अध्याय 08 नियंत्रण

प्रस्थान नियंत्रण प्रणाली (डी.सी.एस)

एक प्रस्थान नियंत्रण प्रणाली (डी.सी.एस.) एयरलाइंस एयर प्रबंधन संचालन को संसाधित करती है जिसमें एयरपोर्ट चेक-इन, प्रिंटिंग बोर्डिंग पास, सामान स्वीकृति, बोर्डिंग लोड कंट्रोल और एयरक्राफ्ट चेक के लिए जरूरी सूचनार्थियों का प्रबंधन शामिल है। आज डी.सी.एस. का लगभग 98 प्रतिशत चेक-इन कियोस्क, ऑनलाइन चेक-इन, मोबाइल बोर्डिंग पास और बैगेज हैंडलिंग सहित कई उपकरणों से इंटरफेस का उपयोग करके ई-टिकट का प्रबंधन करता है। डी.सी.एस. यात्री नाम रिकॉर्ड (पी.एन.आर.) नामक यात्रियों के लिए एयरलाइन कंप्यूटर आरक्षण प्रणाली से अद्यतन आरक्षण की पहचान और सुरक्षित करने में सक्षम है। आमतौर पर चेक-इन, बोर्ड किए गए और उड़ान भर चुके या अन्य स्थिति के रूप में आरक्षण अपडेट करने के लिए डी.सी.एस. का उपयोग किया जाता है।

अधिगम उद्देश्य इस अध्याय के अध्ययन के पश्चात् आप-

  • नियंत्रण को परिभाषित कर सकेंगे;
  • नियंत्रण का महत्त्व बता सकेंगे;
  • नियोजन तथा नियंत्रण में संबंध स्थापित कर सकेंगे;
  • नियंत्रण प्रक्रिया के चरणों की व्याख्या कर सकेंगे;
  • नियंत्रण की तकनीक समझा सकेंगे।

विषय प्रवेश

स्टर्लिंग कोरियर के उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि किस प्रकार एक सुयोग्य प्रबंधक विपरीत व्यावसायिक परिस्थितियों को नियंत्रित कर लेता है। इसी उदाहरण से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कोई भयंकर नुकसान व्यवसाय को हो, उससे पहले ही प्रबंधक कुछ सकारात्मक कार्य करें जिससे उस हानि से बचा जा सके। एक प्रबंधक के लिए उसका प्रबंधन में नियंत्रण कार्य सुरक्षा कवच का कार्य करता है। यह केवल कार्य को विधिवत् चलाने में ही सहायता नहीं करता बल्कि द्रुत गति से उसे अग्रसर होने में भी आश्वस्त करता है तथा जो लक्ष्य पहले से निर्धारित किए गए थे उन्हें प्राप्त करता है।

प्रबंधकीय नियंत्रण के अंतर्गत वास्तविक प्रगति तथा निर्धारित प्रमापों की विचलनों का पता लगाया जाता है तथा उन्हें दूर करने के लिए सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है, ताकि नियोजन के अनुसार लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके। कुंट्ज तथा ओ’डोनेल

नियंत्रण का अर्थ

नियंत्रण प्रबधंक का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। अधीनस्थों से नियोजित परिणामों की इच्छा रखने के लिए एक प्रबंधक को उनके क्रियाकलापों पर प्रभावी नियंत्रण की आवश्यकता होती है। दूसरे शब्दों में नियंत्रण से तात्पर्य संगठन में नियोजन के अनुसार क्रियाओं के निष्पादन से है। नियंत्रण इस बात का भी आश्वासन है कि संगठन के पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी संसाधनों का उपयोग प्रभावी तथा दक्षतापूर्ण ढंग से हो रहा है। अतः नियंत्रण एक उद्देश्य मूलक कार्य है।

प्रबंधक का नियंत्रण एक सर्वव्यापी कार्य है। यह प्रत्येक प्रबंधक का प्राथमिक कार्य भी है। प्रबंध के प्रत्येक स्तर-शीर्ष, मध्यम तथा निम्न पर प्रबंधक को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की क्रियाओं को नियंत्रित करने के लिए नियंत्रण कार्य को निष्पादित करना चाहिए। किसी भी व्यावसायिक इकाई की भाँति नियंत्रण शिक्षा संस्थानों, सेना, औषधालयों तथा क्लबों में भी उतना ही आवश्यक है जितना व्यावसायिक इकाइयों में। नियंत्रण को प्रबंध का अंतिम कार्य समझ लेना भूल होगी। यह प्रबंधन चक्र को वापिस नियोजन कार्य पर लाता है। नियंत्रण से निष्पादन एवं मानकों के विचलन का ज्ञान होता है। इन विचलनों का विश्लेषण करता है तथा उन्हीं के आधार पर उसके सुधार के लिए कार्य करता है। इस प्रक्रिया द्वारा भविष्य के लिए नियोजन करने में सहायता मिलती है। क्योंकि जो समस्याएँ नियंत्रण में सामने आईं उनके प्रकाश में भविष्य के लिए अच्छी योजनाएँ तैयार की जा सकती हैं। इस प्रकार नियंत्रण प्रबंध प्रक्रिया के एक चक्र को पूरा करता है तथा अगले चक्र के नियोजन में सुधार करता है।

नियंत्रण का महत्त्व

नियंत्रण प्रबंध का अनिवार्य कार्य है। बिना नियंत्रण उच्च कोटि की योजनाएँ भी उलट-पुलट हो जाती हैं। एक अच्छी नियंत्रण विधि एक संस्थान को निम्न प्रकार से सहायक होती है-

(क) संगठनात्मक लक्ष्यों की निष्पत्ति- नियंत्रण संगठन के लक्ष्यों की ओर प्रगति का मापन करके विचलनों का पता लगाता है। यदि कोई विचलन प्रकाश में आता है तो उसके सुधार का मार्ग प्रशस्त करता है। इस प्रकार नियंत्रण संस्थान का मार्गदर्शन करता है तथा सद्मार्ग पर चलाकर संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है।

(ख) मानकों की यथार्थता को आँकना- एक अच्छी नियंत्रण प्रणाली द्वारा प्रबंध निर्धारित मानकों की यथार्थता तथा उद्देश्य पूर्णता को सत्यापित कर सकता है। एक दक्ष नियंत्रण प्रणाली से वातावरण तथा संगठन में होने वाले परिवर्तनों की सावधानी से जाँच पड़ताल की जाती है तथा इन्हीं परिवर्तनों के संदर्भ में उनके पुनरावलोकन तथा संशोधन में सहायता करता है।

**(ग) संसाधनों का फलोत्पादक उपयोग- **नियंत्रण का उपयोग करके एक प्रबंधक अपव्यय तथा बर्बादी को कम कर सकता है। प्रत्येक क्रिया का निष्पादन पूर्व निर्धारित मानकों के अनुरूप होता है। इस प्रकार सभी संसाधनों का उपयोग अति प्रभावी एवं दक्षता पूर्ण विधि से होता है।

(घ) कर्मचारियों की अभिप्रेरणा में सुधार- एक अच्छी नियंत्रण प्रणाली में कर्मचारियों को पहले से ही यह ज्ञात होता है कि उन्हें क्या कार्य करना है अथवा उनसे किस कार्य को करने की आशा की जाती है तथा उन्हें इस बात का भी ज्ञान होता है कि उनके कार्य निष्पादन के क्या मानक हैं जिनके आधार पर उनकी समीक्षा होगी?

(ङ) आदेश एवं अनुशासन की सुनिश्चितता- नियंत्रण से संगठन का वातावरण आदेश एवं अनुशासनमय हो जाता है। इससे अकर्मण्य कर्मचारियों की क्रियाओं का निकट से निरीक्षण करके उनके असहयोग व्यवहार को कम करने में सहायता मिलती है। बॉक्स में बताया गया है कि एक आयात- निर्यात कंपनी ने कंप्यूटर मॉनीटरिंग के उपयोग द्वारा बेईमान कर्मचारियों की कार्यवाहियों को किस प्रकार नियंत्रित किया।

(च) कार्य में समन्वय की सुविधा- नियंत्रण उन सभी क्रियाओं तथा प्रयासों को निर्देशन देता है जो संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए होते हैं। प्रत्येक विभाग तथा कर्मचारी पूर्व निर्धारित मानकों से बंधा हुआ होता है तथा वे आपस में सुव्यवस्थित ढंग से एक दूसरे से भली-भाँति समन्वित होते हैं। इससे यह आश्वासन मिलता है कि सभी संगठनात्मक उद्देश्यों को पूरा किया जा रहा है।

नियंत्रण की सीमाएँ

यद्यपि नियंत्रण प्रबंध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है लेकिन फिर भी इसमें निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-

(क) परिमाणात्मक मानकों के निर्धारण में कठिनाई- जब मानकों को परिमाणात्मक शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता तो नियंत्रण प्रणाली का प्रभाव कुछ कम हो जाता है। इसलिए निष्पादन का आकलन तथा मानकों से उनकी तुलना करना कठिन कार्य होता है। कर्मचारियों का मनोबल, कार्य संतुष्टि तथा मानवीय व्यवहार कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ यह समस्या सामने आ सकती है।

(ख) बाह्य घटकों पर अल्प नियंत्रण- सामान्य तौर पर एक उद्यम बाह्य घटकों, जैसे सरकारी नीतियों, तकनीकी परिवर्तनों, प्रतियोगिताओं आदि पर नियंत्रण नहीं कर पाता।

(ग) कर्मचारियों से प्रतिरोध- अधिकतर कर्मचारी इसका विरोध करते हैं। उनके मतानुसार, नियंत्रण उनकी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध है। उदाहरणार्थ यदि कर्मचारियों की गतिविधियों पर क्लोज सर्किट टेलीविजन द्वारा निगाह रखी जाती है तो वे इसका विरोध करते हैं।

(घ) महँगा सौदा- नियंत्रण में खर्चा, समय तथा प्रयासों की मात्रा अधिक होने के कारण, यह एक महँगा सौदा है। एक छोटा उद्यम महँगी नियंत्रण प्रणाली को वहन नहीं कर सकता, क्योंकि इसमें होने वाले खर्चें एक छोटे उद्यम के लिए न्यायसंगत नहीं होते। एक प्रबंधक को चाहिए कि वह यह देखे कि नियंत्रण प्रणाली को लागू करने पर क्या इसके ऊपर होने वाला व्यय लाभकारी होगा अथवा नहीं। दूसरे शब्दों में वह आश्वस्त हो कि व्यय-आय से अधिक न हो। दिए गए बॉक्स से यह प्रकट होता है कि फैडऐक्स कैसी नियंत्रण प्रणाली अपनाती है तथा यह नियंत्रण प्रणाली फैडऐक्स के लाभ में किस प्रकार वृद्धि करती है?

नियोजन एवं नियंत्रण में संबंध

नियोजन एवं नियंत्रण प्रबंध के अपृथक्करीय यमज (जुड़वाँ) हैं। नियंत्रण प्रणाली में कुछ मानकों को पहले से ही अस्तित्व में स्वीकार कर लिया जाता है। निष्पादन के यही मानक जो नियंत्रण के लिए आधार प्रदान करते हैं, ये नियोजन द्वारा ही सुलभ कराए जाते हैं। यदि एक बार नियोजन संक्रियात्मक हो जाता है तो नियंत्रण के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि प्रगति की मॉनीटरिंग करें तथा विचलनों को खोजें तथा इस बात को निश्चित करें कि जो भी कार्यवाही हुई है वह नियोजन के अनुरूप ही है। यदि विचलन है तो उसकी सुधारात्मक कार्यवाही करें। इस प्रकार नियोजन बिना नियंत्रण अर्थहीन हैं उसी तरह नियंत्रण बिना नियोजन दृष्टिहीन है। यदि मानकों का पहले से ही निर्धारण न कर लिया जाए तो प्रबंधक को नियंत्रण क्रिया में करने के लिए कुछ भी नहीं है। यदि नियोजन नहीं है तो नियंत्रण का कोई आधार ही नहीं है।

नियंत्रण के लिए नियोजन स्पष्टतया पूर्व आवश्यकता है। बिना नियोजन के नियंत्रण करना नितांत मूर्खता ही है? बिना नियोजन इच्छित निष्पादन की कोई पूर्व निर्धारित उपयोगिता नहीं है। नियोजन कार्यक्रमों में समरूपता, संघटित करना तथा सुस्पष्टता की खोज होती है जबकि नियंत्रण में घटनाओं को नियोजन के अनुरूप घटित होने के लिए बाध्य किया जाता है।

नियोजन मूलतः एक बौद्धिक प्रक्रिया है जिसमें सोचना, उच्चारण तथा खोज का विश्लेषण एवं लक्ष्यों की उपलक्धि के लिए उपयुक्त कार्यविधि निर्धारित करना सम्मिलित है। दूसरी ओर नियंत्रण इस बात की जाँच करता है कि क्या निर्णयों को अपेक्षित परिणामों में परिणित किया गया है या नहीं। इस प्रकार नियोजन आदेशात्मक प्रक्रिया है जबकि नियंत्रण मूल्यांकन प्रक्रिया है।

प्रायः यह कहा जाता है कि नियोजन भविष्य में झाँकता है तो नियंत्रण पीछे की क्रिया का अवलोकन करता है। यद्यपि यह वाक्य आंशिक रूप से ही ठीक है। नियोजन भविष्य के लिए किया जाता है जिसका आधार भविष्य की दशाओं के विषय में भविष्यवाणी करना होता है। अतः नियोजन में आगे (भविष्य) देखना सन्निहित है और इसीलिए यह प्रबंध का दूरदर्शी कार्य कहलाता है। इसके विपरीत नियंत्रण भूतपूर्व क्रियाओं की शव-परीक्षा (पोस्मार्टम) है जो इस बात का पता लगाती है कि मानकों से कहाँ-कहाँ विचलन हैं। इस आधार पर नियंत्रण पीछे देखने वाला कार्य है। यह भली-भाँति समझ लेना चाहिए कि नियोजन का पथ-प्रदर्शन, नियंत्रण भूतकालीन अनुभवों तथा सुधारात्मक कार्यों द्वारा प्रेरित भविष्य के निष्पादन को अधिक सुधारपूर्ण बनाकर करता है। अतः यह कहा जा सकता है कि नियोजन तथा नियंत्रण दोनों ही पीछे की ओर देखने वाले तथा दोनों भविष्य की ओर देखने वाले हैं। अर्थात् दोनों ही भूत एवं भविष्य दोनों का ध्यान रखते हैं।

अतः नियोजन तथा नियंत्रण दोनों ही परस्पर संबंधित हैं तथा दोनों ही एक दूसरे को बल प्रदान करते हैं। जैसे-

1. नियोजन जिन तत्वों पर आधारित होता है ये ही नियंत्रण को सुगम तथा प्रभावी बनाते हैं तथा

2. नियंत्रण, नियोजन को पिछले अनुभवों की सूचनाएँ देकर भविष्य में सुधार लाता है।

नियंत्रण प्रक्रिया

नियंत्रण एक विधिवत् प्रक्रिया है जिसमें निम्न कदम निहित हैं-

1. निष्पादन मानकों का निर्धारण

2. वास्तविक निष्पादन की माप

3. मानकों एवं वास्तविक निष्पादन की तुलना

4. विचलनों का विश्लेषण

5. सुधारात्मक कार्यवाही करना।

चरण 1-निष्पादन मानकों का निर्धारण- नियंत्रण प्रक्रिया का सर्वप्रथम कार्य निष्पादन मानकों का निर्धारण करना है। मानक एक मानदंड है जिसके तहत् वास्तविक निष्पादन की माप की जाती है। अतः मानक मील के पत्थर की भाँति होता है जिसे प्राप्त करने के लिए संगठन ललायित रहते हैं।

मानकों को परिमाणात्मक तथा गुणात्मक दोनों रूपों में निर्धारित किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर मानकों का निर्धारण लागत के रूप में, आगम अर्जन के रूप में, उत्पादन इकाइयों के उत्पादन या विक्रय के रूप में, कार्य पूरा करने में समय का लगना, सभी परिमाणात्मक मानकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। कभी-कभी मानकों को गुणात्मक रूपों में भी निर्धारित किया जाता है। सुनाम तथा कर्मचारियों के प्रेरणा स्तर में वृद्धि गुणात्मक मानकों के उदाहरण हैं।

दी गई सारणी में व्यवसाय के विभिन्न कार्यात्मक क्षेत्रों के निष्पादन माप में प्रयोग होने वाले मानकों की झलक दिखाई गई है।

मानकों का निर्धारण करते समय प्रबंधक को चाहिए कि वह मानकों को संक्षिप्त परिमाणात्मक शब्दों में निर्धारित करें ताकि उनकी तुलना वास्तविक निष्पादन से आसानी से हो सके। उदाहरणस्वरूप- निर्मित प्रत्येक 1000 वस्तुओं में से 10 का खराब होना घटकर प्रत्येक 1000 वस्तुओं में से 5 का खराब होना है। यद्यपि जब गुणात्मक मानकों का निर्धररण किया जाता है तो

कार्यात्मक क्षेत्रों के निष्पादन माप में मानकों का उपयोग-

उत्पादन विपणन कार्मिक प्रबंध वित्तीय एवं लेखांकन
मात्रा बिक्री की मात्रा श्रम संबंध पूँजीगत व्यय
गुण विक्रय व्यय श्रम आवर्त स्कंध
लागत विज्ञापन व्यय श्रम अनुपस्थिति पूँजी का प्रवाह
व्यक्तिगत कार्य व्यक्तिगत - तरलता
निष्पादन विक्रयकर्ता का निष्पादन - -

उनकी व्याख्या इस प्रकार की जाए जिससे उनकी गणना आसानी से हो सके। उदाहरणार्थ एक फास्टफूड स्वयं सेवा भृंखला में ग्राहकों की संतुष्टि में वृद्धि करने के लिए मानकों का निर्धारण इस प्रकार किया जा सकता है- ग्राहकों को टेबल के लिए इंतजार करने के लिए लिया गया समय, सामान पूर्ति के ऑर्डर देने में लिया गया समय तथा ऑर्डर की वस्तुओं को प्राप्त करने में लगा समय।

यह महत्त्वपूर्ण है कि मानक इतने लचीले हों कि आवश्यकतानुसार सुधारे जा सकें। व्यवसाय के आंतरिक एवं बाह्य वातावरण में परिवर्तन होने पर कुछ सुधारों की आवश्यकता हो सकती है वे परिवर्तन व्यावसायिक वातावरण के अनुरूप ही होने चाहिए।

चरण 2 - वास्तविक निष्पादन की माप- जब एक बार निष्पादन मानकों का निर्धारण कर लिया जाता है तो अगला कदम वास्तविक निष्पादन की माप होता है। निष्पादन की माप उद्देश्यपूर्ण तथा विश्वसनीय विधि से होनी चाहिए। निष्पादनों की माप की बहुत-सी तकनीकियाँ हैं। इनमें व्यक्तिगत देख-रेख, नमूना जाँच, निष्पादन रिपोर्ट आदि सम्मिलित हैं जहाँ तक संभव हो निष्पादन की माप उसी इकाई में हो जिसमें मानकों का निर्धारण हुआ है। इस तरह उनकी तुलना सहज होगी।

सामान्यतया यह माना जाता है कि माप तभी की जाए जब कार्य पूर्ण हो जाए। फिर भी जहाँ भी संभव हो निष्पादन की माप जब कार्य चल रहा हो तब भी की जानी चाहिए। उदाहरणार्थ व्यवस्थापन या विभिन्न उत्पादों को एकजुट करके नया उत्पाद तैयार करने के कार्य में, जोड़ने का कार्य करने से पहले हर एक भाग का उचित निरीक्षण होना चाहिए। ठीक इसी तरह एक निर्णायक इकाई में हवा में गैस के कणों के स्तर, सुरक्षा के लिए आसानी से लगातार मॉनीटर किए जा सकते हैं।

एक कर्मचारी के निष्पादन की माप करने के लिए उसके उच्चाधिकारी द्वारा एक निष्पादन रिपोर्ट बनाना आवश्यक होता है। एक कंपनी के निष्पादन की माप करने के लिए समायांतर पर कुछ अनुपातों, जैसे सकल लाभ अनुपात, शुद्ध लाभ अनुपात तथा विनियोगों पर लाभ आदि की गणना की जाती है। संचालन के कुछ क्षेत्रों की प्रगति, जैसे विपणन की माप, बेची गई इकाईयों की संख्या को ध्यान में रखकर की जा सकती है तथा बाज़ार में अंशों की वृद्धि से भी की जाती है। जबकि उत्पादन क्षमता की माप उत्पादित इकाइयों की गणना करके की जा सकती है तथा इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक खेप की कितनी इकाईयाँ दोषपूर्ण हैं। छोटे संगठनों में प्रत्येक उत्पादिक इकाई का निरीक्षण इस बात को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए कि क्या उत्पादन के लिए निर्धारित विनिर्देशनों का अनुपालन किया गया है अथवा नहीं। यद्यपि बड़े संगठनों में यह संभव नहीं हो पाता है। अतः बड़े संगठनों में गुणवत्ता के लिए कुछ इकाइयों का अनियमित विधि से निरीक्षण किया जाता है। इसे नमूने का निरीक्षण नाम से पुकारा जाता है।

चरण 3-वास्तविक निष्पादन की मानकों से तुलना- इस कार्यवाही में वास्तविक निष्पादन की तुलना निर्धारित मानकों से की जाती है। ऐसी तुलना में इच्छित तथा वास्तविक परिणामों में अंतर हो सकता है। मानकों का निर्धारण यदि परिमाणात्मक शब्दों में किया जाता है तो तुलना सरल होती है। उदाहरणार्थ एक श्रमिक की एक सप्ताह में उत्पादित इकाईयों की माप सरलता से की जा सकेगी यदि साप्ताहिक उत्पादन मानक तैयार किए हुए होंगे

चरण 4-विचलन विश्लेषण- हर प्रकार के क्रियाकलापों में कार्य संपूर्ण होने में कुछ विचलनों का होना स्वाभाविक है। अतः यह आवश्यक है कि यह निश्चय किया जाए कि विचलनों का क्षेत्र अनुमानतः क्या होगा? इसके साथ ही यह भी ध्यानपूर्वक देखा जाए कि विचलन के मुख्य क्षेत्र क्या हैं जिन पर कार्यवाही तुरंत की जानी है अपेक्षाकृत उन क्षेत्रों के जो अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। इसके लिए यह उचित होगा कि विचलनों के लिए अधिकतम व न्यूनतम सीमाओं का निर्धारण किया जाए। इस संदर्भ में एक प्रबंधक को जटिल बिंदुओं का नियंत्रण तथा अपवाद द्वारा प्रबंध को उपयोग में लाना चाहिए।

(क) जटिल या संकट बिंदु नियंत्रण- एक संगठन की प्रत्येक क्रिया पर निगरानी रखना न तो यह अल्पव्ययी है और न ही इतना आसान है जो सभी को नियंत्रित किया जा सके। नियंत्रक द्वारा उन बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो अति जटिल हैं तथा संगठन की प्रगति में बाधक हैं। यही मुख्य परिणाम क्षेत्र जटिल बिंदु कहलाता है। यदि जटिल बिंदु गलत होता है तो उसका परिणाम संपूर्ण संगठन को भुगतना पड़ता है। उदाहरण के रूप में एक निर्णायक संगठन में मजदूरी लागत में केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि डाक व्यय में 15 प्रतिशत की वृद्धि से अधिक घातक सिद्ध हो सकती है।

(ख) अपवाद द्वारा प्रबंध- अपवाद द्वारा प्रबंध से आशय जिसका नियंत्रण प्राय: अपवादों द्वारा किया जाता है। यह प्रबंध का अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है कि यदि आप सभी चीजों को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं तो किसी भी चीज को नियंत्रित नहीं कर पाते। अतः केवल वही महत्त्वपूर्ण विचलन प्रबंध को सूचित किए जाने चाहिए जो अनुमति देने की सीमा से बाहर के हैं। यदि एक निर्माणीय संगठन में श्रम लागत में 2 प्रतिशत वृद्धि करने की योजना तैयार की जाती है तो श्रम लागत में 2 प्रतिशत से और अधिक वृद्धि होने पर ही प्रबंध को सूचित किया जाना चाहिए। यदि निर्धारित मानकों में भारी अंतर होता है (जैसे 5 प्रतिशत) तो तुरंत ही प्रबंध द्वारा ऐसी परिस्थिति में प्राथमिकता के आधार पर कार्यवाही करनी चाहिए। क्योंकि यह व्यवसाय एक जटिल क्षेत्र है।

नीचे लिखे विवरण द्वारा संकट बिंदु नियंत्रण तथा अपवाद द्वारा प्रबंध के लाभों पर प्रकाश डाला गया है।

ऐसे विचलनों की जिन पर प्रबंध को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है की पहचान कर लेने के उपरांत उनके कारणों का विश्लेषण करने की आवश्यकता होती है। विचलनों के अभ्युदय के बहुत से कारण हो सकते हैं। ये अवास्तविक मानक, त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया, अनुपयुक्त संसाधन, ढाँचागत कमियाँ, संगठनात्मक प्रतिबंध तथा ऐसे वातावरणीय तत्व जो संगठन के नियंत्रण के बाहर होते हैं आदि-आदि हो सकते हैं। अतः यह अति आवश्यक होता है कि कारणों का सही-सही पता लगाया जाए। यदि इस कार्य में ढिलाई होती है तो उपयुक्त सुधारक कार्यवाही कठिन ही होगी। विचलनों तथा उनके कारणों को उसके उपरांत उचित कार्यवाही हेतु उपयुक्त स्तर पर प्रस्तुत किया जाता है।

चरण 5-सुधारात्मक कार्यवाही करना- नियंत्रण प्रक्रिया का अंतिम चरण सुधारात्मक कार्यवाही करना है। यदि विचलन अपनी निर्धारित सीमा के अंतर्गत हैं तो किसी सुधारात्मक कार्यवाही की आवश्यकता नहीं पड़ती। यदि विचलन अपनी निर्धारित सीमा लाँघ जाते हैं विशेषकर महत्त्वपूर् क्षेत्रों में, तो प्रबंधकीय कार्यवाही की तुरंत आवश्यकता होती है ताकि विचलन फिर अपना सिर न उठा सके तथा मानकों को प्राप्त किया जा सके। सुधारात्मक कार्यवाही में कर्मचारियों का प्रशिक्षण भी हो सकता है उस अवस्था में जबकि उत्पाद का लक्ष्य न प्राप्त हो पाता हो। इसी तरह यदि कोई महत्त्वपूर्ण उद्यम अपने निर्धारित कार्यक्रम से पीछे चल रहा हो तो समाधान संबंधी उपायों में अतिरिक्त कर्मचारियों की भर्ती की जा सकती है तथा अतिरिक्त संयंत्रों की व्यवस्था भी की जा सकती है तथा कर्मचारियों को अतिरिक्त समय काम करने की इजाज़त भी दी जा सकती है। यदि प्रबंधकों के प्रयासों से विचलनों को ठीक रास्ते पर न लाया जा सकता हो तो मानकों का पुनः निरीक्षण करना चाहिए।

संकट बिंदु नियंत्रण तथा अपवाद द्वारा प्रबंध के लाभ

जब एक प्रबंधक जटिल बिंदुओं का निर्धारण करता है तथा उन महत्त्वपूर्ण विचलनों पर ध्यान केंद्रित करता है जो अपनी सीमा से परे होते हैं तो निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं-

  1. इससे प्रबंधकों का समय तथा प्रयासों की बचत होती है क्योंकि उनका ध्यान केवल महत्त्वपूर्ण विचलनों पर ही केंद्रित होता है।
  2. यह प्रबंधकों के ध्यान को महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों तक ही केंद्रित रखता है जिससे उनके प्रबंधकीय चातुर्य का सही उपयोग होता है।
  3. जो दैनिक समस्याएँ हैं वे अधीनस्थों के हवाले कर दी जाती हैं। इस तरह अपवाद द्वारा प्रबंध के माध्यम से अधिकार अंतरण की सुविधा प्राप्त होती है तथा कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है।
  4. इससे जटिल समस्याओं का बोध होता है जिन्हें समय रहते कार्यवाही की आवश्यकता होती है। इस प्रकार संगठन अपने यथोचित मार्ग पर आगे बढ़ता रहता है।

चित्र 8.2 -उपचारात्मक कार्ययोजना-विचलन विश्लेषण करना

सारणी विचलनों के कारणों को बतलाती है तथा कुछ संबंधित सुधारात्मक कार्यवाही जो प्रबंधकों को करनी चाहिए के विषय में चर्चा करती है- बॉक्स में दी गई सूचना के आधार पर यह कहा जा सकता है कि साको डिफेंस ने अपनी जटिल अवस्था को कैसे सुधारा-

मुख्य शब्दावली

नियंत्रण | अनुपात विश्लेषण | आलोचनात्मक उपाय प्रणाली | उत्तरदायित्व लेखाकरण अपवादों द्वारा प्रबंध | प्रबंध |अंकेक्षण | बिना लाभ-हानि व्यापार विश्लेषण कार्यक्रम मूल्यांकन तथा पुनरावलोकन तकनीक एवं बजटीय नियंत्रण |आलोचनात्मक-उपाय प्रणाली | निवेश पर प्रत्याय | प्रबंध सूचना पद्धति

सारांश

नियंत्रण का अर्थ

नियंत्रण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से वर्तमान निष्पादन मापन किया जाता है और कुछ पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए इसका मार्गदर्शन करता है।

नियंत्रण का महत्त्व

नियंत्रण के महत्त्व के संबंध में यह कहा जा सकता है कि यह संगठनात्मक लक्ष्यों की निष्पत्ति करता है, मानकों की यथार्थता को आँकता है, संसाधनों का फलोत्पादक उपयोग करता है, कर्मचारियों की अभिप्रेरणा में सुधार लाता है तथा आदेश एवं अनुशासन को सुनिश्चित करता है।

नियंत्रण की सीमाएँ

नियंत्रण की कुछ सीमाएँ भी हैं- जैसे परिमाणात्मक मानकों के निर्धारण में कठिनाई, बाह्य घटकों पर अल्प नियंत्रण, कर्मचारियों का प्रतिरोध, महँगा सौदा विशेषकर छोटे-छोटे संस्थानों में। इसके अतिरिक्त यह हमेशा संभव नहीं होता कि प्रबंध निष्पादन के लिए मात्रात्मक मानकों का निर्धारण कर सके जिसकी अनुपस्थिति के कारण नियंत्रण का प्रभावीकरण कुछ कम हो जाता है।

नियंत्रण प्रक्रिया

नियंत्रण प्रक्रिया में निष्पादन मानकों का निर्धारण, वास्तविक निष्पादन की माप, मानकों एवं वास्तविक निष्पादन की तुलना, विचलनों का विश्लेषण तथा सुधारात्मक कार्यवाही करना सम्मिलित हैं।

नियोजन एवं नियंत्रण में संबंध

नियोजन एवं नियंत्रण प्रबंध के अपृथक्करीय यमज (जुड़वाँ) हैं। नियोजन प्रबंध प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है तो नियंत्रण प्रक्रिया को पूरा करता है। नियोजन, नियंत्रण के लिए आधार प्रदान करता है तो बिना नियंत्रण सुनियोजित एवं सुसंगठित योजनाएँ भी निष्फल ही सिद्ध होती हैं तथा प्राय: निरर्थक ही रहती हैं।

नियंत्रण की पारंपरिक तकनीकें

व्यक्तिगत अवलोकन, सांख्यकीय रिपोर्ट्स/प्रतिवेदन, बिना हानि-लाभ व्यापार विश्लेषण तथा बजटीय नियंत्रण, नियंत्रण की पारंपरिक तकनीकें हैं।

नियंत्रण की आधुनिक तकनीकें

विनियोगों पर आय, अनुपात विश्लेषण, उत्तरदायित्व लेखांकन, तथा प्रबंध अंकेक्षण नियंत्रण की आधुनिक तकनीकें हैं। इसके अतिरिक्त कार्यक्रम मूल्यांकन तथा पुनरावलोकन एवं अलोचनात्मक उपाय प्रणाली भी आधुनिक तकनीकों के अंग हैं।

अभ्यास

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. नियंत्रण का अर्थ समझाइए।

2. उस सिद्धांत का नाम बताएँ जिस पर एक प्रबंधक को विचलन से प्रभावी ढंग से निपटने के दौरान विचार करना चाहिए। कोई एक स्थिति बताएँ जिसमें एक संगठन की नियंत्रण प्रणाली अपनी प्रभावशीलता खो देती है।

3. मानक प्रदर्शन और वास्तविक प्रदर्शन के बीच अंतर को इंगित करने के लिए किस शब्द का उपयोग किया जाता है?

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. ‘नियोजन आगे की ओर और नियंत्रण पीछे की ओर देखना है।’ टिप्पणी करें।

2. ‘सब कुछ नियंत्रित करने का प्रयास कुछ भी नियंत्रित न कर पाने में समाप्त हो सकता है।’ चर्चा करें।

3. प्रबंधकीय नियंत्रण की तकनीक के रूप में बजटीय नियंत्रण पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।

4. बताएँ कि प्रबंधन लेखा परीक्षा कैसे नियंत्रित करने की प्रभावी तकनीक के रूप में कार्य करती है।

5. श्री अर्फाज स्टेशनरी उत्पाद बनाने वाली कंपनी राइटवेल प्रोडक्ट्स लिमिटेड के उत्पादन विभाग का कार्यभार देख रहे थे। फर्म को एक निर्यात आदेश मिला जिसे प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाना था और उत्पादन लक्ष्यों को सभी कर्मचारियों के लिए परिभाषित किया गया। श्रमिकों में से एक, भानू प्रसाद, लगातार दो दिन तक अपने दैनिक उत्पादन लक्ष्य से 10 इकाइयाँ कम रहा। श्री अर्फाज ने भानू प्रसाद के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए कंपनी की सी.ई.ओ. वसुंधरा से संपर्क किया और उनसे उसकी सेवाओं को समाप्त करने का अनुरोध किया। उस प्रबंधन नियंत्रण के सिद्धांत की व्याख्या करें जिस पर वसुंधरा को अपना निर्णय लेने के दौरान विचार करना चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. नियंत्रण की प्रक्रिया में शामिल विभिन्न चरणों की व्याख्या करें।

2. प्रबंधकीय नियंत्रण की तकनीक की व्याख्या करें।

3. किसी संगठन में नियंत्रण के महत्व की व्याख्या करें। एक प्रभावी प्रणाली को लागू करने में संगठन द्वारा सामना की जाने वाली समस्याएँ क्या हैं?

4. योजना और नियंत्रण के बीच संबंधों पर चर्चा करें।

5. एक कंपनी ‘एम’ लिमिटेड घरेलू भारतीय बाजार के साथ-साथ निर्यात के लिए मोबाइल फोन का निर्माण करती है। कंपनी ने पर्याप्त बाजार हिस्सेदारी का आनंद लिया था और उसके पास वफादार ग्राहक आधार भी था। लेकिन हाल ही में यह कंपनी समस्याओं का सामना कर रही है क्योंकि बिक्री और ग्राहक संतुष्टि के संबंध में इसके लक्ष्य पूरे नहीं किए जा सके हैं। भारत में भी मोबाइल बाजार

में काफी वृद्धि हुई है और नए खिलाड़ी बेहतर तकनीक और मूल्य निर्धारण के साथ आए हैं। इससे कंपनी के लिए समस्याएँ पैदा हो रही हैं। कंपनी अपनी नियंत्रण प्रणाली को संशोधित करने और समस्याओं का समाधान करने के लिए आवश्यक अन्य कदम उठाने की योजना बना रही है।

(i) कंपनी को एक अच्छी नियंत्रण प्रणाली से प्राप्त होने वाले लाभों की पहचान करें।

(ii) यह सुनिश्चित करने के लिए कि कंपनी की योजनाएँ वास्तव में कार्यान्वित की गई हैं और लक्ष्य प्राप्त किए गए हैं, कंपनी कैसे कारोबार के इस क्षेत्र में नियंत्रण के साथ योजना को संबद्ध कर सकती है?

(iii) कंपनी को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उनके निवारण के लिए कंपनी द्वारा उठाए जा सकने वाले नियंत्रण प्रक्रिया के कदम बताएँ।

6. श्री शांतनु वस्त्र बनाने वाली एक प्रतिष्ठित कंपनी के मुख्य प्रबंधक हैं। उन्होंने उत्पादन प्रबंधक को बुलाया और निर्देश दिया कि वह अपने विभाग से संबंधित सभी गतिविधियों पर निरंतर जाँच करें ताकि सब कुछ निर्धारित योजना के अनुसार हो। उन्होंने उन्हें संगठन के सभी कर्मचारियों के प्रदर्शन पर नज़र रखने का भी सुझाव दिया ताकि लक्ष्य प्रभावी ढंग से और कुशलतापूर्वक हासिल किए जा सकें।

(i) उपर्युक्त स्थिति में वर्णित नियंत्रण की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन करें।

(ii) नियंत्रण के चार महत्व बताएँ।



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