अध्याय 07 निर्देशन
धरातलीय (ग्रासरूट) नेतृत्व - फोर्ड मोटर कंपनी
फोर्ड हमेशा से ही कुशल प्रबंधकों तथा तकनीशियनों को आकर्षित तथा प्रोत्साहित करती रही है, परंतु यह एजेंटों तथा नेतृत्वकर्ताओं के लिए ऐसा करने में असफल रही है। इसलिए एक ऑटोमेकर की सांस्कृतिक पुनर्कल्पना के रूप में, फोर्ड बड़े स्तर पर उच्च उत्पादक नेतृत्वकर्ता बनाने की प्रक्रिया के प्रारंभन की कगार पर है। यह ‘व्यावसायिक योद्धाओं’ की एक सेना तैयार करना चाहती है जिनके पास साहस हो और नया सोचने की क्षमता हो और जो कुछ सार्थक बदलने में विश्वास रखते हों।
फोर्ड मोटर कंपनी ने अपनी वरिष्ठ प्रबंधन टीम में महत्वपूर्ण बदलाव की घोषणा की क्योंकि यह अपने ऑटोमोटिव व्यवसाय को मजबूत, कंपनी की परिचालन फिटनेस में सुधार और उभरते अवसरों को भुनाने के लिए रणनीतिक बदलाव को तेज कर रही है। नेतृत्व में बदलाव की घोषणा करते हुए, फोर्ड के अध्यक्ष और सीईओ जिम हैकेट ने कहा, “फोर्ड दुनिया की सबसे भरोसेमंद गतिशील कंपनी बनने के अपने दृष्टिकोण की ओर बढ़ते हुए अपने व्यापार को मजबूत बनाने के लिए एक अनुभवी और प्रतिबद्ध कार्यकारी टीम के प्रति आभारी है।” उनका उद्देश्य व्यापार को परिचालन फिटनेस, उत्पाद और ब्रांड उत्कृष्टता और लाभप्रदता के नए स्तर तक ले जाना है।
स्रोत-http://media.ford.com/content/fordmedia/fna/us/en/news/2018/02/22/company-news.html
अधिगम उद्देश्य
इस अध्याय के अध्ययन के पश्चात् आप-
- निर्देशन की अवधारणा तथा व्यावसायिक संगठनों में इसके महत्त्व को स्पष्ट कर सकेंगे;
- उन तत्वों को समझ सकेंगे जो निर्देशन की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं;
- पर्यवेक्षण के अर्थ तथा इसके महत्त्व की व्याख्या कर सकेंगे;
- व्यावसायिक प्रबंधन में अभिप्रेरणा के अर्थ तथा इसके महत्त्व को स्पष्ट कर सकेंगे;
- मास्लों के आवश्यकताओं की क्रमबद्धता सिद्धांत को समझा सकेंगे तथा संगठन में कर्मचारियों को प्रेरित करने में इसकी प्रयोगात्मकता का वर्णन कर सकेंगे;
- वित्तीय तथा गैर वित्तीय प्रोत्साहनों की व्याख्या कर सकेंगे जिनके द्वारा प्रबंधक अपने कर्मचारियों को अभिप्रेरित करते हैं;
- नेतृत्व की अवधारणा तथा प्रबंध में इसके महत्त्व की व्याख्या कर सकेंगे;
- अच्छे नेता के गुणों का वर्णन कर सकेंगे;
- संगठन में औपचारिक तथा अनौपचारिक संप्रेषण को स्पष्ट कर सकेंगे;
- प्रभावी संप्रेषण की विभिन्न बाधाओं की पहचान कर सकेंगे तथा संगठन में इनसे उभरने के लिए उपाय बता सकेंगे।
विषय प्रवेश
यह केस प्रबंधकीय कार्य के महत्त्वपूर्ण तथ्य को उजागर करता है-यह हमेशा संभव नहीं है कि खाली/एकमात्र औपचारिक प्रभुत्व के द्वारा कर्मचारियों से उत्तम कार्य लिया जा सकता है। एक प्रबंधक के लिए यह आवश्यक है कि वह नेतृत्व, अभिप्रेरणा तथा अपने अधीनस्थों को प्रेरित करने के लिए विभिन्न तरीकों का प्रयोग करें जो उनके लिए उपयुक्त हो। ये विधियाँ, जिनकी वर्तमान अध्याय में चर्चा की गई है, सामूहिक रूप से इन्हें प्रबंधन की निर्देशन क्रिया कहा जाता है।
अर्थ
साधारणत-निर्देशन का अर्थ निर्देश देने तथा व्यक्तियों के कार्य में मार्गदर्शन करने से है। हमारे प्रतिदिन के जीवन में हमारे सामने ऐसी बहुत सी स्थितियाँ आती हैं जैसे-कोई होटल प्रबंधक अपने कर्मचारियों को किसी कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए निर्देश देता है, एक शिक्षक अपने छात्रों को निर्देश देता है, कि वे किस प्रकार अपने दत्त कार्य (असाइनमेंट) को पूरा करें, चलचित्र निदेशक अपने कलाकारों को निर्देश देता है कि वे फिल्म में कैसे अभिनय करें इत्यादि, इन सभी स्थितियों में, हम यह देखते हैं कि पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु निर्देशन किया गया है।
संगठन के प्रबंधन के संदर्भ में, निर्देशन व्यक्तियों को आदेश देने, मार्गदर्शन, परामर्श, अभिप्रेरित तथा कुशल नेतृत्व प्रदान करने की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति है।
आप यहाँ अवलोकित कर सकते हैं कि निर्देशन केवल संप्रेषण नहीं है अपितु यह अन्य बहुत सारे तत्वों को भी सम्मिलित करता है जैसे- पर्यवेक्षण, अभिप्रेरणा तथा नेतृत्व। सभी प्रबंधकों द्वारा निष्पादित मुख्य प्रबंधकीय क्रियाओं में निर्देशन एक है। निर्देशन एक ऐसी प्रबंधकीय प्रक्रिया है जो संस्था के पूरे कार्यकाल तक चलने वाली है।
निर्देशन की मुख्य विशेषताओं की चर्चा नीचे की गई है -
(क) निर्देशन क्रिया को प्रारंभ करती है - निर्देशन एक मुख्य प्रबंधकीय कार्य है। एक प्रबंधक को इसका निष्पादन अन्य क्रियाएँ जैसे-नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण तथा नियंत्रण इत्यादि के साथ ही संगठन में अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हुए करना पड़ता है। जहाँ अन्य कार्य, क्रिया के प्रारंभ होने से पूर्व की तैयारी से संबंधित हैं, वहाँ निर्देशन संगठन में क्रिया को प्रारंभ करता है।
(ख) निर्देशन प्रबंधन के प्रत्येक स्तर पर निष्पादित होता है- प्रत्येक प्रबंधक, उच्च अधिकारी से लेकर पर्यवेक्षक तक निर्देशन क्रिया का निष्पादन करते हैं। जहाँ भी अधिकारी-अधीनस्थ संबंध हैं, वहाँ निर्देशन की प्रक्रिया स्वतः ही होती है।
(ग) निर्देशन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है- निर्देशन एक सतत् क्रिया है। संगठन के पूरे कार्यकाल में चलने वाली प्रक्रिया है, निरपेक्ष ( बिना ध्यान में रखे) कि कौन व्यक्ति प्रबंधकीय पदों पर कार्यरत है। हम यह देख सकते हैं कि इनफोसिस, टाटा तथा भेल, एच. सी. एल. (HCL) जैसी संस्थाओं में प्रबंधक बदल सकते हैं परंतु निर्देशन की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है क्योंकि बिना निर्देशन के संगठनिक क्रियाएँ आगे नहीं चल सकती।
(घ) निर्देशन ऊपर से नीचे की तरफ प्रवाहित होता है- निर्देशन पहले उच्च स्तर पर प्रारंभ होता है तथा फिर वह संगठनिक अनुक्रम के द्वारा नीचे की दिशा में प्रवाहित होता है। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक प्रबंधक अपने निकटस्थ अधीनस्थ को निर्देशित कर सकता है तथा अपने ऊपर के अधिकारी से आदेश लेता है।
निर्देशन का महत्त्व
निर्देशन का महत्त्व इस तथ्य से समझा जा सकता है कि संस्था को प्रत्येक क्रिया/कार्य का प्रारंभ केवल निर्देशन के द्वारा ही होता है। निर्देशन व्यक्तियों को, समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इकट्ठा करती है। निर्देशन के माध्यम से प्रबंधक संस्था में न केवल व्यक्तियों को यह बताते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए, कब करना चाहिए तथा कार्य को कैसे करना है बल्कि यह भी देखना है कि उनके निर्देशों का क्रियान्वयन उपयुक्त परिप्रेक्ष्य में हुआ है। बहुधा, यह संगठन के प्रभावपूर्ण कार्य निष्पादकता में एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में कार्य करता है।
वे बिंदु जो निर्देशन के महत्त्व को बल देते हैं, उनका विवरण इस प्रकार है-
(क) संगठन में व्यक्तियों के कार्य को प्रारंभ करने में निर्देशन सहायता करता है। जो संस्था के वांछित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक पर्यवेक्षक अपने अधीनस्थों का मार्गदर्शन करता है तथा उनकी समस्याओं को जो उन्हें कार्य-निष्पादन करते हुए हो सकती हैं, उनको दूर करने में मदद करता है तो यह कर्मचारियों को मदद करती है कि वे अपने निर्धारित कार्य-लक्ष्यों को दिए गए समय पर पूरा कर सकें।
(ख) निर्देशन संगठन में कर्मचारियों के व्यक्तिगत प्रयासों को इस प्रकार समाकलित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति के कार्य का योगदान संस्था के निष्पादन में तथा सफलता में होता है। इस प्रकार, यह निश्चित करती है कि प्रत्येक व्यक्ति का कार्य संगठन के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हो। उदाहरण के लिए, एक प्रबंधक जिसमें अच्छे नेतृत्व की योग्यताएँ हों तो वह इस स्थिति में होता है कि, अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को यह विश्वास दिला सके कि व्यक्तिगत प्रयास तथा सामूहिक प्रयास दोनों मिलकर ही संस्था के उद्देश्यों/लक्ष्यों की पूर्ति में सहायक हैं।
(ग) निर्देशन कर्मचारियों का मार्गदर्शन करता है जिससे वह अपनी क्षमताओं एवं योग्यताओं का पूर्णतः प्रयोग कर सकें। इसके लिए निर्देशन उन्हें प्रोत्साहित करता है तथा प्रभावपूर्ण नेतृत्व भी प्रदान करता है। एक अच्छा नेता हमेशा अपने कर्मचारियों की कार्य-क्षमता की पहचान करने में सक्षम होता है तथा उन्हें प्रोत्साहित करता है कि वे उस क्षमता का पूर्ण प्रयोग कार्य निष्पादन में कर सकें।
(घ) निर्देशन संगठन में आवश्यक परिवर्तनों को प्रारंभ करने में मदद करता है। सामान्यतः लोगों की यह प्रवृत्ति होती है कि वे संस्था में नए परिवर्तनों का विरोध करते हैं। अभिप्रेरणा के द्वारा प्रभावी निर्देशन, संप्रेषण तथा नेतृत्व सहायता करता है। ऐसे प्रतिरोधों को कम करने में तथा नए परिवर्तनों को संस्था में प्रारंभ करने में आवश्यक सहयोग के विकास में भी सहायक है। उदाहरण के लिए यदि कोई प्रबंधक कोई नयी लेखा-विधि की व्यवस्था प्रारंभ करना चाहता है, शुरुआत में लेखा विभाग से विरोध आ सकता है। परंतु, यदि प्रबंधक कारण समझाता है, उन्हें प्रशिक्षण दिलाता है तथा अतिरिक्त पारिश्रमिक/प्रतिफल के द्वारा उन्हें अभिप्रेरित करता है, तो कर्मचारी इस परिवर्तन को स्वीकार कर सकते हैं तथा प्रबंधक के साथ सहयोग भी करेंगे।
(ङ) प्रभावी निर्देशन संस्था में स्थिरता तथा संतुलन बनाए रखने में भी सहायता प्रदान करता है क्योंकि यह आपसी सहयोग तथा प्रतिबद्धता को लोगों के बीच बढ़ाता है तथा विभिन्न समूहों, क्रियाओं तथा विभागों के मध्य संतुलन बनाए रखने में भी सहायक है।
निर्देशन के सिद्धांत
अच्छा तथा प्रभावी निर्देशन प्रदान करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि इसमें बहुत-सी जटिलताएँ सम्मिलित हैं। एक प्रबंधक को उन सभी व्यक्तियों के साथ जिनकी भिन्न पृष्ठभूमि तथा उम्मीदें हैं, संबंध रखना पड़ता है यह निर्देशन की प्रक्रिया को जटिल बना देती है। कुछ निर्देशन के मार्गदर्शक सिद्धांत हैं जो निर्देशन की प्रक्रिया में सहायक हो सकते हैं। इन सिद्धांतों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है-
(क) अधिकतम व्यक्तिगत योगदान- यह सिद्धांत इस पर बल देता है कि निर्देशन की तकनीकें सभी व्यक्तियों को संस्था में सहायता दें, कि वे अपनी संभावित क्षमताओं का अधिकतम योगदान संगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति में दे सकें। यह संस्था के कुशल निष्पादन के लिए कर्मचारियों की अप्रयुक्त ऊर्जा को उभार कर प्रयोग में ला सकें। उदाहरण के लिए, एक अच्छी अभिप्रेरणा नियोजन, वित्तीय तथा गैर वित्तीय प्रतिफलों सहित कर्मचारियों को प्रेरित कर सकती है ताकि वे संस्था के लिए अपने अधिकतम प्रयास कर सकें क्योंकि उन्हें यह लगेगा कि उनके इन प्रयासों का उन्हें उपयुक्त पारिश्रमिक/प्रतिफल मिलेगा।
(ख) संगठनिक उद्देश्यों में ताल- मेल-प्राय: हम पाते हैं कि कर्मचारियों के व्यक्तिगत उद्देश्यों तथा संगठनिक उद्देश्यों में आपस में द्वंद्व होता है। उदाहरण के लिए, एक कर्मचारी अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक आकर्षक वेतन तथा वित्तीय लाभों की आकांक्षा रखता है। संस्था कर्मचारियों से यह अपेक्षा करती है कि वे अपनी उत्पादकता बढ़ाएँ ताकि वांछित लाभ हो सकें। परंतु अच्छा निर्देशन इन दोनों में तालमेल बिठाता है तथा कर्मचारी को यह विश्वास दिलाता है कि कार्यकुशलता तथा पारिश्रमिक दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
(ग) आदेश की एकता- यह सिद्धांत इस पर बल देता है कि कर्मचारी को केवल एक ही उच्च अधिकारी से आदेश मिलने चाहिए। यदि आदेश एक से अधिक अधिकारियों से मिलते हैं, तो यह भ्रांति पैदा करते हैं तथा संस्था में द्वंद्व तथा अव्यवस्था फैलाते हैं। ‘आदेश की एकता’ सिद्धांत के पालन से प्रभावी निर्देशन निश्चित होता है।
(घ) निर्देशन तकनीकों की उपयुक्तता/ औचित्य- इस सिद्धांत के अनुसार, निर्देशन उपयुक्त अभिप्रेरक तथा नेतृत्व की तकनीकों का प्रयोग करते समय कर्मचारियों की आवश्यकताओं, योग्यताओं, उनके दृष्टिकोण तथा अन्य वस्तुस्थितियों का ध्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए, कुछ व्यक्तियों के लिए पैसा एक सशक्त अभिप्रेरक का कार्य कर सकता है, दूसरी तरफ किसी के लिए पदोन्नति एक प्रभावी प्रेरक का कार्य करती है।
(ङ) प्रबंधकीय संप्रेषण- संस्था के सभी स्तरों पर प्रभावी प्रबंधकीय संत्रेषण निर्देशन को भी प्रभावपूर्ण बनाता है। अधीनस्थों की संपूर्ण पारस्परिक समझ को बनाने के लिए निर्देशक को स्पष्ट अनुदेश/ निर्देश, जारी करने चाहिए। उपयुक्त प्रतिपुष्टि के द्वारा, प्रबंधकों को यह निश्चित करना चाहिए कि अधीनस्थ उसके निर्देश को स्पष्ट रूप से समझ रहे हैं।
(च) अनौपचारिक संगठन का प्रयोग- एक प्रबंधक को यह समझना चाहिए कि प्रत्येक औपचारिक संगठन के अंतर्गत ही अनौपचारिक समूह तथा संगठन पाए जाते हैं। उसे उन्हें पहचान कर उन संगठनों का समुचित प्रयोग एक प्रभावी निर्देशन के लिए करना चाहिए।
(छ) नेतृत्व- कर्मचारियों का निर्देशन करते समय, प्रबंधक को एक अच्छे नेतृत्व का प्रदर्शन करना चाहिए क्योंकि यह अधीनस्थों को बिना उनके बीच किसी असंतोष की भावना के सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
(झ) अनुसरण करना- केवल आदेश देना ही पर्याप्त नहीं है। प्रबंधक को निरंतर पुनरीक्षण के द्वारा अनुसरण करना चाहिए कि उनके आदेशों का यथावत् पालन हुआ है कि नहीं अथवा उन्हें किन्हों कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यदि आवश्यक हो, तो उपयुक्त संशोधन/परिवर्तन इस दिशा में किए जाने चाहिए।
निर्देशन के तत्व
निर्देशन की प्रक्रिया में मार्गदर्शन, परामर्श, निर्देश, अभिप्रेरणा तथा संस्था में कर्मचारियों का नेतृत्व यह सभी, संगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सम्मिलित हैं। निम्न उदाहरण को देखिए -
(क) एक पर्यवेक्षक कर्मचारी को खराद (Lathe machine) की मशीन पर उसे क्या क्रियाएँ करनी हैं, समझाता है;
(ख) एक खदान अभियंता (इंजीनियर) कोयले की खदानों में कार्य करते समय किन सुरक्षा सावधानियों का पालन करेगा यह समझाता है;
(ग) एक प्रबंध निर्देशक कंपनी के लाभ में प्रबंधक के योगदान के लिए उसका लाभ में भागीदारी घोषित करता है; तथा
(घ) एक प्रबंधक कार्य निष्पादन में अग्रभूमिका निभाकर जब अपने कर्मचारियों को प्रेरित करता है।
ये सभी उदाहरण तथा बहुत सारी अन्य क्रियाएँ जो निर्देशन से संबंधित हैं, उन्हें विस्तृत रूप से चार वर्गों में बाँटा जा सकता है जिन्हें निर्देशन के तत्व कहते हैं। ये तत्व हैं-
(क) पर्यवेक्षण
(ख) अभिप्रेरणा
(ग) नेतृत्व
(घ) संप्रेषण
निर्देशन के विषय में और अधिक जानकारी के लिए, इन सभी तत्वों की चर्चा विस्तृत रूप से नीचे की गई है।
पर्यवेक्षण
‘पर्यवेक्षण’ शब्द को दो प्रकार से समझा जा सकता है। प्रथमतः इसे निर्देशन के एक तत्व के रूप में समझा जा सकता है, दूसरा संस्था के क्रम शृंखला में पर्यवेक्षकों द्वारा किए गए एक कार्य निष्पादन के रूप में।
निर्देशन के एक तत्व के रूप में संगठन के प्रत्येक प्रबंधक को अपने अधीनस्थों का पर्यवेक्षण करना पड़ता है। इस अर्थ में, पर्यवेक्षण को एक प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है, जो वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कर्मचारियों के
निर्देशन
प्रयासों के मार्गदर्शन तथा अन्य संसाधनों के प्रयोग से संबंधित है। इसका अर्थ है अधीनस्थों द्वारा किए गए कार्यों का निरीक्षण तथा यह निश्चित करने के लिए कि संसाधनों के अधिकतम प्रयोग एवं कार्य लक्ष्यों को पूरा करने हेतु अधीनस्थों को आवश्यक निर्देश देना है।
दूसरी तरफ पर्यवेक्षण को पर्यवेक्षक के एक कार्य निष्पादन के रूप में भी समझा जा सकता है, संगठन के क्रम शृंखला के क्रियात्मक स्तर पर एक प्रबंधकीय पद पर जैसे, श्रमिकों के तत्काल ऊपर। किसी संस्था के लिए पर्यवेक्षक का कार्य तथा निष्पादन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह प्रत्यक्ष रूप से श्रमिकों के साथ जुड़ा हुआ है, (उनके संपर्क में है) जबकि प्रबंधकों का निचले स्तर पर कार्य कर रहे कर्मचारियों के साथ कोई प्रत्यक्ष संपर्क नहीं होता।
पर्यवेक्षण के महत्त्व
पर्यवेक्षण के महत्त्व को, पर्यवेक्षक द्वारा निभाई गई विविध भममिकाओं के द्वारा समझा जा सकता है, जिनका विवरण नीचे दिया गया है -
(क) पर्यवेक्षक प्रतिदिन कर्मचारियों के संपर्क में रहता है तथा उनसे मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखता है। एक अच्छा पर्यवेक्षक श्रमिकों के लिए मार्गदर्शक, मित्र तथा एक दार्शनिक के रूप में कार्य करता है।
(ख) पर्यवेक्षक प्रबंधक तथा श्रमिकों के मध्य एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। वह एक तरफ श्रमिकों को प्रबंध के विचारों को बताता है तथा दूसरी तरफ श्रमिकों की समस्याओं को प्रबंध के सामने रखता है। पर्यवेक्षक द्वारा निभाई गई यह भूमिका प्रबंधन तथा कर्मचारियों/ श्रमिकों के बीच किसी भी गलतफहमी को नहीं आने देता तथा उनके मध्य किसी प्रकार के द्वंद्व से भी बचाव करती है।
(ग) पर्यवेक्षक अपने अधीनस्थ श्रमिकों में जो उसके नियंत्रण में हैं उनसे सामूहिक एकता को बनाए रखने में एक मुख्य भूमिका निभाता है। वह आंतरिक मतभेदों को निपटाता है तथा श्रमिकों में तालमेल बिठाकर रखता है।
(घ) पर्यवेक्षक निर्धारित लक्ष्यों के अनुसार कार्य का निष्पादन सुनिश्चित करता है। वह कार्य पूरा करने का उत्तरदायित्व लेता है तथा अपने श्रमिकों को प्रभावपूर्ण तरीके से अभिप्रेरित करता है।
(ङ) पर्यवेक्षक कार्यस्थल/पद कार्य पर ही कर्मचारियों तथा श्रमिकों को प्रशिक्षित करता है। एक कुशल तथा ज्ञानवान पर्यवेक्षक ही कार्यकुशल श्रमिकों का दल तैयार कर सकता है।
(च) पर्यवेक्षक नेतृत्व संगठन के श्रमिकों को प्रभावित करने में एक मुख्य भूमिका निभाता है। एक पर्यवेक्षक जिसमें अच्छे नेतृत्व के गुण हैं वह अपने श्रमिकों के मध्य उच्च मनोवृत्ति का विकास कर सकता है।
(छ) एक अच्छा पर्यवेक्षक कार्य निष्पादन का विश्लेषण करता है तथा अपनी सलाह अथवा प्रतिपुष्टि (फीडबैक) श्रमिकों को देता है। वह कार्यकुशलता के विकास के लिए उन्हें सुझाव तथा तरीके भी बताता है।
एक असंतुष्ट प्रबंधक का निर्देशन
रश्मि जोशी पिछले दस सालों से फाईन प्रोडक्शनस् में एक मंडलीय विक्रय प्रबंधक के रूप में कार्य कर रही है। अपने सह-कर्मचारियों तथा पर्यवेक्षकों के द्वारा उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पहचान प्राप्त है जिन्होंने विभाग का अच्छी तरह से प्रबंधन किया है। तथापि, सभी ने यह महसूस किया कि रश्मि बहुत महत्त्वाकांक्षी थी तथा उच्च स्तरीय प्रबंधन पद के लिए भी इच्छुक थीं। जब कोई उनका विक्रय अधिकारी अच्छा कार्य करता तो उसका श्रेय वह लेने की चेष्टा करती, और कोई समस्या आने पर वे ऐसा सोचती कि इसमें उनकी कोई गलती नहीं है। जब विपणन (मार्केटिंग) प्रबंधक सेवानिवृत्त हुए, तो रश्मि ने उस पद के लिए अपना आवेदन पत्र दिया। पद के उत्तरदायित्व तथा महत्त्व को देखते हुए कंपनी ने गहन खोजबीन करने का निर्णय लिया। जब खोज का निष्कर्ष निकला, निर्णय लिया गया कि इस पद पर कंपनी के बाहर के किसी व्यक्ति को नियुक्त किया जाए। उच्च प्रबंधन इस सामूहिक निष्कर्ष पर पहुँची कि रश्मि, हालाँकि एक अच्छी मंडलीय विक्रय प्रबंधक हैं परंतु उन्हें अपने नए सह कर्मियों के साथ कार्य करने में कठिनाई आ सकती है। उन्होंने ऐसा अनुभव किया कि वे उन प्रबंधकों को नाखुश कर देंगी जिनके कार्य का श्रेय लेने का वह प्रयास करेंगी, तथा, परिणामतः उनकी कार्य निष्पादन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
रश्मि का दिल टूट गया। उन्हें इस विशिष्ट पद की बहुत दिनों से चाह थी और इसके लिए उन्होंने अपने सभी प्रयास तथा ऊर्जा लगाई कि उन्हें यह पद मिल जाए। वह बहुत निराश हो गईं तथा उनकी कार्य गुणवत्ता का भी ह्रास होता गया। विभाग उनके बिना भी वैसे ही कार्य करता रहा। निर्णय धीरे-धीरे लिए गए तथा उन्होंने अपनी सेल्स रिपोर्ट देर से देना प्रारंभ कर दिया। हालाँकि उनके अधीनस्थ विक्रय कर्मचारी अपनी उत्पादन क्षमता को बनाए रखने में सक्षम रहे, रश्मि उनका श्रेय नहीं ले सकीं।
जब नए विपणन प्रबंधक ने कार्यभार संभाला, उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि रश्मि को किस प्रकार अपने पहले/पूर्व निष्पादन स्तर पर लाने के लिए अभिप्रेरित करें। उन्होंने यह पहचाना कि रशमी कंपनी के साथ बहुत लंबे समय से जुड़ी हैं, परंतु उन्हें अभिप्रेरित करने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही था, ताकि वे वास्तव में अपना कार्य निष्पादन अच्छा कर सकें।
अभिप्रेरणा-अर्थ
वह क्या है जिसके कारण व्यक्ति विशेष प्रकार का व्यवहार करते हैं? क्या कारण है, कुछ लोग कार्य करने के लिए अपनी अनिच्छा दिखाते हैं जबकि उनमें कार्य करने की योग्यता होती है? क्या किया जाना चाहिए कि व्यक्ति अपना कार्य कुशलतापूर्वक करें?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर देने के लिए प्रबंधक को अपनी अन्त: दृष्टि का विकास करना चाहिए ताकि वह व्यक्तियों के व्यवहार के कारण जान सके। एक प्रबंधक को अत्यंत उच्च प्रतिबद्ध तथा मेहनती कर्मचारियों के साथ भी कार्य करना पड़ता है अथवा उसे आलसी, अस्पष्ट तथा सतही श्रमिकों से भी कार्य लेना होता है। वे शायद यह आश्चर्य करें कि उन श्रमिकों के साथ क्या किया जाए जो अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करने के लिए इच्छुक ही नहीं हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि वह अभिप्रेरणा
है, जो व्यक्तियों की अपनी स्वेच्छा से कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। आइए, अभिप्रेरणा के विषय में कुछ समझने का प्रयास करें।
अभिप्रेरणा
अभिप्रेरणा का अर्थ है किसी भी कार्य या क्रिया को प्रेरित अथवा प्रभावित करना। व्यवसाय के संदर्भ में, इसका अर्थ उस प्रक्रिया से है जो अधीनस्थों को निर्धारित संगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक वांछित रूप से कार्य करने के लिए तैयार करती है। अभिप्रेरणा के विषय में चर्चा करते समय, यह आवश्यक है कि हम तीन परस्पर संबंधित शब्दों को समझें-उद्देश्य/लक्ष्य, अभिप्रेरणा तथा उत्प्रेरक। आइए इन शब्दों के बारे में जानने का प्रयास करें -
(क) उद्देश्य- उद्देश्य एक आंतरिक स्थिति है जो व्यवहार को ऊर्जित, सक्रिय बनाती है तथा लक्ष्यों की पूर्ति के लिए दिशा निर्देशित करती है। उद्देश्य मनुष्य की आवश्यकताओं से उत्पन्न होता है। उस उद्देश्य की पूर्ति मनुष्य में एक बेचैनी पैदा करती है जो उसे उस बेचैनी को कम करने के लिए कुछ क्रिया करने के लिए तत्पर करती है। उदाहरण के लिए, खाने की आवश्यकता भूख पैदा करती है जिसके कारण मनुष्य खाने की खोज करता है। ऐसे ही कुछ लक्ष्य हैं-भूख, प्यास, सुरक्षा, जुड़ाव, सुख-सुविधाओं की आवश्यकता, पहचान, मान-सम्मान इत्यादि।
अभिप्रेरणा की परिभाषा
“अभिप्रेरणा एक ऐसी प्रक्रिया है जो वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यक्तियों को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।” विलियम जी. एकाउंट
“अभिप्रेरणा से तात्पर्य उस तरीके से है जिसमें आवेग, प्रेरणा, इच्छाएँ, आकांक्षाएँ, प्रयास अथवा आवश्यकताएँ मनुष्य के व्यवहार को निर्देशित, नियंत्रित तथा उसे स्पष्ट करती हैं।” मैक फारलैंड
“अभिप्रेरणा एक जटिल बल है जो कार्य प्रारंभ करने तथा संगठन में व्यक्तियों को कार्यरत रखने का कार्य करती हैं। अभिप्रेरणा वह है जो व्यक्तियों को कार्य प्रारंभ करने के लिए तैयार करती है तथा निरंतर कार्य करने के लिए भी प्रेरित करती है जो कार्य पहले ही प्रारंभ हो चुका है।” डयूबिन
“अभिप्रेरणा एक ऐसी प्रक्रिया है जो एक शारीरिक अथवा मनोवैज्ञानिक आवश्यकता अथवा कमी के साथ प्रारंभ होती है जो किसी व्यवहार अथवा प्रेरणा को उत्पन्न करती है जिसका उद्देश्य किसी लक्ष्य अथवा प्रोत्साहन की पूर्ति करना है।” फ्रेड ल्यूधांस
(ख) अभिप्रेरणा- अभिप्रेरणा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगों को, वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रेरित किया जाता है। अभिप्रेरणा व्यक्तियों की आवश्यकताओं की संतुष्टि पर निर्भर करती है।
(ग) अभिप्रेरक- अभिप्रेरक वह तकनीक है जिसका प्रयोग संगठन में लोगों को प्रेरित करने के लिए किया जाता है। प्रबंधक विविध प्रेरकों का प्रयोग करते हैं जैसे- वेतन, बोनस, पदोन्नति, पहचान प्रशंसा, उत्तरदायित्व इत्यादि का संगठन में लोगों के व्यवहार को प्रभावित करने के लिए किया जाता है ताकि वे अपना सर्वोत्तम योगदान दे सकें।
अभिप्रेरणा की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ बॉक्स में दी गई हैं-
विभिन्न परिभाषाओं तथा अभिप्रेरणा पर भिन्न विचार बिंदुओं का विश्लेषण करने पर अभिप्रेरणा की निम्न विशेषताएँ प्रदर्शित होती हैं-
(क) अभिप्रेरणा एक आंतरिक अनुभव है। आवेग, प्रवृत्ति, इच्छाएँ आकांक्षाएँ, प्रयास तथा मनुष्य की आवश्यकताएँ, जो कि आंतरिक हैं, मनुष्य के व्यवहार को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए व्यक्तियों की यह इच्छा/आकांक्षा हो सकती है कि उनके पास मोटर साईकिल हो आरामदेह घर हो, समाज में उनकी प्रतिष्ठा हो। ये इच्छाएँ मनुष्य की आंतरिक इच्छाएँ हैं।
(ख) अभिप्रेरणा एक लक्ष्य आधारित व्यवहार को जन्म देती है। उदाहरण के लिए, एक कर्मचारी को पदोन्नति उसके निष्पादन को सुधारने के उद्देश्य से दी जा सकती है। यदि कर्मचारी को उस पदोन्नति में रुचि है, तो यह ऐसे व्यवहार को उत्पन्न करती है जो उसकी कार्य निष्पादन में सुधार लाती है।
(ग) अभिप्रेरणा सकारात्मक अथवा नकारात्मक दोनों ही प्रकार की हो सकती है। सकारात्मक अभिप्रेरणा सकारात्मक पारिश्रमिक/प्रतिफल प्रदान करता है जैसे - वेतन में बढ़ोतरी, (वृद्धि) पदोन्नति, पहचान इत्यादि, नकारात्मक अभिप्रेरणा नकारात्मक तरीकों का प्रयोग करती है जैसे-सज़ा, वेतन वृद्धि रोकना, धमकी देना इत्यादि। ये सभी व्यक्ति को एक वांछित व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती हैं/स्थितियाँ पैदा करती हैं।
(घ) अभिप्रेरणा एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि मनुष्यों की अपेक्षाओं में विविधता है, उनके अवबोधन तथा प्रतिक्रियाओं में भी भिन्नता होती है। किसी प्रकार की अभिप्रेरणा का सब पर एक जैसा प्रभाव पड़े यह कोई आवश्यक नहीं है।
अभिप्रेरणा की प्रक्रिया
अभिप्रेरणा-प्रक्रिया मनुष्य की आवश्यकताओं पर निर्भर करती है। दिया गया साधारण मॉडल भिप्रेरणा की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है-
निम्न उदाहरण मनुष्य की आवश्यकताओं की संतुष्टि की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है-
रामू को बहुत भूख लगी है क्योंकि उसने सुबह नाश्ते में कुछ नहीं खाया था। दोपहर 1.00 बजे तक, वह बेचैन हो गया और सड़क पर कुछ जलपान या/होटल में खाना ढूँढ़ने निकल पड़ा। 2 कि. मी. चलने के बाद भी, उसे एक होटल मिला जहाँ उसे मात्र 10 रुपए में रोटी और दाल खाने को मिली, क्योंकि उसकी जेब में केवल 15 रुपए ही थे, उसने 10 रुपए देकर खाना खाया। खाना खाने के बाद, उसे लगा उसमें ऊर्जा वापिस आई।
मनुष्य की एक असंतुष्ट आवश्यकता तनाव को जन्म देती है जो उसमें आवेग उत्पन्न करता है। ये संवेग ही खोजने की प्रवृत्तिव्यवहार का सृजन करती हैं ताकि उस आवश्यकता की पूर्ति हो सके। यदि उस आवश्यकता की संतुष्टि हो जाती है, तो व्यक्ति तनाव से मुक्त हो जाता है।
अभिप्रेरणा का महत्त्व
अभिप्रेरणा को बहुत महत्त्वपूर्ण समझा गया है क्योंकि यह संस्था में लोगों की आवश्यकताओं को पहचानने तथा उन्हें संतुष्ट करने में सहायता करती है जिससे उन्हें अपने कार्य निष्पादन को सुधारने का अवसर मिलता है। यही कारण है कि सभी प्रमुख संगठन विभिन्न प्रकार वेर अभिप्रेरणात्मक कार्यक्रमों का विकास करते हैं तथा उन कार्यक्रमों पर करोड़ों रुपए खर्च करते हैं। क्योंकि मानव संसाधन अन्य संसाधनों की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण है तथा अभिप्रेरणा, संगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, मानवीय योग्यताओं के प्रभावी प्रयोग में सहायक सिद्ध होती है। इसलिए अभिप्रेरणा को एक महत्त्वपूर्ण क्रिया के रूप में माना जाता है। अभिप्रेरणा के महत्त्व को निम्नलिखित लाभों के द्वारा भी समझा जा सकता है, जो इस प्रकार हैं-
(क) अभिप्रेरणा कर्मचारियों के निष्पादन स्तर के सुधार के साथ-साथ संगठन के सफल निष्पादन में सहायक है। क्योंकि उपयुक्त अभिप्रेरणा कर्मचारियों की आवश्यकताओं को संतुष्ट करती है, वे अपनी सारी ऊर्जा अपने कार्य निष्पादन पर केंद्रित करते हैं। एक संतुष्ट कर्मचारी हमेशा एक वांछित निष्पादन करने में सक्षम होता है। संगठन में प्रभावी अभिप्रेरणा उच्च स्तरीय निष्पादन को प्राप्त करने में सहायक होती हैं क्योंकि अभिप्रेरित
कर्मचारी संगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपने प्रयासों का अधिकतम योगदान देते हैं।
(ख) अभिप्रेरणा कर्मचारियों के नकारात्मक अथवा उनके निष्क्रिय/तटस्थ दृष्टिकोण (अभिवृत्ति) को संगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उनके सकारात्मक रूपांतरण में सहायक हैं। उदाहरण के लिए, एक श्रमिक अपने कार्य के प्रति उदासीन अथवा नकारात्मक दृष्टिकोण रख सकता है, यदि उसे उपयुक्त पारिश्रमिक। प्रतिफल नहीं मिला है। यदि उपयुक्त प्रतिफल दिए जाएँ तथा पर्यवेक्षक सकारात्मक प्रोत्साहन दें तथा उनके अच्छे कार्य के लिए उनकी प्रशंसा करें, तो कर्मचारी धीरे-धीरे अपने कार्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपना सकता है।
टाटा स्टील में कर्मचारियों को अभिप्रेरणा
टाटा स्टील में कर्मचारियों एवं अधिकारियों की निर्णय लेने की प्रक्रिया में और अधिक सक्रिय भागीदारी तथा अभिप्रेरणा के स्तर को बढ़ाने के लिए अनेक प्रयास किए गए हैं जिसके लिए वैयक्तिक विकास कार्यक्रम, कौशल समीक्षा, कार्य आवर्तन प्रणाली, औपचारिक पुरस्कार एवं अभिज्ञान प्रणाली, मूल्य निर्धारण से संबद्ध ज्ञान, प्रबंध व्यवस्था, गुणवत्ता चक्रों में नेतृत्व, सुअवसर, निरंतर सुधार तथा मूल्य अभियांत्रिकी कार्यक्रम तथा एक अत्यधिक पारदर्शी एवं विश्वसनीय बहुमार्गीय संचार प्रणाली के व्यापक प्रोत्साहन संवेगों को प्रशिक्षण के साथ समाहित कर विभिन्न प्रकार के कर्मचारियों की सभी आशंकाओं, जिज्ञासाओं को विविध प्रकार के संवादों तथा औपचारिक एवं ऑनलाइन दोनों प्रकार के साधनों द्वारा निपटाया जाता है, इसके लिए वरिष्ठ प्रबंधन के साथ ‘एम. डी. ऑनलाइन’ से विशिष्ट संवाद, वीडियो कॉन्फ्रेसिंग, संगोष्ठी, मीटिंग तथा सेमिनार की व्यवस्था है। इन प्रयासों ने टाटा स्टील में एक समांगी (समरूप) तथा सकेंद्रित टीम बनाने में सहायता प्रदान की है अभिप्रेरणा को बढ़ाने तथा कंपनी को एक दूरदर्शिता से बाँधने और प्रेरक कर्मचारी सहभागिता पूर्ण प्रबंधन आधार के द्वारा लक्ष्य को पूरा करते हुए प्रक्रम के स्वामित्व की ओर बढ़ते हैं।
टाटा स्टील वह कंपनी है जो सक्रियता के साथ कार्य की स्वतंत्रता, नवाचार के लिए स्वतंत्रता और यहाँ तक की असफल हो जाने की स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है। एक सुदृढ़ वृद्धि के पथ पर बढ़ती यह एक कुशल, तीव्र, आधुनिक और दूरदर्शी कंपनी है। यह कंपनी उत्पादन सुसाध्यताओं एवं निर्माण प्रक्रम की तकनीकियों के रूप में एक क्रांतिकारी बदलाव से गुजरी है। इन बदलावों के फलस्वरूप कंपनी ने नयी चुनौतियों से निपटने के लिए व्यापक सुअवसरों की रचना की है जिसके लिए कंपनी ने कार्य हेतु युवाओं की भर्ती, निस्पादन आधारित आई. टी. सक्षम प्रणाली तथा उच्च स्तर के स्वचालित यंत्र जुटाए हैं। इन सभी चीजों के कारण कंपनी सर्वाधिक निम्न लागत वाली स्टील उत्पादक बन गई है और पहली ऐसी भारतीय कंपनी बनी जिसे -‘वर्ल्ड स्टील डाइनेमिक्स’ ने मान्यता देते हुए ‘विश्व स्तरीय’ सर्वोच्च स्टील निर्माता माना है। टाटा स्टील न केवल समेकित करने में आशा रखती है बल्कि संतुलित (सुदृढ़) नेतृत्व विकास व्यवस्था के द्वारा अपने नेतृत्व को बेहतर बनाती है, जिसे कंपनी द्वारा बहुत सारी दूसरी कंपनियों हेतु तैयार किए गए कार्यकारी अधिकारियों के रूप में देखा जा सकता है।
स्रोत-www.tata.com/tata_steel/releases/20030829.htm
(ग) अभिप्रेरणा कर्मचारियों के संस्था को छोड़ कर जाने की दर को कम करती है तथा इससे नयी नियुक्ति तथा प्रशिक्षण लागत में बचत होती है। कर्मचारियों के संस्था को छोड़ कर जाने की उच्च दर का मुख्य कारण है- अभिप्रेरणा का अभाव। यदि प्रबंधक कर्मचारियों की अभिप्रेरणात्मक आवश्यकताओं की पहचान कर उन्हें उपयुक्त प्रोत्साहन प्रदान करे, तो कर्मचारी संस्था को छोड़कर जाने की बात सोचे ही नहीं। कर्मचारियों को छोड़ने की उच्च दर प्रबंध को बाध्य करती है कि वे नयी भर्ती तथा उनका प्रशिक्षण करें जिसमें अतिरिक्त निवेश, समय तथा प्रयास सम्मिलित हैं। अभिप्रेरणा इन सभी लागत को बचाने में मदद करती है। यह प्रतिभावान लोगों को संस्था में टिके रहने में भी सहायता करती है।
(घ) अभिप्रेरणा संगठन को अनुपस्थिति को भी कम करने में सहायक है। अनुपस्थिति के कुछ महत्त्वपूर्ण कारण हैं- अनुपयुक्त/ बुरी कार्य-स्थितियाँ, अपर्याप्त पारिश्रमिक/ प्रतिफल, पहचान/ प्रतिष्ठा का अभाव, पर्यवेक्षकों के साथ बुरे संबंध तथा सहकर्मी इत्यादि। विश्वस्त/उपयुक्त अभिप्रेरणात्मक व्यवस्था के द्वारा इन सभी कमियों को दूर किया जा सकता है। यदि पर्याप्त अभिप्रेरणा प्रदान की जाए, तो कार्य एक आनंद का स्रोत बन जाता है तथा श्रमिक अपने कार्य पर नियमित रूप से आना प्रारंभ कर देते हैं।
(ङ) अभिप्रेरणा प्रबंधकों को नए परिवर्तनों को प्रारंभ करने में बिना लोगों के विरोध के, सहायता देती है। साधारणतः किसी भी परिवर्तन के संगठन में प्रारंभ होने पर उस परिवर्तन में विरोध हो सकता है। यदि प्रबंधक कर्मचारियों को यह आश्वस्त कर दे कि प्रस्तावित परिवर्तन कर्मचारियों के लिए भी अतिरिक्त प्रतिफल लाएगा, तो वे इस परिवर्तन को सहर्ष स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
उपर्युक्त उदाहरण में, आपने देखा कि किस प्रकार से अच्छा निर्देशन, अभिप्रेरणा एवं प्रभावी नेतृत्व कंपनी को आगे बढ़ाता है। यहाँ तक कि कंपनी का परस्पर संचार (संवाद) स्तर कर्मचारियों को प्रोत्साहित करता है कि वे लक्ष्य प्राप्त करें और प्रबंधन प्रक्रिया में भागीदारी करें।
मास्लो की आवश्यकता-क्रम अभिप्रेरणा का सिद्धांत
क्योंकि अभिप्रेरणा अत्यंत जटिल है, बहुत से अन्वेषकों (शोधकर्ताओं) ने अभिप्रेरणा के संबंध में अध्ययन किया है जो विभिन्न आयामों के आधार पर की गई हैं तथा कुछ सिद्धांतों का विकास किया है। ये सिद्धांत अभिप्रेरणा की अवधारणा को समझने में मदद करते हैं। इनमें से, मास्लो की आवश्यकता क्रम एक आधारभूत सिद्धांत है। आइए इसे विस्तार से जाँचे-
अब्राहम मास्लो, एक विख्यात मनोवैज्ञानिक, जिनका एक उत्कृष्ट लेख 1943 में प्रकाशित हुआ था, उन्होंने समग्र अभिप्रेरणा के सिद्धांत के तत्वों की रूपरेखा संक्षेप में दी है।
उनका सिद्धांत मानवीय आवश्यकताओं पर आधारित था। उनका अनुभव था कि प्रत्येक मनुष्य के अंदर पाँच प्रकार की आवश्यकताएँ क्रमानुसार होती हैं। वे हैं-
(क) आधारभूत/शारीरिक आवश्यकताएँ - ये आवश्यकताएँ क्रम में सबसे अधिक आधारभूत है तथा मनुष्य की प्रथमतः आवश्यकताएँ हैं, भूख, प्यास, छत, नींद तथा काम (सैक्स) इत्यादि कुछ इस प्रकार की आवश्यकताओं के उदाहरण हैं। संगठनिक संदर्भ में आधारिक वेतन इन सभी आवश्यकताओं की संतुष्टि करती है।
(ख) सुरक्षा आवश्यकताएँ- ये आवश्यकताएँ सुरक्षा तथा किसी भी शारीरिक तथा मनोवेगों की क्षति से बचाव प्रदान करती है। उदाहरण-पद में सुरक्षा, आय स्रोत में स्थिरिकरण/नियमितता, सेवानिवृत्ति योजना, पेंशन इत्यादि।
(ग) संस्था से जुड़ाव/संस्था से संबंध- ये आवश्यकताएँ स्नेह, संस्था से संबंध, स्वीकृति अथवा मित्रता जैसे भावों से संबंधित हैं।
(घ) मान- सम्मान ( प्रतिष्ठा ) आवश्यकतायह उन कारकों को सम्मिलित करती है जैसे-आत्म-सम्मान, पद-स्वायत्तता, पहचान तथा ध्यान, आदर-सत्कार इत्यादि।
(ङ) आत्म- संतुष्टि आवश्यकताएँ-यह आवश्यकता क्रम श्रृंखला में सबसे उच्च स्तरीय आवश्यकता है। यह उस भावना/आवेग को बताती है जो किसी के अंदर उस विद्यमान योग्यता की जो वह बन सकता है। ये आवश्यकताएँ विकास, आत्म-संतुष्टि तथा उद्देश्यों की पूर्ति को सम्मिलित करती हैं।
मास्लो का सिद्धांत निम्नलिखित संकल्पनाओं पर आधारित है -
व्यक्तिगत उदाहरण
आधारभूत/शारीरिक आवश्यकताएँ संगठनिक उदाहरण
चित्र 7.1 -मास्लो की आवश्यकता क्रमशृंखला
(क) व्यक्तियों का व्यवहार उनकी आवश्यकताओं, उन आवश्यकताओं की पूर्ति के आधार पर निर्भर करता है जो उनके व्यवहार को प्रभावित करती हैं।
(ख) लोगों की आवश्यकताएँ एक क्रम शृंखला में होती हैं आधारभूत आवश्यकताओं से प्रारंभ होकर अन्य उच्च स्तरीय आवश्यकताओं तक।
(ग) एक आवश्यकता की पूर्ति होते ही उस व्यक्ति के लिए वह अभिप्रेरणा का स्रोत नहीं रहती, केवल अगले क्रम की आवश्यकता ही उन्हें अभिप्रेरित कर सकती हैं।
(घ) एक व्यक्ति क्रम में अगले उच्चतर स्तर की आवश्यकता तभी अनुभव करता है जब उसके निचले स्तर की आवश्यकता की संतुष्टि हो जाती है।
मास्लों का सिद्धांत, आवश्यकताओं को अभिप्रेरणा के आधार के रूप में केंद्रित करता है। यह सिद्धांत बहुत विस्तृत रूप में प्रसिद्ध हुआ है तथा सराहा गया है। यद्यपि, उसकी कुछ संकल्पनाओं पर प्रश्न उठे हैं जो आवश्यकताओं के वर्गीकरण तथा क्रमबद्धता से संबंधित हैं। परंतु, इन आलोचनाओं के बावजूद सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि आवश्यकताएँ, चाहे वे किसी भी प्रकार से वर्गीकृत की गई हैं, व्यवहार को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। यह प्रबंधकों को यह समझने में मदद करती हैं कि कर्मचारियों की आवश्यकता के स्तर को पहचानकर कर्मचारियों को अभिप्रेरित करें।
अब्राहूम मास्लो का जीवन परिचय (1908-1970)
अब्राहम एच. मास्लो का जन्म ब्रुकलीन न्यूयार्क में 1908 में हुआ था। उन्होंने विस्कोसिन के विश्वविद्यालय में प्राथमिक व्यवहार का अध्ययन किया, जहाँ से उन्होंने मनोविज्ञान में 1934 में आचार्य की उपाधि प्राप्त की। अपने जीवनवृत्ति की शुरुआत में, मास्लो का रुझान मानव अभिप्रेरणा तथा व्यक्तित्व के अध्ययन की तरफ हुआ। इस क्षेत्र में उनके कार्य ने रूढ़िवादी, व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों को विचलित कर दिया जिनकी अभिप्रेरणा तथा व्यक्तित्व की व्याख्या अनुपयुक्त या फेल हो गई जिसे मास्लो ने पूर्ण व्यक्ति का नाम दिया। उनकी आवश्यकताओं के क्रमबद्धता अभिप्रेरणा के सिद्धांत जो व्यक्ति को आत्म संतुष्टि के स्तर तक पहुँचाती है, वह मानवीय मनोविज्ञान के निर्माण में एक सशक्त उत्प्रेरक के रूप में मानी गई। मॉस्लो ने बड़ी सफलतापूर्वक अपनी आवश्यकताओं, आत्म संतुष्ट व्यक्तियों तथा उच्च अनुभवों के सिद्धांतों में अभिप्रेरणा तथा व्यक्तित्व की दूरी को खत्म किया।
समकालीन मनोविज्ञान में मॉस्लो को एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में समझा गया है। उनका कैरियर अत्यंत विशिष्ट था। 14 साल तक उन्होंने ब्रुकलीन कॉलेज में अध्यापन कार्य किया, फिर वे ब्रांडिस विश्वविद्यालय में वहाँ के सभापति बनकर मनोविज्ञान विभाग में चले गए। 1968 में उन्हें अमरीकन मनोविज्ञान संस्था में अध्यक्ष के रूप में चुन लिया गया। 1969 में वे मेनलो पार्क के लोगलिन संस्था में कैलिर्फोनिया, चले गए। उन्होंने दो महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं - टुवार्डस् साइकोलॉजी ऑफ बीईंग (1968) तथा मोटिवेशन एंड पर्सनेलिटि (1970)। अब्राहम मास्लो का देहांत 1970 में हृदय रोग के कारण हुआ।
वित्तीय तथा गैर वित्तीय प्रोत्साहन
प्रोत्साहन से तात्पर्य उन सभी उपायों से है जिनका प्रयोग व्यक्तियों को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है जिससे उनके कार्य निष्पादन में सुधार हो। इन प्रोत्साहनों को दो विस्तृत वर्गों में बाँटा जा सकता है- वित्तीय तथा गैर-वित्तीय। आइए इन प्रोत्साहनों के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी लें।
वित्तीय प्रोत्साहन
वर्तमान आर्थिक व्यवस्था के संदर्भ में, पैसा एक माध्यम बन गया है जो प्रतिदिन की भौतिक आवश्यकताओं को पूर्ति करता है तथा साथ ही सामाजिक प्रतिष्ठा और सत्ता प्राप्त करने का भी एक महत्त्वपूर्ण जरिया है। क्योंकि पैसे में क्रय-क्षमता है यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन बन गया है।
वित्तीय प्रोत्साहन वे प्रोत्साहन हैं जो प्रत्यक्ष रूप में वित्त के रूप में हैं अथवा जिन्हें वित्त के रूप में मापा जा सकता है तथा ये कर्मचारियों के बेहतर निष्पादन के लिए एक उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। इन प्रोत्साहनों को व्यक्तिगत अथवा समूह के आधार पर दिया जा सकता है। सामान्यतः जो वित्तीय प्रोत्साहन संगठन में प्रयोग किए जाते हैं, उनका उल्लेख नीचे किया गया है-
(क) वेतन तथा भत्ता- प्रत्येक कर्मचारी के लिए, वेतन एक आधारिक वित्तीय प्रोत्साहन है। इसमें आधारभूत वेतन, मँहगाई भत्ता तथा अन्य भत्ते शामिल हैं। प्रति वर्ष वेतन वृद्धि तथा समय-समय पर भत्तों में बढ़ोतरी वेतन व्यवस्था में सम्मिलित हैं। कुछ व्यावसायिक संगठनों में वेतन बढ़ाना तथा वार्षिक वेतन वृद्धि निष्पादन स्तर से भी संबंधित हो सकती है।
(ख) उत्पादकता संबंधित पारिश्रमिक/ मजदूरी प्रोत्साहन- बहुत-सी पारिश्रमिक प्रोत्साहन योजनाओं का लक्ष्य पारिश्रमिक का भुगतान को उनकी व्यक्तिगत सामूहिक स्तर की उत्पादकता के साथ जोड़कर उनकी उत्पादकता को बढ़ाना है।
(ग) बोनस/अधिलाभांश- बोनस वह प्रोत्साहन है जो कर्मचारियों को उनकी मजदूरी/वेतन के ऊपर अथवा अतिरिक्त दिया जाता है।
(घ) लाभ में भागीदारी- लाभ में भागीदारी का अर्थ कर्मचारियों को संगठन के लाभ में उनका हिस्सा देना है। यह कर्मचारियों को अपना निष्पादन सुधारने की प्रेरणा देता है ताकि वे लाभ बढ़ाने में अपना अधिकतम योगदान दे सकें।
(ङ) सह-साझेदारी/स्कंध ( स्टॉक) विकल्प- इन प्रोत्साहन योजनाओं के अंतर्गत, कर्मचारियों को एक निर्धारित कीमत पर कंपनी के शेयर दिए जाते हैं जो बाज़ार की कीमत से कम होते हैं कुछ स्थितियों में, प्रबंध विभिन्न प्रोत्साहन जो नकद में दिए जाने हैं, उनकी जगह उन्हें शेयर भी आवंटित कर सकती है। शेयर का आवंटन कर्मचारियों में एक स्वामित्व की भावना को जागृत करता है तथा उन्हें प्रेरित करता है कि वे संगठन के विकास में अपना अधिकतम योगदान दें। इंफोसिस में स्कंध विकल्प योजना को प्रबंधकीय मुआवज़े के एक भाग के रूप में कार्यान्वित किया गया है।
(च) सेवानिवृत्ति लाभ- बहुत से सेवानिवृत्ति लाभ जैसे-भविष्य निधि, निवृत्तिका ( पेंशन) तथा आनुतोषिक (ग्रेच्युटी) इत्यादि सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारियों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करते हैं यह उस समय भी एक प्रोत्साहन का कार्य करती है जब वह संस्था में कार्यरत/सेवा में होते हैं।
(छ) अनुलाभ/परक्विज़ट- बहुत-सी कंपनियों में अनुलाभ तथा फ्रिंज़ लाभ दिए जाते हैं जैसे- कार भत्ता, घर की सुविधा, चिकित्सा सहायता तथा बच्चों के लिए शिक्षा इत्यादि। ये वेतन के अतिरिक्त भश्रे या लाभ हैं। ये उपाय कर्मचारियों/्रबंधकों दोनों को ही अभिप्रेरित करते हैं।
गैर वित्तीय प्रोत्साहन
मनुष्य की सभी आवश्यकताएँ केवल पैसे से ही संतुष्ट नहीं होती। मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा संवेगी कारक भी प्रोत्साहन देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गैर वित्तीय प्रोत्साहन मुख्यत: इन आवश्यकताओं पर केंद्रित हैं। कभी-कभी वित्त भी गैर वित्तीय प्रोत्साहन में सम्मिलित होते हैं। तथापि, इसका बल मनोवैज्ञानिक तथा भावात्मक संतुष्टि देने पर है न कि पैसे से होने वाली संतुष्टि पर। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति की संस्था में पदोन्नति होती है, तो यह उसकी मनोवैज्ञानिक रूप से संतुष्टि देता है क्योंकि उसे अपने उत्कृष्ट होने की अनुभूति होती है, उसकी पद में बढ़ोतरी होती है तथा सत्ता में वृद्धि होती है तथा पद में नयी चुनौतियाँ होती हैं इत्यादि। हालाँकि पदोन्नति में अतिरिक्त वेतन सम्मिलित हैं, परंतु गैर वित्तीय पक्ष वित्तीय पक्षों से भारी पड़ते हैं।
कुछ महत्त्वपूर्ण गैर-वित्तीय प्रोत्साहनों की चर्चा नीचे की गई है, जो इस प्रकार है -
(क) पद प्रतिष्ठा/ओहदा- संगठनिक संदर्भ में, पद का अर्थ संस्था में पदों के क्रम से है। सत्ता, उत्तरदायित्व, प्रतिफल, पहचान, अनुलाभ तथा पद प्रतिष्ठा इत्यादि किसी व्यक्ति के प्रबंधकीय पद पर होने के परिचायक हैं। मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा मान-सम्मान/प्रतिष्ठा संबंधित आवश्यकताएँ मनुष्य की पद को दी गई प्रतिष्ठा तथा सत्ता द्वारा पूरी हो जाती है।
(ख) संगठनिक वातावरण- संगठनिक वातावरण वह है जो किसी भी संस्था का विवरण देती है तथा एक संस्था को दूसरी संस्था से भिन्न करती है। ये विशेषताएँ संस्था में कर्मचारियों के व्यवहार को प्रभावित करती हैं। इनमें से कुछ विशेषताएँ हैं- व्यक्तिगत स्वतंत्रता, पारिश्रमिक अभिविन्यास, कर्मचारियों का ध्यान रखना, जोखिम उठाना इत्यादि। यदि प्रबंधक इन सभी पहलुओं पर सकारात्मक उपाय/कदम उठाता है, तो यह बेहतर संगठनिक वातावरण निर्माण/विकास में सहायता करती है।
(ग) जीवनवृत्ति विकास के सुअवसर - प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह संस्था में उच्च स्तर तक पहुँचे। प्रबंधकों को यह सुअवसर कर्मचारियों को देना चाहिए कि वे अपने कौशलों को सुधार सकें तथा उन्हें उच्च स्तरीय पदों पर नियुक्ति अथवा पदोन्नति मिल सके। उपयुक्त दक्षता-विकास कार्यक्रम तथा ठोस पदोन्नति नीति कर्मचारियों को पदोन्नति पाने में सहायता करती है। पदोन्नति एक शक्तिवर्धक का कार्य करती है तथा कर्मचारियों को अपने बेहतर निष्पादन को प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
(घ) पद संवर्धन- पद संवर्धन का संबंध उन कार्यों की रूपरेखा तैयार करना है जिसमें विविध प्रकार के कार्य-अंश सम्मिलित हैं, उच्च स्तरीय ज्ञान तथा कौशल की आवश्यकता है; कर्मचारियों को अधिक स्वायत्तता देती है तथा उत्तरदायित्व सौंपती है; व्यक्तिगत विकास के सुअवसर प्रदान करती है तथा एक अर्थपूर्ण कार्य-अनुभव देती है। यदि कार्य का संवर्धन किया जाए तथा उन्हें रुचिपूर्ण बनाया जाए, तो कार्य अपने आप में व्यक्ति के लिए अभिप्रेरणा का स्रोत बन जाएगा।
(ङ) कर्मचारियों को पहचान/मान- सम्पान देने संबंधित कार्यक्रम-अधिकतर व्यक्ति चाहते हैं कि उनके कार्य का मूल्यांकन हो तथा उन्हें उपयुक्त पहचान मिले। वे ऐसा अनुभव करते हैं कि उनसे संबंधित अन्य लोगों के द्वारा उन्हें स्वीकृति मिले। पहचान का अर्थ है उनके काम को पहचानना, उसे सराहना। जब इस प्रकार की प्रशंसा कर्मचारियों को उनके कार्य निष्पादन के लिए की जाती है, तो वे उच्च स्तर का कार्य करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। कर्मचारियों को पहचान देने के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
- अच्छे निष्पादन के लिए कर्मचारी को बधाई देना।
- नोटिस बोर्ड/सूचना पट पर उनका नाम प्रदर्शित करना अथवा कंपनी की न्यूज़लैटर (सूचना-पत्र) में कर्मचारियों की उपलब्धि के बारे में छापना।
- उत्तम/उत्कृष्ठ निष्पादन के लिए उन्हें पारितोषिक या प्रमाण-पत्र देना।
- स्मृति चिह्नों का वितरण, कर्मचारी की सेवाओं के सम्मानार्थ कुछ जैसे, टी-शर्ट इत्यादि देना।
- कर्मचारी को उसके द्वारा दिए गए महत्त्वपूर्ण सुझावों के लिए उसे पारितोषिक देना।
(च) पद-सुरक्षा/स्थायित्व- कर्मचारी चाहते हैं कि उनका पद सुरक्षित रहे। उन्हें अपने भविष्य की आय तथा कार्य दोनों के लिए निश्चित स्थिरता/स्थायित्व चाहिए ताकि उन्हें इन पक्षों पर चिंता न हो तथा अपना कार्य बड़े उत्साह से कर सकें। भारत में, अपर्याप्त कार्य अवसरों को देखते हुए, यह पक्ष अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अवसर कम हैं उन्हें पाने के इच्छुक अधिक। तथापि, पद-सुरक्षा का एक नकारात्मक पक्ष भी है। जब लोगों को यह अहसास होता है कि उनकी नौकरी छूटने वाली नहीं है, तो वे निष्क्रिय हो जाते हैं।
(छ) कर्मचारियों की भागीदारी- इसका अर्थ है कर्मचारियों से संबंधित निर्णय लेने में उन्हें शामिल करना। बहुत सारी कंपनियों में इस प्रकार के कार्यक्रम, संयुक्त प्रबंध समिति, कार्य समिति, जलपानगृह समिति इत्यादि के रूप में व्यवहार में कार्यान्वित हैं।
( झ) कर्मचारियों का सशक्तीकरण - सशक्तिकरण का अर्थ-अधीनस्थों को अधिक स्वायत्तता तथा सत्ता देना। सशक्तिकरण लोगों को यह अहसास दिलाता है कि उनका कार्य महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार की भावना कार्य निष्पादन में कौशल तथा प्रतिभा का प्रयोग करने में सकारात्मक रूप से योगदान देती है।
नेत्ุव
जब भी हम किसी संस्था की सफलता की कहानियाँ सुनते हैं, हमें एकदम से उनके नेताओं की स्मृति आती है। क्या आप माइक्रोसॉफ्ट को बिल गेट्स के बिना, रिलायंस उद्योग को धीरूभाई अंबानी के बिना, इनफोसिस को बिना नारायण मूर्ति के, टाटा बिना जे. आर. डी. टाटा के अथवा विप्रो बिना अज़ीम प्रेमजी के, कल्पना कर सकते हैं? आप कहेंगे यह संभव ही नहीं कि इतनी सफलता बिना महान नेताओं के प्राप्त की जा सकती हैं नेता सदैव किसी भी संगठन की सफलता तथा उत्कर्ष में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आइए नेतृत्व की अवधारणा, उसके महत्त्व तथा अच्छे नेता के गुणों के बारे में समझें। नेतृत्व व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करने की वह प्रक्रिया है, जो उन्हें स्वत-ही संगठनिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए प्रतिस्पर्धित करती है। नेतृत्व संकेत करती है किसी व्यक्ति की उस योग्यता की जो अनुयायियों के मध्य अच्छे पारस्परिक संबंधों को बनाए रखने में तथा उन्हें अभिप्रेरित करने की जिससे वे संगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना योगदान दे सकें। नेतृत्व की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ आगे बॉक्स में दी गई हैं।
नेतृत्व की विशेषताएँ
नेतृत्व की विभिन्न परिभाषाएँ जो बॉक्स में दी गई हैं, वे नेतृत्व की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ दर्शाती हैं जो इस प्रकार हैं -
(क) नेतृत्व किसी व्यक्ति की दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता को दर्शाता है।
(ख) नेतृत्व दूसरों के व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास करता है।
(ग) नेतृत्व, नेता तथा अनुयायियों के मध्य उनके पारस्परिक संबंधों को दर्शाता है।
(घ) नेतृत्व का अभ्यास संस्था के समान लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
(ङ) नेतृत्व एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
इत्यादि व्यक्ति को एक प्रभावी नेता बनाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अनुयायी स्वीकृति के द्वारा एक व्यक्ति को अच्छा नेता बनाते हैं। इसलिए, यह मान्य है कि नेता तथा अनुयायी दोनों ही नेतृत्व की प्रक्रिया में एक मुख्य भूमिका निभाते हैं।
नेतृत्व को परिभाषा
नेतत्व की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ नीचे दी गई हैं -
“नेतृत्व एक क्रिया है व्यक्तियों को प्रभावित करने की जिससे वे स्वेच्छा से सामूहिक उद्देश्यों के लिए प्रतिस्पर्धित हो सकें।” जॉर्ज टेरी
“नेतृत्व व्यक्तियों को प्रभावित करने की कला अथवा प्रक्रिया है जिससे वे अपनी इच्छा तथा उत्साह से सामूहिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रतिस्पर्धित हो सकें।” हैरोल्ड कुंट्ज एंड हिंज़ वैहरिच
“नेतृत्व एक पारस्परिक व्यवहारों का समूह है जिसकी रूपरेखा कर्मचारियों को उद्देश्यों की प्राप्ति में सहयोग के लिए प्रभावित करने के लिए बनाई जाती है।” ग्लूएक
“नेतृत्व एक प्रक्रिया तथा संपत्ति दोनों ही है। नेतृत्व की प्रक्रिया बिना किसी दबाव के एक संगठित समूह के सदस्यों की क्रियाओं को प्रभावित तथा निर्देशित करती है जिसका उद्देश्य सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करना है। एक संपत्ति के रूप में, नेतृत्व उन व्यक्तियों की गुणों तथा विशेषताओं का समूह है जो ऐसा समझा जाता है कि वे इस प्रकार का प्रभाव सफलतापूर्वक नियोजित कर सकते हैं।” गे तथा स्ट्रेक
नेता शब्द का प्रादुर्भाव नेतृत्व से हुआ है। एक व्यक्ति जिसमें नेतृत्व के सभी गुण विद्यमान होते हैं, नेता कहलाता है। नेतृत्व की चर्चा करते समय, यह महत्त्वपूर्ण है कि नेता अनुयायी के संबंध को समझा जाए। बहुत बार, किसी संगठन की सफलता का श्रेय, उसके नेता को दिया जाता है, परंतु अनुयायियों को उपयुक्त श्रेय नहीं दिया जाता। बहुत सारे अनुयायी संबंधित कारक जैसेउनके कौशल, ज्ञान, प्रतिबद्धता, सहयोग करने की इच्छा, सामूहिक मनोवृत्ति (टीम स्पिरिट)
नेतृत्व का महत्त्व
किसी संगठन की सफलता में नेतृत्व एक मुख्य कारक है। इतिहास बताता है कि, बहुधा, संगठन की सफलता तथा असफलता के बीच का अंतर नेतृत्व होता है। स्टीफन कोरी ने बहुत उपयुक्त उल्लेख किया है, जो एक प्रसिद्ध प्रबंध परामर्शक हैं, कि प्रबंधक महत्त्वपूर्ण हैं, परंतु नेता संगठन की निरंतर सफलता के लिए अनिवार्य हैं। एक नेता न केवल अपने अनुयायियों को संगठनिक
निर्देशन
लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध करता है बल्कि उसके लिए आवश्यक संसाधन भी एकत्र करता है, उन्हें मार्गदर्शन देता है तथा अपने अधीनस्थों को उद्देश्य प्राप्त करने के लिए उत्प्रेरित भी करता है।
नेतृत्व का महत्त्व संस्था को होने वाले निम्नलिखित लाभों से भी स्पष्ट किया जा सकता है, जो इस प्रकार से हैं -
(क) नेतृत्व व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करता है तथा उन्हें अपनी श्रम/ऊर्जा को संस्था के लाभ के लिए सकारात्मक रूप से योगदान देने के लिए प्रेरित करती है। अच्छे नेता हमेशा अपने अनुयायियों के द्वारा अच्छे ही परिणाम उत्पादित करते हैं।
(ख) एक नेता कर्मियों के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाए रखता है तथा अपने अनुयायियों को उनकी आवश्यकताएँ
पूरी करने में सहायता करता है। वह आवश्यक आत्मविश्वास प्रदान करता है, सहायता/समर्थन देता है तथा इसके द्वारा एक अनुकूल कार्य वातावरण सृजन करता है।
(ग) नेता संस्था में आवश्यक परिवर्तन को प्रारंभ करने में एक मुख्य भूमिका निभाता है। वह उन्हें विश्वास दिलाता है/राज़ी करता है, स्पष्ट करता है तथा पूरे दिल से परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार, वह परिवर्तन के विरोध की समस्या से निपटता है तथा बड़े कम असंतोष की भावना के साथ उसे लागू भी करता है।
(घ) एक नेता द्वंद्व को भी प्रभावपूर्ण तरीके से संभालता/निपटाता है तथा उसके दुष्परिणामों को जो द्वंद्व से उत्पन्न हो सकते हैं उन्हें फैलने से रोकता है। एक अच्छा नेता सदा अपने अनुयायियों को अपनी भावनाओं तथा असहमति को प्रदर्शित करने की अनुमति देता है परंतु उन्हें यह उपयुक्त स्पष्टीकरण द्वारा आश्वस्त भी करता है।
चित्र 7.2 -प्रभावपूर्ण नेतृत्व कार्य को सुचारू बनाता है, समय पर एवं कम लागत पर लक्ष्यों और कार्यों को पूरा करते में सहायक है।
(ङ) नेता अपने अधीनस्थों को प्रशिक्षण भी उपलब्ध करवाता है या देता है। एक अच्छा नेता हमेशा अपना अगला नेतृत्व प्रतिनिधि तैयार करता है ताकि नेतृत्व के उत्तरदायित्व प्रक्रिया निर्विध्न संपन्न हो सके।
नेतृत्व शैली
नेतृत्व व्यवहार तथा शैलियों के कई सिद्धांत हैं। अनुसंधान अध्ययनों से यह प्रकट होता है कि कुछ निश्चित लक्षणों तथा गुणों का एक नेता में होना आवश्यक है। यद्यपि यह निश्चयात्मक नहीं है क्योंकि लोगों में ये गुण होते है परंतु वे नेता नहीं होते।
नेतृत्व शैलियों को वर्गीकृत करने के कई आधार हैं। ‘प्राधिकार का प्रयोग’ नेतृत्व शैलियों के वर्गीकरण का सर्वाधिक लोकप्रिय आधार है। प्राधिकार के प्रयोग पर आधरित, नेतृत्व की तीन मूल शैलियाँ हैं।
(क) एकतंत्रीय (ख) लोकतंत्रीय (ग) अबंधता (लेसिज फेयर)
(क) एकतंत्रीय अथवा सत्तावादी नेता- एक सत्तावादी नेता आदेश देता है तथा यह अपेक्षा करता है कि उसके अधीनस्थ आदेशों का पालन करें। यदि एक प्रबंध क इस शैली को अपनाता है तो प्रबंधक द्वारा दिए गए आदेशों के अनुसार कार्य करने हेतु अधीनस्थों को केवल एक-तरफा संप्रेषण किया जाता है।
यह नेता हठधर्मी है अर्थात् परिवर्तित नहों होता अथवा अपने विरोध को पंसद नहीं करता है उसका अनुगमन इस मान्यता पर आधिारित है कि परिणामों के आधार पर पुरस्कार तथा दण्ड दोनों दिए जा सकते हैं।
नेतृत्व की यह शैली कई परिस्थितियों, जैसे कारखाने में प्रबंधक समय पर उत्पादन के लिए उत्तरदायी है तथा श्रम उत्पादकता सुनिश्चित की जानी है, में उत्पादकता प्राप्त करने में प्रभावी है। शीघ्र निर्णय लेने में भी सुविधा होती है।
परंतु यहाँ विविधताएँ भी हैं, वे प्रत्येक के मत को सुनते हैं, अधीनस्थों के विचारों तथा मुद्दों को ध्यान में रखते है परंतु निर्णय वे स्वंय ही लेते हैं।
(ख) लोकतंत्रीय अथवा सहभागी नेता- एक सहभागी नेता कार्य योजनाएँ विकसित करेगा तथा उपने अधीनस्थों की सलाह से निर्णय लेता है। वह उन्हें निर्णयन में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करेगा। नेतृत्व की यह शैली आजकल बहुत सामान्य है, क्योंकि नेता यह भी मानते हैं यदि लोग अपने उद्देश्य निर्धारित कर लें तो वे सर्वोत्तम निष्पादन कर सकते हैं। उन्हें दूसरों के विचारों को सम्मान देने, अधीनस्थों को उनके कार्य निष्पादन में समर्थन देने तथा
संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने की आवश्यकता है। वे समूह के अंतर्गत सहमति बनाकर नियंत्रण करते हैं।
(ग) अंंध अथवा मुक्त-रोक नेता- इस प्रकार का नेता शक्ति के प्रयोग में विश्वास नहीं रखता जब तक कि यह अत्यावश्यक न हो। अनुगामियों को उच्च श्रेणी की स्वतंत्रता दी जाती है ताकि वे अपने उद्देश्य तथा उन्हें प्राप्त करने के तरीके तय कर सकें। समूह के सदस्य अपना- अपना कार्य करते हैं तथा मिलकर समस्साएँ सुलझाते हैं। प्रबंधक केवल उन्हें समर्थन देता है तथा सौपें गए कार्य को पूर्ण करने हेतु आवश्यक सूचना की आपूर्ति करता है। साथ ही अधीनस्थ किए जाने वाले कार्य का उत्तरदायित्व ग्रहण करते हैं।
परिस्थितियों के आधार पर आवश्यकता पड़ने पर एक नेता इन शैलियों के संयोजन का चयन करके इस्तेमाल में ला सकता है। कार्य करते समय एक अंंध नेता निश्चित नियमों का पालन कर सकता है तथा आपातकालीन स्थिति में लोकतांत्रिक नेता को अपने स्वयं के निर्णय लेने होते हैं।
संप्रेषण
किसी प्रबंधक की सफलता में संप्रेषण एक मुख्य भूमिका निभाता है। प्रबंधक के पास कितना व्यावसायिक ज्ञान तथा बुद्धिमता है, इसका कोई महत्त्व नहीं रहता यदि वह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ प्रभावी संर्रेषण करने में समर्थ नहीं है तथा उनमें परस्पर समझ न बना पाए। प्रबंधक की निर्देशन योग्याएँ मुख्यतः उसके संप्रेषण कौशल पर निर्भर करती हैं। यही कारण है कि संगठन हमेशा प्रबंधक तथा कर्मचारियों दोनों के ही संप्रेण कौशल के सुधार पर बल देती है। ‘संप्रेषण’ शब्द का प्रादुर्भाव लेटिन शब्द ‘कम्पूनिस’ से हुआ है जिसका अर्थ है ‘समान (कॉमन) ’ जिसका अर्थ समान प्रकार की समझ बनाने से है। संप्रेषण को भिन्न प्रकार से परिभाषित किया गया है। सामान्यतः इसे एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में लिया जाता है जिसके द्वारा भाव, विचार, तथ्य, अनुभव इत्यादि का आदान-प्रदान होता है, जिसका उदेश्य दो व्यक्तियों के मध्य या आपस में आपसी समझ पैदा करना है। प्रबंधक विशेषज्ञों द्वारा दी गई कुछ परिभाषाएँ नीचे बॉक्स में दी गई हैं -
संप्रेषण छी परिभाषा
“संप्रेणण से अभुप्राय उन सभी क्रियाओं से है जो एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपनी बात समझ़ाने के लिए करता है। इसमें एक व्यवस्थित तथा निरंतर चलने वाली कहने, सुनेन तथा समझने की प्रक्रिया सम्मिलित है।” लूटिस ऐलन
“संप्रेपण सूचनाओं का प्रेपक के द्वारा प्राप्तकर्ता को स्थानांतरण है ताकि वह उन सूचाओं को उसी रूप में समझ्ञ सके।” हैरोल्ड कूंटस् एवं हैनिज्ञ हैहरिक
“संप्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति आपस में सूचनाओं को आदान-प्रदान करते हैं ताकि वे (एक जैसी समझ्न बना सकें) पारसपरिक समझ्भ बना सकें।” रौजरस
यदि इन सभी परिभाषाओं को जो ऊपर दी गई हैं, ध्यानपूर्वक परखा जाए तो यह स्पष्ट होता है कि संप्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच (समान) पारस्परिक समझ बनाने के लिए, सूचनाओं के आदान-प्रदान की एक प्रक्रिया है।
संप्रेषण प्रक्रिया के तत्व
संप्रेषण को एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया गया है। इस प्रक्रिया में विभिन्न तत्व जैसे- स्रोत, कूट बनाना (Encoding), संचारण Decoding, माध्यम/प्राप्तकर्ता, कोलाहल (Noise) तथा प्रतिपुष्टि सम्मिलित होते हैं। इस प्रक्रिया को चित्र में दिखाया गया है।
संप्रेषण प्रक्रिया में जिन तत्वों का समावेश होता है, उनका विवरण नीचे दिया गया है -
(क) प्रेषक/संदेश भेजने वाला- प्रेषक से तात्पर्य उस व्यक्ति से है जो अपने विचार अथवा सूचनाएँ प्राप्तकर्ता को भेजता है। प्रेषक संप्रेषण के स्रोत को दर्शाता है।
(ख) कूट/संदेश- यह विचार भाव, सुझाव, आदेश तथा सूचनाएँ इत्यादि हैं जिन्हें प्रेषित करना है।
(ग) एनकोडिंग- यह वह प्रक्रिया है जो संदेश को जिसे भेजना है उसे संप्रेषण के संकेतों में परिवर्तित करती है। जैसेशब्द, तस्वीरें, ग्राफ एवं आरेख चित्र, क्रिया अथवा व्यवहार इत्यादि।
(घ) माध्यम- ये वे साधन अथवा माध्य हैं जिनके द्वारा एनकोडिड संदेश को प्राप्तकर्ता को भेजा जाता है। यह माध्यम एक लिखित रूप में, प्रत्यक्ष आमने-सामने बातचीत द्वारा, दूरभाष, इंटरनेट इत्यादि हो सकते हैं।
(ङ) डिकोडिंग- यह प्रेषक द्वारा भेजे गए एनकोडिड संदेश को समझने के लिए उसे परिवर्तित करने की प्रक्रिया है।
(च) संदेश प्राप्तकर्ता- वह व्यक्ति जो प्रेषक द्वारा भेजे गए संप्रेषण/संदेश को प्राप्त करता है।
(छ) प्रतिपुष्टि- इनमें वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो संदेश प्राप्तकर्ता करता है यह संकेत देने के लिए कि उसे संदेश मिल गया है तथा उसने उस संदेश को उसी रूप में समझ लिया है।
(ज) ध्वनि/कोलाहल- ध्वनि से तात्पर्य प्रभावी संप्रेषण में कुछ रुकावट अथवा बाधा के आने से है। यह बाधा प्रेषक के कारण भी हो सकती है, संदेश अथवा संदेश प्राप्तकर्ता के कारण भी हो सकती है। ध्वनि के कुछ उदाहरण हैं -
(क) अस्पष्ट संकेत जिनसे एनकोडिंग में त्रुटि होती है।
(ख) एक दयनीय दूरभाष संबंध।
(ग) एक अन्यमनस्क/लापरवाह संदेश प्राप्तकर्ता।
(घ) त्रुटिपूर्ण डिकोडिंग (संदेश का गलत अर्थ निकालना)।
(ङ) पक्षपात के कारण संदेश का सही अर्थ न निकलना।
(च) संकेत तथा विशिष्ट मुद्रा जो संदेश को विकृत कर देती है।
संप्रेषण का महत्त्व
प्रबंधकीय क्रियाओं के सबसे मुख्य/केंद्रीय पक्षों में संप्रेषण एक है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि एक प्रबंधक अपना 90 प्रतिशत समय संप्रेषित करने- पढ़ने, लिखने, सुनने, मार्गदर्शन करने, आदेश देने, अनुमोदन, डाँटने इत्यादि में लगाता है। प्रबंधक की कुशलता महत्त्वपूर्ण रूप से निर्भर करती है उसके संप्रेषित करने की योग्यता पर कि वह अपने अधिकारियों के साथ किस कुशलता से संचार करता है, अपने अधीनस्थों तथा बाहर की एजेंसियों जैसे-बैंकर, संभरक/ प्रदायक, यूनियन तथा सरकार इत्यादि के साथ कैसे संप्रेषण करता है।
अमरीकन प्रबंध समिति के एक पूर्व सभापति ने एक बार यह अवलोकित किया कि प्रबंधक की पहले स्थान की समस्या आज की तिथि में संप्रेषण है। बर्नार्ड ने इसे सभी सामूहिक क्रियाओं को आधार माना। संप्रेषण प्रबंधकीय प्रक्रिया के लिए एक चिकने पदार्थ के रूप में कार्य करती है जो निर्विघ्न बनाती है। प्रबंध में संप्रेषण का महत्त्व निम्न के आधार पर आँका जा सकता है जो इस प्रकार है -
(क) समन्वयन के आधार के रूप में कार्य करती है- संप्रेषण समन्वयन के आधार के रूप में कार्य करती है। यह विभिन्न विभागों, क्रियाओं तथा संस्था में कार्यरत व्यक्तियों के मध्य समन्वयन प्रदान करती है। इस प्रकार का समन्वयन संगठनिक उद्देश्यों के विवरण, इसे किस प्रकार प्राप्त करना है तथा भिन्न व्यक्तियों के मध्य परस्पर संबंधों के द्वारा प्रदान/कार्यान्वित किया जाता है।
(ख) उद्यम के निर्विघ्न चलने में सहायता करती है- उद्यम के निर्विघ्न तथा बिना किसी अवरोध के चलने में संप्रेषण सहायता करती है। सभी संगठनिक अंत-क्रियाएँ संप्रेषण पर निर्भर करती हैं। प्रबंधक का कार्य मानवीय तथा भौतिक तत्वों का संस्था में समन्वयन का है तथा इन्हें कुशल तथा क्रियात्मक इकाई बनाने में है जो सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति करेगा। यह केवल संप्रेषण ही है जो संस्था में निर्विघ्न कार्य करने में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
संगठन के अस्तित्व में संप्रेषण आधारभूत है। संगठन के प्रारंभ होने से लेकर उसकी निरंतर कार्यकाल तक। जब संप्रेषण रुकता है, तो संस्था की सारी क्रियाएँ भी काम करना बंद कर देती हैं।
(ग) निर्णय लेने की क्षमता के आधार के रूप में कार्य करती है- संप्रेषण निर्णय लेने में आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध कराता है। इसकी अनुपस्थिति में, प्रबंधक के लिए कोई भी अर्थपूर्ण निर्णय लेने में कठिनाई हो सकती है अथवा निर्णय लेना संभव नहीं हो पाता। केवल प्रासंगिक सूचना के संप्रेषण के आधार पर ही कोई सही निर्णय ले सकता है।
(घ) प्रबंधकीय कुशलता को बढ़ाता है- संप्रेषण तीव्र तथा प्रबंधकीय कार्यों के प्रभावी निष्पादन के लिए अत्यंत आवश्यक है। प्रबंध उद्देश्य तथा लक्ष्यों को संप्रेषित करती है, आदेश जारी करती है, कार्य तथा उत्तरदायित्व सौंपती/आवंटित करती है तथा अधीनस्थों के निष्पादन का निरीक्षण करती है। संप्रेषण इन सभी पहलुओं में सम्मिलित है। इस प्रकार, संप्रेषण संपूर्ण संस्था में लचीलापन लाती है तथा संस्था की कार्यकुशलता को बनाए रखती है।
(ङ) सहयोग तथा औद्योगिक शांति को बढ़ाती है- सभी विवेकपूर्ण प्रबंध का उद्देश्य कार्यकुशलता है। यह तभी संभव हो सकता है जब फैक्टरी में औद्योगिक शांति हो तथा प्रबंध और कर्मचारियों के मध्य आपसी सहयोग हो। दोनों दिशाओं में यह संप्रेषण प्रबंध तथा कर्मचारियों वेर बीच सहयोग पारस्परिक/आपसी समझ को बढ़ती है।
(च) प्रभावी नेतृत्व को स्थापित करती है- संप्रेषण नेतृत्व का आधार है। प्रभावी संप्रेषण अधीनस्थों को प्रभावित करने में सहायक है। व्यक्तियों को प्रभावित करते समय, नेता में अच्छे संप्रेषण कौशल का होना आवश्यक है।
(छ) मनोवृत्ति बढ़ाती है तथा अभिप्रेरित करती है- संप्रेषण की प्रभावपूर्ण व्यवस्था प्रबंध को समर्थ बनाती है कि वे अपने अधीनस्थों को प्रेरित तथा संतुष्ट कर सकें। अच्छा संप्रेषण कर्मचारियों को कार्य के शारीरिक तथा सामाजिक पहलुओं में व्यवस्थित/समझौता करने में सहायता करता है। यह उद्योग में मानवीय संबंधों में सुधार लाता है। संप्रेषण, प्रबंध के साझेदारी/भागीदारी तथा प्रजातांत्रिक प्रतिरूप का आधार है। संप्रेषण कर्मचारियों तथा प्रबंधकों की मनोवृत्ति में वृद्धि में सहायक है।
औपचारिक तथा अनौपचारिक संप्रेषण
संस्था में जो भी संप्रेषण होता है, उसे विस्तृत रूप से औपचारिक तथा अनौपचारिक, दो वर्गों में बाँटा जा सकता है।
औपचारिक संप्रेषण
औपचारिक संप्रेषण संस्था की संरचना में आधिकारिक माध्यमों द्वारा प्रवाहित होता है। संप्रेषण अधिकारियों तथा अधीनस्थों के मध्य संप्रेषण होता है, अधीनस्थों तथा अधिकारियों के मध्य तथा प्रबंधकों तथा कर्मचारियों में आपस में जो समान स्तर पर हैं। संप्रेषण मौखिक अथवा लिखित हो सकता है परंतु सामान्यतः कार्यालय में सामान्यतः रिकार्ड तथा दाखिल (फाइल) किए जाते हैं।
औपचारिक संर्रेषण उसके बाद पुनः वगीकृत किया जा सकता है-उर्ध्वाधर तथा समतल।
शीर्ष संर्रेषण का प्रवाह लंबवत्/सीधी रेखा में होता है-ऊपर या नीचे आधारिक शृंखला में औपचारिक माध्यम के द्वारा/ऊपर की दिशा में संप्रेषण उस प्रवाह को दर्शाता है जो अधीनस्थों से अधिकारियों तक पहुँचता है जबकि नीचे की ओर संप्रेषण अधिकारियों से अधीनस्थों की ओर के प्रवाह को दर्शाता है।
ऊपर की ओर संप्रेषण के उदाहरण हैंअवकाश की स्वीकृति के लिए प्रार्थना पत्र, कार्य प्रगति-प्रतिवेदन/रिपोर्ट जमा कराना, अनुदान के
लिए निवेदन इत्यादि। इसी प्रकार से नीचे की ओर संप्रेषण के उदाहरण में सभा में उपस्थित होने के लिए कर्मचारियों को नोटिस भेजना, सौंपे गए कार्य के लिए अधीनस्थों को उसे पूरा करने का आदेश देना, उच्च प्रबंध द्वारा निर्मित मार्गदर्शकों/निर्देशन को अधीनस्थों को जारी करना इत्यादि सम्मिलित हैं।
समतल अथवा पार्श्वीय संप्रेषण एक विभाग का दूसरे विभाग के मध्य होता है। उदाहरण के लिए, एक उत्पादन प्रबंधक विपणन (बाज़ार) प्रबंधक से संपर्क कर सकता है तथा उत्पाद की सुपुर्गेी के विषय में समय तथा कार्यक्रम की रूपरेखा, उत्पाद की गुणवत्ता उसकी रूपरेखा इत्यादि की चर्चा उससे कर सकता है।
इस प्रतिरूप/पैटर्न के अंतर्गत इस प्रकार के संप्रेषण का प्रवाह संस्था के अंदर होता है, सामान्यतः यह संप्रेषण तंत्र के द्वारा जाना जा सकता है। एक औपचारिक संगठन में विभिन्न प्रकार के संप्रेषण तंत्र कार्य कर सकते हैं। कुछ प्रचलित संप्रेषण तंत्र नीचे चित्र में दर्शाए गए हैं तथा उनकी चर्चा नीचे की गई है -
(क) एकल श्रृंखला- यह तंत्र एक पर्यवेक्षक तथा उसके अधीनस्थ के मध्य स्थापित होता है। क्योंकि संगठनिक संरचना में बहुत सारे स्तर विद्यमान होते हैं, संप्रेषण का प्रवाह एकल शृंखला के द्वारा प्रत्येक पर्यवेक्षक से उसके अधीनस्थ की तरफ होता है।
(ख) चक्र- चक्र तंत्र में, सभी अधीनस्थ केवल एक अधिकारी के माध्यम से ही संप्रेषण करते हैं तथा वह अधिकारी ही उस चक्र के केंद्र के रूप में कार्य करता है। अधीनस्थ को आपस में भी बात करने की अनुमति नहीं होती।
(ग) गोला- गोला संप्रेषण तंत्र में, संप्रेषण एक गोले में ही प्रसारित होता है। प्रत्येक व्यक्ति केवल अपने साथ के दो व्यक्तियों के साथ ही संप्रेषित करता है। इस संप्रेषण तंत्र में, संप्रेषण का प्रवाह धीमा होता है।
(घ) स्वतंत्र प्रवाह- स्वतंत्र प्रवाह तंत्र में, प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए मुक्त है। इस प्रकार के तंत्र में संप्रेषण का प्रवाह तीव्रता से होता है।
चित्र 7.5 -संप्रेषण तंत्र
(ङ) विलोम $\mathbf{v}$- इस तंत्र में, एक अधीनस्थ को केवल अपने एकदम ऊपर अधिकारी तथा उसके अधिकारी के साथ ही संप्रेषण करने की अनुमति है। तथापि, बाद के केस में, केवल निर्धारित संप्रेषण ही होता है।
अनौपचारिक संप्रेषण
व्यक्तियों एवं समूहों के मध्य होने वाले संप्रेषण जो आधिकारिक/औपचारिक तौर पर नहीं होते हैं, उन्हें अनौपचारिक संप्रेषण कहा जाता है जिसके अंतर्गत विचारों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है। इस प्रकार की संप्रेषण की सूचना प्रणाली को सामान्यत- अंगूरीलता संप्रेषण कहा जाता है क्योंकि ये सूचनाएँ जो अंगूरीलता द्वारा संगठन में सभी तरफ बिना किसी आधिकारिक स्तर के आधार पर होती हैं अर्थात् अंगूरीलता औपचारिक संर्रेषण के स्रोतों को नहीं अपनाते।
अनौपचारिक संप्रेषण की आवश्यकता का कारण है- कर्मचारियों की आपस में विचारों का आदान-प्रदान जो औपचारिक माध्यमों द्वारा संभव नहीं है, वह इस माध्यम द्वारा पूरी होती है। कैंटीन में आपस में बात करते हुए जब कर्मचारी अपने अधिकारियों के व्यवहार के बारे में चर्चा करते हैं, अफवाहें उड़ाते हैं कि कुछ कर्मचारियों का स्थानांतरण होना है इत्यादि ऐसे कुछ उदाहरण अनौपचारिक संप्रेषण के अंतर्गत आते हैं। अंगूरीलता/अनौपचारिक संप्रेषण संस्था में बड़ी तेजी से फैलता है और कभी-कभी इनका स्वरूप बिगड़ भी जाता है जो नुकसानदेह हो सकता है। इस प्रकार के संप्रेषण के स्रोत को पता लगाना अत्यंत कठिन है। कई बार यह उन अफवाहों को भी संस्था में फैलाती है जो प्रामाणिक नहीं होती। इस प्रकार की अफवाहों तथा अनौपचारिक चर्चाओं से व्यक्तियों का व्यवहार प्रभावित होता है तथा कार्यस्थल के वातावरण में भी बाधा होती है। कई बार, अनौपचारिक माध्यम प्रबंधक के लिए सहायक भी होती हैं, जैसे सूचनाएँ इस माध्यम से जल्दी पहुँचती है, तथा प्रबंधक को इससे सहायता होती है, प्रबंधकों के द्वारा भी ये अनौपचारिक माध्यम अपनी अधीनस्थों की प्रतिक्रियाओं को जानने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। एक बुद्धिमान प्रबंधक को इन औपचारिक माध्यमों/सूचनाओं के सकारात्मक पक्षों का उपयोग करना चाहिए तथा इस संप्रेषण माध्यम के नकारात्मक पक्ष को कम करने का प्रयास करना चाहिए।
अंगूरीलता तंत्र
अंगूरीलता संप्रेषण विभिन्न प्रकार के तंत्र द्वारा संभव है। उनमें से कुछ तंत्र नीचे दिए चित्र में दर्शाए गए हैं-
इकहरी शृंखला तंत्र में, प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे से एक क्रम में संप्रेषण करता है। अफवाहेंगपशप तंत्र में प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी चयनित आधार के सभी से बातचीत करता है। संभाव्यता तंत्र के अंतर्गत एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से बिना किसी उद्देश्य के सूचनाओं को आदान-प्रदान करता है। समूह में, व्यक्ति उन्हों के साथ विचारों प्रभावी संप्रेषण में बाधाएँ का आदान-प्रदान करता है जिस पर उन्हें सामान्यतः ऐसा देखा गया है कि प्रबंधकों को संप्रेषण विश्वास है। तंत्र के टूटने अथवा बाधाओं के कारण बहुत सारी
चित्र 7.6-अंगूरीलता संप्रेषण, संचार तंत्र (Networks)
चित्र 7.7 -अंगूरीलता संप्रेषण
इस चार प्रकार के अंगूरीलता संप्रेषण तंत्र में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये बाधाएँ ‘समूह’ संगठन में सबसे अधिक लोकप्रिय है। प्रभावी संप्रेषण को रोकती हैं अथवा कुछ सूचनाओं को आवरित/छान देती है जिससे सूचना का कुछ भाग अधिकारियों तक नहीं पहुँच पाता अथवा कुछ गलत अर्थ भी निकाले जा सकते हैं जिसके द्वारा गलतफहमी पैदा हो सकती है। इसलिए, प्रबंधक के लिए महत्त्वपूर्ण है कि वह इन बाधाओं को पहचाने और इन्हें दूर करने के उपाय करे।
संगठन में प्रभावी संर्रेषण की ये बाधाएँ विस्तृत रूप से इस प्रकार वर्गीकृत की जा सकती हैंसंकेतीय बाधाएँ, मनोवैज्ञानिक बाधाएँ संगठनिक बाधाएँ तथा व्यक्तिगत बाधाएँ। इनकी संक्षिप्त चर्चा नीचे दी गई है-
संकेतिक/संकेतीय बाधाएँ
संकेत भाषा की वह शाखा है जो शब्दों तथा वाक्यों के अर्थ से संबंध रखती है। संकेतीय बाधाएँ उन समस्याओं तथा बाधाओं से संबंधित हैं जो संदेश की एनकोडिंग तथा डिकोडिंग करने की प्रक्रिया में उन्हें शब्दों अथवा संकेतों में परिवर्तित करते समय आती हैं। साधारणतः ऐसी बाधाएँ गलत शब्दों के प्रयोग के कारण, त्रुटिपूर्ण रूपांतरण, भिन्न अर्थ निकालने इत्यादि के कारण उत्पन्न होती है। इनकी चर्चा नीचे की गई है-
(क) संदेश की अनुपयुक्त अभिव्यक्ति- कई बार प्रबंधक अधीनस्थों को निर्दिष्ट अर्थ नहीं समझा पाता अथवा संप्रेषित कर पाता है। यह संदेश की अनुपयुक्त अभिव्यक्ति अपर्याप्त शब्द भंडार के कारण, गलत शब्द प्रयोग से, आवश्यक शब्दों के प्रयोग न करने के कारण इत्यादि से हो सकते हैं।
(ख) विभिन्न अर्थों सहित संकेतक- एक शब्द के बहुत से अर्थ हो सकते हैं। प्राप्तकर्ता को शब्द के उसी अर्थ को समझना है जो प्रेषक उसे समझाना चाहता है। उदाहरण के लिए, इन तीन वाक्यों को पढ़िए जिनमें ‘मूल्य’ (Value) शब्द का प्रयोग किया गया है -
1. इस अंगूठी का क्या मूल्य है?
2. मैं हमारी दोस्ती का आदर करता हूँ या मूल्य समझता हूँ।
3. कंप्यूटर का कौशल सीखने का क्या मूल्य/महत्त्व है?
आप पाएँगे कि ‘मूल्य’ शब्द भिन्न संदर्भों में अलग अर्थ दे रहा है। इसकी गलत समझ संप्रेषण समस्याओं को उत्पन्न करती है।
(ग) त्रुटिपूर्ण रूपांतर/अनुवाद - कुछ स्थितियों में, संप्रेषण का मसौदा मूल रूप से किसी एक भाषा में तैयार किया जाता है (उदाहरणतः अंग्रेजी) और इसे कर्मचारियों को समझाने के लिए इस रूपांतर (जैसे-हिंदी भाषा में) करना आवश्यक हो जाता है। यदि अनुवादक दोनों ही भाषाओं में पारंगत नहीं है, तो संप्रेषण को अन्य अर्थ देने के कारण अनुवाद में गलतियाँ हो सकती हैं।
(घ) अस्पष्ट संकल्पनाएँ- कुछ संप्रेषणों की विभिन्न सकल्पनाएँ, भिन्न व्याख्याओं के कारण हो सकती हैं।
उदाहरण के लिए, एक अधिकारी अपने अधीनस्थ को निर्देश दे सकता है, “मेरे अतिथि का ध्यान रखो” अधिकारी का तात्पर्य है कि अधीनस्थ को यातायात, खाना, अतिथि के रहने की व्यवस्था इत्यादि का ध्यान रखना है
जब तक वह स्थान से चला न जाए। अधीनस्थ की व्याख्या यह हो सकती है कि अतिथि को उपयुक्त होटल में ध्यान से पहुँचाना है। वास्तव में अतिथि को इन अस्पष्ट पूर्वधारणा या कल्पनाओं के कारण नुकसान होता है।
(ङ) तकनीकी विशिष्ट शब्दावली- ऐसा प्रायः पाया जाता है कि विशेषज्ञ तकनीकी शब्दों का अत्यधिक प्रयोग करते हैं उन व्यक्तियों को समझाने में जो उस संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ नहीं होते। इसलिए, वे बहुत से ऐसे शब्दों का वास्तविक अर्थ समझ नहीं पाते।
(च) शारीरिक भाषा तथा हाव- भाव की अभिव्यक्ति की डिकोडिंग-शरीर की प्रत्येक गतिविधि कुछ न कुछ अर्थ संप्रेषित करती है। प्रेषक के शरीर के हाव-भाव तथा संकेत संदेश देने में अत्यंत महत्त्व रखते हैं। यदि जो कहा जाता है तथा जो शरीर के हाव-भाव द्वारा व्यक्त होता है उसमें ताल-मेल न हो तो, संप्रेषण का गलत अर्थ निकाला जा सकता है।
मनोवैज्ञानिक बाधाएँ
भावात्मक अथवा मनोवैज्ञानिक कारक संप्रेषकों की बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए, एक चिंतित व्यक्ति उपयुक्त तरीके से संप्रेषण नहीं कर सकता तथा एक क्रोधी संदेश प्राप्तकर्ता संदेश का सही अर्थ नहीं समझ सकता। प्रेषक तथा संदेश प्राप्तकर्ता दोनों की ही मानसिक स्थिति (मनःस्थिति) प्रभावी संग्रेषण में प्रदर्शित होती है। कुछ मनोवैज्ञानिक बाधाएँ इस प्रकार से हैं -
(क) असामयिक मूल्यांकन- कुछ स्थितियों में लोग संदेश के अर्थ का मूल्यांकन पहले ही कर लेते हैं इसके पहले कि प्रेषक अपना संदेश पूर्ण करे। इस प्रकार का कालपूर्व मूल्यांकन पूर्वकल्पित धारणाओं अथवा पक्षपात जो संप्रेषण के विरुद्ध होता है, उनके कारण हो सकता है।
(ख) सावधानी का अभाव/ध्यान न होना- संदेश प्राप्तकर्ता का दिमाग यदि कहीं और ध्यानमग्न हो तो परिणामतः संदेश को ध्यानपूर्वक न सुनना एक मुख्य मनोवैज्ञानिक बाधा के रूप में कार्य करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई कर्मचारी अपनी समस्याओं के बारे में अपने अधिकारी को बता रहा है जो अपनी किसी महत्त्वपूर्ण फाइल में ध्यानमग्न है, अधिकारी उसके संदेश को समझ नहीं पाता तथा कर्मचारी हतोत्साहित हो जाता है।
(ग) संर्रेषण के प्रसारण में लोप/क्षय तथा अपर्याप्त प्रतिधारण- जब संग्रेषण विभिन्न स्तरों से प्रसारित होती है, उतरोत्तर संदेश का प्रसारण का परिणाम संदेश का क्षय, अथवा अशुद्ध सूचना के रूप में प्रतिफलित होता है। यह अधिकतर मौखिक संप्रेषण में पाया जाता है।
अकुशल प्रतिधारण क्षमता एक अन्य समस्या है। सामान्यत- व्यक्ति जो सूचना को अधिक समय तक प्रतिधारण नहीं कर सकते, वे या तो रुचि नहीं लेते या असावधान होते हैं।
(घ) अविश्वास- संप्रेषक तथा संदेश प्राप्तकर्ता के मध्य अविश्वास एक बाधक के रूप में कार्य करता है। यदि दोनों ही एक-दूसरे पर विश्वास नहीं करते, तो वे एक-दूसरे के संदेश को उसके मूल अर्थों में नहीं समझा पाएँगे।
संगठनिक बाधाएँ
वे कारक जो संगठनिक संरचना, आधारिक संबंधों, नियम तथा अधिनियम इत्यादि से संबंधित हैं, कभी-कभी, प्रभावी संप्रेषण में बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं। उनमें से कुछ बाधाएँ इस प्रकार से हैं -
(क) संगठनिक नीति- यदि संगठनिक नीति, सुव्यक्त अथवा अंतर्निहित, संप्रेषण के स्वतंत्र प्रवाह में सहायक नहीं होते, तो ये संप्रेषण की प्रभावशीलता में बाधा पहुँचाते हैं। उदाहरण के लिए, किसी संस्था में जिसकी रूपरेखा अत्यंत केंद्रित है, व्यक्ति मुक्त रूप से संप्रेषण के लिए उत्साहित नहीं होते।
(ख) नियम तथा अधिनियम- सख्त नियम तथा बोझिल प्रक्रियाएँ संप्रेषण में बाधक हो सकती हैं। उसी प्रकार से, निर्दिष्ट माध्यमों से संप्रेषण विलंब के रूप में परिलक्षित हो सकता है।
(ग) पदवी/पद- अधिकारी की पदवी उसके तथा उसके अधीनस्थों के मध्य मनोवैज्ञानिक दूरी उत्पन्न कर सकती है। अपनी पदवी से प्रभावित प्रबंधक अपने अधीनस्थों को अपनी भावनाओं की स्वतंत्र अभिव्यक्ति की अनुमति नहीं देता।
(घ) संगठन की संरचना में जटिलत- किसी भी संस्था में जहाँ प्रबंधक स्तरों की संख्या अधिक है, संप्रेषण में विलंब होता है तथा उसमें विकार भी आ सकता है क्योंकि सूचनाएँ विभिन्न स्तरों से जितनी बार होकर गुजरती हैं उतना ही उसका क्षय होता है।
(ङ) संगठनिक सुविधाएँ- यदि संप्रेषण के लिए निर्बाध, स्पष्ट तथा समय पर सुविधाएँ न उपलब्ध हों तो प्रभावी संप्रेषण में बाधा आती है। सुविधाएँ जैसे-निरंतर सभाएँ, सुझाव पेटी, शिकायत पेटी, सामाजिक तथा सांस्कृतिक जनसमूह, कार्य-संचालन में पारदर्शिता इत्यादि संप्रेषण के स्वतंत्र प्रवाह को प्रोत्साहित करती है। इन सुविधाओं का अभाव संप्रेषण संबंधित समस्याएँ उत्पन्न करता है।
व्यक्तिगत बाधाएँ
प्रेषक तथा संदेश प्राप्तकर्ता दोनों के व्यक्तिगत कारक भी प्रभावी संप्रेषण पर असर डाल सकते हैं। अधिकारी तथा अधीनस्थों के कुछ व्यक्तिगत बाधाओं के उल्लेख नीचे दिए गए हैं-
(क) सत्ता के सामने चुनौती का भय- यदि कोई अधिकारी यह अनुमान लगाता है कि कोई विशेष सूचना/संप्रेषण उसकी सत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है, तो वह उस संप्रेषण को रोक सकता है या प्रतिबंध लगा देता है।
(ख) अधिकारी का अपने अधीनस्थों में विश्वास का अभाव- यदि अधिकारी को अपने अधीनस्थों की कुशलता में विश्वास नहीं करता या वह आश्वस्त नहीं होता, तो वे उनके विचार तथा सुझाव नहीं लेता।
(ग) संर्रेषण में अनिच्छा- कभी-कभी, कर्मचारी/अधीनस्थ अपने अधिकारियों से संप्रेषण के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होते, यदि उन्हें यह लगता है कि यह उनके हितों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगी।
(घ) उपयुक्त प्रोत्साहनों का अभाव- यदि संग्रेषण के लिए कोई अभिप्रेरणा अथवा प्रोत्साहन न हो, कर्मचारी संप्रेषण के लिए पहल नहीं करेंगे। उदाहरण के लिए, यदि अच्छे सुझाव के लिए कोई प्रशंसा/सराहना अथवा प्रतिफल न हो, तो कर्मचारी कोई उपयोगी सुझाव देने के लिए इच्छुक नहीं होंगे।
प्रभावी संप्रेषण के लिए सुधार
सभी संगठनों में प्रभावी संप्रेषण में बाधाएँ अधिक या कम अंश में विद्यमान रहती हैं। वे संस्थाएँ जो प्रभावपूर्ण संप्रेषण के विकास के लिए उत्सुक होती हैं, उन्हें इन बाधाओं को दूर करने के लिए उपयुक्त उपाय करने चाहिए तथा संप्रेषण में सुधार लाकर उसे प्रभावी बनाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसे ही कुछ उपायों का उल्लेख नीचे किया गया है -
(क) संप्रेषण करने से पहले विचार/लक्ष्य स्पष्ट करने चाहिए- किसी भी समस्या को अधीनस्थों को बताने से पहले अधिकारी को स्वयं ही सभी परिप्रेक्ष्य से समस्या स्पष्ट होनी चाहिए। पूरी समस्या का अध्ययन गहराई से होना चाहिए, विश्लेषण होना चाहिए तथा उसे इस प्रकार रखना चाहिए कि अधीनस्थों को स्पष्ट रूप से प्रेषित हो।
(ख) संदेश-प्राप्तकर्ता की आवश्यकतानुसार संप्रेषण करें- प्राप्तकर्ता की समझ का स्तर प्रेषक को पारदर्शक के समान स्पष्ट होना चाहिए। प्रबंधक को अपना संप्रेषण अधीनस्थों की शिक्षा तथा उनकी समझ के स्तर के अनुसार ही व्यवस्थित करना चाहिए।
(ग) संप्रेषण के पहले अन्य लोगों से भी परामर्श करें- संदेश को वास्तविक रूप में संप्रेषित करने से पहले, यह बेहतर है कि संर्रेषण की योजना अन्य संबंधित लोगों को सम्मिलित करके बना लेनी चाहिए। अधीनस्थों की भागीदारी तथा उनका इसमें शामिल होना उनकी तत्काल स्वीकृति तथा ऐच्छिक सहयोग प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होती हैं।
(घ) संदेश में प्रयुक्त भाषा, शैली तथा उसकी विषय- वस्तु के लिए जागरूक रहें-संदेश की विषय-वस्तु, शैली तथा भाषा-प्रयोग, इस प्रकार से संदेश का संचार होना है इत्यादि प्रभावी संप्रेषण के महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं। भाषा का प्रयोग ऐसा होना चाहिए जो संदेश प्राप्तकर्ता को समझ में आए तथा सुनने वाले की भावनाओं को ठेस न पहुँचाए। संदेश ऐसा होना चाहिए जो सुनने वालों को उनकी प्रतिक्रियाएँ देने में उत्प्रेरक का कार्य करें।
(ङ) ऐसा संप्रेषण करें जो सुनने वालों के लिए सहायक हो तथा महत्त्वपूर्ण/ मूल्यवान हो- संदेश को अन्य लोगों को व्यक्त करते समय, यह बेहतर है कि जिनके साथ संप्रेषण करना है उन लोगों की रुचियों तथा आवश्यकताओं को जान लें। यदि संदेश उनकी इन अभिरुचियों तथा आवश्यकताओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित है तो यह अवश्य प्राप्तकर्ता से उनकी प्रतिक्रिया उत्पन्न करने में सक्षम सिद्ध होगी।
(च) उपयुक्त प्रतिपुष्टि निश्चित करें- प्रेषक व्यक्त/प्रेषित संदेश से संबंधित प्रश्न पूछकर संप्रेषण की सफलता निश्चित कर सकता है। संदेश प्राप्तकर्ता को भी संप्रेषण का प्रत्युत्तर द्वारा जवाब देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। संप्रेषण की प्रक्रिया को प्राप्त प्रतिपुष्टि के आधार पर सुधारा जा सकता है ताकि वह अधिक प्रतिक्रियात्मक बन सके।
(छ) वर्तमान तथा भविष्य दोनों के लिए संप्रेषण करें- सामान्यतः संप्रेषण की आवश्यकता वर्तमान प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए पड़ती है। सामंजस्य बनाए रखने के लिए, संप्रेषण करते समय संस्था के भविष्य के लक्ष्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
(ज) संप्रेषण का अनुसरण- नियमित रूप से अधीनस्थों को दिए गए आदेशों का अनुसरण होना तथा उनका पुनरावलोकन होना चाहिए। इस प्रकार का अनुसरण आदेशों के सफल क्रियान्वयन में आने वाली बाधाओं को यदि कोई आती हैं, तो उन्हें दूर करने में सहायक सिद्ध होती है।
(झ) एक अच्छा श्रोता बनिए- प्रबंधक को एक अच्छा श्रोता होना चाहिए। धैर्यपूर्वक तथा ध्यानपूर्वक सुनने से समस्या का आधा हल स्वतः हो जाता है। प्रबंधक को ऐसा संकेत भी देना चाहिए कि वह अपने अधीनस्थों को सुनने में रुचि ले रहा है तथा उनके हितों को ध्यान में रख रहा है।
मुख्य शब्दावली
निर्देशन | एनकोडिंग | पर्यवेक्षण | डिकोडिंग | उद्देश्य | प्रतिपुष्टि | अभिप्रेरणा | सांकेतिक | प्रेरक/प्रोत्साहन | औपचारिक संर्रेषण | आत्म-संतुष्टि | अनौपचारिक संप्रेषण | मान-सम्मान की आवश्यकता | लाभ विभाजन | नेतृत्व | सह-साझेदारी | विशेषता उपागम | गुणवत्ता चक्र | संप्रेषण/संचार | स्कंध विकल्प
सारांश
निर्देशन
संगठन के प्रबंधन के संदर्भ में, निर्देशन व्यक्तियों को आदेश देने, मार्गदर्शन, परामर्श, अभिप्रेरित तथा कुशल नेतृत्व प्रदान करने की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति है। निर्देशन की मुख्य विशेषताओं की चर्चा नीचे की गई है -
निर्देशन क्रिया को प्रारंभ करता है, निर्देशन प्रबंधन के प्रत्येक स्तर पर निष्पादित होता है, निर्देशन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है तथा निर्देशन ऊपर से नीचे की तरफ प्रवाहित होता है।
पर्यवेक्षण
निर्देशन के एक तत्व के रूप में संगठन के प्रत्येक प्रबंधक को अपने अधीनस्थों का पर्यवेक्षण करना पड़ता है। इस अर्थ में, पर्यवेक्षण को एक प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है, जो वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कर्मचारियों के प्रयासों के मार्गदर्शन तथा अन्य संसाधनों के प्रयोग से संबंधित है। इसका अर्थ है अधीनस्थों द्वारा किए गए कार्यों का निरीक्षण तथा यह निश्चित करने के लिए कि संसाधनों के अधिकतम प्रयोग एवं कार्य लक्ष्यों को पूरा करने हेतु अधीनस्थों को आवश्यक निर्देश देना है।
अभिप्रेरणा
अभिप्रेरणा का अर्थ है किसी भी कार्य या क्रिया को प्रेरित अथवा प्रभावित करना। व्यवसाय के संदर्भ में, इसका अर्थ उस प्रक्रिया से है जो अधीनस्थों को निर्धारित संगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक वांछित रूप से कार्य करने के लिए तैयार करती है। अभिप्रेरणा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगों को, वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रेरित किया जाता है। अभिप्रेरणा कर्मचारियों के नकारात्मक अथवा उनके निष्क्रिय/तटस्थ दृष्टिकोण (अभिवृत्ति) को संगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उनके सकारात्मक रूपांतरण में सहायक हैं। अभिप्रेरणा कर्मचारियों के संस्था को छोड़ कर जाने की दर को कम करती है तथा इससे नयी नियुक्ति तथा प्रशिक्षण लागत में बचत होती है। अभिप्रेरणा संगठन को अनुपस्थिति को भी कम करने में सहायक है। अभिप्रेरणा प्रबंधकों को नए परिवर्तनों को प्रारंभ करने में बिना लोगों के विरोध के, सहायता देती है।
नेतृत्व
नेतृत्व व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करने की वह प्रक्रिया है, जो उन्हें स्वतः ही संगठनिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए प्रतिस्पर्धित करती है। नेतृत्व संकेत करती है किसी व्यक्ति की उस योग्यता की जो अनुयायियों के मध्य अच्छे पारस्परिक संबंधों को बनाए रखने में तथा उन्हें अभिप्रेरित करने की जिससे वे संगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना योगदान दे सकें। अच्छे नेता की विशेषताएँ हैंशारीरिक विशेषताएँ, ज्ञान, सत्यनिष्ठाईमानदारी, पहल, संप्रेषण कौशल, अभिप्रेरणा कौशल, आत्म-विश्वास, निर्णय लेने की क्षमता तथा सामाजिक कौशल। नेतृत्व की तीन मुख्य शैलियाँ हैं-
(क) लोकतांत्रिक या सत्तावादी - नेता आदेश देता है और उम्मीद करता है कि उसके अधीनस्थ उन आदेशों का पालन करें। प्राधिकरण को नेता के साथ केंद्रीकृत/बनाए रखा गया है।
(ख) सहभागिता या लोकतांत्रिक-नेता निर्णय लेने की प्रक्रिया में कर्मचारियों को शामिल करता है और अपने अधीनस्थों के परामर्श से निर्णय लेता है।
(ग) लाईसेज़ फेयर या फ्री-रेन लीडर-नेता कर्मचारियों को अपने फैसले लेने की इजाजत देता है। हालांकि वह उनका समर्थन करने और आवश्यक जानकारी या सहायता प्रदान करने के लिए वहाँ है।
संप्रेषण
संप्रेषण संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पारस्परिक समझ का आदान-प्रदान किया जाता है। संचार प्रक्रिया में स्रोत, साधन, प्राप्तकर्ता तथा एनकोडिंग, डिकोडिंग, प्रतिपुष्टि इत्यादि शामिल हैं। एक संगठन में औपचारिक तथा अनौपचारिक संप्रेषण साथ-साथ होते हैं। औपचारिक संचार में दफ्तरी संचार के रूप में आदेश, सूची (मीमो), अपील, नोट, सर्कुलर, ऐजेंडा आदि का प्रयोग किया जाता है। औपचारिक संप्रेषण के अतिरिक्त, अनौपचारिक संप्रेषण अथवा अंगूरीलता संप्रेषण भी होता है। अनौपचारिक संचार प्रायः अफवाह, फुसफुसाहट इत्यादि के रूप में प्रयोग होता है। ये आधिकारिक अथवा औपचारिक नहीं होते स्वतः होते हैं। इसका कोई रिकार्ड नहीं होता, प्राय: बड़ी तेजी से फैलती है तथा सामान्यतः इसका स्वरूप बिगड़ जाता है। एक प्रबंधक को अनौपचारिक संप्रेषण का भी प्रबंध आना चाहिए। अधिकतर संगठनों में, प्रभावी संप्रेषण में कई व्यवधान/बाधाएँ होती हैं। इन व्यवधानों में सीमैंटीक (संकेतिक) बाधा, संगठनिक बाधाएँ, भाषा संबंधित व्यवधान, संचार व्यवधान, मनोवैज्ञानिक बाधाएँ तथा व्यक्तिगत बाधाएँ आदि सम्मिलित होते हैं। प्रबंधकों को इन बाधाओं को दूर करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने चाहिए तथा संस्था में प्रभावी संप्रेषण को बढ़वा देना चाहिए।
1. नेता और प्रबंधक के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।
2. ‘अभिप्रेरणा’ को परिभाषित कीजिए।
3. अनौपचारिक संप्रेषण क्या है?
4. प्रभावी संप्रेषण में सांकेतिक बाधाएँ क्या हैं?
5. पर्यवेक्षक कौन है ?
6. निर्देशन के तत्व क्या हैं?
7. अभिप्रेरणा की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
8. अंगूरीलता संप्रेषण के विभिन्न तंत्रों का वर्णन कीजिए।
अभ्यास
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. अनौपचारिक संचार क्या है?
2. नेतृत्व की कौन-सी शैली शक्ति के उपयोग में विश्वास नहीं करती, जब तक कि यह बिल्कुल जरूरी न हो?
3. संचार प्रक्रिया में कौन-सा तत्व संदेश को शब्दों, प्रतीकों, हाव-भाव आदि में परिवर्तित करने में शामिल है?
4. मज़दूर हमेशा अपनी अक्षमता दिखाने की कोशिश करते हैं जब उन्हें कोई नया काम दिया जाता है। वे हमेशा किसी भी तरह का काम लेने के इच्छुक नहीं होते। माँग में अचानक बढ़ोत्तरी के कारण एक फर्म अतिरिक्त आदेशों को पूरा करना चाहती है। पर्यवेक्षक को स्थिति से निपटना मुश्किल हो रहा है। निर्देशन के तत्व बताएँ जो पर्यवेक्षक को समस्या को संभालने में मदद कर सकते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. संचार की अर्थपूर्ण बाधाएँ क्या हैं?
2. चित्र की मदद से अभिप्रेरणा की प्रक्रिया की व्याख्या करें।
3. अंगूरीलता संचार के विभिन्न नेटवर्क बताएँ।
4. निर्देशित करने के किन्हीं तीन सिद्धांतों की व्याख्या करें।
5. एक संगठन में, विभागीय प्रबंधकों में से एक दृढ़ है और एक बार निर्णय लेने के बाद वह विरोधाभास नहीं चाहता। परिणामस्वरूप, कर्मचारियों को हमेशा लगता है कि वे तनाव में हैं और प्रबंधक के सामने अपनी राय और समस्याओं को व्यक्त करने में डरते हैं। प्रबंधक द्वारा अपने अधिकार के प्रयोग के तरीके में क्या समस्या है?
6. एक प्रतिष्ठित हॉस्टल ‘ज्ञानप्रदान’ अपने कर्मचारियों के बच्चों को चिकित्सा सहायता और मुक्त शिक्षा प्रदान करता है। यहाँ कौन-सा प्रोत्साहन उजागर किया जा रहा है? इसकी श्रेणी बताएँ और उसी श्रेणी के किन्हीं दो प्रोत्साहनों का नाम दें।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. मेस्लो द्वारा प्रतिपादित अभिप्रेरणा पदानुक्रम सिद्धांत की आवश्यकता पर चर्चा करें।
2. प्रभावी संचार के लिए आम बाधाएँ क्या हैं? उन्हें दूर करने के उपायों का सुझाव दें।
3. किसी कंपनी के कर्मचारियों को प्रेरित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले विभिन्न वित्तीय और गैर-वित्तीय प्रोत्साहनों की व्याख्या करें?
4. एक संगठन में सभी कर्मचारी चीज़ों को आसान बनाते हैं और मामूली प्रश्नों और समस्याओं के लिए किसी से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं। इसके परिणामस्वरूप हर कोई एक दूसरे पर दायित्व डालता है और इस प्रकार कार्यालय में अक्षमता उत्पन्न होती है। इसके परिणामस्वरूप गोपनीयता कम हुई है और गोपनीय जानकारी बाहर गयी है। आपके अनुसार प्रबंधक को संचार में सुधार करने के लिए कौन-सी प्रणाली अपनानी चाहिए?