँ ग्राहकों को अधिकतम संतुष्टि प्रदान करती हैं, जो आज के समय में विपणन की सफलता की कुंजी है। ग्राहक समर्थक सेवाएँ ग्राहकों द्वारा बार-बार क्रय करने एवं उत्पाद के ब्रांड के प्रति स्वामी भक्ति विकसित करने में अत्यधिक प्रभावी सिद्ध होती हैं।

8.उत्पाद का मूल्य निर्धारण- उत्पाद का मूल्य वह राशि है, जिसका भुगतान उत्पाद को प्राप्त करने के लिए ग्राहक को करना होता है। मूल्य एक महत्वपूर्ण तत्व है, जो बाज़ार में किसी उत्पाद की सफलता अथवा असफलता को प्रभावित करता है। किसी वस्तु अथवा सेवा की माँग का उसके मूल्य से सीधा संबंध होता है। सामान्यतः यदि मूल्य कम है तो उत्पाद की माँग अधिक होगी। इसके विपरीत मूल्य अधिक होने पर माँग कम हो जाती है। विपणनकर्ताओं को मूल्य निर्धारक तत्वों का ठीक से विश्लेषण करना होता है और तो इस संबंध में कई महत्वपपर्ण निर्णय लेने होते हैं, जैसे- मूल्य निर्धारण के उद्देश्यों का निर्धारण मूल्य के संबंध में रणनीति का निर्धारण, मूल्यों का निर्धारण करना तथा उनमें परिवर्तन लाना आदि।

9.संवर्धन- वस्तु एवं सेवाओं के संवर्धन में उपभोक्ताओं को फर्म के उत्पाद एवं उसकी विशेषताओं के संबंध में सूचना देना तथा उन्हें इन उत्पदों को क्रय करने के लिए प्रेरित करना सम्मिलित होता है। बिक्री प्रवर्तन की चार महत्वपूर्ण पद्धतियाँ हैं- विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय, प्रचार एवं विक्रय संवर्धन। वस्तु एवं सेवाओं के प्रवर्तन के संबंध में विपणनकर्ता को कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं, जैसे- प्रवर्तन बजट, प्रवर्तन मिश्र अर्थात् उन सभी प्रवर्तन की विधियों का समिश्रण, जिनका उपयोग करना है, प्रवर्तन बजट आदि।

10. वितरण— वस्तु एवं सेवाओं के विपणन का एक और महत्वपूर्ण कार्य भौतिक वितरण का प्रबंधन है। इस कार्य में दो के संबंध में निर्णय लिए जाते हैं(i) वितरण के माध्य अर्थात् विपणन मध्यस्थ (थोक विक्रेता, फुटकर विक्रेता) एवं (ii) उत्पदों को उनके उत्पाद स्थलों से ग्राहक के उपभोग या उपयोग स्थल तक ले जाना। वस्तुओं के वितरण के संबंध में जो निर्णय लिए जाते हैं। वे हैं, संग्रहित माल का प्रंंधन (माल के स्टॉक का स्तर), माल का गोदाम में भंडारण एवं वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना ले जाना आदि।

11. परिवहन- परिवहन का अर्थ है माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना। सामान्यतः उत्पादों के उपयोगकर्ता विशेषतः उपभोग की वस्तुओं के उपयोगकर्ता दूर-दूर तक फैले हुए होते हैं तथा इनकी उपस्थिति उत्पादन स्थल से अलग स्थानों पर होती है। इसीलिए इन्हें उन स्थानों तक ले जाया जाता है, जहाँ इनकी उपभोग अथवा उपयोग के लिए आवश्यकता है। उदाहरण के लिए असम में जिस चाय का उत्पादन होता है, उसे न केवल राज्य के भीतर परिवहन की आवश्यकता है, बल्कि सुदर स्थानों, जैसे- तमिलनाडु, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा तथा राजस्थान में भी पहुँचाया जाता है।

विपणन की फर्म को अपनी परिवहन आवश्यकताओं का विश्लेषण करते समय कई तत्वों को ध्यान में रखना होता है, जैसे- उत्पाद की प्रकृति, बाजजार, जहाँ बेचना है, की लागत तथा स्थान तथा परिवहन के साधन तथा इससे जुड़े अन्य पहलुओं के संबंध में भी निर्णय लेना होता है।

12. संग्रहण अथवा भंडारण— सामान्यत: वस्तुओं के उत्पादन भंडारण तथा उनकी बिक्री अथवा उपयोग के बीच समय का अंतर होता है। इसका कारण एक ओर अनियमित माँग जैसे ऊनी कपड़े अथवा बरसाती या फिर अनियमित आपूर्ति जैसे कृषि उत्पाद (गन्ना, चावल, गेहूँ, कपास आदि) हो सकती है। बाज़ार में उत्पादों का प्रवाह बना रहे इसके लिए उत्पादों के उचित भंडारण की आवश्यकता होती है। माल की सुपुर्दगी में ऐसी देरी हो सकती है, जिससे बचा नहीं जा सकता या फिर अचानक ही वस्तु की माँग की आपूर्ति करनी हो सकती है। इस सबके लिए भी पर्याप्त मात्रा में माल का संग्रहण आवश्यक है। विपणन के इस संग्रहण कार्य को जो विभिन्न एजेंसियाँ करती हैं, वे हैं — विनिर्माता, थोक विक्रेता तथा फुटकर विक्रेता आदि।

विपणन मिश्र

विपणन मिश्र विभिन्न दरों से मिलकर बनता है, जिनको मुख्यतः चार वर्गों में विभक्त किया गया है। यह चार के

विपणन मिश्र-घटक
उत्पाद मूल्य
उत्पाद मिश्र मूल्य स्तर
उत्पाद की गुणवत्ता लाभ की सीमा
नए उत्पाद मूल्य नीति
अनुरूपण एवं विकास मूल्य रणनीति
पैकेजिंग मूल्य परिवर्तन
लेबलिंग
ब्रांडिग
स्थान प्रवर्तन
माध्यम नीति प्रवर्तन मिश्र
माध्यम का चयन विज्ञापन
माध्यम में अंतः विरोध व्यक्तित विक्रय
माध्यम सहयोग विक्रय प्रवर्तन
वितरण प्रचार जनसंपर्क

पी (Ps) के नाम से प्रसिद्ध है, जो इस प्रकार हैं- (i) उत्पाद (ii) मूल्य (iii) स्थान एवं (iv) प्रवर्तन। इनका वर्णन नीचे किया गया है-

1. उत्पाद— उत्पाद का अर्थ है वस्तु, सेवाएँ अथवा अन्य कोई पदार्थ जिसका मूल्य है, जिन्हें बाज़ार में बिक्री के लिए प्रस्तावित किया जाता है। उदाहरण के लिए हिंदुस्तान लीवर कंपनी कई उपभोग की वस्तुएँ बिक्री करना चाहती है, जैसे- श्रृंगार प्रसाधन (क्लोज अप टूथपेस्ट, लाइफबॉय साबुन आदि), डिटरजेंट पाउडर (सर्फ, व्हील), खाद्य उत्पाद (रिफाइंड वेजीटेबल तेल); टाटा प्रस्तावित करती है- टाटा स्टील, ट्रक, नमक तथा बड़ी संख्या में अन्य उत्पाद, एल.जी. इलेक्ट्रॉनिक्स बेच रहे हैं— टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर, कंप्यूटर के रंगीन मानीटर आदि; अमूल भी कई खाद्य उत्पाद (अमूल दूध, घी, मक्खन, पनीर, चॉकलेट आदि) लेकर आए हैं।

उत्पाद से अभिप्राय ऊपर वर्णित स्थूल उत्पादों से ही नहीं हैं, बल्कि उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर उनको प्रदान करने के लिए कुछ लाभों से भी है, जैसेटूथपेस्ट दाँतों को सफेद चमकाता है, मसूढ़ों को मजबूत करता है; उत्पाद में इसका विस्तार भी सम्मिलित है अर्थात् ग्राहक को बिक्री के बाद की सेवाएँ, शिकायतों को दूर करना, अतिरिक्त मशीनी पुर्जों को उपलब्ध कराना आदि की सुविधाएँ। यह सभी विशेषतः स्थायी उपभोक्ता उत्पादों के विपणन में जैसे ऑटोमोबाइल, रेफ्रिजरेटर आदि के विपणन में। बहुत महत्त्व रखती हैं उत्पाद के संबंध में लिए जाने वाले निर्णय रूप-आकार, गुणवत्ता, पैकेजिंग, लेबल एवं ब्रांड के संबंध में होते हैं।

2. मूल्य- मूल्य वह राशि है, जिसका भुगतान ग्राहक उत्पाद को प्राप्त करने के लिए करना चाहते हैं। अधिकांश उत्पादों की माँग की मात्रा को उसका मूल्य प्रभावित करता है। विपणनकर्ताओं का न केवल मूल्य निर्धारण के उद्देश्यों के संबंध में निर्णय लेना होता है, बल्कि मूल्य निर्धारक तत्वों का विश्लेषण कर फर्म के उत्पादों का मूल्य भी निर्धारित करना होता है। ग्राहकों एवं व्यापारियों को दी जाने वाली छूट एवं उधार की शर्तों का फैसला भी लेना होता है, जिससे कि ग्राहक समझ सके कि कीमत उत्पाद की उपयोगिता से मेल खाती है।

3. स्थान— स्थान अर्थात् वस्तुओं के वितरण में निर्दिष्ट उपभोक्ताओं को फर्म के उत्पादों को उपलब्ध कराने की क्रियाएँ सम्मिलित हैं। इस संबंध में जो महत्त्वपर्ण निर्णय लिए जाते हैं, वे हैं- उपभोक्ताओं तक पहुँचने के लिए वितरक अथवा मध्यस्थ का चयन, मध्यस्थों को छूट, प्रवर्तन अभियान आदि के द्वारा समर्थन प्रदान करना आदि। इसके बदले में मध्यस्थ फर्म के उत्पादों का संग्रह करते हैं, उन्हें संभावित ग्राहकों को दिखाते हैं, ग्राहकों से मूल्य तय करते हैं, विक्रय को अंतिम रूप प्रदान करते हैं तथा बिक्री के पश्चात् की सेवाएँ प्रदान करते हैं। अन्य क्षेत्र जिनके संबंध में निर्णय लिए जाते हैं, व हैं- स्टॉक का प्रबंधन, संग्रहण एवं भंडारण तथा वस्तुओं को उनके उत्पादन स्थान से उपभोक्ता के स्थान तक ले जाना आदि।

4. प्रवर्तन— वस्तु एवं सेवाओं के प्रवर्तन में जो क्रियाएँ सम्मिलित हैं, वे हैं- उत्पाद की उपलन्धता, रंग रूप, गुण आदि को लक्षित उपभोक्ता के समक्ष रखना तथा उसे इसके क्रय के लिए प्रोत्साहित करना आदि। अधिकांश विपणन संगठन कई प्रकार की बिक्री प्रवर्तन क्रियाएँ करते हैं तथा इस पर भारी राशि व्यय करते हैं। इसके कई माध्य हैं, जैसे- विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय एवं बिक्री संवर्धन की विधियाँ, जैसे- मूल्य में कटौती, मुप्त नमूने आदि। उपर्युक्त क्षेत्रों में प्रत्येक के संबंध में कई निर्णय लिए जाते हैं। उदाहरण के लिए विज्ञापन के लिए संदेश, माध्यम (जैसे-समाचार पत्र, पत्रिकाएँ आदि), ग्राहकों की शिकायत आदि को तय करना होता है।

विपणन की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि इन तत्वों को कितनी भली-भाँति मिश्रण किया जाए कि ग्राहक के लिए इसका महत्त्व बढ़ जाए तथा साथ ही उनकी बिक्री तथा लाभ कमाने के उद्देश्य की भी पूर्ति हो जाए। जैसे एक फर्म उतनी मात्रा में उस लागत पर बिक्री करना चाहेगी, जो एक इच्छित लाभ दिला सके। ऐसे में फर्म के सामने समस्या इस बात की होगी कि दिए गए उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए तत्वों का प्रभावी योग कौन-सा होगा।

उत्पाद

ग्राहक की दृष्टि से देखें तो उत्पाद अनेक उपयोगिताओं का समूह है, जिसका क्रय उसकी कुछ आवश्यकताओं की संतुष्टि की क्षमता के कारण किया जाता है। एक क्रेता किसी वस्तु अथवा सेवा का क्रय इसलिए करता है, क्योंकि यह उसके लिए उपयोगी है अथवा उसे यह कुछ लाभ पहुँचाता है। किसी उत्पाद के क्रय से ग्राहक को तीन प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं- (i) कार्यात्मक लाभ (ii) मनोवैज्ञानिक लाभ एवं (iii) सामाजिक लाभ। उदाहरण के लिए एक मोटर साइकिल का क्रय परिवहन के रूप में कार्यात्मक उपयोगिता प्रदान करता है, लेकिन इसके साथ ही प्रतिष्ठा एवं सम्मान की आवश्यकता की पूर्ति करता है तथा मोटर साइकिल की सवारी के कारण कुछ लोगों द्वारा सम्मान की दृष्टि से देखा जाना सामाजिक लाभ पहुँचाता है। इसीलिए किसी भी उत्पादन के लिए योजना तैयार करते समय इन सभी पहलुओं को देखना चाहिए।

उत्पादों का वर्गीकरण

उत्पादों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है(i) औद्योगिक उत्पाद एवं (ii) उपभोक्ता उत्पाद। उपभोक्ता पदार्थों को फिर से विभिन्न वर्गों में बाँटा जा सकता है, जिनका विस्तृत विवरण नीचे दिया गया है।

उपभोक्ता वस्तुएँ

वे उत्पाद, जिन्हें अंतिम उपभोक्ता अथवा उपयोगकर्ता अपनी निजी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की पूर्ति के लिए क्रय करता है, उपभोक्ता उत्पाद कहलाते हैं। उदाहरण के लिए साबुन, खाना पकाने का तेल, खाने की वस्तुएँ, कपड़ा, टूथपेस्ट, पंखे आदि ऐसे पदार्थ हैं, जिन्हें हम अपने एवं गैर-व्यावसायिक उपयोग में लाते हैं। यह उपभोक्ता वस्तुएँ कहलाती हैं।

उपभोक्ता वस्तुओं के प्रकार हैं-

1. सुविधा उत्पाद— वे उपभोक्ता वस्तुएँ जिन्हें उपभोक्ता बार-बार खरीदता है, तुरंत खरीदता है तथा बिना अधिक समय एवं श्रम के खरीदता है, सुविधा उत्पाद कहलाती हैं। सिगरेट, आइसक्रीम, दवाइयाँ, समाचार पत्र, स्टेशनरी का सामान, टूथपेस्ट आदि ऐसे उत्पादों के उदाहरण हैं। इन उत्पादों का प्रति इकाई मूल्य कम होता है तथा इन्हें थोड़ी मात्रा में खरीदा जाता है।

2. क्रय योग्य वस्तुएँ- क्रय योग्य उत्पाद वे उपभोक्ता वस्तुएँ हैं, जिनके क्रय के लिए क्रेता अंतिम निर्णय लेने से पहले कई दुकानों पर जाकर गुणवत्ता, मूल्य, बनावट, उपयुक्तता आदि की तुलना में काफी समय लगाता है। कपड़े, गहने, फर्नीचर, रेडियो, टेलीविजन आदि बाज़ारी वस्तुओं के कुछ उदाहरण हैं।

3. विशिष्ट उत्पाद- विशिष्ट उत्पाद वे उत्पाद होते हैं, जिनके कुछ विशेष लक्षण होते हैं, जिसके कारण क्रेता इनको विशेष रूप से खरीदना चाहते हैं। इनके ब्रांड को अत्यधिक पसंद करते हैं तथा इनके क्रेता भी बड़ी संख्या में होते हैं। ऐसे उत्पादों के क्रम में क्रेता भी अधिक समय एंव श्रम लगाने को तैयार रहते हैं।

उदाहरण के लिए माना कोई दुर्लभ कलाकृति अथवा प्राचीन वस्तु है कुछ लोग उसको खरीदने के लिए काफी श्रम तथा दूर-दूर की यात्रा करने तक को तैयार रहते हैं। प्रतिदिन के जीवन में भी हम देखते हैं कि कुछ लोग विशेष नाई, जलपान अथवा दर्जी के यहाँ जाते हैं। ऐसी वस्तुओं की माँग तुलना में बेलोच होती है अर्थात् यदि मूल्य में वृद्धि भी होती है तो भी माँग घटती नहीं है।

(ख) उत्पादों का टिकाऊपन

टिकाऊपन के आधार पर उपभोक्ता वस्तुओं को तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है- टिकाऊ, गैर-टिकाऊ एवं सेवाएँ।

1. गैर-टिकाऊ उत्पाद- ऐसे उपभोक्ता उत्पाद, जिनका उपयोग एक बार अथवा कुछ ही बार में हो जाता है, गैर-टिकाऊ उत्पाद कहलाते हैं। उदाहरण के लिए टूथपेस्ट, डिटर्जेंट, नहाने का साबुन तथा स्टेशनरी का सामान आदि कुछ उत्पाद हैं, जिन्हें हम खरीदते हैं, जैसे-विपणन की दृष्टि से इन उत्पादों पर लाभ कम मिलता है, इन्हें अधिकाधिक स्थानों पर उपलब्ध कराया जाता है तथा इनका भारी विज्ञापन करना होता है।

2. टिकाऊ उत्पाद— सभी मूर्त उपभोक्ता उत्पाद जिनको बार-बार उपयोग में लाया जा सकता है, टिकाऊ उत्पाद कहलाते हैं। रेफ्रिजरेटर, रेडियो, साइकिल, सिलाई मशीन एवं रसोई उपकरण आदि। इनके उदाहरण हैं। इन वस्तुओं का उपयोग लंबे समय तक किया जाता है। इन पर लाभ भी अधिक मिलता है तथा इनके विक्रेताओं को बिक्री में अधिक परिश्रम करना होता है तथा गारंटी एवं बिक्री के बाद की सेवाएँ प्रदान करनी होती हैं।

3. सेवाएँ- सेवाएँ अमूर्त होती हैं। सेवाओं से अभिप्रायः उन क्रियाओं के लाभ अथवा संतुष्टि से है, जिनकी बिक्री की जा रही है, जैसे- ड्राईक्लीन करना, घड़ी मरम्मत, बाल काटना, डाक सेवाएँ, डॉक्टर, आर्किटेक्ट एवं वकील की सेवाएँ आदि।

औद्योगिक उत्पाद

औद्योगिक उत्पाद वे उत्पाद होते हैं, जिनका अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए आगत के रूप में प्रयोग किया जाता है। कच्चा माल, इंजन, ग्रीस, मशीन, औजार आदि इस प्रकार के उत्पादों के उदाहरण हैं। दूसरे शब्दों में औद्योगिक उत्पाद दूसरी वस्तुओं के उत्पादन में प्रयोग के लिए गैर-व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक प्रयोग के लिए होते हैं।

वर्गीकरण

औद्योगिक उत्पादों को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

(i) माल एवं पुर्जें- इनमें वे वस्तुएँ सम्मिलित हैं, जो पूरी तरह से विनिर्माताओं के उत्पादों के भाग बन जाते हैं। ये वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं (क) कच्चा माल- इनमें सम्मिलित वस्तुएँ हैरईई, गन्ना, तिलहन एवं प्राकृतिक उत्पाद जैसे खनिज पदार्थ (कच्चा पैट्रोल, कच्चा लोहा), मछली एवं काठ-कबाड़ एवं (ख) निर्मित वस्तुएँ एवं पुर्जें। ये भी दो प्रकार के होते हैं-घटक पदार्थ, जैसे- काँच, लोहा, प्लास्टिक एवं घटक पुर्जें, जैसेटायर, बिजली के बल्ब, स्टीयरिंग एवं बैटरी आदि

(ii) पूँजीगत वस्तुएँ- ये वे वस्तुएँ हैं, जिनका प्रयोग तैयार माल के उत्पादन में किया जाता है, ये हैं- (क) प्रतिस्थापित, जैसे- उत्तोलक मुख्य कंप्यूटर एवं (ख) उपकरण जैसे हाथ के औजार, व्यक्तिगत उपयोग के कंप्यूटर, फैक्स मशीन आदि।

(iii) आपूर्ति एवं व्यावसायिक सेवाएँ- ये कम समय तक टिकने वाली वस्तु एवं सेवाएँ होती हैं, जो तैयार वस्तुओं को विकसित करने अथवा उनके प्रबंधन में सहायक होती हैं। इनमें सम्मिलित हैं- (क) रख-राव एवं मरम्मत की वस्तुएँ, जैसे- रंग-रोगन, कीलें आदि तथा (ख) परिचाल आपूर्तियाँ, जैसे- स्नेहक, कंप्यूटर, स्टेशनरी, लिखने के लिए कागज आदि।

ब्रांडिग

उत्पाद के संबंध में किसी भी विपणनकर्ता को जो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना होता है, वह ब्रांड के संबंध में होता है। उसे यह निर्णय लेना होता है कि फर्म के उत्पादों का विपणन किसी ब्रांड के नाम से किया जाए या फिर सामान्य नाम से किया जाए। उदाहरण के लिए एक पुस्तक, घड़ी, टायर कैमरा, नहाने का साबुन आदि। हम जानते हैं कैमरा एक लैंस होता है, जिसके चारों ओर प्लास्टिक अथवा स्टील का फ्रेम होता है तथा इसके साथ अन्य विशेषताएँ जैसे फ्लैशगन आदि होती है। इसी प्रकार से एक पुस्तक कुछ कागजों का बंडल होती है, जिसका परिबंधन कर दिया गया है। इस पर किसी विषय विशेष के संबंध में उपयोगी सूचना छपी हुई होती है। ये सभी वस्तुएँ इनके लाक्षणिक नाम, जैसे - कैमरा अथवा पुस्तक, से पुकारी जाती हैं।

यदि उत्पादों को उनके लाक्षणिक नाम से बेचा जाता है, तो विपणनकर्ताओं को अपने प्रतियोगियों के उत्पादों से अंतर करना कठिन हो जाता है। इसीलिए अधिकांश विपणनकर्ता अपने उत्पादों को कोई खास नाम दे देते हैं, जिससे कि उनके उत्पादों को अलग से पहचाना जा सकता है तथा प्रतियोगी उत्पादों से भी उनका अंतर किया जा सकता है। किसी उत्पाद को नाम, चिह्न अथवा कोई प्रतीक आदि देने की प्रक्रिया को ब्रांडिंग कहते हैं। ब्रांडिंग से जुड़े कुछ शब्द निम्नलिखित हैं-

1. व्रांड— ब्रांड नाम, शब्द, चिह्न, प्रतीक अथवा इनमें से कुछ का मिश्रण है, जिसका प्रयोग किसी एक विक्रेता अथवा विक्रेता समूह के उत्पादों वस्तु एवं सेवाओं की पहचान बनाने के लिए किया जाता है तथा इससे इन वस्तु एवं सेवाओं का प्रतियोगियों के उत्पादों से अंतर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए कुछ प्रचलित ब्रांड हैं- बाटा, लाइफबॉय, डनलप, हॉट शॉट एवं पारकर आदि। ब्रांड, एक व्यापक शब्द है, जिसके दो घटक है- ब्रांड नाम एवं ब्रांड चिह्न। उदाहरण के लिए एशियन पेंट का चिह्न इसके पैकेज पर बना गट्टू है, जो कि इसका ब्रांड चिह्न है।

2. ब्रांड नाम— ब्रांड का वह भाग जिसे बोला जा सकता है, ब्रांड नाम कहलाता है। दूसरे शब्दों में ब्रांड नाम एक ब्रांड का मौखिक भाग है। उदाहरण के लिए एशियन पेंट, सफोला, मैगी, लाइफबॉय, डनलप एवं अंकल चिप्स ब्रांड के नाम हैं।

3. ब्रांड चिह्न- ब्रांड का वह भाग जिसे पुकारा नहीं जा सकता लेकिन जिसे पहचाना जा सकता है, ब्रांड चिह्न कहलाता है। यह एक प्रतीक, आकार, अलग रंग अथवा शब्दों की बनावट के रूप में होता है। उदाहरण के लिए एशियन पेंट का गट्टू, ओनिडा का प्रेत; जीवन बीमा निगम का योग क्षमा या फिर एनासिन का हथेली तथा चार उंगलियाँ सभी ब्रांड चिह्न हैं।

4. ट्रेड मार्क— ब्रांड अथवा उसके किसी भाग को यदि कानूनी संरक्षण प्राप्त हो जाता है, उसे ट्रेड मार्क कहते हैं। यह संरक्षण किसी अन्य फर्म द्वारा इसके प्रयोग के विरुद्ध मिलता है अर्थात् जिस फर्म ने अपने ब्रांड का पंजीयन करा लिया है, उसे इसके उपयोग करने का एकाधिकार प्राप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में देश में कोई अन्य फर्म इस नाम अथवा चिह्न का प्रयोग नहीं कर सकती।

यद्यपि ब्रांडिंग के कारण, पैकेजिंग, लेबल, कानूनी संरक्षण आदि की लागत के कारण, वस्तु की लागत में वृद्धि हो जाती है, फिर भी इसके विक्रेता एवं उपभोक्ता दोनों को अनेक लाभ हैं।

एक अच्छे ब्रांड नाम की विशेषताएँ

एक उचित ब्रांड के नाम का चयन करना सरल नहीं होता है। इस संबंध में निर्णय लेते समय महत्त्वपूर्ण बात ध्यान में रखनी चाहिए कि एक बार किसी ब्रांड नाम का चयन कर लिया जाता है एवं उत्पाद को इस नाम से

ब्रांड एवं ब्रांडिंग का बदलता परिवेश

ब्रांडिग, उपभोक्ता के लिए निगमित ब्रांड अस्तित्व का निर्माण करना एवं उपभोक्ता के मस्तिष्क में इस ब्रांड की छाप डालना है। इसके लिए ब्रांड की स्थिति बनाने एवं इसके प्रबंधन की आवश्यकता होती है।

किसी ब्रांड (उत्पाद, सेवा, कंपनी, व्यक्ति तकनीक आदि) का आज अपना अस्तित्व है, जो स्वामी अथवा बाज़ार को चाहिए तथा इसके लिए जो मूल्य वह चुकाना चाहता है, के बीच मूल्य विनिमय मापन का कार्य करता है। मुझे सदा ऐसा लगा है कि ब्रांड मूलतः निर्माण कंपनी अपने लिए क्या कहती है, से नहीं बल्कि कंपनी क्या करती है, से होता है।

- जेफ बोजोस

उत्पाद वह है, जिसको कारखाने में बनाया जाता है, जबकि ब्रांड वह है, जिसे ग्राहक खरीदता है। कोई प्रतियोगी किसी उत्पाद की नकल कर सकता है, जब कि ब्रांड अपने आप में विशिष्ट होता है। एक उत्पाद शीघ्र ही पुराना हो सकता है, जबकि एक सफल ब्रांड अमर होता है।

- स्टीफन किंग

आपके ब्रांड की शक्ति उसके प्रभुत्व में है। किसी एक बाज़ार पर 50 प्रतिशत अधिकार 5 बाजारों के 10 प्रतिशत की तुलना में कहीं श्रेष्ठ होता है।

- अल रीस

आपके ब्रांड की छवि मूलतः संवेदनशीलता का निर्माण है। लोगों की पसंद को बदलने में तर्क की तुलना में संवेदनशीलता अधिक शक्तिशाली होती है, लेकिन लोग पसंद करते हैं कि उनका चयन विवेकपूर्ण हो।

- ड्रेटन बर्ड

स्रोत- इफेक्टिव एक्जीक्यूटिव, 2006 से साभार

बाजार में उतार दिया जाता है, तो इसके पश्चात् इसको बदलना कठिन हो जाता है। इसीलिए प्रथम बार में ही सही ब्रांड का चयन करना आवश्यक है। ब्रांड के नाम का चयन करते समय जिन बातों को ध्यान में रखना चाहिए वह निम्नलिखित हैं-

(i) ब्रांड नाम संक्षिप्त होना चाहिए। इसका उच्चारण करना, बोलना, पहचान करना एवं याद करना, सरल होना चाहिए, जैसे- पौंड्स, वी.आई.पी., रिन, विम, आदि।

(ii) ब्रांड ऐसा हो कि इससे उत्पाद के लाभ एवं गुणों का पता लगे। यह उत्पाद के कार्यों के अनुरूप होना चाहिए, जैसे- रसिका, जेंटील, प्रोमिस, माई फेयरलेडी एवं बूस्ट आदि। (iii) ब्रांड नाम भिन्नता लिए होना चाहिए, जैसेलिरिल, स्प्रिरिट, सफारी, जोडियक आदि।

(iv) ब्रांड नाम ऐसा हो कि उसे पैकिंग, लेबलिंग की आवश्यकताओं, विज्ञापन के विभिन्न माध्यम एवं विभिन्न भाषाओं में अपनाया जा सके।

(v) ब्रांड का नाम पर्याप्त लोच वाला हो, जिससे कि उत्पाद शृंखला में जिन नए उत्पादों को जोड़ा जाए उनके लिए भी इसे उपयोग में लाया जा सके, जैसे- मैगी, कोलगेट।

(vi) इसका पंजीयन कराया जा सके तथा इसको कानूनी संरक्षण मिल सके।

(vii) चयन किया गया नाम टिकाऊ होना चाहिए अर्थात् यह सदाबहार होना चाहिए।

पैकेजिंग

हाल ही के वर्षों में सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन जिसने व्यावसायिक जगत को प्रभावित किया है वह पैकेजिंग के क्षेत्र में हुआ है। ऐसे अनेक उत्पाद हैं, जिनके संबंध में हम सोचते थे कि इनकी प्रवृति इस प्रकार की है कि इनकी सफल पैकेजिंग संभव नहीं है, लेकिन उनकी भी पैंकिग अब सफलतापूर्वक की जाती है, जैसे- दालें, घी, दूध, नमक, शीतल पेय आदि। पैकेजिंग का अर्थ है किसी उत्पाद के डिब्बे के आवरण को डिज़ाइन करना एवं उसका उत्पादन कार्य। पैकेजिंग की कई उत्पादों के सफल विपणन अथवा इसकी असफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, विशेषतः उपभोक्ता अस्थायी उत्पाद। सत्य यह है कि बीते वर्षों में कुछ सफल उत्पादों की सफलता के कारणों का विश्लेषण करें तो पता लगेगा कि इसमें पैकेजिंग की भी भूमिका है। उदाहरण के लिए मैगी नूडल, अंकल चिप्स एवं क्रैक्स वेफर्स जैसे पदार्थों की सफलता का यह एक महत्त्वपूर्ण कारण रहा है।

पैकेजिंग के स्तर

पैकेजिंग के तीन स्तर होते हैं। ये इस प्रकार हैं

1. प्राथमिक पैकेज- इसका अभिप्राय उत्पाद की सीधी पैकेजिंग से है। कुछ मामलों में प्राथमिक पैकेज में ही वस्तुओं को तब तक रखा जाता है, जब तक कि उपभोक्ता उनका उपभोग न करे (जैसे मोजों के लिए प्लास्टिक के पैकेट) जबकि कुछ मामलों में उत्पाद के समाप्त होने तक उसे इन्हीं में रखा जाता है, जैसेटूथपेस्ट की ट्यूब, माचिस की डब्बी आदि।

2. द्वितीयक पैकेजिंग- यह उत्पादकों सुरक्षित रखने के लिए एक अतिरिक्त परत होती है, जिसे उस समय तक रखा जाता है जब तक कि उत्पाद उपयोग प्रारंभ न हो जाए, जैसे- शेविंग क्रीम की ट्यूब साधारणतया गत्ते के बक्से में रखी होती है। जब उपभोक्ता शेविंग क्रीम को प्रयोग करना प्रारंभ करता है, तो वह बॉक्स को तो फेंक देता है लेकिन प्राथमिक ट्यूब को रखे रखता है।

3. परिवहन के लिए पैकेजिंग- इससे अभिप्राय उस पैकेजिंग से है जो संग्रहण, पहचान अथवा परिवहन के लिए आवश्यक है, उदाहरण के लिए एक टूथपेस्ट निर्माता वस्तुओं को फुटकर विक्रेता को 10 , 20 अथवा 30 की इकाई की तह लगाकर बक्सों में भेजता है।

पैकेजिंग का महत्त्व

वस्तु एवं सेवाओं के विपणन में पैकेजिंग का बड़ा महत्त्व रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं-

(i) स्वास्थ्य एवं स्वच्छता बनाए रखने का ऊँचा होता स्तर- देश में लोगों का जीवन स्तर ऊँचा होता जा रहा है, जिसके कारण अधिक से अधिक लोग अब पैक की हुई वस्तुएँ ही खरीदते हैं। इससे वस्तुओं में मिलावट की संभावना कम से कम रहती है।

(ii) स्वयं सेवा दुकानें- बड़े शहरों एवं कस्बों में स्वयं सेवा फुटकर दुकानें आजकल बहुत लोकप्रिय हो रही हैं। इसके कारण व्यक्तिगत विक्रय के माध्यम से बिक्री संवर्धन की पारंपरिक भूमिका अब पैकेजिंग निभा रही है।

(iii) नवीनता के अवसर- पैकेजिंग के क्षेत्र में हाल ही में हुए परिवर्तनों ने देश के विपणन परिदृश्य को पूरी तरह से बदल ही दिया है। अब ऐसी पैकेजिंग को विकसित कर लिया गया है, जिसमें दूध को बिना रेफ्रिजरेटर के भी 4-5 दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसी प्रकार से औषधि, पेय पदार्थ आदि के क्षेत्र में भी पैकेजिंग में काफी नवीनता आई है। परिणामस्वरूप ऐसे उत्पादों के विपणन की संभावनाओं में वृद्धि हुई है।

(iv) उत्पादों का विभेदीकरण- पैकेजिंग उत्पादों में अंतर करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। पैकेज का रंग, आकार, पदार्थ आदि के कारण ग्राहक उत्पाद की गुणवत्ता में अंतर को सही रूप में समझ पाता है। उदाहरण के लिए किसी उत्पाद के पैकेज, जैसे- रंग-रोगन, अथवा बालों का तेल को देखकर, इसमें रखे उत्पाद की गुणवत्ता का कुछ अंदाजा लगाया सकता है।

पैकेजिंग के कार्य

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है पैकेजिंग वस्तुओं के विपणन में कई कार्य करता है। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य इस प्रकार हैं-

(i) उत्पाद की पहचान करना— पैकेजिंग उत्पादों की पहचान करने में बहुत सहायता करता है। उदाहरण के लिए लाल रंग में कोलगेट या फिर पौंड्स क्रीम का जार आदि के पैकेज आसानी से पहचाने जाते हैं।

(ii) उत्पाद संरक्षण— पैकेजिंग वस्तु को नष्ट होने, रिसने, चोरी चले जाने, नुकसान पहुँचाने, जलवायु के प्रभाव से सुरक्षा प्रदान करता है। वस्तुओं के संग्रहण, वितरण एवं परिवहन के दौरान इस प्रकार की सुरक्षा की आवश्यकता होती है।

(iii) उत्पाद के उपयोग में सरल- पैकेज का आकार एवं स्वरूप उपयोग करने में सरल होना चाहिए। सौंदर्य प्रसाधन उत्पाद, दवाएँ तथा दंत मंजन की ट्यूब इसका उत्तम उदाहरण है।

(iv) उत्पाद प्रवर्तन- प्रवर्तन के उद्देश्य से भी पैकेजिंग का उपयोग किया जाता है। चकाचौंध करने वाली रंग योजना, फोटो या फिर छपी हुई फोटो का उपयोग क्रय के समय ध्यानाकर्षण के लिए किया जा सकता है। कभी-कभी यह विज्ञापन से अच्छा कार्य कर जाती है। स्वयं सेवी स्टोर में पैकेजिंग की यह भूमिका और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है।

लेबलिंग

वस्तुओं के विपणन में सरल सा दिखने वाला, लेकिन एक महत्तपूर्ण कार्य पैकेज पर लगाने के लिए लेबल के स्वरूप को तय करना है। लेबल उत्पाद पर एक सरल सी पर्ची लगाने (जैसे कि स्थानीय गैर ब्रांड उत्पाद चीनी, गेहूँ, दालें आदि) जो गुणवत्ता या मूल्य जैसी कुछ सूचनाएँ दिखाती हैं, से लेकर जटिल ग्राफिक्स जो ब्रांड उत्पादों के पैकेज पर होते हैं (शेव के पश्चात् के एक लोकप्रिय ब्रांड के पैकेज पर नाव एवं पतवार का चित्र या एक डिटर्जेंट पाउडर के लेबल पर उपभोक्ताओं के विचार जानने के लिए एक स्त्री द्वारा पेन को पेश करना) लेबल उत्पाद, जैसे- उत्पाद के घटक, उपयोग पद्धति आदि के संबंध में विस्तृत जानकारी देते हैं। लेबल के विभिन्न कार्य नीचे दिए गए हैं-

1. उत्पाद का विवरण एवं विषयवस्तु- आइए प्रतिदिन के उपयोग में आने वाले कुछ उत्पादों के लेबलों पर नजर डालें। एक स्थानीय चाय कंपनी के उत्पाद के लेबल पर लिखा है ‘मोहिनी चाय कंपनी, ISO 9001 :200C द्वारा प्रमाणित कंपनी; एक लोकप्रिय ब्रांड पाउडर किस प्रकार झुलसा देने वाली गर्मी से बचाव करता है एवं बैक्टीरिया तथा संक्रामक रोग नियंत्रित करता है। इसमें इस पाउडर को घाव या कटे हुए पर नहीं लगाने के लिए सावधान भी किया जाता है। तैयार खाद्य वस्तुओं के पैकेट जैसे तैयार डोसा, इडली, नूडल के पैकेटों पर इन उत्पादों को तैयार की विधि का भी वर्णन किया होता है। टूथपेस्ट के पैकेज पर दाँतों एवं मसूढ़ों की दस समस्याओं की सूची दी हुई होती है, उत्पाद के पूर्ण जीवाणु अवरोधक फार्मूला से इनसे लड़ने का दावा किया जाता है। नारियल तेल के एक ब्रांड के पैकेज पर घोषणा होती है कि यह शुद्ध नारियल का तेल है, जिसमें मेंहदी, आँवला एवं नींबू मिला है तथा बताता है कि यह किस प्रकार से बालों के लिए उपयोगी है। इस प्रकार से लेबल का एक महत्वपूर्ण कार्य उत्पाद इसकी उपयोगिता, उपयोग करने में सावधानियाँ तथा इसके घटकों का वर्णन होता है।

2. उत्पाद अथवा ब्रांड की पहचान कराना- लेबल का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य उत्पाद अथवा ब्रांड की पहचान कराना है। उदाहरण के लिए किसी उत्पाद का ब्रांड नाम उसके पैकेज पर छपा है, जैसे- बिस्कुट, पोटेटो चिप्स आदि। इससे अनेक पैकेजों में से अपने पसंद के ब्रांड की पहचान की जा सकती है। अन्य सामान्य समान सूचनाएँ जो लेबलों पर दी जाती हैं, वे हैं — निर्माता का नाम, पता, पैक करते समय वजन, उत्पादन तिथि अधिकतम फुटकर मूल्य एवं बैच संख्या आदि।

3. उत्पादों का श्रेणीकरण- एक और महत्वपूर्ण कार्य जो लेबल करते हैं वह उत्पाद को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत करना है। कभी-कभी विपणनकर्ता उत्पाद को विशिष्टताओं अथवा गुणवत्ता के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँट देते हैं। उदाहरण के लिए बालों के कंडीशनर का एक लोकप्रिय ब्रांड अलग-अलग प्रकार के बालों के लिए अलग-अलग प्रकार का है, जैसे’सामान्य बाल’ एवं अन्य वर्ग आदि। चाय की विभिन्न किस्मों के कुछ ब्रांड पीले, लाल एवं हो लेबल वर्गों में बाँटकर बेचे जाते हैं।

4. उत्पाद के प्रवर्तन में सहायता लेबल का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य है- सही रूप से अनुरूपित लेबल ध्यान आकर्षित करता है एवं इसके कारण भी लोग वस्तु का क्रय करते हैं। हम कई उत्पादों के लेबल पर बिक्री संवर्धन संदेश देखते हैं जैसे कि एक प्रसिद्ध आँवला वाले बालों के तेल के पैक पर लिखा होता है, “बालों में दम लाइफ में फन”। डिटर्जेंट पाउडर के एक ब्रांड के पैकेज पर लिखा होता है, “अपने कपड़ों को चमकदार और मशीन को ठीक रखें" कंपनियाँ जब विक्रय संवर्धन योजना प्रारंभ करती हैं, तो लेबल उसमें महत्व्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए एक शेविंग क्रीम के पैकेज के लेबल पर लिखा होता है,‘40 प्रतिशत अतिरिक्त मुफ्त’ या फिर एक ‘टूथपेस्ट के पैकेट पर लिखा होता है, इसके भीतर टूथत्रश बिल्कुल मुफ्त’ अथवा ’ 15 रु. बचाएँ’।

5. कानून सम्मत जानकारी देना— लेबलिंग का एक और महत्वपूर्ण कार्य कानूनी रूप से अनिवार्य सूचना देना है। जैसे सिगरेट अथवा पान मसाले के पैकेटों पर संवैधानिक चेतावनी, “सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।” इस प्रकार की से सूचना की आवश्यकता प्रक्रियाणीत खाद्य, नशीले पदार्थ एवं तंबाकू उत्पादों में देनी होती है। खतरनाक अथवा जहरीले पदार्थों में लेबल पर उचित सुर्षा संबंधी चेतावनी की आवश्यकता होती है।

इस प्रकार से लेबल संभावित क्रेताओं से संप्रेषण एवं उत्पादों की बिक्री संवर्धन के संबंध में कई महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं।

मूल्य निर्धारण

जब भी किसी उत्पाद को खरीदा जाता है तो इसके लिए कुछ राशि का भुगतान किया जाता है। यह राशि वह कुल मूल्य है, जो उपभोक्ता उत्पाद को प्राप्त करने अथवा उसका उपभोग करने के बदले में चुकाता है। इसे उत्पाद का मूल्य कहते हैं। इसी प्रकार से सेवाओं के बदले में जिस राशि का भुगतान किया जाता है, वह उन सेवाओं का मूल्य होता है, जैसे- परिवहन सेवा के बदले भाड़ा, बीमा पॉलिसी का प्रीमियम, बीमारी से संबंधित सलाह के बदले डॉक्टर की फीस आदि। मूल्य की परिभाषा इस प्रकार से दी जाती है, यह क्रेता द्वारा भुगतान की गई अथवा विक्रेता द्वारा प्राप्त की गई वह राशि है, जो वह उत्पाद अथवा सेवा के क्रय के बदले में देता है। किसी भी फर्म द्वारा वस्तु एवं सेवाओं के विपणन में निर्धारण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। किसी भी उत्पाद का बिक्री के लिए बिना मूल्य के अथवा मूल्य के संबंध में बिना किसी दिशा-निर्देश के बाज़ार अवतरण नहीं हो सकता। मूल्य निर्धारण कई बार उत्पाद की माँग के नियामक का कार्य करता है। सामान्यतः देखा गया है कि किसी उत्पाद की कीमत में वृद्धि से उसकी माँग घट जाती है और कीमत के घटने से माँग में वृद्धि हो जाती है।

मूल्य निर्धारण, प्रतियोगिता के लिए एक प्रभावी हथियार माना जाता है। पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में अधिकांश फर्म इसी तत्व के आधार पर एक-दूसरे से प्रतियोगिता कर लेती हैं, फर्म की आयगत प्राप्ति एवं लाभ को प्रभावित करने वाला यह एक मात्र महत्वपूर्ण तत्व होता है। अधिकांश विपणनकर्ता अपनी वस्तु एवं सेवाओं के मूल्य निश्चित करने को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं।

मूल्य अथवा कीमत निर्धारण के निर्धारक तत्व

ऐसे कई तत्व हैं, जो किसी उत्पाद के मूल्य के निर्धारण को प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण तत्वों का वर्णन नीचे किया गया है-

1. वस्तु की लागत— किसी वस्तु अथवा सेवा के मूल्य को प्रभावित करने वाले तत्वों में से एक महत्वपूर्ण तत्व इसकी लागत है। इस लागत में वस्तु के उत्पादन, वितरण एवं विक्रय की लागत सम्मिलित होती है। लागत वह न्यूनतम अथवा आधार मूल्य होता है, जिस पर वस्तु को बेचा जा सकता है। साधारणतया सभी विपणन इकाइयाँ अपनी पूरी लागत को कम-से-कम अवधि में अनिवार्य रूप से अवश्य वसूलना चाहती हैं। इसके अतिरिक्त वह लागत से ऊपर लाभ भी कमाना चाहती हैं। कुछ परिस्थितियों में जैसे नए उत्पाद को बाजार में लाने अथवा नए बाज़ार में वस्तु को बेचा जा सकता है, लेकिन ऐसे में कोई भी फर्म दीर्घ अवधि तक अस्तित्व में नहीं रह सकती, जब तक कि वह अपनी पूरी लागत को न वसूलती हो।

लागत तीन प्रकार की हो सकती है- स्थायी लागत, परिवर्तनशील लागत एवं अर्धपरिवर्तनशील

लागत। स्थायी लागत, वह लागत है, जो फर्म की क्रियाओं के स्तर, जैसे उत्पादन विक्रय की मात्रा के परिवर्तन के साथ नहीं बदलती। उदाहरण के लिए सप्ताह में चाहे 1,000 इकाइयों का उत्पादन हो अथवा 10 इकाइयों के भवन का किराया या विक्रय प्रबंधक का वेतन समान ही रहेगा।

जो लागत व्यवसाय की मात्रा के अनुपात में बढ़ती घटती है, उसे परिवर्तनशील लागत कहते हैं। उदाहरण के लिए कच्चे माल, श्रम एवं बिजली पर लागत का माल के उत्पादन की मात्रा से प्रत्यक्ष संबंध है। जैसे यदि एक कुर्सी के लिए 100 रु. की लकड़ी की आवश्यकता होती है तो 10 कुर्सियों के लिए 1,000 रुपए की आवश्यकता होगी। स्वभाविक है कि यदि कोई कुर्सी नहीं बनाई जा रही है तो लकड़ी पर शून्य खर्च किया जाएगा।

अर्धपरिवर्तनशील लागत वह लागत है, जो उत्पादन की मात्रा के साथ बढ़ती घटती तो है, लेकिन समान अनुपात में नहीं। उदाहरण के लिए माना एक विक्रयकर्ता द्वारा 10,000 रुपए स्थायी रूप से वेतन के दिए जाते हैं, जबकि कुल बिक्री पर अलग से 5 प्रतिशत कमीशन भी दिया जाता है। बिक्री की मात्रा के साथ कुल प्रतिफल तो बढ़ेगा, लेकिन बिक्री की मात्रा के अनुपात में नहीं।

एक निर्धारित व्यवसाय स्तर जैसे बिक्री की मात्रा अथवा उत्पादन की मात्रा पर स्थायी, अर्ध-स्थायी एवं परिवर्तनशील लागतों को मिलाकर कुल लागत बनती है।

2. उपयोगिता एवं माँग- क्रेता जो मूल्य देना चाहता है उसका निचला स्तर उत्पाद की लागत पर निर्भर करता है, जबकि उत्पाद की उपयोगिता एवं माँग की तीव्रता उसके ऊपर के स्तर का निर्धारण करेगी। वास्तव में मूल्य में लेन-देन के दोनों पक्ष क्रेता एवं विक्रेता के हित परिलक्षित होने चाहिए। क्रेता अधिक-से-अधिक उतना भुगतान करने को तैयार होगा जितनी कि कम से कम मूल्य के बदले में प्राप्त उत्पाद की उसके लिए उपयोगिता है। उधर विक्रेता कम से कम लागत की वसूली करना चाहेगा। माँग के नियम के अनुसार उपभोक्ता ऊँची कीमत की तुलना में कम मूल्य पर अधिक मात्रा में क्रय करते हैं।

किसी वस्तु का मूल्य उसकी माँग की लोच पर निर्भर करता है। माँग लोचपूर्णा मानी जाएगी यदि मूल्य में थोड़ा परिवर्तन होने पर भी माँग में भारी परिवर्तन आता है। संख्यात्मक रूप में मूल्य लोच इकाई से अधिक है। यदि माँग बेलोच है तो मूल्य में वृद्धि पर कुल प्राप्ति कम हो जाएगी। यदि माँग बेलोच है तो फर्म ऊँचा मूल्य निर्धारण करने की श्रेष्ठतर स्थिति में होती है।

3. बाज़ार में प्रतियोगिता की सीमा— न्यूनतम एवं अधिकतम मूल्य सीमा के बीच में मूल्य कहाँ निश्चित किया जाएगा? यह प्रतियोगिता की प्रकृति एवं उसकी तीव्रता पर निर्भर करेगा। यदि प्रतियोगिता कम है तो मूल्य ऊँचा होगा और यदि स्वतंत्र प्रतियोगिता है तो मूल्य कम होगा।

किसी उत्पाद का मूल्य तय करने से पहले प्रतियोगियों के मूल्य एवं उनकी संभावित प्रतिक्रिया को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। मूल्य निर्धारण से पहले प्रतियोगी उत्पादों का मूल्य ही नहीं बल्कि उनकी गुणवत्ता एवं अन्य लक्षणों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

4. सरकार एवं कानूनी नियम— मूल्य निर्धारण में अनुचित व्यवहार के विरुद्ध जन साधारण के हितों की रक्षा के लिए, सरकार हस्तक्षेप कर वस्तुओं के मूल्यों का नियमन कर सकती है। किसी भी उत्पाद को सरकार आवश्यक वस्तु घोषित कर उसके मूल्य का नियमन कर सकती है। उदाहरण के लिए किसी कंपनी द्वारा निर्मित दवा, जिस पर उसका एकाधिकार है, प्रति

दस इकाइयों के पत्ते की लागत 20 रुपया है और क्रेता उसका कुछ भी मूल्य चुकाने को तैयार है जैसे 200 रुपया। प्रतियोगी के न होने पर विक्रेता चाहेगा कि 200 रुपए का अधिकतम मूल्य वसूला जाए ऐसी स्थिति में साधारणतया सरकार इतना अधिक मूल्य वसूली की अनुमति नहीं देगी तथा वह दवा के मूल्य के नियमन के लिए हस्तक्षेप करेगी। सरकार इसके लिए दवा को अनिवार्य वस्तु घोषित कर मूल्य का नियमन करेगी।

5. मूल्य निर्धारण का उद्देश्य- किसी उत्पाद अथवा सेवा के मूल्य निर्धारण को प्रभावित करने में मूल्य निर्धारक उद्देश्य एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व होता है। साधारणतया माना जाता है कि इसके उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना है, लेकिन अल्प अवधि में लाभ कमाना और दीर्घ अवधि में लाभ कमाने में अंतर है। यदि फर्म फैसला लेती है कि अल्प अवधि में अधिक लाभ कमाया जाए तो यह अपने उत्पादों का अधिकतम मूल्य लेगी, लेकिन यह चाहती है कि दीर्घ अवधि में अधिकतम कुल लाभ प्राप्त किया जाए तो यह प्रति इकाई कम मूल्य रखेगी, जिससे कि यह बाज़ार के बड़े भाग पर कब्जा कर सके तथा बढ़ी हुई बिक्री द्वारा अधिक लाभ कमा सके।

अधिकतम लाभ कमाने के अतिरिक्त फर्म के द्वारा कीमत निर्धारण के अन्य उद्देश्य निम्न हो सकते हैं-

(क) बाजार में भागीदारी में अग्रणी— यदि किसी फर्म का उद्देश्य बाजार में बड़ी हिस्सेदारी प्राप्त करना है तो यह अपने उत्पादों के मूल्य को नीचे स्तर पर खखेगी, जिससे कि ग्राहकों की संख्या अधिक हो।

(ख) प्रतियोगी बाजार में टिके रहना— यदि फर्म घनी प्रतियोगिता के कारण अथवा प्रतियोगी द्वारा एक अच्छे परक के ले आने के कारण बाज़ार में टिके रहने में कठिनाई अनुभव कर रही है तो यह अपने उत्पादों पर छूट दे सकती है अथवा प्रर्वतन योजना चला सकती है जिससे कि अपने संगृहित माल को निकाल सके।

(ग) उत्पाद गुणवत्ता में अग्रिम स्थान पाना— इस स्थिति में साधारणतया उच्च गुणवत्ता एवं अनुसंधान एवं विकास पर किए गए उच्च व्यय को पूरा करने के लिए ऊँचे मूल्य पर माल बेचा जाता है।

इस प्रकार से हमने देखा कि फर्म की वस्तु एवं सेवा मूल्य उसके मूल्य निर्धारण उद्देश्यों से प्रभावित होता है।

6. विपणन की पद्धतियाँ— मूल्य निर्धारण प्रक्रिया पर विपणन के अन्य घटक, जैसे वितरण प्रणाली, विक्रयकर्ताओं की गुणवत्ता, विज्ञापन की गुणवत्ता एवं कितना विज्ञापन किया गया है, विक्रय संवर्धन के कार्य, पैकेजिंग किस प्रकार की है, उत्पाद की अन्य उत्पादों से भिन्नता, उधार की सुविधा एवं ग्राहक सेवा, का भी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए यदि कंपनी निःशुल्क घर पहुँचाने की सुविधा प्रदान करती है तो इसे मूल्य निर्धारण में कुछ छूट मिल जाती है, इसी प्रकार से उपर्युक्त तत्वों में किसी भी एक में विशिष्टता प्राप्त करने पर कंपनी को प्रतियोगिता को ध्यान में रखकर अपने उत्पदों की कीमत निश्चित करने में स्वतंत्रता मिल जाती है।

भौतिक वितरण

विपणन मिश्र का चौथा महत्त्वपूर्ण घटक वस्तु एवं सेवा का वितरण है। वस्तुओं के उत्पाद पैकेज किए जाने, ब्रांड किए जाने, मूल्य निर्धारण एवं प्रवर्तन के पश्चात् इनको सही स्थान पर, सही मात्रा में एवं सही समय पर ग्राहक को उपल॰्ध कराना आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए माना डिटर्जेंट टिकिया का एक ग्राहक उसकी गुणवत्ता से संतुष्ट है तथा वह इसे खरीदना चाहता है। वह एक फुटकर विक्रेता के पास जाता है तथा इस उत्पाद को माँगता है। यदि यह उत्पाद उपलब्ध नहीं है तो वह इसके स्थान पर कोई दससरा ब्रांड खरीदेगा। इससे माल की बिक्री कम होगी, क्योंकि वस्तुएँ उस स्थान पर उपलब्ध नहीं थीं जिस स्थान पर ग्राहक उसे खरीदना चाहता था। इसलिए यह विपणन कर्ताओं का दायित्व है कि वस्तुओं को उस स्थान पर उपलब्ध कराया जाए, जहाँ ग्राहक उन्हें खरीदना चाहता है। वस्तुओं को उनके उत्पादन के स्थल से वितरण स्थल तक पहुँचाना भौतिक वितरण कहलाता है जो कि विपणन मिश्र का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है।

भौतिक वितरण में वे सभी क्रियाएँ आती हैं, जो वस्तुओं को निर्माता से ले जाकर ग्राहक तक पहुँचाने के लिए आवश्यक हैं। भौतिक वितरण में सम्मिलित महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ— परिवहन, भंडारण, माल का रख-रखाव एवं स्कंध नियंत्रण हैं। ये क्रियाएँ भौतिक वितरण के प्रमुख घटक हैं।

भौतिक वितरण के घटक

वस्तुओं के भौतिक रूप से वितरण के प्रमुख घटकों को नीचे समझाया गया है-

1. आदेश का प्रक्रियण— क्रेता-विक्रेता संबंधों में आदेश देना पहला चरण है। उत्पाद का प्रवाह वितरण के विभिन्न माध्यमों से ग्राहक की ओर होता है, जबकि आदेश इसके विपरीत दिशा में अर्थात् ग्राहक से निर्माता की ओर चलता है। एक अच्छी वितरण प्रणाली वह है, जिसमें आदेश की पूर्ति सटीक एवं शीघ्र होती है। ऐसा न होने पर वस्तुएँ ग्राहक के पास देर से पहुँचेंगी या फिर गलत मात्रा में वर्णन के अनुसार नहीं होंगी। इससे ग्राहक असंतुष्ट होगा, जिससे व्यवसाय को हानि होगी तथा ख्याति की क्षति होगी।

2. परिवहन- परिवहन वस्तु एवं कच्चेमाल को उत्पादन बिंदु से बिक्री तक ले जाने का माध्यम है। यह वस्तुओं के भौतिक वितरण के प्रमुख तत्त्वों में से एक है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि वस्तुओं के भौतिक रूप से उपलब्ध कराए बिना बिक्री कार्य संपूर्ण नहीं हो सकता।

3. भंडारण— भंडारण वस्तुओं को संग्रहण एवं वर्गों में विभक्त करने का कार्य है, जिससे समय उपयोगिता का सृजन होता है। भंडारण का मुख्य उद्देश्य वस्तुओं को उचित स्थान पर रखना एवं उनके संग्रहण की व्यवस्था करना है, क्योंकि वस्तु के उत्पादन के समय और उसके उपभोग के समय में अंतर हो सकता है। इसलिए

भंडारण की आवश्यकता होती है। अपने ग्राहकों की सेवा के संबंध में किसी फर्म की कार्य कुशलता इस पर निर्भर करती है कि भंडारगृह कहाँ स्थित हैं तथा वस्तुओं की सुपुर्दगी किस स्थान पर करनी है।

साधारणतया किसी फर्म के जितने अधिक भंडारगॄह होंगे ग्राहकों के पास विभिन्न स्थानों पर माल पहुँचाने में उतना ही कम समय लगेगा, लेकिन भंडारण की उतनी ही लागत बढ़ जाएगी और भंडारगृह यदि कम संख्या में होंगे तो इसके विपरीत होगा। अतः व्यावसायिक इकाई को भंडारण की लागत तथा ग्राहक की सेवा स्तर में संतुलन रखना होगा।

जिन उत्पादों को लंबी अवधि के लिए संग्रहण की आवश्यकता है जैसे कृषि उत्पाद, उनके लिए भंडारगृह उत्पादन इकाई के समीप ही स्थित होते हैं। इससे वस्तुओं के परिवहन की लागत कम आती है। दूसरी ओर जो उत्पाद भारी होते हैं तथा जिन्हें ढोना कठिन होता है, जैसे- मशीनें, मोटर वाहन तथा शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुएँ जैसे बेकरी का सामान, मांस, सब्जियों, को बाजार के समीप के केंद्रों पर रखा जाता है।

4. संगृहीत माल पर नियंत्रण— भंडारण संबंधित निर्णय से स्टॉक में रखे माल के संबंध में निर्णय जुड़ा है, जो कई निर्माताओं की सफलता की कुंजी है, विशेषतः उन मामलों में जिनमें प्रति इकाई लागत बहुत ऊँची है। स्टॉक में रखे माल के संबंध में महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना है कि इसका स्तर क्या हो। जितनी अधिक मात्रा स्टॉक में रखे माल की होगी उतनी ही अच्छी ग्राहक की सेवा कर पायेंगे, लेकिन माल को स्टॉक में रखने की लागत एवं ग्राहक सेवा में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।

प्रवर्तन

एक कंपनी अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तु का उत्पादन कर सकती है, इसकी उचित कीमत निर्धारित कर सकती है, इन्हें ऐसे बिक्री केंद्रों पर उपलब्ध करा सकती है, जो ग्राहकों के लिए सुगम हो, लेकिन इस पर भी हो सकता है कि बाजार में माल की बिक्री अच्छी न हो। ऐसे में बाजार से उचित संवाद की आवश्यकता होती है। यदि उचित संवाद नहीं है तो ग्राहक को उत्पाद के संबंध में या फिर यह किस प्रकार से उसकी आवश्यकताओं की संतुष्टि करेगा इसका ज्ञान नहीं होगा। वह इसकी उपयोगिता अथवा लाभों के संबंध में भी संतुष्ट नहीं होगा।

ग्राहकों से संवाद के साथ-साथ प्रवर्तन के दो उद्देश्य होता है। ग्राहकों को वस्तु के संबंध में सूचित करना तथा उन्हें इसको खरीदने के लिए तैयार करना प्रवर्तन कहलाता है। दूसरे शब्दों में प्रवर्तन विपणन मिश्र का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है, जिसके माध्यम से विपणनकर्ता बाज़ार में वस्तु एवं सेवाओं के विनिमय को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करते हैं।

प्रवर्तन मिश्र

प्रवर्तन मिश्र से अभिप्राय संगठन द्वारा अपने संत्रेषण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सभी प्रवर्तन तकनीकों को मिला कर प्रयोग करना है। विपणनकर्ता अपनी फर्म के उत्पादों के संबंध में ग्राहकों को सूचित करने एवं खरीदने के लिए तैयार करने के लिए संत्रेषण की विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करता है। ये तकनीकें हैं(i) विज्ञापन (ii) वैयक्तिक विक्रय (iii) विक्रय संवर्धन एवं (iv) प्रचार। इन तकनीकों को प्रवर्तन मिश्र के तत्व भी कहा जाता है तथा प्रवर्तन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इनके विभिन्न मिश्रणों का उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए जो इकाइयाँ उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन कर रही हैं वह विज्ञापन का अधिक प्रयोग कर सकती हैं, जबकि जो फर्म औद्योगिक वस्तुओं का विक्रय कर रही हैं वह व्यक्तिगत विक्रय का अधिक प्रयोग कर सकती हैं। फर्म इन तत्वों को

किस प्रकार से समावेश कर उपयोग करेगी यह अनेक तत्वों पर निर्भर करेगा, जैसे- बाज़ार की प्रकृति, वस्तु की प्रकृति, प्रवर्तन का बजट, प्रवर्तन के उद्देश्य आदि। आइए, पहले इन तत्वों के संबंध में विस्तार से जानें।

विज्ञापन

हम प्रतिदिन सैंकड़ों विज्ञापन संदेश देखते हैं जो हमें अनेक उत्पादों, जैसे- नहाने का साबुन, डिटर्जेंट पाउडर, शीतल पेय एवं सेवाओं जैसे होटल, बीमा पालिसियाँ आदि के संबंध में बताते हैं।

शायद विज्ञापन प्रवर्तन के लिए सबसे सामान्य रूप से उपयोग में आने वाली तकनीक है। यह अवैयक्तिक संप्रेषण होता है, जिसका भुगतान विपणनकर्ता (प्रायोजक) कुछ वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवर्तन के लिए करते हैं। विज्ञापन के सर्वसाधारण माध्यम समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, टेलीविजन एवं रेडियो हैं।

विज्ञापन की महत्त्पर्णर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) भुगतान स्वरूप— विज्ञापन संत्रेषण का वह स्वरूप है, जिसमें उसके लिए भुगतान किया जाता है। अर्थात् विज्ञापनकर्ता जनता के साथ संप्रेषण की लागत को वहन करता है।

(ii) अवैयक्तिक- व्यक्तियों एवं विज्ञापनकर्त्रा प्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे के संर्पक में नहीं आते हैं। इसीलिए इसे प्रवर्तन की अवैयक्तिक पद्धति कहते हैं। विज्ञापन स्वयं से बात-चीत पैदा करता है न कि संवाद।

(iii) चिन्न विज्ञापनदाता- विज्ञापन निश्चित व्यक्ति अथवा कंपनियाँ करती हैं, जो विज्ञापन में श्रम करती हैं तथा इसकी लागत को भी वहन करती हैं।

विज्ञापन के लाभ

विज्ञापन संत्रेषण का माध्यम है। इसके लाभ निम्नलिखित हैं-

(i) बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचना— विज्ञापन एक ऐसा माध्यम है, जिसके माध्यम से बड़ी संख्या में दूर्दूर तक फैले लोगों तक पहुँचा जा सकता है। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय दैनिक में दिया गया विज्ञापन इसके लाखों पाठकों तक पहुँचता है।

(ii) ग्राहक संतुष्टि एवं विश्वास में वृद्धि— विज्ञापन संभावित क्रेताओं में विश्वास पैदा करता है, क्योंकि इससे वे अधिक सहजता का अनुभव करते हैं। यह उत्पाद की गुणवत्ता को सुनिश्चित करता है, इसलिए अधिक संतोष का अनुभव करते हैं।

(iii) स्पष्टता— कला, कंप्यूटर डिजाइन एवं ग्राफिक्स में विकास के साथ विज्ञापन संर्रेषण का सशक्त माध्यम में विकसित हो चुका है। विशेष प्रभावोत्पादन के कारण सरल उत्पाद एवं संदेश भी बहुत आकर्षक लगने लगते हैं।

(iv) मितव्ययता- विज्ञापन बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचने के लिए कम खर्चीला संर्रेषण का साधन है। व्यापकता के कारण विज्ञापन का कुल

खर्च संत्रेषण द्वारा बनाए संबंधों में बड़े संबंधों में बाँट दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप प्रति लक्षित इकाई लागत कम हो जाती है।

विज्ञापन की आलोचना

पिछले अनुभागों में आपने विज्ञापन के गुण एवं सीमाओं को देखा। यद्यपि विज्ञापन वस्तु एवं सेवाओं के प्रवर्तन का बार-बार उपयोग में लाए जाने वाले माध्यमों में से एक है इसकी काफी आलोचना भी की गई है। विज्ञापन के विरोधियों का कहना है कि विज्ञापन पर किया गया व्यय एक सामाजिक अपव्यय है, क्योंकि इससे लागत में वृद्धि होती है, लोगों की आवश्यकताओं में वृद्धि होती है तथा इससे सामाजिक मूल्यों में गिरावट आती है, लेकिन विज्ञापन के समर्थकों का तर्क है कि विज्ञापन बहुत उपयोगी है, क्योंकि इससे अधिक लोगों तक पहुँचा जा सकता है प्रति इकाई उत्पादन लागत को कम करता है तथा अर्थन्यवस्था के विकास में सहायक होता है। इसीलिए यह आवश्यक है कि विज्ञापन के प्रमुख आलोचना बिंदुओं की जाँच की जाए तथा देखा जाए कि इनमें कितनी सत्यता है। यह आलोचना बिंदु निम्नलिखित हैं-

1. लागत में वृद्धि— विज्ञापन के विरोधियों का तर्क है कि विज्ञापन के कारण उत्पादन की लागत में अनावश्यक रूप से वृद्धि होती है जो अंततोगत्वा बढ़े हुए मूल्य के रूप में क्रेता को ही वहन करनी होती है। उदाहरण के लिए टेलीविजन पर कुछ सेकंड के विज्ञापन पर विपणनकर्ता को लाखों रुपए की लागत आती है। इसी प्रकार से छपाई के माध्यम अर्थात् समाचार पत्र, पत्रिका में विज्ञापन पर भी विपणनकर्ता को भारी व्यय करना होता है। जो इस पर धन व्यय किया जाता है, उससे लागत में वृद्धि होती है, जो उत्पाद की कीमत निर्धारण में एक महत्वपूर्ण तत्व होता है।

यह ठीक है कि किसी वस्तु के विज्ञापन पर काफी लागत आती है, लेकिन इसके कारण बड़ी संख्या में संभावित क्रेताओं को उत्पाद की उपलब्धता इसकी विशेषताओं आदि संबंध में पता लगता है तथा इसे खरीदने के लिए वे प्रेरित होते हैं, इससे उत्पाद की माँग में वृद्धि होती है। माँग के बढ़ने से उत्पादन में वृद्धि होती है, जिससे बड़े पैमाने के उत्पादन के लाभ मिलते हैं। परिणामस्वरूप प्रति इकाई उत्पादन लागत कम हो जाती है, क्योंकि कुल लागत को इकाइयों की बड़ी संख्या में बाँट दिया जाता है। इस प्रकार से विज्ञापन पर किए गए खर्च से कुल लागत में वृद्धि होती है, लेकिन प्रति इकाई लागत कम हो जाती है, इससे उपभोक्ताओं पर भार कम हो जाता है बढ़ता नहीं है।

2. सामाजिक मूल्यों में कमी— विज्ञापन की एक और आलोचना है कि इससे सामाजिक मूल्यों की अवहेलना होती है तथा भौतिकवाद को बढ़ावा मिलता है, इससे लोगों में असंतोष पैदा होता है, क्योंकि लोगों को नए-नए उत्पादों के संबंध में ज्ञान होता है तब वह अपनी वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट हो जाते हैं। कुछ विज्ञापन नई जीवन शैली दर्शाते हैं, जिनको सामाजिक मान्यता नहीं मिलती|

यह आलोचना भी पूरी तरह से सत्य नहीं है। विज्ञापन लोगों को नए उत्पादों के संबंध में सूचना देकर उनकी सहायता करता है। हो सकता है कि यह उत्पाद पूर्व के उत्पादों से श्रेष्ठतर है। यदि क्रेता को इन उत्पादों के संबंध में कोई जानकारी नहीं है तो हो सकता है कि वह अकुशल उत्पादों का प्रयोग कर रहे हैं। वैसे भी विज्ञापन का कार्य सूचना देना है। वस्तु को खरीदना है अथवा नहीं इसका अंतिम निर्णय तो क्रेता को ही करना है। यदि विज्ञापित उत्पाद उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तो वह उसे खरीदेंगे। इस उत्पाद को खरीदने के लिए और अधिक परिश्रम के लिए अभिप्रेरित होंगे।

3. क्रेताओं में असमंजस— विज्ञापन में एक और दोष बताया जाता है कि इतने अधिक उत्पादों का विज्ञापन होता है और सभी समान दावा करते हैं, जिससे क्रेता असमंजस में पड़ जाता है कि इनमें से कौन सत्य है तथा किस पर विश्वास किया जाए। उदाहरण के लिए डिटर्जेंट पाउडर के जितने भी प्रतियोगी ब्रांड हैं वह सभी सफेदी अथवा दाग को मिटा देने का दावा करते हैं अथवा टूथपेस्ट के विभिन्न ब्रांड दांतों को सफेदी अथवा ताजगी का अहसास का दावा करते हैं। इससे असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है कि किसको खरीदा जाए।

विज्ञापन के समर्थकों का तर्क है कि हम सभी विवेकशील हैं तथा किसी भी उत्पाद को क्रय करते समय मूल्य, बनावट, आकार आदि तत्वों को ध्यान में रखते हैं। अतः क्रेता किसी उत्पाद का क्रय करने से पहले विज्ञापन में दी गई सूचना एवं दूसरे स्रोतों से प्राप्त सूचना का विश्लेषण कर अपनी शंका को दूर कर सकते हैं, वैसे इस दोष को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता।

4. घटिया उत्पादों की बिक्री को प्रोत्साहन- विज्ञापन श्रेष्ठ एवं घटिया वस्तुओं में अंतर नहीं करता है तथा लोगों को घटिया वस्तुओं को खरीदने के लिए प्रेरित करता है।

वास्तव में श्रेष्ठता एवं घटियापन गुणवत्ता पर निर्भर करती है, जो कि एक तुलनात्मक अवधारणा है। इच्छित गुणवत्ता का स्तर लक्षित ग्राहकों को आर्थिक स्थिति एवं पसंद पर निर्भर करता है। विज्ञापन दी गई गुणवत्ता वाली वस्तुओं की बिक्री करता है और ग्राहक इसे तभी खरीदता है यदि यह उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। कोई भी विज्ञापन उत्पाद की गुणवत्ता का झुठा वादा नहीं कर सकता। यदि फर्म झुठा दावा करती है तो उस पर मुकदमा किया जा सकता है।

वैयक्तिक विक्रय

वैयक्तिक विक्रय में बिक्री के उद्देश्य से एक या एक से अधिक संभावित ग्राहकों से बात-चीत के रूप में संदेश का मौखिक प्रस्तुतिकरण समाहित है। यह संर्रेषण का वैयक्तिक स्वरूप है, कंपनियाँ बिक्री के उद्देश्य से संभावित ग्राहकों से संपर्क के लिए, उत्पाद के संबंध में जागरककता पैदा करने के लिए तथा उत्पाद की पसंद विकसित करने के लिए विक्रयकर्ताओं की नियुक्ति करती हैं।

वैयक्तिक विक्रय की विशेषताएँ

(i) व्यक्तिगत स्वरूप- वैयक्तिक विक्रय में आमने-सामने बात-चीत होती है इससे विक्रेता एवं क्रेता के बीच पारस्परिक संबंध बनते हैं।

(ii) संबंधों का विकास- वैयक्तिक विक्रय में विक्रयकर्ता संभावित ग्राहक से व्यक्तिगत संबंध बनाता है जो बिक्री में सहायक होता है।

वैयक्तिक विक्रय

“अधिकांश लोग सोचते हैं कि विक्रय एवं बात करना एक ही होते हैं, लेकिन सर्वाधिक प्रभावी विक्रयकर्ता जानते हैं कि सुनना उनके कार्य का सबसे महत्वपूर्ण भाग है" - रॉय बारटेल

“यदि आप दीर्घ अवधि के लिए सफल उद्यम का निर्माण करना चाहते हैं तो आप बिक्री को बंद बल्कि संबंधों की शुुआत करें।” - पैर्रीशिया फ्रिप

वैयक्तिक विक्रय के लाभ

(i) लोचपूर्णता— वैयक्तिक विक्रय में बड़ी सीमा तक लोच होती है। विक्रय का प्रस्तुतीकरण एक-एक ग्राहक की आवश्यकता अनुसार समायोजित किया जा सकता है।

(ii) प्रत्यक्ष प्रत्युत्तर— वैयक्तिक विक्रय में सीधा संवाद होता है, इससे ग्राहक से सीधे ही प्रत्युत्तर प्राप्त कर सकते हैं तथा ग्राहकों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया जा सकता है।

(iii) न्यूनतम अपव्यय- ग्राहक से संपर्क करने से पहले कंपनी निर्णय ले लेती है। किन ग्राहकों पर ध्यान देना है, इससे श्रम के व्यर्थ जाने को न्यूनतम किया जा सकता है।

वैयक्तिक विक्रय की भमिका

वस्तुओं एवं सेवाओं के विपणन में वैयक्तिक विक्रय की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वैयक्तिक विक्रय के व्यवसायी, ग्राहक एवं समाज के लिए महत्त्व का इस प्रकार से वर्णन किया जा सकता है-

व्यवसायी को लाभ

किसी भी फर्म के उत्पादों की माँग पैदा करने एवं उनकी बिक्री बढ़ाने का वैयक्तिक विक्रय एक सशक्त माध्यम है। व्यवसायी के लिए वैयक्तिक विक्रय के महत्त्व का वर्णन निम्नांकित है-

(i) संवर्धन की प्रभावी पद्धति— यह संवर्धन की बहुत प्रभावी तकनीक है। यह संभावित ग्राहकों को उत्पाद के गुण बताकर प्रभावित करता है, जिससे बिक्री बढ़ती है।

(ii) लोचपूर्ण तकनीक- प्रवर्तन की अन्य तकनीकों, जैसे- विज्ञापन, विक्रय संवर्धन की तुलना में वैयक्तिक विक्रय अधिक लोचपूर्ण है। इसके कारण व्यवसायी क्रय की अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग तरह के प्रस्ताव रख सकता है।

(iii) श्रम का न्यूनतम अपव्यय— वैयक्तिक विक्रय में बिक्री प्रवर्तन की अन्य तकनीकों की तुलना में श्रम के व्यर्थ जाने की संभावना न्यूनतम होती है। इससे व्यवसायी की बिक्री के प्रयत्नों में मितव्ययिता आती है।

(iv) ग्राहक को प्रेरित करना- वैयक्तिक विक्रय ग्राहकों को नए उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित करता है, इससे वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति और अच्छे ढंग से कर सकते हैं तथा अपने जीवन स्तर को और ऊँचा उठा सकते हैं।

(v) स्थाई संबंध— वैयक्तिक विक्रय, विक्रयकर्ता एवं ग्राहक के बीच स्थायी संबंध विकसित करने में सहायक होता है, जो व्यवसाय के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

(vi) व्यक्तिगत ताल-मेल- ग्राहकों से व्यक्तिगत तालमेल बैठने से व्यवसाय की प्रतियोगी शक्ति में वृद्धि होती है।

(vii) परिचय के समय भूमिका- नए उत्पाद को परिचित करते समय वैयक्तिक विक्रय की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि यह ग्राहकों को उत्पादक के गुणों से परिचित कराती है।

(viii) ग्राहकों से संबंध— विक्रयकर्त्ता तीन अलग-अलग भूमिका निभाते हैं- प्रेरित करना, सूचना प्रदान करना तथा व्यावसायिक इकाई को ग्राहकों से जोड़ना।

ग्राहकों के लिए महत्त्व

वैयक्तिक विक्रय की भूमिका अशिक्षित एवं ग्रामीण क्षेत्र के लिए और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इनके पास उत्पादों के संबंध में सूचना पाने का अन्य कोई माध्यम नहीं होता है-

वैयक्तिक विक्रय का ग्राहकों को निम्न लाभ है-

(i) आवश्यकताओं की पहचान में सहायक- वैयक्तिक विक्रय ग्राहकों को उनकी आवश्यकताओं की पहचान करने एवं इनकी किस प्रकार से सर्वोत्तम ढंग से संतुष्टि की जा सकती है, इसका ज्ञान प्रदान करने में सहायता प्रदान करता है।

(ii) बाजार के संबंध में नवीनतम जानकारी— ग्राहकों को मूल्यों में परिवर्तन, उत्पादों की उपलब्धता एवं कमी एवं नए उत्पादों के संबंध में नवीनतम जानकारी प्राप्त होती है, जिसके कारण क्रय के संबंध में वह अधिक उचित निर्णय ले सकते हैं।

(iii) विशिष्ट सलाह- ग्राहकों को विभिन्न वस्तु एवं सेवाओं के संबंध विशेषज्ञों की सलाह एवं दिशा निर्देश प्राप्त होता है, जिससे वह और अच्छा क्रय कर सकते हैं।

(iv) ग्राहकों को प्रेरित करना- वैयक्तिक विक्रय ऐसे नए उत्पादों के क्रय के लिए प्रेरित करता है जो उनकी आवश्यकताओं को और अच्छे ढंग से पूरा कर सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनके जीवन स्तर में और अधिक सुधार होता है।

समाज के लिए महत्त्व

वैयक्तिक विक्रय समाज के आर्थिक विकास में बहुत उत्पादक भूमिका निभाता है। वैयक्तिक विक्रय से समाज को कुछ विशिष्ट लाभ इस प्रकार हैं-

(i) संभावित माँग में परिवर्तन— वैयक्तिक विक्रय दबी हुई माँग को मूर्तरूप प्रदान करता है। इस चक्र के कारण ही समाज की आर्थिक क्रियाओं का पोषण होता है, जिससे अधिक रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, आय में वृद्धि होती है, और अधिक वस्तु एवं सेवाओं का उत्पादन होता है। इस रूप में वैयक्तिक विक्रय आर्थिक विकास पर प्रभाव डालता है।

(ii) रोजगार के अवसर- वैयक्तिक विक्रय बेरोजगार नवयुवकों को अधिक आय एवं रोजगार के अवसर प्रदान करता है।

(iii) जीवनवृत्ति के अवसर- वैयक्तिक विक्रय नौजवान एवं महिलाओं के लिए आकर्षक जीवन-वृत्ति का क्षेत्र है, जिसमें यह उन्नति के अवसर, कार्य संतुष्टि, सुरक्षा, सम्मान, विभिन्नता, रुचि एवं स्वतंत्रता के अवसर प्रदान करता है।

(iv) विक्रयकर्ताओं का स्थानांतरण- विक्रयकर्ताओं में स्थान परिवर्तन बहुत अधिक होता है जिससे देश में यात्रा एवं पर्यटन को बढ़ावा मिलता है।

(v) उत्पाद का मानकीकरण- वैयक्तिक विक्रय विभिन्नता लिए हुए समाज में उत्पाद के मानकीकरण एवं उपभोग में एकरूपता में वृद्धि करता है।

विक्रय संवर्धन

विक्रय संवर्धन से तात्पर्य लघु अवधि प्रेरणाओं से है, जो क्रेताओं को वस्तु अथवा सेवाओं के तुरंत क्रय करने के लिए होती हैं। इनमें विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय एवं प्रचार को छोड़कर कंपनी द्वारा अपनी बिक्री बढ़ाने की अन्य सभी प्रवर्तन तकनीक सम्मिलित होती हैं। विक्रय संवर्धन क्रियाओं में नकद छूट, बिक्री प्रतियोगिताएँ, मुफ्त तोहफे एवं मुफ्त नमूनों का वितरण आदि। विक्रय संवर्धन अन्य प्रवर्तन के प्रयत्न जैसे- विज्ञापन, व्यक्तिक विक्रय पूरक के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।

कंपनियाँ विशेष रूप से तैयार विक्रय प्रवर्तन तकनीक का उपयोग ग्राहकों के लिए (जैसे - मुफ्त नमूने, छूट एवं प्रतियोगिताएँ), व्यापारी अथवा मध्यस्थ (जैसे सहकारी विज्ञापन, व्यापारिक छूट व्यापारी अभिप्रेरणा एवं प्रतियोगिताएँ) एवं विक्रयकर्ता के लिए (जैसे बोनस, विक्रयकर्ता प्रतियोगिताएँ, विशेष छूट) करते हैं। विक्रय प्रवर्तन में केवल वही क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जो फर्म की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए कम अवधि के प्रोत्साहन के लिए की जाती हैं।

विक्रय संवर्धन के लाभ

(i) ध्यानाकर्षण मूल्य— विक्रय संवर्धन क्रियाएँ प्रोत्साहन कार्यक्रमों का उपयोग कर लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं।

(ii) नए उत्पाद के अवतरण में उपयोगी— जब भी किसी उत्पाद को बाज़ार में लाया जाता है, तब विक्रय संवर्धन यंत्र बहुत प्रभावी हो सकते हैं। यह लोगों को अपने नियमित खरीद से हटाकर नए उत्पाद का उपयोग करने के लिए प्रेरित करती है।

(iii) सभी प्रवर्तन विधियों में ताल-मेल- विक्रय प्रवर्तन क्रियाओं को इस प्रकार संवारा जाता है कि यह फर्म के व्यक्तिक विक्रय एवं विज्ञापन कार्यों के पूरक का कार्य करें तथा फर्म के कुल मिलाकर प्रवर्तन कार्यों को प्रभावोत्पादकता में वृद्धि करें।

विक्रय संवर्धन की सीमाएँ

(i) संकट का सूचक- यदि फर्म बार-बार विक्रय संवर्धन का सहारा लेती है तो ऐसा प्रतीत होगा कि या तो फर्म अपनी बिक्री का प्रबंधन भली-भाँति नहीं कर पा रही है या फिर इसके उत्पादों को कोई खरीदना ही नहीं चाहता है।

(ii) उत्पाद की छवि को बिगाड़ना- विक्रय संउर्धन तकनीकों का प्रयोग उत्पाद की छवि को प्रभावित करता है। क्रेताओं को ऐसा लगने लगता है कि शायद उत्पाद अच्छी गुणवत्ता वाला नहीं है अथवा इसका मूल्य उचित नहीं है।

विक्रय संवर्धन की सामान्य रूप से प्रयोग में आने वाली क्रियाएँ

1. छूट- यह उत्पादों के अतिरिक्त माल को निकालने के लिए, विशेष मूल्य पर बेचती है। उदाहरण एक कार निर्माता द्वारा एक विशेष ब्रांड की कार को एक सीमित अवधि के लिए 10,000 रुपए की छूट पर बेचने का प्रस्ताव।

2. कटौती— यह उत्पाद को सूची में दिए गए मूल्य से कम मूल्य पर बेचता है। उदाहरण— एक जूता बनाने वाली कंपनी द्वारा 50 प्रतिशत तक की छूट अथवा एक कमीज निर्माता द्वारा ‘ $50+40$ प्रतिशत की छूट’।

3. वापसी— मूल्य के कुछ भाग को क्रेता को क्रय के प्रमाण प्रस्तुत करने पर लौटाना। जैसे खाली फॉइल्स अथवा पैपर। यह विधि साधारण तथा खाद्य पदार्थ उत्पादन कंपनियों द्वारा अपनी बिक्री को बढ़ाने के लिए अपनाई जाती है।

4. उत्पादों का मिश्रण— किसी एक उत्पाद के क्रय करने पर दूसरे उत्पाद को उपहार स्वरूप देना जैसे $1 / 2$ किलोग्राम चावल के पैकेट का एक बोरी आटा (गेहूँ का आटा) के क्रय करने पर देना। अथवा 1 के. बी. मैमोरी कार्ड डिग्री कैम के साथ मुफ्त प्राप्त करें अथवा $25+$ एक टी.वी. खरीदें और एक वैक्यूम क्लीनर मुफ्त प्राप्त करें अथवा 1 किलोग्राम डिटरेंट के साथ 100 ग्राम सॉस की बोतल मुफ्त।

5. अतिरिक्त मात्रा उपहार स्वरूप — उत्पाद की अतिरिक्त मात्रा उपहार में देना यह सामान्यतः सौंर्य प्रसाधन निर्माता उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए एक शेविंग क्रीम पर 40 प्रतिशत अतिरिक्त देना अथवा किसी होटल द्वारा " 2 रात तीन दिन का पैकेज लेने पर 500 रुपए भुगतान कर एक और रात रुकने का प्रस्ताव" अथवा एक कमीज निर्माता द्वारा “दो खरीदें एक मुफ्त प्राप्त करें।"

6. तुरंत ड्रा एवं घोषित उपहार- उदाहरण के लिए टी.वी. खरीदने पर कार्ड खुरचें अथवा ‘पटाखा छोड़े’’ तथा उसी समय रेफ्रिजरेटर, टी शर्ट, कंप्यूटर जीतें।

7. लकी ड्रा अथवा किस्मत आजमाएँ- उदाहरण के लिए लक्की ड्रा कूपन पर एक नहाने का साबुन खरीदने पर सोने का सिक्का जीतें। एक पेट्रोल पंप विशेष से एक निर्धारित मात्रा में पेट्रोल खरीदने पर लकी ड्रा कूपन प्राप्त करने पर मुफ्त पेट्रोल मिलेगा अथवा आराम देय अधोवस्त्र खरीदने पर लक्की ड्रा कूपन प्राप्त करें और इनाम में कार जीतें।

8. उपयोग योग्य लाभ— 3,000 रुपए का सामान खरीदें एवं 3,000 रुपए का छुट्टियाँ मनाने का पैकेज मुफ्त प्राप्त करें अथवा 1,000 रुपए से अधिक की पोशाक खरीदने पर अतिरिक्त के लिए छूट का वाउचर प्राप्त करें।

विज्ञापन एवं वैयक्तिक विक्रय में अंतर

क्र. सं. विज्ञापन वैयक्तिक विक्रय
1. विज्ञापन संदेश वाहन का अवैयक्तिक स्वरूप है। वैयक्तिक विक्रय संदेश वाहन का व्यक्तिगत स्वरूप है।
2. विज्ञापन में मानक संदेश प्रसारित होता है अर्थात बाजार के किसी भाग में सभी ग्राहकों को समान संदेश भेजना वैयक्तिक विक्रय में ग्राहक की पषष्ठभूमि एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ब्ञात-चीत को ढाला जाता है।
3. विज्ञापन बेलोच होता है, क्योंकि संदेश को क्रेता की आवश्यकतानुसार ढाला जा सकता है। वैयक्तिक विक्रय बहुत अधिक लोचपूर्ण होता है, क्योंकि इसमें संदेश को आवश्यकतानुसार बदला जा सकता है।
4. इसकी जनसाधारण तक पहुँच होती है अर्थात् इसके माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचा जा सकता है। समय एवं लागत के कारण सीमित लोगों से ही संपर्क साधा या किया जा सकता है।
5. विज्ञापन में प्रति लक्षित व्यक्ति व्यय बहुत कम होता है। वैयक्तिक विक्रय में प्रति व्यक्ति लागत काफी अधिक होती है।
6. विज्ञापन में बाजार तक पहुँच में कम समय लगता है। वैयक्तिक विक्रय में पूरे बाजार के लिए बहुत समय लगता है।
7 . विज्ञापन में जन साधारण समाचार माध्यम जैसे कि टेलीविजन, रेडियो, समाचार पत्र, एवं पत्रिकाएँ को अपनाया जाता है। वैयक्तिक विक्रय में विक्रय कर्मचारियों को रखा जाता जिनकी पहुँच सीमित होती है एवं पत्रिकाओं को अपनाया जाता है।
8. विज्ञापन में प्रत्यक्ष प्रत्युत्तर की कमी होती है। विज्ञापन के संबंध में ग्राहकों की प्रतिक्रिया की जाँच के लिए विपणन अन्वेषण की आवश्यकता होती है। वैयक्तिक विक्रय प्रत्यक्ष एवं तुरंत प्रत्युत्तर मिलता है। विक्रयकर्ता ग्राहकों की प्रतिक्रिया के संबंध में तुरंत जान जाते हैं।
9 . विज्ञापन फर्म के उत्पादों में ग्राहक की रुचि पैदा करने में अधिक उपयोगी है। वैयक्तिक विक्रय के निर्णय लेते समय महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
10 विज्ञापन अंतिम उपभोक्ता को माल बेचने में अधिक उपयोगी होता है, जो कि बड़ी संख्या में होता है। वैयक्तिक विक्रय उत्पादों के उद्योगों से जुड़े क्रेताओं अथवा मध्यस्थों को बेचने में अधिक सहायक है, जैसे- कि व्यापारी एवं फुटकर विक्रेता, जो कि संख्या में कम होते हैं।

9. शून्य प्रतिशत पर पूरा वित्तीयन- इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ, ऑटोमोबाइल आदि उपभोक्ता की टिकाऊ वस्तुओं के कई विपणनकर्ताओं की सरल वित्तीयन योजनाएँ होती हैं, जैसे- 24 आसान किस्तें, आठ किस्तें तुरंत और 16 का भुगतान आगे की तिथि के चेकों द्वारा, लेकिन इसमें फाइल के खर्चों के संबंध में चौकन्ना रहना चाहिए, क्योंकि कई बार यह और कुछ नहीं बल्कि पूर्व में ही ब्याज की वसूली होती है।

10. नमनों का वितरण- किसी नए ब्रांड को बाजा़ में लाते समय संभावित ग्राहकों को वस्तु मुफ्त नमूनों का वितरण जैसे डिटर्जेंट पाउडर अथवा टूथपेस्ट।

11. प्रतियोगिता— प्रतियोगिताओं का आयोजन जिनमें कौशल अथवा किस्मत आजमाई, जैसे- किसी पहेली को हल करना अथवा कुछ प्रश्नों का उत्तर देना आदि समाहित होता है

जनसंपर्क

एक संगठन के जनमत का प्रबंधन करना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है, जो विपणन विभाग द्वारा निष्पादित किया जाता है। व्यवसाय को अपने ग्राहकों, आपूर्तिकर्ताओं तथा व्यापारियों से प्रभावी संप्रेषण करना होता है, क्योंकि विक्रय तथा लाभ में वृद्धि करने हेतु ये साधन हैं। संगठन अथवा उसके उत्पादों के प्रत्यक्ष संपर्क में आने वालों के अलावा सामान्य जनता के अन्य सदस्य भी हैं, जिनकी आवाज अथवा मत समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। ये जनता, कंपनी और उसके उत्पाद में रुचि ले सकती है तथा उसके उद्देश्य को प्राप्त करने की व्यवसाय क्षमता पर प्रभाव डाल सकती है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि जनमत तथा जनता के साथ कंपनी के संबंधों का नियमित आधार पर प्रबंधन किया जाए। इसलिए जनता की नजरों में कंपनी की छवि तथा व्यक्तिगत उत्पादों के प्रवर्तन तथा संरक्षण हेतु कई प्रकार के कार्यक्रम जनसंपर्कों में शामिल होते हैं। व्यवसाय कई समूहों से संबंधित होता है, जिसमें आपूर्तिकर्ता, अंशधारी, मध्यवर्ती, सक्रिय समूह तथा सरकार सम्मिलित हैं। उदाहरणार्थ यदि एक फर्म प्रतिस्पर्धात्मक विक्रय वातावरण में टिके रहना चाहती है तो उसे मध्यस्थों का सक्रिय समर्थन आवश्यक है। उसी प्रकार, सक्रिय उपभोक्ता समूहों को संतुष्ट करने की आवश्यकता है, क्योंकि वे ग्राहकों को उकसाकर उत्पाद खरीदने से मना करके प्रत्यक्षतः फर्म के उत्पादों की बिक्री में कमी ला सकते हैं। वे ऐसा कानून को लागू करवाकर भी कर सकते हैं। आजकल अधिकांश संगठनों तथा व्यवसायों में जनसपंर्क प्रबंधन हेतु अलग विभाग बनाए गए हैं। वे किसी बाहरी जनसंपर्क एजेंसी की सेवाओं का भी उपयोग कर सकते हैं।

उनका मुख्य कार्य व्यवसाय के बारे में सूचना का प्रसार करना तथा ख्याति का निर्माण करना है। सामान्य जनता की अभिवृत्ति को मॉनीटर करने तथा सकारात्मक प्रचार करने हेतु मूर्त कदम उठाए जाने होते हैं। जब कंपनी अथवा उसके उत्पादों के बारे में नकारात्मक प्रचार हो तो यह विशेष रूप से उपयोगी है। उस समय सार्वजनिक छवि सुधारने हेतु आपातकाल की तरह स्थिति से निपटा जाता है। तब जनसंपर्क विभाग को कंपनी की छवि को हुई हानि को नियंत्रित तथा न्यूनतम करने हेतु कुछ कठोर कार्यवाही करनी पड़ती है। वे कुछ नियत कार्यक्रम अपनाने हेतु उच्च स्तरीय प्रबंध को परामर्श भी देते हैं, जिससे उनकी सार्वजनिक छवि में सुधार होता है और यह सुनिश्चित होता है कि नकारात्मक प्रचार न हो।

जनसंपर्क की भूमिका

जनसंपर्क की भूमिका की चर्चा उन कार्यों के संदर्भ में की जा सकती है, जो जनसंपर्क विभाग द्वारा किए जाते हैं। विपणन विभाग के हाथों में जनसंपर्क अपने-आप में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है, जिसे व्यवसाय के लाभ के लिए उपयोग किया जा सकता है।

जनसंपर्क विभाग द्वारा निम्नलिखित पाँच कार्य किए जाते हैं-

1. प्रचार— प्रचार इस रूप में विज्ञापन के समान है कि यह भी गैर व्यक्तिक संत्रेषण है, लेकिन विज्ञापन के विपरीत यह बिना किसी भुगतान के संत्रेषण है। जब भी किसी उत्पाद अथवा सेवा के संबंध में जन समाचार माध्यमों में पक्ष में समाचार आता है तो इसे प्रचार कहते हैं। उदाहरण के लिए माना एक विनिर्माता ऐसा कार इंजन विकसित करने में सफलता प्राप्त कर लेता है, जो पेट्रोल के स्थान पर पानी से चलने लगे और टेलीविजन, रेडियो अथवा समाचार पत्र समाचार के रूप में प्रसारित अथवा प्रकाशित करें तो इसे प्रचार कहेंगे, क्योंकि इंजन का निर्माता समाचार माध्यमों द्वारा इस उपलब्धि की सूचना देने से लाभान्वित होगा, लेकिन उसे इसकी कोई कीमत नहीं चुकानी होगी। इस प्रकार से प्रचार की दो महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं-

(i) प्रचार एक बिना भुगतान का संर्रेषण है। इसमें विपणन इकाई का प्रयत्क्ष रूप से कोई खर्च नहीं होता; तथा

(ii) इसके संचार का कोई निर्दिष्ट सौजन्यकर्ता नहीं होता, क्योंकि इसमें संदेश एक समाचार के रूप जाता है।

प्रचार में क्योंकि सूचना एक स्वतंत्र स्रोत के माध्यम से दी जाती है जैसे कि प्रेस द्वारा समाचार कहानी अथवा झलकी के रूप में संदेश विज्ञापन में दिए गए संदेश की तुलना में अधिक विश्वसनीय माना जाता है।

2. प्रेस संपर्क— संगठन के बारे में सूचना को प्रेस में सकारात्मक तरीके से प्रस्तुत किए जाने की आवश्यकता होती है। समाचार बनाने हेतु एक कहानी का विकास तथा अनुसंधान कौशल आवश्यक है तथा जनसंचार माध्यमों को प्रेस प्रकाशनी स्वीकृत कराना एक कठिन कार्य है। कंपनी के बारे में सही तथ्य तथा सही तस्वीर प्रस्तुत करने हेतु जनसंपर्क विभाग जनसंचार माध्यमों के संपर्क में रहता है अन्यथा यदि समाचार अन्य स्रोतों से लिए जाएँ तो वे विकृत हो सकते हैं।

3. उत्पाद प्रचार- नए उत्पादों के प्रचार हेतु विशेष प्रयास आवश्यक होते हैं तथा कंपनी को ऐसे कार्यक्रम प्रायोजित करने होते हैं। जनसंपर्क विभाग ऐसी घटनाओं के प्रायोजनों का प्रबंध करता है। समाचार सम्मेलनों, संगोष्ठियों तथा प्रदर्शनियों, खेल-कूद तथा सांस्कृतिक घटनाओं के आयोजन द्वारा कंपनी अपने नए उत्पादों के प्रति ध्यान आकर्षित कर सकती है।

4. निगमित संत्रेषण— जनता तथा संगठन में कर्मचारियों के साथ संत्रेषण के माध्यम से संगठन को अपनी छवि को संवर्धित करने की आवश्यकता होती है, यह सामान्यतः संवादपत्रों, वार्षिक प्रतिवेदनों, विवरणिकाओं, लेखों तथा दृश्य-श्रव्य सामग्री की सहायता से किया जाता है। लक्षित बाजा़ों तक उनकी पहुँच तथा प्रभाव हेतु कंपनियाँ इन साधनों पर विश्वास करती हैं। व्यापार संघों अथवा व्यापार मेलों की सभाओं में कंपनियों के कार्यकारियों द्वारा दिए भाषणों से कंपनी की छवि वर्धित होती है। यहाँ तक कि टी.वी. चैनलों के साथ साक्षात्कार तथा जनसंचार द्वारा पूछताछ के प्रत्युत्तर देना जनसंपर्क बढ़ाने का एक अच्छा तरीका है।

5. लॉबी प्रचार- व्यवसाय तथा अर्थव्यवस्था से संबंधित नीतियों के बारे में संगठन को सरकारी कर्मचारियों, कंपनी मामलों के मंत्री उद्योग तथा वित्त से व्यवहार करना पड़ता है। औद्योगिक, दूरसंचार तथा कराधानियों के निर्माण के समय सरकार मुख्य हितधारकों के विचार आमंत्रित करती है तथा वाणिज्य एवं व्यापार संघों के साथ स्वस्थ संबंध रखना चाहती है। जनसंपर्क विभाग उन विनियमों का संवर्धन अथवा विरोध करने में वास्तव में क्रियाशील होता है, जो उस कंपनी अथवा संगठन को प्रभावित करते हैं।

6. परामर्श— जनसंपर्प विभाग प्रबंधन को उन सामान्य मामलों में परामर्श देता है, जो जनता को प्रभावित करते हैं। तथा किसी विशेष मामले पर कंपनी की स्थिति को प्रभावित करते हैं। पर्यावरण, वन्यजीवन, बाल-अधिकार, शिक्षा इत्यादि कारणों में समय एवं धन का योगदान देकर कंपनी ख्याति बना सकती है। ये कारण-संबंधी क्रियाएँ जनसंपर्क बढ़ाने तथा ख्याति निर्माण में सहायता करती हैं।

इसके अतिरिक्त अच्छे जनसंपर्क रखने से निम्नलिखित विपणन उद्देश्यों को प्राप्त करने मे सहायता मिलती है-

(क) जागरूकता पैदा करना— जनसंपर्क विभाग द्वारा जनसंचार में उत्पाद को कहानियों तथा नाटकों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। बाज़ार में उत्पाद के पहुँचने से पूर्व अथवा जनसंचार में विज्ञापन से पूर्व इससे बाजार में स्थान बनाया जा सकता है। यह सामान्यतः लक्षित ग्राहकों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

(ख) विश्वास पैदा करना- यदि जनसंचार माध्यमों, चाहे वह प्रिंट हो अथवा इलेक्ट्रॉनिक, में एक उत्पाद के बारे में कोई समाचार आता है तो वह सदैव विश्वसनीय माना जाता है तथा लोग उस उत्पाद पर विश्वास करते हैं, क्योंकि वह समाचारों में है।

(ग) विक्रय-कर्मियों को प्रेरणा- यदि उत्पाद के प्रमोशन (लॉन्च) से पूर्व उसके बारे में फुटकर विक्रेताओं तथा डीलरों ने पहले से सुन रखा हो तो, विक्रय कर्मियों के लिए उनसे सौदा करना आसान हो जाता है। फुटकर विक्रताओं तथा डीलरों द्वारा भी यह महसूस किया जाता है कि इससे अंतिम उपभोक्ताओं को उत्पाद बेचना आसान हो जाता है।

(द) सवंर्द्धन लागतों में कमी- अच्छे जनसंपर्क बनाए रखने की लागत विज्ञापन तथा प्रत्यक्ष डाक से काफी कम होती है। जनसपंर्क माध्यमों को संगठन तथा उसके उत्पाद के बारे में स्थान अथवा समय के लिए सहमत करने हेतु संप्रेषण, तथा अंतरवैयक्तिक कौशलों की आवश्यकता होती है।

मुख्य शब्दावली

विपणन ट्रेडार्क बाजार ब्रांड चिह्ह
विपणन प्रबंध पैकेजिंग विपणन मिश्र
वितरण प्रणाली लेबलिंग बाज़ार संभावनाएँ वितरण माध्य
उपभोक्ता उत्पाद भौतिक वितरण औद्योगिक उत्पाद प्रवर्तन
सुविधा उत्पाद विज्ञापन क्रय योग्य उत्पाद प्रवर्तन मिश्र
विशिष्टता लिए हुए उत्पाद वैयक्तिक विक्रय सामान्य नाम प्रचार
ब्रांड विक्रय प्रवर्तन बांड नाम

सारांश

परंपरागत रूप से बाजार से अभिप्राय उस स्थान से है जहाँ क्रेता एवं विक्रेता लेन-देन करने के लिए एकत्रित होते हैं, जिसमें वस्तु एवं सेवाओं का विनिमय होता है। लेकिन आधुनिक अर्थों में इसका तात्पर्य उत्पाद अथवा सेवा के वास्तविक एवं संभावित क्रेताओं से है।

विपणन क्या है- विपणन शब्द की व्याख्या उन व्यावसायिक क्रियाओं के निष्पादन के रूप में की जा सकती है, जो वस्तु एवं सेवाओं के उत्पादक से उपभोक्ता के प्रवाह को दिशा देती हैं। विपणन, मात्र उत्पादन के पश्चात् की क्रिया नहीं है। इसमें ऐसी कई क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जिन्हें वस्तुओं के उत्पादन से पूर्व किया जाता है तथा वस्तुओं के विक्रय के पश्चात् भी चलती हैं।

विपणन के कार्य— विपणन के प्रमुख कार्यों में सम्मिलित हैं- बाज़ार संबंधी सूचना को एकत्रित करना एवं उसका विश्लेषण करना, विपणन नियोजन, उत्पाद निरूपण एवं विकास, मानकीकरण एवं श्रेणीकरण, पैकेजिंग एवं लेबलिंग, ब्रांडिंग, ग्राहक समर्थन सेवाएँ, उत्पादों का मूल्य निर्धारण, प्रवर्तन, वितरण, परिवहन, संग्रहण अथवा भंडारण आदि।

विपणन की भूमिका— विपणन की वस्तु स्थिति को अपना कर कोई भी संगठन चाहे वह लाभ कमाने वाला हो अथवा गैर लाभ कमाने वाला अपने लक्ष्यों को सर्वाधिक प्रभावी ढंग से प्राप्त कर सकता है। विपणन देश के विकास को गति प्रदान करता है तथा लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक होता है।

विपणन मिश्र— विपणन वह उपकरण है, जिसे कोई भी इकाई निर्दिष्ट बाज़ार में अपने विपणन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लाती है। विपणन मिश्र को अथवा तत्वों को चार वर्गों में विभक्त किया गया है, जो विपणन के चार $\mathrm{P}$ के नाम से प्रसिद्ध हैं, ये हैं- उत्पाद (प्रोडक्शन), मूल्य (प्राइस), स्थान (प्लेस) एवं प्रवर्तन (प्रमोशन)। माल की माँग पैदा करने के लिए इन चार तत्वों को एक साथ मिलाया जाता है।

उत्पाद— सामान्य अर्थों में उत्पाद शब्द से अभिप्राय उत्पाद के भौतिक एवं मूर्त गुणों से है। विपणन में उत्पाद मूर्त एवं अमूर्त गुणों का मिश्रण होता है, जिनका मूल्य के बदले में विनिमय हो सकता है तथा जो उपभोक्ता की आवश्यकताओं की संतुष्टि के योग्य है। इसमें वह सब कुछ होता है, जिसे बाज़ार में आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए बिक्री हेतु लाया जाता है। उत्पादों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है। औद्योगिक उत्पाद एवं उपभोक्ता उत्पाद। वे उत्पाद जिन्हें अंतिम उपभोक्ता अथवा उपयोगकर्ता अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु क्रय करते हैं, उपभोक्ता उत्पाद कहलाते हैं। खरीददारी के आधार पर उत्पादों को सुविधा उत्पाद, प्रतिदिन उपयोग में आने वाली वस्तुएँ एवं विशिष्ट उत्पाद वर्गों में बाँटा जा सकता है। वस्तुओं के स्थायित्व के आधार पर इन्हें टिकाऊ, गैर टिकाऊ एवं सेवाओं में वर्गीकृत किया जा सकता है।

वे क्रियाएँ, लाभ अथवा संतुष्टि (जैसे ड्राईक्लीन करना, घड़ियों की मरम्मत, बाल काटना) का विक्रय किया जाता है, इन्हें सेवा कहते हैं। औद्योगिक उत्पाद उन उत्पादों को कहते हैं, जिन्हें दूसरे उत्पादों के उत्पादन के लिए आगत के रूप में उपयोग में लाया जाता है, इनमें — (i) माल एवं पुर्जें (ii) पूँजीगत वस्तुएँ एवं (iii) वस्तुएँ एवं व्यावसायिक सेवाएँ आदि उत्पाद आते हैं।

पैकेजिंग- किसी उत्पाद के अनुरूपण एवं डब्बे अथवा आवरण के उत्पादन को पैकेजिंग कहते हैं। पैकेजिंग के तीन भिन्न स्तर हो सकते हैं अर्थात् प्राथमिक, द्वितीयक एवं परिवहन पैकेंगंग। ैैकेजिंग वस्तुओं के विपणन में कई कार्य करती है। कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य हैं- उत्पाद अभिज्ञान, उत्पाद संरक्षण, उत्पाद के प्रयोग को सुगम बनाना एवं वस्तु एवं सेवाओं का प्रवर्तन।

लेबलिंग- वस्तुओं के विपणन करते समय देखने में सरल परंतु एक महत्त्वपूर्ण कार्य पैकेज पर चिपकाने वाले लेबल का अनुरूपण है। लेबल उत्पादन पर टाँगे गए फीते से लेकर जटिल लेखा चित्र तक हो सकते हैं, जो पेकेज का भाग होते हैं। लेबल के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य हैं- (i) उत्पाद का विवरण देना (ii) उत्पाद अथवा ब्रांड की पहचान करने में सहायता करना (iii) उत्पाद को विभिन्न वर्गों में श्रेणीबद्ध करने में सहायक होता है एवं उत्पाद के प्रवर्तन में सहायता करता है।

मूल्य निर्धारण— मूल्य वह राशि है, जिसका उत्पाद अथवा सेवा को क्रय के प्रतिफल के रूप क्रेता द्वारा भुगतान किया जाता है अथवा विक्रेता द्वारा प्राप्त किया जाता है। यदि उत्पाद के मूल्य में वृद्धि की गई है तो सामान्यतः इसकी माँग कम हो जाएगी और इसमें कमी होने पर इसके विपरीत होगा। मूल्य निर्धारण को प्रतियोगियों के विर्ध एक प्रभावी हथियार माना जाता है। यह एक मात्र तत्व है, जो फर्म के आगम एवं लाभ को प्रभावित करता है।

मूल्य निर्धारण को प्रभावित करने वाले तत्व हैं- (i) उत्पाद की लागत (ii) उपयोगिता एवं माँग (iii) प्रतियोगिता (iv) सरकार एवं विधिक नियमन एवं (v) विपणन विधियाँ

भौतिक वितरण— इस पक्ष के संबंध में दो महत्त्वपर्ण निर्णय हैं- पहला वस्तुओं के भौतिक संचलन के संबंध में और दूसरा माध्यम के संबंध में। भौतिक वितरण में वस्तुओं को निर्माता से ग्राहकों तक भौतिक रूप से ले जाने के लिए आवश्यक क्रियाएँ सम्मिलित हैं। वितरण के प्रमुख घटक हैं- (i) आदेश प्रक्रियण (ii) परिवहन (iii) भंडारण एवं (iv) संचित माल नियंत्रण

प्रवर्तन- प्रवर्तन समय रहते संचित माल दो उद्देश्यों को लेकर संर्रेषण का उपयोग करना (i) संभावित ग्राहकों को उत्पाद के संबंध में सूचित करना एवं (ii) इसका क्रय करने के लिए तैयार करना। चार बड़े यंत्र अथवा प्रवर्तन मिश्र के घटक होते हैं, जो इस प्रकार हैं- (i) विज्ञापन, (ii) वैयक्तिक विक्रय (iii) विक्रय संवर्धन एवं (iv) प्रचार। इन यंत्रें को प्रवर्तन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न समुच्चयों में प्रयुक्त किया जाता है।

विज्ञापन — प्रवर्तन की बहुत सामान्य रूप से प्रयुक्त विधि है। यह संप्रेषण का गैर वैयक्तिक स्वरूप है, जिसके लिए विपणनकर्ता वस्तु एवं सेवा के प्रवर्तन के लिए भुगतान करते हैं। संर्रेषण के माध्यम के रूप में विज्ञापन के गुण हैं- (i) व्यापक पहुँच (ii) ग्राहक की संतुष्टि एवं विश्वास में वृद्धि (iii) अभिव्यजंकता (iv) मितव्ययता

विज्ञापन की सीमाएँ हैं- (i) कम सशक्त (ii) प्रत्युत्तर की कमी (iii) लोचहीनता (iv) कम प्रभावी। विज्ञापन के विर्द्ध आपत्तियाँ हैं- (i) लागत में वृद्धि करता है। (ii) समाजिक मूल्यों का हनन करता है। (iii) क्रेताओं को असमंजस में डालता है एवं (iv) घटिया उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा देता है। विज्ञापन के विर्द्ध अधिकांश आलोचनाएँ पूरी तरह से सत्य नहीं हैं। इसीलिए विज्ञापन को विपणन का आवश्यक कार्य माना गया है।

वैयक्तिक विक्रय- बिक्री के उद्देश्य से एक या एक से अधिक संभावित ग्राहकों को वार्तालाप के रूप में मौखिक रूप से संदेश दिया जाता है। वैयक्तिक विक्रय व्यवसायी एवं समाज दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

विक्रय संवर्धन- से अभिप्राय लघु आवधिक प्रेरणाएँ हैं, जो वस्तु एवं सेवाओं के तुरंत क्रय के लिए क्रेता को प्रोत्साहित करती हैं। इनमें बिक्री बढ़ाने के लिए कंपनी जिन प्रवर्तन विधियों का प्रयोग करती है, जैसे- विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय एवं प्रचार को छोड़कर अन्य विधियाँ सम्म्मिलित हैं। सामान्य रूप से प्रयुक्त विक्रय प्रवर्तन क्रियाएँ हैं- छूट, कटौती, वापसी, उत्पाद मिश्रण, मात्र पर उपहार, तुरंत आहरण एवं निर्धारित उपहार, लक्की ड्रा, उपयोगी लाभ, 0 प्रतिशत की दर से कुल वित्त, नमूने एवं प्रतियोगिताएँ आदि।

प्रचार विज्ञापन के समान है, क्योंकि यह संर्रेषण का गैर-वैयक्तिक स्वरूप है। मगर विज्ञापन से इतर बिना भुगतान किया गया है। प्रचार में सूचना एक स्वतंत्र स्रोत द्वारा दी जाती है, लेकिन प्रचार की एक महत्त्वपूर्ण सीमा है कि यह प्रवर्तन का माध्यम है, किंतु यह विपणन फर्म के नियंत्रण में नहीं हैं।

जनसंपर्क— सभी हितधारकों की दृष्टि में संगठनों की छवि के प्रबंधन से संबंधित है। इसके पाँच घटक हैंप्रचार, प्रेस संपर्क, निगमित संत्रेषण, लॉबी प्रचार और परामर्श।

अभ्यास

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. माल और सेवाओं के विपणक को ब्रांडिंग के दो लाभ बताएँ।

2. ब्रांडिंग अलग-अलग मूल्य निर्धारण में कैसे मदद करती है?

3. विपणन की सामाजिक अवधारणा क्या है?

4. उपभोक्ता उत्पादों की पैकेजिंग के फायदों को सूचीबद्ध करें।

5. पिछले कुछ महीनों के दौरान आपके या आपके परिवार द्वारा खरीदे गए पाँच शॉपिंग उत्पादों की सूची बनाएँ।

6. रंगीन टीवी का एक विक्रेता, जिसके पास देश के मौजूदा बाज़ार हिस्सेदारी का 20 प्रतिशत है, अगले तीन वर्षों में अपनी बाज़ार हिस्सेदारी को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखता है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने एक क्रियात्मक कार्यक्रम निर्दिष्ट किया। ऊपर चर्चा किए गए विपणन के कार्य का नाम दें।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. विपणन क्या है? माल और सेवाओं के आदान-प्रदान की प्रक्रिया में यह क्या कार्य करता है? व्याख्या करें।

2. विपणन की उत्पाद अवधारणा और उत्पादन अवधारणा के बीच अंतर करें।

3. उत्पाद उपयोगिताओं का एक बंडल है। चर्चा करें।

4. औद्योगिक उत्पाद क्या हैं? वे उपभोक्ता उत्पादों से अलग कैसे हैं? व्याख्या करें।

5. सुविधा उत्पाद और क्रय उत्पाद के बीच अंतर करें।

6. उत्पादों के विपणन में लेबलिंग के कार्यों का वर्णन करें।

7. भौतिक वितरण के घटकों की व्याख्या करें।

8. विज्ञापन को परिभाषित करें। इसकी मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? व्याख्या करें।

9. प्रवर्तन मिश्र के तत्व के रूप में ‘विक्रय संवर्धन’ की भूमिका पर चर्चा करें।

10. एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल पर स्थित एक बड़े होटल के विपणन प्रबंधक के रूप में, आपके द्वारा कौन-सी सामाजिक चिंताओं का सामना किया जाएगा और आप इन चिंताओं का ख्याल रखने के लिए क्या कदम उठाएँगे? चर्चा करें।

11. खाद्य उत्पाद के पैकेज पर आमतौर पर कौन-सी जानकारी दी जाती है? अपनी पसंद के खाद्य उत्पादों में से एक के लिए एक लेबल डिजाइन करें।

12. टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों के खरीदारों के लिए मोटरसाइकिल के नए ब्रांड की एक मार्केटिंग कंपनी के प्रबंधक के रूप में आप ‘ग्राहक देखभाल सेवाओं’ की क्या योजना बनाएँगे। चर्चा करें।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. विपणन अवधारणा क्या है? यह माल और सेवाओं के प्रभावी विपणन में कैसे मदद करता है?

2. विपणन मिश्र क्या है? इसके मुख्य तत्व क्या हैं? व्याख्या करें।

3. उत्पाद विशिष्टीकरण बनाने में ब्रांडिंग कैसे मदद करता है? क्या यह माल और सेवाओं के विपणन में मदद करता है? व्याख्या करें।

4. किसी उत्पाद या सेवा की कीमत के निर्धारण को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं? व्याख्या करें।

5. उत्पादों के भौतिक वितरण में शामिल प्रमुख गतिविधियों की व्याख्या करें।

6. विज्ञापन पर व्यय एक सामाजिक अपशिष्ट है। क्या आप सहमत हैं? चर्चा करें।

7. विज्ञापन और व्यक्तिगत बिक्री के बीच अंतर करें।

8. वितरण के चैनलों की पसंद का निर्धारण करने वाले कारकों की व्याख्या करें।

परियोजना कार्य

एक नए उत्पाद के लॉन्च की पहचान करें। अपने उत्पाद के लिए संभावित ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए, एक परियोजना फ़ाइल तैयार करें-

  • अपने प्रोडक्ट का विज्ञापन करें।
  • प्रेस विज्ञाप्ति लिखिए।
  • जनसंपर्क बनाए रखने के लिए अपने उत्पाद का प्रचार करें।


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